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पथ के दावेदार

शरतचंद्र चट्टोपाध्याय

Contents
अध्याय 1 .................................................................................................................................................................................. 1

अध्याय 2 ................................................................................................................................................................................ 29

अध्याय 3 ................................................................................................................................................................................ 56

अध्याय 4 ................................................................................................................................................................................ 81

अध्याय 5 .............................................................................................................................................................................. 112

अध्याय 6 .............................................................................................................................................................................. 138

अध्याय 7 .............................................................................................................................................................................. 166

अध्याय 8 .............................................................................................................................................................................. 191

अध्याय 9 .............................................................................................................................................................................. 217

अध्याय 1

ु एि. एस-सी. पास कर मिया, िेमकन तम्हारे


अपूव व के मित्र िजाक करते, ''तिने ु मसर पर इतनी िम्बी चोटी है। क्या चोटी

के द्वारा मदिाग िें मिजिी की तरंगें आती जाती रहती हैं ?''
अपूव व उत्तर देता, ''एि. एस-सी. की मकतािों िें चोटी के मवरुध्द तो कुछ मिखा नहीं मििता। मिर मिजिी की तरंगों के

संचार के इमतहास का तो अभी आरम्भ ही नहीं हुआ है। मवश्वास न हो तो एि. एस-सी. पढ़ने वािों से पूछकर देख िो।''


मित्र कहते, ''तम्हारे साथ तकव करना िेकार है।''

ु अकि नहीं आती।''


अपूव व हंसकर कहता, ''यह िात सच है, मिर भी तम्हें

अपूव व मसर पर चोटी रखे, कॉिेज िें छात्रवृमत्त और िेडि प्राप्त करके परीक्षाएं भी पास करता रहा और घर िें एकादशी

आमद व्रत और संध्या-पूजा आमद मनत्य-किव भी करता रहा। खेि के िैदानों िें िुटिाि, मकक्रेट, हॉकी आमद खेिने िें

उसको मजतना उत्साह था प्रात:काि िां के साथ गंगा स्नान करने िें भी उससे कुछ कि नहीं था। उसकी संध्या-पूजा

ु जी पढ़ाई-मिखाई तो सिाप्त हुई, अि मचिटा, किंडि िेकर संन्यासी हो


देखकर भौजाइयां भी िजाक करतीं, ििआ

जाओ। तिु तो मवधवा ब्राह्मणी से भी आगे िढ़े जा रहे हो।''

अपूव व हंसकर कहता, ''आगे िढ़ जाना आसान नहीं है भाभी! िाता जी के पास कोई िेटी नहीं है। उनकी उम्र भी कािी हो

ु है। अगर िीिार पड़ जाएंगी तो पमवत्र भोजन िनाकर तो मखिा सकूं गा। रही मचिटा, किंडि की िात, सो वह तो
चकी

कहीं गया नहीं?''


अपूव व िां के पास जाकर कहता, ''िां! यह तम्हारा ु नहीं खातीं। क्या
अन्याय है। भाई जो चाहें करें िेमकन भामभयां तो िगाव

तिु हिेशा अपने हाथ से ही भोजन िनाकर खाओगी?''

ु चावि उिाि िेन े िें िझे


िां कहती, ''एक जून एक िट्ठी ु कोई तकिीि नहीं होती। और जि हाथ-पांव काि नहीं करें ग े

ति तक िेरी िहू घर िें आ जाएगी।''

ु नहीं है-
अपूव व कहता, ''तो मिर एक ब्राह्मण पंमडत के घर से िहू, िंगवा क्यों नहीं देतीं? उसे मखिाने की सािर्थ्व िझिें


िेमकन तम्हारा कष्ट देखकर सोचता हूं मक चिो भाइयों के मसर पर भार िनकर रह लं गा।''

िां कहती, ''ऐसी िात ित कह रे अपूव,व एक िहू क्या, तू चाहे तो घर भर को मिठाकर मखिा सकता है।''

''कहती क्या हो िां? तिु सोचती हो मक भारतवर्व िें तम्हारे


ु पत्रु ज ैसा और कोई है ही नहीं?''

और यह कहकर वह तेजी से चिा जाता।


अपूव व के मववाह के मिए िोग िड़े भाई मवनोद को आकर परेशान करते। मवनोद ने जाकर िां से कहा, ''िां, कौन-सी

ु घर छोड़कर
मनष्ठावान जप-तपवािी िड़की है, उसके साथ अपने िेटे का ब्याह करके मकस्सा खत्म करो। नहीं तो िझे

भाग जाना पड़ेगा। िड़ा होने के कारण िोग सिझते हैं मक घर का िड़ा-िूढ़ा िैं ही हूं।''

पत्रु के इन वाक्यों से करुणाियी अधीर हो उठी। िेमकन मिना मवचमित हुए िधरु स्वर िें िोिी, ''िोग ठीक ही सिझते हैं

िेटा। उनके िाद तिु ही तो घर के िामिक हो। िेमकन अपूव व के संिध ु रूप और धन की
ं िें मकसी को वचन ित देना। िझे


आवश्यकता नहीं है। िैं स्वयं देख-सनकर तय करूंगी।''

''अच्छी िात है िां। िेमकन जो कुछ करो, दया करके जल्दी कर डािो,'' कहकर मवनोद रूठकर चिा गया।


स्नान घाट पर एक अत्यंत सिक्षणा कन्या पर कई मदन से करुणाियी की नजर पड़ रही थी। वह अपनी िां के साथ गंगा-

स्नान करने आती थी। उन्हीं की जामत की है, गप्तु रूप से वह पता िगा चकी
ु थीं। उनकी इच्छा थी मक अगर तय हो जाए

तो आगािी ि ैसाख िें ही मववाह कर डािें ।

तभी अपूव व ने आकर एक अच्छी नौकरी की सूचना दी।

ु नौकरी मकसने दे डािी?''


िां प्रसन्न होकर िोिी, ''अभी उस मदन तो पास हुआ है। इसी िीच तझे

अपूव व हंसकर िोिा, ''मजसे जरूरत थी।'' यह कहकर उसने सारी घटना मवस्तार से िताई मक उसके मप्रंमसपि साहि ने ही

उसके मिए यह नौकरी ठीक की है। वोथा कम्पनी ने ििाव के रंगनू शहर िें एक नया कायाविय खोिा है। वह मकसी


समशमक्षत ु को उस कायाविय का सारा उत्तरदामयत्व देकर भेजना चाहती है। रहने के मिए
और ईिानदार िंगािी यवक

िकान और चार-सौ रुपए िाहवार वेतन मििेगा और छ: िहीने के िाद वेतन िें दौ सौ रुपए की वृमध्द कर दी जाएगी।''

ु ही िां का िहं ु सूख गया, िोिी, ''पागि तो नहीं हो गया? तझे


ििाव का नाि सनते ु वहां भेजग ु ऐसे रुपए की
ूं ी? िझे

जरूरत नहीं है।''

ु न सही, िझे
अपूव व भयभीत होकर िोिा, ''तम्हें ु तो है। तम्हारी
ु आज्ञा से भीख िांगकर भी मजंदगी मिता सकता हूं िेमकन


जीवन भर ऐसा सयोग ु
मिर नहीं मििेगा। तम्हारे िेटे के न जाने से वोथा कम्पनी का काि रुके गा नहीं। िेमकन मप्रंमसपि

साहि िेरी ओर से वचन दे चकेु हैं । उनकी िज्जा की सीिा न रहेगी। मिर घर की हाित तो तिसे
ु मछपी नहीं है िां।''
ु हूं वह म्लेच्छों का देश है।''
''िेमकन सनती


अपूव व ने कहा, ''मकसी ने झ ूठ-िूठ कह मदया है। तम्हारा देश तो म्लेच्छों का देश नहीं है। मिर भी जो िनिानी करना चाहते

हैं उन्हें कोई रोक नहीं सकता।''

''िैंन े तो इसी ि ैसाख िें तेरा मववाह करने का मनश्चय मकया है।''

अपूव व िोिा, ''एकदि मनश्चय? अच्छी िात है। एक दो िहीने िाद जि तिु ििाओगी,
ु ु
िैं तम्हारी आज्ञा का पािन करने

आ जाऊं गा।''

ु मवचारों की अवश्य थी िेमकन िहुत ही िमध्दिती


करुणाियी िाहर से देखने िें पराने ु थी। कुछ देर िौन रहकर िोिी,

''जि जाना ही है तो अपने भाइयों की सहिमत भी िे िेना।''

यह कुि गोकुि दीधी के सप्रमसध्द


ु िंद्योपाध्याय घराने िें से है। वंश-परम्परा से ही वह िोग अत्यंत आचार परायण

ु ने जहां तक िांमछत और अपिामनत करना था


कहिाते हैं । िचपन से जो संस्कार उनके िन िें जग गए थे-पमत, पत्रों

मकया, िेमकन अपूव व के कारण वह सि कुछ सहन करती हुई इस घर िें रह रही थी। आज वह भी उनकी आंखों से दूर

अनजाने देश जा रहा है। इस िात को सोच-सोचकर उनके भय की सीिा नहीं रही। िोिी, ''अपूव व िैं मजतने मदन जीमवत

ु दु:ख ित देना िेटे,'' कहते-कहते उनकी आंखों से दो िूदं आंस ू टपक पड़े।
रहूं, िझे

अपूव व की आंखें भी गीिी हो उठीं। िोिा, ''िां, आज तिु इस िोक िें हो िेमकन एक मदन जि स्वगववास की पकार

ु अपने अपूव व को छोड़कर वहां जाना होगा। िेरे जाने के िाद तिु यहां ि ैठकर िेरे मिए आंस ू ित
आएगी, उस मदन तम्हें

िहाती रहना'', इतना कहकर वह दूसरी ओर चिा गया।

उस मदन सांझ के सिय, करुणाियी अपनी मनयमित संध्या-पूजा आमद कायों िें िन नहीं िगा सकीं। अपने िड़े िेटे के

किरे के दरवाजे पर चिी गईं। मवनोद कचहरी से िौटकर जिपान करने के िाद क्लि जाने की त ैयारी कर रहा था। िां को

देखकर एकदि चौंक पड़ा।

करुणाियी ने कहा, ''एक िात पूछने आई हूं, मवनू!''

''कौन-सी िात िां?''


यहां आने से पहिे िां अपनी आंखों के आंस ू अच्छी तरह पोंछकर आई थी, िेमकन उनका रुंधा गिा मछपा न रह सका।

सारी घटना और अपूव व के िामसक वेतन के िारे िें िताने के िाद उन्होंने मचंमतत स्वर िें पूछा, ''यही सोच रही हूं िेटा मक

इन रुपयों के िोभ िें उसे भेज ूं या नहीं।''

ु स्वर िें िोिा, ''िां, तम्हारे


मवनोद धीरज खो ि ैठा। शष्क ु अपूव व ज ैसा िड़का भारतवर्व िें और दूसरा नहीं है। इस िात को

हि सभी िानते हैं । िेमकन इस धरती पर रहकर इस िात को िाने मिना भी नहीं रह सकते मक पहिे चार सौ रुपए, मिर

छ: िहीने िें दो सौ रुपए और-वह इस िड़के से िहुत िड़ा है।''

ु हूं मक वह तो एकदि म्लेच्छों का देश है।''


िां दु:खी होकर िोिी, ''िेमकन सनती


मवनोद ने कहा, ''तम्हारा ु ही तो सारे संसार का अमिि सत्य नहीं हो सकता।''
जानना-सनना

पत्रु के अंमति वाक्य से िां अत्यंत दु:खी होकर िोिी, ''िेटा! जि से सिझदार हुई, इसी एक ही िात को सन-स
ु नकर
ु भी

ु चेत नहीं हुआ तो इस उम्र िें और मशक्षा ित दो। िैं यह जानने नहीं आई मक अपूव व का िूल्य मकतने रुपए है। िैं
जि िझे

के वि यह जानने आई थी मक उसे इतनी दूर भेजना उमचत होगा या नहीं।''

ु दु:खी करने के मिए यह नहीं कहा। यह सच है मक मपता


मवनोद ने दाएं हाथ से िां के चरणस्पशव करके कहा, ''िां, िैंन े तम्हें

जी के साथ ही हि िोगों का िेि ि ैठता था और उनसे हि िोगों ने सीखा है मक घर-गृहस्थी के मिए रुपया होना मकतना

आवश्यक है। इस हैट कोट को पहनकर मवनू इतना िड़ा साहि नहीं िन गया मक छोटे भाई को मखिाने के डर से उमचत-


अनमचत का मवचार न कर सके । िेमकन मिर भी कहता हूं मक उसे जाने दो। देश िें ज ैसी हवा िह रही है इससे वह कुछ

मदनों के मिए देश छोड़कर, कहीं दूसरी जगह जाकर काि िें िग जाए तो इसिें उसका भी महत होगा और पमरवार की

रक्षा भी हो जाएगी। तिु तो जानती हो िां, उस स्वदेशी आंदोिन के सिय मकतना छोटा था। मिर भी उसी के प्रताप से

मपता जी की नौकरी जाने की नौित आ गई थी।''

करुणाियी िोिी, ''नहीं, नहीं, अि अपूव व वह सि नहीं कर सकता।''

मवनोद िोिा, ''िां, सभी देशों िें कुछ िोग ऐसे होते हैं मजनकी जामत ही अिग होती है। अपूव व उसी जामत का है। देश की

मिट्टी ही इसके शरीर का िांस है, देश का जि ही इनकी धिमनयों का रक्त है। देश के मवर्य िें इनका मवश्वास कभी ित
करना िां, नहीं तो धोखा खाओगी। िमि अपने इस म्लेच्छ मवनू को, अपने उस चोटीधारी, गीता पढ़े एि. एस-सी. पास

अपूव व से अमधक ही अपना सिझना।''

पत्रु की इन िातों पर िां ने मवश्वास तो नहीं मकया िेमकन िन-ही-िन शंमकत हो उठी। देश के पमश्चिी मक्षमतज पर जो

भयानक िेघ के िक्षण प्रकट हुए हैं , उसे वह जानती थी। याद आया मक उस सिय तो अपूव व के मपता जीमवत थे, िेमकन

अि नहीं हैं ।

मवनोद ने िां के िन की िात जान िी। िेमकन क्लि जाने की जल्दी िें िोिा, ''अच्छा िां, वह कि ही तो जा नहीं रहा।

सि िोग ि ैठकर जो मनश्चय करें ग,े कर िें ग,े '' कहकर तेजी से िाहर मनकि गया।

अपने ब्रराह्मणत्व की िड़ी सतकव ता से रक्षा करते हुए अपूव व एक जियान द्वारा रंगनू के घाट पर पहुंच गया। वोथा कम्पनी के

े र का स्वागत मकया। तीस रुपए िहीने का एक किरा


एक दरिान और एक िद्रासी किवचारी ने अपने इस नए िैनज

ऑमिस के खचे से यथासम्भव सजा हुआ त ैयार है, यह सिाचार देन े िें उन िोगों ने देर नहीं की।


सिद्र-यात्रा ु
की झंझटों के िाद वह खूि हाथ-प ैर िै िाकर सोना चाहता था। ब्राह्मण साथ था। घर िें अत्यंत असमवधा

होते हुए भी इस भरोसे के आदिी को साथ भेजकर िां को िहुत कुछ तसल्ली मिि गई थी। के वि ब्राह्मण रसोइया ही नहीं

िमि भोजन िनाने के मिए कुछ चावि, दाि, घी, तेि मपसा हुआ िसािा यहां तक मक आल, परवि तक वह साथ देना

नहीं भूिी थीं।

गाड़ी आ जाने पर िद्रासी किवचारी तो चिे गए िेमकन रास्ता मदखाने के मिए दरिान साथ चि मदया। दस मिनट िें ही


गाड़ी जि िकान के सािने पहुंचकर रुकी तो तीस रुपए मकराए के िकान को देखकर अपूव व हतिमध्द-सा खड़ा रह गया।

िकान िहुत ही भद्दा है। छत नहीं है। सदर दरवाजा नहीं है। आंगन सिझो या जो कुछ, इस आने-जाने के रास्ते के

अिावा और कहीं तमनक भी स्थान नहीं है। एक संकरी काठ की सीढ़ी, रास्ते के छोर से आरम्भ होकर सीधी तीसरी

िंमजि पर चिी गई है। इस पर चढ़ने-उतरने िें कहीं अचानक प ैर मिसि जाए तो पहिे पत्थर के िने राजपथ पर मिर

अस्पताि िें और मिर तीसरी मस्थमत को न सोचना अच्छा है। नया आदिी है इसमिए हर कदि िड़ी सावधानी से रखते

हुए दरिान के पीछे-पीछे चिने िगा। दरिान ने ऊपर चढ़ने के िाद दाईं ओर िें दो िंमजिे के एक दरवाजे को खोिकर

िताया।
''साहि, यही आपके रहने का किरा है।''

दाईं ओर इशारा करके अपूव व ने पूछा, ''इसिें कौन रहता है?''

दरिान िोिा, ''एक चीनी साहि हैं ।''

अपूव व ने पूछा, ''ऊपर मतिंमजिे पर कौन रहता है?''

दरिान ने कहा, ''एक कािे-कािे साहि हैं ।''

किरें िें कदि रखते ही अपूव व का िन िहुत ही मखन्न हो उठा। िकड़ी के तख्ते िगाकर एक-दूसरे की िगि िें छोटी-िड़ी

तीन कोठमरयां िनी हुई हैं । इस िकान की सारी चीजें िकड़ी की हैं । दीवारें , िशव, छत और सीढ़ी-सभी िकड़ी की हैं ।

आग की याद आते ही संदहे होता है मक इतना िड़ा और सवाांग सदं ु र िाक्षागृह तो सम्भव है दुयोधन भी अपने पांडव

भाइयों के मिए न िनवा सका होगा। इसी िकान िें इष्ट-मित्र, आत्मीय-स्वजनों, िां और भामभयों आमद को छोड़कर रहना

पड़ेगा। अपने को संभािकर, थोड़ी देर इधर-उधर घूिकर हर चीज को देखकर तसल्ली हुई मक नि िें अभी तक पानी है।

स्नान और भोजन दोनों ही हो सकते हैं । अपूव व ने रसोइए से कहा, ''िहाराज, िां ने तो सभी चीजें साथ भेजी हैं । नहाकर

कुछ िना िो। ति तक िैं दरिान के साथ सािान ठीक कर लं ।''

रसोई िें कोयिा िौजूद था। िेमकन चूल्हे िें कामिख िगी थी। पता नहीं इसिें पहिे कौन रहता था और क्या पकाया

था? यह सोचकर उसे िड़ी घृणा हुई। िहाराज से िोिा, ''एक उठाने वािा दि चूल्हा होता तो िाहर वािे किरे िें ि ैठकर

कुछ दाि-चावि िना मिया जाता, िेमकन कौन जाने, इस देश िें मििेगा या नहीं।''

दरिान िोिा, ''प ैसे दीमजए, अभी दस मिनट िें िे आता हूं।''

वह रुपया िेकर चिा गया।

मतवारी रसोई िनाने की व्यवस्था करने िगा और अपूव व किरा सजाने िें िग गया। काठ के आिे पर कपड़े सजाकर रख

मदए। मिस्तर खोिकर चारपाई पर मिछा मदया। एक नया टे िि क्लाथ िेज पर मिछाकर उस पर मिखने का सािान और

कुछ पस्तकें
ु ु मखड़की के दोनों पल्लों को अच्छी तरह खोिकर उसके दोनों कोनों िें कागज
रख दी। उत्तर की ओर खिी

ठंू सकर सोने वािे किरे को सदं ु र िनाकर मिस्तर पर िेटकर सख


ु की सांस िी।
दरिान ने िोहे का चूल्हा िा मदया। तभी याद आया, िां ने मसर की सौगंध देकर पहुंचते ही तार करने को कहा था।

इसमिए दरिान को साथ िेकर चटपट िाहर मनकि गया। िहाराज से कहता गया मक एक घंटे पहिे ही िौट आऊं गा।


आज मकसी ईसाई त्यौहार के उपिक्ष िें छुट्टी थी। अपूव व ने देखा, यह गिी देशी-मवदेशी साहि-िेिों का िहल्ला है। यहां के

प्रत्येक घर िें मविायती उत्सव का कुछ-न-कुछ मचद्द अवश्य मदखाई दे रहा है। अपूव व ने पूछा, ''दरिान जी! सना
ु है, यहा

ु िें रहते हैं ?''


िंगािी भी तो िहुत हैं । वह मकस िहल्ले

ु ज ैसी कोई व्यवस्था नहीं है। मजसकी जहां इच्छा होती है, वहीं रहता है। िेमकन अिसर िोग
उसने िताया मक यहां िहल्ले

इसी गिी को पसंद करते हैं । अपूव व भी अिसर था। कट्टर महंदू होते हुए भी मकसी धिव के मवरुध्द भावना नहीं थी। मिर भी

ु करते हुए
स्वयं को ऊपर-नीचे, दाएं-िाएं, भीतर-िाहर, चारों ओर से ईसाई पड़ोमसयों को करीि देख अत्यंत घृणा अनभव

उसने पूछा, ''क्या मकसी दूसरे स्थान पर घर नहीं मिि सके गा?''

दरिान िोिा, ''खोजने से मिि सकता है। िेमकन इतने मकराए िें ऐसा िकान मििना कमठन है।''

अपूव व जि तार घर पहुंचा तो तारिािू खाना खाने चिे गए थे। एक घंटे प्रतीक्षा करने के िाद जि आए तो घड़ी देखकर

िोिे, ''आज छुट्टी है। दो िजे ऑमिस िंद हो गया।''

अपूव व ऊं ची आवाज िें िोिा, ''यह अपराध आपका है। िैं एक घंटे से ि ैठा हूं।''

िािू िोिा, ''िेमकन िैं तो मसिव दस मिनट हुए यहां से गया हूं।''

अपूव व ने उसके साथ झगड़ा मकया। झ ूठा कहा, मरपोटव करने की धिकी दी। िेमकन मिर िेकार सिझकर चपु हो गया।

भूख, प्यास और क्रोध से जिता हुआ िड़े तारघर पहुंचा। वहां से अपने मनमववघ्न पहुंचने का सिाचार जि िां को भेज मदया

ति उसे संतोर् हुआ।

दरिान ने मवनय भरे स्वर िें कहा, ''साहि, हिको भी िहुत दूर जाना है।''

अपूव व ने उसे छुट्टी देन े िें कोई आपमत्त नहीं की। दरिान के चिे जाने के िाद घूिते-घूिते, गमियों का महसाि करते-करते,

अंत िें िकान के सािने पहुंच गया।

उसने देखा-मतवारी िहाराज एक िोटी िाठी पटक रहे हैं और न जाने क्या अंट-शंट िकते-झकते जा रहे हैं ।
ु से िीच-िीच िें
े ी िें इसका उत्तर भी दे रहे हैं और घोड़े के चािक
साथ ही एक-दूसरे व्यमक्त मतिंमजिे से महंदी और अंग्रज

ु रहा है। मशष्टाचार के


सट-सट का शब्द भी कर रहे हैं । मतवारी से नीचे उतरने को कह रहे हैं और वह उनको ऊपर ििा

इस आदान-प्रदान िें मजस भार्ा का प्रयोग हो रहा है उसे न कहना ही उमचत है।

अपूव व ने सीढ़ी पर से तेजी से ऊपर चढ़कर मतवारी का िाठीवािा हाथ जोर से पकड़कर कहा, ''क्या पागि हो गया है?''

इतना कहकर उसे ठे िता हुआ घर के अंदर िे गया। अंदर आकर वह क्रोध, क्षोभ और दु:ख से रोते हुए िोिा, ''यह

देमखए, उस हरािजादे ने क्या मकया है।''

उस कांड को देखते ही अपूव व की थकान, नींद, भूख और प्यास एकदि हवा हो गई। मखचड़ी के हांडी से अभी तक भाप

तथा िसािे की भीनी-भीनी गंध मनकि रही है, िेमकन उसके ऊपर, नीचे, आस-पास, चारों ओर पानी िै िा हुआ है।

ु मिछौना िैिे कािे पानी से सन गया है। कुसी पर पानी, टे िि पर पानी,


दूसरे किरे िें जाकर देखा, उसका साि-सथरा


यहां तक मक पस्तकें भी पानी िें भीग गई हैं ।

अपूव व ने पूछा, ''यह सि क्या हुआ?''

व वणवन करते हुए िताया-


मतवारी ने दुघवटना का मवस्तारपूवक

''अपूव व के जाने के कुछ देर िाद ही साहि घर िें आए। आज ईसाइयों का कोई त्यौहार है। पहिे गाना-िजाना और मिर

नृत्य आरम्भ हुआ और जल्दी ही दोनों के संयोग से यह शास्त्रीय संगीत इतना असहाय हो उठा मक मतवारी को आशंका

होने िगी मक िकड़ी की छत साहि का इतना आनंद शायद सहन न कर पाएगी तभी रसोई के पास ऊपर से पानी मगरने

िगा? भोजन नष्ट हो जाने के भय से मतवारी ने िाहर जाकर इसका मवरोध मकया। िेमकन साहि चाहे कािा हो या गोरा-

देशी आदिी की ऐसी अभद्रता नहीं सह सकता। वह उत्तेमजत हो उठा और देखते-ही-देखते अंदर जाकर िाल्टी-पर-िाल्टी

पानी ढरकाना आरम्भ कर मदया। इसके िाद जो कुछ हुआ वह अपूव व ने अपनी आंखों से देख मिया।

कुछ देर िौन रहकर अपूव व िोिा, ''साहि के किरे िें क्या कोई और नहीं है।''

''शायद कोई हो। कोई उसे मपयक्कड़ सािे के साथ दांत मकट-मकटकर तो कर रहा था।'' अपूव व सिझ गया मक मकसी ने उसे

रोकने िें कोई कसर नहीं छोड़ी है। िेमकन हि िोगों के दुभावग्य को मति भर भी कि नहीं कर सका।

अपूव व चपु रहा। जो होना था हो चका


ु था। िेमकन अि शांमत थी।
अपूव व ने हंसने की कोमशश करके कहा, ''मतवारी, ईश्वर की इच्छा न होने पर इसी तरह िहं ु का ग्रास मनकि जाता है।

आओ, सिझ िें मक हि िोग आज भी जहाज िें ही हैं । मचउड़ा-मिठाई अि कुछ िची है। रात िीत ही जाएगी।''

मतवारी ने मसर महिाकर हुंकारी भरी और उस हांडी की ओर मिर एक िार हसरत भरी नजरों से देखकर मचउड़ा-मिठाई

िेन े के मिए उठ खड़ा हुआ। सौभाग्य से खाने-पीने के सािान का संदूक रसोईघर के कोने िें रखा था। इसमिए ईसाई का

पानी इसे अपमवत्र नहीं कर पाया था।

ु हुए मतवारी ने रसोईघर से कहा, ''िािू, यहां तो रहना हो नहीं सके गा।''
ििाहार जटाते

अपूव व अन्यिनस्क भाव से िोिा, ''हां, िगता तो ऐसा ही है।''


मतवारी उसके पमरवार का पराना नौकर है। आते सिय उसका हाथ पकड़कर िां ने जो िातें सिझाकर िताई थीं, उन्हीं को

याद कर उमद्वग्न स्वर िें िोिा, ''नहीं िािू, इस घर िें अि एक मदन भी नहीं। क्रोध िें आकर काि अच्छा नहीं हुआ। िैंन े

साहि को गामियां दी हैं ।''

अपूव व ने कहा, ''उसे गामियां न देकर िारना ठीक था।''

मतवारी िें अि क्रोध के स्थान पर सद्बमु ध्द प ैदा हो रही थी। हि िोग िंगािी हैं ।

अपूव व िौन ही रहा। साहस पाकर मतवारी ने पूछा, ''ऑमिस के दरिान जी से कहकर कि सवेरे ही क्या इस घर को छोड़ा

नहीं जा सकता? िेरा तो मवचार है मक छोड़ देना ठीक होगा।''


अपूव व ने कहा, ''अच्छी िात है, देखा जाएगा।'' दुजवनों के प्रमत उसे कोई मशकायत नहीं है। सिय नष्ट न करके चपचाप

जगह छोड़ देना ही उसने उमचत सिझ मिया है। िोिा, ''अच्छी िात है, ऐसा ही होगा। तिु भोजन आमद का प्रिंध

करो।''

''अभी करता हूं िािू!'' कहकर कुछ मनमश्चंत होकर अपने काि िें िग गया।

िेमकन उसी की िातों का सूत्र पकड़कर, ऊपर वािे मिरंगी का दुवव्यवहार याद कर अचानक अपूव व का सिूचा िदन क्रोध से


जिने िगा। िन िें मवचार आया मक हि िोगों ने चपचाप, मिना कुछ सोचे-सिझे इसे सहन कर िेना ही अपना कत्तवव्य

सिझ मिया है। इसीमिए दूसरों को चोट पहुंचाने का अमधकार स्वयं ही दृढ़ तथा उग्र हो उठा है। इसीमिए तो आज िेरा

नौकर भी िझको तरंु त भागकर आत्महत्या करने का उपदेश देन े का साहस कर रहा है। मतवारी िेचारा रसोईघर िें

ििाहार ठीक कर रहा था। वह जान भी न सका। उसकी िाठी िेकर अपूव व मिना आहट मकए धीरे-धीरे िाहर मनकिा

और सीमढ़यों से ऊपर चढ़ गया।

दूसरी िंमजि पर साहि के िंद द्वार को खटखटाना आरम्भ मकया। कुछ देर िाद एक भयभीत नारी कं ठ ने अंग्रज
े ी िें कहा,

''कौन है?''

''िैं नीचे रहता हूं और उस आदिी को देखना चाहता हूं।''

''क्यों?''


''उसे मदखाना है मक उसने िेरा मकतना नकसान मकया है।''

''वह सो रहे हैं ।''

अपूव व ने कठोर स्वर िें कहा, ''जगा दीमजए। यह सोने का सिय नहीं है। रात को सोते सिय िैं तंग करने नहीं आऊं गा।

िेमकन इस सिय उसके िहं ु से उत्तर सने


ु मिना नहीं जाऊं गा।''

ु और न ही कोई उत्तर ही आया। दो-एक मिनट प्रतीक्षा करने के िाद अपूव व ने मिर मचल्लाकर
िेमकन न तो द्वार ही खिा

ु जाना है, उसे िाहर भेमजए।''


कहा, ''िझे

इस िार वह मवनम्र और िधरु नारी स्वर द्वार के सिीप सनाई


ु मदया, ''िैं उनकी िड़की हूं। मपताजी की ओर से क्षिा

िांगती हूं। उन्होंने जो कुछ मकया है, सचेत अवस्था िें नहीं मकया। आप मवश्वास रमखए, आपकी जो हामन हुई है कि हि

उसे यथाशमक्त पूरी कर देंग।े ''

िड़की के स्वर से अपूव व कुछ निव पड़ गया। िेमकन उसका क्रोध कि नहीं हुआ। िोिा, ''उन्होंने ििवर की तरह िेरा िहुत


नकसान ु िझसे
मकया। उसे भी अमधक उत्पात मकया है। िैं मवदेशी आदिी हूं। िेमकन आशा करता हूं मक कि सिह ु स्वयं

मििकर इस झगड़े को सिाप्त कर िेन े की कोमशश करें ग।े ''

िड़की ने कहा, ''अच्छी िात है।'' मिर कुछ देर चपु रहकर िोिी, ''आपकी तरह हि िोग भी यहां मििुि नए हैं । कि

शाि को ही िािपीन से आए हैं ।''


और कुछ न कहकर अपूव व धीरे-धीरे उतर आया। देखा, मतवारी भोजन की व्यवस्था िें ही िगा था।

थोड़ा-सा खा-पीकर अपूव व सोने के किरे िें आकर भीगे तमकए को ही िगाकर सो गया। प्रवास के मिए घर से िाहर पांव


रखने के सिय से िेकर अि तक मवपमत्तयों की सीिा नहीं रही थी। सख-शां
मत हीन, मचंता ग्रस्त िन िें एक ही िात िार-

िार उठ रही थी-उस ईसाई िड़की की िात! वह नहीं जानता मक देखने िें वह कै सी है। क्या उम्र है, कै सा स्वभाव है।

े ों ज ैसा नहीं है और जो भी हो, ईसाई के नाते स्वयं को राजा की


िेमकन इतना जरूर जान गया मक उसका उच्चारण अंग्रज

ु की है।
जामत का सिझकर मपता की भांमत घिंडी नहीं है। अपने मपता के अन्याय तथा उत्पात के मिए उसने िज्जा अनभव


उसकी भयभीत, मवनम्र स्वर िें क्षिा-याचना, उसे अपने ककव श तथा तीव्र अमभयोग की तिना िें असंगत-सी िगी।

उसका स्वभाव उग्र नहीं है। कड़ी िात कहने िें उसे महचक होती है।

तभी मिहारी का िोटा कं ठ स्वर उसके कानों तक पहुंचा। वह कह रहा था, ''नहीं िेि साहि यह आप िे जाइए। िािू

भोजन कर चकेु । हि िोग यह सि छूते तक नहीं।''

ु की कोमशश करने िगा। मतवारी िोिा, ''कौन


अपूव व उठ ि ैठा और उस ईसाई िड़की के शब्दों को कान िगाकर सनने

कहता है मक हिने भोजन नहीं मकया? यह आप िे जाइए। िािू सनेंु ग े तो नाराज होंगे।''

अपूव व ने धीरे-धीरे िाहर आकर पूछा, ''क्या िात है मतवारी?''

े ों ज ैसा
िड़की जल्दी से पीछे हट गई। शाि हो चिी थी िेमकन कहीं भी रोशनी नहीं जिी थी। िड़की का रंग अंग्रज

सिे द नहीं है िेमकन खूि साि है। उम्र उन्नीस-िीस या कुछ अमधक होगी। कुछ िं िी होने से दुििी जान पड़ती है। ऊपरी

होंठ के नीचे सािने के दोनों दांतों को कुछ ऊं चा न सिझा जाए तो चेहरे की िनावट अच्छी है। प ैरों िें चप्पि, शरीर पर

भड़कीिी-सी साड़ी, चाि-ढाि कुछ िंगािी और कुछ पारसी जान पड़ती है। एक डािी िें कुछ नारंगी, नाशपाती, दो-

ु सािने धरती पर रखे हैं ।


चार अनार और अंगरू का एक गच्छा

अपूव व ने पूछा, ''यह सि क्या है?''

े ी िें धीरे से उत्तर मदया - ''आज हिारा त्यौहार है। िां ने भेजा है। आज तो आपका खाना भी नहीं
िड़की ने अंग्रज

हुआ।''

अपूव व ने कहा, ''अपनी िां को हि िोगों की ओर से धन्यवाद देना और कहना मक हिारा खाना हो गया है।''
िड़की चपु थी। अपूव व ने पूछा, ''हिारा खाना नहीं हुआ, आपको यह कै स े पता िगा?''

िड़की ने िमज्जत स्वर िें कहा, ''इसीमिए तो झगड़ा हुआ था।''

ु है।''
अपूव व िोिा, ''नहीं। वास्तव िें हिारा खाना हो चका

िड़की िोिी, ''हो सकता है। िेमकन यह तो िाजार के िि हैं , इनिें कोई दोर् नहीं है।''

अपूव व सिझ गया मक उसे मकसी प्रकार शांत करने के मिए दोनों अपमरमचत मस्त्रयों के उद्वेग की सीिा नहीं है। कुछ देर

पहिे वह अपने स्वभाव का जो पमरचय दे आया है, उससे न जाने क्या होगा? यह सोचकर उसे प्रसन्न करने के मिए ही तो

यह भेंट िेकर आई है इसमिए िीठे स्वर िें िोिा, ''नहीं, कोई दोर् नहीं है।'' मिर मतवारी से िोिा, ''िे िो, इनिें कोई

दोर् नहीं है िहाराज।''

ु यह सि करने के मिए िार-


मतवारी इससे प्रसन्न नहीं हुआ। िोिा, ''रात िें हि िोगों को जरूरत नहीं है। और िां ने िझे

िार िना मकया है। िेि साहि, आप इन्हें िे जाइए। हिें जरूरत नहीं है।''

िां ने िना मकया है या कर सकती हैं , इसिें असम्भव कुछ भी नहीं था और वर्ों के मवश्वसनीय मतवारी को इन सि झंझटों

ु कर सकती हैं , यह भी सम्भव है। अभी संकुमचत, िमज्जत और अपमरमचत


को सौंपकर उसका अमभभावक भी वह मनयक्त

ु ं को अस्पृश्य कहकर अपिामनत


िड़की, जो उसे प्रसन्न करने उसके द्वार पर आई है, उसे उपहार की सािान्य वस्तओ

करने को भी वह उमचत न िान सका। मतवारी ने कहा, ''यह हि सि नहीं छुएंग े िेि साहि। इन्हें उठा िे जाइए। िैं इस

स्थान को धो डालं ।''

िड़की कुछ देर चपचाप


ु खड़ी रही। मिर डािी उठाकर धीिे-धीिे चिी गई।

ु से िेंक तो सकते थे।''


अपूव व ने धीिे और रूखे स्वर िें कहा, ''न खाते, िेमकन िेकर चपके

मतवारी िोिा, ''नष्ट करने का क्या िाभ होता िािू?''

''िूख व, गंवार कहीं का,'' इतना कहकर अपूव व सोने चिा गया। मिस्तर पर िेटकर पहिे मतवारी के प्रमत क्रोध से उसका

सम्पूण व शरीर जिने िगा। िेमकन इस मवर्य िें वह मजतना ही सोचता था, िगता था मक शायद यह ठीक ही हुआ मक

उसने स्पष्ट कहकर िौटा मदया। उसे अपने िड़े िािा की याद आ गई। उस मनष्ठावान ब्राह्मण ने एक मदन भोजन करने से
ु दूर करने के मिए एक चतराई
िना कर मदया था। करुणाियी ने पमत से भाई का िन-िटाव ु का सहारा िेना चाहा, िेमकन

दमरद्र ब्राह्मण ने हंसकर कहा- ''नहीं िहन, यह सि नहीं हो सकता। जीजा जी क्रोधी व्यमक्त हैं । इस अपिान को वह सह न

पाएंग।े हो सकता है, तम्हें ु व कहा करते थे, 'िरारी,


ु भी इसिें भागीदार िनना पड़े। िेरे स्वगीय गरुदे ु सत्य-पािन िें दु:ख

है। वंचना और प्रताणना के िीठे पथ से वह कभी नहीं आता।' िैं मिना भोजन मकए चिा जाऊं गा। यही उमचत है िहन।''

इस घटना के कारण करुणाियी ने अनेक दु:ख सहे िेमकन भाई को कभी दोर् नहीं मदया। इसी िात को याद कर अपूव व के

िन िें िार-िार यह िात उठने िगी, ''उमचत ही हुआ। मतवारी ने ठीक ही मकया।''

ु िाजार घूि आए। िेमकन न जा सका। क्योंमक ऊपर वािा साहि कि क्षिा-याचना करने
अपूव व की इच्छा थी मक सिह

आएगा, इसका कुछ ठीक नहीं था। वह आएगा अवश्य, इसिें कोई संदहे नहीं था। आज जि उसका नशा टूटेगा ति

ु था। नींद
उसकी पत्नी और िेटी, उसे मकसी भी दशा िें छोडेंगी नहीं। क्योंमक उनके द्वारा ऐसा संकेत वह कि ही पा चका

टूटने के िाद से वह िड़की कई िार याद आई। नींद िें भी उसकी भद्रता, सौजन्यता और उसका मवनम्र कं ठ स्वर कानों िें

एक पमरमचत सरु की भांमत आते-जाते रहे। अपने शरािी मपता के दुराचार के कारण उस िड़की की िज्जा की सीिा नहीं

ु कर रहा था।
थी। िूख व मतवारी के रूखे व्यवहार से अपूव व भी िज्जा का अनभव

अचानक मसर के ऊपर पड़ोमसयों के जाग उठने की आहट आई और प्रत्येक आहट से वह आशा करने िगा मक साहि

उसके द्वार पर आकर खड़ा है। क्षिा तो वह करेगा ही, यह मनमश्चत है। िेमकन मवगत मदन की वीभत्सता, क्या करने से

सरि और सािान्य होकर मवर्ाद का मचद्द मिटा देगी? यही उसकी मचंता का मवर्य था। आशा और उद्वेग के साथ प्रतीक्षा

ु साहि नीचे उतर रहे हैं । उनके पीछे भी दो प ैरों का शब्द सनाई
करते-करते जि नौ िज गए तो सना, ु मदया। थोड़ी देर िाद

ही उनके द्वार का िोहे का कड़ा जोर से िज उठा। मतवारी ने आकर कहा, ''िािू, ऊपर वािा साहि कड़ा महिा रहा है।''

अपूव व ने कहा, ''दरवाजा खोिकर उनको आने दो।''

ु ''तम्हारा
मतवारी के दरवाजा खोिते ही अपूव व ने अत्यंत गम्भीर आवाज सनी, ु साहि कहां है?''

ु नहीं पड़ा।
उत्तर िें मतवारी ने कहा, ठीक-ठाक सनाई

स्वर से अपूव व चौंक पड़ा, िाप रे! यह क्या सािान्य कं ठ स्वर है?
सोचा, शायद साहि ने सवेरे उठते ही शराि पी िी है। इसमिए इस सिय जाना उमचत है या नहीं। सोचने से पहिे ही


मिर उधर से आदेश हुआ, ''ििाओ जल्दी।''

अपूव व धीरे-धीरे पास जाकर खड़ा हो गया। साहि ने एक पि उसे ऊपर से नीचे तक देखकर अंग्रज
े ी िें पूछा, ''अंग्रज
े ी

जानते हो?''

''जानता हूं।''

''िेरे सो जाने के िाद कि तिु ऊपर गए थे?''

''जी हां।''

''िाठी ठोंकी थी? अनामधकार प्रवेश करने के मिए दरवाजा तोड़ने की कोमशश की थी?''

ु होता तो तिु किरे िें घसकर


अपूव व मवस्मय के िारे स्तब्ध हो गया। साहि ने कहा-''संयोग से दरवाजा खिा ु िेरी पत्नी या

िेटी पर आक्रिण कर ि ैठते। इसीमिए िेरे जागते रहने पर नहीं गए?''

अपूव व ने धीिे स्वर से कहा, ''आप तो सो रहे थे, कै स े पता चिा?''

ु िताया है। उसे तिने


साहि ने कहा, ''िेरी िड़की ने िझे ु गािी भी दी।''

इतना कहकर उसने िगि िें खड़ी िड़की की ओर उंगिी से इशारा मकया, यह वही िड़की है। कि भी इसे अपूव व अच्छी

तरह नहीं देख पाया था। आज भी साहि के मवशाि शरीर की आड़ िें उसकी साड़ी की मकनारी को छोड़ और कुछ भी

नहीं देख पाया। मसर महिाकर उसने मपता की हां-िें-हां मििाई या नहीं, यह भी सिझ िें नहीं आया। िेमकन इतना

अवश्य सिझ गया मक यह िोग भिे आदिी नहीं हैं । सारे िाििे को जान-िूझकर मवकृ त और उिटा करके मसध्द करने

का प्रयत्न कर रहे हैं । इसमिए िहुत सतकव रहने की जरूरत है।

ु िात िारकर धके ि देता। तम्हारे


साहि ने कहा, ''िैं जाग रहा होता तो तम्हें ु िहं ु िें एक भी दांत साितु न रहने देता।

ु हूं। इसमिए पमिस


िेमकन यह अवसर अि खो चका ु के हाथ से जो कुछ न्याय मििेगा उतना ही िेकर संतष्टु होना

पड़ेगा। हि िोग जा रहे हैं । तिु इसके मिए त ैयार रहना।''

अपूव व ने मसर महिाकर कहा, ''अच्छी िात है।''-िेमकन उसका िहं ु उतर-सा गया।
साहि ने िड़की का हाथ पकड़कर कहा, ''चिो!'' और सीढ़ी से उतरते-उतरते िोिा, ''िैंन े तो पहिे ही कहा था िािू, मक

जो होना था हो गया। अि उन्हें और छेड़ने की जरूरत नहीं है। वह साहि और िेि ठहरे।''

अपूव व ने कहा, ''साहि-िेि ठहरे तो इससे क्या होता है?''


मतवारी ने कहा, ''यह िोग पमिस िें जो गए हैं ।''

अपूव व ने कहा, ''जाने से क्या होता है?''

मतवारी ने व्याकुि होकर कहा, ''िड़े िािू को तार कर दूं? छोटे िािू, उन्हें ििा
ु ही मिया जाए।''

ु ऑमिस जाना है,'' इतना


''क्या पागि हो गया है मतवारी जा उधर देख। खाना सारा जि गया होगा। साढ़े दस िजे िझे

कहकर वह अपने किरे िें चिा गया। मतवारी रसोईघर िें चिा गया। िेमकन रसोई िनाने से िेकर िािू के ऑमिस जाने

तक का सभी कुछ उसके मिए अत्यंत अथवहीन हो गया।

वह करुणाियी के हाथ का िना हुआ आदिी है इसमिए िन मकतना ही दुमश्चिा ग्रस्त क्यों न हो, हाथ के काि िें कहीं

भूि-चूक नहीं होती। यथासिय भोजन करने ि ैठकर अपूव व ने उसे उत्सामहत करने के अमभप्राय से भोजन की कुछ िढ़ा-

चढ़ाकर प्रशंसा की तथा दो-एक ग्रास िहं ु िें डािकर िोिा, ''मतवारी, आज का भोजन तो िानो अिृत ही िनाया है। कई

मदनों से अच्छी तरह भोजन नहीं मकया था। कै सा डरपोक आदिी है तू? िां ने भी अच्छे आदिी को साथ भेजा है।''

मतवारी ने कहा, ''हूं।''

अपूव व ने उसकी ओर देखकर हंसते हुए कहा, ''िहं ु एकदि हांडी ज ैसा क्यों िना रखा है? उस हरािजादे मिरंगी की धिकी


देखी? पमिस िें जा रहा है। अरे जाता क्यों नहीं? जाकर क्या करेगा, सनेंु तो? तेरा कोई गवाह है?''

मतवारी ने कहा, ''िेि साहि को भी क्या गवाही की जरूरत है?''

अपूव व ने कहा, ''उनके मिए क्या कोई दूसरे मनयि-कानून हैं मिर वह िेि साहि कै स?े रंग तो िेरे पॉमिश मकए हुए जूत े की

ही तरह है?''

मतवारी िौन रहा।


कुछ देर चपचाप
ु भोजन करने के िाद अपूव व ने िहं ु ऊपर उठाया। कहा, ''और वह िड़की भी मकतनी दुष्ट है। कि इस

तरह आई ज ैसे भीगी मिल्ली हो। और ऊपर जाते ही इतनी झ ूठ-िूठ िातें जोड़ दी।''

मतवारी िोिा, ''ईसाई है न?''

''जानते हो मतवारी, जो असिी साहि हैं वह इनसे घृणा करते हैं । एक िेज पर ि ैठकर कभी नहीं मखिाते। चाहे मकतना ही

हैट-कोट पहनें और मगरजे िें जाएं।''

मतवारी ने ऐसा कभी नहीं सोचा था। छोटे िािू का ऑमिस जाने का सिय हो रहा है। अि घर िें अके िे उसका सिय


कै स े कटे गा? साहि थाने गया है। हो सकता है, िौटकर दरवाजा तोड़ डािे। हो सकता है, पमिस साथ िेकर आए। हो

सकता है उसे िांधकर िे जाए। क्या होगा? कौन जाने।

अपूव व भोजन करने के िाद कपड़े पहन रहा था। मतवारी ने किरे का पदाव हटाकर कहा, ''देखकर जाते तो अच्छा होता।''

''क्या देखकर जाता?''

''उनके िौटने की राह....।''

अपूव व ने कहा, ''यह कै स े हो सकता है? आज िेरी नौकरी का पहिा मदन है। िोग क्या सोचेंग?े ''

मतवारी चपु रह गया।

अपूव व ने कहा, ''तू दरवाजा िंद करके मनमश्चंत ि ैठा रह, िैं जल्दी ही िौटूंगा। कोई दरवाजा नहीं तोड़ सकता।''

मतवारी ने कहा, ''अच्छा।'' िेमकन उसने एक िम्बी सांस दिा रखने की जो कोमशश की उसे अपूव व ने देख मिया। िाहर

जाते सिय मतवारी ने भारी गिे से कहा, ''प ैदि ित जाना छोटे िािू! मकराए की गाड़ी िे िेना।''

''अच्छा,'' कहकर अपूव व नीचे उतर गया। उसके चिने का ढंग ऐसा था, ज ैसे नई नौकरी के प्रमत उसके िन िें कोई हर्व न

हो।

े र रोजेन साहि उस सिय ििाव िें ही थे। रंगनू कायाविय उन्होंने ही स्थामपत
वोथा कम्पनी के भागीदार पूवीय क्षेत्र के िैनज

मकया था। उन्होंने अपूव व का िड़े आदर से स्वागत मकया। उसके स्वरूप, िातचीत तथा यूमनवमस वटी की मडग्री देखकर िहुत

ही प्रसन्न हुए। सभी किवचामरयों को ििाकर पमरचय कराया और दो-तीन िहीने िें व्यवसाय का सम्पूण व रहस्य मसखा देन े

का आश्वासन मदया। िातचीत, पमरचय तथा नए उत्साह से उसकी िानमसक ग्िामन कुछ सिय के मिए मिट गई। एक

व्यमक्त ने उसे मवशेर् रूप से आकमर्वत मकया। वह था ऑमिस का एकाउन्टेन्ट। ब्राह्मण है। नाि है रािदास तिविकर।

आय ु िगभग उसके मजतनी ही या कुछ अमधक हो सकती है। दीघव आकृ मत, िमिष्ठ, गौरवणव है। पहनावे िें पाजािा, िम्बा

े ी िें िातचीत करते हैं , िेमकन अपूव व के साथ


कोट, मसर पर पगड़ी, िाथे पर िाि चंदन का टीका। िड़ी अच्छी अंग्रज

उन्होंने पहिे से ही महंदी िें िोिना आरम्भ कर मदया। अपूव व महंदी अच्छी तरह नहीं जानता। िेमकन जि देखा मक वह

महंदी छोड़कर और मकसी िें उत्तर नहीं देता तो उसने भी महंदी िोिना आरम्भ कर मदया। अपूव व ने कहा, ''यह भार्ा िैं नहीं

जानता। िोिने िें िहुत गिमतयां होती हैं ।''

ु भी होती हैं । क्योंमक यह िेरी भी िातृभार्ा नहीं है।''


रािदास िोिा, ''गिमतयां तो िझसे

अपूव व िोिा, ''अगर पराई भार्ा िें ही िातचीत करनी है तो अंग्रज


े ी िें क्या दोर् है?''

े ी िें तो हि िोग और अमधक गिमतयां करते हैं । आप अंग्रज


रािदास िोिा, ''अंग्रज े ी िें िोिा करें । िेमकन अगर िैं महंदी

िें उत्तर दूंगा, क्षिा कर दीमजएगा।''

ु क्षिा करोगे।''
अपूव व िोिा, ''िैं भी महंदी िें ही िोिने की चेष्टा करूंगा। िेमकन गिती होने पर आप भी िझे

े र के किरे िें आ गए। उम्र पचास के िगभग होगी। हािैं ड के मनवासी हैं ।
इस िातचीत के िीच रोजेन साहि स्वयं िैनज

साधारण ढंग के कपडे। चेहरे पर घनी दाढ़ी-िूछ े ी िोिते हैं । पक्के व्यवसायी हैं । अि तक ििाव के अनेक
ं ें । टूटी-िू टी अंग्रज

स्थानों िें घूिकर तरह-तरह के िोगों से मििकर, तर्थ् संग्रह करके , काि काज के कायवक्रि का उन्होंने खाका त ैयार कर

मिया है। उस कायवक्रि के कागज अपूव व की टे िि पर रखते हुए िोिे, ''इसके मवर्य िें आपकी क्या राय है?'' मिर

तिविकर से िोिे, ''इसकी एक प्रमत आपके किरे िें भी भेज दी है। िेमकन इसे अभी रहने मदया जाए। क्योंमक आज नए

िैन ेजर के सम्मान िें ऑमिस िंद हो जाएगा। िैं जल्दी ही चिा जाऊं गा। ति आप दोनों पर ही सारा कायवक्रि रहेगा। िैं

े नहीं हूं। यद्यमप यह राज्य हि िोगों का हो सकता था। मिर भी उन िोगों की तरह हि भारतीयों को नीच नहीं
अंग्रज

सिझते। अपने सिान ही सिझते हैं । के वि ििव की ही नहीं, आप िोगों की उन्नमत भी आप िोगों के कत्तवव्य-ज्ञान पर

ु ऑमिस दो िजे के िाद िंद जो जाना चामहए। कहते हुए मजस तरह आए थे उसी तरह चिे गए।
मनभवर है। अच्छा गड्ड।
ठीक दो िजे दोनों साथ-साथ ऑमिस से मनकिे। तिविकर शहर िें नहीं रहता। िगभग दस िीि पमश्चि िें इनमसन

नािक स्थान िें डेरा है। डेरे िें उसकी पत्नी तथा एक छोटी-सी िेटी रहती है वहां शहर का हो-हल्ला नहीं है। टे े्रनों िें


आने-जाने से कोई असमवधा नहीं होती।

''हाल्दर िािू, कि ऑमिस के िाद िेरे यहां चाय का मनिंत्रण रहा,'' तिविकर ने कहा।

अपूव व िोिा, ''िैं चाय नहीं पीता िािू जी।''

''नहीं पीते? पहिे िैं भी नहीं पीता था। िेमकन िेरी पत्नी नाराज होती है। अच्छा, न हो तो िि-िू ि, शिवत... हि िोग

भी ब्राह्मण हैं ।''

अपूव व ने हंसते हुए कहा, ''ब्राह्मण तो अवश्य हैं , िेमकन अगर आप िोग िेरे हाथ का खाएं तो िैं भी आपकी पत्नी के हाथ

का खा सकता हूं।''

रािदास ने कहा, ''िैं तो खा सकता हूं। िेमकन िेरी पत्नी की िात...अच्छा, आपका डेरा तो पास ही है। चमिए न, आपको

पहुंचा आऊं । िेरी ट्रे न तो पांच िजे छूटे गी।''

अपूव व घिरा गया। इस िीच वह सि कुछ भूि गया था। डेरे का नाि िेत े ही क्षण भर िें उसका सारा उपद्रव, सारा झगड़ा

मिजिी की रेखा की भांमत चिककर उसके चेहरे को श्रीहीन कर गया। अि तक वहां क्या हुआ होगा, वह कुछ नहीं

जानता। हो सकता है, िहुत कुछ हुआ तो। अके िे उसी को िीच िें जाकर खड़ा होना पड़ेगा। एक पमरमचत व्यमक्त के साथ


रहने से मकतनी समवधा और साहस रहता है। िेमकन पमरचय के आरम्भ िें ही....यह क्या सोचेगा?.... यह सोचकर अपूव व

को िड़ा संकोच हो उठा। िोिा, ''देमखए....?''

ु करके रािदास ने हंसते हुए कहा, ''एक ही रात


अभी िात पूरी नहीं कर सका था मक उसके संकोच और िज्जा को अनभव


िें पूरी सव्यवस्था ु भी एक मदन नया डेरा ठीक करना पड़ा था। मिर िेरी तो पत्नी भी
की िैं आशा नहीं करता िािू जी! िझे

ु कर रहे हैं । िेमकन उन्हें न िाने पर एक वर्व िाद भी


थी। आपके साथ तो वह भी नहीं है। आप आज िज्जा का अनभव

आपकी िज्जा दूर नहीं होगी। यह िैं कहे देता हूं। चमिए देख ूं क्या कर सकता हूं। अव्यवस्था के िीच ही तो मित्र की

आवश्यकता होती है।''


इस मित्रहीन देश िें आज उसे मित्र की अत्यंत आवश्यकता है। दोनों टहिते-टहिते डेरे के सािने पहुंच े तो तिविकर

को घर िें आिंमत्रत मकए मिना न रह सका। ऊपर चढ़ते सिय देखा मक वही ईसाई िड़की नीचे उतर रही है। उसका मपता

उसके साथ नहीं था। वह अके िी थी। दोनों एक ओर हटकर खड़े हो गए। िड़की धीरे-धीरे उतरकर सड़क पर चिी गई।

रािदास ने पूछा, ''यह िोग तीसरी िंमजि पर रहते हैं क्या?''

''हां।''

''यह िोग भी िंगािी हैं ?''

अपूव व ने मसर महिाकर कहा, ''नहीं, देसी ईसाई हैं । सम्भव है िद्रासी, गोआनीज या और कुछ होंगे, िेमकन िंगािी नहीं

हैं ।''

रािदास ने कहा, ''िेमकन साड़ी पहनने का ढंग तो ठीक आप िोगों ज ैसा ही है।''

अपूव व ने हैरानी से पूछा, ''हि िोगों का ढंग आपको कै स े िालि?''

रािदास ने कहा, ''िैंन े िम्बई, पूना, मशििा िें िहुत-सी िंगािी िमहिाओ ं को देखा है। इतना सदं ु र साड़ी पहनने का ढंग

भारत की मकसी जामत िें नहीं है।''

''हो सकता है,'' कहकर अपूव व डेरे के िंद दरवाजे को खटखटाने िगा।

थोड़ी देर िाद अंदर से सतकव कं ठ का उत्तर आया, ''कौन?''

''िैं हूं, िैं। दरवाजा खोिो। भय की कोई िात नहीं है,'' कहकर अपूव व हंसने िगा। यह देखकर मक इस िीच कोई भयानक


घटना नहीं हुई, मतवारी किरे िें सरमक्षत ु करके उसके ऊपर से ज ैसे एक िहुत िड़ा िोझ उतर गया।
है। और यह अनभव

किरा देखकर रािदास िोिा, ''आपका नौकर अच्छा है। सि कुछ अच्छी तरह सजाकर रखा है। यह सारा सािान िैंन े

ही खरीदा था। आपको और मजस चीज की जरूरत हो, िताइए, भेज दूंगा। रोजेन साहि की आज्ञा है।''

मतवारी ने िधरु स्वर िें कहा, ''और सािान की जरूरत नहीं है िािू जी, यहां से सकुशि हट जाएं तो प्राण िच जाएंग।े ''
उसकी िात पर मकसी ने ध्यान नहीं मदया। िेमकन अपूव व ने सनु मिया। उसने आड़ िें िे जाकर पूछा, ''और कुछ हुआ था

क्या?''

''नहीं।''

''ति मिर ऐसी िात क्यों कहता है?''


मतवारी ने कहा, ''शौक से थोडे ही कहता हूं। दोपहर भर साहि ज ैसी घड़दौड़ ु कर
करता रहा है, वैसी क्या कोई िनष्य

सकता है?''


अपूव व िस्कराकर िोिा, ''तो तू चाहता है मक वह अपने किरे िें चिने-मिरने भी न पाए? िकड़ी की छत है! अमधक

आवाज होती है।''

मतवारी ने रुष्ट होकर कहा, ''एक स्थान पर खड़े होकर घोड़े की तरह प ैर पटकने को चिना कहा जाता है?''

अपूव व िोिा, ''इससे पता चिता है मक वह शरािी है। उसने जरूर शराि पी रखी होगी।''

मतवारी िोिा, ''हो सकता है। िैं उसका िहं ु सूघ


ं कर देखने नहीं गया था।'' मिर अप्रसन्न भाव से रसोई घर िें जाते हुए

िोिा, ''चाहे जो भी हो, इस घर िें रहना नहीं होगा।''

ट्रे न का सिय हो जाने पर रािदास ने मवदा िांगी। पता नहीं मतवारी के अमभयोग या उसके स्वािी के चेहरे से उसने कुछ

ु िगाया या नहीं, िेमकन जाते सिय अचानक पूछ ि ैठा, ''िािू जी, क्या आपको इस डेरे िें असमवधा
अनिान ु है?''

अपूव व ने तमनक हंसकर कहा, ''नहीं।'' मिर रािदास को मजज्ञास ु भाव से मनहारते देखकर िोिा, ''ऊपर जो साहि रहते हैं

वह िेरे साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहें ।''

रािदास ने मवमस्मत होकर पूछा, ''वही िड़की तो नहीं?''

ु दीं। रािदास कुछ देर िौन


''जी हां, उसी के मपता,'' इतना कहकर अपूव व ने कि सांझ और आज सवेरे की घटनाएं सना

रहने के िाद िोिा, ''िैं होता तो इमतहास दूसरा ही होता। मिना क्षिा िांग े वह इस दरवाजे से एक कदि भी नीचे न उतर

पाता।''
अपूव व ने कहा, ''अगर वह क्षिा न िांगता तो आप क्या करते?''

रािदास ने कहा, ''तो उतरने न देता।''

अपूव व ने भिे ही उसकी िातों पर मवश्वास न मकया हो, िेमकन साहस भरी िातों से उसे कुछ साहस अवश्य मििा। हंसते

हुए िोिा, ''चमिए अि नीचे चिें । आपकी ट्रे न का सिय हो गया है।'' इतना कहकर मित्र का हाथ पकड़कर नीचे उतरने

िगा। उसे यह देखकर आश्चयव हुआ मक मजस तरह आते सिय उस िड़की से भेंट हुई थी उसी तरह जाते सिय भी हो

ु हुआ िंडि था। शायद कुछ खरीदकर िौट रही थी। उसे रास्ता देन े के मिए
गई। उसके हाथ िें कागज का एक िड़ा

अपूव व एक ओर हटकर खड़ा हो गया। िेमकन सहसा घिराकर देखा-रािदास रास्ता न देकर उसे रोके खड़ा है। वह

े ी िें िोिा, ''क्षिा करना, िैं िािू जी का मित्र हूं। इनके साथ अकारण मकए गए दुवव्यवहार के मिए आप िोगों को
अंग्रज

िमज्जत होना चामहए।''

िड़की ने आंख उठाकर क्रुध्द स्वर िें कहा, ''इच्छा हो तो यह िातें आप िेरे मपता जी से कह सकते हैं ।''

''आपके मपताजी घर पर हैं ।''

''नहीं।''

''िेरे पास प्रतीक्षा करने के मिए सिय नहीं है। िेरी ओर से उनसे कह दीमजएगा मक उनके उपद्रव से इनका रहना दूभर हो

गया है।''

े्
िड़की ने पूववव त कड़वे स्वर िें कहा, ''उनकी ओर से िैं ही उत्तर मदए देती हूं मक आप अगर चाहें तो मकसी दूसरी जगह

जा सकते हैं ।''

रािदास थोड़ा हंसकर िोिा, ''भारतीय ईसाईयों को िैं पहचानता हूं। उनके िहं ु से इससे िड़े उत्तर की आशा िैं नहीं


करता। िेमकन इससे उनको समवधा नहीं होगी। क्योंमक इनके स्थान पर िैं आऊं गा, िेरा नाि रािदास तिविकर है। िैं

जात से ब्राह्मण हूं। तिवार शब्द का क्या अथव होता है अपने मपता को जान िेन े के मिए कमहएगा। गडु इवमनंग। चमिए

िािू जी,'' इतना कहकर वह अपूव व का हाथ पकड़कर एकदि रास्ते िें आ गया।
िड़की के चेहरे को अपूव व ने मछपी नजरों से देख मिया था। घटना के अंत िें वह मकस प्रकार कठोर हो उठी थी-यह

सोचकर वह कुछ क्षण तक कोई िात ही नहीं कर सका। इसके िाद धीरे से िोिा, ''यह क्या हुआ तिविकर?''

ु यहां आना पड़ेगा। के वि खिर मिि जानी चामहए।''


तिविकर ने उत्तर मदया, ''यही हुआ मक आपके जाते ही िझे

अपूव व ने कहा, ''अथावत दोपहर को आपकी पत्नी अके िी रहें गी?''

रािदास ने कहा, ''अके िी नहीं। िेरी दो वर्व की िड़की भी है।''

''यानी आप िजाक कर रहे हैं ।''

''नहीं, िैं सच कह रहा हूं। हंसी-िजाक की िेरी आदत ही नहीं है।''

अपूव व ने एक िार अपने साथी की ओर देखा। मिर धीरे से कहा, ''तो मिर िैं यह डेरा नहीं छोड़ सकूं गा....।''

उसकी िात पूरी नहीं हो पाई थी मक रािदास ने सहसा उसके दोनों हाथों को अपने शमक्तशािी हाथों से पकड़कर जोर से

झकझोरते हुए कहा, ''िैं यही चाहता हूं िािू जी! उत्पात के भय से हि िोग िहुत भाग चकेु हैं , िेमकन अि नहीं।''

सांझ होने िें अभी देर थी। एक घंटे तक मकसी ट्रे न का सिय भी नहीं था। इसमिए स्टे शन के दूसरी ओर वािे प्लेटिािव पर

यामत्रयों की भीड़ अमधक नहीं थी। अपूव व टहिते हुए घूिने िगा। अचानक उसके िन िें मवचार आया मक कि से आज


तक इस एक ही मदन िें जीवन न जाने कै स े सहसा कई वर्व पराना हो गया है। यहां पर िां नहीं है, भाई नहीं है। भामभयां

नहीं हैं । स्नेह की छाया भी कहीं नहीं है। किवशािा के असंख्य चक्र दाएं-िाएं, मसर के ऊपर, प ैरों के नीचे, चारों ओर वेग

से घूिते हुए चि रहे हैं । तमनक भी असिथव होने पर रक्षा पाने का कहीं कोई उपाय नहीं है।

उसकी आंखों की कोरें गीिी हो उठीं। कुछ दूरी पर काठ की एक िेंच थी। उस पर ि ैठकर आंखें पोंछ रहा था मक सहसा

पीछे से एक जोर का धक्का खाकर पेट के िि जिीन पर जा मगरा। मकसी तरह उठकर खड़ा होते ही देखा पांच-छ: मिरंगी

िदिाश िड़के हैं । मकसी के िहं ु िें मसगरेट है तो मकसी के िहं ु िें पाइप है और वह दांत मनकािकर हंस रहे थे। शायद

वही िड़का मजसने धक्का िारा था, िेंच के ऊपर मिखे अक्षरों को मदखाकर िोिा, ''सािे! यह साहि िोगों के वास्ते है,


तम्हारे मिए नहीं।''

िज्जा, क्रोध तथा अपिान से अपूव व की गीिी आंखें िाि हो उठीं, होंठ कांपने िगे।
''सािा, दूधवािा, आंखें मदखाता है?'' सि एक साथ ऊं चे स्वर से हंस पड़े। एक ने उसके िहं ु के सािने आकर अत्यंत

अश्लीि ढंग से सीटी िजाई।

अपूव व पि भर िाद ही शायद सिके ऊपर झपट पड़ता िेमकन कुछ महंदुस्तानी किवचामरयों ने, जो कुछ दूर ि ैठे मचिनी साि

कर रह थे, िीच िें पड़कर उसे प्लेटिािव से िाहर कर मदया। एक मिरंगी िड़का भागता हुआ आया और भीड़ िें प ैर

िढ़ाकर अपूव व के सिे द मसि के कुत्तों पर जूत े का दाग िगा गया। महंदुस्तामनयों के इस दि से वह अपने को िक्त
ु करने

के मिए खींचातानी कर रहा था। एक ने उसे झकझोरते हुए कहा, ''अरे िंगािी िािू! अगर साहि िोगों का शरीर छुएगा

तो एक साि की जेि हो जाएगी। जाओ भागो।'' एक ने कहा, ''अरे िािू है, धक्का ित दो।'' जो िोग कुछ नहीं जानते थे

वह कारण पूछने िगे। जो िोग जानते थे, तरह-तरह की सिाह देन े िगे। अपूव व ऑमिस का पहनावा छोड़कर सािान्य

िंगािी की पोशाक िें स्टे शन गया था। इसमिए मिरंमगयों ने उसे दूधवािा सिझकर िारा था।

े थे। िहं ु उठाकर उन्होंने देखा। अपूव व ने जूत े का दाग


अपूव व सीधा स्टे शन िास्टर के किरे िें गया। स्टे शन िास्टर अंग्रज


मदखाकर घटना सनाई, व िोिे, ''योरोमपयन की िेंच पर ि ैठे क्यों?''
वह अवज्ञापूवक

ु िालि नहीं था।''


अपूव व ने कहा, ''िझे

''िालि कर िेना चामहए था।''

''क्या इसीमिए उन्होंने एक भिे आदिी पर हाथ उठाया?''

साहि ने दरवाजे की ओर हाथ िढ़ाकर कहा, ''गो-गो-गो, चपरासी इसको िाहर कर दो।'' कहकर वे अपने काि िें िग

गए।

अपूव व न जाने मकस तरह घर िौटा। दो घंटे पहिे रािदास के साथ इस रास्ते से जाते सिय उसके हृदय िें जो दुभाववना

सिसे अमधक खटक रही थी, वह अकारण िध्यस्थता ही थी। उत्पात और अशांमत की िात्रा उससे घटे गी नहीं, िमि

ु के िहं ु से ऐसे
िढ़ेगी ही। इसके अमतमरक्त उस ईसाई िड़की का मकतना ही अपराध क्यों न हो, वह नारी है। इसमिए परुर्

कठोर वचन मनकािना उमचत नहीं हुआ। इसके अमतमरक्त उस सिय एकदि अके िी भी थी। जि उस िड़की की िात

याद आई तो वह साहि की िड़की िालि हुई, साधारण नारी-जामत की नहीं। मजन मिरंगी िड़कों ने कुछ पि पहिे

अकारण ही उसका अपिान मकया, मजनकी कुमशक्षा, नीचता और ििवरता की सीिा नहीं थी, उनकी ही िहन जान पड़ी।
ु का सािान्य अमधकार भी नहीं मदया
मजस साहि ने अत्यंत अमवचार के साथ उसे किरे से िाहर मनकाि मदया था, िनष्य

था, उसकी परि आत्मीय ज्ञात हुई।

मतवारी ने आकर कहा, ''छोटे िािू, भोजन ठं डा हो रहा है।''

''चिो आता हूं,'' अपूव व ने कहा।

दस-पंद्रह मिनट िाद उसने मिर कहा, ''भोजन ठं डा हो रहा है।''

ु भूख नहीं है।''


अपूव व ने क्रोमधत होकर कहा, ''क्यों िेकार तंग करता है मतवारी? िैं नहीं खाऊं गा। िझे

उसकी आंखों िें नींद नहीं आई। रात मजतनी ही िढ़ने िगी, सारा मिछौना िानो कांटे की सेज हो उठा। एक ििाविक

ु िगी और उसी के िीच-िीच स्टे शन के उन महंदुस्तामनयों की याद आने िगी मजन्होंने


वेदना उसके सम्पूण व अंग िें चभने

संख्या िें अमधक होते हुए भी उसकी िांछना को कि करने िें मििुि ही भाग नहीं मिया। िमि उसके अपिान की

िात्रा िढ़ाने िें ही सहायता की। देशवामसयों के मवरुध्द देशवामसयों की इतनी िज्जा, इतनी ग्िामन संसार के और मकसी

देश िें है? ऐसा क्यों हुआ? कै स े हुआ? इन्हीं िातों पर मवचार करता रहा।

व िीत गए। ऊपर की िंमजि से साहि का अत्याचार जि मकसी नए रूप िें प्रकट नहीं हुआ तो
दो-तीन मदन शांमतपूवक

अपूव व ने सिझ मिया मक उस ईसाई िड़की ने उस मदन की िातें अपने मपता को नहीं िताई। िड़की से भी सीमढ़यों िें दो-

एक िार भेंट हुई। वह िहं ु िोड़कर उतर जाती है। उस मदन सवेरे छोटे िािू को भात परोसकर मतवारी ने प्रसन्नता भरे स्वर

िें कहा, ''िगता है, साहि ने कोई नामिश-वामिश नहीं की।''

अपूव व ने कहा, ''जो गरजता है िरसता नहीं है।''

मतवारी िोिा, ''हि िोगों का डेरे िें अमधक मदन रहना नहीं हो सके गा। सािे, सि कुछ खाते-पीते हैं । याद आते ही....।''

''चपु रह मतवारी,'' वह उस सिय भोजन कर रहा था। िोिा, ''इसी िहीने के िाद छोड़ देंग।े िेमकन अच्छा िकान तो

मििे।''
उसी मदन शाि को ऑमिस से िौटकर मतवारी की ओर देखकर अपूव व स्तब्ध रह गया। इतनी ही देर िें वह ज ैसे सूखकर

आधा हो गया था। पूछा, ''क्या हुआ मतवारी?''

ु िें उसने िादािी रंग के कुछ कागज अपूव व को पकड़ा मदए। िौजदारी अदाित का सम्मन था। वादी जे. डी.
प्रत्यत्तर

जोसेि थे और प्रमतवादी तीन नम्बर किरे का अपूव व नािक िंगािी और उसका नौकर था। दोपहर को कचहरी का

चपरासी दे गया था।

चपरासी के साथ वही साहि आया था। परसों हामजर होने की तारीख है। अपूव व ने कागज पढ़कर कहा, ''कोटव िें देखा

जाएगा।''

यह कहकर वह कपड़े िदिने किरे िें चिा गया।

तारीख वािे मदन मतवारी को साथ िेकर अपूव व अदाित िें हामजर हुआ। इस मवर्य िें रािदास से सहायता िेन े िें उसे

ु हुई। के वि जरूरी काि का िहाना करके उसने एक मदन की छुट्टी िे िी थी।


िज्जा अनभव


मडप्टी कमिश्नर की अदाित िें िकदिा था। वादी जोसेि-सच, झ ूठ जो िन िें आया, कह गया। अपूव व ने न तो कोई िात

मछपाया और न कोई िात िढ़ाकर ही कही। िाकी की गवाह उसकी िड़की थी। अदाित के सािने उस िड़की का नाि


और ियान सनकर अपूव व मखन्न रह गया। आप मकसी स्वगीय राजकुिार भट्टाचायव िहाशय की सपु त्री
ु हैं । पहिे यह िोग

पारीसाि िें थे। िेमकन अि िंगिौर िें हैं । आपका नाि िेरी भारती है। इनकी िां मकसी मिशनरी के साथ िंगिौर चिी

आई थीं वहीं जोसेि साहि के रूप पर िोमहत होकर उनसे मववाह कर मिया। भारती ने प ैतृक भट्टाचायव नाि को मनरथवक

सिझकर उसे त्याग मदया और जोसेि नाि को ग्रहण कर मिया। तभी से वह मिस िेरी जोसेि के नाि से प्रमसध्द हैं ।

न्यायाधीश के प्रश्न करने पर वह िि-िू ि उपहार देन े की िात से इनकार कर गई। िेमकन उसके कं ठ स्वर िें असत्य

िोिने की घिराहट इतनी स्पष्ट हो गई मक के वि न्यायाधीश ही नहीं उसके चपरासी तक को धोखा नहीं दे सकी। िै सिा

ु ना हो गया। मनरपराध होते हुए दंमडत होने पर


उसी मदन हो गया। मतवारी छूट गया, िेमकन अपूव व पर िीस रुपया जिाव

उसका िहं ु सूख गया। रुपए देकर घर आकर देखा- दरवाजे के सािने रािदास खड़ा है। अपूव व के िहं ु से मनकि पड़ा-

ु ना हुआ रािदास। अपीि की जाए?''


''िीस रुपए जिाव
ु न े के
उत्तेजना से उसकी आवाज कांप उठी। रािदास ने उसके दाएं हाथ को थािकर हंसते हुए कहा, ''िीस रुपए जिाव

िदिे दो हजार की हामन उठाना चाहते हैं ?''

ु ना है। दंड है। राजदंड है।''


''होने दो। िेमकन यह तो जिाव

रािदास हंसते हुए िोिा, 'मकसका दंड? मजसने झ ूठी गवाही मदिाई। िेमकन इसके ऊपर भी एक अदाित है। उसका

न्यायाधीश अन्याय नहीं करता। वहां आप मनदोर् हैं ।''

अपूव व िोिा, ''िेमकन िोग तो ऐसा नहीं सिझेंग े रािदास! उनके सािने तो यह िदनािी हिेशा के मिए िनी रहेगी।''

रािदास ने कहा, ''चिो नदी मकनारे टहि आएं।'' चिते हुए रास्ते िें वह िोिा, ''अपूव व िािू, मवद्या िें आपसे छोटा होते

हुए भी उम्र िें आपसे िड़ा हूं िैं। अगर कुछ कहूं तो खयाि न करना।''

अपूव व िौन रहा।


रािदास ने कहा, ''वह इस िाििे को जानता था। िोग जानते हैं मक 'हािदार' के साथ जोसेि का िकदिा चिने पर

ु न े की िदनािी....।
े ी न्यायािय िें क्या होता है। िीस रुपए की जिाव
अंग्रज

''िेमकन यह तो मिना अपराध का दंड हुआ रािदास?''

''हां, मिना अपराध िैं भी दो वर्व जेि िें रह आया हूं।''

''दो वर्व जेि िें?''

''हां, दो वर्व,'' मिर हंसकर िोिा, 'अगर अपने कुत्तों को उतार दूं तो देखोगे मक िेंतों के दागों से कोई स्थान िचा नहीं है।''

''िेंत भी िग चकेु हैं रािदास?''

रािदास हंसकर िोिा, ''हां, ऐसा ही। मिना अपराध के भी िैं इतना मनिवज्ज हूं मक िोगों को िहं ु मदखाता हूं और आप िीस

ु न े की िदनािी नहीं सह सकते?''


रुपए जिाव

अपूव व उसका िहं ु देखकर चपु हो गया। रािदास िोिा, ''अच्छा, चमिए आपको पहुंचाकर घर जाऊं ।''

''अभी ही चिे जाओगे? अभी तो िहुत-सी िातें जाननी हैं ।''


ु सम्भवत: िहुत मदनों तक िताना पड़ेगा।''
रािदास ने हंसकर कहा, ''सि आज ही जान िोगे? यह नहीं होगा। िझे

िहुत मदनों पर उसने इस तरह जोर मदया मक अपूव व आश्चयव से उसे देखता रह गया, िेमकन कुछ सिझ नहीं पाया। रािदास

गिी के अंदर नहीं गया। िाहर से ही मवदा िेकर स्टे शन चिा गया।

अपूव व ने द्वार पर धक्का मदया। मतवारी ने आकर दरवाजा खोि मदया। वह घर के कािों िें िगा हुआ था, उसका चेहरा उतर

गया था। वह िोिा, ''उस सिय जल्दिाजी िें दो नोट िेंक गए थे आप?''

अपूव व ने आश्चयव से पूछा, 'कहां िेंक गया था जी?''

''यहीं तो....'' कहते हुए उसने दरवाजे के पास रखी िेज की ओर इशारा मकया, ''आपके तमकए के नीचे रख मदए हैं । िाहर

कहीं नहीं मगरे, यही सौभाग्य है।''

वह नोट कै स े मगर पड़े? यही सोचते हुए अपूव व अपने किरे िें चिा गया।

मतवारी ने रात को रोते हुए हाथ जोड़कर कहा, ''इस िूढे की िात िामनए िािू! चमिए, कि सवेरे ही हि िोग जहां भी हो

भाग चिें ।''

अपूव व ने कहा, 'कि ही? सनूु ं तो? क्या धिवशािा िें चिे, चिें ?''


मतवारी िोिा, ''इससे तो वही अच्छा है। साहि िकदिे िें जीत गया है। अि मकसी मदन हि दोनों को पीट भी जाएगा।''

ु िेरे घाव पर निक मछड़कने के मिए भेजा था? िझे


अपूव व सहन न कर सका। क्रोमधत होकर िोिा, ''िां ने क्या तझे ु तेरी

जरूरत नहीं, तू कि ही घर चिा जा। िेरे भाग्य िें जो िदा है वही होगा।''

मतवारी मिर कुछ नहीं िोिा। चपचाप


ु सोने चिा गया। उसकी िात अपूव व को अपिानजनक जान पड़ी। इसमिए उसने

ऐसा उत्तर मदया था। अगिे मदन नए िकान की खोज होने िगी। तिविकर को छोड़कर ऑमिस के िगभग सभी िोगों

से उसने कह मदया था। इसके िाद मतवारी ने मिर कोई मशकायत नहीं की।

स्वाभामवक िात थी मक िकदिा जीत जाने के िाद जोसेि पमरवार के मवमचत्र उपद्रव नए-नए रूप िें प्रकट होंगे। िेमकन

उपद्रव की िात कौन कहे, ऊपर कोई रहता नहीं, कभी-कभी यह संदहे होने िगा था।

अध्याय 2

ु छोटे िािू?''
उपद्रव रमहत एक सप्ताह के िाद एक मदन ऑमिस से िौटने पर मतवारी ने प्रसन्न होकर कहा, ''आपने सना

''क्या''

''साहि का प ैर टूट गया। अस्पताि िें हैं । देखें िचता है या नहीं।''

ु कै स े पता िगा?''
''तझे

ु हिारे मजिे का है। वह आया था मकराया िेन े, उसी ने िताया है।''


मतवारी िोिा, ''िकान िामिक का िनीि

''हो सकता है,'' कहकर अपूव व कपड़े िदिने अपने किरे िें चिा गया।

मतवारी को पूण व मवश्वास था मक म्लेच्छ होकर ब्राह्मण के मसर पर मजसने घोड़े की तरह प ैर पटका है, उसका प ैर न टूटेगा तो


क्या होगा? अगिे मदन अपूव व ने मतवारी को ििाकर कहा, 'एक िकान मििा है, जाकर देख आओ।''

मतवारी ने हंसकर कहा, ''अि दूसरे िकान की जरूरत नहीं पड़ेगी िािू! िैंन े सि ठीक कर मिया है। अगिी पहिी तारीख

को जाने वािे चिे जाएंग।े ''


िकान िदिने िें कि झंझट नहीं है, अपूव व अच्छी तरह जानता था। िेमकन साहि की अनपमस्थमत िें जो उपद्रव िंद हो

गया है वह उनके िौट आने पर भी िंद रहेगा, उसे ऐसी आशा नहीं थी। ऑमिस जाने से पहिे मतवारी ने छुट्टी िांगते हुए

ु तिाशा देखने का
िताया मक आज दोपहर को वह िमिवयों के िंमदर िें तिाशा देखने जाएगा। अपूव व ने हंसकर पूछा, ''तझें

कि से शौक हुआ है। मतवारी?''


''मवदेश का सि कुछ देख िेना चामहए िािू!''

अपूव व िोिा, ''अवश्य, अवश्य। िं गडा साहि अस्पताि िें है। इस सिय िाहर जानें िें कोई डर नहीं है। चिे जाना,

िेमकन जल्दी ही िौट आना।''

साहि की दुघवटना के सिाचार से वह इतना प्रसन्न था मक अपने यहां के मजस व्यमक्त से कि उसका पमरचय हुआ था आज

उसके प्रस्ताव को अस्वीकार नहीं कर सका।

ु देकर अपूव व ऑमिस चिा गया। उसके एक घंटे िाद ही मतवारी को उसके गांव का वही व्यमक्त
उसे जाने की अनिमत

आकर िमिवयों का तिाशा मदखाने िे गया।


तीसरे पहर घर िौटकर अपूव व ने देखा, दरवाजे िें तािा िगा है। मतवारी ने वह पराना तािा िदिकर यह नया तािा क्यों

िगाया, वह दो मिनट तक िाहर खड़ा सोचता रहा। तभी ऊपर से वही ईसाई िड़की िोिी, ''िैं खोिती हूं।'' कहकर वह

नीचे आई और िोिी, ''िां कह रही थी मक अपना तािा िगाकर िैंन े अच्छा नहीं मकया। ऐसा न हो मक िैं मवपमत्त िें पड़

जाऊं ।''


मिर द्वार खोिते हुए िोिी, 'िां िहुत डरपोक है। मिगड़ रही थीं मक अगर आप मवश्वास न करें ग े तो िझको ही चोरी के

ु तमनक भी डर नहीं िगा।''


अपराध िें जेि जाना पड़ेगा। िेमकन िझे

अपूव व िोिा, ''िेमकन हुआ क्या?''

''किरे िें जाकर देमखए, क्या हुआ है?''


अपूव व ने किरें िे घसकर ु , कागज, मिस्तर, कपड़े आमद िशव पर पड़े हैं ।
देखा। दोनों ट्रंको के तािे टूटे पड़े हैं । पस्तकें

उसके िहं ु से मनकिा, ''यह सि कै स े हुआ? मकसने मकया?''


भारती िोिी, ''भिे ही मकसी ने भी मकया हो, िेमकन िैंन े नहीं मकया।'' मिर उसने पूरी घटना सनाई- ''दोपहर को मतवारी


जि तिाशा देखने जा रहा था तो भारती की िां ने उसे देखा था। थोड़ी देर िाद नीचे के किरे िें खटखट सनकर भारती

को देखने के मिए कहा। उनकी छत के एक मकनारे एक छेद है। उसी छेद से देखते ही भारती मचल्ला उठी। जो िोग िक्स
तोड़ रहे थे वह जल्दी से भाग गए। ति वह नीचे आकर दरवाजे िें तािा िगाकर पहरा देन े िगी मक कहीं वह मिर न

िौट आएं।''

अपूव व पिं ग पर ि ैठ गया। भारती ने कहा, ''इस किरे िें आपका भोजन का तो कोई सािान नहीं है? क्या िैं किरे िें आ

सकती हूं?''

ु क्या करना चामहए?


''आइए,'' अपूव व ने कहा। मिर मविूढ़ की तरह उससे पूछा,''अि िझे

भारती ने कहा, ''सिसे पहिे यह देखना चामहए मक क्या-क्या चीजें चोरी गई हैं ।''

अपूव व ने कहा, ''अच्छा, देमखए न क्या-क्या चोरी गया है?''

भारती ने हंसकर कहा, ''न तो िैंन े आपके ट्रंक की चीजों को पहिे कभी देखा था और न चोरी ही की है। इसमिए क्या था

और क्या नहीं, िैं कै स े जान सकती हूं?

अपूव व िमज्जत होकर िोिा, ''आप ठीक कहती हैं । अच्छा तो मिर मतवारी को आ जाने दीमजए। वही सि कुछ जानता है,''

कहकर इधर-उधर मिखरी चीजों को करुणा भरी नजरों से देखने िगा।

उसका मनरुपाय चेहरा देखकर भारती हंसती हुई िोिी, ''वह जानता है और आप नहीं जानते। अच्छा िैं आपको मसखा

देती हूं मक मकस तरह जाना जाता है।'' इतना कहकर िशव पर ि ैठ गई और ट्रंक को पास खींचती हुई िोिी, ''अच्छा,

ु दािादी मसि का सूट है? ऐसे मकतने सूट हैं ?


पहिे कपड़े-ित्ते संभाि लं । यह क्या है? शायद िमशव

''दो सूट।''

''मिि गए। यह एक और जोड़ा है। अच्छा, धोती एक, दो, तीन....चादर एक, दो, तीन.... ठीक मिि गया। शायद तीन ही

जोड़ी थी?''

अपूव व िोिा, ''हां तीन ही जोड़ी थी?''

