You are on page 1of 4

"धूम ावती साधना पयोग"

पाचीन अधयातम जगत की कहावत है की साधना और गुर दोनो को रहसय मे रखना चािहए। वैिदक धमर पचार
और शास पुराण मनन का िवषय है लेिकन साधना आतमकलयाण का गोपनीय मागर है. साधना मे भी अगर
बात हो "महािवदाओं" की तो साधक को समझ लेना चािहए की मनुषय जनम का सवोचच समय आ गया है.
इससे पहले की मृतयु हदय की धड़कनो को छीन ले, हमे गुर सािनधय मे महािवदा साधना कर धड़कनो को
उसकी आिखरी तीवता तक धडका देना चािहए। जीवन के महासंगाम को महासमर को चुनौती बना देने वाली
महािवदा है "धूमावती". िजसके धूममय आवरण से कोई राज बाहर नही आ सकता। इस धूम आवरण मे िशव
है और यिद आपको भी वो रहसय जानने है तो आपको इस धुध
ं लके मे भीतर उतरना होगा। जीवन का एक
ऐसा काला चेहरा आपको िदखाई देगा, िजसे हमने, हमारे समाज ने हमसे छुपा कर रखा है। "धूमावती" का
नाम लेते ही साधना जगत के महापुरषो की हालत पतली होने लगाती है। कयूंिक अधेरो और सनाटो मे एक
रका एक वृदा अटहास करती रहती है. न जाने ये अटहास जीवन का है या िफर मृतयु का? लेिकन ये
अटहास िनरंतर चल रहा है। िहमालय को वषार ऋतू के बादल घेर लेते है पवर तो से होते हु ए ये धुध
ं , कोहरा
बन कर मैदानो मे जा पहु च
ं ती है, तब पृथवी की शांत राित मे समुद, बन, रेिगसतान, मैदान और पवर तो पर एक
अजात शिक बहती है िजसे ऋिषयो ने िशव कृपा से देखा समझा और जाना। इस महाशिक को नाम िदया गया
"महािवदा धूमावती" िजसके धूममय आवरण मे चाँद-िसतारे-गह-नकतो सिहत आकाश गंगाओं का िनमारण
और अंत होता है. बहाणड को रहसय से उतपन कर रहसय मे िमला देने वाली शवेत धुमवणार शिक ही
धूमावती है. आकाश से उतर कर जब धूमावती पृथवी पर अपना िवसतार फैलाती है तब िचरकाल से योगिनदा
और अजानिनदा मे सोये िसद जाग उठते है. तब कोई अवतारी चेतना उनको उस दार तक ले जाती है जहाँ
धूमावती का सामाजय है. वैसे भी इस आरोप-पतयारोप के युग मे चुपचाप कोई धूमावती को साध ले तो ये
वासतव मे बड़ी उपलबधी होगी। "ईशपुत-कौलानतक नाथ" को यिद िकसी ने रहसयो के महाआवरण मे िछपा
रखा है तो वो धूमावती ही है. इस घोर युग मे धमर को चुनौती देता अधमर भी धूमावती की वयापारशाला है।
नािसतकता कया है "धूमावती" का धमर पपंच। शतु बार-बार चुनौती दे रहा है कयो? कयोिक धूमावती चाहती है
तुम लड़ो। समाज, कारागार, राजयसता या मृतयु को देख भयभीत ना हो वीरगित को िशरोधायर करो।
तुमहारी संभावनाएं , तुमहारे होने की सभी संभावनाएं तो देवी धूमावती के हाथो मे ही है बस ये राज जानी
जानता है और अजानी नही जानता। राित के अनधकार को तुम भले ही उजाले मे बदल दो, पर अधेरा िफर
भी मुह बाये खडा रहेगा। अभी तुम जी लो अपने घरो की दीवारो मे िबसतर और कुिसर यो के ऊपर लेिकन मौत
तुमको मकानो से बहार ला पटकेगी। तुम जोड़ लो सताएं , बाहो मे भर लो िपयतमाओं को लेिकन तुमहारी हर
शवास तुमको भीतर ही भीतर मृतयु दे रही है. बस एक ही महाशिक है धूमावती िजसकी लीला तुमको इन
सबसे पार ले जाने मे समथर है. अधेरे से पृथवी, बहाणड, तुम और जगत पैदा हु आ है आज तुम अंधेरो से
डरते हो कयोिक जानते हो की िफर वही ँ जाना है। इसिलए तुम जीवन भर भाग रहे हो, समबनध बना रहे हो,
अपने आप को शिकशाली बनाने मे लगे हो, ऊँचाइयो को तुम पाना चाहते हो, लेिकन कया ये सब िबना
धूमावती को जाने संभव हो पायेगा? वैसे भी अभी तुम इस िसथित पर नही हो की धूमावती को समझ सको,
पर ऐसी िसथित मे जलद ही पहु ँच सकते हो जहाँ से धूमावती के रहसय जगत के दार तुमको िदखने लगे।
इसकी पहल आज ही करनी होगी और शायद अभी करनी होगी, कयोिक धूमावती का आवरण समय बीत
जाने पर सबकुछ अपने धूमआवरण मे छुपा लेगा। "कौलानतक पीठाधीशवर महायोगी सतयेनद नाथ जी
महाराज" के परम गोपनीय सािनधय मे, जहाँ की पहु ँचना भी सरल नही है, ये साधना दीका संपन करने का
महापवर आ गया है। तो शीत िनदा से जागो! देखो िहमालय पर िदवय तेजोमय सूयर चमक रहा है. िजसका
शीतल पकाश तुमहारे अनत:करण को िभगो देने के िलए आतुर है। इस मायावी संसार का आनंद लेते हु ए,
