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विषय-सचू ी(जय वजनेन्द्र)

1. परिचय जैन धर्म ................................................................................. 3


2. जैन चौघव़िया................................................................................... 4
3. जैन कौन? ...................................................................................... 5
4. जैन ध्िज ....................................................................................... 6
5. णर्ोकाि र्त्रं .................................................................................... 9
6. निकाि र्त्रं ही र्हार्त्रं .......................................................................... 9
7. वििाली की पज
ू ा .............................................................................. 10
8. र्वं िि जी र्ें िीपािली की पूजन विवध ......................................................... 10
9. घि र्ें िीपािली पज
ू न की विवध ............................................................... 11
10.वििाली सम्पण
ू म पजू ा .......................................................................... 12
11.िीपर्ावलका पिम .............................................................................. 15
12.निीन बही र्हु ूर्म .............................................................................. 16
13.पज
ू ा प्रािम्भ ................................................................................... 17
14.श्री र्हािीि वजनपज
ू ा .......................................................................... 19
15.पंच कल्याणक ................................................................................ 21
16.श्री सिस्िर्ी पज
ू ा ............................................................................. 23
17.श्री गौर्र् गणधि पज
ू ा ......................................................................... 26
18.र्हािीिाष्टक-स्र्ोत्रर् .......................................................................... 29
19.वजनिाणी र्ार्ा की आिर्ी.................................................................... 30
20.श्री र्हािीि स्िार्ी की आिर्ी ................................................................. 31
21.वििाली पि जलाओ िीप...................................................................... 32

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परिचय जैन धर्म
‘जैन’ कहते हैं उन्हें, जो ‘जजन’ के अनयु ायी हों। ‘जजन’ शब्द बना है ‘जज’ धातु से। ‘जज’ माने-जीतना। ‘जजन’ माने
जीतने वाला। जजन्होंने अपने मन को जीत जलया, अपनी वाणी को जीत जलया और अपनी काया को जीत जलया, वे हैं
‘जजन’। जैन धमम अर्ामत ‘जजन’ भगवान् का धमम।
जैन धमम का परम पजवत्र और अनाजद मल ू मंत्र है-

णमो अररहतं ाणं णमो जसद्धाणं णमो आइररयाणं।


णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं॥

अर्ामत अररहतं ों को नमस्कार, जसद्धों को नमस्कार, आचायों को नमस्कार, उपाध्यायों को नमस्कार, सवम साधओ
ु ं को
नमस्कार। ये पााँच परमेष्ठी हैं।

धन दे के तन राजिए, तन दे रजिए लाज


धन दे, तन दे, लाज दे, एक धमम के काज।
धमम करत संसार सि ु , धमम करत जनवामण
धमम ग्रंर् साधे जबना, नर जतयंच समान।

जजन शासन में कहा है जक वस्त्रधारी परुु ष जसजद्ध को प्राप्त नहीं होता। भले ही वह तीर्ंकर ही क्यों न हो, नग्नवेश ही
मोक्ष मागम है, शेष सब उन्मागम है- जमथ्या मागम है।

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जैन चौघव़िया

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जैन कौन?
जो स्वयं को अनर्म जहसं ा से बचाता है।
जो सदा सत्य का समर्मन करता है।
जो न्याय के मल्ू य को समझता है।
जो सस्ं कृ जत और सस्ं कारों को जीता है।
जो भाग्य को परुु षार्म में बदल देता है।
जो अनाग्रही और अल्प पररग्रही होता है।
जो पयामवरण सरु क्षा में जागरुक रहता है।
जो त्याग-प्रत्याख्यान में जवश्वास रिता है।
जो िदु को ही सि ु -दःि का कताम मानता है।

संजक्षप्त सत्रू - व्यजि जाजत या धमम से नहीं अजपत,ु आचरण एवं व्यवहार से जैन कहलाता है।

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जैन ध्िज

लाल रंग हमारी आंतररक दृजियों को जागृत करता है।


पीला रंग हमारे मन को सजिय करता है।
श्वेत रंग हमारी आंतररक शजियों को जागृत करता है।
हरा रंग शांजत देता है तर्ा आत्म साक्षात्कार में सहायक होता है।
नीला रंग अवशोषक होता है। वह बाहर के प्रभाव को भीतर नहीं जाने देता है।

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णर्ोकाि र्ं त्र
मंत्र जपो नवकार मनवा
मंत्र जपो नवकार
मंत्र जपो नवकार मनवा, मंत्र जपो नवकार
पााँच पदों के पैंतीस अक्षर, हैं सि
ु के आधार
हैं सिु के आधार मनवा, हैं सि ु के आधार
मंत्र जपो नवकार मनवा, मंत्र जपो नवकार
णमो अररहतं ाणं, णमो जसद्धाणं
णमो आयररयाणं, णमो अव्वझायाणम,् णमो लोए सव्वेसाहूणं…

निकाि र्ं त्र ही र्हार्ं त्र


नवकार मंत्र ही महामंत्र, जनज पद का ज्ञान कराता है।
जनज जपो शद्ध ु मन बच तन से, मनवांजित फल का दाता है॥1॥ नवकार…
पहला पद श्री अररहतं ाणां, यह आतम ज्योजत जगाता है।
यह समोसरण की रचना की भव्यों को याद जदलाता है॥2॥ नवकार…
दजू ा पद श्री जसद्धाणं है, यह आतम शजि बढाता है।
इससे मन होता है जनममल, अनभु व का ज्ञान कराता है॥3॥ नवकार…
तीजा पद श्री आयररयाणां, दीक्षा में भाव जगाता है।
दःु ि से िुटकारा शीघ्र जमले, जजनमत का ज्ञान बढाता है॥4॥ नवकार…
चौर्ा पद श्री उवज्ज्ञायणं, यह जैन धमम चमकता है।
कमामस्त्रव को ढीला करता, यह सम्यक् ज्ञान कराता है॥5॥ नवकार…
पंचमपद श्री सव्वसाहूणं, यह जैन तत्व जसिलाता है।
जदलवाता है ऊाँचा पद, संकट से शीघ्र बचाता है॥6॥ नवकार…
तमु जपो भजवक जन महामंत्र, अनपु म वैराग्य बढाता है।
जनत श्रद्धामन से जपने से, मन को अजतशांत बनाता है॥7॥ नवकार…
संपणू म रोग को शीघ्र हरे , जो मंत्र रुजच से ध्याता है।
जो भव्य सीि जनत ग्रहण करे , वो जामन मरण जमटाता है॥8॥ नवकार…

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वििाली की पूजा
जैन समाज में दीपावली का पावन पवम अजं तम तीर्ंकर महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राजप्त एवं उन्हीं के जशष्य प्रर्म
गणधर गौतम स्वामी को संध्याकाल में के वल ज्ञान रूपी लक्ष्मी की प्राजप्त के उपलक्ष्य में मनाते हैं। अतः अन्य सम्प्रदायों
से हमारी दीपावली की पजू न जवजध पणू मतः जभन्न है। समस्त जैन श्रावकों को जैनागम के अनसु ार ही महोत्सव मनाना
चाजहए, अन्यर्ा जमथ्या जिया कहलायेगी। जैन धमामनसु ार जजनालय में एवं शाम को घरों में दीपावली मनाने की जवजध
इस प्रकार है:-

