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शाबर मनत का अद ुत चमतकार

सवर -कायर -िसिद हे त ु शाबर मनत


“काली घाटे काली माँ, पितत-पावनीकाली माँ, जवा फूले-सथुरी जले। सई जवा फूल मे सीआ बेडाए। देवीर अनुबरले।
एिह होत किरवजा होइबे। ताही काली धमेर। बले काहार आजे राठे। कािलका चणडीर आसे।”
िविधः - उक मनत भगवती कािलका का बँगला भाषा मे शाबर मनत है। इस मनत को तीन बार ‘जप’ कर दाएँ हाथ पर फँू क
मारे और अभीष कायर को करे। कायर मे िनिशचत सफलता पाप होगी। गलत कायो ं मे इसका पयोग न करे।

सवर -कायर -कारी िसद मनत


१॰ “ॐ पीर बजरङी, राम-लकमण के सङी, जहाँ-जहाँ जाए, फतह के डङे बजाए, दहु ाई माता अञिन की आन।”
२॰ “ॐ नमो महा-शाबरी शिक, मम अिनष िनवारय-िनवारय। मम कायर -िसिद कुर-कुर सवाहा।”

िविधः- यिद कोई िवशेष कायर करवाना हो अथवा िकसी से अपना काम बनवाना हो तो कायर पारमभ करने के पूवर
अथवा वयिक-िवशेष के पास जाते समय उक दो मनतो मे से िकसी भी मनत का जप करता हु आ जाए। कायर मे िसिद
होगी।

िसद वशीकरण मनत

१॰ “बारा राखौ, बरैनी, मूँह म राखौ कािलका। चणडी म राखौ मोिहनी, भुजा म राखौ जोहनी। आगू म राखौ
िसलेमान, पाछे म राखौ जमादार। जाँघे म राखौ लोहा के झार, िपणडरी म राखौ सोखन वीर। उलटन काया, पुलटन
वीर, हाँक देत हनुमनता छुटे। राजा राम के परे दोहाई, हनुमान के पीडा चौकी। कीर करे बीट िबरा करे, मोिहनी-
जोिहनी सातो बिहनी। मोह देबे जोह देबे, चलत म पिरहािरन मोहो। मोहो बन के हाथी, बतीस मिनदर के दरबार मोहो।
हाँक परे िभरहा मोिहनी के जाय, चेत समहार के। सत गुर साहेब।”
िविध- उक मनत सवयं िसद है तथा एक सजजन के दारा अनुभूत बतलाया गया है। िफर भी शुभ समय मे १०८ बार
जपने से िवशेष फलदायी होता है। नािरयल, नीबू, अगर-बती, िसनदरू और गुड का भोग लगाकर १०८ बार मनत
जपे।
मनत का पयोग कोटर -कचहरी, मुकदमा-िववाद, आपसी कलह, शतु-वशीकरण, नौकरी-इणटरवयू, उचच अधीकािरयो से
समपकर करते समय करे। उक मनत को पढते हु ए इस पकार जाँए िक मनत की समािप ठीक इिचछत वयिक के सामने
हो।

२॰ शूक र-दनत वशीकरण मनत


“ॐ ही कली शी वाराह-दनताय भैरवाय नमः।”
िविध- ‘शूकर-दनत’ को अपने सामने रखकर उक मनत का होली, दीपावली, दशहरा आिद मे १०८ बार जप करे।
िफर इसका ताबीज बनाकर गले मे पहन ले। ताबीज धारण करने वाले पर जाद -ू टोना, भूत-पेत का पभाव नही होगा।
लोगो का वशीकरण होगा। मुकदमे मे िवजय पािप होगी। रोगी ठीक होने लगेगा। िचनताएँ दरू होगी और शतु परासत
होगे। वयापार मे वृिद होगी।

३॰ कािमया िसनद ूर -मोहन मनत-


“हथेली मे हनुमनत बसै, भैर बसे कपार।
नरिसंह की मोिहनी, मोहे सब संसार।
मोहन रे मोहनता वीर, सब वीरन मे तेरा सीर।
सबकी नजर बाँध दे, तेल िसनदरू चढाऊँ तुझे।
तेल िसनदरू कहाँ से आया ? कैलास-पवर त से आया।
कौन लाया, अञनी का हनुमनत, गौरी का गनेश लाया।
काला, गोरा, तोतला-तीनो बसे कपार।
िबनदा तेल िसनदरू का, दशु मन गया पाताल।
दहु ाई किमया िसनदरू की, हमे देख शीतल हो जाए।
सतय नाम, आदेश गुर की। सत् गुर, सत् कबीर।
िविध- आसाम के ‘काम-रप कामाखया, केत मे ‘कामीया-िसनदरू ’ पाया जाता है। इसे पाप कर लगातार सात रिववार
तक उक मनत का १०८ बार जप करे। इससे मनत िसद हो जाएगा। पयोग के समय ‘कािमया िसनदरू ’ पर ७ बार उक
मनत पढकर अपने माथे पर टीका लगाए। ‘टीका’ लगाकर जहाँ जाएँ गे, सभी वशीभूत होगे।

आकषर ण एवं वशीकरण के पबल सूयर मनत


१॰ “ॐ नमो भगवते शीसूयारय ही सहस-िकरणाय ऐं अतुल-बल-पराकमाय नव-गह-दश-िदक्-पाल-लकमी-देव-वाय,
धमर -कमर -सिहतायै ‘अमुक’ नाथय नाथय, मोहय मोहय, आकषर य आकषर य, दासानुदासं कुर-कुर, वश कुर-कुर
सवाहा।”
िविध- सुयरदेव का धयान करते हु ए उक मनत का १०८ बार जप पितिदन ९ िदन तक करने से ‘आकषर ण’ का कायर
सफल होता है।
२॰ “ऐं िपनसथां कली काम-िपशािचनी िशघं ‘अमुक’ गाह गाह, कामेन मम रपेण वशवैः िवदारय िवदारय, दावय
दावय, पेम-पाशे बनधय बनधय, ॐ शी फट् ।”
िविध- उक मनत को पहले पवर , शुभ समय मे २०००० जप कर िसद कर ले। पयोग के समय ‘साधय’ के नाम का
समरण करते हु ए पितिदन १०८ बार मनत जपने से ‘वशीकरण’ हो जाता है।

बजरङग वशीकरण मनत


“ॐ पीर बजरङी, राम लकमण के सङी। जहां-जहां जाए, फतह के डङे बजाय। ‘अमुक’ को मोह के, मेरे पास न लाए,
तो अञनी का पूत न कहाय। दहु ाई राम-जानकी की।”
िविध- ११ िदनो तक ११ माला उक मनत का जप कर इसे िसद कर ले। ‘राम-नवमी’ या ‘हनुमान-जयनती’ शुभ िदन
है। पयोग के समय दध
ू या दध
ू िनिमर त पदाथर पर ११ बार मनत पढकर िखला या िपला देने से, वशीकरण होगा।

आकषर ण हे त ु हनुम द् -मनत-तनत


“ॐ अमुक-नामना ॐ नमो वायु-सूनवे झिटित आकषर य-आकषर य सवाहा।”
िविध- केसर, कसतुरी, गोरोचन, रक-चनदन, शवेत-चनदन, अमबर, कपूरर और तुलसी की जड को िघस या पीसकर
सयाही बनाए। उससे दादश-दल-कलम जैसा ‘यनत’ िलखकर उसके मधय मे, जहाँ पराग रहता है, उक मनत को
िलखे। ‘अमुक’ के सथान पर ‘साधय’ का नाम िलखे। बारह दलो मे कमशः िनमन मनत िलखे- १॰ हनुमते नमः, २॰
अञनी-सूनवे नमः, ३॰ वायु-पुताय नमः, ४॰ महा-बलाय नमः, ५॰ शीरामेषाय नमः, ६॰ फालगुन-सखाय नमः, ७॰
िपङाकाय नमः, ८॰ अिमत-िवकमाय नमः, ९॰ उदिध-कमणाय नमः, १०॰ सीता-शोक-िवनाशकाय नमः, ११॰
लकमण-पाण-दाय नमः और १२॰ दश-मुख-दपर -हराय नमः।
यनत की पाण-पितषा करके षोडशोपचार पूजन करते हु ए उक मनत का ११००० जप करे। बहचयर का पालन करते
हु ए लाल चनदन या तुलसी की माला से जप करे। आकषर ण हेतु अित पभावकारी है।

वशीकरण हे त ु कामदे व मनत


“ॐ नमः काम-देवाय। सहकल सहदश सहमसह िलए वनहे धुनन जनममदशर नं उतकिणठतं कुर कुर, दक दकु-धर
कुसुम-वाणेन हन हन सवाहा।”
िविध- कामदेव के उक मनत को तीनो काल, एक-एक माला, एक मास तक जपे, तो िसद हो जायेगा। पयोग करते
समय िजसे देखकर जप करेगे, वही वश मे होगा।

गह-बाधा-शािनत मनत
“ॐ ऐं ही कली दह दह।”
िविध- सोम-पदोष से ७ िदन तक, माल-पुआ व कसतुरी से उक मनत से १०८ आहु ितयाँ दे। इससे सभी पकार की
गह-बाधाएँ नष होती है।
देव-बाधा-शािनत-मनत
“ॐ सवेशवराय हु म्।”
िविध- सोमवार से पारमभ कर नौ िदन तक उक मनत का ३ माला जप करे। बाद मे घृत और काले ितल से आहु ित
दे। इससे दैवी बाधाएँ दरू होती है और सुख-शािनत पािप होती है।