इससे झूझते, लड़ते, थपेड़े खाते हु ए भी तुम िहमालय के िशखरो की और अपना रख करो, कयोिक कोई वहां
है जो सभी सांसािरक कायो ं को अकेले संपन करते हु ए, अपने सुखो को ितलांजिल िदए, केवल तुमहारी
पूणरता मे अपनी पूणरता देख रहा है. ना जाने अबकी बार इस इितहास मे धूमावती कौन सा नया इितहास रच
दे? तुम पहले अपने मन-मिसतषक पर लगे किलयुगी गहण को हटाना। िफर सारी सामथयर जुटा कर "पवेश मंत"
का पूणर जाप करना और िफर तैयारी करना। एक सांसािरक धूम से िनकल कर आधयाितमक धूम मे जाने की।
दःु ख की बात तो ये है की जहाँ सारे संसार को इस महासाधना को संपन करना चािहए था वहां केवल कुछ ही
योगी इसे साध पायेगे। इतने बड़े िवशव मे केवल कुछ ही। ना जाने इससे संतुलन कैसे बनेगा? लेिकन सूकम
जगत के आधयाितमक पुरोधाओं को शायद इसका गिणत भली-भाँती जात होगा। तो अब समय आ गया है
जोर आजमाइश का। तो देखे मागर मे िकतनी बाधाएं रखी है "देवी धूमावती" ने? समाज को धूमावती ही
संचािलत करती है। सृिष को भी। यिद मानव मे पितयोिगता का भाव ना हो, जलन यािन ईषयार देष ना हो,
युद, कलह ना हो, मृतयु िवनाश ना हो तो कुछ भी आगे नही बढ़ने वाला। िकसी भी महापुरष के जीवन को
टटोल कर देख लीिजये, यिद वो आज महापुरष है तो उसकी कहानी बड़ी ही दख
ु दायी रही है। समाज मे
अनेको धुमावितयाँ रहती है। आलोचक के रप मे, शतु के रप मे, सरकार के रप मे, नयायालय के रप मे,
धोखेवाज लोगो के रप मे, चुगलखोर और षड़यंतकािरयो के रप मे। जो आपको गित देती है ऊजार देती है।
पर हर कोई उस ऊजार को थाम नही पाता। ये दःु ख और शतु ही है जो महापुरषो को भी रोने पर िववश कर
देते है। ये दःु ख और बुरा समय ही होता है जब भगवान को भी अपने भगवान् होने पर संदेह होने लगता है।
ये धूमावती ही है की एक योगय साधक सिदयो बाद िकसी योगय गुर से या अवतारी पुंज से िमलता है लेिकन
वहां ठहर नही पाता, महािवदा उसका मोह भंग कर देती है, माया का आवरण िजसे धूम आवरण कहा जाता
है गुर के तेज को और वासतिवकता को ढांप लेता है और साधक को केवल गुर मे धूमावती ही नजर आने
लगाती है। धूमावती का पपंच इतना जयादा है की उसने तो धमर गंथो को भी नही छोड़ा। वेड हो या पुराण,
िलखने वाला जब भी धमर को सटीक तरीके से िलखने बैठा तो धूमावती को सवीकार ना हु आ. िलखने वाले के
मिसतषक मे िवराज कर धरम के साथ आं िशक अधमर का पुट लगाती चली गई। सोिचये यिद देवी धुमा ने ये
िविचत लीला नही रची होती तो सतयुग ही रहता। धमर गंथो मे िववाद डाल कर ही देवी ने पुरषो और
महापुरषो को छांटने का कायर शुर िकया है। जो धूमावती को समझता है वही िहनद ू है। कयोिक वही धमर को
उसके तथयो को समझ सकता है कोई और नही। अनय तो गनथ वाकयो के तकर-िवतकर मे जीवन गवां कर मूखर
अपने को िवदान् समझने लगेगे। हा! हा! हा! हा! हा! धूमावती देवी को मै जहाँ-जहाँ देखता हू ँ, वही ँ-वही ँ
उसकी कीडा देख कर हँसी आ जाती है। वासतिवकता कुछ और है, लोग कुछ और समझ रहे है और िदखाई
कुछ और दे रहा है। िफर भी धनय है भारत के ऋिष-मुिन और महािहमालय िजसने िशव के इस जान को संजो
कर रखा और हमे पदान िकया। तो कयो ना इतराएँ हम अपने होने पे, िहनद ू होने पे? मेरी बड़ी सी मुसकान
इसी बात का पिरचायक है की मीन कुछ भी नही होते हु ए भी कुछ हू ँ कयोिक "देवी धूमावती" है। साथ-साथ
अंग-संग सदैव। जो तराश रही है, मूरत को एक आकार दे रही है। जररत है कुछ पचंड थपेड़ो की। िजसे
कोई आलोचना कहेगा, कोई दोषारोपण। कोई इलजाम कहेगा, तो कोई षड़यंत। लेिकन सबकुछ खेल है एक
शुषक महािवदा का "धुमा" का। सवणर रथ पर सूप हाथ िलए, काक धवजा धारे, भूख से वयाकुल, जो िशव को
ही खा गयी है और अभी भी मानो सारे संसार को खा जाना चाहती हो। कया कहे ऐसी िविचत शिक को? बस
गुर परमपरा और िशव से पाथर ना है की हम इस महािवदा को पूणरता से समझ सके, पा सके और साध सके।
तो िशव ने ऐसा अवसर िदया है। तो आइये करते है धूमावती साधना का पहला चरण - हमारे पंथ मे िसद
चपर ट नाथ जी ने अनेक शाबर मनतो की रचना की है उनके मनतो को िवशेष खयाित पाप है। पसतुत है एक
िवशेष और सवारिधक पचिलत मंत-

