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Sri Suktam – Sanskrit Script

ॐ ॥ हिर॑ ण्यवर्ण ां॒ िरर॑ र ीं सवरण


ां॒ रजां॒
॑ तस्र॑ ज्म् । चां॒न्द््ीं हिां॒रण्म॑य ीं लां॒ क्ष् ीं ज्त॑ वेदो मां॒ आव॑ ि ॥

त्ीं मां॒ आव॑ िां॒ ज्त॑ वेदो लां॒क्ष् मन॑पग्ां॒हमन म ी॓ ् ।


यस्ीं ां॒ हिर॑ ण्यीं हवां॒ न्देयींां॒ ग्मश्ींां॒ पर॑ष्नां॒िम् ॥

अां॒श्ां॒पव्ण
ां॒ र॑ थमां॒ध््ीं िां॒स्तिन्ी॓ द-प्रां॒बोह ॑ न म् ।
हियीं ॑ देां॒ व मप॑ह्वयेां॒ ि म्ण देां॒ व जणषत्म्
॑ ॥

क्ीं ां॒ सोस्ती॓ मां॒त्ीं हिर॑ ण्यप्र्ां॒क्र्॑ म्ां॒र्द््ण ज्वलीं ॑त ीं तप््ीं


ां॒ तां॒ पणयींत
॑ म् ।
पां॒द्ेां॒ स्त्थां॒त्ीं पां॒द्व॑ र्ण ां॒ त्हमां॒िोप॑ह्वयेां॒ हियम् ॥

चां॒न्द््ीं प्र॑भ्ां॒स्ीं यां॒ शस्ां॒ ज्वलीं ॑त ां॒ीं हियीं ॑ लोां॒के देां॒ वज॑ष्ट्मद्ां॒र्म् ।

त्ीं पां॒हद्न म
॑ ां॒ीं शर॑ रमां॒िीं प्रप॑द्येஉलां॒ क्ष् मम॑ नश्यत्ीं ां॒ त््ीं व॑ रे ॥

आां॒ हदां॒ त्यव॑ रम तपां॒सोஉह ॑ ज्ां॒तो वनां॒स्पहतां॒ िव॑ वक्षोஉथ


ां॒ हबां॒ ल्वः ।
तसां॒ फल्॑ हनां॒ तपां॒स्न॑दन्त म्ां॒य्न्त॑र्ां॒य्श्च॑ ब्ां॒ह्य् अ॑लां॒क्ष् ः ॥

उपैत ां॒ म्ीं देां॒ वसां॒ खः क हां॒ तण श्चां॒ महर॑ न् सां॒ ि ।


प्र्ां॒दां॒भणां॒ तोஉस्तम॑ र्ष्ट्ां॒ेஉस्तमन् क हां॒ तण म॑स्तधीं दां॒ द्द॑ मे ॥

क्षस्तप॑प्ां॒स्म॑ल्ीं ज्ेां॒ ष्ठ्म॑लां॒क्ष ीं न्॑ शय्ां॒म्यिम् ।


अभ॑ हतां॒ मस॑ मस्तधींां॒ च सव्ण ां॒ हनरण द॑ मेां॒ गि्त् ॥

ी॓ ् ।
गां॒ न्धां॒द््ां॒र्ीं द॑ र् ां॒ ष्ण ां॒ हनां॒त्यप॑ष्ट्ीं कर हां॒ षर म
ईां॒श्र ग्ीं ॑ सवण भ ॑ त्ां॒न्ीं ां॒ त्हमां॒िोप॑ह्वयेां॒ हियम् ॥

मन॑सःां॒ क्मां॒म्कहतीं व्ां॒चः सां॒ त्यम॑श महि ।


पां॒शन्ीं
ां॒ रां॒ पमन्य॑ स महयां॒ ि ः ि॑यत्ीं ां॒ यशः॑ ॥

कां॒दण मेन
॑ प्र॑ज्भत्ां॒
ां॒ मां॒हयां॒ सम्भ॑ व कां॒ दण म ।
हियीं ॑ व्ां॒सय॑ मे कां॒ ले म्ां॒तरीं ॑ पद्ां॒ म्हल॑न म् ॥