''यह फ्िािेन का सूट है। आप वहां शायद टे मनस खेिते थे। हां तो एक, दो, तीन... उस अििारी िें एक, और एक आप

पहने हैं -तो मिर सूट पांच ही जोडे हैं ?''


अपूव व प्रसन्न होकर िोिा, ''हां ठीक है। पांच ही जोड़े हैं ।''

इतने िें एक चिकीिी वस्त ु मदखाई पड़ी। उसे िाहर मनकािकर िोिी, ''यह चेन सोने की है। घड़ी कहां गई?'

अपूव व प्रसन्न होकर िोिा, ''ख ैर है मक िच गई। चेन शायद वह िोग देख नहीं सके । यह िेरे मपता जी की मनशानी है।''

''िेमकन घड़ी?''

''यहां है,'' कहकर अपूव व ने घड़ी मदखा दी।

भारती िोिी, ''चेन और घड़ी मिि गई। अि अंगमू ठयां िताइए।''

अपूव व िोिा, ''िेरे पास एक भी नहीं है।''

''चिो, यह भी अच्छा हुआ। िेमकन सोने के िटन?''

अपूव व िोिा, ''टसर के पंजािी कुते िें िगे थे।''

भारती ने अििारी की ओर देखा। मिर हंसकर िोिी, ''िगता है कुते के साथ वह िटन भी चिे गए।''

मिर पूछा, '' ट्रंक िें रुपया था न?''

अपूव व के 'हां' कहने पर भारती िोिी, ''तो मिर वह भी चिा गया।''

''मकतना था?''

''यह िालि नहीं।''

ु दीमजए देख।ूं ''


''यह तो िैं पहिे ही सिझ गई हूं। आपके पास िनी ि ैग है न? िाइए, िझे

अपूव व ने िनी ि ैग भारती को दे मदया। वह महसाि िगाकर िोिी, ''दो सौ पचास रुपए आठ आने हैं । घर से मकतने िेकर

चिे थे?''

अपूव व िोिा, ''छ: सौ रुपए।''


भारती मिखने िगी-जहाज का मकराया, तांग े का भाड़ा, कुिी की िजदूरी ...पहुंचकर घर के मिए तार भेजा था न? अच्छा,

उसका भी रुपया और उसके िाद इधर दस मदनों का खचव।''

अपूव व िोिा, ''वह मतवारी से मिना पूछे कै स े िता सकता हूं?''

भारती िोिी, ''सि िालि हो जाएगा। दो-एक रुपए का अंतर पड़ सकता है। अमधक नहीं।'' कागज पर अपने आप

महसाि मिखकर िोिी, ''इसके अमतमरक्त और कोई खचव तो नहीं है न?''

''नहीं।''

''तो मिर दो सौ अस्सी रुपए चोरी गए हैं ।''

ु न े का रुपया नहीं मिखा?


अपूव व चमकत होकर िोिा, ''इतने रुपए?-रुमकए, िीस रुपए और कि कीमजए। जिाव

ु ना। वह िैं कि नहीं करूंगी।


''नहीं, वह अन्याय था, झ ूठिूठ का जिाव

ु ना तो झ ूठिूठ हो सकता है िेमकन जिाव


अपूव व चमकत होकर िोिा, ''जिाव ु ना देना तो सच है।''

भारती िोिी, ''आपने मदया क्यों? उस रुपए को िैं कि नहीं करूंगी। पूरे दो सौ अस्सी रुपए चोरी गए हैं ।''

''नहीं-दो सौ साठ।''

''नहीं, दो सौ अस्सी रुपए।''

ु तथा अद्भतु तीक्ष्ण िमध्द


अपूव व ने मववाद नहीं मकया। इस िड़की की प्रखर िमध्द ु देखकर वह चमकत रह गया।


अपूव व ने पूछा, ''पमिस िें खिर देना क्या ठीक होगा?''

भारती िोिी, ''क्यों नहीं? ठीक के वि इसमिए होगा मक उससे िेरी कािी खींचातानी होगी। वह आकर आपके रुपए दे

जाएंग-े ऐसी तो आशा है नहीं।''

अपूव व िौन रहा।

भारती िोिी, ''चोरी तो हो गई। अि अगर वह िोग आएंग े तो अपिान भी आरम्भ हो जाएगा।''
''िेमकन कानून तो है?''

ु ना दे
''कानून तो है। िेमकन िैं मकसी भी दशा िें यह नहीं करने दूंगी। कानून उस मदन भी था मजस मदन आप अकारण जिाव

आए थे।''

अपूव व िोिा, ''िोग अगर झ ूठ िोिें और झ ूठे िाििे को मसध्द करें तो इसिें कानून का क्या दोर् है?''

भारती िमज्जत-सी हो गई। िोिी, ''िोग झ ूठ न िोिें ग,े झ ूठे िाििे न चिाएंग े तभी जाकर कानून मनदोर् होगा-क्या

आपका ित यही है? अगर ऐसा हो तो ठीक ही है। िेमकन संसार िें ऐसा होता नहीं।'' इतना कहकर वह हंस पड़ी। िेमकन

अपूव व िौन रहा। भारती का यह चोरी मछपाने का आग्रह, इस सिय उसे अच्छा नहीं िगा। मकसी गप्तु र्डयंत्र की आशंका

से उसका अंत:करण देखते-ही-देखते कलुमर्त हो उठा। उस मदन उसका डरते हुए संकोच समहत िि-िू ि देन े के मिए

आना....उसके िाद घटनाओ ं को मवकृ त तथा मिर्थ्ा िनाकर कहना, न्यायािय िें गवाही देना....पि िें सारा इमतहास,

मिजिी की भांमत चिक उठा। चेहरा गम्भीर और कं ठ-स्वर भारी हो उठा। यह अमभनय है, छिना है।

उसके चेहरे के इस आकमस्मक पमरवतवन को भारती ने िक्ष्य मकया िेमकन कारण न सिझ सकी। िोिी, ''िेरी िातों का

आपने उत्तर नहीं मदया?''


अपूव व ने कहा, ''और क्या उत्तर दूं? चोर को िढ़ावा नहीं देना चामहए। पमिस को खिर देना ही ठीक होगा।''

ु िेकर
भारती भयभीत होकर िोिी, ''यह कै सी िात? न तो चोर ही पकड़ा जाएगा और न रुपए ही मििें ग।े िीच िें िझे

खींचा-तानी होगी। िैंन े देखा है, तािा िंद मकया है। सभी सजाकर रखा है। िैं मवपमत्त िें पड़ जाऊं गी।''

अपूव व ने कहा, ''जो कुछ हुआ है, आप वही कह दीमजएगा।''

भारती ने व्याकुि होकर कहा, ''कहने से क्या होगा? अभी उस मदन आपके साथ इतना िड़ा अन्याय हो गया। एक-दूसरे से


पमरचय नहीं। िात-चीत नहीं। इसी िीच अचानक आपके मिए मदि िें इतना ददव क्यों है? पमिस कै स े मवश्वास करेगी?''


अपूव व का िन और भी संदहे से भर उठा। िोिा, ''आपकी आरम्भ से अंत तक की झ ूठी िातों पर तो पमिस ने मवश्वास कर

मिया और सच्ची िातों का मवश्वास नहीं करेगी? रुपया तो थोड़ा ही गया, िेमकन चोर को मिना दंड मदिाए न छोड़ूग
ं ा।''

भारती िमध्दहीन की तरह उसे देखती रही। मिर िोिी, ''आप क्या कहते हैं अपूव व िािू? मपता जी अच्छे व्यमक्त नहीं हैं ।

उन्होंने आपके प्रमत िहुत िड़ा अन्याय मकया है। िैंन े इसिें जो कुछ सहायता की है, उसे भी िैं जानती हूं। िेमकन इसका

ु गी। ऐसी िात आप सोच सकते हैं , िेमकन िैं


अथव यह नहीं है मक िैं आपके किरे िें घूसकर, तािा तोड़कर रुपए चराऊं

ं ी कै स?े ''
नहीं सोच सकती। ऐसी िदनािी होने पर िैं िचूग

कहते-कहते उसके होंठ िू िकर कांपने िगे। उन्हें जोर से दिाते-दिाते तूिान की तरह किरे से मनकिकर चिी गई।

ु न जाने क्या सोचकर अपूव व थाने की ओर चि मदया। पमिस


अगिी सिह, ु िें मरपोटव करना व्यथव है, यह वह जानता था।

रुपए नहीं मििें ग-े यही नहीं, हो सकता है मक चोर पकडें भी न जाएं। िेमकन उस ईसाई िड़की पर उसके क्रोध और मवद्वेर्

की सीिा नहीं थी। भारती ने स्वयं चोरी की है या चोरी करने िें सहायता की है-इस मवर्य िें मतवारी की तरह वह अभी

ु तरह मवचमित कर मदया था। उस िड़की की


तक मनमश्चंत नहीं हो सका था। िेमकन उसकी दुष्टता तथा छि ने उसे िरी

गमतमवमध का रहस्य खोजने पर भी उसे नहीं मििा। उसने जो कुछ हामन की है उसके मिए उतना नहीं, िेमकन आरम्भ से

ु का उपहास करता रहा है।


उसका मवमचत्र आचरण ज ैसे मनरंतर अपूव व की िमध्द

ु आई, ''अरे अपूव!व तिु यहां कहां?''


उसने अभी थाने िें कदि भी नहीं रखा था मक पीछे से पकार


अपूव व ने घूिकर देखा-मनिाई िािू खड़े हैं । आप िंगाि पमिस के िहुत िड़े अिसर हैं । अपूव व के मपता ने इनकी नौकरी


िगाई थी। मनिाई िािू उनको दादा कहकर पकारते ं के कारण अपूव व के घर के सभी िोग उन्हें चाचा
थे और इसी संिध

कहते थे। स्वदेशी आंदोिन के सिय मगरफ्तार होने के िाद अपूव व को जो मकसी प्रकार का कष्ट नहीं सहना पड़ा था, उसका

िहुत कुछ श्रेय इन्हीं को था। अपूव व ने प्रणाि करके , अपनी नौकरी की िात िताकर पूछा, ''िेमकन आप इस देश िें कै स?े ''

मनिाई िािू ने आशीवावद देत े हुए कहा, ''िेटा, तिु तो अभी कि के हो। जि तम्हें
ु घर-द्वार छोड़कर इतनी दूर आना पड़ा है

ु तो ऑमिस जाने िें अभी देर है। आओ, चिते-चिते ही


तो क्या िैं नहीं आ सकता? िेमकन िेरे पास सिय नहीं है। तम्हें

दो िातें कर लं गा। िां अच्छी है न? और भाई भी?''

''सि ठीक है'' कहकर अपूव व ने पूछा, ''आप कहां जाएंग?े ''

''जहाज घाट पर। चिो न िेरे साथ।''

''चमिए-आपको क्या कहीं और भी जाना है?''


ु को िे जाने के मिए घर छोड़कर इतनी दूर आना पड़ा
मनिाई िािू हंसकर िोिे, ''जाना हो भी सकता है। मजस िहापरुर्


है, उनकी इच्छा पर सि मनभवर है। उनका िोटोग्राि है, मिमखत मववरण है, िेमकन यहां की पमिस िें इतनी सािर्थ्व नहीं

मक उन पर हाथ डाि सके । क्या िैं पकड़ पाऊं गा? यही सोच रहा हूं।''

ु होकर पूछा, ''यह िहापरुर्


अपूव व ने उत्सक ु कौन हैं चाचा जी? जि आप आए हैं ति तो अवश्य ही कोई खूनी आसािी

है?''

मनिाई िािू िोिे, ''यह तो नहीं िताऊं गा िेटा! क्या है और क्या नहीं है? यह िात ठीक-ठीक कोई भी नहीं जानता। इनके

मवरुध्द कोई मनमश्चत अमभयोग भी नहीं है। मिर भी इनकी मनरंतर मनगरानी करते रहने िें इतनी िड़ी सरकार िानो मनष्प्राण

हो गई है।''

अपूव व ने पूछा, ''कोई आसािी है?''

मनिाई िािू िोिे, ''भ ैया पोमिमटकि तो मकसी सिय तिु िोगों को भी कहते थे। िेमकन वह हैं राजद्रोही! राजा के शत्र!ु

हां, शत्र ु कहिाने के योग्य तो अवश्य हैं । िमिहारी है उनकी प्रमतभा की मजन्होंने इस िड़के का नाि सव्यसाची रखा था।

िंदूक, मपस्तौि चिाने िें मनशाना अचूक होता है। त ैरकर पद्मा नदी को पारकर जाते हैं , कोई िाधा नहीं पड़ती। इस सिय

ु मकया गया है मक चटगांव के रास्ते से पहाड़ पार करके इन्होंने ििाव िें पदाप वण मकया है। अि िांडिे से नौका
यह अनिान


द्वारा या जहाज से रंगनू आने वािे हैं या रेि द्वारा उनका शभागिन ु है। कोई पक्की खिर नहीं है। िेमकन वह
हो चका

रवाना हो चकेु हैं , यह िात मनमश्चत है, उनके उद्देश्य के संिध ु


ं िें कोई संदहे या तकव नहीं है। शत्र-मित्र सभी के िन िें

उनका सम्मान मस्थर मसध्दांत िना हुआ है। देश िें आकर मकस िागव से वह अपना कदि िढ़ाएंग,े हि नहीं जानते।

ु िें सत्ताईस साि की पेंशन रह जाएगी।''


िेमकन देखो िेटा, यह सि िातें मकसी को िताना ित, नहीं तो इस िढ़ापे

ु नहीं।''
अपूव व उत्सामहत होकर िोिा, 'इतने मदनों यह कहां-क्या कर रहे थे। सव्यसाची नाि िैंन े तो कभी पहिे सना

मनिाई िािू ने हंसते हुए कहा, ''अरे भ ैया, इतने िड़े आदमियों का काि क्या के वि एक नाि से चिता है? सम्भवत: अजनवु

ु भी होगा, अि पहचान नहीं रहे हो। इस िीच िें क्या कर


की तरह इनके भी अनेक नाि प्रचमित हैं । उन मदनों शायद सना

रहे थे, इसकी भी पूरी जानकारी नहीं है। राजशत्र ु अपने काि ढोि पीट-पीटकर करना पसंद नहीं करते। मिर भी िैं इतना

जानता हूं मक वह पूना िें तीन िहीने की और दूसरी िार मसंगापरु िें तीन वर्व की सजा भगत
ु चकेु हैं । यह िड़का दस-
िारह भार्ाओ ं िें इस प्रकार िोि सकता है मक मकसी मवदेशी के मिए यह जान िेना कमठन है मक वह कहां के रहने वािे

ु है, जिवनी के मकसी नगर िें डॉक्टरी पढ़ी है। फ्ांस िें इंजीमनयमरंग पास मकया है। इंग्िैं ड की नहीं जानता। िेमकन
हैं ? सना

ु है तो वह अवश्य ही कुछ-न-कुछ पास मकया ही होगा। इन िोगों को न तो दया है, न िाया है, न धिव-
जि वहां रह चका

किव है, न कहीं घर-द्वार है। िाप रे िाप! हि िोग भी उसी देश के वासी हैं । िेमकन इस िड़के ने कहां से आकर िंगभूमि

िें जन्म िे मिया, यह तो सोचने पर भी नहीं जान पड़ता।''

अपूव व कुछ न िोिा। कुछ देर िौन रहकर उसने पूछा, ''इनको क्या आप आज ही मगरफ्तार करें ग?े ''

मनिाई िािू हंसकर िोिे, ''पहिे पाऊं तो।''

अपूव व ने कहा, ''िान िीमजए, पा गए तो?''

ु पूरा मवश्वास है मक अंमति पि िें वह मकसी और रास्ते से मखसक गया


''नहीं िेटा, इतना आसान काि नहीं है। िझे

होगा।''

''और अगर वह आ जाए तो?''

मनिाई िािू ने कुछ सोचकर कहा, ''उस पर िरािर नजर रखने का आदेश मििा है, दो मदन देखता हूं। पकड़ने की अपेक्षा

जांच करना जरूरी है। सरकार का यही मवचार है।''

अपूव व इस िात पर मवश्वास न कर सका। क्योंमक वह उसके मिए जो कुछ भी हों मिर भी हैं तो पमिस
ु के आदिी! उसने

पूछा, ''उनकी उम्र क्या है?''

''िगभग तीस-ित्तीस की होगी।''

''देखने िें कै स े हैं ?''

ु है। इसीमिए तो पहचानना कमठन है। पकड़ना भी कमठन है। हि िोगों


''यही तो आश्चयव है िेटा! अत्यंत साधारण िनष्य

की मरपोटव िें यही िात मवशेर् रूप से मिखी हुई है।''

अपूव व िोिा, ''िेमकन पकड़े जाने के भय से ही तो यह प ैदि वन िांघकर आए हैं ।''


मनिाई िािू िोिे, ''हो सकता है, कोई मवशेर् उद्देश्य हो। हो सकता है इस रास्ते को भी जान िेना चाहता हो। कुछ भी नहीं

ु के मवचार के साथ इनके मवचार िेि नहीं


कहा जा सकता अपूव!व यह िोग मजस पथ के पमथक हैं उसिें साधारण िनष्य

खाते। आज इसकी भूि है या हि िोगों की भूि है-इसकी परीक्षा होने वािी है। ऐसा भी सम्भव है मक हि िोगों की सारी

दौड़-धूप व्यथव हो जाए।''

अपूव व िोिा, ''ऐसा ही हो तो अच्छा है। िैं अि:करण से यही प्राथवना करता हूं चाचा जी!''


मनिाई िािू हंस पड़े। िोिे, ''िूख व िड़के , कहीं पमिस ु अपने घर का क्या नम्बर िताया,
से ऐसी िात कही जाती है? तिने


तीस? हो सका तो कि आऊं गा। सािने की जेटी पर ही शायद यहां का स्टीिर खड़ा होता है। अच्छा, तम्हारे ऑमिस का

ु है, नई नौकरी है। देर करना ठीक नहीं।'' यह कहकर वह दूसरी ओर घूि गए।
सिय हो चका

अपूव व ने कहा, ''देर की क्यों, ऑमिस िें ग ैरहामजरी हो जाने पर िैं आपको छोडूग
ं ा नहीं। िैं नहीं चाहता मक वह अि

आपके हाथ पड़ जाएं, िेमकन यमद दुघवटना हो भी जाए तो िैं एक िार उन्हें देख तो लं गा, चमिए।''

इच्छा न होने पर भी मनिाई िािू ने मवशेर् आपमत्त नहीं की। के वि थोड़ा-सा सावधन करते हुए कहा, ''देखने का िोभ

होता है, िैं इसे अस्वीकार नहीं करता, िेमकन ऐसे िोगों से मकसी प्रकार पमरचय िढ़ाना भी भयानक है-यह जान िो

अपूव?व अि तिु िड़के नहीं हो। मपता जीमवत नहीं हैं । भमवष्य को भी सोचना चामहए।''

अपूव व हंसकर िोिा, ''पमरचय का अवसर आप िोग मकसी को देत े कहां हैं चाचा जी! कोई अपराध नहीं, कोई अमभयोग

नहीं, मिर भी उनको जाि िें िं साने आप इतना दूर चिे आए हैं ।''


मनिाई िािू तमनक-सा िस्करा पड़े। िोिे, ''यह तो कत्तवव्य है।''


मजस सिय दोनों जेटी पर पहुंच,े इस िड़ी नदी का मवशाि स्टीिर मकनारे िगने की वािा था। पांच-सात पमिस

अमधकारी, सादी पोशाक िें पहिे से ही खड़े थे। मनिाई िािू के प्रमत उन िोगों की आंखों का एक प्रकार का संकेत देखकर

ु ििाव िें एक मवद्रोही का मशकार करने


अपूव व उन्हें पहचान गया। वह सभी भारतीय थे। भारत के कल्याण के मिए सदूर

आए हैं । मशकार की वस्त ु िगभग हाथ आ चकी


ु है। सििता का आनंद तथा उत्तेजना की प्रच्छन्न दीमप्त उनके चेहरे पर

प्राप्त हो रही है।


जहाज के खिासी उस सिय जेटी पर रस्सी िेंक रहे थे। मकतने ही िोग रेमिं ग पकड़े देख रहे थे। डेक पर शोर-शरािे

ु दृमष्ट से मकनारे की प्रतीक्षा कर


और दौड़-धूप की सीिा नहीं थी। सम्भव है, इन्हीं िोगों के िीच खड़ा एक व्यमक्त उत्सक

ु ं से एकदि धध
रहा हो। िेमकन अपूव व की दृमष्ट िें सम्पूण व दृश्य आंखों के आंसओ ं ु िा और अस्पष्ट हो उठा। ऊपर-नीचे जि

िें, स्थि िें इतने नर-नारी खड़े हैं , मकसी को कोई शंका नहीं। मकसी का कोई अपराध नहीं। के वि मजस व्यमक्त ने अपने

ु सिस्त स्वाथव तथा सभी आशाओ ं का स्वेच्छा से मवसजवन कर मदया है, कारागार तथा िृत्य ु की
ु हृदय के सिस्त सख,
यवा

राह के वि उसी के मिए िहं ु िाए खड़ी है।

जहाज जेटी पर आकर िग गया। काठ की सीढ़ी नीचे िगा दी गई, िेमकन अपूव व नहीं हटा। वहीं मनश्चि, पार्ाण िूमतव के


सिान खड़ा आप-ही-आप कहने िगा मक क्षण भर िाद तम्हारे ु नर-नारी तम्हारी
हाथ िें हथकड़ी पड़ जाएगी। उत्सक ु

ु सववस्व त्याग कर
ें ।े वह जान भी न पाएंग े मक उन्हीं िोगों के मिए तिने
िांछना तथा अपिान आंखें िाड़-िाड़कर देखग


मदया है। इसमिए इन िोगों के िीच तम्हारा रहना न हो सके गा। उसकी आंखों से आंस ू झर-झर मगरने िगे और मजसे

उसने कभी देखा नहीं उसी को सम्बोमधत करके िन-ही-िन कहने िगा-''तिु तो हि िोगों की भांमत सीधे-सादे िनष्य

ु देश के मिए अपना सववस्व त्याग मदया है। इसीमिए देश की नौकाएं तम्हें
नहीं हो। तिने ु पार नहीं कर सकती। तम्हें
ु त ैरकर


पद्मा नदी को पार करना पड़ता है। इसमिए देश का राज-पथ तम्हारे ु दुगवि वन-पववत िांघने पड़ते
मिए अवरुध्द है। तम्हें

ु पथ के अग्रदूत! हे पराधीन देश के राजमवद्रोही! तिको


हैं । हे िमक्त ु ु की भीड़, इतने
शत कोमट निस्कार।''-इतने िनष्यों

िोगों का आना-जाना, इतने िोगों की नजरें , मकसी पर भी उसका ध्यान नहीं था। मकतना सिय िीत गया, इसकी उसे

खिर ही नहीं थी। अचानक मनिाई िािू की आवाज से चौंककर झटपट आंखें पोंछ हंसने की चेष्टा करने िगा। उसका

करुणमवह्नि भाव देखकर वह आश्यचव िें पड़ गए। िोिे, ''मजस िात का भय था, वही हुआ, मनकि गया।''

''कै स े मनकि गया?''

ु तीन सौ यात्री, िीस-पच्चीस मिरंगी साहि, उमड़या,


मनिाई िािू िोिे, 'अगर यही जानता तो वह कै स े मनकि जाता? सिह

िद्रासी, पंजािी सौ-डेढ़ सौ के िगभग रहें होंगे। शेर् ििी थे। पता नहीं मकसकी पोशाक पहने और मकसकी भार्ा िोिते-


िोिते िाहर मनकि गया। सिझ गए न भ ैया, हि तो पमिस वािे हैं । पहचानने का उपाय नहीं है मक वह योरोमपयन हैं या

िंगािी। जगदीश िािू संदहे िें िगभग छ: िंगामियों को पकड़कर थाने िें िे गए हैं । एक आदिी का चेहरा उनके चेहरे
से िेि खा रहा है, ऐसा जान पड़ता है। िेमकन जान पड़ने से ही क्या होता है। वह नहीं है। क्या तिु चिोगे भ ैया? एक

िार उस आदिी को देखोगे?''

अपूव व की छाती धड़क उठी। िोिा, 'अगर आप उसे िारना-पीटना चाहते हैं तो िैं नहीं जाना चाहता।''


मनिाई िािू ने हंसकर कहा, ''इतने आदमियों को तो हिने चपचाप छोड़ मदया और यह िेचारे िंगािी हैं । स्वयं िंगािी


होते हुए क्या िैं इन पर अत्याचार करूंगा? अरे भ ैया, पमिस िें सभी िरेु ही नहीं होते। िहं ु िंद करके मजतना दु:ख हिें

सहना पड़ता है, अगर तिु जानते, तो अपने इस दरोगा चाचा से इतनी घृणा न कर पाते अपूव।व '

अपूव व िोिा, ''आप अपना कत्तवव्य पािन करने आए हैं । मिर आपसे घृणा क्यों करूंगा चाचा?'' कहकर उनके चरण छू

मिए।

मनिाई िािू ने प्रसन्न होकर आशीवावद मदया और िोिे, ''चिो, जरा जल्दी चिें । वह िोग भूख-प्यास से दु:खी हो रहे

होंगे। थोड़ी-िहुत जांच करके छोड़ मदया जाएगा।''

थाने के सािने वािे िड़े किरे िें छ: िंगािी ि ैठे थे। जगदीश िािू ने इसी िीच उनके टीन के िक्स और गठमरयां आमद

खोिकर जांच आरम्भ कर दी थी। मजस व्यमक्त पर उन्हें मवशेर् रूप से संदहे था उसे एक अिग किरे िें िंद कर रखा था।

यह िोग नौकरी की खोज िें रंगनू आए थे। इनके काि-धाि और मववरण आमद मिखकर और उनके सािान की जांच हो

ु के िाद पॉमिमटकि सस्पेक्ट सव्यसाची को मनिाई िािू के सािने उपमस्थत मकया गया। वह खांसते-खांसते सािने
चकने

आया। उम्र तीस-ित्तीस से अमधक न रही होगी, िेमकन ज ैसा दुििा-पतिा था वैसा ही किजोर भी था। जरा-सी खांसी

से हांिने िगता था। अंदर के न जाने मकस असाध्य रोग से उसका सम्पूण व शरीर भी तेजी से क्षय रोग की ओर दौड़ रहा

था। आश्चयवजनक थी तो के वि उसके उस रुग्ण चेहरे िें दो अद्भतु आंखों की दृमष्ट। यह आंखें छोटी हैं या िड़ी। िम्बी हैं

या गोि। दीप्त हैं या प्रभावहीन-इनका मववरण देन े की चेष्टा ही व्यथव है। अत्यमधक गहरे जिाशय की भांमत उनिें न जाने

ु होकर उस ओर देख रहा था। अचानक मनिाई िािू ने उसकी वेश-भूर्ा की िहार
क्या है? भय िगता है। अपूव व तो िग्ध

और ठाटिाट पर अपूव व की दृमष्ट आकमर्वत करके हंसते हुए कहा, ''िािूजी का स्वास्थ्य तो चिा गया है, िेमकन शौक िें

अभी कोई किी नहीं आई है, यह तो िानना ही पड़ेगा। क्या कहते हो अपूव?व ''
इतनी देर िाद उसके पहनावे पर नजर डािकर, िहं ु िे रकर अपूव व ने हंसी मछपा िी। उसके मसर पर िड़े-िड़े िाि हैं ,

िेमकन गदवन और कानों के पास मििुि नहीं है। मसर िें िांग कढ़ी हुई है। िािों िें पड़े हुए नींिू के तेि की गंध से किरा

भर उठा है। शरीर पर मसि का कुताव है। छाती की जेि िें से रूिाि का थोड़ा-सा महस्सा मदखाई दे रहा है। चादर नहीं

ु पर
है। िदन पर मविायती मिि की कािी िखििी मकनारी की िारीक धोती है। प ैरों िें हरे रंग के पूरे िोजे हैं , जो घटनों

िाि िीते से िंध े हैं , पॉमिश मकया हुआ पम्प शू है, प ैरों िें मजनके तिों को िजिूत और मटकाऊ िनाने के मिए िोहे के

नाि जड़े हुए हैं । हाथ िें महरण के सींग की िूठवािी िेंत की छड़ी है। इन कई मदनों तक जहाज की भीड़भाड़ िें सभी

कपड़े गंद े हो गए हैं ।

उनका मसर से प ैर तक िार-िार मनरीक्षण करके अपूव व ने कहा, ''चाचा जी इस आदिी को आप कोई भी िात पूछे मिना

छोड़ दीमजए। मजसे आप खोज रहे हैं , वह आदिी यह नहीं है। इसकी जिानत िैं देन े को त ैयार हूं।''


मनिाई िािू ने हंसकर पूछा, ''तम्हारा नाि क्या है जी?'

''िेरा नाि मगरीश िहापात्र है।''

''एकदि िहापात्र-तिु तो तेि की खान िें काि करते थे? अि रंगनू िें ही रहोगे? तम्हारे
ु िक्स और मिस्तर की तिाशी तो

ु है। देख ूं तम्हारे


हो चकी ु पस व और जेि िें क्या है?

उसके पस व से एक रुपया और छ: आने मनकिे। जेि से िोहे का कं पास नापने के मिए िकड़ी का िुटरूि, कुछ िीमड़यां,

एक मदयासिाई और गांज े की मचिि मनकिी।

मनिाई िािू ने पूछा, ''तिु गांजा पीते हो?''

उसने संकोच से उत्तर मदया, ''जी नहीं।''

''ति यह चीज जेि िें क्यों है?''

''रास्ते िें पड़ी थी। उठा िी। मकसी के काि आ जाएगी।''

तभी जगदीश िािू किरे िें आ गए। मनिाई िािू ने हंसकर कहा, ''देखो जगदीश, यह मकतने परोपकारी व्यमक्त हैं । मकसी

के काि आ जाए, यह सोचकर इन्होंने गांज े की मचिि रास्ते से उठाकर रख िी है।'' यह कहकर उन्होंने उसके दाएं हाथ
के अंगठू े को देखकर हंसते हुए कहा, ''गांजा पीने का मचद्द यह है भ ैया 'पीता हूं', कह देन े से काि चि जाए। मकतने मदन


और जीना है। यही तो है तम्हारा शरीर। िूढ़े की िात िानो, अि ित पीना।''

''जी नहीं, िैं तो पीता ही नहीं। िगर िनाने को कहते हैं तो िना देता हूं।''

जगदीश मचढ़कर िोिा, ''दया के सागर हैं न। दूसरों को िना देत े हैं , स्वयं नहीं पीते। झ ूठा कहीं का।''

अपूव व ने कहा, ''सिय हो गया। अि जा रहा हूं चाचा जी।''

मनिाई िािू ने उठकर कहा, ''अच्छा, तिु जा सकते हो िहापात्र। क्यों जगदीश, जा सकता है न?''

सम्ममत देत े हुए जगदीश िोिा, ''िेमकन िेरा मवचार है, इस नगर िें और कुछ मदनों तक मनगरानी की आवश्यकता है।

शाि की िेि ट्रे न पर नजर रखना। वह ििाव िें आ गया है, यह खिर सच है।''

अपूव व थाने से िाहर आ गया। उसके साथ ही िहापात्र भी अपने टूटे हुए टीन के िक्स को और चटाई िें मिपटे गंद े मिछौने

के िंडि को िगि िें दिाकर उत्तर का रास्ता पकड़कर धीरे-धीरे चिा गया।

कै सी आश्चयवजनक िात है मक सव्यसाची नहीं पकड़ा गया। डेरे पर िौटकर शेव िनाने से िेकर संध्या-पूजा, स्नान,

भोजन, कपड़े पहनने, ऑमिस जाने आमद के मनत्य के कािों िें कोई िाधा नहीं हुई। िेमकन उनका िन मकस संिध
ं िें


सोचने िगा था, उसका कोई पता नहीं। उसकी आंख,ें कान और िमध्द-अपने सभी सांसामरक कायों से दूर होकर मकसी

अनजान, अनदेख े राजद्रोही की मचंता िें ही मनिग्न हो गए।

अपूव व को अनिना देखकर तिविकर ने पूछा, ''आज घर से कोई मचट्ठी आई है क्या?''

अपूव व ने कहा, ''नहीं तो।''

''घर िें कुशि तो है न?''

''मजतना जानता हूं-कुशि ही है।''


रािदास ने मिर कोई प्रश्न नहीं मकया। मटमिन के सिय दोनों एक साथ ही जिपान करते थे। रािदास की पत्नी ने एक मदन

ु मकया था मक मजतने मदनों तक आपकी िां या घर की कोई और आत्मीय स्त्री इस देश िें
अपूव व से अत्यंत आग्रह से अनरोध

ु व्यवस्था नहीं करती-उतने मदनों तक इस छोटी िमहन के हाथ की िनाई हुई थोड़ी-सी मिठाई आपको
आकर डेरे की उपयक्त

रोजाना िेनी ही पड़ेगी। अपूव व सहित हो गया था। ऑमिस का एक ब्राह्मण चपरासी वह सि िा देता था। आज भी जि

वह पास के एकांत किरे िें भोजन सािग्री सजाकर रख गया, ति भोजन करने के मिए ि ैठते ही अपूव व ने प्रसंग छेड़ मदया,

''कि िेरे डेरे पर चोरी हो गई। सि कुछ जा सकता था। िेमकन ऊपर वािी िंमजि पर रहने वािी मक्रमश्चयन िड़की की

कृ पा से रुपए-प ैसे के अमतमरक्त और सि कुछ िच गया।'' मिर सि कुछ मवस्तार से सनाने


ु के िाद, कहा, ''वास्तव िें वह

ऐसी कुशि िड़की है, ऐसा िगता नहीं था।''

रािदास ने पूछा, ''इसके िाद?''

अपूव व ने कहा, ''मतवारी घर िें था नहीं। ििी नाच देखने चिा गया था। इसी िीच यह घटना हो गई। उसका मवश्वास है

मक यह काि उस िड़की के अमतमरक्त मकसी और ने नहीं मकया है। िेरा भी कुछ-कुछ ऐसा ही अनिान
ु है। चोरी भिे ही न

करे िेमकन सहायता अवश्य की है।''

''इसके िाद?''


''मिर सवेरे पमिस िें खिर देन े गया। िेमकन वहां जाकर ऐसा तिाशा देखा मक इस िात की याद ही नहीं रही। आज सोच


रहा हूं मक पमिस से चोर-डाकुओ ं को पकड़वाना िेकार है। यही अच्छा है मक वह िोग मवद्रोमहयों को ही मगरफ्तार करते

रहें ,'' यह कहते ही उसे मगरीश िहापात्र की याद आ गई। हंसी रुकने पर उसने मवज्ञान और मचमकत्सा शास्त्र के

असाधारण ज्ञाता, मविायत के डॉक्टर उपामध धारी, राज शत्र ु िहापात्र के स्वास्थ्य, मशक्षा, रुमच, उनका िि-वीयव,

ु रंग का कुताव, हरे रंग के िोजे, िोहे के नाि िगे पम्प शू, नींिू के तेि से सवामसत
इन्द्रधानर्ी ु के श और सवोपमर

ु -सनाते
व सनाते
परोपकायव गांज े की मचिि का आमवष्कार करने की कथा मवस्तारपूवक ु अपनी उत्कट हंसी का वेग मकसी

प्रकार और एक िार रोककर अंत िें कहा, ''तिविकर िहाचतरु पमिस


ु दि को आज की तरह िूख व िनते सम्भवत: मकसी

ने कभी नहीं देखा होगा।'


रािदास ने पूछा, ''क्या ये िोग आपकी िंगाि पमिस के हैं ?''
अपूव व ने कहा, ''हां। इसके अमतमरक्त सिसे अमधक िज्जा की िात यह है मक इनके इंचाजव िेरे मपताजी के मित्र हैं । िािूजी

ने ही एक मदन इनकी नौकरी िगवाई थी।''

''ति तो आपको मकसी मदन इसका प्रायमश्चत्त करना पड़ेगा।'' यह कहकर रािदास सहसा अप्रमति-सा हो गया। अपूव व

उसका चेहरा देखते ही उसका तात्पयव सिझ गया। िोिा, ''िैं उनको चाचा जी कहता हूं। वह हिारे आत्मीय हैं ,

ु क्षी हैं । िेमकन क्या इसीमिए वह िेरे मिए देश से िढ़कर हैं । िमि मजन्हें देश के रुपए खचव करके , देश के
शभाकां

आदमियों की सहायता से मशकार की तरह पकड़ने के मिए घूि रहे हैं , वह ही िेरे परि आत्मीय हैं ।''

रािदास िोिा, ''िािूजी, यह कहने िें भी मवपमत्त है।''

अपूव व िोिा, ''भिे ही तिविकर! के वि अपने ही देश िें नहीं, संसार के मजस मकसी देश िें, मजस मकसी यगु िें, मजस

मकसी ने अपनी जन्म-भूमि को स्वतंत्र कराने की चेष्टा की है। उसको अपना कहने की सािर्थ्व और मकसी िें भिे ही न हो,

ु िें है। मिना अपराध के ही मिरंगी िड़कों ने जि िझे


िझ ु िात िारकर प्लेटिािव से िाहर मनकाि मदया और जि िैं इसका

ु के वि देशी आदिी सिझकर कुत्ते की तरह ऑमिस से


े स्टे शन िास्टर ने िझे
प्रमतवाद करने के मिए गया ति अंग्रज

मनकिवा मदया। उनकी िांछना, इस कािे चिड़े के नीचे कि जिन प ैदा नहीं करती तिविकर! जो िोग इन जघन्य

अत्याचारों से हिारी िाताओ,ं िहनों और भाइयों का उध्दार करना चाहते हैं , उनको अपना कहकर पकारने
ु िें जो भी कष्ट

पड़े, िैं सहर्व झेिने को त ैयार हूं।''

रािदास का सदं ु र गोरा चेहरा पिभर के मिए िाि हो उठा। िोिा 'यह दुघवटना तो आपने िझे
ु िताई नहीं।'

अपूव व िोिा, ''कहना सरि नहीं है रािदास। वहां कि भारतीय नहीं थे, िेमकन िेरे अपिान का मकसी पर प्रभाव नहीं

पड़ा। िात की चोट से िेरी हड्डी-पसिी टूटी, इसी कुशि सिाचार से वह प्रसन्न हो गए। क्या िताऊं , याद आते ही दु:ख,

िज्जा तथा घृणा से अपने आप िानों मिट्टी िें गड़ जाता हूं।'

रािदास िौन हो रहा। िेमकन उसकी दोनों आंखें डिडिा आईं। तीन िज चकेु थे, वह उठकर खड़ा हो गया।

उस मदन छुट्टी होने से पहिे िड़े साहि ने कहा, ''हिारे िािो के ऑमिसों िें अव्यवस्था हो रही है। िांडिे, शोएवी,

मिमििा और प्रोि सभी ऑमिसों िें गड़िड़ी है। िेरी इच्छा है मक तिु एक िार जाकर उन सिको देख आओ। िेरे न

ु को करना होगा। एक पमरचय रहना चामहए। इसमिए अगर कि-परसों...।''


रहने पर सारा काि तम्हीं
अपूव व िोिा, ''िैं कि ही िाहर जा सकता हूं।''

दूसरे मदन वह िािो जाने के मिए ट्रे न िें जा ि ैठा। साथ िें एक अदविी और ऑमिस का एक महंदुस्तानी ब्राह्मण भी था।

मतवारी डेरे पर ही रहा। िं गड़ा साहि अस्पताि िें पड़ा है, इसमिए अि उतना भय नहीं है। तिविकर ने मतवारी की

ु खिर देना।''
पीठ ठोककर कहा, ''मचंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। कभी कोई घटना हो तो िझे

ट्रे न छूटने िें िगभग पांच मिनट की देर होगी मक सहसा अपूव व चौंककर िोि उठा, ''वही तो।''

तिविकर गदवन िे रते ही सिझ गया मक वही मगरीश िहापात्र है। वही ठाटिाट वािा िांहदार कुताव, हरे रंग के िोजे,

वही पम्प शू और घड़ी। अंतर के वि इतना ही है मक इस िार वह िाघ अंमकत रूिाि, छाती की जेि के िजाय गिे िें


मिपटा हुआ है। िहापात्र इसी ओर आ रहा था। मनकट आते ही अपूव व ने पकारकर ु पहचान
कहा, ''क्यों मगरीश, िझे

सकते हो? कहां जा रहे हो?''

''जी हां, पहचान रहा हूं। कहां के मिए प्रस्थान हो रहा है?''

''इस सिय तो िािो जा रहा हूं। तिु कहां चि रहे हो?''

ु िोग झ ूठ-िूठ तंग करते हैं । हां, यह


मगरीश ने कहा, ''जी, एनाज से दो मित्रों के आने की िात थी, िेमकन िािूजी, िझे

अवश्य है मक िोग अिीि और गांजा मछपाकर िे आते हैं , िेमकन िािू, िैं तो िहुत ही धिवभीरु आदिी हूं। िेमकन

कहावत है न-ििाट की मिखावट िेटी नहीं जा सकती।''

ु भी ऐसा मवश्वास है। िेमकन तिु गित सिझ रहे हो भाई। िैं पमिस
अपूव व ने हंसते हुए कहा, ''िझे ु का आदिी नहीं हूं।

अिीि-गांज े से िेरा कोई ितिि नहीं है। उस मदन तो िैं के वि तिाशा देखने गया था।''

तिविकर िोिा, ''िािू! िैंन े अवश्य ही कहीं देखा है।''

मगरीश ने कहा, ''इसिें कोई आश्चयव नहीं है िािू! नौकरी के मिए मकतनी ही जगह िैं घूिता रहता हूं। अच्छा, अि जा रहा

हूं िािू, राि-राि।'' इतना कहकर वह आगे िढ़ गया।

अपूव व ने कहा, ''इसी सव्यसाची के पीछे-पीछे चाचा जी अपने दि-िि के साथ इस देश से उस देश िें घूि रहे हैं

तिविकर।'' यह कहकर वह हंस पड़ा। िेमकन तिविकर ने इस हंसी िें साथ नहीं मदया।
दूसरे पि सीटी िजाकर ट्रे न स्टाटव हो गई। उसने हाथ िढ़ाकर मित्र से हाथ मििाया िेमकन िहं ु से एक शब्द भी नहीं

मनकिा।

अपूव व िस्टव क्लास का यात्री था। उस कम्पाटव िेंट िें और कोई यात्री नहीं था। संध्या हो चिी तो उसने संध्या-पूजा के िाद

भोजन मकया। उसका ब्राह्मण अदविी सवेरे जिपान रख गया था और मिछौना भी मिछा गया। भोजन करने की िाद हाथ-

िहं ु धो, तृप्त हो इत्मीनान से मिस्तर पर िेट गया। िेमकन उस रात तीन िार पमिसवािों
ु ने उसे जगाकर उसका नाि,

काि और पता-मठकाना पूछा।

एक िार अपूव व िोिा, ''िैं िस्टव क्लास का यात्री हूं। तिु रात के सिय िेरी नींद खराि नहीं कर सकते।''


''यह मनयि रेिवे किवचामरयों के मिए है। िैं पमिस ु खींचकर नीचे भी उतार सकता हूं।''
किवचारी हूं। चाहूं तो तम्हें

ु िन भीतर-िाहर से आछन्न और अमभभूत होता चिा जा रहा था। अचानक जोर का धक्का िगने से उसने
उसका भावक

चौंककर देखा। रािदास की िातें याद आ गईं। यहां आने के िाद से इस ििाव देश की िहुत-सी व्यक्त-अव्यक्त कहामनयों

का उसने संग्रह कर रखा था। इस प्रसंग िें उसने एक मदन कहा था, ''िािूजी, के वि शोभा, सौंदयव ही नहीं, प्रकृ मत िाता

की दी हुई इतनी िड़ी सम्पदा कि देशों िें है। इसके वन और अरण्यों की सीिा नहीं। इसकी धरती िें कभी न सिाप्त होने

वािी तेिों की खानें हैं । इसकी हीरों की िहािूल्यवान खानों का िूल्य आंका नहीं जा सकता और मवशाि वृक्षों की यह जो

ु पांतें हैं , इनकी तिना


गगनचम्बी ु े िमनए
संसार िें कहां है! िहुत मदनों की िात है। यहां के िारे िें जानकर एक मदन अंग्रज

ु िें परामजत दुिवि-शमक्तहीन


की िािची दृमष्ट अचानक इस पर आसक्त हो उठी। िंदूकें -तोपें आईं। िड़ाई मछड़ गई। यध्द

ु ना वसूि मकया गया। इसके


राजा को मनवावमसत कर मदया गया। उसकी रामनयों के शरीर के जेवर िेचकर िड़ाई का जिाव

े राजशमक्त इस मवमजत देश का शासन भार


िाद देश की, िानवता, सभ्यता और न्याय-धिव के कल्याण के मिए अंग्रज

ग्रहण कर, उसका अनेक प्रकार से कल्याण करने के मिए तन-िन से जटु गई।

इसी प्रकार न जाने मकतनी िातें उसके हृदय को आिोमड़त करती रहीं। अचानक ट्रे न की गमत धीिी पड़ने पर उसे चेत

हुआ। जल्दी से आंखें पोंछकर उसने देखा-स्टे शन आ गया था।


िचपन से ही मस्त्रयों के प्रमत अपूव व के िन िें श्रध्दा की अपेक्षा घृणा की भावना ही अमधक थी। भामभयां िजाक करतीं तो

वह िन-ही-िन दु:खी होता। घमनष्ठता िढ़ाने आतीं तो दूर हट जाता। िां के अमतमरक्त और मकसी के सेवा या देखभाि

उसे अच्छी नहीं िगती थी। मकसी िड़की के परीक्षा िें पास होने के सिाचार से उसे प्रसन्नता नहीं होती थी। यूरोप िें

मस्त्रयां किर कसकर राजनीमतक अमधकार पाने के मिए िड़ रही थीं। अखिारों िें उनके सिाचार पढ़कर उसका शरीर

जिने िगता था। िेमकन उसका हृदय स्वभाव से ही भद्र और कोिि था। वैस े वह नर-नारी का भेद न िानकर प्राणीिात्र

को अत्यंत प्रेि करता था। मकसी को तमनक-सा भी कष्ट देन े िें उसे महचक होती थी। इसीमिए भारती को अपराधी जानते

ु िें स्त्री के संिध


हुए भी उसने दंमडत नहीं होने मदया। परुर्ों ं िें जो किजोमरयां होती हैं वह उसे छू तक नहीं गई थी। इस

ु न रखते हुए भी उसका िन भारती को


ईसाई िड़की को दंड देना उसके स्वभाव के मवरुध्द था। नारी जामत के प्रमत अनराग

ु के प्रमत
आसानी से िहुत मदनों तक दूर हटाकर रख सके गा, यह भी सच नहीं था। मिर भी इस मनभवय, मिर्थ्ावामदनी यवती

उसके िन िें राग-द्वेर् की सीिा नहीं थी।

उसे िािो आए पंद्रह मदन हो गए हैं । यहां से कि-परसों तक मिमििा जाने की िात है। ऑमिस से िौटकर िरािदे िें

ि ैठा िन-ही-िन सोचने िगा। नारी स्वाधीनता के संिध


ं िें उसका िन अपनी सम्ममत देना नहीं चाहता था। इसिें िंगि


नहीं है। यह धारणा उसकी रुमच तथा संस्कार पर आधामरत थी। शास्त्रीय अनशासनों िें भी इनके प्रमत गम्भीर अन्याय है

इस सत्य को भी उसका न्याय परायण िन मकसी प्रकार स्वीकार नहीं करता था। िेमकन आज मजस कारण अचानक ही

उसकी यह धारणा मिट गई, उसका मववरण इस प्रकार है-

मजस दो िंमजिे िकान िें उसने किरे मकराए पर मिए हैं उसकी मनचिी िंमजि िें एक ििी पमरवार रहता है। सवेरे

ऑमिस जाने से पहिे उनके पमरवार िें एक अनथवकारी दुघवटना हो गई। उनकी चार िड़मकयां हैं - सभी मववामहता हैं ।

मकसी उत्सव के उपिक्ष िें आज सभी उपमस्थत हुए थे। भोज के सिय सम्मान के मवर्य िें पहिे तो िड़मकयों िें, दािादों

ु मक इनिें से एक तो िद्रास
िें तू-तू, िैं-िैं होने िगी और खून-खरािे तक िात पहुंच गई। अपूव व खिर िेन े गया तो सना


का चमिया ु
िसििान है। एक चटगांव का िंगािी पोतगवु ीज है। एक ऐग्िो
ं इंमडयन और सिसे छोटा चौथा दािाद एक

चीनी है। वह सि कई पीमढ़यों से इस शहर िें रहकर चिड़े का व्यवसाय कर रहे हैं ।

इस प्रकार पृथ्वीव्यापी सि जामतयों का श्वसरु िनने का गौरव अन्य स्थानों िें दुिवभ होते हुए यहां सिभ
ु है। इन संिध
ं ों का

मपता ने मवरोध मकया था, िेमकन िड़मकयों की स्वाधीनता ने उस पर ध्यान नहीं मदया। एक-एक मदन एक-एक करके
िड़मकयों का घर पर पता नहीं रहा। मिर एक-एक कर वह िौट आईं और उनके साथ आ गया मवमचत्र दािादों का यह

दि। उनकी भार्ा अिग, भाव-मवचार अिग, किव और स्वभाव अिग। मशक्षा-संस्कार मकसी के साथ मकसी का िेि नहीं


मििता। यह तो हिारे देश की महंदू-िमिि ु गी?
सिस्या की भांमत धीरे-धीरे जमटि होती जा रही है। कै स े सिझे

अपूव व का िन क्षोभ दु:ख और मवरमक्त से दु:खी हो उठा और िड़मकयों की इस सािामजक स्वतंत्रता को िार-िार कोसने

ु है। इसी प्रकार की सभ्यता को अपने देश िें िाने पर हि िोग भी


िगा। ििाव नष्ट हो रहा है। यूरोप नष्टप्राय हो चका


सिूि नष्ट हो जाएंग।े इस दुमदिन िें अगर हि संशय छोड़कर अपने परातन मसध्दातों का पािन न कर सके तो हिें मवनाश

से कोई नहीं िचा सके गा। इसी प्रकार की अनेक मवचारधाराओ ं िें डूिा अंधरे े िें अके िा ि ैठा रहा। िेमकन दुभावग्य? यह

ु िंत्र को वह जीवन का एकिात्र व्रत िानकर तन-िन से


सीधी-सी िात उसके िन िें एक िार भी नहीं आई मक मजस िमक्त

ु के सच्चे देवता को ही सम्मान समहत दूर हटा रहा है।


ग्रहण करना चाहता है उसी की दूसरी िूमतव को हाथों से ठे िकर िमक्त

ु क्या ऐसी ही कोई छोटी-सी वस्त ु है?


िमक्त

अदविी िोिा, ''आपके जाने की िात तो परसों के मिए थी न?''

''नहीं परसों नहीं कि-एक ित्ती दे जा,'' सिाज िें िमहिाओ ं की स्वाधीनता का यह नया रूप देखकर उसका िन उमद्वग्न

हो उठा था।

दूसरे मदन ठीक सिय पर वह मिमििा के मिए चि पड़ा। िेमकन वहां पहुंचने पर िन नहीं िगा। देशी और मविायती

पिटनों की छावनी है। अनेक िंगािी सपमरवार रहते हैं । अच्छा शहर है। नए िोगों के मिए घूिकर देखने की िहुत-सी

चीजें हैं । िेमकन यह सि उसे अच्छा नहीं िगा। िन रंगनू पहुंचने के मिए छटपटाने िगा। िािो िें रहते हुए मरडायरेक्ट

मकया हुआ िां का एक पत्र उसे मििा था। उसके िाद रािदास के दो पत्र आए थे। उसने मिखा था मक जि तक तिु िौट

नहीं आते, डेरा िदिने की कोई आवश्यकता नहीं है। वह स्वयं जाकर देख आया है। मतवारी अच्छी तरह रह रहे हैं ।

ु हैट-कोट थे। साथ


स्टे शन पर एक िड़के को रेि के किवचामरयों ने ट्रे न से उतार मदया था। उसके िदन पर िैिे, िटे -पराने

िें एक टूटा ट्रंक था। मटकट खरीदने के प ैसे से उसने शराि पी िी थी। उसका िस इतना ही अपराध था। िड़के को


पमिस ु मदया तथा और चार-पांच रुपए उसे देकर वहां से हटा
िे जा रही है। यह देखकर अपूव व ने उसका मकराया चका

रहा था मक सहसा उसने हाथ जोड़कर कहा, ''िहाराज, िेरा यह ट्रंक िेत े जाइए। इसे िेचकर जो दाि मििे उसिें से
ु िौटा दीमजएगा।'' उसके कं ठ स्वर से यह स्पष्ट हो गया मक उसने यह
अपना रुपया काट िीमजएगा और िाकी रुपया िझे

िात पूरे होश-हवास िें कही है।

अपूव व ने पूछा, ''कहां िौटाऊं ?''

िड़के ने कहा, ''अपना पता दे दीमजए। िैं आपको मचट्ठी मिख दूंगा।''

अपूव व िोिा, ''अपना ट्रंक अपने पास रहने दो। िैं इसे नहीं िेच सकूं गा। िेरा नाि अपूव व हािदार है। रंगनू की वोथा

कम्पनी िें नौकर हूं। कभी भेज सको तो रुपया भेज देना।''

उसने कहा, ''अच्छा निस्कार। िैं अवश्य भेज दूंगा। यह दया िैं जीवन भर नहीं भूलंगा,'' यह कहकर एक िार मिर

निस्कार करके ट्रंक िगि िें दिाकर वह चिा गया।

इस िार अपूव व ने ध्यान से उसके चेहरे को देखा। आय ु अमधक नहीं है िेमकन मकतनी है ठीक-ठीक िताना कमठन है।

सम्भव है, नशे के कारण दस वर्व का अंतर पड़ गया हो। शरीर का रंग गोरा है। िेमकन धूप िें जिकर तांि े के रंग ज ैसा

हो गया है। मसर के रूखे-सूख े िाि िाथे के नीचे तक झ ूि रहे हैं । आंखों की दृमष्ट उछिती-सी है। नाक खंजर की तरह


सीधी है। शरीर दुििा है। हाथ की अंगमियां िम्बी और पतिी हैं तथा सिूच े िदन पर उपवास और अत्याचार के मचद्द

अंमकत हैं ।

मटकट खरीदकर अपूव व ट्रे न िें जा ि ैठा और दूसरे मदन ग्यारह िजे रंगनू पहुंच गया। जि तांगा डेरे पर पहुंचा तो देखा,


मतवारी को ज ैसे कोई उत्कं ठा ही नहीं। िरािदे का दरवाजा तक नहीं खिा। ु
गाड़ी की आवाज सनकर भी नीचे नहीं

आया।


उसने दरवाजे पर पहुंचकर पकारा-''मतवारी-! ऐ मतवारी!''


थोड़ी देर िाद धीरे से, िड़ी सतकव ता से दरवाजा खिा। ु हो
क्रोध से पागि अपूव व किरे िें घूसते ही अवाक और हतिमध्द

गया। सािने भारती खड़ी थी। यह कै सी िूमतव है उसकी? प ैर िें जूत े नहीं हैं , कािे रंग की साड़ी पहने है, िाि सूख-े सूख े

मिखरे हैं । शांत चेहरे पर मवर्ाद की आभा है। उस पर कभी क्रोध भी कर सके गा, यह मवचार अपूव व िन िें िा ही नहीं

सका। भारती िोिी, ''आ गए? अि मतवारी िच जाएगा।''


अपूव व ने कहा, ''उसे क्या हुआ?''

भारती ने कहा, ''इधर िहुत से िोगों को चेचक की िीिारी हुई है। उसे भी हो गई। आप ऊपर चमिए, स्नान करके थोड़ी

देर आराि करने के िाद नीचे आइएगा। मतवारी अभी सो रहा है, जागने पर िता दूंगी।''

अपूव व आश्चयव से िोिा, ''ऊपर के किरे िें?''

भारती िोिी, ''हां, अभी किरा हिारे अमधकार िें है। िैं चिी गई। खूि साि है। आपको कोई कष्ट नहीं होगा। चमिए।''

किरे िें िशव पर संवारकर अपने हाथों से मिस्तर मिछाकर िोिी, ''अि आप स्नान कर िीमजए।''

ु िताइए।''
अपूव व ने कहा, ''पहिे सारी िातें िझे

भारती िोिी, ''स्नान करके संध्या-पूजा कर िें , ति।''

अपूव व ने मजद नहीं की। कुछ देर िाद जि वह स्नान आमद सिाप्त करके आया तो भारती ने हंसकर कहा, ''अपना यह

मगिास िीमजए। मखड़की पर कागज िें मिपटी चीनी रखी है। उसे िेकर िेरे साथ नि के पास आइए। मकस तरह शिवत

िनाया जाता है, िैं मसखा देती हूं।''

अमधक कहने की आवश्यकता नहीं थी। प्यास से छाती िटी जा रही थी। शिवत िनाकर उसने पी मिया।

भारती िोिी, ''अभी आपको एक कष्ट और दूंगी।''

अपूव व िोिा, ''कै सा कष्ट?''


भारती िोिी, ''नीचे से िैंन े कोयिा िाकर रख मदया है। उमड़या िड़के को ििाकर आपके चूल्हे को िंजवा मदया है।

चावि है, दाि है, परवि, घी, तेि, निक सि है। पीति की िटिोई िा देती हूं। थोड़ा-सा पानी िेकर धो िें और चढ़ा

दें। कमठन काि नहीं हैं , िैं सि िता दूंगी। आप के वि चढ़ाएंग े और उतारें ग।े आज यह कष्ट उठा िीमजए, कि दूसरी

व्यवथा हो जाएगी।''

अपूव व ने पि भर िौन रहकर पूछा, ''िेमकन आपके भोजन की व्यवस्था क्या होती है? कि अपने डेरे पर जाती हैं ?

भारती ने कहा, ''डेरे पर भिे ही न जाऊं , िेमकन हि िोगों को भोजन के मिए मचंता नहीं करनी पड़ेगी।''
अपूव व ने घंटे भर िें रसोई त ैयार की। भारती किरे की चौखट के िाहर खड़ी होकर िोिी, ''यहां खड़े रहने से तो कोई दोर्

नहीं होता आपके खाने िें?''

अपूव व िोिा, ''होता तो आप खड़ी न रहतीं।''

जीवन िें पहिी िार अपूव व ने रसोई िनाई है। हजारों कमियां देखकर िीच-िीच िें भारती का धीरज टूटने िगा। िेमकन

जि कटोरे िें डािते सिय दाि इधर-उधर मिखर गई ति वह सहन न कर पाई। क्रोध से िोिी, ''आप ज ैसे मनकम्मे

आदमियों को भगवान न जाने क्यों जन्म देत े हैं ? के वि हि िोगों को परेशान करने के मिए?''

ु साि-साि िताइए। इधर और भी दस आदमियों को चेचक


खाने के िाद अपूव व ने कहा, 'अच्छा, क्या िाििा है, अि िझे

की िीिारी हुई है। मतवारी को हुई है। यहां तक तो सिझ गया, पर जि इस िकान को छोड़कर आप सभी िोग चिे गए

ु देश िें और इससे भी अमधक िंधहीन


तो इस िंधहीन ु नगर िें आप उसके मिए प्राण देन े के मिए कै स े ठहर गईं? क्या

जोसेि ने कोई आपमत्त नहीं की?''

भारती िोिी, 'िािू जी तो अस्पताि िें ही िर गए थे।''


''िर गए?'' अपूव व सन्नाटे िें ि ैठा रह गया, ''आपके कािे कपड़े देखकर इसी प्रकार की मकसी भयंकर दुघवटना का िझे

ु कर िेना चामहए था।''


अनिान

भारती िोिी, ''इससे भी िड़ी दुघवटना यह हुई मक िां अचानक स्वगव मसधार गईं....''

''िां भी िर गईं?'' अपूव व स्तब्ध रह गया। अपनी िां की िात याद करके उसकी छाती िें न जाने कै सी कं पकं पी होने िगी।

भारती ने मकसी तरह आंस ू रोके । िहं ु िे रने पर उसने देखा मक अपूव व सजि आंखों से उसकी ओर देख रहा है। दो-तीन

मिनट िीतने पर उसने धीरे से कहा, ''मतवारी िहुत ही अच्छा आदिी है। िेरी िां िहुत मदनों से िीिार थी। हि सभी

जानते थे मक मकसी भी क्षण उनकी िृत्य ु हो सकती है। मतवारी ने हि िोगों की िहुत सेवा की। िेरे यहां से जाते सिय

िहुत रोया। िेमकन िैं इतना भाड़ा कै स े दे सकती थी?''


अपूव व चपचाप ु रहा।
सनता


भारती ने कहा, ''आपकी वह चोरी पकड़ी गई है। रुपया और िटन पमिस िें जिा हैं । आपको पता है?''
''कहां? नहीं तो।''

''मतवारी को उस मदन जो िोग तिाशा मदखाने िे गए थे, उन्हीं के दि का काि था। और भी न जाने मकतने घरों िें चोरी


करने के िाद शायद चोरी का िाि िांटने िें झगड़ा हो जाने के कारण उनिें से एक ने सारी िातें खोिकर िता दीं। पमिस

के गवाहों िें एक िैं भी हूं। यह पता िगाकर वह िोग एक मदन िेरे पास आए थे। तभी िैंन े यहां आकर यह कांड देखा।


िकदिे की तारीख कि है, यह तो िैं ठीक से नहीं जानती। िेमकन सि कुछ वापस मिि जाएगा। यह सनु चकी
ु हूं।''

यह अंमति िात अगर वह न भी कहती तो अच्छा होता। क्योंमक िज्जा के िारे अपूव व का िहं ु के वि िाि ही नहीं हो उठा,

इस िाििे िें अपने उन प्रकट और अप्रकट इशारों की याद करके उसके शरीर िें कांटे से चभु उठे ।


भारती मिर कहने िगी, ''दरवाजा िंद था। हजारों िार पकारने और मचल्लाने पर भी मकसी ने उत्तर नहीं मदया। ऊपर की

िंमजि की चािी िेरे पास थी। दरवाजा खोिकर अंदर गई। िेरे िशव िें एक छेद हो गया है, ''यह कहकर उसने िज्जा से

हंसी को मछपाकर कहा, ''उस छेद से आपके किरे का सि कुछ मदखाई देता है। देखा, सभी दरवाजे िंद हैं । अंधरे े िें कोई

आदिी मसर से प ैर तक कपड़ा ओढ़े सोया पड़ा है। मतवारी ज ैसा मदखाई मदया। उसी छेद पर िहं ु रखकर मचल्ला-मचल्लाकर


पकारा, ु
मतवारी िैं भारती हूं। तिको ु िचाने िगी।
क्या हुआ? दरवाजा खोि दो- मिर नीचे आकर इसी तरह चीख-पकार

िीस मिनट के िाद मतवारी मकसी तरह मघसटकर आया और दरवाजा खोि मदया। उसका चेहरा देखकर मिर कुछ पूछने


की आवश्यकता ही नहीं रही। इसके तीन-चार मदन पहिे, सािने वािे िकान के किरे से पमिस वािे चेचक से िीिार दो

तेलुग ु कुमियों को पकड़कर अस्पताि िे गए थे। उनका रोना-पीटना, मगड़मगड़ाना मतवारी ने अपनी आंखों से देखा था।

ु प्लेग अस्पताि िें ित भेजना। भेजने से मिर िेरे प्राण


िेरे दोनों पांव पकड़कर भों-भों करके रोते हुए िोिा, ''िाई जी िझे

नहीं िचेंग।े '' यह िात मििुि झ ूठी भी नहीं है। वहां से मकसी के मजंदा िौटकर आने की िात िहुत ही कि सनाई
ु देती है,

ु िें मकसी भी आदिी को अगर पता चि गया


इसी डर से वह रात-मदन दरवाजे-मखड़मकयां िंद करके पड़ा रहता है। िहल्ले

तो मिर रक्षा नहीं है।''

अपूव व िोिा, ''और आप तभी से आप मदन-रात अके िी यहां रह रही हैं । इसकी सूचना क्यों नहीं भेजी? हिारे ऑमिस के

ु मिया।''
तिविकर िािू को तो आप जानती हैं । उन्हें क्यों नहीं ििा
भारती ने कहा, ''कौन जाता? आदिी कहां है? सोचा था, शायद हािचाि पूछने आएंग े िेमकन वह नहीं आए। और इसके

अिावा िात िै ि जाने की भी आशंका थी।''

''यह तो जरूर है,'' कहकर अपूव व ने एक िम्बी सांस िेकर चपु रह गया। िहुत देर िाद िोिा, ''आपका चेहरा कै सा हो

गया?''

भारती हंसकर िोिी, ''यानी पहिे इससे सदं ु र था?''

ु दृमष्ट श्रध्दा और कृ तज्ञता से उस तरुणी पर मटक


अपूव व इस िात का कोई उत्तर नहीं दे सका। उसकी दोनों आंखों की िग्ध

ु जो काि नहीं करता, उसे आपने मकया है। िेमकन अि आपकी छुट्टी है। मतवारी िेरा के वि नौकर ही
गई। िोिा, ''िनष्य

नहीं है, िेरा मित्र भी है। उसकी गोद और पीठ पर चढ़-चढ़कर ही िैं िड़ा हुआ हूं। अि भोजन के मिए घर जाइए। क्या

घर यहां से िहुत दूर है?'

भारती िोिी, ''हि िोग तेि के कारखाने के पास, नदी के मकनारे रहते हैं । िैं कि मिर आऊं गी।''

ु । मतवारी जाग जाने पर भी िेसध-सा


दोनों उतरकर नीचे आ गए। तािा खोिकर दोनों किरे िें घसे ु पड़ा था। अपूव व

उसके मिस्तर के पास आकर ि ैठ गया और जो ितवन आमद मिना िांज-े धोए पड़े थे उन्हें उठाकर भारती स्नानघर िें चिी

गई। उसकी इच्छा थी मक जाने से पहिे रोगी के संिध


ं िें दो-चार जरूरी िातें िताकर इस भयानक रोग से अपने को


सरमक्षत रखने की आवश्यकता की िात याद मदिाकर जाए। हाथ का काि सिाप्त करके इन्हीं िातों को दोहराती हुई किरे

िें िौटी तो उसने देखा मक चेतना शून्य मतवारी के मवकृ त िहं ु की ओर टकटकी िगाए देखता हुआ अपूव व पत्थर की िूमतव

की तरह ि ैठा है। उसका चेहरा एकदि सिे द हो गया है। चेचक की िीिारी उसने अपने जीवन िें कभी देखी नहीं थी।

भारती जि मनकट आ गई तो उसकी दोनों आंखें छिछिा उठीं। िच्चों की तरह व्याकुि स्वर िें िोि उठा, ''िैं कुछ न कर

सकूं गा भारती।''

''ति तो खिर देकर इसे अस्पताि भेज देना पड़ेगा।'' भारती के शब्दों िें न श्लेर् था, न व्यंग्य। िेमकन िज्जा से अपूव व का

मसर झकु गया।

भारती िोिी, ''मदन रहते ही कुछ कर देना ठीक रहेगा। आप कहें तो घर जाते सिय कहीं से अस्पताि को टे िीिोन

करती जाऊं । वह िोग गाड़ी िेकर आएंग े और इसे यहां से उठा िे जाएंग।े ''
अपूव व िोिा, ''िेमकन आपने ही तो कहा है मक वहां जाने पर कोई भी नहीं िचता।'

''कोई भी नहीं िचता-यह िैंन े कि कहा?''

''आपने कहा था, अमधकांश रोगी िर जाते हैं ।''

''िर जाते हैं । इसीमिए होश रहते वहां कोई नहीं जाना चाहता।''

अपूव व ने पूछा, ''क्या मतवारी को मििुि होश नहीं है।''

भारती िोिी, ''कुछ तो जरूर है।''

तभी मतवारी के कराह उठने पर अपूव व चौंक पड़ा। भारती ने पास आकर स्नेह भरे स्वर िें पूछा, ''क्या चामहए मतवारी?''

मतवारी ने कुछ कहा पर अपूव व उसे सिझ नहीं सका। िेमकन भारती ने सावधानी से उसकी करवट िदिवाकर िोटे से

थोड़ा जि उसके िहं ु िें डािकर कहा, ''तम्हारे


ु िािू जी आ गए हैं मतवारी।''

ु िें मतवारी ने न जाने क्या कहा और मिर उसकी िदं ु ी आंखों के कोने से आंस ू लुढ़ककर िहने िगे। कुछ देर मकसी
प्रत्यत्तर

ने कुछ नहीं कहा। सिूचा किरा ज ैसे दु:ख और शोक से िोमझि हो गया। कुछ देर िाद भारती ने कहा, ''अि इसे आप

अस्पताि ही भेज दीमजए।''

अपूव व मसर महिाकर िोिा, ''नहीं।''

''अच्छा, अि िैं जा रही हूं। हो सका तो कि आऊं गी।''

जाने से पहिे भारती िोिी, ''सि कुछ है, के वि िोिित्ती खत्म हो गई है। िैं नीचे से एक िंडि खरीदकर दे जाती हूं।''

यह कहकर िाहर चिी गई। कुछ देर िाद जि वह िोिित्ती िेकर आई, तो अपूव व अपने को संभाि चका
ु था। िोिित्ती

का िंडि देकर भारती ने कुछ कहना चाहा। िेमकन अपूव व के िहं ु िे र िेन े पर उसने भी कुछ नहीं कहा। पर भारती ने जाने

के मिए ज्यों ही दरवाजा खोिा, अपूव व एकदि िोि उठा, 'अगर मतवारी पानी चाहे?'' भारती ने कहा, ''पानी दे

दीमजएगा।''

''और अगर करवट िदिकर सोना चाहे?''


ु दीमजएगा।''
''करवट िदिकर सिा

''और िैं कहां सोऊं गा? उसके कं ठ स्वर का क्रोध मछपा नहीं रहा, िोिा, ''मिछौना तो ऊपर के किरे िें पड़ा है।''

पि भर िौन रहकर वह िोिी, ''वह मिछौना जो आपकी चारपाई पर है आप उस पर सो सकते हैं ।''

''और िेरे भोजन का क्या होगा?''

भारती चपु रही। िेमकन इस असंगत प्रश्न से मछपी हंसी के आवेग से उसकी आंखों की दोनों पिकें ज ैसे कांपने िगीं। कुछ

देर िाद िहुत ही गम्भीर स्वर िें िोिी, ''आपके सोने और खाने-पीने का भार क्या िेरे ऊपर है?''

''िैं क्या कह रहा हूं?''

ु से।''
''इस सिय तो आपने यही कहा है और वह भी गस्से

अपूव व इसका उत्तर न दे सका। उसके उदास चेहरे को देखते हुए भारती ने कहा, ''आपको इस तरह कहना चामहए था-कृ पा

करके आप इन सिकी व्यवस्था कर दीमजए।''

अपूव व िोिा, ''यह कहने िें कोई कमठनाई तो है नहीं।''

''अच्छी िात है, यही कमहए न।''

''यही तो कह रहा हूं,'' कहकर अपूव व िहं ु िुिाकर दूसरी ओर देखने िगा।

''आपने क्या कभी मकसी रोगी की सेवा नहीं की?''

''नहीं।''

''मवदेश िें भी कभी नहीं आए?''

ु कभी कहीं जाने नहीं देती थीं।''


''नहीं, िां िझे

''ति उन्होंने इस िार कै स े भेज मदया?''

अपूव व चपु रहा। िां उसे क्यों मवदेश जाने पर सहित हुई थीं यह िात मकसी को िताने की इच्छा नहीं थी।
भारती िोिी, ''इतनी िड़ी नौकरी, आपको न भेजने से कै स े काि चिता। िेमकन वह साथ क्यों नहीं आईं?''

ु छोड़ने िें उनकी आत्मा को अत्यंत


ु होकर िोिा, 'िेरी िां को आपने देखा नहीं है, नहीं तो ऐसा न कहतीं। िझे
अपूव व क्षब्ध

दु:ख हुआ है। दूसरा कारण वह तो मवधवा हैं । इस म्लेच्छ देश िें कै स े आ सकती थीं?''

''म्लेच्छों पर आप िोगों के िन िें इतनी घृणा है? िेमकन रोग तो के वि गरीिों के मिए नहीं िना है, आपको भी तो हो

सकता था। तो क्या ऐसी दशा िें िां न आतीं?''

अपूव व का िहं ु िीका पड़ गया। िोिा, ''अगर इस तरह डराओगी तो िैं रात िें अके िा कै स े रहूंगा।''

''न डराने पर भी आप अके िे नहीं रह सकें गे। आप डरपोक आदिी हैं ।'


अपूव व चपचाप ु रहा।
ि ैठा सनता

भारती िोिी, ''अच्छा िताइए, िेरे हाथ का पानी पीकर मतवारी की जामत नष्ट हो गई। रोग अच्छा हो जाने पर यह क्या

करेगा?''

अपूव व कुछ सोचकर िोिा, ''उसने सचेत अवस्था िें ऐसा नहीं मकया। िरणासन्न िीिारी की दशा िें मकया है। न पीता तो

शायद िर जाता। ऐसी पमरमस्थमत िें भी प्रायमश्चत तो करना ही पड़ता है।''

भारती िोिी, ''हूं। इसका खचव शायद आपको ही देना पड़ेगा, नहीं तो आप उसके हाथ का भोजन कै स े करें ग?े ''

अपूव व िोिा, ''िैं ही दूंगा। भगवान करे वह अच्छा हो जाए।''

भारती िोिी, ''और िैं ही सेवा करके , उसे अच्छा कर दूं?''

अपूव व कृ तज्ञता से गद्गद होकर िोिा, ''आपकी िड़ी दया होगी। मतवारी िच जाए। आपने ही तो उसे जीवन दान मदया

है।''

अध्याय 3
भारती हंस पड़ी। िोिी, ''यमद म्लेच्छ जीवनदान दे तो उसिें कोई दोर् नहीं, िेमकन िहं ु िें जि देत े ही प्रायमश्चत्त होना

चामहए।'' मिर जरा हंसकर िोिी, ''अच्छा, िैं जा रही हूं। अगर कि सिय मििा तो एक िार देखने आऊं गी।'' यह

कहकर जाते-जाते अचानक घूिकर िोिी, ''और न आ सकूं तो मतवारी के अच्छा हो जाने पर उससे कह दीमजएगा मक

अगर आप न आ जाते तो िैं न जाती। िेमकन म्लेच्छ का भी तो एक सिाज है। आपके साथ एक ही किरे िें रात मिताने िें

वह िोग भी अच्छा नहीं िानते। कि सवेरे आपका चपरासी आएगा तो तिविकर िािू को खिर दे दीमजएगा। सि

व्यवस्था करें ग।े अच्छा निस्कार।''

अपूव व ने कहा, ''करवट िदिवाने की जरूरत पड़ी तो कै स े िदलं गा?''

''सावधन होकर िदमिएगा। िैं स्त्री होकर अगर कर सकती हूं तो आप क्यों नही कर सकते?''

अपूव व चपु ही रहा। जाने के मिए भारती ने ज्यों ही दरवाजा खोिा, अपूव व ने भय से आकुि होकर कहा, ''और अगर यह

ि ैठ जाए?.... अगर रोने िगे?''

ु देती रही, अपूव व


इन प्रश्नों का उत्तर न देकर भारती दरवाजा िंद करके चिी गई। जि तक उसके कदिों की आवाज सनाई

शांत ि ैठा रहा। िेमकन खािोशी होते ही स्वयं को न संभाि सका। भय से दौड़ता हुआ िाहर आया। देखा, भारती तेजी से


चिी जा रही है। मिस भारती न कहकर उसने ऊं ची आवाज िें पकारा, ''भारती?''


भारती िड़कर देखते ही अपूव व दोनों हाथ जोड़कर िोिा, ''जरा इधर आइए।''

भारती िौट पड़ी। अंदर जाकर देखा, वहां अपूव व नहीं है। मतवारी अके िा पड़ा है, वह िरािदे िें भी नहीं था। कहीं मदखाई

ु है, दरवाजे के अंदर गदवन िढ़ाकर देखा तो


नहीं दे रहा था। चारों ओर नजरें दौड़ाकर देखा, स्नानघर का दरवाजा खिा

उसके भय की सीिा नहीं रही। अपूव व िशव पर पड़ा था। दोपहर को जो कुछ खाया था, उिट मदया था। आंखें िंद हैं और

शरीर पसीना-पसीना हो रहा है। पास जाकर िोिी, ''अपूव व िािू!''

अपूव व ने आंखें खोिकर देखा िेमकन मिर तत्काि आंखें िूदं िीं। एक पि दुमवधा के िाद भारती उसके पास आ ि ैठी और

िाथे पर हाथ रखकर िोिी, ''उठकर ि ैठना होगा। मसर पर और िहं ु िें जि न देन े पर तिीयत ठीक नहीं होगी। अपूव व

िािू!''
अपूव व उठ ि ैठा। भारती हाथ पकडकर उसे नि के पास िे गई, और नि खोि मदया। उसने हाथ-िहं ु धो डािे। भारती

उसे धीरे-धीरे किरे िें िे आई और चारपाई पर मिटाकर आंचि से उसके हाथों और प ैरों का पानी पोंछ डािा। मिर पंख े

से हवा करती हुई िोिी, ''जरा सोने की कोमशश करो। आपके स्वस्थ न होने तक िैं यहीं रहूंगी।''

अपूव व िमज्जत होकर िोिा, ''िेमकन आपका खाना?''

भारती िोिी, ''आपने खाने का अवसर ही कहां मदया।''

पिभर चपु रहकर अपूव व ने पूछा, ''अच्छा आपको मिस भारती कहकर न पकारने
ु पर आप क्या नाराज होंगी?''


''जरूर, िेमकन के वि भारती कहकर पकारने पर नहीं होऊं गी।''

''िेमकन और िोगों के सािने?'

''भारती हंसकर िोिी, ''और िोगों के सािने भी। िेमकन अि चपु होकर जरा सो जाइए। िझे
ु कािी काि करने हैं ।''

अपूव व िोिा, ''सोते हुए डर िगता है। पीछे कहीं तिु चिी न जाओ।''

''अगर जागते रहने पर भी चिी जाऊं तो आप क्या कर िें ग?े ''

अपूव व चपु रह गया।

भारती िोिी, 'हिारे म्लेच्छ सिाज िें क्या नेकनािी और िदनािी से िचकर नहीं चिना पड़ता?''

ु मठकाने नहीं थी। प्रत्यत्तर


अपूव व की िमध्द ु िें उसने एक मवमचत्र प्रश्न कर डािा। िोिा, ''िेरी िां यहां नहीं है। िेरे िीिार

पड़ जाने पर आप क्या करें गी? ति तो आपको ही रहना होगा।''

ु रहना होगा? आपके मित्र तिविकर िािू को खिर देन े से काि नहीं चिेगा?''
''िझे

अपूव व गदवन महिाकर िोिा, ''नहीं। यह नहीं हो सकता। या तो िां या मिर आप। आप दोनों िें से एक को न देख पाने पर

िैं नहीं िचूग ु चेचक मनकि जाए तो आप यह िात भूि ित जाना।''


ं ा। कि अगर िझे

ु के अंमति शब्द मकस तरह सनाई


उसके अनरोध ु मदए मक भारती ज ैसे स्वयं को ही भूि गई। मिछौने के एक छोर पर ि ैठकर

अपूव व के शरीर पर एक हाथ रखकर रुंधे गिे से िोिी, ''नहीं....नहीं भूलंगी....कभी नहीं भूलंगी...इस िात को क्या कभी
भूि सकती हूं।'' िेमकन इन शब्दों के िहं ु से मनकिते ही अपनी भूि सिझकर एकदि उठ खड़ी हुई। जोर िगाकर जरा

हंसकर िोिी, ''िेमकन अच्छा हो जाने पर भी तो कि मवपमत्त नहीं आएगी अपूव व िािू! धूिधाि से प्रायमश्चत्त करना

ु िहुत काि करने हैं ।''


पड़ेगा। अच्छा अि सो जाइए। िझे

''कौन से काि? -खाना खाना है?''

भारती िोिी, ''खाना तो दूर, अभी तक स्नान भी नहीं मकया।''

''िेमकन सांझ के सिय स्नान करने से िीिार न पड़ जाओगी?''

भारती िोिी, ''असम्भव नहीं है। िेमकन स्नानघर िें आपने जो गंदगी िै िा दी है, उसे साि करने पर स्नान मकए मिना क्या

रहा जा सकता है?''

अपूव व िमज्जत होकर िोिा, ''वह सि िैं साि कर दूंगा। आप ित कीमजए,'' कहकर वह उठने िगा।

भारती रूठकर िोिी, ''अि िहादुरी मदखाने की जरूरत नहीं है। थोड़ा सोने की कोमशश करो। िेमकन ऐसे कोिि आदिी

को िां ने मवदेश कै स े भेज मदया, यही सोच रही हूं। उमठए ित, वह नहीं हैं ।'' िनावटी क्रोध और शासन के स्वर िें आज्ञा

देकर वह चिी गई।

मनजीव की तरह अपूव व कि सो गया, वह जान भी न सका।

उसकी नींद टूटी, भारती के पहुंचने पर। आंखें ििकर उठने पर देखा, रात के िारह िज गए हैं । भारती सािने खड़ी है।

ु मधत सािनु की गंध से किरे की हवा हठात पे् िमकत


अपूव व की पहिी नजर पड़ी उसके िािों की िम्बाई पर। सगं ु हो उठी

थी। कािी पाड़ की साड़ी पहने है। िदन पर अंमगया न होने के कारण वहां का अमधकतर भाग मदखाई दे रहा है। भारती

की यह िानो कोई नूतन िूमतव है मजसे अपूव व ने इससे पहिे कभी नहीं देखा था। िहं ु से एकाएक मनकिा, ''इतने भीगे िाि,

ें े कै स?े ''
सूखग

''कै स े सूखग
ें ,े आप इनकी मचंता ित कीमजए। िेरे साथ आइए।''

''मतवारी कै सा है?''

''ठीक है। कि-से-कि आज की रात तो आपको सोचना न पड़ेगा!''


उसके साथ-साथ दूसरे किरे िें आकर देखा-एक छोटी-सी टोकरी िें कुछ िि-िू ि, एक थािी, एक मगिास रखा है।

भारती ने मदखाकर कहा, ''इससे अमधक और कुछ नहीं मकया जा सकता था। पानी से सि धो डामिए। थािी-मगिास

सि। मगिास िें जि िेकर उस किरे िें जाइए। िैंन े आसन िगा मदया है।''

अपूव व ने पूछा, ''आप यह सि कि िे आईं?''

भारती िोिी, ''आप सो रहे थे। पास ही ििों की एक दुकान है। दूर नहीं जाना पड़ा। टोकरी तो आप िोगों की ही है।''

मिर जाते-जाते सावधन करती गई, ''चाकू धोते सिय कहीं हाथ ित काट िेना।''

कुछ देर िाद अपूव व आसन पर ि ैठा िि काट रहा था और पास ही ि ैठी भारती हंस रही थी। अपूव व ने कहा, ''आप हंमसए,

कोई हजव नहीं, िेमकन आपने िेरे भोजन के मिए जो व्यवस्था की है उसके मिए सहस्रों धन्यवाद! िां के अमतमरक्त और

कोई ऐसा नहीं करता।''

ु करके भारती ने कहा, ''हंसती हूं क्या अपनी इच्छा से? अपूव व िािू! मतवारी के स्वस्थ हो जाने पर
उसकी िात को अनसनी

िैं अवश्य ही िां को मचट्ठी मिखूग ु िें । ऐसे िनष्य


ं ी मक या तो वह आ जाएं या मिर अपने िड़के को वापस ििा ु को िाहर

नहीं छोड़ना चामहए।''

अपूव व िोिा, ''िां अपने िड़के को अच्छी तरह जानती है। िेमकन देमखए, अगर यहां िेरे िजाय िेरे भाइयों िें से कोई

होता तो आपकी इतनी िातें न चितीं। वह िोग आपसे ही सारे काि करा िेत।े ''

भारती सिझी नहीं।

अपूव व िोिा, ''भाई िोग सि कुछ खाते-पीते हैं । िगी


ु और मडनर मिना उनका पेट नहीं भरता।''

भारती आश्चयव से िोिी, ''यह क्या कह रहे हैं आप?''

अपूव व िोिा, ''सच कह रहा हूं। मपताजी भी तो आधे ईसाई थे। िां को उस हाित िें क्या कि कष्ट भोगने पड़े थे।''

ु होकर िोिी, ''क्या यह सच है? िगता है, िां जी भयानक महंदू हैं ।''
भारती उत्सक

अपूव व िोिा, ''भयानक क्यों? महंदू घर की िड़की को ज ैसा होना चामहए वैसी ही हैं ।'' िां की िात कहते-कहते उसका स्वर

करुण और मस्नग्ध हो उठा। िोिा, ''घर िें दो िहुएं हैं , मिर भी िां को अपनी रसोई आप ही िनानी पड़ती है। िेमकन िां
का स्वभाव ही ऐसा है। कभी मकसी पर दिाव नहीं डाितीं। मकसी से कोई मशकायत नहीं करतीं। कहती हैं -िैं भी तो अपने

आचार-मवचार त्याग कर अपने पमत के ित को स्वीकार नहीं कर सकी। अगर यह िोग िेरे ित से सहित न हो सकें तो

ु और िेरे संस्कार िानकर िहुओ ं को चिना पड़ेगा, इसका कोई अथव भी है?''
मशकायत करना ठीक नहीं? िेरी िमध्द

ु जिाने की िमहिा हैं । िेमकन उनिें धीरज िहुत है।''


भारती ने भमक्त और श्रध्दा से अवनत होकर कहा?, ''िां पराने

अपूव व ने उत्सामहत होकर कहा, ''धीरज? िां के धीरज की क्या कोई सीिा है? आपने उनको देखा नहीं है। देखने पर

एकदि ही आश्चयवचमकत रह जाएंगी।''

ु से टकटकी िगाए ताकती रही। अपूव व िोिा, ''यह िान िेना पड़ेगा मक सिूच े जीवन िें िेरी िां
भारती प्रसन्न िौन िख

ु के म्लेच्छाचार सहते ही िीता है। उनका एकिात्र भरोसा िैं हूं।


दु:ख ही भोगती रहीं। उनका सम्पूण व जीवन पमत-पत्रों

िीिारी की हाित िें के वि िेरे ही हाथ का पकाया भोजन िहं ु िें डािती हैं ।''

भारती ने कहा, ''ति तो उनको कष्ट हो सकता है।''

ु पहिे छोड़ना नहीं चाहा पर िैं हिेशा तो घर िें ि ैठा नहीं


अपूव व ने कहा, ''शायद हो भी रहा हो। इसमिए तो उन्होंने िझे

रह सकता। उन्हें एकिात्र आशा है मक िेरी पत्नी रसोई िनाकर उन्हें मखिाया करेगी।''

भारती हंसकर िोिी, ''उनकी इस आशा को आप पूरा करके क्यों नहीं आए?''