र्ं विि जी र्ें िीपािली की पू ज न विवध


काजतमक कृ ष्ण चौदस की रात एवं अमावस्या की प्रातः कालीन बेला में श्रावक सामाजयक जाप करें , जफर 5 बजे
दैजनंजदजन चयाम से जनवृत हो कर शद्ध
ु सोला के वस्त्र धारण करें और लाडू सजहत अि द्रव्य ले कर जजनालय जायें। वहााँ
सभी एक सार् उत्साह पवू मक 6 बजे अजभषेक और जनत्य पजू न के उपरांत महावीर पजू ा और जनवामण कल्याण की पजू न
करें । महावीर स्वामी की पजू ा करते समय जब के वल ज्ञान कल्याण का अघम चढावें तब के वल ज्ञान के प्रतीक स्वरूप
शद्ध
ु घी के 16 दीपकों में 4-4 ज्योजत जलायें। जनवामण कल्याणक की पजू ा के समय जब महावीर स्वामी के जनवामण
कल्याणक का अघम चढायें तब जनवामण कल्याणक पाठ पढकर अघम सजहत जनवामण लाडू चढायें तदोपरांत शांजतपाठ एवं
जवसजमन करें ।

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घि र्ें िीपािली पू ज न की विवध
सायक
ं ाल लगभग 4 बजे पजू न के शद्ध ु वस्त्र धारण कर के शद्ध
ु प्रासक
ु जल से पजू न की जल फलाजद द्रव्य तैयार करें ।
मंगलािक पढकर सकलीकरण, जतलक एवं रक्षा सत्रू बन्धन करें । रक्षा मंत्र एवं शांजत मंत्र पढते हुए पष्ु प क्षेपण करें
(इसके सभी पजू न पाठ की पस्ु तक में है) . गाय का घी जमलाकर जसदं रू से पजू न स्र्ल की दीवाल पर इस प्रकार जलिें

श्री
श्री वीतरागाय नमः
श्री महावीराय नमः
श्री गौतम गणधराय नमः
श्री के वलज्ञान महालक्ष्म्यै नमः
श्री शभु श्री लाभ
श्री
श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री

श्री कार पवमत के नीचे दीवाल से सटाकर एक अच्िी चौकी रिें उस पर बीचों बीच जकसी क्षेत्र या जजनालय में जस्र्त
प्रजतजष्ठत प्रजतमा की फोटो रिें उसी के सामने आचायम प्रणीत ग्रर्ं चौकी पर बीचों बीच स्र्ाजपत करें । ईशान कोण की
ओर हल्दी, सपु ाडी, सवा रुपये या अजधक 3,5,7 आजद रुपये के जसक्के डालकर परू ा सरसों से भर कर श्रीफल सजहत
कलश स्र्ाजपत करें । आग्नेय जदशा में शद्ध
ु घी का जलता दीपक स्र्ाजपत करें ।

यह जिया पणू म करने के उपरांत श्रद्धा भजि के सार् जवनय पाठ, पजू न पीजठका, स्वजस्त पाठ, देवशास्त्र गरुु , चौबीसी,
आजदनार्, पाश्वमनार् एवं महावीर स्वामी एवं सरस्वती का अघम चढाकर गौतम स्वामी की पजू ा करें । चौंसठ ऋजद्ध के
मंत्र बोलते हुए अर्घयम चढायें। और जफर शाजं त जवसजमन कर के 16 दीपों में तेल भर कर 4-4 बाती डालकर चौंसठ
ज्योजत जलायें, तदपु रातं सामजू हक महावीरािक पाठ, आरती करें और “’ओ ं हीं चतःु षजि ऋजद्धभ्यों नमः’’ इस मंत्र
का 108 बार जाप करें ।

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वििाली सम्पूणम पूजा

“दीपावली जैन संस्कृ जत का महान पवम है। आज से 2522 वषम पवू म काजतमक मास कृ ष्ण पक्ष की चतदु श म ी जतजर् के
समापन होते ही अमावस्या के प्रारम्भ में चौबीसवें तीर्ंकर भगवान महावीर का पावापरु ी से जववामण हुआ र्ा। उस
जदन ठीक जनवामण के समय पावापरु ी (जबहार-प्रांत) में भगवान महावीर के चरण जचन्ह के स्र्ान के ऊपर एक ित्र
स्वयमेव ही प्राकृ जतक रूप से घमू ने लगता है। उस जनवामण वेला में देवों द्वारा जदव्य दीपों को आलोजकत कर जनवामण
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महोत्सव मनाया गया। मानव समदु ाय ने भी जजनेन्द्र भगवान की पजू ा कर जनवामण लाडू (नैवेद्य) चढा कर पावन जदवस
को समारोजहत जकया।

इसी जदवस शभु -बेला में अंजतम जतर्ंकर भगवान महावीर के प्रर्म प्रमि ु गणधर गौतम स्वामी को के वल लक्ष्मी की
प्राजप्त हुई, जजसके उल्लास में ज्ञान के प्रतीक जनममल प्रकाश से समस्त लोक को प्रकाजशत करती हुई दीप माजलकायें
प्रज्वजलत कर भव्य-जदव्य-उत्सव मनाया गया।

यह अवसजपमणी के चतर्ु म काल का समापन तर्ा पंचम काल का सजन्ध काल र्ा, जब काजतमक शक्ु ल एकम से नवीन
संवत्सर का शभु ारम्भ हो कर यह श्री वीर जनवामण संवत के नाम से प्रचजलत हुआ। जवश्व में ज्ञात, प्रचजलत- अप्रचजलत
शताजधक संवत्सरों में यह सवामजधक प्राचीन है। भारतीय संस्कृ जत के आस्र्ावान अनयु ायी इस देन व्यावसाजयक
संस्र्ानों में जहसाब बजहयों का शभु महु ुतम कते हैं, इसी जदन से नवीन लेिा-वषम का परम्परानसु ार शभु ारम्भ माना जाता
है।

भारत सरकार ने वषम 1989 में एक जवधेयक पाररत कर लेिा वषम की गणना ईसवी सन की 1 अप्रैल से प्रारम्भ कर
31 माचम तक की जाने की अजनवायमता लागू कर हमारी धाजममक , सांस्कृ जतक तर्ा सामाजजक मान्याओ ं से परे
अपनाने को सभी को बाध्य एवं जववश कर जदया है। यद्यजप शासकीय जनयम के पररवतमन को 19 वषम हो चक ु े हैं जकंतु
अब भी अजधकांश जन लेिा बजहयााँ दीपावली के देन ही िरीद कर लाते हैं। दीपावली के मंगल जदवस पर जवजध-
जवधान अनसु ार श्री महावीर स्वामी की पजू ा एवं अन्य मागं जलक जियायें सम्पन्न कर शभु बेला में स्वजस्तक माडं कर
रि देते हैं, तर्ा इन्हें लगभग पााँच माह उपरातं 1 अप्रैल से प्रारंभ करते है।

अनेक लोग इन पररजस्र्जतवश दजु वधाग्रस्त हैं के बजहयााँ िरीद कर दीपावली पर पवू ामनसु ार लाना ही उजचत है अर्वा
एक अप्रैल या उसके पवू मवती देवस को। इस सन्दभम मे जान लेना परम आवश्यक है जक दीपोत्सव पवम को मनाने का
कारण श्री वीर प्रभु का जनवामण तर्ा गणधर श्री गौतम स्वामी को कै वल्य लक्ष्मी की प्राजप्त होना है जबजक पवू म काल में
लेिावषम का शभु ारंभ तर्ा संवत्सरी भी इससे सम्बद्ध होने से इसी अवसर पर नवीन बजहयााँ िरीद कर लाना एवम
उनका शभु -महु ूतम आजद प्रासंजगक एवं यजु ियि ु र्ा।अब चाँजू क लेिा वषम का शभु ारम्भ 1 अप्रैल से होता है अतः31
माचम अर्वा 1-2 जदन पवू म शभु -जदवस, चौघजडया एवं महु ूतम में बजहयााँ ला कर 31 माचम को भी जवजध अनसु ार पजू न
कर नवीन बजहयों का शभु महु ूतम जकया जा सकता है। जो लोग दीपावली के जदन बजहयााँ ला कर रि देते हैं, उन्हे
असजु वधा ना हो तो वे परम्परानसु ार कते रहें। यह सभी सजु वधाओ ं पर जनभमर है। वैसे भी बही महु ूतम तर्ा लेिा
शभु ारम्भ दोनो अलग अलग जियायें हैं। बही महु ूतम दीपावली को कर उनका शभु ारम्भ 1 अप्रैल से जकया जा सकता
है।

