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र्ाज्ञवल्क्य उवाच-
र्ाज्ञवल्क्यजी बोले - हे मु नि श्रे ष्ठ! सूर्य के शु भ कवच को सुिो, जो शरीर को आरोग्य र्े िे वाला है
तथा संपूणय नर्व्य सौभाग्य को र्े िे वाला है ।
चमकते हुए मु कुट वाले डोलते हुए मकराकृत कुंडल वाले हजार नकरण (सूर्य) को ध्याि करके
र्ह स्तोत्र प्रारं भ करें ।
मे रे नसर की रक्षा भास्कर करें , अपररनमत कां नत वाले ललाट की रक्षा करें । िेत्र (आं खों) की रक्षा
नर्िमनण करें तथा काि की रक्षा नर्ि के ईश्वर करें ।
मे री िाक की रक्षा धमय घृनण, मु ख की रक्षा र्े ववंनर्त, नजव्ा की रक्षा मािर्् तथा कंठ की रक्षा र्े व
वंनर्त करें ।
स्नाि करके जो कोई स्वच्छ नचत्त से कवच पाठ करता है वह रोग से मु क्त हो जाता है , र्ीघाय र्ु
होता है , सुख तथा र्श प्राप्त होता है ।
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सूर्य पूजा, सूर्ाय र्घ्य और सूर्य िमस्कार से नमलते हैं सेहत और सौभाग्य के कई वरर्ाि