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VOLUME 3 ISSUE 2 www.transframe.

in ISSN 2455-0310

‘अधिं ेरे मप’ लबिं ी कहितण र उसके अनिु णद कण पिरचय

प्रस्तणिनण
ह दिं ी कहितण कणल के अनसु णर अपनण तेिर बदलती र ी ।ै अब सिणल य भी उठतण ै हक
इस बदलते तेिर की प्रणरिंहभक अिस्थण मप पी े की र ेगे की प्रि्हायण हदईणद देती ऐ? ेसे ी
बदलते तेिर के अतिं गात ेज म? गजणनन मणधि महु िबोध की कहितण के बणरे मप चचणा करते एु ,
उसके अन्य भणाणं िं मप कै से अनिु णद के ्णरण प चुिं णए गए, इसकण सहिं षिप्‍त पिरचय देनण चण ती ।।
ितामणन सणल 2017 महु िबोध कण जन्म तती सणल ।ै उनकी रचनणं िं कण पनु ापणठ ो र ण ।ै पनु
उनकी रचनणं िं के बणरे मप यणद करनण सणह त्यकणर की हज्‍मेदणरी ,ै ‍य हक उनकी कहितण के तेिर
ेज भी उतने ी प्रणसहिं गक ।ै
‘अधिं ेरे मप’ महु िबोध की लबिं ी कहितण ।ै य कणलजयी क् हत ।ै लबिं ी कहितण मप अतिं र ््िं
यण कहि के मणनस कण अतिं सिंघाा भणि प्रिर्तण के सणथ प्रहतहबिंहबत ोतण ।ै कहि कण य अतिं सिंघाा
व्यहपपरक र समहपपरक दोन ूपप मप सभिं ि ।ै इस अतिं सघिं ाा मप ्न््णत्मकतण उस के सई ु -दईु ,
प्रकणत-अधिं कणर, ेतण-हनरणतण ,रणग –्ेा ेहद पषिप को दोन ूपप मप हनूपपर् करने कण प्रयणस
ोतण ।ै कहि इस अतिं र ््िं णत्मक मन हस्थहत कण हचत्रर् करने के हलए प्रतीकणत्मकतण को प्रयोग
डॉ. अन्नपूर्णा सी. करतण ।ै इस प्रकणर प्रयोग की गद लिंबी कहितण ै ‘अधिं ेरे मप’। क ण जणतण ै हक कहि अपनी इस
प्रोफे सर,ह दिं ी हिभणग, उद्देश्य की पहू ता के हलए फै न् ेसी कण सफल प्रयोग करतण ।ै फै न् सी मतू ा से ेमतू ा की ंर अ्रससर
मणनहिकी सक िं णय , ोने की प्रहियण ।ै । मणने चेतन र अिचेतन मन मप घह त ोनेिणली घ नणं िं से सिंबहिं धत ।ै
दै रणबणद के न्रीय कणव्य मप य फै िंसी एक ेकनीक के ूपप मप प्रय‍ु त की जणती ।ै य लिंबी कहितणं िं मप
हिश्व हिद्यणलय प्रयोग की जणती ।ै नद कहितण मप इस कण श्रेय महु िबोध को हदयण जणतण ।ै महु िबोध ने ‘अधिं ेरे मप’
दै रणबणद-500046 लिंबी कहितण को प्रतीकणत्मक ूपप मप हचत्रर् हकयण। तीााक ्णरण ी पणठक के मन मप य उत्सक ु तण
(तेलिंगणनण)
Email :- पैदण की जणती ै हक य कौन सण अधिं ेरण ऐै ‍यण कहि अधमा, अज्ञणन, हप ड़ेपन यण असत्य से ूूू ने
annacherla@yahoo.com िणले मन के सक िं े त ूपप मप अधिं ेरे को इस्तेमणल कर र ण ऐै
Mo. 09422903108
णयणिणदी यगु की प्रि्हायण, जैस-े ेत्मणहभव्यहि- म? तैली ,सौंदया भणिनण (प्रक् हत र
नणरी) प्रक् हत प्रेम, र स्य भणिनण ,रण्‍रीय भणिनण (मणनितणिणद), कूपर्ण, निीन अहभव्यिंजन ेहद...
इस यगु की कहितण मप कथ्य यण कथण िस्तक ु ी प्रधणनतण न ीं ।ै इस प्रकणर के तत्ि की कहितण मप
1936 सप पिरितान ेने लगण । कहि की कल्पनणमय जगत से यथणथा की ंर ्‍यणन ेक् ्‍ करने
लगे। य ी से प्रगहततील र प्रगहतिणद की प्रणरिंहभक दतण तूप ु ोती ।ै ह दिं ी र अन्य भणरतीय
भणाणं िं मप मण‍सािणदी हसद्णिंत से प्रेिरत ोकर कणव्य की रचनण करने लगे। ह दिं ी मप प्रगहतिणद के ूपप
मप तेलगु ु मप अभ्यदु य कहितण के ूपप मप हिकणस ोने लगे। (इस के अतिं गात कहि पतिं हदनकर,
बणलक् ्‍र् तमणा निीन , नणगणजनाु ेहद ेते ? । तेलगु ु मप श्री
श्री ,दणतरथी ,नणरणयर्रेड्डी ,कणलोजी, नणरणयर्रणि ेहद ेते ।? )
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महु िबोध की रचनणए नद कहितण के अतिं गात मणनी जणती ।ै ‘अधिं ेरे मप’ प्रगहतिणद र प्रयोगिणद की प्रि्हाय के सणथ
अपने हिहतप तेिर के सणथ प्रस्ततु ।ै इस प्रपत्र मप म? इस कहितण र उसके मरणठी भणाण मप एु अनिु णद र नण ् य मचिं न के बणरे
मप अतिं रप्रतीकणत्मक अनिु णद की दृहप से चचणा करनण चण ती ।।