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हमारी धाजममक आस्र्ा तर्ा इजतहास-प्रामाजणत परम्परा बनी रहे इस आर्म दीपावली अर्ामत काजतमक कृ ष्ण अमावस्या
को प्रातः काल श्री जजनेन्द्र भगवान की भजि भाव सजहत पजू न कर जनवामण लाडू चढावें। पश्चात अच्िे चौघजडये में
अर्वा सायक ं ाल सयू ामस्त पवू म दक
ु ानों, कारिानों सस्ं र्ानों एवं गृहों पर पररवारजन एकजत्रत हो कर समजु हक रूप से
पजू ा, आती, भजि, दीपोत्सव व परस्पर जमलने का िम बनाये रिें। यजद हम वही महु ूतम कायम 1 अप्रैल को करें तो
दीपावली पर पवू म की अपेक्षा सम्पणू म आओजन में मात्र बही-महु ूतम कायम कम हो जायेगा।

दीपमाजलकायें के वल ज्ञान की प्रतीक हैं। सच्चे ज्ञान की प्राजप्त हो, अन्धकार का नाश हो, इस भावना से दीपमालायें
जलानी चाजहये। दीपावली के पवू म काजतमक त्रयोदशी के जदन भगवान महावीर ने बाह्य समवसरण लक्ष्मी का त्याग कर
मन-वचन और काय का जनरोध जकया। वीर प्रभु के योगों के जनरोध से त्रयोदशी धन्य हो उठी, इसीजलये यह जतजर् “
धन्य-तेरस” के नाम से जवख्यात हुई। यह पवम देवस त्याग के महत्व को दशामता हुआ यह सन्देश देता है के हम मन-
वचन-काय से कुचेिाओ ं का त्याग करें और बाह्य लक्ष्य से हट कर अंतर के शाश्वत स्वणम-रत्नत्रय को प्राप्त करें ।

अगले जदवस चतदु श म ी को भगवान महावीर ने 18000 शीलों की पणू मता को प्राप्त जकया। वे रत्नत्रय की पणू मता को
प्राप्त कर अयोगी अवस्र्ा से जनज स्वरूप में लीन हुए।

अत एव इस पवम जदवस “रूप-चौदस” के जदन ब्रह्मचयम का पालन करते हुए व्रताजद धारण कर स्वभाव में आने का
प्रयास करना चाजहये। भगवान की जदव्यध्वजन स्यात, अजस्त-नाजस्त. अविव्य आजद सात रूपों में जिरी र्ी इसजलये
यह जदन “गोवद्धमन” के रूप में मनाया जाता है। “गो” अर्ामत जजनवाणी तर्ा वद्धमन का अर्म प्रकजटत वजद्धमत। इस
जदन तीर्ंकर की देशना के पश्चात पनु ः जजनवाणी का प्रकाश हुआ, वृजद्ध हुई इसजलये जजनवाणी की पजू ा करनी
चाजहये।

धन-तेरस के जदन और दीपावली के जदन लोग धन-संपजि, रुपये-पैसे को लक्ष्मी मान कर पजू ा करते हैं जो सवमर्ा
अयजु ियिु है। जववेकवान जनों को इस पावन-पवम के जदनों में मोक्ष व ज्ञान लक्ष्मी तर्ा गौतम गणधर की पजू ा करनी
चाजहये जो जक समयानक ु ू ल, शास्त्रानक
ु ू ल, प्रामाजणक तर्ा कल्याणकारी है।

शभु जियाओ ं तर्ा शभु -भावों से अंतराय कमम के उदय से होने वाले जवर्घन दरू होए हैं अतः सच्चे देव-शास्त्र-गरुु की
पजू ा-भजि करना ही उजचत है। इनकी आराधना से अशभु का क्षय होता है, पारलौजकक श्रेष्ठ सि ु ों की तो बात ही
ु -जसजद्ध की प्राजप्त होती है। पण्ु यवान जनों को तो इह लौजकक लक्ष्मी धन-धान्य सम्पजि आजद का
क्या शाश्वत सि
सि ु अप्रयास ही सहज सल ु भ हो जाते हैं।

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िीपर्ावलका पिम
प्रातःकाल श्री जजनेन्द्र भगवान के दशमन पजू न करने मजन्दर जाने के पहले मजन्दर से आने के पश्चात अपने घर पर “ऊाँ
ह्रीं अहं अ जद आ उ सा श्री महावीर जजनेन्द्राय नमः” मंत्र की एक माला तर्ा महावीरािक स्त्रोत का पाठ करना चाजहये।
सायंकाल को उिम गौधल ू ोक लग्न में अर्वा जदन के समय भी अपनी दक ु ान के पजवत्र स्र्ान में ऊाँची चौकी पर रकाबी
में जवनायक यंत्र

का आकार मांड कर ठोणे में रि कर जवराजमान करें । उसी चौकी के आगे दसू री चौकी पर शास्त्रजी (जजनवाणी)
जवराजमान करना चाजहये। इन दोनो चौजकयों के आगे एक िोटी चौकी पर पजू ा की सामग्री तैयार कर रिें और उसी के
पास एक दसू री चौकी पर र्ाल में स्वजस्तक मांड कर पजू ा की सामग्री चढाने के जलये रिें। बजहयााँ, दावात-कलम आजद
पास में रि लें। घी का दीपक दाजहनी ओर तर्ा बााँई ओर धपू दान करना चाजहए। दीपक में घृत इस प्रमाण से डालें के
राजत्र भर वह दीपक जलता रहे।
पजू ा करने वाले को पवू म या उिर जदशा में मि
ु कर के पजू ा करना चाजहये। जो पररवार में बडा हो या दक ु ान का माजलक
हो वह जचि एकाग्र कर पजू ा करे और उपजस्र्त सभी जलग पजू ा बोलें तर्ा शांजत से सनु ें। पजू ा प्रारम्भ करने से पहले
उपजस्र्त सब सज्जनों को जतलक लगाना चाजहये तर्ा दाजहने हार् में कंकण बााँधना चाजहये। जतलक करते समय नीचे
जलिा श्लोक पढे।
मंगलम भगवान वीरो, मंगलम गौतमो गणी।
मंगलम कुन्द कुन्दायो, जैन धमोस्तु मंगलम।् ।
जतलक करने के बाद जनत्य-जनयम-पजू ा करके श्री महावीर स्वामी श्री गौतम गणधर स्वामी तर्ा श्री सरस्वती देवी की
पजू ा करनी चाजहये।
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नई बही महु ूतम की सामग्री
अि द्रव्य धल
ु े हुए, धपू दान 1, दीपक 2, लालचोल 1 मीटर, सरसों 50 ग्राम, र्ाली 1, श्रीफल1, लोटा जल का1,
लच्िा, शाि 1, धपू 50ग्राम, अगरबिी, पाटे 2, चौकी 1, कंु कुम 50ग्राम, के सर जपसी हुई, कोरे पान, दवात,
कलम (या लीड) 2

जसन्दरू घी जमलाकर (श्री महावीरायनमः और लाभ शभु दक


ु ान की दीवाल पर जलिने को) फूलमालायें, नई बजहयााँ,
माजचस, कपरू देशी सपु ारी आजद।

निीन बही र्ुहूर्म


पजू ा के पश्चात हर बही में के शर से साजर्य माडं कर जनम्न प्रकार जलिें तर्ा एक- एक कोरा पान रिे।

