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िं ु घाटी भ्यता The Indus valley Civilization

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The Indus Valley Civilization (2500 BCE-1500 BCE)
हड़प्पा सभ्यता को निम्िलिखित िामों से जािा जाता है -
1. हड़प्पा संस्कृनतिः- इस संस्कृनत का सबसे पहिे िोजा गया स्थि पंजाब प्रान्त में स्स्थत हड़प्पा था। इसलिये इस
सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता या हड़प्पा संस्कृनत कहा जाता है ।
2. लसन्धु सभ्यतािः- इस सभ्यता के प्रारस्म्िक स्थि लसन्धु िदी के आसपास ही पाये गये, इसलिए इस सभ्यता को
लसन्धु सभ्यता कहा जािे िगा। ककन्तु अब इस सभ्यता का क्षेत्र काफी विस्तत
ृ हो गया है ।
3. कांस्य युगीि सभ्यतािः- सैन्धि िोगों िे ही सिवप्रथम तांबे में टिि लमिाकर कांसा तैयार ककया, इसलिए इसे कांस्य
यग
ु ीि सभ्यता कहा गया।
4. प्रथम िगरीय क्रास्न्तिः- लसन्धु सभ्यता में ही सिवप्रथम िगरीय क्रास्न्त के चिन्ह दृस्टिगोिर होते हैं। अतिः इसको
प्रथम िगरीय क्रास्न्त के िाम से िी जािा जाता है ।
5. लसन्डििः- सैन्धि िोगों िे ही सिवप्रथम कपास की फसि उगाई, इसी कारण यि
ु ािी इस सभ्यता को लसन्डि
(कपास) कहिे िगे।
उपयक्
ुव त सिी िामों से इस सभ्यता को पक
ु ारा जा सकता है । ककन्तु सिावचधक उपयक्
ु त िाम हड़प्पा सभ्यता ही होगा।

खोजः- सबसे पहिे हड़प्पा सभ्यता के विषय में जानकारी 1826 ई0 में चाल्र् मै न िे दी। 1852 और 1856 ई0 में
जाि ब्रिन्िि एिं विलियम ब्रिन्िि िामक इंजीनियर बन्धओ
ु ं िे करांिी से िाहौर रे ििे िाइि निमावण के समय यहााँ
के पुरातास्विक सामाचियों को तवकािीि पुरातवि वििाग के प्रमुि कनिंघम से मूलयांकि करिाया। कनिघंम को

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िारतीय परु ातवि वििाग का जिक कहा जाता है । िारतीय परु ातवि वििाग की स्थापिा िाडव कजवि के समय में
अलिक्जेन्डर कनिंघम िे की थी। जब परु ातत्व ववभाग के ननर्दें शक जान माशशल थे तभी र्दयाराम ाहनी ने 1921 ई0
में हड़प्पा स्थल की खोज की। अगले ही वर्श 1922 ई0 में राखलर्दा बनजी ने इ के र्द ू रे स्थल मोहनजोर्दड़़ों की
खोज की।

काल ननधाशरणः-सैन्धि सभ्यता का काि निधावरण िारतीय पुरातवि वििाग का वििादिस्त विषय है । इनतहासकारों
िे इस सभ्यता का काि निधावरण लिन्ि-लिन्ि प्रकार से निधावररत ककया है । कुछ प्रमुि इनतहासकारों द्िारा निधावररत
नतचथयां निम्िलिखित हैं-
1. 3250 ई0प0
ू े 2750 ई0- इस नतचथ का निधावरण 1931 ई0 में जाि मार्वि िे ककया।
2. 2350 ई0प0
ू े 1750 ई0पू0 –डी0पी0 अििाि द्िारा निधावररत यह नतचथ काबवि डेटिंग पर आधाररत है।
3. 2800 ई0प0
ू े 2500 ई0पू0- इस काि का निधावरण अिेस्ि मैके िे ककया।
4. 2500 ई0प0
ू े 1500 ई0पू0- यह माटिव मर ह्िीिर द्िारा निधावररत नतचथ है ।
5. 2500 ई0प0
ू े 1700 ई0पू0-रे डडयो काबवि-14 (ब ्.14द्ध जैसी ििीि पद्धनत के द्िारा निधावररत नतचथ है । जो
ितवमाि में सिावचधक मान्य है ।
स न्धु भ्यता के ननमाशताः-लसन्धु सभ्यता की पुरातास्विक िद
ु ाई से प्राप्त साक्ष्यों से पता ििता है कक यह एक
लमचित प्रजानत िािी सभ्यता थी स्जसमें निम्िलिखित िार प्रजानतयााँ सस्म्मलित थी-
1. प्रोटो आस्रे लायड
2. अलपाईन
3. भूमध्य ागरीय
4. मिंगोलायड [GYAN M360]-devrani complex ,lalpur,call-8084026007

इसमें प्रोिो आस्रे िायड सिवप्रथम आिे िािी प्रजानत थी ककन्तु सभ्यता के निमावण का िेय िम
ू ध्य सागरीय को टदया

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जाता है ।
लसन्धु सभ्यता का विस्तारिः-लसन्धु सभ्यता का विस्तार आधनु िक तीि दे र्ों िारत, पाककस्ताि, अफगानिस्ताि में
लमिता है । अफगानिस्ताि के प्रमि
ु स्थिों में मण्
ु डीगाक एिं र्त
ु ग
व ोई हैं। इस सभ्यता का सिावचधक पस्चिमी
परु ास्थि सवु कांगेडोर (ब्िचु िस्ताि) पि
ू ी परु ास्थि आिमगीरपरु , उत्तरी परु ास्थि मांडा (जम्मू कचमीर) तथा दक्षक्षणी
परु ास्थि दै माबाद। सैन्धि स्थिों का विस्तार ब्रत्रिुजाकार आकृनत लिए हुए हैं। स्जिका क्षेत्रफि िगिग 20 िाि िगव
ककिोमीिर है ।
सैन्धि सभ्यता के प्रमि
ु िगरिः-
(1) हड़प्पा:- हड़प्पा पंजाब के मांिगोमरी स्जिे में स्स्थत है । इसका सिवप्रथम उलिेि िाल्र्स मैर्ि िे ककया जबकक
पुरातवि वििाग के निदे र्क जाि मार्वि के समय में 1921 में दयाराम साहिी िे इस स्थि की िोज अस्न्तम रूप से
की। इस स्थि की िोज से माधोस्िरूप िवस (1926) तथा मटिव मर ह्िीिर (1946) िी सम्बस्न्धत थे।

• हड़प्पा से प्राप्त दो िीिों में पूिी िीिें को िगर िीिे तथा पस्चिमी िीिे को दग
ु व िीिा के िाम से जािा जाता
है ।
• यहााँ पर एक 12 कक्षों िािा अन्िागार प्राप्त हुआ है। हड़प्पा के सामान्य आिास क्षेत्र के दक्षक्षण में एक ऐसा
कब्रिस्ताि स्स्थत है स्जसे समाचध आर-37 कहा जाता है ।
• यहााँ अलििेियुक्त मुहरें िी प्राप्त हुई हैं।
• कुछ महविपण
ू व अिर्ेषों में एक बतवि पर बिा मछुआरे का चित्र, र्ंि का बिा बैि, स्त्री से गिव से निकिता
हुआ पौधा, पीति का बिा इक्का, ईंिों के ित्त
ृ ाकार िबत
ू रे , गेहाँूू तथा जौ के दािे प्राप्त हुए हैं।