िवरह-जवर-िवनाशकं बह-शिक सतोतम्


।।शीिशवोवाच।।
बािह बह-सवरपे तवं, मां पसीद सनातिन ! परमातम-सवरपे च, परमाननद-रिपिण !।।
ॐ पकृतयै नमो भदे, मां पसीद भवाणर वे। सवर -मंगल-रपे च, पसीद सवर -मंगले !।।
िवजये िशवदे देिव ! मां पसीद जय-पदे। वेद-वेदांग-रपे च, वेद-मातः ! पसीद मे।।
शोकघने जान-रपे च, पसीद भक वतसले। सवर -समपत्-पदे माये, पसीद जगदिमबके!।।
लकमीनाररायण-कोडे, सषु वरकिस भारती। मम कोडे महा-माया, िवषणु-माये पसीद मे।।
काल-रपे कायर -रपे, पसीद दीन-वतसले। कृषणसय रािधके भदे््र, पसीद कृषण पूिजते!।।
समसत-कािमनीरपे, कलांशेन पसीद मे। सवर -समपत्-सवरपे तवं, पसीद समपदां पदे!।।
यशिसविभः पूिजते तवं, पसीद यशसां िनधेः। चराचर-सवरपे च, पसीद मम मा िचरम्।।
मम योग-पदे देिव ! पसीद िसद-योिगिन। सवर िसिदसवरपे च, पसीद िसिददाियिन।।
अधुना रक मामीशे, पदगधं िवरहािगना। सवातम-दशर न-पुणयेन, कीणीिह परमेशविर !।।
।।फल-शुित।।
एतत् पठे चछृणुयाचचन, िवयोग-जवरो भवेत्। न भवेत् कािमनीभेदसतसय जनमिन जनमिन।।

इस सतोत का पाठ करने अथवा सुनने वाले को िवयोग-पीडा नही होती और जनम-जनमानतर तक कािमनी-भेद नही
होता।
िविध – पािरवािरक कलह, रोग या अकाल-मृतयु आिद की समभावना होने पर इसका पाठ करना चािहये। पणय
समबनधो मे बाधाएँ आने पर भी इसका पाठ अभीष फलदायक होगा।
अपनी इष-देवता या भगवती गौरी का िविवध उपचारो से पूजन करके उक सतोत का पाठ करे। अभीष-पािप के िलये
कातरता, समपर ण आवशयक है.

रोग-मुि क या आरोगय-पािप मनत


“मां भयात् सवर तो रक, िशयं वधर य सवर दा। शरीरारोगयं मे देिह, देव-देव नमोऽसतु ते।।”
िविध- ‘दीपावली’ की राती या ‘गहण’ के समय उक मनत का िजतना हो सके, उतना जप करे। कम से कम १० माला
जप करे। बाद मे एक बतर न मे सवचछ जल भरे। जल के ऊपर हाथ रखकर उक मनत का ७ या २७ बार जप करे।
िफर जप से अिभमिनतत जल को रोगी को िपलाए। इस तरह पितिदन करने से रोगी रोग मुक हो जाता है। जप
िवशवास और शुभ संकलप-बद होकर करे।

रोग से मुि क हे त ु-
“ॐ हौ ॐ जूं सः भूभर व ु ः सवः
तयमबकं यजामहे सुगिनधं पुिषवदरनम्।
उवाररकिमव बनधनात् मृतयोमुरिकय मामृतात्
सवः भूभर व
ु ः सः जूं ॐ हौ ॐ।।”
िविध- शुकल पक मे सोमवार को राित मे सवा नौ बजे के पशचात् िशवालय मे भगवान् िशव का सवा पाव दध
ू से
दगु धािभषेक करे। तदपु रानत उक मनत की एक माला जप करे। इसके बाद पतयेक सोमवार को उक पिकया दोहराये
तथा दो मुखी रदाक को काले धागे मे िपरोकर गले मे धारण करने से शीघ फल पाप होगा।

रोग िनवारणाथर औषिध खाने का मनत


‘‘ॐ नमो महा-िवनायकाय अमृतं रक रक, मम फलिसिदं देिह, रद-वचनेन सवाहा’’
िकसी भी रोग मे औषिध को उक मनत से अिभमिनतत कर ले, तब सेवन करे। औषिध शीघ एवं पूणर लाभ करेगी।
सुख-शािनत
१॰ कामाका-मनत
“ॐ नमः कामाकायै ही की शी फट् सवाहा।”
िविध- उक मनत का िकसी िदन १०८ बार जप कर, ११ बार हवन करे। िफर िनतय एक बार जप करे। इससे सभी
पकार की सुख-शािनत होगी।

इिचछत कायर मे सफलता-दायक शाबर मनत


“ॐ कामर, कामाका देवी, जहाँ बसे लकमी महारानी। आवे, घर मे जमकर बैठे। िसद होय, मेरा काज सुधारे। जो
चाहू ँ, सो होय। ॐ ही ही ही फट् ।”
िविध- उक मनत का जप राित-काल मे करे। गयारह िदनो के जप के पशचात् ११ नािरयलो का हवन करे। इिचछत
कायर मे सफलता िमलती है।

सवर -कायर -िसिद जञीरा मनत


“या उसताद बैठो पास, काम आवै रास। ला इलाही िलला हजरत वीर कौशलया वीर, आज मज रे जािलम शुभ करम
िदन करै जञीर। जञीर से कौन-कौन चले? बावन वीर चले, छपपन कलवा चले। चौसठ योिगनी चले, नबबे नारिसंह
चले। देव चले, दानव चले। पाँचो ितशेम चले, लांगुिरया सलार चले। भीम की गदा चले, हनुमान की हाँक चले। नाहर
की धाक चलै, नही चलै, तो हजरत सुलेमान के तखत की दहु ाई है। एक लाख अससी हजार पीर व पैगमबरो की
दहु ाई है। चलो मनत, ईशवर वाचा। गुर का शबद साँचा।”
िविध- उक मनत का जप शुकल-पक के सोमवार या मङलवार से पारमभ करे। कम-से-कम ५ बार िनतय करे। अथवा
२१, ४१ या १०८ बार िनतय जप करे। ऐसा ४० िदन तक करे। ४० िदन के अनुषान मे मांस-मछली का पयोग न
करे। जब ‘गहण’ आए, तब मनत का जप करे।
यह मनत सभी कायो ं मे काम आता है। भूत-पेत-बाधा हो अथवा शारीिरक-मानिसक कष हो, तो उक मनत ३ बार
पढकर रोगी को िपलाए। मुकदमे मे, याता मे-सभी कायो ं मे इसके दारा सफलता िमलती है।

अकय-धन-पािप मनत
पाथर ना
हे मां लकमी, शरण हम तुमहारी।
पूरण करो अब माता कामना हमारी।।
धन की अिधषाती, जीवन-सुख-दाती।
सुनो-सुनो अमबे सत्-गुर की पुकार।
शमभु की पुकार, मां कामाका की पुकार।।
तुमहे िवषणु की आन, अब मत करो मान।
आशा लगाकर अम देते है दीप-दान।।
मनत- “ॐ नमः िवषणु-िपयायै, ॐ नमः कामाकायै। ही ही ही की की की शी शी शी फट् सवाहा।”
िविध- ‘दीपावली’ की सनधया को पाँच िमटी के दीपको मे गाय का घी डालकर रई की बती जलाए। ‘लकमी जी’ को
दीप-दान करे और ‘मां कामाका’ का धयान कर उक पाथर ना करे। मनत का १०८ बार जप करे। ‘दीपक’ सारी रात
जलाए रखे और सवयं भी जागता रहे। नीद आने लगे, तो मनत का जप करे। पातःकाल दीपो के बुझ जाने के बाद
उनहे नए वस मे बाँधकर ‘ितजोरी’ या ‘बकसे’ मे रखे। इससे शीलकमीजी का उसमे वास हो जाएगा और धन-पािप
होगी। पितिदन सनधया समय दीप जलाए और पाँच बार उक मनत का जप करे।
सवर -जन-आकषर ण-मनत
१॰ “ॐ नमो आिद-रपाय अमुकसय आकषर णं कुर कुर सवाहा।”
िविध- १ लाख जप से उक मनत िसद होता है। ‘अमुकसय’ के सथान पर साधय या साधया का नाम जोडे।
“आकषर ण’” का अथर िवशाल दिष से िलया जाना चािहए। सूझ-बूझ से उक मनत का उपयोग करना चािहए। मानत-
िसिद के बाद पयोग करना चािहए। पयोग के समय अनािमका उँ गली के रक से भोज-पत के ऊपर पूरा मनत िलखना
चािहए। िजसका आकषर ण करना हो, उस वयिक का नाम मनत मे जोड कर िलखे। िफर उस भोज-पत को शहद मे
डाले। बाद मे भी मनत का जप करते रहना चािहए। कुछ ही िदनो मे साधय वशीभूत होगा।

२॰ “ॐ हु ँ ॐ हु ँ ही।”
३॰ “ॐ हो ही हां नमः।”
४॰ “ॐ ही ही ही ही इँ नमः।”
िविध- उक मनत मे से िकसी भी एक मनत का जप करे। पितिदन १० हजार जप करने से १५ िदनो मे साधक की
आकषर ण-शिक बढ जाती है। ‘जप’ के साधय का धयान करना चािहए।