श्री
श्री श्री
श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री
श्री श्री श्री श्री श्री

श्री ऋषभ देवाय नमः।। श्री महावीराय नमः।। श्री गौतम-गणधरायनमः।। के वलज्ञान लक्ष्म्यै नमः।। श्री जजन सरस्वत्यै
नमः।। श्री शभु जमजत काजतमक बदी 30…….. ।।
………वार।् । जदनांक …/…/19ई. को शभु बेला में दक ु ान श्री
की बही का महु ूतम जकया

यह जवजध हो जाने के बाद जवजध करनेवाले, दक


ु ान के मख्ु य सजन को बही में लच्ि बान्ध कर हार् में बही देवें और
पश्ु प क्षेपे।

इसके बाद घर के प्रमि


ु महाशय नीचे जलिा हुआ पद्य व मंत्र पढकर शभु कामना करें और फूलमाला पजहनाकर पष्ु प
क्षेपण करें ।

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पद्य
आरोग्य बजु द्ध धन धान्य समृजद्ध पावें।
भय रोग शोक पररताप सदु रु जावें।
सद्धमम शास्त्र गरुु भजि सश
ु ांजत होवे।
व्यापार लाभ कुल वृजद्ध सक ु ीती होवे।।
श्री वद्धममान भगवान सबु जु द्ध देवें।
सन्मान सत्यगणु सयं म शील देवें।।
नव वषम हो यह सद सि ु शांजत दाई।
कल्याण हो शभु तर्ा अजत लाभ होवे।।

पू जा प्रािम्भ
अहंतो भग्वंत इन्द्रमजहताः जसद्धीश्वराः।
आचायाम जजन शासनोन्नजतकराःपज्ू या उपाध्यायकाः।।
श्रीजसद्धातं सपु ाठ का मजु नवरा रत्नत्रयाराधकाः।
पंचैते परमेजष्ठ नः प्रजतजदनं कुवंतु नः मंगलम।् ।
ओ ं जय जय जय नमोस्तु नमोस्तु नमोस्त।ु
णमो अरहतं ाण,ं ण्मो जसद्धाणं, णमो आइररयण,ं णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं। चतिारर मंगलम, अररहतं ा
मंगलम, जसद्धा मंगलम, साहू मंगलम।् के वजल पण्णिोधम्मो मंगलम।् चिारर लोगिु म, अररहतं ालोगिु मा जसद्धा
लोगिु मा, साहू लोगिु म। के वजलपण्णिो धम्मोलोगिु मा, चिाररसरणं पव्वज्जाजम , सहूशरणं पव्वज्जाजम के वजलपण्णिं
धम्मं सरणं पव्वज्जाजम। ऊाँअनाजदमल ू मंत्रेभ्यो नमः
(यह पढ कि पषु पांजवल क्षेवपर् किें )

वबनायक यत्रं पजू ा अध्यम


अच्िाम्भः शजु च चन्दनाक्षत समु ै-नैवेद्य कै श्चारुजभः।
दीपैधमपू फलोिमैः समजु दतैरेजभः सपु ात्रजस्र्तैः।।
अहमजत्सद्ध ससु रू रपाठक मनु ीन लोकोिमान मंगलान।्
प्रत्यहू ौधजनवृिये शभु कृ तः, सेवे शरण्यानहम।् ।
ऊँ ह्रीं श्री शिणभर्ू ेभ्यः पचं पिर्ेविभ्यः अध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

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िेि शास्त्र-गरुु पजू ा का अध्यम
जल परम उज्जवल गन्ध अक्षत- पष्ु प चरु धरुाँ।
वर धपू जनममल फल जवजवध बहु जनम के पातक हरुाँ।।
इह भााँजत अध्यम चढाय जनत भजव करत जशव पंकजत मचाँ।ू
अरहतं श्रतु जसद्धांत गरुु जनग्रंर् जनत पजू ा रचाँ।ू ।
वसजु वजध अध्यम संजोय कै , अजत उिाहमन कीन।्
जासों पजू ों परम पद, देवशास्त्र-गरुु तीन।् ।
ऊँ श्री िेिशास्त्र गरुु भ्यो अनध्यमपि प्राप्तये अध्यमर् वनपामर्ीवर् स्िाहा।

बीस र्हािाज का अध्यम


जल फल आठों द्रव्य संभार, रत्न जवाहर भर भर र्ार।्
नमाँू कर जोड, जनत प्रजत ध्याऊाँ भोरजहं भोर।।
पााँचों मेरु जवदेह सर्ु ान, तीर्ंकर जजन बीस महान।
नमाँू कर जोड जनत प्रजत ध्याऊाँ भोरजहं भोर।।
ऊँ ह्रीं श्री वििेहक्षेत्रस्य सीर्न्द्धिावि विद्यर्ांविमशमवर् र्ीर्थंकिे भ्यो अध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा नर्ँू कि जोड,
वनर् प्रवर् ध्याऊँ भोिवहं भोि।।

वसद्ध पर्ेिी का अध्यम


जल फल वसु वृन्दा, अरघ अमन्दा, जजत अनन्दा के कन्दा।
मेटे भवफन्दा, सब द:ु ि दन्दा, हीराचन्दा तमु बन्दा।।
जत्रभवु न के स्वामी, जत्रभवु न, नामी, अंतरजामी अजभरामी।
जशवपरु जवश्रामी, जनज जनजधपामी जसद्धजजामी जसरनामी।।
ऊँ ह्रीं श्री अनाहर् पिक्रर्ाय सिमकर्म विवनर्मक्त
ु ाय वसद्धपिर्ेविने अर्घयमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

चौबीस र्हािाज का अध्यम


फलफल आठों शजु चसार, ताको अघम करों।
तमु को अरपों भवतार, भवतरर मोक्ष वरों।।
चौबीसों श्री जजनचन्द, आनन्द कन्द सही।
पदजजत हरत भव फन्द, पावक मोक्षमही।।

18
अतं रायकमम नाशार्म अध्यम
लाभ की अंतराय के वस जीवसु न लहै।
जो करै कि उत्पात सगरे कममवस जवरर्ा रहै।।
नहीं जोर वाको चले इक जिन दीन सौ जग में जफरै ।
अररहतं जसद्ध अधर धररकै लाभ यौ कमम कौ हरै ।।
ऊाँ ह्रीं लाभातं रायकमम रजहताभ्याम अहतमजसद्ध परमेजष्ठभ्याम अर्घयमम जनवमपामीजत स्वाहा।
पष्ु पाजं जलं जक्षपेत

श्री र्हािीि वजनपूजा


(कजववर वृन्दावन कृ त)
श्रीमतवीर हरै भवपीर सि ु सीर अनाकुलताई।
के हरर अक ं अरीकर दक ं नये हरर पक ं जत मौजलसहु ाई।।
मैं तमु को इत र्ापत हों प्रभु भजि समेत जहये हरिाई।
हे करुणाधन धारक देव, इहां अब जतष्ठहु शीघ्रजहं आई।।
ऊँ ह्रीं श्री िद्धमर्ान वजनेन्द्राय पषु पांजवलः।

क्षीरोदजध सम शजु च नीर, कंचन भृग भरों।


प्रभवु ेग हरो भव्पीर, यातैंधार करों।
श्रीवीर महा अजतवीर, सन्मजत नायक हो।
जय वद्धममान गणु धीर, सन्मजतदायक हो।।
ऊँ ह्रीं श्री र्हािीि वजनेन्द्राय जलं वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

मलयाजगर चन्दन सार, के सर संग धसों।


प्रभु भव आताप जनवार, पजू त जहय हुलसों।।
श्रीवीर महा अजतवीर, सन्मजत नायक हो।
जय वद्धममान गणु धीर, सन्मजतदायक हो।।
ऊँ ह्रीं श्री र्हािीि वजनेन्द्राय चन्द्िनर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

