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Jain Diwali Sampurna Puja 009249 Data
Jain Diwali Sampurna Puja 009249 Data
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परिचय जैन धर्म
‘जैन’ कहते हैं उन्हें, जो ‘जजन’ के अनयु ायी हों। ‘जजन’ शब्द बना है ‘जज’ धातु से। ‘जज’ माने-जीतना। ‘जजन’ माने
जीतने वाला। जजन्होंने अपने मन को जीत जलया, अपनी वाणी को जीत जलया और अपनी काया को जीत जलया, वे हैं
‘जजन’। जैन धमम अर्ामत ‘जजन’ भगवान् का धमम।
जैन धमम का परम पजवत्र और अनाजद मल ू मंत्र है-
अर्ामत अररहतं ों को नमस्कार, जसद्धों को नमस्कार, आचायों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार, सवम साधओ
ु ं को
नमस्कार। ये पााँच परमेष्ठी हैं।
जजन शासन में कहा है जक वस्त्रधारी परुु ष जसजद्ध को प्राप्त नहीं होता। भले ही वह तीर्ंकर ही क्यों न हो, नग्नवेश ही
मोक्ष मागम है, शेष सब उन्मागम है- जमथ्या मागम है।
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जैन चौघव़िया
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जैन कौन?
जो स्वयं को अनर्म जहसं ा से बचाता है।
जो सदा सत्य का समर्मन करता है।
जो न्याय के मल्ू य को समझता है।
जो सस्ं कृ जत और सस्ं कारों को जीता है।
जो भाग्य को परुु षार्म में बदल देता है।
जो अनाग्रही और अल्प पररग्रही होता है।
जो पयामवरण सरु क्षा में जागरुक रहता है।
जो त्याग-प्रत्याख्यान में जवश्वास रिता है।
जो िदु को ही सि ु -दःि का कताम मानता है।
संजक्षप्त सत्रू - व्यजि जाजत या धमम से नहीं अजपत,ु आचरण एवं व्यवहार से जैन कहलाता है।
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जैन ध्िज
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7
8
णर्ोकाि र्ं त्र
मंत्र जपो नवकार मनवा
मंत्र जपो नवकार
मंत्र जपो नवकार मनवा, मंत्र जपो नवकार
पााँच पदों के पैंतीस अक्षर, हैं सि
ु के आधार
हैं सिु के आधार मनवा, हैं सि ु के आधार
मंत्र जपो नवकार मनवा, मंत्र जपो नवकार
णमो अररहतं ाणं, णमो जसद्धाणं
णमो आयररयाणं, णमो अव्वझायाणम,् णमो लोए सव्वेसाहूणं…
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वििाली की पूजा
जैन समाज में दीपावली का पावन पवम अजं तम तीर्ंकर महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राजप्त एवं उन्हीं के जशष्य प्रर्म
गणधर गौतम स्वामी को संध्याकाल में के वल ज्ञान रूपी लक्ष्मी की प्राजप्त के उपलक्ष्य में मनाते हैं। अतः अन्य सम्प्रदायों
से हमारी दीपावली की पजू न जवजध पणू मतः जभन्न है। समस्त जैन श्रावकों को जैनागम के अनसु ार ही महोत्सव मनाना
चाजहए, अन्यर्ा जमथ्या जिया कहलायेगी। जैन धमामनसु ार जजनालय में एवं शाम को घरों में दीपावली मनाने की जवजध
इस प्रकार है:-
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घि र्ें िीपािली पू ज न की विवध
सायक
ं ाल लगभग 4 बजे पजू न के शद्ध ु वस्त्र धारण कर के शद्ध
ु प्रासक
ु जल से पजू न की जल फलाजद द्रव्य तैयार करें ।
