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कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज

DVD Included
कला शिक्षा
इस प्रशिक्षण पैकेज के साथ सात मॉड्यूल हैं,
जो सात वीडियो फिल्मों और
पर प्रशिक्षण पैकेज

प्राथमिक शिक्षकों के लिए


चार स्लाइड शो के साथ हैं। प्राथमिक शिक्षकों के लिए
खंड I
मॉड्यूल–1 आइस ब्रेकर
मॉड्यूल–2 विद्यालय की दैनिक गतिविधियों में कला
मॉड्यूल–3 विधियाँ और सामग्री

(खंड II)
खंड II
मॉड्यूल–4 कला और कला शिक्षा
मॉड्यूल–5 कला का अन्य विषयों के साथ समेकन
मॉड्यूल–6 शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का
मॉड्यूल–7 कला में मलू ्यांकन
13183A
एन.सी.ई.आर.टी.

(खंड II)

ISBN 978-93-5292-107-2 (सेट)


978-93-5292-105-8 (खंड I)
978-93-5292-106-5 (खंड II)

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Training Package on Art Training Package on Art
Education — Vol. I Education — Vol. II
` 475.00 / pp.172 ` 475.00 / pp.370
Code — 13125 Code — 13126
ISBN — 978-93-5007-333-9 ISBN — 978-93-5007-334-6

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Joy of Theatre संगीत


` 210.00 / pp.181 ` 180.00 / पृष्‍ठ  48
Code — 13171 कोड  — 13173
ISBN — 978-93-5292-017-4 ISBN — 978-93-5292-020-4