मुहिबोध की कणव्य भणाण र प्रतीक प्रयोग


महु िबोध एक सति यथणथािणदी कहि र े ।? कणव्य भणाण को सदृु ढ़ र हिचणरणहभव्यहि मप सषिपम ोनण ेिश्यक ,ै
‍य हक भणाणहभव्यहि कण पषिप ी कहितण र कहितण के मण्‍यम से कहि को म णन बनणने मप स णयक ोती ।ै महु िबोध की
कणव्य भणाण मप हिहभन्न तब्दणिहलय कण हमश्रर् देईने को हमलतण ।ै तत्सम, तद्भि, अरबी, फणरसी, अ्रसिं ेज़ी सभी भणाणं िं के
तब्द कण प्रयोग उन् ने हकयण ।ै उनकी कहितण मप यगु की नद चेतनण नए ूपप मप र नद कणव्य भणाण मप अहभव्यि दु ै जो
हिरो से भरपरू ।ै र य हिरो उनके ्णरण प्रयि ु प्रतीक के मण्‍यम से हचगिं णिरय की तर उठतण ।ै प्रतीक कण प्रयोग कणव्य
प्रहियण कण एक अगिं ,ै कहि की हिचणरधणरण को ेगे बढ़णने मप प्रतीक कण प्रयोग म त्िपर्ू ा ोतण ।ै महु िबोध के प्रतीक भी एक
हनहित हिचणरधणरण (जो हक मण‍सािणदी )ै को अहभव्यहिं जत करने कण लक्ष्य लेकर चलते ुए हदईणद देते ।? ‘अधिं ेरे मप’ स्ि्‍न के
भीतर चलतण स्ि्‍न ।ै य एक हचत्र त्िंईलण ,ै हजसमप स्ि्‍न ू ते ,ै लेहकन त्िंईलण ईहिं डत न ीं ोती। तमतेर की ह ्‍पर्ी
म त्त्िपर्ू ा ै हक य कहितण स्ितत्रिं तणपिू ा र स्ितत्रिं तण पिणत कण द कतण इस्पणती दस्तणिेज ।ै जगदीत गप्तु महु िबोध की
कहितणं िं के बणरे मप हलईते ,? ''म? उनकी कहितणं िं को पढ़कर इस हन्‍काा पर प चण ु । हक उन् ने अपनी अहभव्यहि के अनूप ु प
ूपपक , प्रतीक , हब्‍ब की पिरकल्पनण करते एु सति भणाण गढ़ी ।ै अत हजतने अत िं मप उनकी अहभव्यहि सफल ुद ै उतने
अत िं मप िे अपनी मणन्यतण के अनूप
ु प म णन क लणने के कदणर ।? ( गगणिं प्रसणद हिमल; महु िबोध कण रचनण ससिं णर; साु मण
पस्ु तकणलय,हदल्ली; 1986, प्. 71)