मंगलािक पढकर सकलीकरण, जतलक एवं रक्षा सत्रू बन्धन करें । रक्षा मंत्र एवं शांजत मंत्र पढते हुए पष्ु प क्षेपण करें
(इसके सभी पजू न पाठ की पस्ु तक में है) . गाय का घी जमलाकर जसदं रू से पजू न स्र्ल की दीवाल पर इस प्रकार जलिें
श्री
श्री वीतरागाय नमः
श्री महावीराय नमः
श्री गौतम गणधराय नमः
श्री के वलज्ञान महालक्ष्म्यै नमः
श्री शभु श्री लाभ
श्री
श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री
श्री कार पवमत के नीचे दीवाल से सटाकर एक अच्िी चौकी रिें उस पर बीचों बीच जकसी क्षेत्र या जजनालय में जस्र्त
प्रजतजष्ठत प्रजतमा की फोटो रिें उसी के सामने आचायम प्रणीत ग्रर्ं चौकी पर बीचों बीच स्र्ाजपत करें । ईशान कोण की
ओर हल्दी, सपु ाडी, सवा रुपये या अजधक 3,5,7 आजद रुपये के जसक्के डालकर परू ा सरसों से भर कर श्रीफल सजहत
कलश स्र्ाजपत करें । आग्नेय जदशा में शद्ध
ु घी का जलता दीपक स्र्ाजपत करें ।
यह जिया पणू म करने के उपरांत श्रद्धा भजि के सार् जवनय पाठ, पजू न पीजठका, स्वजस्त पाठ, देवशास्त्र गरुु , चौबीसी,
आजदनार्, पाश्वमनार् एवं महावीर स्वामी एवं सरस्वती का अघम चढाकर गौतम स्वामी की पजू ा करें । चौंसठ ऋजद्ध के
मंत्र बोलते हुए अर्घयम चढायें। और जफर शाजं त जवसजमन कर के 16 दीपों में तेल भर कर 4-4 बाती डालकर चौंसठ
ज्योजत जलायें, तदपु रातं सामजू हक महावीरािक पाठ, आरती करें और “’ओ ं हीं चतःु षजि ऋजद्धभ्यों नमः’’ इस मंत्र
का 108 बार जाप करें ।
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वििाली सम्पूणम पूजा
“दीपावली जैन संस्कृ जत का महान पवम है। आज से 2522 वषम पवू म काजतमक मास कृ ष्ण पक्ष की चतदु श म ी जतजर् के
समापन होते ही अमावस्या के प्रारम्भ में चौबीसवें तीर्ंकर भगवान महावीर का पावापरु ी से जववामण हुआ र्ा। उस
जदन ठीक जनवामण के समय पावापरु ी (जबहार-प्रांत) में भगवान महावीर के चरण जचन्ह के स्र्ान के ऊपर एक ित्र
स्वयमेव ही प्राकृ जतक रूप से घमू ने लगता है। उस जनवामण वेला में देवों द्वारा जदव्य दीपों को आलोजकत कर जनवामण
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महोत्सव मनाया गया। मानव समदु ाय ने भी जजनेन्द्र भगवान की पजू ा कर जनवामण लाडू (नैवेद्य) चढा कर पावन जदवस
को समारोजहत जकया।
इसी जदवस शभु -बेला में अंजतम जतर्ंकर भगवान महावीर के प्रर्म प्रमि ु गणधर गौतम स्वामी को के वल लक्ष्मी की
प्राजप्त हुई, जजसके उल्लास में ज्ञान के प्रतीक जनममल प्रकाश से समस्त लोक को प्रकाजशत करती हुई दीप माजलकायें
प्रज्वजलत कर भव्य-जदव्य-उत्सव मनाया गया।
यह अवसजपमणी के चतर्ु म काल का समापन तर्ा पंचम काल का सजन्ध काल र्ा, जब काजतमक शक्ु ल एकम से नवीन
संवत्सर का शभु ारम्भ हो कर यह श्री वीर जनवामण संवत के नाम से प्रचजलत हुआ। जवश्व में ज्ञात, प्रचजलत- अप्रचजलत
शताजधक संवत्सरों में यह सवामजधक प्राचीन है। भारतीय संस्कृ जत के आस्र्ावान अनयु ायी इस देन व्यावसाजयक
संस्र्ानों में जहसाब बजहयों का शभु महु ुतम कते हैं, इसी जदन से नवीन लेिा-वषम का परम्परानसु ार शभु ारम्भ माना जाता
है।
भारत सरकार ने वषम 1989 में एक जवधेयक पाररत कर लेिा वषम की गणना ईसवी सन की 1 अप्रैल से प्रारम्भ कर
