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Iskcon Question Answere
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24 May at 07:55 ·
बक्तत-ऩद तक ऊऩय उठने के लरए हभें ऩाॊच फातेआ का ध्मान यखना चाहहए: 1. बततेआ की सॊगतत कयना, 2. बगवान कृष्ण की सेवा
भें रगना, 3. श्रीभद् बागवत का ऩाठ कयना, 4. बगवान के ऩववत्र नाभ का कीततन कयना तथा 5.
वन्ृ दावन मा भथुया भें तनवास कयना | महद कोई इन ऩाॊच फातेआ भें से ककसी एक भें थोडा बी
अग्रसय होता है तो उस फुविभान व्मक्तत का कृष्ण के प्रतत सुप्त प्रेभ क्रभश् जागत
ृ हो जाता है
(CC.भध्म रीरा 24.193-194) |
कृष्णबावनाभत
ृ हभायी चेतना को तनभतर तथ शुि फनाने की ववधध है | जफ भनुष्म हय वस्तु को अऩनी भानता है तफ वह बौततक
चेतना भें यहता है औय जफ वह सभझ जाता है कक हय वस्तु श्री कृष्ण की है तो वह कृष्णबावनाभत
ृ को प्राप्त कय रेता है|
कृष्णबावनाभत
ृ भें की गमी प्रगतत कबी नष्ट नहीॊ होती | क्जसने कृष्ण के प्रतत प्रेभ उत्ऩन्न कय लरमा वही बतत है | गीता
(6.41-43) भें बगवान कृष्ण कहते हेऄ: “महद बक्तत ऩूयी नहीॊ बी होती तो बी कोई नुकसान नहीॊ हे तमोकक असपर मोगी ऩववत्र
आत्भाओ के रोक भें अनेक वषो तक बोग कयने के फाद मा तो सदाचायी ऩरु
ु षेआ के ऩरयवाय भें मा धनवानो के कुर भें जन्भ
रेता हें | ऐसा जन्भ ऩा कय वह अऩने ऩूव त जन्भ की दे वी चेतना को ऩुन् प्राप्त कयता हे औय आगे उन्नतत कयने का प्रमास
कयता है” |
कृष्णबावनाभत
ृ भें प्रगतत कयते सभम हभें एक फात का औय ववशेष ध्मान यखना :हैबगवान, बगवान के नाभ तथा बगवान के
बतत के प्रतत कबी बी अऩयाध नहीॊ कयना है | इससे फचने का सयर उऩाम है अऩने आऩ को दीन तथा बगवान का दास
सभझना | बगवान ही केवर कतात है, हभ तो अमोग्म व अधभ है | सफ भें बगवान की उऩक्स्थतत भहसूस कयते हुए सफको
सम्भान दें | तथा साथ ही जो व्मक्तत दस
ू येआ के गुणेआ तथा आचयण की प्रशॊसा कयता है मा आरोचना कयता ,हैवह भामाभम
द्वैतेआ भें पसने के कायण कृष्णबावनाभत
ृ से ववऩथ हो जाता है (SB.11.28.2) |
बक्ततहीन व्मक्तत के लरए उच्च कुर, शास्त्र-ऻान, व्रत, तऩस्मा तथा वैहदक भॊत्रोच्चाय वैसे ही हेऄ, जैसे भत
ृ शयीय को गहने ऩहनाना
(CC.भध्म रीरा 19.75) | प्राभाणणक शास्त्रेआ का तनणतम है कक भनुष्म को कभत, ऻान तथा मोग का ऩरयत्माग कयके बक्तत को ग्रहण
कयना चाहहए, क्जससे कृष्ण ऩूणत
त म तुष्ट हो सकें (CC.भध्म रीरा 20.136) | बक्तत के परस्वरूऩ भनुष्म का सुप्त कृष्ण प्रेभ
जागत
ृ हो जाता है | सुप्त कृष्ण-प्रेभ को जागत
ृ ककमे बफना कृष्ण को प्राप्त कयने का अन्म कोई साधन नहीॊ है(CC.अन्त्म रीरा
4.58) | गीता (BG.18.58) भें बगवान कृष्ण कहते हेऄ: महद तभ
ु भेयी चेतना भें क्स्थत यहोगे तो भेयी कृऩा से फि-जीवन के सभस्त
अवयोधेआ को ऩाय कय जाओगे | रेककन महद लभथ्मा अहॊ कायवश ऐसी चेतना भें कभत नही कयोगे, तो तुभ ववतनष्ट हो जाओगे | तथा
“जफ बक्तत से जीव ऩूणत कृष्णबावनाभत
ृ भें होता है तो वह वैकुण्ठ भें प्रवेश का अधधकायी हो जाता ”है(BG.18.55) |
शुकदे व गोस्वाभी कहते हेऄ: “हे याजन!, जो व्मक्तत बगवन्नाभ तथा बगवान के कामो का तनयन्तय श्रवण तथा कीततन कयता ,हैवह
फहुत ही आसानी से शुि बक्तत ऩद को प्राप्त कय सकता है | केवर व्रत यखने तथा वैहदक कभतकाॊड कयने से ऐसी शुवि प्राप्त
नहीॊ की जा सकती” (SB.6.3.32) | बक्तत के बफना कोया ऻान भुक्तत हदराने भें सभथत नहीॊ है, रेककन महद कोई बगवान कृष्ण की
प्रेभभमी सेवा भें आसतत है तो वह ऻान के बफना बी भुक्तत प्राप्त कय सकता है(CC.भध्म रीरा 22.21) | भुक्तत तो बतत के
सभऺ उसकी सेवा कयने के लरए हाथ जोड़े खड़ी यहती है |
तनमलभत बक्तत कयते यहने से रृदम कोभर हो जाता है, धीये धीये सायी बौततक इच्छाओॊ से ववयक्तत हो जाती है, तफ वह कृष्ण के
प्रीतत अनरु
ु तत हो जाता है | जफ मह अनरु
ु क्तत प्रगाढ़ हो जाती है तफ मही बगवत्प्रेभ कहराती है (CC.भध्म रीरा 19.177) | महद
कोई बगवत्प्रेभ उत्ऩन्न कय रेता है औय कृष्ण के चयण-कभरेआ भें अनुरुतत हो जाता है, तो धीये-धीये अन्म सायी वस्तुओॊ से
उसकी आसक्तत रुप्त हो जाती है (CC.आहद रीरा 7.143) |बगवत्प्रेभ का रक्ष्म न तो बौततक दृक्ष्ट से धनी फनना है, न ही
बवफॊधन से भुतत होना है | वास्तववक रक्ष्म तो बगवान की बक्ततभम सेवा भें क्स्थत होकय हदव्म आनन्द बोगना है| जफ
भनुष्म बगवान कृष्ण की सॊगतत का आस्वादन कय सकने मोग्म हो जाता ,हैतफ मह बौततक सॊसाय, जन्भ-भत्ृ मु का चक्र सभाप्त
हो जाता है (CC.भध्म रीरा 20.141-142)|
9 mins ·
ईशोऩतनषद कहती है, “जो अववद्मा की सॊस्कृतत भेँ रगे हुए हेऄ, वे अऻान के गहनतभ ऺेत्र भेँ प्रवेश कयें गे । लशऺा दो
प्रकाय की होती है, बौततक तथा आध्माक्त्भक। बौततक लशऺा जड़-ववद्मा कहराती है। जड़ का अथत है “जो चर-कपय
न सके” अथातत ऩदाथत। आत्भा तो चर-कपय सकती है। हभाया शयीय ऩदाथत तथा आत्भा का सम्भेर है। जफ तक
आत्भा वहाॉ यहती है, शयीय हहरता-डुरता है। उदाहयणाथत भनष्ु म के कोट तथा ऩेऄट तफ तक हहरते-डुरते हेऄ, जफ तक
भनष्ु म उन्हें ऩहने यहता है। एसा रगता है की कोट तथा ऩेऄट ही हहर डुर यहे हेऄ, ककॊ तु वास्तव भेँ मह तो शयीय है,
जो हहराता-डुराता है। इसी तयह मे शयीय चरता कपयता है तमकूॊ क आत्भा इसे चरा कपय यही है। दस
ू या उदाहयण
भोटयकाय का है। भोटयकाय चरती है, तमकूॊ क चारक उसे चरा आ यहा है। जो भुखत होगा वह महीीँ सोचेगा की भोटय
काय अऩने आऩ चर यही है| अद्भुत माॊबत्रक व्मवस्था के फावजूद बी भोटयकाय स्वत् नहीीँ चर सकती।
चूॊकक रोगेअ को केवर जड़-ववद्मा अथत बौततकतावादी लशऺा दी जाती है, इसलरए वे सोचते हेऄ कक मह बौततक प्रकृतत
अऩने आऩ कामत कयती है, चरती कपयती है, औय अनेक अद्भुत वस्तुएॉ प्रदलशतत कयती है। जफ हभ सभुद्र तट ऩय होते
हेऄ तो हभ रहयेअ को चरते दे खते हेऄ, रेककन वे स्वत् नहीीँ चरती। हवा उन्हें चराती है, औय हवा को कोई औय ही
चराता है। इस तयह महद आऩ चयभ कायण तक ऩहुॊच,े तो आऩ को सभस्त कायणेअ के कायण कृष्ण लभरेंगे। ऩयभ
कायण की खोज कयना ही असरी लशऺा है।
इस प्रकाय ईशोऩतनषद कहती है कक जो रोग बौततक शक्तत की फाह्म गततववधधमेअ द्वाया भोहहत हो जाते हेऄ, वे
अववद्मा की ऩज
ू ा कयते हेऄ। आधुतनक सभ्मता भेँ प्रौद्मोधगकी को सभझने के लरए की ककस तयह भोटयकाय मा हवाई
जहाज चरता है फडे फडे सॊस्थान हेऄ। वे इसका अध्ममन कय यहे हेऄ कक इतनी सायी भशीनयी कैसे फनाई जाए ककॊ तु
ऐसा कोई शैक्षऺक सॊस्थान नहीीँ है, जो इस की खोज कये कक आत्भा ककस तयह गततशीर है। वास्तववक गतत दे ने
वारे का अध्मन नहीीँ ककमा जा यहा; उल्टे ऩदाथत की फाह्म गतत का अध्ममन ककमा जा यहा है।
भेसाचस
ु ेट्स इॊक्स्टट्मट
ू ऑप टे तनोरॉजी भेँ बाषण दे ते हुए श्रीर प्रबऩ
ु ाद ने छात्रेअ से ऩछ
ू ,ा “शयीय को चराने वारे
आत्भा का अध्ममन कयने के लरए टे तनोरॉजी कहाॉ है?” उनके ऩास एसी कोई टे तनोरॉजी नहीीँ थी। वे ठीक से उत्तय
न दे ऩाए, तमेआकक उनकी लशऺा केवर जड़-ववद्मा थी। ईशोऩतनषद् कहती है कक जो रोग एसी बौततकतावादी लशऺा
की उन्नतत भेँ रगे हुए हेऄ वे सॊसाय के गहनतभ बागेअ भेँ जाएॊगे। वततभान सभ्मता फहुत ही खतये भेँ है, तमकूॊ क
प्राभाणणक आध्माक्त्भक लशऺा के लरए सॊसाय भेँ कहीीँ कोई व्मवस्था नहीीँ है। इस तयह भानव सभाज को जगत के
गहन अॊधकाय ऺेत्र भेँ धकेरा जा यहा है।
श्रीर बक्तत ववनोद ठाकुय ने एक गीत भेँ घोवषत ककमा है कक बौततकतावादी लशऺा केवर भामा का ववस्ताय है। इस
बौततकतावादी लशऺा भेँ क्जतना आगे फढ़ें गे, उतनी ही अधधक ईश्वय को सभझने की हभायी ऺभता अवरुि होगी औय
अॊत भे घोवषत कयना ऩड़ जाएगा कक, “ईश्वय भत
ृ है।” मह सफ अऻान तथा अॊधकाय है।
अत् बौततकतावादी रोग तनश्चम ही अॊधकाय भेँ धकेरे जा यहे हेः। ककॊ तु एक अन्म वगत बी है – तथाकधथत
दाशततनकेअ, भनोधलभतमेआ, धभतववदेआ तथा मोधगमेआ का – जो उससे बी अधधक गहन अॊधकाय भेँ जा यहे हेऄ, तमकूॊ क वे कृष्ण
की अनदे खी कय यहे हेऄ। वे अध्माक्त्भक ऻान का अनश