ु झटपट यहां चिा आना पड़ा। िैं कह


अपूव व िोिा, ''िड़की पसंद करके जि िां ने सि ठीक-ठाक कर मिया, तभी िझे

आया हूं मक िां जि मचट्ठी मिखेगी तो आकर आज्ञा का पािन करूंगा।''

भारती िोिी, ''यही ठीक है।''

ु क्या जरूरत है गान-वाद्य जानने वािी कॉिेज िें पढ़ी हुई


अपूव व िोिा, ''िैं चाहता हूं मक वह िां को कभी दु:ख न दे। िझे

मवदुर्ी िड़की की।''

भारती िोिी, ''हां जरूरत ही क्या है?''

अपूव व स्वयं भी मकसी मदन इसका मवरोधी था। भाभी का पक्ष िेकर झगड़ा करके क्रुध्द होकर िां से कहा था, ''मकसी

ब्राह्मण-पंमडत के घर से ज ैसे िने एक िड़की पकड़ िाकर झिेिा खत्म कर दो-'इस िात को आज मििुि ही भूि गया।
िोिा, ''आप जो िात सिझती हैं िेरे भाई और भामभयां उस िात को सिझना नहीं चाहतीं। अपना धिव िानकर चिना

चामहए। पूरा घर आदमियों से भरा होने पर भी िेरी िां अके िी है। इससे िढ़कर दुभावग्य और क्या हो सकता है उनका?

इसीमिए िैं भगवान से प्राथवना करता हूं मक िेरे मकसी आचरण से िां को दु:ख न हो।''

कहते-कहते उसका गिा भारी हो गया और आंखों िें आंस ू छिछिा उठे ।

तभी मतवारी कुछ िड़िड़ा उठा, भारती उठकर चिी गई। आज अपूव व का तन-िन भय और मचंता से अत्यंत मवकि हो

उठा था। िां को अपने पास देखने की अंधी आकुिता से उसके भीतर-ही-भीतर कुहरा घूिड़ने िगा था। यह िात

अियाविी से मछपी नहीं रही। िेमकन भारती का हृदय अपिान की वेदना से तड़प उठा।


थोड़ी देर िाद िौटकर उसने देखा-अपूव व मकसी तरह िि काटने का काि सिाप्त करके चपचाप ि ैठा है। िोिी, ''ि ैठे हैं ?

खाया नहीं?''

''नहीं आपके मिए ि ैठा हूं।''

''क्यों?''

''आप नहीं खाएंगी?''

''नहीं। इच्छा होगी तो िेरे मिए अिग रखे हैं ।''

अपूव व ने ििों का थाि हाथ से कुछ आगे ठे िकर कहा, ''क्या ऐसा कभी हो सकता है? आपने सारे मदन नहीं खाया,

और....''

उसकी िात पूरी नहीं हुई थी मक अत्यंत सूख े दिे स्वर िें उत्तर मििा, ''आह! आप तो िहुत परेशान करते हैं , भूख े हैं तो

खाइए। नहीं तो मखड़की से िाहर िेंक दीमजए।'' यह कहकर वह किरे से चिी गई।

उसके चेहरे को अपूव व ने देख मिया। उस चेहरे को वह मिर कभी नहीं भूि सका। आने के मदन से िेकर अि तक अनेक

ु िें, मित्रता िें, सम्पमत्त और मवपमत्त िें-मकतनी ही िार तो इस िड़की को


िार भेंट हुई थी। झगड़े िें, िेि-जोि िें, शत्रता

देखा है। िेमकन उस मदन के देखने और आज के देखने िें कोई सिता नहीं है।

भारती चिी गई। ििों का थाि उसी तरह पड़ा रहा। अपूव व उसी तरह काठ की तरह अवाक े् और मनस्पंद ि ैठा रहा।
एकाध घंटे के िाद उसने किरे िें जाकर देखा, मतवारी के मसरहाने के पास चटाई मिछाए भारती अपनी िांह पर मसर

मटकाए सो रही है।

वह ज ैसे आया था उसी तरह िौट गया और जाकर सो गया।

ु था।
नींद जि टूटी तो सवेरा हो चका

भारती ने आकर कहा, ''िैं अि जा रही हूं।''

अपूव व हड़िड़ाकर उठ ि ैठा। िेमकन अभी वह अच्छी तरह होश िें भी न आया था मक वह किरे से मनकिकर भाग पड़ी।

ु हो चका
मतवारी रोग िक्त ु है िेमकन अभी किजोरी िाकी है। जो आदिी अपूव व के साथ िािो गया था, वही रसोई िना

रहा है। मतवारी को िचाने के मिए अपूव व के ऑमिस के अमधकामरयों ने अथक पमरश्रि मकया था। रािदास तो कई मदन घर

भी नहीं जा सका था। शहर के एक िड़े डॉक्टर से इिाज कराया गया था। ििाव देश मतवारी को कभी अच्छा नहीं िगा।

अपूव व ने उसे छुट्टी दे दी है। मनश्चय हुआ मक कुछ और स्वस्थ हो जाने पर वह घर चिा जाएगा। अगिे सप्ताह िें शायद

यह सम्भव होगा।

उस मदन की गई भारती मिर नहीं आई। मतवारी कभी सोचता-भारती िहुत चािाक िड़की है। अपूव व के आने का सिाचार

पाकर भाग गई। कभी सोचता-अपूव व ने यहां आने के िाद शायद उसका अपिान मकया हो। अपूव व स्वयं कुछ न िताता।

ु जाएंगी। उसके हाथ का छुआ जि उसने मपया है। उसका


उससे पूछते हुए मतवारी डरता मक उसकी पूछताछ से िातें खि

पकाया हुआ सािू-िािी खाया है। शायद जामत इतने भयंकर रूप से नष्ट हो गई है मक उसका कोई प्रायमश्चत्त नहीं है।

मतवारी ने मनश्चय कर रखा था मक किकत्ता पहुंचकर वह अपने गांव चिा जाएगा। वहां गंगा-स्नान करके , मकसी ब्राह्मणों

ु कर िेगा। इधर-उधर की िातों िें यहां की िातें अपूव व की िां


को भोजन कराके , शरीर को काि-काज चिाने योग्य शध्द

के कानों तक पहुंचा देन े से क्या होगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। हािदार पमरवार की नौकरी जाएगी, साथ ही सिाज िें

िदनािी भी हो जाएगी।

िेमकन इस स्वाथव और भय के अमतमरक्त मतवारी के हाथ िें एक िात और भी थी। वह िात मजतनी िधरु थी उतनी ही

वेदनापूण व भी थी। अपूव व के िािो चिे जाने के िाद इस िड़की के साथ उसका घमनष्ट पमरचय हुआ था। मजस मदन
अचानक उसकी िां की िृत्य ु हुई, उस सिय तक मतवारी का खाना-पीना भी नहीं हुआ था। िड़की ने रोते हुए आकर

उसका दरवाजा खटखटाया। दो मदन पहिे ही जोसेि िरा था। मकवाड़ खोिते ही भारती किरे िें आकर उसके दोनों

हाथ पकड़कर ऐसी रोई मक क्या कहें । मतवारी का पकाया हुआ भात हांडी िें ही रह गया। सारे मदन मचट्ठी िेकर न िालि

कहां-कहां दौड़ना पड़ा। दूसरे मदन जाते सिय उसकी आंखों के आंस ू ज ैसे रुकना नहीं चाहते थे। इस िीच उसने भारती


को कभी दीदी, कभी िमहन भी कहकर पकारा था। चार-पांच मदन तक स्वयं ही रसोई िनाकर मखिाई थी। मिर उसके

िीिार पड़ जाने पर भारती ने उसकी मकतनी सेवा की थी, यह िात वह अच्छी तरह जानता था। कभी सोचता भी न था।

ु स्नान करके भीगे िािों की मवशाि रामश पीठ पर िटकाए


याद आते ही जामत नष्ट होने की िात याद आ जाती थी। सिह

प्रमतमदन उसका सिाचार जानने के मिए आया करती थी। रसोई घर िें नहीं जाती थी। कोई चीज नहीं छूती थी। चौखट

के िाहर िशव पर ि ैठकर कहती, ''आज क्या-क्या पकाया मतवारी? देख ूं तो।''

''दीदी, आसन मिछा दूं?''

''नहीं, मिर चौका धोना पड़ेगा।'

''क्या आसन भी छूने से मिगड़ता है?''


भारती कहती, ''तम्हारे िािू तो सोचते हैं मक िेरे रहने से सिूच े िकान को छूत िग गई है। अपना िकान होता तो शायद

जि मछड़ककर पमवत्र कर िेत।े यही िात है न मतवारी?''

मतवारी हंसकर कहता, ''तिु नहीं जान सकीं। इसमिए सभी को वैसा ही सिझती हो। िेमकन अगर िािू को एक िार भी

अच्छी तरह जान जातीं तो तिु भी कहतीं मक ऐसा िनष्य


ु संसार िें दूसरा कोई नहीं है।''

भारती कहती, ''नहीं है, यह तो िैं भी कहती हूं। तभी तो मजसने चोरी होने िें रुकावट डािी उसी को चोर सिझ ि ैठे ।''

ु भी तो काि कि नहीं
इस मवर्य िें अपना अपराध याद करके मतवारी दु:खी हो उठता। िात दिाकर कहता, ''िेमकन तिने

ु ना कराया।''
मकया। जानिूझ कर िािू पर िीस रुपए जिाव


भारती कहती, ''िेमकन उस दंड को तो िैंन े स्वयं ही झेिा था मतवारी तम्हारे िािू को तो देन े नहीं पड़े।''

''नहीं देन े पड़े? िैंन े अपनी आंखों से देखा मक दो नोट देकर अदाित से िाहर आए।''
ु किरे िें घसते
''और िैंन े भी तो अपनी आंखों से देखा था मतवारी मक तिने ु ही दो नोट नीचे से उठाकर अपने िािू को मदए

थे।''

मतवारी के हाथ की किछुि हाथ-की-हाथ िें रह गई, ''ओह, यह सच है दीदी।''

''िेमकन सब्जी जिी जा रही है मतवारी।''

मतवारी ने कहा, ''िािू से िैं यह िात जरूर कहूंगा दीदी।''


भारती हंसकर िोिी, ''तो क्या होगा? िैं तम्हारे िािू से डरती थोड़े ही हूं।''

िेमकन यह आश्चयवजनक िात छोटे िािू से कहने का अवसर मतवारी को नहीं मििा। कि और मकस तरह मििेगा, यह भी

नहीं जान सका।

ु पड़ी। और मजस मदन स्नान मकए मिना ही उसने


एक मदन िासी हल्दी से तरकारी िना रहा था मक भारती की मझड़की सननी

रसोई त ैयार की, भारती ने उसके हाथ का भोजन नहीं खाया।

ु से िोिा, ''तिु िोगों िें इतना मवचार है। देखता हूं, तिु तो िाता जी को भी पार करके आगे िढ़ रही हो?''
मतवारी गस्से

भारती ने कोई उत्तर नहीं मदया। हंसती हुई चिी गई।

ििाव िें अि वह कभी नहीं िौटे गा। जाने से पहिे भारती से भेंट होने की आशा भी नहीं है। मदन-प्रमतमदन एक ही प्रतीक्षा


िें चपचाप ि ैठे रहने से उसकी छाती िें भारी कसक उठती रहती है।

उस मदन ऑमिस से िौटकर अपूव व ने अचानक पूछा, ''भारती का घर कहां है मतवारी?''

मतवारी िोिा, ''िैंन े क्या जाकर देखा है िािू?''

ु िताया हो शायद?''
''जाते सिय तम्हें

ु िताने की भिा क्या जरूरत थी।''


''िझे

ु िताया तो था िेमकन ठीक से याद नहीं रहा। कि पता िगाना।''


अपूव व िोिा, ''िझे

मतवारी के िन िें तूिान िचि उठा।



अपूव व िोिा, ''पमिस उस चोरी का िाि देना चाहती है िेमकन भारती के हस्ताक्षर आवश्यक हैं ।''

मतवारी कुछ देर चपु रहकर िोिा, 'उस मदन वह यही सूचना देन े आई थी। िेमकन िेरी हाित देखकर मिर िौटकर न जा

सकी।''

ु होता मतवारी! िझसे


''यमद वह देखभाि न करती तो तू कि का िर चका ु भी भेंट न होती।''

मतवारी कुछ नहीं िोिा।

अपूव व ने मिर कहा, 'आकर िैंन े देखा मक अंधरे ी कोठरी िें तू है और वह है, तीसरा कोई नहीं। कहां जाना होगा, कहां सोना

होगा, इसका कुछ भी मनश्चय नहीं। दो मदन पहिे ही उसके िाता-मपता की िृत्य ु हुई थी। िड़े कड़क मदि की िड़की है

मतवारी!''

मतवारी चपु न रह सका। िोिा, ''वह कि चिी गई?''

अपूव व िोिा, ''िेरे आने के दूसरे ही मदन। सवेरा होते-न-होते ही आवाज आई, 'अि िैं जा रहीं हूं,' कहकर एकदि चिी

गई।'

''नाराज होकर गई थी क्या?''

''नाराज होकर?'' अपूव व ने जरा सोचकर कहा, ''नहीं जानता, शायद हो सकता है। उसे सिझाया भी तो नहीं जा सकता,

नहीं तो तेरा खयाि रहता था, एक िार सिाचार जानने भी नहीं आई मक तू अच्छा हो गया है या नहीं।''

यह िात मतवारी को अच्छी नहीं िगी। िोिा, ''हो सकता है। स्वयं अपने ही रोग-शोक के झिेिे िें पड़ गई हों।''

''अपने रोग-शोक िें?'' अपूव व चौंक पड़ा। उसके संिध


ं िें कई मदन िहुत-सी िातें याद आई हैं , िेमकन ऐसी आशंका िन िें

ु वािा भी कोई नहीं है। हो सकता है


प ैदा नहीं हुई। अपूव व को एकदि ध्यान आया मक उनके नए डेरे पर तो देखने सनने

अस्पताि वािे िे गए हों। हो सकता है अि तक जीमवत भी न हो।

यह सि सोचकर वह िन-ही-िन व्याकुि हो उठा। एक कुसी पर ि ैठकर नेकटाई-वेस्ट कोट खोिते-खोिते उन दोनों िें

ु हुई थी। उसके हाथ का काि वहीं रुक गया। िहं ु से एक भी शब्द नहीं रहा। कुसी पर काठ की पतिी
िातचीत शरू ु की

तरह ि ैठा रहा।


कुछ देर िाद मतवारी धीरे-धीरे िोिा, ''छोटे िािू, िकान िामिक का आदिी आया था। अगर तीसरी िंमजि का किरा

ु मचंता हो रही है मक कोई मिर आ जाए।''


िेना हो तो इसी िहीने िदि िेना चामहए, वह कह गया है। िझे

अपूव व ने पूछा, ''और कौन आने वािा है?''

ु मििा है। दरिान से मिखवाकर भेजा है उन्होंने। िैं अच्छा हो गया


मतवारी िोिा, ''आज िांजी का एक पोस्टकाडव िझे

इसके मिए िहुत प्रसन्नता प्रकट की हैं । दरिान का भाई अपने गांव छुट्टी िेकर जा रहा है। उसके हाथ पांच रुपए मवश्वेश्वर

की पूजा के मिए भेज े हैं ।''

ु िेटे ज ैसा प्यार करती है मतवारी।''


अपूव व िोिा, ''ठीक तो है। िां तझे

मतवारी िोिा, 'िेटे से भी अमधक। िैं तो चिा ही जाऊं गा। िां तो चाहती हैं मक छुट्टी िेकर हि दोनों ही चिें । चारों ओर

रोग-शोक....''

अपूव व िोिा, ''रोग-शोक-िरण कहां नहीं है? किकत्ते िें नहीं है? तून े शायद िहुत-सी िातें मिखकर उन्हें डरा मदया है।''

''जी नहीं, मतवारी िोिा, ''कािी िािू पीछे पड़ गए हैं । सभी की इच्छा है मक वैसाख के आरम्भ िें ही यह शभु कायव सम्पन्न

हो जाए।''

कािी िािू की छोटी िड़की को िाता जी ने पसंद मकया है। इस िात का आभास उनके कई पत्रों िें भी था। मतवारी की

िात अपूव व को अच्छी नहीं िगी। िोिा, ''इतनी जल्दी मकस मिए? अगर कािी िािू को िहुत अमधक जल्दी हो तो वह

और कहीं प्रिंध कर सकते हैं ।''

मतवारी जरा हंसकर िोिा, ''जल्दी िाता जी को है। शायद िोग उनको यह कहकर डराते हैं मक ििाव िें िड़के मिगड़

जाते हैं ।''

ु पंमडताई मदखाने की जरूरत नहीं है। िां को रोज-रोज मचमट्ठयां क्यों


अपूव व को क्रोध आ गया। िोिा, 'देख मतवारी, िझे

मिखता रहता है? िैं िच्चा नहीं हूं।''


अकारण क्रोध से मतवारी पहिे मवमस्मत हुआ। िीिारी के िाद से उसका मदिाग अच्छा नहीं था। रोर् भरे स्वर िें िोिा,

''आते सिय यह िात िां को कहकर न आ सके ? ऐसा होने से िैं िच जाता। जात-धिव नष्ट करने के मिए जहाज पर न

चढ़ना पड़ता।''

अपूव व ने उसके प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मदया। खूटं ी से कोट नेकटाई िेकर पहनता हुआ तेजी से किरे से मनकि गया।

मतवारी गरि होकर िोिा, ''कि रमववार को जहाज चटगांव जाता है। िैं उसी से घर चिा जाऊं गा, कहे देता हूं।''

अपूव व जाते-जाते िोिा, ''न जाओ तो हजारों सौगंधें रहीं।''

अपूव व के जाने का एकिात्र स्थान था तिविकर का घर। िेमकन रास्ते िें उसे याद आया मक आज शमनवार है। उसका

पत्नी के साथ मथयेटर जाने का प्रोग्राि है। तभी उसे अचानक भारती की याद आ गई। उसका आहत, अपराधी िन अपने

ही प्रमत िार-िार कहने िगा- वह अच्छी तरह ही है। उसे कुछ भी नहीं हुआ। नहीं तो इतनी िड़ी जीवन-िरण की सिस्या

िें खिर भी न देती? तेि के कारखाने के आसपास ही कहीं उसका नया िकान है यह िात वह भूिा नहीं था। उसे

खोजकर ढूंढ़ मनकािने की कल्पना से उसका िन नाच उठा।

ु नहीं चाहती।
िेमकन इसे िहसूस करके िन के चोर के पकड़े जाने की िज्जा से भी वह नहीं िच सका। शायद वह िझे

ु देखकर उपेक्षा करे। यह सोचकर वह स्वयं को स ैकड़ों तरह से सिझाने िगा। पमिसवािे
शायद वह िझे ु उससे हस्ताक्षर

िेना चाहते हैं । इसी काि से वह आया है। वह कै सी है, कहां है, यह सि कौतूहि उसे अकारण नहीं है। इस तरह इतने

मदनों िाद जाने का वह कोई उिाहना भी नहीं दे पाएगी।

इस इिाके िें अपूव व पहिे कभी नहीं आया था। कािी दूर चिने पर दाईं ओर नदी के मकनारे रास्ता मदखाई मदया। एक

ु िें उस आदिी ने आसपास के छोटे -िड़े िंगिे मदखा


आदिी से पूछा, ''इधर साहि-िेि िोग कहां रहते हैं ?'' प्रत्यत्तर

मदए। उनकी सजावट देखकर अपूव व सिझ गया मक उसका प्रश्न गित था। संशोधन करके पूछा, ''अनेक िंगािी भी तो

यहां रहते हैं ? कोई कारीगर, कोई मिस्त्री है।''

वह आदिी िोिा, ''िहुत हैं । िैं भी एक मिस्त्री हूं। तिु मकसको खोज रहे हो।?''
अपूव व ने कहा, ''देखो िैं मजसे खोज रहा हूं.... अच्छा जो िंगािी ईसाई अथवा....''

वह आदिी आश्चयव से िोिा, ''क्या कह रहे हैं ? िंगािी-मिर ईसाई कै स?े ईसाई हो जाने पर मिर कोई िंगािी रह जाता है


क्या? ईसाई, ईसाई है। िसििान, ु
िसििान है। यही तो....।''

अपूव व िोिा, 'अरे भाई, िंगाि का आदिी तो है। िंगिा भार्ा िोिता है।''

वह गिव होकर िोिा, ''भार्ा िोिने से ही हो गया? जो जात देकर ईसाई िन गया, उसिें और क्या पदाथव रह गया

िहाशय? कोई भी िंगािी उसके साथ आहार-व्यवहार करे तो देख लं । न िालि कहां से िास्टरी करने कुछ िड़मकयां आ

गई हैं । िच्चों को पढ़ाती हैं -िस, इसीमिए कोई भी क्या उनके साथ खा रहा है या ि ैठ रहा है?''

अपूव व ने पूछा, ''वह कहां रहती हैं -आप जानते हैं ?''

वह िोिा, ''जानता क्यों नहीं। इस रास्ते से सीधे नदी के मकनारे जाकर पूमछए मक नया स्कू ि कहां है, छोटे -छोटे िच्चे भी

िता देंग।े '' यह कहकर वह अपने काि पर चिा गया।

ु थी। सनसान
उसी रास्ते चिकर अपूव व को िाि रंग का काठ का एक िकान मदखाई मदया। रात हो चकी ु था। ऊपर की

ु मखड़की से ित्ती की रोशनी आ रही थी। मकसी से पूछने के मिए वहीं खड़ा हो गया। उसे मनश्चय हो गया मक भारती
खिी

यहीं रहती है।

पंद्रह मिनट िाद दो-तीन आदिी िाहर मनकिे। उसे देखकर एक पूछा, ''कौन हैं ? मकसे चाहते हैं ?''

अपूव व ने िमज्जत होकर पूछा, ''मिस जोसेि नाि की कोई िमहिा यहां रहती है?''

वह िोिा, ''अवश्य रहती है। आइए।''

अपूव व की जाने की इच्छा न थी। उसे दुमवधा िें देख वह आदिी िोिा, ''आप कि से खड़े थे? आइए न, हि आपको पहुंचा

दें।'' यह कहकर वह आगे हो मिया।

''चमिए,'' कहकर वह उसके पीछे-पीछे िकान के मनचिे किरे िें पहुंच गया। किरा कािी िड़ा था। छत से एक िहुत

िड़ी ित्ती िटक रही थी। कुछ टे िि-कुमस वयां, एक ब्लैकिोडव और दीवारों पर चारों ओर तरह-तरह के आकार और रंगों के

नक्शे टं ग े हुए थे। यही नया स्कू ि है। देखते ही अपूव व पहचान गया।
ु िें मकसी मवर्य पर िहस हो रही थी। सहसा एक अपमरमचत परुर्
वहां चार-पांच मस्त्रयों-परुर्ों ु को आते देख सि चपु हो

गए। अपूव व ने एक िार उन िोगों की ओर देखा। मिर मजसके साथ आया था उसी के पीछे-पीछे चढ़ गया। भारती किरे िें

ही थी। अपूव व को देखते ही उसका चेहरा चिक उठा। कुसी पर ि ैठाकर िोिी, ''इतने मदनों तक आपने िेरी खोज-खिर

खूि िी?''

अपूव व िोिा, 'आपने भी तो हि िोगों की खोज-खिर नहीं िी।''िेमकन यह उत्तर उमचत नहीं था, यह कहते ही वह सिझ

गया।

भारती हंसकर िोिी, ''मतवारी घर जाना चाहता है तो चिा जाए। न जाने पर वह अच्छा भी न होगा।''

अपूव व िोिा, ''इसका ितिि यह है मक िेरा यह अमभयोग गित है मक आप हि िोगों की खोज-खिर नहीं रखतीं।''

भारती मिर हंसकर िोिी, ''परसों िारह िजने से पहिे ही कोटव जाकर रुपया और चीजें वापस िे आइएगा। भूि न

जाइएगा।''

''िेमकन उस पर तो आपके हस्ताक्षर होने जरूरी हैं ।''

''िैं जानती हूं।''

''आपके साथ मतवारी की भेंट नहीं हुई?''

''नहीं। िेमकन आप जाकर उस पर िेकार नाराज न हों।''

अपूव व िोिा, 'झ ूठा नहीं, सच्चा क्रोध करना उमचत है। अपने प्राण िचाने वािे के प्रमत िन िें कृ तज्ञता रहना उमचत है।''

ु जेि भेजने की भी कि-से-कि चेष्टा जरूर करता।''


भारती िोिी, ''वह तो है ही। नहीं तो वह िझे

अपूव व इस संदहे को सिझ गया। नीचा िहं ु करके िोिा, ''आप िझ


ु पर भयंकर रूप से नाराज हैं ।''

भारती िोिी, ''कभी नहीं। सारे मदन स्कू ि िें िच्चों को पढ़ाकर घर िौटकर मिर समिमत की सेक्रेटरी की हैमसयत से अनेक

मचट्ठी-पत्री मिखने के िाद मिस्तर पर िेटते ही सो जाती हूं। नाराज होने के मिए िेरे पास सिय ही नहीं है।''

अपूव व िोिा, ''ओह, नाराज होने तक का सिय नहीं है।'


भारती ने कहा, ''कहां है? आप मकसी मदन सवेरे से देमखए मक सच कहती हूं या झ ूठ।''

अपूव व के िहं ु से अनजाने ही एक िम्बी सांस मनकि गई। िोिी, ''िझे


ु देखने की क्या जरूरत है?'' मिर जरा रुककर

िोिा, ''स्कू ि से आपको क्या वेतन मििता है?''

भारती हंसी दिाकर िोिी, ''आप भी खूि हैं ? क्या वेतन की िात पूछने पर उसका अपिान नहीं होता?''

ु कं ठा से िोिा, ''िैंन े अपिान करने के मिए नहीं कहा। जि नौकरी ही कर रही हैं ....''
अपूव व क्षब्ध

भारती ने कहा, ''न करके क्या भूखा िर जाने को कहते हैं ?''

''ऐसी नौकरी से भूखा िरना ही अच्छा है। हिारे ऑमिस िें एक जगह खािी है। वेतन एक सौ रुपए िाहवार मििेगा।

शायद दो घंटे से अमधक काि नहीं करना पड़ेगा।''

ु वह काि करने को कहते हैं ?''


''आप िझे

''क्या हजव है?''

भारती िोिी, ''नहीं, िैं नही करूंगी। आप उसके िामिक हैं । काि िें कभी भूि हुई तो िाठी िेकर द्वार पर आ खड़े

होंगे।''

अपूव व ने उत्तर नहीं मदया। िन-ही-िन सिझ गया मक भारती ने के वि िजाक मकया है। मिर िोिा, ''िालि हो रहा है मक

ु हो गया। िच्चों ने पढ़ना शरू


आप िोगों का स्कू ि शरू ु कर मदया है।''

भारती िोिी, ''ऐसा होता तो शोर कुछ कि रहता। िगता है मक उनके मशक्षक मवर्य का मनवावचन कर रहे हैं ।''

''आप नहीं जाएंगी?''

''जाना तो है। िेमकन आपको छोड़कर जाने की इच्छा नहीं हो रहीं।'' यह कहकर वह हंस पड़ी। िेमकन अपूव व के कान तक

िाि हो उठे । दीवार पर सजे कच्चे झाऊ के पत्तों पर अंमकत कुछ अक्षरों पर नजर डािकर अपूव व िोिा, ''वहां पर वह क्या

मिखा हुआ है?''

''आप पढ़ सकते हैं ।''


अपूव व िोिा-''पथ के दावेदार''-''इसका क्या अथव है?''

''यह हि िोगों की संस्था का नाि है। इस मवद्यािय का संचािक भी यही है। आप इसके सदस्य िनेंग?े ''

''इसिें क्या करना होगा?''


भारती िोिी, ''हि सि राही हैं । िनष्यत्व ु के चिने के सभी प्रकार के दावे स्वीकार करके , हि सभी
के िागव से िनष्य

िाधाओ ं को ठे िकर चिें ग।े हिारे िाद जो िोग आएंग,े वह िाधाओ ं से िचकर चि सकें , यही हिारी प्रमतज्ञा है। चमिए

हिारे साथ?''

''हिारा राष्ट्र पराधीन है भारती! स्टे शन की एक िेंच पर ि ैठने तक का हिें अमधकार नहीं है। अपिामनत होने पर दावा

करने का उपाय नहीं।'' कहते-कहते उस मदन की िांछना, मिरंगी िड़कों के िूटों के आघात से िेकर स्टे शन िास्टर द्वारा

मनकािे जाने तक की सभी अपिानजनक िातों को याद करके उसकी आंखें िाि हो उठीं। िोिा, ''हिारे ि ैठने से िेंच

ु ही नहीं हैं । अगर हि िोगों की यही


अपमवत्र हो जाती है। हिारे रहने से िकान की हवा मिगड़ जाती है। ज ैसे हि िनष्य

साधना हो तो िैं आप िोगों के दि िें हूं।''

ु की पीड़ा का कुछ पता पा सके हैं अपूव व िािू? क्या वास्तव िें िनष्य
''आप क्या िनष्य ु के छूने िें, आपमत्त की कोई िात

नहीं है? उसके शरीर की हवा िगने से दूसरे के िकान की हवा क्या गंदी नहीं हो जाती?''

अपूव व ने दृढ़ स्वर िें कहा, ''मििुि नहीं। िनष्य


ु के चिड़े का रंग उसकी िनष्यता
ु का िापदंड नहीं। मकसी मवशेर् देश िें

ु पर िीस रुपया जिाव


जन्म िेना उसका कोई अपराध नहीं है। क्षिा करना, आपके मपता ईसाई थे। इसमिए कोटव ने िझ ु ना

ु को छोटा
मकया। यह कहां का न्याय है? याद रमखए, इसी कारण एक मदन हिारा सववनाश होगा। अकारण िनष्य

सिझना, यह घृणा-द्वेर्, यह अपराध भगवान कभी भी सहन नहीं करें ग।े ''

भारती चपु ि ैठी रही। अपूव व की िातें सिाप्त होते ही उसने िस्कराकर
ु अपना िहं ु दूसरी ओर घूिा मिया। अपूव व इस तरह

चौंक पड़ा, ज ैसे मकसी ने उसके िहं ु पर कसकर थप्पड़ िार मदया हो। भारती के मकसी प्रश्न पर अि तक उसने ध्यान नहीं

मदया था। िेमकन अि वह अमग्न मशखा की तरह उसके मदिाग िें सनसनाते हुए चक्कर काटकर उसे एकदि ही वाक्यहीन

कर गए।
कुछ क्षणों के िाद जि भारती ने नजर उठाई तो उसके होठों पर हंसी नहीं थी। िोिी, 'आज शमनवार है। हिारा स्कू ि िंद

है। िेमकन समिमत का काि होगा। चमिए न, नीचे चिकर आपका डॉक्टर साहि से पमरयच कराकर आपको 'पथ के

दावेदार' का सदस्य िनवा दूं।''

''क्या वह अध्यक्ष हैं ?''

''अध्यक्ष नहीं, वह हि िोगों की जड़ हैं । धरती के भीतर रहते हैं । उनका काि आंखों से मदखाई नहीं देता।''

''क्या इस सभा के सभी सदस्य ईसाई हैं ?''

''नहीं। िेरे अमतमरक्त सभी महंदू हैं ।''

''िेमकन िमहिाओ ं की आवाज भी तो सनु रहा हूं।''

''वह सि महंदू हैं ।''

े्
अपूव व िोिा, ''सम्भवत: वह िोग जामत-भेद अथावत खान-पान और छूत-छात का मवचार नहीं करते होंगे?''

भारती ने कहा, ''नहीं।'' मिर हंसती हुई िोिी, ''िेमकन अगर कोई यह सि िाने तो उसके िहं ु िें हि िोग कोई खाद्य

ु की व्यमक्तगत िान्यता का हि सम्मान करते हैं । आपको कोई भय नहीं है।''


पदाथव जिदवस्ती ठंू स भी नहीं देत।े िनष्य

''भय की िात क्या है?''-आपकी तरह मशमक्षत िमहिाएं भी संभव है आपके दि िें हैं ?''


''िेरी तरह?- हिारी जो अध्यक्षा हैं उनका नाि है समित्रा। वह अके िी ही पूरे मवश्व का भ्रिण करके आई हैं । डॉक्टर के

अमतमरक्त उन ज ैसी मवदुर्ी सम्भवत: इस देश िें और कोई नहीं है।''

''और मजन्हें आप डॉक्टर कह रही हैं वह?''

''डॉक्टर?'' श्रध्दा और भमक्त से भारती की दोनों आंखें छिक आईं, िोिी, ''उनकी िात रहने दें, अपूव व िािू! पमरचय देन े

िगूग
ं ी तो उनको छोटा िना डालं गी।''
अपूव व चपु रहा। देश-प्रेि का पागिपन तो उनके रक्त िें मवद्यिान था ही। 'पथ के दावेदार' का मवमचत्र नाि उसे अपनी

ओर आकमर्वत करने िगा। उसके साथ घमनष्ठ रूप से मििने के िोभ को रोक रखना कमठन हो गया। मिर भी एक प्रकार

की मवजातीय, धिवहीन, अस्वास्थ्यकर भाप नीचे से उठकर उसके िन को धीरे-धीरे ग्िामन से भरने िगी।

शोर िढ़ रहा था। भारती िोिी, ''चमिए, नीचे चिें ।''

अपूव व िोिा, ''चमिए।''

दोनों नीचे पहुंच े तो भारती ने उसे िेंत के एक सोिे पर ि ैठने को कहा और जगह की किी के कारण स्वयं भी उसके पास

ि ैठ गई।

ु होने िगी। िेमकन यहां इन


ऐसा अद्भतु आचरण भारती ने इससे पहिे कभी नहीं मकया था। अपूव व को िज्जा अनभव

िाििों िें आक्षेप करने का मकसी के पास अवसर नहीं था।

वहां पहुंचते ही अपूव व को एक व्यमक्त एकटक देखता रह गया। वह कुछ मिख रहा था।

ु मििकर एक साथ मकसी मवर्य पर िातचीत कर रहे थे। वह सभी


अपूव व ने मगनकर देखा-छ: िमहिाएं और आठ परुर्

िोग अपमरमचत हैं , के वि एक आदिी को देखते ही अपूव व पहचान गया। वेश-भूर्ा िें कुछ पमरवतवन अवश्य हो गया था।

िेमकन उसने इसी आदिी को कुछ मदन पहिे मिमििा स्टे शन पर मिना मटकट होने के अपराध िें पमिस
ु के हाथ पड़ने से

िचाया था और मजसने जल्द-से-जल्द रुपये वापस करने का वचन मदया था। उस आदिी ने नजरें दौड़ाकर देखा। िेमकन

शराि के नशे िें मजसके सािने हाथ पसारकर सहायता ग्रहण की थी शराि के मपए हुए उसकी याद तक नहीं आ सकी।

िेमकन इस िात के मिए नहीं, भारती के संिध


ं िें सोचकर उसके हृदय िें पीड़ा की कसक उठी मक वह ऐसे िोगों के िीच

कै स े आ िं सी।


भारती ने सािने खड़ी िमहिा की ओर इशारा करके कहा, 'यह हिारी अध्यक्षा हैं समित्रा देवी।''

कहने की आवश्यकता नहीं थी। अपूव व ने उसे पहिे ही पहचान मिया था। उम्र तीस के िगभग होगी। िेमकन जान पड़ता

है ज ैसे कहीं की राजरानी हैं । शरीर का रंग तपे सोने के सिान है। दमक्षणी ढंग से मसर के िाि ढीिे िांध े हुए हैं । किाई िें

सोने की दो-चार चूमड़यां हैं । गिे पर सोने के हार का कुछ भाग चिक रहा है। कानों िें हरे पत्थर के झिकों
ु पर प्रकाश

पड़ने से सांप की आंखों ज ैसे मदखाई देत े हैं । यही तो चामहए। िाथा, ठोड़ी, नाक, आंख, होंठ- कहीं भी कोई किी नहीं है।
ु िें वह
इतना आश्यचवजनक सौंदयव! ब्लैकिोडव पर वह एक हाथ रखे खड़ी थीं। साहिी पोशाक वािे सज्जन के प्रत्यत्तर

िोिने िगीं-यही तो। इसी को तो नारी का कं ठ स्वर कहते हैं ।''


समित्रा ने कहा, ''िनोहर िािू, आप नौमसमखए वकीि नहीं हैं । आपका तकव असम्बध्द हो जाने पर िैं इसका मववेचन कर

सकती हूं।''

िनोहर िािू िोिे, 'असम्बध्द तकव करना िेरा व्यवसाय भी नहीं है।''


समित्रा ु भी यही आशा है। िहुत अच्छा! आपके ियान को छोटा कर देन े पर यह स्पष्ट हो जाता है
हंसते हुए िोिी, ''िझे

मक आप नवतारा के पमत के मित्र हैं । वह जिदवस्ती उसे वापस िे जाना चाहते हैं । िेमकन उनकी पत्नी गृहस्थी चिाने की

इच्छा न रखकर, देश का काि करना चाहती है। इसिें तो कोई अन्याय नहीं है।''

''िेमकन पमत के प्रमत भी तो पत्नी का कुछ कत्तवव्य है?'' देश का काि करूंगी कह देन े से इसका मनवावह नहीं हो जाता।''


समित्रा िोिी, ''िनोहर िािू, नवतारा के पमत का अपनी पत्नी के प्रमत जो कत्तवव्य था, क्या उसे उन्होंने कभी मनभाया? यह

सि जानते हैं । कत्तवव्य का भार तो दोनों ओर सिान ही रहता है।''

िनोहर िािू क्रुध्द स्वर िें िोिे, ''िेमकन क्या इसीमिए स्त्री को कुिटा िन जाना चामहए? ऐसी तो कोई यमक्त
ु है नहीं। इस


दि िें शामिि होकर, सतीत्व को सरमक्षत रखकर, वह देश की सेवा कर सकें गी। यह तो मकसी प्रकार भी सम्भव नहीं है।''


समित्रा के चेहरे पर हिी-सी िामििा छा गई, िेमकन दूसरे पि ही सािान्य हो गईं। िोिीं, ''जोर देकर कुछ भी नहीं

कहना चामहए। िेमकन हि देख रहे हैं मक नवतारा िें हृदय है, प्राण है, साहस है और सिसे िड़ा किव-ज्ञान है। देश-सेवा


िें हि इसी को पयावप्त िानते हैं । िेमकन आप मजसे सतीत्व कहते हैं , उसकी रक्षा करने की उनको समवधा मिि सके गी या

नहीं, यह वह ही जानती हैं ।''

नवतारा के चेहरे पर नजर डािकर िनोहर िािू ने व्यंग्य से कहा, ''अच्छा किव-ज्ञान है। सम्भवत: देश के काि िें वह

िमहिाओ ं को यही मशक्षा देती मिरें गी?''



समित्रा िोिी, ''उसके उत्तरदामयत्व पर हिें मवश्वास है। व्यमक्त मवशेर् के चमरत्र की आिोचना करना हिारे मनयिों के

मवरुध्द है। मजस पमत को वह प्रेि न कर सकी और इस िहान कायव के मिए उन्होंने मजसे छोड़ देना अन्याय नहीं सिझा।

अगर देश की िमहिाओ ं को वह यही मशक्षा दे तो हिें कोई आपमत्त नहीं होगी।''

''हिारे सीता-सामवत्री के देश िें क्या आप मस्त्रयों को यही मशक्षा देंगी?''


समित्रा ु
िोिी-''देना अनमचत नहीं है। िमहिाओ ं के सािने अथवहीन शब्द न कहकर अगर नवतारा कहे मक इस देश िें एक

मदन सीता को भी आत्म-सम्मान की रक्षा के मिए पमत को त्यागकर पाताि िें जाना पड़ा था और राज-कन्या सामवत्री ने

दमरद्र सत्यवान को मववाह से पहिे इतना प्यार मकया था मक उसकी अल्प आय ु के िारे िें जानते हुए भी महचकी नहीं और

िैं स्वयं भी उस दुष्ट पमत को प्यार नहीं कर सकी और उसे छोड़कर चिी आई हूं। इसमिए िेरी ज ैसी अवस्था िें तिु िोग

भी वही करो। इस मशक्षा से तो देश की भिाई ही होगी िनोहर िािू।''

िनोहर िािू के होंठ क्रोध से कांपने िगे। पहिे तो उनके िहं ु से िात ही नहीं मनकिी। मिर िोिा, ''ऐसा होने पर देश नष्ट

हो जाएगा। आप िोगों की जो इच्छा हो कीमजए, िेमकन दूसरों को ऐसी मशक्षा ित दीमजए। यूरोप की सभ्यता की हवा

िगने से कािी क्षमत हुई है। िेमकन िमहिाओ ं िें इस सभ्यता का प्रचार करके सिूच े भारत वर्व को रसाति िें ित

भेमजए।''


समित्रा के चेहरे पर मवरमक्त तथा क्लामि एक साथ ही िू ट पड़ी। िोिीं, ''देश को रसाति से िचाने का यमद कोई िागव है तो

वही है। आपको योरोमपयन सभ्यता के संिध


ं िें यथेष्ट ज्ञान नहीं है। इसमिए इस मवर्य पर िहस करना सिय की ििावदी

होगी। िहुत टाइि ििावद हो गया। हि िोगों को और भी िहुत से काि करने हैं ।''

िनोहर िािू ने यथासम्भव अपना क्रोध दिाकर कहा, ''िेरे पास भी अमधक सिय नहीं है?-तो नवतारा नहीं जाएगी?''


''नहीं,'' नवतार ने मसर झकाकर कहा।


िनोहर ने समित्रा से कहा, ''ति इसकी मजम्मेदारी आप पर ही है।'

ु पर ही है। आपको मचंता करने की जरूरत नहीं।''


नवतारा िोिी, ''िेरी मजम्मेदारी स्वयं िझ

िनोहर ने वक्र दृमष्ट से उसकी ओर देखकर समित्रा से पूछा, ''पमत-गृह िें मववामहत जीवन से अमधक गौरव की वस्त ु नारी

के मिए और भी कुछ है क्या?''

''दूसरों की िात जो भी हो, िेमकन नवतारा का पमत के घर रहकर जीवन मिताना कोई गौरव का जीवन नहीं है।''

इस उत्तर पर िनोहर स्वयं को न रोक सके । क्रुध्द होकर पूछ ि ैठे - ''िेमकन घर से िाहर रहकर जो यह व्यमभचारपूण व

जीवन मिताएगी, उसे आप सम्भवत: गौरवपूण व जीवन कहें गी।''


इतने भीर्ण मवद्रूप से भी मकसी के चेहरे पर चंचिता मदखाई नहीं दी। समित्रा ने शांत स्वर िें कहा, ''हि िोगों की समिमत

िें संक्षपे िें िातचीत करने का मनयि है, यह न भूमिए।''

''और अगर िैं इस मनयि को िान न सकूं तो?''

''तो हिें िाहर मनकािना पड़ेगा।''


िनोहर िािू पागि हो उठे । एकदि सीधे खड़े होकर िोिे, ''अच्छा, िैं जाता हूं। गडिाई।''- यह कहकर दरवाजे के पास

पहुंचकर क्रोध से पागि होकर िोिे, ''िैं तिु िोगों का सारा हाि जानता हूं। तिु िोग मब्रमटश राज्य को सिाप्त कर


सकोगी, कभी सोचना ित। िैं एक ऐडवोके ट हूं। मकस तरह तम्हारे हाथों िें हथकमड़या डािी जा सकती हैं , िैं अच्छी

तरह जानता हूं।'' अच्छा....यह कहकर वह चिे गए।

अचानक यह कौन-सा कांड हो गया। यद्यमप मकसी ने भी उत्तेजना प्रदमशवत नहीं की तो भी सभी के चेहरे पर एक छाया-सी

डोि गई। के वि एक व्यमक्त, जो कोने िें ि ैठा मिख रहा था, उसने एक िार भी आंख उठाकर नहीं देखा। अपूव व ने सोचा-

या तो यह एकदि िहरा है या पत्थर की भांमत मनमववकार है। िनोहर ने इस समिमत के मवरुध्द जो िात कही, वह अत्यंत

संदहे पूण व है। इतनी िड़ी संख्या िें इन आश्चयवियी नामरयों ने कहां से आकर यह समिमत स्थामपत की है? इसका उद्देश्य क्या

है? भारती को अचानक इसका पता कै स े िगा? और यह आदिी जो मटकट के िदिे शराि खरीदकर पी िेन े पर उसके

सािने ही पकड़ा गया था-और सिसे िढ़कर वह नवतारा, जो पमत को छोड़कर देश का काि करने आई है। सतीत्व की

रक्षा की िात पर सोचने के मिए मजसके पास सिय नहीं है-मिर भी यह सि िोग इतने िड़े अन्याय का सिथवन ही नहीं

ु सभा िें इतने परुर्ों


कर रहे, उसे प्रश्रय भी दे रहे हैं और जो इस दि की अध्यक्षा हैं , उन्होंने स्वयं स्त्री होते हुए भी खिी ु के

सािने सती धिव के प्रमत उसकी गहरी अवज्ञा मनस्संकोच प्रकट करने िें िज्जा नहीं की।
कुछ देर तक िोगों िें खािोशी छाई रही। िाहर अंधरे ा था। राजपथ सनसान
ु पड़ा था। एक प्रकार की उमद्वग्न आशंका से

अपूव व का िन भारी हो गया।


अचानक समित्रा िोि उठीं, ''अपूव व िािू!''

अपूव व ने चमकत होकर िहं ु उठाकर देखा।


समित्रा ु है, आप
ने कहा, ''आप हि िोगों को नहीं जानते, िेमकन भारती के द्वारा हि सभी आपसे पमरमचत हैं । सना

हिारी समिमत के सदस्य िनना चाहते हैं । क्या यह सच है?''

अपूव व ने गदवन महिाकर सम्ममत प्रकट की। इनकार न कर सका। जो व्यमक्त एकाग्रमचत्त से मिख रहा था, उसे िक्ष्य करके


समित्रा ने कहा, ''अपूव व िािू का नाि मिख िीमजए।'' मिर हंसकर अपूव व से कहा, ''हिारे यहां मकसी प्रकार का चंदा नहीं

मिया जाता। हिारी समिमत की यही मवशेर्ता है?''

ु िें अपूव व ने हंसने की चेष्टा की, िेमकन हंस न सका। एक िोटी मजल्द वािे रमजस्टर िें उनका नाि मिख मिया
प्रत्यत्तर

गया है, यह देखकर वह चपु न रह सका। िोिा, ''िेमकन उद्देश्य क्या है? िझे
ु क्या करना पड़ेगा? यह तो िैं कुछ नहीं

जानता।''

''भारती ने आपको िताया नहीं?''

अपूव व िोिा, ''कुछ तो िताया है। िेमकन एक िात आपसे पूछना चाहता हूं- नवतारा के आचरण को क्या आप वास्तव िें


अनमचत नहीं सिझतीं?''


समित्रा ने कहा, ''कि-से-कि िैं नहीं सिझती। क्योंमक देश से िढ़कर िेरे मिए दूसरी कोई वस्त ु नहीं है।''

ु को
अपूव व श्रध्दा से भरे स्वर िें िोिा, ''देश को िैं हृदय से प्यार करता हूं और देश की सेवा करने का अमधकार स्त्री-परुर्

ु िाहर काि करें ग े तो स्त्री तो घर िें पमत-पत्रु की सेवा करके ही


सिान है। िेमकन इनके किव-क्षेत्र भी तो एक नहीं हैं । परुर्

ु के साथ घर से मनकिकर खड़ी होने से


साथवक होगी। उसके सत्य कल्याण से देश का मजतना िड़ा काि होगा, परुर्ों

उतना न हो सके गा।''


समित्रा हंस पड़ी।
अपूव व ने देखा, सभी ने उसकी ओर देखकर, होंठ भींचकर हंसी मछपा िी।


समित्रा ु
ने कहा, ''अपूव व िािू, यह िात िहुत परानी ु है और कोई िात िहुत िोगों के वर्ों से कहने के कारण सच
हो चकी

नहीं िन जाती यह छि है। मजन िोगों ने कभी देश का काि नहीं मकया यह िात उनकी िात है। आप स्वयं जि काि िें

िग जाएंग,े तभी इस सत्य को सिझ सकें गे मक मजसे आप नारी का िाहर आना कह रहे हैं , वह जि होगा, तभी देश का

ु की भीड़ िें सूखी िाल की भांमत सि झर पड़ेगा, मटक नहीं पाएगा।''


काि होगा। नहीं तो परुर्ों

अपूव व िमज्जत-सा होकर िोिा, ''िेमकन क्या इससे चमरत्र कलुमर्त होने का भय नहीं होगा?''


समित्रा िोिी, ''क्या घरों िें रहकर भय कि रहता है? यह दोर् िाहर आने का नहीं, मवधाता का है-मजसने नारी का मनिावण

ु और आकर्वण मदया। जरा सहानभू


मकया। उसिें अनराग ु मतपूवक
व संसार के अन्य देशों की ओर ध्यान से देमखए तो....।''

इस िात से अपूव व को प्रसन्नता नहीं हुई। तीखे स्वर िें िोिा, ''अन्य देशों की िात अन्य देश ही सोचें। अपने देश की ही

मचंता कर सकूं , यही िहुत है। क्षिा कीमजएगा, एक िात पर ध्यान मदए मिना िैं नहीं रह सकता। शायद मववामहत जीवन के

प्रमत आपकी आस्था नहीं। यहां तक मक सतीत्व और पमतव्रत धिव का भी आपकी नजरों िें कोई िूल्य नहीं है। इससे क्या

देश का कल्याण होगा?''


समित्रा ने िीठे स्वर िें कहा, ''अपूव व िािू!े् आप क्रोध िें आकर मवचार कर रहे हैं । नहीं तो िेरा भाव वह नहीं है। िेमकन

ु द्वारा ही पत्नी ग्रहण करने


आपने आमद से अंत तक गित ही सिझा है, यह िात भी नहीं है। मजस सिाज िें के वि परुर्

का मवध्न है, नारी होकर िैं उसे श्रध्दा नहीं कर सकती। आप सतीत्व के गौरव की िड़ाई कर रहे हैं । िेमकन मजस देश िें

ऐसी ही मववाह-व्यवस्था है, उसके देश िें यह वस्त ु िड़ी नहीं होती। सतीत्व के वि देह िें मनमहत नहीं है, िन िें होना

जरूरी है। तन और िन-दोनों से प्यार न कर सकने पर तो उसे ऊं चे स्तर पर पहुंचाया नहीं जा सकता। क्या आप वास्तव

ु को प्यार कर सकती है?''


िें ऐसा ही सिझते हैं मक िन्त्र पढ़कर मववाह कर देन े से ही कोई स्त्री मकसी भी परुर्


अपूव व िोिा, ''िेमकन यगों-य ु से ऐसा ही चि रहा है।''
गों


समित्रा हंसकर िोिी, ''अवश्य चि रहा है। पत्र िें प्राणामधकार पमत कहकर सम्बोमधत करने िें भी तो कोई रुकावट नहीं

होती। वास्तव िें घर-गृहस्थी के काि िें इससे अमधक की उसे जरूरत नहीं पड़ती। आपने तो यह कथा पढ़ी होगी-मकसी
ु के िड़के दूध के स्थान पर चावि का धोवन पीकर ही सख
िमन ु से जीवन मिताते थे। िेमकन सख
ु ज ैसा भी क्यों न हो, जो

नहीं है उसे वही कहकर तो गवव नहीं मकया जा सकता।''

यह आिोचना अपूव व को िड़ी कटु िगी। िेमकन उत्तर न देकर िोिा, ''क्या आप यह कहना चाहती हैं मक इससे अमधक

मकसी के भाग्य िें कुछ नहीं होता?''


समित्रा िोिी, ''नहीं, क्योंमक संसार िें भाग्य नाि का एक भी शब्द नहीं है।''

अपूव व िोिा, ''भाग्य! िेमकन अगर आपकी िात सच भी हो तो भी िैं कहता हूं मक आने वािी पीमढ़यों के कल्याण के मिए

हि िोगों की यह व्यवस्था उमचत है।''


समित्रा िोिी, ''नहीं अपूव व िािू! मकसी का इससे कल्याण नहीं होगा। सिाज और वंश के नाि पर मकसी सिय व्यमक्त की

िमि चढ़ाई जाती थी, िेमकन उसका िि अच्छा नहीं हुआ। आज वह चेतना ठीक है। प्रेि और प्यार का सिसे अमधक

प्रयोजन अगर भावी वंशजों के मिए न रहता तो ऐसे भयंकर स्नेह की व्यवस्था उसके िीच िें स्थान न पाती। इस अथवहीन

मववामहत जीवन का िोह, नारी को त्यागना ही पड़ेगा। उसे सिझना ही होगा मक इसिें िज्जा ही है गौरव नहीं।''

अपूव व िोिा, 'िेमकन मवचार कर देमखए-आप िोगों की इन सि मशक्षाओ ं से हि िोगों के सगमठत


ु सिाज िें अशांमत और

मवप्लव ही िढ़ेगा।''


समित्रा िोिी, ''भिे ही िढ़े। अशांमत और मवप्लव का अथव मवनाश नहीं होता अपूव व िािू! जो रुग्ण, जीणव और ग्रस्त है

के वि वही सतकव ता से स्वयं को अिग रखना चाहता है। मजससे मकसी भी ओर से उसके शरीर िें धक्का न िगे। अगर

सिाज की ऐसी दशा हो गई हो तो एक प्रकार से एि कुछ सिाप्त हो जाए तो क्या हामन है?''


अपूव व ने इस िात का कोई उत्तर नहीं मदया। पिभर िौन रहकर समित्रा िोिी, ''ऋमर् पत्रु की उपिा देकर िगता है िैंन े

आपके िन को चोट पहुंचाई है। िेमकन जो चोट िगने ही वािी थी उससे िैं आपको िचा भी कै स े सकती थी?''

अंमति िात को सिझते हुए अपूव व िोिा, ''जगन्नाथ जी के िागव िें खड़े होकर ईसाई मिशनरी के िोग यामत्रयों को िहुत

सताते हैं । इस पर भी उस लिे िास्टर जी को छोड़कर कोई प्रभ ु को नहीं पूजता। लिे से ही उन िोगों का काि चि

जाता है। यही आश्चयव की िात है।''


ु का िचना असम्भव नहीं हो जाता अपूव व िािू! पेड़ की पत्ती का रंग सभी हरा
''संसार िें आश्चयव है। इसीमिए तो िनष्य

नहीं देखते, इसे वह जानते भी नहीं। मिर भी िोग उसे हरा ही कहते हैं । क्या यह कि आश्चयव की िात है? सतीत्व का

िूल्य जान िेन े से क्या....?''


जो व्यमक्त इतनी देर से चपचाप ि ैठा मिख रहा था, उठ खड़ा हुआ। अन्य िोग भी उठ खड़े हुए।

अपूव व ने देखा-मगरीश िहापात्र।

भारती ने उसके कान िें कहा, ''यह ही हिारे डॉक्टर साहि हैं । उठकर खड़े हो जाइए।''

ु की तरह अपूव व उठकर खड़ा हो गया। िेमकन क्रोमधत िनोहर की अंमति िातें याद आते ही उसके शरीर
िशीन के पजों

का रक्त ज ैसे ठं डा पड़ने िगा।

ु आप भूिे नहीं होंगे। यह सभी िोग िझे


मगरीश ने उसके पास आकर कहा, ''सम्भवत: िझे ु डॉक्टर कहते हैं '' कहकर वह

हंस पड़े।

अपूव व हंस न सका। िेमकन धीरे-धीरे िोिा, ''िेरे चाचा जी के रमजस्टर िें आपका कोई भयानक नाि मिखा हुआ है।''

मगरीश ने एकाएक उसके दोनों हाथ अपने हाथ िें िेकर धीरे से कहा, ''सव्यसाची ही न?'' मिर हंसते हुए िोिे, 'िेमकन

अि रात हो गई है अपूव व िािू!'' चमिए आपको कुछ दूर तक पहुंचा आऊं । रास्ता कोई अच्छा नहीं है। पठान िजदूर जि

शराि पी िेत े हैं ति उन्हें मििुि सध-ि


ु धु नहीं रहती। चमिए, ''यह कहकर एक तरह से जिदवस्ती ही उसे किरे से िाहर

िे

गया।''


उसे समित्रा को भी निस्कार करने का अवसर नहीं मििा। न भारती से ही कोई िात कह सका। िेमकन मजस िात से

उसके हृदय को धक्का िगा, वह था उसके चाचा का रमजस्टर, मजसिें उस मवद्रोही का नाि मिखा था।

अध्याय 4
थोड़ी दूर चिकर अपूव व ने सौजन्यतापूवक
व कहा, ''आपका शरीर इतना अस्वस्थ और दुिवि है मक इस हाित िें और आगे

चिने की जरूरत नहीं है। यही रास्ता तो सीधे जाकर िड़े रास्ते से मिि गया है। िैं चिा जाऊं गा।''


तमनक िस्कराकर डॉक्टर ने कहा, ''जाने से ही क्या चिा जाया जा सकता है अपूव व िािू! सांझ को यह रास्ता सीधा था।

िेमकन रात को पठान-हब्शी इसे टे ढ़ा िना देत े हैं । चिे चमिए।''

''यह िोग क्या करते हैं , िारपीट?''

डॉक्टर िोिे, ''अपनी शराि का खचव दूसरे के कं धो पर िादने के मिए यह िोग ऐसा करते हैं । ज ैसे आपकी यह सोने की

घड़ी है। इसके दूसरी जेि िें जाते सिय आपमत्त उठने की सम्भावना है। ठीक है न?''

अपूव व घिराकार िोिा, ''िेमकन यह तो िेरे मपताजी की है।''

डॉक्टर िोिे, ''िेमकन यह िात तो वह िोग सिझना ही नहीं चाहते। िेमकन आज उन्हें सिझना ही होगा।''

''यानी?''


''यानी, आज इसके िदिे मकसी को शराि पीने की समवधा न मिि सके गी।''

अपूव व ने शंमकत स्वर िें कहा, ''न हो, चमिए। मकसी दूसरे रास्ते से घूिकर चिा जाए।''

ु भरी थी। िोिे, ''घूिकर? इस आधी रात को?


डॉक्टर मखिमखिाकर हंस पड़े। उनकी हंसी मस्त्रयों की तरह मस्नग्ध कौतक

नहीं-नहीं, इसकी जरूरत नहीं है, चमिए।'' यह कहकर उस जीणव हाथ से अपूव व का दायां हाथ थाि मिया। दिाव पड़ते ही

अपूव व के वर्ों के मजिनामस्टक और मक्रके ट-हॉकी खेिने से पष्टु हाथ की हमड्डयां िरिरा उठीं।

अपूव व िोिा, ''चमिए, सिझ गया। चाचा जी ने उस मदन आपकी िात चिने पर कहा था मक हि िोगों के गप्तु रमजस्टरों


िें मिखा है मक कृ पा करने पर वह पांच-सात-दस पमिस वािों की जीवन िीिा के वि थप्पड़ िारकर सिाप्त कर सकते हैं

ु भंमगिा पर हि िोग खूि हंसते रहे थे। िेमकन अि सोच रहा हूं मक हंसना उमचत नहीं था। आप
चाचा जी की उस िख

सम्भवत: ऐसा कभी कर सकते हैं ।''


डॉक्टर के चेहरे के भाव िदि गए। िोिे, ''चाचा जी की यह तो अमतशयोमक्त थी।''

सूनी गिी को पार करके वह िड़ी सड़क के पास पहुंच े तो अपूव व िोिा, ''अि िगता है मक िैं िेखटके जा सकूं गा।

धन्यवाद।''

डॉक्टर ने रास्ते पर दूर तक नजर डािकर धीरे से कहा, ''जा सकें गे.... शायद....''

ु को मकसी भी प्रकार रोक नहीं सका। िोिा, ''अच्छा


निस्कार करके मवदा होते सिय अपूव व अपने आंतमरक कौतहि

सव्य.....।''

''नहीं, नहीं, सव्य नहीं.... डॉक्टर कहो।''

अपूव व िमज्जत होकर िोिा, ''अच्छा डॉक्टर साहि, हिारा यह सौभाग्य है मक रास्ते िें कोई मििा नहीं। िेमकन िान

ु थे।''
िीमजए, अगर उनके दि िें अमधक संख्या िें िोग होते, तो भी क्या हि िोग संकट िक्त

डॉक्टर िोि, ''उनके दि िें दस-पांच आदिी ही तो रहते हैं ।''

''दस हों या पांच, हिें भय नहीं था?''


डॉक्टर िस्कराकर िोिे, ''नहीं।''

ु ही आपकी मपस्तौि का मनशाना कभी खािी नहीं जाता?''


िोड़ पर पहुंचकर अपूव व ने पूछा, ''अच्छा, क्या सचिच

डॉक्टर हंसते हुए िोिे, ''नहीं, िेमकन क्यों, िताइए तो? िेरे पास तो मपस्तौि है नहीं।''

अपूव व िोिा, ''मिना मिए ही मनकि पड़े? आश्चयव है। डॉक्टर साहि िेरा डेरा यहां से िगभग एक कोस होगा या नहीं?''

''अवश्य होगा।''

''अच्छा निस्कार। िैंन े आपको िहुत कष्ट मदया।'' वह मिर िोिा, ''अच्छा यह भी हो सकता है मक वे िोग आज मकसी

दूसरे रास्ते पर खड़े हों।''

डॉक्टर िोिे, ''कोई आश्चयव तो है नहीं।''



''नहीं भी है। है भी। अच्छा निस्कार। िेमकन िजा तो देमखए, जहां वास्तव िें आवश्यकता है वहां पमिस की परछाई तक

नहीं। यही है उन िोगों का कत्तवव्य िोध। क्या हि िोग इसमिए िर-िर कर टैक्स देत े हैं । सि िंद कर देना चामहए....क्या

कहते हैं आप?''

''इसिें संदहे नहीं,'' कहकर डॉक्टर साहि हंस पड़े, िोिे, 'चमिए िात-चीत करते-करते आपको कुछ दूर और पहुंचा दूं।''

ु तमनक भी साहस नहीं है। दूसरा कोई


अपूव व िज्जा भरे स्वर िें िोिा, ''िैं िहुत डरपोक आदिी हूं डॉक्टर साहि। िझिें

होता तो इतनी रात आपको कष्ट न देता।''


उसकी ऐसी मवनम्र, अमभिान रमहत सच्ची िात सनकर डॉक्टर साहि अपनी हंसी के मिए स्वयं ही िमज्जत हो गए। स्नेह से

उसके कं धे पर हाथ रखकर िोिे, ''साथ चिने के मिए ही तो िैं आया हूं अपूव व िािू! नहीं तो प्रेसीडेंट िेरे हाथ िें इस

चीज को नहीं सौंपतीं'' यह कहकर उन्होंने िाएं हाथ की कािी िोटी िाठी मदखा दी।

''क्या वह आपको आदेश दे सकती है?''

डॉक्टर हंसकर िोिे, ''अवश्य दे सकती हैं ।''

''िेमकन मकसी दूसरे को भी तो िेरे साथ भेज सकती थीं।''

''इसका अथव होता, सिको दि िनाकर भेजना। उससे तो यही व्यवस्था ठीक हुई अपूव व िािू!'' डॉक्टर ने कहा, ''वह हिारे

दि की प्रेसीडेंट हैं । उनको सि कुछ सिझकर काि करना पड़ता है। जहां छुरेिाजी होती है वहां हर मकसी को नहीं भेजा

जा सकता। अगर िैं न होता तो आज रात को रुकना पड़ता। वह आपको आने न देतीं।''

''िेमकन अि इसी रास्ते से आपको अके िे ही िौटना पड़ेगा।''

डॉक्टर िोिे, ''पडेगा ही।''

अपूव व और कुछ नहीं िोिे। पंद्रह मिनट और चिकर पहिे पमिस


ु स्टे शन को दाईं ओर छोड़कर िस्ती िें कदि रखते ही

अपूव व ने कहा, ''डॉक्टर साहि, अि िेरा डेरा अमधक दूर नहीं है। आज रात यहीं ठहर जाएं तो क्या हामन है।''

डॉक्टर हंसते हुए िोिे, ''हामन तो िहुत-सी िातों िें नहीं होती अपूव व िािू! िेमकन िेकार काि करने की हि िोगों को

ु िौट जाना पडेगा।''


िनाही है। इसका कोई प्रयोजन नहीं है, इसमिए िझे
''क्या आप िोगा मिना प्रयोजन कोई भी काि नहीं करते?''

''करने का मनर्ेध है। अच्छा, अि िैं चिता हूं अपूव व िािू!''


एक िार िड़कर पीछे के अंधरे े से भरे रास्ते को देखकर अपूव व इस व्यमक्त के अके िे िौट जाने की कल्पना से मसहर उठा।

िोिा, ''डॉक्टर साहि िोगों की ियावदा की रक्षा करने की भी क्या आप िोगों को िनाही है?''

डॉक्टर ने आश्चयव से पूछा, ''अचानक यह प्रश्न क्यों?''

ं ु ों के
ु अमभिान के स्वर िें कहा, ''इसके अमतमरक्त और क्या कहूं, िताइए? िैं डरपोक आदिी हूं। दििध्द गड
अपूव व ने क्षब्ध

ु मनरापद पहुंचाकर उसी संकट के िीच से यमद आप अके िे िौटें गे तो िैं िहं ु
िीच से अके िा ही जा सकता। िेमकन िझे

मदखाने के योग्य नहीं रहूंगा।''

िड़े स्नेह से उसके दोनों हाथ पकड़कर डॉक्टर ने कहा, ''अच्छा चमिए, आज रात आपके डेरे पर ही चिकर अमतमथ

िनकर रहूं। िेमकन यह सि िखेड़ा क्यों िोि िे रहे हो भाई।''

अपूव व इस िात को ठीक अथव नहीं सिझ सका। िेमकन दो-चार कदि आगे िढ़ते ही, हाथ िें न जाने मकस प्रकार का

ु करके घूिकर िोिा, ''आपका जूता शायद काट रहा है डॉक्टर साहि! आप िं गडा रहे हैं ।''
मखंचाव अनभव

डॉक्टर ने हंसते हुए कहा, ''यह कुछ नहीं है। िोगों के घरों के पास पहुंचते ही िेरे प ैर अपने आप िं गड़ाने िगते हैं ।

मगरीश िहापात्र का चिना याद है न?''

अपूव व िोिा, ''आपको चिना नहीं पड़ेगा, डॉक्टर साहि!


डॉक्टर िस्कराकर िोिे, ''िेमकन आपकी ियावदा।''

''आपसे ियावदा की क्या िात है। िैं तो आपकी चरण-धूमि के िरािर भी नहीं। आपके अमतमरक्त मकसिें साहस है?''


इस रास्ते से अके िे चिने िें इस व्यमक्त के मिए क्या कमठनाई है? पमिसवािे मजसे सव्यसाची के नाि से जानते हैं उनकी

ं ु े मििकर भिा कै स े रोक सकते हैं ?''


राह दस-िारह गड
डॉक्टर ने हंसी मछपाकर भिे आदिी की तरह कहा, ''इससे तो यही उमचत होगा मक हि दोनों ही मिर एक साथ िौट

ु अके िा देखकर अगर कोई आक्रिण करने का साहस करे भी तो आपके साथ रहने से इसकी सम्भावना नहीं
चिें । िझे

रहें गी।''

अपूव व िोिा, ''मिर िौट चलं ?''

ु जो शक है, वह तो न रहेगी।''
''हामन ही क्या है? अके िे जाने िें िझे

''िैं ठहरूंगा कहां?''

''िेरे यहां।''

ऑमिस से िौटने पर अपूव व को आज भोजन भी नहीं मििा था। िड़े जोर की भूख िग रही थी। कुछ िमज्जत होकर िोिा,

''देमखए, अभी तक िैंन े कुछ खाया भी नहीं है। आपके मिए....''

डॉक्टर ने हंसते हुए कहा, ''चमिए न, आज भाग्य की परीक्षा करके देख िी जाए। िेमकन एक िात है, मतवारी को िहुत

मचंता होगी।''

मतवारी की चचाव होते ही अपूव व के िन िें अचानक एक महंस्र प्रमतशोध की भावना जाग उठी। क्रुध्द होकर िोिा, ''िर जाए

सोचते-सोचते। चमिए, िौट चिें ।''


दोनों मिर सनसान रास्ते से िौट पड़े।


िेमकन इस िार उसे डर की िातें ही याद नहीं आईं। पमिस स्टे शन पार करके अचानक पूछ ि ैठा, 'डॉक्टर साहि, आप

एनामकि स्ट हैं ?''

''आपके चाचा जी क्या कहते हैं ?''

''उनका कहना है मक आप एक भयानक एनामकि स्ट हैं ।''

ं िें आपको संदहे नहीं?''


''िैं सव्यसाची हूं इस संिध

''नहीं।''
''एनामकि स्ट से आप क्या अथव िगाते हैं ?''

''राजद्रोही-अथावत जो राजा का शत्र ु हो।''

डॉक्टर िोिे, ''हिारे राजा मविायत िें रहते हैं । िोग कहते हैं , िहुत ही भिे आदिी हैं । िैंन े अपनी आंखों से उन्हें कभी

ु का भाव िेरे िन िें क्यों होगा?''


नहीं देखा। उन्होंने भी िेरी कभी कोई हामन नहीं की। मिर उनके प्रमत शत्रता

अपूव व िोिा, ''मजन िोगों के िन िें आता है उनिें भी वह मकस प्रकार आता है, िताइए तो? उनका भी तो उन्होंने कभी

अमनष्ट नहीं मकया।''

डॉक्टर िोिे, ''इसीमिए तो आप जो कुछ कह रहे हैं सत्य नहीं है।''

इसे अस्वीकार करने से अपूव व चौंक पड़ा। अमवश्वास करने का उनिें साहस नहीं था। कुछ सोचकर िोिा, ''राजा भिे ही न

हो, राज किवचामरयों के मवरुध्द जो र्डयंत्र है वह तो असत्य नहीं है डॉक्टर साहि!''

किवचारी राजा के नौकर हैं , वेतन पाते हैं , और आज्ञापािन करते हैं , एक जाता है तो दूसरा आ जाता है। िेमकन इस

सहज को जमटि और मवराट को सूक्ष्म करके जि देखने की चेष्टा करता है तभी व्यमक्त सिसे िड़ी भूि करता है। इसमिए

उन िोगों पर आघात करने को एक शमक्त के िूि िें आघात करना कहकर कुछ िोग आत्मवंचना करते हैं , इतनी िड़ी

सांघामतक व्यथवता दूसरी नहीं है।''

अपूव व िोिा, ''िेमकन यह व्यथव काि करने वािे िोग क्या भारत िें नहीं हैं ?''

''हो सकते हैं ।''

''अच्छा डॉक्टर साहि, सि िोग कहां रहते हैं और क्या करते हैं ?'' अपूव व ने पूछा।


उसकी उत्सकता ु
और व्यग्रता देखकर डॉक्टर के वि िस्करा मदए।

अपूव व िोिा, ''हंस क्यों मदए?''

डॉक्टर िोिे, ''आपके चाचा होते तो सिझ जाते। आपको मवश्वास है मक िैं एनामकि स्टों का नेता हूं। िेरे ही िहं ु से उत्तर

की आशा करना क्या उमचत होगा। अपूव व िािू!''



अपनी िमध्दहीनता ु
पर अपूव व अप्रमतभ होकर िोिा, ''आशा करना पूरी तरह अनमचत ु आज
हो जाता अगर आप िझे

अपने दि िें भती न कर िेत।े सदस्यों का इतनी िात जान िेन े का अमधकार है। इससे अमधक जानने की उसे जरूरत

नहीं है।''

''अमधकार है'' कहकर डॉक्टर हंस पड़े, ''मवद्रोही दि के खाते िें मजसका नाि मिखा गया है उसके प्रश्न का यही उत्तर है;

इससे अमधक जानने की जरूरत नहीं है।''

अपूव व तीखे स्वर िें िोिा, 'दि के खाते िें झटपट नाि मिख िेन े से ही तो कुछ नहीं होता। उसका ििािि भी तो

सिझाना पड़ता है।''

''िेमकन उन िोगों ने क्या ऐसा नहीं मकया है?''

''कुछ भी नहीं। 'पथ के दावेदार,' दावे का इतना ठाट-िाट है, यह कौन जानता था और आप भी थे। नाि मिखने के पहिे

आपको भी तो जान िेना उमचत था मक िेरा वास्तमवक उद्देश्य क्या है?''

डॉक्टर तमनक िमज्जत होकर िोिे, ''िमहिाओ ं ने ही यह सि आयोजन मकया है। वह ही जानती हैं -मकसे सदस्य िनाएं,

मकसे नहीं। वास्तव िें िैं इन िोगों की सभा की कोई मवशेर् िात नहीं जानता अपूव व िािू!'

अपूव व सिझ गया मक यह भी पमरहास ही है। उत्कं ठा और आशंका से क्रुध्द होकर िोिा, ''मछपा क्यों रहे हैं । डॉक्टर


साहि! समित्रा को ही अध्यक्ष िनाइए और मजसे जो चाहे िना दीमजए। यह दि आपका है और आप ही इसके सि कुछ हैं ,


इसिें संदहे नहीं। पमिस की आंखों िें आप धूि झोंक सकें गे, िेमकन िेरी आंखों को धोखा नहीं दे सकते, यह सिझ

िीमजए।''

डॉक्टर ने आंखें िाड़कर कहा, ''िेरे दि का अथव एनामकि स्टों का दि ही तो है। आप व्यथव ही शंमकत हो उठे हैं अपूव व िािू!

आमद से अंत तक आपने गित सिझा है। यह िोग जीवन-िरण के खेि िें शामिि हैं । वह िोग आपके ज ैसे कायर

आदिी को अपने दि िें क्यों शामिि करें ग?े वह क्या पागि हैं ?''

अपूव व िज्जा से िाि हो उठा, िेमकन उसकी छाती पर का भारी िोझ हट गया।

डॉक्टर ने कहा, 'पथ के दावेदार' नाि रखकर समित्रा ने इस दि की स्थापना की है। जीवन-यात्रा िें, पथ पर चिने का

ु को मकतना िड़ा अमधकार है, संस्था के सदस्य अपना पूरा जीवन िगाकर यही िात हर िनष्य
िनष्य ु को िता देना चाहते


हैं । समित्रा ु पर मजतने मदन यहां रहूंगा इस दि को ससं
के अनरोध ु गमठत करने का प्रयत्न करूंगा। इसके अमतमरक्त िेरा

कुछ संिध ु
ं नहीं। यह है सिाज सधारक। ु के मिए घूिने को न तो िेरे पास सिय है न ध ैयव। हो
िेमकन सिाज-सधार

सकता है कुछ मदन यहां रहूं। हो सकता है कि ही चिता िनू।ं मिर जीवन भर भेंट न हो। िेरे जीने या िरने का सिाचार

भी सम्भव है आप तक न पहुंच।े ''

ु था
यह वचन शांत और धीिे थे। उच्छ्वास का आवेग उनिें नहीं था। सव्यसाची का जो मववरण उसने चाचा जी से सना

ु कै सा?
वह अपूव व को याद आ गया। िेमकन तभी याद आया-वह तो पत्थर है उसके मिए पीड़ा का अनभव


उसने पूछा, ''समित्रा कौन है? आपसे कै स े पमरचय हुआ?''

डॉक्टर थोड़ा हंस मदए। उत्तर न मििने पर अपूव व स्वयं सिझ गया मक पूछना ठीक नहीं हुआ?

कुछ पि िौन रहकर डॉक्टर िोिे, ''आपकी कृ पा से आज रास्ता मनमववघ्न है। िेमकन अकसर होता नहीं। िेमकन आप क्या

सोच रहे हैं , सनूु ं तो?''

अपूव व िोिा, ''सोचता तो िहुत कुछ हूं। िेमकन....उसे छोमड़ए। अच्छा आपने कहा, 'िनष्य
ु का पथ पर मनमववघ्न चिने का

अमधकार।' मजस प्रकार आज हि िोग पथ पर मनमववघ्न चि रहे हैं -ऐसा ही न?''

डॉक्टर हंसकर िोिे, ''हां, कुछ-कुछ ऐसा ही।''

अपूव व ने कहा, ''जो स्त्री पमत को छोड़कर पथ के दावेदारों के सदस्य िनने आई है, वह भी िैं अच्छी तरह नहीं सिझ

सका।''


''िैं भी ठीक प्रकार से सिझ गया हूं-कह नहीं सकता। उन सि िातों को समित्रा ही अच्छी तरह जानती है?''

अपूव व ने पूछा, ''उसके पमत शायद नहीं हैं ?''


डॉक्टर चपु हो रहे। अपूव व को िज्जा से मिर याद आया मक वह कोई उत्तर नहीं देंग।े डॉक्टर के िहं ु की ओर देखकर उसे

िगा िानो इस आश्चयविय व्यमक्त के अशांत जीवन के एक गोपनीय भाग को अचानक उसने देख मिया है, उसने स्पष्ट

ं ु िा-सा जािा छा गया था।


देखा-उस भीर्ण रूप से सतकव व्यमक्त की आंखों पर एक धध

अपूव व ने और कुछ नहीं पूछा। चपचाप


ु चिने िगा।

अचानक डॉक्टर ने हंसकर पूछा, ''देमखए अपूव व िािू, आपसे िैं सच कहता हूं, मस्त्रयों की यह प्रणय जमनत िान-अमभिान

की िातें-िैं कुछ नहीं सिझता। इनिें िेकार ही सिय नष्ट होता है। इतना सिय िेरे पास कहां है!''

अपूव व के प्रश्न का यह उत्तर नहीं था। वह चपु ही रहा।

डॉक्टर िोिे, ''चपु क्यों हो? िातचीत क्यों नहीं करते?''

''क्या कहूं, िताइए।''


डॉक्टर िोिे, ''देमखए अपूव व िािू, भारती िहुत अच्छी िड़की है। ज ैसी िमध्दिती है वैसी ही किवठ और मशष्ट भी।''

यह िात भी िेकार थी। िेमकन अपूव व ने यह भी नहीं पूछा मक आप उससे मकतने मदनों से पमरमचत हैं और मकस प्रकार? वह

िोिा, ''हां।''

िेमकन डॉक्टर शायद अपनी अंमति िात का ही सूत्र पकड़कर िोिे, ''आपके मवर्य िें उन्होंने िताया था मक आप भयंकर

महंदू हैं -एकदि कट्टर। भारती ने कहा था मक उसने इतने कट्टर महंदू की भी जात मिगाड़ दी हैं ।''

अपूव व िोिा, ''हो सकता है।''


उसकी तकव करने की इच्छा नहीं थी। रास्ता भी िगभग सिाप्त हो चिा था। गिी के िोड़ पर डॉक्टर ने ज ैसे अपने सस्त

िन को एकाएक झकझोर कर जगा मदया। िोिे, ''अपूव व िािू?''

स्वर की तेजी से सचेत होकर अपूव व ने सतकव होकर कहा, ''कमहए।''



डॉक्टर िोिे, ''िेरे यहां रहने की कोई आवश्यकता नहीं। िेरे चिे जाने पर अपना संकोच छोड़कर समित्रा की सहायता

कीमजएगा। ऐसी स्त्री आप सारे संसार िें भी न पा सकें गे। इसका 'पथ का दावेदार' कहीं मनरादर तथा अवहेिना से िर न

जाए।''

''तो मिर आप छोड़कर क्यों जा रहे हैं ?''

''यहां से चिे जाना ही िंगििय है। िेरी सहायता की आप िोगों को जरूरत नहीं। सि िोग मििकर इसे संगमठत

कीमजए। इसी के द्वारा देश का सिसे िड़ा कल्याण होगा।''

''नवतारा की घटना पर तो िैं मवश्वास नहीं कर सकता डॉक्टर साहि।''


''िेमकन समित्रा पर तो करें ग?े मवश्वास के मिए इतना ऊं चा स्थान और कहीं नहीं मििेगा। अपूव व िािू! िैंन े पहिे ही िता

मदया है मक मस्त्रयों की िातें िैं मििुि सिझ नहीं सकता। िेमकन जि समित्रा
ु कहती है मक मवघ्न-िाधा हीन स्वतंत्र जीवन-

ु से अवहेिना नहीं की जा सकती। के वि िनोहर के ही


यात्रा का िानव को अमधकार है ति इस दावे की मकसी भी यमक्त

नहीं, अनेक िोगों के मनमदिष्ट िागव पर चिने से नवतारा का जीवन मनमववघ्न हो जाता- यह िैं जानता हूं। और मजस पथ को

ु है वह भी मनरापद नहीं है। िेमकन स्वयं मवपमत्त िें डूि े रहकर िैं भी भिा मकस िूत े पर उस पर मवचार
उसने स्वयं चना


करूं, िताइए तो? समित्रा ु का चरि कल्याण है? िनष्य
कहती है, इस जीवन को मनमववघ्न मिता पाना ही क्या िनष्य ु के

मवचार और प्रवृमत्त ही उसके कत्तवव्य को मनधावमरत करते हैं । िेमकन दूसरों के द्वारा मनधावमरत मवचारों और प्रवृमत्त के द्वारा

जि वह अपने स्वाधीन मवचारों का िहं ु िंद कर देता है ति उससे िढ़कर आत्महत्या तो िनष्य
ु के मिए कुछ हो ही नहीं

सकती। इस िात का कोई भी उत्तर िैं खोजने पर भी नहीं पा सकता हूं अपूव व िािू!''


''िेमकन यमद सभी अपने ही मवचारों के अनसार...?''

ु काि करना चाहें ? उस मदशा िें कै सा


डॉक्टर ने िीच िें ही रोककर कहा, ''अथावत अगर सभी अपने ही मवचारों के अनसार


कांड होगा-यह िात आप एक िार समित्रा से पूछकर देमखए।''

ु सिझकर अपूव व उसे सधारना


अपने प्रश्न की त्रमट ु चाहता था िेमकन सिय नहीं मििा। डॉक्टर ने रोककर कहा, ''िेमकन

अि कोई तकव नहीं चिेगा अपूव व िािू! हि िोग अि पहुंच गए। इस मवर्य िें मिर कभी िात की जाएगी।''

अपूव व ने देखा, वही िाि रंग का मवद्यािय-उसके दो तल्ले के भारती के किरे िें उस सिय भी रोशनी मदखाई दे रही थी।

डॉक्टर ने पकारा, ''भारती?''

मखड़की से झांककर भारती ने व्याकुि स्वर िें पूछा, ''मवजय से आपकी भेंट हुई डॉक्टर साहि? वह आपको ििाने
ु गया

है।''

डॉक्टर ने हंसकर कहा, ''तिु िोगों को प्रेसीडेंट का आदेश ही तो है। िेमकन कोई भी आदेश इतनी रात गए मकसी को भी

उस रास्ते से भेज नहीं सके गा। देख रही हो मकसी को साथ िौटा िाया हूं।''

भारती ने ध्यान से देखकर अंधरे े िें भी पहचान मिया, िोिी, ''ठीक नहीं मकया। िेमकन आप शीघ्र जाइए। नरहमर ने

शराि पीकर अपनी हेि के मसर पर कुल्हाड़ी िार दी है। िचेगी या नहीं, इसिें संदहे है। समित्रा
ु दीदी वहीं गई हैं ।''

डॉक्टर िोिे, ''अच्छा ही तो मकया है। िरती हो तो िर जाए। िेमकन िेरे अमतमथ....?''

भारती िोिी, 'िमहिाओ ं पर आपकी मवशेर् अनकम्पा


ु रहती है। िेमकन हेि के िजाय अगर नरहमर के साथ ऐसा हुआ

होता तो आप अि तक दौड़े चिे गए होते।''

''िान िो, दौड़ा चिा जा रहा हूं। िेमकन िेरे अमतमथ....?''

भारती दीपक मिए नीचे आ गई और द्वार खोिकर िोिी, ''अि आप देर ित कीमजए।''

''िेमकन क्या इनको ईसाई आमतर्थ् स्वीकार होगा? इनको छोड़कर कै स े जाऊं भारती? उसे तिु िोगों ने अस्पताि भेजने

की व्यवस्था क्यों नहीं की?''

भारती नाराज होकर िोिी, ''जो कुछ करना हो कीमजए। आपके प ैर पड़ती हूं, देर न कीमजए। इनको िैं संभाि लं गी। िझे

अभ्यास है। कृ पया आप िौरन चिे जाइए।''

अपूव व कुछ कहना ही चाहता था िेमकन उससे पहिे ही डॉक्टर तेजी से अंधरे े िें मविीन हो गए।

सीमढ़यां चढ़कर अपूव व भारती के किरे िें पहुंचा और अच्छी तरह देखकर एक आराि कुसी मिछाकर िेट गया।
कुछ देर िाद जि भारती ने ऊपर आकर मतपाई पर दीपक रखा तो अपूव व को एकाएक िज्जा का अनभव
ु हुआ। यह कोई नई

िात नहीं थी। इससे पहिे भी उन दोनों ने एक किरे िें रात मिताई है, िेमकन आज यह िज्जा क्यों? वह िन-ही-िन

इसका कारण खोजने िगा तो सहसा उसे मतवारी की याद आ गई। भारती ने उसे जगाने का प्रयास नहीं मकया। िेमकन

ु िकान के दरवाजे-मखडमकयां िंद करने िें जो खटपट की आवाज हुई, यह वास्तमवक नींद के मिए अत्यंत मवघ्नकारक
पराने

थी। अपूव व उठ ि ैठा। आंखें ििकर जंभाई िेत े हुए िोिा, ''ओह, इतनी रात को मिर िौट आना पड़ा।''

''जाते सिय यह िात िताकर क्यों नहीं गए? सरकार जी से कहकर आपके मिए भोजन िंगवाकर रख िेती?''

''िौट आने की िात क्या िैं जानता था?''

ु ही भूि हुई। भोजन के िारे िें उनसे उसी सिय कह देना चामहए था। इतनी रात गए
भारती ने सहज स्वर िें कहा, ''िझसे

यह िखेड़ा उठाने की नौित न आती। इतनी देर तक आप िोग कहां ि ैठे रहे?''

''उन्हीं से पूमछए मक तीन कोस का िागव चिना, ि ैठकर सिय मिताना कहिाता है या नहीं?''