31 माचम तक की जाने की अजनवायमता लागू कर हमारी धाजममक , सांस्कृ जतक तर्ा सामाजजक मान्याओ ं से परे
अपनाने को सभी को बाध्य एवं जववश कर जदया है। यद्यजप शासकीय जनयम के पररवतमन को 19 वषम हो चक ु े हैं जकंतु
अब भी अजधकांश जन लेिा बजहयााँ दीपावली के देन ही िरीद कर लाते हैं। दीपावली के मंगल जदवस पर जवजध-
जवधान अनसु ार श्री महावीर स्वामी की पजू ा एवं अन्य मागं जलक जियायें सम्पन्न कर शभु बेला में स्वजस्तक माडं कर
रि देते हैं, तर्ा इन्हें लगभग पााँच माह उपरातं 1 अप्रैल से प्रारंभ करते है।
अनेक लोग इन पररजस्र्जतवश दजु वधाग्रस्त हैं के बजहयााँ िरीद कर दीपावली पर पवू ामनसु ार लाना ही उजचत है अर्वा
एक अप्रैल या उसके पवू मवती देवस को। इस सन्दभम मे जान लेना परम आवश्यक है जक दीपोत्सव पवम को मनाने का
कारण श्री वीर प्रभु का जनवामण तर्ा गणधर श्री गौतम स्वामी को कै वल्य लक्ष्मी की प्राजप्त होना है जबजक पवू म काल में
लेिावषम का शभु ारंभ तर्ा संवत्सरी भी इससे सम्बद्ध होने से इसी अवसर पर नवीन बजहयााँ िरीद कर लाना एवम
उनका शभु -महु ूतम आजद प्रासंजगक एवं यजु ियि ु र्ा।अब चाँजू क लेिा वषम का शभु ारम्भ 1 अप्रैल से होता है अतः31
माचम अर्वा 1-2 जदन पवू म शभु -जदवस, चौघजडया एवं महु ूतम में बजहयााँ ला कर 31 माचम को भी जवजध अनसु ार पजू न
कर नवीन बजहयों का शभु महु ूतम जकया जा सकता है। जो लोग दीपावली के जदन बजहयााँ ला कर रि देते हैं, उन्हे
असजु वधा ना हो तो वे परम्परानसु ार कते रहें। यह सभी सजु वधाओ ं पर जनभमर है। वैसे भी बही महु ूतम तर्ा लेिा
शभु ारम्भ दोनो अलग अलग जियायें हैं। बही महु ूतम दीपावली को कर उनका शभु ारम्भ 1 अप्रैल से जकया जा सकता
है।
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हमारी धाजममक आस्र्ा तर्ा इजतहास-प्रामाजणत परम्परा बनी रहे इस आर्म दीपावली अर्ामत काजतमक कृ ष्ण अमावस्या
को प्रातः काल श्री जजनेन्द्र भगवान की भजि भाव सजहत पजू न कर जनवामण लाडू चढावें। पश्चात अच्िे चौघजडये में
अर्वा सायक ं ाल सयू ामस्त पवू म दक
ु ानों, कारिानों सस्ं र्ानों एवं गृहों पर पररवारजन एकजत्रत हो कर समजु हक रूप से
पजू ा, आती, भजि, दीपोत्सव व परस्पर जमलने का िम बनाये रिें। यजद हम वही महु ूतम कायम 1 अप्रैल को करें तो
दीपावली पर पवू म की अपेक्षा सम्पणू म आओजन में मात्र बही-महु ूतम कायम कम हो जायेगा।
दीपमाजलकायें के वल ज्ञान की प्रतीक हैं। सच्चे ज्ञान की प्राजप्त हो, अन्धकार का नाश हो, इस भावना से दीपमालायें
जलानी चाजहये। दीपावली के पवू म काजतमक त्रयोदशी के जदन भगवान महावीर ने बाह्य समवसरण लक्ष्मी का त्याग कर
मन-वचन और काय का जनरोध जकया। वीर प्रभु के योगों के जनरोध से त्रयोदशी धन्य हो उठी, इसीजलये यह जतजर् “
धन्य-तेरस” के नाम से जवख्यात हुई। यह पवम देवस त्याग के महत्व को दशामता हुआ यह सन्देश देता है के हम मन-
वचन-काय से कुचेिाओ ं का त्याग करें और बाह्य लक्ष्य से हट कर अंतर के शाश्वत स्वणम-रत्नत्रय को प्राप्त करें ।