ु ीरन कयने का हदखावा कयते हेऄ, ककॊ तु उन्हें कृष्ण मा ईश्वय
का कोई ऻान नहीीँ यहता। अत् उनकी लशऺाएॉ ऩतके बौततकतावादीमेआ की लशऺाओॊ की अऩेऺा कहीीँ औय घातक हेऄ।
तमेआ? तमकूॊ क वे रोगेअ को मह सोचने के लरए हदग्रलभत कयते हेऄ कक वे असरी ऻान प्रदान कय यहे हेऄ। वे क्जस
तथाकधथत मोग प्रणारी की लशऺा दे ते हेऄ-“केवर ध्मान कयो औय तभ
ु सभझ जाओगे कक तभ
ु ईश्वय हो” – वह रोगेअ
को हदगरलभत कयती है। कृष्ण ने ईश्वय फनने के लरए कबी ध्मान नहीीँ ककमा। वे जन्भ से ही इश्वय थे। जफ वे
तीन भाह के लशशु थे, तो ऩत
ू ना नाभक याऺसी ने उन ऩय आक्रभण ककमा ककॊ तु कृष्ण ने उसका स्तन-ऩान कयके
उसके प्राण तनकार लरए। अत् कृष्ण प्रायॊ ब से ही ईश्वय ही थे। मही ईश्वय है।
तथाकधथत व्मथत के मोगी लशऺा दे ते हेऄ, “तुभ क्स्थय तथा भौन फन जाओ, औय तुभ ईश्वय हो जाओगे। हभ भौन कैसे
हो सकता हेऄ? तमा भौन फनने की कोई सॊबावना है? नहीीँ एसी कोई सॊबावना नहीीँ है। “इच्छायहहत हो जाओ औय तुभ
ईश्वय फन जाओगे।” बरा हभ इच्छायहहत कैसे हो सकते हेऄ ? मे सफ फहकावे हेऄ। हभ इच्छायहहत हो नहीीँ सकते, हभ
भौन नहीीँ हो सकते। रेककन हभायी इच्छाएॊ तथा हभाये कामतकराऩ शुि फनाए जा सकते हेऄ। मही असरी ऻान है।
हभायी एकभात्र इच्छा कृष्ण की सेवा कयने की होनी चाहहए। इच्छा की शवु ि है। क्स्थय तथा भौन होने के फजाए हभेँ
अऩने कामोँ को कृष्ण की सेवा से जोड़ दे ना चाहहए। जीववत व्मक्तत के रुऩ भेँ हभ भेँ गततववधधमाॉ, इच्छाएॉ
प्रेभप्रवक्ृ त्त होती हेऄ, ककॊ तु इन्हे गरत हदशा दी जा यही है। महद हभ उन्हें कृष्ण की सेवा भेँ रगाते हेऄ तो वह लशऺा
की ऩण
ू तता है।
हभ मह नहीीँ कहते की आऩ बौततक लशऺा भेँ आगे न फढ़ेँ । आऩ आगे फढ़ेँ, ककॊ तु साथ ही कृष्णबावनाबाववत फनें।
मही हभाया सॊदेश है। हभ मह नहीीँ कहते की आऩको भोटयकायें नहीीँ फनानी चाहहए। नहीीँ, हभ कहते हेऄ, “ठीक आऩने
मे भोटय कायें तैमाय कय रीॊ। अफ इन्हें कृष्ण की सेवा भेँ रगाइए।” मही हभाया प्रस्ताव है।
अत् लशऺा आवश्मक है, ककॊ तु महद मह तनयी बौततकतावादी है – महद मह कृष्णबावना से ववहीन है – तो मह अत्मॊत
घातक है। मही ईशोऩतनषद का कथन है।
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30 May at 09:40 ·
प्रभाणणक गुरु की खोज के लरए सफसे ऩहरे हभें प्रभाणणक गुरु–लशष्म ऩयम्ऩया को खोजना होगा क्जसकी चचात बगवान ् श्रीकृष्ण
बगवद्गीता भें कयते हेऄ – *एवॊ ऩयम्ऩया प्राप्तभ ् (४.२)* अथातत ् इस ऩयभ ऻान की प्राक्प्त गरु
ु –
लशष्मऩयम्ऩया के द्वाया की जाती है।
इस प्रभाणणक गुरु–लशष्म ऩयम्ऩया की ववशेषता मह होती है कक इसभें भूर ऻान का स्रोत बगवान ् स्वमॊ होते ,हेऄअथातत ् सफसे
ऩहरे बगवान ् स्वमॊ ही ऻान दे ते हेऄ – जैसा कक ब्रह्भ–भाधव–गौड़ड़म ऩयम्ऩया भें सफसे ऩहरे बगवान्कृष्ण मह ऻान ब्रह्भाजी को
दे ते हेऄ, तत्ऩश्चात ् ब्रह्भाजी नायदजी को अाााैय नायदजी व्मासजी को।
ऩयम्ऩया भें अाागे अााने वारे गुरु उसी ऻान को केवर दोहयाते हेऄ। अाौय जफ बगवान ् स्वमॊ ही अऩने अाौय इस जगत ् के
ववषम भें ऻान दे ते हेऄ तो वह ऻान ऩूणत ही होता है । ऩयम्ऩया भें अाा यहे गुरु से सम्फन्ध स्थावऩत कयने ऩय लशष्म कासम्फन्ध
केवर अऩने गुरु से ही नहीॊ अवऩतु गुरु के गुरु अाााैय उनके ऩहरे के सबी गुरुअाोाॊ से हो जाता है ।
तमेआकक गुरु द्वाया हदए जाना वारा ऻान फहुत ही भहत्वऩूणत होता है अाौय हभाये जीवन भें अत्मधधक ववशेष भहत्व यखता , है
इसलरए गुरु के रऺणेआ को सभझना फहुत अाावश्मक है । अन्मथा हभायी क्स्थतत बी उसी व्मक्तत के सभानहो सकती है जो सोना
खयीदने के लरए तनकरता है ककन्तु सोने की प्रभाणणकता का ऻान न होने के कायण धोखा खा जाता है अाौय ऩीतर खयीद कय
रे अााता है ।
गुरु को अऩने अााचयण द्वाया लसखाना चाहहए अाौय उनका अऩने भन अाौय इक्न्द्रमेआ ऩय तनमन्त्रण होना चाहहए
, इसी कायण
गुरु को अााचामत बी कहा जाता है ।
वह धीय व्मक्तत जो अऩने भन, वाणी, क्रोध, क्जह्वा, ऩेट अाौय जनेक्न्द्रमेआ के वेग को तनमक्न्त्रत कय सकता है वही ऩूये ववश्व भें
लशष्म फनाने मोग्म है ।
इस प्रसॊग भें एक घटना एाेसी अााती है, एक फाय एक साधु ककसी घय भें बोजन के लरए गए अाौय वहाॉ ऩय उस गहृ हणी ने जो
उन्हें बोजन ऩयोस यही थी, अााग्रह ककमा – कक वे उसके छोटे फच्चे को सभझामें कक वह अधधक भीठा नखामे
, मह उसके स्वास्थ्म
के लरए अच्छा नहीॊ है, इस ऩय साधु ने कुछ नहीॊ कहा अाााैय फोरे कक भेऄ एक हफ्ते फाद इस ववषम ऩय चचात करूॉगा अाौय चरे
गमे।
एक हफ्ते फाद वे ऩुन: अाामे अाौय फच्चे को सभझाने रगे, फाद भें उन्हेआने गहृ हणी को फतामा कक एक हफ्ते ऩहरे तक भेऄ बी
फहुत भीठा खाता था ककन्तु वऩछरे एक हफ्ते भें भेऄने भीठा खाना कभ कय हदमा है इसलरए अफ भेऄ फच्चे कोइसके ववषम भें
उऩदे श दे सकता हूॉ।
गुरु भें साधु गुणेआ का होना अत्मन्तावश्मक है, जैसा कक *श्रीभद्भागवतभ ् (३.२५.२१)* भें फतामा गमा है –
साधु के रऺण हेऄ कक वह सहनशीर, कृऩार,ु सबी जीवेआ के प्रतत लभत्रता का बाव यखने वारा होता है । वह ककसी के प्रतत शत्रत
ु ा
का बाव नहीॊ यखता, शान्त होता है शास्त्रेआ के अनुसाय अऩना जीवन व्मतीत कयता है ।
गुरु को अवश्म ही बगवान ् का बतत होना चाहहए जैसा कक*ऩदभ ऩुयाण* भें फतामा गमा है –
महद कोई ववद्वान ब्राह्भण वैहदक ऻान के सबी ववषमेआ भें दऺ है ककन्तु कृष्ण बावना के ववऻान भें दऺ नहीॊ है अथातत ् बगवान ्
का बतत नहीॊ है, एाेसा व्मक्तत गुरु नहीॊ फन सकता। ककन्तु महद कोई असॊस्कृत ऩरयवाय भें बी जन्भलरमा ,हैऩयन्तु वैष्णव है
अथातत ् उसे बगवद्–बक्तत का ऻान है तो वह गुरु फन सकता है ।
गुरु का चन
ु ाव उनकी जातत, यॊ ग, दे श इत्माहद दे खकय नहीॊ ककमा जाना चाहहए। अवऩतु उनकी मोग्मता के अनस
ु ाय ककमा जाना
चाहहए। जफ ककसी डॉतटय का चुनाव कयते हेऄ तो हभ मह नहीॊ दे खते है कक वह ककस जातत मा दे श काहै
, उसकी दऺता दे खी
जाती है । उसी प्रकाय मेइ कृष्ण तत्त्व वेत्ता सेइ गुरु होम – जो व्मक्तत बगवान ् श्रीकृष्ण के ववऻान को जानता है उसे गुरु के
रूऩ भें स्वीकाय ककमा जाना चाहहए। मह अाावश्मक नहीॊ है कक वे सॊस्कृत केववद्वान हेऄ मा नहीॊ ऩयन्तु उनको शास्त्रेआ के भभत का
बलरबाॉतत ऻान होना चाहहए। अाौय वे जो फोर यहे हेऄ वह शास्त्रेआ भे अनुसाय होने के साथ
–साथ ऩहरे के गुरुअाोाॊ एवॊ
साधुअाोाॊ के भतानुसाय ही होना चाहहए, अथातत ् उनकी वाणी अाााैयऩयम्ऩया भें अाा यहे अन्म गुरुअाोाॊ की वाणी भें कोई
अन्तय नहीॊ होना चाहहए।
अन्तत: सफसे भहत्वऩूणत फात मह है कक वे अऩने भन, वाणी अाौय शयीय द्वाया सदै व बगवान ् की सेवा भें व्मस्त यहने चाहहए
,
जैसा कक बगवद्गीता ९.१४ भें बतत के ववषम भें बगवान ् श्रीकृष्ण फताते हेऄ – सततॊ कीततयमन्तो भाॊ –भेये शुि बतत सदै व भेये
नाभ, गुण एवॊ रीरा का कीततन कयते यहते हेऄ।
3) Iskcon Desire Tree - ह द
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31 May at 10:15 ·
महद दे खने की ही फात है तो एाेसी अनेक चीजें हेऄ क्जन्हें हभने नहीॊ दे खा अाााैय कपय बी हभ उन ऩय ववश्वास तमेआ कयते ?हेऄ
एक फाय एक प्राथलभक ववद्मारम भें छोटे फच्चेआ से बी एक लशऺक एाेसा ही कुछ तकत दे यहे थे तो एक छोटे फच्चे ने खड़े
होकय फाकी सबी ववद्माधथतमेआ से ऩूछा तमा अााऩ भें से ककसी ने हभाये लशऺक की फुवि को दे खा ?हैसबी ने एक साथ ऊॅंची
अाावाज भें उत्तय हदमा – नहीॊ। ककन्तु इसका अथत मह नहीॊ हुअाा कक लशऺक के ऩास फुवि नहीॊ है ।
जफ बी हभ बफजरी के फल्फ को दे खते हेऄ तो हभें थााॎभस क्एडसन का स्भयण होता है क्जसने उसका अााक्ावष्काय ककमा था।
उसी प्रकाय दयू फीन को दे खने ऩय गैरीलरमो का स्भयण होता है । महद हभ गहयाई से सोचें तो ऩामेंगे प्रत्मेक वस्तु को फनाने के
ऩीछे ककसी न ककसी का हाथ है मद्मवऩ हभ उस व्मक्तत को दे ख नहीॊ ऩा यहे हेऄ। महॉ ॊ तक ककएक योटी बी अऩने अााऩ नहीॊ
अााती उसको फनाने के ऩीछे कोई होता है ।
ककन्तु जफ हभ इस जहटर सक्ृ ष्ट की यचना को दे खते हेऄ तो हभें इसके अााववष्कायक का स्भयण तमेआ नहीॊ होता
?