आपः॑ सजन्त ां॒ ॑ हनां॒ग््ां॒हनां॒ हचां॒ क् त ां॒ व॑ स मेां॒ गिे ।


हन च॑ देां॒ व ीं म्ां॒तरीं ां॒ हियीं ॑ व्ां॒सय॑ मे कां॒ ले ॥

आां॒ र्द््ण पष्करर॑


ां॒ र ीं पहष्टीं
ां॒ ां॒ सवां॒
ां॒ र्ण म् िेम
॑ म्ां॒हलन म् ।
सय्ण
ां॒ हि ां॒ र ण्म॑ य ीं लां॒ क्ष् ीं ज्त॑ वे द ो मां॒ आव॑ ि ॥

आां॒ र्द््ण यःां॒ करर॑ र ीं यां॒ हष्टीं हपां॒ङ्गां॒ल्म् प॑द्म्ां॒हलन म् ।


चां॒न्द््ीं हिां॒रण्म॑य ीं लां॒क्ष् ां॒ीं ज्त॑ वेदो मां॒ आव॑ ि ॥

त्ीं मां॒ आव॑ िां॒ ज्त॑ वेदो लां॒क्ष मन॑पग्ां॒हमन म ी॓ ् ।


यस्ीं ां॒ हिर॑ ण्यींां॒ प्रभ॑ तींां॒ ग्वो॑ द्ां॒सोஉश््ी॓ न्, हवां॒ न्देयींां॒ पर॑ष्नां॒िम् ॥

ॐ मां॒ि्ां॒देां॒व्यै च॑ हवां॒ द्िे ॑ हवष्णपां॒त्न च॑ महि । तन्ो॑ लक्ष् ः प्रचोां॒दय्ी॓ त् ॥

ि -वण चणस्वां॒
॑ -म्य॑ ष्यां॒-म्रोग्य
ी॓ ां॒ म्व ॑ ्ां॒त् पव॑ म्नीं मि य
ां॒ ते ी॓ । ्ां॒न्यीं ां॒ नीं पां॒ शीं बां॒ हुप॑त्रल्ां॒भीं शां॒तसीं ॓ी॓वत्सां॒रीं द र्
ां॒ णम्यः॑ ॥

ॐ श्स्तन्तःां॒ श्स्तन्तःां॒ श्स्तन्तः॑ ॥


Durga Suktam – Sanskrit Script

ॐ ॥ ज्ां॒तवे द ॑ से सनव्मां॒ सोम॑ मर्त यां॒ तो हनद॑ ि्हतां॒ वे दः॑ ।


स नः॑ पर् -षां॒दहत॑ दां॒ग्ण हरां॒ हवश््॑ न्ां॒वेवां॒ हसन्धीं ॑ दररां॒त्உत्यां॒हनः ॥

त्मां॒हनव॑ र्ण तप॑स् ज्वलां॒न्त ीं वै र॑ ोचां॒न ीं क॑मणफां॒लेष ां॒ जष्ट्ी॓ म् ।


दग्ण
ां॒ देां॒ व ग्ीं शर॑ रमां॒िीं प्रप॑द्ये सतर॑
ां॒ हस तरसे ॑ नमः॑ ॥

अनेां॒ त्ीं प्॑ रय्ां॒ नव्यो॑ अां॒म्न्थ्-स्वां॒स्तिहभां॒ रहत॑ दां॒ग्ण हरां॒ हवश््ी॓ ।
पश्च॑ पथ्व
ां॒ ब॑ हुां॒ल् न॑ उां॒ वी भव्॑ तोां॒क्यां॒ तन॑य्यां॒ शींयोः ॥

हवश््॑ हन नो दगण ां॒ ि्॑ ज्तवे दःां॒ हसन्धन्


ां॒ न्ां॒व् द॑ ररां॒त्உहत॑ पर् -हष ।
अने ॑ अहत्रां॒ वन्मन॑स् गर्ां॒नोஉी॓ म्कीं॑ बोध्हवां॒ त् तां॒ नन्ी॓ म् ॥

पतां॒ां॒ न्ां॒ हजतां॒ ग्ींां॒ सि॑ म्नमग्रमां॒


ां॒ हनग्ीं हु॑ वेम परां॒म्थ्-सां॒ ्थ्ी॓ त् ।
स नः॑ पर् -षां॒दहत॑ दग्ण ां॒ हरां॒ हवश््ां॒ क्ष्म॑द्ेां॒वो अहत॑ दररां॒त्உत्यां॒हनः ॥

प्रां॒त्नोहष॑ कां॒म ड्ो॑ अध्वां॒ रेष॑ सां॒ न्च्चां॒ िोत्ां॒ नव्य॑ श्च सस्तत्स॑ ।
स्व्ञ््ी॓ உने तां॒ नवीं ॑ हपां॒प्रय॑ स्व्ां॒मभ्ीं ॑ चां॒ सौभ॑ गां॒म्य॑ जस्व ॥