अगले जदवस चतदु श म ी को भगवान महावीर ने 18000 शीलों की पणू मता को प्राप्त जकया। वे रत्नत्रय की पणू मता को
प्राप्त कर अयोगी अवस्र्ा से जनज स्वरूप में लीन हुए।
अत एव इस पवम जदवस “रूप-चौदस” के जदन ब्रह्मचयम का पालन करते हुए व्रताजद धारण कर स्वभाव में आने का
प्रयास करना चाजहये। भगवान की जदव्यध्वजन स्यात, अजस्त-नाजस्त. अविव्य आजद सात रूपों में जिरी र्ी इसजलये
यह जदन “गोवद्धमन” के रूप में मनाया जाता है। “गो” अर्ामत जजनवाणी तर्ा वद्धमन का अर्म प्रकजटत वजद्धमत। इस
जदन तीर्ंकर की देशना के पश्चात पनु ः जजनवाणी का प्रकाश हुआ, वृजद्ध हुई इसजलये जजनवाणी की पजू ा करनी
चाजहये।
धन-तेरस के जदन और दीपावली के जदन लोग धन-संपजि, रुपये-पैसे को लक्ष्मी मान कर पजू ा करते हैं जो सवमर्ा
अयजु ियिु है। जववेकवान जनों को इस पावन-पवम के जदनों में मोक्ष व ज्ञान लक्ष्मी तर्ा गौतम गणधर की पजू ा करनी
चाजहये जो जक समयानक ु ू ल, शास्त्रानक
ु ू ल, प्रामाजणक तर्ा कल्याणकारी है।
शभु जियाओ ं तर्ा शभु -भावों से अंतराय कमम के उदय से होने वाले जवर्घन दरू होए हैं अतः सच्चे देव-शास्त्र-गरुु की
पजू ा-भजि करना ही उजचत है। इनकी आराधना से अशभु का क्षय होता है, पारलौजकक श्रेष्ठ सि ु ों की तो बात ही
ु -जसजद्ध की प्राजप्त होती है। पण्ु यवान जनों को तो इह लौजकक लक्ष्मी धन-धान्य सम्पजि आजद का
क्या शाश्वत सि
सि ु अप्रयास ही सहज सल ु भ हो जाते हैं।
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िीपर्ावलका पिम
प्रातःकाल श्री जजनेन्द्र भगवान के दशमन पजू न करने मजन्दर जाने के पहले मजन्दर से आने के पश्चात अपने घर पर “ऊाँ
ह्रीं अहं अ जद आ उ सा श्री महावीर जजनेन्द्राय नमः” मंत्र की एक माला तर्ा महावीरािक स्त्रोत का पाठ करना चाजहये।
सायंकाल को उिम गौधल ू ोक लग्न में अर्वा जदन के समय भी अपनी दक ु ान के पजवत्र स्र्ान में ऊाँची चौकी पर रकाबी
में जवनायक यंत्र
का आकार मांड कर ठोणे में रि कर जवराजमान करें । उसी चौकी के आगे दसू री चौकी पर शास्त्रजी (जजनवाणी)
जवराजमान करना चाजहये। इन दोनो चौजकयों के आगे एक िोटी चौकी पर पजू ा की सामग्री तैयार कर रिें और उसी के
पास एक दसू री चौकी पर र्ाल में स्वजस्तक मांड कर पजू ा की सामग्री चढाने के जलये रिें। बजहयााँ, दावात-कलम आजद
पास में रि लें। घी का दीपक दाजहनी ओर तर्ा बााँई ओर धपू दान करना चाजहए। दीपक में घृत इस प्रमाण से डालें के
राजत्र भर वह दीपक जलता रहे।
पजू ा करने वाले को पवू म या उिर जदशा में मि
ु कर के पजू ा करना चाजहये। जो पररवार में बडा हो या दक ु ान का माजलक
हो वह जचि एकाग्र कर पजू ा करे और उपजस्र्त सभी जलग पजू ा बोलें तर्ा शांजत से सनु ें। पजू ा प्रारम्भ करने से पहले
उपजस्र्त सब सज्जनों को जतलक लगाना चाजहये तर्ा दाजहने हार् में कंकण बााँधना चाजहये। जतलक करते समय नीचे
जलिा श्लोक पढे।
मंगलम भगवान वीरो, मंगलम गौतमो गणी।
मंगलम कुन्द कुन्दायो, जैन धमोस्तु मंगलम।् ।
जतलक करने के बाद जनत्य-जनयम-पजू ा करके श्री महावीर स्वामी श्री गौतम गणधर स्वामी तर्ा श्री सरस्वती देवी की
पजू ा करनी चाजहये।