जफ हभ ककसी शहय की व्मस्त सड़केआ से गुजयते हेऄ तो हभें मातामात के अनेक तनमभेआ का ऩारन कयना होता ,हैतमा उन
तनमभेआ के ऩीछे ककसी का हाथ नहीॊ है? उसी प्रकाय इस सक्ृ ष्ट भें बौततक ववऻान, यसामन ववऻान अाौय गणणत इत्माहद भें अनेक
तनमभ हेऄ, प्रकृतत के अनेक तनमभ हेऄ अाौय जीवन के बी अनेक तनमभ हेऄ। जो कबी फदरतेनहीॊ। जैसे ककप्रत्मेक व्मक्तत को
जन्भ, भत्ृ म,ु फीभायी अाौय वि
ृ ावस्था से गुजयना ही होता है ।
हभें नाक्स्तकेआ से ऩूछना होगा कक तमा उन्हें इस सक्ृ ष्ट भें अनेक तनमभ नहीॊ हदखते अाौय महद हदखते हेऄ तो उसके ऩीछे ककसी
तनमभ फनाने वारे अाौय उन तनमभेआ का तनमन्त्रण कयने वारे को स्वीकाय कयने भें तमा कहठनाई ?है
सागय भें असीलभत भात्रा भें जर को सॊधचत ककमा गमा है अाौय उसभें नभक बी डार हदमा गमा है क्जससे की वह खयाफ न हो
तमेआकक नभक डारने से वह सड़ेगा नहीॊ। सूम त द्वाया इस खाये जर का वाष्ऩीकयण होता है अाौय मही खाया जर भीठे जर भें
ऩरयवतततत होकय हभें वषात द्वाया लभरता है, इतना ही नहीॊ जो जर ऊॅंचें ऩहाड़ो ऩय धगयता है वह फपत भें ऩरयवतततत हो जाता है जो
धीये–धीये वऩघरकय अनेक नहदमेआ द्वाया हभें ऩूये वषत लभरता यहता है ।
महद हभ कहें कक मह सफ स्वसॊचालरत व्मवस्थामें हेऄ तो हभें मह भानना होगा ककसी बी स्वसॊचालरत व्मवस्था
, जैसे लरफ्ट का
द्वाय स्वमॊ ही फॊद होना, के ऩीछे ककसी इॊजीतनमय का हाथ होता है ।
जफ कठऩुततरमेआ को नाचता हुअाा दे खते हेऄ तो हभ जानते हेऄ कक इनके ऩीछे इन्हें कोई नचाने वारा है । इस ब्रह्भाण्ड भें अनेक
ग्रह हेऄ जो अऩनी अऩनी कऺाअाोाॊ भें एक तनमलभत गतत एवॊ व्मवस्था के साथ घूभ यहें हेऄ अाौय कबी बी अााऩस भें नहीॊ
टकयाते तमा इन ग्रहेआ की मातामात व्मवस्था के ऩीछे कोई नहीॊ है? तमा अनेक पूरेआ भें ववलबन्नप्रकाय की सग
ु न्ध अाौय परेआ भें
लबन्न–लबन्न प्रकाय का स्वाद अऩने अााऩ ही अाा गमा?
ऐसा ऩहरी फाय हुआ था कक भेऄने अऩनी १६ भाराएॊ ऩयू ी नहीॊ की थी । भेऄने १४ भारा ही की थी औय इतनी थकान
अनबु व कय यहा था कक भेऄने भन भें तकत ककमा कक इस तयह से भारा कयने से अच्छा है कक भेऄ अबी ववश्राभ करूॉ
औय भारा कर ऩयू ी करूॉ, जैसा कक हभें फतामा गमा था ...
अगरे हदन सुफह जफ भेऄ श्रीर प्रबुऩाद के कभये भें गमा तो उन्हेआने भुझसे ऩहरी चीज़ ऩछ
ू ी ... "तो तुभ अऩनी
भाराएॊ ऩूयी कय यहे हो न ?" ... हभेशा कक तयह उन्हें बफना ककसी से ऩूछे सफ ऩता था ।
भेऄने उन्हें फतामा कक कर भेऄने दो भारा नहीॊ की थी औय वो भेऄ आज ऩूयी कय रूॊगा ।
श्रीर प्रबऩ
ु ाद ने कहा ...
"जफ तभ
ु तनमलभत रूऩ से अऩनी १६ भारा कयते हो तो मह एक छोटे फारक का अऩनी भाॉ की
सहामता से चरना सीखने के सभान है ... तमेआकक भाॉ ने फारक का हाथ ऩकड़ा हुआ है इसलरए
जफ वह धगयने रगता है तो भाॉ के ऩकड़े यहने के कायण वह धगयता नहीॊ है ... हभाये जऩ के साथ
बी ऐसा ही है ...
महद तुभ अऩनी १६ भारा ऩूयी कय चुके हो तो कबी तुभ धगयने बी रगो तो कृष्ण तुम्हें ऩकड़
रें गे औय धगयने नहीॊ दें गे ।"
कपय उन्हेआने अऩनी आॉखें पैराकय अऩने भुखभण्डर के साभने अऩने हदव्म हाथेआ को हहराते हुए
कहा, "महद तुभ प्रततहदन कभ से कभ अऩने १६ भारा ऩुये नहीॊ कय यहे हो, तो तुम्हाया कोई अता -
ऩता नहीॊ है औय तुभ अवश्म धगय जाओगे । "
*(१९७० के दशक भें श्रीर प्रबुऩाद के सेवक यहे नॊदकुभाय प्रबु द्वाया फतामा गमा )*
5)
इस रेख भें आऩको आत्भा तथा शयीय के फीच का अॊतय ऻात होगा । मह ऻान हभाये आध्माक्त्भक ऻान का भर
ू है
। कबी कबी रोग मह फोर दे ते हेऄ कक हभ बी अध्मात्भ से जुड़े हेऄ मा ककसी न ककसी आध्माक्त्भक भागत का
अनस
ु यण कय यहे हेऄ । ऩयन्तु अधधकतय रोगेआ भें अबी बी मह भूरबूत ऻान नदायद है कक अध्मात्भ का आधाय ही
मह है कक, “हभ मह शयीय नहीॊ आत्भा हेऄ ।”
इस ववषम के अततरयतत आऩको मह ऻात होगा की ऩाऩकभत के पर ककस प्रकाय कामातक्न्वत होते हेऄ
। औय कैसे इन दग
ु भ
त परेआ से भुक्तत ऩामी जा सकती है ।
बगवद्गीता का नौवाॊ अध्माम ववद्माओॊ का याजा (याजववद्मा) कहराता है , तमेआकक मह ऩूवव
त तॉ
व्माख्मातमत सभस्त लसिान्तेआ एवॊ दशतनेआ का साय है | बायत के प्रभुख दाशततनक गौतभ, कणाद,
कवऩर, माऻवल्तम, शाक्ण्डल्म तथा वैश्र्वानय हेऄ | सफसे अन्त भें व्मासदे व आते हेऄ, जो वेदान्तसूत्र के
रेखक हेऄ | अत् दशतन मा हदव्मऻान के ऺेत्र भें ककसी प्रकाय का अबाव नहीॊ है | बगवान कहते हेऄ
कक मह नवभ अध्माम ऐसे सभस्त ऻान का याजा है, मह वेदाध्ममन से प्राऩ ् ऻान एवॊ ववलबन्न
दशतनेआ का साय है | मह गुह्मतभ है , तमेआकक गुह्म मा हदव्मऻान भें आत्भा तथा शयीय के अन्तय
को जाना जाता है | सभस्त गुह्मऻान के इस याजा (याजववद्मा) की ऩयाकाष्टा है , बक्ततमोग |
साभान्मतमा रोगेआ को इस गुह्मऻान की लशऺा नहीॊ लभरती | उन्हें फाह्म लशऺा दी जाती है |
जहाॉ तक साभान्म लशऺा का सम्फन्ध है उसभें याजनीतत, सभाजशास्त्र, बौततकी, यसामनशास्त्र,
गणणत, ज्मोततववतऻान, इॊजीतनमयी आहद भें भनष्ु म व्मस्त यहते हेऄ | ववश्र्वबय भें ऻान के अनेक
ववबाग हेऄ औय अनेक फड़े-फड़े ववश्र्वववद्मारम हेऄ, ककन्तु दब
ु ातग्मवश कोई ऐसा ववश्र्वववद्मारम मा
शैक्षऺक सॊस्थान नहीॊ है, जहाॉ आत्भ-ववद्मा की लशऺा दी जाती हो | कपय बी आत्भा शयीय का
सफसे भहत्त्वऩण
ू त अॊग है, आत्भा के बफना शयीय भहत्त्वहीन है | तो बी रोग आत्भा की धचन्ता न
कयके जीवन की शायीरयक आवश्मकताओॊ को अधधक भहत्त्व प्रदान कयते हेऄ |
बगवद्गीता भें द्ववतीम अध्माम से ही आत्भा की भहत्ता ऩय फर हदमा गमा है | प्रायम्ब भें ही
बगवान ् कहते हेऄ कक मह शयीय नश्र्वय है औय आत्भा अववनश्र्वय | (अन्तवन्त इभे दे हा
तनत्मस्मोतता् शयीरयण्) | मही ऻान का गुह्म अॊश है -केवर मह जाना रेना कक मह आत्भा शयीय
से लबन्न है, मह तनववतकाय, अववनाशी औय तनत्म है | इससे आत्भा के ववषम भें कोई सकायात्भक
सूचना प्राप्त नहीॊ हो ऩाती | कबी-कबी रोगेआ को मह रभ यहता है कक आत्भा शयीय से लबन्न है
औय जफ शयीय नहीॊ यहता मा भनुष्म को शयीय से भुक्तत लभर जाती है तो आत्भा शन्
ू म भें
यहता है औय तनयाकाय फन जाता है | ककन्तु मह वास्तववकता नहीॊ है | जो आत्भा शयीय के बीतय
इतना सक्रीम यहता है वह शयीय से भुतत होने के फाद इतना तनक्ष्क्रम कैसे हो सकता है ? मह
सदै व सक्रीम यहता है | महद मह शाश्र्वत है , तो मह शाश्र्वत सकक्रम यहता है औय वैकुण्ठरोक भें
इसके कामतकराऩ अध्मात्भऻान के गुह्मतभ अॊश हेऄ | अत् आत्भा के कामों को महाॉ ऩया सभस्त
ऻान का याजा, सभस्त ऻान का गुह्मतभ अॊश कहा गमा है |
कहा जाता है कक बक्तत की सम्ऩन्नता इतनी ऩूणत होती है कक उसके परेआ का प्रत्मऺ अनुबव
ककमा जा सकता है | हभने अनुबव ककमा है कक जो व्मक्तत कृष्ण के ऩववत्र नाभ (हये कृष्ण हये
कृष्ण कृष्ण कृष्ण हये हये , हये याभ हये याभ याभ याभ हये हये ) का कीततन कयता है उसे जऩ कयते
सभम कुछ हदव्म आनन्द का अनुबव होता है औय वह तुयन्त ही सभस्त बौततक कल्भष से शि
ु
हो जाता है | ऐसा सचभुच हदखाई ऩड़ता है | मही नहीॊ, महद कोई श्रवण कयने भें ही नहीॊ अवऩतु
बक्ततकामों के सन्दे श को प्रचारयत कयने भें बी रगा यहता है मा कृष्णबावनाभत
ृ के प्रचाय कामों
भें सहामता कयता है , तो उसे क्रभश् आध्माक्त्भक उन्नतत का अनुबव होता यहता है |
आध्माक्त्भक जीवन की मह प्रगतत ककसी ऩूवत लशऺा मा मोग्मता ऩय तनबतय नहीॊ कयती | मह ववधध
स्वमॊ इतनी शि
ु है कक इसभें रगे यहने से भनुष्म शि
ु फन जाता है |
वेदान्तसूत्र भें (३.३.३६) बी इसका वणतन प्रकाशश्र्च कभतण्मभ्मासात ् के रूऩ भें हुआ है, क्जसका अथत
है कक बक्तत इतनी सभथत है कक बक्ततकामों भें यत होने भात्र से बफना ककसी सॊदेह के प्रकाश
प्राप्त हो जाता है | इसका उदाहयण नायद जी के ऩूवज
त न्भ भें दे खा जा सकता है, जो ऩहरे दासी
के ऩुत्र थे | वे न तो लशक्षऺत थे, न ही याजकुर भें उत्ऩन्न हुए थे, ककन्तु जफ उनकी भाता बततेआ
की सेवा कयती यहती थीॊ , नायद बी सेवा कयते थे औय कबी-कबी भाता की अनुऩक्स्थतत भें बततेआ
की सेवा कयते यहते थे | नायद स्वमॊ कहते हेऄ-
उक्च्छष्टरेऩाननुभोहदतो द्ववजै्
सकृत्स्भ बुञ्जे तदऩास्तककक्ल्फष् |
एवॊ प्रवत्ृ तस्म ववशि
ु चेतस-
स्तिभत एवात्भरुधच् प्रजामते ||
श्रीभद्भागवत के इस श्रोक भें (१.५.२५) नायद जी अऩने लशष्म व्मासदे व से अऩने ऩूवज
त न्भ का
वणतन कयते हेऄ | वे कहते हेऄ कक ऩूणज
त न्भ भें फाल्मकार भें वे चातुभातस भें शि
ु बततेआ (बागवतेआ) की