भारती िोिी, ''गोरख धंध े िें पड़ गए थे, यही न। मिर चिना ही सार मनकिा,'' यह कहकर खड़े होने के िाद जरा हंसकर

िोिी, ''संध्या आमद अि भी करते हैं या नहीं? कपड़ा दे रही हूं। इन कपड़ों को उतार दीमजए।'' यह कहकर आंचि सिेत

ु हाथ िें िेकर एक अििारी खोिती हुई िोिी, ''िेचारा मतवारी घिरा जाएगा। िगता है ऑमिस से
चामियों का गच्छा

िौटने पर एक िार भी डेरे पर जाने का सिय नहीं मििा।''

अपूव व क्रोध को दिाते हुए कहा, ''अवश्य ही आप ऐसी अनेक वस्तएंु देख िेती हैं , मजन्हें िैं नहीं देख पाता, स्वीकार करता

हूं इसे। िेमकन कपड़ा मनकािने की जरूरत नहीं है। संध्या आमद का झंझट कहीं नहीं गया। इस जन्म िें जाएगा-ऐसा भी


सिझ िें नहीं आता। िेमकन आपके मदए कपडे से इसके मिए समवधा नहीं होगी। रहने दीमजए। कष्ट ित कीमजए।''

''पहिे देमखए तो मक िैं क्या देती हूं।''

ु जरूरत नहीं। ित मनकामिए।''


''िैं जानता हूं। टसर रेशि। िेमकन िझे

''संध्या नहीं करें ग?े ''

''नहीं।''
''सोएंग े क्या पहनकर? कोट-पतलन पहनकर?''

''हां।''

''खाना भी नहीं खाइएगा?''

''नहीं।''

''सच?''

अपूव व ने मिगड़कर कहा, ''आप क्या खेि कर रही हैं ?''

भारती उसके चेहरे की ओर देखकर िोिी, ''खेि तो आप ही कर रहे हैं , क्या आप िें शमक्त है मक भोजन न करके , उपवास

करके रह सकें ?''

यह कहकर उसने अििारी खोिी। टसर की एक सदं ु र साड़ी मनकािकर िोिी, ''एकदि पमवत्र है। िैंन े इसे कभी पहना

नहीं है। उस छोटे किरे िें जाकर कपड़े िदि आइए। नीचे नि है। हाथ-िहं ु धोकर संध्या-पूजा कर िीमजए।''

अचानक उसकी िातचीत का ढंग ऐसा िदि गया मक अपूव व अवाक े् रह गया। धीरे से िोिा, ''िाइए कपड़ा। िैं नीचे

जाऊं , िेमकन िैं मकसी के हाथ का भात न खा सकूं गा। यह कहे देता हूं।''

भारती कोिि होकर िोिी, ''सरकार जी अच्छे ब्राह्मण हैं । आचारहीन नहीं हैं । स्वयं रसोई िनाते हैं । सि खाते हैं उनके

हाथ का। कोई भी आपमत्त नहीं करता। डॉक्टर साहि का खाना भी उन्हीं के यहां से आता है।''

अपूव व का संदहे ति भी दूर नहीं हुआ। उदास िन से िोिा, ''मजस-मतस के हाथ की वस्त ु से िझे
ु घृणा होती है।''

भारती हंसकर िोिी, ''मजस-मतस के हाथ की वस्त ु खाने के मिए क्या िैं आपको दे सकती हूं? िैं उन्हीं से िंगवाऊं गी। ति

तो आपको कोई आपमत्त नहीं होगी?'' -यह कहकर वह हंस पड़ी।

अपूव व नीचे चिा गया। िेमकन उसके चेहरे का भाव देखकर भारती को यह सिझने िें देर नहीं िगी मक होटि का खाना

खाने िें उसे संकोच हो रहा है।


अपूव व रेशिी साड़ी िपेटकर काठ की िेंच पर ि ैठा संध्या कर रहा था। भारती िाहर जाती हुई िोिी, ''सरकार जी को

ु देर नहीं िगेगी। ति तक आप नीचे ही रमहएगा।''


िेकर िौटने िें िझे

ु था। भारती के साथ सरकार जी थे। उनके हाथ िें भोजन


भारती को िौटने िें देर हुई भी नहीं। अपूव व संध्या-पूजा कर चका

का थाि था। धरती पर जि मछड़ककर मिर चौका ठीक करके थाि रख मदया।

उसके जाने पर भारती ने हाथ जोड़कर कहा, ''यह म्लेच्छ का अन्न नहीं है। सि खचव डॉक्टर साहि ने मकया है। आप

संकोच छोड़कर भोजन कीमजए।''

अपूव व इस पमरहास को प्रसन्नता से सहन न कर सका। वह मकसी का छुआ अन्न नहीं खाता। होटि के भोजन िें उसकी

रुमच नहीं है। िेमकन व्यय मकसी म्लेच्छ ने मकया या ब्राह्मण ने, इसके मिए िेकार का कट्टरपन उसिें नहीं है। उसके िड़े


भाइयों ने उसकी शध्दाचामरणी ु हो, उसे िाता की आज्ञा का उल्लं घन करने िें
िां को अनेक दु:ख मदए हैं । भिी हो या िरी

अत्यंत पीड़ा होती है। भारती यह नहीं जानती-ऐसी िात नहीं है। मिर भी इस व्यंग्य से उसका िन दु:खी हो उठा। िेमकन

कोई उत्तर न देकर वह आसन पर आ ि ैठा और भोजन करने िगा।

भारती कुछ दूर धरती पर ि ैठी रही। सहसा वह िन-ही-िन कं ु मठत हो उठा। ईसाई होने का कारण वह होटि के रसोईघर

ु के िाद जो कुछ िचा था, सरकार जी उसी को उठा िाए थे।


िें नहीं गई थी। इतनी रात गए, सिका खाना-पीना हो चकने

उसे भारती ने देखा नहीं था।

किरे िें रोशनी पूरी न होते हुए भी उसे जो खाना मदखाई मदया उसे देखते ही स्तब्ध हो उठी। मकतनी ही िार उसने अपने

ऊपर वािे किरे के िशव के छेद से झांककर चोरी-मछपे इस व्यमक्त का भोजन करते देखा था। मतवारी की छोटी-से-छोटी


गिती से ही इस मचड़मचड़े आदिी को भोजन ििावद होते भारती ने अनेक िार देखा था। वही व्यमक्त आज चपचाप जि

उस न खाने योग्य भोजन को खाने िगा तो वह चपु न रह सकी। व्याकुि होकर िोि उठी-''रहने दीमजए, रहने दीमजए-

इसे खाने की आवश्यकता नहीं, आप इसे नहीं खा सकें गे।''

अपूव व मवमस्मत होकर िोिा, ''खा न सकूं गा? क्यों....?''

''नहीं, नहीं खा सकते।''


''नहीं, खा सकूं गा? यह कहकर वह खाने ही जा रहा था मक भारती पास आकर िोिी? आप तो खा सकें गे िेमकन िैं मखिा

ु ही तो भरना पड़ेगा। उमठए।''


नहीं सकूं गी, खाकर िीिार पड़ने पर इस देश िें िझे

अपूव व ने उठकर पूछा, ''तो िैं क्या खाऊं गा?'' यह कहकर उसने भारती की ओर इस तरह देखा मक उसकी असहाय भूख

की िात भारती से मछपी न रह सकी।

अपूव व शांत आज्ञाकारी िािक के सिान हाथ धोकर ऊपर की िंमजि पर चिा गया। कुछ देर िाद ही सरकार जी और

उनके होटि के सहयोगी आ गए। एक आदिी के हाथ िें िरूही की डािी और दूध की कटोरी थी, दूसरे के हाथ िें थोड़े

से िि और जि का िोटा था। यह आयोजन देख, वह िन-ही-िन प्रसन्न हो उठा। प्रसन्न होकर उसने खाने िें िन

िगाए। दरवाजे के िाहर सीढ़ी के पास खड़ी भारती देखती रही।

अपूव व िोिा, ''किरें िें आ जाइए। काठ के िशव का स्पशव-दोर् िानने से ििाव िें नहीं रहा जा सकता।''

भारती हंसकर िोिी, ''यह क्या कह रहे हैं ? आप तो िहुत उदार हो गए हैं ।''

अपूव व ने कहा, ''वास्तव िें इसिें कोई दोर् नहीं है। डॉक्टर साहि ने कहा, 'चमिए, िौट चिें ,' िैं िौट आया। यहां

शरामियों की वजह से खून-खरािी हो गई है, यह कौन जानता था।''

''जानते तो क्या करते?''

''िेरे मिए आपको इतना कष्ट उठाना पडेगा, यह जानता तो कभी न िौटता।''

भारती िोिी, ''सम्भव है। िेमकन िैंन े तो सोचा था मक आप स्वयं अपनी इच्छा से िौट आए हैं ।''

अपूव व का चेहरा िाि पड़ गया। िहं ु का ग्रास मनगिकर िोिा, ''कभी नहीं, कभी नहीं। कि डॉक्टर िािू से पूछकर देख

िेना।''

''पूछताछ की क्या जरूरत है? आप क्या झ ूठ िोिें ग?े ''


उत्तर सनकर अपूव व जि उठा। उसके िौटने पर भारती ने जो मवचार प्रकट मकया उसे याद करके िोिा, ''झ ूठ िोिना िेरा

स्वभाव नहीं है। आप मवश्वास नहीं कर सकतीं?''


''िैं क्यों मवश्वास करूंगी?''

''िैं यह नहीं जानता। मजसका ज ैसा स्वभाव होता है....'' कहकर िहं ु नीचा करके भोजन करने िगा।

''आप िेकार ही नाराज हो रहे हैं । डॉक्टर साहि के कहने से न आकर अपनी इघ्छा से ही आ जाने िें क्या दोर् है? वह जो

आप स्वयं खोजते हुए िेरे पास आए उसिें भी क्या दोर् था?''

''संध्या को हाि-चाि जानने के मिए आना और आधी रात को िौटकर आना, दोनों िें अंतर है।''

भारती िोिी, ''नहीं है। इसीमिए तो िैंन े आपसे पूछा था मक अगर िताकर गए होते तो खाने-पीने की इतनी परेशानी न

होती। सि कुछ ठीक-ठाक करके रखवा मदया होता।''


अपूव व चपचाप भोजन करने िगा। जि भोजन सिाप्त हो गया तो अचानक िहं ु ऊपर उठाकर देखा.... भारती मस्नग्ध होकर

ु भरी नजरों से चपचाप


और कौतक ु उसकी ओर देख रही है। िोिी, ''देमखए तो, खाने िें मकतना कष्ट हुआ।''

''आज आपको न जाने क्या हो गया है। सीधी-सी िात भी सिझ नहीं पा रहीं।''

''और ऐसा भी तो हो सकता है मक िात सीधी-सादी न हो सकने के कारण सिझ िें न आ रही हो,'' कहकर भारती

मखिमखिाकर हंस पड़ी।

अपूव व भी हंस पड़ा। उसे संदहे हुआ मक इतनी देर से भारती शायद उसे झ ूठिूठ ही परेशान कर रही थी।

जि सिाप्त हो गया था। खािी मगिास देखकर भारती व्यग्र हो उठी ''यह जो....?''

''क्या और जि नहीं है?''

''है तो,'' कहकर भारती क्रुध्द होकर िोिी, ''इतना नशा करने से िनष्य
ु को याद नहीं रहता। पीने के पानी का िोटा मशिू

नीचे के नि पर ही छोड़ गया। अि आप हाथ धोकर पी िीमजए। िेमकन क्रोध ित कीमजए, यह कहे देती हूं।''

अपूव व ने हंसते हुए कहा, ''इसिें क्रोध करने की क्या िात है?''

भोजन के सिय पीने भर को जि न मििने पर िड़ी अतृमप्त होती है। िगता है पेट नहीं भरा। िेमकन इसीमिए कुछ

ु िाऊं ।''
छोड़कर उठ जाने से भी तो काि नहीं चिता। अच्छा जाऊं , जल्दी से मशिू को ििा
ु था। मिर भी जिदवस्ती दो-चार कौर िहं ु िें ठंू सकर जि वह उठकर खड़ा हुआ तो उसे िज्जा
भोजन सिाप्त हो चका

ु मकसी प्रकार की असमवधा


िहसूस होने िगी। िोिा, ''िैं सच कह रहा हूं, िझे ु नहीं हुई। िैं हाथ धोने के िाद पानी पी

लं गा।''

भारती हंसकर िोिी, ''िैं रोशनी मदखाती हूं। आप नीचे चिकर िहं ु धो िीमजए। जि का िोटा सािने ही रखा है। भूि

न जाइएगा।''

हाथ-िहं ु धोकर अपूव व जि ऊपर आया तो देखा मक उसकी जूठन हटाकर भारती ने जगह साि कर दी है। एक ओर छोटी


मतपाई पर तश्तरी िें इिायची-सपारी आमद रखी है। भारती के हाथ से तौमिया िेकर हाथ-िहं ु पोंछकर, इिायची-सपारी

िहं ु िें डािकर वह आराि कुसी पर आ ि ैठा। िोिा ''ओह इतनी देर के िाद शरीर िें ज ैसे प्राण आ गए। मकतनी जोर की

भूख िगी थी।''

मिर दीपक के प्रकाश िें भारती का चेहरा देखकर िोिा, ''देख रहा हूं आपको भी सदी िग रही है।''

''नहीं तो.... कहां?''

''नहीं क्यों? गिा भारी है, आंखें सूजी हुई हैं । ठं ड िहुत है। अि तक इस ओर िेरा ध्यान नहीं गया था।''

भारती ने उत्तर नहीं मदया।

अपूव व िोिा, ''ठं ड का अपराध क्या है? इतनी रात गए दौड़-धूप जो करनी पड़ी है।''

कुछ रुककर मिर िोिा, 'िौटकर िैंन े आपको व्यथव ही कष्ट मदया, िेमकन कौन जानता था मक डॉक्टर साहि ििाकर
ु अंत


िें आित आपके गिे िढ़कर स्वयं मखसक जाएंग।े भगतना तो आपको पड़ा।''

भारती िोिी, ''यही हुआ। िेमकन जि भगवान ने िोझा खींचने का काि सौंपा है तो मिर नामिश मकससे करने जाऊं ?''

अपूव व आश्यचव से िोिा, ''इसका क्या अथव है?''

भारती उसी तरह काि करते-करते िोिी, ''अथव िैं नहीं जानती। िेमकन देख रही हूं मक जि से आपने ििाव िें पांव रखा है

ति से िैं ही िोझ ढो रही हूं। मपताजी से झगड़ा आपने मकया, दंड िैंन े भोगा। घर पर पहरेदारी के मिए मतवारी को आपने
छोड़ा, उसकी सेवा करते-करते िर मिटी िैं। भय िग रहा मक कहीं सारा जीवन आपका िोझ ही न ढोना पड़े।.... रात हो

गई, सोइएगा कहां?''

''िैं क्या जानू?ं ''

भारती िोिी, ''होटि िें डॉक्टर साहि के किरे िें आपके मिए मिस्तर ठीक करने को कह आई हूं। शायद व्यवस्था हो गई

हो।''

ु कौन िे जाएगा? िझे


''वहां िझे ु तो पता नहीं।''

''िैं चिती हूं।''

''चमिए,'' कहकर अपूव व उठ खड़ा हुआ। मिर कुछ संकोच के साथ िोिा, ''िेमकन तमकया और मिछौने-चादर िेता

जाऊं गा। दूसरे के मिछौने पर िैं सो नहीं पाऊं गा।''

यह कहकर मिछौना उठाने जा रहा था मक भारती ने रोक मदया। इतनी देर के िाद उसका गम्भीर चेहरा हंसी से मखि

उठा। िेमकन उसे मछपाने के मिए िहं ु िे रकर धीरे से िोिी, ''यह भी तो दूसरे का ही मिछौना है अपूव व िािू! इस पर ि ैठने

ु न होता हो तो भारी आश्चयव है। िेमकन अगर ऐसी ही हो तो आपको होटि िें सोने की
िें आपको घृणा का अनभव

जरूरत ही क्या है। आप यहीं सोइए।''

''िेमकन आप कहां सोएंगी? आपको कष्ट होगा।'' भारती िोिी, ''नहीं,'' मिर उंगिी से मदखाकर कहा, ''उस छोटे से किरे

िें कुछ मिछाकर िैं अच्छी तरह सो सकूं गी। के वि काठ के िशव पर हाथ को ही तमकया िनाकर मतवारी के पास मकतनी ही

रातें मितानी पड़ी थीं।''

एक िहीने पहिे की िात याद करके अपूव व िोिा, ''एक रात िैंन े भी देखा था।''

भारती ने हंसते हुए कहा, ''यह िात आपको याद है? आज उसी तरह मिर देख िेना।''

''ति तो मतवारी िहुत िीिार था। िेमकन अि िोग क्या सोचेंग?े ''

''सोचेंग े क्या? दूसरों के िारे िें व्यथव की कुछ सोचने का छोटा िन यहां मकसी का नहीं है।''
''िेमकन नीचे की िेंच पर भी तो िैं सो सकता हूं?''

ु कोई
भारती िोिी, ''ति, जि िैं सोने दूं। इसकी आवश्यकता नहीं है। िैं आपके मिए अस्पृश्य हूं। इसमिए आपसे िझे

हामन पहुंच सकती है, यह भय नहीं है।''

ु आपका कभी अकल्याण हो सकता है, यह भय िझे


अपूव व आवेग से िोिा, ''िझसे ु भी नहीं है। िेमकन मकसी को अस्पृश्य

ु सिसे अमधक पीड़ा होती है। अस्पृश्य शब्द िें घृणा का भाव है। िेमकन आपसे तो घृणा नहीं करता। हि
कहने से िझे

िोगों की जामत अिग है, इसमिए आपका छुआ िैं खा नहीं सकता। िेमकन इसका कारण क्या घृणा है? यह झ ूठ है।

ु घृणा करती हैं । उस मदन भोर िें ही िझे


इसके मिए आप िन-ही-िन िझसे ु अथाह सागर िें डािकर जि आप चिी आईं


उस सिय की आपकी िखाकृ ु आज भी याद है। उसे िैं जीवन भर न भूि सकूं गा।''
मत िझे

''सि कुछ चाहे भूि जाएं िेमकन िेरा यह अपराध न भूमिएगा।''

''कभी नहीं।''


''िेरी उस िखाकृ मत िें क्या भावना थी? घृणा?''

''अवश्य ही।''

ु का िन सिझने की िमध्द
भारती हंस पड़ी। िोिी, ''अथावत िनष्य ु आपकी अत्यंत तीक्ष्ण है। है या नहीं? िेमकन अि

ु तो रात को जगने का अभ्यास है। िेमकन आप और अमधक जागेंग े तो िझे


जरूरत नहीं है। आप सो जाइए। िझे ु भगतना

होगा,'' कहकर वह पास की कोठरी िें चिी गई।

भारती चिी गई िेमकन अपूव व की आंखों िें नींद की छाया तक न थी। किरे के एक कोने िें टं गी हुई ित्ती मटिमटिा रही

ु करने िगा मक किरे िें


थी। िाहर रात का अंधकार छाया हुआ था। उसका सम्पूण व शरीर िानो रोि-रोि िें यह अनभव


इस मिस्तर पर, इस नीरव रात िें इसी प्रकार चपचाप ु वस्त ु तीनों िोक िें नहीं है।
सो रहने की तरह सन्दर


प्रात:काि उसकी नींद भारती के पकारने पर टूटी। आंखें खोिते ही उसने देखा- वह उसके प ैरों के पास खड़ी है।

''उमठए, क्या ऑमिस नहीं जाना है।''

ु हैं ।''
''जाना तो है। देख रहा हूं, आप नहा भी चकी
ु हुई। िेमकन आज हिारी प्रेसीडेंट
''आपको भी सारे काि जल्दी मनपटा िेन े चामहए। कि अमतमथ-सत्कार िें कािी त्रमट

का आदेश है मक आपको अच्छी तरह मखिाए-मपिाए मिना मकसी भी तरह से न जाने मदया जाए।''

अपूव व ने पूछा, ''कि वािी स्त्री िच गई?''

''उसे अस्पताि भेज मदया गया। िचने की आशा तो है।''

उस स्त्री को अपूव व ने कभी देखा नहीं था। मिर भी उसके कुशि-सिाचार से उसने िड़ी राहत िहसूस की। आज मकसी का

कोई भी अकल्याण िानो वह सह नहीं सके गा। उसे ऐसा िहसूस हुआ।

स्नान, संध्या-पूजा आमद सिाप्त करके , कपड़े पहनकर त ैयार होकर जि वह ऊपर पहुंचा तो िगभग नौ िज चकेु थे। इसी

िीच चौका ठीक करके सरकार जी भोजन रख गए। अपूव व ने आसन पर ि ैठकर पूछा, ''आपकी प्रेसीडेंट से तो िेरी भेंट

नहीं हुई। क्या उनके अमतमथ-सत्कार की यही रीमत है।''

''आपके जाने से पहिे भेंट हो जाएगी। आपके साथ उनको शायद कुछ जरूरी काि भी है।''

ु ििाकर
''और डॉक्टर साहि-जो िझे ु िाए हैं ? शायद वह अभी मिछौने पर ही पड़े हैं ।''

''मिछौने पर िेटने का उन्हें सिय ही नहीं मििा। अभी-अभी अस्पताि से आए हैं । सोने, न सोने मकसी का भी उनके

मनकट कोई िूल्य नहीं है।''

अपूव व ने पूछा? ''इससे क्या वह िीिार नहीं पड़ते?''


''िैंन े तो देखा नहीं। िगता है सख-दु:ख ु के साथ उनकी तिना
दोनों ही उनसे हार िान कर भाग गए हैं । सािान्य िनष्य ु

नहीं की जा सकती।''

''उनके प्रमत आप सि िोगों की अपार श्रध्दा है।''

''श्रध्दा है। श्रध्दा तो अनेक िोगों को अनेक चीजों पर होती है।'' कहते-कहते उसका कं ठ स्वर अचानक भारी हो उठा।

िोिी, ''उनके जाते सिय जी चाहता है मक रास्ते की धूि पर िेटी रहूं। वह छाती के ऊपर प ैर रखकर चिे जाएं। इच्छा

होती है िेमकन आशा कभी पूरी नहीं होती अपूव व िािू!'' यह कहकर उसने िहं ु िे रकर झटपट आंखों के दोनों कोने पोंछ

डािे।
अपूव व ने कुछ नहीं पूछा। चपचाप
ु ु
भोजन करने िगा। उसे िार-िार याद आने िगा मक समित्रा और भारती के सिान


इतनी पढ़ी-मिखी और िमध्दिती नामरयों के हृदय िें मजस व्यमक्त ने इतनी ऊं चाई पर मसंहासन िना मिया है। भगवान ने

उसे मकस धात ु का िनाकर इस संसार िें भेजा है। उसके द्वारा वह कौन-सा असाधारण कायव सम्पन्न कराएंग?े

ऑमिस के कपड़े पहनकर त ैयार होकर उसने कहा, ''चमिए, डॉक्टर साहि से भेंट कर आएं।''


''चमिए, उन्होंने आपको ििाया भी है।''

सरकार जी के जीणव-शीणव होटि के एक िहुत ही भीतरी किरे िें डॉक्टर साहि रहते हैं । रोशनी नहीं है, हवा नहीं है।

ु तख्तों पर प ैर रखने से िगता है मक कहीं टूट कर


आस-पास गंदा पानी जिा हो जाने से िदिू िै ि रही है। अत्यंत पराने

न मगर पड़े। ऐसे ही एक गंद े तथा भद्दे किरे िें रास्ता मदखाती हुई भारती उसे िे गई तो उसके आश्चयव की सीिा न रही।

उस किरे िें पहुंचकर कुछ देर तक तो अपूव व को कुछ मदखाई ही नहीं मदया।

डॉक्टर साहि ने स्वागत करते हुए कहा, ''आइए, अपूव व िािू!''

''ओह कै सा भयानक किरा आपने ढूंढ़ मनकािा है डॉक्टर साहि?''

''िेमकन मकतना सस्ता है। दस आने िहीना मकराया है-िस।''

''अमधक है, िहुत अमधक है। दस प ैसे ही उमचत होता।''

डॉक्टर साहि िोिे, ''हि दु:खी िोग मकस तरह रहते हैं , आपको आंखों से देखना चामहए। िहुतों के मिए तो यही राज

िहि है।''

ु िहि से वंमचत ही रखें।''


''ति तो भगवान िझे

ु है, कि रात आपको िहुत कष्ट उठाना पड़ा। क्षिा कीमजएगा।''


''सना

''क्षिा तभी करूंगा जि आप यह किरा छोड़ देंग,े इससे पहिे नहीं।''

डॉक्टर हंस पड़े। िोिे, ''अच्छा ऐसा ही होगा।''



अि तक अपूव व ने देखा नहीं था। उसे एक िोढ़े पर ि ैठी समित्रा ु क्षिा करें ,
को देखकर आश्चयव हुआ। ''आप यहां हैं ? िझे

आपको िैंन े देखा ही नहीं था।''

''अपराध आपका नहीं, अंधकार का है अपूव व िािू!''

अपूव व ने धीरे से कहा, ''डॉक्टर साहि, आज आपका पहनावा कै सा है? क्या कहीं िाहर जा रहे हैं ?''

डॉक्टर के मसर पर पगड़ी, िदन पर िम्बा कोट, ढीिा पाजािा, प ैरों िें राविमपंडी का नागौरी जूता। सािने चिड़े के िंध े

कई गट्ठर थे। िोिे, ''िैं तो अि जा रहा हूं अपूव व िािू! यह सभी िोग.... रहें ग।े आपको देखभाि करनी होगी। इससे

अमधक आपको कुछ कहना िझे


ु आवश्यक नहीं जान पड़ता।''

अपूव व घिराकर िोिा, ''अचानक कै स े जा रहे हैं ? कहां जाना है?''

डॉक्टर ने शांत स्वाभामवक स्वर िें कहा, ''हि िोगों के शब्दकोश िें क्या 'अचानक' शब्द होता है अपूव व िािू? िािो के

रास्ते िें जाना है। उसके भी और उत्तर िें। कुछ सच्ची जरी का िाि है। मसपाही अच्छे दािों िें खरीद िेत े हैं ।'' यह

कहकर वह हंस पड़े।''


समित्रा िोि उठी, ''उन िोगों को पेशावर से एकदि हटाकर िािो िाया गया है। तिु जानते हो, उन िोगों पर कै सी िरी


मनगरानी रहती है। तिको िहुत से िोग पहचानते हैं । यह ित सोच िेना मक सिकी आंखों िें धूि झोंक सकोगे। इधर

कुछ मदनों तक न जाने से क्या काि नहीं चिेगा?''

अंमति वाक्य कहते सिय उसका स्वर कुछ मवमचत्र-सा सनाई


ु पड़ा।

डॉक्टर ने कहा, ''तिु तो जानती ही हो मक न जाने से काि नहीं चिेगा।''


समित्रा ने मिर कुछ नहीं कहा। िेमकन क्षण भर िें अपूव व सारी घटना सिझ गया। उसके सिूच े शरीर िें आग-सी जिने

िगी। मकसी प्रकार पूछ ि ैठा, ''िान िीमजए, यमद उनिें से कोई पहचान ही िे, यमद पकड़ िे?''

डॉक्टर िोिे, ''सम्भव है... पकड़ िेन े पर िांसी दे देंग।े िेमकन अि दस िजे की ट्रे न छूटने िें देर नहीं है अपूव व िािू! िैं जा

ु द े को िड़ी आसानी से पीठ पर रखा और चिड़े का ि ैग हाथ िें


रहा हूं।'' यह कहकर उन्होंने िीते से िंध े िहुत िड़े पमिं

उठा मिया।
अभी तक भारती ने एक शब्द भी नहीं कहा था। मिना कुछ िोिे प ैरों िें मगरकर प्रणाि कर मिया। समित्रा
ु ने भी प्रणाि

मकया। िेमकन प ैरों के पास नहीं एकदि प ैरों के ऊपर मगरकर।

ु िें भींचकर कहा, ''िैं अि जा रहा हूं


डॉक्टर ने किरे के िाहर आकर अपूव व के हाथ को मपछिी रात की तरह अपनी िट्ठी

अपूव व िािू!-िैं ही सव्यसाची हूं।''

अपूव व का चेहरा एकदि सूख गया। गिे से एक शब्द भी नहीं मनकिा, िेमकन आंखों के पिकों के मगरते-मगरते उसके प ैरों

के पास मस्त्रयों की तरह धरती पर मगरकर प्रणाि मकया। डॉक्टर ने उसके मसर पर हाथ रखा और दूसरा हाथ भारती के मसर

ु नहीं मदया। मिर वह तेजी से िाहर मनकि गए।


पर रखकर धीिे स्वर िें क्या कहा सनाई


भारती और अपूव व दोनों ने पीछे की ओर के िंद दरवाजे की ओर िड़कर देखा, िेमकन मकसी ने कुछ कहा नहीं। दोनों


चपचाप होटि से िाहर आने िगे तो भारती ने कहा, ''चमिए अपूव व िािू, हि िोग अपने किरे िें चिें ।''

''िेमकन िेरा तो ऑमिस का सिय....।''

''रमववार को भी ऑमिस?''

''रमववार?.... यह िात है?'' अपूव व प्रसन्न होकर िोिा, ''यह िात सवेरे याद आ जाती तो नहाने-खाने के मिए इतना

घिराने की जरूरत ही न पड़ती। आपको इतनी िातें याद रहती हैं िेमकन इस िात को भूि गईं।''

''ऐसा ही हुआ है िेमकन कि रात को आपका मनराहार रहना िैं नहीं भूिी।''

अपूव व िोिा, ''देर करने के मिए अि सिय नहीं है। िेचारा मतवारी परेशान हो रहा होगा।''

भारती िोिी, ''नहीं हो रहा। आपके जागने से पहिे ही उसे आपकी कुशिता की सूचना मिि चकी
ु है।''

''उसे क्या पता मक िैं यहा हूं?''

''पता है। िैंन े आदिी भेज मदया था।''



यह सनकर अपूव व के िन पर से भारी िोझ उतर गया। मतवारी और जो कुछ भी क्यों न करे, िेमकन भारती के िहं ु से

मनकिी िात पर िर जाने की मस्थमत िें भी अमवश्वास नहीं करेगा। प्रसन्न होकर अपूव व िोिा, ''आपकी नजर चारों ओर

रहती है। घर पर भाभी को भी देखा है। िां को भी देखा है िेमकन हर ओर मजसकी दृमष्ट रहे, ऐसा कोई नहीं देखा। सच

कहता हूं, आप मजस घर की स्वामिनी होंगी उस घर के िोग आंखें िदं ु कर मदन मिताएंग।े मकसी को कभी कोई कष्ट नहीं

उठाना पड़ेगा।''

भारती के चेहरे पर मिजिी-सी दौड़ गई। अपूव व ने इसे नहीं देखा। वह पीछे-पीछे आ रहा था।

''इस पराए देश िें आप न होती तो िेरी क्या दशा होती िताइए तो? सि कुछ चोरी हो जाता। शायद मतवारी किरे िें ही

िर जाता। ब्राह्मण के िड़के को डोि-िेहतर खींचकर उठाते। िैं भी क्या रह पाता? नौकरी छोड़कर शायद चिा जाना

पड़ता। उसके िाद वही मस्थमत। भामभयों की गजवना और िां की आंखों के आंस।ू आप ही तो सि कुछ हैं । सि कुछ िचा

मदया आपने।''

''मिर भी आपने आते ही िेरे साथ झगड़ा िचा मदया था।''


अपूव व िमज्जत होकर िोिा, ''सारा दोर् मतवारी का ही है। िेमकन िां यह सनकर आपको मकतना आशीवावद देंगी, यह आप

नहीं जानतीं?''

''कै स े जानू?ं िां के आने पर उन्हीं के िहं ु से तो सनु पाऊं गी।''

''िां आएंगी, इस ििाव िें? यह आप क्या कह रही हैं ?''

भारती ने िि देकर कहा, ''क्यों नहीं आएंगी। मकतनों ही की िां आए मदन आ रही हैं । यहां आने से क्या मकसी की जामत

चिी जाती है?''

अपूव व जाकर आराि कुसी पर ि ैठ गया। भारती िोिी, ''भामभयां िां की अच्छी तरह सेवा नहीं करतीं। आपको िहुत मदनों

तक मवदेश िें नौकरी करके रहना पड़े तो उनकी सेवा कौन करेगा?''

''िां कहती हैं , छोटी दुल्हन उनकी सेवा करेगी।''


भारती िोिी, ''अगर वह भी सेवा न करे तो? आप रहें ग े मवदेश िें, िड़ी िहुओ ं की देखा-देखी यमद वह भी उनकी तरह िां

की सेवा न करके उन्हें कष्ट देन े िगे तो क्या कीमजएगा?''

अपूव व भयभीत होकर िोिा, ''ऐसा कभी नहीं हो सकता। कुिीन ब्राह्मण वंश से आकर मकसी प्रकार भी वह िेरी िां को

कष्ट नहीं देगी।

''कुिीन ब्राह्मण वंश.....'' भारती िस्कराकर


ु िोिी, ''अि रहने दीमजए। अगर जरूरत पड़ी तो वह कहानी मकसी दूसरे मदन

ु गी। के वि िां की सेवा के मिए ही मजससे मववाह करके आप छोड़कर चिे आएंग,े उसके प्रमत क्या यह
आपको सनाऊं

आपका अन्याय नहीं होगा?''

''अन्याय तो अवश्य होगा।''

''और इस अन्याय के िदिे िें आप स्वयं न्याय की अपेक्षा करें ग?े ''

कुछ पि िौन रहकर अपूव व िोिा, ''िेमकन इसके अमतमरक्त िेरे पास और उपाय ही क्या है भारती?''

''उपाय नहीं भी और हो भी सकता है। िेमकन असम्भव िात की आशा आप िहुत िड़े कुिीन घर की िेटी से भी नहीं कर

सकते। इसका पमरणाि कभी शभु नहीं होगा। आपकी मनिविता के िदिे िें वह मजतना ही अपना कत्तवव्य-पािन करेगी

आप उसके सािने उतने ही छोटे हो जाएंग।े पत्नी के सािने अश्रध्देय होने की अपेक्षा िड़ा दुभावग्य संसार िें कुछ और नहीं

है।''

इस िार अपूव व मनरुत्तर-सा हो गया। मित्र-िंडिी िें शास्त्र के अनसार ु


ु नारी को आधमनकता के मवरुध्द शास्त्र ग्रंथों से

प्रिाण उध्दृत करके उन िोगों को स्तब्ध कर मदया है। िेमकन इस ईसाई िड़की के आगे उसका िहं ु नहीं खिा।
ु वह

इतना ही कह सका, ''कोई नहीं।''

भारती हंसकर िोिी, ''एकदि कोई नहीं, यह िात नहीं है। कुिीन घर की न होकर कहीं भी कोई हो सकती है जो आपके

मिए अपने-आपको सम्पूण व रूप से सिमप वत कर दे। िेमकन उसे आप खोज कहां पाएंग?े ''

अपूव व अपने आप िें ही डूिा रहा। भारती की िात पर उसने ध्यान नहीं मदया। िोिा, ''यही तो िात है।''

भारती ने पूछा, ''आप घर कि जाइएगा?''


ु नहीं पाया। उस िां
''क्या पता, िां कि मचट्ठी भेजती है। िािू जी के साथ ितभेद होने के कारण िां ने जीवन िें कभी सख

को अके िी छोड़ आने के मिए िेरा िन कभी त ैयार न होता।'' मिर भारती की ओर देखकर िोिा, ''देमखए, िाहर से देखने

िें हि िोगों की अवस्था मकतनी ही अच्छी क्यों न हो िेमकन भीतर से िहुत खराि है। भामभयां मकसी भी मदन हि िोगों

को अिग कर सकती हैं । वहां जाकर शायद मिर िौटकर न आ सकूं ।''

भारती िोिी, ''आपको आना ही पडेगा।''

''िां को छोड़कर कि तक अिग रहूंगा?''

''उन्हें सहित करके साथ िे आइए। वह आएंगी।''

अपूव व हंसकर िोिा, ''कभी नहीं। िां को आप नहीं जानतीं। अच्छा िान िो, वह आ जाएं, तो उनकी देख-भाि कौन

करेगा?''

''िैं करूंगी!''

''आप करें गी? आपके घर िें कदि रखते ही िां ितवन उठाकर िेंक देंगी।''

भारती िोिी, ''मकतनी िार िेंक देंगी। िैं रोज किरे िें जाऊं गी।

दोनों हंस पड़े। भारती ने सहसा गम्भीर होकर कहा, ''आप भी तो ितवन िेंकने वािों के दि के ही हैं । िेमकन िेंक देन े से

ु जातीं। मवश्वास न हो तो मतवारी से पूछ िीमजएगा।''


ही सारा िखेड़ा सिाप्त हो जाता तो संसार की सारी सिस्याएं सिझ

अपूव व िोिा, ''यह तो सच है। वह ितवन तो िेंक देगा िेमकन साथ ही उसकी आंखों से आंस ू भी िहें ग।े आपके मिए उसके

िन िें अपार भमक्त है। थोड़ा-सा मसखाने-पढ़ाने से वह ईसाई भी िन सकता है।''

भारती िोिी, ''संसार िें कि क्या हो जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता, न नौकर के संिध
ं िें और न...'' यह कहकर उसने

हंसी मछपाने के मिए िहं ु नीचा मकया तो अपूव व का चेहरा िाि हो उठा। िोिा, ''पर यह तो मनमश्चत है मक नौकर और

ु िें कुछ अंतर रह सकता है।''


िामिक की िमध्द

भारती िोिी, ''अंतर तो है। इसीमिए िामिक के सहित होने िें देर हो सकती है।''
पमरहास सिझ अपूव व प्रसन्न होकर िोिा, ''क्या आप ऐसा सोच सकती हैं ?''

''हां, सोच सकती हूं।''

अपूव व िोिा, ''िेमकन िैं तो प्राण जाने पर भी धिव का त्याग नहीं कर सकता।''

भारती िोिी, ''प्राण जाना क्या वस्त ु है, आप यही तो नहीं जानते। मतवारी जानता है, िेमकन इस मवर्य पर िहस करने से


अि क्या िाभ है? आपकी तरह अंधकार िें डूि े व्यमक्त को प्रकाश िें िाने की अपेक्षा अमधक आवश्यक काि अभी िझे

करने िाकी हैं । आप थोड़ी देर सो रमहए।''

अपूव व िोिा, ''िैं मदन िें कभी नहीं सोता।''

ु तो िट्ठी
भारती िोिी, ''िझे ु भर अन्न पकाकर खाना पड़ता है। सो नहीं सकते तो िेरे साथ नीचे चमिए। िैं क्या रसोई

पकाती हूं, मकस तरह पकाती हूं, यही देमखए। जि एक मदन िेरे हाथ का खाना ही पड़ेगा तो अनजान रहना उमचत नहीं।''

यह कहकर मखिमखिाकर हंस पड़ीं।

अपूव व िोिा, ''िैं िर जाने पर भी आपके हाथ का नहीं खाऊं गा।''

''िैं जीमवत रहते खाने की िात कह रही हूं,'' कहकर हंसती हुई नीचे चिी गई।

अपूव व मचल्लाकर िोिा, ''ति िैं अपने डेरे पर चिा जाता हूं, मतवारी परेशान होगा।''

िेमकन कोई उत्तर नहीं मििा। आिस्य आ जाने के कारण वह आराि करने िगा।

''उमठए, मदन िहुत िीत गया।''

ु जगा क्यों नहीं मदया?''


अपूव व आंखें ििकर उठ ि ैठा। देखकर िोिा, ''तीन-चार घंटे हो गए, िझे

''जाइए, हाथ-िहं ु धो आइए। सरकार जी जिपान की थािी िे आए हैं ।''

नीचे से हाथ-िहं ु धोकर आने के िाद अपूव व जिपान करके सपारी-इिायची


ु आमद िहं ु िें रखकर िोिा, ''अि िझे
ु छुट्टी

दीमजए। िैं अपने डेरे पर जाऊं ।''



भारती िोिी, ''यह नहीं होगा। मतवारी को िैंन े सूचना पहुंचा दी है, वह घर पर स्वस्थ है। कोई मचंता नहीं। आज समित्रा

ु िािू को िेकर उस पार गई है। आप िेरे साथ चमिए। आपके मिए प्रेसीडेंट का यही
देवी अस्वस्थ हैं , नवतारा अति

आदेश है। यह धोती िैंन े िा दी है। उसे आप पहन िीमजए।''

''कहां जाना होगा?''

''िजदूरों के घर। आज रमववार के मदन वहां काि करना है।''

''िेमकन वहां मकसमिए?''

भारती ने हंसकर कहा, ''आप इस संस्था के िाननीय सदस्य हैं । मनमश्चत स्थान पर न जाने से काि का ढंग नहीं सिझ

पाएंग।े ''

''चमिए,'' अपूव व त ैयार हो गया।

अििारी से एक चीज मनकािकर भारती ने मछपाकर उसकी जेि िें रख दी। अपूव व िोिा, ''यह क्या है?''

''मपस्तौि है।''

''मपस्तौि क्यों?''

''आत्मरक्षा के मिए।''

''इसका िाइसेंस है?''

''नहीं।''


''अगर पमिस पकड़ िेगी तो दोनों की ही आत्मरक्षा हो जाएगी। मकतने साि की सजा मििेगी, जानती हो?''

''नहीं, चमिए।''

अपूव व िोिा, ''दुगाव श्रीहमर! चमिए।''

िम्बा रास्ता चिकर, एक कारखाने के सािने पहुंचा वह िोग िाटक के कटे दरवाजे से मनकिकर अंदर चिे गए। अंदर

कारीगरों और िजदूरों के रहने के मिए टूटे-िू टे काठ और टीनों की िम्बी िस्ती थी।
भारती िोिी, ''आज काि का मदन होता तो यहां िार-पीट खून-खरािा हो रहा होता।''

ु कर रहा हूं।''
''यह तो छुट्टी के मदन की भीड़ से ही अनभव

सािने एक िद्रासी िमहिा पदाव मखसकाकर पाखाने जा रही थी। पदे की हाित देखकर अपूव व िज्जा से िाि होकर िोिा,

''पथ के दावे करने हों तो कहीं और चमिए। िैं यहां खड़ा नहीं रह सकता।''

ु िें भारती हंस पड़ी।


प्रत्यत्तर

कई घरों को पार करके दोनों एक िंगािी मिस्त्री के घर िें प्रवेश मकये। उस आदिी की उम्र कािी हो चिी है। कारखाने िें

पीति ढािने का काि करता है। शराि पीकर, काठ के िशव पर िेटा िहं ु मिगाड़कर मकसी को गामियां दे रहा था।


भारती िोिी, ''िामणक मकस पर नाराज हो रहे हो? सशीिा दो मदन से पढ़ने क्यों नहीं गई?''


िामणक मकसी तरह उठकर ि ैठ गया। पहचानकर िोिा, ''िमहन जी, आओ ि ैठो। सशीिा ु
तम्हारे स्कू ि िें कै स े जाए,

िताओ। रसोई-पानी, ितवन िांजने से िेकर िड़के को संभािने तक का काि। छाती िटी जा रही है िमहन जी। उस सािे

ूं ा मक सािे की नौकरी ही छूट


को अगर िार न डालं तो िैं वैवतव सिाज से खामरज। िड़े साहि के पास ऐसी अजी भेजग

जाएगी।''


भारती हंसकर िोिी, ''वही करना। और अगर कहो तो समित्रा ु
दीदी से कहकर तम्हारी अजी मिखवा दूंगी। िेमकन कि

तो िायर िैदान िें हिारी िीमटं ग है। याद है न?''

तभी दस-ग्यारह वर्व की एक िड़की आई। उसने शराि िशव पर रखकर कहा, ''घोड़ा िाकाव शराि नहीं मििी, टोपी िाकाव

िे आई हूं। चार प ैसे िाकी िचे हैं िािूजी। रमिया ने शराि िें धतु होकर िझसे
ु क्या कहा था, जानते हो?''

मपता ने रमिया का नाि िेकर एक भद्दी गािी दी।

भारती िोिी, ''वहां तिु ित जाना सशीिा।


ु ु
तम्हारी िां कहां है?''

िां? िां परसों रात को ही यदु चाचा के साथ चिी गई। िाईन के िाहर मकराये के एक िकान िें रहती है....।''
िड़की और भी कुछ कहने जा रही थी मक िाप गरजकर िोिा, ''रहने दूंगा? ब्याही औरत है, रख ैि नहीं।'' कहकर उसने

नई िोति की टोपी तोड़ डािी।

अचानक भारती की साड़ी का छोर खींचकर अपूव व िोिा, ''चमिए यहां से।'' इससे पहिे उसने भारती को कभी छुआ तक

नहीं था।

''थोड़ी देर और ठहमरए।''

''नहीं मििुि नहीं,'' वह उसे जिदवस्ती िाहर िे आया।

किरे िें िामणक िोति खोिकर गवव से िोिा, ''खून करके अगर िांसी पर भी चढ़ना पड़े तो भी अच्छा है। िैं जेि या

िांसी मकसी से भी नहीं डरता।

अपूव व अमग्नमपंड की तरह दहक उठा, ''हरािजादा, पाजी, लुच्चा, िदिाश-नरककं ु ड िना रखा है। यहां आपको कदि रखने

िें घृणा नहीं हुई?''

भारती िोिी, ''नहीं। इस नरककं ु ड का मनिावण इन िोगों ने नहीं मकया।''

ु उसकी िां तीथवयात्रा करने गई है। मनिवज्ज, िेहया,


अपूव व िोिा, ''इन्होंने नहीं तो क्या िैंन े मकया है। िड़की की िात सनी?

शैतान! मिर कभी यहां आइएगा तो अच्छा न होगा।''

भारती हंसकर िोिी, ''िैं म्लेच्छ हूं। िेरे यहां आने िें क्या दोर् है?''

अपूव व क्रुध्द होकर िोिा, ''दोर् नहीं है? ईसाई के मिए क्या अपने सिाज के प्रमत कोई उत्तरदामयत्व नहीं है?''

''िेरा कौन है मजसके प्रमत उत्तरदामयत्व मदखाऊं ? मकसके मसर िें िेरे मिए पीड़ा होती है?''

''यह आपकी चािाकी है। घर िौट चमिए।''

ु पांच जगह और जाना है। आपको अच्छा न िगता हो तो आप िौट जाइए।''


''िझे

''यह कहने से ही क्या िैं आपको छोड़कर जा सकता हूं?''



''ऐसी िात है तो िेरे साथ चमिए। िनष्य ु के अत्याचार आंखें खोिकर देखने चमिए। के वि छुआछूत िै िाकर,
पर िनष्य

अपने आप साध ु िनकर सोचते हैं मक पण्य


ु संचय करके एक मदन स्वगव जाएंग,े ऐसा सोमचएगा भी नहीं।''

अध्याय 5


कहते-कहते भारती की िखाकृ मत कठोर और गिे की आवाज तीखी हो उठी, ''इस िड़की की िां और यदु ने जो अपराध

मकया है वह क्या के वि इन िोगों को दंड देकर सिाप्त हो जाएगा? डॉक्टर साहि को जि तक िैंन े नहीं पहचाना था ति

तक िैं भी इसी तरह सोचती थी। िेमकन आज िैं जानती हूं मक इस नरककं ु ड िें मजतना पानी है उसका भार आपको भी

स्वगव के द्वार से खींचकर िे आएगा और इस नरककं ु ड िें डुिो देगा। आप िें इतनी सािर्थ्व नहीं है मक इस दुष्कृ मत का


ऋण चकाए ु पा जाएं। हि िोग अपनी ही गरज से यहां आते हैं अपूव व िािू! यह उपिमब्ध ही हि िोगों के
मिना ही िमक्त

पथ के दावे की सिसे िड़ी साधना है। चमिए।''

''चमिए,'' अपूव व ने कहा। िेमकन वह भारती की िातों पर मवश्वास नहीं कर सका।

सागौन का एक पेड़ मदखाकर भारती िोिी, ''यहां सािने कई िंगािी रहते हैं । चमिए।''

''िंगामियों के अमतमरक्त और जामतयों िें भी आप िोग काि करती हैं ?''

''हां, हिें तो सभी की आवश्यकता है। िेमकन प्रेसीडेंट के अमतमरक्त और कोई अन्य भार्ाएं नहीं जानता। यह काि उन्हीं

का है।''

''वह भारत की सभी भार्ाएं जानती हैं ?

''हां।''

''और डॉक्टर साहि?''


भारती हंस पड़ी, ''डॉक्टर साहि के संिध ु
ं िें आपकी भी उत्सकता रहती है। आपको इस िात पर मवश्वास नहीं होता मक

संसार िें जो कुछ भी जान िेना सम्भव है वह सि कुछ जानते हैं । जो कुछ मकया जा सकता है वह कर सकते हैं । उनके

मिए अज्ञान या असाध्य कुछ भी नहीं है।''


दोनों ने एक िकान िें प्रवेश मकया। भारती ने पकारा, ''पंचकौड़ी, आज तिीयत कै सी है?''

भीतर से आवाज आई, ''आज कुछ ठीक है।''

इतने िें एक िूढ़ा सािने आ खड़ा हुआ। िोिा, ''िेटी, िड़की को खूनी आंव रहता है। शायद िचेगी नहीं। िड़के को कि


से मिर िखार ु दवा िा सकूं । यह एक कटोरी सािूदाना या िािी
आ गया है। पास िें एक प ैसा भी नहीं मक एक-दो खराक

ु ं से भर गईं।
ही पकाकर मखिा सकूं ।'' उसकी दोनों आंखें आंसओ

अपूव व िोिा, ''प ैसा क्यों नहीं है?''

ु की जंजीर मगर जाने से िाएं हाथ िें चोट िग गई है। िगभग एक िहीने से काि पर नहीं जा सका।
वह िोिा, ''पिी

प ैसा कहां से आएगा िािू जी?''

अपूव व िोिा, ''कारखाने वािे इसका कोई प्रिंध नहीं करते?''

''िजदूर के मिए प्रिंध? वह तो कह रहे हैं मक काि नहीं कर सकते तो िकान छोड़ दो। ठीक होकर आना। काि मिि

जाएगा। ऐसी हाित िें चिा कहां जाऊं ? छोटे साहि के हाथ-पांव जोड़कर एक हफ्ते और रह पाऊं गा। िीस वर्व से काि

कर रहा हूं िहाशय। यह िोग ऐसे ही निक हराि हैं ।''

अपूव व क्रोध से जि उठा। जी िें आया मक िैन ेजर मिि जाए तो उसकी गदवन पकड़कर मदखा दूं मक अच्छे मदनों िें मजसने

िाखों रुपए किाकर मदए हैं , आज िरेु मदनों िें उसकी क्या हाित है?

अपूव व के िकान के पास ही ि ैिगामड़यों का एक अड्डा है। उसे वहां की एक घटना याद आ गई। एक जोड़ी ि ैि जीवनभर

िोझ ढोते-ढोते जि अशक्त और िूढे हो गए हो उनके िामिक ने उन्हें कसाई के हाथ िेच मदया। उस रास्ते से वह जि भी

गया है, इस घटना को याद करके उसकी आंखों िें आंस ू आ गए हैं । ि ैिों के मिए नहीं। िेमकन धन की िािसा िें इस

ु के मिए, जो अपने-आपको मनंरतर छोटा िनाता जा रहा है।


सीिा तक ििवर और मनष्ठुर िने िनष्य
ु मिछौने पर एक िड़की और एक िड़का अधिरे से पड़े थे। उनके पास
किरे के एक कोने िें स ैकड़ों स्थान पर िटे -पराने

जाकर भारती ने उनकी नब्ज देखी। भय के कारण अपूव व वहां नहीं जा सका। िेमकन दमरद्रता पीमड़त उन दोनों िच्चों की

वेदना उसकी छाती िें चोट कर गई।

कुछ देर के िाद भारती िोिी, ''चमिए।''


पंचकौड़ी चपचाप, ु मिए खड़ा था। भारती ने मस्नग्ध स्वर िें मिर कहा, ''डरो ित, दोनों अच्छे हो जाएंग।े िैं
उदास िख

डॉक्टर और दवा, सिका प्रिंध कर देती हूं।''

उसकी िात पूरी हो ही रही थी मक अपूव व जेि िें हाथ डािकर रुपया मनकािने िगा। भारती ने जल्दी से उस हाथ को

पकड़कर रोक मदया। पंचकौड़ी की नजर दूसरी ओर थी। वह यह नहीं देख पाया। िेमकन अपूव व इसका कारण नहीं सिझ

सका।

भारती ने अपनी अंमगया के जेि से चार आने मनकािकर उसके हाथ िें देकर कहा, ''िच्चों के मिए चार प ैसे की मिश्री, चार

प ैसे का सािूदाना िे आना और िाकी दो आने का दाि-चावि िाकर तिु खा िेना। कि तम्हारा
ु प्रिंध कर दूंगी।'' यह

कहकर अपूव व को साथ िेकर किरे से मनकि आई।

ु प ैसे देन े से रोक मदया और स्वयं भी नहीं मदए। यह क्यों?''


रास्ते िें अपूव व ने पूछा, ''आपने िझे

''देकर तो आ रही हूं।''

''इसी को देना कहते हैं ? उसके इस दुमदिन िें पाई-प ैसे का महसाि करके के वि चार आने देना उसका अपिान है।''

''आप मकतना देन े जा रहे थे?''

''कि-से-कि पांच रुपए।''

भारती जीभ काटकर िोिी, ''िाप-रे-िाप! सि चौपट हो जाता। िाप तो शराि पीकर िेहोश पड़ा रहता और िड़की,

िड़के दोनों की िृत्य ु हो जाती।''

''शराि पी िेता?''
ु संसार िें कौन है?''
''नहीं पीता? हाथ िें इतना रुपया आ जाने पर शराि न पी जाए-ऐसा िनष्य

''आपकी सभी िातें मवमचत्र हैं । िीिार िच्चे की दवा के रुपए से शराि खरीदकर पी िे-यह क्या सत्य हो सकता है?''

''नहीं तो दाता का हाथ पकड़कर दु:खी व्यमक्त को देन े से रोकूं , क्या िैं इतनी नीच हूं?''

''इनकी िां नहीं है?''

''नहीं।''

''कहीं कोई मरश्तेदार भी नहीं है।''

भारती िोिी, ''होने पर भी कोई काि नहीं आता। दस-ग्यारह साि पहिे पंचकौड़ी एक िार अपने गांव गया था। अपने

मकसी पड़ोसी की एक मवधवा स्त्री को िुसिाकर यहां िे आया था। िड़का-िड़की उसी के हैं । दो वर्व िीत रहे हैं गिे िें

ु हो गई। यही पंचकौड़ी के पमरवार का संमक्षप्त इमतहास है।''


िांसी िगाकर इस संसार से िक्त

अपूव व ने गहरी सांस िेकर कहा, ''नरककं ु ड है।''

''इसिें तमनक भी संदहे नहीं, िेमकन कमठनाई तो यह है मक यह सभी हिारे भाई-िमहन हैं । रक्त का संिध
ं अस्वीकार कर

देन े से तो छुटकारा नहीं मििेगा अपूव व िािू! ऊपर ि ैठकर जो सि कुछ देख रहे हैं वह कौड़ी-दाि जोड़-जोड़कर महसाि

करके ही छोड़ेंग।े ''

अपूव व ने गम्भीर होकर कहा, ''िगता है मक यह असम्भव नहीं है।''

पिभर पहिे पंचकौड़ी के किरे िें खड़े-खड़े जो मवचार प ैदा हुए थे मिजिी के वेग के सिान िन िें दौड़ गए। िोिा, ''िैं

ु हूं। िेरा भी कुछ-न-कुछ दामयत्च है।''


भी िनष्य

भारती िोिी, ''पहिे-पहिे तो िैं भी नहीं देख पाती थी। क्रोध िें आकर झगड़ा कर ि ैठती थी। िेमकन अि देख पा रहीं हूं

मक इन सि अज्ञानी, दु:खी, दुिवि िन और पीमड़त भाई-िहनों की गदवन पर पाप का िोझ कौन िादता जा रहा है।''

पास वािे किरे िें एक उमड़या मिस्त्री रहता है। उसक पास वािे किरे से िीच-िीच िें तेज हंसी और कोिाहि की

ु दे रहा था। वह दोनों उस किरे िें पहुंच।े भारती को वह


आवाजें आ रही थी। यह सि पंचकौड़ी के किरे से भी सनाई
िोग पहचानते थे। सभी ने उसकी अभ्यथवना की। एक दौड़कर एक स्टूि और िेंत का एक िोढ़ा िे आया। दोनों ि ैठ गए।

िशव पर ि ैठे छह-सात आदिी और आठ-दस औरतें एक साथ शराि पी रहे थे। टूटा हारिोमनयि और तििा िीच िें

रखा था। तरह-तरह के रंग और आकार की खािी िोतिें चारों ओर लुढ़की पड़ी थीं। एक िूढ़ी-सी औरत नशें िें धतु पड़ी

ु ि ैठे
सो रही थी। उसे एक प्रकार से नंगी ही कहा जा सकता था। साठ से िेकर िीस-पच्चीस वर्व तक के नौ उम्र स्त्री-परुर्

ु का छुट्टी का मदन था। प्याज-िहसनु की तरकारी और सस्ती जिवन शराि की अवणवनीय दुगांध
थे। आज रमववार है। परुर्ों

एक साथ मििकर अपूव व की नाक तक पहुंचते ही उसका जी मिचिाने िगा। एक कि उम्र की औरत के हाथ िें शराि का

मगिास था। शायद थोड़े मदन पहिे ही घर छोड़कर आई है। िाएं हाथ से नाक िंद करके मगिास को िहं ु िें उड़ेिकर

िार-िार थूकने िगी। एक आदिी ने झटपट उसके िहं ु िें तरकारी ठंू स दी। एक िंगािी स्त्री को शराि पीते देख अपूव व

स्तमम्भत-सा हो गया। िेमकन उसने कनखी से देखा मक इतने भयंकर वीभत्य दृश्य से भी भारती के चेहरे पर मकसी प्रकार

ु की ज ैसे वह अभ्यस्त हो गई हो। िेमकन पिभर के िाद घर के स्वािी के


के मवकार का मचद्द नहीं है। यह सि देखने-सनने


कहने पर जि ट्रिी ने गाना आरम्भ मकया-''वह यिना-वह ु
यिना-'' और पास ही ि ैठे एक आदिी ने हारिोमनयि उठाकर

झ ूठ-िूठ ही जी जान से िजाना आरम्भ मकया ति शायद इतना िोझ भारती के मिए असह्य हो उठा। घिराकर िोिी,

''मिस्त्री जी, कि हि िोगों की सभा है। शायद यह िात तिु भूिे नहीं हो। वहां जाना तो चामहए ही।''

''जरूर चामहए िमहन जी,'' कहकर कािा चांद ने मगिास िें शराि डाि िी।

ु पढ़ा होगा मक मतनके जोड़-जोड़कर रस्सी त ैयार करने पर हाथी भी िांध जा सकता है।
भारती ने कहा, ''िचपन िें तिने

एक न होने पर तिु िोग कभी कुछ न कर सकोगे। के वि तिु िोगों की भिाई के मिए समित्रा
ु िमहन मकतना पमरश्रि कर

रही हैं । िताओ तो।''

इस िात का सभी ने सिथवन मकया। भारती ने कहा, ''तिु िोगों के मिना क्या इतना िड़ा कारखाना एक मदन भी चि

सकता है? तिु िोग ही तो उसके वास्तमवक स्वािी हो। इतनी सीधी-सादी िात कािाचंद, तिु िोग न सिझना चाहो तो

कै स े काि चिेगा।''

सिने कहा, ''यह िात मििुि ठीक है। उन िोगों के न चिाने पर तो अंधरे ा-ही-अंधरे ा रह जाएगा।
भारती ने कहा, ''मिर भी तिु िोगों को मकतना कष्ट है। सोचकर देखो। जि ति अपराध के मिना ही साहि िोग तिु

िोगों पर िात-जूत े िारकर िाहर मनकाि देत े हैं । इस पास के घर की हाित देख िो। काि करते सिय पंचकौड़ी का

हाथ टूट गया मजसके कारण उसे खाना नहीं मिि रहा। उसके िड़के -िड़की दवा न मििने के कारण िौत के िहं ु िें जा

रहे हैं । िड़ा साहि उसे िकान से भी मनकाि देना चाहता है। यह जो िाखों-करोड़ों रुपयों को िाभ यह िोग कर रहे हैं ,

यह मकसकी िदौित हो रहा है? और तिु िोगों को मििता क्या है? अभी उस मदन की घटना है-श्याििाि को छोटे

साहि ने धके ि मदया, वह आज तक अस्पताि िें पड़ा हुआ है। इस िात को तिु िोग क्यों सहोगे? एक िार सि िोग

ूं ी मक वह िोग तिु िोगों से


एक होकर ऊं ची आवाज िें कह दो मक यह अत्याचार हि िोग अि नहीं सहें ग।े मिर देखग

और कुछ नहीं चाहते कािा चांद।''

े् होकर सनु रहा था। उसने कहा, ''भ ैया हि क्या नहीं कर सकते? हि सि ऐसा पेंच
एक शरािी इतनी देर तक अवाक-सा

ढीिा करके रख दे सकते हैं मक धाड़-धाड़-धड़ाि िस आधा कारखाना साि को जाएगा।''

ु िोगों की हामन होगी। हो


भारती ने भयभीत होकर कहा, ''नहीं, नहीं, दुिाि, ऐसा काि कभी ित करना। इससे तो तम्हीं

सकता है, मकतने ही िोग िर जाएं। हो सकता है...नहीं, नहीं...यह िात सपने िें भी ित सोचना दुिाि। इससे िढ़कर

भयानक पाप दूसरा नहीं है।''

दुिाि ितवािी हंसी हंसकर िोिा, ''नहीं, यह क्या िैं जानता नहीं। यह तो के वि िातचीत के मसिमसिे िें कह रहा हूं

मक हि िोग क्या नहीं कर सकते।''

भारती िोिी, ''तिु िोगों को सिागव


ु िें, सच्चे िागव िें खड़ा होना चामहए, तभी तिु कुछ कर पाओगे। तिु िोगों को िहुत

रुपया पावना है। वह कौड़ी-कौड़ी करके वसूि करना होगा।''

ु करने िगे। ति भारती िोिी, ''सांझ हो रही है। अभी एक जगह और जाना है।
इसी िात को िेकर वह सि हल्ला-गल्ला

अि हि िोग जा रहे हैं । िेमकन कि की िात ित भूि जाना।'' कहकर वह खड़ी हो गई।

कािा चांद के इस अड्डे के सभी व्यवहार अपूव व को अशोभन मदखाई मदए। िेमकन अंमति सिय िें मजन िातों की चचाव हुई

उससे उसके मवरमक्त की सीिा नहीं रही। िाहर आते ही उसने अत्यमधक अप्रसन्न होकर कहा, ''तिु यह सि िातें उन

िोगों से क्यों कहने गई।''


''कौन सि िात?''

ु सना
''वह नािायक हरािजादा तो शरािी है। दुिाि ने क्या कहा, तिने ु तो?'' िान िो यह िात साहि िोगों के कानों

तक पहुंच जाए?

''उनके कानों तक कै स े पहुंचग


े ी?''


''अरे, यह िोग ही कह देंग,े यह िोग क्या यमधमष्ठर हैं ? शराि के नशे िें कि क्या कर डािें , इसका कोई मठकाना नहीं है।


ति तम्हारे ु ही मसखाया है।''
ऊपर ही सारा दोर् आएगा। यह कहें ग े मक तिने

''िेमकन यह तो झ ूठी िात होगी।''

अपूव व ने व्याकुि होकर कहा, ''झ ूठी िात? अरे, अंग्रज


े ों के राज्य िें झ ूठी िात के मिए क्या कभी मकसी को जेि की सजा

नहीं मििी? यह राज्य तो झ ूठ के आधार पर ही खड़ा है।''

ु भी जेि हो सकती है।''


''सम्भवत: िझे

ु तो झट से कह मदया, जेि हो सकती है। नहीं, नहीं, यह सि कुछ नहीं होगा। और तिु यहां कभी आओगी भी
''तिने

नहीं।''

एक आदिी से मििना था िेमकन उसके द्वार पर तािा िगा था। दोनों िौट पड़े। कािा चांद के िकान िें शरामियों का

तकव -मवतकव अभी तक चि रहा था। िोग यह कहकर झगड़ रहे थे मक ईसाई िड़मकयां कारखानें िें हड़ताि करा देना

चाहती हैं । हड़ताि िें उन्हें िड़ा कष्ट होगा। उन िोगों को िाइन के घरों िें नहीं आने देना चामहए। कािा चांद मिस्त्री ने

कहा वह िूख व नहीं है। वह उन िोगों की दौड़-धूप परख रहा है। एक सतकव िमहिा ने सिाह दी मक िड़े साहि को पहिे

ही सावधान कर देना ठीक होगा।

वहां से भारती को जिदवस्ती दूर िे जाकर अपूव व तीखे स्वर िें िोिा, ''इन िोगों की भिाई करोगी? हरािजादे, पाजी,

िदिाश। पासवािे किरे िें दो िच्चे िर रहे हैं , उनकी ओर आंख उठाकर कोई नहीं देखता। इससे िढ़कर नरक और कहां

है?''

भारती िोिी, ''आपको यह क्या हो गया है?''


ु कुछ नहीं हुआ, िेमकन तिने
''िझे ु कुछ सना
ु है या नहीं?''


''यह तो परानी ु हूं।''
िातें हैं । रोजाना ही सनती

अपूव व गरजकर िोिा, ''ऐसी कृ तघ्नता! इन्हीं को तिु अपने दि िें िाना चाहती हो। यूमनयन िनाना चाहती हो? इनकी

भिाई चाहती हो?''

भारती हिकी-सी हंसी के साथ िोिी, ''यह िोग भी तो हि िोगों िें से ही हैं अपूव व िािू! इस छोटी-सी िात को भूिकर

आप संकट िें पड़ रहे हैं । और भिाई? भिाई तो डॉक्टर साहि की भी नहीं मक जा सकती अपूव व िािू!''

अपूव व मनरुत्तर हो गया।


दोनों चपचाप िाटक पार करके घूिते हुए िड़ी सड़क पर पहुंच गए। िस्ती के छोर पर जहां से दिदि आरम्भ होती थी,


वहीं मतिहानी पर पहुंचकर भारती िोिी, ''अगर आप घर जाना चाहें तो शहर जाने के मिए यह दाईं ओर का रास्ता है।''

अपूव व ने खोए-खोए से स्वर िें पूछा, ''आप क्या कहती हैं ।''

भारती िोिी, ''अि आपका मदिाग ठं डा हो गया है और यथोमचत सम्बोधन की भार्ा याद आ गई है।''

''क्या ितिि?''

''ितिि यह मक क्रोध के कारण अि तक आप और तिु का भेद नहीं था। वह मिर िौट आया है।''

अपूव व िमज्जत होकर िोिा, ''आप नाराज तो नहीं हुईं?''

भारती हंसकर िोिी, ''हुई भी हूं तो क्या हजव है? चमिए।''

''तो चलं ?''

''चिोगे नहीं तो क्या िैं अंधरे े रास्ते िें अके िी जाऊं गी?''

अपूव व चि मदया। उसके अंतर िें एक ज्वािा-सी धाधक रही थी। उन शरामियों की िातों को वह मकसी भी तरह से भूि


नहीं पा रहा था। सहसा कड़े स्वर िें िोिा, ''यह सि तो समित्रा का काि है। आपको वहां नेतत्व
ृ करने के मिए जाने की

क्या जरूरत है? न जाने कौन कहां क्या कर डािे। और आपको िेकर खींचातानी आरम्भ हो जाए।
भारती िोिी, ''हो जाने दीमजए।''

अपूव व िोिा, ''वाह रे....हो जाने दीमजए! असि िात यह है मक नेतामगरी करना आपका स्वभाव है। िेमकन और भी तो

िहुत से स्थान हैं ?''

''कोई मदखा दीमजए न?''

ु गरज नहीं।''
''िझे

भारती ने हाथ िढ़ाकर अपूव व का दायां हाथ जोर से पकड़कर कहा, ''िेरा स्वभाव िदिेगा नहीं अपूव व िािू! िेमकन आप

ज ैसे आदिी पर नेतत्व


ृ कर पाऊं तो और सि छोड़ सकती हूं।''


अगिे मदन समित्रा की अध्यक्षता िें िायर िैदान िें जो सभा हुई उसिें उपमस्थमत कि थी। मजन िोगों ने भार्ण देन े का

वचन मदया था उनिें से भी अमधक िोग नहीं आ सके । सभा की कायववाई देर से आरम्भ हुई रोशनी का प्रिंध न होने के


कारण सांझ होने से पहिे ही सिाप्त कर दी गई। समित्रा के भार्ण के अमतमरक्त सभा िें और कुछ उल्ले खनीय नहीं हुआ।

िेमकन इसका अथव यह नहीं मक पथ के दावेदारों के इस प्रथि प्रयास को व्यथव कह मदया जाए। िजदूरों िें इस िात को

िै िने िें मजस प्रकार देर नहीं हुई उसी प्रकार मिि और कारखाने के िामिकों के कानों तक भी उक्त िातों के पहुंचने िें

मविम्ब नहीं हुआ। चारों ओर यह िात िै ि गई मक एक िंगािी िमहिा मवश्व-भ्रिण करती हुई ििाव िें आई है। वह

मजतनी रूपियी है उतनी ही शमक्तियी भी है। मकसी की िजाि नहीं जो उनके कािों िें िाधा डाि सके । साहिों का कान


पकड़कर वह मकस प्रकार िजदूरों के मिए सि प्रकार की समवधाएं ु करा
उपिब्ध करा िें गी और उनकी िजदूरी दो गनी

देंगी- इन िातों को उन्होंने स्पष्ट शब्दों िें कहा है। मजन िोगों को इस सभा की खिर थी और जो िोग उस मदन उनका

भार्ण नहीं सनु पाए उन्होंने मनश्यच मकया मक वह अगािी शमनवार की सभा िें अवश्य भाग िें ग।े

िीस-पच्चीस कोस के दायरें िें मजतने भी कारखाने थे उनिें यह खिर दावामग्न की भांमत िै ि गई।


समित्रा को िहुतों ने अभी तक नहीं देखा है, िेमकन उसके रूप और शमक्त की ख्यामत जि उन िोगों तक पहुंची ति

अमशमक्षत िजदूरों िें भी सहसा एक जागृमत-सी मदखाई देन े िगी। यह मनश्यच हो गया मक एक मदन का नागा करके

शमनवार को िायर िैदान िें एक-एक िजदूर उपमस्थत होगा। उसकी वाणी और उपदेशों िें यमद कोई पारस पत्थर हो
मजससे गरीि िजदूरों का दु:खी जीवन रातोंरात एकाएक आमतशिाजी के तिाशों की तरह चिक उठे , तो मिर मजस तरह

हो सके वह दुिवभ वस्त ु उन्हें प्राप्त कर िेनी चामहए।

उस मदन भार्ण कत्तावओ ं के अभाव िें अपूव व को भी दो-चार िातें कहनी पड़ी थीं। िोिने की आदत तो थी नहीं और जो

कुछ कहा भी उसको ठीक तरह से न कह सका। इसके मिए वह िन-ही-िन िमज्जत हुआ।

िेमकन आज अचानक खिर मििी मक उस मदन की सभा मनष्फि नहीं हुई। िमि उसका िि यह हुआ मक अगिी सभा

िें सभी कारखानों िें काि िंद करके कारीगरों, िजदूरों के दिों ने उपमस्थत होने का संकल्प कर मिया है-ति गवव तथा

आत्मप्रशंसा के आनंद से उसका हृदय रह-रहकर िू ि उठने िगा। उस मदन वह अच्छी तरह भार्ण न दे सका था।

िेमकन प्रशंसा के साथ आगािी सभा िें भार्ण देन े का मनिंत्रण पाकर वह चंचि हो उठा।

दोपहर के भोजन पर उसने रािदास को यह िात िता दी। एक मदन अपूव व के मिए रािदास ने भारती का अपिान मकया

ं िें उससे िात करते हुए अपूव व को संकोच होता था। इन मदनों अपूव व उस गृहहीन िड़की
था, उस मदन से भारती के संिध

ु -चपके
से चपके ु जीवन िें मकतने िड़े काव्य, मकतने िड़े सख-दु:ख
ु ु था, इसकी उसे कोई
के इमतहास का मनिावण कर चका

ु और रोिांच की अमधकता से अपूव व ने सारी िातें िताईं। भारती, समित्रा,


सूचना नहीं दी थी। आज पिक ु डॉक्टर साहि,

नवतारा। यहां तक मक उस शरािी का भी उल्ले ख कर मदया। अपने पथ के दावेदार के कायवक्रिों और उपदेशों का वणवन

करते हुए उस मदन िाइन वािे किरे के अमभयान का मववरण भी दे मदया।

रािदास ने कोई प्रश्न नहीं मकया। एक मदन देश के इस व्यमक्त को जेि जाना पड़ा है, िेंतों की िार खानी पड़ी है और न

जाने क्या-क्या दु:ख भोगने पड़े हैं । के वि एक मदन के अमतमरक्त और मकसी मदन रािदास ने कोई िात नहीं िताई। आज


समित्रा के पत्र को रािदास के सािने रखकर स्वयं को पथ के दावेदारों का एक मवमशष्ट सदस्य िताकर उसने देश के काि

के मिए मनयोमजत अपने जीवन का वणवन मकया।

ु कभी नहीं कही?''


पत्र पढ़कर तिविकर िोिा, ''िािूजी, यह सारी िातें आपने पहिे िझसे

''कहने से क्या आप हिारा साथ देंग?े ''

ु तो आपने सहयोग के मिए आिंमत्रत मकया नहीं।''


''कै सी िातें कर रहे हैं ? िझे
''उसके स्वर िें आहत अमभिान की झंकार, अत्यंत स्पष्ट होकर उसके कानों िें गूज
ं उठी। जल्दी से िोिा, ''इसका कारण

है रािदास िािू! इन कािों िें मकतना िड़ा दामयत्व है और मकतनी आशंकाए, यह आप जानते हैं । आप मववामहत हैं । एक

ु के मपता हैं , इसमिए इस आग िें िैंन े आपको ििाना


पत्री ु उमचत नहीं सिझा।''

''गृहस्थों को क्या देश-सेवा का अमधकार नहीं? जन्मभूमि क्या आप िोगों की है?''

अपूव व िमज्जत होकर िोिा, ''िैंन े तो ऐसा नहीं कहा। िैंन े तो के वि यह कहा है मक दूसरी जगह आपकी मजम्मेदामरयां

अमधक हैं , इसमिए मवदेश िें इतनी िड़ी मवपमत्त िें पड़ना उमचत नहीं।''

''शायद यही हो। िेमकन पराधीन देश की सेवा करने को तो मवपमत्त नहीं कहते अपूव व िािू! महंदूओ ं िें मववाह एक धिव है।

िातृभमू ि की सेवा करना उससे िड़ा धिव है। एक धिव दूसरे िें िाधा देगा, अगर िैं यह जानता तो कभी मववाह न करता।''

उसके चेहरे की ओर देखकर अपूव व ने प्रमतवाद नहीं मकया। िौन हो गया। िेमकन उसने इस तकव का सिथवन भी नहीं

ु नहीं है। सािान्य


मकया। देश के काि िें इस व्यमक्त ने अनेक कष्ट सहे हैं । आज भी उसके भीतर का तेज एकदि िझा

प्रसंग से ही वह एकदि उत्तेमजत हो उठा है। यह सोचते ही अपूव व श्रध्दा से झकु गया।


िेमकन उसे यह आशा नहीं थी मक ििाने ु की िाया छोड़कर पथ के दावेदार का सदस्य िन जाएगा।
से ही वह पत्नी-पत्री

देश-सेवा के अमधकार की उसकी स्पधाव इन कई मदनों से िहुत ऊं ची हो गई थी। सहसा इस प्रसंग को िंद करते हुए उसने

आगािी सभा के कारण और उद्देश्यों का वणवन न करते हुए िताया मक उस मदन को छोड़कर जीवन िें कभी उसने भार्ण


नहीं मदया। समित्रा ु सके , ऐसी भार्ा
के मनिंत्रण की वह उपेक्षा नहीं कर सकता, िेमकन एक ही िात िहुत से िोगों को सना

को उसे अभ्यास नहीं था।

तिविकर ने पूछा, ''तो मिर क्या कीमजएगा?''

ु एक िार ही अवसर मििा था मजस पर भार्ण मदया जा सकता है। उस


अपूव व ने कहा, ''जीवन िें कारखाना देखने का िझे

ु कर आया हूं। िेमकन न जाने क्यों,


कारखाने के अमधकांश िजदूर जानवरों ज ैसी मजंदगी मिताते हैं । यह िैं स्वयं अनभव

इस मवर्य िें तो कुछ भी नहीं जानता।''

रािदास ने हंसते हुए कहा, ''मिर भी क्या आपको िोिना जरूरी है? न िोिें तो क्या कोई हामन है?''
अपूव व िौन रहा।

रािदास िोिा, ''िेमकन िैं इन िोगों की िातें जानता हूं।''

''कै स े जाना?''

ु हूं अपूव व िािू! िेरी नौकरी के प्रिाण-पत्रों को देखते ही सिझ जाएंग े मक िैं
''इन िोगों के िीच िें िहुत मदनों तक रह चका

देश के कि-कारखानों और कुिी-िजदूरों के िीच ही जीवन मिताता रहा हूं। अगर आज्ञा हो तो वह करुण कहानी

ु सकता हूं। वास्तव िें इन िोगों को देख े मिना देश की वास्तमवक मस्थमत का ज्ञान हो ही नहीं सकता।''
आपको सना


अपूव व ने कहा, ''समित्रा भी ठीक वही िात कहती हैं ।''

''मिना कहे उपाय नहीं है। और जानती हैं , इसीमिए तो वह पथ के दावेदारों की अध्यक्षा हैं । िािू जी, आत्मत्याग का

आरम्भ यहीं से है। देश की नींव इन्हीं पर आधामरत है। उसकी पूरी जानकारी रहने से आपका सारा उद्यि, सारी इच्छाएं,

िरुभूमि की भांमत दो मदन िें सूख जाएंगी।''

यह िातें अपूव व के मिए नई नहीं थीं। िेमकन रािदास के हृदय से मनकिने वािे शब्द उसके हृदय पर गहरा आघात करने

िगे।

रािदास और न जाने क्या कहने जा रहा था मक तभी पदाव हटाकर साहि के प्रवेश करते ही दोनों चमकत होकर खड़े हो

गए। साहि ने अपूव व की ओर देखते हुए कहा, ''िैं जा रहा हूं। आपकी िेज पर एक पत्र रख आया हूं। िे िीमजएगा।''

साहि के जाने के िाद ऑमिस जल्दी ही िंद करके दोनों िायर िैदान की ओर चि मदए। उस ओर गाड़ी नहीं जाती थी

इसमिए कुछ तेज चिना पड़ा। रास्ते िें अपूव व ने कोई िात नहीं कही। उसके जीवन का आज एक मवशेर् मदन था। वह

आशंका और आनंद की उत्तेजना दोनों के िीच िहा जा रहा है। कारीगरों और कुिी-िजदूरों के संिध
ं िें जो कुछ तो एक


पस्तक से और कुछ रािदास से उसने िसािा इकट्ठा कर मिया था। उन सिको िन-ही-िन िटोरते-सजाते हुए अपूव व


चपचाप चिने िगा।
े्
सन 1763 ु था। उसके िाद से उनकी संख्या िढ़ते-िढ़ते
िें िम्बई िें मकसी स्थान पर पहिे-पहि रूई का कारखाना खिा

आज मकतनी हो गई है। उस सिय कुिी-िजदूरों की मकतनी शोचनीय दशा थी। उन्हें रात-मदन िेहनत करनी पड़ती थी।

उसके कारण मविायत के मिि िामिकों के साथ, भारत के मिि िामिक का मववाद कि आरम्भ हुआ था और कारखाने

का कानून मकस-मकस सन िें, मकस तारीख को कौन-कौन-सी िाधाओ ं का सािना करते हुए पास हुआ, इस देश िें पहिे-

पहि प्रचमित हुआ और इस सिय वह कानून पमरवमतवत होकर मकस मस्थमत िें है? उस सिय और अि मविायत और

भारत िें िजदूरी की दर क्या है? उन सिकी यूमनयन िनाने की कल्पना कि और मकसने प्रस्ततु की थी? और उसका िि

क्या हुआ था? उस देश के और इस देश के िजदूरों के िीच भिे-िरेु व्यवहारों की तिना
ु करने से क्या पता चिता है? और

िाभ तथा हामन का पमरणाि उसिें कहां पर मनमदिष्ट हुआ है? आमद उसने जो मववरण इकट्ठे मकए हों वह कहीं छूट न जाएं

इस भय से उसने स्वयं को सतकव कर मिया।


समित्रा की दूरगािी दृमष्ट उसे स्पष्ट मदखाई देन े िगी। और भारती...इतने थोड़े से सिय िंत इतना ज्ञान, और इतनी

जानकारी उसने कै स े प्राप्त कर िी? हर्व भरे मवस्मय से उसका चेहरा चिक उठा, आंखें भीग गईं।

िैदान िें पहुंचकर उन िोगों ने देखा, वहां मति रखने के मिए भी स्थान नहीं है। मकतने िोग इकट्ठे हए हैं , कोई सीिा नहीं

है। उस मदन मजन िोगों ने अपूव व को वक्ता के रूप िें देखा था उन िोगों ने उसे रास्ता दे मदया था। जो िोग नहीं

पहचानते थे वे भी उनकी देखा-देखी हट गए।

अपार जन सिूह के िीचोिीच िंच िना हुआ था। आज भी डॉक्टर िौटे नहीं थे। उनके अमतमरक्त पथ के दावेदार के सभी


सदस्य उपमस्थत थे। मित्र को साथ िेकर मकसी प्रकार भीड़ को ठे िता हुआ अपूव व वहां पहुंचा। अच्छे वक्ता से जनता यमक्त

ु है, वह िरा
और तकव नहीं चाहती। जो िरा ु क्यों है, इससे उसे कोई सरोकार नहीं होता। उसे िस इतना सनकर
ु ु
ही संतमष्ट

ु है वह मकतना िरा
हो जाती है मक जो िरा ु अमधक िात्रा िें था।
ु हो सकता है। पंजािी मिस्त्री के भयंकर भार्ण िें यही गण

इसीमिए श्रोता अत्यमधक उत्तेमजत हो उठे थे।

ु करते हुए भागने की कोमशश करने


उसी सिय हंगािा िच गया। एक कोने िें िहुत से िोग एक-दूसरे के साथ धक्का-िक्की

िगे। भीड़ को कुचिते-रौंदते िीस-पच्चीस गोरे पमिस


ु ु
घड़सवार तेजी से चिे आ रहे थे। सभी मक हाथ िें िगाि थी,

ु और किर िें मपस्तौि। जो व्यमक्त भार्ाण दे रहा था उसकी गरजती आवाज कि थि गई और वह


दूसरे हाथ िें चािक

िंच के नीचे भीड़ िें धंसकर कहां गिु हो गया, कुछ भी सिझ िें नहीं आया।

गोरे घड़सवारों का नायक िंच के मनकट आया। चीखकर िोिा, ''िीमटं ग िंद करो।''


समित्रा अभी तक पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पाई थीं। उसके दुिवि उदास चेहरे पर एक पीिी छाया डोि गई। उसने जल्छी

से उठकर पूछा, ''क्यों?''

''आज्ञा है?''

''मकसकी?''

''सरकार की।''

''मकसमिए?''

''हड़ताि करने के मिए िजदूरों को भड़काना िना है।''


समित्रा िोिीं, ''िजदूरों को िेकार भड़काकर तिाशा देखने के मिए हिारे पास सिय नहीं है। यूरोप आमद देशों की तरह

इन िोगों को संगमठत होने की आवश्यकता को सिझाना ही इस संस्था का उद्देश्य है।''

साहि चमकत होकर िोिा, ''संगमठत करना? काि के मवरुध्द? यह तो इस देश के मिए भयानक ग ैर कानूनी काि होगा।

इससे तो मनमश्चत रूप से शांमत भंग हो जाएगी।''


समित्रा े ी उद्योगपमत हो और सारे देश के खून को चूसने
िोिीं, ''हां हो सकती है। मजस देश िें सरकार का अथव ही अंग्रज

के मिए मजन्होंने यह भयंकर यंत्र खड़ा मकया हो....?''

िात पूरी भी न हो पाई मक गोरे की िाि आंखों से आग िरसने िगी। कड़ककर िोिा, ''मिर भी ऐसी िातें अगर िहं ु से

ु आपको मगरफ्तार करना पड़ेगा।''


मनकािीं तो िझे


समित्रा उसकी ओर देखकर हंसकर िोिी, ''साहि, िैं िीिार और किजोर हूं। नहीं तो के वि दूसरी िार ही नहीं इस िात

ु देती। िेमकन आज िझिें


को तो एक सौ िार मचल्ला-मचल्लाकर इन िोगों को सना ु वह ताकत नहीं है।'' इतना कहकर वह

मिर हंस पड़ीं।


उस िीिार और दुिवि नारी की सरि-शांत हंसी के सािने साहि िन-ही-िन िमज्जत हो उठा। िोिा, ''आिराइट,

ु िीमटं ग िंद करने का आदेश है, भंग करने का नहीं। दस मिनट िें इन सिको
आपको सावधन मकए देता हूं। िझे

व चिे जाने को कमहए, और मिर कभी ऐसा न कीमजए।''


शांमतपूवक


कई मदनों से समित्रा ने कुछ खाया नहीं था। सि िोगों के िना करने पर भी िखार
ु िें ही सभा िें चिी आई थीं। उसने

अपूव व से कहा, ''अपूव व िािू, के वि दस मिनट का सिय और है। मचल्ला-मचल्लाकर सिको िता दीमजए मक एकजटु होने के

मसवा इसका और कोई उपाय नहीं है। कारखाने के िोगों ने आज हि िोगों का ज ैसा अपिान मकया है, अगर तिु अपने-

आपको इन्सान सिझते हो तो इसका िदिा जरूर िेना।''

कहते-कहते उसकी किजोर आवाज िट-सी गई।


िेमकन सभा की अध्यक्षा का ऐसा उपदेश सनकर ु
अपूव व का चेहरा सूख गया। िेच ैनी से समित्रा की ओर ताकते हुए िोिा,

'उत्तेमजत करना ग ैर-कानूनी नहीं होगा?''


समित्रा मवमस्मत होकर िधरु स्वर िें िोिी, ''मपस्तौि के िि पर सभा को भंग कर देना क्या कानून-संगत है? िेकार खून-

खरािा िैं नहीं चाहती। िेमकन इस िात की आप पूरी शमक्त से घोर्णा कर दें मक आज के अपिान को िजदूर मििुि न

भूिें।''

ु सदस्य िंच पर ि ैठे थे, उनके चेहरों से ही पता चि रहा था मक वह िहुत ही िािूिी
पथ के दावेदार के जो चार-पांच परुर्

और मनम्न श्रेणी के िोग हैं । शायद कारीगर या इसी प्रकार के िोग थे। अपूव व नया होते हुए भी समिमत का मशमक्षत तथा

मवमशष्ट सदस्य था। इतनी िड़ी भीड़ को सम्बोमधत करने का भार इसीमिए उस पर आ पड़ा था। उसने सूख े गिे से कहा,

''िैं तो महंदी अच्छी तरह िोि नहीं सकता।''


समित्रा िोि नहीं सकती थीं। मववश होकर कहने िगीं, ''जो कुछ भी जानते हैं वही दो शब्दों िें कह दीमजए अपूव व िािू!

