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OBA Bhagavad Gita (CH 13 To 18)
OBA Bhagavad Gita (CH 13 To 18)
ीता
अध्याय 13 से 18
प्र.1: भगवत गीता अध्याय 14 के श्लोकोों का तात्पयय की सहायता से निम्नलिलित का अपिे शब्ोों में वर्यि वर्यि कीलिए -
• वे तरीके लििमें आप स्वयों रिोगुर् और तमोगुर् से प्रभानवत होते हैं।
• सतोगुर् का अिुशीिि करिे के व्यावहाररक उपाय।
उत्तर -
मेरे िीवि में ऐसे बहुत से कारर् हैं लििके द्वारा में सतोगुर् रिोगुर् तथा तमोगुर् से प्रभानवत होता रहता हों । िैसे नक िब मैं िापरवाही करता हों तो मैं
तमोगुर् द्वारा प्रभानवत होता हों सुबह उठिा एक सतोगुर्ी कायय है। िेनकि यनि कोई सुबह ब्रह्म मुहतय में िहीों उठे बल्कि िेर से उठे , यह तमोगुर् के कारर्
होता है निर अगर अपिी इलियोों की पुनि के लिए कायों में रत हो िाए और अथक प्रयास करें , यह रिोगुर् के द्वारा होता है। हृिय िुबयिता के कारर् मैं
कभी कभी इसी तरीके से रिोगुर् तथा तमोगुर् के प्रभावोों में आ िाता हों । कभी कभी मेरे ऊपर आिस का प्रभाव होता है िो नक एक तमोगुर् का िक्षर्
है। कभी कभी मुझे कु छ ऐसे व्यों िि िािे के मि होते हैं िो ज्यािा िमकीि चटपटे तथा तीिे होते हैं । यह भी रिोगुर् की विह से है। मिुष्य को चानहए
नक उसे अपिी इोंनिय सों यम रिें और सतोगुर् में ल्कित रहिे का प्रयास करें । िब हम प्रचार करते हैं तो कभी-कभी ऐसा सोच िेते हैं की प्रगनत हमारी बहुत
िोर से होिी चानहए, ऐसा मािकर नक िैसे सारा कायय हमारे द्वारा ही हो रहा हो, यह एक रिोगुर् का िक्षर् है। सच तो यह है नक सारा कायय भगवाि की
अध्यक्षता में हो रहा है, हम के वि एक निनमत्त मात्र हैं। ऐसी बुनि सत्व गुर्ी कहिाती है । िेनकि िब हम ऐसा सोच िेते हैं नक यह कायय मेरे द्वारा सों पन्न
हो रहा है, तो यह रिोगुर् है। िािे-पीिे सोिे उठिे से िेकर बातें करिे तक हमारा हर एक काययकिाप गुर्ोों के प्रभाव में होता है ।
सतोगुर् में ल्कित रहिे के लिए मिुष्य को चानहए नक वह रोिािा प्रातः कािीि ब्रह्म मुहतय में उठे और स्नाि करें । अपिे आप को बाहरी रूप से स्वच्छ करिे
के बाि अपिे अोंतःकरर् का शुिीकरर् करिा अत्यों त आवश्यक है । इसके लिए मिुष्य को भगवाि की मों गि आरती में िािा चानहए और निर भगवाि की
पनवत्र िामोों का िप करिा चानहए। ब्रह्म मुहतय में भगवाि के पनवत्र िामोों का िप करिे से अोंतःकरर् शुि होता है तथा हम सतोगुर् में आ िाते हैं । इसके
साथ ही हमें अपिे िािे-पीिे सोिे उठिे का भी ध्याि रििा चानहए। हमारा प्रत्येक कायय समय पर होिा चानहए। अगर कायय समय पर िहीों हो रहा है
इसका मतिब यह है नक हम सतोगुर् में ल्कित िहीों है। इसलिए हमें रोिािा सुबह उठिा चानहए और शाम को िल्दी सो िािा चानहए िे र रात तक िगिा
तमोगुर् का िक्षर् है। इसी प्रकार हमें अपिे िािे-पीिे में भी सों यम रििा चानहए ऐसा आहार ि ग्रहर् करें िो रिोगुर् या तमोगुर् हो। िो शुि शाकाहारी
भोिि है उसे ही हमें स्वीकार करिा चानहए। भोिि को भगवाि के प्रसाि के रूप में भगवाि को भोग िगािे के बाि स्वीकार करिा चानहए। इससे हमारी
बुनि सतोगुर्ी होती है। इसके बाि हमें ग्रोंथोों का अध्ययि करिा चानहए। वैनिक शास्त्ोों का अध्ययि करिे से हमारे अोंिर सतोगुर् का सों चार होता है । इससे
मि शुि होता है और हम तमोगुर् से बाहर आते हैं। निि में िो बार स्नाि करिा चानहए। अगर कभी भी हमें मि त्यागिा पडे तो उसके बाि िरूर स्नाि