सेवा ककमा कयते थे क्जससे उन्हें सॊगतत प्राप्त हुई | कबी-कबी वे ऋवष अऩनी थालरमेआ भें
उक्च्छष्ट बोजन छोड़ दे ते औय मह फारक थालरमाॉ धोते सभम उक्च्छष्ट बोजन को चखना चाहता
था | अत् उसने उन ऋवषमेआ से अनुभतत भाॉगी औय जफ उन्हेआने अनुभतत दे दी तो फारक नायद
उक्च्छष्ट बोजन को खाता था | परस्वरूऩ वह अऩने सभस्त ऩाऩकभों से भुतत हो गमा | ज्मेआ-
ज्मेआ वह उक्च्छष्ट खाता यहा त्मेआ -त्मेआ वह ऋवषमेआ के सभान शि
ु -रृदम फनता गमा | चॉकू क वे
भहाबागवत बगवान ् की बक्तत का आस्वाद श्रवण तथा कीततन द्वाया कयते थे अत् नायद ने बी
क्रभश् वैसी रूधच ववकलसत कय री | नायद आगे कहते हेऄ –
ऋवषमेआ की सॊगतत कयने से नायद भें बी बगवान ् की भहहभा के श्रवण तथा कीततन की रूधच
उत्ऩन्न हुई औय उन्हेआने बक्तत की तीव्र इच्छा ववकलसत की | अत् जैसा कक वेदान्तसूत्र भें कहा
गमा है – प्रकाशश्र्च कभतण्मभ्मासात ् – जो बगवद्भक्तत के कामों भें केवर रगा यहता है उसे
स्वत् सायी अनुबूतत हो जाती है औय वह सफ सभझने रगता है | इसी का नाभ प्रत्मऺ अनुबूतत
है |
धम्मतभ ् शब्द का अथत है “धभत का ऩथ” | नायद वास्तव भें दासी के ऩुत्र थे | उन्हें ककसी ऩाठशारा
भें जाने का अवसय प्राप्त नहीॊ हुआ था | वे केवर भाता के कामों भें सहामता कयते थे औय
सौबाग्मवश उनकी भाता को बततेआ की सेवा का सुमोग प्राप्त हुआ था | फारक नायद को बी मह
सुअवसय उऩरब्ध हो सका कक वे बततेआ की सॊगतत कयने से ही सभस्त धभत के ऩयभरक्ष्म को
प्राप्त हो सके | मह रक्ष्म है – बक्तत, जैसा कक श्रीभद्भागवत भें कहा गमा है (स वै ऩुॊसाॊ ऩयो धभेआ
मतो बक्ततयधोऺजे) | साभान्मत् धालभतक व्मक्तत मह नहीॊ जानते कक धभत का ऩयभरक्ष्म बक्तत
की प्राक्प्त है जैसा कक हभ ऩहरे ही आठवें अध्माम के अक्न्तभ श्रोक की व्माख्मा कयते हुए क्
चुके हेऄ (वेदेषु मऻेषु तऩ्सु चैव) साभान्मतमा आत्भ-साऺात्काय के लरए वैहदक ऻान आवश्मक है |
ककन्तु महाॉ ऩय नायद न तो ककसी गुरु के ऩास ऩाठशारा भें गमे थे, न ही उन्हें वैहदक तनमभेआ की
लशऺा लभरी थी, तो बी उन्हें वैहदक अध्ममन के सवोच्च पर प्राप्त हो सके | मह ववधध इतनी
सशतत है कक धालभतक कृत्म ककमे बफना बी भनुष्म लसवि-ऩद को प्राप्त होता है | मह कैसे सम्बव
होता है ? इसकी बी ऩुक्ष्ट वैहदक साहहत्म भें लभरती है- आचामतवान ् ऩुरुषो वेद | भहान आचामों के
सॊसगत भें यहकय भनुष्म आत्भ-साऺात्काय के लरए आवश्मक सभस्त ऻान से अवगत हो जाता है ,
बरे ही वह अलशक्षऺत हो मा उसने वेदेआ का अध्ममन न ककमा हो |
बक्ततमोग अत्मन्त सुखकय (सुसुखभ)् होता है | ऐसा तमेआ? तमेआकक बक्तत भें श्रवणॊ कीततनॊ ववष्णो्
यहता है , क्जससे भनुष्म बगवान ् की भहहभा के कीततन को सुन सकता है, मा प्राभाणणक आचामों
द्वाया हदमे गमे हदव्मऻान के दाशततनक बाषण सुन सकता है | भनुष्म केवर फैठे यहकय सीख
सकता है, ईश्र्वय को अवऩतत अच्छे स्वाहदष्ट बोजन का उक्च्छष्ट खा सकता है | प्रत्मेक दशा भें
बक्तत सुखभम है | भनुष्म गयीफी की हारत भें बी बक्तत कय सकता है | बगवान ् कहते हेऄ – ऩत्रॊ
ऩष्ु ऩॊ परॊ तोमॊ – वे बतत से हय प्रकाय की बें ट रेने को तैमाय यहते हेऄ | चाहे ऩात्र हो, ऩष्ु ऩ हो,
पर हो मा थोडा सा जर, जो कुछ बी सॊसाय के ककसी बी कोने भें उऩरब्ध हो, मा ककसी व्मक्तत
द्वाया, उसकी साभाक्जक क्स्थतत ऩय ववचाय ककमे बफना, अवऩतत ककमे जाने ऩय बगवान ् को वह
स्वीकाय है , महद उसे प्रेभऩूवक
त चढ़ामा जाम | इततहास भें ऐसे अनेक उदाहयण प्राप्त हेऄ | बगवान ् के
चयणकभरेआ ऩय चढ़े तुरसीदर का आस्वादन कयके सनत्कुभाय जैसे भुतन भहान बतत फन गमे |
अत् बक्ततमोग अतत उत्तभ है औय इसे प्रसन्न भुद्रा भें सम्ऩन्न ककमा जा सकता है | बगवान ्
को तो वह प्रेभ वप्रम है, क्जससे उन्हें वस्तुएॉ अवऩतत की जाती हेऄ |
महाॉ कहा गमा है कक बक्तत शाश्र्वत है | मह वैसी नहीॊ है, जैसा कक भामावादी धचन्तक साधधकाय
कहते हेऄ | मद्मवऩ वे कबी-कबी बक्तत कयते हेऄ, ककन्तु उनकी मह बावना यहती है कक जफ तक
भक्ु तत न लभर जामे, तफ तक उन्हें बक्तत कयते यहना चाहहए , ककन्तु अन्त भें जफ वे भत
ु त हो
जाएॉगे तो ईश्र्वय से उनका तादात्म्म हो जाएगा | इस प्रकाय की अस्थामी सीलभत स्वाथतभम बक्तत
शि
ु बक्तत नहीॊ भानी जा सकती | वास्तववक बक्तत तो भुक्तत के फाद बी फनी यहती है | जफ
बतत बगविाभ को जाता है तो वहाॉ बी वह बगवान ् की सेवा भें यत हो जाता है | वह बगवान ्
से तदाकाय नहीॊ होना चाहता |
जैसा कक बगवद्गीता भें दे खा जाएगा, वास्तववक बक्तत भुक्तत के फाद प्रायम्ब होती है | भुतत
होने ऩय जफ भनुष्म ब्रह्भऩद ऩय क्स्थय होता है (ब्रह्भबूत) तो उसकी बक्तत प्रायम्ब होती है
(सभ् सवेषु बूतेषु भद्भक्ततॊ रबते ऩयाभ)् | कोई बी भनुष्म कभतमोग, ऻानमोग, अष्टाॊगमोग मा अन्म
मोग कयके बगवान ् को नहीॊ सभझ सकता | इन मोग-ववधधमेआ से बक्ततमोग की हदशा ककॊ धचत
प्रगतत हो सकती है, ककन्तु बक्तत अवस्था को प्राप्त हुए बफना कोई बगवान ् को सभझ नहीॊ ऩाता
| श्रीभद्भागवत भें इसकी बी ऩक्ु ष्ट हुई है कक जफ भनष्
ु म बक्ततमोग सम्ऩन्न कयके ववशेष रूऩ से
ककसी भहात्भा से श्रीभद्भागवत मा बगवद्गीता सन
ु कय शि
ु हो जाता है, तो वह सभझ सकता है
कक ईश्र्वय तमा है | इस प्रकाय बक्ततमोग मा कृष्णबावनाभत
ृ सभस्त ववद्माओॊ का याजा औय
सभस्त गह्
ु मऻान का याजा है | मह धभत का शि
ु तभ रूऩ है औय इसे बफना कहठनाई के सख
ु ऩव
ू क
त
सम्ऩन्न ककमा जा सकता है | अत् भनुष्म को चाहहए कक इसे ग्रहण कये |
6) Iskcon Desire Tree - ह द
िं ी
बगवान श्री कृष्ण अऩनी रीराओॊ द्वाया बततेआ को आनॊद प्रदान कयते हेऄ तथा असुयेआ का नाश बी कयते हेऄ । हभाये
आचामत फहुत ही सुन्दय ढॊ ग से बक्तत भें अवयोध उत्ऩन्न कयने वारे अनथों की तुरना इन असुयेआ से कयते हुए
फताते हेऄ कक ककस प्रकाय महद हभ बगवान को आत्भसभऩतण कय दें गे तो वे इन असुय रूऩी अनथों से हभें भुक्तत
दें गे ।
२. *शकटासुय* – छकड़ा-गाड़ी बयकय हभायी ऩुयानी एवॊ नमी फुयी आदतें , आरस्म तथा ईष्मात ।
३. *तण
ृ ावतत* – बौततक-ववद्मा भें ऩाॊड़डत्म से उऩजा अहॊकाय जो भनोकक्ल्ऩत ऻान का कायण फनता
है ।
६. *फकासयु * – कऩट-धत
ू त
त ा औय झठ
ू से ऩरयऩण
ू त व्मवहाय ।
१३. *माऻीक ब्राह्भण* – वणातश्रभ के अॊतगतत अऩने ऩद जतनत दम्ब के कायण बगवान कृष्ण की
उऩेऺा कयना ।
१५. *नन्द-भहायाज का वरुण-दे व द्वाया फॊदी फनामा जाना* – मह सोचना कक उन्भत्तता द्वाया
आध्माक्त्भक जीवन भें प्रगतत होगी ।
१६. *नन्द भहायाज का ववद्माधय नभक सऩत द्वाया तनगरा जाना* – कृष्ण-बावनाभत
ृ के सत्म को
भामावाद द्वाया आच्छाहदत होने से फचाना ।
१७. *शॊखचूड़* – बक्तत के वेश भें नाभ एवॊ प्रलसवि तथा इक्न्द्रम-बोग की इच्छा ।
१८. *अरयष्ठासुय* – कऩहटमेआ द्वाया भनगढॊ त ववधभत भें लरप्त होने से उऩजे अहॊकाय के कायण
बक्तत की उऩेऺा कयना ।
१९. *केशी दानव* – मह धायणा कक, “भेऄ एक भहान बतत औय गुरु हूॉ ।”
श्रीर बक्ततववनोद ठाकुय फताते हेऄ : “जो बतत ऩववत्र हरयनाभ की आयाधना कयते हेऄ उन्हें बगवान
से ऩहरे मह माचना कयनी चाहहए कक वे इन सबी प्रततकूर प्रवक्ृ त्तमेआ से छुटकाया हदराएॊ – औय
उन्हें बगवान हरय के सभऺ मह प्राथतना प्रततहदन कयनी चाहहए । अॊतत् तनयॊ तय मह प्राथतना
कयने से बततेआ का रृदम शि
ु हो जाता है । बगवान श्री कृष्ण ने रृदम-ऺेत्र भें उहदत कई असुयेआ
का वध ककमा है – अतएव इन सबी सभस्माओॊ को नष्ट कयने हे तु एक बतत को दीनता से
बगवान के सभऺ क्रॊदन कयना (योना) चाहहए – तफ बगवान सबी भलरनताओॊ को प्रबावहीन कय
दें गे ।
7) Iskcon Desire Tree - ह द
िं ी
*प्रश्न : तमा “तनत्मो तनत्मनाभ ् …” श्रोक से मह लसि होता है कक ‘ऩयभ सत्म’ एक ऩरु
ु ष हेऄ ?*
*हये कृष्ण,*
उत्तय : जी मह मथातथ्म है कक ‘ऩयभ सत्म’ एक ऩरु
ु ष हेऄ, ऩयन्तु कठोऩतनषद के इस श्रोक “तनत्मो तनत्मनाभ ्” का
मह अथत है कक बगवान ् श्री कृष्ण एवॊ जीवात्भा (हभ सफ) तनत्म हेऄ औय ब्रह्भवादी मा भामावादी भत के ववऩयीत हभ
कबी बी उनभे ववरीन होकय अऩना व्मक्ततगत स्वरुऩ नहीॊ खोते ।
*(कठोऩतनषद २.२.१३)*
“ऩयभ बगवान ् तनत्म हेऄ तथा जीव बी तनत्म है । ऩयभ बगवान ् सवतऻ हेऄ तथा जीव बी सवतऻ है
अत् एक शाश्वत ऩयभ (बगवान ् कृष्ण) हेऄ जो अन्म अधीनस्थ शाश्वत (जीवेआ) के आवश्मकताओॊ
की आऩूततत कयते हेऄ ।
ऩरु
ु षोत्तभ - भास भें ऩारन कयने वारे तनमभ तनम्नवत ् हेऄ
1- ब्रह्भ भुहूतत भें उठना चाहहए ।
2--फढ़ते हुए क्रभ भें जऩ कयना चाहहए औय अऩनी तम की हुई जऩसॊख्मा को तनत्म कयना चाहहए
जैसे - 16,25,32,64....
