You are on page 1of 5

जय शी कृष् ..

गायत्री माँ साधाा ा द्ाा माला साधन 11 ददि या 21 ददि क साधकेन ैं साधाा ा क शुरुआे शुरकल ा वविविा साधन क साधकेन ैं गायत्री साधाा ा
में ज क ेन साधमय माला को ध्या साधन ज ा ाावैए ज ेन साधमय माला कन साधरमनु को लांघ ा ैी ैह औ यददि साधाा ा कन ददि ो में कैी जा ा
ड़ेा ैह औ एक या दिो ददि का ज माला साधन ैी क साधकेन ैं ेो मा नसाधक या ाी न ाी न बोलक ज क ा ाावैए लन आ वकसाधी ी
स्था ैो .

विाै ालाेन साधमय या विाै साधविा ी क ेन साधमय वकसाधी ी का का ज ैी क ा ाावैए यददि ज कन दिौ ा शुौा (बाथदम) जा ा
ड़न ेो ैाथ ह ाोक विा साध ज क ें लनवक ामा द में एक माला ायादिा ज क ें , यददि साधाा ा कन ददि ो में घ में वकसाधी क मृतयर ैो
जाऐ या बचान का जनम ैो जाऐ ेो माला साधन जा बंदि क दिें औ मा नसाधक ज क ा शुरद क दिन जजे न ददि आ कन र विा में साधसेक
मा ेन ैं

साधाा ा कन ददि ो में शुाकाैा ी ोज वि ी कम मात्रा में ाए ,प्याज लैसाधर ा ायें.

1. पववित्रीकरण-बायें ैाथ में जल लनक दिावै न ैाथ साधन गायत्री मंत्र बोलेन ेए स न शु ी र छींन मा न स्वियं कन
2. आचमन- दिावै न ैाथ में जल लनक ेी बा में ेी बसंदि जल लनक ीयें औ ै बा में यै बीज मंत्र बोलन ी शी कली
3. शशिखा बंखधन- नशु ा बांा लन ैी ैो ेब नशु ा कन स्था रर ए.
4. प्राणायाम-लंबी साधांसाध ीाक ाी न ाी न रोड़न
5. न्यास-अंगरठन औ अ ाममका अंगरली को ममलाक व ि मंत्रो को बोलेन ेए व ि अंगो को रर ए
1.ऊँ स रविर् स्वि्-मसारयर्ये म्
2.ेतसाधवविेर्- नत्राभ्यां म्
3.वि णन यं -क्ारभ्यां म्
4. गर-मर ाय म्
5.दिन विस्य – कणठाय म्
6.ाीमवै-हृदियाय म्
7.मायो यो ् - ाभ्यह म्
8. ाोदियाे-ैस्ेाभ्यां म्
गायत्री जी क टोंो साधाम न क यै आविाै मंत्र ढ़ें गन
आयातु विरदे दे ववि अरे रेविा्दनीव
गायत्री छन्दसाख माता रेयमने नमम्तुतेवव
इसाधकन बादि श्ा अ रसाधा सज साधामग्री गायत्री जी ाढाे पयन साधादि ाढाे पयन औ मसल मंत्र क 11 माला ज क ें,
ॐ भूर् भुविः ्विःवतत् सववितुविररेवयखव

भगर्गो दे वि्य धीमवधविधयम यम नः प्रचमदयात् ॥

वधन्दी मं रर -उसाध ा्स्विद , दु् ाशुक, साधर स्विद , शनष, ेनजस्विी, ा ाशुक, दिन विस्विद मातमा को ैम अ ी अने ातमा
में ाा ् क ें। विै मातमा ैमा ी बरज् को साधनमागर में नर े क न।

