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वेद म िव त

तावना
आज हम इ सव शता दी म जी रह ह । आज िव ान अपने चरम सीमा को
छू ने का य कर रहा है । पर तु इससे पहले यह जानना अ याव यक है क इन
सभी िव ान का मूल आधार या है ? इसका उ र है हमारे वेद और शा ।

वेद को हम आ याि मक प म ही जानते है, न तु वै ािनक पम।


इसका सबसे बडा कारण यह हो सकता है क स पूण वेद संिहता का
आिधभौितक भा य अभी तक नह िलखा गया । मह ष सायण ने आिधदैिवक
भा य और मह ष बादरायण ने आ याि मक भा य िलखा है ।

अतः कई आधुिनक िव ान ारा वेद के आिधभौितक भा य िलखने का


यास कया जा रहा है । इस कार के भा य म वेद म िलखे गये येक म
के येक श द के अथ का पुनः मू यांकन ारा वै ािनक अथ को कािशत
करने का यास कया जाता है । इससे िव , कई नए त व से सा ा कार कर
सकता है । तुत प म भी ऐसे भा य का संकलन ही कया गया है ।

हमारे वेद न के वल अ याि मक थ ह अिपतु आज के िव ान से


सह ािधक उ तमको ट के िव ान को ितपा दत करते ह । िव िव यात
महान वै ािनक ो. ऐ टाइन के E=mc2 के सू (formula) को वेद पहले ही
दशा चुका है । यथा –

“अ दतेद ो अजायत द ाद् उ – अ दितः प र ।”

एवं ऋ वेद का एवया म त सू चुंबक य िव ुत तरं ग (electro- magnetic

waves) का वणन करता है ।

इसी तरह हमारे इितहास थ महाभारत म अणु बम जैसे िव फोटक


अ का वणन कया है । उसम बताया गया है क उस अ के योग से अणु
तरं गो के भाव से आगे क कई सारी पीिडयाँ भािवत ह गी । अतः उसका
योग न कर । उस अणु अ का महाभारत म जैसे वणन कया गया है वैसा ही
भयानक प देखने को िमला जापान के हीरोिशमा और नागासा क नगर म ।

इस तरह कई िव ान है िजनका हमारे वेद म तथा शा म ितपादन


कया गया है ।

तुत प म मैने वेद म िव ुत के उ लेख, उ पादन, योग आ द का एक


छोटा सा िववरण देना का यास कया है ।

उप म
आजकल हम िजस िव ुत से प रिचत है उसका आिव कार वै दक काल म ही हो
गया था । पर दुभा यवश हम उस तकनीक को समझ नह पाये और उसके
अभाव म जीिवत रहने लगे । पर अब हम इस बात पर गव होन चिहए क
िव ुत का आिव कार भारत म ही आ था तथा हम उस काल के िव ुत
उ पादन क तकनीक को पुनः समझना चािहए ।

न - याय शा के तक-सं ह नामक थ म सात पदाथ का िन पण


करते ह –

“ गुणकमसामा यिवशेषसमवायाभावाः स पदाथाः ॥”

फर इनम का िन पण करते ह –

“त ािण पृ पतेजवा वाकाशकाल दगा मामनांिस नवैव ॥”

यहाँ तेज के िन पण के समय उसके कार का भी िन पण करते ह –

“भौम द ौदायाकरजभेदात् ।”

यहाँ िव ुत को द के उदाहरण के प म लेते ह –


“अिब धनं द ं िव ुदा द ।”

यहाँ बताया गया है क अप (जल) ही धन हो िजसका वैसे िव ुत आ द तेज


प ही द तेज कहलाते है । याय के वतक है मह ष गौतम । अतः इससे यह
पता चलता है क मह ष गौतम के काल से पहले ही िव ुत का आिव कार हो
चुका था ।

वै दक िव ान िव ुत को अि का ही एक प मानता है । इसका सृजन


ऋ वेद म यथा व णत है –

“अय स िश येतेन गौरभीवृता

िममाित मायुं वसनाविधि ता ।

सा िचि िभ न िह चकार म य

िव ुद ् भव ती ित वि मौहत ॥”

िव ुत का पृ वी के साथ स पक के बारे म या काचाय िन के सातव अ याय


के छठे पाद के तीसरे ख ड म वै ानर का अथ िव ुत ज य अि िस करते ए
िलखते ह –

“य वै ुतः शरणमिभहि त यावदनुपा ो भवित, म यमधमव तावद् भवित


–उदक धेन शरीरोपशमनः । उपादीयमान एवायं स प ते उदकोशमनः
शरीरदीि ः ॥”