नवनाथ-शाबर-मनत
“ॐ नमो आदेश गुर की। ॐकारे आिद-नाथ, उदय-नाथ पावर ती। सतय-नाथ बहा। सनतोष-नाथ िवषणुः, अचल
अचमभे-नाथ। गज-बेली गज-कनथिड-नाथ, जान-पारखी चौरङी-नाथ। माया-रपी मचछे नद-नाथ, जित-गुर है गोरख-
नाथ। घट-घट िपणडे वयापी, नाथ सदा रहे सहाई। नवनाथ चौरासी िसदो की दहु ाई। ॐ नमो आदेश गुर की।।”

िविधः- पूणरमासी से जप पारमभ करे। जप के पूवर चावल की नौ ढेिरयाँ बनाकर उन पर ९ सुपािरयाँ मौली बाँधकर
नवनाथो के पतीक-रप मे रखकर उनका षोडशोपचार-पूजन करे। तब गुर, गणेश और इष का समरण कर आहान
करे। िफर मनत-जप करे। पितिदन िनयत समय और िनिशचत संखया मे जप करे। बहचयर से रहे, अनय के हाथो का
भोजन या अनय खाद-वसतुएँ गहण न करे। सवपाकी रहे। इस साधना से नवनाथो की कृपा से साधक धमर -अथर -काम-
मोक को पाप करने मे समथर हो जाता है। उनकी कृपा से ऐिहक और पारलौिकक-सभी कायर िसद होते है।
िवशेषः-’शाबर-पदित’ से इस मनत को यिद ‘उजजैन’ की ‘भतृरहिर-गुफा’ मे बैठकर ९ हजार या ९ लाख की संखया मे
जप ले, तो परम-िसिद िमलती है और नौ-नाथ पतयक दशर न देकर अभीष वरदान देते है।

नवनाथ-सतुित
“आिद-नाथ कैलाश-िनवासी, उदय-नाथ काटै जम-फाँसी। सतय-नाथ सारनी सनत भाखै, सनतोष-नाथ सदा सनतन
की राखै। कनथडी-नाथ सदा सुख-दाई, अञित अचमभे-नाथ सहाई। जान-पारखी िसद चौरङी, मतसयेनद-नाथ दादा
बहु रङी। गोरख-नाथ सकल घट-वयापी, काटै किल-मल, तारै भव-पीरा। नव-नाथो के नाम सुिमिरए, तिनक भसमी ले
मसतक धिरए। रोग-शोक-दािरद नशावै, िनमर ल देह परम सुख पावै। भूत-पेत-भय-भञना, नव-नाथो का नाम। सेवक
सुमरे चनद-नाथ, पूणर होय सब काम।।”

िविधः- पितिदन नव-नाथो का पूजन कर उक सतुित का २१ बार पाठ कर मसतक पर भसम लगाए। इससे नवनाथो
की कृपा िमलती है। साथ ही सब पकार के भय-पीडा, रोग-दोष, भूत-पेत-बाधा दरू होकर मनोकामना, सुख-समपित
आिद अभीष कायर िसद होते है। २१ िदनो तक, २१ बार पाठ करने से िसिद होती है

नव-नाथ-समरण
“आिद-नाथ ओ सवरप, उदय-नाथ उमा-मिह-रप। जल-रपी बहा सत-नाथ, रिव-रप िवषणु सनतोष-नाथ। हसती-रप
गनेश भतीजै, ताकु कनथड-नाथ कही जै। माया-रपी मिछनदर-नाथ, चनद-रप चौरङी-नाथ। शेष-रप अचमभे-नाथ,
वायु-रपी गुर गोरख-नाथ। घट-घट-वयापक घट का राव, अमी महा-रस सवती खाव। ॐ नमो नव-नाथ-गण, चौरासी
गोमेश। आिद-नाथ आिद-पुरष, िशव गोरख आदेश। ॐ शी नव-नाथाय नमः।।”
िविधः- उक समरण का पाठ पितिदन करे। इससे पापो का कय होता है, मोक की पािप होती है। सुख-समपित-वैभव से
साधक पिरपूणर हो जाता है। २१ िदनो तक २१ पाठ करने से इसकी िसिद होती है।

आय बढाने का मनत
पाथर ना-िवषणु-िपया लकमी, िशव-िपया सती से पगट हु ई कामाका भगवती। आिद-शिक युगल-मूितर मिहमा अपार,
दोनो की पीित अमर जाने संसार। दोहाई कामाका की, दोहाई दोहाई। आय बढा, वयय घटा, दया कर माई।
मनत- “ॐ नमः िवषणु-िपयायै, ॐ नमः िशव-िपयायै, ॐ नमः कामाकायै, ही ही फट् सवाहा।”
िविध- िकसी िदन पातः सनान कर उक मनत का १०८ बार जप कर ११ बार गाय के घी से हवन करे। िनतय ७ बार
जप करे। इससे शीघ ही आय मे वृिद होगी।

शतु-िवधवंिसनी-सतोत
िविनयोगः- ॐ असय शीशतु-िवधवंिसनी-सतोत-मनतसय जवालत्-पावक ऋिषः, अनुषुप छनदः, शीशतु-िवधवंिसनी देवता,
मम शतु-पाद-मुख-बुिद-िजहा-कीलनाथर , शतु-नाशाथर, मम सवािम-वशयाथे वा जपे पाठे च िविनयोगः।

ऋषयािद-नयासः- िशरिस जवालत्-पावक-ऋषये नमः। मुखे अनुषुप छनदसे नमः, हिद शीशतु-िवधवंिसनी देवतायै नमः,
सवारङे मम शतु-पाद-मुख-बुिद-िजहा-कीलनाथर , शतु-नाशाथर, मम सवािम-वशयाथे वा जपे पाठे च िविनयोगाय नमः।।

कर-नयासः- ॐ हां कलां अंगुषाभयां नमः। ॐ ही कली तजर नीभयां नमः। ॐ हूं कलूं मधयमाभयां नमः। ॐ है कलै
अनािमकाभयां नमः। ॐ हौ कलौ किनिषकाभयां नमः। ॐ हः कलः करतल-करपृषाभयां नमः।

हदयािद-नयासः- ॐ हां कलां हदयाय नमः। ॐ ही कली िशरसे सवाहा। ॐ हूं कलूं िशखायै वषट् । ॐ है कलै कवचाय
हु म्। ॐ हौ कलौ नेत-तयाय वौषट् । ॐ हः कलः असाय फट् ।

धयानः-
रकागी शव-वािहनी ित-िशरसी रौदां महा-भैरवीम्,
धूमाकी भय-नािशनी घन-िनभां नीलालकाऽलंकृताम्।
खडग-शूल-धरी महा-भय-िरपुधवंशी कृशांगी महा-
दीघारगी ित-जटी महाऽिनल-िनभां धयायेत् िपनाकी िशवाम्।।

मनतः- “ॐ ही कली पुणय-वती-महा-माये सवर -दषु -वैिर-कुलं िनदर लय कोध-मुिख, महा-भयािसम, सतमभं कुर िवकौ
सवाहा।।” (३००० जप)
मूल सतोतः-
खडग-शूल-धरां अमबां, महा-िवधवंिसनी िरपून्।
कृशांगीच महा-दीघार, ितिशरां महोरगाम्।।
सतमभनं कुर कलयािण, िरपु िवकोिशतं कुर।
ॐ सवािम-वशयकरी देवी, पीित-वृिदकरी मम।।
शतु-िवधवंिसनी देवी, ितिशरा रक-लोचनी।
अिग-जवाला रक-मुखी, घोर-दंषरी ितशूिलनी।।
िदगमबरी रक-केशी, रक पािण महोदरी।
यो नरो िनषकृतं घोरं, शीघमुचचाटयेद ् िरपुम्।।
।।फल-शुित।।
इमं सतवं जपेिनतयं, िवजयं शतु-नाशनम्।
सहस-ितशतं कुयारत्। कायर -िसिदनर संशयः।।
जपाद् दशांशं होमं तु, कायर सषर प-तणडु लैः।
पञ-खादै घृतं चैव, नात कायार िवचारणा।।
।।शीिशवाणर वे िशव-गौरी-समवादे िवभीषणसय रघुनाथ-पोकं शतु-िवधवंसनी-सतोतम्।।
िवशेषः-
यह सतोत अतयनत उग है। इसके िवषय मे िनमनिलिखत तथयो पर धयान अवशय देना चािहए-
(क)

(ख) पथम और अिनतम आवृित मे नामो के साथ फल-शुित मात पढे। पाठ नही होगा।
(ग) घर मे पाठ कदािप न िकया जाए, केवल िशवालय, नदी-तट, एकानत, िनजर न-वन, शमशान अथवा िकसी मिनदर के
एकानत मे ही करे।
(घ) पुरशचरण की आवशयकता नही है। सीधे ‘पयोग’ करे। पतयेक ‘पयोग’ मे तीन हजार आवृितयाँ करनी होगी।