‘अधिं रे े मप’ कहितण र अतिं रप्रतीकणत्मक अनिु णद


‘अधिं ेरे मप’ कण अनिु णद तेलगु ,ु कन्नड, बणिंग्लण, उदा,ू ंहड़यण, महर्परु ी ेहद लगभग बणर भणरतीय भणाणं िं मप अनिु णद
हकयण गयण ।ै इसकण मरणठी अनिु णद मेघण ेचणया ने ‘कणळोईणत’ तीााक से हकयण ।ै अ्रसिं ेजी मप भी ‘इन द डणका ’ तीााक से क् ्‍र्
बलदेि िैद ने अनिु णद हकयण ।ै अनिु णद षिपेत्र के अधनु णतन हिस्तणर को अतिं रप्रतीकणत्मक अनिु णद के ूपप मप देईण जणतण ।ै य
सिंदभा स्रोत र लक्ष्य पणठ को सिंकेत र प्रतीक के व्यिस्थण के ूपप मप देईतण ।ै ‘कणळोईणत’ कण नण ् य ूपपणिंतरर् भी रिंगमचिं
पर प्रस्ततु हकयण गयण ।ै य तो सीधे ूपप मप अतिं रप्रतीकणत्मक अनिु णद ,ै हजसमप स्रोत पणठ भणहाक तो लक्ष्य पणठ भणाेतर व्यिस्थण
।ै अत य ण कणव्य से उभरते एु सिंकेत र उसके अनिु णद मरणठी, अ्रसिं ेजी अनिु णद र उसके रिंगमचिं ीय प्रस्तहु त पर
अतिं रप्रतीकणत्मक अनिु णद की दृहप से चचणा की जणएगी।
‘अधिं रे े मप’ भणाण से भणाण मप स्जनणिंतरर्
कणव्यणनिु णद जह ल कणया ।ै मल ू क् हत की हिायिस्तु मप हचहत्रत सिंिदे नणं िं को पकड सकते ,? लेहकन उस की कलणत्मक
अनभु हू त तक प चनणु कहठन ।ै कणव्यणनिु णद करते समय अनिु णदक को दोन भणाणं िं कण स्‍यक ज्ञणन ी न ीं, बहल्क अनिु णदक
को कहित्ि तहि र सजानणत्मक प्रहतभण की भी ेिश्यकतण ोती ।ै कणव्य कण अनिु णदक भी मल ू रचनणकर की भणहिं त स्जन
की प्रहियण से गजु रतण ।ै अत य अथा भर कण अतिं रर् न ीं ।ै य एक भणाण मप हकए गए स्जन कण दसू री भणाण मप स्जनणतिं रर् ी
क ण जण सकतण ।ै ‘अधिं ेरे मप’ लिंबी कहितण प्रतीकणत्मक कहितण ।ै इन प्रतीक के स णरे कहि ने अपनी भणिनणं िं को जीििंत ूपप
मप हचत्रर् हकयण। तब्द हचत्र हनमणार् करते ? । ेसे ी हचत्र अनिु णद को भी अनिु णद मप हनमणार् करने ोते ।?
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मल

अधिं ेरे मप ह दिं ी कहितण मप से (मल
ू )
इतने मप अकस्मणत हगरते ? भीतर से
फूले ुए पलस्तर,
हईरती ै चनू -े भरी रेत
हईसकती ? पपहड़यण इस तर --
खदु -ब-खदु
कोद बड़ण चे रण बन जणतण ,ै
स्ियमहप
मई ु बन जणतण ै हदिणल पर,
नक ु ीली नणक र
भव्य ललण ,ै
दृढ़ नु
कोद अनजणनी अन-प चणनी ेक् हत।
कौन ि हदईणद जो देतण, पर
न ीं जणनण जणतण ै !!
कौन मनु ऐ