करिा चानहए और अगर हम सो कर उठे हैं तब भी स्नाि करिा चानहए और अगर हमारे शरीर से बहुत ज्यािा पसीिा आ गया है तो स्नाि कर िेिे से मिुष्य
तुरोंत सतोगुर् में ल्कित हो िाता है। इि सभी तरीकोों को अपिाया िाए तो व्यावहाररक रूप से मिुष्य सद्गुर् में ल्कित हो िाता है।
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प्र.2: भगवद्गीता अध्याय 14 व 16 में निए गए श्रीि प्रभुपाि के तात्पयों से उि कथिोों का उल्लेि कीलिए िो उिके भाव व अलभयाि के पहिुओ ों को िशायते
हैं एवों अपिे शब्ोों में इस्कॉि के भनवष्य के लिए इि पहिुओ ों के महत्व पर चचाय कीलिए।
उत्तर-
प्रभुपाि के कु छ कथि िो उिके भावोों को अलभव्यक्त करते हैं इस प्रकार हैं -
❖ आधुनिक मािव समाि में आध्यालिक ज्ञाि की उपेक्षा की िाती है और गोवध को प्रोत्सानहत नकया िाता है । इससे यही ज्ञात होता है नक मािव
समाि नवपरीत निशा में िा रहा है और अपिी भसयिा का पथ प्रशस्त कर रहा है। िो सभ्यता अपिे िागररकोों को अगिे िन्म में पशु बििे के
लिए मागयिशयि करती हो वह निलित रूप से मािव सभ्यता िहीों है । निसों िे ह आधुनिक मािव सभ्यता रिोगुर् तमोगुर् के कारर् कु मागय की ओर
िा रही है। यह अत्यों त घातक युग है और समस्त राि् ो ों को चानहए नक मािवता को महाितम सों कट से बचािे के लिए कृ ष्णभाविामृत की सरितम
नवलध प्रिाि करें । (14.16 तात्पयय)
❖ क्ोोंनक वतयमाि सभ्यता िीवो के लिए अलधक अिुकूि िहीों है । अतः उिके लिए कृ ष्णभाविामृत की सों स्तुनत की िाती है। कृ ष्णभाविामृत के
माध्यम से समाि में सतोगुर् नवकलसत होगा। (14.17 तात्पयय)
❖ मैथुि-िीवि गनहयत िहीों है यनि इसका कृ ष्णभाविामृत में प्रयोग नकया िाए। िो िोग कृ ष्णभाविामृत में हैं कम से कम उन्हें तो कु त्ते नबल्कल्लयोों
की तरह सों ताि उत्पन्न िहीों करिी चानहए। (16.1-3 तात्पयय)
❖ मािव समाि में पतिो का मुख्य कारर् भागवतनवद्या के नियमोों के प्रनत द्वे ष है। (16.24 तात्पयय)
प्रभुपाि चाहते थे नक कम से कम वह िोग िो कृ ष्णभाविामृत में हैं वे मैथुि िीवि का प्रयोग कृ ष्णभाविामृत सों ताि की उत्पनत्त करिे के लिए करें । मैथिु
िीवि गनहयत िहीों है अनपतु ये कु त्ते नबल्कल्लयोों वािी सभ्यता गनहयत है।
आि मािव समाि का पति हो रहा है , िोग किोों से झुिस रहे हैं। इसका कारर् प्रभुपाि बताते हैं की भागवत नवद्या के नियमोों के प्रनत द्वेष है िब तक
मिुष्य समाि इस भागवत नवद्या के नियमोों का पािि करिा स्वीकार िहीों करे गा तब तक मिुष्य समाि का पति निलित है ।
प्रभुपाि िी यही चाहते थे नक इस्कॉि भनवष्य में अलधकालधक इस वैनिक ज्ञाि का प्रचार करें लिससे यह मािव समाि इस घोर अोंधकार की सभ्यता से बाहर
आ सके । प्रभुपाि िी यह भी चाहते थे नक इस्कॉि के भक्त पनवत्रता को बिाए रिें। प्रभुपाि िी कहते थे पनवत्रता ही बि है । प्रभुपाि िी चाहते थे नक
इस वैनिक ज्ञाि के प्रचार-प्रसार हेतु नवश्व भर में अिेकािेक कॉिेि, नवद्यािय िोिे िाएों िहाों पर छात्र आकर इि पुस्तकोों का अध्ययि कर सकें और इस
ज्ञाि को अपिे िीवि में उतार सके । कृ ष्णभाविामृत के नवकास हेतु अिेक गौशािाएों िोिी िाएों , कृ नष उत्पािि बढाया िाए वर्ायश्रम िानपत नकया िाए।
वर्ायश्रम िीव को पशु से मिुष्य के स्तर तक िेकर आ सकता है। आि वर्ायश्रम व्यविा अस्त व्यस्त हो गई है लिसकी विह से मिुष्य पशु िैसा िीवि
व्यतीत कर रहा है ।िेनकि वैनिक ज्ञाि के अिुशीिि के द्वारा नवश्व भर में शाोंनत प्राप्त की िा सकती है।
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