शतु-िवधवंिसनी सतोत के एक अनय िवधान के िलये हेम-जयोतसना देखे।

देवाकषर ण मनत
“ॐ नमो रदाय नमः। अनाथाय बल-वीयर -पराकम पभव कपट-कपाट-कीट मार-मार हन-हन पथ
सवाहा।”
िविधः- कभी-कभी ऐसा होता है िक पूजा-पाठ, भिक-योग से देवी-देवता साधक से सनतुष नही होते अथवा साधक
बहु त कुछ करने पर भी अपेिकत सुख-शािनत नही पाता। इसके िलए यह ‘पयोग’ िसिद-दायक है।
उक मनत का ४१ िदनो मे एक या सवा लाख जप ‘िविधवत’ करे। मनत को भोज-पत या कागज पर िलख कर पूजन-
सथान मे सथािपत करे। सुगिनधत धूप, शुद घृत के दीप और नैवेद से देवता को पसन करने का संकलप करे। यम-
िनयम से रहे। ४१ िदन मे मनत चैतनय हो जायेगा। बाद मे मनत का समरण कर कायर करे। पारबध की हताशा को
छोडकर, पुरषाथर करे और देवता उिचत सहायता करेगे ही, ऐसा संकलप बनाए रखे।

अभीष दे व ता का आकषर ण-मनत तथा िपतृ आकषर ण-मनत कृ पया हे म -जयोतसना पर दे खे ।

१॰ “आिगशनी माल खानदानी। इनी अममा, हववा यस ू ुफ जुलख ै ानी। ‘फलानी’ मुझ पै हो दीवानी। बरहक अबदल ु
कादर जीलानी।”
िविधः- पूरा पयोग २१ िदन का है, िकनतु ११ िदन मे ही इसका पभाव िदखाई देने लगता है। इस पयोग का दर ु पयोग
कदािप नही करना चािहए, अनयथा सवयं को भी हािन हो सकती है। साधना-काल मे मांस, मछली, लहसुन, पयाज,
दध ू , दही, घी आिद वसतुओं का पयोग नही करना चािहए। सनान करके सवचछ वस पहन कर साधना करनी चािहए।
पिवतता का िवशेष धयान रखना चािहए। लमबी धोती या सवचछ वस को ‘अहराना’ की तरह बाँध कर साधना करनी
चािहए। शेष बची हु ई धोती या कपडे को शरीर पर लपेटते हु ए िसर को ढँक लेना चािहए। एक ही कपडे से पूरा शरीर
ढँ कना चािहए, जैसे िहनद -ू िसयाँ पहनती है।
उक मनत की साधना राित मे, जब ‘नमाज’ आिद का समय समाप हो जाता है, तब करनी चािहए। साधना करने से
पहले मुसलमानी िविध से वजू करे। हो सके, तो नहा ले। जप या तो िहनद -ू िविध से करे या मुसलमानी िविध से।
िहनद ू-िविध मे माला का दाने अपनी तरफ घुमाए जाते है। मुसलमानी िविध मे माला के दाने अपनी तरफ से आगे की
ओर िखसकाए जाते है। पितिदन ११०० बार जप करे। यिद ११ िदन से पहले ‘साधय’ आ जाए, तो न तो अिधक
घुल-िमल कर बात करे, न ही िकसी पकार का कोध करे। कोई बहाना बनाकर उसके पास से हट जाए। यिद ११
िदन मे कायर न हो तो २१ िदन तक जप करे। मनत मे ‘फलानी’ की जगह ‘साधया’ का नाम लेना चािहए।

शीहनुमत्-मनत-चमतकार-अनुषान

(पसतुत िवधान के पतयेक मनत के ११००० ‘जप‘ एवं दशांश ‘हवन’ से िसिद होती है। हनुमान जी के मिनदर मे,
‘रदाक’ की माला से, बहचयर -पूवरक ‘जप करे। नमक न खाए तो उतम है। किठन-से-किठन कायर इन मनतो की
िसिद से सुचार रप से होते है।)
१॰ ॐ नमो हनुमते रदावताराय, वायु-सुताय, अञनी-गभर -समभूताय, अखणड-बहचयर -वत-पालन-ततपराय, धवली-
कृत-जगत्-िततयाय, जवलदिग-सूयर-कोिट-समपभाय, पकट-पराकमाय, आकानत-िदग्-मणडलाय, यशोिवतानाय,
यशोऽलंकृताय, शोिभताननाय, महा-सामथयारय, महा-तेज-पुञः-िवराजमानाय, शीराम-भिक-ततपराय, शीराम-
लकमणाननद-कारणाय, किव-सैनय-पाकाराय, सुगीव-सखय-कारणाय, सुगीव-साहायय-कारणाय, बहास-बह-शिक-
गसनाय, लकमण-शिक-भेद-िनवारणाय, शलय-िवशलयौषिध-समानयनाय, बालोिदत-भानु-मणडल-गसनाय, अककुमार-
छे दनाय, वन-रकाकर-समूह-िवभञनाय, दोण-पवर तोतपाटनाय, सवािम-वचन-समपािदताजुरन, संयगु -संगामाय, गमभीर-
शबदोदयाय, दिकणाशा-मातर णडाय, मेर-पवर त-पीिठकाचर नाय, दावानल-कालािग-रदाय, समुद-लंघनाय,
सीताऽऽशवासनाय, सीता-रककाय, राकसी-संघ-िवदारणाय, अशोक-वन-िवदारणाय, लंका-पुरी-दहनाय, दश-गीव-िशरः-
कृनतकाय, कुमभकणारिद-वध-कारणाय, बािल-िनवर हण-कारणाय, मेघनाद-होम-िवधवंसनाय, इनदिजत-वध-कारणाय,
सवर -शास-पारंगताय, सवर -गह-िवनाशकाय, सवर -जवर-हराय, सवर -भय-िनवारणाय, सवर -कष-िनवारणाय, सवारपित-
िनवारणाय, सवर -दषु ािद-िनबहर णाय, सवर -शतुचछे दनाय, भूत-पेत-िपशाच-डािकनी-शािकनी-धवंसकाय, सवर -कायर -
साधकाय, पािण-मात-रककाय, राम-दत ू ाय-सवाहा।।

२॰ ॐ नमो हनुमते, रदावताराय, िवशव-रपाय, अिमत-िवकमाय, पकट-पराकमाय, महा-बलाय, सूयर-कोिट-समपभाय,


राम-दत
ू ाय-सवाहा।।
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गणेश शाबर मनत (पाठानतर सिहत)


िनमनिलिखत मनत “शी िवकम जी” ने पाठको की सुिवधा के िलए, शोध के िलए भेजा है,
“GANAPAT VEER BHOOKHE MASAAN, JO PHAL MANGOO SO PHAL DET, GANAPAT
DEKHE, GAJAPAT DAREY, GANAPAT KE CHHATR SE BADSHAH DAREY, MUKH
DEKHE RAJA PRAJA DAREY, HAATA CHADHEY SINDOOR AULIYA GAURI KAA PUTRA,
GOOGAL KHEY KAROONGA DHERI, RIDDHI SIDDHI GANAPAT LAYE GHANERI,
GIRNAR PATI AUM NAMO SWAHA!!”
“गणपत वीर भूखे मसान, जो फल माँगू सो फल देत, गणपत देखे, गजपत डरे, गणपत के छत से बादशाह डरे, मुख
देखे राजा-पजा डरे, हाथा चढे िसनदरू औिलया गौरी का पुत, गूगल खेये करँगा ढेरी, िरिद-िसिद गणपत लाये घनेरी,
िगरनार पित ॐ नमो सवाहा”

काली-शाबर-मनत
सममानीय पाठको,
शाबर-मनत के एक पाठक “शी काली चरण कमबोज” जो अब इस साइट के सहयोगी भी है, का हदय से आभार
वयक करता हू ँ, ने शाबर-मनत के िलये “काली-शाबर-मनत” भेजा है जो इस पकार है-
Kali Kali Maha kali, Inder ki beti Brahma ki sali
Piti bhar bhar rakt payali, ud baithi pipal ki dali
Dono hath bajai tali, Jahan jai vajra ki tali,
Vahan na aye dushman hali,
Duhai kamro kamakhya naina yogni ki,
Ishwar mahadev gora parvti ki,
Duhai veer masan ki.

