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'सूर्यकवचम'

र्ाज्ञवल्क्य उवाच-

श्रणुष्व मु निशार्ू य ल सूर्यस्य कवचं शु भम् ।

शरीरारोग्दं नर्व्यं सव सौभाग्य र्ार्कम् ।1।

र्ाज्ञवल्क्यजी बोले - हे मु नि श्रे ष्ठ! सूर्य के शु भ कवच को सुिो, जो शरीर को आरोग्य र्े िे वाला है
तथा संपूणय नर्व्य सौभाग्य को र्े िे वाला है ।

र्े र्ीप्यमाि मु कुटं स्फुरन्मकर कुण्डलम।

ध्यात्वा सहस्त्रं नकरणं स्तोत्र मे ततु र्ीरर्ेत् ।2।

चमकते हुए मु कुट वाले डोलते हुए मकराकृत कुंडल वाले हजार नकरण (सूर्य) को ध्याि करके
र्ह स्तोत्र प्रारं भ करें ।

नशरों में भास्कर: पातु ललाट मे डनमत र्ु नत:।

िे त्रे नर्िमनण: पातु श्रवणे वासरे श्वर: ।3।

मे रे नसर की रक्षा भास्कर करें , अपररनमत कां नत वाले ललाट की रक्षा करें । िेत्र (आं खों) की रक्षा
नर्िमनण करें तथा काि की रक्षा नर्ि के ईश्वर करें ।

ध्राणं धमं धृनण: पातु वर्िं वेर् वाहि:।

नजव्ां में मािर्: पातु कण्ठं में सुर वन्दित: ।4।

मे री िाक की रक्षा धमय घृनण, मु ख की रक्षा र्े ववंनर्त, नजव्ा की रक्षा मािर्् तथा कंठ की रक्षा र्े व
वंनर्त करें ।

सूर्य रक्षात्मकं स्तोत्रं नलन्दखत्वा भूजय पत्रके।

र्धानत र्: करे तस्य वशगा: सवय नसद्धर्: ।5।


सूर्य रक्षात्मक इस स्तोत्र को भोजपत्र में नलखकर जो हाथ में धारण करता है तो संपूणय नसन्दद्धर्ां
उसके वश में होती हैं ।

सुस्नातो र्ो जपेत् सम्यग्योनधते स्वस्थ: मािस:।

सरोग मु क्तो र्ीघाय र्ु सुखं पुनटं च नवर्ं नत ।6।

स्नाि करके जो कोई स्वच्छ नचत्त से कवच पाठ करता है वह रोग से मु क्त हो जाता है , र्ीघाय र्ु
होता है , सुख तथा र्श प्राप्त होता है ।

...

सूर्य पूजा, सूर्ाय र्घ्य और सूर्य िमस्कार से नमलते हैं सेहत और सौभाग्य के कई वरर्ाि

-डॉ. कुमु र् र्ु बे

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