सिय ििावद ित कीमजए।''

अपूव व ने सिकी ओर देखा। भारती िहं ु िे रे खड़ी थी इसमिए उसका अमभित सिझ िें नहीं आया। िेमकन गोरे नायक के

िन का भाव सिझ िें आ गया। अपूव व िोिने के मिए उठ खड़ा हुआ। उसके होंठ कांप उठे , िेमकन उन कांपते होंठों से

े ी या महंदी मकसी भी भार्ा का एक भी शब्द नहीं मनकिा।


िंगिा, अंग्रज

तिविकर उठ खड़ा हुआ। समित्रा की ओर देखकर िोिा, ''िैं िािू जी का मित्र हूं और महंदी जानता हूं। यमद आज्ञा हो

ु दूं।''
तो िैं वक्तव्य मचल्ला-मचल्लाकर सिको सना

भारती ने िहं ु घूिा कर देखा- समित्रा


ु ु
आश्चयव से देखती चपचाप ि ैठी रहीं। और उन दोनों नामरयों की घूरती आंखों के

सािने िमज्जत, अमभभूत, वाक्यहीन अपूव व स्तब्ध, िहं ु नीचा मकए जड़वत ि ैठ गया।

ु िहुत-सी िातें कहनी थीं। िेमकन इन सिने ििपूवक


रािदास ने ऊं ची आवाज िें कहा, ''भाइयों, िझे व हि िोगों का िहं ु


िंद कर मदया है।'' इतना कहकर उसने पमिस ु
के घड़सवारों की ओर संकेत मकया, ''इन मविायती कुत्तों को, मजन्होंने


हिारे और तम्हारे ु
मवरुध्द ििकारा है, वह तम्हारे ु तम्हारी
कारखानों के िामिक हैं , वह नहीं चाहते मक कोई तम्हें ु दु:ख-

दुदवशा के िारे िें िताए। तिु उनके कारखाने चिाने और िोझा ढोने वािे जानवर हो। िेमकन तिु भी उन्हीं ज ैसे िनष्य

ु भी मदया है। अगर इस


हो। उसी प्रकार पेट भर भोजन करने का, उसी प्रकार आनंद करने का अमधकार भगवान ने तम्हें

सत्य को सिझ सको मक तिु िोग भी िनष्य


ु हो, तिु भिे ही मकतने ही दुखी, मकतने ही दमरद्र और मकतने ही अनपढ़ क्यों

ु हो-तम्हारी
न हो, मिर भी िनष्य ु ु
िनष्यता के दावे को कोई भी मकसी िहाने नकार नहीं सकता। यह चंद कारखानों के


िामिक तम्हारे सािने कुछ भी नहीं हैं । यह पूज
ं ीपमतयों के मवरुध्द गरीिों की आत्मरक्षा की िड़ाई है।


इसिें देश नहीं है, जामत नहीं है, धिव नहीं है, ितवाद नहीं है, महंदू नहीं है, िसििान नहीं है। ज ैन, मसख, कुछ भी नहीं है-


के वि है धन िें उन्मत्त िामिक और गरीि िजदूर! तम्हारी ु
शारीमरक शमक्त से वह डरते हैं । वह तम्हारी मशक्षा की शमक्त

को संशय की नजर से देखते हैं । तिु िोगों के ज्ञान पाने की आशंका से उनका खून सूख जाता है। अक्षय, दुिवि, िूख व-तिु

िोग ही तो उनके मविास-व्यसन के एक िात्र सहारे हो। इस सत्य को गांठ िांधना क्या तिु िोगों के मिए कमठन काि है?

और इन्हीं िातों को स्पष्ट शब्दों िें कहने के अपराध िें, क्या आज इन गोरों के सािने हिारे अपिान की कोई सीिा रहेगी?

गरीिों की आत्मरक्षा की िड़ाई िें क्या तिु िोग अपनी पूरी शमक्त न जटा
ु सकोगे?''

गोरा नायक भार्ण का अथव नहीं सिझा, िेमकन श्रोताओ ं के चेहरों और आंखों िें िचिती उत्तेजना देखकर उत्तेमजत हो

उठा। अपनी मरस्टवाच की ओर वक्ता का ध्यान आकमर्वत करते हुए िोिा, ''और पांच मिनट का सिय है। जल्दी खत्म

कीमजए।''
ु प्राथवना करता हूं मक हि
तिविकर ने कहा, ''के वि पांच मिनट-इससे जरा भी अमधक नहीं िेरे वंमचत भाइयों! िैं तिसे

िोगों पर कभी अमवश्वास ित करना। पढ़ा-मिखा कहकर, उच्च वंश का कहकर कारखाने िें िजदूरी नहीं करता-इन िातों

से हि िोगों पर संदहे करके तिु अपना ही सववनाश कर ि ैठोगे। तिु िोगों को नींद से जगाने के मिए पहिी शंखधवमन

सभी देशों िें और प्रत्येक काि िें हि िोग ही करते आए हैं । आज शायद इस िात को न भी सिझ सको। िेमकन इतना

मनश्चय सिझो मक इन पथ के दावेदारों से िढ़कर तिु िोगों का मित्र इस देश िें और कोई नहीं है।''

उसकी आवाज सूखी और कठोर होती जा रही थी। मिर भी जी-जान से मचल्लाकर कहने िगा।, ''िैं िहुत मदनों तक तिु

ु हूं। हि िोगों को तिु िोग नहीं पहचानते िेमकन िैं तिु सिको पहचानता हूं।
िोगों के िीच रहकर काि कर चका

मजनको तिु िोग िामिक कहते हो, एक मदन िैं भी उन्हीं िें से एक था। यह िामिक मकसी भी तरह तम्हें
ु इन्सानों की तरह

ु पशओ
नहीं रहने देंग।े तम्हें ु ं की तरह रखकर ही वह तम्ह
ु ारे िनष्यत्व
ु के अमधकार को रोक सकते हैं और मकसी दशा िें

नहीं। तिु िोग िदिाश हो, उच्छंखि हो, चमरत्रहीन हो, उनके िहं ु से यह गामियां ही तिु हिेशा से सनते
ु आ रहे हो

इसमिए जि कभी तिु िोगों ने अपने दावे को प्रकट मकया तभी तिु िोगों के सभी प्रकर के दु:ख और कष्टों की जड़ िें तिु


िोगों के असंयत चमरत्र को ही मजम्मेदार ठहराते हुए वह तम्हारी हर प्रकार की उन्नमत को रोकते आए हैं । के वि इस झ ूठ


को ही वह हिेशा तिको सिझाते आए हैं मक स्वयं भिा न िनने पर मकसी भी प्रकार की उन्नमत नहीं हो सकती। िेमकन

आज िैं तिु िोगों से मनस्संकोच और साि-साि कह देना चाहता हूं मक उनका यह कहना सम्पूण व सत्य नहीं है। के वि

तिु िोगों का चमरत्र ही तम्ह


ु ारी अवस्था के मिए दोर्ी नहीं है। उनके असत्य का आज तिु िोगों को मनभीक िनकर

मवरोध करना ही पड़ेगा। ऊं ची आवाज से तिु िोगों को यह घोर्णा करनी ही पड़ेगी मक रुपया ही सि कुछ नहीं है।''

कहते-कहते उसकी नीरस आवाज तेज हो उठी। मिर कहने िगा, ''मिना िेहनत के संसार िें कुछ प ैदा नहीं होता।

इसमिए िजदूर भी तिु िोगों की तरह िामिक है-ठीक तिु िोगों की तरह सभी चीजों और सभी कारखानों का अमधकारी

है।''

तभी एक पंजािी के गोरे नायक के कान िें कुछ कहते ही उसकी िाि-िाि आंखें अंगारों की तरह जि उठीं। उसने

गरजते हुए कहा, ''स्टॉप, नहीं चिेगा। इससे शांमत भंग होगी।''

अपूव व चौंक पड़ा। रािदास के कुते को पकड़कर खींचातानी करने िगा, ''ठहरो रािदास, ठहरो। इस मनस्सहाय मित्रहीन


पराए देश िें तम्हारी पत्नी है, एक छोटी िेटी है।''
रािदास ने कुछ भी नहीं सना।
ु मचल्ला-मचल्लाकर कहने िगा, ''यह िोग अन्यायी हैं , डरपोक हैं । मकसी भी दशा िें सत्य

को तिु िोगों को सनने


ु देना नहीं चाहते िेमकन यह िोग नहीं जानते मक सत्य का गिा घोंटकर भी उसकी हत्या नहीं की

जा सकती। वह अिर होता है। कभी नहीं िरता।''

गोरे ने इसका अथव नहीं सिझा। िेमकन अचानक सैंकड़ों िोगों के सवाांग से मछटककर तीक्ष्ण उत्तेजना की भभक उसके

िहं ु पर िगी। हुंकार कर िोिा, ''यह नहीं चिेगा। यह राजद्रोह है।''


पिक िारते ही, पांच-छह घड़सवार घोड़ों से कुदकर रािदास के दोनों हाथों को पकड़कर जोर से खींचते हुए नीचे िे गए।


उसका दीघव शरीर घोड़ों और घड़सवारों की िीच देखते-देखते ही ओझि हो गया। िेमकन उसकी तेज और ऊं ची आवाज

िंद नहीं हुई। आवाज उत्तेमजत अपार भीड़ के एक छोर से दूसरे छोर तक गूज ु आप िोगों की
ं ने िगी, ''भाइयो! अि िझसे

ु होकर जन्म िेन े की ियावदा अगर अपने िामिकों के प ैरों के नीचे न कुचिवा चकेु
भेंट कभी नहीं होगी। िेमकन िनष्य

होंगे तो इतने िड़े उत्पीड़न, इतने िड़े अपिान को कभी िदावश्त ित करना।''

ु कसने िगे अपिामनत,


िेमकन उसके िातें सिाप्त होते-न-होते िाने दक्ष यज्ञ आरम्भ हो गया। घोड़े दौड़ने िगे। चािक

अमभभूत और अस्त-व्यस्त िजदूर जान िचाकर भाग खड़े हुए। कौन मकस पर मगरा और कौन मकसके प ैरों के नीचे कुचि

गया कोई मठकाना नहीं रहा।''

कुछ घायि चोट खाए व्यमक्तयों को छोड़कर सारा िैदान सूना होने िें देर नहीं िगी। मकसी तरह िं गड़ाते हुए जो िोग इस


सिय भी इधर-उधर भागे जा रहे थे स्तब्ध ि ैठी समित्रा उनकी ओर एकटक देख रही थी। उनसे कुछ ही दूरी पर अपूव व

ु मविढ़-सी
ि ैठा था। एक और िमहिा इसी तरह मसर झकाए ु ि ैठी थी।


जो व्यमक्त गाड़ी िाने गया था, दस मिनट िाद गाड़ी िेकर आ गया। समित्रा भारती का हाथ पकड़कर धीरे-धीरे जाकर

उसिें ि ैठ गई। आज वह िहुत अस्वस्थ, उत्पीमड़त और थकी हुई मदखाई दे रही थीं।

भारती ने कहा, ''चमिए।''

अपूव व ने अपना िहं ु ऊपर उठाकर कुछ देर तक न जाने क्या सोचकर पूछा, ''िझे
ु कहां चिने को कह रही हो?।''

भारती ने कहा, ''िेरे घर।''


अपूव व कुछ देर चपु रहा। मिर धीरे से िोिा, ''आप िोग तो जानती हैं मक िैं समिमत के मिए मकतना अयोग्य हूं। वहां िेरे

मिए कोई स्थान नहीं हो सकता।''

भारती ने पूछा, ''तो मिर इस सिय कहां जाएंग,े डेरे पर?''

ु ं को संभािते हुए
''डेरे पर? एक िार जाना होगा, ''इतना कहते ही अपूव व की आंखें सजि हो उठीं। मकसी तरह आंसओ

िोिा, ''िेमकन इस मवदेश िें और कहां जाऊं , सिझ नहीं पा रहा भारती।''


गाड़ी िें से समित्रा ने कहा, ''तिु िोग जाओ।''

भारती ने मिर कहा, ''चमिए।''

अपूव व िोिा, ''पथ के दावेदारों िें िेरे मिए स्थान नहीं है।''

भारती उसका हाथ पकड़ने जा रही थी िेमकन अपने-आपको संभािकर एक पि उसके चेहरे पर आंखें मटकाकर धीिे से

िोिी, ''पथ के दावेदारों िें स्थान भिे ही न हो िेमकन और एक दावे से आपको वंमचत कर सके संसार िें ऐसी कोई वस्त ु

नहीं है अपूव व िािू!''


गाड़ी िें से समित्रा ने झल्लाकर पूछा, ''तिु िोगों के आने िें क्या देर होगी भारती?''

भारती ने हाथ महिकार गाड़ीवान को जाने का इशारा करते हुए कहा, ''आप जाइए। हि िोग प ैदि जाएंग।े ''

रास्ते िें चिते-चिते अपूव व ने अचानक कहा, ''भारती तिु िेरे साथ चिो न।''

भारती ने कहा, ''साथ ही तो चि रही हूं।''

अपूव व िोिा, ''यह िात नहीं, तिविकर की पत्नी से जाकर क्या कहूंगा? िेरी सिझ िें नहीं आ रहा। रािदास को यहां

िाने की दुिमवु ध्द क्यों हुई?''

भारती चपु रही।

अपूव व कहता गया, ''अचानक मकतना िड़ा अनथव हो गया। अि अपना कत्तवव्य िेरी सिझ िें नहीं आ रहा।'

भारती मिर भी िौन रही।


कुछ देर िाद िेच ैन होकर अपूव व गरज उठा, ''िेरा क्या दोर् है। िार-िार सावधन करने पर भी कोई गिे िें डोरी िांधकर

झ ूिे तो उसे िैं मकस तरह िचाऊं गा? पत्नी है, िड़की है, घर-गृहस्थी है-मजसे यह होश नहीं, वह िरेगा नहीं तो और कौन


िरेगा? और दो वर्व की सजा भगतने दो।''

''आप क्या उनकी पत्नी के पास इस सिय नहीं जाएंग!े ''

अपूव व िोिा, ''जाऊं गा क्यों नहीं। िेमकन कि साहि को क्या उत्तर दूंगा। िैं कहे देता हूं भारती, साहि ने एक िात भी

कही तो िैं नौकरी छोड़ दूंगा।''

''नौकरी छोड़कर क्या कीमजएगा?''

''घर चिा जाऊं गा। इस देश िें इन्सान नहीं रहते।''

''उनके उध्दार का प्रयत्न नहीं करें ग?े ''

अपूव व झट िोि उठा, ''चिो, मकसी अच्छे ि ैमरस्टर के पास चिें भारती। िेरे पास एक हजार रुपए हैं । क्या इनसे काि न

चिेगा? िेरी घड़ी आमद जो चीजें हैं उनसे िेचने पर पांच-छह सौ रुपए मिि सकते हैं ।''

भारती िोिी, ''िेमकन सिसे पहिी आवश्यकता है उनकी पत्नी के पास जाने की। िेरे साथ ित चमिए। यहीं से गाड़ी

िेकर स्टे शन चिे जाइए। उनको क्या चामहए, क्या अभाव है? कि-से-कि पूछने की जरूरत तो है।'' िैं अके िी चिी

जाऊं गी। आप चिे जाइए।''

अपूव व कुछ महचककर िोिा, ''िैं अके िा न जा सकूं गा।''

भारती िोिी, ''डेरे से मतवारी को साथ िे िेना।''

''नहीं, तिु िेरे साथ चिो।''

ु जरूरी काि है।''


''िझे

''काि रहने दो। िेरे साथ चिो।''

ु इस िाििे िें क्यों डाि रहे हैं अपूव व िािू!''


''िेमकन िझे
अपूव व चूप रहा।

भारती हंस पड़ी। िोिी, ''अच्छा, चमिए िेरे साथ। पहिे अपना काि पूरा कर लं ।''


रास्ते िें अचानक भारती िोिी, ''मजसने आपको नौकरी करने के मिए मवदेश िें भेजा है उसिें आपको पहचानने की िमध्द

नहीं है। वह अगर आपकी िां ही क्यों न हों। मतवारी देश जा रहा है। कोमशश करके आपको भी उसके साथ भेज दूंगी।''

अपूव व िौन रहा।

''आपने उत्तर नहीं मदया।''

उत्तर देन े की आवश्यकता ही नहीं है। िैं गृहस्थी िें न रहता तो िैं संन्यासी हो जाता।''

भारती िोिी, ''संन्यासी? िेमकन िां तो जीमवत है?''

अपूव व िोिा, ''हां देश के एक छोटे से गांव िें हि िोगों का एक छोटा-सा िकान है। िां को वहीं िे जाऊं गा।''

''उसके िाद?''

''िेरे पास दो हजार रुपए हैं उन्हीं से छोटी-सी दुकान खोि लं गा। उसी से हि दोनों का खचव चि जाएगा।''

भारती िोिी, ''खचव तो चि सकता है। िेमकन अचानक इसकी आवश्यकता कै स े आ पड़ी?''

अपूव व िोिा, ''आज िैं अपने को पहचान सका हूं। िां के अमतमरक्त इस संसार िें िेरा कोई िूल्य नहीं है।''

भारती ने एक पि उसके िहं ु की ओर देखकर पूछा, ''िां शायद आपको िहुत प्यार करती हैं ?''

अपूव व िोिा, ''हां। हिेशा से िां का जीवन दु:ख-ही-दु:ख िें िीता है। िैं डरता हूं कहीं यह दु:ख और न िढ़ जाए। िेरा

आधार िां है। इसीमिए िैं डरपोक हूं।'' सभी की अश्रध्दा का पात्र हूं।''यह कहकर उसके िहं ु से िम्बी सांस मनकि गई।


भारती ने कोई उत्तर नहीं मदया। अपूव व का हाथ पकड़े चपचाप चिती रही।

अपूव व ने मचंमतत होकर पूछा, ''रािदास के पमरवार का क्या उपाय करोगी?''


भारती स्वयं कुछ नहीं सिझ सकी थी। मिर भी साहस िढ़ाने के मिए िोिी, ''चमिए तो, जाकर देखग
ें ।े कुछ-न-कुछ

उपाय तो मकया ही जाएगा।''


''तिको शायद वहां रहना पड़े।''

''िेमकन िैं तो ईसाई हूं। उन िोगों के मकस काि आऊं गी?''


भारती की यह िात अपूव व को चभी।

ु थी। इस रात मकस तरह क्या करना होगा, यह सोचकर उन िोगों के भय की सीिा
दोनों जि घर पहुंच,े शाि ढि चकी

नहीं थी। अंदर कदि रखते ही भारती ने देखा, उस ओर की मखड़की के पास कोई आराि कुसी पर िेटा हुआ है। देखते


ही भारती पहचानकर उल्लमसत स्वर िें िोि उठी, ''डॉक्टर साहि, आप कि आए? समित्रा जी से भेंट हुई?''

''नहीं।''


अपूव व ने कहा, ''आज भयंकर कांड हो गया डॉक्टर साहि! हिारे एकाउटें ट तिविकर िािू को पमिस पकड़कर िे गई।''

भारती िोिी, ''इनमसन िें उनका घर है। वहीं उनकी पत्नी है, िेटी है। अभी तक उन्हें सिाचर तक नहीं मििा।''

अपूव व ने कहा, ''यह कै सी भयानक आपमत्त आ पड़ी डॉक्टर साहि....''

ु चाय िनाकर मपिा सकती हो िमहन?''


डॉक्टर हंसकर िोिा, ''भारती, िैं िहुत ही थका हुआ हूं। िझे

''क्यों नहीं? िेमकन हि िोगों को िाहर जाना है।''

''कहां?''

''इनमसन। तिविकर िािू के घर।''

''कोई जरूरत नहीं।''

अपूव व ने आश्चयव से कहा, ''जरूरत कै स े नहीं डॉक्टर साहि?''

डॉक्टर हंसकर िोिे, ''िेमकन इसका भार तो िेरे ऊपर है। आप ि ैमठए। जि तक भारती चाय िनाकर िाए, होटि का

ब्राह्मण रसोइया पमवत्रता के साथ खाने की कुछ चीज त ैयार करके दे जाए। खा-पीकर आप आराि कीमजए।''
अपूव व िोिा, ''इस रात को तो कष्ट उठाने से तिु िच गईं भारती, िेमकन िेरी मजम्मेदारी.... कै सी ही रात क्यों न हो, गए

मिना पूरी नहीं होगी।''

भारती मठठककर खड़ी हो गई। िेमकन तभी डॉक्टर के िहं ु की ओर देखकर वह मिर अपना काि करने के मिए चिी गई।

डॉक्टर साहि िोिित्ती जिाकर पत्र मिखने िगे।

ं ु िाकर उत्कं मठत हो उठा। उसने पूछा, ''क्या यह पत्र िहुत ही आवश्यक है?''
दस मिनट तक प्रतीक्षा करके अपूव व झझ

डॉक्टर ने कहा, ''हां।''

अपूव व िोिा, ''उधर की कुछ व्यवस्था हो जाना भी तो कि आवश्यक नहीं है। क्या आप उनके घर मकसी को न भेमजएगा?''

डॉक्टर ने कहा, ''इतनी रात को वहां जाने के मिए कोई आदिी नहीं मििेगा।''

अपूव व िोिा, ''ति उसके मिए आप मचंता न करें । सवेरे िैं खदु ही चिा जाऊं गा। आप भारती को िना न करते तो हि

अभी चिे जाते।''

डॉक्टर मिखते-मिखते िोिे, ''इसकी आवश्यकता नहीं थी।''

अपूव व ने कहा, ''आवश्यकता की धारणा इस मवर्य िें िेरी और आपकी एक नहीं है। वह िेरा मित्र है।''

चाय का सािान िेकर भारती नीचे उतर आई और चाय िनाकर पास ि ैठ गई। डॉक्टर का पत्र मिखना और चाय पीना,

दोनों काि साथ-साथ चिने िगे।

दो-तीन मिनट िाद भारती रूठने के अंदाज िें िोिी, ''आप हिेशा व्यस्त रहते हैं । दो-चार मिनट आपके पास ि ैठकर

ु सिय ही नहीं देत।े ''


िातचीत कर सकूं , इसके मिए आप िझे

डॉक्टर ने चाय के प्यािे से िहं ु हटाकर हंसते हुआ कहा, ''क्या करूं िमहन, इस दो िजे की ट्रे न से िझे
ु जाना है।''

भारती चौंक पड़ी। और अपूव व के िन िें अपने मित्र के प्रमत संशय और भी िढ़ गया। भारती ने पूछा, ''एक रात के मिए भी

आपको मवश्राि नहीं मििेगा?''

ु के वि एक मदन छुट्टी मििेगी भारती, िेमकन वह मदन आज नहीं है।''


डॉक्टर िोिा, ''िझे
भारती सिझ न सकी। इसमिए उसने पूछा, ''वह सिय कि आएगा?''

डॉक्टर ने इसका उत्तर नहीं मदया।


अपूव व िोिा, ''समिमत का सदस्य न होते हुए भी रािदास सजा भगतने जा रहा है। उमचत नहीं है यह।''

डॉक्टर ने कहा, ''सजा नहीं भी हो सकती है।''

अपूव व ने कहा, ''न हो तो उसका भाग्य है। िेमकन अगर हो गई तो वह अपराध िेरा होगा। इस संकट िें िैं ही उसे िाया

था।''


डॉक्टर के वि िस्करा मदए।

अपूव व िोिा, ''देश के मिए मजसने दो वर्व की सजा भोगी है, असंख्य िेंतों के दाग मजसकी पीठ से आज भी नहीं मिटे । इस

अवदेश िें मजसके िच्चे के वि उसी का िहं ु देखकर जी रहे हैं , उसका इतना िड़ा साहस असाधारण है। इसकी तिना

नहीं।''

डॉक्टर ने कहा, ''इसिें संदहे क्या है अपूव व िािू! पराधीनता की आग मजसके हृदय िें रात-मदन जि रही है, उसके मिए

इसके अमतमरक्त और तो कोई उपाय है नहीं। साहि की ििव की इतनी िड़ी नौकरी या इनमसन का कोई भी व्यमक्त उसे रोक

नहीं सकता। यह उसका एकिात्र पथ है।''

ु न
डॉक्टर की िातों को व्यंग्य सिझकर वह ज ैसे एकदि पागि हो उठा। िोिा, ''आप उसके िहत्व को भिे ही अनभव

ु को छोटा नहीं िना सकती। मजतनी भी इच्छा हो आप


कर सकें , िेमकन साहि की ििव की नौकरी तिविकर ज ैसे िनष्य

ु पर व्यंग्य कीमजए िेमकन रािदास मकसी भी िात िें आप से छोटा नहीं है। यह िात आप मनमश्चत रूप से जान
िझ

जाएंग।े ''

डॉक्टर िोिे, ''िैं यह जानता हूं। िैंन े उनको छोटा नहीं कहा।''

ु पर आपने व्यंग्य मकया है। िेमकन िैं जानता हूं, जन्मभूमि उन्हें प्राण से
अपूव व िोिा, ''आपने कहा है। उन पर और िझ

अमधक प्यारी है। वह मनडर हैं आपकी तरह लुक-मछपकर नहीं घूिते।''

आश्चयव से भारती िोिी, ''आप मकसको क्या कह रहे हैं अपूव व िािू? आप पागि तो नहीं हो गए?''
अपूव व ने कहा, ''नहीं पागि नहीं हूं। यह जो भी क्यों न हों िेमकन रािदास तिविकर की पद-धूमि के िरािर नहीं हैं । यह

ु जाने
िात िैं स्पष्ट शब्दों िें कह सकता हूं। उसके तेज, उसकी मनभीकता से ये िन-ही-िन ईष्या करते हैं । इसीमिए तम्हें

ु भी चतराई
नहीं मदया और िझे ु से रोक मदया।''

भारती उठकर िोिी, ''िैं आपका अपिान नहीं कर सकती, िेमकन आप यहां से चिे जाइए अपूव व िािू! हि िोगों ने

आपको गित सिझा था। भय के कारण मजसे महत-अमहत का ज्ञान नहीं रहता, उनके पागिपन के मिए यहां स्थान नहीं

है। आपका कहना सच है-पथ के दावेदारों िें आपको स्थान नहीं मििेगा। आज के िाद मकसी भी िहाने िेरे घर आने का

कष्ट ित कीमजएगा।''

अपूव व मनरुत्तर होकर उठ खड़ा हुआ। िेमकन डॉक्टर ने उसका हाथ पकड़कर कहा, ''जरा ि ैमठए अपूव व िािू, इस अंधरे े िें

ित जाइए। िैं स्टे शन जाते हुए आपको डेरे पर पहुंचाता जाऊं गा।''


अपूव व की चेतना िौट रही थी। वह मसर झकाकर ि ैठ गया।

चाय पीने के िाद जो मिस्कुट िचे थे उनको डॉक्टर साहि जेि िें डाि रहे हैं , यह देखकर भारती ने पूछा, ''यह आप क्या

कर रहे हैं ?''

ु जटाकर
''खराक ु रख रहा हूं िमहन।''

ु ही आज रात को ही चिे जाइएगा?''


''क्या सचिच

''तो क्या िैंन े अपूव व िािू को िेकार ही रोका है? सभी एक साथ मििकर अमवश्वास करें ग े तो िैं जीऊं गा भारती।'' यह

कहकर उन्होंने िनावटी क्रोध मदखाया।


भारती ने अमभिान के साथ कहा, ''नहीं, आज आपका जाना नहीं होगा। आप िहुत थक गए हैं । इसके अमतमरक्त समित्रा

दीदी अस्वस्थ हैं । आप तो िरािर ही न िालि कहां चिे जाते हैं । िैं आपकी एक िात नहीं सनु सकती, 'पथ के दावेदार'

को िैं अके िी कै स े चिाऊं ? इस दशा िें िेरी जहां तमियत होगी चिी जाऊं गी।''


मिखे हुए पत्र उसके हाथ िें देत े हुए डॉक्टर ने हंसकर कहा। इनिें एक तम्हारे ु
मिए है, एक समित्रा के मिए और तीसरा

तिु दोनों के पथ के मिए है। िेरा उपदेश कहो, आदेश कहो, सि कुछ यही है।''
भारती िोिी, ''इस िार क्या आप िहुत मदनों के मिए जा रहे हैं ?''


''देव: न जानमि....।'' कह करके िस्करा मदए।

भारती िोिी, ''हि िोगों की कमठनाई िढ़ गई है। इसीमिए ठीक-ठीक िता जाइएगा मक आप कि िौटें गे?''

''यही तो कहता हूं- देवं न जानमि....''

''नहीं, ऐसा नहीं होगा। सच-सच िताइए, कि िौमटएगा?''

''इतना आग्रह क्यों है?''

भारती िोिी, ''इस िार न िालि क्यों डर िग रहा है। िानो सि कुछ टूट-िू टकर मछन्न-मभन्न हो जाएगा।''

उसके मसर पर हाथ रखकर डॉक्टर िोिे, ''ऐसा नहीं होगा। सि ठीक होगा।''यह कहकर वह हंस पड़े। िोिे, ''िेमकन इस

ु ही रोना पड़ेगा। अपूव व िािू क्रोध अवश्य करते हैं िेमकन जो


व्यमक्त के साथ इस प्रकार झ ूठ-िूठ झगड़ा करने पर सचिच

प्यार करते हैं उसे प्यार करना भी जानते हैं ।''

भारती कुछ उत्तर देन े जा रही थी िेमकन अचानक अपूव व के िहं ु उठाते ही उसके िहं ु की ओर देखकर चपु हो गई।

उसी सिय दरवाजे के पास एक घोड़ा गाड़ी रुकी और जल्दी ही दो आदमियों ने प्रवेश मकया। एक ऊपर से नीचे तक

े ी पोशाक िें था मजसे डॉक्टर के अमतमरक्त और कोई नहीं जानता था। दूसरा था रािदास तिविकर।
अंग्रज

अपूव व का चेहरा चिक उठा। रािदास ने आगे िढ़कर डॉक्टर के चरणों की धूि िाथे पर चढ़ाई।

अंग्रज ु
े ी ड्रेसवािा व्यमक्त िोिा, ''जिानत िें इतनी देर हो गई शायद गवन विेंट िकदिा नहीं चिाएगी।''

डॉक्टर िोिे, ''इसका अथव यह है मक तिु गवन विेंट को नहीं पहचानते।''

रािदास ने कहा, ''िैदान से आने तक आपको साथ-साथ देखा था। िेमकन मिर कि अिवध्यान हो गए, पता नहीं चिा।''

डॉक्टर ने हंसकर कहा, ''अिवध्यान होना जरूरी हो गया था रािदास िािू! यहां तक मक रातों-रात यहां से भी अिवध्यान

होना पड़ेगा।''

रािदास िोिा, ''उस मदन स्टे शन पर िैंन े आपको पहचान मिया था।''
''जानता हूं। िेमकन सीधे घर न जाकर इतनी रात गए यहां क्यों?''

''आपको प्रणाि करने के मिए। िेरे पूना सेन्ट्ट्रि जेि िें जाने के िाद ही आप चिे गए थे। ति अवसर नहीं मििा।

नीिकांत जोशी का क्या हुआ, जानते हैं ? वह तो आपके साथ ही था।''

डॉक्टर ने कहा, ''ि ैरक की चारदीवारी िांघ नहीं पाए, पकड़े गए और िांसी हो गई।''

अपूव व ने पूछा, ''उस दशा िें क्या आपको भी िांसी हो जाती?''

डॉक्टर हंस पड़े।


उस हंसी को सनकर अपूव व मसहर उठा।

रािदास ने पूछा, ''इसके िाद?''

डॉक्टर िोिे, ''एक िार मसंगापरु िें ही िझे


ु तीन वर्व तक नजरिंद रहना पड़ा था। अमधकारी िझे
ु पहचानते थे। इसीमिए

सीधा रास्ता छोड़कर िैंकाक के रास्ते पहाड़ िांघकर िेवाद पहुंच गया। भाग्य अच्छा था। एक हाथी का िच्चा भाग्य से

ु मिि गया। हाथी के उस िच्चे को िेचकर एक जहाज िें नामरयि के चािान के साथ अपना चािान कराकर िैं
िझे

अराकान पहुंच गया। अचानक थाने िें एक परि मित्र के साथ आिना-सािना हो गया। उनका नाि है िी. ए. चेमिया।

ु िहुत प्यार करते हैं । िहुत मदनों से दशवन न होने पर िझे


िझे ु खोजते हुए मसंगापरु से ििाव आ गए। भीड़ िें अच्छी तरह

नजर नहीं रख सके । नहीं तो प ैतृक गिे का....।'' यह कहकर हंस पड़े। िेमकन सहसा अपूव व के चेहरे पर नजर पड़ते ही

चौंककर िोिा, यह क्या अपूव व िािू? आपको क्या हो गया?

अपूव व स्वयं को संभािने का प्रयत्न कर रहा था। उनकी िात पूरी होते, न होते दोनों हाथों से िहं ु ढककर तेजी से दौड़ता

हुआ किरे से मनकि गया।

अध्याय 6
अपूव व के इस तरह िाहर चिे जाने पर सभी आश्चयव िें पड़ गए। ि ैमरस्टर कृ ष्ण अय्यर ने पूछा, ''यह कौन है डॉक्टर? िहुत

ु ।''
ही भावक

उसकी िात िें स्पष्ट उिाहना था मक ऐसे िोगों का यहां क्या काि है?''

डॉक्टर थोड़ा हंस पड़े।


प्रश्न का उत्तर मदया तिविकर ने, ''यह हैं मिस्टर अपूव व हािदार! हिारे ऑमिस िें िेरे सपीमरयर अिसर हैं । िेमकन

ु यह एक....''
िहुत अिरंग हैं । िेरे रंगनू के प्रथि पमरचय की कहानी नहीं सनी।

सहसा भारती पर नजर पड़ते ही रुककर उसने कहा, ''वह जो कुछ भी हो, प्रथि पमरचय के मदन से ही हि िोग मित्र हैं ।''

ु ता नाि की वस्त ु सववदा िरी


डॉक्टर हंसकर िोिे, ''भावक ु नहीं होती कृ ष्ण अय्यर! और तम्हारी
ु तरह सभी को कठोर पत्थर

िन जाने से काि नहीं चिेगा। ऐसा सोचना भी ठीक नहीं है।''

कृ ष्ण अय्यर िोिे, ''ऐसा िैं भी नहीं सोचता। िेमकन किरे को छोड़कर उनके मवचरने के मिए संसार िें स्थान तो कि है

नहीं।''

तिविकर िन-ही-िन क्रोमधत हो उठा। मजसे िार-िार अपना परि मित्र िता रहा है, उसे उसी के सािने अवांमछत

व्यमक्त मसध्द करने की चेष्टा से उसने अपना अपिान सिझकर कहा, ''मिस्टर अय्यर, अपूव व िािू को िैं पहचानता हूं। यह

सच है मक हि िोगों के िंत्र की दीक्षा मिए उन्हें िहुत मदन नहीं हुए। िेमकन मित्र की अकमल्पत िृत्य ु से थोड़ा-सा

मवचमित हो जाना, हि िोगों के मिए भी कोई भयानक अपराध नहीं है। संसार िें चिने-मिरने के मिए अपूव व िािू को

ु आशा है मक इस िकान िें भी उनके मिए स्थान की किी नहीं पड़ेगी।''


स्थान की किी नहीं है। और िझे

डॉक्टर िोिे, ''अवश्य नहीं पड़ेगी तिविकर, अवश्य नहीं पड़ेगी।'' मिर वह मवशेर् रूप से भारती को िक्ष्य करके िोिे,

''िेमकन यह मित्रता नाि की वस्त ु संसार िें मकतनी क्षण भंगरु है भारती। एक मदन मजसके संिध
ं िें सोचा भी नहीं जा

सकता, दूसरे ही मदन जरा-सा कारण प ैदा हो जाने पर हिेशा के मिए मवछोह हो जाता है। यह भी संसार िें कोई
ु िहुत ही दुिवि प्राणी है। संसार के धक्के
अस्वाभामवक नहीं है तिविकर! इसके मिए भी त ैयार रहना चामहए। िनष्य

ु ता की आवश्यकता पड़ती है।''


संभािने के मिए इसी भावक

इन सि िातों का उत्तर नहीं, प्रमतवाद भी नहीं। सि िौन रहे। िेमकन भारती का चेहरा उदास हो उठा। भारती जानती है

मक अकारण कुछ कहना डॉक्टर का स्वभाव नहीं है।

डॉक्टर ने घड़ी देखकर कहा, ''िेरा तो जाने का सिय हो रहा है भारती! रात की गाड़ी से जा रहा हूं तिविकर!''

कहां और मकसमिए? अपने आप िताए मिना अनावश्यक कौतूहि प्रकट करने का मनयि इन िोगों िें नहीं है।''

तिविकर ने पूछा, ''िेरे मिए आपका आदेश?''

डॉक्टर ने हंसकर कहा, ''आदेश तो है, िेमकन एक िात है, ििाव िें स्थान का अभाव हो ही जाए तो अपने देश िें नहीं

होगा, यह मनमश्चत है। िजदूरों पर जरा नजर रखना।''

तिविकर ने गदवन महिाकर कहा, ''अच्छा, मिर कि भेंट होगी?''

ु मिर यह प्रश्न कै स े कर ि ैठे ?''


डॉक्टर ने कहा, ''नीिकांत जोशी के मशष्य हो ति,

तिविकर चपु हो रहा। डॉक्टर ने कहा, ''अि देर ित करो, जाओ। घर पहुंचते-पहुंचते भोर हो जाएगी। -और अय्यर,

क्या यहीं प्र ैमक्टस करने का मनश्यच कर मिया है?''

कृ ष्ण अय्यर ने मसर महिाकर सम्ममत प्रकट की। मकराए की गाड़ी िाहर खड़ी प्रतीक्षा कर रही थी। दोनों िाहर जाने िगे

तो तिविकर ने कहा, ''अंधरे े िें अपूव व िािू कहां चिे गए। भेंट नहीं हुई....''

िेमकन इस िात का उत्तर देना मकसी ने आवश्यक नहीं सिझा। कुछ ही देर िाद गाड़ी की आवाज से िालि हो गया मक

वह िोग चिे गए।

''तिु क्या सिझती हो....अपूव व चिा गया?'' डॉक्टर ने कहा।

भारती िोिी, ''नहीं सम्भव है आस-पास खोजने से मिि जाएंग।े आपसे मिना भेंट मकए वह नहीं जाएंग।े ''

डॉक्टर िोिे, ''तिु यही काि करो। अमधक नहीं ठहर सकता िमहन!''
''नहीं। वह इसी िीच आ जाएंग,े '' यह कहकर दरवाजे के िाहर भारती ने नजरें दौड़ाई और पमरमचत प ैरों की आवाज की

प्रतीक्षा िें िेच ैन हो उठी। जी चाहा दौड़कर कहीं आप-पास से उसे पिभर िें खोज िाए। िेमकन इतनी व्याकुिता मदखाने

िें उसे आज िज्जा िालि हुई। डॉक्टर ने घड़ी की ओर देखा। भारती ने घड़ी पर नजर डािी। पांच-छ: मिनट से अमधक

सिय नहीं था।

''आप क्या प ैदि ही जाएंग?े ''

ु गी। छ:-सात आने िें स्टे शन पहुंचा देगी।''


''नहीं। दो िजकर िीस मिनट पर िड़ी सड़क से एक घोड़ा गाड़ी गजरे


''प ैसा न देन े पर भी पहुंचा देगी। िेमकन जाने से पहिे क्या समित्रा ु िीिार हैं ।''
जीजी को देखने नहीं जाएंग?े वह सचिच

डॉक्टर ने कहा, ''िैंन े कि कहा मक िीिार नहीं हैं ? िेमकन डॉक्टर को मदखाए मिना िीिारी कै स े अच्छी होगी?''

भारती िोिी, ''आपसे अच्छा डॉक्टर कौन मििेगा?''

ु अच्छी। अभ्यास छूटे िहुत मदन िीत चकेु हैं । मिर ि ैठा-ि ैठा मकसी का
डॉक्टर ने िजाक िें उत्तर मदया, ''ति तो हो चकी

इिाज करता रहूं, इतना सिय कहां है िेरे पास?''

भारती िोि उठी, ''आपके पास भिा सिय कहां है! कोई िर भी जाए तो भी आपको सिय नहीं मििगा। क्या देश का

काि ऐसा ही होता है?''

डॉक्टर का हंसता हुआ चेहरा पिभर को गम्भीर होकर मिर पहिे ज ैसा हो गया। भारती यह देखते ही अपनी गिती


सिझ गई। समित्रा कौन है? डॉक्टर के साथ उसका सिंध क्या है? और मकस तरह वह इस दि िें शामिि हुई, भारती को

इस सिंध िें कुछ भी िालि नहीं था। इन िोगों की संस्था िें व्यमक्तगत पमरचय के प्रमत मजज्ञासा मनमर्ध्द िाना जाता है।

ु के मसवा ठीक तौर से कुछ भी जान िेन े का उपाय नहीं था। के वि स्त्री होने के नाते ही उसने समित्रा
इसीमिए अनिान ु का

िनोभाव कुछ-कुछ जान मिया था। िेमकन अपनी उसी अनभू


ु मत को आधार िानकर इतना िड़ा इशारा कर ि ैठने से वह


के वि संकोच िें ही नहीं पड़ गई िमि भयभीत भी हो उठी। भयभीत वह डॉक्टर से नहीं समित्रा से हुई। यह िात मकसी

भी तरह उसके कान तक पहुंच जाने से काि मिगड़ जाएगा। उनका और पमरचय िालि न होने पर भी पहिे से ही उस


शांत, तीक्ष्ण, मवद्या-िमध्दशामिनी रिणी के दुभेद्य गम्भीरता के पमरचय से कोई भी अपमरमचत नहीं था। उनके स्वरूप और

भार्ण से उनके प्रखर सौन्दयव के हर पदक्षेप से, उनके संयि-गम्भीर वाताविाप से, उनके अचंचि आचरण की गम्भीरता
ु करते थे। यहां तक मक उनकी िीिारी के
से, इस दि िें रहते हुए भी उनकी असीि दूरी को सि िोग भिी-भांमत अनभव

संिध
ं िें भी अपने आप मकसी प्रकार की आिोचना करने का भी मकसी को साहस नहीं होता था। िेमकन एक मदन इस न

िेधी जाने वािी कठोरता को िेधकर उनकी अत्यंत गप्तु दुिविता, उस मदन अपूव व और भारती के सािने प्रकट हो गई थी


मजस मदन एक आदिी को मवदा करते सिय समित्रा स्वयं को संभाि नहीं सकी थीं। और उसी से वह िानो अपने को

ु मत के आकर्वण से संकुमचत होने


सिसे अिग-िहुत दूर हटा िे गई हैं । वह मवशाि व्यवधान, दूसरे की मिन िांगी सहानभू

का थोड़ा भी आभास मििते ही उसकी अपने जीवन के प्रमत अंतर िें मछपी गूढ़ वेदना सहसा भड़क उठे गी, इस िात का

ु करके भारती का क्षब्ध


अनभव ु मचत्त आशंका से भर जाता था।

डॉक्टर ने आराि कुसी पर अच्छी तरह िेटकर अपने दोनों प ैर िेज पर िै िा मदए और मिर आराि की सांस छोड़कर

िोि उठे , ''ओह....।''

भारती आश्चयव से िोिे, ''आप तो खूि सो मिए?''

ु नींद आ रही है। तिु िोगों


डॉक्टर नाराज होकर िोिें , ''क्यों, क्या िैं घोड़ा हूं जो जरा-सा िेटते ही नींद आ जाएगी? िझे

की तरह खड़े-खड़े िैं नहीं सो सकता।''

ु आश्चयव
''खड़े-ख़ड़े हि िोग भी नहीं सो सकते। िेमकन अगर कोई यह कहे मक आप दौड़ते-दौड़ते सो सकते हैं तो िझे

नहीं होगा। आपके इस शरीर से क्या कुछ नहीं हो सकता कोई नहीं जानता, िेमकन सिय हो गया। इसी सिय न चि

पड़ने से गाड़ी नहीं मििेगी। चिी जाएगी।''

''चिी जाने दो, िड़ी जोर की नींद आ रही है भारती। आंखें नहीं खोि सकता,'' यह कहकर डॉक्टर ने आंखें िूदं िीं।


यह सनकर ु
भारती ने पिमकत ु मकया मक के वि िेरे अनरोध
िन से अनभव ु से ही आज उनका जाना स्थमगत हो गया। नहीं

तो नींद तो दूर, मिजिी मगरने की दुहाई देकर भी उनके संकल्प िें िाधा नहीं डािी जा सकती। उसने कहा, ''अगर

ु ही नींद आ रही हो तो ऊपर जाकर सो जाइए न।''


सचिच

डॉक्टर ने आंखें िंद मकए ही पूछा, ''तिु क्या अपूव व की िाट देखती हुई सारी रात जागकर मिताओगी?''

ु क्या गरज? कोठरी िें सो जाऊं गी।''


भारती िोिी, ''िझे
डॉक्टर िोिे, ''क्रोध करके िेटा तो जा सकता है िेमकन सोया नहीं जा सकता। मिछौने पर पड़कर छटपटाते रहने से

िढ़कर दूसरी कोई सजा नहीं होती। इससे यही अच्छा होगा मक तिु उसे खोज िाओ। िैं मकसी से नहीं कहूंगा।''

भारती का चेहरा िाि पड़ गया। कुछ देर िौन रहने के िाद स्वयं को संभाि कर िोिी, ''अच्छा डॉक्टर साहि, मिस्तर

पर पड़कर छटपटाते रहने से िढ़कर और कोई सजा नहीं होती-यह िात आप कै स े जान गए?''


''िोग कहते हैं । वही सनकर।''

ु से नहीं जानते?''
''अपने अनभव

डॉक्टर िोिे, ''िमहन, हि अभागों को तो सोने के मिए मिस्तर भी नसीि नहीं होते। मिर छटपटाना कै सा। इतनी िािूमगरी

के मिए िुस वत कहां?''

भारती िोिी, ''अच्छा डॉक्टर साहि, सि िोग कहते हैं मक आप िें क्रोध है ही नहीं। क्या यह िात सच है?''

ु देख नहीं सकते।''


''िोग झ ूठ कहते हैं । वह िझे

भारती हंसकर िोिी, ''या अत्यमधक प्यार करते हैं ? वह तो यह भी कहते हैं मक आप िें न िान है न अमभिान। न दया-

िाया है। हृदय आमद से अंत तक पत्थर िन गया है।''

डॉक्टर ने कहा, ''यह भी अत्यमधक प्यार की िात है। इसके िाद?''

ु हुई है-जन्मभूमि की प्रमतिा। उसका न आमद है, न


भारती िोिी, ''इसके िाद, उस प्रस्तर िूमतव पर के वि एक प्रमतिा खदी

अंत है और न क्षय है। वह प्रमतिा हिें मदखाई नहीं देती। इसीमिए हि िोग आपके पास रह पाते हैं । नहीं तो....'' कहते-


कहते सहसा वह रुक गई। मिर िोिी, ''कै स े िताऊं डॉक्टर साहि, एक मदन जि िें समित्रा िमहन के साथ ििाव आयरन

कम्पनी के कारखानें के पास से जा रही थी, उस मदन यहां कारखाने के नए िायिर की परीक्षा हो रही थी। िोग खड़े-खड़े

तिाशा देख रहे थे। कािे पववत के सिान वह एक मवशाि जड़-मपंड से अमधक और कुछ भी नहीं था। सहसा उसका

ु जाने पर ऐसा िगा िानों उसके भीतर आग का तूिान उठ रहा है। अगर उसिें इस पृथ्वी को भी उठाकर
दरवाजा खि

ु है मक वह अके िा ही उस मवशाि कारखाने को जिा सकता है।


डाि मदया जाए तो वह इसे भी भस्म कर देगा। िैंन े सना


दरवाजा िंद हो गया तो वह पूववव त शांत जड़-मपंड िन गया। उसके भीतर का रत्ती भर भी प्रकाश िाहर नहीं रहा। समित्रा
िमहन के िहं ु से गहरी सांस मनकि गई। िैंन े आश्चयव से पूछा ''क्या िात है जीजी!'' समित्रा
ु ने कहा, ''इस भयंकर यंत्र को

याद रखना भारती। इससे तिु अपने डॉक्टर साहि को पहचान सकोगी। यही है उनकी यथाथव प्रमतिूमतव।''


डॉक्टर ने अन्यिनस्क की तरह िस्कराते ु प्यार ही करते हैं ? िेमकन नींद के िारे तो आंखों
हुए कहा, ''सभी िोग क्या िझे

से अि कुछ भी मदखाई नहीं दे रहा भारती। कुछ उपाय करो। िेमकन इससे पहिे-वह आदिी कहां चिा गया, क्या एक

िार पता नहीं िगाओगी?''

''िेमकन आप यह िात मकसी से कह नहीं सकते।''

ु से िज्जा करने की आवश्यकता नहीं है।''


''नहीं। िेमकन िझ

ु से ही िनष्य
''नहीं। िनष्य ु को िज्जा होती है, ''यह कहकर वह िािटे न िेकर िाहर चिी गई।

िगभग पंद्रह मिनट िाद आकर िोिी, ''अपूव व िािू चिे गए।''

आश्चयव से डॉक्टर िोिे, ''इतने अंधरे े िें अके िे?''

''ऐसा ही िगता है।''

''आश्चयव है।''

''िैंन े आपके मिए मिस्तर ठीक कर मदया है।''


''और ति।''

''िैं िशव पर कम्बि मिछाकर सो जाऊं गी।''

ु िनष्य
डॉक्टर िोिे, ''अच्छा चिो। िज्जा िनष्य ु से करता है। िैं तो पत्थर रहा।''

ऊपर के किरे िें डॉक्टर िेट गए। भारती ने िशव पर मिस्तर मिछा मदया।

डॉक्टर ने उसे देखकर कहा, ''सि िोग मििकर इस तरह िेरी उपेक्षा करते हैं तो िेरे आत्म सम्मान को चोट िगती है।

ु कोई भय नहीं है।''


यानी िझसे

भारती िोिी, ''रत्ती भर भी नहीं। आपसे मकसी का िेशिात्र भी अकल्याण नहीं हो सकता।''
डॉक्टर से हंसकर िोिी, ''अच्छा, मकसी मदन पता चि जाएगा।''

मिछौने पर िेटकर भारती ने पूछा, ''आपका सव्यसाची नाि मकसने रखा था डॉक्टर साहि?''

डॉक्टर हंसकर िोिे, ''यह नाि मदया था पाठशािा िें पंमडत जी ने। उनके यहां आि का एक िहुत ऊं चा पेड़ था। के वि

िैं ही ढेिे भरकर उस पर िगे आिों को तोड़ सकता था। एक छत पर से कू दने पर िेरा दायां हाथ िोच खा गया। डॉक्टर

ने उस पर पट्टी िांधकर िेरे गिे से िटका मदया। यह देखकर सभी हाय-हाय करने िगे। िेमकन पंमडत जी ने प्रसन्न होकर

कहा, ''जाने दो, ढेिे की चोट खाने से िेरे आि तो िच गए। पकने पर शायद दो-चार िहं ु िें डाि सकूं गा।''

भारती िोिी, ''आप िड़े दुष्ट थे।''

ु पकड़ मिया। कुछ देर िेरी


डॉक्टर िोिे, दूसरे मदन मिर आि मगराने िगा। पंमडत जी को पता चि गया। उन्होंने िझे

ओर देखकर िोिे, ''गिती हुई िेटा सव्यसाची। आि की आशा अि नहीं करता। दायां हाथ तोड़ चकेु हो, िायां हाथ चि

ु देता हूं।''
रहा है। िायां हाथ टूट जाने पर संभव है दोनों प ैर चिें ग।े अि कष्ट ित करो। जो आि िचे हैं उन्हें िैं तड़वा

भारती िोिी, ''पंमडत जी का मदया हुआ नाि है यह?''

डॉक्टर िोिे, ''हां, िेरा असिी नाि तभी से िोग भूि गए।''

भारती मिर िोिी, ''अच्छा, सभी िोग जो कहते हैं मक देश और आप मििकर एकाकार हो गए हैं । यह कै स े हुआ?''

डॉक्टर िोिे, ''यह भी िचपन की घटना है। इस िीच िें क्या-क्या आया और चिा गया, िेमकन वह मदन आज भी याद

है। हिारे गांव के पास वैष्णवों का एक िठ था। एक मदन रात के सिय डाकुओ ं ने उस िठ पर आक्रिण मकया। रोने-धोने

की आवाज से िोग इकट्ठे हो गए। िेमकन डाकुओ ं के पास एक देशी िंदूक थी, मजससे वह िोग गोमियां चिाने िगे। यह

देखकर कोई उनके पास न जा सका। िेरे एक चचेरे भाई थे। अत्यंत साहसी और परोपकारी। वह जाने के मिए छटपटाने

िगे। िेमकन जाने पर मनश्चय ही िृत्य ु होगी, यह सोचकर सिने उनको पकड़ मिया। अपने को मकसी तरह न छुड़ा सकने

पर वह वहीं से मनष्फि उछि-कू द िचाने िगे और डाकुओ ं को गािी देन े िगे, िेमकन उसका कोई िि नहीं हुआ।

डाकुओ ं ने के वि एक िंदूक के जोर से दो-तीन सौ आदमियों के सािने िािा जी को खूटं े िें िांधकर जिा डािा। िैं उस

ु पड़ती हैं । ओह, मकतना हृदय मवदारक


सिय िािक था भारती! िेमकन आज भी िरते हुए िािा जी की चीखें सनाई

आतवनाद था वह।''
भारती ने पूछा, ''इसके िाद?''

डॉक्टर िोिे, ''इसके िाद?''

डॉक्टर िोिे, ''िािा जी को सिूच े गांववािों के सािने िार डािा गया। डाकुओ ं ने लटपाट का काि िड़ी आसानी से पूरा

कर मिया। जाते सिय डाकुओ ं के सरदार ने अपने मपता की सौगंध खाकर िड़े भ ैया को सनाकर
ु कहा, ''आज तो हि

िोग थक गए हैं । पर एक िहीने के अंदर ही िौटकर हि इसका िदिा िें ग।े '' िड़े भ ैया मजिा िमजस्ट्रे ट के पास जाकर

ु एक िंदूक चामहए। िेमकन पमिस


रोए-धोए मक िझे ु ने कहा, नहीं मिि सकती। क्योंमक दो साि पहिे मकसी अत्याचारी


पमिस ु थी। भ ैया से िमजस्टे े्रट ने
े र के कान िि देन े के अपराध िें उन्हें दो िहीने की जेि की सजा मिि चकी
इंस्पक्ट

कहा, ''जो इतना डरता है वह घर-द्वार िेचकर िेरे मजिे से मकसी दूसरे मजिे िें चिा जाए।''

भारती उत्तेमजत होकर िोिी, ''नहीं दी?''


डॉक्टर ने कहा, ''नहीं, और यही नहीं, िडे भ ैया ने जि धनर्-िाण ु
और िरछा िनवाया तो पमिस उन्हें भी छीन िे गईं।''

''इसके िाद?''

''इसके िाद की घटना संमक्षप्त है। उसी िहीने िें सरदार ने अपनी प्रमतज्ञा पूरी कर िी। इस िार उसके पास एक िंदूक और

थी। घर के सभी िोग भाग गए। पर िडे भ ैया को कोई भी मडगा न सका। डाकू की गोिी खाकर उन्होंने प्राण त्याग

मदए।''

''प्राण त्याग मदए?''

''हां, गोिी िगने के िाद चार घंटे जीमवत रहे। गांव भर इकट्ठा होकर हो-हल्ला िचाने िगा। कोई डाकुओ ं को गािी देन े


िगा। कोई साहि को। के वि भ ैया चपचाप पड़े रहे। देहाती गांव ही तो था। अस्पताि दस-िारह कोस दूर था। रात के

सिय डॉक्टर पट्टी िांधने के मिए आया तो भ ैया ने उसका हाथ हटाकर कहा, ''रहने दो, िैं जीना नहीं चाहता।'' यह

ु िहुत ही प्यार करते थे। िझे


कहते-कहते पत्थर के उस देवता की आवाज जरा-सी कांप उठी। िड़े भ ैया िझे ु रोते देखकर

ु -सरु मििाकर
उन्होंने िेरी ओर देखा और मिर धीरे-धीरे िोिे, ''मछ:! िड़मकयों की तरह इस गाय, भेड़, िकमरयों के सर-िें

ु कहिाने योग्य एक भी प्राणी िाकी नहीं


तू ित रो शैि! िेमकन राज्य करने के िोभ से मजन िोगों ने सिूच े देश िें िनष्य

छोड़ा, उन िोगों को अपने जीवन िें कभी क्षिा ित करना?'' घृणा से उसके िहं ु से उि, आह तक भी नहीं मनकिी और
इस अमभशप्त पराधीन देश को मचरकाि के मिए वह छोड़कर चिे गए। के वि िैं ही जानता हूं भारती- मकतना िड़ा और

मवशाि हृदय उस मदन संसार से मवदा हो गया।''


भारती चपचाप ि ैठी रही। मकसी सिय एक छोटे से गांव िें हुई दुघवटना की कहानी ही तो है। डाका पड़ने पर दो-चार


अज्ञात, अप्रमसध्द आदमियों के प्राण नष्ट हुए, इतना ही तो। जगत के िड़े-िड़े मवरोधों के असहनीय दु:खों के िकाििे िें


यह है क्या चीज? मिर भी इस पत्थर पर मकतना गहरा घाव कर गई है। तिना और गणना की दृमष्ट से दुिविों के दु:खद

ु है। इस िंगदेश िें ही रोजाना न जाने मकतने िोग चोर-डाकुओ ं के हाथों


इमतहास िें हत्या की यह मनिविता िहुत ही तच्छ

िरते हैं । िेमकन इसिें क्या इतनी ही-सी िात है? क्या यह पत्थर इतने से आघात से ही मवदीणव हो गया है? भारती को

सहसा िगा, ज ैसे सिूची िमि की दुस्सह िांछना और अपिान की ग्िामन से उस पत्थर के चेहरे पर कािी स्याही की

िोटी तह पोत दी है।

वेदना से भारती िोि उठी, ''भ ैया....?

ु ििा
डॉक्टर ने गदवन उठाकर पूछा, ''िझे ु रही हो?''

भारती िोिी, ''हां.... क्या अंग्रज ु


े ों से तम्हारी संमध नहीं हो सकती?''

ु िढ़कर उनका शत्र ु और कोई नहीं है।''


''नहीं, िझसे

भारती िन-ही-िन दु:खी होकर िोिी, ''मकसी से दुश्िनी या मकसी का अमहत करने की तिु कािना कर सकते हो, यह

िात िैं सोच भी नहीं सकती भ ैया।''


डॉक्टर िोिे, ''भारती, यह िात तम्हारे िहं ु से ही शोभा दे सकती है। िैं तम्हें
ु आशीवावद देता हूं मक तिु सखी
ु होओ।'' यह

कहकर वह जरा हंस पड़े। िेमकन भारती जानती थी मक इस हंसी का कोई िूल्य नहीं है। शायद यह कुछ और ही हो।

डॉक्टर ने कहा, ''भारती, हिारा देश उनके हाथों िें चिा गया है। इसी कारण िैं उनका शत्र ु नहीं हूं। कभी यह देश


िसििानों के हाथों िें भी चिा गया था िेमकन सिस्त संसार िें िानवता की इतनी िड़ी शत्र ु जामत और कोई नहीं है।

ु िन सके तो देश के सभी िोगों को, भिे ही वह परुर्


यही इन िोगों का व्यवसाय है। यही इनका िूिधन है। यमद तिसे ु

हों या स्त्री, इस सत्य को सिझा देना।''


भारती िौन ि ैठी न जाने क्या सोचने िगी। िेमकन एक सिूची जामत के मवरुध्द इतने िड़े अमभयोग को सत्य िानकर उस

पर मवश्वास न कर पाई।


भारती के दि के एक आदिी ने आकर एक पत्र मदया। पत्र समित्रा के हाथ का मिखा हुआ था। पत्र िें उसने मिखा था मक

ज ैसी अवस्था िें हो तत्काि पत्र वाहक के साथ चिी आओ।

नीचे उतरकर देखा, दरवाजे के सािने पमरमचत गाड़ी खड़ी है िेमकन गाड़ीवान िदि गया है। िेमकन गाड़ी क्यों आई है?


समित्रा ु
के घर तक जाने िें तीन-चार मिनट से अमधक सिय नहीं िगता। उसने पूछा, ''क्या िात है हीरा मसंह, समित्रा

कहां हैं ?''


हीरा मसंह पथ के दावेदार के सदस्य न होते हुए भी मवश्वासपात्र है, पंजािी मसख है। पहिे हांगकांग पमिस िें समववस करता

था। अि रंगनू के तार घर िें प्यून का काि करता है।

उसने धीरे से कहा, ''चार-पांच िीि दूर, िहुत ही गप्तु और आवश्यक सभा हो रही है। आपके न जाने से काि नहीं

चिेगा।''

भारती ने प्रश्न नहीं मकया। सांझ के अंधरे े िें गाड़ी की मखड़मकयां िंद करके चि पड़ी। हीरा मसंह सरकारी प्यून की

यूमनिािव िें सरकारी साइमकि पर सवार होकर दूसरे रास्ते से चि पड़ा।

ु था। उसने गाड़ी का


रात के िगभग दस िजे गाड़ी एक िगीचे िें पहुंचकर रुक गई। हीरा मसंह पहिे ही पहुंच चका

दरवाजा खोि मदया। मसर के ऊपर िड़े-िड़े पेड़ छाए हुए थे। मजसके कारण अंधकार इतना दुभेद्य हो गया था मक हाथ

ु नहीं दे रहा था। िम्बी-िम्बी और घनी घास के िीच एक पगडंडी का मचद्द िात्र मदखाई दे रहा था। इसी भयानक
सझाई

रास्ते पर हीरा मसंह अपनी साइमकि की छोटी-सी िािटे न की रोशनी से रास्ता मदखाते हुए आगे-आगे चिने िगा।

उस पगडंडी पर चिते ही भारती के िन िें रह-रहकर यह मवचार आने िगा मक इस भयंकर स्थान िें आकर िैंन े अच्छा

नहीं मकया।

थोड़ी देर िाद वह िोग एक टूटी-िू टी परानी इिारत के सािने पहुंच गए। िडे हाि के कोने िें ऊपर चढ़ने की सीमढ़यां

हैं । सीमढ़यां काठ की िनी हुई हैं । िीच-िीच िें सीमढ़यों के कुछ तख्ते नहीं हैं । भारती हीरा मसंह का हाथ पकड़कर दूसरी

िंमजि पर पहुंच गई। और मिर सािने का िरािदा पार करके िड़ी कमठनाई से मनमश्चत स्थान पर पहुंच गई। किरे िें एक


चटाई मिछी थी। एक ओर दो िोििमत्तयां जि रही थीं। उन्हीं के पास सािने आसन पर समित्रा ि ैठी थी। दूसरे छोर पर

डॉक्टर ि ैठे थे। उन्होंने स्नेह भरे स्वर िें कहा, ''आओ भारती, िेरे पास आकर ि ैठो।''


भारती जल्दी से डॉक्टर के पास जा ि ैठी। उसके कं धो पर िायां हाथ रखकर डॉक्टर ने ज ैसे चपचाप उसे ढाढ़स िंधाया।

हीरा मसंह अंदर नहीं आया। दरवाजे के पास ही खड़ा रहा। भारती ने चारों ओर नजर डािी। जो िोग ि ैठे थे उनिें से

पांच-छ: को तो वह मििुि ही नहीं पहचानती थी। पमरमचतों िें से डॉक्टर और समित्रा


ु के अमतमरक्त रािदास तिविकर

और कृ ष्ण अय्यर थे।

अपमरमचतों पर नजर डािते ही सिसे पहने उसकी नजर एक भयानक चेहरे वािे आदिी पर पड़ी। वह गेरुए रंग का

िम्बा चोिा पहने था। मसर पर िहुत िड़ी पगड़ी थी। उसका िहं ु िड़ी हांड़ी की तरह गोिाकार और शरीर गैंड े के सिान

स्थूि, िांसि और सूखा था। िड़ी-िड़ी आंखों के ऊपर भौंहों का मचद्द तक नहीं। कड़ी-कड़ी सींकों की तरह खड़ी िूछ
ं ें

शायद दूर से मगनी जा सकती थीं। रंग तांि े ज ैसा। उसे देखते ही स्पष्ट िालि हो जाता था मक वह अनायव िंगोमिया जामत

का है। उस वीभत्स भयानक आदिी की ओर भारती आंख उठाकर नहीं देख सकी। दो मिनट तक सिूच े किरे िें सन्नाटा


छाया रहा। मिर समित्रा ु
ने पकारकर ु
कहा, ''भारती, िैं तम्हारे िन की िात जानती हूं? इसमिए िेरी इच्छा नहीं थी मक

ु यहां ििाकर
तम्हें ु दु:खी करूं। िेमकन डॉक्टर ने ऐसा नहीं करने मदया। जानती हो, अपूव व िािू ने क्या मकया है।''

भारती िौन देखती रह गई।


समित्रा िोिी, ''वोथा कम्पनी ने रािदास को िखावस्त कर मदया है। अपूव व की भी वही दशा होती। िेमकन कमिश्नर के

सािने हि िोगों की सारी िातें सच-सच कह देन े से ही उसकी नौकरी िच गई। वेतन कि नहीं था। पांच-छह सौ के

िगभग होगा।''

रािदास िोिा, ''हां।''



समित्रा िोिी, 'पथ के दावेदार' मवद्रोमहयों का दि है और हि िोग मछपाकर मरवाल्वर रखते हैं -यह सारी िातें भी उन्होंने

िता दीं। इसके मिए क्या दण्ड है भारती?''

भयंकर आकृ मत वािा आदिी गरजकर िोिा, ''डेथ।''

भारती चपु थी।

ु है। अपूव व िािू ने यह िात िता देन े िें कसर


रािदास िोिा, ''सव्यसाची ही डॉक्टर िने हैं । यह सिाचार उन्हें मिि चका

नहीं रखी है। होटि के किरे िें ही उन्हें पकड़ा जा सकता है। इसके पहिे िैं राजनीमतक अपराध िें दो वर्व जेि काट

ु हूं, यह भी िता मदया।''


चका


समित्रा ने कहा, ''भारती, तिु जानती हो मक डॉक्टर पकड़े जाएंग े तो उसका पमरणाि क्या होगा? िांसी हो जाएगी। अगर

उससे िच भी गए तो 'ट्रांसोप्रोट्रे शन'। सभासदगण, आप िोग इस अपराध का दंड क्या मनमश्चत करते हैं ?''

सभी एक साथ िोि उठे -''डेथ।''

ु कुछ कहना है?''


''भारती, तम्हें

भारती ने मसर महिाकर िताया-''कुछ नहीं।''

वह भयंकर आदिी िोिा, ''यह भार िैं अपने ऊपर िेता हूं।''

कृ ष्ण अय्यर ने दरवाजे की ओर देखकर हीरा मसंह से कहा, ''िगीचे के कोने िें एक सूखा कुआं है। कुछ अमधक मिट्टी

डािकर और मिर उसके ऊपर थोड़ी सूखी पमत्तयां डाि देनी चामहए। गंध न मनकिने पाए।''

हीरा मसंह िोिा, ''इस काि िें किी न होगी।''


तिविकर िोिा, ''अि िािू साहि को ििाकर ु देनी चामहए।''
सजा सना

अपूव व के अपराध का मवचार पांच मिनट िें ही सिाप्त हो गया। मवचार करने वािों की राय मजतनी संमक्षप्त थी उतनी ही

स्पष्ट भी। सिझ िें न आने योग्य कोई जमटिता नहीं थी।
भारती ने सि कुछ सनु मिया। िेमकन उसके कानों और िमध्द
ु के िीच कहीं एक ऐसी दुभेद्य दीवार खड़ी हो गई थी मक कोई

भी िाहरी वस्त ु उसे िेधकर अंदर नहीं पहुंच सकती थी। इसी से आरम्भ से अंत तक जो कोई कुछ कहता था भारती

आकुि दृमष्ट से उसके िहं ु की ओर िड़कर


ु देखने िगती थी। के वि इतनी ही िात उसकी सिझ िें आ रही थी मक अपूव व

ने िहुत िड़ा अपराध मकया है इस देश िें उसका जीवन संकट िें है। िमकन वह संकट इतना मनकट आ पहुंचा है, यह वह

मििुि नहीं सिझ सकीं।


समित्रा के इशारे से एक आदिी उठकर िाहर चिा गया और दो मिनट के िाद ही अपूव व को िेकर आ गया। अपूव व के

दोनों हाथ पीठ की ओर रस्सी से िजिूती के साथ िंध े हुए थे और किर िें एक भारी पत्थर झ ूि रहा था।

दूसरे ही पि भारती चेतना शून्य होकर डॉक्टर के शरीर पर लुढ़क पड़ी। िेमकन इस सिय सिकी नजरें अपूव व पर मटकी

हुई थीं। इसमिए डॉक्टर के मसवा और कोई इस िात को नहीं जान सका।

ु था। उसने कोई भी िात अस्वीकार नहीं की थी।


भारती के यहां पहुंचने से पहिे ही अपूव व का ियान मिया जा चका


ऑमिस के िड़े साहि और पमिस के िड़े साहि दोनों ने मििकर उससे सारी िातें जान िी थीं। िेमकन उसने इस दि

ु कै स े की, इस िात को वह अि भी नहीं जान सका था।


और देश से इतनी िड़ी शत्रता


आज मदन के दस िजने से पहिे ही रािदास ने आकर यह खिर समित्रा ु दी थी। दण्ड मनमश्चत हो गया। यह
को सना

संक्षपे िें इस प्रकार है।

ऑमिस की छुट्टी के िाद आज अपूव व प ैदि घर जाने का साहस न कर सके गा। यह सोचकर इन िोगों ने मकराए की गाड़ी

हीरा मसंह की सहायता से ऑमिस के पास खड़ी कर दी। इस िं दे िें अपूव व ने सहज ही पांव रख मदए। कुछ देर चिाकर

गाड़ीवान ने कहा एक भारी रोिर के टूट जाने के कारण गिी का िोड़ िंद हो गया है। घूिकर जाना होगा। अपूव व ने

स्वीकार मकया और उसके िाद अन्यिनस्क-सा हो गए। िेमकन घण्टे भर िाद जि उसे होश हुआ तो देखा, हीरा मसंह

गाड़ी िें मपस्तौि मिए खड़ा है।


समित्रा ु
ने पकारकर कहा, ''अपूव व िािू, हि िोगों ने आपको प्राण-दंड मदया है। आपको कुछ कहना है?''

अपूव व ने मसर महिाकर कहा, ''नहीं।''


डॉक्टर ने पूछा, ''हीरा मसंह तम्हारी मपस्तौि कहां है?

हीरामसंह ने समित्रा की ओर इशारा मकया।


डॉक्टर ने हाथ िढ़ाकर कहा, ''मपस्तौि देख ूं तो समित्रा?''


समित्रा ने िेल्ट से मपस्तौि खोिकर डॉक्टर के हाथ िें दे दी।

डॉक्टर ने पूछा, ''और मकसी के पास मरवाल्वर है?''


और मकसी के पास नहीं है-यह िात सिने िता दी। ति समित्रा की मपस्तौि अपनी जेि िें रखकर डॉक्टर ने हिी-सी


िस्कराहट ु कहा, तिु िोगों ने प्राण-दंड मदया है। िेमकन भारती ने नहीं मदया।''
के साथ कहा, ''तिने


समित्रा ने भारती की ओर देखकर कहा, ''भारती नहीं दे सकती।''

डॉक्टर ने कहा, ''दे पाना उमचत नहीं है। क्यों भारती?''

भारती चपु रही। इस कमठनति प्रश्न के उत्तर िें उसने औ ंधी िेटकर डॉक्टर की गोद िें अपना िहं ु मछपा मिया।

डॉक्टर ने उसके मसर पर एक हाथ रखकर कहा, ''अपूव व िािू ने जो कुछ कर डािा है, वह िौट नहीं सकता। उसका

पमरणाि हि िोगों को भोगना ही पड़ेगा। दंड देन े पर भी और न देन े पर भी भोगना पड़ेगा। इसमिए इसकी आवश्यकता

नहीं। भारती इनका भार अपने ऊपर िे िे।''


समित्रा ने कहा, ''नहीं।''

सभी एक साथ िोि उठे , ''नहीं।''

वह भयानक आदिी सिसे अमधक उछिा। उसने अपने दोनों पंज े उठाकर भारती की ओर इशारा करके कोई िात कही।


समित्रा ने कहा, ''हि सिका ित एक ही है। इतने िड़े अन्याय को प्रश्रय देन े से हि िोगों का सारा काि टूट-िू टकर

सिाप्त हो जाएगा?''

डॉक्टर ने कहा, ''अगर सिाप्त हो जाए तो उसका उपाय ही क्या है?''


समित्रा के साथ ही पांच-सात आदिी गरज उठे , ''उपाय क्या है? देश के मिए, स्वाधीनता के मिए हि िोग और कोई िात

नहीं िानेंग।े आपके अके िे की िात से कुछ नहीं हो सकता।''


िोगों को गरजना िंद हो जाने पर डॉक्टर ने उत्तर मदया। इस िार उनकी आवाज आश्यचवजनक रूप से शांत और निव

ु दी। उसिें रत्ती भर भी उत्साह और उत्तेजना नहीं थी। उन्होंने कहा-''समित्रा,


सनाई ु मवद्रोह को प्रश्रय ित दो। तिु िोग

जानते हो मक िेरे अके िे का ित तिु एक सौ आदमियों से भी अमधक कठोर है।''

ु को सम्बोमधत करके िोिे, ''ब्रजेन्द्र िटामवया िें एक िार तिने


मिर उस भयंकर िनष्य ु िझे
ु दंड देन े के मिए मववश मकया

था, अि दूसरी िार मववश ित करो।''

भारती ज्यों-की-त्यों पड़ी थी। उसका शरीर थर-थर कांप रहा था। उसकी पीठ पर प्यार से हाथ िे रते हुए डॉक्टर ने

स्वाभामवक स्वर िें कहा, ''डरो ित भारती, अपूव व को िैं अभय देता हूं।''

भारती ने िहं ु ऊपर नहीं उठाया। उसे मवश्वास भी नहीं हुआ। उसके दाएं हाथ की उंगमियां अपनी िट्ठी
ु िें दिाकर उसे

अपनी ओर खींचकर धीरे-धीरे कहा, ''िेमकन इन िोगों ने तो अभय मदया नहीं, सहज देंग े भी नहीं। िेमकन यह िोग इस

िात को नहीं सिझते मक िैं मजसे अभय दे दूं उसे छुआ भी नहीं जा सकता।'' मिर तमनक हंसकर िोिे, ''अच्छा खाना नहीं

मििता भारती। आधा पेट खाकर ही मदन कट जाते हैं । मिर भी यह िोग सिझते हैं मक िैंन े मजसे अभय दे मदया उसे

छुआ जा सकता है। इन थोड़ी-सी दुििी-पतिी उंगमियों के दिाव से आज भी ब्रजेन्द्र ज ैसे िड़े-से-िड़े िाघ के पंज े चूर-

चूर हो जाएंग।े क्या कहते हो ब्रजेन्द्र।''

ं ु िा िहं ु मिए चपु रह गया। डॉक्टर ने कहा, ''िेमकन अपूव व अि यहां न रहे तो अच्छा है। यह देश
चटगांव को िग धध

चिा जाए। अपूव व ट्रे टर नहीं है। स्वदेश को सम्पूण व हृदय से प्यार करता है। िेमकन िहुत ही दुिवि है। हि िोग सदस्यों से

ु कर सकते हैं मक अि सभा सिाप्त कर दीमजए।'' यह कहकर उन्होंने समित्रा


भी अनरोध ु की ओर देखा।


समित्रा उन्हें कभी तिु और कभी आप कहकर सम्मान के साथ सम्बोमधत मकया करती थी। अि भी उसी तरह िोिी,


''अमधकांश सदस्यों का ित जहां मकसी व्यमक्त मवशेर् की शारीमरक शमक्त की तिना िें िहत्वहीन हो, उसे और जो चाहे

कहा जाए, सभा नहीं कह सकते। िेमकन इस नाटक का अमभनय कराने का ही अगर आपका इरादा था तो दोपहर के पहिे

ही क्यों नहीं िता मदया था?''


डॉक्टर ने कहा, ''अमभनय होता तो अच्छा होता। िेमकन मवशेर् मस्थमत के कारण अगर अमभनय हो भी गया समित्रा तो

यह तो तिु िोगों को िानना पड़ेगा मक अमभनय अच्छा ही रहा।''


रािदास िोिा, ''ऐसा हो सकता है, िैंन े सोचा भी नहीं था।''

डॉक्टर िोिे, ''मित्रता नािक वस्त ु मकतनी क्षणभंगरु है, इस िात को भी तिने
ु कभी सोचा था तिविकर? ऐसा सत्य

संसार िें दुिवभ ही है।''

कृ ष्ण अय्यर ने कहा, ''तिु िोगों की ििाव की एमक्टमवटी सिाप्त हो गई। अि भाग जाना पड़ेगा।''

डॉक्टर िोिा, ''पड़ेगा ही। िेमकन सिय को देखते हुए स्थान छोड़ देना और एमक्टमवटी छोड़ देना एक चीज नहीं है

अय्यर। अगर िहुत मदन तक मकसी स्थान पर मनमश्चंत भाव से रहने को जगह न मििे तो उसके मिए मशकायत करना हि

िोगों को शोभा नहीं देता।'' यह कहकर वह भारती को इशारा करके उठ खड़े हुए और िोिे, ''हीरा मसंह, अपूव व िािू के

िंधन खोि दो। चिो भारती तिु िोगों को मकसी मनरापद स्थान पर पहुंचा दूं।''


हीरा मसंह आदेश पािन करने के मिए िढ़ा तो समित्रा ने कठोर स्वर िें कहा, ''अमभनय के अंमति अंक िें तामियां िजाने


को जी चाहता है। िेमकन यह कोई िात नहीं है। िचपन िें शायद कहीं मकसी उपन्यास िें पढ़ी थी। िेमकन यह यगि

मििन हि िोगों के सािने हो जाता तो और कहीं कोई किी न रह जाती। क्या कहती हो भारती?''

भारती िज्जा से िानो िर जाने की मस्थमत िें हो गई। डॉक्टर ने कहा, ''िमज्जत होने की तो इसिें कोई िात है नहीं भारती।

िमि िैं चाहता हूं मक अमभनय सिाप्त करने के जो िामिक हैं वह मकसी मदन इसिें जरा-सी किी न रखें।'' मिर जेि से


समित्रा की मपस्तौि मनकािकर उसके पास रखकर िोिे, ''िैं इन िोगों को पहुंचाने जा रहा हूं। िेमकन भय की कोई िात

नहीं है। िेरे पास मपस्तौि और भी है।''

डॉक्टर ने कनमखयों से ब्रजेन्द्र की ओर देखकर हंसते हुए कहा, ''तिु िोग जो िजाक िें कहा करते थे मक िैं उल्लू की तरह

अंधरे े िें भी देख िेता हूं, इस िात को तिु िोग आज भूि ित जाना।''

यह कहकर वह अपूव व को साथ िेकर िाहर जाने के मिए त ैयार हो गए।


सहसा समित्रा खड़ी होकर िोिी, ''क्या िांसी की डोरी अपने ही हाथ से अपने गिे िें डािे मिना काि नहीं चि सकता?''


डॉक्टर ने हंसते हुए कहा, ''एक साधारण डोरी से डरने से कै स े काि चिेगा समित्रा?''
ु को िृत्य ु का भय मदखाना मकतना अथवहीन है। यह याद करके समित्रा
मकसी काि को हाथ िें िेन े से पहिे िनष्य ु स्वयं ही

िमज्जत हो गई। िोिी, ''सि कुछ मततर-मितर हो गया। िेमकन मिर कि भेंट होगी?''

डॉक्टर ने कहा, ''कोई आवश्यकता पड़ने पर ही होगी।''

''वह आवश्यकता कभी पड़ेगी।''

''जरूर पडेगी'' यह कहकर अपूव व और भारती को साथ िेकर वह सावधानी से नीचे उतर गए।

जो गाड़ी भारती को िेकर आई थी अभी तक खड़ी थी। गाड़ीवान को जगाकर उसिें तीनों ि ैठकर चि पड़े।

िहुत देर की खािोशी भंग करके भारती ने पूछा, ''भ ैया, हि िोग कहां जा रहे हैं ?''

''अपूव व के घर'' डॉक्टर ने उत्तर मदया।

िेमकन दो िीि चिने के िाद जि गाड़ी रुकवा कर डॉक्टर उतरने िगे तो भारती ने आश्चयव से पूछा, ''यहां क्यों?''

डॉक्टर ने कहा, ''अि िौटूंगा। वह िोग प्रमतक्षा कर रहे होंगे, कुछ-न-कुछ मनणवय तो हो ही जाना चामहए।''

''मनणवय?'' भारती व्याकुि होकर िोिी, ''यह न हो सके गा। आप िेरे साथ चमिए।'' िेमकन यह कहते ही भारती समित्रा


की तरह उदास हो गईं। मिर धीरे से िोिी, ''तम्हारी ु िहुत जरूरत है भ ैया।''
िझे

''िैं जानता हूं। अपूव व िािू, क्या परसों जहाज से घर जा सकें गे?''

अपूव व िोिा, ''जा सकूं गा।''

ु घर जाना होगा।''
भारती िोिी, ''भ ैया िझे


डॉक्टर िोिे, ''नहीं। तम्हारे ु होगी। सिह
कागज-पत्र, 'पथ के दावेदार' का खाता मपस्तौि-कारतूस-नवतारा सि हटा चकी ु


तिाशी िें देशी शराि की िोति और टूटा हुआ िेहिा, पमिस के साहि को इसके अिावा और कुछ हाथ नहीं िगेगा।

ु जरा-सा सो रहने के मिए भी शायद


कि नौ-दस िजे के िगभग घर िौटकर रसोई त ैयार करके खाने-पीने के िाद तम्हें

सिय मिि जाएगा। रात को दो-तीन िजे के िगभग मिर मिलं गा। कुछ खाने-पीने को रखना।''
भारती चपु रही। िन-ही-िन िोिी, इस तरह अत्यमधक सजग न होने पर क्या इस िरणयज्ञ िें कोई साथ आना चाहता

है?

''भ ैया, तिु सिके महत-अमहत की मचंता रखते हो। संसार िें िेरा अपना कोई नहीं है। अपने पथ के दावेदार से िझे
ु मवदा

ित कर देना भ ैया।''

अंधरे े िें ही डॉक्टर ने िारिार मसर महिाकर कहा, ''भगवान के काि से मकसी को मवदा कर देन े का अमधकार मकसी को

ु िदि देनी पड़ेगी।''


नहीं है िेमकन इसकी धारा तम्हें

ु िदि देना।''
भारती ने कहा, ''तम्हीं

डॉक्टर ने इसका उत्तर नहीं मदया। सहसा व्यग्र होकर िोिे, ''भारती, अि िेरे पास सिय नहीं है। िैं जा रहा हूं।'' यह

कहकर पिक झपकते ही अंधरे े िें गिु हो गए।

स्थान की किी के कारण गाड़ी िें दोनों एक-दूसरे से सटकर ि ैठे थे। एक घंटे तक गाड़ी घरघराती हुई चिती रही। िेमकन

दोनों िें कोई िातचीत नहीं हुई। गाड़ी आकर अपूव व के घर के दरवाजे पर रुक गई। भारती दरवाजा खोिकर अपूव व के

साथ उतर आई। उसने गाड़ीवान से पूछा, ''मकतना मकराया हुआ?''


गाड़ीवान ने हंसकर कहा, ''नाट ए पाई-गडनाइट टू यू।'' यह कहकर गाड़ी हांकता हुआ चिा गया।

भारती ने पूछा, ''मतवारी है?''

''हां।''

ऊपर जाकर, दरवाजा खटखटाकर अपूव व ने मतवारी को जगाया। मकवाड़ खोिकर दीपक की रोशनी िें मतवारी की नजर

सिसे पहिे भारती पर पड़ी। अपूव व कि ऑमिस गया था और आज भोर की िेिा िें घर िौटा है रात मिता कर। साथ िें

भारती है। इसमिए मतवारी को सिझने के मिए कुछ िाकी नहीं रहा। क्रोध से उसका सम्पूण व शरीर जिने िगा और मिना

कुछ कहे वह तेजी से अपने मिस्तर पर जाकर चादर ओढ़ कर सो गया।


मतवारी भारती को िहुत प्यार करता था। एक मदन इसी ने उसे आसन्न िृत्य ु के िहं ु से िचाया था। इसमिए ईसाई होने पर

भी श्रध्दा की दृमष्ट से देखता था। िेमकन इधर कुछ मदनों से जो पमरमस्थमत उत्पन्न हुई थी उससे मतवारी के िन िें अपूव व के

संिध
ं िें तरह-तरह की संभव-असंभव सिझकर दुमश्चिाएं जग उठी थीं। यहां तक मक जामत नष्ट होने तक की। सववनाश

की वह िूमतव आज एकदि मतवारी के िन पटि पर साकार अंमकत हो उठी।

उसे इस तरह सो जाते देख अपूव व ने पूछा, ''मकवाड़ िंद नहीं मकए मतवारी?''

भारती िोिी, ''िैं िंद कर देती हूं।''

अपूव व ने अपने सोने के किरे िें जाकर देखा, मिछौना ज्यों-का-त्यों पड़ा है।

भारती िोिी, ''आप आराि कुसी पर ि ैमठए। िैं सि ठीक कर देती हूं।''


अपूव व ने पकारा, 'मतवारी, एक मगिास पानी िा दे।''


पानी की सराही और मगिास की ओर इशारा करके मिछौना मिछाती हुई भारती िोिी, ''सोते हुए आदिी को क्यों जगाते हैं

अपूव व िािू, आप ही िे िीमजए।''

एक ही सांस िें मगिास खािी करके अपूव व ि ैठने जा रहा था मक भारती ने कहा, ''अि वहां नहीं, मिछौने पर सो जाइए।''

अपूव व शांत िािक की तरह िेट गया। िसहरी डािकर भारती उसे चारों ओर से दिाने िगी तो अपूव व ने पूछा, ''तिु कहां

सोओगी?''

भारती ने आराि कुसी की ओर उंगिी उठाकर कहा, ''सवेरा होने िें अि घंटा भर रह गया है। आप सो क्यों नहीं जाते?''