(2) मोहनजोर्दड़़ोंः- लसन्धु िदी के दायें ति पर लसन्धु प्राप्त के िरकािा स्जिे में स्स्थत मोहनजोर्दड़़ों की खोज 1922
ई0 में राखालर्दा बनजी ने ककया। स न्धी भार्ा में मोहनजोर्दड़़ों को मत
ृ क़ों या मर्द
ु ों का टीला कहा जाता है ।

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• मोहिजोदड़ों का सबसे महविपूणव स्थि ववशाल स्नानागार है । इस स्िािागार को मार्वि िे तावकािीि विचि
का आचियव बताया है ।
• ववशाल अन्नागारः- यह मोहिजोदड़ों की सबसे बड़ी इमारत थी।
• मोहिजोदड़ों के पस्चिम िाग में स्स्थत दग
ु व िीिे को स्तूप िीिा कहा जाता है स्जसका निमावण सम्िितिः
कुषाण र्ासकों िे कराया था।
• मोहिजोदड़ों से प्राप्त कुछ महविपूणव अिर्ेष निम्िलिखित हैं- महाविद्यािय ििि, सी0पी0 की बिी हुई
े़
पिरी, योगी की मूनतव, कााँसे की ित
ृ की, मुद्रा पर अंककत पर्ुपनत लर्ि, हाथी का कपाि िण्ड, घोडे के दांत एिं
गीिी लमट्िी के कपड़े के साक्ष्य मुख्य हैं।
• मोहिजोदड़ों की िद ु ाई से इसके िििों से सात स्तर प्रकार् में आये हैं। अस्न्तम स्तर पर वििरे हुए िर
कंकाि प्राप्त हुये हैं जबकक यहााँ से कोई कब्रिस्ताि प्राप्त िहीं हुआ।
(3) चान्हूर्दड़़ोंः- लसन्धु िदी के बांये तरफ स्स्थत स्जसकी िोज 1931 में एम0जी0 मजम
ू र्दार िे की। यह िगर अन्य
िगरों की तरह दग
ु ीकृत िहीं था। यहााँ से हड़प्पोत्तर अिस्था की झक
ू र-झाकर संस्कृनत का प्रमाण प्राप्त हुआ है ।
• यहााँ के नििासी मिके, सीप, अस्स्थ तथा मद्र ु ा की कारीगरी में बहुत कुर्ि थे।
• यहााँ के प्रमि
ु अिर्ेषों में अिंकृत हाथी, कुत्ता द्िारा दौड़ाई गयी ब्रबलिी, लिवपस्स्िक, विलिन्ि प्रकार के
खििौिे प्रमि
ु हैं।
(4) लोथलः- गुजरात के अहमदाबाद स्जिे में िोगिा िदी के ककिारे यह स्थि स्स्थत है । इसकी िोज एस0आर0 राि
िे 1955 ई0 में ककया। इस स्थि से कोई पूिी िीिा िहीं लमिा है अथावत पूरा स्थि एक ही िीिे द्िारा घेरा गया था।
यहााँ के िििों के दरिाजे और खिड़ककयााँ अन्य स्थिों से विपरीत सड़कों की ओर िि
ु ती थी।
इस स्थि के प्रमुि विर्ेषताएं निम्िलिखित हैं-

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• यह स्थि पस्चिम एलर्या से व्यापार का प्रमुि बन्दरगाह था।
• फारस की मुद्रा र्ीि या पक्के रं गों में रं गे पात्रों के अिर्ेषों से यह पता ििता है कक िोथि एक सामुटद्रक
व्यापाररक केन्द्र था।
• यहााँ से धाि और बाजरे का साक्ष्य, फारस की मुहर, घोड़े की िघु मण्ृ यमूनतव, तीि युगि समाचध, मुहरें , बाि-
माप आटद पुरातास्विक अिर्ेष प्राप्त हुए हैं।

(5) कालीबिंगाः- कािीबंगा राजस्थाि के गंगा िगर स्जिे में सरस्िती दृचयद्िती िटदयों के ककिारे स्स्थत था इसकी
िोज अमिािन्द घोष िे 1951 में की। यहााँ के पस्चिमी और पि ू ी िीिे दोिों अिग-अिग रक्षा प्रािीर से नघरे हुए थे।
यहााँ के मकाि कच्िी ईंिों से निलमवत हुए थे जबकक िालियों में पक्की ईंिों का प्रयोग लमिता है ।

• जुते हुए िेत, हििकुण्ड, अिंकृत ईंि, बेििाकार मुहर, युगि तथा प्रतीकावमक समाचधयां आटद कािीबंगा से
प्राप्त प्रमुि पुरातास्विक साक्ष्य हैं।
• कािीबंगा में अन्तमस्टि संस्कार हे तु तीि विचधयां स्जसमें पूणव समाधीकरण, आंलर्क समाधीकरण एिं दाह
संस्कार प्रिलित थी।
• कािीबंगा से िूकम्प आिे से प्रािीितम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

यहां से एक ही िेत में एक साथ दो फसिों का उगाया जािा तथा िकड़ी को कुरे द कर िािी बिािा आटद प्रमि

साक्ष्य लमिे हैं। [GYAN M360]-devrani complex ,lalpur,call-8084026007

(6) बनवाली:- यह स्थि हररयाणा के टहसार स्जिे में सरस्िती िदी के ककिारे स्स्थत था इसकी िोज 1974 ई0 में
आर0एस0 विटि िे की थी।

• यहााँ पर जि निकासी का अिाि टदिता है ।


• पुरातास्विक साक्ष्यों में लमट्िी के बतवि, सेििड़ी की मह
ु र, हड़प्पा कािीि विलर्टि लिवप से युक्त लमट्िी की
मुहर, फि की आकृनत, नति, सरसों का ढे र, अच्छे ककस्म का जौ, मात ृ दे िी की मण्ृ ड मूनतव, तांबे के िािांग,
ििव के फिक आटद प्रमुि हैं।

(7) धौलावीरा:- गज
ु रात के कच्छ स्जिे के ििाऊ तहसीि में स्स्थत है । इसकी िोज 1967-68 में जे0पी0 जोर्ी िे
ककया।
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• यह िगर आयताकार तथा तीि िागों ककिा, मध्य िगर, निििा िगर में वििास्जत था।
• धौिािीरा से सैन्धि लिवप के दस ऐसे अक्षर प्रकार् में आये हैं जो काफी बड़े हैं तथा विचि की प्रािीि अक्षर
मािा में महविपण
ू व स्थाि रिते हैं।