अथात मेघ के घने होने पर िव ुत तेज होती है । य द अशिनपात हो तो वृ ा द


पा थव व तु के छू ने से न हो जाती है । पर जब नीचे िगरती है या शु क वृ
पर िगरती है तो आग बन जाती है । मेघ म वह जल से ही यु है ।

िव ुत का उ पादन
वेद म कई थान म िव ुत का उ लेख है । ऋ वेद म िव ुत के उ पादन के बारे
म ब त कहा गया है । ऋ वेद के थम म डल के तेईसव सू के बारहव म म
कह रह ह -

“ह काराद् िव ुत पयऽतो जाता अव तु नः । म तो मृळय तु नः ॥”

(ऋ वेद. १-२३-१२)

इस म का अथ है क कािशत ए िव ुत से उ प म ीर हमारी र ा कर ।
यहाँ ‘िव ुत से उ प ’ इ या द वा य से यह तीत होता है क ‘म त’ मेघ या
वृि क धाराय ह । पर तु इसपर य द सू म दृि डाल तो यह पता चलता है क
िव ुत का उ पादन जल से हो रहा है । आकाश म िव ुत के आगमन के बाद वृि
के आगमन का उ लेख यहाँ कया गया है । पर तु वृि पात से पहले मेघ ही जल
को धारण करता है और मेघ के घषण से ही िव ुत उ प होत है । अतः
जल भाव से ही िव ुत आकाश म उ पा दत कया जाता है ।

इसक पुि अि म म म कर रह ह –

“असािम िह य यवः क वं दद चेतसः ।

असािमिभम त आ न ऊितिभग ता वृ न िव ुतः ॥”(ऋ वेद. १-३९-९)

अथात अतीव पू य तथा उ कृ ानी वीर म त ! क व मह ष को जैसे तुमने पूण


प से आधार या आ य दे दया था, वैसे िह संर ण क संपूण और अिवकल
साधना से यु होकर िबजिलयाँ िजस कार वषा क ओर चली जाती ह,
उसी कार तुम हमा र ओर आ जाओ।

अि म म म जल से िव ुत के उ पादन के िववरण को प कया गया


है ।
“ईशानकृ तो धुनयो रशादसो वातान् िव ुत तिवषीिभर त ।

दुह यूध द ािन धूतयो भू म िप वि त पयसा प र यः ॥” (ऋ वेद. १-६४-५)

वामी तथा अिधका र वग का िनमाण करने वाले, श ुदल को िहलानेवाले,


हसा म िनरत िवरोिधय का िवनाश करने वाले इ , अपनी शि य से वायु
तथा िव ुत को उ प करते ह । चतु दक वेगपूवक आ मण करनेवाले तथा
श ुसेना को िवकं िपत करनेवाले ये वीर आकाश थ मेघ का दोहन करते ह और
यथे वषा ारा भूिम को तृ करते ह ।

इसका िववरण आगे के म म करते ह –

“ ाणामेित दशा िवच णो िे भय षा तनुते पृथु यः ।

इ ं मनीषा अ यचित म व तं स याय हवामहे ॥” (ऋ वेद. १.१०१.७)

इस म का अथ है – बुि मान इ (िव त


ु ), म त क दशा क ओर

जाता है । वह म त व उषा के मेल से बडे काश को फै लाता है, तभी मनु य


उनक तुित करते ह ।

य द इस म को वै ािनक दृि से देख तो यह प होत है क िव ुत


और म त (वायु) एक ही दशा मेम पर पर िमलते ह तथा घन गजन से िव ुत
का काश फै ल जाता है । इससे यह बात प है क जब आकाश क यह ि थित
हो तो मनीिषय ने वह ि थत अि को ा कर िलया । इस म से आकाश
िव ा के ान के साथ-साथ घन गजन ारा िव ुत क चमक पाकर अि का
ान पाना व उसे ा करने का वै ािनक रह य कािशत हो रहा है । यहाँ यह
भी प हो रहा है क ऋिषय ने आकाश क िव ुत को भूिम पर कसी य या
म के बल से ा क होगी । पर यहाँ उस य क प ीकरण नह दी गई है ।