4-- तनत्म हरय कथा सुननी मा ऩढनी चाहहए (श्री कृष्ण ऩुस्तक से ऩढ़ सकते हेऄ जैसे बगवान की
6--तनत्म शि
ु गाम के घी का दीऩ याधाकृष्ण के ववग्रह /धचत्र के सभऺ प्रज्वलरत कयना चाहहए ।
8-- वैष्णव, ब्राम्हण ,गयीफ औय जरूयतभॊद को दान अऩनी ऺभता के अनुरूऩ दे ना चाहहए ।
10--तनत्म गॊगा जी , मभुना जी जैसे ऩववत्र नहदमेआ भें स्नान कयना चाहहए मह सुववधा नहीॊ है तो
घय भें गॊगा/ मभुना जी के जर की कुछ फुॊदे डार कय औय उन्हें प्रणाभ कयके स्नान इस बाव से
कयना चाहहए कक मभुना जी भें ही स्नान कय यहे है।
13-- ऩय
ू े भहीने सत्म फोरना चाहहए।
14--बतत ,शास्त्र ,ब्राम्हण ,गाम, सॊत मा जो ऩुरुषोत्तभ भास के तनमभेआ का ऩारन कय यहा है
ऩुरुषोत्तभ - भास भें अधधक से अधधक हरयनाभ, कृष्णकथा , बजन एवॊ बगवान का गुणगान प्रचाय
प्रसाय के कामो भें अऩने आऩको सरग्न कयना चाइमे।
महद ककसी के कायखाने भें अााग रग जामे तो तमा वह उसे फचाने का प्रमास कये गा मा उसे
जरते यहने के लरए छोड़ दे गा? वह उसे फचाने का प्रमास कये गा अाौय फीभे का धन रेने का बी
ऩूया प्रमास कये गा एवॊ साथ ही साथ बगवान ् को धन्मवाद दे गा कक उसके फाकी के कायखाने सही
सराभत हेऄ ।
तमा कोई ववद्माथॉ जानफूझ कय ककसी एक ववषम भें पेर होना चाहे गा क्जससे कक वह अन्म
ववषमेआ भें सपर होने का सुख अाौय अधधक अनुबव कय सके?
तमा अााऩ भें से कोई बी अच्छे स्वास्थ्म की कीभत सभझने के लरए फीभाय होकय द:ु खी होना
ऩसॊद कयें गे?
सच तो मह है कक द:ु ख द:ु ख ही हेऄ अाौय सुख सुख हेऄ । फड़ी-फड़ी फातें कयना एक फात है ककन्तु
वास्तववकता तो मही है कक कोई बी अऩने जीवन भें ककसी बी प्रकाय का द:ु ख नहीॊ चाहता ।
हभ सबी एाेसे सुखेआ की खोज भें हेऄ क्जनका कबी बी अन्त न हो, ककन्तु जफ उस प्रकाय का
सुख हभें इस दतु नमा भें नहीॊ लभरता तो हभ अऩने भन को ककसी न ककसी प्रकाय से सभझाने के
लरए मही सफ फाते कयते हेऄ कक सख
ु ेआ के अाानॊद के लरए द:ु खेआ का होना अाावश्मक है ।
अाौय अच्छी खफय मह है कक एाेसा एक स्थान है क्जसे वैकुण्ठ कहा जाता है , जहाॉ सबी तनयन्तय
रूऩ से सख
ु का अनब
ु व कयते हेऄ अाौय वहाॉ हभें अऩने भन को सभझाने के लरए एाेसी भनगढ़ॊ त
थ्मोयी फनाने की कोई अाावश्मकता नहीॊ है कक द ु:ख हभाये सख
ु ेआ को अाौय यॊ गीन फना दे ते हेऄ ।
*हये कृष्ण ।*
जफ कृष्ण का सफेआ के लरए सभबाव है औय उनका कोई ववलशष्ट लभत्र नहीॊ है तो कपय वे उन बततेआ भें ववशेष रूधच
तमेआ रेते हेऄ, जो उनकी हदव्मसेवा भें सदै व रगे यहते हेऄ?
ककन्तु मह बेदबाव नहीॊ है, मह तो सहज है | इस जगत ् भें हो सकता है कक कोई व्मक्तत अत्मन्त उऩकायी हो, ककन्तु
तो बी वह अऩनी सन्तानेआ भें ववशेष रूधच रेता है | बगवान ् का कहना है कक प्रत्मेक जीव, चाहे वह क्जस मोनी का
हाो, उनका ऩुत्र है, अत् वे हय एक को जीवन की आवश्मक वस्तुएॉ प्रदान कयते हेऄ |
वे उस फादर के सदृश हेऄ जो सफेआ के ऊऩय जरवक्ृ ष्ट कयता है, चाहे मह वक्ृ ष्ट चट्टान ऩय हो मा
स्थर ऩय, मा जर भें हो | ककन्तु बगवान ् अऩने बततेआ का ववशेष ध्मान यखते हेऄ | ऐसे हो बततेआ
का महाॉ उल्रेख हुआ है – वे सदै व कृष्णबावनाभत
ृ भें यहते हेऄ, परत् वे तनयन्तय कृष्ण भें रीन
यहते हेऄ |
कृष्णबावनाभत
ृ शब्द ही फताता है है कक जो रोग ऐसे बावनाभत
ृ भें यहते हेऄ वे सजीव
अध्मात्भवादी हेऄ औय उन्हीॊ भें क्स्थत हेऄ | बगवान ् महाॉ स्ऩष्ट रूऩ से कहते हेऄ – भतम ते अथातत ्
वे भुझभें हेऄ | परत् बगवान ् बी उनभें हेऄ | इससे मे मथा भाॊ प्रऩद्मन्ते ताॊस्तथैव बजाम्महभ ् की
बी व्माख्मा हो जाती है – जो भेयी शयण भें आ जाता है , उसकी भेऄ उसी रूऩ भें यखवारी कयता हूॉ
|
सुन्दय मव
ु ततमेआ को बाग्म की दे वी (रक्ष्भी) कहा जाता है | वस्तुत् स्त्री को बाग्म की दे वी मा बाग्म की दे वी की
प्रतततनधध कहा जाता है | हभ इन्हें अऩनी इक्न्द्रमतक्ृ प्त के लरए दरू
ु ऩमोग कय यहे हेऄ |
नहीॊ, इन्हें बाग्म की दे वी के सभान आदय दे ना चाहहए | महद ककसी व्मक्तत को अच्छी ऩत्नी प्राप्त होती है तो
वास्तव भें उसे बाग्म की दे वी लभरी है | मह ईश्वयीम आकरन है |
एक व्मक्तत तीन प्रकाय से बाग्मशारी भाना जाता है | महद उसे एक अच्छी ऩत्नी प्राप्त हुमी है
तो वह बाग्मशारी है | महद उसे अच्छा ऩुत्र प्राप्त हुआ है तो वह बाग्मशारी है | महद उसे प्रचुय
भात्रा भें धन प्राप्त हुआ है तो वह बाग्मशारी है | तो मह बाग्मशारी होने के तीन भानक हेऄ,
क्जनभे से, वह क्जसे अच्छी ऩत्नी प्राप्त हुमी है , वह सफसे अधधक बाग्मशारी होता है | इसलरए
हभायी सॊस्था अच्छी ऩक्त्नमाॊ फनाने का प्रमास कये गी ताकक हभाये मुवक, साये मुवक स्वमॊ को
सदै व बाग्मशारी सभझें |
महद ककसी को अच्छी ऩत्नी प्राप्त हुमी है,कोई बी स्थान हो, भामने नहीॊ यखता | जैसे बगवान
लशव, वे एक वऺ
ृ के नीचे यह यहे थे | कोई आश्रम-स्थान नहीॊ था, ऩयन्तु उनके ऩास अच्छी ऩत्नी,
ऩावतती थीॊ, इसलरए वे आनॊद भें थे |
इसी प्रकाय आऩको जफ बी आवश्मकता रगे , हभ ककसी बी ब्रह्भचायी का चमन कय रें गे | ऩयन्तु
अवैध-सॊग भत कयो | वववाह की अनुभतत है | भेऄ व्मक्ततगत रूऩ से वववाह ऩय ध्मान दे ता हूॉ | भुझे
इस सॊस्था भें ऩववत्रता चाहहए | शि
ु ता के बफना कोई बी आध्माक्त्भक-बावना भें प्रगतत नहीॊ कय
सकता |
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*श्रीर प्रबुऩाद प्रवचन, रुक्तभणी दासी के दीऺा के सभम - भेआहिमर १५ अगस्त १९६८*
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12) सावधानी हटी, दघ
ु ट
त ना घ
भुझे मह जानकय हषत हुआ कक आऩने अऩने भन ऩय ऩन ु ् तनमॊत्रण ऩा लरमा है तथा भामा के साये दाॊव अफ सभाप्त
हो गए हेऄ । बगवान कृष्ण कक कृऩा द्वाया आऩ भामा के आक्रभण से फचा लरए गए हेऄ ।
आऩ फार-फार फचे हेऄ औय इस से आऩको अच्छी सीख रेनी चाहहए कक महद हभ कठोयता से तनमाभक लसिाॊतेआ का
ऩारन नहीॊ कयते तो भामा अऩने प्रबाव से शॊका उत्ऩन्न कयके बगवान कृष्ण भें हभायी श्रिा को दफ
ु र
त कय दे नक
े े
लरए सदै व तत्ऩय है ।
अतएव भेऄ फहुत प्रसन्न हूॉ की आऩ फच गए हेऄ औय भेऄ आऩकी यऺा के लरए बगवान कृष्ण से प्राथतना कय यहा था ।
– *श्रीर प्रबऩ
ु ाद*
*भधुसूदन को ऩत्र, रॉस एॊजेरेस, ३० जनवयी १९७०*
श्रीर प्रबऩ
ु ाद ने कहा, उन्हेआने (बगवान कृष्ण ने) भझ
ु े महाॉ आने को कहा ऩयन्तु भेऄने कहा कक भेऄ वहाॊ नहीॊ जाना
चाहता तमेआकक वह एक गन्दा स्थान है । उन्हेआने (बगवान कृष्ण ने) कहा की महद भेऄ जाऊॊ तो वे भेये लरए सुन्दय
बवनेआ का प्रफॊध कयवा दें गे । भेऄने कहा, ऩयन्तु भेऄ वहाॊ नहीॊ जाना चाहता । उन्हेआने (बगवान कृष्ण ने) कहा,
आऩ केवर जाइमे औय ऩुस्तकें लरणखए औय भेऄ आऩके लरए सफ कुछ सुववधाजनक फना दॊ ग
ू ा ।
श्रीर प्रबुऩाद मह फताते हेऄ, तमेआकक उन्हेआने भुझे इन ऩुस्तकेआ को लरखने का आग्रह ककमा इसलरए
भेऄ महाॉ आमा ।
एक फाय भुम्फई भें श्रीर प्रबुऩाद ने भुझे उनके कभये भें आकय कुछ आजीवन-सदस्मेआ को प्रचाय
कयते हुए सुनने का आदे श हदमा । भेऄने वहाॊ रगबग एक घॊटे फैठकय उन्हें सुना । सबी के जाने
के उऩयाॊत उन्हेआने भुझे डाॊटते हुए कहा तुभ प्रीततहदन भझ
ु े प्रचाय कयते हुए सन
ु ने महाॉ तमेआ नहीॊ
आते ? तभ
ु भेये अग्रणी लशष्मेआ भें से एक हो, महद तभ
ु ही भझ
ु से मह नहीॊ सीखोगे की प्रचाय कैसे
कयते हेऄ, तमा होगा ?