अपूव व ने उसका हाथ पकड़कर कहा, ''वहां नहीं, िेरे पास ि ैठो।''

''आपके पास?'' भारती के आश्चयव का मठकाना नहीं रहा। अपूव व और चाहे ज ैसा भी हो, इन िाििों िें वह कभी आत्म

मवस्मृत नहीं होता था। मकतनी ही रातें उन्होंने एक किरे िें मिताई थीं। िेमकन ियावदा के मवरुध्द उसके आचरण से कोई

इशारा या िात प्रकट नहीं हुई थी।

अपूव व ने कहा, ''यह देखो, उन िोगों ने िेरा हाथ तोड़ मदया, तिु िझे
ु इन िोगों के िीच क्यों खींच िे गईं।''
उसकी िात का अंमति अंश सहसा रुिाई से रुंध गया। भारती िसहरी को एक ओर से उठाकर उसके पास ि ैठ गई।

जांच करके उसने देखा, कसकर िांधने के कारण हाथों िें जगह-जगह कािी नसें उभरकर िू ि आई हैं । अपूव व की आंखों

िें से आंस ू मगर रहे थे। भारती ने आंचि से उन्हें पोंछकर सांत्वना भरे स्वर िें कहा, ''डर की कोई िात नहीं। िैं तौमिया

मभगोकर िपेट देती हूं। दो-एक मदन िें सि ठीक हो जाएगा।''

यह कहकर वह उठ गई और स्नान घर से एक अंगोछा मभगोकर िे आई और उसे हाथ पर िांधकर िहुत ही कोिि स्वर िें

िोिी, ''जरा सो जाने की कोमशश कीमजए, िैं आपके िाथे पर हाथ िे र देती हूं।'' यह कहकर धीरे-धीरे हाथ िे रने िगी।

अपूव व िोिा, ''कि जहाज मििता तो कि ही चिा जाता।''

भारती िोिी, ''परसों ही चिे जाइएगा।''


''गरुजनों ु िना मकया था।''
की िात न िानने का िि है। िां ने िझे

''िां शायद आपको आने देना नहीं चाहती थीं।''

ु कर मदया। उसी का यह िि हुआ। होनहार होकर रहता है। दुगाव-दुगाव कहते हुए परसों जहाज पर
''िेमकन िैंन े अनसना

ि ैठ जाऊं ,'' कहकर उसने िम्बी सांस िी।

ु गहरी सांस िी, वह उसे नहीं जान सका।


िेमकन इसके साथ ही दूसरे व्यमक्त ने जो उसकी सांस की अपेक्षा स ैकड़ों गना


अपूव व िोिा, ''इस िकान िें पांव धरते ही तम्हारे ु ना हुआ। िझे
मपता से झगड़ा हुआ, अदाित िें जिाव ु इसी से चेत जाना

चामहए था।''

भारती चपु रही।

ु िार-िार सावधान मकया। पांच सौ रुपए िहीने की नौकरी चिी गई। इस उम्र िें मकतने िोग पाते हैं ।
''मतवारी ने िझे

मिर यह हाथ िैं िोगों के सािने मदखाऊं गा कै स?े ''

भारती ने धीरे-धीरे कहा, ''ति तक हाथ के दाग मिट जाएंग।े ''


उसके िहं ु से इससे अमधक िात नहीं मनकिी। अपूव व के मसर पर जो हाथ अि चिना नहीं चाहता था। इस अत्यंत

ु व्यमक्त को वह िन-ही-िन प्यार करने िगी है, इस िात को अनभव


साधारण और तच्छ ु करके वह अपने आप ही िाज के

िारे िर सी गई। यह िात उसके दि के िहुत से िोग जान गए हैं । आज अपूव व की जान िचाने जाकर वह उन सिके


सािने अपरामधनी और समित्रा ु व्यमक्त की हत्या करने की नीचता-
की नजरों िें छोटी हो गई है। िेमकन इस अत्यंत तच्छ

ु भी हुआ।
और ओछेपन से वह उन िोगों को िचा सकी है - इस िात को िानकर उसे गवव का अनभव

अपूव व िोिा, ''दाग तो सहज िें जाएगा नहीं। कोई पूछेगा तो क्या उत्तर दूंगा? इसीमिए तो िोग कहा करते हैं मक

िंगामियों के िड़के िी.ए.-एि.ए. पास तो कर िेत े हैं िेमकन िड़ी नौकरी नहीं संभाि सकते।

''अच्छा, अि सो जाइए'' यह कहकर भारती उठ खड़ी हुई।

''िाथे पर थोड़ी देर और हाथ िे र दो भारती।''

''नहीं, िैं िहुत थक गई हूं।''

''तो रहने दो, रात भी अि िाकी नहीं रही।''

भारती पास की कोठरी िें डेक चेयर पर जा ि ैठी। अपूव व के किरे िें अच्छी आराि कुसी थी। िेमकन उस तच्छ
ु आदिी

की उपमस्थमत िें एक ही किरे िें रात मिताने िें आज उसे अत्यंत िज्जा िहसूस हुई। उसे खयाि आया मक मकस तरह


और मकतनी अगाध करुणा से अपूव व समनमश्चत और आसन्न िृत्य ु से िमक्त
ु पा गया है।

िेमकन इतनी िड़ी िात वह ज ैसे एकदि भूि ही गया है। उसने अपने घमनष्ट मित्र तिविकर के प्रमत, अपने दि के प्रमत

और मवशेर् रूप से उस डॉक्टर के प्रमत कै सा जघन्य अपराध मकया है, यह िात उसे याद ही नहीं है। मचंता है तो के वि

िड़ी नौकरी और हाथों के दाग की।

ु मखड़की से भोर का उजािा मदखाई मदया तो उसने चपचाप


जि भारती को सािने वािी खिी ु द्वार खोिा और तेजी से प ैर

िढ़ाकर सड़क पर पहुंच गई।


अगिे मदन तीसरे पहर सभी िातों और सारी घटनाओ ं का मवस्तार से एक-एक कर वणवन कर चकने
ु के िाद अंत िें भारती

ु हैं , ऐसा सिझने की भूि िैंन े कभी नहीं की िेमकन यह भी नहीं सोचा था मक वह इतने
ने कहा-''अपूव व िािू िहान परुर्

ु आदिी हैं ।''


साधारण और तच्छ

ु न होता तो क्या
डॉक्टर सव्यसाची उसकी ओर देखकर गम्भीर स्वर िें िोिे, ''िेमकन िैं जानता था। वह इतना तच्छ


तम्हारे ु कारण से छोड़कर चिा जाता? जाने दो। जान िच गई िमहन।''
इस अथाह प्रेि को इतने तच्छ


इधर-उधर मिखरी चीजों, मवशेर् रूप से िशव पर मिखरी पड़ी पस्तकों के ढेर देखने से ही यह िात सिझ िें आ जाती है मक

कुछ देर पहिे पमिस


ु ु है। उन सिको संवारकर रखती हुई भारती िातचीत कर रही थी।
इस किरे की तिाशी िे चकी

अपने हाथ का काि िंद करके आश्चयव से आंखें उठाकर िोिी, ''तिु हंसी कर रहे हो भ ैया?''

''नहीं तो?''

''जरूर कर रहे हो।''

ु ज ैसे आदिी से, जो िि-मपस्तौि मिए िोगों की हत्या करता मिरे, ऐसे िजाक की आशा करती हो?''
डॉक्टर िोिे, ''िझ

भारती िोिी, ''िैं तो यह नहीं कहती मक तिु िनष्यों


ु की हत्या करते मिरते हो। यह काि तो तिु कर ही नहीं सकते।

िेमकन िजाक के अमतमरक्त यह और क्या हो सकता है? दो-तीन घंटे के अंदर ही जो सि कुछ भूिकर के वि हाथ के दाग

ु कहा था मक िेरा
और पांच सौ रुपए की नौकरी याद रख सका उससे िढ़कर क्षद्रु व्यमक्त तो िैं दूसरा नहीं देख पाती। तिने

िोह है। अच्छी िात है अगर ऐसा हो तो आशीवावद दो मक िेरा यह िोह हिेशा के मिए दूर हो जाए और िैं पूरे तन-िन के


साथ तम्हारे देश के काि िें िग जाऊं ।''


डॉक्टर हंसकर िोिे, ''तम्हारे िहं ु की भार्ा तो िोह काटने के मिए उमचत ही िालि हो रही है, इसिें मििुि संदहे नहीं,


िेमकन कमठनाई यह है मक तम्हारे गिे की आवाज िें इसकी हिी-सी झिक तक नहीं है। ख ैर, वह चाहे जो हो भारती,

हिारे देश का काि तिु मतिभर नहीं कर सकोगी। तिु से तो अपूव व िािू ही िहुत अच्छे हैं , तिु िोगों िें एक मदन

सिझौता भी हो सकता है।''

भारती िोिी, ''इसकी अथव है मक िैं देश को प्यार नहीं कर सकती?''


''अनेक परीक्षाएं देन े से पहिे कुछ नहीं कहा जा सकता।''


''भ ैया, िैं तम्हारी सभी परीक्षाओ ं िें उत्तीणव हो सकूं गी। तम्हारे
ु ु के मिए
काि िें इतने स्वाथव, इतने संदहे और इतनी क्षद्रता

स्थान नहीं है।''

ु िें अपने िाथे को ठोकते हुए िोिे, ''हाए रे िेरे दुभावग्य! देश
उसकी उत्तेजना पर डॉक्टर हंस पडे और मिर नाटकीय िद्रा

ु क्या सिझ मिया है? िम्बी-चौड़ी जिीन, नदी और पहाड़? के वि एक अपूव व के कारण ही तम्हें
का अथव तिने ु जीवन से

अरुमच हो गई। वैरामगन होना चाहती हो। तिु यह नहीं जानती मक यहां स ैकड़ों-हजारों अपूव व ही नहीं उनके िड़े भाई िोग

ु संदहे की
भी रहते हैं । और पराधीन देश का सिसे िड़ा अमभशाप यह कृ तघ्नता ही तो है। मजसकी सेवा करोगी वह ही तम्हें

ु िेच देना चाहें ग।े िूखतव ा और कृ तघ्नता पग-पग पर सईु की तरह


ें ।े मजनके प्राण िचाओगी, वह ही तम्हें
नजरों से देखग


पांव िें चभती ु मत। कोई पास तक नहीं ििाएगा।
रहेगी, यहां न श्रध्दा है, न सहानभू ु कोई कोई सहायता देन े नहीं आएगा।


मवर् ैिा नाग सिझकर िोग दूर हट जाएंग।े देश प्यार करने का यही परस्कार है भारती। यमद इससे अमधक का दावा

करना हो तो वह परिोक िें ही हो सकता है। इतनी भयंकर परीक्षा तिु क्यों देन े जाओगी िमहन! िैं तम्हें
ु आशीवावद देता हूं

ु से रहो। िैं मनमश्चत रूप से जानता हूं मक अपनी सिस्त दुमवधाओ ं और संस्कारों को दिाकर मकसी
मक अपूव व के साथ सख


मदन वह तम्हारे िूल्य को अवश्य जान जाएगा।''

ु ं से भर उठीं। कुछ देर चपचाप


भारती की आंखें आंसओ ु िहं ु झकाए
ु रहकर उसने पूछा, ''क्या तिु िझ
ु पर मवश्वास न कर

ु मवदाकर देना चाहते हो भ ैया?''


पाने के कारण मकसी तरह िझे

उसके इस सरि और संकोच रमहत प्रश्न का कोई ऐसा ही सीधा-सा उत्तर शायद डॉक्टर के होंठों पर नहीं आया। हंसकर


िोिे, ''तम्हारी तरह ििता, िाया कोई सहज िें छोड़ सकता है िमहन? िेमकन कि तिु अपनी आंखों से ही तो देख चकी


हो मक इसिें मकतनी चोरी-मछपा या मकतनी महंसा और मकतना भीर्ण क्रोध भरा हुआ है। तम्हारी ओर देखने से िगता है

मक तिु इन कायों के मिए नहीं हो। तम्हें


ु इसिें खींच िाना उमचत नहीं हुआ। तिसे
ु काि िेन े का एक मदन है-वह मदन

मजस मदन िेरे मिए छुट्टी िेन े का परवाना आएगा।''

ु ं को न रोक सकी। िेमकन िौरन हाथ से पोंछकर िोिी, ''तिु भी अि इन िोगों के साथ ित
इस िार भारती अपने आंसओ

रहो भ ैया।''

उसकी िात सनकर डॉक्टर हंस पड़े, िोिे, ''इस िार िहुत ही िूखतव ा की िात हो गई भारती।''

भारती ने मवचमित हुए मिना कहा, ''िैं जानती हूं। िेमकन यह सभी िोग िहुत ही भयंकर और मनष्ठुर हैं ।''

''और िैं?''

''तिु भी िड़े मनदवयी हो।''


''समित्रा कै सी िगी भारती?''

भारती का मसर झकु गया। िज्जा के कारण उत्तर न दे सकी। िेमकन उत्तर िांगा भी नहीं गया।

कुछ देर दोनों चपचाप


ु ि ैठे रहे। िेमकन इस छोटी-सी खािोशी िें ही उस आश्चयविय व्यमक्त के उससे भी अमधकर

आश्चयविय हृदय के रहस्य से आवृत्त अंतस्थि िें सहसा मिजिी-सी कौंध उठी।

िेमकन दूसरे ही पि डॉक्टर ने सि कुछ दिाकर िच्चे की तरह मसर महिाकर मस्नग्ध स्वर िें कहा, ''अपूव व के साथ तिने

िहुत िड़ा अन्याय मकया है भारती। इतना भयंकर कांड इसिें मछपा है मक इसकी उस िेचारे ने कल्पना भी शायद नहीं की

ु सच कहता हूं, इतना छोटा, इतना क्षद्रु वह मििुि नहीं है। नौकरी करने मवदेश आया है, घर िें िां है, भाई
होगी। तिसे

ु धव हैं । सांसामरक उन्नमत करके दस-पांच िें िड़ा आदिी िनेगा-यही उसकी आशा है। मिखना-पढ़ना
हैं । देश िें िंध-िां

ु करता है। और वह िंगािी िड़कों की तरह वास्तव िें


सीखा है। भिे आदिी का िड़का है। पराधीनता की िज्जा अनभव

ु कहा मक 'पथ के दावेदार' के सदस्य िन जाओ, ति उसने कह मदया,


देश का कल्याण चाहता है। इसीमिए जि तिने


'िहुत अच्छा।' तम्हारी िात िान िेन े से उसका कभी कोई अमहत नहीं होगा, उसे मवश्वास है। इस पराए देश िें, आपद-

ु एक िात्र सहारा थीं। पर तिु ही उसे अचानक िृत्य ु के िहं ु िें धके ि दोगी, क्या वह जानता था?''
मवपद िें तम्हीं

भारती ने आंख पोंछने के मिए िहं ु नीचा करके कहा, ''तिु उनके मिए इतनी वकाित क्यों करते हो? वह इसके योग्य नहीं

है। सारी िातें कि उनके िहं ु से ही सनु चकी


ु हूं। इसके िाद उन पर श्रध्दा रखना उमचत नहीं है।''


डॉक्टर ने हंसकर कहा, ''जीवन िें अगर एक अनमचत काि तिु कर डािोगी तो क्या होगा? तिने
ु ध्यान से नहीं देखा

भारती, िेमकन िैंन े देखा है। उन िोगों ने जि उसे रस्सी से िांध तो वह अवाक े् हो गया। उन िोगों ने पूछा, ''तिने
ु यह

सि िातें कही हैं ।'' उसने कहा, ''हां।'' उन िोगों ने कहा, ''इसका दंड है िृत्य,ु तिको
ु िरना होगा।''- इसके उत्तर िें वह

टकटकी िांध े ताकता रह गया। िैं जानता हूं, उस सिय उसकी मवह्नि आंखें मकसी को खोज रही थीं। इसीमिए िैंन े तम्हें


ििाने ु
के मिए आदिी भेजा था िमहन। अि उसने तिको चाहे जो भी कुछ कहा हो भारती, िेमकन इस धक्के से वह अि

तक शायद संभि नहीं सका है।''

ु यह सि िातें सना
भारती अपने आप पर कािू न रख सकी। आंखों से झर-झर आंस ू िहाते हुए िोिी, ''िझे ु रहे हो भ ैया?

तिु से िढ़कर अमधक मवपमत्त िें और कोई नहीं पड़ा। मिर भी के वि िेरा िहं ु देखकर उन्हें िचाने के मिए तिु ने घर-िाहर

दुश्िन प ैदा कर मिए।''

''यह िात तो है।''

''मिर तिु उनको िचाने क्यों गए। िताओ?''

''अपूव व को िचाने गया? अरे मछ:.... िैं िचाने गया। भगवान की इस अिूल्य कृ मत को, जो वस्त ु तिु िोगों की तरह

साधारण नारी को ध्यान िें रखकर त ैयार हुई है। क्या कोई िूख व ऐसा है जो ब्रजेन्द्र ज ैसे ििवरों को उसे नष्ट कर डािने के

ु के प्राणों का िूल्य क्या हि िोगों की


मिए दे देता? के वि इतनी ही िात थी भारती। ....के वि इतनी है। अन्यथा िनष्य

दृमष्ट िें कुछ है? एक प्राणी कोड़ी के िरािर नहीं।''....कहकर डॉक्टर हंसने िगे।


भारती ने आंखें पोंछते-पोंछते कहा, ''क्यों हंसते हो भ ैया? तम्हारी हंसी देखकर िेरे िदन िें आग िग जाती है। जी चाहता

ु आंचि िें िांधकर मकसी जंगि िें िे जाकर सदा के मिए मछपाकर रख दूं। जो िोग तम्हें
है, तम्हें ु पकड़कर िांसी देंग,े वह


ही क्या तम्हारा िूल्य जानते हैं ? उन्हें क्या ज्ञान हो जाएगा मक उन्होंने संसार का मकतना िड़ा सववनाश कर डािा है? अपने


देश के ही आदिी तिको ु
हत्यारा, डाकू , खून का प्यासा, न जाने क्या-क्या कहते हैं । िेमकन िैं सोचती हूं मक तम्हारे हृदय

िें इतना स्नेह, और इतनी करुणा है, मक तिु इन िोगों के साथ कै स े हो?''

ु एक कहानी सनाता
डॉक्टर ने कहा, ''तम्हें ु ु था। तिने
हूं। नीिकांत जोशी नाि का एक िराठा यवक ु उसे नहीं देखा।

ु देखा है, उसकी याद आती रहती है। वह भी ठीक तम्हारे


िेमकन िैंन े जि से तम्हें ु ज ैसा ही था। रास्ते िें िदेु को िे जाते

देखकर उसकी आंखों से आंस ू मगरने िगते थे। एक रात हि दोनों ने कोिम्बो के एक पाकव िें आश्रय मिया। पेड़ के नीचे

पड़ी एक िेंच पर सोने के मिए गए तो देखा, उस पर एक आदिी सोया पड़ा है। आदिी की आहट पाते ही वह कहने

िगा-'पानी पानी.....।' चारों और असह्य दुगांध आ रही थी। मदयासिाई जिाकर उसके िहं ु की ओर देखते ही सिझ िें
आ गया मक उसे हैजा हो गया है। नीिकांत उसकी िीिारी िें िग गया। पौ िटने िगी तो िैंन े कहा, 'जोशी' यह आदिी

सांझ के अंधरे े िें नौकरों की नजर से िचकर इस पाकव िें रह गया है। िेमकन सवेरा होने पर यह यहां नहीं रहने पाएगा।

ु िजमरि
हि िोगा वारंट शदा ु हैं । यह तो िरेगा ही, साथ ही हि िोग भी िं स जाएंग।े चिो, यहां से मखसक चिें ।'....

नीिकांत रोने िगा। िोिा, 'इस हाित िें इसे छोड़कर कै स े जाऊं भाई। तिु जाओ। िैं यहीं रह जाता हूं।' िैंन े िहुत

सिझाया, िेमकन जोशी को वहां से नहीं महिा सका।''

भारती ने भयभीत होकर पूछा, ''इसके िाद क्या हुआ?''

डॉक्टर ने कहा, ''सिझदार आदिी था। सवेरा होने से पहिे ही उसने आंखें िूदं िीं। ति िैं नीिकांत को वहां से हटा

सका। पिभर िौन रहकर, िम्बी सांस भरकर िोिे, ''मसंगापरु िें जोशी को िांसी हो गई। वह सेना के स ैमनकों के नाि

िता देन े पर उसे क्षिा मकया जा सकता था, गवन विेंट ने िहुत कोमशशें कीं। िेमकन जोशी ने जो एक िार िना मकया तो

मिर उसिें कोई अंतर नहीं हुआ। अंत िें उसे िांसी दे दी गई, मजनके मिए उसने प्राण मदए, उन्हें वह अच्छी तरह


पहचानता भी नहीं था अि भी वैस े िड़के इस देश िें जन्म िेत े हैं भारती। नहीं तो िैं भी शेर् जीवन तम्हारे आंचि के

नीचे मछपाकर मिता देन े को सहित हो जाता।''

भारती ने एक िम्बी सांस िी।

डॉक्टर िोिे, ''नर-हत्या करना िेरा व्रत नहीं है िमहन।''

''िेमकन आवश्यकता पड़ने पर?''

''िेमकन ब्रजेन्द्र की आवश्यकता और सव्यसाची की आवश्यकता एक नहीं है।''


भारती िोिी, ''िैं जानती हूं, िेमकन िैं तम्हारी ही आवश्यकता की िात पूछ रही हूं भ ैया।''


डॉक्टर ने यह सनकर धीरे-धीरे कहा, ''िेरी उस आवश्यकता का मदन कि आएगा, कौन जानता है? िेमकन भारती तिु

यह जानना ित चाहो। उसके स्वरूप को तिु कल्पना िें भी सहन न कर पाओगी।''

''इसके अमतमरक्त क्या और कोई िागव नहीं है?''

''नहीं।''

भारती हत िमध्द-सी हो गई। व्याकुि होकर िोिी, ''इसके अमतमरक्त और कोई िागव नहीं हो सकता भ ैया?''


''नहीं, िागव अवश्य है। स्वयं को भिावे िें डािने के अनेक िागव हैं िेमकन सत्य तक पहुंचने के मिए और कोई दूसरा िागव

नहीं है।''

भारती स्वीकार न कर सकी। िधरु स्वर िें िोिी, ''भ ैया, तिु ज्ञानी हो। इस एकिात्र िक्ष्य को सािने रखकर तिु संसार


भर िें घूि आए हो। तम्हारी जानकामरयों की सीिा नहीं है। िैंन े तिु ज ैसा िहान व्यमक्त और कोई नहीं देखा। िझे
ु तो ऐसा


िगता है मक तम्हारी ु
सेवा करते हुए िैं सारा जीवन मिता सकती हूं। तम्हारे साथ िेरा तकव करना शोभा नहीं देता। िोिो,

िेरे अपराध क्षिा कर दोगे?''

ु क्या अपराध मकया है?''


डॉक्टर ने हंसकर कहा, ''भिा तिने

े ों को अपना आत्मीय सिझकर इतनी िड़ी हुई हूं।


भारती उसी मस्नग्ध मवनय से िोिी, ''िैं ईसाई हूं। िचपन से ही अंग्रज


आज उनके प्रमत िन िें घृणा प ैदा करते हुए िहुत कष्ट होता है, िेमकन यह िात तम्हारे अमतमरक्त और मकसी के सािने नहीं

कह सकती। मिर भी तिु िोगों की तरह ही िैं भारतवर्व के िंग देश की िड़की हूं। िझ
ु पर अमवश्वास ित करो।''


उसकी िात सनकर व अपना दायां हाथ उसके िाथे पर रखकर कहा, ''यह आशंका क्यों करती हो
डॉक्टर ने स्नेहपूवक

भारती, तिु जानती हो, तिु पर िेरा मकतना मवश्वास है। तम्हें
ु मकतना स्नेह करता हूं।''

भारती िोिी, ''जानती हूं। और क्या िेरी ओर से ठीक यही िात तिु नहीं जानते भ ैया? तम्हें
ु भय नहीं है। तिु को भय

ु नहीं कह सकती मक तिु अि इस िकान िें ित आना। िेमकन यह भी


मदखाया भी नहीं जा सकता। के वि इसीमिए तिसे


जानती हूं मक आज रात के िाद मिर कभी-नहीं नहीं, सो नहीं। शायद िहुत मदनों तक मिर भेंट न हो। उस मदन जि तिने

े जामत पर भीर्ण आरोप िगाया था, िैंन े प्रमतवाद नहीं मकया था। िेमकन ईश्वर से मनरंतर यही प्राथवना करती
सारी अंग्रज


रही हूं मक इतना िड़ा मवद्वेर् कहीं तम्हारे अंतर के सम्पूण व सत्य को ढक न दे। भ ैया, मिर भी िैं तिु िोगों की ही हूं।''

डॉक्टर िोिे, ''िैं जानता हूं तिु हिारी हो।''

''तो इस िागव को तिु त्याग दो।''

डॉक्टर चौंक पड़े, ''कौन-सा िागव?''


''मवप्लववामदयों का यह िागव।''

''छोड़ने को क्यों कहती हो?''


भारती ने कहा, ''तिको ु
िैं िरने नहीं दे सकती। समित्रा ु चाहती हूं-
िरने दे सकती है, िेमकन िैं नहीं। िैं भारत की िमक्त

मनष्कपट और मनस्संकोच भाव से। दुिवि, पीमड़त और भूख-े नंग े भारतवामसयों के मिए अन्न-वस्त्र चाहती हूं। स्वाधीनता के

आनंद का उपभोग करना चाहती हूं। इतने िड़े सत्य तक पहुंचने के मिए इस मनिवि कायव के अमतमरक्त और कोई िागव नहीं

ु के वि इसी िागव को जाना है। सृमष्ट के आरम्भ से आज तक के


है, िैं ऐसा सोच भी नहीं सकती। मवश्व भ्रिण करके तिने


स्वाधीनता के स ैकड़ों तीथवयामत्रयों के पद मचद्द ही तम्हारी ु
दृमष्ट िें स्पष्ट हो उठे हैं । िेमकन मवश्व िानव की एकांत सदिमध्द

की धारा क्या इस प्रकार सिाप्त हो गई है मक इस रक्त रेखा के अमतमरक्त मकसी िागव का मचद्द कभी मदखाई ही नहीं देगा?


ऐसा मनष्ठुर मवधान मकसी प्रकार भी सत्य नहीं हो सकता। भ ैया, िानव की इतनी िड़ी पमरपूणतव ा तम्हारे अमतमरक्त िैंन े और

कहीं भी नहीं देखी। मनष्ठुरता के िहु प्रचमित िागव पर अि तिु ित चिो। वह द्वार शायद आज भी िंद है। उसे हि िोगों


के मिए खोि दो। मवश्व के सिस्त प्रामणयों को प्यार करते हुए हि तम्हारा ु
अनसरण करते हुए िढ़ते रहें ।''

भारती के मसर पर हाथ रखकर, दो-चार िार थपमकयां देकर डॉक्टर िोिे, ''अि सिय नहीं है िमहन, िैं जा रहा हूं।''

''कोई उत्तर नहीं दोगे भ ैया?''


''भगवान तम्हारा भिा करें ,'' उत्तर िें िस इतना कहकर डॉक्टर धीरे-धीरे िाहर मनकि गए।

अध्याय 7

जििागव से आने वािे शत्र ु के जियानों को रोकने के मिए नगर के अंमति छोर पर नदी के मकनारे मिट्टी का एक छोटा-सा

मकिा है। उसिें संतरी अमधक नहीं रहते। के वि तोपें चिाने के मिए कुछ गोरे गोिं दाज रहते हैं । अंग्रज
े ों के इस मवघ्नहीन

शांमतकाि िें यहां मवशेर् कड़ाई नहीं थी। प्रवेश की िनाही है। िेमकन अगर कोई भूिा-भटका व्यमक्त सीिा के अंदर पहुंच

जाता तो उसे भगा देत े हैं । िस इतना ही। भारती कभी-कभी अके िी यहां आ ि ैठती थी। मजन िोगों पर मकिे की रक्षा का
भार था उन िोगों ने उसे देखा न हो, ऐसी िात नहीं थी। िेमकन शायद भिे घर की िमहिा सिझकर वह िोग आपमत्त

नहीं करते थे।

सूय व अभी-अभी अस्त हुआ था। अंधरे ा होने िें अभी कुछ देर थी। पमक्षयों की आवाजें इधर-उधर िंडरा रही थीं।

सहसा नदी के दायीं ओर के िोड़ से छोटी-सी रोशनी शेम्पने नाव सािने आ गई। नाव िें िल्लाह के अमतमरक्त और कोई

नहीं था। भारती के चेहरे की ओर देखकर उसने अपनी िंगिा भार्ा िें कहा, ''िां, उस पार जाओगी? एक आना देन े से

ही उस पार पहुंचा दूंगा।''

भारती िोिी, ''नहीं।''

िल्लाह ने कहा, ''अच्छा दो प ैसे ही दे दो-चिो।''

भारती िोिी, ''नहीं भ ैया, िेरा घर इसी पार है।''

ु घूिा िाऊं ,'' यह कहकर उसने नाव घाट पर िगा


िल्लाह गया नहीं। जरा हंसकर िोिा, ''प ैसा न हो तो न दो। चिो तम्हें

दी।


भारती भयभीत हो उठी। अंधरे ा और मनजवन स्थान। वह जानती थी मक चटगांव के िसििान िल्लाह िहुत ही दुष्ट होते हैं ।

खड़ी होकर क्रुध्द स्वर िें िोिी, ''चिे जाओ वरना पमिस
ु ु लं गी।''
ििा

ु है िेमकन अभी तक शौक नहीं गया। िेि-िटेु दार लुं गी


िल्लाह डरकर रुक गया। उसकी उम्र पचास के ऊपर पहुंच चकी


पहने है। िेमकन तेि और िैि से वह िहुत ही गंदी हो गई हुई। शरीर पर कीिती फ्ाक कोट है। शायद मकसी पराने

कपड़ों की दुकान से खरीदा गया है। मसर पर िेिदार मचथडे की टोपी है।

सहसा पहचानकर भारती िोिी, ''भ ैया, आपका चेहरा चाहे ज ैसा ही क्यों न हो, आप तो गिे की आवाज तक को िदिकर


उसे िसििान िना चकेु हो।''


िल्लाह िोिा, ''जाऊं या पमिस ु रही हो।''
को ििा

भारती िोिी, ''पमिस ु
को ििाकर ु
तिको मगरफ्तार करा देना ही उमचत होगा। अपूव व िािू की इच्छा को अपूण व क्यों रहने

दूं।''

िल्लाह िोिा, ''उसी की िात कर रहा हूं। आओ, ज्वार अि अमधक देर तक नहीं रहेगा। अभी दो कोस रास्ता चिना है।''

भारती नाव पर जा ि ैठी। उसे ठे िकर डॉक्टर साहि पक्के िल्लाह की तरह आगे िढ़े। ज ैसे दोनों हाथों से पतवार चिाना ही

उनका पेशा हो।

''िािा जहाज चिा गया, देख मिया?'' उन्होंने पूछा।

''हां।''

''अपूव व उस ओर के िस्टव क्लास वािे डेक पर थे।''

''नहीं।''

डॉक्टर िोिे, ''उनके डेरे पर या ऑमिस िें जाने का कोई उपाय नहीं था। इसमिए जेटी के एक ओर शेम्पन िगाकर िैं

ऊपर खड़ा था। हाथ उठाकर सिाि करते ही....?''

भारती ने िेच ैन होकर कहा, ''मकसके मिए?- मकसके कारण इतना िड़ा और भयानक काि तिु करने गए थे भ ैया?''

डॉक्टर ने मसर महिाकर कहा, ''िैं ठीक उसी कारण से गया था मजस कारण तिु यहां अके िी ि ैठी हो िमहन।''

भारती रोती हुई िोिी, ''नहीं, मििुि नहीं। यहां तो िैं अक्सर ही आती रहती हूं। मकसी के मिए नहीं आती। क्या उन्होंने

ु पहचान मिया।''
तम्हें

ु पहचान िेत।े
ं े िढ़ाना सहज काि नहीं है। िेमकन िैं चाहता था मक अपूव व िािू िझे
''नहीं।'' डॉक्टर ने कहा, ''दाढ़ी-िूछ

ु देखने की उन्हें िुस वत ही नहीं थी।''


पर वह इतने व्यस्त थे मक िझे

''इसके िाद क्या हुआ?''

''मवशेर् कुछ नहीं।''


''मवशेर् कुछ नहीं हुआ, यह तो िेरे भाग्य की िात है। पहचान िेन े पर वह तम्हें
ु मगरफ्तार करा देत े और इस अपिान से

ु आत्महत्या करनी पड़ती। नौकरी चिी गई, िेमकन प्राण तो िच गए।''


िचने के मिए िझे


डॉक्टर चपचाप नाव खेन े िगे। कुछ देर िौन रहकर भारती ने पूछा, ''क्या सोच रहे हो भ ैया?''

''िताओ तो जानू।ं ''

''िताऊं ?-तिु सोच रहे हो मक भारती िड़की होकर भी िनष्य


ु को िेरी अपेक्षा अमधक पहचान सकती है। अपनी प्राण रक्षा

के मिए कोई भी पढ़ा-मिखा आदिी इतनी नीचता कर सकता है-िज्जा नहीं, कृ तज्ञता नहीं, िोह, ििता नहीं-खिर नहीं

दी, खिर देन े की कोमशश नहीं की। भय के कारण जानवर की तरह भाग गए। िैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। िेमकन

भारती असंमदग्ध रूप से जान गई थी-'यही सोच रहे हो न भ ैया?''

डॉक्टर ने कोई उत्तर नहीं मदया।

''िेरी ओर एक िार देखो न भ ैया?''

ु होकर िनष्यता
डॉक्टर ने ज्यों की भारती की ओर देखा, उसके होंठ थर-थर कांपने िगा। िोिी, ''िनष्य ु की कहीं भी कोई

िात नहीं, यह कै स े हो सकता है भ ैया?''

यह कहकर उसने दोनों दांतों को भींचकर अपने होंठों का कांपना रोक मिया। िेमकन आंखों की कोरों से आंस ू िहने िगे।

डॉक्टर ने न तो सहिमत प्रकट की, न प्रमतवाद मकया। सांत्वना तक की कोई िात उसके िहं ु से नहीं मनकिी। के वि क्षण

ु िगी आंखों की दीमप्त कुछ िीकी पड़ गई हो।


भर के मिए ऐसा िगा ज ैसे उसकी सरिा

इरावती की यह छोटी शाखा कि गहरी और कि चौड़ी होने के कारण स्टीिर और िड़ी नावें नहीं चिती थीं। नाव कहां

जा रही है, भारती को पता नहीं था।

ु िगी तो यह देखकर उसने चमकत होकर


अचानक एक िहुत िड़े वृक्ष की ओट िें िेिों और वृक्षों से भरे नािे िें नाव घसने

ु कहां िे जा रहे हो भ ैया?''


पूछा, ''िझे

''अपने डेरे पर।''


''वहां और कौन रहता है?''

''कोई नहीं।''

ु िेरे डेरे पर कि पहुंचाओगे?''


''िझे

''पहुंचा दूंगा। आज रात या कि सवेर।े ''

ु जहां से िाए हो वही पहुंचा दो।''


भारती िोिी, ''नहीं भ ैया, यह नहीं हो सकता। िझे

ु तिसे
''िेमकन िझे ु िहुत-सी िातें कहनी हैं भारती।''

ु वापस पहुंचा
भारती ने कोई उत्तर नहीं मदया। उसी तरह मसर महिाकर आपमत्त प्रकट करती हुई िोिी, ''नहीं, िझे

आओ।''

ु िझ
''िेमकन क्यों? क्या तम्हें ु पर मवश्वास नहीं?''

ु चपु ि ैठी रही।


भारती मसर झकाए

ु इस प्रकार मकतनी ही रातें अपूव व के साथ मिताई हैं । क्या वह िझसे


डॉक्टर ने कहा, ''तिने ु िढ़कर मवश्वासपात्र था


तम्हारा?''

भारती चपु रही। उसने हां-ना, कुछ नहीं कहा।

नािे िें मजतना अंधरे ा था उतना ही वह तंग भी था। दोनों मकनारों पर खड़े पेड़ों की डामियां िीच-िीच िें उनके शरीर पर

आकर िगने िगीं।

ु िे जा रहा हूं वहां से तम्हारा


डॉक्टर ने कहा, ''भारती, आज िैं तम्हें ु उध्दार कर सके , संसार िें ऐसा कोई नहीं है। िेमकन

िेरे िन की िात सिझने िें शायद अि कुछ शेर् न रहा होगा।''

यह कहकर वह जोर से हंसने िगे। अंधरे े िें उनके चेहरे को भारती न देख सकी। िेमकन उनकी हंसी ने ज ैसे उसे

मधक्कारा। िहं ु ऊपर उठाकर शंकारमहत स्वर िें िोिी, ''तम्हारे


ु ु िझ
िन की िात सिझ सकूं , इतनी िमध्द ु िें नहीं है।


िेमकन िैं तम्हारे ु क्षिा करो।''
चमरत्र से पमरमचत हूं। अके िी रहना िेरे मिए उमचत नहीं है इसीमिए कह रही हूं भ ैया, िझे
डॉक्टर ने कुछ देर चपु रहकर स्वाभामवक शांत स्वर िें कहा, ''भारती, तम्हें
ु छोड़कर आने िें िझे
ु कष्ट होता है। तिु िेरी


िमहन हो, िेरी िां हो-यमद स्वयं यह मवश्वास न होता तो िैं इस रास्ते से नहीं आता। िेमकन तम्हारा िूल्य दे सके ऐसा

ु िेरे अमतमरक्त संसार िें और कोई नहीं है। इसके सौवें अंश का भी एक अंश अगर अपूव व सिझ जाता तो उसका
िनष्य

जीवन साथवक हो जाता। तिु संसार िें िौट जाओ दीदी! हि िोगों के िीच अि ित रहो। के वि तम्हारी
ु िात कहने के

मिए ही िैं अपूव व से मििने गया था।''

भारती चपु रही। आज एक िात तक न कहकर अपूव व चिा गया। नौकरी करने ििाव आया था। थोड़े मदनों का ही तो

पमरचय था।

वह ब्राह्मण का सदाचारी िड़का है। उसका देश है, सिाज है, घर-द्वार है, आत्मीय-स्वजन हैं । और भी क्या-क्या है। और

भारती ईसाई की िड़की है। उसका देश नहीं। घर नहीं। िाता-मपता नहीं। अपना कहने के मिए कोई भी नहीं है।

पास ही पेड़-पौधों के िीच हिी-सी रोशनी मदखाई देन े िगी। डॉक्टर ने इशारा करके कहा, ''यहीं िेरा डेरा है। खूि


आजाद था। पता नहीं कै सी िाया िें जकड़ गया हूं। तम्हारे ु एक मनरापद आश्रय मिि गया
मिए ही मचंता िें पड़ा हूं। तम्हें

है, काश! जाने से पहिे इतना ही देख िेता।''

भारती आंस ू पोंछकर िोिी, ''िैं तो अच्छी हूं भ ैया।''

डॉक्टर ने एक िम्बी सांस िेकर कहा, ''कहां अच्छी तरह हो िमहन। िेरे एक आदिी ने आकर िताया मक तिु घर िें नहीं

ु जेटी पर पा सकूं गा। वहां जाने पर तिसे


हो। सोचा, तम्हें ु भेंट न को सकी। अभागा तम्हारा
ु च ैन िेकर ही नहीं भागा,


तम्हारा साहस भी छीन िे गया है।''

इस िात का पूरा अथव न सिझकर भारती चपु ही रही।

डॉक्टर ने कहा, ''उस मदन रात को मनमश्चंत िन से िेरे मिए मिछौना छोड़कर तिु नीचे सो गई थीं। तिने
ु हंसकर कहा था-

भ ैया, तिु क्या इन्सान हो जो तिसे


ु डर िगेगा। तिु सो जाओ। िेमकन आज वह साहस नहीं रहा। अपूव व मनभवय करने

ु नहीं है। मिर भी वह पास ही था। इसमिए शायद ऐसी आशंका तम्हारे
योग्य िनष्य ु िन िें कि भी प ैदा नहीं हुई। आश्चयव

तो यह है मक तिु ज ैसी िड़की की भय िक्त


ु स्वाधीनता को भी उस ज ैसा असिथव िनष्य
ु इतनी आसानी से तोड़कर जा

सकता है!''
भारती िीठे स्वर िें िोिी, ''िेमकन उपाय क्या है भ ैया?''


''उपाय शायद न हो। िेमकन िमहन, तम्हारे ु
चमरत्र पर संदहे करने वािा आज कोई नहीं है। मिर अगर तम्हारा ही िन

रात-मदन स्वयं पर संदहे करता रहे तो तिु जीओगी कै स?े ''

इस तरह अपने हृदय का मवश्लेर्ण करके देखने का सिय भारती के पास नहीं था। उसकी श्रध्दा और आश्चयव की सीिा न

रही, िेमकन वह िौन ही रही।

डॉक्टर िोिे, ''िैं एक और िड़की को जानता हूं। वह रूसी है िेमकन उसकी िात जाने दो। कि तिु िोगों की भेंट होगी


नहीं जानता। िेमकन िगता है एक मदन जरूर होगी। भगवान करे मक न हो। तम्हारे ु
प्रेि की तिना नहीं है। वहां से अपूव व

को कोई हटा नहीं सके गा। िेमकन स्वयं को उसके ग्रहण करने योग्य िनाए रखने की आज से जो अत्यंत सतकव तापूण व


जीवनव्यापी साधना आरम्भ होगी, उसकी प्रमतमदन के असम्मान की ग्िामन तम्हारे ु
िनष्यत्व को एकदि छोटा िना देगी


भारती। जहां ऐसे शध्द-पमवत्र हृदय का िूल्य नहीं वहां िन को इसी तरह िहिाना पड़ता है। कौन जाने भाग्य िें उतने

मदनों तक जीमवत रहने का सिय िेरे मिए है या नहीं। िेमकन यमद हो दीदी तो िमहन कहकर गवव करने के मिए सव्यसाची

के पास कुछ भी शेर् नहीं रहेगा।''

भारती ने पूछा, ''तो तिु िझे


ु क्या करने को कहते हो? तिने
ु ही तो िझसे
ु िार-िार संसार िें िौट जाने को कहा था।''

''िेमकन मसर नीचा करके जाने को नहीं कहा था।''

''िेमकन मस्त्रयों का ऊं चा मसर तो कोई भी पसंद नहीं करता।''

''ति ित जाना।''

भारती ने हंसकर कहा, ''तिु मनमश्चंत रहना भ ैया, िेरा जाना नहीं हो सके गा। सारे रास्तों को अपने हाथ से िंद करके के वि

एक रास्ता खोि रखा था, वह भी आज िंद हो गया, यह तिु देख आए हो। अि जो रास्ता तिु िझे
ु मदखा दोगे उसी रास्ते

ु ित ििाना।
से चलं गी। िेरी के वि इतनी-सी प्राथवना स्वीकार कर िेना मक अपने भयंकर रास्ते पर िझे ु भगवान के सिान

अप्राप्य वस्त ु को पाने के भी जि इतने िागव हैं ति तम्हारे


ु िक्ष्य तक पहुंचने के मिए रक्तपात के अमतमरक्त क्या दूसरा िागव

ु मििुि सिाप्त नहीं हो गई है। कहीं-न-कहीं दूसरा िागव अवश्य ही है।


नहीं है? िेरा दृढ़ मवश्वास है मक िानव की िमध्द
ु उसका पता िग गया था मजस रात तिु
आज से िैं उसी पथ की खोज िें मनकलं गी। भीर्ण दु:ख क्या है-उस रात को िझे

िोग उनकी हत्या करने के मिए त ैयार हो गए थे।''

डॉक्टर ने कहा, ''यही िेरा डेरा है,'' यह कहकर छोटी नाव को मकनारे पर ठे िकर वह उतर पड़े। मिर हाथ िें िािटनें

िेकर रास्ता मदखाते हुए िोिे, ''जूत े उतारकर आओ। प ैरों िें कीचड़ िगेगी।''


भारती चपचाप ु और िेकार तख्तों से काठ का एक िकान िना
उतर आई। सागौन के चार-पांच िोटे -िोटे खूटं ों पर पराने

था। टूटी-िू टी िकड़ी के सीढ़ी से रस्सी पकड़कर ऊपर पहुंचने पर जि सात-आठ वर्व के िड़के ने आकर दरवाजा खोिा

तो भारती आश्चयव से अवाक े् रह गई। अंदर पांव रखते ही देखा, िशव पर चटाई मिछाए कि उम्र की एक ििी स्त्री सो रही

ु डि मवर्ाक्त हो उठा है। िशव पर चारों


है। तीन-चार िच्चे जहां-तहां पडे हुए हैं । एक असहनीय दुगांध से किरे का वायिं

ओर भात, िछिी के कांटे और प्याज-िहसनु के मछिके पड़े हैं । पास ही दो-तीन कामिख िगी मिट्टी की छोटी-छोटी

हंमडया पड़ी हैं ।

डॉक्टर के पीछे-पीछे भारती दूसरे किरे िें पहुंच गई। कहीं भी मकसी सािान का झिेिा नहीं। िशव पर चटाई मिछी थी।

एक ओर दरी िपेटकर रखी हुई थी। डॉक्टर ने दरी झाड़कर मिछाते हुए भारती से ि ैठने के मिए कहा। ििी स्त्री ने कुछ

पूछा। डॉक्टर ने ििी भार्ा िें ही उसका उत्तर मदया। थोड़ी देर िाद ही वह िड़का एक तश्तरी िें थोड़ा-सा भात, प्यािी


िें तरकारी और पत्ते पर थोड़ी-सी झिसी ु ं
हुई िछिी रखकर चिा गया। अपनी िािटे न के प्रकाश िें उन खाद्य वस्तओ

को देखते ही भारती की तमियत मिचिाने िगी।

ु भी िगी होगी। िेमकन यह सि।''


डॉक्टर ने कहा, ''भूख तो शायद तम्हें

भारती ने कहा, ''नहीं, नहीं, अभी नहीं।''

यह ईसाई जात-पांत नहीं िानती, िेमकन जहां से मजस प्रकार यह चीजें िाई गई हैं उस स्थान को वह आते सिय ही देख

आई थी।

ु िड़ी भूख िगी है िमहन। पहिे पेट भर लं ,'' यह कहकर हाथ धोकर िड़ी प्रसन्न िद्रा
डॉक्टर िोिे, ''िेमकन िझे ु िें खाने

ि ैठ गए।
भारती उस ओर देख नहीं सकी। घृणा और छाती के भीतर की असीि रुिाई की वेदना से उसने िहं ु िे र मिया िानो

स ैकड़ों धाराओ ं िें िहकर मनकिने की इच्छा करने िगी। हाय रे देश! हाय रे स्वाधीनता की प्यास! संसार िें इन िोगों ने

अपना कहकर कुछ भी शेर् नहीं रखा। यह घर, यह भोजन, यह घृमणत संिध ु ं ज ैसा जीवन-पि भर के
ं , जंगिी पशओ

मिए भारती को िृत्य ु भी इससे अमधक अच्छी और सखद


ु मदखाई दी। िृत्य ु को तो िहुतेरे सहन कर सकते हैं िेमकन यह

ु हर पि आत्महत्या की ओर िे जाना-इस समहष्णतु ा की स्वगव या


तो तन और िन को मनरंतर सताते रहना, इच्छानसार

िृत्य ु िें क्या कहीं कोई तिना


ु है।

पराधीनता की पीड़ा ने क्या इन िोगों के जीवन के सभी पीड़ा-िोध को पूरी तरह धोकर साि कर मदया है? कहीं कुछ भी

शेर् नहीं?

उसे अपूव व की याद आ गई उसे अपनी नौकरी छूट जाने का शोक, मित्र-िंडिी िें हाथ का कािा दाग मदखाई देन े की

िज्जा.... यह ही तो भारत िाता की सहस्र कोमट संतानें हैं । खाते-पहनते, परीक्षाएं पास करके , नौकरी िें सििता पाकर,

मजनका जन्म से िृत्य ु तक का सारा जीवन अत्यंत मनमववघ्न रूप से एक-सा िीतता जा रहा था-और एक है यह व्यमक्त जो

व भात मनगि रहा है। पि भर के मिए भारती को िगा मक महिािय के हजारों


अत्यंत मनमववकार, िन से अत्यंत तृमप्तपूवक

प्रस्तर खंडों के मतििात्र महस्से से भी अमधक वह िोग नहीं हैं और उन्हीं िोगों िें से एक प्यार करके , उसी के घर की

गृमहणी िनने से वंमचत होने के दु:ख से आज वह अपनी छाती िाड़-िाड़कर िर रही है।


सहसा वह दृढ़ता भरे स्वर िें िोिी, ''भ ैया तम्हारा ु हुआ यह खून-खरािी का िागव मकसी भी तरह ठीक नहीं है।
चना

ु है, वही मचरकाि तक भमवष्य की छाती रौंदकर उसे


अतीत के भिे ही मकतने भी उदाहरण दो, जो अतीत है, जो िीत चका


मनयंमत्रत करता रहेगा, यह मवध्न िानव जीवन के मिए मकसी भी तरह सत्य नहीं िाना जा सकता। तम्हारे िागव को नहीं


िेमकन तम्हारा सि कुछ मवसमजवत करने वािी देश-सेवा को िैं आज अपने मसर पर उठा िेती हूं। अपूव व िािू सख
ु से रहें ,

अि िैं उनके मिए शोक नही करूंगी। आज िैंन े अपने जीवन का िंत्र अपनी आंखों से देख मिया है।

डॉक्टर ने आश्चयव से िहं ु उठाकर भात खाते-खाते अस्फुट स्वर िें पूछा, ''क्या हुआ भारती?''
हाथ-िहं ु धोकर डॉक्टर ि ैठ गए। उसी ििी िड़के ने एक िहुत िोटा चरुट
ु पीते हुए किरे िें प्रवेश मकया और कुछ देर

ु मनकािकर मिर वही चरुट


नाक-िहं ु से धआं ु डॉक्टर के हाथ िें देकर चिा गया।

ु पा िेन े पर िैं संसार िें मकसी भी चीज को छोड़ना पसंद नहीं करता भारती।
डॉक्टर ने हंसते हुए कहा, ''इसी तरह िफ्त

अपूव व के चाचा जी ने जि रंगनू िें मगरफ्तार मकया था ति िेरी जेि िें से गांज े की मचिि मनकि पड़ी थी। वह न होती तो

ु छुटकारा भी न मििता।'' कहकर वह िस्क


शायद िझे ु ु राने िगे।

भारती यह िात सनु चकी


ु थी। िोिी, ''हजार िार छुटकारा न मििने पर भी तिु गांजा नहीं पीते, यह िैं जानती हूं।

िेमकन यह िकान मकसका है?''

''िेरा।''

''और यह ििी स्त्री-िच्चे?''


डॉक्टर हंसकर िोिे, ''यह सि िेरे एक िसििान ु
मित्र की सम्पमत हैं । िेरी ही तरह वह भी िांसी के िजमरि हैं । इस

सिय कहीं िाहर गए हैं । पमरचय न हो सके गा।''

भारती िोिी, ''पमरचय के मिए िैं व्याकुि नहीं हूं। िेमकन मजस तरह तिने
ु इस स्वगवपरी
ु िें आकर आश्रय मिया है, इससे

ु िेरे घर पहुंचा आते भ ैया। यहां तो िेरा दि घटा


तो अच्छा था मक िझे ु जा रहा है।''

ु तम्हें
डॉक्टर-''यह स्वगवपरी ु अच्छी नहीं िगेगी, िैं जानता था। िेमकन तिसे
ु कहने के मिए िेरे पास मजतनी िातें हैं वह

ु सहना ही पड़ेगा।''
मकसी दूसरे स्थान पर नहीं कही जा सकती थीं भारती! थोड़ा-सा कष्ट आज तम्हें

भारती िोिी, ''क्या तिु मकसी दूसरी जगह जा रहे हो?''

डॉक्टर िोिे, ''हां, उत्तर और पूव व के देशों िें एक िार घूि आना होगा। िौटने िें शायद दो वर्व िग जाएं। िेमकन आज

ु मिि सकूं गा, यह भरोसा नहीं।''


की रात के िाद मिर तिसे

डॉक्टर कुछ देर चपु रहे। भारती ने सिझ मिया मक इसिें कोई पमरवतवन नहीं हो सकता। इस रात की सिामप्त के साथ ही

वह इस संसार िें अके िी रह जाएगी।


ु दमक्षण चीन के कें टन के भीतर और भी आगे प ैदि ही जाना पड़ेगा। उस रास्ते से काि के मसिमसिे िें
डॉक्टर िोिे, 'िझे

अगर अिेमरका न पहुंच पाया तो प्रशांत िहासागर के द्वीपों िें घूिकर मिर इसी देश िें िौटकर आश्रय लं गा। उसके िाद

ु मिि ही जाएगी।''
जि तक आग न िगेगी यहीं रहूंगा? और िमहन अगर िौटकर न आ सका तो खिर तो तम्हें

इस व्यमक्त के शांत, सहज कं ठ की िातें मकतनी साधारण हैं िेमकन उनका चेहरा भारती की आंखों के सािने नाच उठा।

कुछ देर चपु रहकर िोिी, ''चीन देश िें प ैदि जाना मकतना भयानक काि है, यह िैं सनु चकी
ु हूं। िेमकन िैं तिको
ु डर

ु ारी अपनी
मदखिाना नहीं चाहती। अगर यहां से मनकि जाना ही चाहते हो तो मिर यहीं क्यों िौट आना चाहते हो? तम्ह


जन्म-भूमि िें क्या तम्हारे मिए कोई काि नहीं है?''

''उसी के काि के मिए तो िैं इस देश को छोड़कर जा रहा हूं। इस देश िें मस्त्रयां स्वतंत्र हैं । स्वतंत्रता का िागव वह

ु िहुत जरूरत है। अगर कभी इस देश िंय आग जिती देखी तो िेरी िात याद कर िेना, मक
सिझेंगी। उन िोगों की िझे

उस आग को मस्त्रयां ही जिा रही हैं । याद रहेगी यह िात?''


भारती ने कहा, ''िेमकन िैं तो तम्हारे पथ की पमथक नहीं हूं।''

डॉक्टर िोिे, ''यह िैं जानता हूं, िेमकन िड़े भाई की िात याद करने िें तो कोई दोर् नहीं है। भ ैया की िीच-िीच िें याद

तो आ जाएगी।''

भारती िोिी, ''िड़े भ ैया की याद आने के मिए िेरे पास िहुत-सी चीजें हैं । इसी तरह शायद तिु िनष्यों
ु को अपने कुिागव

ु नहीं खींच सकते।''


िें खींच िाया करते हो भ ैया, िेमकन िझे

वह सहसा उठ खड़ी हुई। सिेटी दरी झाड़कर मिछा दी। मिर िांस के िचान पर कम्बि, तमकया आमद उतारकर अपने

ु मजस िागव का संकेत दे गए हैं िेरा एक िात्र


हाथ से मिस्तर मिछाते हुए िोिी, ''अपूव व िािू के जहाज के चक्के आज िझे

िागव अि वही है। मिर मजस मदन भेंट होगी उस मदन तिु भी स्वीकार करोगे।''

ु अचानक यह क्या शरू


डॉक्टर व्यग्र होकर िोि उठे , ''तिने ु कर मदया भारती? क्या इस िटे कम्बि को िैं खदु नहीं मिछा

सकता था। इसकी तो कोई जरूरत थी ही नहीं।''


भारती िोिी, ''तिको ु तो थी। मिर मस्त्रयों के जीवन िें इसकी भी जरूरत न रहे तो मकस िात
जरूरत नहीं थी, िेमकन िझे

की जरूरत है, िता सकोगे भ ैया?''



डॉक्टर िोिे, ''इसका उत्तर नहीं दे सकूं गा िमहन। िैं हार िानता हूं। िेमकन तम्हारे ु और मकसी स्त्री से हार
अमतमरक्त िझे

नहीं िाननी पड़ी।''


भारती हंसती हुई िोिी, ''समित्रा जीजी से भी नहीं?'

''नहीं।''

मिछौना मिछ जाने पर डॉक्टर उस पर आ ि ैठे । भारती पास ि ैठकर िोिी, ''जाने से पहिे एक िात और पूछूं तो क्या छोटी

िहन का अपराध क्षिा होगा?''

''क्यों नहीं?''


''समित्रा जीजी आपकी कौन हैं ?''

कुछ देर चपु रहने के िाद डॉक्टर ने िस्कराते


ु हुए कहा, ''वह िेरी क्या है, इसका उत्तर जि तक वह स्वयं न दे ति तक

जान िेन े का कोई उपाय नहीं है। िैं तो मजस मदन उसे पहचानता भी नहीं था, उस मदन िैंन े स्वयं अपनी पत्नी कहकर


उसका पमरचय मदया था। िैंन े ही उसका नाि समित्रा ु है मक उसकी िां यहूदी थी, िेमकन मपता थे
रखा था। िैंन े सना

िंगािी ब्राह्मण। पहिे वह एक सकव स पाटी के साथ जावा गए थे, मिर सरवाया रेि के स्टे शन पर नौकरी करने िगे। जि


तक वे जीमवत रहे समित्रा ु की
मिशनरी स्कू ि िें पढ़ती रही। उनके िर जाने के िाद पांच-छह वर्व के इमतहास को सनने

ु कोई जरूरत नहीं।''


तम्हें

ु सि िताओ।''
भारती िोिी, ''नहीं भ ैया, िझे

डॉक्टर ने कहा, ''िैं भी सि नहीं जानता भारती। के वि इतना ही जानता हूं मक िां, िेटी, दो िािा, एक चीनी और दो


िद्रासी िसििान मििकर जावा िें मछपे ढंग से गांज े के आयात-मनयावत का धंधा कर रहे थे। िैं नहीं जानता था मक वह


िोग क्या करते हैं । िस यही देखा करता था मक िटामसया से सरवाया ु
तक ट्रे न द्वारा समित्रा अक्सर आया-जाया करती

थी। अत्यंत सदं ु र होने के कारण िहुत से िोगों की तरह िेरी नजर भी उस पर पड़ गई थी। िस सि कुछ यहीं तक सीमित

था। िेमकन एक मदन अचानक ही पमरचय हो गया तेगा स्टे शन के वेमटं ग रूि िें। यह िंगािी िड़की है इस िात का पता

ु पहिे-पहिे नहीं चिा।''


िझे
भारती ने कहा, ''सदं ु री होने के कारण समित्रा
ु जीजी को आप मिर भूि नहीं सके । यही िात है न भ ैया?''

डॉक्टर िोिे, ''एक मदन िैं जावा छोड़कर कहीं और चिा गया और शायद उसे भूि ही गया। िेमकन एक वर्व के िाद

सहसा िेंकुिेन शहर की जेटी पर समित्रा


ु ु
से भेंट हो गई। एक िक्स िें अिीि थी और समित्रा ु
को घेरे चारों ओर पमिस

ु देखकर उसकी आंखों से आंस ू िहने िगे। िझे


खड़ी थी। िझे ु संदहे नहीं रहा मक अि िझे
ु उसकी रक्षा करनी पड़ेगी।

अिीि के िक्स को स्पष्ट अस्वीकार करके िैंन े उसे अपनी पत्नी िता कर पमरचय दे मदया। उसने यह नहीं सोचा था,


इसमिए वह चौंक पड़ी। घटना सिात्रा ु
िें हुई थी इसमिए िैंन े उसका नाि समित्रा रख मदया। वैस े उसका वास्तमवक नाि

रोज दाऊद था। उन मदनों िेंकुिेन के िाििों-िकदिों


ु ु
की सनवाई पादांग शहर िें होती थी। वहां िेरे घमनष्ठ मित्र थे पाि


क्रूगर। उन्हीं के पास समित्रा ु
को िे गया। िकदिा ु
चिा। िमजस्ट्रे ट ने समित्रा ु
को मरहा कर मदया। िेमकन समित्रा ु
ने िझे

मरहाई नहीं दी।''

भारती हंसकर िोिी, ''मरहाई अि मििेगी भी नहीं भ ैया।''

डॉक्टर ने कहा, ''धीरे-धीरे उसके दि के िोग सिाचार पाकर ताक-झांक करने िगे। िैंन े देखा, िेरे मित्र पाि क्रूगर भी


उसके सौंदयव पर िट्टू हो गए हैं । एक मदन उन्हीं के पास छोड़कर िैं चपचाप मखसक गया।''

भारती िोिी, ''उन िोगों के िीच अके िी छोड़कर? तिु िहुत मनदवयी हो भ ैया।''

डॉक्टर िोिे, ''हां, अपूव व की तरह। मिर एक वर्व िीत गया। उन मदनों िैं सोमिवस द्वीप के िैकासर नगर के छोटे से

ु ही देखा, समित्रा
अप्रमसध्द होटि िें रह रहा था। एक मदन शाि को किरे िें घसते ु ि ैठी है। महंदू मस्त्रयों की तरह टसर की


साड़ी पहने। उसने एक महंदू स्त्री की तरह झककर प्रणाि मकया और उठकर िोिी, ''िैं सि छोड़कर चिी आई हूं। सम्पूण व

ु अपने काि िें शामिि कर िो। िझसे


अतीत को धो-पोंछकर िेंक आई हूं। िझे ु िढ़कर मवश्वसनीय सामथन दूसरी नहीं

मििेगी।''

भारती िोिी, ''उसके िाद?''


डॉक्टर ने कहा, ''िाद की घटना....िस इतना ही कह सकता हूं मक समित्रा ु आज तक
के मवरुध्द मशकायत करने का िझे

कोई कारण नहीं मििा। जो इक्कीस वर्ों के सभी संस्कारों को धो-पोंछकर, साि करके आ सकती है उसके प्रमत िेरे िन िें

श्रध्दा है िेमकन वह है िड़ी मनष्ठुर।''


भारती की इच्छा हुई मक पूछे-'वह मनष्ठुर हो सकती है िेमकन तिु उसको मकतना प्यार करते हो।' िेमकन िाज के कारण

ु के हृदय के गोपनीय इमतहास का आज उसे पता िग गया। उसका ििताहीन,


पूछ न सकी। मिर उस रहस्यपूण व यवती

िौन, रहस्यपूण व इमतहास-मकसी का भी अथव सिझना उसके मिए शेर् नहीं रहा।

सहसा डॉक्टर के िहं ु से असावधानी से एक िम्बी सांस मनकि गई। पि भर के मिए वह िज्जा से व्याकुि हो उठे , िेमकन


उसी एक पि के मिए। दूसरे ही पि उनका शांत और सहज हास्यपूण व स्वर िौट आया। िोिे, ''उसके िाद समित्रा को

ु कें टन चिा आना पड़ा।''


साथ िेकर िझे

ु मसर की शपथ मकसने दी थी-िताओ? हि िोगों िें से तो मकसी ने दी-


भारती हंसी मछपाकर िोिी, ''न आते भ ैया। तम्हें

नहीं थी।''

''मसर की शपथ मकसी ने नहीं दी, ऐसी िात नहीं है। िेमकन िैंन े सोचा था मक वह िात मकसी को भी िालि न हो सके गी।

ु एक दोर् यह है मक अंत तक न सनने


िेमकन तििें ु से तम्हारी
ु ु से तिु िहुत-सी ऐसी
मजज्ञासा शांत नहीं होती और न सनाने

ु करती रहोगी। इसमिए सना


ही िातों का अनिान ु देना ही अच्छा है।''

''िैं भी यही कह रही हूं भ ैया।''


डॉक्टर िोिे, ''िात यह है मक समित्रा ने िेरे ही होटि की दूसरी िंमजि पर एक किरा मकराए पर िे मिया। िैंन े िहुत

ु यहां से चिा जाना होगा।' यह सनकर


िना मकया। िेमकन वह नहीं िानी। ति िैंन े कहा, ऐसी हाित िें िझे ु उसकी

ु आश्रय दीमजए।' दूसरे ही मदन िाििा सिझ िें आ गया। दाऊद का गैंग
आंखों से आंस ू िहने िगे। िोिी, 'आप िझे

वहां मदखाई पड़ा। उस गैंग िें िगभग दस आदिी थे। उनिें से एक आधा अरि और आधा नीग्रो था। छोटे -िोटे हाथी


की तरह। वह अनायास ही दावा कर ि ैठा मक समित्रा उसकी पत्नी है।''


भारती िोिी, ''और तम्हारे ही सािने! उन दोनों िें शायद खूि झगड़ा हुआ?''


डॉक्टर िोिे, 'हां। समित्रा ने अस्वीकार करते हुए कहा, 'सि झ ूठ है। एक र्डयंत्र है।'-असि िें वह िोग उसे चोरी की

अिीि िेचने के काि िें वापस िे जाना चाहते थे। प्रशांत िहासागर के सभी द्वीपों िें उनके अड्डे हैं । गैंग कािी िड़ा है

मजसिें िदिाश िोग शामिि हैं । कोई भी ऐसा काि नहीं है मजसे यह िोग न कर सकते हों। िैं जान गया मक यह सिस्या

ु गी। िेमकन मविम्ब उन्हें सह्य नहीं था। वह तत्काि मनणवय करके समित्रा
आसानी से नहीं सिझे ु को खींच िे जाना चाहते

थे। िैंन े उन्हें रोका। पमिस ु
ििाकर मगरफ्तार कराने का डर मदखाया। ति वह िोग गए। िेमकन धिकी देत े गए मक उन

िोगों के हाथ से आज तक कोई नहीं िचा।''

''उसके िाद?'

डॉक्टर ने कहा, ''रात को सावधान रहा। िैं जानता था मक वह िोग दि-िि के साथ िौटकर आक्रिण करें ग।े ''


भारती ने पूछा, ''भाग क्यों नहीं गए? पमिस ु
को खिर क्यों नहीं दी? डच सरकार के पास क्या पमिस नहीं है?''


डॉक्टर ने कहा, ''थाना-पमिस व िीत गई । वहां सिद्रु के
िें जाना िेरे मिए मनरापद नहीं था। िेमकन वह रात शांमतपूवक


मकनारे-मकनारे चिने वािी व्यापामरक नावें मििती हैं । अगिे मदन एक नाव ठीक कर आया। िेमकन समित्रा ु
को िखार आ

ु की आवाज से नींद टूट गई। मखड़की से झांककर देखा, दरवाजा


गया। वह उठ न सकी। कािी रात िीते दरवाजा खिने

ु रहे हैं । वह चाहते थे मक िेरे किरे के दरवाजे को िाहर से िंद कर


होटि वािे ने खोिा है और दस आदिी होटि िें घस


दें और िगि की सीढ़ी से ऊपर समित्रा के किरे िें चिे जाएं।''

भारती सांस रोककर िोिी, ''उसके िाद?''

डॉक्टर िोिे, ''िैंन े दरवाजा खोिकर ऊपर जाने की सीढ़ी रोक िी।''

भारती का चेहरा पीिा पड़ गया। िोिी, ''उसके िाद?''


डॉक्टर ने कहा, ''उसके िाद की घटना अंधरे े िें घटी, इसमिए ठीक-ठीक नहीं िता सकूं गा। िेमकन अपनी िात िझे

ु के िीच। सवेरा होते ही पमिस


िालि है। एक गोिी िेरे िाएं कं धे िें िगी, दूसरी घटनों ु आ गई। पहरा िग गया। गाड़ी


आई और पमिस छह-सात आदमियों को उठा िे गई। होटि वािों ने गवाही दी मक डाकुओ ं ने धावा िोिा था। अंग्रज
े ी

राज्य होता तो िाििा मकतनी दूर पहुंचता और क्या होता, नहीं कहा जा सकता। िेमकन सेमिवरु के कानून-कायदे दूसरे

ही हैं । िरे हुए िोगों की जि मशनाख्त नहीं हुई तो शायद उन्हें कहीं गाड़-गूड़ मदया।''


''तम्हारे हाथ से क्या इतने आदिी िारे गए?''

''िैं तो नाि िात्र था। वह तो अपने हाथों ही िारे गए सिझो।''

भारती चपु ि ैठी रही।


डॉक्टर िोिे, ''उसके िाद कुछ दूर नाव से, कुछ दूर घोड़ा गाड़ी से, और कुछ दूर स्टीिर से हि िोग िेकड़ा शहर िें पहुंच

ु सनने
गए। वहां से नाि-धाि िदिकर एक चीनी जहाज से कें टन चिे गए। आगे शायद तम्हें ु की इच्छा नहीं है। तम्हें

ु का खून िगा हुआ है।''


के वि यही िग रहा है मक भ ैया के हाथों िें भी िनष्य

ु डेरे पर पहुंचा दीमजए भ ैया?''


भारती ने कहा, ''िझे

''इसी सिय जाओगी?''

ु पहुंचा आओ।''
''हां, िझे

ु से मनकािकर अपनी जेि िें रख िी। भारती


''चिो'', यह कहकर उन्होंने िशव से एक तख्ता हटाकर कोई चीज चपके


सिझ गई मक यह मपस्तौि है। मपस्तौि उसके पास भी थी। समित्रा ु वह उसे िाहर जाते सिय
के आदेश के अनसार

ु को िार डािने का यंत्र है।


अपने साथ रखती थी। यह ज्ञान उसे आज पहिी िार हुआ मक यह िनष्यों

नाव पर भारती ने धीरे-धीरे कहा, ''तिु जो भी क्यों न करो, तम्हारे


ु अमतमरक्त िेरे मिए पृथ्वी पर आश्रय नहीं है, जि तक

िेरे िन की अशांमत नहीं मिट जाती तिु ति तक िझे


ु छोड़कर नहीं जा सकते भ ैया। िोिो, जाओगे तो नहीं?'

डॉक्टर ने कहा, 'अच्छा, ऐसा ही होगा िमहन!''


नाव पर ि ैठी हुई भारती िन-ही-िन न जाने मकतनी िातें सोचती रही। उसके िन पर सिसे जिदवस्त धक्का िगाया समित्रा


के इमतहास ने। उसके प्रथि यौवन की दुभावग्यपूण व अनोखी कहानी ने। समित्रा को मित्र सिझने का दुस्साहस कोई भी स्त्री

नहीं कर सकती। भारती उसे प्यार नहीं कर सकी है। िेमकन सि िातों िें उसकी असािान्य श्रेष्ठता के कारण उसने अपने

हृदय की भमक्त उसे अमप वत की थी। िेमकन उस मदन, अपूव व का अपराध मकतना भी भयंकर क्यों न हो, नारी होकर एकदि

सहज भाव से उसकी हत्या करने का आदेश देन े के कारण उसकी वह भमक्त भीर्ण भय िें पमरवमतवत हो गई। भारती अपूव व


को मकतना प्यार करती है यह िात समित्रा से मछपी नहीं थी। प्रेि क्या है, यह िात भी उससे मछपी नहीं है मिर भी एक नारी

के प्रेिी को प्राण-दंड देन े िें नारी होकर भी उसे रत्ती भर महचक नहीं हुई। वेदना की आग से छाती के भीतर जि इस प्रकार

की ज्वािा भक-भक जिने िगती ति वह अपने को यह कहकर सिझा िेती मककत्तवव्य के प्रमत इस तरह मनिवि मनष्ठा न

होने पर पथ के दावेदारों की अध्यक्षा कौन िनती?''


नाव के घाट पर पहुंचते ही एक आदिी पेड़ के आड़ से मनकिकर सािने आ खड़ा हुआ। उसे देखते ही भारती के पांव भय

से कांप उठे ।


डॉक्टर ने िड़ी निी से कहा, ''यह तो अपना हीरा मसंह है। तिको पहुंचा देन े के मिए खड़ा है। क्यों हीरा मसंह जी, सि

ठीक है न?''

हीरा मसंह ने कहा, ''सि ठीक है।'

''क्या िैं भी चि सकता हूं?''

हीरा मसंह िोिा, ''आपके जाने से क्या कोई रुकावट डाि सकता है?''


सिझ िें आ गया मक पमिस वािे भारती के िकान पर मनगाह रख रहे हैं । डॉक्टर का जाना मनरापद नहीं है।

ु से िोिी, ''िैं नहीं जाऊं गी भ ैया।''


भारती चपके

ु भागकर मछपने की जरूरत नहीं भारती।''


''िेमकन तम्हें

''जरूरत पड़ने पर भाग सकूं गी। िेमकन इनके साथ नहीं जाऊं गी।''

डॉक्टर इस आपमत्त का कारण सिझ गए। अपूव व के िाििे के मवचार के मदन हीरा मसंह ही उसे धोखे से िे आया था। कुछ

सोचकर िोिे, ''तिु तो जानती हो भारती, मकतना खराि है िहल्ला।


ु ु
इतनी रात गए तम्हारा अके िी जाना ठीक नहीं है।

और िैं.....।''

व्याकुि स्वर िें भारती िोिी, ''नहीं भ ैया, तिु िझे


ु पहुंचा दो। िैं पागि नहीं हूं जो....?''

ु वापस िे जाते हुए िझे


हाथ छोड़कर भारती को नाव से उतरते न देखकर डॉक्टर ने स्नेमहि स्वर िें कहा, ''वहां तम्हें ु भी

िज्जा िालि होती है। क्या दूसरी जगह चिोगी, जहां हिारे कमव जी रहते हैं ? वह नदी के उस पार रहते हैं ।''

भारती ने पूछा, ''कौन कमव भ ैया?''

''हिारे उस्ताद जी, िेहिा िजाने वािे....!''

भारती ने प्रसन्न होकर कहा, ''वह क्या घर पर मििें ग?े अगर अमधक शराि पी गए होंगे तो कहीं िेहोश पड़े होंगे।''
ु ही उनका नशा महरन हो जाता है। नवतारा उनके पास ही
डॉक्टर िोिे, ''इसिें आश्चयव नहीं। िेमकन िेरी आवाज सनते

ु कुछ मखिवा भी सकूं ।''


रहती है। सम्भव है तम्हें

ु मखिाने की चेष्टा ित करो, चिो, वहां चिें । सवेरा होते ही िौट आएंग।े ''
भारती िोिी, ''इस ढिती रात िें िझे

डॉक्टर नाव चिाने िगे तो हीरा मसंह अंधरे े िें गिु हो गया।


भारती ने आश्चयव से पूछा, ''भ ैया, क्या पमिस इस आदिी पर संदहे नहीं करती?''

डॉक्टर िोिे, ''नहीं। यह तारघर का चपरासी है। िोगों के जरूरी तार उनके घर पहुंचाया करता है। इसमिए मदन हो या

रात, मकसी भी सिय उसका आना-जाना संदहे जनक नहीं होता।''

ु हुआ है। धीरे-धीरे िड़ी सावधानी से िग्गी ठे िते हुए नाव िे जाने के पमरश्रि का अनिान
ज्वार अभी-अभी शरू ु करके

भारती ने जल्दी से कहा, ''वहां जाने की जरूरत नहीं। चमिए आपके घर िौट चिें । ज्वार के मखंचाव िें आधा घंटा भी

नहीं िगेगा।''

डॉक्टर ने कहा, 'के वि इसी काि से नहीं भारती, एक और मवशेर् काि से उससे मििना चाहता हूं।''

ु मवश्वास नहीं होता।''


भारती व्यंग्य भरी हंसी के साथ िोिी, ''उनसे मकसी आदिी को कोई काि हो सकता है, इस पर िझे


डॉक्टर कहने िगे, ''तिु उसे नहीं जानती भारती, उस ज ैसा सच्चा गणवान ु कहीं नहीं मिि सकता। अपने टूटे
आदिी तम्हें

िहिे की ही पूज
ं ी के िि पर कोई ऐसा स्थान नहीं जहां वह न पहुंचा हो। इसके अमतमरक्त वह िहुत िड़ा मवद्वान है। मकस


पस्तक िें कहां क्या मिखा है-िताने वािा िेरे पमरमचतों िें उस ज ैसा दूसरा कोई भी नहीं है। उसे िैं वास्तव िें प्यार करता

हूं।''

भारती िन-ही-िन अप्रमतभ होकर िोिी, ''ति तिु उसकी शराि पीने की आदत छुड़ाने की कोमशश क्यों नहीं करते?''

डॉक्टर ने कहा, ''िैं मकसी से कुछ छुड़वाने की कोमशश नहीं करता भारती। वह कमव हैं । उन िोगों की जामत ही अिग

होती है। उनके भिे-िरेु काि हि िोगों से िेि नहीं खाते, िेमकन इस कारण संसार के भिे-िरेु कािों के मिए िने कानून

ु का तो सभी िोग मििकर उपभोग करते हैं , िेमकन अपने दोर्ों के मिए वह अके िे ही
उन्हें क्षिा नहीं करते। उनके गणों
दंड भोगते हैं । इसमिए कभी-कभी जि वह िेचारा िहुत कष्ट पाता है, जि ऐसा व्यमक्त जो उसके दु:ख का िन-ही-िन

सहयोगी होता है, वह िैं हूं।''

भारती िोिी, ''तिु सभी के मिए दु:ख अनभव


ु करते हो भ ैया। तम्हारा
ु िन तो मस्त्रयों के िन से भी कोिि है। िेमकन अपने


उस गणवान पर मवश्वास कै स े करते हो? शराि के नशे िें वह सि कुछ प्रकट भी तो कर सकते हैं ?''

डॉक्टर िोिे, ''के वि इतना ज्ञान ही तो उसिें िचा है। मिर उसकी िातों पर कोई अमधक मवश्वास भी तो नहीं करता?''

भारती ने पूछा, ''उनका नाि क्या है भ ैया?''

ु सरेु न, धीरेन-जि जो नाि िन िें आ जाए। -वास्तमवक नाि है-शमशपद भौमिक।''


डॉक्टर ने कहा, ''अति,

''शायद वह नवतारा के कहने पर चिते हैं ?

यह कहकर डॉक्टर ने नाव घूिा दी। पानी के तेज िहाव के कारण छोटी-सी नाव िहुत तेजी से चिने िगी और देखते-ही-

देखते उस पार जा िगी। भारती का हाथ पकड़कर डॉक्टर नाव से उतर पडे। आगे िढ़ने पर एक तंग रास्ता मििा। उसके

आस-पास पानी से भरे छोटे -िड़े गङ्ढे थे। उनके िीच से वह रास्ता अंधरे े िें चिा गया था।

भारती ने कहा, ''भ ैया, मिर वैसी ही भयानक जगह िें िे आए। िाघ-भालुओ ं की तरह ऐसे स्थान के अमतमरक्त तिु िोग

और कहीं भी रहना नहीं जानते? और मकसी से भिे ही न डरो, सांपों से तो डरो।''

डॉक्टर हंसकर िोिा, ''सांप तो मविायत से नहीं आए िमहन। उनिें धिव ज्ञान है। अपराध न करने वािे को वह नहीं

काटते।''


यह सनकर भारती को एक मदन की िात याद आ गई। उस मदन उनके ऐसे ही हास्य पूण व स्वर िें यूरोप के मवरुध्द मकतनी

असीि घृणा प्रकट हो गई थी। उन्होंने मिर कहा, ''िाघ-भालुओ ं की िात कहती हो िमहन। िैं अक्सर ही सोचा करता हूं

मक इन्सान न रहकर अगर यहां िाघ-भाल ही रहते तो सम्भव है यह िोग मशकार करने मविायत से यहां आया करते।

और रात-मदन खून चूसने के मिए यहां मचपककर पड़े रहते।''

भारती िौन रही। सारी जामत के मवरुध्द इतना िड़ा मवद्वेर् उसे व्यमथत कर देता था। िन-ही-िन कह उठती थी-यह कभी

भी सच नहीं हो सकता। ऐसा हो ही नहीं सकता।


ु कभी नहीं
सहसा डॉक्टर मठठककर खड़े हो गए, िोिे, ''हिारे उस्ताद जी जाग रहे हैं , और होश िें हैं । ऐसा िेहिा तिने

ु होगा भारती!''
सना


कुछ आगे िढ़कर भारती रुक गई। उसकी उत्सकता मनरंतर िढ़ती चिी जा रही थी। उसका न कोई आमद था न अंत। इस


संसार िें उसकी तिना नहीं हो सकती। दो मिनट के मिए िानो भारती को होश ही नहीं रहा।

डॉक्टर ने उसके हाथों से जरा-सा दिाकर कहा, ''चिो।''

ु था।''
भारती िोिी, ''चिो। िैंन े ऐसा कभी नहीं सना

ु िेमकन इस पागि के हाथों िें पड़कर उस िेचारे िेहिा की दुदवशा का


डॉक्टर िोिे, ''िैंन े भी इससे अच्छा कभी नहीं सना।

ु है, अपूव व के पास पांच रुपए िें मगरवी रखा हुआ


अंत नहीं है। िैंन े ही शायद दमसयों िार उसका उध्दार मकया होगा। सना

था।''

भारती िोिी, ''िैं उनके नाि रुपए भेज दूंगी।''

पेड़ों की ओट िें एक दो िंमजिा िकान है। नीचे की िंमजि पर कीचड़ ज्वार के पानी और जंगिी पौधों ने अमधकार कर

रखा है। सािने काठ की एक सीढ़ी है। और उसी के सिसे ऊं चे स्थान पर एक तोरण-सा िना हुआ है। उसी पर एक िहुत

िड़ी रंगीन चीनी िािटे न िटकी है जो झ ूिती मदखाई दे रही है। उसकी रोशनी िें स्पष्ट मदखाई मदया, उसके ऊपर िड़े-

े ी अक्षरों िें मिखा हुआ है- ''शमशतारा िॉज।''


िड़े कािे अंग्रज

भारती ने कहा, ''िकान का नाि रखा है 'शमशतारा िॉज', िॉज तो सिझ गई। िेमकन शमशतारा का क्या अथव है?''


डॉक्टर िस्कराकर िोिे, ''शायद शमशपद का शमश और नवतारा का तारा मििकर शमशतारा िन गया है।''

भारती िोिी, ''यह अन्याय है। अन्याय को तिु प्रश्रय क्यों देत े हो?''

डॉक्टर हंसकर िोिे, ''तिु क्या अपने भ ैया को सिसे शमक्तिान सिझती हो? कोई अपने िॉज का नाि शमशतारा रखे या

कोई प ैिेस का नाि अपूव व भारती रखे-िैं कै स े रोक सकूं गा।''

भारती क्रोमधत होकर िोिी, ''नहीं भ ैया, इन सि गंद े कािों के मिए उन्हें िना कर दो। वरना िैं उनके घर नहीं जाऊं गी।''
ु है, दोनों का मववाह होने वािा है। भाग्य प्रसन्न हो तो िरने िें मकतनी देर िगती है िमहन! सना
डॉक्टर िोिे, ''सना ु है

पंद्रह मदन हुए वह िर गया।''

दु:खी होते हुए भी भारती हंस पड़ी, ''शायद यह खिर झ ूठी है। अगर सच भी है तो कि-से-कि एक वर्व तक तो उन्हें

रुकना ही चामहए। नहीं तो यह काि िहुत ही अशोभनीय होगा।''

ूं ा। िेमकन रुकने से अशोभनीय मदखाई देगा या न रुकने से-यह सोचने की


डॉक्टर िोिे, ''अच्छी िात है, कहकर देखग

िात है।''

इस संकेत से भारती िमज्जत होकर चपु हो गई। सीढ़ी पर चढ़ते हुए डॉक्टर िोिे, ''इस पागि के मिए ही िझे
ु कष्ट होता

ु है, उस स्त्री को िहुत प्यार करता है। िेमकन संसार के भिे-िरेु की िरिाइश, मित्रों की अमभरुमच- यह सि िातें
है। सना

ु हैं भारती। िैं तो के वि इतनी ही कािना करता हूं मक उसके प्रेि िें यमद सच्चाई हो तो यह सच्चाई ही उसका
अत्यंत तच्छ

उध्दार करे।''

भारती ने चौंककर पूछा, ''संसार िें क्या ऐसा भी होता है भ ैया।''

तभी वह दोनों िंद दरवाजे के सािने पहुंचकर रुक गए।

िेहिा िजना िंद हो गया। थोड़ी देर िाद दरवाजा खोिकर शमशपद िाहर आए तो सहज ही डॉक्टर को पहचान मिया।

मिर भारती को पहचानते ही एकाएक उछिकर िोिे, ''आप?.... भारती? आइए, आइए।''

यह कहकर उन्हें अंदर िे गए। उनके आनंद से चिकते चेहरे की कपट रमहत अभ्यथवना से, उनके अकृ मत्रि उत्साह भरे

स्वागत से भारती का सारा क्रोध हवा हो गया। शमश ने मिस्तर के मकसी कोने से एक िड़ा-सा मििािा मनकाि भारती के

हाथ िें देकर कहा, ''खोिकर पमढ़ए। परसों दस हजार रुपए का ड्राफ्ट आ रहा है-नाट ए पाई िैस-िैं कहा करता था मक िैं


जआरी हूं, झ ूठा हूं, शरािी हूं। कै स े हो गया यह? दस हजार! नाट ए पाई िैस।''

इस दस हजार रुपए के ड्राफ्ट के संिध ु


ं िें एक पराना इमतहास है मजसे यहा िता देना जरूरी है। कोई इस पर मवश्वास नहीं

करता था। सि िजाक ही उड़ाते रहते थे। उस्ताद जी का िूिधन यही था। इसी का उल्ले ख करके एकदि संकोचहीन

ु देन े की सौगंध भी खा िेता था।


होकर वह िोगों से रुपया उधार िांगा करता था और जल्दी ही ब्याज-िूिधन पूरा चका

पांच-सात वर्व पहिे उसके धनवान नाना की जि िृत्य ु हुई तो उसे अपने ििेरे भाइयों के साथ सम्पमत्त का एक महस्सा
मििा था। उसे िेचने की िात एक िहीने पहिे हो गई थी। किकत्ते के एक एटॉनी ने मिखा था मक रुपए दो-एक मदन िें

मिि जाएंग।े

पत्र सिाप्त करके डॉक्टर ने पूछा, ''िीस हजार रुपए की िात चिी थी न शमश?''