जजे ी माला ज क ें उसाधक दिशुाशु साधं्या ैवि औ ैवि क दिशुांशु े र् ,े र् क दिशुांशु माजर क ें
अब गायत्री ाानलसाधा का ाठ क कन आ ेी क ें औ वविसाधजर मंत्र साधन गायत्री जी को स्था क ाविन .
उत्तमं शशिखरे दे वविभूययाख पविरत मूधरवनः व
राेणेभ्ययम ेनुञाता गच्छछ दे विी यरा सुखम् वव
यै साधाा ा व तय क साधकेन ैं साधरबै या शुाम वकसाधी ी साधमय
गायत्री साधाा ा ैवि वविमाि
ैवि करंड में साधममाा ें अब अगग स्था ा कन नलए एक दू कन बती को घी में ं गोक साधममााओ कन बीा में जलाक ें
-मंत्र बोलेन ेए
ऊँ भूभुविरः ्विवघौररवि भूयना पृशरविीविविररयणा त्या्ते पृशरविी दे वियजवन पृृष्मोगगनखमिादमिावघायादधे व
ोगगनख दूतख पुरमदधेधवविाधमुपरुविे दे विाखडाहम्आसादया्दध वव
ऊँ गगनये नमः व ऊँ ोगगनख आविावािम ,्रापयािम व
इधागच्छछ इध वतृष् वइ।याविाे प पचमपचारा ,पूजयेत्
जहसाधन ैी अगग ाविनले ैो जाए ेब वकसाधी कागज साधन अगग को ैविा दिन औ यै मंत्र बोलन ..
ऊँ उदबंुबुधय्विाने प्रवत जागृध ।वििमिा पूतर स सृजर े ा मयख च स्मन्।सध्रे बुधयुत्तरास्मन वविवेदेविाः यजमानश सीदत्त

इसाधकन शाे ाा रोंी रोंी साधममााएं घी में डर बोक अगग में डालन – १.ऊँ यन्त इबुधम आ।मा जातविेद्तेनेबुधय्वि विधर्वि व
चेबुधद विधरय चासमान् प्रजया पशिुभभररेविचरसे नािानवघेन समेधय ,्विाधा वइदम गगनये जातविेदसे इदख न मम वव
२. ऊँ सिमधाोगगनख दवि्यत धृताबंर्गोधयतावतशरम् व स्मन धवा जुधमतन ्विाधा वइदमगगनये इदख न मम्
३.ऊँ सुसिमबुधदाय शिमिचसे वघृतख तीवख जुधमतन व
गगनये जातविेदसे ्विाधा व इदमगगनये जातविेदसे इदख न मम वव
४ ऊँ तख ।विा सिमिदरवगरम वघृतेन विधरयामशस व
बंृधच्छछे चा यवविष् ्विाधा वइदमगगनये वगरसे इदख न मम वव

इसाधकन शाे दिावै न ैाथ में जल लनक ैवि करंड कन ाा ो मरड़कन


ऊँ आददितयनड् रमनयस्वि ।ऊँ अ रमेनड् रमनयस्वि ।ऊँ साध स्वितयड् रमनयस्वि
ऊँ दिन वि् साधवविे् साधरवि य ं साधरवि य वेम् गाय ददििो गनाविर् कने स् कने् ् र ाेर विाास् वेविारां ् स्विदिेर ।।

ववआज्याहुती धममवव
अब नसाधटर घी क आेवेयां दिन विें औ आेवे दिन न ािमा में बाा घी ा ी क कंो ी में इदिन् मम बोलेन ेए डालेन जाए
1. ऊँ जा ेयन स्विाैा । इदिं जा ेयन इदिं मम ।।
2. ऊँ इन्ाय स्विाैा । इदिममन्ाय इदिं मम।।
3. ऊँ अग यन स्विाैा । इदिमग यन इदिं मम।।
4. ऊँ साधोमाय स्विाैा । इदिं साधोमाय इदिं मम ।।
5. ऊँ स् स्विाैा । इदिमग यन इदिं मम ।।
6. रवि् स्विाैा । इदिं विायविन इदिं मम ।।
7. ऊँ स्वि् स्विाैा । इदिं साधसयारय इदिं मम ।।
गायत्री मंत्र क आेवेयां
जजे ी साधं्या में ज वकया ैह उसाधका दिशुांशु या कम साधन कम 108 बा ैवि साधामग्री औ घी ममलाक आेवेयां दिें
ॐ स ् रवि् स्वि्। ेे् साधवविेरविर णन यं।

गर दिन विस्य ाीमवै। मायो यो ् ाोदियाे् स्विाैा

इदिं गायतयह इदिं मम ।।

ववस्वििकृत धममःवव

जो ी साधादि ममठाू ेहया क ैो उसाधक एक आेवे दिें इसाध मंत्र को बोलक

ऊँ यदिस्य कमर्ोतय ीर ां यवदिानयस ममैाक म्।

अगग ष्टे सस्विष्टकृगवदिघातसाधविर सस्विष्टं साधरेें क ोेर मन ।

अग यन सस्विष्टकृेन साधरेेेेन साधविर ायं शेाेेी ां कामा ां साधमध्दिर वयत्रन साधविारन्् कामानतसाधमध्दिर यन स्विाैा ।

