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प्रयोग समाप्त होने पर दूसरे ददन आप नैवेद्य,पीला कपडा और दीपक को दकसी सुनसान

जगह पर रख दें और उसके चारो और लोटे से पानी का गोल घेरा बनाकर और प्रणाम
कर वापस लौट जाएँ तथा मुड़कर ना देखें.
ये प्रयोग अनुभूत है,आपको क्या अनुभव होंगे ये आप खुद बताइयेगा,मैंने उसे यहाँ नहीं
ललखा है. तत्व लवशेष के कारण हर व्यलि का नुभव दूसरे से प्रथक होता है. सदगुरुदेव
आपको सफलता दें और आप इन प्रयोगों की महत्ता समझ कर लगडलगडाहट भरा जीवन
छोड़कर अपना सववस्व पायें यही कामना मैं करती हँ.

ये प्रयोग रलववार की मध्य रालि को संपन्न करना होता है.स्नान आदद कृ त्य से लनवृत्त्य
होकर पीले वस्त्र धारण कर दलिण मुख होकर बैठ जाएँ.सदगुरुदेव और भगवान् गणपलत
का पंचोपचार पूजन और मंि का सामर्थयावनुसार जप कर लें तत्पश्चात सामने बाजोट पर
पीला वस्त्र लबछा लें,लजस के ऊपर काजल और कु मकु म लमलित कर ऊपर लचि में ददया
यन्त्ि बनाना है और यन्त्ि के मध्य में काले लतलों की ढेरी बनाकर चौमुहा दीपक प्रज्वललत
कर उसका पंचोपचार पूजन करना है,पूजन में नैवेद्य उड़द के बड़े और दही का अर्पपत
करना है .पुष्प गेंदे के या रि वणीय हो तो बेहतर है.अब अपनी मनोकामना पूती का
संकल्प लें.और उसके बाद लवलनयोग करें .

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