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Paryavaran ka asuntulan
मनुष्य की प्रकृलत पर लनभटरता आलद काि से ही चिी आ रही है । इसीलिए लवश्व की प्रत्येक
सभ्यता में प्रकृलत की पूजा का प्रावधान है । प्राचीन भारतीय समाज भी प्रकृलत के प्रलत बहुत ही
जागरूक था । वैलदक काि में प्रकृलत के लवलभन्न अंगों भूलम, पवटत, वृक्ष, नदी, जीव-जन्तु आलद
की पूजा की जाती थी ।
प्रकृलत के प्रलत मनुष्य की इस असीम श्रिा के कारण पयाट वरण स्वतः सुरलक्षत था । लवकास
की अंधी दौड में मनुष्य ने प्रकृलत को अत्यलधक नुकसान पहुुँ चाना शु रू कर लदया । एक सीमा
तक प्रकृलत उस नुकसान की भरपाई स्वयं कर सकती थी, िे लकन जब उसकी स्वतः पूलतट की
सीमा समाप्त हो गई तो पयाट वरण असंतुलित हो गया ।
इसके उत्तर में हम दे खेंगे लक समय के साथ मनुष्य की सोच में पररवतट न आ गया है । प्रकृलत
के साथ सहजीवन व सह-अद्धित्व की बात करने वािा मनुष्य कािान्तर में यह सोचने िगा
लक यह पृथ्वी केवि उसके लिए ही है ; वह इस पर जै से चाहे वैसे रहे ।
अपनी इस नवीन सोच के कारण वह प्रकृलत को पूजा व सम्मान की नहीं अलपतु उपभोग की
एक विु के रूप में दे खने िगा । उसके लवचारो में आया यह पररवतट न ही पयाट वरण असंतुिन
का आधार तै या लकया । पयाट वरण के असंतुिन के लिए अनेक कारण उत्तरदायी हैं । िे लकन
वे सभी कही न कहीं हमारी अलनयोलजत व अदू रदशी अथट नीलत से जुडे हुये हैं ।
उत्पादन के प्रक्रम में इनसे लवलभन्न हालनकारक अपलशष्ों का उत्सजट न होता है । ये पयाट वरण
को नुकसान पहुुँ चाने वािे सबसे प्रमुख कारक हैं । पररवहन के लवकास एक ने खलनज ते िों
उपभोग को बहुत बढा लदया है । इनके ज्विन से SO2, CO2, CO आलद जै सी हालनकरण गैसें
लनकिती है जो वायु प्रदू षण को फैिा रही हैं ।
साथ ही कुछ परम्परागत कारण, जै से- वनों का दोहन, अवैध कर्ाई आलद, भी पयाट वरण
संतुिन को लबगाडते हैं । वतटमान में आलथट क लवकास की होड में लवश्व के सभी राष्र अपने
औद्योलगक लवकास को हर कीमत पर जारी रखना चाहते हैं । इसके लिए वे पयाट वरण के लिए
अपनी लजम्मेदाररयों की उपेक्षा करने िगे हैं ।
लवकलसत राष्र अपने दालयत्वों को स्वीकार न करते हुये सारा दोष लवकासशीि राष्रों पर डाि
दे ते हैं । वहीं लवकासशीि दे श अपनी लवकास की मजबूररयों का हवािा दे ते है । इन कारणों
से पयाट वरण संरक्षण के लिए अन्तराट ष्रीय लचन्ताएुँ तो व्यक्त की जाती हैं िे लकन कोई ठोस
पहि नहीं हो पाती है ।
इसके उदाहरण के रूप में दे खा जा सकता है लक अमेररका क्ोर्ो संलध में शालमि नहीं हुआ
है । यलद लवश्व का सबसे सम्पन्न राष्र ही लकसी ऐसे प्रयास का लहस्सा नहीं है तो उसकी
सफिता स्वतः संलदग्ध हो जाती है ।
ग्लेलशयरों का लपघिना, अरब के रे लगिानों में भारी वषाट , ओजोन परत में लछद्र, बाढ, भूकम्प,
अम्ल वषाट , सदानीरा नलदयों का सूखना फसि चक्र का प्रभालवत होना जै व-लवलवधता में तीव्र
गलत से हास होना आलद असंतुलित पयाट वरण की ही अलभव्यद्धक्त है । इं र्र गवनटमेन्टि पैनि
ऑन क्लाइमेर् चेंज ने अपनी ररपोर्ट में बहुत ही गंभीर आशं कायें व्यक्त की हैं ।
सेवा में
प्रधानाचायट महोदय
राजलकय बुलनयादी लवधािय
गोलवंदपुर,धनबाद
श्रीमान जी
सलवनय लनवेदन है लक मै दशम कक्षा की छात्र हूॅॅं। मेरी लवाान में बहुत रूलच है । मैं
लवद्यािय की प्रयोगशािा में कुशि प्रलशक्षण पाना चाहता हूॅॅं। परं तु प्रयोगशािा में हमें न तो
अलधक समय रहने लदया जाता है और न ही पयाट प्त उपकरण और साधन हैं लजनके आधार
पर मैं कुछ प्रयोग कर सकूॅॅं और लवाान लवषय में लनपुणता पा सकूॅॅं।
आपसे प्राथ्रना है लक हमारी प्रयोगशािा को अत्याधुलनक बनाएॅॅं और उत्सु क छात्र—
छात्राओं को उलचत प्रलशक्षण् प्रदान करने की व्यवस्था करें । आपकी अती कृपा होगी।
धन्यवाद सलहत!
भवदीय
आकाश वमाट
कक्षा दशम 'ए'
लदनाक: 13—05—20014
Aap ke ilaake mein chemist ki dukan pe nakli dawai bheji ja rahi hai
Jila Swasthya Adhikari ko Patra likhe
सेवा में ,
महाशय
सलवनय लनवेदन है लक हमारे बाजार में आजकि बहुत सारी नकिी दवाइयां भेजी जा रही है
लजससे मनुष्य में बहुत प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हुई है तथा उत्पन्न समस्या के कारण उनकी
तबीयत बहुत ज्यादा ही लबगडती जा रही है उनका जीलवत रहना असंभव सा हो चुका है ।
अतः श्रीमान से लनवेदन है लक लजतनी जल्दी हो सके बाजार में नकिी दवाइयों को बंद की
जाए तथा उस पर रोक िगाई जाए एवं लजतनी भी कंपलनयां ऐसी कर रही हैं उन पर सब लदन
के लिए तािा िगाया जाए इसके लिए मैं श्रीमान का सदा आभारी रहूं गा।।
सच्चा नागररक