मरणठी अनिु णद -
एिढ्यणत हभिंतीिरुन अकस्मणत्
पडत जणतणत फुगलेल्यण ्‍लणस् रचे पणपरु े
ूरते चनु णळ रेती
ूरत जणतणत हईपल्यण अश्यण कण ी-
ेपोेपच
भलण मोठण चे रण कुर्णचण
ेकणरलण जणतो हभिंतीिर,
ोकदणर नणक
भव्य कपणळ
ेहर् जबर न;ु
एक अजणर्ती अनोळईी ेक् हत.
कोर् तोऐ
ेकू येतो पर् ंळई मणत्र प त नण ी!!
कोर् मनऐु

‘पपहड़यण’ के हलए अनिु णदक जब ‘हईपल्यण’ तब्द कण प्रयोग करतण ै तब मल ू पणठ मप पणठक के मणनसप ल पर उभरने िणलण
हचत्र उतने ी प्रभणिोत्पणदकतण के सणथ लक्ष्य पणठ के पणठक के मन मप उभरतण ।ै य ण अनिु णदक ने अपनी स्जनणत्मतण कण पिरचय
हदयण ।ै

मलू क् हत मप जब पणत्र उस ेक् हत को प चणनने की कोहतत करतण ै र क तण -ै कौन मनऐु य ण हिरणम हचन् के अभणि मप
ह्यणथाकतण की समस्यण उत्पन्न ुद ।ै कौनऐ मनऐु (य मनु ै ‍यणऐ) यण कौन मनऐु (य मनु कौन ऐै ) य ण प लण अथा अहभप्रेत ।ै
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मरणठी मप इस अथा को सिंदभा अनसु णर पकड़ हलयण गयण ,ै लेहकन अ्रसिं ेजी मप इसकण अनिु णद who is this Manu? अथणात य मनु
कौन ऐै हकयण गयण ै जो हक गलत ।ै

अ्रसिं ेजी अनिु णद


And then suddenly
Blisters if paint
………

Who is this Manu?

तब्द अपने ेप मप एक हचत्र ।ै उसकण अथा र एक हचत्र बनणतण ।ै उससे जड़ु े सदिं भों मप य हचत्र र भी स्पप ो जणतण ।ै मल ू
कहितण मप हनस्तब्ध तब्द से जो भयणनक दृश्य प्रहतहबहिं बत ोतण ,ै मरणठी अनिु णद मप ‘प्रतणिंत’ तब्द उसके सणथ न्यणय न ीं कर पणयण
।ै
मल ू
बण र त र के , प णड़ी के उस पणर, तणलणब...
अधेरण सब ंर,
हनस्तब्ध जल,

मरणठी अनिु णद
नगरणच्यण बण रे , पिातपणलीकडे, तलणि...
चक ु डे पसरलेलण कणळोई,
प्रतणिंत जल

‘अिंधरे े मप’ र ‘कणळोईणत’ भणाण से भणाेतर सिंकेत मप ूपपणतिं रर् (रिंगमिंच)

कणव्य कण अतिं रप्रतीकणत्मक अनिु णद भणहाक तथण भणहाके तर व्यिस्थण के बीच घ नेिणली एक ूपपणिंतरर् की प्रहियण ।ै
र इस दृहप से देईप तो कणव्य कण अतिं रप्रतीकणत्मक अनिु णद करते समय उस कहितण मप हनह त अन्य तत्ि गौर् ो जणते ? र
के िल भणि पषिप ी कप रीय र तण ,ै हजसमप कणव्य मप हनह त प्रतीक की भहू मकण अत्यिंत म त्िपर्ू ा र ती ।ै परिंतु इस कण अथा य
न ीं ै हक अनिु णदक की समस्यण समण्‍त ो जणती ।ै य ण अनिु णदक की हज्‍मेदणरी र बढ़ जणती ।ै ‍य हक प्रतीकणत्मक
अनिु णद मप अनिु णदक को भणहाक कथ्य को भणाेतर व्यिस्थण के मण्‍यम से व्य‍त करनण ोतण ,ै हजसकी अपनी अलग सीमणए
र समस्यणए ।ै
‘अधिं ेरे मप’ र उसके मरणठी अनिु णद ‘कणळोईणत’ दोन कण डॉ. सतीत पणिड़े के हनदेतन मप नण ् य मचिं न भी े ु ।ै इस
तर की फै न् ेसी कण नण ् य ूपपणतिंरर् हनदेतक के हलए हजतनण रोमणचिं क र ण ोगण उतनण ी चनु ौतीभरण कणम भी र ण ोगण।
एकल अहभनय की मयणादणं िं को देईते एु हनदेतक ने कहितण मेन व्यणप्त दृश्य ूपप को अलग-अलग ु कड़ मप बण ण। इस तर