तत्ऩश्चात उन्हेआने सॊस्कृत भें बगवद-गीता से एक श्रोक उिरयत ककमा औय भझ
ु से ऩछ
ू ा की तमा
भेऄ उसको अॊग्रेजी भें फता सकता हूॉ, गीता भें वह कहाॉ है , औय उसका अथत तमा है । दब ु ातग्मवश
भेये ऩास कोई उत्तय नहीॊ था । उन्हेआने ऩछ ू ा, तमा तभ
ु भेयी ऩस्ु तके ऩढ़ यहे हो ? भेऄने अऩनी
उऩेऺा को स्वीकाया ।
महद तुभ प्रततहदन भेयी ऩुस्तकें नहीॊ ऩढोगे तो कैसे सीखोगे ? तुभ फाहय जाकय आजीवन -सदस्म
फना यहे हो, दान एकत्र कय यहे हो ऩयन्तु भेयी ऩुस्तकें नहीॊ ऩढ़ यहे । तुम्हें प्रततहदन भेयी ऩुस्तकें
ऩढ़नी चाहहए ।
कपय उन्हेआने कहा, भेऄ बी प्रततहदन अऩनी ऩुस्तकें ऩढता हूॉ । तमा तुम्हे ऩता है, तमेआ ? भेऄने स्वमॊ
उत्तय दे ने की अऩेऺा उनके उत्तय की प्रतीऺा की । तमेआकक हय फाय भेऄ इन ऩुस्तकेआ को ऩढता हूॉ
तो इनसे कुछ सीखने को लभरता है । भेऄ तनस्तब्ध भौन फैठा यहा । कपय उन्हेआने ऩूछा तमा तुम्हें
ऩता है भेऄ हय फाय इन ऩुस्तकेआ को ऩढता हूॉ तो तमेआ कुछ नमा सीखता हूॉ ? अफ भेऄ ऩूणत
त मा
ववक्स्भत था । तमेआकक भेऄने इन ऩस्
ु तकेआ को नहीॊ लरखा है । आगे जो ववहदत हुआ वह ऩयू ी तयह
से आश्चमतजनक था । उन्हेआने ऩण
ू त तल्रीनता ऩव
ू क
त भेयी आॉखेआ से तीव्र औय सीधा सॊऩकत फनाते
हुए भेयी ओय दे खा । बावोन्भत्त ऩण
ू त ववश्वस्तता ऩयन्तु यहस्मभमी बाव से वे वणतन कयने रगे
कक उनकी ऩस्ु तकें कैसे लरखी जाती हेऄ ।
उन्हेआने कहा, प्रततहदन जफ भेऄ महाॉ इन ऩुस्तकेआ को लरखने फैठता हूॉ, अफ उनकी दृक्ष्ट ऊऩय की
ओय औय हाथ हवा भें हहर यहे थे , उनका कॊठ बावावेश भें अवरुि हो यहा था, बगवान कृष्ण
व्मक्ततगत रूऩ से आते हेऄ औय हय शब्द वे स्वमॊ लरखवाते हेऄ । भुझे इसकी अनुबूतत हुमी की
बगवान कृष्ण उस सभम कभये भें उऩक्स्थत थे ऩयन्तु भेऄ उन्हें दे खने भें अऺभ था । अफ श्रीर
प्रबुऩाद ने अऩनी दृक्ष्ट भेयी ओय की औय कहा, इसलरए जफ बी भेऄ इन ऩुस्तकेआ को ऩढता हूॉ, भेऄ
बी कुछ सीखता हूॉ औय इसलरए महद तुभ बी प्रततहदन भेयी ऩुस्तकेआ को ऩढोगे तो हय फाय तुभ
बी कुछ सीखोगे ।
इस रेख भें आऩको आत्भा तथा शयीय के फीच का अॊतय ऻात होगा । मह ऻान हभाये आध्माक्त्भक ऻान का भूर है
। कबी कबी रोग मह फोर दे ते हेऄ कक हभ बी अध्मात्भ से जुड़े हेऄ मा ककसी न ककसी आध्माक्त्भक भागत का
अनस
ु यण कय यहे हेऄ । ऩयन्तु अधधकतय रोगेआ भें अबी बी मह भूरबूत ऻान नदायद है कक अध्मात्भ का आधाय ही
मह है कक, “हभ मह शयीय नहीॊ आत्भा हेऄ ।”
इस ववषम के अततरयतत आऩको मह ऻात होगा की ऩाऩकभत के पर ककस प्रकाय कामातक्न्वत होते हेऄ
। औय कैसे इन दग
ु भ
त परेआ से भुक्तत ऩामी जा सकती है ।
बगवद्गीता का नौवाॊ अध्माम ववद्माओॊ का याजा (याजववद्मा) कहराता है , तमेआकक मह ऩूवव
त तॉ
व्माख्मातमत सभस्त लसिान्तेआ एवॊ दशतनेआ का साय है | बायत के प्रभुख दाशततनक गौतभ, कणाद,
कवऩर, माऻवल्तम, शाक्ण्डल्म तथा वैश्र्वानय हेऄ | सफसे अन्त भें व्मासदे व आते हेऄ, जो वेदान्तसूत्र के
रेखक हेऄ | अत् दशतन मा हदव्मऻान के ऺेत्र भें ककसी प्रकाय का अबाव नहीॊ है | बगवान कहते हेऄ
कक मह नवभ अध्माम ऐसे सभस्त ऻान का याजा है, मह वेदाध्ममन से प्राऩ ् ऻान एवॊ ववलबन्न
दशतनेआ का साय है | मह गह्
ु मतभ है , तमेआकक गह्
ु म मा हदव्मऻान भें आत्भा तथा शयीय के अन्तय
को जाना जाता है | सभस्त गुह्मऻान के इस याजा (याजववद्मा) की ऩयाकाष्टा है , बक्ततमोग |
साभान्मतमा रोगेआ को इस गुह्मऻान की लशऺा नहीॊ लभरती | उन्हें फाह्म लशऺा दी जाती है |
जहाॉ तक साभान्म लशऺा का सम्फन्ध है उसभें याजनीतत, सभाजशास्त्र, बौततकी, यसामनशास्त्र,
गणणत, ज्मोततववतऻान, इॊजीतनमयी आहद भें भनष्ु म व्मस्त यहते हेऄ | ववश्र्वबय भें ऻान के अनेक
ववबाग हेऄ औय अनेक फड़े-फड़े ववश्र्वववद्मारम हेऄ, ककन्तु दब
ु ातग्मवश कोई ऐसा ववश्र्वववद्मारम मा
शैक्षऺक सॊस्थान नहीॊ है, जहाॉ आत्भ-ववद्मा की लशऺा दी जाती हो | कपय बी आत्भा शयीय का
सफसे भहत्त्वऩण
ू त अॊग है, आत्भा के बफना शयीय भहत्त्वहीन है | तो बी रोग आत्भा की धचन्ता न
कयके जीवन की शायीरयक आवश्मकताओॊ को अधधक भहत्त्व प्रदान कयते हेऄ |
बगवद्गीता भें द्ववतीम अध्माम से ही आत्भा की भहत्ता ऩय फर हदमा गमा है | प्रायम्ब भें ही
बगवान ् कहते हेऄ कक मह शयीय नश्र्वय है औय आत्भा अववनश्र्वय | (अन्तवन्त इभे दे हा
तनत्मस्मोतता् शयीरयण्) | मही ऻान का गुह्म अॊश है -केवर मह जाना रेना कक मह आत्भा शयीय
से लबन्न है, मह तनववतकाय, अववनाशी औय तनत्म है | इससे आत्भा के ववषम भें कोई सकायात्भक
सूचना प्राप्त नहीॊ हो ऩाती | कबी-कबी रोगेआ को मह रभ यहता है कक आत्भा शयीय से लबन्न है
औय जफ शयीय नहीॊ यहता मा भनुष्म को शयीय से भुक्तत लभर जाती है तो आत्भा शन्
ू म भें
यहता है औय तनयाकाय फन जाता है | ककन्तु मह वास्तववकता नहीॊ है | जो आत्भा शयीय के बीतय
इतना सक्रीम यहता है वह शयीय से भुतत होने के फाद इतना तनक्ष्क्रम कैसे हो सकता है ? मह
सदै व सक्रीम यहता है | महद मह शाश्र्वत है , तो मह शाश्र्वत सकक्रम यहता है औय वैकुण्ठरोक भें
इसके कामतकराऩ अध्मात्भऻान के गह्
ु मतभ अॊश हेऄ | अत् आत्भा के कामों को महाॉ ऩया सभस्त
ऻान का याजा, सभस्त ऻान का गह्
ु मतभ अॊश कहा गमा है |
जो रोग बगवद्भक्तत भें यत हेऄ औय उनके साये ऩाऩकभत चाहे परीबूत हो चुके हो , साभान्म हेआ मा
फीज रूऩ भें हेआ, क्रभश् नष्ट हो जाते हेऄ | अत् बक्तत की शवु िकारयणी शक्तत अत्मन्त प्रफर है
औय ऩववत्रभ ् उत्तभभ ् अथातत ् ववशि
ु तभ कहराती है | उत्तभ का तात्ऩमत हदव्म है | तभस ् का अथत
मह बौततक जगत ् मा अॊधकाय है औय उत्तभ का अथत बौततक कामों से ऩये हुआ | बक्ततभम
कामों को कबी बी बौततक नहीॊ भानना चाहहए मद्मवऩ कबी-कबी ऐसा प्रतीत होता है कक बतत
बी साभान्म जनेआ की बाॉतत यत यहते हेऄ | जो व्मक्तत बक्तत से अवगत होता है , वही जान सकता
है कक बक्ततभम कामत बौततक नहीॊ होते | वे अध्माक्त्भक होते हेऄ औय प्रकृतत के गुणेआ से सवतथा
अदवू षत यहते हेऄ |
कहा जाता है कक बक्तत की सम्ऩन्नता इतनी ऩूणत होती है कक उसके परेआ का प्रत्मऺ अनुबव
ककमा जा सकता है | हभने अनुबव ककमा है कक जो व्मक्तत कृष्ण के ऩववत्र नाभ (हये कृष्ण हये
कृष्ण कृष्ण कृष्ण हये हये , हये याभ हये याभ याभ याभ हये हये ) का कीततन कयता है उसे जऩ कयते
सभम कुछ हदव्म आनन्द का अनुबव होता है औय वह तुयन्त ही सभस्त बौततक कल्भष से शि
ु
हो जाता है | ऐसा सचभुच हदखाई ऩड़ता है | मही नहीॊ, महद कोई श्रवण कयने भें ही नहीॊ अवऩतु
बक्ततकामों के सन्दे श को प्रचारयत कयने भें बी रगा यहता है मा कृष्णबावनाभत
ृ के प्रचाय कामों
भें सहामता कयता है , तो उसे क्रभश् आध्माक्त्भक उन्नतत का अनुबव होता यहता है |
आध्माक्त्भक जीवन की मह प्रगतत ककसी ऩूवत लशऺा मा मोग्मता ऩय तनबतय नहीॊ कयती | मह ववधध
स्वमॊ इतनी शि
ु है कक इसभें रगे यहने से भनुष्म शि
ु फन जाता है |
वेदान्तसत्र
ू भें (३.३.३६) बी इसका वणतन प्रकाशश्र्च कभतण्मभ्मासात ् के रूऩ भें हुआ है, क्जसका अथत
है कक बक्तत इतनी सभथत है कक बक्ततकामों भें यत होने भात्र से बफना ककसी सॊदेह के प्रकाश
प्राप्त हो जाता है | इसका उदाहयण नायद जी के ऩूवज
त न्भ भें दे खा जा सकता है, जो ऩहरे दासी
के ऩुत्र थे | वे न तो लशक्षऺत थे, न ही याजकुर भें उत्ऩन्न हुए थे, ककन्तु जफ उनकी भाता बततेआ
की सेवा कयती यहती थीॊ , नायद बी सेवा कयते थे औय कबी-कबी भाता की अनुऩक्स्थतत भें बततेआ
की सेवा कयते यहते थे | नायद स्वमॊ कहते हेऄ-
उक्च्छष्टरेऩाननुभोहदतो द्ववजै्
सकृत्स्भ बुञ्जे तदऩास्तककक्ल्फष् |
एवॊ प्रवत्ृ तस्म ववशि
ु चेतस-
स्तिभत एवात्भरुधच् प्रजामते ||
श्रीभद्भागवत के इस श्रोक भें (१.५.२५) नायद जी अऩने लशष्म व्मासदे व से अऩने ऩूवज
त न्भ का
वणतन कयते हेऄ | वे कहते हेऄ कक ऩूणज
त न्भ भें फाल्मकार भें वे चातुभातस भें शि
ु बततेआ (बागवतेआ) की