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कला शिक्षा
पर प्रशिक्षण पैकेज
प्राथमिक शिक्षकों के लिए
(खंड II)
ISBN 978-93-5292-107-2 (सेट)
978-93-5292-105-8 (खंड I)
प्रथम सस्ं ‍करण 978-93-5292-106-5 (खंड II)
िदसंबर 2018 अग्रहायण 1940 सर्वािधकार सरु क्षित
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लोनी, िज़ला गािज़याबाद – 201 102 (उ.प्र.) द्वारा आवरण
मद्ु रित। बैन्‍यन ट्री
प्राक्‍कथन
प्रत्येक बच्चे के अधिगम और विकास के लिए कलाओ ं के महत्व के बारे में हमारे पास अथाह साहित्य उपलब्ध है।
चाहे शोधकर्ता हों, शिक्षाशास्‍त्री हों या तंत्रिका-विज्ञानी, सभी इस बात से सहमत हैं कि बच्चे के विकास को तेज़ करने
के लिए उसके मस्तिष्क को विभिन्न तरीकों से उद्दीपित करने की आवश्यकता होती है। विद्यमान शोध सझु ाते हैं कि
कोई भी कला-अनभु व मस्तिष्क और शरीर को पर्ण ू रूप से कार्यशील बनाने में योगदान देता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि
इसमें प्रत्येक बच्चे को बौद्धिक, सामाजिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से संलग्न करने की क्षमता होती है। प्रत्येक
विद्यार्थी के अधिगम और विकास के लिए कला-अनभु वों के महत्व को समझते हुए, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा – 2005
कक्षा 10 तक कला शिक्षा को एक अनिवार्य विषय के रूप में सम्मिलित किए जाने की सिफ़ारिश करती है। यह आगे
विस्तार से बताती है कि विद्यालय-प्राधिकारियों को यह व्यवहार में सनिश्‍चित
ु करना चाहिए कि कलाओ ं को पाठ्यचर्या में
महत्वपर्ण स्था
ू न दिया जाए, न कि उन्हें तथाकथित मनोरंजक या प्रतिष्‍ठा अर्जित करने वाली गतिविधियों मात्र तक सीमित
कर दिया जाए। विद्यार्थियों द्वारा कलाओ ं का अध्ययन करने के लिए विद्यालय न के वल अनमु ति दें, बल्कि उन्हें सक्रियता से
प्रोत्साहित भी करें । प्राथमिक स्तर पर कलाओ ं के माध्यम से शिक्षा के महत्व पर ध्यान कें द्रित करते हुए और इसे स्पष्‍ट करते
हुए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा – 2005 कहती है—‘स्व-अभिव्यक्‍ति, सृजनात्मकता, स्वतंत्रता की भावना और अतत ं :
मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के माध्यम के रूप में कला के प्रति हमारा परिचय होना चाहिए।’
कला शिक्षा की सिफ़ारिश एक पाठ्यचर्यात्मक क्षेत्र के रूप में किए जाने के बावज़द ू आमतौर पर यह देखने में आता
है कि प्राथमिक स्तर पर स्थितियों में अधिक बदलाव नहीं हुआ है। कला शिक्षा के महत्व के विस्तार और क्षेत्र के बारे में
शिक्षक कदाचित् अभी भी परू ी तरह तैयार नहीं हैं, प्राय: अनभिज्ञ हैं और अधिकतर अँधरे े में हैं। वे प्राय: इस प्रकार के प्रश्‍न
पछू ते हैं—क्या कलाओ ं को पाठ्यचर्या के साथ एक पद्धति के रूप में समावेशित किया जाए या इसे पाठ्यचर्या के एक
अलग क्षेत्र के रूप में होना चाहिए? कलाओ ं की शिक्षा सामान्य शिक्षकों द्वारा दी जाए या के वल कला-शिक्षकों द्वारा? क्या
कला का मल्यां ू कन किया जा सकता है? हम क्रियाकलापों के लिए सामग्री कै से प्राप्‍त करें ? यदि मैं स्वयं एक कलाकार नहीं
हू त
ँ ो मैं कलाओ ं की शिक्षा कै से दे सकता हू?ँ मैं विषयों को पढ़ाते हुए चार्ट, पेंटिंग, मॉडल आदि का उपयोग करता हू।ँ क्या
इसे ‘कला समेकित अधिगम’ के अतर्गत ं रखा जा सकता है? आदि। यहाँ इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि यही शिक्षक
अन्य विषयों, जैसे—भाषाएँ, गणित, पर्यावरण अध्ययन आदि को पढ़ाते हुए इस प्रकार के प्रश्‍नों को पछू ने की आवश्यकता
का अनभु व नहीं करते। संभवत: कला शिक्षा में उन्हें जिस बात की चितं ा सर्वाधिक रहती है, वह है — स्वयं कला की एक
विषय के रूप में जानकारी का अभाव। कला शिक्षा की वह अवधारणा, जिसमें दृश्य और प्रदर्शन कलाओ ं की सपं र्ण ू श्रेणी
सम्मिलित है, और कलाओ ं के माध्यम से सीखना, सभं वत: उनमें से अधिकतर के लिए अपने-आप में नयी अवधारणा है।
‘प्राथमिक शिक्षकों के लिए कला शिक्षा संबंधी प्रशिक्षण पैकेज’ कलाओ ं के माध्यम से शिक्षण और कलाओ ं
में शिक्षा को बढ़ावा देने का एक प्रयास है। इसमें इस स्तर विशेष (प्राथमिक स्तर) के शिक्षकों और अभिभावकों द्वारा
उठाए जाने वाले अधिकतर प्रश्‍नों के उत्तर समाहित हैं। इसके प्रत्येक माॅड्यल ू के ‘दसू रे भाग’ में वास्तविक कक्षाओ ं के
उदाहरणों के माध्यम से अवधारणाओ,ं विधियों, सामग्री और मल्यां ू कन को सनिय ु ोजित तरीके से स्पष्‍ट किया गया है।
प्रत्येक माॅड्यलू के ‘पहले भाग’ में दिए गए सवु ्यवस्थित प्रशिक्षण-निर्देशों और अभ्यासों के माध्यम से यह पैकेज कला
और ‘कला समेकित अधिगम’ के बारे में व्यावहारिक अनभु व (hands-on-experience) उपलब्ध कराता है। इस
प्रशिक्षण पैकेज की गणु वत्ता में वद्धि
ृ करते हुए, इसमें वीडियो फ़िल्में और ‘स्लाइड-शो’ प्रशिक्षण-डिज़ाइन के भाग के
रूप में सम्मिलित हैं। प्रशिक्षण का डिज़ाइन अपनी प्रकृ ति में सहभागी है। यह व्यावहारिक अनभु वों और अभ्यास सत्रों
(माॅक सेशन) के लिए स्थान उपलब्ध कराता है।
प्रोफ़ेसर पवन सधु ीर, कला और सौंदर्यबोध विभाग, के मार्गदर्शन में कला शिक्षा के क्षेत्र से जड़ु े विशेषज्ञों और
शिक्षकों की सहायता से विकसित इस प्रशिक्षण पैकेज की संकल्पना के लिए समस्त कला और सौंदर्यबोध शिक्षा विभाग,
रा.शै.अ.प्र.प., नयी दिल्ली, आभार और सराहना का पात्र है। यह सामग्री इस दृष्‍टिकोण के साथ तैयार की गई है कि कला
की पाठ्यचर्या को आसानी और उपयक्ु ‍तता के साथ लाग किय ू ा जा सके ।
हमें परू ा विश्‍वास है कि इस पैकेज पर आधारित प्रशिक्षण, कला शिक्षा और कलाओ ं के द्वारा शिक्षा की
अवधारणा को समझने में शिक्षकों की सहायता करें गे तथा वे प्रशिक्षण बच्चों की कलात्मक अभिव्यक्‍तियों और
सांस्कृ तिक संसाधनों को सीखने के औज़ार के रूप में उपयोग करने में सहायता करें गे। इस दस्तावेज़ में सधु ार के लिए हम
प्रतिपष्‍टि
ु का स्वागत करते हैं।