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नई बही महु ूतम की सामग्री
अि द्रव्य धल
ु े हुए, धपू दान 1, दीपक 2, लालचोल 1 मीटर, सरसों 50 ग्राम, र्ाली 1, श्रीफल1, लोटा जल का1,
लच्िा, शाि 1, धपू 50ग्राम, अगरबिी, पाटे 2, चौकी 1, कंु कुम 50ग्राम, के सर जपसी हुई, कोरे पान, दवात,
कलम (या लीड) 2
श्री
श्री श्री
श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री
श्री ऋषभ देवाय नमः।। श्री महावीराय नमः।। श्री गौतम-गणधरायनमः।। के वलज्ञान लक्ष्म्यै नमः।। श्री जजन सरस्वत्यै
नमः।। श्री शभु जमजत काजतमक बदी 30…….. ।।
………वार।् । जदनांक …/…/19ई. को शभु बेला में दक ु ान श्री
की बही का महु ूतम जकया
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पद्य
आरोग्य बजु द्ध धन धान्य समृजद्ध पावें।
भय रोग शोक पररताप सदु रु जावें।
सद्धमम शास्त्र गरुु भजि सश
ु ांजत होवे।
व्यापार लाभ कुल वृजद्ध सक ु ीती होवे।।
श्री वद्धममान भगवान सबु जु द्ध देवें।
सन्मान सत्यगणु सयं म शील देवें।।
नव वषम हो यह सद सि ु शांजत दाई।
कल्याण हो शभु तर्ा अजत लाभ होवे।।
पू जा प्रािम्भ
अहंतो भग्वंत इन्द्रमजहताः जसद्धीश्वराः।
आचायाम जजन शासनोन्नजतकराःपज्ू या उपाध्यायकाः।।
श्रीजसद्धातं सपु ाठ का मजु नवरा रत्नत्रयाराधकाः।
पंचैते परमेजष्ठ नः प्रजतजदनं कुवंतु नः मंगलम।् ।
ओ ं जय जय जय नमोस्तु नमोस्तु नमोस्त।ु
णमो अरहतं ाण,ं ण्मो जसद्धाणं, णमो आइररयण,ं णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं। चतिारर मंगलम, अररहतं ा
मंगलम, जसद्धा मंगलम, साहू मंगलम।् के वजल पण्णिोधम्मो मंगलम।् चिारर लोगिु म, अररहतं ालोगिु मा जसद्धा
लोगिु मा, साहू लोगिु म। के वजलपण्णिो धम्मोलोगिु मा, चिाररसरणं पव्वज्जाजम , सहूशरणं पव्वज्जाजम के वजलपण्णिं
धम्मं सरणं पव्वज्जाजम। ऊाँअनाजदमल ू मंत्रेभ्यो नमः
(यह पढ कि पषु पांजवल क्षेवपर् किें )
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िेि शास्त्र-गरुु पजू ा का अध्यम
जल परम उज्जवल गन्ध अक्षत- पष्ु प चरु धरुाँ।
वर धपू जनममल फल जवजवध बहु जनम के पातक हरुाँ।।
इह भााँजत अध्यम चढाय जनत भजव करत जशव पंकजत मचाँ।ू
अरहतं श्रतु जसद्धांत गरुु जनग्रंर् जनत पजू ा रचाँ।ू ।
वसजु वजध अध्यम संजोय कै , अजत उिाहमन कीन।्
जासों पजू ों परम पद, देवशास्त्र-गरुु तीन।् ।
ऊँ श्री िेिशास्त्र गरुु भ्यो अनध्यमपि प्राप्तये अध्यमर् वनपामर्ीवर् स्िाहा।
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अतं रायकमम नाशार्म अध्यम
लाभ की अंतराय के वस जीवसु न लहै।
जो करै कि उत्पात सगरे कममवस जवरर्ा रहै।।
नहीं जोर वाको चले इक जिन दीन सौ जग में जफरै ।
अररहतं जसद्ध अधर धररकै लाभ यौ कमम कौ हरै ।।
ऊाँ ह्रीं लाभातं रायकमम रजहताभ्याम अहतमजसद्ध परमेजष्ठभ्याम अर्घयमम जनवमपामीजत स्वाहा।
पष्ु पाजं जलं जक्षपेत
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तन्दल ु जसत शजशसम शद्ध ु लीनों र्ार भरी।
तसु पजंु धरों अजवरुद्ध, पावों जशव नगरी।।
श्रीवीर महा अजतवीर, सन्मजत नायक हो।
जय वद्धममान गणु धीर, सन्मजतदायक हो।।