सेवा ककमा कयते थे क्जससे उन्हें सॊगतत प्राप्त हुई | कबी-कबी वे ऋवष अऩनी थालरमेआ भें
उक्च्छष्ट बोजन छोड़ दे ते औय मह फारक थालरमाॉ धोते सभम उक्च्छष्ट बोजन को चखना चाहता
था | अत् उसने उन ऋवषमेआ से अनुभतत भाॉगी औय जफ उन्हेआने अनुभतत दे दी तो फारक नायद
उक्च्छष्ट बोजन को खाता था | परस्वरूऩ वह अऩने सभस्त ऩाऩकभों से भुतत हो गमा | ज्मेआ-
ज्मेआ वह उक्च्छष्ट खाता यहा त्मेआ -त्मेआ वह ऋवषमेआ के सभान शि
ु -रृदम फनता गमा | चॉकू क वे
भहाबागवत बगवान ् की बक्तत का आस्वाद श्रवण तथा कीततन द्वाया कयते थे अत् नायद ने बी
क्रभश् वैसी रूधच ववकलसत कय री | नायद आगे कहते हेऄ –
ऋवषमेआ की सॊगतत कयने से नायद भें बी बगवान ् की भहहभा के श्रवण तथा कीततन की रूधच
उत्ऩन्न हुई औय उन्हेआने बक्तत की तीव्र इच्छा ववकलसत की | अत् जैसा कक वेदान्तसूत्र भें कहा
गमा है – प्रकाशश्र्च कभतण्मभ्मासात ् – जो बगवद्भक्तत के कामों भें केवर रगा यहता है उसे
स्वत् सायी अनुबूतत हो जाती है औय वह सफ सभझने रगता है | इसी का नाभ प्रत्मऺ अनुबूतत
है |
धम्मतभ ् शब्द का अथत है “धभत का ऩथ” | नायद वास्तव भें दासी के ऩुत्र थे | उन्हें ककसी ऩाठशारा
भें जाने का अवसय प्राप्त नहीॊ हुआ था | वे केवर भाता के कामों भें सहामता कयते थे औय
सौबाग्मवश उनकी भाता को बततेआ की सेवा का सुमोग प्राप्त हुआ था | फारक नायद को बी मह
सुअवसय उऩरब्ध हो सका कक वे बततेआ की सॊगतत कयने से ही सभस्त धभत के ऩयभरक्ष्म को
प्राप्त हो सके | मह रक्ष्म है – बक्तत, जैसा कक श्रीभद्भागवत भें कहा गमा है (स वै ऩॊस
ु ाॊ ऩयो धभेआ
मतो बक्ततयधोऺजे) | साभान्मत् धालभतक व्मक्तत मह नहीॊ जानते कक धभत का ऩयभरक्ष्म बक्तत
की प्राक्प्त है जैसा कक हभ ऩहरे ही आठवें अध्माम के अक्न्तभ श्रोक की व्माख्मा कयते हुए क्
चुके हेऄ (वेदेषु मऻेषु तऩ्सु चैव) साभान्मतमा आत्भ-साऺात्काय के लरए वैहदक ऻान आवश्मक है |
ककन्तु महाॉ ऩय नायद न तो ककसी गुरु के ऩास ऩाठशारा भें गमे थे, न ही उन्हें वैहदक तनमभेआ की
लशऺा लभरी थी, तो बी उन्हें वैहदक अध्ममन के सवोच्च पर प्राप्त हो सके | मह ववधध इतनी
सशतत है कक धालभतक कृत्म ककमे बफना बी भनष्ु म लसवि-ऩद को प्राप्त होता है | मह कैसे सम्बव
होता है ? इसकी बी ऩक्ु ष्ट वैहदक साहहत्म भें लभरती है- आचामतवान ् ऩरु
ु षो वेद | भहान आचामों के
सॊसगत भें यहकय भनष्ु म आत्भ-साऺात्काय के लरए आवश्मक सभस्त ऻान से अवगत हो जाता है ,
बरे ही वह अलशक्षऺत हो मा उसने वेदेआ का अध्ममन न ककमा हो |
बक्ततमोग अत्मन्त सख
ु कय (सस
ु ख
ु भ)् होता है | ऐसा तमेआ? तमेआकक बक्तत भें श्रवणॊ कीततनॊ ववष्णो्
यहता है , क्जससे भनुष्म बगवान ् की भहहभा के कीततन को सुन सकता है, मा प्राभाणणक आचामों
द्वाया हदमे गमे हदव्मऻान के दाशततनक बाषण सुन सकता है | भनुष्म केवर फैठे यहकय सीख
सकता है, ईश्र्वय को अवऩतत अच्छे स्वाहदष्ट बोजन का उक्च्छष्ट खा सकता है | प्रत्मेक दशा भें
बक्तत सुखभम है | भनुष्म गयीफी की हारत भें बी बक्तत कय सकता है | बगवान ् कहते हेऄ – ऩत्रॊ
ऩुष्ऩॊ परॊ तोमॊ – वे बतत से हय प्रकाय की बें ट रेने को तैमाय यहते हेऄ | चाहे ऩात्र हो, ऩुष्ऩ हो,
पर हो मा थोडा सा जर, जो कुछ बी सॊसाय के ककसी बी कोने भें उऩरब्ध हो, मा ककसी व्मक्तत
द्वाया, उसकी साभाक्जक क्स्थतत ऩय ववचाय ककमे बफना, अवऩतत ककमे जाने ऩय बगवान ् को वह
स्वीकाय है , महद उसे प्रेभऩूवक
त चढ़ामा जाम | इततहास भें ऐसे अनेक उदाहयण प्राप्त हेऄ | बगवान ् के
चयणकभरेआ ऩय चढ़े तुरसीदर का आस्वादन कयके सनत्कुभाय जैसे भुतन भहान बतत फन गमे |
अत् बक्ततमोग अतत उत्तभ है औय इसे प्रसन्न भुद्रा भें सम्ऩन्न ककमा जा सकता है | बगवान ्
को तो वह प्रेभ वप्रम है, क्जससे उन्हें वस्तए
ु ॉ अवऩतत की जाती हेऄ |
महाॉ कहा गमा है कक बक्तत शाश्र्वत है | मह वैसी नहीॊ है, जैसा कक भामावादी धचन्तक साधधकाय
कहते हेऄ | मद्मवऩ वे कबी-कबी बक्तत कयते हेऄ, ककन्तु उनकी मह बावना यहती है कक जफ तक
भुक्तत न लभर जामे, तफ तक उन्हें बक्तत कयते यहना चाहहए , ककन्तु अन्त भें जफ वे भुतत हो
जाएॉगे तो ईश्र्वय से उनका तादात्म्म हो जाएगा | इस प्रकाय की अस्थामी सीलभत स्वाथतभम बक्तत
शि
ु बक्तत नहीॊ भानी जा सकती | वास्तववक बक्तत तो भुक्तत के फाद बी फनी यहती है | जफ
बतत बगविाभ को जाता है तो वहाॉ बी वह बगवान ् की सेवा भें यत हो जाता है | वह बगवान ्
से तदाकाय नहीॊ होना चाहता |
जैसा कक बगवद्गीता भें दे खा जाएगा, वास्तववक बक्तत भक्ु तत के फाद प्रायम्ब होती है | भत
ु त
होने ऩय जफ भनष्ु म ब्रह्भऩद ऩय क्स्थय होता है (ब्रह्भबत
ू ) तो उसकी बक्तत प्रायम्ब होती है
(सभ् सवेषु बूतेषु भद्भक्ततॊ रबते ऩयाभ)् | कोई बी भनुष्म कभतमोग, ऻानमोग, अष्टाॊगमोग मा अन्म
मोग कयके बगवान ् को नहीॊ सभझ सकता | इन मोग-ववधधमेआ से बक्ततमोग की हदशा ककॊ धचत
प्रगतत हो सकती है, ककन्तु बक्तत अवस्था को प्राप्त हुए बफना कोई बगवान ् को सभझ नहीॊ ऩाता
| श्रीभद्भागवत भें इसकी बी ऩुक्ष्ट हुई है कक जफ भनुष्म बक्ततमोग सम्ऩन्न कयके ववशेष रूऩ से
कलरमग
ु भें फवु िभान रोग, कृष्ण-नाभ के बजन भें तनयॊ तय यत यहने वारे अवताय की ऩज
ू ा सॊकीततन द्वाया कयते हेऄ ।
मद्मवऩ वे श्माभवणत के नहीॊ हेऄ, ऩयन्तु वे स्वमॊ कृष्ण हेऄ । *– बागवत ११.५.३२*
स्वीकाय ककमा, एवॊ वे सौम्म एवॊ शाॊत हेऄ । वे शाॊतत एवॊ बक्तत के उच्चतभ आश्रम हेऄ तमेआकक वे
भामावादी अबततेआ को बी शाॊत कय दे ते हेऄ । *– भहाबायत (दान-धभत ऩवत, अध्माम १८९)*
भेऄ नवद्वीऩ की ऩावन बूलभ ऩय भाता शधचदे वी के ऩुत्र के रूऩ भें प्रकट होऊॊगा । *– कृष्ण मभर
तॊत्र*
कलरमुग भें जफ सॊकीततन आॊदोरन का उदघाटन होगा तफ भेऄ सधचदे वी के ऩुत्र के रूऩ भें
अवतरयत होऊॊगा । *– वामु ऩुयाण*
कबी कबी भेऄ स्वमॊ एक बतत के वेश भें उस धयातर ऩय प्रकट होता हूॉ । ववशेष रूऩ से
कलरमुग भें भेऄ सची दे वी के ऩुत्र के रूऩ भें सॊकीततन आॊदोरन आयम्ब कयने के लरए प्रकट होता
हूॉ । *– ब्रह्भ मभर तॊत्र*
हे भहे श्वयी ! स्वमॊ ऩयभ ऩुरुष श्री कृष्ण, जो याधायानी के प्राण एवॊ जगत के सक्ृ ष्टकतात, ऩारक एवॊ
ववध्वॊसक हेऄ, गौय के रूऩ भें प्रकट होते हेऄ । *– अनॊत सॊहहता*
ऩयभ ऩुरुषोत्तभ बगवान, ऩयभ बोतता, गोववन्द क्जनका रूऩ हदव्म है, जो बत्रगुणातीत हेऄ, जो सबी
जीवेआ के रृदम भें ववद्मभान सव्मातऩक ऩयभात्भा हेऄ, वे कलरमुग भें दोफाया प्रकट हेआगे । ऩयभ-बतत
के रूऩ भें, ऩयभ ऩुरुषोत्तभ बगवान गोरोक वन्ृ दावन के सभान, गॊगा के तट ऩय नवद्वीऩ भें
द्ववबुज सुवणतभम रूऩ ग्रहण कयें गे । वे ववश्वबय भें शि
ु -बक्तत का प्रचाय कयें गे। *– चैतन्म
उऩतनषद ५*
कलरमुग की प्रथभ सॊध्मा भें ऩयभ ऩुरुषोत्तभ बगवान सुवणतभम रूऩ ग्रहण कयें गे । सप्रतथभ वे
रक्ष्भी के ऩतत हेआगे तत्ऩश्चात वे सॊन्मासी हेआगे जो जगन्नाथ ऩुयी भें तनवास कयें गे । *– गरुड़
ऩुयाण*
कभर रूऩी नगय के भध्म भें क्स्थत भामाऩुय नाभक एक स्थान है औय भामाऩुय के भध्म भें एक
स्थान है, अॊतद्तववऩ। मह ऩयभ ऩुरुषोत्तभ बगवान, श्री चैतन्म का तनवास स्थान है। *– छान्दोग्म
उऩतनषद*
कलरमुग के प्रायम्ब भें, भेऄ अऩने सम्ऩूणत एवॊ वास्तववक आध्माक्त्भक स्वरूऩ भें, नवद्वीऩ-भामाऩुय
भें सधचदे वी का ऩुत्र फनॉग
ू ा । *– गरुड़ ऩुयाण*
ऩयभ ऩुरुषोत्तभ बगवान इस सॊसाय भें दोफाया प्रकट हेआगे । उनका नाभ श्री कृष्ण चैतन्म होगा
औय वे बगवान के ऩववत्र नाभेआ के कीततन का प्रचाय कयें गे । *– दे वी ऩयु ाण*
ऩयभ ऩुरुषोत्तभ बगवान कलरमुग भें दोफाया प्रकट हेआगे । उनका रूऩ स्वणणतभ होगा, वे बगवान के
ऩववत्र नाभ कीततन भें आनॊद रें गे औय उनका नाभ चैतन्म होगा। *– नलृ सॊह ऩुयाण*
कलरमुग के प्रथभ सॊध्मा भें भेऄ गॊगा के एक भनोयभ तट ऩय प्रकट होऊॊगा । भेऄ सधचदे वी का ऩुत्र
कहराऊॊगा औय भेया वणत सन
ु हया होगा । *-ऩद्म ऩयु ाण*
कलरमुग भें भेऄ बगवान ् के बतत के वेश भें प्रकट होऊॊगा औय सबी जीवेआ का उिाय करूॉगा । *–