(8) ुरकोटडा:- इसकी िोज जे0पी0 जोर्ी में 1964 में की। यह स्थि िी गुजरात के कच्छ स्जिे में स्स्थत है । अन्य
िगरों के विपरीत यह िगर दो दग
ु ीकृत िागों गढी तथा आिास क्षेत्र में वििास्जत था। यहााँ से घोड़े की हड्डी, एक
कब्रिस्ताि से र्िाधाि की िई विचध किर् र्िाधाि का साक्ष्य प्राप्त होता है ।
(9) कोटर्दीजी:- लसन्धु प्रान्त में िैरपुर में स्स्थत इस स्थि की िोज धु ्रिे िे 1935 ई0 में ककया। यहााँ के प्रमुि
अिर्ेषों में िाणाि, कांस्य की िडू डयां
े़ , धातु के उपकरण तथा हचथयार प्रमुि हैं।
(10) र्दे शलपुर:- इस स्थि का उवििि 1964 ई0 में के0िी0 सौन्दर राजि िे कराया।
यहााँ से एक सुरक्षा प्रािीर, लमट्िी तथा जेस्पर के िाि, गाडडयों
े़ के पटहये, छे िी, तााँबे की छूररयां, अाँगूठी आटद
महविपण
ू व अिर्ेष लमिे हैं। [GYAN M360]-devrani complex ,lalpur,call-8084026007
(11) रोजर्दी:- गज
ु रात के सौराटर स्जिे में स्स्थत सैन्धि कािीि महविपण
ू व स्थि हैं। यहााँ से प्राप्त मद
ृ िाण्ड िाि,
कािे तथा िमकदार हैं। रोजदी से हाथी के अिर्ेष प्राप्त हुए हैं। (12) आलमगीरपरु :- उत्तर प्रदे र् के मेरठ स्जिे में
स्स्थत सैंन्धि सभ्यता का सबसे पस्चिमी स्थि है । यहााँ की िद
ु ाई से मद
ृ िाण्ड, रोिी बेििे की िैकी, किोरे के
बहुसंख्यक िुकड़े, सैन्धि लिवप के दो अक्षर, कुछ बतविों पर मोर, चगिहरी आटद की चित्रकाररयां प्राप्त हुई हैं।
(13) र्दै माबार्द:- महाराटर के अहमद िगर स्जिे में प्रिरा िदी के बायें ककिारे स्स्थत सैन्धि सभ्यता का सबसे दक्षक्षणी
स्थि है । यहााँ से मद
ृ िाण्ड, सैंन्धि लिवप की एक मोहर, प्यािे, तस्तरी, बतविों पर दो सीगों की आकृनत, मािि
संसाधि आटद के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
(14) माण्डी:- उत्तर प्रदे र् के मुजफ्फर िगर स्जिे में स्स्थत हड़प्पा सभ्यता का ििीितम स्थि है । इस स्थि से सोिे
के छलिे, िकसाि गह
ृ आटद के पुरातास्विक साक्ष्य लमिे हैं।
(15) कुन्ता ी:- गुजरात के राजकोि स्जिे में स्स्थत है इस स्थि की िद
ु ाई से िम्बी सुराटहयां, दोहवथे किोरे , लमट्िी
की खििौिा गाड़ी, िडू डयां
े़ , अगूंठी आटद अिर्ेष प्राप्त हुए हैं।
(16) रोपड़:- पंजाब के सतिज िदी के ति पर स्स्थत इस स्थि की खोज 1955-56 में यज्ञर्दत्त शमाश िे की।

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• यहााँ से हड़प्पा संस्कृनत के पांि स्तरीय क्रम प्राप्त हुए हैं।
• माििीय र्िाधाि या कब्र के नीचे एक कुत्ते का शवाधान प्राप्त हुआ है ।

(17) राखीगढी:- हररयाणा के जींद स्जिे में घग्घर िदी के ति पर स्स्थत इस स्थि की िोज 1969 ई0 में सरू जिाि
िे ककया। रािीगढी को हड़प्पा सभ्यता की प्रान्तीय राजधािी कहा जाता है ।
(18) रिं गपुरा:- यह स्थि अहमदाबाद स्जिे में स्स्थत है यहााँ पर 1931 ई0 एम0एस0 िवस तथा 1953 में एस0आर0
राि िे िद
ु ाई करिायी।
• यहााँ सैन्धि संस्कृनत के उत्तरा अिस्था के दर्वि होते हैं। यहााँ से मात ृ दे िी तथा मद्र
ु ा का कोई साक्ष्य िहीं लमिा
है । [GYAN M360]-devrani complex ,lalpur,call-8084026007
• यहााँ धाि की िूसी के ढे र, कच्िी ईंिो के दग
ु ,व िालियां, मद
ृ िाण्ड, पवथर के फिक आटद लमिे हैं।

राजनीनतक िंगठनः- लसन्धु सभ्यता के लिवप के पढे ि जािे के कारण यहााँ की र्ासि प्रणािी पर केिि अिुमाि ही
िगाया जाता है । समकािीि मेसोपोिालमयां सभ्यता में मस्न्दर के प्रमाण लमिे हैं िहााँ पर पुरोटहतों का र्ासि मािा
जाता है परन्तु लसन्धु सभ्यता से ऐसे ककसी िी मस्न्दर के प्रमाण प्राप्त िही हुए हैं अतिः यहााँ पर परु ोटहतों का र्ासि
िहीं मािा जा सकता हािांकक प्रलसद्ध इनतहासकार ए0एि0 बासम िे यहााँ पर परु ोटहतों का र्ासि मािा है। डाू0
आर0एस0 र्माव लसन्धु सभ्यता में वणणक िगव का र्ासि मािते हैं जो इस समय विद्िािों में सबसे ज्यादा मान्य
है । वपग्गट िे बताया ककस सामराज्य की दो जुड़िा राजधानियााँ हड़प्पा और मोहिजोदड़ों है ।
ामाजजक र्दशा:- लसन्धु सभ्यता से हमें एक र्ासक िगव का पता ििता है पुरोटहतों के प्रमाण िी कुछ लमिे हैं यहााँ का
र्ासि िखणक समुदाय द्िारा ििाया जाता था। मकािों के प्रारूप के आधार पर श्रसमक और र्दा ़ों का अिुमाि िी
िगाया जाता है अतिः िहााँ की सामास्जक संरििा में उपयक्
ुव त िगव की कलपिा की जाती है ।
1. जस्िय़ों की र्दशा:- लसन्धु सभ्यता में सबसे अचधक मण्ृ य मूनतवयां िारी की प्रास्प्त हुई है । इससे अिुमाि िगाया
जाता है कक समाज में उिकी दर्ा अच्छी थी परन्तु इस विषय में उलिेििीय तथ्य यह है कक राजस्थाि और गुजरात
से ककसी िी िारी की मण्ृ य मूनतव के प्रमाण िहीं प्राप्त हुए हैं।
िोथि और कािीबंगा से युगि र्िाधाि के आधार पर सती प्रथा का अिुमाि िगाया जा सकता है लसन्धु सभ्यता में
दास प्रथा प्रिलित थी। [GYAN M360]-devrani complex ,lalpur,call-8084026007
वस्ि आभूर्ण रहन- हन:- लसन्धु सभ्यता को कपास उपजािे का िेय प्राप्त है । यहााँ से सूती िस्त्र के प्रमाण लमिे हैं।
िस्त्रों पर बि
ु ाई िी होती थी। मोहिजोदड़ो से हाथी के दांत की बिी सइ
ु यों एिं कंघी का प्रमाण है । िही से तााँबे के सीसे
प्राप्त हुए हैं। िान्हूदड़ो से लिवपस्स्िक काजि आटद के प्रमाण िी प्राप्त हुए हैं।
आर्थशक र्दशाः- 1. कृवर्:- हड़प्पा िासी सामान्यतिः जाड़े में ििम्बर- टदसम्बर में अपिी फसिों को बोते थे तथा अगिी
बरसात आिे के पि
ू व मािव-अप्रैि में काि िेते थे। इि िोगों को 9 प्रकार की फसिें ज्ञात थी- गेहँ, जौ, कपा , र ो,
राई, नतल, मटर तरबज
ू , खजरू । हड़प्पाई िोग फसिों के बोिे में भ्िम (हो) (हि की प्रारस्म्िक अिस्था) का प्रयोग
करते थे। फसि काििे के लिए पवथर के हलर्ये का प्रयोग ककया जाता था। ििाििी से लमट्िी के हि के प्रमाण लमिें
है िहााँ से बटढया
े़ ककस्म का जौ प्राप्त हुआ है ।
चावल:- लसन्धु सभ्यता के िोगों को िािि का ज्ञाि िहीं था परन्तु इसके कुछ प्रमाण लमिे है िोथि से िािि प्राप्त
हुआ है जबकक रं गपुर से धाि की िूंसी । परन्तु सामान्यतिः यहााँ िािि के अस्स्तवि को िही मािा जाता।