19
तन्दल ु जसत शजशसम शद्ध ु लीनों र्ार भरी।
तसु पजंु धरों अजवरुद्ध, पावों जशव नगरी।।
श्रीवीर महा अजतवीर, सन्मजत नायक हो।
जय वद्धममान गणु धीर, सन्मजतदायक हो।।
ऊँ ह्रीं श्री र्हािीि वजनेन्द्राय अक्षर्ान वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

सरु तरु के समु न समेत, समु न समु न प्यारे ।


सो मंर्न भंजन हेत, पजू ों पद र्ारे ।।
श्रीवीर महा अजतवीर, सन्मजत नायक हो।
जय वद्धममान गणु धीर, सन्मजतदायक हो।।
ऊँ ह्रीं श्री र्हािीि वजनेन्द्राय पषु पर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

रस रज्जत सज्जत सद्य, मज्जत र्ार भरी।


पद जज्जत रज्जत अद्य, भज्जत भि ू अरी।।
श्रीवीर महा अजतवीर, सन्मजत नायक हो।
जय वद्धममान गणु धीर, सन्मजतदायक हो।।
ऊँ ह्रीं श्री र्हािीि वजनेन्द्राय नैिेद्यर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

तम िजन्डत मजन्डत नेह, दीपक जोवत हों।


तमु पदतर हे सि ु गेह, भ्रमतम िोवत हों।।
श्रीवीर महा अजतवीर, सन्मजत नायक हो।
जय वद्धममान गणु धीर, सन्मजतदायक हो।।
ऊँ ह्रीं श्री र्हािीि वजनेन्द्राय िीपर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

हरर चन्दन अगर कपरू चरू सगु न्ध करा।


तमु पदतर िेवत भरू र, आठों कमम जरा।।
श्रीवीर महा अजतवीर, सन्मजत नायक हो।
जय वद्धममान गणु धीर, सन्मजतदायक हो।।
ऊँ ह्रीं श्री र्हािीि वजनेन्द्राय धपू र् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

20
ररतफ ु ल कल वजजमत लाय, कंचन र्ार भरों।
जशवफलजहत हे जजनराय, तमु जढग भेंट धरों।।
श्रीवीर महा अजतवीर, सन्मजत नायक हो।
जय वद्धममान गणु धीर, सन्मजतदायक हो।।
ऊँ ह्रीं श्री र्हािीि वजनेन्द्राय फलर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

जल फल वसु सजज जहम र्ार, तनमन मोद धरों।


गणु गाऊाँ भवदजधतार, पजू त पाप हरों।।
श्रीवीर महा अजतवीर, सन्मजत नायक हो।
जय वद्धममान गणु धीर, सन्मजतदायक हो।।
ऊँ ह्रीं श्री र्हािीि वजनेन्द्राय अध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

पं च कल्याणक
मोजह रिो हो सरना श्रीवद्धममान जजनराय जी मोजह रिो हो सरना।
गरम साढ जसत िट्ठ जलओ जतजर्, जत्रशला उर अघहरना।
सरु सरु पजत जतत सेव करीजनत, मैं पजू ौं भव तरना।।
मोजह रिो हो सरना श्रीवद्धममान जजनराय जी मोजह रािो
ऊँ ह्रीं श्री र्हािीि वजनेन्द्राय आषाढ शक्ु लषिठयां गर्म र्न्द्गल र्वडडर्ाय अध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

जनम चैतजसत तेरस के जदन कुन्डलपरु कनवरना।


सरु जगर सरु गरुु पजू रचायो मैं पजू ों भवहारना।। मोजह.।।
ऊँ ह्रीं जैि शक्ु ल त्रयोिशयां जन्द्र्र्ंगल प्राप्ताय श्री र्हािीि वजनेन्द्राय अध्यं वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

मगजसर अजसत मनोहर दश्मी, ता जदन तप आचरना।


नृप कुमार घर पारन कीनो, मैं पजू ो तमु चरना।। मोजह.।।
ऊँ ह्रीं र्ागमशीषमकृषणिशम्यां र्पो र्ंगल र्ंवडर्ाय श्री र्हािीि वजनेन्द्राय अध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।
शक्ु ल दशै बैशाि जदवस अरर घाजत चतक ु िय करना।
के वल लजह भजव भवसरतारे म जजों चरन सि ु भरना।। मोजह.।।
ऊँ ह्रीं बैसाख शक्ु ल िशम्यार् ज्ञान कल्याण प्राप्ताय श्री र्हािीि वजनेन्द्राय अध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।
21
काजतक श्याम अमावस जशवजतय, पावापरु तें बरना।
गनफजनवृन्द जजें जतत बहुजवजध, मैं पजू ौं भवहरना।। मोजह।।
ऊँ ह्रीं कावर्मक कृ षणार्ािस्यायां र्ोक्षर्ंगलर्ंवडर्ाय श्री र्हािीि वजनेन्द्राय अध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

जयर्ाला
गनधर, असजनधर, चिधर, हरधर गदाधर वरवदा।
अरु चापधर जवद्यासधु र जतरसल
ू धर सेवजहं सदा।।
दि ु हरन आनन्द भरन तारन तरन चरन रसाल है।
सकु ु माल गनु मजनमाल उन्नत, भाल की जयमाल है।।
जय जत्रशला नन्दन, हररकृ त वन्दन, जगदानन्द, चन्दवरं।
भव तापजनकन्दन तन कन मन्दन, रजहतसपन्दन, नयनधरं।।
जय के वल भानु कला सदनं। भजवकोक जवकाशन कंजवनं।
जगजीत महाररपु मोहहरं। रजज्ञानदृगांबर चरू करं।।
गवामजदक मंगल मंजडत हो। दि ु दाररद्र को जनत िजन्डत हो।
जगमाजं ह तम्ु ही सत्पजं डत हो। दिु दाररद्र को जनत िजं डत हो।
हररवंश सरोजन को रजव हो। बल्वन्त महतं तम्ु हीं कजव हो।।
लजह के वल धमम प्रकाश जकयो। अबलों सोई मारगराजजतयो।
पजु न आपतने गनु मांजह सही। सरु मग्न रहै जजतने सबहीं।।
जतनकी बजनता गणु गावत हैं। लय मानजन सों मन भवत हैं।
पजु न नाचत रंग उमंग भरी। तमु भजि जवषै पग एम धरी।।
झननं झननं झननं झननं। सरु लेत तहां तननं तननं।
घननं घननं घन घंट बजै। दृमदं दृमदं जमरदगं सजै।
गगनांगनगभमगता सगु ता। ततता ततता अतता जवतता।।
धृगतां धृगतां गजत बाजत है। सरु ताल रसाल जु िाजत है।
सननं सननं सननं नभमें। इक रूप अनेक जधु ारर भ्रमैं।।
कै नारर सबु ीन बजावजत हैं। तमु रो जस उज्ज्वल गावजत हैं।
करताल जवषै करताल धरै । सरु ताल जवशाल जनु ाद करै ।।
इन आजद अनेक उिाह भरी। सरु भजि करें प्रभजु ी तमु री।
तमु ही जगजीवन के जपतु हो। तमु ही जबन कारन के जहतु हो।
तमु ही सब जवर्घन जवनाशन हो। तमु ही जनज आनन्द भासन हो।
तमु ही जचतजचजं ततदायक हो। जगमाजं ह तम्ु हीं सब लायक हो।।
तम्ु हरे पन मंगलमांजह सजह। जजय उिम पन्ु य जलयो सबही।।
22
हमको तमु री सरनागत है। तमु रे गनु में मन पागत है।।
प्रभु मो जहय आप सदा बजसये। जबलों वसु कमम नहीं नजसये।।
तबलों तमु ध्यान जहये वरतो। तबलों श्रतु जचंतन जचि रतो।।
तबलों व्रत चाररत चाहतु हों। तबलों शभु भाव सगु ाहतु हों।।
तबलोंसत संगजत जनत्य रहो। तबलों मम संजम जचि गहों।।
जबलों नजहं नाश करों अररकों। जशवनारर वरों समताधररको।।
यह द्यो तबलों हम्को जजनजी। हम जाचतु हैं इतनी सनु जी।।
श्रीवीर जजनेशा नजमत सरु े शा नागनरे शा भगजत भरा।।
वृन्दावन ध्यावें जवर्घन नशावै। वांजित पावे शममवरा।।
ऊँ ह्रीं श्री िद्धमर्ान वजनेन्द्राय र्हाध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