ऊँ ह्रीं श्री र्हािीि वजनेन्द्राय अक्षर्ान वनिमपार्ीवर् स्िाहा।
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ररतफ ु ल कल वजजमत लाय, कंचन र्ार भरों।
जशवफलजहत हे जजनराय, तमु जढग भेंट धरों।।
श्रीवीर महा अजतवीर, सन्मजत नायक हो।
जय वद्धममान गणु धीर, सन्मजतदायक हो।।
ऊँ ह्रीं श्री र्हािीि वजनेन्द्राय फलर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।
पं च कल्याणक
मोजह रिो हो सरना श्रीवद्धममान जजनराय जी मोजह रिो हो सरना।
गरम साढ जसत िट्ठ जलओ जतजर्, जत्रशला उर अघहरना।
सरु सरु पजत जतत सेव करीजनत, मैं पजू ौं भव तरना।।
मोजह रिो हो सरना श्रीवद्धममान जजनराय जी मोजह रािो
ऊँ ह्रीं श्री र्हािीि वजनेन्द्राय आषाढ शक्ु लषिठयां गर्म र्न्द्गल र्वडडर्ाय अध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।
जयर्ाला
गनधर, असजनधर, चिधर, हरधर गदाधर वरवदा।
अरु चापधर जवद्यासधु र जतरसल
ू धर सेवजहं सदा।।
दि ु हरन आनन्द भरन तारन तरन चरन रसाल है।
सकु ु माल गनु मजनमाल उन्नत, भाल की जयमाल है।।
जय जत्रशला नन्दन, हररकृ त वन्दन, जगदानन्द, चन्दवरं।
भव तापजनकन्दन तन कन मन्दन, रजहतसपन्दन, नयनधरं।।
जय के वल भानु कला सदनं। भजवकोक जवकाशन कंजवनं।
जगजीत महाररपु मोहहरं। रजज्ञानदृगांबर चरू करं।।
गवामजदक मंगल मंजडत हो। दि ु दाररद्र को जनत िजन्डत हो।
जगमाजं ह तम्ु ही सत्पजं डत हो। दिु दाररद्र को जनत िजं डत हो।
हररवंश सरोजन को रजव हो। बल्वन्त महतं तम्ु हीं कजव हो।।
लजह के वल धमम प्रकाश जकयो। अबलों सोई मारगराजजतयो।
पजु न आपतने गनु मांजह सही। सरु मग्न रहै जजतने सबहीं।।
जतनकी बजनता गणु गावत हैं। लय मानजन सों मन भवत हैं।
पजु न नाचत रंग उमंग भरी। तमु भजि जवषै पग एम धरी।।
झननं झननं झननं झननं। सरु लेत तहां तननं तननं।
घननं घननं घन घंट बजै। दृमदं दृमदं जमरदगं सजै।
गगनांगनगभमगता सगु ता। ततता ततता अतता जवतता।।
धृगतां धृगतां गजत बाजत है। सरु ताल रसाल जु िाजत है।
सननं सननं सननं नभमें। इक रूप अनेक जधु ारर भ्रमैं।।
कै नारर सबु ीन बजावजत हैं। तमु रो जस उज्ज्वल गावजत हैं।
करताल जवषै करताल धरै । सरु ताल जवशाल जनु ाद करै ।।
इन आजद अनेक उिाह भरी। सरु भजि करें प्रभजु ी तमु री।
तमु ही जगजीवन के जपतु हो। तमु ही जबन कारन के जहतु हो।
तमु ही सब जवर्घन जवनाशन हो। तमु ही जनज आनन्द भासन हो।
तमु ही जचतजचजं ततदायक हो। जगमाजं ह तम्ु हीं सब लायक हो।।
तम्ु हरे पन मंगलमांजह सजह। जजय उिम पन्ु य जलयो सबही।।
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हमको तमु री सरनागत है। तमु रे गनु में मन पागत है।।
प्रभु मो जहय आप सदा बजसये। जबलों वसु कमम नहीं नजसये।।
तबलों तमु ध्यान जहये वरतो। तबलों श्रतु जचंतन जचि रतो।।
तबलों व्रत चाररत चाहतु हों। तबलों शभु भाव सगु ाहतु हों।।
तबलोंसत संगजत जनत्य रहो। तबलों मम संजम जचि गहों।।
जबलों नजहं नाश करों अररकों। जशवनारर वरों समताधररको।।
यह द्यो तबलों हम्को जजनजी। हम जाचतु हैं इतनी सनु जी।।
श्रीवीर जजनेशा नजमत सरु े शा नागनरे शा भगजत भरा।।