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स च
िं ाई:- लसंिाई के साधिों में िषाव जि का प्रयोग होता था। िेककि िहरों का प्रयोग िहीं होता था। िहरों का सिवप्रथम
उलिेि अथिविेद में प्राप्त होता है । िहरों का प्रथम अलििेिीय साक्ष्य िारिेि के हाथी-गफ
ु ा अलििेि में लमिता है ।
पशप
ु ालन:-लसन्धु सभ्यता में पर्ओ
ु ं का ज्ञाि विलिन्ि प्रकार की मण्ृ य मनू तवयों और मह
ु रों पर उिके अंकि से होता है ।
कूबढ िािे बैि की महत्ता सबसे अचधक थी। एक िंूृगी सााँड िी था। गाय का प्रमाण यद्यवप मािा जाता है परन्तु
इसका अंकि ि तो मह
ु रों पर लमिता है और ि ही इसकी कोई मण्ृ य मनू तव प्राप्त होती है हिांकक एस0आर0 राि िे
िोथि से गाय की मण्ृ य मनू त प्राप्त होिे का दािा ककया है ।
घोड़ा:-लसन्धु सभ्यता के िोगों को घोड़ों का ज्ञाि िहीं था परन्तु इसके कुछ प्रमाण प्राप्त हुए हैं जैस-े िोथि एिं रं गपरु
से मण्ृ य मूनतव, सुर कोिडा से सैन्धि कािीि से अस्स्थ पंजर आटद। बिुचिस्ताि में स्स्थत रािा घुड़ई से घोड़े के दााँत
लमिे हैं िोथि से घोड़े की मण्ृ य मूनत प्राप्त हुई है इसी तरह मोहिजोदड़ों के उपरी स्तर से घोड़े के प्रमाण लमिे हैं।
बाघ:- लसन्धु सभ्यता के िोगों को बाघ का ज्ञाि था िेककि र्ेर का ज्ञाि िहीं था।
उद्योग धन्धे:- सूती िस्त्र यहााँ का सबसे प्रमुि उद्योग रहा होगा िाँकू क कपास सैन्धि िोगों की मूि फसि थी सूती
िस्त्र के प्रमाण मोहिजोदड़ों से प्राप्त हुए हैं। िस्त्रों पर बुिाई िी की जाती थी। मोहिजोदड़ो से प्राप्त एक व्यस्क्त
नतपनतया र्ाि ओढे हुए हैं यूिािी कपास के कारण ही इसे लसन्डि कहते थे।
तााँबे सैन्धि सभ्यता में प्रमि
ु रूप से प्रयोग की जािे िािी धातु थी। तााँबा मुख्य रूप से राजस्थाि के िेतड़ी से (झुि-
झुि स्जिा) प्राप्त ककया जाता था। बिुचिस्ताि और मगि (मध्य एलर्याई दे र्) से िी तााँबा के प्रमाण लमिे हैं। तााँबें
में टिि लमिाकर कााँसा तैयार ककया जाता था। टिि अफगानिस्ताि से मंगाया जाता था। तााँबे से बिी िस्तुयें कााँसें की
अपेक्षा अचधक मात्रा में लमिी हुई है ।
मुहरें मिके मद
ृ िाण्ड धातु मूनतवयां और िगर बिािे िािे िोगों का िी समुदाय था।
व्यापार:- व्यापार मूितिः दो प्रकार का होता था आन्तररक व्यापार एिं िाह्य व्यापार।
आन्तररक व्यापार:- सैन्धि िोगों का आन्तररक व्यापार अवयन्त उन्ित अिस्था में था एक ही तरह के बाि-माप का
प्रयोग और उिका 16 गुिे के रूप में होिा विलिन्ि िगरों में अन्िागार प्राप्त होिा बैिगाड़ी के पटहए का ठोस होिा
उिमें आपस में ककसी ि ककसी तरह से सम्बन्ध को प्रदलर्वत करता है ।
क्षेि:- लसन्धु सभ्यता के िोग महाराटर किाविक और तलमििाडु तक व्यापार करिे के लिए जाते रहे होगें । महाराटर
के दै माबाद से एक कााँसे का रथ प्राप्त हुआ है स्जसे एक िग्ि पुरुष ििा रहा है । दै माबाद का सम्बन्ध लसन्धु क्षेत्र से
िगाया जा रहा है । किाविक के कोिार से सैन्धि िोग सोिा प्राप्त करते थे इसी तरह तलमििाडु के दोछा बेक्िा से िे
हरा पवथर प्राप्त करते थे। इस तरह सद
ु रू दक्षक्षण तक सैन्धि िोगों का व्यापाररक सम्बन्ध पहिे से ही था।
बंगाि ब्रबहार और उत्तर-पि
ू ी राज्यों से उिके ककसी व्यापाररक सम्बन्ध का पता िहीं ििता।
वाह्य व्यापार:- सैन्धि िोगों के िाह्य व्यापार का साक्ष्य िी लमिा है । एक प्रकार के बाि-माप मह
ु रों की उपस्स्थनत
बन्दरगाह िगरों का होिा िोथि से गोदी बाड़े का प्रमाण प्राप्त होिा। िोथि में फारस की मह
ु र प्राप्त होिा इिके
िाह्य व्यापार को प्रदलर्वत करता है । [GYAN M360]-devrani complex ,lalpur,call-8084026007
लसन्धु सभ्यता की बेििाकार मह
ु रें मेसोपोिालमयां के आधा दजवर िगरो (उर, ककर्, नति अस्मर निवपरु , िे िे गािरा,
हमा) से प्राप्त हुए हैं। मेसोपोिालमया के र्ासक सारगोि काि की लमट्िी की पट्टिकाओं पर मेिह
ु ा, टढिमि
ु और
मगि से व्यापार का उलिेि लमिता है । मेिुहा की पहिाि मोहिजोदड़ों से की जाती है । टढलमुि की पहिाि बहरीि
से, मगि की पहिाि अिी संटदग्ध है परन्तु इसका उलिेि तााँबे के प्रमुि स्रोत के रूप में हुआ है । सम्िितिः यह
आधनु िक ओमाि अथिा बिुचिस्ताि का कोई क्षेत्र रहा होगा।
व्यापाररक दे र्िः-1- मेसोपोिालमयां (ईराक, ईराि, अफगानि -स्ताि, टढलमुि (बहरीि) रूस का दक्षक्षणी तुकवमेनिस्ताि,
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लमि, कुबैत (फैलका द्िीप) नतब्बत।
नोट:- इस व्यापार में यरू ोपीय दे र्, दक्षक्षणी पि
ू ी एलर्याई दे र्, िीि और अमेरीकी दे र्ों िे िाग िहीं लिया।
ननयाशत की वस्तय
ु :ें - सत
ू ी िस्त्र, मसािा, हाथी दांत, कािी िकड़ी, मह
ु रें आटद।
आयानतत वस्तय
ु ेंः-
1- िाजिदव मखण-अफगानिस्ताि का बदख्सा क्षेत्र।
2- िााँदी – अफगानिस्ताि
3- टिि – ईराि, अफगानिस्ताि
4- संगमराब अथिा हररताचम ;िमकद्ध ईराि से।
5- कफरोजा टिि और िांदी – ईराि से।
6- कफिन्ि एिं ििव के पवथर – विीतप (रोड़ी) पाककस्ताि के लसन्ध एिं .. िााित (सक्िर) क्षेत्र से।
सैन्धि िोगों िे अफगानिस्ताि में अपिा व्यापाररक उपनििेर् बसाया जबकक टढिमुि (बहरीि) उिके बीि
व्यापाररक ब्रबिैलिए का कायव करता था।