श्री सन्मते के जगु लपद, जो पजू ै धरर प्रीत।


वृन्दावन सो चतरु नर, लहै मजु ि नवनीत।।

श्री सिस्िर्ी पू जा
िोहा
जनम जरा मृतु क्षय करै , हरै कुनय जड रीजत।
भवसागरसौं ले जतरै , पजू ै जजंवच प्रीजत।।
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख
ु ोद्भि सिस्ित्यै पषु पांजलः।

िीरोदजधगगं ा जवमल तरंगा, सजलल अभंगा, सि ु गंगा।


भरर कंचन झारी, धार जनकारी तृषा जनवारी जहत चंगा।।
तीर्ंकर की ध्वजन, गनधर ने सजु न, अंग रचे चजु न ज्ञानमई।
सो जजनवर वानी, जशवसि ु दानी, जत्रभवु न पज्ू य भई।।
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख
ु ोद्भभिसिस्िर्ीिेव्यै जलं वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

कपमरू मंगाया चन्दन आया, के शर लाया रंग भरी।


शारदपद वन्दों, मन अजभनन्दों,पाप जनकन्दों दाह हरी।।तीर्मः
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्खु ोद्भभिसिस्िर्ीिेव्यै चन्द्िनर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।
23
सि ु दासक मोद,ं धारक मोदं अजत अनमु ोदं चन्दसमं।
बहु भजि बढाई, कीरजत गाई,होहु सहाई, मात ममं। हरी।।तीर्मः
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख
ु ोद्भभिसिस्िर्ीिेव्यै अक्षर्ान वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

बहु फूल सवु ासं, जवमल प्रकाशं, आनन्दरासं लाय धरे ।।


मम काम जमटायो, शील बढायो, सि ु उपजायो दोष हरे ।तीर्मः
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख
ु ोद्भभिसिस्िर्ीिेव्यै पषु पर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

पकवान बनाया, बहुघतृ लाया,सब जवध भाया जमि महा।


पजू ंू र्जु त गाऊं, प्रीजत बढाऊाँ, क्शधु ा नशाऊं हषम लहा।।तीर्मः
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख ु ोद्भभिसिस्िर्ीिेव्यै नैिेद्यर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।र्ीर्थमः
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख ु ोद्भभिसिस्िर्ीिेव्यै पषु पर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

कर दीपक-जोतं, तमक्षय होतं, ज्योजत उदोतं तमु जह चढै।


तमु हो प्रकाशक, भरमजवनाशक, हम घट भासक ज्ञानबढै।। तीर्मः
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख
ु ोद्भभिसिस्िर्ीिेव्यै िीपं वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

शभु गन्ध दशोंकर, पावक में धर, धपू मनोहर िेवत हैं।
सब पाप जलावे, पण्ु य कमावे, दास कहावेसेवत हैं।। तीर्मः
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख
ु ोद्भभिसिस्िर्ीिेव्यै धपू र् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

बादाम िुहारी, लोंग सपु ारी, श्रीफल भारी ल्यावत हैं।


मन वाजं ित दाता, मेट असाता, तमु गनु माता, ध्यावत हैं।तीर्मः
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख
ु ोद्भभिसिस्िर्ीिेव्यै फलर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

नयनन सि ु कारी, मृदगु नु धारी, उज्ज्वलभारी, मोलधरै ।


शभु गन्धसम्हारा, वसनजनहारा, तमु अन धारा ज्ञान करै ।।तीर्मः
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख
ु ोद्भभिसिस्िर्ीिेव्यै अध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

24
जलचन्दन अक्षत, फूल चरु, चत, दीप धपू अजत फल लावै।
पजू ा को ठानत, जो तमु जानत, सो नर द्यानत सि ु पावै।।
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख
ु ोद्भभिसिस्िर्ीिेव्यै अध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।।

जयर्ाला
सोिठा
ओकं ार ध्वजनसार, द्वादशांगवाणी जवमल।
नमों भजि उर धार, ज्ञान करै जडता हरै ।।
पहलो आचारांग बिानो, पद अिादश सहस प्रमानो।
दजू ो सत्रु कृ तं अजभलाषं, पद ििीस सहस बयाजलस पदसरधानम।्
तीजो ठानाअगं सजु ानं, सहस बयाजलस पदसरधानम।्
चौर्ो समवायागं जनहारं, चौसठ सहस लाि इकधारम
पंचम व्याख्याप्रज्ञजप्त जवसतारं, दोय लाि अट्ठाइस सहसं।
िट्ठो ज्ञातृकर्ा जवसतारं, पााँच लाि िप्पन हज्जारं।।
सप्तम उपासकाध्ययनंगं, सिर सहस ग्यारलि भंगं।
अिम अंतकृ त दस ईस,ं सहस अट्ठाइस लाि तेइसं।।
नवमअनिु रदश सजु वशालं, लाि बानवै सहस चवालं।
दशम प्नव्याकरण जवचारं, लाि जतरानव सोल हजारं।।
ग्यारम सत्रू जवपाक सभु ािं, एक कोड चौरासी लािं।
चारकोजड अरु पंद्रह लाि,ं दो हजार सब पद गरुु शािं।।
द्वादश दृजि वाद पनभेद,ं इकसौ आठ कोजड पवं ेद।ं
अडसठ लाि सहस िप्पन हैं, सजहत पचं पद जमथ्या हन हैं।।
इक सौ बारह कोजड बिानो, लाि जतरासी उपर जानो।
ठावन सहस पचं अजधकाने, द्वादश अगं सवमपद माने।।
कोजड इकावन आठ ही लािं, सहस चरु ासी िहसौ भािं।
साढे इकीस श्लोक बताये, एक एक पद के ये गाये।।

25
धत्ता।
जा बानी के ज्ञात तै, सझू े लोक अलोक।
“द्यानत” जग जयवंत हो, सदा देत हों धोक।।
ऊँ ह्रीं श्री वजनर्ख ु ोद्भभिसिस्िर्ीिेव्यै र्हाध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।।

श्री गौर्र् गणधि पूजा


श्री गौतम गणईश शीष यह तम्ु हे नमा कर
आव्हानन अब करूाँ आय जतष्ठो मानस पर।
पाके के वल ज्योजत ज्ञानजनजध हुए गणु ाकर।
जनज लक्ष्मी का दान करो मेरे घट आ कर।
श्री गौतम गण ईश जी जतष्ठो मम उर आय।
ज्ञान-लक्ष्मी पजत बने, मेरी मानव काय।
ऊँ ह्रीं कावर्म कृ षणार्ािस्यायां कै िल्यलक्ष्र्ी प्राप्त श्री गौर्र्गणधिाय पषु पांजवलः।