"पाताल िनरंज न िनराकार


आकाश मं ड ल धुंध कार
आकाश िदशा से कौन आई
कौन रथ कौन सवार
थरारये धरती थरे आकाश
िवधवा रप लमबे हाथ
कु िटल ने त नािक द ष
ु ा सवभाव
डमर बाजे भदकाली
कले श कलह कालराित
डं क ा डं ि कनी काल िकट िकटा हासयकरी
जीव रकनते -जीव भकनते
जाया जीया आकाश ते र ा होए
धुम ावं त ीपूर ी मे वास
ना होती दे व ी ना दे व
तहां ना होती पूज ा ना पाती
तहां ना होती जात ना जाित
तब आये शी शमभू जती गुर गोरकनाथ
आप भई अतीत
ॐ धूं धूं धूं धूम ावती ठ: ठ: फट सवाहा।"

इस मंत के जाप से देवी पसन हो करर साधक पर कृपा करती है. इसे याद कर यदा-कडा इसका पाठ करते
रहना चािहए। ये अितमहतवपूणर मनतो मे से एक है। दीका से पूवर ही इस मंता का पाठ शुर कर देने से लाभ ही
लाभ पाप होगा और दीका साधना भी िनिवर घन संपन होगी। याद रखे धूमावती सादना मे अड़चने खूब आती
है। आप इस साधना मे भाग लेने के िलए तुरत
ं आवेदन कर सकते है।

६) 'धूमावती साधना' िशिवर की दिकणा 10000/-रपये देने पर ही दीका पदान की जायेगी. पुराने साधको
के िलए ये रािश 9000/- व सूकम दीका लेने वालो के िलए ये रािश 8000/- रपये होगी। आप दीका राशी
अिगम जमा करवा कर अपना पंजीकरण कमांक भैरव पुरषोतम जी महाराज से पाप कर सकते
है। हम आपसे एक बार िफर अनुरोद करते है की केवल साधना जगत की गहरी पकड़ और
िवशवास रखने वाले साधक-सािधकाएँ ही भाग ले। ये कोई जन-सामनय हेतु आयोिजत सतसंग
िशिवर नही है। आप दीका हेतु इस आन लाइन अकाउं ट का पयोग कर सकते है। िकनतु आपको
धयान रखना होगा की आप केवल और केवल इसी अकाउं ट का पयोग करेगे िकसी दस ू रे अकाउं ट
का पयोग पूणरतया विजर त है। कृपया इसका कड़ाई से पालन करे अनयथा आपको इस साधना से
हाथ धोना पड सकता है। पीठ दारा अिधकृत अकाउं ट की डीटेलइस पकार है-
HDFC Bank
Manjusha Savesh
AC.No.-14081000012606
IFSC code-0001408
जानकािरयो के िलए समपकर करे-
Contact No-
पुरषोतम भैरव जी महाराज-09866513332
बालीचौकी आशम-01905229133

You might also like