स ध
िं ु घाटी भ्यता के मय कला प्रौद्योर्गकी एविं सलवप
कला प्रौद्योर्गकी
मर्द
ृ भाण्ड:-मद
ृ िाण्ड िाि या गुिाबी रं ग के होते थे। इन्हें कुम्हार के िाक पर बिया जाता था। इन्हें िठ्ठों में पकाया
जाता था इि पर कई तरह की चित्रकाररयां होती थी स्जिमें पर्ु पक्षी मािि आकृनत एिं ज्यालमतीय आकृनतयां प्रमुि
हैं। इिमें ज्यामीनतय चित्र सबसे अचधक प्रिलित थे। िोथि से एक ऐसा मद
ृ िाण्ड लमिा है स्जसमें एक िक्ष
ृ पर एक
चिडडया
े़ बैठा है और उसके माँह
ु में रोिी का िुकड़ा है िीिे एक िोमड़ी िड़ी है । यह पंितन्त्र की प्रलसद्ध कथा िािाक
िोमड़ी का अंकि है ।
मण्ृ य मनू तश:- मण्ृ य मनू तवयां चिकोिी विचध से बिाई गयी है इि मण्ृ य मनू तवयों में पर्ु पक्षी आटद की मण्ृ य मनू तवयां
िोििी हैं जबकक मािि मण्
ृ य मनू तवयां ठोस है मािि मण्ृ य मनू तवयों में सिावचधक मण्ृ य मनू तवयां िारी की प्राप्त हुई है
परन्तु यह आचियव जिक तथ्य है की िारी मण्ृ य मनू तवयां राजस्थाि और गज
ु रात के ककसी िी क्षेत्र से प्राप्त िहीं हुई
हैं। िारी मण्ृ य मनू तवयों में कुआंरी िारी का अंकि सिावचधक है । परन्तु हड़प्पा से एक ऐसी मह
ु र प्राप्त हुई है स्जसमें एक
िारी को उलिा दर्ावया गया है और उसके गिव से एक पौधा निकिते हुए टदिाया गया है । ऐसा िगता है कक हड़प्पा
िासी िारी की पूजा पथ्
ृ िी की उिवरा र्स्क्त के रूप में करते थे।
प्रस्तर मूनतशयािं:-प्रस्तर मूनतवयों में मोहिजोदड़ों से प्राप्त पुजारी का लसर (मंगोिायड प्रजानत का) और हड़प्पा से प्राप्त
िवृ यरत एक मािि की मूनतव सिावचधक प्रलसद्ध है स्जसका बांया पैर कुछ उठा हुआ है । उसके हाथ की िंचगमायें िी
अिग हैं। [GYAN M360]-devrani complex ,lalpur,call-8084026007

धातु की मूनतशयाँ:- धातु की मूनतवयों में तााँबा और कांसे की मूनतवयां प्राप्त हुई है इिमें मोहिजोदड़ों से प्राप्त कााँसे की
ितवकी सिावचधक प्रलसद्ध है । धातु मूनतवयों को मघूस्च्छटि विचध या भ्रटि मोम विचध या स्िेजांग विचध से बिाई जाती
थी। मोहिजोदड़ों से प्राप्त कांसे की ितवकी प्रोिोआस्रे िायड प्रजानत की है इसी तरह िान्हूदड़ों से कााँसें की बैिगाड़ी
एिं इक्का गाड़ी कािी बंगा से िष
ृ ि मनू तव प्रलसद्ध है िोथि से प्राप्त ताँबे के कुत्ते की मनू तव िी आकषवक है । दै माबाद से
कााँसे का रथ प्राप्त हुआ है ।
मनके बनाने का कारखाना:- (गरु रया ठमंके) मिके एक प्रकार की गरु रया थी यह सिी धातओ
ु ं और लमट्िी जैस-े