वृन्दावन ध्यावें जवर्घन नशावै। वांजित पावे शममवरा।।
ऊँ ह्रीं श्री िद्धमर्ान वजनेन्द्राय र्हाध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।
श्री सिस्िर्ी पू जा
िोहा
जनम जरा मृतु क्षय करै , हरै कुनय जड रीजत।
भवसागरसौं ले जतरै , पजू ै जजंवच प्रीजत।।
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख
ु ोद्भि सिस्ित्यै पषु पांजलः।
शभु गन्ध दशोंकर, पावक में धर, धपू मनोहर िेवत हैं।
सब पाप जलावे, पण्ु य कमावे, दास कहावेसेवत हैं।। तीर्मः
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख
ु ोद्भभिसिस्िर्ीिेव्यै धपू र् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।
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जलचन्दन अक्षत, फूल चरु, चत, दीप धपू अजत फल लावै।
पजू ा को ठानत, जो तमु जानत, सो नर द्यानत सि ु पावै।।
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख
ु ोद्भभिसिस्िर्ीिेव्यै अध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।।
जयर्ाला
सोिठा
ओकं ार ध्वजनसार, द्वादशांगवाणी जवमल।
नमों भजि उर धार, ज्ञान करै जडता हरै ।।
पहलो आचारांग बिानो, पद अिादश सहस प्रमानो।
दजू ो सत्रु कृ तं अजभलाषं, पद ििीस सहस बयाजलस पदसरधानम।्
तीजो ठानाअगं सजु ानं, सहस बयाजलस पदसरधानम।्
चौर्ो समवायागं जनहारं, चौसठ सहस लाि इकधारम
पंचम व्याख्याप्रज्ञजप्त जवसतारं, दोय लाि अट्ठाइस सहसं।
िट्ठो ज्ञातृकर्ा जवसतारं, पााँच लाि िप्पन हज्जारं।।
सप्तम उपासकाध्ययनंगं, सिर सहस ग्यारलि भंगं।
अिम अंतकृ त दस ईस,ं सहस अट्ठाइस लाि तेइसं।।
नवमअनिु रदश सजु वशालं, लाि बानवै सहस चवालं।
दशम प्नव्याकरण जवचारं, लाि जतरानव सोल हजारं।।
ग्यारम सत्रू जवपाक सभु ािं, एक कोड चौरासी लािं।
चारकोजड अरु पंद्रह लाि,ं दो हजार सब पद गरुु शािं।।
द्वादश दृजि वाद पनभेद,ं इकसौ आठ कोजड पवं ेद।ं
अडसठ लाि सहस िप्पन हैं, सजहत पचं पद जमथ्या हन हैं।।
इक सौ बारह कोजड बिानो, लाि जतरासी उपर जानो।
ठावन सहस पचं अजधकाने, द्वादश अगं सवमपद माने।।
कोजड इकावन आठ ही लािं, सहस चरु ासी िहसौ भािं।
साढे इकीस श्लोक बताये, एक एक पद के ये गाये।।
25
धत्ता।
जा बानी के ज्ञात तै, सझू े लोक अलोक।
“द्यानत” जग जयवंत हो, सदा देत हों धोक।।
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख ु ोद्भभिसिस्िर्ीिेव्यै र्हाध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।।
कपमरू यि
ु मलयाजगर को जघसाया
संसार ताप शमनार्म इसे बनाया
संसार के अजिल त्रास जनवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बजु –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कावर्म कृ षणार्ािस्यायां कै िल्यलक्ष्र्ी प्राप्तये श्री गौर्र् गणधिाय सगु न्द्धं वनिमपार्ीवर् स्िाहा।
26
मि ु ाभ अक्षत सगु जन्ध चनु ा चनु ा के ,
व्याजधध्न अक्षत-पदार्म सजा सजा के ।
ससं ार के अजिल त्रास जनवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बजु –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कावर्म कृ षणार्ािस्यायां कै िल्यलक्ष्र्ी प्राप्तये श्री गौर्र् गणधिाय अक्षर्ं वनिमपार्ीवर् स्िाहा।