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उन् प ेठ दृश्य हमले, हजसे सिंिणदणत्मक नण क मप पिरिहतात हकयण ।ै हनदेतक के तब्द मप क े तो, “’अधिं ेरे मप’ असल मप प्रकणत
र अधिं ेरे कण यद्
ु ।ै ये दोन इस नण क के चिरत्र ।ै सणमणन्य भणाण मप प्रकणत नणयक ै तो अधिं ेरण ईलनणयक ।ै य दो हस्थहतयण
? हजसकण ईेल प्रकणत हिन्यणस के मण्‍यम से हदईणनण थण।”
नण क की भी अपनी भणाण ोती ।ै य भणाण बनती ै पणत्र से, पणत्र के सिंिणद से, सिंिणद की अहभव्यहि तैली से र
सिंिणद के सणथ अहभव्यहि तैली के अनूप ु प ्‍िहन व्यिस्थण र प्रकणत व्यिस्थण से। नण क मप कहितण कण तीााक ी एक तर से
सिंकेत के ूपप मप प्रयोग हकयण गयण ,ै हजसे मचिं पर प्रकणत को बिंद करके र के िल पणत्र पर ी ेिश्यक उतनण प्रकणत डणल कर
उभरण गयण। कहितण मप ब ुत सणरी ेसी घ नणए ै जो पणठक के मणनस प ल पर हफल्म यण नण क की तर जीििंत ो उठती ।ै
उदण रर् के हलए-

मरणठी अनिु णद
अरे...! अरे.... !!
तलणिणच्यण सभोितणल,
अधिं णरणत जिंगल-ूणड़
चमचमतणत ह रि ह रि ,
अचणनक
ि्षिपणिंच्यण मणथ्यणिर कडणडतणत िीजण
फणद्यिं ण डोलत ल े णकणित हकिंचणळत,
ेप तणत एकमेकणिंिर डोकी
एिढ्यणत अकस्मणत
ूणडण-ूडु पणिंच्यण कणळोईणत लपलेल्यण एकण
जणददु हििरेचे हतलण-्णर
उघडते धणड्कन
.............
घसु त जणते लणल-लणल मतणल हिहचत्रती,
हििरेच्यण कप र कणळोईणत
लणल-लणल धक ु िं ;
ध‍ु यणत, समोर, रिणलोक स्नणत-परुु ा एक,
र स्य सणषिपणत!् !
 मल

अरे ! अरे !!
तणलणब के ेस-पणस अधेरे मप िन-ि्षिप
चमक-चमक उठते ? रे- रे अचणनक
ि्षिप के तीते पर नणच-नणच उठती ? हबजहलयण,
तणईणए, डणहलयण ूमू कर ूप कर
चीख, एक दसू रे पर प कती ? हसर हक अकस्मणत-् -
ि्षिप के अधेरे मप ह पी ुद हकसी एक
हतलस्मी ईो कण हतलण-्णर
ईल ु तण ै धड़ से
........................

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घसु ती ै लणल-लणल मतणल अजीब-सी


अन्तरणल-हििर के तम मप
लणल-लणल कु रण,
कु रे मप, सणमने, रिणलोक-स्नणत परुु ा एक,
र स्य सणषिपणत् !!