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सेििड़ी, सोिा, िााँदी, तााँबा, कााँसा आटद के बिाये जाते थे। इिमें सिावचधक संख्या सेििड़ी के मिकों की है ।
िान्हूदड़ों और िोथि से मिके बिािे के कारिािे प्राप्त हुए हैं।
मह
ु रें –लसन्धु सभ्यता में बहुत सी मह
ु रें प्राप्त हुई हैं इि मह
ु रों पर सैन्धि लिवप तथा विलिन्ि प्रकार के पर्ु पक्षक्षयों
आटद का अंकि लमिता है । मह
ु रें सबसे अचधक सेििड़ी या स्िे िाइि की बिी हुई है । इिकी आकृनत आयताकार
अथिा िगावकार (िैकोर) है । ये विलिन्ि अन्य आकृनतयों में िी लमिी हैं।
मैंके को मोहिजोदड़ों से एक मह
ु र प्राप्त हुई है स्जसपर एक व्यस्क्त का चित्र है जो पद्यमासि मद्र
ु ा में बैठा है। इसके
दाटहिी ओर बाघ और हाथी तथा बांयी ओर गैंडा और िैसा अंककत है इसके िीिे दो टहरण िी हैं मार्वि महोदय िे इसे
लर्ि का आटद रूप मािा है ।
सलवप:- सैन्धि लिवपयों में 400 चित्राछर है इसके विपरीत मेसोपोिालमयां से कीिाक्षर लिवप प्राप्त हुई है िहााँ 900
अक्षर हैं उन्हें पढा जा िक
ु ा है परन्तु सैन्धि लिवप को अिी तक पढा िही गया है। हिााँकक इसको पढिे का दािा
ज्ञण्छण ् बमाव, एस0आर0 राि, आई महादे िि, रे िण्ड हेरस आटद विद्िािों िे ककया है । हे रस महोदय िे इसे तलमि
िाषा में अिुिाटदत करिे का दािा िी ककया है । हिााँकक सबसे पहिे केरि के एक सैनिक अचधकारी िे इसे पढिे का
दािा ककया था। इसे ि पढे जािे का कारण यह है कक इसका कोई द्वि-िावषक िेि िही लमिा है । इसे आद्य द्रविण या
आद्य संस्कृत का प्रारस्म्िक रूप मािा जा सकता है । सैन्धि लिवप बायें से दायें एिं दायें से बायें लििी जाती थी। इस
विचध को बोस्रोफेदि पद्धनत या कफर हिायुद्ध, गोमब्रु त्रका पद्धनत िी कहा जाता है ।यह लिवप सैन्धि मुहरों
मद
ृ िाण्डों एिं ताम्र पट्टिकाओं से प्राप्त हुई है ।
स ध
िं ु घाटी भ्यता के मय धासमशक र्दशा एविं स ध
िं ु घाटी भ्यता का पतन
धासमशक र्दशा:-हड़प्पा के िोग एक ईचिरीय र्स्क्त में विचिास करते थे स्जसके दो रूप में परम पुरुष एिं परम िारी इस
द्िन्दावमक धमव का उन्होंिे विकास ककया धमव का यह रुप आज िी टहन्द ू समाज के विद्यमाि है ।
1-सशव की पूजा:-मोहिजोदड़ों से मैके को एक मुहर प्राप्त हुई स्जस पर अंककत दे िता को मार्वि िे लर्ि का आटद रुप
मािा आज िी हमारे धमव में लर्ि की सिावचधक महत्ता है ।
2-मात ृ दे िी की पूजा:- सैन्धि संस्कृनत से सिावचधक संख्या में िारी मण्ृ य मूनतवयां लमििे से मात ृ दे िी की पज
ू ा का पता
ििता है । यहााँ के िोग मात ृ दे िी की पूजा पथ्
ृ िी की उिवरा र्स्क्त के रूप में करते थे (हड़प्पा से प्राप्त मुहर के आधार
पर) [GYAN M360]-devrani complex ,lalpur,call-8084026007
मूनतश पूजा:-हड़प्पा संस्कृनत के समय से मूनतव पूजा प्रारम्ि हो गई हड़प्पा से कुछ लिंग आकृनतयां प्राप्त हुई है इसी
प्रकार कुछ दक्षक्षण की मूनतवयों में धय
ु ें के निर्ाि बिे हुए हैं स्जसके आधार पर यहााँ मूनतव पूजा का अिुमाि िगाया
जाता है ।
हड़प्पा काि के बाद उत्तर िैटदक युग में मूनतव पूजा के प्रारम्ि का संकेत लमिता है हिााँकक मूनतव पूजा गुप्त काि से
प्रिलित हुई जब पहिी बार मस्न्दरों का निमावण प्रारम्ि हुआ।