40 din 108 bar roj jap kar sidh kare, paryog ke time padh kar teen bar jor se tali bajaye, jahan tak tali
ki awaj jayegi, dushman ka koi var ya bhoot pret asar nahi karega.
“काली काली महा-काली, इनद की बेटी, बहा की साली। पीती भर भर रक पयाली, उड बैठी पीपल की डाली। दोनो
हाथ बजाए ताली। जहाँ जाए वज की ताली, वहाँ ना आए दशु मन हाली। दहु ाई कामरो कामाखया नैना योिगनी की,
ईशवर महादेव गोरा पावर ती की, दहु ाई वीर मसान की।।”
िविधः- पितिदन १०८ बार ४० िदन तक जप कर िसद करे। पयोग के समय पढकर तीन बार जोर से ताली बजाए।
जहाँ तक ताली की आवाज जायेगी, दशु मन का कोई वार या भूत, पेत असर नही करेगा।
शी काली चरण कमबोज की ई-मेल आई-डी हैः-kambojkc70@yahoo.co.in
शी कमबोज का एक बार पुनः हािदर क अिभननदन तथा आभार। आपसे अनुरोध है इसी पकार सनेह बनाए रखे।

महा-लकमी मनत
“राम-राम का करे, चीनी मेरा नाम। सवर -नगरी बस मे करँ, मोहू ँ सारा गाँव।
राजा की बकरी करँ, नगरी करँ िबलाई। नीचा मे ऊँचा करँ, िसद गोरखनाथ की दहु ाई।।”
िविधः- िजस िदन गुर-पुषय योग हो, उस िदन से पितिदन एकानत मे बैठ कर कमल-गटे की माला से उक मनत को
१०८ बार जपे। ४० िदनो मे यह मनत िसद हो जाता है, िफर िनतय ११ बार जप करते रहे।

लकमी-पूजन मनत
“आवो लकमी बैठो आँ गन, रोरी ितलक चढाऊँ। गले मे हार पहनाऊँ।। बचनो की बाँधी, आवो हमारे पास। पहला
वचन शीराम का, दज ू ा वचन बहा का, तीजा वचन महादेव का। वचन चूके, तो नकर पडे। सकल पञ मे पाठ करँ।
वरदान नही देवे, तो महादेव शिक की आन।।”
िविधः- दीपावली की राित को सवर -पथम षोडशोपचार से लकमी जी का पूजन करे। सवयं न कर सके, तो िकसी कमर -
काणडी बाहण से करवा ले। इसके बाद राित मे ही उक मनत की ५ माला जप करे। इससे वषर -समािप तक धन की
कमी नही होगी और सारा वषर सुख तथा उलास मे बीतेगा।

वशीकरण, सममोहन व आकषर ण हे त ु “उवर शी-यनत” साधना


वशीकरण, सममोहन व आकषर ण हेतु “उवर शी -यनत ” साधना

इस यनत को चमेली की लकडी की कलम से, भोजपत पर कंु कुम या कसतुरी की सयाही से िनमारण करे।इस यनत की साधना पूिणर मा की राती से करे। राती मे सनानािद से पिवत
होकर एकानत कमरे मे आम की लकडी के पटे पर सफेद वस िबछावे, सवयं भी सफेद वस धारण करे, सफेद आसन पर ही यनत िनमारण व पूजन करने हेतु बैठे। पटे पर यनत
रखकर धूप-दीपािद से पूजन करे। सफेद पुषप चढाये। िफर पाँच माला “ॐ सं सौनदयोतमायै नमः ।” िनतय पाँच राित करे। पांचवे िदन राती मे एक माला देशी घी व सफेद
चनदन के चूरे से हवन करे। हवन मे आम की लकडी व चमेली की लकडी का पयोग करे।
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िसद मोहन मनत


क॰ “ॐ अं आं इं ई ं उं ऊं हू ँ फट् ।”
िविधः- तामबूल को उक मनत से अिभमिनतत कर साधया को िखलाने से उसे िखलानेवाले के ऊपर मोह उतपन होता
है।

ख॰ “ॐ नमो भगवती पाद-पङज परागेभयः।”


ग॰ “ॐ भी कां भी मोहय मोहय।”
िविधः- िकसी पवर काल मे १२५ माला अथवा १२,५०० बार मनत का जप कर िसद कर लेना चािहए। बाद मे पयोग
के समय िकसी भी एक मनत को तीन बार जप करने से आस-पास के वयिक मोिहत होते है

शी कामदेव का मनत
(मोहन करने का अमोघ शस)
“ॐ नमो भगवते काम-देवाय शी सवर -जन-िपयाय सवर -जन-सममोहनाय जवल-जवल, पजवल-पजवल, हन-हन, वद-
वद, तप-तप, सममोहय-सममोहय, सवर -जनं मे वशं कुर-कुर सवाहा।”
िवधीः- उक मनत का २१,००० जप करने से मनत िसद होता है। तदशांश हवन-तपर ण-माजर न-बहभोज करे। बाद मे
िनतय कम-से-कम एक माला जप करे। इससे मनत मे चैतनयता होगी और शुभ पिरणाम िमलेगे।
पयोग हेतु फल, फूल, पान कोई भी खाने-पीने की चीज उक मनत से अिभमिनतत कर साधय को दे।
उक मनत दारा साधक का बैरी भी मोिहत होता है। यिद साधक शतु को लकय मे रखकर िनतय ७ िदनो तक ३०००
बार जप करे, तो उसका मोहन अवशय होता है।

मोहन
३॰ दिष दारा मोहन करने का मनत
“ॐ नमो भगवित, पुर-पुर वेशिन, सवर -जगत-भयंकिर ही है, ॐ रां रां रां कली वालौ सः चव काम-बाण, सवर -शी समसत
नर-नारीणां मम वशयं आनय आनय सवाहा।”
िविधः- िकसी भी िसद योग मे उक मनत का १०००० जप करे। बाद मे साधक अपने मुहँ पर हाथ फेरते हु ए उक
मनत को १५ बार जपे। इससे साधक को सभी लोग मान-सममान से देखेगे।

४॰ तेल अथवा इत से मोहन


क॰ “ॐ मोहना रानी-मोहना रानी चली सैर को, िसर पर धर तेल की दोहनी। जल मोहू ँ थल मोहू ँ, मोहू ँ सब संसार।
मोहना रानी पलँग चढ बैठी, मोह रहा दरबार। मेरी भिक, गुर की शिक। दहु ाई गौरा-पावर ती की, दहु ाई बजरंग बली की।
ख॰ “ॐ नमो मोहना रानी पलँग चढ बैठी, मोह रहा दरबार। मेरी भिक, गुर की शिक। दहु ाई लोना चमारी की, दहु ाई
गौरा-पावर ती की। दहु ाई बजरंग बली की।”
िविधः- ‘दीपावली’ की रात मे सनानािदक कर पहले से सवचछ कमरे मे ‘दीपक’ जलाए। सुगनधबाला तेल या इत
तैयार रखे। लोबान की धूनी दे। दीपक के पास पुषप, िमठाई, इत इतयािद रखकर दोनो मे से िकसी भी एक मनत का
२२ माला ‘जप’ करे। िफर लोबान की ७ आहु ितयाँ मनतोचार-सिहत दे। इस पकार मनत िसद होगा तथा तेल या इत
पभावशाली बन जाएगा। बाद मे जब आवशयकता हो, तब तेल या इत को ७ बार उक मनत से अभीमिनतत कर सवयं
लगाए। ऐसा कर साधक जहाँ भी जाता है, वहाँ लोग उससे मोिहत होते है। साधक को सूझ-बूझ से वयवहार करना
चािहए। मन चाहे कायर अवशय पूरे होगे।

शी भैरव मनत
“ॐ गुरजी काला भैरँ किपला केश, काना मदरा, भगवाँ भेस। मार-मार काली-पुत। बारह कोस की मार, भूताँ हात
कलेजी खूँहा गेिडया। जहाँ जाऊँ भैरँ साथ। बारह कोस की िरिद लयावो। चौबीस कोस की िसिद लयावो। सूती होय,
तो जगाय लयावो। बैठा होय, तो उठाय लयावो। अननत केसर की भारी लयावो। गौरा-पावर ती की िविछया लयावो।
गेलयाँ की रसतान मोह, कुवे की पिणहारी मोह, बैठा बािणया मोह, घर बैठी बिणयानी मोह, राजा की रजवाड मोह,
मिहला बैठी रानी मोह। डािकनी को, शािकनी को, भूतनी को, पलीतनी को, ओपरी को, पराई को, लाग कँू , लपट कँू ,
धूम कँू , धकका कँू , पलीया कँू , चौड कँू , चौगट कँू , काचा कँू , कलवा कँू , भूत कँू , पलीत कँू , िजन कँू , राकस कँू ,
बिरयो से बरी कर दे। नजराँ जड दे ताला, इता भैरव नही करे, तो िपता महादेव की जटा तोड तागडी करे, माता
पावर ती का चीर फाड लँगोट करे। चल डािकनी, शािकनी, चौडू ँ मैला बाकरा, देसयँू मद की धार, भरी सभा मे दूँ आने
मे कहाँ लगाई बार ? खपपर मे खाय, मसान मे लौटे, ऐसे काला भैरँ की कूण पूजा मेटे। राजा मेटे राज से जाय, पजा
मेटे दधू -पूत से जाय, जोगी मेटे धयान से जाय। शबद साँचा, बह वाचा, चलो मनत ईशवरो वाचा।”
िविधः- उक मनत का अनुषान रिववार से पारमभ करे। एक पतथर का तीन कोनेवाला टु कडा िलकर उसे अपने सामने
सथािपत करे। उसके ऊपर तेल और िसनदरू का लेप करे। पान और नािरयल भेट मे चढावे। वहाँ िनतय सरसो के तेल
का दीपक जलावे। अचछा होगा िक दीपक अखणड हो। मनत को िनतय २१ बार ४१ िदन तक जपे। जप के बाद िनतय
छार, छरीला, कपूर, केशर और लौग की आहु ित दे। भोग मे बाकला, बाटी बाकला रखे (िवकलप मे उडद के पकोडे,
बेसन के लडू और गुड-िमले दध ू की बिल दे। मनत मे विणर त सब कायो ं मे यह मनत काम करता है।

भैरव वशीकरण मनत


१॰ “ॐनमो रदाय, किपलाय, भैरवाय, ितलोक-नाथाय, ॐ ही फट् सवाहा।”
िविधः- सवर -पथम िकसी रिववार को गुगगुल, धूप, दीपक सिहत उपयुरक मनत का पनदह हजार जप कर उसे िसद करे।
िफर आवशयकतानुसार इस मनत का १०८ बार जप कर एक लौग को अिभमिनतत लौग को, िजसे वशीभूत करना हो,
उसे िखलाए।