अ त र के जल म अि का ज म िव ुत के प म होता है इस बात क
पुि ऋ वेद क अ येक म से होती है ।

“अ ो न बि ः सिमथे महीनां ददृ ेयः सूनवे भाऋजीकः ।


उदुि या जिनता यो जजानापां गभ नृतमो य वो अि ः ॥” (ऋ वेद. ३-१-१२)

इसी बात का उ लेख अ य म म भी िमलता है । यथा –

“बृह त इ ानवो भाऋजीकम सच त िव ुतो न शु ा ।

गुहवे वृ ं सदिस वे अ तरपार ऊव अमृतं दुहानाः ॥” (ऋ वेद. ३-१-१४)

इसम का अथ है क अ त र अि का सदन है । वहाँ िव ुत उसका साथ देती


ह । यहाँ अि क करण को िव ुत से पृथक कया जाता है । ये करण सूय क
ह जो क समु से अमृत अथवा तेजोमय रस को दुहकर वृि करती ह । य द हम
इसे िव ान क दृि से देख तो यहाँ ‘हाइ ो पावर’ का वणन कया गया है ।

ऋ वेद के एक और म म पोिज़ टव (positive)तथा नेगा टव


(negative) ऊजा ारा िव ुत उ पादन का िववरण दया गया है ।

“िव ुतो योितः प र संिजहानं िम ाव णा यत् अप यतां वा ।

तत् ते ज म उत एक विस अग यो यत् वा िवश आजभार ॥”

(ऋ वेद. ७-३३-१०)

साधारणतया इस म का अथ िनकलता है – हे विस ! आपका ज म म त एवं


व ण ारा देखा गया है । िव ुत पी योित के समान आपका ज म आ ।
पर तु इसका य द वै ािनक अथ िनकाल तो पता चलता है क यहाँ म त
पोिज़ितव तथा व ण नेगा टव उजा है । अगले म म कहते ह क म त और
व ण ारा पिव कु भ म बीज बोने से अग य तथा विस मह षय क ज म
आ था । यहाँ पर भी कु भ म बीज बोना कसी रासायिनक पदाथ क ओर
संकेत कर रहा है । पर यहाँ उस रासायिनक पदाथ का िववरण नह दया गया
है। पर तु अग य संिहता म पोिज़ टव तथा नेगा टव ऊजा से िव ुत को
उ पा दत कर उसे सि त करने वाले य का िववरण ा है िजसम कु भ का
उपयोग कया गया है । यह य आधुिनक युग के बैटरी के समान मा यता रखता
है ।
इसी कार मेघ के घषण से िव ुत उ पादन का उ लेख देखा जा सकता
है ।

“तव ि यो व य येव िव ुि ाि क उषसां न के तवः ।

यदोषधीरिभसृ ो वनािन च प र वयं िचनुषे अ मा ये ॥”(ऋ वेद. १०-९१-५)

अथात हे अि ! तु हारी दीि से जल व क मेघ कट होते ह । मेघ के म य


िव ुत आभाय भी काश के प म कट होते ह । उस समय तुम वहाँ से
िनकलकर का क खोज म मण करते हो य क तुम का पी अ का
भ ण करते ह ।

वेद म िव ुत के उ पादन के साथ साथ िव ुत के िवतरण का िभ उ लेख


िमलता है । यथा –

“शृ वे वृ े रव वनः पवमान य शुि मणः । चरि त िव ुतो दिव ॥”

(ऋ वेद. ९-४१-३)

यहाँ कह रह ह क सोम देवता क विन, वषा क विन जैसी है । और उसक


देदी यमान योित उस िव ुत के समान है जो वृि के समय आकाश का िवहरण
करते ह । य द हम इसे वै ािनक दृि से देख तो यहाँ िव ुत के िवतरण
(supply) का िववरण दया गया है । ‘चरि त िव ुतो दिव’ म का यह भाग
इसी बात को मािणत कर रहा है ।
वेद म िव ुत का उपयोग

वाहन म िव ुत का योग :
“रोदसी आ वदता गणि यो नृषाचः शूराः शवसािहम यवः ।

आ ब धुरे वमितन दशता िव ु त थौ म तो रथेषु वः ॥” (ऋ वेद. १-६४-९)

इस म म िवमान तथा रथ के िलए िव ुत को ऊजा के प म योग कये


जाने का वणन कया गया है । इस म के तृतीय और चतुथ पाद म कह रह ह
क िव ुत से बँधे ए रथ म अथात िव ुत से चलने वाले रथ म िवराजमान आप
म त क क त चर ओर फै ल ।