जल पूजा:- मोहिजोदड़ों से प्राप्त स्िािागार के आधार पर।


ूयश पूजा:- मोहिजोदड़ों से प्राप्त स्िास्स्तक प्रतीकों के आधार पर। स्िास्स्तक प्रतीक का सम्बन्ध सूयव पूजा से िगाया
जाता है ।
नाग पूजा: मुहरों पर िागों के अंकि के आधार पर।
वक्ष
ृ पूजा:- मुहरों पर कई तरह के िक्ष
ृ ों जैस-े पीपि, केिा, िीम आटद का अंकि लमिता है । इससे इिके धालमवक महत्ता
का पता ििता है ।
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शवाधान की ववर्धयािं:- हड़प्पा संस्कृनत से तीि प्रकार के र्िाधाि के प्रििि का संकेत लमिता है ।
1. पण
ू श मार्धकरण:- इस प्रकार के र्िाधािों में र्िों को उत्तर-दक्षक्षण टदर्ा में रिकर उिके उपयोग की अिेक
िस्तए
ु ं जैस-े मद
ृ िाण्ड, सीसा कंघी आटद दफिा दी जाती थी इसे पण
ू व समाचधकरण कहा जाता था। इस प्रकार र्िाधाि
सिावचधक प्रिलित था। इस र्िाधाि से यह िी निटकषव निकािा जा सकता है कक हड़प्पि िोगों को पारिौककक र्स्क्त
में विचिास था।
2. आिंसशक मार्धकरण:- इस प्रकार के र्िाधाि में र्ि को पहिे िि
ु ा छोड़ टदया जाता था कफर उसके कुछ टहस्से
को दफिा टदया जाता था।
3. र्दाह- िंस्कार:- इसमें र्िों को जिा टदया जाता था।
4. कलश-शवाधान:- इस प्रकार के र्िाधाि के उदाहरण सुरकोूेूेूेिडा एिं मोहिजोदड़ों से प्राप्त हुए है । इस
र्िाधाि में र्िों को जिािे के बाद उिके रािों को दफिा टदया जाता था। िैसे मोहिजोदड़ों से कोई कि िहीं लमिी
है ।
इि र्िाधािों में हड्डडयों के प्रमाण िही लमिे हैं।
अपवार्द:- सामान्यतिः र्िों को उत्तर-दक्षक्षण टदर्ा में दफिाया गया है परन्तु इसके कुछ अपिाद िी हैं जैसे कािीबंगा
में दक्षक्षण-उत्तर टदर्ा में िोथि में पूरब-पस्चिम टदर्ा में , जबकक रोपण में पस्चिम-पूरब टदर्ा में र्िों को दफिाये
जािे का प्रमाण लमिता है ।
पतन:- लसन्धु सभ्यता के पति के प्रचि पर इनतहासकारों में मतिेद हैं क्योंकक स्जस तेजी से यह सभ्यता अस्स्तवि में
आई उतिी तेजी से ही यह पति को प्राप्त हुई इसके पति के निम्ि कारण बताये जा सकते हैं।
1-बाढ:- इनतहासकार मार्वि, मैके एिं एस0आर0 राि िे लसन्धु सभ्यता के पति का सबसे प्रमुि कारण बाढ मािा
है । मार्वि िे मोहिजोदड़ों का मैके िे िान्हूदड़ों के पति का एिं एस0आर0 राि िे िोथि के पति का प्रमि
ु कारण
बाढ को मािा। मोहिजोदड़ों की िद
ु ाई से इसके सात स्तर प्रकार् में आये हैं। हर बार मकािों को पहिे से ऊाँिें स्तर
पर बिया गया है यहााँ बािू के प्रमाण िी लमिे हैं अतिः ऐसा िगता है कक यहााँ बाढ िगातार आती रही होगी।
2. आयों का आक्रमण: व्हीिर, गाडेि, िाइलड आटद विद्िािों िे लसन्धु सभ्यता के पति का प्रमुि कारण आयों का
आक्रमण मािा है यह मूितिः दो लसद्धान्तों पर आधाररत है -
1. मोहिजोदड़ो से िर कंकािों का लमििा।
2. ऋग्िेद में दास एिं दस्यओ
ु ं का उलिेि होिा
अमेररकी इनतहासकार केिेडी िे यह लसद्ध कर टदया है यह कंकाि मिेररया जैसी ककसी बीमारी से िलसत थे। ऋग्िेद
में उस्लिखित दास एिं दस्यओ
ु ं पर आिचयकता से अचधक जोर दे िे की आिचयकता िही है क्योंकक ऋग्िेद की नतचथ
वििादास्पद है ।
3. जलवायु पररवतशन:- आर0एि0 स्िाइि और अमिा िन्द घोष िे इस कारण पर बहुत अचधक बि टदया है । अमिा
िन्द घोष िे राजस्थाि में अपिे अध्ययिों में यह लसद्ध कर टदया है कक 200 ई0पू0 के आस-पास यहााँ प्रिरु मात्रा में
िषाव होती थी। परन्तु जंगिों की किाई आटद के कारण िषाव में कमी आई फिस्िरूप अब िोगों के रहिे के लिए जि
का अिाि होिे िगा और धीरे -धीरे यह सभ्यता वििटि हो गई।
4. भू-ताजत्वक पररवतशन:- दे लस एिं राइट्स, एम0आर0 साहिी के अिुसार लसन्धु सभ्यता के पति में िू-तास्विक
पररितवि का सबसे महविपण
ू व योगदाि है । िूकम्प, बाढ आटद के कारण िटदयों की टदर्ायें बदि गई, अतिः जो िटदयां
उिका पोषण करती थी िही अब उिके वििार् का कारण बिी।
5. एक मान प्रौद्योर्गकी:- ए0एि0 बासम िे इस मत पर जोर टदया है उिके अिुसार एक हजार िषों में सैन्धि
11 | P a g e
प्रौद्योचगकी में ककसी तरह का पररितवि टदिाई िहीं पड़ता बाद में बढती हुई जिसंख्या आटद के कारण परु ािी
प्रौद्योचगकी उतिी उपयोगी िही रह गयी होगी इस कारण इस सभ्यता का धीरे -धीरे वििार् हो गया।
6. प्रशा ननक सशर्थलता:- मार्वि के अिस
ु ार लसन्धु सभ्यता के अस्न्तम िरणों में प्रर्ासनिक लर्चथिता के प्रमाण
लमिते है । कािीबंगा मोहिजोदड़ों आटद के मकाि अब छोिे बििे िगे थे ऐसा प्रतीत हो रहा था कक यह िगर
पतिािस्था को प्राप्त हो रहा है ।
7. भयिंकर ववस्फोट:- रुसी इनतहासकार द्विलमत्रयेि के अिस
ु ार कािीबंगा क्षेत्र के आस-पास एक ियंकर विस्फोि
हुआ और इस कारण यह सभ्यता वििटि हो गयी।
ननष्कर्श रूप में यह कहा जा सकता है कक लसन्धु सभ्यता के पति का सबसे प्रमि
ु कारण बाढ था परन्तु उपरोक्त
सिी कारणों में इस सभ्यता के पति में ककसी ि ककसी रूप में योगदाि ककया।
लसन्धु सभ्यता के िगरों का पति 1750 ई0पू0 से प्रारम्ि हो गया और 1500 ई0पू0 तक पति को प्राप्त हो गया।
हड़प्पा और मोहिजोदड़ो के पति का प्रारम्ि 2000 ई0पू0 से मािा जाता है ।
1960 के दर्क में इनतहासकारों का एक िगव स्जसमें मलिक और पौसेि के िाम विर्ेष रूप से उलिेििीय है । हड़प्पा
संस्कृनत के पति की बात िही करते उिका माििा है कक इस संस्कृनत के केिि िगरीय तवि ही वििुप्त हुए
समकािीि कुछ ताम्र पाषाखणक संस्कृनतयां इस तथ्य को मजबूती प्रदाि करती है।
लसंधु घािी सभ्यता के समय धालमवक दर्ा एिं लसंधु घािी सभ्यता का पति
धासमशक र्दशा:-हड़प्पा के िोग एक ईचिरीय र्स्क्त में विचिास करते थे स्जसके दो रूप में परम पुरुष एिं परम िारी इस
द्िन्दावमक धमव का उन्होंिे विकास ककया धमव का यह रुप आज िी टहन्द ू समाज के विद्यमाि है ।
1-सशव की पूजा:-मोहिजोदड़ों से मैके को एक मुहर प्राप्त हुई स्जस पर अंककत दे िता को मार्वि िे लर्ि का आटद रुप
मािा आज िी हमारे धमव में लर्ि की सिावचधक महत्ता है ।
2-मात ृ दे िी की पूजा:- सैन्धि संस्कृनत से सिावचधक संख्या में िारी मण्ृ य मूनतवयां लमििे से मात ृ दे िी की पज
ू ा का पता
ििता है । यहााँ के िोग मात ृ दे िी की पूजा पथ्
ृ िी की उिवरा र्स्क्त के रूप में करते थे (हड़प्पा से प्राप्त मुहर के आधार
पर)
मूनतश पूजा:-हड़प्पा संस्कृनत के समय से मूनतव पूजा प्रारम्ि हो गई हड़प्पा से कुछ लिंग आकृनतयां प्राप्त हुई है इसी
प्रकार कुछ दक्षक्षण की मूनतवयों में धय
ु ें के निर्ाि बिे हुए हैं स्जसके आधार पर यहााँ मूनतव पूजा का अिुमाि िगाया
जाता है ।
हड़प्पा काि के बाद उत्तर िैटदक युग में मूनतव पूजा के प्रारम्ि का संकेत लमिता है हिााँकक मूनतव पूजा गुप्त काि से
प्रिलित हुई जब पहिी बार मस्न्दरों का निमावण प्रारम्ि हुआ।

जल पूजा:- मोहिजोदड़ों से प्राप्त स्िािागार के आधार पर।


ूयश पूजा:- मोहिजोदड़ों से प्राप्त स्िास्स्तक प्रतीकों के आधार पर। स्िास्स्तक प्रतीक का सम्बन्ध सूयव पूजा से िगाया
जाता है । [GYAN M360]-devrani complex ,lalpur,call-8084026007
नाग पूजा: मुहरों पर िागों के अंकि के आधार पर।
वक्ष
ृ पूजा:- मुहरों पर कई तरह के िक्ष
ृ ों जैस-े पीपि, केिा, िीम आटद का अंकि लमिता है । इससे इिके धालमवक महत्ता
का पता ििता है ।
शवाधान की ववर्धयािं:- हड़प्पा संस्कृनत से तीि प्रकार के र्िाधाि के प्रििि का संकेत लमिता है ।
1. पूणश मार्धकरण:- इस प्रकार के र्िाधािों में र्िों को उत्तर-दक्षक्षण टदर्ा में रिकर उिके उपयोग की अिेक