इस सपिं र्ू ा प्रणक् हतक घ नण मप प्रकणत योजनण र ्‍िहन योजनण की म त्िपर्ू ा भहू मकण ो जणती ,ै हजससे कहितण मप हनह त भणि
को यथणित उत्पन्न हकयण गयण ।ै तफ ू णन की ेिणज र प्रकणत को लपलपणने से य भयक िं र िणतणिरर् कण य सक िं े त नण क मप
उभरण गयण। इस सदिं भा मप हनदेतक क ते ,?
“मल ू तः म? महु िबोध की कहितण को पचिं तत्ि की अतिं गात अहभव्यहि ी मणनतण ।। िणय,ु जल, अहग्न, प्थ्िी, ेकणत य के िल
तत्ि ी न ीं तो सजाक ्‍िहनयण भी ।ै य सणरी ्‍िहनयण को ‘सिंज्ञण’ के कोा से जोड़नण जूपरी थण। हस्थहतनूप ु प ‘हसिंफनी’ कण प्रयोग
भी ठ रणि को अथा देतण र ण। मचिं हिन्यणस के ूपप मप एक कणली गफ ु ण, ब्लैक ोल अथिण मकड़े के जणल मप उलूी हजदगिं ी य
मेरी पिरकल्पनण थी। जो सिंपर्ू ा कणले परदे र रेहडयम से बने जणल के मण्‍यम से प्रभणिी ूपप से दृहपगोचर ुद।”
अनिु णद मप कु ोडनण र र कु नयण जोड़नण एक सणमणन्य बणत ।ै हनदेतक ने य ु लेते एु इसमप कु सदिं भों को बद् ु से
भी जोड़ण ।ै सणथ ी र भी कु ो े ो े बदलणि हकए ।? परिंतु य बदलणि मल ू कहितण के सणथ न्यणय ी करते ।? कहितण के
पणठक जब दताक ूपप मप ोते ,ै य बदलणि उन् प ेनदिं यि ु चहकत कर देतण ।ै

हन्‍काा
अधिं ेरे मप मप ह पे अतिं स्िर को प चणनण अनिु णदक की प ली ेिश्यकतण ।ै अनिु णद की दृहप से देईप तो महु िबोध की ‘अधिं ेरे मप’
िणस्ति मप एक हचत्र त्िंईलण ।ै उसमप मनोदतणं िं ेए रुतपिरितान ।ै य कहितण ेतिंकणं िं र जनणकणिंषिपणं,िं स्ि्‍न र
सिंभणिनणं िं से बनु ी गद एक हिरण स्ि्‍न फ? ेसी ।ै 'अधिं ेरे मप' को मणत्र कहि की ईोद ुद परम अहभव्यहि की ईोज ेख्यणन न ीं
;ै य तो व्यहि र एक परू े समणज की ईोद दु परम अहभव्यहि, जो िस्ततु ः एक-दसू रे से अहभन्न ै र एक के हबनण दसू रे को
पणयण ी न ीं जण सकतण, को पणने र उसके रणस्ते मप ेने िणले व्यिधणन र सघिं ाों कण म ण-ेख्यणन भी ।ै र इसके
अनिु णदक एििं नण ् य ूपपणिंतरर्कणर को य अनभु ि ोने के बणद ी ि पनु स्जन करने मप समथा ो पणयण ।ै अनिु णद मप ो ी
बड़ी कहमय के बणिजदू भी मल ू की सििं ेदनण को दसू रे भणाणभणाी पणठक तक प चणने ु मप दोन अनिु णद सफल एु ।? हनदेतक ने
भी मल ू कहितण र उसके मरणठी अनिु णद को मचिं पर सफलतणपिू क ा ईड़ण कर दताक को अहभभतू कर हदयण। महु िबोध की य
अहभव्यहि ेत्मणहभमई ु ोते एु भी समणजोन्मई ु ।ै ‘अधिं रे े मप’ की कणलजहयतण के पिरर्णमस्िूपप इसके पनु ःस्जन की प्रहियण
मेतण चलती र गे ी।
सदिं भा ्रसथिं
1. कणळोईणत (मरणठी अनिु णद)अन.ु मेघण ेचणया, रणसिं फ्रेम हिएतन, िधणा, 2014
2. In The Dark (Eng अनिु णद) क् ्‍र् बलदेि िैद्य , Rain bow Publishing, Delhi, 2001
3. ह दिं ी सणह त्य कोत - भणग 2
4. ह दिं ी ेलोचनण की पणिरभणहाक तब्दणिली - डॉ. अमरनणथ, रणजकमल, हदल्ली
5. ह दिं ी सणह त्य यगु र प्रि्हायण - डॉ. हतिकुमणर तमणा, ेतोक प्रकणतन, हदल्ली

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