इसी कार का वणन एक और म म भी कया गया है।

“अंसेषु व ऋ यः प सु खादयो व ः सु मा म तो रथे शुभः ।

अि ाजसो िव ुतोगभ योः िश ाः शीषसु िवतता िहर ययाः ॥”

(ऋ वेद. ५-५४-११)

तुत म म िव ुत से चलने वाले रथ का वणन कया गया है । बता रह ह क


िव ुत से चलने वाले रथ के सारथी वयं म त ह िज होन क ध म भाल, पैर म
कड़े, व म सुनहरे क ठ, िसर पर सुनहरे उ णीस (पगड़ी) पहना आ है ।

िव ुत अ का वणन :

हम सब जानते है क यु मअ का होना अ याव यक है । वै दक काल म


िव ुत अ का अ यिधक उपयोग कया जाता था ।

“अथा ते अि गर तमा े वेध तमि यम् । वोचेम सानिस ॥”

(ऋ वेद. १-७५-२)

िव ुत अ के स भ ध म कहा गया है क अि ने वृ ासुर का हनन कया तथा


यु जीता । अब इस म पर ग भीरता से िवचार कया जाना चािहए । अि
तो िनज व हओने के कारण न तो वह वृ ासुर का हनन कर सकती है न तो यु
जीत सकती है । य द पर परागत अथ िनकाला जाए तो अि का अिध ातृ
देवता ही यह सब चेतनयु काय कर सकता है । यह एक प अपने म ठीक है ।
य द वै ािनक दृि से देखा जाये तो आज के िव ान क दशा म उस काल के
यु िव ुत के ारा चलाए जाते थे । यहाँ अि का अथ उसके कार – िव ुत से
है । आज के युग म भी कई अ िव ुत से चलाए जाते ह । वै दक युग के अ
का भी िव ुत से चलना इस कार के अनेक म म िस है । जैसे –

“आ मैरा युधा नर ऋ वा ऋ ीरसृ त ।

अ वेना अहं िव ुतो म तो ज झती रव भानुरत मना दवः ॥”

(ऋ वेद. ५-५२-६)

‘ज झती रव’ इस श द का अथ यहाँ चमकती – कडकती िबजिलय से है ।


तुत म म बता रह ह क म त के सैिनक चमकते आभरण के साथ िव ुत के
आयुध को हाथ म िलए ए म त के पीछे आकाश म कडकती ई योित के
समान आ रह ह ।

अ येक म म कह रह ह –

“िव ु ता अिभ वः िश ाः शीषि हर ययीः । शु ा त ि ये॥”

(ऋ वेद. ८-७-२५)

अथात ये दैवीय म तगण आभूषण से सुसि त िव ुत को हाथ म िलये ए


तथा सुव णम मुकुट आ द धारण कये ए ह । यहाँ ‘िव ुत’ श द का अथ िव ुत
से चलने वाले अ से है ।
उपसंहार
इस कार हम इस िन कष पर आ सकते ह क ऋ वेद म िव ुत उ पादन का
िववरण प है । उपयु म से यह पता चलता है क ऋ वेदीय काल म भी
िव ुत का योग रथ, िवमान, आ द वाहन के िलए ऊजा के प म होता था ।
तथा यु म भी िव ुत – अ का उपयोग उस काल म अिधक रहा है । इन
सबके साथ ही िव ुत का उपयोग आग जलाने के िलए भी कया जाता था
िजससे लोक म दैिनक जीवन क धारा िनरं तर चलती रही । अतः वै दक काल म
िन य ही िव ुत क मह ा रही है ।

ऋ वेद के म म जल के ारा िव ुत के उ पादन क अिधक पुि क गई


है । चूँ क िव ुत का उ पादन जल से होत था अतः यह बात प है क उस
समय वातावरण दूिषत नह था । वातावरण के अनुकूल ही वेदकाल म िव ुत
का उ पादन अ है । अतः हम भी वेद िनिहत दूषण रिहत िव ुत उ पादन क
तकनीक को अ यिधक अपनाना चािहए ।

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N.SRIDHAR Dept of Sanskrit


Research scholar SCSVMV UNIVERSITY
(M.phil) in Sanskrit Enathur, Kanchipuram,
Tamilnadu, India.
631561.

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