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।। जै राधा ।।

जै जै ी सुकुमारी कुल द पक भए।


ग ौ पूरन चंद, अमंगल न स गए।।

फू यौ र सक समाज, भर् यौ हत भाव स ।

मान व व सुख स रता, उमही चाव स ।।

चाव स फूले ह जननी जनक, कुल मंडन भयौ।

अ वभाव सु महत कुल, व व रास रस जहँ र म र ौ।।

मुख भा मान चंद राका, नत नए गुन नमए।

जै जै ी सुकुमारी कुल व न भए।।

जै जै हत राधे श धर न पावन करन।


नजुु अ ल कौ सौ चाव, गूढ़ वर आचरन।।

सुंदर वदन वलो क, भ उर आय है ।

हत पू रत मुख वचन, जु सब न सुहाय है।।

सुहाय सब न क बचन रचन जु द प त रस स सने।


के ल कुमुद उदोत, र सक न के दय रस वरषन।।

भाव चाव स स यौ उ सव, मही फूली वै चरन।

जै जै हत राधे श धर न पावन करन।।

जै जै सुकुमारी सुत भ उर भरी।


आशय गहर गंभीर, री त हत आगरी।।

जुगल चरण ढ़ ी त, टहल रासे री।

राग भोग नत सुखद, लगाई रस झरी।।

रस झरी भरी आनंद व व रस स , र सक जन मन हरषन।

भली व ध नज भृ य पोषै,ै कृ य हत चत करषन।।

कूल का लद बस, हय म
े नागर नागरी।
जै जै सुकुमारी सुत भ उर भरी।।

जै जै ी जुत अ धकारी मन भाँ वते।


गौर याम च न चोज उपजाँवते।।
गाद शोभन वपु साधु जन य महा।
( ी) राधाव लभ चरन कमल मधु कर सदा।।

सदा सेवा द प त जन ाण तन मन र म रही।


गूढ़ भावा ढ़ ग त, यूँ जाए रसना स कही।।

( ी) ह रवंश पद क र त सलोनी ै अन य जु गाँवते।

जै जै ी जुत अ धकारी मन भाँ वते।।

" हत कुल कुमुद दवाकर तलकायत अ धकारी गो वा म ी हत राधे शलाल जू के जनम मंदल क ।। जै जै ी
ह रवंश।।

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