िसवं र्का छन्द्ि


गागं ेय वारर शजु च प्रासक ु जदव्य ज्योजत।
जन्माजद कि जनज वारण को जलया ये।
संसार के अजिल त्रास जनवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बजु –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कावर्म कृ षणार्ािस्यायां कै िल्यलक्ष्र्ी प्राप्तये श्री गौर्र् गणधिाय जलं वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

कपमरू यि
ु मलयाजगर को जघसाया
संसार ताप शमनार्म इसे बनाया
संसार के अजिल त्रास जनवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बजु –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कावर्म कृ षणार्ािस्यायां कै िल्यलक्ष्र्ी प्राप्तये श्री गौर्र् गणधिाय सगु न्द्धं वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

26
मि ु ाभ अक्षत सगु जन्ध चनु ा चनु ा के ,
व्याजधध्न अक्षत-पदार्म सजा सजा के ।
ससं ार के अजिल त्रास जनवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बजु –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कावर्म कृ षणार्ािस्यायां कै िल्यलक्ष्र्ी प्राप्तये श्री गौर्र् गणधिाय अक्षर्ं वनिमपार्ीवर् स्िाहा।
कन्दपम दपम दलनार्म नवीन ताजे,
बेला गलु ाब मच्कुन्द सु पाजामती।
संसार के अजिल त्रास जनवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बजु –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कावर्म कृ षणार्ािस्यायां कै िल्यलक्ष्र्ी प्राप्तये श्री गौर्र् गणधिाय पषु पं वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

क्षीराजद जमजश्रत अमीघ बल प्रदाता,


पक्कान्न र्ाल यह भि ू जनवारने को।
संसार के अजिल त्रास जनवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बजु –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कावर्म कृ षणार्ािस्यायां कै िल्यलक्ष्र्ी प्राप्तये श्री गौर्र् गणधिाय नैिेद्यर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

रत्नाजद दीप नवज्योजत कपरू वती,


उद्दाम-मोह-तम- तोम सभी हटाने।
संसार के अजिल त्रास जनवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बजु –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कावर्म कृ षणार्ािस्यायां कै िल्यलक्ष्र्ी प्राप्तये श्री गौर्र् गणधिाय िीपर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

अज्ञान मोह मद से भव में भ्रमाता,


ये दिु कमम, जतस नाशन को दशागं ी।
संसार के अजिल त्रास जनवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बजु –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कावर्म कृ षणार्ािस्यायां कै िल्यलक्ष्र्ी प्राप्तये श्री गौर्र् गणधिाय धपू र् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

27
के ला अनार सह्कार सपु क्क जाम,ू
ये जसद्धजमष्ठ फल मोक्षफलाजप्त को मैं।
ससं ार के अजिल त्रास जनवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बजु –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कावर्म कृ षणार्ािस्यायां कै िल्यलक्ष्र्ी प्राप्तये श्री गौर्र् गणधिाय फलर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

पानीय आजद वसु द्रव्य सगु न्धयि ु ,


लाया प्रशातं मन से जनज रूप पाने।
ससं ार के अजिल त्रास जनवारने को
योगीन्द्र गौतम –पदाम्बजु –में चढाता।
ऊँ ह्रीं कावर्म कृ षणार्ािस्यायां कै िल्यलक्ष्र्ी प्राप्तये श्री गौर्र् गणधिाय अध्यमर् वनिमपार्ीवर् स्िाहा।

जयमाला
वीर जजनेश्वर के प्रर्म गणधर-गौतम-पांय।
नमन करुाँ कर जोडकर स्वगम मोक्ष फल दाय।।

हरिगीत्तिका
जय देव श्रीगौतम गणेश्वर।् प्रार्मना तमु से करूाँ।
सब हटा दो कि मेरे अध्यम ले आरती करूाँ।
हे गणेश। कृ पा करो, अब आत्म ज्योजत पसार दो।
हम हैं तम्ु हारे सदय हो दवु ामसनायें मार दो।
वीर प्रभजु नवामण-क्षण में र्ा सम्हाला आपने।
अब चोड तमु को जाउाँ कहाँ घेरा चहूाँ जदजश पाप ने।
है जदवस वह ही नार्। स्वामीवीर के जनवामण का।
जग के जहतैषी जबज्ञ गौतम ईष के वल ज्ञान का।
नार्। अब कर के कृ पा हम्को सहारा दीजजये।
दीपमाला-आरती पजू ा गृहम मम कीजजये।
दीपमाला-आरती पजू ा गृहण मम कीजजये।
ऊाँ ह्रीं काजतम कृ ष्णामावस्यायां कै वल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय अध्यमम जनवमपामीजत स्वाहा।

ज्योजत पंजु गणपजत प्रभो। दरू करो अज्ञान


समता रस से जसि हो नया उगे उर भान।ु ।
28
र्हािीिाष्टक-स्र्ोत्रर्
(कवििर भागचन्द्र)
विखररणी छन्द्द
यदीये चैतन्ये मक ु ु र इव भावाजश्चदजचतः,
समंभाजं तध्रौव्य-व्यय-जजन-लसतं ोंत-रजहताः।
जगत-साक्षी-मागम-प्राकटन-परो भानरु रव यो,
महावीरस्वामी नयनपर्-गामी भवतु मे।।
अताम्रं यच्चक्षःु कमल-यगु लं-स्पन्द-रजहतम,
जनान कोपापायं प्रकटयजत वाभ्यंतरमजप।
स्फुटं मजू तम-यमस्य प्रशजमतमयी वाजतजवमला,
महावीर स्वामी नयनपर्-गामी भवतु मे।
नमन नाके न्द्राली-मक ु ु ट-मजन-भा-जाल-जजट-लम
लसत पादाम्भोज-द्वयजमह यदीयं तनभु तृ ाम।्
भवज्जवाला-शांत्यैप्रभवजत जलम वा स्मृतमजप,
महावीर स्वामी नयनपर्-गामी भवतु मे।
यदचाम-भावेन प्रमजु दत-मना ददरमु इह,
क्षणादासीत स्वगी गणु -गणसमृद्धः सि ु जनजधः।
लभतं े सद्भिाः जशव-सि ु -समाजं जकमु तदा,
महावीर स्वामी नयनपर्-गामी भवतु मे।
कनत स्वणामभासोप्यपगत-तन-ु ज्ञान-जनवहो,
जवजचत्रात्माप्येकोनृपजत-वर-जसद्धार्म-तनयः।
अजन्माजप श्रीमान जवगत-भव-रागोद्भुत-गजतः,
महावीर स्वामी नयनपर्-गामी भवतु मे।
यदीया वाग्गंगा जवजवध-नय-कल्लोल-जवमला,
बृहज्ज्ञानाम्भोजभ-ज्गमजत जनतां या स्नपयजत।
इदानी-मप्येषा बधु -जन-मरालैः पररजचता,
महावीर स्वामी नयनपर्-गामी भवतु मे।
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अजनवामरोद्रेक-जस्त्रभवु न-जयी काम-सभु टः
कुमारावस्र्ायामजप जनज-बलाद्येन जवजजतः।
स्फुरन जनत्यानन्द-प्रशम-पद-राज्याय स जजनः,
महावीर स्वामी नयनपर्-गामी भवतु मे।
महा-मोहातं क-प्रशमन-पराकजस्मक-जभषग,
जनरापेक्षो बन्ध-ु जवजदमत-मजहमा मंगल-करः।
शरण्यः साधनू ां भव-भय-भआ ू -मिु म-गणु ो,
महावीर स्वामी नयनपर्-गामी भवतु मे।
महावीरािकं स्त्रोत्रं भि या ‘भागेन्द’ु ना कृ तम।्
यः पठे च्िूणयु ाच्चाजप, स याजत परमां गजतम।् ।

वजनिाणी र्ार्ा की आिर्ी


जय अम्बे वाणी,माता जय अम्बे वाणी।
तमु को जनश जदन ध्यावत सरु नर मजु न ज्ञानी।।
श्री जजन जगरते जनकसी, गरु गौतम वाणी।
जीवन भ्रम तमु नाशन्दीपक दरशाणी।। जय….
कुमत कुलाचल चरू ण, वज्रसु सरधानी।
नय जनयोग जनक्षेपण देिन, दरशाणी।। जय….
पातक पकं पिालन, पण्ु य पाणी।
मोह महाणमव डूबत, तारण नौकाणी।। जय….
लोकालोक जनहारण, जदव्य नेत्र स्र्ानी।
जनज पर भेद जदिावन, सरू ज जकरणानी।। जय….
श्रावक मजु नगण जननी, तमु ही गणु िानी।
सेवक लि दि ु दायक, पावन परमाणी।। जय….