इदिमग यन सस्विष्टकृेन इदिं मम ।।

वव पूणारहुवतः वव

अब घी ,एक साधर ा ी साधाथ में ैवि में डालन औ म त्र बोलन

ऊँ स्रमदि् स्रममदिं स्ारे स्रमरदिचयेन ।

स्रस्य स्रमादिाय स्रमवि


न ाविनशुषयेन ।।

ऊँ स्ारदिरविर ा े साधर स्ार र ा े ।

विस् नवि वविक ्ा विैा इममसजर शुेकेो स्विाैा ।।

ऊँ साधविर विह स्र स्विाैा ।।

ववविसमधाररा वव

ािमा में घी लनक ाा ब ाक ैवि करंड में डालन

ऊँ विसाधो् ववित्रमनसाध शुेाा ं विसाधो् ववित्रमनसाध साधैसाा म् ।दिन विस्तविा साधवविेा र ाेर विसाधो् ववित्रन् शुेाा न् साधरप्विा कामारा्
स्विाैा।

आरती ववगायत्री जी की आरती करं

ऊँ यख रेाविाणेन्णेनाणेनमातुः ्तुन्विोन्त ्दवाः ्तविाःविरदे साखगपदक्रममपवनषददा गारयोन्त यख सामगाः व

बुधयानाविस्रत् त्तेन मनसा प्योन्त यख यमवगनमव

य्यान्तख न वविदः सुरासुरगुणाः दे विाय त्मा नमःवव

वववघृत विवघाणवव

ा ी क कंो ी में ं काए घी को ैाथ साधन जल साधवैे उठाक विा साध कंो ी में डालन औ अ न मस्ेक, नत्र ,क्र मर आददि
रर ए कंो ी कन जल जल साधन ि..ऊँ े स ा अग नअ्नसाध ेनविं मन ावै ।ऊँ आयरदिार अग नअ्स्यायरमर्ये दिन वै।ऊँ विारदिा अग नअ्नसाध विार
मन दिन वै।ऊँ अग नयनमन ेनविाअ्ऊन्ेनम आ ृ् ।ऊँ मनाा मन दिन वि्साधवविेा आदिााेर ।ऊँ मनाा मन दिन विी साध स्विेी आदिााेर।ऊँ मनाा मन
अं श्वि ौ दिन विाविााेां रषक सजौ ।

भ्म धारण वव
य स्म लनक अ ाममका उंगली साधन वविं न् अंगो लगायें औ मंत्र बोलन

ऊँ तयायरमं जमदिग नर वे ललांन ।

ऊँ कस्य स्य तयायरमममवे ग्रीविायाम् ।

ऊँ यदन विनमर तयायरमममवे दिं ा् बाेमसलन ।

ऊँ ेन्ोअस्ेर तयायरमममवे हृददि ।

शिाखवत पाठवव

ॐ दौ: शुागने नेर ाँ शुागने:,


ृथ्विी शुागने ा : शुागने ोमाय: शुागने:।
वि स् ेय: शुागनेरविरश्विन दिन विा: शुागनेररह्म शुागने:,
साधविर्वँ शुागने:, शुागने नवि शुागने:, साधा मा शुागने नमाे
ॐ शुागने: शुागने: शुागने:े

वधन्दी :
शुागने: क जजयन, र वत्र रवि में, जल में, थल में औ गग में,
अनेर ा में, अगग वि में, औममा, वि स् वे, वि , उ वि में,
साधकल वविश्वि में अविाने में!
शुागने ाष-व मार् साधृज , ग , ग्राम औ वि में
जीविमात्र कन े , म औ जगे कन ैो क् क् में,
ॐ शुागने: शुागने: शुागने:े

गायत्री ाालीसाधा...

ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीविन ज्यमवत प्रचखडाहम ॥

शिाखवत काखवत जागृत प्रगवत रचना शिशक खखडाहम ॥1॥

जगत जननी मखगल करवन गायत्री सुखधाम वप्रणविो साववित्री ्विधा ्विाधा पूरन काम ॥ २॥
भूभुरविः ्विः ॐ युत जननी वगायत्री वनत कशलमल दधनी ॥॥
अर चौबंीस परम पुनीता वइनमं बंसं शिा्त्र श्रुवत गीता ॥॥
शिावत सतमगुणी सत ापा वस।य सनातन सुधा नूपा ॥॥
धखसााढ वेताखबंर धारी व्विणर काखवत शिुिच गगन-वबंधारी ॥॥
पु्तक पुषप कमखडाहमलु माला वशिु् विणर तनु नयन वविशिाला ॥॥
बुधयान धरत पुलवकत वधत धम वसुख उपजत दख दमरवत खम ॥॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया ववनराकार की दुत माया ॥॥
तुयधरी शिरण गधा जम कम वतरा सकल सखक सो सम ॥॥
सर्विती लकमी तुम काली व्दपा तुयधारी ज्यमवत वनराली ॥॥
तुयधरी मवधमा पार न पावि वजम शिारद शित मुख गुन गावि ॥॥
चार विेद की मात पुनीता वतुम रेाणी गौरी सीता ॥॥
मधामखत्र िजतने जग माधीं वकमउ गायत्री सम नाधीं ॥॥
सुिमरत वधय मं ञान प्रकासा वआलस पाप ववििा नासा ॥॥
सृवि बंीज जग जनवन भविानी वकालरावत्र विरदा क्याणी ॥॥
रेा वविषणु रुणेन सुर जेते वतुम सो पाविं सुरता तेते ॥॥
तुम भकन की भक तुयधारे वजनवनिधं पुत्र प्राण ते पयारे ॥॥
मवधमा परयपार तुयधारी वजय जय जय वत्रपदा भयधारी ॥॥
पूररत सकल ञान वविञाना वतुम सम िधक न जगमं आना ॥॥
तुमिधं जावन कछु रधा न शिेषदा वतुमिधं पाय कछु रधा न क्लेसा ॥॥
जानत तुमिधं तुमिधं वधा जा वपारस परशस कुधातु सुधा ॥॥
तुयधरी शिशक ्दपा सबं ठा वमाता तुम सबं ठौर समा ॥॥
ग्रध नअत्र रेाखडाहम वघनेरे वसबं गवतविान तुयधारे प्रेरे ॥॥
सकल सृवि की प्राण वविधाता वपालक पमषदक नाशिक त्राता ॥॥
मातेवरी दया वत धारी वतुम सन तरे पातकी भारी ॥॥
जापर कृपा तुयधारी धम वतापर कृपा करं सबं कम ॥॥
मखद बंुिद्धि ते बंुिध बंल पाविं वरमगी रमग रवधत धम जाविं ॥॥
दररणेन िम ा क ा सबं पीरा वनाशिा दख धरा भवि भीरा ॥॥
गृध क्लेशि िचत चचंता भारी वनासा गायत्री भय धारी ॥॥
सखतवत धीन सुसखतवत पाविं वसुख सखपवत युत ममद मनाविं ॥॥
भूत वपशिाच सबंा भय खाविं वयम के दूत वनक निधं आविं ॥॥
जम सधविा सुिमरं िचत ला व छत सुधाग सदा सुखदा ॥॥
वघर विर सुख प्रद लध कुमारी ववविधविा रधं स।य वत धारी ॥॥
जयवत जयवत जगदख बं भविानी वतुम सम र दयालु न दानी ॥॥
जम सतगुरु सम दीअा पाविे वसम साधन कम सलल बंनाविे ॥॥
सुिमरन करे सुािच बंडाहमभागी वलधा मनमरर गृधी वविरागी ॥॥
ि शसिद्धि नविवनिध की दाता वसबं समरर गायत्री माता ॥॥
ऋवषद मुवन यती तप्विी यमगी वआरत रत चचंवतत भमगी ॥॥
जम जम शिरण तुयधारी आविं वसम सम मन विाखशछत लल पाविं ॥॥
बंल बंुिध ववििा शिील ्विभाउ वधन विाभवि यशि तेज उछाउ ॥॥
सकल बंढं उपजं सुख नाना वजे यध पाठ करा धरर बुधयाना ॥
यध चालीसा भशक युत पाठ करा जम कम वतापर कृपा प्रसिता गायत्री की धमय ॥

You might also like