शमश िोिे, ''दस हजार ही क्या कि हैं ? िेरे ििेरे भाई हैं , सम्पमत्त तो अपने ही घर िें ही रही।''

डॉक्टर ने भारती से कहा, ''इसी तरह का एक पागि ििेरा भाई हि िोगों का भी कोई होता...''कहकर वह हंसने िगे।

शमश को प्रसन्नता नहीं हुई। प्राणपण से यही मसध्द करने िगा मक सम्पमत्त को िेच े मिना ही इतना रुपया मिि गया।

ु संसार िें कोई नहीं है।''


इसमिए मक उसके भाई के सिान आदशव परुर्


भारती िस्कराकर ु
िोिी, ''ठीक है शमश िािू! तम्हारे ु चमरत्र को िैंन े स्वीकार कर
उन भ ैया को देख े मिना ही उनके देव तल्य

मिया।''

ु और दस रुपए देन े होंगे, ति उस मदन के दस, कि के दस और अपूव व िािू के साढे आठ-


शमश िोिे, ''िेमकन कि िझे

कुि मििाकर तीस रुपए परसों-तरसों चका


ु दूंगा। देन े ही पडेंग।े ''


भारती हंसने िगी। शमश कहने िगा, ''ड्राफ्ट आते ही िैंक िें जिा कर दूंगा। जआरी, शरािी, स्पेमथस्ट- जो भी जी िें

आता रहा है िोग कहते रहे हैं । िेमकन इस िार मदखा दूंगा। के वि ब्याज से ही गृहस्थी का खचव चिाऊं गा। उसिें से भी

िच जाएगा। डाकघर िें एकाउंट खोिना पड़ेगा। घर िें रखना ठीक नहीं, पांच-छह साि िें ही एक िकान खरीद लं गा।

खरीदना तो पड़ेगा ही, गृहस्थी गदवन पर आ पड़ी है।''

डॉक्टर भारती के िहं ु की ओर ताकते हुए हंसने िगे। िेमकन वह गम्भीर िहं ु मकए दूसरी ओर देखती रही।

ु हो।''
शमश ने कहा, ''िैंन े शराि छोड़ दी है। शायद आपने सना

डॉक्टर िोिे, ''नहीं।''

''एकदि। नवतारा ने प्रमतज्ञा करा िी।''

डॉक्टर िोिे, ''शमश, जान पड़ता है अि शीघ्र यहां से महि नहीं सकोगे?''
शमश िोिे, ''यह िात कै स े हो सकती है? अि िैं आप िोगों के साथ संिध
ं न रख पाऊं गा। िाइि को अि मरस्क िें नहीं

डािा जा सकता।''


डॉक्टर ने भारती की ओर िड़कर ु
िस्कराते हुए कहा, ''हिारे उस्ताद जी िें और चाहे जो भी दोर् हो-िेमकन आंखों का

मिहाज इनिें है, ऐसा अपवाद तो िड़े-से-िड़ा शत्र ु भी नहीं िगा सकता। यमद सीख सको तो यह मवद्या तिु इनसे सीख

िो।''

ु िें शमश का पक्ष िेकर भारती ने िहुत ही भिी िड़की की तरह कहा, ''िेमकन झ ूठी आशा देन े की अपेक्षा स्पष्ट
प्रत्यत्तर

ु नहीं होती। अगर शमश िािू से िैं यह मवद्या सीख पाती तो आज िझे
कह देना ही अच्छा है। यह िात िझसे ु छुट्टी मिि

जाती भ ैया।''

उसके कं ठ स्वर का अंमति अंश भारी-सा हो गया। शमश ने ध्यान नहीं मदया। ध्यान देन े पर उसका तात्पयव शायद सिझ

भी नहीं पाता। िेमकन इसिें मनमहत अथव मजसे सिझना चामहए था। उन्हें सिझने िें देर नहीं िगी।

दो मिनट तक सभी िौन रहे।

ु की। िोिे, ''शमश, दो मदन के भीतर ही िैं जा रहा हूं। प ैदि के रास्ते से। प ैमसमिक के सारे आइिैं ड
डॉक्टर ने िात शरू

एक िार मिर घूि आऊं । कि िौटूंगा-नहीं जानता। िौटूंगा भी या नहीं, यह कौन जानता है। िेमकन यमद कभी िौटूं


शमश तो तम्हारे ु स्थान नहीं मििेगा।''
घर िें शायद िझे

शमश पि भर उनके िहं ु की ओर टकटकी िगाकर देखता रहा। मिर िोिा उसका चेहरा और स्वर आश्चयवजनक रूप से

िदि गया। गदवन महिाकर िोिा, ''िेरे घर पर आपको सदा स्थान मििता रहेगा।''

ु स्थान देन े से िड़ी मवपमत्त िनष्य


डॉक्टर ने कहा, ''यह क्या कहते हो शमश? िझे ु के मिए और क्या हो सकती है?''

ु जेि की सजा मििेगी। मििने दो।'' कहकर वह चपु हो गया। मिर पिभर
शमश ने कहा, ''यह तो िैं जानता हूं मक िझे

े्
िाद भारती को सम्बोमधत करके धीरे-धीरे कहने िगा, ''िेरा ऐसा मित्र और कोई नहीं है। सन 1911 िें जापान के टोमकयो

शहर िें िि मगरने के कारण जि कोटकू के सिूच े मगरोह को िांसी की सजा मििी थी ति डॉक्टर उनके अखिार के


उपसम्पादक थे। िकान के सािने के महस्से को पमिस ने घेर मिया था। िैं रोने िगा तो इन्होंने कहा, डरने से काि नहीं
ु उतार मदया मिर स्वयं
चिेगा शमश, हि िोगों को भाग जाना चामहए। पीछे की मखड़की से रस्सी िटकाकर इन्होंने िझे

उतर गए-ओह, याद है आपको डॉक्टर साहि? यह कहकर वह अतीत की यादों से रोिांमचत हो उठा।''

डॉक्टर ने हंसकर कहा, ''याद तो जरूर है।''

शमश ने कहा, ''याद रहने की िात ही है। आप सहायता न करते तो उस मदन हि िोगों की जीवन-िीिा सिाप्त हो

जाती। शंघाई िोट िें मिर कदि न रखना पड़ता। वहां ज ैसे नाटे लुच्चे-िदिाश भारत िें कहीं भी नहीं मििें ग।े िैं तो आप

िोगों के िििाज दस्ते िें शामिि नहीं था। िस डेरे पर रहता था। िेहिा मसखाया करता था। िेमकन इस िात को क्या

ु वािा था? शैतानों के न तो कानून होते हैं न अदाित। पकड़ पाते तो िझे
कोई सनने ु जरूर मजिह कर डािते। आज जो

ये सि िातें कह रहा हूं, के वि आपकी उसी कृ पा से। ऐसा मित्र संसार िें दूसरा नहीं है। ऐसी दया भी संसार िें कहीं नहीं

देखी।''

ु दो न भ ैया। भगवान ने
भारती की आंखों िें आंस ू भर आए। िोिी, ''अपनी पूरी कहानी मकसी मदन हि िोगों को सना


तिको ु दी थी तो क्या के वि इस अिूल्य प्राण का िूल्य सिझने की िमध्द
इतनी िमध्द ु देना ही भूि गए? जापामनयों के देश

िें ही अि मिर जाना चाहते हो?''

शमश ने कहा, ''िैं ठीक यही िात कहता हूं भारती। कहता हूं, इतनी िड़ी स्वाथी, िोभी और नीच जामत से कुछ आशा ित

करो। वह िोग मकसी भी मदन आपकी कोई सहायता नहीं कर सकते।''

डॉक्टर ने हंसते हुए कहा, ''किर िें रस्सी िांधने की घटना भी शमश भूि नहीं सका। न इस जीवन िें वह जापामनयों को

ही क्षिा कर सका। िेमकन इतना ही उनका सि कुछ नहीं है भारती। इतनी आश्चयवजनक जामत भी संसार िें और कोई नहीं

है। के वि आज की िात नहीं है। प्रथि दृमष्ट िें ही मजस जामत ने यह कानून िना मदया मक जि तक सूय व-चंद्र रहें ग।े उस

राज्य िें ईसाइयों का प्रवेश नहीं होगा। और अगर प्रवेश करें तो उन्हें कठोर दंड मदया जाए। ऐसी जामत भिे ही कुछ भी

क्यों न करे हिारे मिए अमभनंदनीय है।''

कहने वािे की दोनों आंखें पिभर िें प्रदीप्त दीपमशखा की भांमत दिक उठीं। उस वज्र ज ैसी कठोर-भयंकर दृमष्ट के सािने

शमश उद्भ्ांत-सा हो उठा। भयभीत होकर िार-िार मसर महिाते हुए िोिा, ''यह तो ठीक है। मििुि ठीक है।''
भारती के िहं ु से एक भी शब्द नहीं मनकिा। उसका हृदय इस अभूतपूव व आवेग से थर-थर कांप उठा। उसे िगा मक इस

ु का स्वरूप देख मिया।


गहरी आधी रात िें आसन्न मवदाई से ठीक पहिे पिभर के मिए उसने उस िनष्य

डॉक्टर ने अपनी छाती की ओर उंगिी मदखाकर कहा, ''तिु क्या कह रही थी भारती मक इस जीवन का िूल्य सिझने

ु भगवान ने िझे
योग्य िमध्द ु नहीं दी है? झ ूठ है। सनोगी
ु पूरा सारा इमतहास? कें टन के एक गप्तु सभा िें सान्याि सेन ने

ु कहा था....।''
िझसे

सहसा भारती भयभीत होकर िोि उठी, ''िगता है कुछ िोग सीढ़ी से ऊपर चढ़ रहे हैं ।''

ु िांध पाने वािा आदिी इस संसार िें नहीं है।''


डॉक्टर ने धीरे से मपस्तौि जेि से मनकािकर कहा, ''इस अंधकार िें िझे

शमश ने कहा, ''आज नवतारा आमद आने वािी थी, शायद....।''

डॉक्टर हंसकर िोिे, ''शायद वह ही है। िहुत हिके कदि हैं । िेमकन उनके साथ 'आमद' कौन िोग हैं ?

शमश ने कहा, आपको िालि नहीं? हि िोगों की प्रेसीडेंट सामहिा आ रही हैं । शायद....।''


भारती ने मवमस्मत होकर पूछा, ''कौन प्रेसीडेंट? समित्रा जीजी?''

शमश ने मसर महिाकर कहा, ''हां।''

यह कहकर वह तेजी से कदि िढ़ाकर द्वार खोिने िगा।

भारती डॉक्टर के िहं ु की ओर ताकती रही। उसके िन िें यह िात आ गई मक वह अपने यहां आने का कारण सिझ चकी

है। आज की रात िेकार नहीं जाएगी। सम्भामवत मवघ्न-िाधाओ ं के िीच पथ के दावेदारों की अंमति िीिांसा आज होनी

आवश्यक है। हो सकता है-अय्यर हो, तिविकर हो। और कौन जाने मनरापद सिझकर ब्रजेन्द्र ने ही शहर छोड़कर इस

ु मपस्तौि मछपाया नहीं। उसे िाएं हाथ िें उसी


जंगि िें आश्रय मिया हो। डॉक्टर ने अपने स्वभाव और मनयि के अनसार

तरह पकडे रहे। उनके शांत चेहरे से कोई भी िात जानी नहीं जा सकी। िेमकन भारती का चेहरा एकदि पीिा पड़ गया

था।
अध्याय 8

मजन-मजन िोगों ने किरे िें प्रवेश मकया वह सभी अच्छी तरह जाने-पहचाने िोग थे।

डॉक्टर ने कहा, ''आओ।'' िेमकन उनके चेहरे का भाव देखते ही भारती सिझ गई, कि-से-कि आज वह इसके मिए

त ैयार नहीं थे।


समित्रा के आने के िारे िें उन्हें पता था। िेमकन सभी िोग उनके पीछे-पीछे चिते हुए इस पार आ इकट्ठे हुए हैं , इसकी

जानकारी उन्हें नहीं थी। मकसी भी तरह की कोई आकमस्मक घटना नहीं हुई है इसमिए उनकी जानकारी के मिना ही मकसी

ु है। इसिें संदहे नहीं है। आगंतक


तरह का गहन परािशव हो चका ु िोग आकर चपचाप
ु िशव पर ि ैठ गए। मकसी के

आचरण से रत्ती भर भी आश्चयव या उत्तेजना प्रकट नहीं हुई। यह िात स्पष्ट रूप से सिझ िें आ गई मक डॉक्टर के संिध
ं िें

ं िें वह पहिे ही जान गए थे। अपूव व के िाििे को िेकर दि िें इस प्रकार


भिे न हो िेमकन डॉक्टर के आने के संिध

ितभेद प ैदा हो जाएगा यह आशंका भारती के िन िें थी। शायद आज ही इसका मनमश्चत मनणवय हो जाएगा। यह सोचकर

भारती के हृदय िें कं पकं पी होने िगी।


समित्रा के चेहरे पर उदासी थी। उसने भारती से कोई िात नहीं की। उसकी ओर अच्छी तरह देखा तक नहीं। ब्रजेन्द्र ने

अपनी गेरुआ पगड़ी उतारकर अपनी िोटी िाठी से दिाकर पास रख िी और अपनी मवशाि शरीर को काठ की दीवार से

मटकाकर आराि से ि ैठ गया। उसकी गोिाकार आंखों की महंस्र दृमष्ट कभी भारती और कभी डॉक्टर के चेहरे पर चक्कर

काटने िगी। रािदास तिविकर चपु था। ि ैमरस्टर कृ ष्ण अय्यर मसगरेट जिाकर पीने िगा और नवतारा सिसे दूर इस

तरह जा ि ैठी ज ैसे उसका मकसी के साथ कोई संिध


ं ही न हो। आज वह भारती को पहचान भी न सकी हो। मकसी के चेहरे


पर िस्कराहट तक का नाि नहीं था।

कुछ देर िाद ब्रजेन्द्र अपनी ककव श आवाज से सिको चमकत करता हुआ िोि उठा, ''आपके स्वेच्छाचार की हि िोग

मनंदा करते हैं डॉक्टर! अगर िैं अपूव व को कभी पा गया तो....!''

डॉक्टर ने वाक्य पूरा करते हुए कहा, ''उसकी जान िे िोगे।'' यह कहकर उन्होंने समित्रा से पूछा, ''क्या तिु सभी िोग

इस आदिी की िात का सिथवन करते हो?''


समित्रा ु
मसर झकाकर ि ैठी रही। अन्य मकसी ने भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं मदया।

कुछ पि चपु रहकर डॉक्टर िोिे, ''िालि होता है मक तिु िोग सिथवन करते हो। और इस िीच इस मवर्य पर तिु िोगों

ु है।''
िें मवचार-मविशव भी हो चका

ु है। और इसका प्रमतकार होना भी हि िोग आवश्यक सिझते हैं ।''


ब्रजेन्द्र िोिा, ''हां, हो चका

डॉक्टर िोिे, ''िैं भी यही सिझता हूं। िेमकन इससे पहिे एक आवश्यक िात याद मदिाना चाहता हूं। सम्भव है अत्यंत

क्रोधावेश िें होने के कारण तिु िोगों को यह िात याद न रही हो। अहिद दुरावनी हि िोगों के सिूच े उत्तरी चीन का

े्
सेक्रेटरी था। उस ज ैसा मनभीक और कायव-कुशि आदिी हि िोगों के दि िें कोई नहीं था। सन 1910 ईस्वी िें जापान

द्वारा कोमरया राज्य को हड़प िेन े के एक िहीने िाद वह मकसी रेिवे स्टे शन पर पकड़ा गया। उसे शंघाई िें िांसी दी गई।


समित्रा ु दुरावनी को देखा था?''
तिने


समित्रा ने कहा, ''हां।''

ु इस िात की खिर तक नहीं मििी मक िेरा


डॉक्टर ने कहा, ''ति िैं मछता से टूटे हुए दि के पूण व गठन िें व्यस्त था। िझे

एक हाथ टूट गया है। मजस सिय अदाित िें उसके मवरुध्द मवचार का तिाशा हो रहा था, उस सिय उसे िचा िेना

तमनक भी कमठन नहीं था। हि िोगों के अमधकांश आदिी उन मदनों वहीं रह रहे थे। मिर भी इतनी िड़ी दुघवटना कै स े हो

ु दुिे ने िार-िार अत्यंत तच्छ


गई, जानते हो? िै जािाद के िथरा ु अमवचार कुमवचार की मशकायतें कर-करके दि के िोगों

के िन को एकदि मवर् ैिा िना मदया था। दुरावनी की िृत्य ु से ज ैसे सभी की जान िच गई। िेरे िौट आने के िाद जि कें टन

ु दुिे भी टाइिाइड ज्वर से िर चका


की िीमटं ग िें सारी िातें प्रकट हुईं ति दुरावनी इस िोक िें नहीं था। िथरा ु था। प्रमतकार

के मिए कुछ भी शेर् नहीं रह गया था। िेमकन भमवष्य के भय से उस रात की गप्तु सभा िें दो अत्यंत कठोर कानून पास

मकए गए थे। कृ ष्ण अय्यर तिु तो वहां िौजूद थे, िताओ।''

कृ ष्ण अय्यर का चेहरा सूख गया। वह िोिा, ''आप जो इशारा कर रहे हैं , िैं उसे सिझ नहीं पा रहा डॉक्टर।''
ु ब्रजेन्द्र, एक कानून था मक िेरे पीछे मकसी काि की आिोचना नहीं हो
डॉक्टर ने रत्ती भर भी महचके मिना कहा, ''सनो

सकती?''

ब्रजेन्द्र व्यंग्य से िोिा, ''आिोचना नहीं की जा सकती?''

डॉक्टर िोिे, ''नहीं, पीछे नहीं की जा सकती। िेमकन की जाती है, िैं यह जानता हूं। इसका कारण यह है मक उस मदन

कें टन की सभा िें जो िोग िौजूद थे वह दुरावनी की िृत्य ु से मजतने उमद्वग्न हो उठे थे िैं नहीं हुआ था। इसमिए यह काि

होता चिा आ रहा है और िैं भी अनदेखा करता चिा आ रहा हूं। िेमकन यह भीर्ण अपराध है।''

ब्रजेन्द्र उपेक्षा भरे स्वर िें िोिा, ''उसे भी कह डामिए।''

डॉक्टर िोिे, ''िेरे मवरुध्द मवद्रोह की भावना प ैदा करना अत्यंत भयंकर अपराध है। दुरावनी की िृत्य ु के िाद िझे
ु सावधान

हो जाना चामहए था।''

ब्रजेन्द्र कठोर हो उठा, ''सावधन होने की जरूरत दूसरों के मिए भी वैसी ही हो सकती है। यह जरूरत आपके मिए

सवावमधकार के रूप िें नहीं है।'' यह कहकर उसने सिकी ओर देखा। िेमकन सि िौन ि ैठे रहे। मकसी ने कोई उत्तर नहीं

मदया।

कािी देर िाद डॉक्टर ने धीरे-धीरे कहा, ''इसकी सजा है-भयानक दंड। सोचा था, जाने से पहिे और कुछ करूंगा।

ु सब्र नहीं हुआ। दूसरों के प्राण िेन े के मिए तिु हिेशा त ैयार रहते हो, िेमकन अपने ऊपर आ पड़ने
िेमकन ब्रजेन्द्र, तम्हें

पर कै सा िगता है, जानते हो?''

ब्रजेन्द्र का िहं ु कािा पड़ गया। जल्दी से स्वयं को संभाि कर िड़े घिंड से िोिा, ''िैं एनामकि स्ट हूं। मरव्योल्यूशनरी हूं।

प्राण िेरे मिए कुछ नहीं हैं । िे भी सकता हूं और दे भी सकता हूं।''

डॉक्टर ने शांत स्वर िें कहा, ''ति तो आज रात को देन े ही पड़ेंग,े िेमकन िेल्ट मनकाि पाने का सिय नहीं मििेगा।


ब्रजेन्द्र िेरी आंख है। तिको िैं पहचानता हूं।'' यह कहकर उन्होंने िौरन मपस्तौि वािा हाथ उठा मिया। भारती ने

व्याकुि होकर उनके उस हाथ को दिाए रखने की चेष्टा की िेमकन दूसरे हाथ से हटाते हुए िोिे, ''मछ:।''

पिभर िें किरे िें ज ैसे वज्रपात हो गया।



समित्रा के होंठ कांपने िगे। िोिी, ''अपने ही भीतर यह सि क्या हो रहा है, िताइए तो।''

तिविकर अि तक चपु था। उसने धीरे से पूछा, ''आपके दि के सभी मनयि िझे
ु िालि नहीं हैं आपसे ितभेद होने का

दंड क्या िृत्य ु है? अपूव व िािू िच गए हैं । इससे िझे


ु प्रसन्नता ही हुई है। िेमकन इसिें अन्याय कि नहीं हुआ है यह सत्य

कहने के मिए िैं िाधय हूं।''

कृ ष्ण अय्यर ने मसर महिाकर सम्ममत दे दी। ब्रजेन्द्र की आवाज िें अि उपहासपूण व श्रध्दा नहीं थी। अन्य िोगों की

ु मत से शमक्त पाकर िोिा, ''एक आदिी के प्राण जाने अगर जरूरी हैं तो मिर िेरे ही चिे जाएं। िैं त ैयार हूं।''
सहानभू


समित्रा ने कहा, ''ट्रे टर के िदिे अगर जाने-पहचाने कािरेड के खून की ही जरूरत है तो िैं भी दे सकती हूं डॉक्टर।''


डॉक्टर चपचाप ु
ि ैठे रहे। समित्रा की िात का उत्तर नहीं मदया।


दो मिनट के िाद िन-ही-िन िस्कराकर ु सिय की हैं । उस सिय तिु िोग थे ही
िोिे, ''यह सि िातें िहुत ही पराने

कहां? इस जाने-पहचाने कािरेड को िैं ही उसी सिय से जानता हूं। जाने दो इस िात को। टोमकयो के एक होटि िें एक

मदन सान्याि सेन ने कहा था, ''मनराशा सहने की शमक्त मजसिें मजतनी कि हो उसे चामहए मक वह रास्ते से उतनी ही दूर

ु झ ूठिूठ भय नहीं मदखाया है। िझे


हटकर चिे। इसमिए िैं सह लं गा। िेमकन ब्रजेन्द्र िैंन े तम्हें ु दूसरी जगह जाना पड़ रहा


है। मडमसमप्लन टूट जाने से िेरा काि नहीं चिेगा। अगर समित्रा ु
तम्हारे दि िें शामिि हो रही है तो-आई मवश यू


गडिक। िेमकन तिु िेरा रास्ता छोड़ दो। सखाया
ु िें एक िार अटे म्पड कर चकेु हैं । परसों मिर मकया, िेमकन इसके िाद

नहीं....।''


समित्रा ने उद्वेग से चौंककर पूछा, ''इन सि िातों का अथव क्या अटे म्पड करना होता है।''

डॉक्टर ने इस प्रश्न को अपने कानों तक नहीं पहुंचने मदया। कृ ष्ण अय्यर ने मसर नीचा कर मिया, िेमकन उत्तर नहीं मदया।


डॉक्टर ने जेि से घड़ी मनकािकर देखी। मिर भारती का हाथ पकड़कर िोिे, ''चिो, तिको डेरे पर पहुंचाकर िैं चिा

जाऊं । उठो।''


भारती सपने िें डूिी-सी ि ैठी थी। इशारा पाते ही चपचाप उठ खड़ी हुई। उसे अपने आगे करके डॉक्टर किरे से िाहर


मनकि गए। दरवाजे पर से सिको सम्बोमधत करके िोिे, ''गडनाइट।''
इस मवदाई-मशष्टाचार का मकसी ने उत्तर नहीं मदया। सभी अमभभूत से स्तब्ध ि ैठे रहें ।

भारती के नीचे उतर जाने के िाद जि डॉक्टर ऊपर की ओर नजर रखकर धीरे-धीरे उतर रहे थे तभी सहसा शमश दरवाजे

िें से िहं ु मनकािकर िोिा, ''िेमकन िझे


ु तो आपसे िहुत जरूरी काि है डॉक्टर।''यह कहकर नीचे उतर उनके पास आ

ु िें की ही नहीं जाती डॉक्टर। आपके मकसी काि आने की


खड़ा हुआ और सांस रोककर िोिा, ''िेरी गणना तो िनष्यों

ु िें नहीं है िेमकन आपका ऋण जीवन पयवि नहीं भूलंगा।''


शमक्त िझ

व उसका हाथ खींचते हुए कहा, ''कौन कहता है मक तिु िनष्य


डॉक्टर ने स्नेहपूवक ु हो, अनेक
ु नहीं हो? तिु कमव हो, गणी

ु से िड़े हो।''
िनष्यों

''आप कहीं भी क्यों न रहें , िेरे पास जो कुछ है सि आपका है, इस िात को ित भूि जाइएगा।''

ु होकर पूछा, ''क्या िात है भ ैया?''


भारती ने उत्सक

डॉक्टर ने हंसते हुए कहा, ''दुमदिन िें तो इन्हें मचंता नहीं थी िेमकन अचानक अच्छे मदन आते ही उन्हें मचंता हो गई है मक

कहीं ऐसा न हो मक इन्हें कृ तज्ञता का ऋण याद ही न रहे। इसमिए कह रहे हैं मक जो कुछ इनके पास है सि िेरा है।''

भारती िोिी, ''ऐसी िात है शमश िािू?''

शमश कुछ नहीं िोिा।

डॉक्टर ने कहा, ''याद रहेगा शमश, याद रहेगा। यह वस्त ु संसार िें इतनी सिभ
ु नहीं है मक कोई भूि जाए।''

शमश ने कहा, ''आप कि जाइएगा?''

डॉक्टर िोिे, ''तिु तो उम्र िें िझसे


ु छोटे हो। इसमिए आशीवावद देकर जा रहा हूं मक तिु सखी
ु रहो।''

शमश ने कहा, ''क्या अगिे शमनवार तक नहीं ठहर सकते?''

भारती िोिी, ''शमनवार को इनका मववाह होगा।''

डॉक्टर कुछ नहीं िोिे। सािने ही कीचड़ िें पड़ी टे ढ़ी नाव पर यत्नपूवक
व भारती को चढ़ाकर स्वयं भी चढ़ गए।
शमश ने कहा, ''शमनवार तक आपको रुकना होगा। जीवन िें अनेक भीखें दी हैं । यह भी दीमजए। भारती, आपको भी उस

मदन आना होगा।''

भारती चपु रही। डॉक्टर ने कहा, ''यह नहीं आएगी शमश। अगर रुका रहा तो आऊं गा और तिु िोगों को आशीवावद दे

जाऊं गा। िैं वचन देता हूं। अगर न आऊं तो सिझ िेना मक सव्यसाची के मिए आना असम्भव था। िेमकन जहां भी रहूं


प्राथवना करूंगा मक तम्हारा ु से िीते।'' यह कहकर नाव चिा दी।
शेर् जीवन सख

ु होने का
भारती िोिी, ''आज अके िी होती तो इतना रोती मक नदी का जि िढ़ जाता। भ ैया, भमवष्य िें सभी को सखी

अमधकार है। नहीं है के वि तिु को। शमश िािू इतना अशोभनीय काि करने जा रहे हैं उन्हें भी जी खोिकर आशीवावद दे

आए। िेमकन इस संसार िें तम्हें ु


ु आशीवावद देन े वािा कोई नहीं है। तिु गरुजन ु िैं
हो, चाहे जो भी हो। िेमकन आज तम्हें


आशीवावद दूंगी मक तम्हारा ु
भमवष्य सखिय हो।''

डॉक्टर हंसकर िोिे, ''छोटों का आशीवावद नहीं ििता। उसका िि उिटा होता है।''

ु िड़ी हूं। जाने से पहिे तिु समित्रा


भारती िोिी, ''झ ूठ है। िैं छोटी नहीं हूं। एक दूसरी दृमष्ट से तिसे ु जीजी के साथ हिेशा

ं तोड़ देना चाहते हो। यह िैं नहीं होने दूंगी। तिु कहोगे मक िैं समित्रा
के मिए संिध ु को प्यार नहीं करता। िेमकन तिु

ु के प्यार का िूल्य ही मकतना है भ ैया? जो आज है, वह कि नहीं रहता। अपूव व िािू भी तो िझे
परुर्ों ु प्यार नहीं कर सके ।

िेमकन िैं कर सकी हूं। िेरा कर सकना ही सि कुछ है। तत ैये िें िध ु इकट्ठा करने की शमक्त नहीं तो इसके मिए मकससे

ु कहे देती हूं भ ैया मक इस संसार को नचाने वािे प्रभ ु कोई भी हों, नारी हृदय के
झगड़ा करने जाऊं । िेमकन आज िैं तिसे


प्रेि का िूल्य चकाने के मिए उन्हें अपूव व िािू को िेकर िेरे हाथों सौंप देना ही पड़ेगा।'' कुछ उत्तर पाने की आशा िें

भारती पिभर स्तब्ध रहकर िोिी, ''भ ैया, तिु िन-ही-िन हंस रहे हो?''

''कहां? नहीं तो।''

ु उत्तर क्यों नहीं मदया?''


''जरूर। नहीं तो तिने

डॉक्टर हंस पड़े। िोिे, ''उत्तर देन े के मिए कुछ था ही नहीं भारती, तम्हारे
ु संसार को नचाने वािे प्रभ ु को भी अगर इस


जिदवस्ती को िानकर चिना पड़ता तो तम्हारी ु
समित्रा जीजी की क्या हाित होती, जानती हो?-ब्रजेन्द्र के हाथों िें स्वयं

को हर प्रकार से सौंप देन े पर ही जान िचती।''


भारती चमकत नहीं हुई। आज की घटना के िाद से यही संदहे उसके िन िें िढ़ता जा रहा था। उसने पूछा, 'ब्रजेन्द्र क्या

ु भी अमधक प्यार करते हैं ?''


उनको तिसे

डॉक्टर िोिे, ''िताना कुछ कमठन है। यह अगर शध्द


ु आकर्वण ही हो, िानव सिाज िें इसकी तिना
ु नहीं मिि सकती।

िाज नहीं, शिव नहीं, सम्भ्रि नहीं। महत-अमहत का ज्ञान लुप्त। पशवत े्
ु उन्मत्त आवेग, जो आंखों से नहीं दीखता, वह


उसके िन का पमरचय पा ही नहीं सकता। भारती, अगर तम्हारे ु
भ ैया के पास यह दोनों हाथ ज ैसी चीज न होती तो समित्रा


के मिए आत्महत्या के अमतमरक्त दूसरा कोई िागव ही नहीं था। संसार को नचाने वािे तम्हारे प्रभ ु भी इतने मदनों इन िोगों

की इज्जत मकए मिना नहीं रह सके हैं ।'' यह कहकर वह भारती के झकेु हुए मसर पर अपने दोनों हाथ रखकर धीरे-धीरे

थपमकयां देन े िगे।

भारती िोिी, ''भ ैया, इतना जानते हुए भी तिु इसी पमरमस्थमत िें समित्रा
ु को छोड़कर चिे जाना चाहते हो? तिु इतने

मनष्ठुर हो सकते हो, िैं सोच भी नहीं सकती।''


डॉक्टर िोिे, ''हां, सच ही िैंन े यही चाहा था। इस िीच अगर पमिस उसे जेि न भेज देगी तो िौट आने पर मकसी मदन

ु यह काि पूरा करना पड़ेगा।''


िझे

भारती के हृदय को गहरा आघात िगा। डॉक्टर सिझ गए िेमकन कुछ भी न कहकर उस पार जाने के मिए दोनों पतवारें

खींचकर नाव खेन े िगे।

ु ारी समित्रा
िहुत देर िाद भारती ने पूछा, ''अच्छा भ ैया, यमद िैं तम्ह ु होती तो क्या तिु िझे
ु भी इसी तरह छोड़कर चिे

जाते?''

डॉक्टर हंसने िगे। िोिे, ''िेमकन तिु तो समित्रा


ु नहीं हो। तिु भारती हो। इसमिए तम्हें
ु छोड़कर नहीं जाऊं गा। काि के

ु करके जाऊं गा।''


मिए मनयक्त

ु िचाओ भ ैया, तिु िोगों की खून-खरािी िें अि िैं शामिि नहीं हूं। तम्हारी
भारती ने व्यग्र होकर कहा, ''िझे ु गप्तु समिमत

ु नहीं होगा।''
का काि अि िझसे

डॉक्टर ने कहा, ''इसका अथव तो यही है मक तिु भी इन िोगों की तरह िझे


ु छोड़कर जाना चाहती हो।''

यह सनकर भारती क्षोभ से व्याकुि हो उठी। िोिी, ''इतनी िड़ी अन्यायपूण व िात तिु िझसे
ु कह सकते हो भ ैया। तिु जो

ु छोड़कर चिी गई, यह िात याद आने पर एक मदन भी जीमवत


इच्छा हो कह सकते हो। िेमकन िैं अपनी ही इच्छा से तम्हें


रह सकती हूं, ऐसा तम्हारा ु
खयाि है? िैं तम्हारा ही काि करती रहूंगी जि तक मक तिु अपनी इच्छा से िझे
ु छुट्टी न

ु की हत्या करते हुए घूिते रहना ही तम्हारा


दोगे।'' थोड़ी देर रुककर िोिी, ''िेमकन िैं जानती हूं मक िनष्य ु वास्तमवक


काि नहीं है। तम्हारा ु को िनष्य
वास्तमवक काि है िनष्य ु की तरह जीमवत रखना। िैं तम्हारे
ु इसी काि िें िगी रहूंगी

और िैं यही सोचकर तिु िोगों की िीच आई थी।''

डॉक्टर ने पूछा, ''यह िेरा कौन-सा काि है?''

भारती िोिी, ''पथ के दावेदारों को गप्तु समिमत के रूप िें पमरणत करने की जरूरत नहीं है। कारखाने के िजदूर-मिमस्त्रयों

की हाित िैं अपनी आंखों से देख आई हूं। उनके पास कुमशक्षा और उनकी जानवरों ज ैसी हाित-अगर सिूच े जीवन िें

उनका रत्ती भर भी प्रमतकार कर सकूं तो इससे िढ़कर िेरे जीवन की साथवकता और क्या हो सकती है? सच िताओ भ ैया,


यह क्या तम्हारा काि नहीं है।''

ु ारा नहीं है भारती। तम्हारे


डॉक्टर िोिे, ''यह काि तम्ह ु ु
मिए दूसरा काि है। यह काि समित्रा का है। िैंन े इस काि का

सारा भार उसी पर छोड़ रखा है।''

भारती चपु रही।

ु कह देना ही उमचत है भारती। कुछ थोड़े से कुिी-िजदूरों की


डॉक्टर ने उसी तरह शांत और िृदु स्वर िें कहा, ''तिसे

भिाई के मिए ही िैंन े 'पथ के दावेदार' की स्थापना नहीं की है। इसका िक्ष्य िहुत िड़ा है। उस िक्ष्य के मिए, हो सकता

है मकसी मदन इन्हीं िोगों को भेड़-िकमरयों की तरह िमि चढ़ा देना पड़े-तिु उसिें ित रहना िमहन। तिु इसे न कर

सकोगी।''

भारती चौंककर िोिी, ''यह तिु क्या कह रहे हो भ ैया? क्या िनष्यों
ु की िमि चढ़ाओगे?''

ु हैं कहां? जानवर ही तो हैं ।''


डॉक्टर ने कहा, ''िनष्य

ु के संिध
भारती िोिी, ''िनष्य ं िें तिु िजाक िें भी ऐसी िात िहं ु से ित मनकािना, कहे देती हूं। झ ूठ-िूठ डराने की

कोमशश ित करो।''
ु डराने की कोमशश कर रहा हूं मजससे िेरे चिे जाने के िाद तिु कुिी-
डॉक्टर िोिे, ''नहीं भारती, झ ूठ-िूठ नहीं। सचिच

िजदूरों की भिाई के चक्कर िें न पड़ो। इस तरीके से इनकी भिाई नहीं की जा सकती। इनकी भिाई की जा सकती है

के वि क्रांमत के द्वारा। इसी िागव पर चिने के मिए िैंन े पथ के दावेदार की रचना की है। क्रांमत शांमत नहीं है। उसे हिेशा

महंसा के िीच से ही कदि रखकर चिना पड़ता है। यही उसका वरदान है और यही अमभशाप! एक िार यूरोप की ओर

ध्यान से देखो। हंगरी िें ऐसा ही हुआ है। कुिी-िजदूरों के खून से उस मदन नगर के सभी राजपथ रमक्ति हो उठे थे।

जापान िें तो अभी उसी मदन की िात है-उस देश िें भी िजदूरों के दु:ख का इमतहास मिंदु िरािर भी इससे मभन्न नहीं है।

ु के चिने का िागव मिना उपद्रव नहीं िनता भारती।''


िनष्य

भारती मसहरकर िोिी, ''यह िैं नहीं जानती। िेमकन उन सि भयानक उपद्रवों को क्या तिु इस देश िें भी खींच िाओगे?

कारखानों के रास्ते िें क्या िजदूरों के रक्त की नदी िहा देना चाहते हो?''

ु सागर िें िानवीय रक्त धारा तरंमगत होकर दौड़ती


डॉक्टर ने सहज भाव से कहा, ''अवश्य चाहता हूं िहािानव के िमक्त

ु गा मकस चीज से? और इस धिाई


जाएगी, यही िेरा स्वप्न है। इतने मदनों का पववत ज ैसा मवशाि पाप धिे ु के काि िें अगर


तम्हारे भ ैया के दो िूदं रक्त की भी आवश्यकता पड़ेगी तो िैं हंसकर िहाऊं गा।''

भारती िोिे, ''इतना तो िैं आपको पहचानती हूं भ ैया। िेमकन क्या देश िें अशांमत िै िा देन े के मिए ही तिु जाि

मिछाकर ि ैठे हो? इससे िड़ा आदशव क्या आपके पास नहीं है?''

ु पढ़ चका
डॉक्टर िोिे, ''आज तक तो मििा नहीं िमहन, िहुत घूि चका, ु और मवचार कर चका।
ु िेमकन भारती, अशांमत

ु -सनते
उत्पन्न करने का अथव अकल्याण उत्पन्न करना नहीं है। शांमत, शांमत सनते ु कान िहरे हो गए हैं । इस असत्य का

प्रचार मकन िोगों ने मकया, जानती हो? दूसरों की शांमत का हरण करके जो प्रासादों िें ि ैठे हैं , वह ही इसके प्रवतवक हैं ।


वंमचत, पीमड़त नर-नामरयों को िगातार यह िंत्र सनाकर उन िोगों को ऐसा िना मदया है मक वे अशांमत के नाि से ही

चौंक उठते हैं और सोचने िगते हैं मक शायद यह पाप है, अिंगि है। िंधी हुई गाय खड़ी-खड़ी िर ही जाती है, िेमकन


परानी रस्सी को तोड़कर िामिक की शांमत भंग नहीं करती, इसीमिए तो आज दमरद्रों के चिने का िागव एकदि िंद हो

गया है। मिर भी उन्हीं िोगों की अट्टामिकाओ ं तथा प्रासादों को तोड़ने के काि िें हि िोग भी उन्हीं िोगों के साथ

मििकर, अशांमत कहकर रोने िगेंग े तो रास्ता कहां मििेगा? यह नहीं हो सकता भारती। यह संस्था मकतनी प्राचीन,

ु से िड़ी नहीं है। आज उन सि को हिें तोड़ चिना होगा।''


मकतनी पमवत्र, मकतनी ही सनातन हो, िनष्य
भारती सांस रोककर िोिी, ''इसके िाद?''

डॉक्टर िोिे, ''इसके िाद-वह मिर िजदूरों के दि िें जाकर उन्हीं हत्यारों के द्वार पर हाथ िै िाते हैं , उन्हें उसकी दया भी

मििती है।''

''इसके िाद?''

ु अत्याचारों के प्रमतकार की आशा से हड़ताि कर ि ैठते हैं । ति


''इसके िाद मिर एक मदन वह िोग दि-िध्द होकर पराने


मिर वही परानी कहानी दोहराई जाने िगती है।''

पिभर को भारती का िन मिर मनराशा से भर गया। धीरे-धीरे िोिी, ''ति ऐसी हड़ताि से क्या िाभ है भ ैया?''


डॉक्टर की आंखों की दृमष्ट अंधरे े िें चिक उठी। िोिे, ''िाभ? यही तो सिसे िड़ा िाभ है भारती। यही तो तम्हारी क्रांमत

का राजपथ है। वस्त्रहीन, अन्नहीन, ज्ञानहीन दमरद्रों की पराजय ही सत्य हुई। उनके सिूच े हृदय िें जो मवर् भरकर उिन

उठता है, जगत िें वह शमक्त क्या सत्य नहीं है? वही तो िेरा िूिधन है। कहीं भी, मकसी भी देश िें के वि क्रांमत के मिए

ही क्रांमत नहीं की जा सकती भारती। उसके मिए कोई-न-कोई आधार अवश्य चामहए। यही तो िेरा आधार है। जो िूख व

इस िात को नहीं जानता के वि िजदूरी की किी-िेशी के मिए हड़ताि कराना चाहता है, वह उन िोगों का भी सववनाश

करता है और देश का भी।''

भारती िोिी, ''नाव शायद पीछे चिी गई भ ैया।''

डॉक्टर िोिे, ''िेरी नजर िें है िमहन। कहां जाना है, भूिा नही हूं।''

ु इसिें से अिग क्यों कर देना चाहते हो? इतनी देर के िाद यह िात िेरी सिझ िें आई है। िैं िहुत
भारती िोिी, ''िझे


किजोर हूं-शायद उनकी तरह ही। आज भी तम्हारा ु
सारा भरोसा समित्रा जीजी पर है। िेमकन यह िात िैं मकसी भी तरह

नहीं िानूग ु की सारी खोज सिाप्त हो चकी


ं ी मक इसके अमतमरक्त और कोई िागव नहीं, िनष्य ु है। एक के िंगि के मिए दूसरे


का अिंगि करना ही होगा। इसे िैं मकसी भी तरह नहीं िान सकती। तम्हारे कहने पर भी नहीं।''

''यह िैं जानता हूं िमहन।''


''तम्हारा काि छोड़कर िैं मकसके सहारे रहूंगी? अगर िौटकर न आए तो कै स े जीऊं गी?''
''यह भी िैं जानता हूं।''

''जानते तो तिु सि कुछ हो।.....ति?''

कुछ देर सन्नाटा रहा। मिर भारती िोिी, ''क्रांमत क्या है? इसकी इतनी आवश्यकता क्यों है?- तम्हारे
ु िहं ु से जि सनती
ु हूं

ु न जाने मकतना देखा है। नहीं तो इस तरह तिको


तो िेरा अि:करण रोने िगता है। िानव के दु:ख का इमतहास तिने ु

मकसने पागि िनाया है? अच्छा, क्या तिु िझे


ु अपने साथ नहीं िे जा सकते भ ैया?''

''तिु क्या पागि हो गई हो भारती?''


''पागि? ऐसा ही होगा। िालि होता है िैं तम्हारे काि िें िाधक हूं। इसीमिए देश के मकसी भी अच्छे काि िें काि नहीं

आ सकती।''

डॉक्टर िोिे, ''देश िें अच्छे काि करने के असंख्य िागव हैं भारती-िेमकन अवसर स्वयं ही खोजना पड़ता है।''

भारती िोिी, ''िैं यह नहीं कर सकती। तिु ही त ैयार करके दे जाओ।''

पिभर िौन रहकर डॉक्टर िोिे। उनका हंसता हुआ चेहरा सहसा गम्भीर हो उठा था मजसे अंधरे े िें भारती देख नहीं पाई;

''देश िें छोटी-िड़ी अनेक ऐसी संस्थाएं हैं जो देश के मिए अनेक अच्छे काि करती हैं । पीमड़तों की सेवा, रोमगयों के मिए


दवा जटाना, ु िागव मदखा देंगी भारती। िेमकन िैं तो क्रांमतकारी
उन्हें सांत्वना देना, िाढ़-पीमड़तों की सहायता-यह ही तम्हें

ु िोह नहीं, दया नहीं, स्नेह नहीं, पाप-पण्य


हूं। िझिें ु िेरे मिए मिर्थ्ा पमरहास हैं । यह सि अच्छे काि िड़कों के खेि


सरीखे हैं । भारत की स्वाधीनता ही िेरा एकिात्र िक्ष्य है, िेरा एकिात्र साधन है। िेरे मिए यही अच्छा है और यही िरा

भी है। इसके अमतमरक्त िेरे जीवन िें िेरे मिए कहीं भी कुछ नहीं है। अि िझे
ु ित खींचो भारती।''

आज शमश और नवतारा का मववाह है। शमश की समवनय प्राथवना थी मक रात को डॉक्टर भारती को साथ िेकर आ जाएं


और उन िोगों को आशीवावद दे जाएं। भारती कािे रेपर से अपने शरीर को ढंके चपचाप कदि िढ़ाती हुई, घाट के मकनारे

जा खड़ी हुई। डॉक्टर नाव िें उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।


ु िताए
नाव िें चढ़कर भारती िोिी, ''क्या-क्या िातें सोचती हुई आ रही थी, कोई मठकाना नहीं है। िैं जानती थी मक िझे

मिना तिु कभी नहीं जाओगे। मिर भी भय दूर नहीं होता। अभी मदन ही मकतने िीते हैं िेमकन ऐसा िगता था ज ैसे मकतने

ु से तम्हें
ही यगों ु नहीं देखा है। भ ैया, िैं तम्हारे
ु साथ चीमनयों के देश िें चलं गी। यह िैं िताए देती हूं।''

डॉक्टर ने हंसते हुए कहा, ''िैं भी िताए देता हूं मक तिु इस तरह का कोई काि करने की कोमशश कभी न करना।'' यह

कहकर उन्होंने भाटे के िहाव िें नाव छोड़ दी। िोिे, 'इतनी दूर तक आराि से चिे जाएंग।े िेमकन नदी िें पहुंचकर

उिटे िहाव को ठे िकर पहुंचने िें िहुत देर हो जाएगी।''

भारती िोिी, ''हो जाए तो क्या? कौन िड़े शभु कायव िें भाग िेन े जा रहे हो मक सिय िीत जाने से हामन होगी। िेरी तो

जाने की इच्छा ही नहीं थी। के वि तिु जा रहे हो, इस मिए चि रही हूं। कै सा गंदा काि हो रहा है, िताओ तो।''

पि भर िौन रहकर डॉक्टर ने कहा, ''शमश का नवतारा के साथ मववाह िहुत से िोगों के संस्कार िें खटक रहा है। शायद

यह देश के कानून के भी मवरुध्द है, िेमकन यह दोर् शमश का तो है नहीं। कानून और उसे िनाने के मिए जो िोग

ु के वि इतना ही क्षोभ है मक शमश ने मकसी अन्य स्त्री को प्यार नहीं मकया।''


उत्तरदायी हैं उन्हीं का दोर् है। िझे

भारती हंसकर िोिी, ''िान िेती हूं मक शमश िािू मकसी दूसरी स्त्री को प्यार करते, िेमकन वह उन्हें क्यों प्यार करती? उन


ज ैसे आदिी को जान-िूझकर कोई स्त्री प्यार कर सकती है, इस िात की तो िैं कल्पना भी नहीं कर सकती। अच्छा, तम्हीं

िताओ, क्या कोई कर सकती है?''

डॉक्टर िोिे, ''उसे प्यार करना कमठन तो है ही। इसीमिए तो उसे आशीवावद देन े के मिए िैं रुक गया। िन िें मवचार


आया मक यमद सच्ची शभकािना िें कोई शमक्त हो तो शमश को उसका िि मििे।''

उनकी आवाज िें अचानक गम्भीरता आ जाने के कारण भारती ने िहुत देर चपु रहने के िाद पूछा। ''शमश िािू को प्यार

करते हो भ ैया?''

''हां।''

''क्यों?''

ु ही क्यों इतना प्यार करता हूं-क्या इसका कारण िता सकता हूं? शायद इसी तरह हो सकता है।''
''तम्हें

भारती ने आदर से पूछा, ''अच्छा भ ैया, तम्हारे मिए क्या हि दोनों एक ही सिान हैं ? मिर दूसरे ही पि हंसती-हुई िोिी,


''मिर भी इतने मदनों िें अपना िूल्य िहुत पा गई। चिो, िैं भी तम्हारे व उन्हें आशीवावद
साथ चिकर प्रसन्नता पूवक

....नहीं, नहीं प्रणाि कर आऊं ।''

डॉक्टर भी हंस पड़े, िोिे, ''चिो।''

भारती िोिी, ''भ ैया, ज ैसे सिद्रु की थाह नहीं है, उसी तरह तम्हारी
ु ु
भी कोई थाह नहीं है। स्नेह करो, प्यार कहो, तम्हारे

ऊपर मनभवर होकर कुछ भी दृढ़ता से खड़ा नहीं रह सकता, सभी न जाने कहां सिा जाते हैं ।''

''पहिे जो सिद्रु की थाह है। इसमिए इस संिध ु ारी यह उपिा गित है।''
ं िें तम्ह


भारती िोिी, ''इस मवर्य िें शायद िैं तिको ु हूं मक तम्हारे
सौ िार कह चकी ु अमतमरक्त इस संसार िें िेरा और कोई नहीं


है। तम्हारे ु
चिे जाने पर िैं कहां खड़ी रहूंगी? िेमकन यह िात तम्हारे े ी मकस
कानों तक पहुंचती ही नहीं है। और पहुंचग


तरह भ ैया, तम्हारे पास हृदय तो है नहीं। िैं ठीक-ठाक जानती हूं मक एक िार आंख से ओझि होते ही तिु िझे
ु जरूर

भूि जाओगे।''


डॉक्टर िोिे, ''नहीं, तम्हारी याद हिेशा िनी रहेगी।''

भारती िोिी, ''क्या भरोसा िेकर िैं रहूंगी भ ैया?''

''सौभाग्यवती मस्त्रयां मजस भरोसे को िेकर रहती हैं । पमत, िाि-िच्चे, घर-द्वार...!''

भारती क्रुध्द होकर िोिी, ''िैंन े अपूव व िािू को िक्त


ु हृदय से प्यार मकया था-इस सत्य को तिसे
ु मछपाया नहीं। उनको पा

जाती तो िेरा जीवन धन्य हो जाता। िेमकन इसी कारण तिु िेरा अपिान करते रहते हो, क्यों?''

''अपिान? िैंन े तो अपिान नहीं मकया भारती।''

आंस ू भर जाने के कारण भारती रुंधे गिे से िोिी, ''कै स े नहीं मकया? तिु जानते हो मक इस काि िें मकतनी िाधाएं हैं ।

तिु जानते हो मक वह िझे


ु कभी ग्रहण नहीं कर सकते। मिर भी तिु यह िातें कहते हो।''

डॉक्टर ने िस्कराकर कहा, ''मस्त्रयों िें यही तो सिसे िड़ा दोर् है। वह स्वयं एक मदन जो िात कह देती हैं अगर कोई दूसरा


वही िात दूसरे मदन कह दे तो वह झटपट िारने दौड़ती हैं । उस मदन समित्रा ु कहा था मक वह मकसी मदन
की िात पर तिने

मकसी को खींचकर प ैरों तिे िा मगरा देगी। और आज उसी िात को िैंन े दोहरा मदया तो रोने िगीं।''

ु ित कहो।''
''नहीं, यह िातें िझसे

''अच्छा नहीं कहूंगा, िेमकन इस िार की यात्रा से यमद िचकर िौट आया तो यह िात िेरे प ैरों के पास गिे िें आंचि

ु स्वीकार करनी पड़ेगी-भ ैया, िझसे


िांधकर तम्हें ु करोड़ों अपराध हुए हैं । अवश्य ही तिु हाथ देखना जानते हो। नहीं तो

िेरे सौभाग्य के िारे िें इतनी सच्ची िात कै स े कह सकते थे।''

भारती ने इसका उत्तर नहीं मदया।

कुछ देर चपु रहकर डॉक्टर िोिे, तो िगा ज ैसे उनके कं ठ स्वर िें एक अद्भतु स्वर आ मििा हो। उन्होंने कहा, ''उस रात

जि तिु समित्रा
ु की िात कह रही थीं भारती, ति िैं उसका उत्तर नहीं दे पाया था। िैं इस पथ का यात्री नहीं हूं। मिर भी


तम्हारे िहं ु से समित्रा
ु ु
की कहानी सनकर िेरे रोंगटे खड़े हो गए थे। संसार िें घूिकर अनेक चीजों के िारे िें जानकारी

ं िें कुछ भी नहीं जान पाया हूं। िमहन, असम्भव नािक शब्द इस
प्राप्त की है िेमकन के वि नर-नारी के प्रेि तत्व के संिध

संसार िें शायद इन्हीं िोगों के कोश िें नहीं मिखा है।''


भारती िोिी, ''तम्हारी िात सच हो भ ैया। वह शब्द तिु िोगों के कोश से भी मिट जाए। समित्रा
ु जीजी का भाग्य एक

मदन प्रसन्न हो।'' थोड़ी देर ठहरकर उसने कहा, ''िैंन े िहुत सोच-मवचार कर मिया है िेमकन उसिें अि िेरा अपना आनंद

ु ही प्यार करती हूं। भिे हों या िरेु हों-िैं अि


नहीं है। अि िैं उसकी आशा भी नहीं करती। अपूव व िािू को िैं सचिच

उनको भूि नहीं सकूं गी, िेमकन इसका अथव यह नहीं मक उनकी पत्नी न िन पाने पर, उनकी घर-गृहस्थी न कर पाने पर

ु शांत िन से आशीवावद
िेरा जीवन व्यथव हो जाएगा। िेरे मिए शोक की यह िात नहीं है भ ैया। िैं सच कह रही हूं मक िझे


देकर रास्ता मदखाते जाओ। तम्हारी तरह िैं भी दूसरों के काि िें ही अपने इस जीवन को साथवक कर डालं गी। भ ैया,

अपनी इस मनरामश्रत िमहन को अपना साथी िना िो।''


डॉक्टर चपचाप ु का उन्होंने उत्तर नहीं मदया।
नाव चिाने िगे। इतने मवनय भरे अनरोध
अंधरे े के कारण भारती उनका चेहरा नहीं देख पाई, िेमकन उनके िौन से उसे आशा िंधी। इस िार उसकी आवाज िें स्नेह


पूण व मनवेदन की मवमवड़ वेदना उभरकर ऊपर तक चिी आई। िोिी, ''िे चिोगे भ ैया, अपने साथ? तम्हारे अमतमरक्त इस

ु कहीं नहीं मदखाई पड़ता।''


अंधकार िें िूदं भर भी प्रकाश िझे


डॉक्टर िोिे, ''असम्भव है भारती। तम्हारी ु जोआ की याद मदिा दी। तम्हारी
िातों ने आज िझे ु तरह ही उसका अिूल्य

जीवन भी अकारण नष्ट हो गया था। भारत की स्वाधीनता के अमतमरक्त िेरा और कोई भी िक्ष्य नहीं है। जीवन िें इससे

ु कभी नहीं हुई है। स्वाधीनता का अंत नहीं है। धिव, शांमत, काव्य, आनंद,
िढ़कर और कोई कािना नहीं है-ऐसी भूि िझसे

यह सि और भी है। इनके चरि मवकास के मिए ही तो स्वाधीनता चामहए। नहीं तो उसका िूल्य क्या है? इसके मिए िैं


तम्हारी ु
हत्या नहीं कर सकता िमहन। तम्हारे ु से ििािि भर उठा है मक वह
अंदर जो हृदय-स्नेह, प्रेि, करुणा और िाधयव

िेरे प्रयोजन को पार करके िहुत ऊं चाई तक चिा गया है। हाथ िढ़ाने पर भी िैं वहां तक नहीं पहुंच सकता।''


भारती का सवाांग पिमकत ु िूमतव िानो सहसा उसने
होकर रोिांमचत हो उठा। सव्यसाची के गम्भीर हृदय की एक अनरूप

ु और आनंद से मवगमित होकर िोिी, ''िैं भी तो यही सोचती रही हूं भ ैया मक तम्हारे
देख िी। िमक्त ु मिए इस संसार का

कौन-सा मवर्य अज्ञात है और अगर ऐसी िात है तो तिु इस र्डयंत्र िें लुप्त होकर क्यों पड़े हो? िानव का चरि कल्याण

तो इनके द्वारा कभी हो ही नहीं सकता।''

डॉक्टर िोिे, ''ठीक, यही िात है। िेमकन चरि कल्याण का भार हि मवधाता के हाथों िें ही छोड़कर क्षद्रु िानव के मिए

जो सािान्य कल्याण है उसी को करने की चेष्टा करते हैं । अपने देश िें स्वाधीन भाव से िात करने, स्वाधीन भाव से

चिने-मिरने के अमधकार का ही हिारा दावा है। हि इससे अमधक और कुछ नहीं चाहते भारती।''

भारती िोिी, ''यह तो सभी चाहते हैं भ ैया। िेमकन इसके मिए नर-हत्या का र्डयंत्र क्यों? इसकी आवश्यकता ही क्या

ु क्षिा करो भ ैया? िैंन े क्रोधावेश


है?'' -िेमकन यह िात कहकर भारती िमज्जत हो उठी। मिर एक पि रुककर िोिी, ''िझे

ु छोड़कर तिु चिे जाओगे, िैं यह सोच भी नहीं सकती।''


िें यह झ ूठी िात कह डािी। िझे

''यह िैं जानता हूं।''

इसके िाद िहुत देर तक मिर कोई िातचीत नहीं हुई।


उस सिय कुछ मदनों स्वदेशी आंदोिन सिूच े भारत िें िै ि चका
ु था। देश भर के नेतागण देश-उध्दार के उद्देश्य के

कानून िनाकर जो जिते हुए भार्ण देत े हुए घूि रहे थे उन्हीं के सारांश अखिारों िें पढ़कर भारती श्रध्दा और मवस्मय से

भर जाती थी। मपछिी रात को ऐसी ही एक रोिांचकारी घटना अखिार िें पढ़ने के िाद से आज मदन िें उत्तेजना की एक

तप्त हवा उसके िन िें िहती रही थी। उसी को याद करके वह िोिी, ''िैं जानती हूं मक अंग्रज ु
े ी राज्य िें तम्हारे मिए स्थान

नहीं है, िेमकन सारा संसार ही तो उनका नहीं है। वहां जाकर तिु िोग सरि और प्रकट रूप से अपने उद्देश्यों की मसमध्द

के मिए चेष्टा कर सकते हो।'' अच्छा भ ैया, कि के िंगिा अखिार िें....!''


डॉक्टर िीच िें ही हंस पड़े, िोिे, ''िचाओ भारती, हिसे तिना करके उन पूज्यनीयों का अपिान ित करो।''

ु उन पर व्यंग्य भरी छींटाकशी कर रहे हो।''


भारती िोिी, ''तम्हीं

डॉक्टर िोिे, ''मििुि नहीं, उन िोगों की िैं भमक्त करता हूं और उनके देशोध्दार के मिए मकए गए भार्णों को हि िोगों

से अमधक उपयोग भी कोई नहीं करता।''

भारती िोिी, ''तिु िोगों का िागव भिे ही एक न हो िेमकन उद्देश्य तो एक ही है।''

ु हंस रहा था िेमकन अि िैं क्रोध करूंगा भारती। रास्ता एक नहीं है, यह जानी हुई
डॉक्टर िोिे, ''अभी तक िैं सचिच


िात है। िेमकन िक्ष्य उससे भी अमधक स्पष्ट है, यह क्या तम्हारी सिझ िें नहीं आया? संसार की अनेक जामतयां स्वाधीन

हैं । इससे िढ़कर दूसरा कोई गौरव िानव जामत के मिए नहीं है। उस स्वाधीनता का दावा करना, उसके मिए चेष्टा करना

े ों के कानून िें राजद्रोह िाना गया है। िैं उसी अपराध


तो दूर की िात है, उसकी कािना करना, कल्पना करना भी अंग्रज

ु पूज्य व्यमक्त कानून से


का अपराधी हूं। मचरकाि तक पराधीन रहना ही इस देश का कानून है। इसमिए यह सि चतर,

िाहर कभी कोई दावा नहीं करते। चीन देश के िंच ू राजाओ ं की तरह इस देश िें भी अगर अंग्रज
े यह कानून िना देत े मक

सिको ढाई हाथ िम्बी चोटी रखनी पड़ेगी। ति उस चोटी के मवरुध्द भी यह िोग मकसी तरह की ग ैर कानूनी प्राथवना न

करते। यह िोग यह कहकर आंदोिन करते मक ढाई हाथ की चोटी रखने का कानून िनाकर देश के प्रमत िहुत िड़ा

अन्याय मकया गया है। इससे देश का सववनाश हो जाएगा इसमिए इसे घटाकर सवा दो हाथ कर मदया जाए।''-इतना

कहकर वह अपनी रमसकता से प्रिुमल्लत होकर सहसा इस तरह ठठाकर हंस पड़े मक नदी की अंधकारिय नीरवता भी

ु हो उठी।
मवक्षब्ध
हंसी रुकने पर भारती िोिी, ''तिु जो कुछ भी क्यों न कहो, िेमकन यह िात िैं मकसी भी तरह नहीं िान सकती मक वह भी

देशवामसयों के मिए अमभनंदनीय नहीं है। िैं सभी की िात नहीं कर रही हूं। िेमकन जो िोग वास्तव िें राजनीमतज्ञ हैं ,

ु तक हैं , उनका सारा पमरश्रि ही व्यथव है। यह िात मनस्संकोच स्वीकार कर िेना कमठन है। ित
वास्तव िें देश के शभमचं

और िागव पृथक-पृथक होते हुए भी मकसी की उपेक्षा करना शोभा नहीं देता।''

ु करके डॉक्टर चपु हो गए। कुछ देर िाद धीरे से िोिे, ''भारती, तिको
उसकी आवाज की गम्भीरता अनभव ु व्यथा

ु इसकी
पहुंचाना िेरा अमभप्राय नहीं है। उनके राजनीमतक पांमडत्य पर भी िेरी भमक्त कि नहीं है। िेमकन िात क्या है? तम्हें

वास्तमवक जानकारी करा देता हूं िमहन। जि कोई गृहस्थ छोटी रस्सी से गाय को िांधता है तो उस छोटी रस्सी िें के वि

एक ही नीमत रहती है। िैं के वि इतना ही जानता हूं। मििुि पहुंच के िाहर रखे गए खाद्य पदाथव की ओर जी-जान से

िहं ु िढ़ाकर उसे चाटने या खाने की गाय की चेष्टा िें अवैधता कुछ भी नहीं है। वह मनतांत वैधामनक और कानून सम्मत

है। उत्साह देन े योग्य हृदय हो तो दे सकती हो राजा की ओर से िनाही नहीं है। िेमकन गाय या ि ैि के इस उद्यि को जो

िोग िाहर से देखते हैं , उनके मिए हंसी रोक पाना कमठन हो जाता है।''

भारती हंसकार िोिी, ''तिु िड़े दुष्ट हो भ ैया। िेमकन यह िात सिझ िें नहीं आती मक मजसके प्राण रात-मदन पतिे धागे

िें िटक रहें हों वह दूसरों की िात पर हंसी-िजाक कै स े करता है?''

ु है भारती, मजस मदन


डॉक्टर ने स्वाभामवक स्वर िें कहा, ''इसका कारण यह है मक इस सिस्या पर पहिे ही मवचार हो चका

ु कुछ सोचना भी नहीं है, मशकायत भी नहीं है। िैं जानता हूं मक िझे
से िैंन े क्रांमतकारी कािों िें भाग मिया है। अि िझे ु

ु छोड़ देती है, वह तो असिथव है या मिर उनके पास िांसी देन े के मिए रस्सी नहीं है।''
हाथ िें पाकर भी जो राजशमक्त िझे


भारती िोिी, ''इसीमिए तो िैं तम्हारे ु ारे प्राण िे सके , ऐसी शमक्त संसार िें
साथ रहना चाहती हूं, भ ैया। िेरे होते हुए तम्ह

कोई भी नहीं है। यह िैं मकसी भी तरह नहीं होने दूंगी।''-कहते-कहते उसकी आवाज भारी हो उठी।


डॉक्टर को इसका पता चि गया। चपचाप िम्बी सांस िेकर वह िोिे, ''नाव पर अि ज्वार िग रहा है भारती। अि हिें

पहुंचने िें देर नहीं होगी।''

ु कुछ भी अच्छा नहीं िग रहा।''


भारती िोिी, ''हटाओ। जाने दो। िझे
दो मिनट के िाद उसने पूछा, ''इतनी िड़ी राजशमक्त को तिु िोग शारीमरक शमक्त से महिाकर मगरा सकते हो-इस िात िें

क्या तिु सचिच


ु ही मवश्वास करते हो भ ैया?''

डॉक्टर िोिे, ''करता हूं और पूरे हृदय से करता हूं। इतना िड़ा मवश्वास न रहता तो िेरा इतना िड़ा व्रत िहुत मदन पहिे

ही भंग हो गया होता।''

भारती िोिी, ''िेमकन शायद धीरे-धीरे अपने कािों िें से तिु िझे
ु मनकािते जा रहे हो। ठीक है न भ ैया?''


डॉक्टर िस्कराते हुए िोिे, ''नहीं ऐसी िात नहीं है भारती, िेमकन मवश्वास ही तो शमक्त है। मवश्वास न रहने से तो संदहे के


कारण तम्हारा ु
कत्तवव्य कदि-कदि पर िोझ-सा हो उठे गा। संसार िें तम्हारे मिए दूसरे काि हैं िमहन। कल्याणकारी

शांमतपूण व िागव हैं मजस पर तिु अपने सम्पूण व हृदय से मवश्वास करती हो उसी काि को तिु करो।''

अगाध स्नेह के कारण ही यह व्यमक्त अपने अत्यंत संकटपूण व मवप्लव के िागव से दूर हटा देना चाहता है। इसका भिी-भांमत

ु करके भारती की सजि आंखों से आंस ू उिड़ पडे। मछपाकर अंधरे े िें धीरे-धीरे आंस ू पोंछकर िोिी, ''भ ैया, िेरी
अनभव


िात सनकर ु का मकतना मवमचत्र
नाराज ित होना। इतनी िड़ी राज-शमक्त, मकतनी िड़ी स ैन्य-शमक्त, मकतने उपकरण, यध्द


और भयानक आयोजन- इनके सािने तम्हारा क्रांमतकारी दि मकतना-सा है? सिद्रु के सािने तिु गोिरैिे से भी तो छोटे

हो। उसके साथ तिु अपनी शमक्त की परीक्षा मकस प्रकार करना चाहते हो? प्राण देना चाहते हो तो जाकर दे दो। िेमकन

ु और कोई मदखाई नहीं देता। तिु कहोगे, ति क्या देश का उध्दार नहीं होगा? प्राणों के भय से
इससे िड़ा पागिपन िझे


क्या अिग हटकर खड़ा हो जाऊं ? िेमकन िैं यह नहीं कह रही हूं, तम्हारे ु
पास रहकर तम्हारे चमरत्र से िैं यह जान गई हूं-

ु के मिए और नहीं
मक जननी जन्म-भूमि क्या चीज है। उसके चरणों से सववस्व अप वण कर सकने से िढ़कर साथवकता िनष्य


हो सकती। यह िात भी अगर तिको ु िढ़कर मकसी अधि नारी ने जन्म ही नहीं
देखकर िैं न सीख सकी होऊं तो िझसे


मिया, यह िानना पड़ेगा। िेमकन के वि आत्म-हत्या करके ही कि कौन देश स्वतंत्र हुआ है। तम्हारी भारती मकसी तरह

के वि जीमवत रहना चाहती है। इतनी िड़ी गित धारणा िेरे संिध
ं िें कभी ित रखना, भ ैया।''

डॉक्टर िोिे, ''ऐसी ही िात है।''

''ऐसी ही िात क्या?''



''तम्हारे ं िें गिती तो हुई ही है,'' यह कहकर कुछ देर के मिए डॉक्टर िौन हो गए। मिर िोिे, ''भारती, मवप्लव का
संिध

ु के उपकरण, यह सि िैं जानता हूं। िेमकन शमक्त-


अथव है- अत्यंत शीघ्रता से आिूि पमरवतवन। स ैन्य िि, मवराट यध्द

परीक्षा तो हि िोगों का िक्ष्य नहीं है। आज जो िोग हिारे शत्र ु हैं कि वह ही िोग मित्र भी हो सकते हैं । नीिकांत

शमक्त परीक्षण के मिए नहीं गया था, उसने मित्र िनाने के मिए प्राण मदए थे। हाय रे नीिकांत! आज कोई उसका नाि तक

नहीं जानता।''

अंधकार के िीच भी भारती ने स्पष्ट रूप से सिझ मिया मक देश के िाहर, देश के काि िें मजस िड़के ने िोगों की नजरों


से िचकर चपचाप प्राण दे मदए उसे याद करके इस मनमववकार अत्यमधक-संयत व्यमक्त का गम्भीर हृदय पि भर के मिए

आिोमड़त हो उठा है। अचानक वह सीधे होकर ि ैठ गए। िोिे, ''क्या कह रही थी भारती, गोिरैिा? ऐसा ही हो शायद।

िेमकन आग की जो मचनगारी गांव-नगर जिाकर भस्म कर देती है वह आकार िें मकतनी िड़ी होती है? जानती हो? शहर

जि जिता है ति वह अपना ईंधन आप ही इकट्ठा करके भस्म होता रहता है। उसके राख होने की सािग्री उसी के अंदर

संमचत रहती है। मवश्व-मवध्न के इस मनयि का कोई भी राज-शमक्त कभी भी व्यमतक्रि नहीं कर सकती।''


भारती िोिी, ''भ ैया तम्हारी ु से शरीर कांपने िगता है। मजस राज-शमक्त को तिु जिा देना चाहते हो, उसका
िात सनने


ईंधन तो हिारे देश के िोग हैं । इतने िड़े िं का कांड की कल्पना करते हुए क्या तम्हारे िन िें करुणा नहीं जागती?''

डॉक्टर ने स्पष्ट शब्दों िें कहा, ''नहीं। प्रायमश्चत शब्द क्या के वि िहं ु से कहने के मिए ही है? हिारे पूवज ु
व -मपतािहों के यगों

से संमचत मकए गए पापों को अपमरिेय स्तूप कै स े सिाप्त होगा-िता सकती हो? करुणा की अपेक्षा न्याय-धिव िहुत िड़ी

चीज है भारती।''


भारती िोिी, ''यहां तम्हारी ु
परानी ं िें रक्तपात के अमतमरक्त और कुछ ज ैसे
िात है भ ैया। भारत की स्वतंत्रता के संिध


तम्हारे िन िें आ ही नहीं सकता, रक्तपात का उत्तर क्या रक्तपात ही हो सकता है? और उसके उत्तर िें भी तो रक्तपात के

अमतमरक्त कुछ नहीं मििता। यह प्रश्नोत्तार तो आदि काि से ही होता चिा आ रहा है। ति क्या िानव सभ्यता इससे

ु है वह तो आज भी िौजूद है।
िड़ा उत्तर मकसी मदन दे नहीं सके गी? देश चिा गया। िेमकन उससे भी िड़ा जो िनष्य


िनष्य-िन ु के साथ आपस िें िड़ाई-झगड़ा न करके क्या मकसी तरह रह नहीं सकते?''
ष्य

े कमव ने कहा है मक पमश्चि और पूव व मकसी मदन भी नहीं मिि सकते।''


डॉक्टर िोिे, ''एक अंग्रज
भारती िोिी, ''िूख व है वह कमव। कहने दो उसे। तिु ज्ञानी हो। तिसे
ु िैंन े अनेक िार पूछा है, आज भी पूछा रही हूं। होने

ु िेमकन है तो वह िनष्य
दो उन्हें पमश्चि या योरोप का िनष्य। ु ही? िनष्य
ु के साथ िनष्य
ु क्या मकसी प्रकार भी मित्रता नहीं

ु सोचने पर
े ों की ऋणी हूं। उनके अनेक सद्गणु िैंन े देख े हैं । उन िोगों को इतना िरा
कर सकता। भ ैया, िैं ईसाई हूं। अंग्रज

ु गित ित सिझना भ ैया। िैं िंगािी िड़की हूं। तम्हारी


िेरी छाती िें शूि-सा मिंध जाता है। िेमकन िझे ु िमहन हूं।

ु को अपने प्राणों से िढ़कर प्यार करती हूं। कौन जानता है, तिने
िंगाि की मिट्टी और िंगाि के िनष्यों ु मजस जीवन को

चनु मिया है, उसे देखते हुए शायद आज ही हि िोगों की अंमति भेंट हो। शांत िन से आज उत्तर देत े जाओ मजससे

उसी ओर दृमष्ट रखकर जीवन भर नजर उठाकर सीधी चि सकूं ,'' कहते-कहते उसका गिा रुंध गया।


डॉक्टर चपचाप नाव खेत े रहे। मविम्ब देखकर भारती के िन िें यह मवचार आया मक शायद वह इसका उत्तर नहीं देना

चाहते। उसने हाथ िढ़ाकर नदी के पानी से िहं ु धो डािा। अपने आंचि से अच्छी तरह पोंछकर मिर न िालि वह क्या

ु देख े
प्रश्न करने जा रही थी मक डॉक्टर िोि उठे , ''एक तरह के ऐसे सांप होते हैं भारती, जो सांप खाकर ही जीते हैं । तिने

हैं ?''

ु है।''
भारती ने कहा, ''नहीं, देख े नहीं। के वि सना


डॉक्टर िोिे, ''पशशािा िें हैं । एक िार किकत्ते जाकर अपूव व को आदेश देना, वह मदखा देगा।''

''िजाक ित करो भ ैया, अच्छा नहीं होगा।''

''अच्छा नहीं होगा, िैं भी यही कह रहा हूं। उनका पास-पास रहना ठीक नहीं होता, िेमकन मवश्वास न हो तो मचमड़या घर

के इंचाजव से पूछ िेना।''

भारती चपु ही रही। डॉक्टर िोिे, ''तिु उन िोगों के धिव को िानती हो। उनकी ऋणी हो। उनके अनेक सद्गणु तिने

ु देखा है उनकी मवश्व को हड़प िेन े वािी मवराट भूि का पमरणाि?'' वह िोग
अपनी आंखों से देख े हैं । िेमकन क्या तिने


इस देश के स्वािी हैं । आज मब्रमटश सम्पमत्त की तिना नहीं की जा सकती। मकतने जहाज, मकतने कि-कारखाने, मकतनी

ु को िार डािने के उपकरणों और आयोजनों का अंत नहीं है। अपने सिस्त अभावों और
हजारों-िाखों इिारतें। िनष्यों

हर प्रकार की आवश्यकताओ ं को मिटाकर भी अंग्रज े्


े ों ने सन 1910 से िेकर सत्रह वर्ों तक िाहरी देशों को ऋण मदया

था-तीन हजार करोड़ रुपए। जानती हो, इस मवराट वैभव का उद्गि कहां है? अपने को तिु िंग देश की िड़की िता रही
थी न? िंगाि की मिट्टी, िंगाि की जिवाय,ु िंगाि के िनष्य,
ु तम्हारे
ु मिए प्राणों से भी अमधक मप्रय हैं न? इसी िंगाि की


दस िाख नर-नारी प्रमत वर्व ििेमरया से िर जाते हैं । एक यध्दपोत का िूल्य मकतना होता है-जानती हो? उनिें से के वि

एक के ही खचव से कि-से-कि दस िाख िाताओ ं के आंस ू पोंछे जा सकते हैं । कभी तिने
ु इस िात पर भी मवचार मकया है?

मशल्प गया, व्यापार गया, धिव गया, ज्ञान गया-नमदयों की छाती सूखकर िरुस्थि िनती जा रही है। मकसान को भर पेट

खाने को अन्न नहीं मििता। मशल्पकार मवदेमशयों के द्वार पर िजदूरी करता है। देश िें जि नहीं, अन्न नहीं। गृहस्थ की

सवोत्ति सम्पदा गोधन भी नहीं। दूध के अभाव िें उनके िच्चों को िरते देखा है भारती?''

भारती ने चीखकर उन्हें रोकना चाहा, िेमकन उसके गिे से एक अस्फुट शब्द के अमतमरक्त और कुछ नहीं मनकिा।

ु था। िोिा, ''तिु ईसाई हो। तम्हें


सव्यसाची का वह धीिा संयत कं ठ स्वर पहिे ही कभी अंतमहित हो चका ु याद है, एक

ु यूरोप की ईसाई सभ्यता का स्वरूप जानना चाहा था। उस मदन व्यथा पहुंचने के भय से िैंन े नहीं
मदन कौतूहि वश तिने

िताया था। िेमकन आज िताता हूं। तिु िोगों की पस्तक


ु ु है, अच्छी िातें िहुत हैं ।
िें क्या है, िैं नहीं जानता। सना

ु मछपा नहीं है। िज्जाहीन, नग्न स्वाथव और


िेमकन िहुत मदनों तक एक साथ रहने से उनका वास्तमवक स्वरूप िझसे

ु की िमध्द
पाशमवक शमक्त की प्रधानता ही उसका िूििंत्र है। सभ्यता के नाि पर दुिविों और असिथों के मवरुध्द िनष्य ु ने

इससे पहिे इतने भयंकर और घातक िूसि का आमवष्कार नहीं मकया था। पृथ्वी के िानमचत्र की ओर आंख उठाकर

देखो, यूरोप की मवश्व-ग्रासी भूख से कोई भी दुिवि जामत अपनी रक्षा नहीं कर पाती। देश की मिट्टी, देश की सम्पदा से देश

की संतान मकस अपराध से वंमचत हुई? तिु जानती हो भारती, एक िात्र शमक्त-हीनता के अपराध से। मिर भी न्याय धिव

ही सिसे िड़ा धिव है और मवमजत जामत के अशेर् कल्याण के मिए ही अधीनता की जंजीर उसके प ैरों िें डािकर उस पंग ु

का हर प्रकार का उत्तरदामयत्व ढोते रहना ही योरोमपयन सभ्यता का परि कत्तवव्य है। इस परि असत्य का िेखों, भार्णों,


मिशनमरयों के धिव-प्रचार िें, िड़कों की पाठय-पस्तकों के द्वारा प्रचार करना ही तिु िोगों की अपनी सभ्यता की राजनीमत

है।

भारती मिशनमरयों के िीच ही इतनी िड़ी हुई है। अनेक िहान चमरत्र उसने वास्तव िें अपनी आंखों से देख े हैं । मवशेर् रूप

से अपने धामिवक मवश्वास पर इस प्रकार से अकारण आक्रिण से व्यमथत होकर िोिी, ''भ ैया, मजस धिव का प्रचार करने के

मिए जो िोग इस देश िें आए हैं , उन िोगों के संिध ु िहुत अमधक जानती हूं। उन िोगों के प्रमत आज तिु
ं िें िैं तिसे
मनरपेक्ष भाव से मवचार नहीं कर पा रहे हो। योरोमपयन सभ्यता ने क्या तिु िोगों की भिाई नहीं की? सती-दाह की प्रथा,

गंगा सागर िें संतान मवसजवन....।''

डॉक्टर िीच िें ही रोककर िोि उठे , ''चड़क पूजा के सिय पीठ छेदना, संन्यामसयों की तिवार पर उछि-कू द िचाना,

डकै ती, ठगी, मवद्रोमहयों का उपद्रव, गोड़ा और खामसयों की आर्ाढ़ िें नरिमि और भी िहुत से काि हैं मजनकी याद नहीं

आ रही भारती।''

भारती ने एक शब्द भी नहीं कहा।

डॉक्टर िोिे, ''ठहरो, और भी दो िातें याद आ गईं। िादशाहों के जिाने िें गृहस्थ िोग िहू-िेमटयों और दामसयों को

अपने घरों िें नहीं रख सकते थे। नवाि िोग मस्त्रयों के पेट चीरकर िच्चों को देखा करते थे। हाय रे हाय, इसी तरह

ु िातों को मवपि
मवदेमशयों के मिखे इमतहास ने साधारण और तच्छ ु और मवराट िनाकर देश के प्रमत देशवामसयों के िन को

ु कर मदया। िझे
मविख ु याद है, अपने िचपन िें स्कू ि की पाठय-पस्तक
ु िें िैंन े पढ़ा था-मविायत िें ि ैठकर के वि हि

िोगों के कल्याण की मचंता िें िगे रहकर राज्य िंत्री की आंखों की नींद और िहं ु का अन्न नीरस हो गया है। यह असत्य

िड़कों को रटना पड़ता है और पेट के मिए मशक्षकों को जिानी याद कराना पड़ता है और सभ्य राजतंत्र की यही राजनीमत

है भारती। आज अपूव व को दोर् देना व्यथव है।''

अपूव व की िांछना से भारती िन-ही-िन िमज्जत ही नहीं हुई, क्रुध्द भी हो उठी। उसने कहा, ''तिने
ु जो कुछ कहा है सत्य

हो सकता है। सम्भव है मकसी अत्यंत राजभक्त किवचारी ने ऐसा ही मकया हो। िेमकन इतने िड़े साम्राज्य की िूि नीमत

कभी असत्य नहीं हो सकती। उसके ऊपर नींव रखकर इतनी िड़ी मवशाि संस्था एक मदन भी मटकी नहीं रह सकती। तिु


कहोगे मक अनंत काि की तिना िें वह मदन मकतने होते हैं ? ऐसे ही साम्राज्य तो इससे पहिे भी थे। क्या वह मचरस्थायी


हुए? तम्हारा कहना अगर सत्य भी हो, तो वह भी मचरस्थायी नहीं होगा। िेमकन यह श्रृख ु मत्रत राज्य है।
ं िािध्द, समनयं

तिु चाहे मकतनी मनंदा क्यों न करो, इसकी एकता, इसकी शांमत से क्या कोई शभु िाभ हुआ ही नहीं? पमश्चिी सभ्यता के

ु नहीं मििा? अपनी स्वाधीनता तो तिु िोग िहुत मदनों से खो चकेु हो और


प्रमत कृ तज्ञ होने का क्या कोई भी कारण तम्हें


इस िीच राज-शमक्त का पमरवतवन तो अवश्य ही हुआ है। िेमकन तम्हारे भाग्य का पमरवतवन नहीं हुआ। ईसाई होने के

ु गित ित सिझ िेना भ ैया। अपने सभी अपराध मवदेमशयों के ित्थे िढ़कर ग्िामन िें डूि े रहना ही अगर
कारण िझे


तम्हारे ु
देश-प्रेि का आदशव हो तो तम्हारे उस आदशव को िैं नहीं अपना सकूं गी। हृदय िें इतना मवद्वेर् भरकर तिु शायद
े ों की कुछ हामन कर सको, िेमकन उससे भारतवामसयों का कुछ भी कल्याण नहीं होगा। इस सत्य को मनमश्चत रूप से
अंग्रज

जान िेना।''

भारती के शब्दों के कानों िें पहुंचते ही सव्यसाची चौंक पड़े। भारती का यह रूप अपमरमचत था। यह भावनाएं अप्रत्यामशत

थीं। मजस धामिवक मवश्वास और सभ्यता के गहरे प्रभाव के िीच पिकर वह िड़ी हुई है उसी के ऊपर आघात होने से

उत्तेमजत और असमहष्ण ु होकर जो यह मनभीक प्रमतवाद कर ि ैठी वह भिे ही मकतना ही कठोर और प्रमतकू ि क्यों न हो-

सव्यसाची की दृमष्ट िें उसने िानो उसे नई ियावदा दे डािी।

ु कोई उत्तर नहीं मदया भ ैया? महंसा की इतनी िड़ी आग को अपने हृदय िें
उसे मनरुत्तर देखकर भारती िोिी, ''तिने

जिाकर तिु और चाहे जो कुछ भी करो, देश की भिाई नहीं कर सकोगे।''

ु तो िैंन े अनेक िार कहा है मक जो िोग देश की भिाई करने वािे हैं , वे चंदा इकट्ठा करके अनाथ
डॉक्टर िोिे, ''तिसे

आश्रि, ब्रह्मचयावश्रि, वेदांत आश्रि, दमरद्र भंडार आमद तरह-तरह के िोक महतकारी कायव कर रहे हैं । िहान पे् रुर्
ु हैं वे।

िैं उनकी भमक्त करता हूं। िेमकन िैंन े देश की भिाई करने का भार नहीं मिया है, िैंन े उसे स्वतंत्र कराने का भार मिया है।

ु सकती है। एक तो अपनी मचता भस्म से, या मिर मजस मदन यह सनु लं गा मक
िेरे हृदय की आग के वि दो िातों से िझ

यूरोप का धिव, उसकी सभ्यता, नीमत, सागर के अति गभव िें डूि गई है।''

भारती स्तब्ध रह गई।

वह कहने िगे, ''इस मवर्कं ु ड का भरपूर सौदा िेकर यूरोप जि सिद्रु पार करके पहिे पहि व्यापार करने आया था ति

उसे के वि जापान पहचान सका था। इसी से आज उसका इतना सौभाग्य है। इसी से आज वह यूरोप के सिकक्ष सभ्रांत

मित्र िना हुआ है। िेमकन चीन और भारत उसे नहीं पहचान सके । उन मदनों स्पेन का राज्य सारी पृथ्वी पर िै िा हुआ

था। एक छोटे से जापानी ने स्पेन के एक नामवक से पूछा, ''तिु िोगों को इतना अमधक राज्य कै स े मििा?'' नामवक ने उत्तर

मदया, ''िड़ी आसानी से। हि मजस देश को हड़पना चाहते हैं वहां हि पहिे िेचने के मिए िाि िे जाते हैं । हाथ-प ैर

जोड़कर उस देश के राजा से िांग िेत े हैं थोड़ी-सी जिीन। उसके िाद िे आते हैं पादरी। वह िोग मजतने िोगों को

ईसाई नहीं िना पाते उससे कहीं अमधक उस देश के प्रचमित धिव को गािी-गिौज देत े हैं । ति िोग मिगड़कर पागि हो

जाते हैं और दो-एक को िार डािते हैं । ति हि िंगा िेत े हैं अपनी तोप-िंदूकें और सेना। और तत्काि यह प्रिामणत कर
देत े हैं मक हिारे सभ्य देश के िानव-संहारकारी यंत्र असभ्य देश की अपेक्षा मकतने श्रेष्ठ हैं ।''-यह कहकर उन्हें मवदा करके

जापान ने अपने देश िें कानून जारी कर मदया मक जि तक सूय व और चंद्रिा उमदत रहें ग े ति तक ईसाई उनके देश िें कदि

नहीं रखने पाएंग।े रखेंग े तो उन्हें प्राण-दंड मदया जाएगा।

अपने धिव और धिव-प्रचारकों के प्रमत मकए गए इन तीखे आक्षेप से दु:खी होकर भारती िोिी, ''यह िात िैं पहिे भी सनु

ु हूं। िेमकन मजन जापामनयों के प्रमत तिु भमक्त रखते हो वह कै स े हैं ?''
चकी

डॉक्टर िोिे, ''यह झ ूठ है मक भमक्त रखता हूं। िैं उनसे घृणा करता हूं। कोमरयावामसयों को िार-िार िंधक और अभय

े्
देकर भी मिना दोर् के झ ूठे िहाने गढ़कर उनके राजा को कै द करके सन 1910 िें जि जापान ने कोमरया राज्य हड़प मिया,


िैं शंघाई िें था। उस मदन के वह सि अिानमर्क अत्याचार भूि जाने के योग्य नहीं हैं । अभय क्या के वि जापान ने ही

े ों ने भी िहं ु नहीं खोिा। उसने कहा,


मदया था भारती? यूरोप ने भी मदया था। िेमकन शमक्तशािी जापान के मवरुध्द अंग्रज

ु राष्ट्र अिेमरका के राष्ट्रपमत ने भी अत्यंत स्पष्ट शब्दों िें


हि िोग एंग्िो-जापानी संमध सूत्र िें िंध े हुए हैं और यही िात संयक्त

कह दी मक वचन देन े से क्या हुआ? जो असिथव और शमक्तहीन राष्ट्र अपनी रक्षा नहीं कर सकता तो उसका राज्य नहीं

जाएगा तो मकसका जाएगा। ठीक ही हुआ। अि हि िोग जाएंग े उनका उध्दार करने? असम्भव है पागिपन है।'' यह

कहकर सव्यसाची ने एक पि चपु रहकर कहा-'' िैं भी कहता हूं भारती मक यह असम्भव है, असंगत है, पागिपन है।

ु सोच भी नहीं सकती।''


दुिवि का धन शमक्तशािी क्यों नहीं छीन िेगा? इस िात को सभ्य यूरोप की न ैमतक िमध्द

भारती अवाक े् ही रही।

वह कहने िगे, अठारहवीं शताब्दी के अंमति भाग िें मब्रटे न का दूत िाडव िैकाटवनी गया चीनी दरिार िें-व्यापर की थोड़ी-


सी समवधा प्राप्त करने के मिए। िंच ू नरेश मशनलुं ग उन मदनों सिस्त चीन के सम्राट थे। वह अत्यंत दयालु थे। दूत की

मवनीत प्राथवना से प्रसन्न होकर उन्होंने आशीवावद देत े हुए कहा, ''देखो भ ैया, हिारे स्वगव ज ैसे साम्राज्य िें मकसी भी वस्त ु का

अभाव नहीं है, िेमकन तिु आए हो िहुत दूर से, अनेक कष्ट सहकर। जाओ, कें टन शहर िें जाकर व्यापार करो। स्थान

देता हूं। तिु सि िोगों का भिा होगा।'' राजा का यह आशीवावद मनष्फि नहीं हुआ पचास वर्व भी नहीं िीतने पाए मक

ु मछड़ गया।''
े ों का प्रथि यध्द
चीन के साथ अंग्रज

भारती ने आश्चयव िें पड़कर पूछा, ''क्यों भ ैया?''


