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ी गायी चालीसा

  ल मेधा भा जीवन योित चड ।

शाित काित जागृत गित रचना शत अखड ॥ १॥

जगत जननी मगल करन गायी सुखधाम ।

णव सािवी वधा वाहा पूरन काम ॥ २॥

भूभुवः वः ॐ युत जननी ।

गायी िनत किलमल दहनी ॥ ३॥

अर चौिवस परम पुनीता ।

इनम बस शा ुित गीता ॥ ४॥

शावत सतोगुणी सत पा ।

सय सनातन सुधा अनूपा ।

हं साढ िसतंबर धारी ।

वण काित शुिच गगन-िबहारी ॥ ५॥

पुतक पुप कमडलु माला ।

शु वण तनु नयन िवशाला ॥ ६॥

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यान धरत पुलिकत िहत होई ।

सुख उपजत दुःख दुमित खोई ॥ ७॥

कामधेनु तुम सुर त छाया ।

िनराकार की अुत माया ॥ ८॥

तुहरी शरण गहै जो कोई ।

तरै सकल संकट स सोई ॥ ९॥

सरवती लमी तुम काली ।

िदपै तुहारी योित िनराली ॥ १०॥

तुहरी मिहमा पार न पाव ।

जो शारद शत मुख गुन गाव ॥ ११॥

चार वेद की मात पुनीता ।

तुम ाणी गौरी सीता ॥ १२॥

महाम िजतने जग माह ।

कोई गायी सम नाह ॥ १३॥

सुिमरत िहय म ान कासै ।

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आलस पाप अिवा नासै ॥ १४॥

सृट बीज जग जनिन भवानी ।

कालराि वरदा कयाणी ॥ १५॥

ा िवणु  सुर जेते ।

तुम स पाव सुरता तेते ॥ १६॥

तुम भतन की भकत तुहारे ।

जनिनह पु ाण ते यारे ॥ १७॥

मिहमा अपरपार तुहारी ।

जय जय जय िपदा भयहारी ॥ १८॥

पूिरत सकल ान िवाना ।

तुम सम अिधक न जगमे आना ॥ १९॥

तुमह जािन कछु रहै न शेषा ।

तुमह पाय कछु रहै न कलेसा ॥ २०॥

जानत तुमह तुमह है जाई ।

पारस परिस कुधातु सुहाई ॥ २१॥

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तुहरी शत िदपै सब ठाई ।

माता तुम सब ठौर समाई ॥ २२॥

ह न ाड घनेरे ।

सब गितवान तुहारे ेरे ॥२३॥

सकल सृट की ाण िवधाता ।

पालक पोषक नाशक ाता ॥ २४॥

मातेवरी दया त धारी ।

तुम सन तरे पातकी भारी ॥ २५॥

जापर कृपा तुहारी होई ।

तापर कृपा कर सब कोई ॥ २६॥

मंद बुि ते बुिध बल पाव ।

रोगी रोग रिहत हो जाव ॥ २७॥

दिर िमटै कटै सब पीरा ।

नाशै दूःख हरै भव भीरा ॥ २८॥

गृह लेश िचत िचता भारी ।

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नासै गायी भय हारी ॥२९॥

सतित हीन सुसतित पाव ।

सुख संपित युत मोद मनाव ॥ ३०॥

भूत िपशाच सबै भय खाव ।

यम के दूत िनकट नह आव ॥ ३१॥

जे सधवा सुिमर िचत ठाई ।

अछत सुहाग सदा शुबदाई ॥ ३२॥

घर वर सुख द लह कुमारी ।

िवधवा रह सय त धारी ॥ ३३॥

जयित जयित जगदं ब भवानी ।

तुम सम थोर दयालु न दानी ॥ ३४॥

जो सु सो दीा पावे ।

सो साधन को सफल बनावे ॥ ३५॥

सुिमरन करे सुिय बडभागी ।

लहै मनोरथ गृही िवरागी ॥ ३६॥

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अट िसि नविनिध की दाता ।

सब समथ गायी माता ॥ ३७॥

ऋिष मुिन यती तपवी योगी ।

आरत अथ िचितत भोगी ॥ ३८॥

जो जो शरण तुहारी आव ।

सो सो मन वांिछत फल पाव ॥ ३९॥

बल बुिध िवा शील वभाओ ।

धन वैभव यश तेज उछाओ ॥ ४०॥

सकल बढ उपज सुख नाना ।

जे यह पाठ करै धिर याना ॥

यह चालीसा भत युत पाठ करै जो कोई ।

तापर कृपा सनता गायी की होय ॥

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Gayatri Chalisa Lyrics in Devanagari PDF


% File name : gayatrii40.itx
% Category : chAlisA
% Location : doc\_z\_otherlang\_hindi
% Language : Hindi
% Subject : hinduism/religion
% Transliterated by : Sunder Hattangadi
% Proofread by : Sunder Hattangadi
% Description-comments : Devotional hymn to gayatrii Devi, of 40 verses
% Latest update : March 14, 2005
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