गोहभां॒ जणष्ट॑मयजोां॒ हनहष॑क्ींां॒ तवें ॓ी॓र्द् हवष्णोां॒रनसञ्॑


ां॒ रेम ।
न्क॑स पष्ठमां॒ ां॒ हभ सां॒ ॓ींवस्॑ नोां॒ वै ष्ण॑व ीं लोां॒क इां॒ि म्॑ दयन्त्म् ॥

ॐ क्ां॒त्य्ां॒यां॒न्य॑ हवां॒ द्िे ॑ कन्यकां॒ म्रर॑ महि । तन्ो॑ दहगणः प्रचोां॒दय्ी॓ त् ॥

ॐ श्स्तन्तःां॒ श्स्तन्तःां॒ श्स्तन्तः॑ ॥


Sree Lakshmi Ashtottara Satanaama Stotram – Sanskrit Script

दे व्यव्च
दे वदे व! मि्दे व! हत्रक्लज्ञ! मिे श्र!
करर्कर दे वेश! भक््नग्रिक्रक! ॥
अष्टोत्तर शतीं लक्ष्मम्य्ः िोतहमच्छ्हम तत्त्वतः ॥

ईश्र उव्च
दे हव! स् मि्भ्गे मि्भ्ग्य प्रद्यकम् ।
सवै श्यण करीं पण्यीं सवण प्प प्रर्शनम् ॥
सवण द्ररद्र्य शमनीं िवर्द् भस्तक् मस्तक्दम् ।
र्जवश्यकरीं हदव्यीं गह्य्द् -गह्यतरीं परम् ॥
दलणभीं सवण देव्न्ीं चतष्षहष्ट कल्स्पदम् ।
पद््द न्ीं वर्न्त्न्ीं हन न्ीं हनत्यद्यकम् ॥
समि दे व सीं सेव्यम् अहरम्द्यष्ट हसस्तधदम् ।
हकमत्र बहुनोक्े न दे व प्रत्यक्षद्यकम् ॥
तव प्र त्य्द्य वक्ष्य्हम सम्हितमन्श्शर ।
अष्टोत्तर शतस्स मि्लस्तक्ष्ि दे वत् ॥
क् ीं ब ज पदहमत्यक्ीं शस्तक्ि भवनेश्र ।
अङ्गन्य्सः करन्य्सः स इत्य्हद प्रक हतण तः ॥

ध््नम्
वन्दे पद्कर्ीं प्रसन्वदन्ीं सौभ्ग्यद्ीं भ्ग्यद्ीं
िि्भ््मभयप्रद्ीं महरगरै ः न्न्हव ै ः भहषत्म् ।
भक््भ ष्ट फलप्रद्ीं िररिर ब्रह्म्ह हभस्सेहवत्ीं
प्श्म पङ्कज शङ्खपद् हनह हभः यक््ीं सद् शस्तक्हभः ॥

सरहसज नयने सरोजििे वल तर्ीं शक गन्धम्ल्य शोभे ।


भगवहत िररवल्लभे मनोज्ञे हत्रभवन भहतकरर प्रस दमह्यम् ॥


प्रकहतीं , हवकहतीं , हवद्य्ीं , सवण भत हितप्रद्म् ।
िध्ीं , हवभहतीं , सरहभीं , नम्हम परम्स्तिक्म् ॥ 1 ॥