नायद ऩुयाण*
ऩथ्
ृ वी ऩय कलरमुग की प्रथभ सॊध्मा भें, गॊगा के तट ऩय भेऄ अऩना तनत्म सुवणतभम रूऩ प्रकालशत
करूॉगा । *– ब्रम्हा ऩयु ाण*
इस सभम भेया नाभ कृष्ण चैतन्म, गौयाॊग, गौयचॊद्र, सधचसुत, भहाप्रब,ु गौय एवॊ गौयहरय होगा । इन
नाभेआ का कीततन कयके भेये प्रतत बक्तत ववकलसत कयें गे । *– अनन्त सॊहहता*
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*श्री लशऺाष्टकभ*्
बगवान श्री गौयसुन्दय चैतन्म भहाप्रबु ने अऩने लशष्मेआ को श्रीकृष्ण-तत्त्व ऩय ग्रन्थेआ की यचना कयने की आऻा दी,
क्जसका ऩारन उनके अनम
ु ामी आज तक कय यहे हेऄ । वास्तव भें श्री चैतन्म भहाप्रबु द्वाया क्जस दशतन कक लशऺा
दी गमी उस ऩय हुमी व्माख्माएॊ ऩयभ ववस्तत
ृ एवॊ सुदृढ़ हेऄ ।
*चेतोदऩतणभाजतनॊ बव-भहादावाक्ग्न-तनवातऩणभ*्
*अनव
ु ाद*: श्रीकृष्ण-सॊकीततन की ऩयभ ववजम हो जो रृदम भें वषों से सॊधचत भर का भाजतन कयने
वारा तथा फायम्फाय जन्भ-भत्ृ मु रूऩी दावानर को शाॊत कयने वारा है । मह सॊकीततन मऻ
भानवता के लरए ऩयभ कल्माणकायी है तमेआकक चन्द्र-ककयणेआ की तयह शीतरता प्रदान कयता है।
सभस्त अप्राकृत ववद्मा रूऩी वधु का मही जीवन है । मह आनॊद के सागय की ववृ ि कयने वारा
है औय तनत्म अभत
ृ का आस्वादन कयाने वारा है ॥१॥
*अनव
ु ाद*: हे बगवन ! आऩका भात्र नाभ ही जीवेआ का सफ प्रकाय से भॊगर कयने वारा है-कृष्ण,
गोववन्द जैसे आऩके राखेआ नाभ हेऄ। आऩने इन नाभेआ भें अऩनी सभस्त अप्राकृत शक्ततमाॊ अवऩतत
कय दी हेऄ । इन नाभेआ का स्भयण एवॊ कीततन कयने भें दे श-कार आहद का कोई बी तनमभ नहीॊ है
। प्रबु ! आऩने अऩनी कृऩा के कायण हभें बगवन्नाभ के द्वाया अत्मॊत ही सयरता से बगवत-
प्राक्प्त कय रेने भें सभथत फना हदमा है, ककन्तु भेऄ इतना दब
ु ातग्मशारी हूॉ कक आऩके नाभ भें अफ
बी भेया अनयु ाग उत्ऩन्न नहीॊ हो ऩामा है ॥२॥
*तण
ृ ादवऩ सुनीचेन तयोयवऩ सहहष्णुना।*
*अभातनना भानदे न कीततनीम् सदा हरय् ॥३॥*
*अनव
ु ाद*: हे सवत सभथत जगदीश ! भझ
ु े धन एकत्र कयने की कोई काभना नहीॊ है, न भेऄ
अनम ु ातममेआ, सन्
ु दय स्त्री अथवा प्रशॊनीम काव्मेआ का इतछुक नहीॊ हूॉ । भेयी तो एकभात्र मही काभना
है कक जन्भ-जन्भान्तय भेऄ आऩकी अहैतक ु ी बक्तत कय सकॉू ॥४॥
*अनव
ु ाद*: हे नन्दतनज
ु ! भेऄ आऩका तनत्म दास हूॉ ककन्तु ककसी कायणवश भेऄ जन्भ-भत्ृ मु रूऩी इस
सागय भें धगय ऩड़ा हूॉ । कृऩमा भझ
ु े अऩने चयणकभरेआ की धलू र फनाकय भझ
ु े इस ववषभ
भत्ृ मस
ु ागय से भत
ु त करयमे ॥५॥
*अनव
ु ाद*: हे प्रबु ! आऩका नाभ कीततन कयते हुए कफ भेये नेत्रेआ से अश्रओ
ु ॊ की धाया फहे गी , कफ
आऩका नाभोच्चायण भात्र से ही भेया कॊठ गद्गद होकय अवरुि हो जामेगा औय भेया शयीय
योभाॊधचत हो उठे गा ॥६॥
*अनुवाद*: हे गोववन्द ! आऩके ववयह भें भुझे एक ऺण बी एक मुग के फयाफय प्रतीत हो यहा है ।
नेत्रेआ से भूसराधाय वषात के सभान तनयॊ तय अश्र-ु प्रवाह हो यहा है तथा सभस्त जगत एक शन्
ू म के
सभान हदख यहा है ॥७॥
*अनुवाद*: एकभात्र श्रीकृष्ण के अततरयतत भेये कोई प्राणनाथ हेऄ ही नहीॊ औय वे ही सदै व फने
यहें गे, चाहे वे भेया आलरॊगन कयें अथवा दशतन न दे कय भुझे आहत कयें । वे नटखट कुछ बी तमेआ
न कयें -वे सबी कुछ कयने के लरए स्वतॊत्र हेऄ तमेआकक वे भेये तनत्म आयाध्म प्राणनाथ हेऄ ॥८॥
कुछ रोग कहते हेऄ कक महद अााऩने सकायात्भक यहने की करा सीख री तो अााऩ ककसी बी ऩरयक्स्थतत भें सुखी
यह सकते हेऄ । चाहे अााऩ ककतनी बी फड़ी ऩये शानी मा सभस्मा भें तमेआ न पॊसे हो महद अााऩ उस सभस्मा को
सही दृक्ष्टकोण से दे खते हेऄ तो अााऩ सुखी यहें गे ।
हो सकता है मह फात कुछ हद तक ठीक है ककन्तु वास्तववकता तो मह है कक इस बौततक जगत ् भें हभें अनेक
द:ु ख एवॊ ददत बयी ऩरयक्स्थततमेआ से गज
ु यना ऩड़ता है जैसे कक फीभारयमाॉ अाौय फढ़
ु ाऩा । जफ व्मक्तत के ऩेट भें ददत
होता है तो वह चाहे ककतना बी सकायात्भक दृक्ष्टकोण तमेआ न यखे, उसे ऩेट के ददत के द:ु ख से गज
ु यना ही ऩड़ेगा ।
वैसे ही फढ़
ु ाऩे भें ऩचन न होना, अाााॉखेआ से हदखाई न दे ना, शयीय भें कभजोयी के कायण ककसी के सहाये का
अाावश्मकता ऩड़ना इत्माहद जीवन की एाेसी सभस्माएॉ हेऄ क्जनसे कोई बी फच नहीॊ सकता ।
इन ऩरयक्स्थततमेआ भें बी व्मक्तत भन भें सही दृक्ष्टकोण यखकय अाागे फढ़ सकता है, ककन्तु प्रश्न मह है कक वह सही
दृक्ष्टकोण तमा है?
एक व्मक्तत तौलरमा रऩेटे सभुद्र के ककनाये चहर–कदभी कय यहा था। कबी वह रहयेआ के तनकट जाता अाौय कपय
ऩीछे हट जाता, एाेसा कयते कयते उसे सुफह से शाभ हो गमी तफ एक सज्जन जो उसे ऩीछे अऩने घय की छत से
दे ख यहे थे अााए अाौय ऩछ
ू े – तमा सभस्मा है? तमा भेऄ अााऩकी कुछ सहामता कय सकता ह?ूॉ
तफ उस व्मक्तत ने कहा, भझ
ु े सभद्र
ु भें स्नान कयना है अाौय भेऄ रहयेआ के रुकने की प्रतीऺा कय यहा हूॉ।
तमा सभद्र
ु की रहये कबी रुकेंगी?
मही क्स्थतत इस बौततक जगत ् की है। इस जगत ् की सभस्माएॉ सभुद्र की रहयेआ के सभान हेऄ जो कबी रुकने वारी
नहीॊ हेऄ।
महद कोई व्मक्तत मह कहे कक भेऄ इस सभस्मा के सभाधान के फाद बगवान ् भें भन रगाऊॉगा मा अफ उस सभस्मा
के सभाप्त होने ऩय तो वह अऩने अााऩ को ही धोखा दे यहा है तमेआकक जफ तक हभ इस बौततक जगत ् भें हेऄ,
सभस्मामें तो यहें गी ही। महद हभ अऩना ऩयू ा ध्मान सभस्माअाोाॊ ऩय ही रगाकय यखेंगे तो अऩना भुख्म कामत बूर
जामेंगे अाौयवह है कृष्णबावनाबाववत फनना। बगवान ् के ववषम भें चचात कयने की जगह हभ सभस्माअाोाॊ के फाये
भें ही सोचें गे अाौय फाते कयें गे। अाौय यहस्म तो मह है कक जफ हभ अऩने भन को बगवान ् भें रगाते हेऄ तो इस
जगत ् की सभस्माअाोाॊ से प्रबाववत नहीॊ होती, सभस्माएॉ तो अाामेंगी ऩयन्तु वह हभाये भन को व्मधथत नहीॊ कय
ऩामेंगी।
इसलरए हभें मह सभझना होगा कक सभस्माएॉ हेआ मा न हेआ हभें अऩना कीभती सभम बगवान ् के धचन्तन का
अभ्मास कयने भें अवश्म रगाना है तफ ही हभेशा के लरए हभ इस बौततक जगत ् से भुतत होकय वैकुण्ठ ऩहुॉच
ऩामेंगे जहाॉ कोई कुण्ठा मा धचन्ता नहीॊ होती। होता है तो केवर बगवान ् के सातनध्म भें असीभ अाानॊद। हये कृष्ण।
*भेऄ कृष्ण की ही ऩज
ू ा तमेआ करूॉ ?*
साया वैहदक साहहत्म स्वीकाय कयता है कक कृष्ण ही ब्रह्भा, लशव तथा अन्म सभस्त दे वताओॊ के स्त्रोत हेऄ | अथवतवेद
भें (गोऩारताऩनी उऩतनषद् १.२४) कहा गमा है – मो ब्रह्भाणॊ ववदधातत ऩव
ू ं मो वै वेदाॊश्च गाऩमतत स्भ कृष्ण् –
प्रायम्ब भें कृष्ण ने ब्रह्भा को वेदेआ का ऻान प्रदान ककमा औय उन्हेआने बूतकार भें वैहदक ऻान का प्रचाय ककमा | ऩन
ु ्
के कायण मह नहीॊ जानते कक भेऄने ही उन्हें उत्ऩन्न ककमा |” वयाह ऩुयाण भें बी कहा गमा है –
.
*नायामण् ऩयो दे वस्तस्भाज्जातश्र्चतभ
ु ख
ुत ् |*
*तस्भाद्र रुद्रोSबवद्देव् स च सवतऻताॊ गत् ||*
.
“नायामण बगवान ् हेऄ, क्जनसे ब्रह्भा उत्ऩन्न हुए औय कपय ब्रह्भा से लशव उत्ऩन्न हुए |” बगवान ्
कृष्ण सभस्त उत्ऩक्त्तमेआ से स्त्रोत हेऄ औय वे सवतकायण कहराते हेऄ | वे स्वमॊ कहते हेऄ, “चॉकू क सायी
वस्तुएॉ भुझसे उत्ऩन्न हेऄ, अत् भेऄ सफेआ का भूर कायण हूॉ | सायी वस्तुएॉ भेये अधीन हेऄ, भेये ऊऩय
कोई बी नहीॊ हेऄ |” कृष्ण से फढ़कय कोई ऩयभ तनमन्ता नहीॊ है | जो व्मक्तत प्राभाणणक गरु ु से मा
वैहदक साहहत्म से इस प्रकाय कृष्ण को जान रेता है, वह अऩनी सायी शक्तत कृष्णबावनाभत
ृ भें
रगाता है औय सचभच
ु ववद्वान ऩरु
ु ष फन जाता है | उसकी तर
ु ना भें अन्म रोग, जो कृष्ण को
ठीक से नहीॊ जानते, भात्र भख
ु त लसि होते हेऄ | केवर भख
ु त ही कृष्ण को साभान्म व्मक्तत सभझेगा |
कृष्णबावनाबाववत व्मक्तत को चाहहए कक कबी भख
ू ों द्वाया भोहहत न हो, उसे बगवद्गीता की
सभस्त अप्राभाणणक टीकाओॊ एवॊ व्माख्माओॊ से दयू यहना चाहहए औय दृढ़ताऩव
ू क
त कृष्णबावनाभत
ृ
भें अग्रसय होना चाहहए |
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