डॉक्टर िोिे, ''यह चीन का अन्याय था-सम्राट सहसा िोि उठा,'' अिीि खाते-खाते हिारी आंखें िंद होती जा रही हैं ।


िमध्द-श ु अि नहीं रही, कृ पा करके इस चीज का आयात रोक दो।''
मध्द

''इसके िाद?''

''इसके िाद का इमतहास िहुत ही संमक्षप्त-सा है। दो ही वर्व के अंदर अिीि खाने को राजी होकर और भी पांच िंदरगाहों

िें के वि पांच रुपए प्रमतशत टैक्स पर व्यापार करने की स्वीकृ मत देकर और अंत िें हांगकांग िंदरगाह दमक्षण िें देकर सन े्

ु सिाप्त हुआ। ठीक ही हुआ। इतनी सस्ती अिीि पा कर जो िूख व खाने िें आपमत्त करता है उसका ऐसा
42 िें यह यध्द

प्रायमश्चत उमचत ही तो था।


भारती िोिी, ''यह तम्हारी िनगढ़ंत कहानी है।''

ु िें है तो अच्छी। और यही देखकर फ्ांसीसी सभ्यता ने कहा था-''िेरे पास अिीि
डॉक्टर िोिे, ''होने दो। कहानी सनने

ु हुआ। फ्ांसीमसयों ने चीन


तो नहीं िेमकन इन्सानों की हत्या करने के मिए अच्छे-से-अच्छे यंत्र अवश्य हैं । इसमिए यध्द

ु का खचव अमधक-से-अमधक व्यापामरक समवधाएं


साम्राज्य का अनाि प्रांत छीन मिया और यध्द ु , ट्रीटी-पोटव आमद- ये सि

ु कहामनयां हैं । इन्हें रहने दो।''


तच्छ

भारती िोिी, ''िेमकन भ ैया, तािी एक ही हाथ से िजती है? चीन का क्या कुछ भी अन्याय नहीं है?''

डॉक्टर िोिे, ''हो सकता है। िेमकन तिाशा तो यह है मक योरोमपयन सभ्यता का अन्याय-िोध दूसरों के घरों पर चढ़ाई

करने के मिए ही होता है। उनके अपने देश िें ऐसी घटना मदखाई नहीं पड़ती।''

''उसके िाद?''

''िता रहा हूं। जिवन सभ्यता ने देखा-वाह रे वाह!-यह तो िड़ी िजेदार िात है। हि तो घाटे िें ही रह गए....और उसने

े्
भी एक जहाज िें पादरी भरकर उनके िीच िगा मदया। सन 1697 िें जि वे िोग प्रभ ु ईसा की िमहिा, शांमत और न्याय-

धिव का प्रचार कर रहे थे ति चीमनयों का एक दि पागि हो उठा और उसने दो परि धामिवक प्रचारकों के मसर काट

डािे....अन्याय....चीन का ही अन्याय था। इसमिए शनटं ुग प्रांत जिवनी के पेट िें चिा गया। उसके िाद कें टन िें मवद्रोह

हुआ। यूरोप की सभी सभ्यताओ ं ने एक होकर उसका जो िदिा मिया शायद कहीं भी उसकी तिना
ु नहीं मिि सकती।


उस हजावन े का अपमरमित ऋण चीनी िोग मकतने मदनों तक चकाते रहें ग े यह िात ईसा प्रभ ु ही जानते हैं । इस िीच मब्रमटश

मसंह, जार के भाल, जापान के सूय व देव-िेमकन अि नहीं िमहन, िेरा गिा सूखता जा रहा है। दु:ख की तिना िें अके िे

हि िोगों के मसवा शायद उन िोगों का और कोई साथी नहीं है सम्राट मशनटं ुग मनवावण को प्राप्त हो, उनके आशीवावद की

िड़ी िमहिा है।''

भारती एक िहुत िम्बी सांस खींचकर चपु हो रही।

''भारती।''

''क्या है भ ैया?''

''चपु क्यों हो?''


''तम्हारी ु अपना कायव-क्षेत्र चना
कहानी की ही िात सोच रही हूं। अच्छा भ ैया, इसीमिए क्या चीन िें तिने ु है? जो िोग


स ैकड़ों अत्याचारों से जजवमरत हैं उनको उत्तेमजत कर देना कमठन नहीं है। िेमकन एक िात और है। इस पर क्या तिने

मवचार मकया है? उन सि मनरीह अज्ञानी मकसान-िजदूरों का दु:ख तो यों ही यथेष्ट है। उस पर मिर िार-काट, खून-

ु कर देन े से तो उनके दु:खों की सीिा नहीं रहेगी।''


खरािी, शरू

ु जरूरत नहीं है भारती। मकसी भी देश िें वह


डॉक्टर िोिे, ''मनरीह मकसान-िजदूरों के मिए दुमश्चिा िें पड़ने की तम्हें

स्वाधीनता के काि िें भाग नहीं िेत,े िमि िाधा ही डािते हैं । उन िोगों को उत्तेमजत करने के मिए, व्यथव पमरश्रि करने

का सिय िेरे पास नहीं है। िेरा कारोिार मशमक्षत, िध्यमवत्त और भद्र िोगों को िेकर ही चिता है। यमद मकसी मदन िेरे

काि िें शामिि होना चाहो भारती तो इस िात को ित भूिना। आइमडयि या आदशव के मिए प्राण दे सकने योग्य

िनोिि की आशा, शांमत मप्रय, मनमववरोध, मनरीह मकसानों से करना िेकार है। वह स्वतंत्रता नहीं चाहते, शांमत चाहते हैं ।

जो शांमत असिथव-अशक्त िोगों की है....।''

भारती व्याकुि होकर िोिी, ''िैं भी यही चाहती हूं भ ैया। िमि तिु िझे ु कर दो। तम्हारे
ु इसी जड़ता के काि िें मनयक्त ु

'पथ के दावेदार' के मसध्दांत से िेरी सांस रुकती चिी जा रही है।''

सव्यसाची ने हंसकर कहा, ''अच्छा।''


भारती रुक न सकी। उसी तरह व्यग्र उच्छवास से िोिी, ''अच्छा शब्द का उच्चारण कर देन े के अमतमरक्त क्या कुछ भी


कहने को शब्द तम्हारे पास नहीं हैं भ ैया?''

''हि िोग आ पहुंच े हैं भारती। सावधानी से ि ैठ जाओ। चोट न िग जाए।'' यह कहकर डॉक्टर ने तेजी से धक्का िगाकर

छोटी-सी नाव को अंधरे े िें नदी के मकनारे िगा मदया। भारती को उतारते हुए उन्होंने कहा, ''पानी या कीचड़ नहीं है

िमहन, तख्ता मिछा है, उसी पर से चिी आओ।''


अंधरे े िें नीचे प ैर रखकर तृमप्त की सांस िेत े हुए भारती िोिी, ''भ ैया, तम्हारे हाथों से आत्म-सिप वण करने के सिान

मनमववघ्न शांमत और कहीं नहीं है।''

िेमकन दूसरी ओर से कोई उत्तर नहीं आया। अंधरे े िें दोनों के कुछ दूर आगे िढ़ने पर डॉक्टर ने आश्चयव भरे स्वर िें कहा,

ु ही
''िेमकन िात क्या है? िताओ तो? यह क्या मववाहोत्सव का िकान है, न तो िमत्तयों की रोशनी है, न कोई हल्ला-गल्ला

है। िेहिे का सरु भी नहीं। कहीं चिे गए हैं क्या यह िोग?''


दोनों सीढ़ी से चढ़कर चपचाप ु द्वार मदखाई मदया शमश-जो िडे ध्यान से अखिार पढ़ रहा था।
ज्यों ही ऊपर पहुंच,े खिे

अध्याय 9

ु उठी, ''शमश िािू, हि िोग आ गए। मखिाने-मपिाने का इंतजाि कीमजए। नवतारा


भारती प्रसन्नता भरे स्वर िें पकार

कहां है? नवतारा!....नवतारा....!!''

शमश िोिे, ''आइए, नवतारा यहां नहीं है।''


डॉक्टर ने िस्कराते ु
हुए पूछा, ''गृह गृमहणी शून्य क्यों है कमव? उसे ििाओ। आकर हि िोगों का स्वागत करके अंदर िे

जाए। नहीं तो हि यहीं खड़े रहें ग।े शायद भोजन भी नहीं करें ग।े ''

शमश िोिे, ''नवतारा नहीं है डॉक्टर, वह सि घूिने गए हैं ।''


उसका चेहरा देखकर भारती डर गई। उसने पूछा, ''वह घूिने चिी गई? आज के मदन? कै सी अद्भतु सिझ है?''

शमश िोिे, ''मववाह हो जाने के िाद वह िोग रंगनू घूिने गए हैं ।''

''अपने पमत को छोड़कर मकसके साथ घूिने गई है?'' भारती ने पूछा।

''नहीं, नहीं िेरे साथ मववाह नहीं हुआ। वह जो अहिद नाि का आदिी है, गोरा-गोरा-सा, देखने िें सदं ु र, कू ट साहि की

मिि का टाइि कीपर....आपने उसे देखा नहीं है। आज दोपहर को उसी के साथ नवतारा का मववाह हो गया था। उनका

सि कुछ पहिे से ही ठीक था। िझे


ु िताया ही नहीं।''

वे दोनों आश्चयव से आंखें िाड़े देखते रह गए।

शमश उठकर किरे के एक कोने से कपड़े का एक थ ैिा उठा िाया और डॉक्टर के प ैरों के पास रखते हुए िोिा, रुपए तो

ु मिि गए डॉक्टर। नवतारा को पांच हजार देन े के मिए कहा था सो िैंन े वह रुपए उसे दे मदए। िाकी िचे हैं साढ़े चार
िझे

हजार। िैंन े िे मिए िेमकन.....

ु दे रहे हो?''
डॉक्टर ने पूछा, ''यह रुपए क्या िझे

शमश िोिे, ''हां, िैं क्या करूंगा? आपके काि आ जाएंग।े ''

भारती ने पूछा, ''िेमकन उसे कि रुपए दे मदए?''

शमश ने कहा, ''कि रुपए पाते ही उसे दे आया था।''

''उसने िे मिए थे?''

शमश ने कहा, ''हां, अहिद को तो कुि तीस रुपए तनख्वाह मििती है। वह एक िकान खरीदेगी।''


''जरूर खरीदेगी।'' यह कहकर डॉक्टर हंसते हुए िड़कर देखा, आंखों पर आंचि रखे भारती िरािदे के एक ओर हटती

जाती है।

शमश ने कहा, ''प्रेसीडेंट ने आपसे एक िार भेंट करने को कहा है। वह सरावाया जा रही हैं ।''

डॉक्टर ने पूछा, ''कि जाएंगी?''


शमश ने कहा, ''जल्दी ही। मिवा जाने को एक आदिी आया है।''


भारती ने िौटकर पूछा, ''समित्रा ु ही चिी जाने को कहती थीं शमश िािू?''
जीजी क्या सचिच

ु ही। उनकी िां के चाचा के पास अगाध सम्पमत्त थी। हाि ही िें उनकी िृत्य ु हुई है। इनके
शमश िोिे, ''हां सचिच

अिावा और कोई उत्तरामधकारी नहीं है। उसके मिना काि नहीं चिेगा।''

डॉक्टर िोिे, ''काि नहीं चिेगा? ....ति तो जरूर जाएगी।''


शमश ने भारती की ओर िड़कर कहा, ''खाने को सािान िहुत पड़ा है। कुछ खाइएगा?''

भारती से पहिे ही डॉक्टर िोि उठे , ''जरूर...चिो क्या है देख,ूं '' यह कहकर वह उसे अंदर िे गए।

शमश ने अंदर जाते हुए कहा, ''और एक सूचना है डॉक्टर, अपूव व िािू िौट आए हैं ।''


डॉक्टर आश्चयव से िोिे, ''यह क्या कहते हो शमश? मकससे सना?''

शमश ने कहा, ''कि िंगाि िैंक िें अचानक भेंट हो गई थी। उनकी िां िीिार हैं ।''

शमश ने िढ़ा-चढ़ाकर नहीं कहा था। किरे िें पहुंचते ही देखा-खाने-पीने की ढेर सारी चीजें रखी थीं। किरे का दमक्षणी

भाग एकदि ठसा-ठस भरा हुआ है।

डॉक्टर का उल्लास सहसा कहकहा िनकर िट पड़ा, ''ह:, ह:, ह:, ह:-गृहस्थ का जय-जयकार हो। शमश! कमव! ह: ह: ह:

ह:।''

भारती और न सह सकी। िहं ु िे रकर सजि आंखों से नाराजगी के साथ देखती हुई िोिी, ''भ ैया, क्या तम्हारे
ु िन िें जरा

भी दया-िाया नहीं? क्या कर रहे हो िताओ तो?''

''वाह! मजनकी कृ पा से अच्छी-अच्छी चीजें आज पेट भरकर खाऊं गा उनको थोड़ा-सा आशीवावद, वाह, ह: ह: ह: ह:।''
भारती रूठकर िरािदे िें चिी गई। दो-तीन मिनट िीतने पर शमश जाकर उसे िौटा िाया तो उसने प्लेट िें िांस, िि-


िू ि, पिाव, मिठाई आमद सजाकर डॉक्टर के सािने रख मदए और िनावटी नाराजगी से िोिी, ''िो, अि दांत

ु वािों की नींद टूट जाएगी।''


मनकािकर राक्षस की तरह खाओ। हंसी तो िंद हो जाए। नहीं तो िहल्ले

डॉक्टर ने एक सांस खींचकर कहा, ''अहा, कै सा िमढ़या भोजन है। इसका तो स्वाद-गंध तक िैं भूि गया हूं।''

यह िात भारती के हृदय िें जाकर मिंध गई। उसे उस रात का सूखा भात और जिी िछिी याद आ गई।

ु करते हुए कहा, ''कमव को नहीं मदया भारती?''


डॉक्टर ने भोजन शरू

''िा रही हूं,'' कहकर उसने प्लेट िें भोजन सजाकर शमश के सािने रख मदया और डॉक्टर के सािने ि ैठकर िोिी, ''िेमकन

सि खा िेना पड़ेगा भ ैया। िेंक नहीं सकते।''

''नहीं, िेमकन तिु नहीं खाओगी?''

ु िताओ?''
''िैं? कोई भी स्त्री यह सि खा सकती है? तम्हीं

''भोजन तो ऐसा पकाया है िानो अिृत।''

''इससे अच्छा अिृत िनाकर तो िैं रोजाना मखिा सकती हूं भ ैया।''

डॉक्टर ने अपना िायां हाथ िाथे से िगाकर कहा, ''क्या करोगी िमहन, भाग्य की िात है। मजसको मखिाना चामहए वह


यह सि खाता ही नहीं है। जो खाएगा उसे एक मदन से अमधक दो मदन मखिाने की चेष्टा करने से ही तम्हारा ु पूरे देश
सयश

िें िै ि जाएगा।''

इस िार भारती हंस पड़ी। िेमकन तरंु त स्वयं को संभािकर िमज्जत होकर िोिी, ''तम्हारी
ु दुष्टता की ज्वािा से हंसी रोकी


नहीं जा सकती। िेमकन यह तो तम्हारा ु के िाद रुपयों की थ ैिी भी िेकर चिे
भारी अन्याय है। पेट भर खा-पी चकने

जाओगे क्या?''

डॉक्टर िहं ु कौर मनगिते हुए िोिे, ''जरूर, जरूर-आधे रुपए तो चिे गए नवतारा के िकान िनाने के खाते िें। शेर् क्या

अहिद अब्दुल्ला साहि की गाड़ी खरीदने के मिए छोड़ जाऊं ? तिाशे को सवाांग सदं ु र िनाने के मिए तिने
ु कोई िरी
ु राय

नहीं दी भारती। ह: ह: ह:।''



भारती िोिी, ''भ ैया तिको हंसी-िजाक करते हुए िैंन े पहिे भी देखा है िेमकन इस तरह पागिों की तरह हंसते हुए तो

िैंन े कभी नहीं देखा।''

डॉक्टर उत्तर देन े जा रहे थे िेमकन भारती के चेहरे को देखकर कुछ भी न कह सके ।

ु का प्रेि क्या तम्हारी


भारती ने कहा, ''स्त्री-परुर् ु तरह सभी के मिए उपहास की वस्त ु है भ ैया, या ताश के छक्के-पंज े की हार

की तरह इसको भी हार-जीत िें कहकहे िगाने के अिावा और कुछ करने के मिए शेर् नहीं रह गया है? स्वतंत्रता-

ु को व्यमथत करने वािी कोई और भी चीज इस संसार िें िौजूद है। इस िात को क्या तिु
परतंत्रता के अमतमरक्त िनष्य

कभी सोचोगे भी नहीं? शमश िािू की ओर देखो। एक ही पहर िें इनकी कै सी हाित हो गई है। अपूव व िािू मजस मदन गए

थे उस मदन भी तिु शायद इसी तरह हंस पड़े थे।''

''नही, नहीं, वह तो हुआ....।''


भारती िीच िें ही रोककर िोिी, ''नहीं, नहीं। यह कै स े कहते हो भ ैया? शमश िािू तम्हारे स्नेह के पात्र हैं । तिु यह सोचकर

ु हो उठे मक उनको भोिा-भािा पाकर नवतारा िहुत दु:ख देती। भमवष्य िें उस दु:ख िें पड़ने से वह िच गए। िेमकन
खश

क्या भमवष्य ही सि कुछ है िनष्य


ु के मिए? आज का यह एक ही मदन जो व्यथा के भार से उसके सारे भमवष्य को िांघ

गया, यह िात तिु मकस तरह जानोगे! तिने


ु तो कभी मकसी को प्यार मकया ही नहीं।''

ु न रहने से ही....।''
शमश ने मकसी प्रकार कहना चाहा मक ''यह दोर् िेरा ही है। िेरी ही भूि है। सांसामरक िमध्द

भारती व्यग्र स्वर िें िोि उठी, ''िज्जा करने की कौन-सी िात है शमश िािू? यह भूि क्या संसार िें अके िे आपने ही की

ु भूि क्या िैंन े नहीं की? और उससे भी हजार गनी


है? आपसे सौगनी ु भूि करके जो अभामगन चपचाप
ु मचरकाि के मिए

इस देश को छोड़ने के मिए त ैयार हुई है, उसे क्या डॉक्टर नहीं पहचानते?''

ु आप िें
डॉक्टर ने आश्चयव से उसकी ओर देखा। िेमकन भारती ने उसकी परवाह नहीं की। कहने िगी, ''सांसामरक िमध्द

ु कि नहीं थी? समित्रा


कि है। िझिें ु ु की तो तिना
जीजी की िमध्द ु नहीं की जा सकती मिर भी वह मकसी के काि न आ


सकीं। वह परामजत हो गईं तम्हारी ु के सािने जो मचरकाि से अजेय है। मजसके िागव को कभी िाधा नहीं मििी, वह
िमध्द


जो तम्हारे पार्ाण द्वार पर पछाड़ खाकर चूर-चूर हो गया। अंदर जाने का जरा-सा िागव उसे नहीं मििा।''

डॉक्टर ने इस अमभयोग का उत्तर नहीं मदया। के वि उसके चेहरे की ओर देखकर जरा-सा हंस पड़े।
भारती ने कहा, ''शमश िािू, िैंन े आपके प्रमत िड़ा अपराध मकया है। उसके मिए क्षिा चाहती हूं.....!''

शमश सिझ न सका। िेमकन कं ु मठत हो उठा।

भारती पि भर चपु रहकर कहने िगी, ''एक मदन भ ैया से िैंन े आपके िारे िें कहा था-कोई भी स्त्री आपको कभी प्यार नहीं

कर सकती। उस मदन िैंन े आपको पहचाना नहीं था। आज ऐसा िग रहा है मक मजसने अपूव व िािू को प्यार मकया था वह

अगर आपको पा जाती तो धन्य हो जाती। सभी आपकी उपेक्षा करते आए हैं । के वि एक व्यमक्त ने नहीं की। और वह हैं

ु को पहचानने िें इनसे गिती नहीं होती। इसमिए उस मदन दु:खी होकर इन्होंने िझसे
यही डॉक्टर। िनष्य ु कहा था,

''काश, शमश मकसी दूसरी स्त्री को प्यार करता। िेमकन तिु िझसे
ु यह कभी नहीं कह सके मक भारती, इतनी िड़ी गिती

तिु ित करो। परुर्


ु के दो आदशव-तिु दोनों िेरे सािने ि ैठे हो। आज िेरी अरुमच की कोई सीिा ही नहीं है।''

डॉक्टर ने पूछा, ''अपूव व ने क्या कहा शमश?''


भारती ने उत्तर मदया, ''िां िीिार है। इिाज कराना जरूरी है। िेमकन रुपए पास नहीं हैं । िौटकर मछपे ढंग से गिािी


करने पर कोई जान नहीं सके गा। डर है तिविकर का, और ब्रजेन्द्र का। िेमकन उसके काका हैं पमिस किवचारी।

ु और तम्हें
इसमिए कोई व्यवस्था अवश्य ही हो गई होगी। भ ैया, िझे ु भी शायद छुटकारा नहीं मििेगा। क्षद्र,
ु िोभी,

संकीणव हृदय, डरपोक, मछ:....।''


डॉक्टर िस्कराकर ु
िोिे, ''सच्चा प्यार करने पर इस तरह िदनाि नहीं मकया जा सकता। कमव, अि तम्हारी िारी है।

ु का कीतवन करना आरम्भ कर दो।''


सरस्वती का स्मरण करके अि तिु भी नवतारा के गणों

ु िेरा मतरस्कार मकया?''


''भ ैया, तिने

''शायद ऐसी ही िात हो।''

अमभिान, व्यथा और क्रोध से भारती का चेहरा िाि हो उठा। िोिी, ''तिु कभी िझे
ु ऐसी कटूमक्त न सना
ु सकोगे। तिने

क्या यह सोचा है मक सभी शमश िािू की तरह िहं ु िंद करके सह सकते हैं । तिु क्या जानते हो मक िनष्य
ु की क्या दशा हो

जाती है।'' उत्तेमजत वेदना से उसका गिा रुंधा गया। िोिी, ''वह िौट आए हैं । अि तिु िझे
ु यहां से मकसी दूसरी जगह

िे चिो भ ैया। िैं भी मकस अभागे के चरणों िें अपना सववस्व मवसमजवत करके ि ैठी हुई हूं....''कहते-कहते वह िशव पर

िाथा रखकर िच्चे की तरह रोने िगी।



डॉक्टर िस्कराते ु
हुए चपचाप भोजन करने िगे। उनका मनमववकार भाव देखकर यह पता न चि सका मक इन सि प्रणय-

उच्छवासों ने इनको िेशिात्र भी मवचमित मकया है। पांच-सात मिनट के िाद भारती उठकर पास वािे किरे िें चिी गई

और आंख-िहं ु अच्छी तरह धो-पोंछकर यथास्थान आकर ि ैठ गई।

उसने पूछा, 'भ ैया, तिु िोगों को कुछ और दूं?''

डॉक्टर ने जेि से रूिाि मनकािकर कहा, ''ब्राह्मण का िड़का हूं। कुछ छन्ना िांध दो मजससे दो मदन मनमश्चंत रह सकूं ।''

ु हुआ तौमिया मनकािा और खाने की तरह-तरह की चीजों की एक पोटिी


िैिा रूिाि िौटाकर भारती ने एक धिा

िांधकर डॉक्टर के सािने रखते हुए कहा, ''यह है ब्राह्मण के िड़के का छन्ना और रुपयों की थ ैिी।''

डॉक्टर ने हंसते हुए कहा, ''यह हुई ब्राह्मण की भोजन-दमक्षणा।''

भारती िोिी, ''अथावत ते् च्छ


ु मववाहोत्सव के मसवा सभी असिी आवश्यक कायव मनमववघ्न सिाप्त हो गए।''

हंसी रोककर डॉक्टर िोिे, ''यह िेरे मिए भगवान का कै सा अमभशाप है भारती मक ज्यों ही हंसी आने िगती है, िेरे िहं ु से

ठहाकों के मसवा और कुछ नहीं मनकिता। ठहाकों ज ैसा रोना रोने के मिए तम्हें
ु साथ न िाया होता तो आज िहं ु मदखाना

कमठन हो जाता।''

ु परेशान करने िगे?''


''भ ैया, मिर िझे

''परेशान कर रहा हूं या कृ तज्ञता प्रकट कर रहा हूं।''

भारती ने रूठकर िहं ु दूसरी ओर िे र मिया।

शमश चपु था। अचानक अत्यंत गम्भीरता के साथ िोिा, ''अगर नाराज न हो तो एक िात कह सकता हूं? कुछ िोगों को

संदहे है मक आपके साथ ही एक मदन भारती का मववाह होगा।''


डॉक्टर पिभर के मिए चौंक उठे , ''यह क्या कहते हो शमश? तम्हारे िहं ु पर िू ि-चंदन पड़े- ऐसा समदन
ु इतने िड़े अभागे

के भाग्य िें आएगा? यह तो सपनों से भी परे की िात है कमव।''

शमश िोिा, ''िेमकन िहुत से िोग यही सोचते हैं ।''


डॉक्टर ने कहा, 'हाय, हाय! िहुत न सोचते, अगर एक ही व्यमक्त पिभर के मिए यह सोचता....।''

भारती हंसकर िोिी, ''अभागे का भाग्य तो पिभर िें िदि सकता है भ ैया। तिु आज्ञा देकर यमद कह दो-भारती, कि ही

ु िझसे
तम्हें ु ब्याह करना होगा-तो िैं तम्हारी
ु शपथ िेकर कहती हूं मक एक मदन भी ठहरने को नहीं कहूंगी।''

डॉक्टर िोिे, ''िेमकन िेचारा अपूव,व जो प्राणों का िोह छोड़कर िौट आया है, उसका क्या होगा।''

भारती िोिी, ''उसकी भावी पत्नी के रूप िें मकसी की कन्या देश िें िौजूद है-उनके मिए मचंता ित करो। वह छाती

िाड़कर नहीं िर जाएंग।े ''

ु मववाह करने के मिए राजी हो रही हो? तम्हारा


डॉक्टर गम्भीर होकर िोिे, ''िेमकन िझसे ु भरोसा तो कि नहीं है भारती।''


भारती ने कहा, ''तम्हारे हाथ पडूग
ं ी, इसिें मिर डर कै सा?''

डॉक्टर ने शमश की ओर देखते हुए कहा, ''सनु िो कमव! भमवष्य िें अगर इन्कार करे तो तम्हें
ु गवाही देनी होगी।''


भारती िोिी, ''मकसी को गवाही नहीं देनी पड़ेगी भ ैया। िैं शपथ िेकर इन्कार नहीं करूंगी। के वि तम्हारी स्वीकृ मत से

काि िन जाएगा।''

डॉक्टर ने कहा, ''अच्छा, ति देख लं गा।'


''देख िेना'', भारती हंसकर िोिी, ''भ ैया, क्या िैं और समित्रा! स्वगव के इंद्रदेव भी अगर उववशी, िेनका और रम्भा को


ििाकर कहते मक उस प्राचीन यगु के ऋमर्-िमनयों
ु ु इस यगु के सव्यसाची की तपस्या भंग करनी होगी तो िैं
के िदिे तम्हें

मनमश्चत रूप से कहती हूं भ ैया मक उन्हें िहं ु पर स्याही पोतकर वापस चिे जाना पड़ता। रक्त-िांस का हृदय जीता जा


सकता है िेमकन पत्थर के साथ क्या िड़ाई चि सकती है? पराधीनता के आग िें जिकर तम्हारा हृदय पत्थर िन गया

है।''


डॉक्टर िस्कराने िगे। भारती की दोनों आंखें श्रध्दा और स्नेह से भर आईं। िोिी, ''इतना मवश्वास न रहने पर क्या िैं इस


तरह तम्हारे ु िड़ी भारी गिती हो गई
सािने आत्म-सिप वण कर सकती थी? िैं नवतारा नहीं हूं। िैं जानती हूं मक िझसे

ु का कोई दूसरा िागव भी नहीं है। एक मदन के मिए भी मजसे िन-ही-िन.....?''


है। िेमकन इस जीवन िें उसके सधार
भारती की आंखों से मिर आंस ू िहने िगे। झटपट हाथ से उन्हें पोंछकर हंसने की चेष्टा करती हुई िोिी, ''भ ैया, क्या

िौटने का सिय अभी नहीं हुआ? भाटा आने िें अभी मकतनी देर है?''

डॉक्टर ने दीवार घड़ी की ओर देखकर कहा, ''अभी देर है िमहन?' मिर दायां हाथ भारती के मसर पर रखते हुए कहा,

''आश्चयव है, इतनी दुदवशा िें भी िंगाि का यह अिूल्य रत्न अि तक नष्ट नहीं हुआ! जाने दो नवतारों को। भारती तो हि

ु अपूव व
िोगों की है। शमश सारी पृथ्वी पर इसकी जोड़ी नहीं मििेगी। हजारों सव्यसामचयों िें भी शमक्त नहीं है मक एक तच्छ

ु ारी शराि की िोति कहां है?''


को ओट करके खड़े हो जाए। अच्छी िात है शमश, तम्ह

शमश िमज्जत होकर िोिा, ''खरीदी नहीं। िैं अि नहीं पीऊं गा।''

ु याद नहीं, नवतारा ने प्रमतज्ञा कराई थी।''


भारती िोिी, ''तम्हें

ु ही नवतारा के सािने प्रमतज्ञा कर िी थी मक िैं अि शराि नहीं


शमश ने उसकी िात का सिथवन करते हुए कहा, ''सचिच

पीऊं गा। उस प्रमतज्ञा को अि नहीं तोडूग


ं ा डॉक्टर।''

डॉक्टर हंसकर िोिे, ''शराि गई, नवतारा गई। सववस्व िेचकर जो रुपए मििे थे वह भी चिे गए। एक साथ इतना कै स े

सहा जाएगा?''

शमश का चेहरा देखकर भारती को दु:ख हुआ। िोिी, ''िजाक करना सहज है भ ैया। सोचकर तो देखो।''

डॉक्टर िोिे, ''सोच-मवचार करके ही कह रहा हूं भारती।'' इन रुपयों पर शमश की मकतनी आशा-आकांक्षाएं थीं, यह िात

ु अमधक कोई नहीं जानता। उसके पमरमचतों िें ऐसा भी कोई नहीं है मजसने यह िात न सनी
िझसे ु हो। उसके िाद आई


नवतारा। छ:-सात िहीने तक थी। उसका ज्ञान-ध्यान था। और शराि-वह तो शमश के सख-दु:ख की एकिात्र संमगनी है।

कि सि कुछ था। िेमकन आज उसके जीवन का जो कुछ आनंद था, जो कुछ सांत्वना थी, वह सि एक ही मदन िें एकाएक

ज ैसे र्डयंत्र करके उसे छोड़कर चिी गई। मिर भी मकसी के मवरुध्द उसके िन िें कोई मवद्वेर् नहीं। मशकायत नहीं, यहां

तक मक आकाश की ओर देखकर एक िार भी आंस ू भरी आंखों से यह न कह सका मक हे भगवान, िैंन े मकसी का अमनष्ट

मचंतन नहीं मकया। अगर भगवान वास्तव िें हो तो इसका मवचार करना।''


भारती िम्बी सांस िेकर िोिी, ''इसीमिए इन पर तम्हारा इतना स्नेह है?''
डॉक्टर िोिे, ''के वि स्नेह ही नहीं श्रध्दा भी है। शमश साध ु परुर्
ु है। इसका संपण
ू व हृदय गंगा जि के सिान शद्वु और

मनिवि है। िेरे जाने के िाद भारती, जरा इसकी देखभाि रखना। यह स्वयं दु:ख भोगेगा िेमकन मकसी दूसरे को दु:ख नहीं

देगा।

शमश का चेहरा िज्जा और संकोच से िाि हो उठा। इसके िाद कुछ देर तक शायद िात के अभाव से ही तीनों चपु ि ैठे

रहे।

डॉक्टर ने पूछा, ''अि तिु क्या करोगे कमव? तम्हारे


ु पास तो के वि िेहिा ही िचा है। पहिे की तरह मिर देश-देश िें

िजाते मिरोगे?''

ु भती कर िीमजए। िैं सचिच


शमश ने हंसते हुए कहा, ''अपने काि िें आप िझे ु अि शराि नहीं पीऊं गा।''

उसकी िात और कहने का अंदाज देखकर भारती हंस पड़ी।

ु भती होने की आवश्यकता नहीं है। तिु िेरी


डॉक्टर भी हंसने िगे। मिर स्नेह से भीगे स्वर िें िोिे, ''नहीं कमव, इसिें तम्हें

इस िमहन के पास रहो, इसी िें िेरा िहुत काि हो जाएगा।''

शमश ने पिभर िौन रहकर संकोच के साथ कहा, ''पहिे िैं कमवता मिखा करता था डॉक्टर, शायद अि भी मिख सकता

हूं।''

ु होकर कहा, ''इसिें िेरा िहुत काि िन जाएगा।''


डॉक्टर ने खश

''िैं मिर आरम्भ करूंगा। अि के वि मकसान-िजदूरों के मिए मिखूग


ं ा।''

''िेमकन वह िोग तो पढ़ना जानते नहीं कमव?''

मिर िोिे, 'यह काि अस्वाभामवक होगा। और कोई भी अस्वाभामवक चीज मटकती नहीं है। अनपढ़ों के मिए अन्य क्षेत्र


खोिा जा सकता है। क्योंमक उन्हें भूख का ज्ञान है। िेमकन उनके सािने सामहत्य नहीं परोसा जा सकता। उनके सख-

दु:ख का वणवन करने को सामहत्य नहीं कहते। मकसी मदन अगर सम्भव हुआ तो अपने सामहत्य की वह स्वयं ही रचना कर


िें ग।े नहीं तो तम्हारे कं ठ से मनकिे गीत हिधारों के मिए गीत काव्य नहीं हो सकते। यह असम्भव प्रयास तिु ित करना

कमव।''
''तो िैं क्या करूं?''

''तिु मवप्लव के गीत गाना। जहां तिने


ु जन्म मिया है, जहां जामत आदिी िने हो, के वि उन्हीं के मिए। के वि मशमक्षत

और भद्र के मिए।''

भारती मवमस्मत होने के साथ व्यमथत भी हुई। िोिी, ''भ ैया तिु भी जामत िानते हो? तम्हारा
ु ध्यान भी के वि भद्र जामत की

ओर ही है।''

व िने जामत भेद की चचाव िैंन े नहीं की। यह वैर्म्य


डॉक्टर िोिे, ''िैंन े वणावश्रि की िात तो कही नहीं भारती। उस ििपूवक

ु नहीं है। िेमकन मशमक्षत का जामत भेद िाने मिना तो िैं रह नहीं सकता। यही तो सच्ची जामत है, यही तो भगवान के
िझिें

ु ठे िकर क्या अिग रख सका हूं िमहन? तम्हारी


हाथ की िनी हुई सृमष्ट है। ईसाई होने के कारण िैं तम्हें ु ु
िरािरी का िझे

अपना कहने के मिए ओर कौन है?''


भारती ने श्रध्दा भरी नजरों से उनकी ओर देखते हुए कहा, ''िेमकन तम्हारा मवप्लव गान तो शमश िािू के िहं ु से शोभा नहीं


देगा भ ैया। तम्हारे ु
मवप्लव का गीत, तम्हारी गप्तु समिमत का....''

डॉक्टर ने उसे िीच िें ही रोककर कहा, ''नहीं, िेरी गप्तु समिमत का भार िेरे ही ऊपर रहने दो िमहन। उस िोझ को ढोने

योग्य शमक्त.... नहीं, नहीं, उसे रहने दो.... वह के वि िेरे मिए है।''तिु से तो िैं कह चका
ु हूं भारती मवप्लव का अथव के वि

खून-खरािा नहीं है। मवप्लव का अथव है-अत्यमधक तीव्रता से आिूि पमरवतवन। राजनीमतक मवप्लव नहीं.... वह तो िेरा ही

है। कमव, तिु मदि खोिकर सािामजक मवप्लव के गीत गाने शरू
ु कर दो। जो कुछ सनातन है, जो कुछ प्राचीन है, जीणव


और पराना है-धिव, सिाज, संस्कार-सि टूट-िू टकर ध्वंस हो जाए, और कुछ न कर सको शमश तो के वि इस िहासत्य

ु कं ठ से प्रचार करो मक इससे िढ़कर िड़ा शत्र ु भारत का और कोई नहीं है। उसके िाद देश की स्वाधीनता का
का ही िक्त

ु पर रहने दो।''
भार िझ

ु दी।
सीढ़ी पर मकसी की आहट सनाई

''कौन है?'' शमश ने पूछा।

डॉक्टर पिक झपकते ही तेज चाि से िारिदे िें चिे गए। मिर तरंु त ही वापस आकर िोि, ''भारती, समित्रा
ु आ रही

है।''

उस गहन रामत्र िें समित्रा के आने का सिाचार ज ैसा अप्रत्यामशत था वैसा ही अप्रीमतकर भी था। भारती व्यमथत और


त्रस्त हो उठी। पिभर िाद समित्रा के आने पर डॉक्टर ने स्वाभामवक स्वर िें स्वागत करते हुए कहा, ''ि ैठो, क्या अके िी

ही आई हो?''


समित्रा ने कहा, ''हां।'' मिर उसने भारती से पूछा, ''अच्छी तरह हो न?''


इस एक ही मिनट िें भारती ने न जाने क्या-क्या सोच डािा, इसका मठकाना नहीं। उस मदन की तरह आज भी समित्रा

उसकी कोई परवाह नहीं करेगी, यह वह मनमश्चत रूप से जानती थी। िेमकन इस कुशि प्रश्न से नहीं िमि उसकी आवाज

िें मस्नग्ध कोििता देखकर भारती िानो सहसा अपने हाथों िें चंद्रिा को पा गई। िोिी, 'अच्छी तरह हूं जीजी, आप तो

अच्छी तरह हैं न?''


''हां, अच्छी तरह हूं। कहकर समित्रा एक ओर ि ैठ गई।

डॉक्टर िोिे, ''शमश के िहं ु से िैंन े सना


ु मक तिु िहुत ही िड़ी सम्पमत्त की उत्तरामधकारी होकर जावा जा रही हो?''

ु िे जाने के मिए आदिी आया है।''


''हां, िझे

''कि जाओगी?''

''शमनवार को पहिे स्टीिर से।''

''अि तो तिु िड़ी धनवान हो।''

''हां, सि मिि गया तो िन जाऊं गी।''

ु िे जाने के मिए
डॉक्टर िोिे, ''मिि ही जाएगा। एटॉनी की राय के मिना कोई काि ित करना। सावधान रहना। जो तम्हें

आए हैं वह पमरमचत तो हैं न?''


समित्रा िोिी, ''हां, भरोसे के आदिी हैं । िैं पहचानती हूं।''

''ति कोई िात नहीं।''


ु िात हुई डॉक्टर। मजन तीन िंगािी िमहिाओ ं को आपने मिया था-नवतारा
अचानक शमश िोि उठा, ''यह तो िहुत िरी

गई, स्वयं प्रेसीडेंट जाने को त ैयार हैं । के वि भारती....।''


डॉक्टर हंसते हुए िोिे, ''मचंता ित करो। भारती भी िहाजनों के पंथ का अनसरण करेगी-यह एक प्रकार से मनमश्चत हो

ु है।''
चका

ु से देखा।
भारती ने गस्से

ु करके शमश ने कहा, ''आपको जल्दी ही चिा जाना पड़ेगा। अि तो आप


डॉक्टर के पमरहास िें मछपी व्यथा का अनिान

देमखए मक आपके 'पथ के दावेदारों' की एमक्टमवटी कि-से-कि ििाव िें तो सिाप्त हो गई। इसे अि कौन चिाएगा?''


वह उसी तरह हंसते हुए िोिे, ''यह कै सी िात कह रहे हो कमव? इतने सिय से इतना देख-सनकर भी अंत िें सव्यसाची के


मिए तम्हारे ही िहं ु से यह समटिमिके ट? तीन िमहिाएं चिी जाएंगी, क्या इसीमिए 'पथ के दावेदार' सिाप्त हो जाएगा?

ु कर दो।''
शराि छोड़ देन े का क्या यही िि हुआ है? इससे तो अच्छा है मक मिर पीना शरू

ु पड़ने पर भी िजाक नहीं है, यह सिझ िेन े पर भी भारती ठीक-ठीक नहीं सिझ सकी। कनमखयों
िात िजाक-सी सनाई


से उसने िड़े ध्यान से देखा, समित्रा ु चपचाप
आंखें झकाए ु ि ैठी है।

उसने िहं ु उठाकर डॉक्टर के चेहरे पर नजरें मटकाए रखकर कहा, ''भ ैया, सिझने के मिए िझे
ु तो शराि शरू
ु करने की

जरूरत नहीं है, िेमकन मिर भी िैं कुछ नहीं सिझ पाई। नवतारा कुछ भी नहीं है। और िैं तो उससे भी तच्छ
ु हूं। िेमकन


समित्रा ु प्रेसीडेंट का आसन मदया है, उनके चिे जाने पर क्या तम्हारे
जीजी-मजन्हें तिने ु पथ के दावेदार को चोट नहीं

े ी, सच िताओ भ ैया, के वि मकसी को िांमछत करने के मिए ही नाराज होकर ित कहना।''


पहुंचग


समित्रा मजस तरह िहं ु झकाए
ु ि ैठी थी, उसी तरह चपचाप
ु नीचा िहं ु मकए िूमतव की भांमत ि ैठी रही।


डॉक्टर पि भर िौन रहे उसके िाद धीरे-धीरे िोिे, ''भारती, िैंन े क्रोध िें यह िात नहीं कही है। समित्रा अवहेिना की

वस्त ु नहीं है। तिु शायद नहीं जानती, िेमकन समित्रा


ु स्वयं अच्छी तरह जानती है मक इन िाििों िें अपनी हामन की

गणना नहीं करनी चामहए। इसके मिए मकसके प्राण िाितू हैं ? प्राणों का िूल्य मकस चीज से मनमश्चत मकया जा सकता है?

ु तो जाएगा ही। वह चाहे मजतना भी िड़ा क्यों न हो, मकसी के अभाव को ही हिें सववनाश नहीं सिझ
िताओ तो। िनष्य
िेना चामहए। जि के स्रोत के सिान, एक का स्थान दूसरा स्वच्छं दता से और मििुि अनायास ही पूरा कर सकता है,

यही मशक्षा हिारी पहिी और प्रधान मशक्षा है भारती।''

ु को िान मिया जाए। तम्हारा


भारती िोिी, ''िेमकन ऐसा तो संसार िें होता नहीं। उदाहरण के रूप िें तम्हीं ु अभाव कोई

मकसी मदन पूरा कर सकता है-यह िात िैं सोच भी नहीं सकती भ ैया।''


डॉक्टर िोिे, ''तम्हारी ु इसका पता चिा, उसी मदन से िैं तम्हें
मवचारधारा अिग ही है भारती और मजस मदन िझे ु मिर से


इस दि िें खींच िाने िें असिथव हो गया। िेरे िन िें िार-िार यही मवचार आया है मक संसार िें तम्हारे मिए यह नहीं,

दूसरा काि है।''

ु भी िरािर यही खयाि आता रहा है मक तिु िझे


भारती िोिी, ''और िझे ु अयोग्य सिझ कर दूर हटा देना चाहते हो।

अगर िेरे मिए दूसरा काि हो तो िैं उसी के मिए अभी से मनकि पडूग
ं ी। िेमकन िेरे प्रश्न का तो यह उत्तर नहीं है भ ैया।

ु हो गई है। तम्हारा
वास्तमवक िात ही तच्छ ु अभाव जि के स्रोत के सिान पूरा हो सकता है या नहीं? तिु कह रहे हो मक

ु के वि
हो सकता है। और िैं कह रही हूं मक नहीं हो सकता। िैं जानती हूं मक नहीं हो सकता....िैं जानती हूं मक िनष्य

जि का स्रोत नहीं है....तिु तो अवश्य ही नहीं हो।''

ु परेशान न करती। िेमकन जो नहीं है।


पि भर िौन रहकर उसने मिर कहा, ''के वि इसी िात को जानने के मिए िैं तम्हें

मजसे तिु स्वयं जानते हो मक वह सत्य नहीं है-िझे


ु उसी से िुसिाना चाहते हो?''


भारती ही ने मिर कहा, ''इस देश िें अि तम्हारा ठहरना नहीं हो सकता। तिु जाने को ि ैठे हो। मिर तम्हें
ु वापस पाना

मकतना अमनमश्चत है-यह सोचते ही हृदय िें ज्वािा धधक उठती है। इसी से उसका सोच नहीं करती। मिर भी सत्य को

ु मकए मिना नहीं रह सकती। इस व्यथा की सीिा नहीं है। िेमकन इससे भी िढ़कर िेरी व्यथा यह है मक
प्रमतक्षण अनभव


तिको ु मकतने प्रश्न याद आ रहे हैं भ ैया। िेमकन िैंन े जि भी उन प्रश्नों को
इस तरह पाकर भी िैं नहीं पा सकी। आज िझे

ु सच भी कहा है और झ ूठ भी कहा है। सच और झ ूठ मििाकर भी कहा है। िेमकन मकसी भी तरह िझे
पूछा है-तिने ु सत्य


क्या है, यह जानने नहीं मदया। तम्हारे ु ारे कायव-पध्दमत िें िेरी मििुि श्रध्दा
पथ के दावेदार की िैं सेक्रेटरी हूं मिर भी तम्ह

नहीं है। िैंन े यह िात कभी नहीं मछपाई। तिु नाराज नहीं हुए। न अमवश्वास ही मकया। िस्कराते
ु ु अिग कर
हुए के वि िझे

देना चाहा है। अपूव व िािू के जीवन-दान की िात भी िैं भूिी नहीं हूं। िालि होता है-िेरे छोटे से जीवन का कल्याण
ु मनदेमशत कर सकते हो। भ ैया, जाते सिय अि अपने आपको मछपाकर ित जाओ। तम्हारा,
के वि तम्हीं ु िेरा, सभी का जो

परि सत्य है-उसे ही आज कपट छोड़कर स्पष्ट प्रकट कर दो।''


इस अनोखी प्राथवना का अथव न सिझ पाने के कारण शमश और समित्रा दोनों ही आश्चयवचमकत होकर ताकते रह गए और

उनकी आंखों पर नजर डािकर भारती ने अपनी व्याकुिता से स्वयं ही िमज्जत हो उठी। यह िज्जा डॉक्टर की नजरों से

मछपी न रह सकी। उन्होंने हंसते हुए कहा, ''सच, झ ूठ और सिे द झ ूठ-एक िें मििाकर तो सभी िोिते हैं भारती। इसिें

िेरा मवशेर् दोर् क्या है? इसके अमतमरक्त यमद मकसी के मिए यह िात िज्जा करने की हो तो वह िेरे ही मिए है। िेमकन

िमज्जत तिु हो रही हो।''

भारती िहं ु झकाए


ु ि ैठी रही।


समित्रा ु
ने इसका उत्तर देत े हुए कहा, ''िेमकन अगर डॉक्टर, तम्हारे पास िज्जा हो ही नहीं-ति? िेमकन मस्त्रयां तो िहं ु पर

ु करती हैं । कोई-कोई तो कह ही नहीं सकती।''


सच िात भी स्पष्ट रूप से कहने िें िज्जा का अनभव

यह िात मकसको िक्ष्य करके मकसमिए कही गई, यह मकसी से मछपी नहीं रही िेमकन जो श्रध्दा और सम्मान उनके मिए

सहज प्राप्य िालि होते हैं उन्होंने ही सिको मनरुत्तर कर मदया।


दो-तीन मिनट इसी तरह चपचाप ु
िीत जाने पर डॉक्टर ने भारती की ओर देखते हुए कहा, ''भारती, समित्रा ने कहा है मक

ु िें िज्जा नहीं है। तिने


िझ ु यह आरोप िगाया है मक िैं समवधान
ु ु सच-झ ूठ दोनों ही िोिा करता हूं। आज भी उसी
सार

तरह कुछ कहकर इस प्रसंग को िैं सिाप्त कर सकता था। यमद इसके साथ िेरे पथ के दावेदार का कोई संिध
ं न होता।

ु से ही िेरा सच-झ ूठ मनधावमरत होता है। यही िेरा नीमत शास्त्र है। यही िेरी अकपट िूमतव है।''
इसकी भिाई-िराई

भारती अवाक े् होकर िोिी, ''यह क्या कहते हो भ ैया। यही तम्हारी
ु ु
नीमत है? यही तम्हारी अकपट िूमतव है?''


समित्रा िोि उठी, ''हां, ठीक यही है। यही इनका यथाथव स्वरूप है। दया नहीं, ििता नहीं, धिव नहीं-इस पत्थर की िूमतव

को िैं पहचानती हूं।''


समित्रा ु
की िात पर भारती ने मवश्वास कर मिया हो, ऐसी िात नहीं है। िेमकन सनकर वह स्तब्ध हो गई।
डॉक्टर िोिे, ''तिु िोग कहा करती हो चरि सत्य, परि सत्य-और यह अथवहीन, मनष्फि शब्द तिु िोगों के मिए


अत्यमधक िूल्यवान हैं । िूखों को भिावे िें डािने के मिए इससे िड़ा जादू-िंत्र और कोई नहीं है। तिु िोग सोचती हो

मक झ ूठ को ही िनाना पड़ता है। सत्य शाश्वत, सनातन और अपौरुर्ेय है। यही झ ूठी िात है। झ ूठ की ही तरह सच को भी

िानव जामत मदन-रात िनाती है। यह भी शाश्वत नहीं। इसका जन्म है, िृत्य ु है। िैं झ ूठ नहीं िोिता, सत्य की सृमष्ट करता

हूं।''


यह पमरहास नहीं, सव्यसाची के हृदय की उमक्त है, भारती सनकर पीिी पड़ गई अस्फुट स्वर िें उसने पूछा, ''भ ैया! क्या


यही तम्हारे पथ के दावेदार की नीमत है?''

डॉक्टर ने उत्तर मदया, ''भारती, 'पथ के दावेदार' िेरी तकव शास्त्र की पाठशािा नहीं है। यह िेरी पथ पर चिने के अमधकार

की शमक्त है। कौन, कि, मकसे अज्ञात आवश्यकता के मिए नीमत वाक्य की रचना कर गया-वही हो जाएगा पथ के दावेदारों


के मिए सत्य? और इसके मिए मजसकी गदवन िांसी के रस्सी से िंधी है, उसके हृदय का वाक्य हो जाएगा झ ूठ? तम्हारा

परि सत्य क्या है, िैं नहीं जानता। िेमकन परि मिर्थ्ा यमद कहीं हो तो वह यही है।''


उत्तेजना से समित्रा ु
की आंखें चिक उठीं। िेमकन इतनी भयानक िात सनकर भारती आशंका से एकदि अमभभूत हो

उठी।

''कमव।''

''जी।''

डॉक्टर हंस पड़े, ''शमश की, कै सी भमक्त है, देख िी?''

िेमकन डॉक्टर की हंसी िें कोई भी शामिि नहीं हुआ। डॉक्टर ने दीवार घड़ी की ओर देखकर कहा, ''ज्वार सिाप्त होने िें


अि देर नहीं है। िेरे जाने का सिय हो गया। तम्हारे ु नहीं
तारा मवहीन 'शमश-तारा िॉज' आने का सिय अि िझे

मििेगा।''

शमश ने कहा, ''िैं यह िकान कि ही छोड़ दूंगा।''

''कहां जाओगे?''
ु भारती के घर।''
''आपके आदेशानसार

डॉक्टर हंसते हुए िोिे, ''देख रही हो भारती, शमश िेरा आदेश अिान्य नहीं करता। उस िकान का नाि क्या रखोगे

ु तीन िार धोखा खाते तो िैंन े देखा है। इस िार शायद सििता मिि जाए। भारती
शमश?....'शमश-भारती िॉज' तम्हें

िहुत अच्छी िड़की है।''


इतने कष्ट िें भी भारती हंस पड़ी। समित्रा ु मिया।
ने भी हंसते हुए मसर झका


डॉक्टर िोिे, ''तम्हारे रुपयों की थ ैिी, मजसे िैं साथ िेकर जा रहा था। भारती के पास छोड़ जाऊं गा, वह भी एक िकान

खरीदेगी।''

भारती िोिी, ''क्या घाव पर निक मछड़कना िंद नहीं होगा भ ैया?''

शमश ने कहा, ''रुपए आप िे िीमजए डॉक्टर, िैंन े आपको दे मदए। िेरे देश के घर-द्वार िेचकर मििे रुपए देश के काि िें

ही िगने दीमजए।''

डॉक्टर हंस पड़े। िेमकन दूसरे ही पि उनकी आंखें डिडिा उठीं। िोिे, ''रुपए िेरे पास हैं शमश, अि उनकी जरूरत नहीं


है। इसके अमतमरक्त अि शायद रुपयों की किी कभी भी न होगी।'' कहकर वह हंसते हुए समित्रा की ओर देखने िगे।


समित्रा की दोनों आंखें कृ तज्ञता से भर उठीं। उसने िहं ु से कुछ नहीं कहा। िेमकन उसके सवाांग से यही िात िू टकर िाहर

मनकि पड़ी-''सि कुछ तो तम्हारा


ु ही है। िेमकन क्या तिु उसे छुओगे?''

डॉक्टर अपनी दृमष्ट दूसरी ओर हटाकर कुछ देर स्तब्ध रहने के िाद िोिे, ''कमव?''

''कमहए।''

''ब्राह्मण भोजन कुछ पहिे ही पूरा कर डािा। इसमिए दु:खी ित होना। क्योंमक अि जि शभु िहूतव
ु आएगा ति िझे

ु वरदान दे रहा
अवकाश नहीं मििेगा। िेमकन वह मदन आएगा अवश्य। तरह-तरह के भोजन से तृप्त होकर आज िैं तम्हें

हूं-तिु सखी
ु होओ। िेमकन तिु दो काि कभी ित करना। शराि ित पीना और राजनीमतक मविप्व िें भाग ित िेना।

तिु कमव हो, देश के िहुत िड़े किाकार हो। तिु राजनीमत से िड़े हो- इस िात को ित भूिना।''

शमश ने दु:खी होकर कहा, ''आप मजसिें हैं उसिें िेरे रहने से दोर् होगा। क्या िैं आपसे भी िड़ा हूं?''

डॉक्टर ने कहा, ''िड़े तो हो ही। तम्हारा पमरचय ही तो जामत का सच्चा पमरचय है। तिु िोगों को छोड़ देन े पर इसे मकस

चीज से तोिा जाएगा? मकसी मदन स्वाधीनता की इस सिस्या का सिाधान होगा ही। ति इसे दु:ख-दु:ख की कहानी का

जनश्रमु त से अमधक िूल्य नहीं मििेगा। िेमकन तम्हारे


ु कायों का िूल्य-मनधावरण कौन करेगा? तिु ही तो देश की सिस्त

मवमच्छन्न, मवमक्षप्त धाराओ ं की िािा की भांमत गथ


ं ु जाओगे।''


समित्रा िोिी, ''कि गूथ
ं ग ु िातें गूथ
ें ,े यह िात वह ही जानते हैं । िेमकन तिने ं कर उनका जो िूल्य िढ़ा मदया है, उसे भारती

कै स े संभािेगी।''


सनकर सभी हंसने िगे।

डॉक्टर ने कहा, ''शमश होगा हि िोगों का राष्ट्र-कमव। महंदुओ ं का नहीं, िसििानों


ु का नहीं, ईसाइयों का नहीं-के वि िेरे


देश का कमव। सहस्र नद-नदी प्रवामहत हिारा िंग देश, हिारी सजिा-स ु
ििा-शस्य श्याििां, खेतों से भरी िंग भूमि।

मिर्थ्ा रोग का दु:ख नहीं, मिर्थ्ा दुमभवक्ष की क्षधा ु


ु नहीं, मवदेशी शासन के दुस्सह अपिान की ज्वािा नहीं, िनष्यत्व हीनता

की िांछना नहीं-शमश तिु होगे उसी का चारण कमव। क्या तिु न हो सकोगे भाई?''

ु से मवगमित होकर िोिा, ''डॉक्टर चेष्टा करने


भारती का सिूचा िदन रोिांमचत हो उठा। शमश 'भाई' सम्बोधन की िधरता

े ी िें भी कमवता मिख सकता हूं। यहां तक मक....''


पर िैं अंग्रज

े ी िें नहीं। के वि िंगिा िें। के वि सात करोड़ अमधवामसयों की


डॉक्टर िीच िें ही रोककर िोि उठे , ''नहीं, नहीं अंग्रज

िातृभार्ा िें। शमश, संसार की िगभग सभी भार्ाएं िैं जानता हूं। िेमकन सहस्र दिों िें मवकमसत ऐसी िध ु से भरी भार्ा

और नहीं है। िैं अक्सर सोचता रहता हूं भारती, ऐसा अिृत इस देश िें कि, कौन िाया।''

ु मकसने
भारती की आंखों की कोरों िें आंस ू भर आए। उसने कहा, ''िैं सोचा करती हूं भ ैया, देश को इतना प्यार करना तम्हें

मसखाया था?''

शमश िोि उठा, ''इस मवगत-गौरव का गान ही िेरा गान होगा। यह प्रेि का सरु ही िेरा सरु होगा। अपने देश को हि

िोग....मजससे मिर उसी तरह प्यार करने िगें ऐसी मशक्षा ही िेरी मशक्षा होगी।''


डॉक्टर ने आश्चयव भरी नजरों से शमश की ओर देखा। समित्रा के चेहरे पर भी नजर डािी। और अंत िें दोनों की सिझ िें

नहीं आया। इसमिए वह दोनों ही अप्रमतभ हो गए।


ु मजस प्रकार के प्रेि का संकेत मकया है! शमश, उस प्रकार का
डॉक्टर िोिे, ''क्या मिर उसी प्रकार प्यार करने िगोगे, तिने

प्रेि िंगामियों नें कभी अपने िंग देश से नहीं मकया। उसका मतिाथव प्रेि भी होता तो क्या िंगािी ही मवदेमशयों के साथ

र्डयंत्र करके अपने सात करोड़ भाई-िमहनों को दूसरों के हाथों िें सौंप सकते थे।? जननी भूमि-के वि कहने भर की िात


थी। िसििान िादशाहों के प ैरों के नीचे अंजमि देन े के मिए महंदू िानमसहं, महंदू प्रतापामदत्य को जानवर की तरह िांध


कर िे गया था और उसके मिए रसद जटाकर, रास्ता मदखाकर आए थे िंगािी। जि ििी िोग हिारा देश लटने के मिए


आते थे ति िंगािी िड़ते नहीं थे। मसर पर हांडी रखकर पानी िें ि ैठे रहते थे। िसििान दस्य ु िंमदर ध्वंस करके जि

हिारे देवताओ ं के कान काट िेत े थे, ति िंगािी मसर पर पांव रखकर भाग जाते थे। धिव की रक्षा के मिए गदवन नहीं देत े

थे। वह िंगािी हिारे कुछ भी नहीं िगते कमव। गौरव करने योग्य उनिें कुछ भी नहीं था। हि िोग उनको मििुि


अस्वीकार करके चिें ग।े उनका धिव, उनका अनशासन, उनकी भीरुता, उनकी देशद्रोमहता, उनकी रीमत-नीमत-उनका जो

कुछ भी है, वही तो होगा तम्हारा


ु ु
मवप्लव गान। वही तो होगा तम्हारा सच्चा देश-प्रेि।''

शमश मविूढ़-सा देखता रह गया।


डॉक्टर िोिे, 'उनकी कापरुर्ता से हि िोग मवश्व के सािने हेय हो रहे हैं । उनकी स्वाथवपरता के भार से संकटग्रस्त और

पंग ु हो गए हैं । यह के वि क्या देश ही की िात है? मजस धिव को वह स्वयं नहीं िानते थे, मजस देवता पर उनके िन िें


श्रध्दा ही नहीं थी, उनकी ही दुहाई देकर वह सिूची जामत के मसर से पांव तक यमक्तहीन मवमध-मनर्ेधों के हजारों िंधनों िें

क्या नहीं िांध गए हैं ? यह अधीनता ही तो हिारे अनेक दु:खों की जड़ है।''

शमश ने कहा, ''यह सि आप क्या कह रहे हैं ?''

भारती िोिी, ''भ ैया, िैं आज ईसाई हूं। िेमकन वह िोग िेरे भी तो पूव व मपतािह हैं । उनके और अपराध जो भी रहे हों,

िेमकन उनके धामिवक मवश्वास िें भी छि-कपट था-ऐसी अन्याय पूण व कटूमक्त ित करो।''


समित्रा चपु ि ैठी सनु रही थी। अि िोि उठी। भारती की ओर देखकर िोिी, ''मकसी के संिध
ं िें कटूमक्त करना अन्याय है

तो अश्रध्देय पर श्रध्दा करना भी अन्याय है। यहां तक मक भिे ही वह अपने पूव व मपतािह ही क्यों न हों। इसिें धृष्टता हो


सकती है। िेमकन तम्हारी िात िें कोई तकव नहीं है भारती, कुसंस्कार है, उनको छोड़ना सीखो।''

भारती चपु ि ैठी रही।


डॉक्टर ने शमश से कहा, ''कोई भी वस्त,ु के वि प्राचीनता के िि पर सत्य नहीं हो सकती कमव। परातन
ु ु
का गणगान कर

ु नहीं। इसके अमतमरक्त हि िोग क्रांमतकारी हैं । पराने


पाना ही कोई िड़ा गण ु का िोह हि िोगों के मिए नहीं है। हिारी

ु का ध्वंस करके ही तो हिें अपना रास्ता िनाना पड़ता है।


दृमष्ट, हिारी गमत, हिारे िक्ष्य के वि सािने की ओर हैं । पराने

इसिें िाया-ििता के मिए स्थान कहां है? जीणव और िृत ही रास्ता रोके रहें ग े तो हि पथ के दावेदारों का पथ कहां

पाएंग?े ''

ु ही तम्हारे
भारती ने कहा, ''िैं के वि तकव के मिए ही तकव नहीं कर रही हूं। िैं सचिच ु पास रहकर अपने जीवन का पथ

ढूंढती हुई घूि रही हूं। तिु पराने


ु के शत्र ु हो, िेमकन कोई एक संस्कार या रीमत-नीमत के वि प्राचीन होने के कारण ही क्या

ु मकसी संशय के मिना मकसके ऊपर मनभवर होकर खड़ा रहेगा?''


मनष्फि, व्यथव और त्याज्य हो जाएगी? तक िनष्य

डॉक्टर िोिे, ''इतना भार सहने वािी वस्त ु संसार िें कौन-सी है, यह िैं नहीं जानता। िेमकन यह जानता हूं मक भारती मक

ु आगे ही
सिय के साथ एक मदन सभी चीजें प्राचीन, जीणव और मनकम्मी हो जाने पर त्याज्य हो उठें गी। प्रमतमदन िनष्य


िढ़ते जाएंग।े और उनके मपतािहों द्वारा प्रमतमष्ठत हजारों वर्व की परानी रीमत-नीमतयां एक ही स्थान पर अचि होकर रह

जाएंगी। ऐसा हो तो शायद अच्छा ही हो, िेमकन ऐसा होता नहीं है। इसिें आित तो यही है मक के वि वर्ों की संख्या से

ही मकसी एक संस्कार की प्राचीनता मनरूमपत नहीं की जा सकती। वरना तिु भी आज हिारे साथ आवाज मििाकर

कहतीं-भ ैया, जो कुछ पराना


ु है, जो कुछ जीणव है सिको कुछ मवचार मकए मिना ही ििता छोड़कर ध्वस्त कर डािो। नए

जगत की प्रमतष्ठा हो जाए।''

भारती ने पूछा, ''तिु क्या यह स्वयं कर सकते हो?''

''क्या कर सकता हूं िमहन?''

''जो कुछ प्राचीन है, सभी को कठोरता से ध्वस्त कर सकते हो?''

ु का अथव पमवत्र नहीं होता भारती। कोई िनष्य


डॉक्टर िोिे, ''कर सकता हूं। यही तो हि िोगों का व्रत है। पराने ु सत्तर


वर्व का पराना हो जाने से दस वर्व के िच्चे से अमधक पमवत्र नहीं हो जाता। तिु अपनी ओर ही नजर डािकर देखो, िानव

की अमवश्राि यात्रा के िागव िें भारत का वणावश्रि धिव तो सि तरह ही असत्य हो गया है। ब्राह्मण, क्षमत्रय, वैश्य, शद्रु कोई

भी तो अि उस आश्रि के आधार पर नहीं रहता। अगर कोई ऐसा करे तो उसे िरना होगा। उस यगु के िंधन आज मछन्न-
मभन्न हो गए हैं । मिर भी उसी को पमवत्र िान रहा है, कौन?- जानती हो भारती? ब्राह्मण। मचरस्थायी व्यवस्था को ही

अमतशय पमवत्र सिझकर कौन उसके साथ मचपका रहना चाहता है, जानती हो? जिींदार- उसका स्वरूप सिझना तो


कमठन नहीं है िमहन। मजस संस्कार के िोह से, अपूव व आज तम्हारी ज ैसी नारी को भी छोड़कर जा सकता है उससे िढ़कर


असत्य और क्या है? और क्या के वि अपूव व के वणावश्रि धिव की ही ऐसी दशा है? तम्हारा ईसाई धिव भी वैसा ही असत्य हो

ु त्याग देना पड़ेगा।''


गया है भारती। उसकी भी प्राचीनता का िोह तम्हें

भारती ने डरकर कहा, ''मजस धिव को िैं प्यार करती हूं, मवश्वास करती हूं, तिु उसी को छोड़ देन े को कह रहे हो भ ैया?''

डॉक्टर िोिे, ''हां, कह रहा हू। क्योंमक सभी धिव असत्य हैं । आमदि मदनों के कुसस्क
ं ार हैं । मवश्व-िानवता के इतने िड़े

शत्र ु और कोई भी नहीं हैं ।''

भारती उदास और स्तब्ध होकर ि ैठी रही। िहुत देर के िाद वह धीरे-धीरे िोिी, ''भ ैया, तिु जहां भी रहो, िैं तिको
ु प्यार


करती रहूंगी। िेमकन अगर यही तम्हारा ु
यथाथव ित हो तो आज से िेरा और तम्हारा रास्ता मििुि अिग है। िैंन े एक


मदन भी यह नहीं सोचा था मक तम्हारे पथ के दावेदार का िागव इतने भयंकर पाप का िागव है।''


डॉक्टर ने जरा िस्करा मदया।

भारती ने कहा, ''िैं मनश्चयपूवक ु


व जानती हूं मक तम्हारे इस दयाहीन, मनष्ठुर ध्वंस के पथ िें कल्याण कदामप नहीं है। िेरा स्नेह

का पथ, करुणा का िागव, धामिवक मवश्वास की राह-यही िेरा श्रेय है। यही पथ सत्य है।''


''इसीमिए तो तिको ु
खींचना नहीं चाहा भारती, तम्हारे संिध ु
ं िें गिती की थी समित्रा ु कभी गिती नहीं
ने। िेमकन िझसे

हुई। अपने िागव से ही चिो। स्नेह के आयोजन, करुणा की संस्थाएं संसार िें खोजने पर अनेक मिि जाएंगी। मििेगा नहीं

ु गई। िेमकन उनका


तो के वि 'पथ का दावेदार'।''-कहते-कहते उनकी आंखों की दृमष्ट पिभर के मिए जिकर मिर िझ

कं ठ स्वर मस्थर और गम्भीर था।


भारती और समित्रा ु
दोनों ही सिझ गईं मक सव्यसाची की यह शांत िखश्री, यह संयत-अचंचि भार्ा ही सिसे अमधक

भीर्ण है।

सव्यसाची ने िहं ु उठाकर कहा, ''तिसे


ु तो कई िार कह चका
ु हूं भारती मक िझे
ु कल्याण की कािना नहीं है। िझे
ु तो

कािना है के वि स्वाधीनता की। राणा प्रताप ने मचतौड़ को जि जनहीन वन िें पमरणत कर मदया था ति सारे राजपूताने िें
उनसे िढ़कर अकल्याण की िूमतव और कहीं भी नहीं थी। यह घटना जि हुई ति से मकतनी शतामब्दयां िीत गईं मिर भी

वह अकल्याण ही आज हजारों कल्याणों से िड़ा हो गया है। िेमकन जाने दो इन व्यथव के तकों को। जो िेरा व्रत है उसके

सािने िेरे मिए कुछ भी असत्य नहीं है, कुछ भी अकल्याण नहीं है।''


भारती चपचाप ि ैठी रही। तकव और ितभेद तो पहिे भी अनके िार हो चकेु हैं । िेमकन इस प्रकार के नहीं।

डॉक्टर ने घड़ी की ओर देखा, उसके िाद हंसते हुए कहा, ''िेमकन नदी िें मिर ज्वार आने का सिय हो गया भारती,

उठो।''

भारती उठकर िोिी, ''चमिए।''


डॉक्टर खाने की पोटिी उठाकर िोिे, ''समित्रा ब्रजेन्द्र कहां है?''


समित्रा ु
ने उत्तर नहीं मदया। चपचाप ि ैठी रही।


''तिको िैं पहुंचा आऊं क्या?''


समित्रा ने गदवन महिाकर कहा, ''नहीं।''

डॉक्टर िोिे, ''अच्छा।'' मिर भारती से उन्होंने कहा, ''अि देर ित करो िमहन, चिो।'' यह कहकर वह िाहर चिे गए।


समित्रा उसी तरह िहं ु झकाए
ु ि ैठी रही। भारती ने उसको निस्कार मकया और डॉक्टर के पीछे-पीछे चि पड़ी।


भारती नाव पर आकर इस तरह ि ैठ गई ज ैसे सपनों िें खोई हो। नदी के पूरे रास्ते वह िरािर चपचाप ही ि ैठी रही।

ु था। आकाश के असंख्य नक्षत्रों के प्रकाश से पृथ्वी का अंधकार स्वच्छ होता चिा आ
रात का शायद तीसरा पहर हो चका

ु पर सव्यसाची स्वयं भी उतरने


रहा था। नाव जाकर उस पार के घाट पर िग गई। हाथ पकड़कर भारती को उतार चकने

ु पहुंचाने की आवश्यकता नहीं है भ ैया। खदु चिी


को त ैयार हो रहे थे मक उसी सिय भारती ने उन्हें रोकते हुए कहा, ''िझे

जाऊं गी।''

''अके िी जाते सिय डर नहीं िगेगा?''


''िगेगा। िेमकन इसके मिए तिु को चिने की जरूरत नहीं है।''

ु झटपट पहुंचा आऊं िमहन,'' इतना कहकर उन्होंने ज्यों ही


सव्ययाची ने कहा, ''थोड़ी दूर ही तो चिना है। चिो न, तम्हें


ु िचाओ भ ैया, तिु िेरे साथ चिकर िेरे भय को हजार गना
नीचे सीढ़ी पर प ैर िढ़ाया, भारती ने हाथ जोड़कर कहा, ''िझे

ित िढ़ाओ। तिु घर चिे जाओ।''

वास्तव िें साथ जाना अत्यंत संकटपूण व काि था, इसिें संदहे नहीं था। इसीमिए डॉक्टर ने भी मजद नहीं की। िेमकन

भारती के चिे जाने के िाद भी वह नदी मकनारे मस्थर भाव से खड़े रहे।

घर पहुंचकर भारती ने तािा खोिकर अंदर कदि रखा। दीपक जिाकर चारों ओर सावधानी से मनरीक्षण मकया। उसके

िाद मकसी तरह मिछौना मिछाकर िेट गई। शरीर थक गया था। दोनों आंखें थकान से िदं ु ी जा रही थीं। िेमकन उसे

मकसी भी तरह नींद नहीं आई। घूि मिर कर सव्ययाची की यही िात उसे िरािार याद आने िगी मक पमरवतवनशीि संसार

िें सत्य की उपिमब्ध नाि की कोई शाश्वत वस्त ु नहीं है। जन्म है, िरण है, यग-य
ु गु िें, सिय-सिय पर उसे नया रूप

धााारण करके आना पड़ता है। अतीत के सत्य को वतविान िें भी सत्य स्वीकार करना चामहए, यह मवश्वास भ्रांत है। यह

धारणा कुसंस्कार है।

भारती िन-ही-िन िोिी-िानव की आवश्यकता के मिए अथावत भारत की स्वाधीनता की आवश्यकता के मिए नए सत्य

की सृमष्ट करना ही भारतवामसयों के मिए सिसे िड़ा सत्य है। अथावत इसके सािने कोई भी असत्य नहीं है। कोई भी उपाय

या कोई भी अमभसंमध हेय नहीं है। यह जो कारखानों के गंद े कुिी-िजदूरों को सत्य िागव पर िाने का उद्यि है, यह जो

उनकी संतान को मवद्या-मशक्षा देन े का आयोजन है, उनके मिए यह जो रामत्र पाठशािाएं हैं , इन सिका िक्ष्य कुछ और ही

है। इस िात को मनस्संकोच स्वीकार कर िेन े िें सव्यसाची को कोई दुमवधा नहीं हुई। िज्जा िालि नहीं हुई। पराधीन देश


की िमक्त-यात्रा ु की छानिीन कै सी?
िें पथ चनने

ु जि एक हो जाती है ति देश के
एक मदन सव्यसाची ने कहा था, 'पराधीन देश िें शासकों और शामसतों की न ैमतक िमध्द

मिए इससे िढ़कर दुभावग्य की और कोई भी िात नहीं होती भारती।' उस मदन इस िात का अथव नहीं सिझ सकी थी।

आज वह ितिि उसके सािने स्पष्ट प्रकट हो गया।


घड़ी िें तीन िज गए। इसके िाद वह कि सो गई, पता नहीं, िेमकन उसे यह याद रहा मक नींद के आवेश िें उसने िार-

िार यह दोहराया था मक भ ैया, तिु अमत िानव हो। तम्हारे


ु ऊपर िेरी भमक्त, श्रध्दा और स्नेह हिेशा अचि िना रहेगा।


िेमकन तम्हारी ु को िैं मकसी तरह भी ग्रहण न कर सकूं गी। भगवान करे, तम्हारे
इस मवचार िमध्द ु ु
हाथों से ही देश को िमक्त

मििे। िेमकन अन्याय को कभी न्याय की िूमतव िनाकर खड़ा ित करना। तिु िहान पंमडत हो। तम्हारी
ु ु की सीिा
िमध्द


नहीं है। तकव िें तिको जीता नहीं जा सकता। तिु सि कुछ कर सकते हो। मवदेमशयों के हाथ से, पराधीनों के हाथ से,

पराधीनों को मजतनी िांछना मििती है, दु:ख के इस सागर िें हिारा प्रयोजन मकतना है। देश की िड़की होकर क्या िैं यह

ु के सािने अधिव को ही धिव


नहीं जानती भ ैया? इसमिए अगर आवश्यकता को ही सवोच्च स्थान देकर दुिवि मचत्त िनष्यों

ु कभी अंत ही नहीं मििेगा।


िना डािोगे तो मिर इस दु:ख का तम्हें

ु था। िड़के दरवाजे के िाहर खड़े होकर पकार


दूसरे मदन जि भारती की नींद टूटी, मदन चढ़ चका ु रहे थे। झटपट हाथ-िहं ु

धोकर वह नीचे आ गई। दरवाजा खोिते ही कुछ छात्र-छात्राएं पस्तकें


ु -िेटें मिए अंदर आ गए। उन्हें ि ैठने को कहकर

भारती कपड़े िदिने ऊपर जा रही थी मक तभी होटि के िामिक सरकार िहाराज आ गए। िोिे, ''अपूव व तिु को कि

रात से ही....।''

भारती ने िात काटकर पूछा, ''रात को आए थे?''

िहाराज िोिा, ''आज भी सवेरे से ि ैठे हैं । भेज दूं?''

भारती का िहं ु उतर गया। िोिी, ''िझसे


ु उन्हें क्या काि है?''

ं िें कुछ कहना चाहते हैं ।''


ब्राह्मण ने कहा, ''वह तो िैं नहीं जानता िमहन जी। शायद उनकी िां िीिार हैं । उसी के संिध

भारती अप्रसन्नता से िोिी, ''िां िीिार हैं तो िैं क्या करूं?''

ब्राह्मण आश्चयव िें पड़ गया। अपूव व िािू को वह अच्छी तरह पहचानता था। वह सम्भ्रांत व्यमक्त हैं । मपछिे मदनों इसी घर

िें उनके स्वागत-सत्कार की कोई किी नहीं थी। िेमकन आज इस असंतोर् भरे भाव का कारण वह नहीं सिझ सका।

िोिा, ''िैं जाकर उनको भेज देता हूं।''

यह कहकर वह जाने िगा तो भारती िोिी, ''इस सिय िड़के -िड़मकयां आ गए हैं । उनको पढ़ाना है। कह दो इस सिय

भेंट नहीं होगी।''


ब्राह्मण िोिा, ''मिर दोपहर या शाि को मििने के मिए कह दूं?''

भारती िोिी, ''नहीं, िेरे पास सिय नहीं है।''

इस प्रस्ताव को यहीं सिाप्त करके वह ऊपर चिी गई।

स्नान करने के िाद त ैयार होकर घंटे भर िाद वह जि नीचे उतरी ति तक िड़के -िड़मकयों से किरा भर गया था और


उनके पढ़ने की आवाजों से सारा िहल्ला ं उठा था। भारती पढ़ाने के मिए ि ैठी िेमकन िन नहीं िगा। पाठ देन े िें और
गूज

ु िें उसे आज के वि असििता ही नहीं िमि आत्मवंचना-सी िालि होने िगी और सभी भावनाओ ं के िीच-िीच
सनने

िें आकर िगातार िाधा पहुंचाने िगी अपूव व की मचंता। उसे इस प्रकार िौटा देना अशोभनीय ही क्यों न हो, उसे प्रश्रय

ु है। इस मवर्य िें भारती के िन िें मकसी भी िहाने से भेंट करके वह पहिे के अस्वाभामवक संिध
देना िहुत िरा ं को और

भी मवकृ त कर देना चाहता है। नहीं तो अगर िां िीिार है तो वह यहां ि ैठा क्या कर रहा है? िां तो उसकी है, भारती की

तो है नहीं।

उनकी खतरनाक िीिारी का सिाचार पहुंचाकर उनकी रोग-शय्या के पास पहुंचना पत्रु का प्रथि और प्रधान कत्तवव्य है।

यह मवर्य क्या दूसरे से परािशव करके सिझना होगा? उसे यह िात याद आ गई मक रोग के िाििे िें अपूव व िहुत डरता

है। उसका कोिि िन व्यथा से व्याकुि होकर िाहर से मकतना ही क्यों न छटपटाता रहे, रोगी की सेवा करने की उसिें न

तो शमक्त है न साहस। यह भार उस पर सौंप देन े के सिान सववनाश और नहीं है। भारती यह सि जानती थी। वह यह भी

जानती थी मक अपनी िां को अपूव व मकतना प्यार करता है। िां के मिए वह जो न कर सके ऐसा कोई भी काि संसार िें

उसके मिए नहीं है।

उनके ही पास न जा सकने का अपूव व को मकतना दु:ख है। इसकी कल्पना करके एक ओर उसके िन िें मजस प्रकार करुणा

प ैदा हुई दूसरी ओर इस असहनीय भीरुता से, क्रोध के िारे उसका सारा शरीर जिने िगा।

भारती ने िन-ही-िन कहा, ''सेवा नहीं कर सकता तो क्या इसी कारण िीिार िां के पास जाने िें कोई िाभ नहीं है? इसी

ु प्रत्याशा करता है?''


उपदेश की क्या अपूव व िझसे

भूख न होने के कारण आज भारती ने रसोई िनाने की चेष्टा नहीं की।


मदन का जि तीसरा पहर िीत चिा ति एक घोड़ागाड़ी आकर उसके दरवाजे पर खड़ी हो गई। भारती ने ऊपर की

मखड़की से देखा तो आश्चयव और आशंका से उसका हृदय भर उठा। गठरी-पोटरी आमद अपना सारा सिान गाड़ी की छत

ु ऐसी वास्तमवकता िें पमरवमतवत


पर िादकर शमश आ धिका था। मपछिी रात के हंसी-िजाक को संसार िें कोई भी िनष्य

कर सकता है शायद भारती इस िात की कल्पना भी नहीं कर सकती थी।

भारती नीचे उतरकर िोिी, ''यह क्या शमश िािू?''

शमश िोिा, ''िकान छोड़कर आ रहा हूं।'' मिर गाड़ीवान को आदेश मदया, ''सािान ऊपर िे जाओ।''

भारती िोिी, ''ऊपर जगह कहां है शमश िािू?''

शमश िोिा, ''िहुत अच्छा, तो नीचे के किरे िें रख दो।''

भारती िोिी, ''नीचे के किरे िें तो पाठशािा है।''

शमश मचंमतत हो उठा।

भारती ने उसे तसल्ली देत े हुए कहा, ''एक काि मकया जाए शमश िािू! होटि िें डॉक्टर का किरा खािी है। आप वहां

अच्छी तरह रहें ग।े खाने-पीने का भी कष्ट नहीं होगा। चमिए।''

''िेमकन किरे का मकराया तो देना होगा?''

भारती हंसकर िोिी,'नहीं। भ ैया छ: िहीने का मकराया दे गए हैं ।''

शमश प्रसन्न न होते हुए भी इस व्यवस्था से सहित हो गया। सारे सािान के साथ कमव को िहाराज के होटि िें प्रमतमष्ठत

करके भारती ऊपर अपने सोने के किरे िें िौट आई।

दूसरे मदन जि नींद टूटी ति भूख े रहने के कारण किजोरी से उसका शरीर थका हुआ था।

मजस आदिी से भारती की िां ने मववाह मकया था वह िड़ा दुराचारी था। उसके साथ इकट्ठे ि ैठकर ही भारती को भोजन

करना पड़ता था। मिर भी मकसी िासी या अस्वच्छ वस्त ु को उसने कभी अपना खाद्य पदाथव नहीं िनाया, छुआछूत की

भावना उसिें नहीं थी िेमकन जहां-तहां, मजस-मतस के हाथों का भोजन ग्रहण करते हुए उसे घृणा होती थी। िां की िृत्य ु
के िाद से वह अपने ही हाथ से रसोई िनाकर खाती थी। िेमकन आज रसोई िना पाने की शमक्त उसके शरीर िें नहीं थी।

इसमिए होटि िें रोटी और कुछ तरकारी त ैयार कर देन े के मिए उसने िहाराज के पास सूचना भेज दी।

दासी भोजन की थािी िेकर आई तो भारती ने अपनी थािी और कटोरी िाकर िेज पर रख दी। दासी ने दूर ही से उसकी

थािी िें रोटी और कटोरी िें तरकारी डािकर कहा, ''िो भोजन कर िो।''

भारती ने िड़ी निी से कहा, ''तिु जाओ, िैं खा लं गी।''

दासी िोिी, ''जाती हूं। नौकर तो उनके साथ चिा गया था। अके िे सि धोना-िांजना-जो हो, िौटकर िीस रुपए िेरे

ु जो मकया, उतना िां की िेटी भी पास रहते हुए नहीं कर सकती


हाथ िें देकर िािू रोकर िोिे, 'दाई, अंत सिय िें तिने

थी।' वह रोने िगे तो िैं भी रोने िगी। िमहन जी, आह, मकतना कष्ट उठाया। परदेश की भूमि, कोई अपना आदिी पास

नहीं। सिंदर का रास्ता, तार भेज देन े से ही तो िहू-िेटे उड़कर आ नहीं सकते थे। उन िोगों का भी क्या दोर् है।''

भारती का हृदय उद्वेग और अज्ञात आशंका से ििव -सा हो गया िेमकन िहं ु खोिकर वह कुछ भी न पूछ सकी।


दासी कहने िगी, ''िहाराज जी ने ििाकर ु
कहा, 'िािू की िां िहुत िीिार हैं , तिको वहां जाना पड़ेगा ज्ञाना।' िैं ति

नहीं, न कह सकी। एक तो मनिोमनया की िीिारी, उस पर धिवशािा की भीड़। जंगिे-मकवाड़ सि टूटे हुए। एक भी िंद

नहीं होता था.....कै सा संकट। पांच िजने पर प्राण मनकि गए। िेमकन िेस के िािूओ ं को खिर देत,े ििाते
ु -ििाते
ु शव

ु ही सि धोना-पोंछना....।''
उठा रात को दो-ढाई िजे। उनके िौटकर आने पर मदन चढ़ आया था। अके िी िझे

भारती ने पूछा, ''क्या अपूव व िािू की िां िर गई?''

दासी ने गदवन महिाकर कहा, ''हां िमहन जी, िानो उनके मिए ििाव िें जिीन खरीद िी गई थी। वही जो एक कहावत है-

'तामह तहां िे जाए।' ठीक यही िात हुई। इधर से अपूव व िािू ने प्रस्थान मकया, उधर वह भी िड़के से झगड़ा करके जहाज


पर ि ैठ गईं। िस एक नौकर साथ था। जहाज ही िें िखार आ गया। धिवशािा िें उतरते ही एकदि िेहोशी छा गई। घर

पहुंचते ही िािू वापसी जहाज से िौट आए। यहां आकर उन्होंने देखा, िां जा रही है। वास्तव िें चिी ही गईं। िेमकन

अि िातें करने का सिय नहीं है िमहन जी, इसी सिय सभी िाहर मनकि पड़ेंग।े मिर शाि को आऊं गी।'' कहकर वह

चिी गई।

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