२॰ “ॐ नमो काला गोरा भैरं वीर, पर-नारी सूँ देही सीर। गुड पिरदीयी गोरख जाणी, गुदी पकड दे भैर आणी, गुड,
रक का धिर गास, कदे न छोडे मेरा पाश। जीवत सवै देवरो, मूआ सेवै मसाण। पकड पलना लयावे। काला भैर न
लावै, तो अकर देवी कािलका की आण। फुरो मनत, ईशवरी वाचा।”
िविधः- २१,००० जप। आवशयकता पडने पर २१ बार गुड को अिभमिनतत कर साधय को िखलाए।

३॰ “ॐ भां भां भूँ भैरवाय सवाहा। ॐ भं भं भं अमुक-मोहनाय सवाहा।”


िविधः- उक मनत को सात बार पढकर पीपल के पते को अिभमिनतत करे। िफर मनत को उस पते पर िलखकर,
िजसका वशीकरण करना हो, उसके घर मे फेक देवे। या घर के िपछवाडे गाड दे। यही िकया ‘िछतवन’ या ‘फुरहठ’
के पते दारा भी हो सकती है।

नजर उतारने के उपाय


यह पोसट पूवर मे भी पकािशत हो चुकी है। पाठको के अनुरोध पर पिरविधर त सामगी के साथ इसे पुनः पकािशत िकया
जा रहा है।

नजर उतारने के उपाय


१॰ बचचे ने दध
ू पीना या खाना छोड िदया हो, तो रोटी या दध ू को बचचे पर से ‘आठ’ बार उतार के कुते या गाय
को िखला दे।
२॰ नमक, राई के दाने, पीली सरसो, िमचर , पुरानी झाडू का एक टु कडा लेकर ‘नजर’ लगे वयिक पर से ‘आठ’ बार
उतार कर अिग मे जला दे। ‘नजर’ लगी होगी, तो िमचो ं की धांस नही ँ आयेगी।
३॰ िजस वयिक पर शंका हो, उसे बुलाकर ‘नजर’ लगे वयिक पर उससे हाथ िफरवाने से लाभ होता है।
४॰ पिशचमी देशो मे नजर लगने की आशंका के चलते ‘टच वुड ’ कहकर लकडी के फनीचर को छू लेता है। ऐसी
मानयता है िक उसे नजर नही लगेगी।
५॰ िगरजाघर से पिवत-जल लाकर िपलाने का भी चलन है।
६॰ इसलाम धमर के अनुसार ‘नजर’ वाले पर से ‘अणडा’ या ‘जानवर की कले ज ी’ उतार के ‘बीच चौराहे’ पर रख
दे। दरगाह या कब से फूल और अगर-बती की राख लाकर ‘नजर’ वाले के िसरहाने रख दे या िखला दे।
७॰ एक लोटे मे पानी लेकर उसमे नमक, खडी लाल िमचर डालकर आठ बार उतारे। िफर थाली मे दो आकृितयाँ-
एक काजल से, दस ू री कुमकुम से बनाए। लोटे का पानी थाली मे डाल दे। एक लमबी काली या लाल रङ की िबनदी
लेकर उसे तेल मे िभगोकर ‘नजर’ वाले पर उतार कर उसका एक कोना िचमटे या सँडसी से पकड कर नीचे से जला
दे। उसे थाली के बीचो-बीच ऊपर रखे। गरम-गरम काला तेल पानी वाली थाली मे िगरेगा। यिद नजर लगी होगी तो,
छन-छन आवाज आएगी, अनयथा नही।
८॰ एक नीबू लेकर आठ बार उतार कर काट कर फेक दे।
९॰ चाकू से जमीन पे एक आकृित बनाए। िफर चाकू से ‘नजर’ वाले वयिक पर से एक-एक कर आठ बार उतारता
जाए और आठो बार जमीन पर बनी आकृित को काटता जाए।
१०॰ गो-मूत पानी मे िमलाकर थोडा-थोडा िपलाए और उसके आस-पास पानी मे िमलाकर िछडक दे। यिद सनान
करना हो तो थोडा सनान के पानी मे भी डाल दे।
११॰ थोडी सी राई, नमक, आटा या चोकर और ३, ५ या ७ लाल सूखी िमचर लेकर, िजसे ‘नजर’ लगी हो, उसके
िसर पर सात बार घुमाकर आग मे डाल दे। ‘नजर’-दोष होने पर िमचर जलने की गनध नही आती।
१२॰ पुराने कपडे की सात िचिनदयाँ लेकर, िसर पर सात बार घुमाकर आग मे जलाने से ‘नजर’ उतर जाती है।
१३॰ झाडू को चूलहे / गैस की आग मे जला कर, चूलहे / गैस की तरफ पीठ कर के, बचचे की माता इस जलती झाडू
को 7 बार इस तरह सपशर कराए िक आग की तपन बचचे को न लगे। ततपशचात् झाडू को अपनी टागो के बीच से
िनकाल कर बगैर देखे ही, चूलहे की तरफ फेक दे। कुछ समय तक झाडू को वही पडी रहने दे। बचचे को लगी नजर
दरू हो जायेगी।
१४॰ नमक की डली, काला कोयला, डंडी वाली 7 लाल िमचर , राई के दाने तथा िफटकरी की डली को बचचे या बडे
पर से 7 बार उबार कर, आग मे डालने से सबकी नजर दरू हो जाती है।
१५॰ िफटकरी की डली को, 7 बार बचचे/बडे/पशु पर से 7 बार उबार कर आग मे डालने से नजर तो दरू होती ही है,
नजर लगाने वाले की धुध ं ली-सी शकल भी िफटकरी की डली पर आ जाती है।
१६॰ तेल की बती जला कर, बचचे/बडे/पशु पर से 7 बार उबार कर दोहाई बोलते हु ए दीवार पर िचपका दे। यिद
नजर लगी होगी तो तेल की बती भभक-भभक कर जलेगी। नजर न लगी होने पर शांत हो कर जलेगी।
१७॰ “नमो सतय आदे श । गुर का ओम नमो नजर, जहाँ पर-पीर न जानी। बोले छल सो अमृत -बानी।
कहे नजर कहाँ से आई ? यहाँ की ठोर तािह कौन बताई ? कौन जाित ते र ी ? कहाँ ठाम ? िकसकी बे ट ी
? कहा ते र ा नाम ? कहां से उडी, कहां को जाई ? अब ही बस कर ले , ते र ी माया ते र ी जाए। सुन ा िचत
लाए, जै स ी होय सुन ाऊँ आय। ते ि लन-तमोिलन, चूड ी-चमारी, कायसथनी, खत-रानी, कु महारी,
महतरानी, राजा की रानी। जाको दोष, ताही के िसर पडे । जाहर पीर नजर की रका करे । मे र ी भिक,
गुर की शिक। फु रो मनत, ईशवरी वाचा।”
िविध- मनत पढते हु ए मोर-पंख से वयिक को िसर से पैर तक झाड दे।
१८॰ “वन गुर इदास कर। सात समुद सुखे जाती। चाक बाँधँ ,ू चाकोली बाँधँ ,ू दष बाँधँ ।ू नाम बाँधँ ू तर
बाल िबरामनाची आिनङा।”

िविध- पहले मनत को सूयर-गहण या चनद-गहण मे िसद करे। िफर पयोग हेतु उक मनत के यनत को पीपल के पते पर
िकसी कलम से िलखे। “दे व दत” के सथान पर नजर लगे हु ए वयिक का नाम िलखे। यनत को हाथ मे लेकर उक
मनत ११ बार जपे। अगर-बती का धुवाँ करे। यनत को काले डोरे से बाँधकर रोगी को दे। रोगी मंगलवार या शुकवार
को पूवारिभमुख होकर ताबीज को गले मे धारण करे।
१९॰ “ॐ नमो आदे श । तू जया नावे , भूत पले , पेत पले , खबीस पले , अिरष पले - सब पले । न पले , तर
गुर की, गोरखनाथ की, बीद याही चले । गुर सं ग त, मे र ी भगत, चले मनत, ईशवरी वाचा।”
िविध- उक मनत से सात बार ‘राख’ को अिभमिनतत कर उससे रोगी के कपाल पर िटका लगा दे। नजर उतर जायेगी।
२०॰ “ॐ नमो भगवते शी पाशवर नाथाय, ही धरणे न द-पदावती सिहताय। आतम-चकु, पेत -चकु, िपशाच-
चकु-सवर नाशाय, सवर -जवर-नाशाय, तायस तायस, ही नाथाय सवाहा।”
िविध- उक जैन मनत को सात बार पढकर वयिक को जल िपला दे।
२१॰ “टोना-टोना कहाँ चले ? चले बड जं ग ल। बडे जं ग ल का करने ? बडे रख का पे ड काटे । बडे रख
का पे ड काट के का करबो ? छपपन छु री बनाइब। छपपन छु री बना के का करबो ? अगवार काटब,
िपछवार काटब, नौहर काटब, सासूर काटब, काट-कू ट के पं ग बहाइबै , तब राजा बली कहाईब।”
िविध- ‘दीपावली’ या ‘गहण’-काल मे एक दीपक के सममुख उक मनत का २१ बार जप करे। िफर आवशयकता पडने
पर भभूत से झाडे, तो नजर-टोना दरू होता है।
२२॰ डाइन या नजर झाडने का मनत
“उदना दे व ी, सुद ना गे ल । सुद ना दे व ी कहाँ गे ल ? के करे गे ल ? सवा सौ लाख िविधया गुन , िसखे गे ल ।
से गुन िसख के का कै ले ? भूत के पे ट पान कतल कर दै ले । मार लाती, फाटे छाती और फाटे डाइन के
छाती। डाइन के गुन हमसे खु ले । हमसे न खु ले , तो हमरे गुर से खु ले । द ुह ाई ईशवर-महादे व , गौरा-
पावर ती, नै न ा-जोिगनी, कामर-कामाखया की।”
िविध- िकसी को नजर लग गई हो या िकसी डाइन ने कुछ कर िदया हो, उस समय वह िकसी को पहचानता नही है।
उस समय उसकी हालत पागल-जैसी हो जाती है। ऐसे समय उक मनत को नौ बार हाथ मे ‘जल’ लेकर पढे। िफर
उस जल से िछं टा मारे तथा रोगी को िपलाए। रोगी ठीक हो जाएगा। यह सवयं-िसद मनत है, केवल माँ पर िवशवास की
आवशयकता है।