व्चीं, पद््लय्ीं , पद््ीं , शहचीं, स्व्ि्ीं , स्व ्ीं , स ्म् ।

न्य्ीं , हिरण्यय ,ीं लक्ष् ,ीं हनत्यपष्ट्ीं , हवभ्वर म् ॥ 2 ॥

अहदहतीं च, हदहतीं , द प््ीं , वस ्ीं , वस ्ररर म् ।


नम्हम कमल्ीं , क्न्त्ीं , क्षम्ीं , क्ष रोद सम्भव्म् ॥ 3 ॥

अनग्रिपर्ीं , बस्तधीं, अनर््ीं , िररवल्लभ्म् ।


अशोक्,ममत्ीं द प््ीं , लोकशोक हवन्हशन म् ॥ 4 ॥

नम्हम मणहनलय्ीं , करर्ीं , लोकम्तरम् ।


पद्हप्रय्ीं , पद्िि्ीं , पद््क्ष ,ीं पद्सन्दर म् ॥ 5 ॥

पद्ोद्भव्ीं , पद्मख ,ीं पद्न्भहप्रय्ीं , रम्म् ।


पद्म्ल् र्ीं , दे व ,ीं पहद्न ,ीं पद्गस्तन्धन म् ॥ 6 ॥

पण्यगन्ध्ीं , सप्रसन््ीं , प्रस्द्हभमख ,ीं प्रभ्म् ।


नम्हम चन्द्वदन्ीं , चन्द््ीं , चन्द्सिोदर म् ॥ 7 ॥
चतभण ज्ीं , चन्द्रप्ीं , इस्तन्दर्,हमन्दश तल्म् ।
आह्ल्द जनन ,ीं पहष्टीं , हशव्ीं , हशवकर ,ीं सत म् ॥ 8 ॥

हवमल्ीं , हवश्जनन ,ीं तहष्टीं, द्ररद्र्य न्हशन म् ।


प्र हत पष्कररर ,ीं श्न्त्ीं , शक्म्ल्य्म्बर्ीं , हियम् ॥ 9 ॥

भ्स्कर ,ीं हबल्वहनलय्ीं , वर्रोि्ीं , यशस्तस्वन म् ।


वसन्धर्, मद्र्ङ्ग्ीं , िररर ,ीं िे मम्हलन म् ॥ 10 ॥

न ्न्यकर ,ीं हसस्तधीं, स्रै रसौम्य्ीं , शभप्रद्म् ।


नपवे श्म गत्नन्द्ीं , वरलक्ष् ,ीं वसप्रद्म् ॥ 11 ॥

शभ्ीं , हिरण्यप्र्क्र्ीं , समर्द्तनय्ीं , जय्म् ।


नम्हम मङ्गल्ीं दे व ,ीं हवष्ण वक्षः्थल स्त्थत्म् ॥ 12 ॥

हवष्णपत्न ,ीं प्रसन््क्ष ,ीं न्र्यर सम्हित्म् ।


द्ररद्र्य ध्वीं हसन ,ीं दे व ,ीं सवोपर्द्व व्ररर म् ॥ 13 ॥

नवदग्ण , मि्क्ल ,ीं ब्रह्म हवष्ण हशव्स्तिक्म् ।


हत्रक्लज्ञ्न सम्पन््ीं , नम्हम भवने श्र म् ॥ 14 ॥

लक्ष् ीं क्ष रसमर्द्र्ज तनय्ीं ि रङ्ग ्मेश्र म् ।


द्स भत समिदे व वहनत्ीं लोकैक द प्ङ्कर्म् ॥
ि मन्मन्द कट्क्ष लब्ध हवभवद् -ब्रह्मे न्द् गङ्ग् र्म् ।
त््ीं त्रै लोक्य कटस्तम्बन ीं सरहसज्ीं वन्दे मकन्दहप्रय्म् ॥ 15 ॥

म्तनणम्हम! कमले! कमल्यत्हक्ष!


ि हवष्ण हृत् -कमलव्हसहन! हवश्म्तः!
क्ष रोदजे कमल कोमल गभण गौरर!
लक्ष् ! प्रस द सततीं समत्ीं शरण्ये ॥ 16 ॥

हत्रक्लीं यो जपेत् हवद््न् षण्म्सीं हवहजते स्तन्द्यः ।


द्ररद्र्य ध्वीं सनीं कत्् सवण म्प्नोत् -ययत्नतः ।
दे व न्म सिस्रे ष पण्यमष्टोत्तरीं शतम् ।
ये न हिय मव्प्नोहत कोहटजन्म दररर्द्तः ॥ 17 ॥

भगव्रे शतीं म्न् पठे त् वत्सरम्त्रकम् ।


अष्टैश्यण मव्प्नोहत कबे र इव भतले ॥
द्ररद्र्य मोचनीं न्म िोत्रमम्ब्परीं शतम् ।
ये न हिय मव्प्नोहत कोहटजन्म दररर्द्तः ॥ 18 ॥

भक्त्व्त हवपल्न् भोग्न् अन्ते स्यज्म्प्नय्त् ।


प्र्तःक्ले पठे हन्त्यीं सवण दःखोप श्न्तये ।
पठन्त हचन्तये द्ेव ीं सव्ण भरर भहषत्म् ॥ 19 ॥

इहत ि लक्ष् अष्टोत्तर शतन्म िोत्रीं सम्परण म्

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