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िस्तए
ु ं जैस-े मद
ृ िाण्ड, सीसा कंघी आटद दफिा दी जाती थी इसे पण
ू व समाचधकरण कहा जाता था। इस प्रकार र्िाधाि
सिावचधक प्रिलित था। इस र्िाधाि से यह िी निटकषव निकािा जा सकता है कक हड़प्पि िोगों को पारिौककक र्स्क्त
में विचिास था।
2. आिंसशक मार्धकरण:- इस प्रकार के र्िाधाि में र्ि को पहिे िि
ु ा छोड़ टदया जाता था कफर उसके कुछ टहस्से
को दफिा टदया जाता था।
3. र्दाह- िंस्कार:- इसमें र्िों को जिा टदया जाता था।
4. कलश-शवाधान:- इस प्रकार के र्िाधाि के उदाहरण सरु कोूेूेूेिडा एिं मोहिजोदड़ों से प्राप्त हुए है । इस
र्िाधाि में र्िों को जिािे के बाद उिके रािों को दफिा टदया जाता था। िैसे मोहिजोदड़ों से कोई कि िहीं लमिी
है ।
इि र्िाधािों में हड्डडयों के प्रमाण िही लमिे हैं।
अपवार्द:- सामान्यतिः र्िों को उत्तर-दक्षक्षण टदर्ा में दफिाया गया है परन्तु इसके कुछ अपिाद िी हैं जैसे कािीबंगा
में दक्षक्षण-उत्तर टदर्ा में िोथि में पूरब-पस्चिम टदर्ा में , जबकक रोपण में पस्चिम-पूरब टदर्ा में र्िों को दफिाये
जािे का प्रमाण लमिता है ।
पतन:- लसन्धु सभ्यता के पति के प्रचि पर इनतहासकारों में मतिेद हैं क्योंकक स्जस तेजी से यह सभ्यता अस्स्तवि में
आई उतिी तेजी से ही यह पति को प्राप्त हुई इसके पति के निम्ि कारण बताये जा सकते हैं।
1-बाढ:- इनतहासकार मार्वि, मैके एिं एस0आर0 राि िे लसन्धु सभ्यता के पति का सबसे प्रमुि कारण बाढ मािा
है । मार्वि िे मोहिजोदड़ों का मैके िे िान्हूदड़ों के पति का एिं एस0आर0 राि िे िोथि के पति का प्रमि
ु कारण
बाढ को मािा। मोहिजोदड़ों की िद
ु ाई से इसके सात स्तर प्रकार् में आये हैं। हर बार मकािों को पहिे से ऊाँिें स्तर
पर बिया गया है यहााँ बािू के प्रमाण िी लमिे हैं अतिः ऐसा िगता है कक यहााँ बाढ िगातार आती रही होगी।
2. आयों का आक्रमण: व्हीिर, गाडेि, िाइलड आटद विद्िािों िे लसन्धु सभ्यता के पति का प्रमुि कारण आयों का
आक्रमण मािा है यह मूितिः दो लसद्धान्तों पर आधाररत है -
1. मोहिजोदड़ो से िर कंकािों का लमििा।
2. ऋग्िेद में दास एिं दस्यओ
ु ं का उलिेि होिा
अमेररकी इनतहासकार केिेडी िे यह लसद्ध कर टदया है यह कंकाि मिेररया जैसी ककसी बीमारी से िलसत थे। ऋग्िेद
में उस्लिखित दास एिं दस्युओं पर आिचयकता से अचधक जोर दे िे की आिचयकता िही है क्योंकक ऋग्िेद की नतचथ
वििादास्पद है । [GYAN M360]-devrani complex ,lalpur,call-8084026007
3. जलवायु पररवतशन:- आर0एि0 स्िाइि और अमिा िन्द घोष िे इस कारण पर बहुत अचधक बि टदया है । अमिा
िन्द घोष िे राजस्थाि में अपिे अध्ययिों में यह लसद्ध कर टदया है कक 200 ई0पू0 के आस-पास यहााँ प्रिरु मात्रा में
िषाव होती थी। परन्तु जंगिों की किाई आटद के कारण िषाव में कमी आई फिस्िरूप अब िोगों के रहिे के लिए जि
का अिाि होिे िगा और धीरे -धीरे यह सभ्यता वििटि हो गई।
4. भू-ताजत्वक पररवतशन:- दे लस एिं राइट्स, एम0आर0 साहिी के अिस
ु ार लसन्धु सभ्यता के पति में ि-ू तास्विक
पररितवि का सबसे महविपण
ू व योगदाि है । िक
ू म्प, बाढ आटद के कारण िटदयों की टदर्ायें बदि गई, अतिः जो िटदयां
उिका पोषण करती थी िही अब उिके वििार् का कारण बिी।
5. एक मान प्रौद्योर्गकी:- ए0एि0 बासम िे इस मत पर जोर टदया है उिके अिुसार एक हजार िषों में सैन्धि
प्रौद्योचगकी में ककसी तरह का पररितवि टदिाई िहीं पड़ता बाद में बढती हुई जिसंख्या आटद के कारण पुरािी
प्रौद्योचगकी उतिी उपयोगी िही रह गयी होगी इस कारण इस सभ्यता का धीरे -धीरे वििार् हो गया।
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6. प्रशा ननक सशर्थलता:- मार्वि के अिस
ु ार लसन्धु सभ्यता के अस्न्तम िरणों में प्रर्ासनिक लर्चथिता के प्रमाण
लमिते है । कािीबंगा मोहिजोदड़ों आटद के मकाि अब छोिे बििे िगे थे ऐसा प्रतीत हो रहा था कक यह िगर
पतिािस्था को प्राप्त हो रहा है ।
7. भयिंकर ववस्फोट:- रुसी इनतहासकार द्विलमत्रयेि के अिस
ु ार कािीबंगा क्षेत्र के आस-पास एक ियंकर विस्फोि
हुआ और इस कारण यह सभ्यता वििटि हो गयी।
ननष्कर्श रूप में यह कहा जा सकता है कक लसन्धु सभ्यता के पति का सबसे प्रमि
ु कारण बाढ था परन्तु उपरोक्त
सिी कारणों में इस सभ्यता के पति में ककसी ि ककसी रूप में योगदाि ककया।
लसन्धु सभ्यता के िगरों का पति 1750 ई0पू0 से प्रारम्ि हो गया और 1500 ई0पू0 तक पति को प्राप्त हो गया।
हड़प्पा और मोहिजोदड़ो के पति का प्रारम्ि 2000 ई0पू0 से मािा जाता है ।
1960 के दर्क में इनतहासकारों का एक िगव स्जसमें मलिक और पौसेि के िाम विर्ेष रूप से उलिेििीय है । हड़प्पा
संस्कृनत के पति की बात िही करते उिका माििा है कक इस संस्कृनत के केिि िगरीय तवि ही वििुप्त हुए
समकािीि कुछ ताम्र पाषाखणक संस्कृनतयां इस तथ्य को मजबूती प्रदाि करती है।

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