२३॰ नजर झारने के मनत


१॰ “हनुम ान चलै , अवधे स िरका वृज -वणडल धूम मचाई। टोना-टमर, डीिठ-मूि ठ सबको खै ि च बलाय।
दोहाई छतीस कोिट दे व ता की, दोहाई लोना चमािरन की।”
२॰ “वजर-बनद वजर-बनद टोना-टमार, डीिठ-नजर। दोहाई पीर करीम, दोहाई पीर असरफ की,
दोहाई पीर अताफ की, दोहाई पीर पनार की नीयक मै द ।”
िविध- उक मनत से ११ बार झारे, तो बालको को लगी नजर या टोना का दोष दरू होता है।

२४॰ नजर-टोना झारने का मनत


“आकाश बाँध ो, पाताल बाँध ो, बाँध ो आपन काया। तीन डे ग की पृथ वी बाँध ो, गुर जी की दाया। िजतना
गुि नया गुन भे जे , उतना गुि नया गुन बांधे । टोना टोनमत जाद ू । दोहाई कौर कमचछा के , नोनाऊ
चमाइन की। दोहाई ईशवर गौरा-पावर ती की, ॐ ही फट् सवाहा।”
िविध- नमक अिभमिनतत कर िखला दे। पशुओं के िलए िवशेष फल-दायक है।

२५॰ नजर उतारने का मनत


“ओम नमो आदे श गुर का। िगरह-बाज नटनी का जाया, चलती बे र कबूत र खाया, पीवे दार, खाय जो
मांस , रोग-दोष को लावे फाँस । कहाँ-कहाँ से लावे ग ा? गुद गुद मे सुद ावे ग ा, बोटी-बोटी मे से लावे ग ा,
चाम-चाम मे से लावे ग ा, नौ नाडी बहतर कोठा मे से लावे ग ा, मार-मार बनदी कर लावे ग ा। न लावे ग ा, तो
अपनी माता की से ज पर पग रखे ग ा। मे र ी भिक, गुर की शिक, फु रो मनत ईशवरी वाचा।”
िविधः- छोटे बचचो और सुनदर िसयो को नजर लग जाती है। उक मनत पढकर मोर-पंख से झाड दे, तो नजर दोष दरू
हो जाता है।

२६॰ नजर-टोना झारने का मनत


“कािल दे ि व, कािल दे ि व, से ह ो दे ि व, कहाँ गे ि ल, िवजूव न खणड गे ि ल, िक करे गे ि ल, कोइल काठ काटे
गे ि ल। कोइल काठ कािट िक करित। फलाना का धै ल धराएल, कै ल कराएल, भे ज ल भे ज ायल। िडठ मुठ
गुण -वान कािट कटी पािन मसत करै । दोहाई गौरा पावर ित क, ईशवर महादे व क, कामर कमखया माई
इित सीता-राम-लकमण-नरिसं घ नाथ क।”
िविधः- िकसी को नजर, टोना आिद संकट होने पर उक मनत को पढकर कुश से झारे।

नोट :- नजर उतारते समय, सभी पयोगो मे ऐसा बोलना आवशयक है िक “इसको बचचे की, बूढे की, सी की, पुरष
की, पशु-पकी की, िहनद ू या मुसलमान की, घर वाले की या बाहर वाले की, िजसकी नजर लगी हो, वह इस बती,
नमक, राई, कोयले आिद सामान मे आ जाए तथा नजर का सताया बचचा-बूढा ठीक हो जाए। सामगी आग या बती
जला दगं ू ी या जला दगं ू ा।´´

आँ ख की फू ली काटने का मनत
“उतर काल, काल। सुन जोगी का बाप। इसमाइल जोगी की दो बेटी-एक माथे चूहा, एक काते फूला। दहू ाई लोना
चमारी की। एक शबद साँचा, िपणड काँचा, फुरो मनत-ईशवरो वाचा”
िविधः- पवर काल मे एक हजार बार जप कर िसदकर ले। िफर मनत को २१ बार पढते हु ए लोहे की कील को धरती मे
गाडे, तो ‘फूली’ कटने लगती है।

दाद का मनत
“ओम् गुरभयो नमः। देव-देव। पूरा िदशा भेरनाथ-दल। कमा भरो, िवशाहरो वैर, िबन आजा। राजा बासुकी की आन,
हाथ वेग चलाव।”
िविधः- िकसी पवर काल मे एक हजार बार जप कर िसद कर ले। िफर २१ बार पानी को अिभमिनतत कर रोगी को
िपलावे, तो दाद रोग जाता है।

पीिलया का मं त
“ओम नमो बैताल। पीिलया को िमटावे, काटे झारे। रहै न नेक। रहै कहू ं तो डारं छे द-छे द काटे। आन गुर गोरख-
नाथ। हन हन, हन हन, पच पच, फट् सवाहा।”
िविधः- उक मनत को ‘सूयर-गहण’ के समय १०८ बार जप कर िसद करे। िफर शुक या शिनवार को काँसे की कटोरी
मे एक छटाँक ितल का तेल भरकर, उस कटोरी को रोगी के िसर पर रखे और कुएँ की ‘दबू ’ से तेल को मनत पढते
हु ए तब तक चलाते रहे, जब तक तेल पीला न पड जाए। ऐसा २ या ३ बार करने से पीिलया रोग सदा के िलए चला
जाता है।

शतु-मोहन
“चनद-शतु राहू पर, िवषणु का चले चक। भागे भयभीत शतु, दे खे जब चनद वक। दोहाई कामाका दे व ी
की, फँू क-फँू क मोहन-मनत। मोह-मोह-शतु मोह, सतय तनत-मनत-यनत।। तुझे शं क र की आन, सत-गुर का
कहना मान। ॐ नमः कामाकाय अं कं चं टं तं पं यं शं ही की शी फट् सवाहा।।”
िविधः- चनद-गहण या सूयर-गहण के समय िकसी बारहो मास बहने वाली नदी के िकनारे, कमर तक जल मे पूवर की
ओर मुख करके खडा हो जाए। जब तक गहण लगा रहे, शी कामाका देवी का धयान करते हु ए उक मनत का पाठ
करता रहे। गहण मोक होने पर सात डु बिकयाँ लगाकर सनान करे। आठवी डु बकी लगाकर नदी के जल के भीतर की
िमटी बाहर िनकाले। उस िमटी को अपने पास सुरिकत रखे। जब िकसी शतु को सममोिहत करना हो, तब सनानािद
करके उक मनत को १०८ बार पढकर उसी िमटी का चनदन ललाट पर लगाए और शतु के पास जाए। शतु इस पकार
सममोिहत हो जायेगा िक शतुता छोडकर उसी िदन से उसका सचचा िमत बन जाएगा।

सभा मोहन
“गं ग ा िकनार की पीली-पीली माटी। चनदन के रप मे िबके हाटी-हाटी।। तुझे गं ग ा की कसम, तुझे
कामाका की दोहाई। मान ले सत-गुर की बात, िदखा दे करामात। खीच जाद ू का कमान, चला दे
मोहन बान। मोहे जन-जन के पाण, तुझे गं ग ा की आन। ॐ नमः कामाकाय अं कं चं टं तं पं यं शं ही
की शी फट् सवाहा।।”
िविधः- िजस िदन सभा को मोिहत करना हो, उस िदन उषा-काल मे िनतय कमो ं से िनवृत होकर ‘गंगोट’ (गंगा की
िमटी) का चनदन गंगाजल मे िघस ले और उसे १०८ बार उक मनत से अिभमिनतत करे। िफर शी कामाका देवी का
धयान कर उस चनदन को ललाट (मसतक) मे लगा कर सभा मे जाए, तो सभा के सभी लोग जप-कतार की बातो पर
मुगध हो जाएँ गे।

