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आज हम आपको एक बड़ा ही विवित्र वकन्तु शक्तिशाली प्रयोग दे ने जा रहे हैं इसे वसद्ध करने से शत्रु बाधा

आपकेqq समक्ष (िाहे िह वकतनी भी बड़ी हो नही ीं ठहर पाएगी )

सबसे पहले प्रात: स्नान करके घर के मींवदर मे एक दीपक प्रज्ज्ववलत करें और सबसे पहले श्री गणे श जी का
ध्यान करें अब अपनी कुलदे िी का ध्यान करें अब अपने ईष्ट का ध्यान करें अब भगिान वशि जी को गु रु रूप
मे धारण करें अब मााँ काली का ध्यान करें ,

अपने दावहने हाथ मे एक तलिार या खड़ग रखें और सामने एक तरबू ज,खरबू जा, लौकी या गोभी रखें अब

ॐ नमो भगिवत िामुण्डे नरकींकगृ धोलू क पररिार सवहते श्मशानवप्रये नररूवधर माीं स िरू भोजन वप्रये वसद्ध
विद्याधर िृ न्द िक्तन्दत िरणे ब्रह्मे श विष्णु िरूण कुबे र भै रिी भै रिवप्रये इन्द्रक्रोध विवनगग त शरीरे द्वादशावदत्य िण्डप्रभे
अक्तथथ मुण्ड कपाल मालाभरणे शीघ्रीं दवक्षण वदवश आगच्छागच्छ मानय-मानय नुद-नुद अमुकीं (अपने शत्रु का नाम
लें ) मारय-मारय, िूणगय-िूणगय, आिे शयािे शय त्रु ट-त्रु ट, त्रोटय-त्रोटय स्फुट-स्फुट स्फोटय-स्फोटय महाभू तान
जृम्भय-जृम्भय ब्रह्मराक्षसान-उच्चाटयोच्चाटय भू त प्रेत वपशािान् मूच्छगय-मू च्छगय मम शत्रू न् उच्चाटयोच्चाटय शत्रू न्
िूणगय-िूणगय सत्यीं कथय-कथय िृ क्षेभ्यः सन्नाशय-सन्नाशय अकं स्तम्भय-स्तम्भय गरूड़ पक्षपाते न विषीं वनविग षीं कुरू-
कुरू लीलाीं गालय िृ क्षेभ्यः पररपातय-पररपातय शैलकाननमही ीं मदग य-मदग य मुखीं उत्पाटयोत्पाटय पात्रीं पूरय-पूरय भू त
भविष्यीं तय्सिं कथय-कथय कृन्त-कृन्त दह-दह पि-पि मथ-मथ प्रमथ-प्रमथ घघगर-घघग र ग्रासय-ग्रासय विद्रािय
– विद्रािय उच्चाटयोच्चाटय विष्णु िक्रेण िरूण पाशे न इन्द्रिज्रेण ज्वरीं नाशय – नाशय प्रविदीं स्फोटय-स्फोटय सिग
शत्रु न् मम िशीं कुरू-कुरू पातालीं पृत्यींतररक्षीं आकाशग्रहीं आनयानय करावल विकरावल महाकावल रूद्रशिे पूिग
वदशीं वनरोधय-वनरोधय पक्तश्िम वदशीं स्तम्भय-स्तम्भय दवक्षण वदशीं वनधय-वनधय उत्तर वदशीं बन्धय-बन्धय ह्ाीं ह्ीीं ॐ
बीं धय-बीं धय ज्वालामावलनी स्तक्तम्भनी मोवहनी मुकुट विवित्र कुण्डल नागावद िासु की कृतहार भू षणे मेखला
िन्द्राकगहास प्रभीं जने विद् यु त्स्फुररत सकाश साट्टहासे वनलय-वनलय हीं फट् -फट् विजृक्तम्भत शरीरे सप्तद्वीपकृते ब्रह्माण्ड
विस्ताररत स्तनयु गले अवसमुसल परशुतोमरक्षु ररपाशहले षु िीरान शमय-शमय सहस्रबाह परापरावद शक्ति विष्णु शरीरे
शींकर हृदये श्िरी बगलामुखी सिग दु ष्टान् विनाशय-विनाशय हीं फट् स्वाहा। ॐ ह्ल्ीीं बगलामुक्तख ये केिनापकाररणः
सक्तन्त ते षाीं िािीं मुखीं पदीं स्तम्भय-स्तम्भय वजह्ाीं कीलय – कीलय बु क्तद्धीं विनाशय-विनाशय ह्ीीं ॐ स्वाहा । ॐ ह्ीीं
ह्ीीं वहली-वहली अमुकस्य (शत्रु का नाम लें ) िािीं मुखीं पदीं स्तम्भय शत्रुीं वजह्ाीं कीलय शत्रु णाीं दृवष्ट मुवष्ट गवत मवत
दीं त तालु वजह्ाीं बीं धय-बीं धय मारय-मारय शोषय-शोषय हीं फट् स्वाहा।।

इस वदव्य स्तोत्र का जाप करें और उस अपने खडग के उसके से टु कड़े टु कड़े कर दें अब मााँ काली से प्राथगना
करें वक हे मााँ िो शत्रू जो मुझे वनत्य सता रहा है उससे मेरी रक्षा कर दें , अब इन टु कड़ोीं को एक काले रीं ग
के िस्त्र मे बाीं धकर वकसी िौराहे पर डाल दें और महाकाली के मींवदर जाकर एक मााँ के िरणोीं मे एक दीपक
प्रज्ज्ववलत कर दें और प्रसाद अवपगत कर दें ।

यह प्रिींड उपाय केिल तभी करना है जब शत्रु आपको हद से ज्यादा परे शान कर रहा हो अगर दु भाग िना या
बदले की भािना से करें गे तो नुकसान आपका होगा ।।

हमारा प्रयास सबका कल् याण ।।


जय श्री राम

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