कन्दपम दपम दलनार्म नवीन ताजे,
बेला गलु ाब मच्कुन्द सु पाजामती।
संसार के अजिल त्रास जनवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बजु –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कावर्म कृ षणार्ािस्यायां कै िल्यलक्ष्र्ी प्राप्तये श्री गौर्र् गणधिाय पषु पं वनिमपार्ीवर् स्िाहा।
27
के ला अनार सह्कार सपु क्क जाम,ू
ये जसद्धजमष्ठ फल मोक्षफलाजप्त को मैं।
ससं ार के अजिल त्रास जनवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बजु –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कावर्म कृ षणार्ािस्यायां कै िल्यलक्ष्र्ी प्राप्तये श्री गौर्र् गणधिाय फलर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।
जयमाला
वीर जजनेश्वर के प्रर्म गणधर-गौतम-पांय।
नमन करुाँ कर जोडकर स्वगम मोक्ष फल दाय।।
हरिगीत्तिका
जय देव श्रीगौतम गणेश्वर।् प्रार्मना तमु से करूाँ।
सब हटा दो कि मेरे अध्यम ले आरती करूाँ।
हे गणेश। कृ पा करो, अब आत्म ज्योजत पसार दो।
हम हैं तम्ु हारे सदय हो दवु ामसनायें मार दो।
वीर प्रभजु नवामण-क्षण में र्ा सम्हाला आपने।
अब चोड तमु को जाउाँ कहाँ घेरा चहूाँ जदजश पाप ने।
है जदवस वह ही नार्। स्वामीवीर के जनवामण का।
जग के जहतैषी जबज्ञ गौतम ईष के वल ज्ञान का।
नार्। अब कर के कृ पा हम्को सहारा दीजजये।
दीपमाला-आरती पजू ा गृहम मम कीजजये।
दीपमाला-आरती पजू ा गृहण मम कीजजये।
ऊाँ ह्रीं काजतम कृ ष्णामावस्यायां कै वल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय अध्यमम जनवमपामीजत स्वाहा।
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श्री र्हािीि स्िार्ी की आिर्ी
जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो।
कुण्डलपरु अवतारी, जत्रशलानन्द जवभो।। ऊाँ जय महावीर….
जसद्धार्म घर जन्मे, वैभवर्ा भारी।
बाल ब्रह्मचारी व्रत पाल्यौ, तपधारी।। ऊाँ जय महावीर….
आतम ज्ञान जवरागी, सम दृजिधारी।
माया मोह जवनाशक, ज्ञान ज्योजतजारी।। ऊाँ जय महावीर….
जग में पाठ अजहसं ा, आपजह जवस्तायौ।
जहसं ा पाप जमटा कर, सधु मम परचारयौ।। ऊाँ जय महावीर….
यजह जवजध चााँदनपरु में,अजतशय दशामयौ।
ग्वाल मनोरर् पयू ो, दधू गाय पायौ।। ऊाँ जय महावीर….
प्राणदान मंत्री को, तमु ने प्रभु दीना।
मजन्दर तीन जशिर का जनजममत है कीना।। ऊाँ जय महावीर….
जयपरु नृप भी तेरे, अजतशय के सेवी।
एक ग्राम जतन दीनों, सेवा जहत यह भी।। ऊाँ जय महावीर….
जो कोइ तेरे दर पर इच्िा कर आवे।
धन, सतु सब कुि पावे संकट जमट जावे।। ऊाँ जय महावीर….
जनश जदन प्रभु मजन्दर में जगमग ज्योजत करै ।
हररप्रसाद चरणों में, आनन्द मोद भरैं ।। ऊाँ जय महावीर….
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वििाली पि जलाओ िीप
जलाओ तो दीप जलाओ,
मत जलाओ जकसी को,
करो तो अन्धकार दरू करो,
मत करो अन्धा जकसी को,
हसं ाओ तो सभी को हसं ाओ,
मत रुलाओ जकसी को,
बनाओ तो, शभु मय बनाओ अशभु मत बनाओ,
जदवाली को।
श्री सधु ासागर जी महाराज का आशीवामद
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