दशर न हे त ु शी काली मनत


“डणड भुज -डणड, पचणड नो खणड। पगट दे ि व, तुि ह झुण डन के झुण ड। खगर िदखा खपपर िलयां, खडी
कालका। तागडदे मसतङ, ितलक मागरदे मसतङ। चोला जरी का, फागड दीफू , गले फु ल-माल, जय जय
जयनत। जय आिद-शिक। जय कालका खपर-धनी। जय मचकु ट छनदनी दे व । जय-जय मिहरा, जय
मरिदनी। जय-जय चुण ड-मुण ड भणडासुर -खणडनी, जय रक-बीज िबडाल-िबहणडनी। जय िनशुम भ को
दलनी, जय िशव राजे श वरी। अमृत -यज धागी-धृट , दवड दवडनी। बड रिव डर-डरनी ॐ ॐ ॐ।।”
िविध- नवरातो मे पितपदा से नवमी तक घृत का दीपक पजविलत रखते हु ए अगर-बती जलाकर पातः-सायं उक
मनत का ४०-४० जप करे। कम या जयादा न करे। जगदमबा के दशर न होते है।

शीघ धन पािप के िलए


“ॐ नमः कर घोर-रिपिण सवाहा”
िविधः उक मनत का जप पातः ११ माला देवी के िकसी िसद सथान या िनतय पूजन सथान पर करे। राित मे १०८
िमटी के दाने लेकर िकसी कुएँ पर तथा िसद-सथान या िनतय-पूजन-सथान की तरफ मुख करके दायाँ पैर कुएँ मे
लटकाकर व बाँएँ पैर को दाएँ पैर पर रखकर बैठे। पित-जप के साथ एक-एक करके १०८ िमटी के दाने कुएँ मे डाले।
गतारह िदन तक इसी पकार करे। यह पयोग शीघ आिथर क सहायता पाप करने के िलए है।

शी भैरव मनत
“ॐ नमो भैरनाथ, काली का पुत! हािजर होके, तुम मेरा कारज करो तुरत। कमर िबराज मसतङा लँगोट, घूँघर-माल।
हाथ िबराज डमर खपपर ितशूल। मसतक िबराज ितलक िसनदरू । शीश िबराज जटा-जूट, गल िबराज नोद जनेऊ। ॐ
नमो भैरनाथ, काली का पुत ! हािजर होके तुम मेरा कारज करो तुरत। िनत उठ करो आदेश-आदेश।”
िविधः पञोपचार से पूजन। रिववार से शुर करके २१ िदन तक मृितका की मिणयो की माला से िनतय अटाइस (२८)
जप करे। भोग मे गुड व तेल का शीरा तथा उडद का दही-बडा चढाए और पूजा-जप के बाद उसे काले शवान को
िखलाए। यह पयोग िकसी अटके हु ए कायर मे सफलता पािप हेतु है।

bhoot badha niwark


these mantras are send by ‘muni’ santosh kumar

1-om nam: shivay rudray mata chandi mam raksha kuru kuru swaha
2-guru niranjan mai tera chela raat biraat firun akela
jahaan tak baaje meri taali,
bhoot pret danw ka dew ka chudail ka keen karaae gali ghaat ka
kuaan ka panghat ka inka sabka maarkoot ke bhaga ke na aawash to kaali ka
sachcha poot bhairaw na kahawas
………………………………………………
oopar ke dono mantr bhoot badha niwark hain
“Muni” Santosh kumar “pyasa”

शीसाबर-शिक-पाठ
शीसाबर-शिक-पाठ
शी ‘साबर-शिक-पाठ’ के रिचयता ‘अननत-शीिवभूिषत-शीिदवयेशवर योिगराज’ शी शिकदत िशवेनदाचायर नामक कोई
महातमा रहे है। उनके उक पाठ की पतयेक पंिक रहसय-मयी है। पूणर शदा-सिहत पाठ करने वाले को सफलता
िनिशचत रप से िमलती है, ऐसी मानयता है।
िकसी कामना से इस पाठ का पयोग करने से पहले तीन राितयो मे लगातार इस पाठ की १११ आवृितयाँ ‘अखणड-
दीप-जयोित’ के समक बैठकर कर लेनी चािहए। तदननतर िनमन पयोग-िविध के अनुसार िनिदर ष संखया मे िनिदर ष काल
मे अभीष कामना की िसिद िमल सकेगी।
पयोग-िविधः-
१॰ लकमी-पािप हेतु
नैऋतय-मुख बैठकर दो पाठ िनतय करे।
२॰ सनतान-सुख-पािप हेतु
पिशचम-मुख बैठकर पाँच पाठ तीन मास तक करे।
३॰ शतु-बाधा-िनवारण हेतु
उतर-मुख बैठकर तीन िदन सांय-काल गयारह पाठ करे।
४॰ िवदा-पािप एवं परीका उतीणर करने हेतु
पूवर-मुख बैठकर तीन मास तक ३ पाठ करे।
५॰ घोर आपित और राज-दणड-भय को दरू करने के िलए
मधय-राित मे नौ िदनो तक २१ पाठ करे।
६॰ असाधय रोग को दरू करने के िलए
सोमवार को एक पाठ, मंगलवार को ३, शुकवार को २ तथा शिनवार को ९ पाठ करे।
७॰ नौकरी मे उनित और वयापार मे लाभ पाने के िलए
एक पाठ सुबह तथा दो पाठ राित मे एक मास तक करे।
८॰ देवता के साकातकार के िलए
चतुदरशी के िदन राित मे सुगिनधत धूप एवं अखणड दीप के सिहत १०० पाठ करे।
९॰ सवपन मे पशनोतर, भिवषय जानने के िलए
राित मे उतर-मुख बैठकर ९ पाठ करने से उसी राित मे सवपन मे उतर िमलेगा।
१०॰ िवपरीत गह-दशा और दैवी-िवघन की िनवृित हेतु
िनतय एक पाठ सदा शदा से करे।

पूवर-पीिठका
।। िविनयोग ।।
शीसाबर-शिक-पाठ का, भुजंग-पयात है छनद ।
भारदाज शिक ऋिष, शीमहा-काली काल पचणड ।।
ॐ की काली शरण-बीज, है वायु-ततव पधान ।
कािल पतयक भोग-मोकदा, िनश-िदन धरे जो धयान ।।
।। धयान ।।
मेघ-वणर शिश मुकुट मे, ितनयन पीतामबर-धारी ।
मुक-केशी मद-उनमत िसतांगी, शत-दल-कमल-िवहारी ।।
गंगाधर ले सपर हाथ मे, िसिद हेतु शी-सनमुख नाचै ।
िनरख ताणडव छिव हँसत, कािलका ‘वरं बूिह’ उवाचै ।।
इस “शाबर-शिक-पाठ” को पुरा पढने के िलये कृपया “वैिदकजगत॰कॉम” का अनुसरण करे।

Achuk Vashikaran Prayog (Powerful Love-Spell)

Mantra (Chant)

“AUM MOHINI MATA BHOOT PITA BHOOT SIR BETAL UD AYE KALI NAGIN …BELOVED NAME…
KO LAG JAYE. AISI JAKE LAGE KI …BELOVED NAME… KO LAG JAYE HAMARI MOHABBAT KI
AAG. NA KHADE SUKH, NA LETE SUKH, NA SOTE SUKH. SINDOOR CHADAUN MANGALWAR,
KABHI NA CHOREY HAMARA KHAYAL. JAB TAK NA DEKHE HAMARA MUKH, KAYA TADAP
TADAP MAR JAYE. CHALO MANTRA PHURO WACHA. DIKHAWO RE SHABAD APNE GURU KE ILM
KA TAMASHA”.

Only in the Shukla Paksha, sit on a woolen blanket in the house of your guru or at a holy place when there is a
favorable Nakshatra in the sky and japa 41 rosary-cycles daily with full faith, at night. This mantra will get
energized. When you suppose to use it, remember him/her and japa 10 rosary-cycles daily. Remember that time
must be same. Do it for seven days. For God grace, it will be one of the most powerful Vashikaran. You will be
successful.

2. Arand Vashikaran

Mantra (Chant)

Aum namoh kaal bhairav kali raat, Kala aaya aadhi raat, Chale katar bandhu, Tu bavan veer, par nari so rakhe seer,
Chhati dharike vako laao, Soti hoy, jaga ke laao, Baithi hoy, utha ke laao, shabad sancha, pind kancha, phure
mantra iswaro wacha, satya naam adesh guru ka.

Learn this mantra by heart and when there is Diwali or Holi on any Sunday, uproot the red Arand (a small tree)
chanting the above mantra in one turn from your left hand and bring it home. Make small pieces of it. Read this
mantra 21 times and energize the each piece blowing on it. Anyway, Touch any of the piece to a lady, the lady will
behind you.

3. Paan Vashikaran

Mantra (Chant)

Sree ram naam rabeli akankabiri, suniye nari, baat hari, ak paan sang mangaye, ak paan sez sau lave, ak paan mukh
bulave, hamko chhor aur ko dekhe to tera kaleja muhammad veer chakkhe.

Make the three Paan energized with this mantra chanting it 21 times. After eating the first one, she will be your
friend. The second one will bring her in your arms. The third one will make her so in love with you that she will
never imagine anyone else except you.

4. Ghee Vashikaran

Mantra (Chant)

ONO ONO SAAO, EMORE MAAM TOR PO MOR, KOLE O IRYAM, YADI KONER MAYA DHARO, O
SIDH, SIDDHESHWARI MATHA KHAVO.

Take the pure ghee of a cow and make it energized chanting this mantra seven times. Whomsoever, it will be
given, under you.
NOTE: This mantra can be used for both male and female.

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