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श्री र्हािीि स्िार्ी की आिर्ी
जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो।
कुण्डलपरु अवतारी, जत्रशलानन्द जवभो।। ऊाँ जय महावीर….
जसद्धार्म घर जन्मे, वैभवर्ा भारी।
बाल ब्रह्मचारी व्रत पाल्यौ, तपधारी।। ऊाँ जय महावीर….
आतम ज्ञान जवरागी, सम दृजिधारी।
माया मोह जवनाशक, ज्ञान ज्योजतजारी।। ऊाँ जय महावीर….
जग में पाठ अजहसं ा, आपजह जवस्तायौ।
जहसं ा पाप जमटा कर, सधु मम परचारयौ।। ऊाँ जय महावीर….
यजह जवजध चााँदनपरु में,अजतशय दशामयौ।
ग्वाल मनोरर् पयू ो, दधू गाय पायौ।। ऊाँ जय महावीर….
प्राणदान मंत्री को, तमु ने प्रभु दीना।
मजन्दर तीन जशिर का जनजममत है कीना।। ऊाँ जय महावीर….
जयपरु नृप भी तेरे, अजतशय के सेवी।
एक ग्राम जतन दीनों, सेवा जहत यह भी।। ऊाँ जय महावीर….
जो कोइ तेरे दर पर इच्िा कर आवे।
धन, सतु सब कुि पावे संकट जमट जावे।। ऊाँ जय महावीर….
जनश जदन प्रभु मजन्दर में जगमग ज्योजत करै ।
हररप्रसाद चरणों में, आनन्द मोद भरैं ।। ऊाँ जय महावीर….

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वििाली पि जलाओ िीप
जलाओ तो दीप जलाओ,
मत जलाओ जकसी को,
करो तो अन्धकार दरू करो,
मत करो अन्धा जकसी को,
हसं ाओ तो सभी को हसं ाओ,
मत रुलाओ जकसी को,
बनाओ तो, शभु मय बनाओ अशभु मत बनाओ,
जदवाली को।
श्री सधु ासागर जी महाराज का आशीवामद

जो बम फोडे, मनष्ु यों को मारे वह आतंकवादी है,


जो पटािे फोडे जीवों को मारे वह- है?
पटािे के धएु ाँ से प्रदषु ण होता है, स्वास्थ्य िराब होता है,
रोगीजनों को बहुत कि होता है।
पटािों की आवाज से मनष्ु य,
पशपु क्षी भयभीत होते हैं।
उनकी बद्दआ ु ओ ं से क्यों अपना जीवन दःु िी करते हो।
हे मानव! देवता तमु तो दयालु हो, समझदार हो,
जफर जदवाली पजवत्र त्योहार पर पटािे से जहसं ा क्यों करते हो?
पटािे फोड प्रदषु ण करने वाले की अपेक्षा,
प्रदषु ण नहीं करने वाले श्रेष्ठ लोगों की नकल कर महान बनना
श्रेष्ठ है।
क्या आप अपने शौक को परू ा करने के जलये माँहु में या हार्ों की
मरु ट्ठयों में रिकर पटािे फोड सकते हैं? नहीं ना क्योंजक जल
जायेंगे। जफर िोटे-िोटे जीवों के सार् अन्याय
क्यों?
हम पशु होकर के भी मनोरंजन के जलये जकसी प्राणी को मारते
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नहीं हैं।
पवू म के पण्ु य कमम से स्वस्र् शरीर जमला है पटािों से यजद कोई
अगं िराब हो गया तो? क्या पनु ः जमल सके गा?

पटािे से मेहनत की कमाई बबामद होती है,


उन पैसें से जकसी गरीब का इलाज, गरीब को जशक्षा,
त्योहार पर जमठाई का जवतरण कर, एक अच्िे इसं ान क्यों नहीं बनते?
हर वषम पटािों से कई जगह पर अजग्न लग जाती है,
कई जन मर जाते हैं। क्या आपको पता है इस वषम जकसका नम्बर है?
आजतशबाजी से पयामवरण, धन, जन, स्वच्िता, स्वास्थ्य, शाजं त,
धमम, श्रद्धा, समपमण, जववेक, बजु द्ध की हाजन कौन समझदार करे गा?
सच्चा श्रद्धालु वही है जो अपने भगवान, गरुु की आज्ञा को
पणू मतः पालन करता है।
जब तमु जकसी मरे को जजन्दा नहीं कर सकते,
तो मारने का क्या अजधकार है?
प्रभु महावीर का सन्देश जजयो और जीने दो,
आजतशबाजी कहती है, मरो और मारने दो।
अपने नगर, प्रदेश, देश, जवश्व को स्वच्ि सन्ु दर, अच्िे से अच्िा
बनाने के जलये हमे सबके सार् जमलकर कायम करना होगा।
भगवान उनसे प्रेम करता है जो उनके उपदेशों का पालन करता है।
क्या भगवान ने पटािे फोडने का उपदेश जदया है?
जो गलती कर न सधु रे वह हैवान कहलाता है, जो गलती पर
गलती करे वह शैतान और जो गलती कर सधु र जावे वह इसं ान
कहलाता है और जो गलती ही न करे वह महान कहलाता है।
दीपावली एक पजवत्र त्योहार है,
पटािे फोडकर इसे अपजवत्र मत करो।
यह पृथ्वी सक्ष्ू म और बडे जीवों के कारण बनी हुई है,
अतः प्रत्येक प्राणी को जीने का अजधकार है।
यजद तमु स्वस्र्, सन्ु दर आनन्दमय सि ु ी जीवन जीना चाहते हो, तो अपने कायों
से जकसी भी जीव का घात न हो, ध्यान रिो।
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प्रत्येक जीवात्मा शजिरूप से समान है, इस प्रकृ जत में सभी का सहयोग,
सभी जीव जीना चाहते हैं और मरने से डरते हैं।
मैं मानता हूाँ तमु समझदार हो, पटािे फ़ोडकर भगवान को नाराज नहीं करोगे।

प्रातःकाल महावीर स्वामी मोक्ष गये


जशष्य गौतम गणधर ने
प्रभवु ाणी पर जवचार जकया
शभु कामनाओ ं से नहीं
शभु शद्ध ु पण्ु य कायम करने से
जीवन मंगलमय कल्याणमय बनता है
तब प्रभु आज्ञापालन में ऐसे दिजचि हुए जक
सायक ं ाल के वलज्ञान ज्योजत प्रगट हुई
प्रकाजशत हुआ जग मग सवमत्र
हजषमत देव मनष्ु यों ने
सवमज्ञ द्वय प्रभु की
के वलज्ञान ज्योजत के उपकारों के प्रजत
श्रद्धा भजि समपमण में
दीप माजलका प्रकाजशत कर बताया जगत को
ऐसा ज्ञान प्रकाश प्रगट करो
जो जमटाये सभी के अज्ञान अन्धकार
जो बताये सत्य अजहसं ा से
सि ु ी बने सारा ससं ार

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