�षिके श सेनापति
नयी दिल्ली निदश
े क
जलु ाई, 2018 राष्‍ट�ीय शैक्षिक अनसु धं ान और प्रशिक्षण परिषद्

iv
पैकेज पर एक नज़र

‘प्राथमिक शिक्षकों के लिए कला शिक्षा संबंधी प्रशिक्षण पैकेजʼ आवश्यकता-आधारित प्रशिक्षण संदर्शिका है। इसमें बच्चों
की आवश्यकताओ ं को समझने, लक्ष्यों और उद्देश्यों को निर्धारित करने, ‘कला समेकित अधिगमʼ (Art Integrated
Learning) के अनसु ार इन आवश्यकताओ ं को परू ा करने हेत य ु ोजना (strategies) बनाने के लिए एक व्यवस्थित पद्धति
का समावेश किया गया है।
अवधारणाओ ं और कौशलों की बेहतर समझ के लिए दो खडं ों में दिए गए इन मॉड्यल ू को क्रमानसु ार देखने की
आवश्यकता है, अर्थात् ‘खड ं II’ के मॉड्यलू 4, 5, 6 और 7 के पहले ‘खड ं I’ के मॉड्यल
ू 1, 2 और 3 को परू ा किया
जाना चाहिए।

परिचय
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा, 2005 की संकल्पनाओ ं के अनरू ु प विद्यालयों में कला शिक्षा के क्रियान्वयन के साथ
हमारा प्रयास विद्यालयों में कला शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाना रहा है। ऐसा करने में, कला के द्वारा बच्चों के संज्ञानात्मक,
मनोगत्यात्मक और भावनात्मक विकास की मज़बतू ी के लिए हमने लगातार पारंपरिक वर्तमान चलन को चनु ौती दी है।
वर्तमान परिस्थितियों में कई बार ऐसा पाया जाता है कि ‘कला में शिक्षाʼ का कार्य सपं र्ण ू पाठ्यचर्या के सौंदर्य को बढ़ाना भर
रह जाता है। व्यापक शोधों पर आधारित यह सर्वविदित तथ्य है कि कलाओ ं (दृश्य कला, संगीत, नृत्य, नाटक) के माध्यम
से शिक्षा, लीक से हटकर सोचने को प्रोत्साहित करती है और समस्या-समाधान के कौशलों को बढ़ाती है, इसलिए यह
बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह महत्वपर्ण ू है कि कला के माध्यम से सर्वोत्तम शिक्षा तक सभी
बच्चों की पहुचँ है। हालाँकि बहुत हद तक, इस महत्वपर्ण ू कार्यक्रम की सफलता उन शिक्षकों पर निर्भर करती है िजन पर
इनके सगु मीकरण का दायित्‍व है। यह सफलता उनकी सहभागिता तथा विषय-वस्तु के प्रति उनकी सहजता के स्तर पर निर्भर
करती है, क्योंकि हो सकता है कि उन्हें विषय-वस्तु, इसकी प्रकृ ति और अवधारणाओ ं के बारे में अपनी स्पष्‍टता पर संदहे
हो। प्राथमिक स्तर पर यह और भी महत्वपर्ण ू हो जाता है, जहाँ अधिकांश विद्यालयों में सामान्य शिक्षक ही कला शिक्षा दे
रहे हैं। कई शिक्षक कला के माध्यम से पढ़ाने में झिझक सकते हैं, इसलिए इनका इन समचित शि ु क्षण-अधिगम पद्धतियों
काे समझना और भी महत्‍वपर्ण ू हो जाता है। यदि शिक्षकों को कला के माध्यम से शिक्षण में अपनी भमि ू का को प्रभावकारी
ढंग से परू ा करना है तो यह भी अति महत्वपर्ण ू है कि उन्हें अच्छी गणु वत्ता वाली निर्देशात्मक एवं सदर्भं -सामग्री उपलब्ध
करायी जानी चाहिए।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा, 2005 की अनश ु सं ाओ ं को लागू करने हेतु ‘कला एवं सौंदर्यबोध शिक्षा विभाग,
रा.शै.अ.प्र.प.ʼ ने शिक्षकों के लिए सामग्री उपलब्ध कराने एवं संसाधन तैयार करने के लिए कुछ महत्वपर्ण ू कार्य शरू

किए हैं, जैसे—‘कला शिक्षा का विस्तृत पाठ्यक्रमʼ और ‘कक्षा 1–5 के आकलन के लिए सोर्स बक ु ’ का विकास करना।
हालाँकि अभी भी कक्षा 1–5 के शिक्षकों के लिए एक विषय के रूप में कला शिक्षा और ‘कला के अन्य विद्यालयी विषयों
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

से समेकनʼ हेतु कोई सामग्री उपलब्ध नहीं है। चकि य


ँू े शिक्षक सभी विषयों को पढ़ाने वाले सामान्य शिक्षक हैं, इसलिए यह
तथ्य भी इनके विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता को रे खांकित करता है। विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता इसलिए भी है
ताकि उन्हें कार्य-पद्धति से अच्छी तरह परिचित कराया जा सके और उनमें आत्मविश्‍वास जगाया जा सके । इससे वे ‘कलाओ ं
के माध्यम से सीखने’ और ‘कलाओ ं में सीखनेʼ को सगु म करने में सक्षम हो सकें गे। इसके अतिरिक्‍त, लचीले पाठ्यक्रम
और विद्यालयी शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर कला शिक्षा की पाठ्यपस्त ु कों की अनपु लब्धता ने, कला शिक्षा में शिक्षकों के
प्रशिक्षण और हैंड-होल्डिंग को एक ऐसा महत्त्वपर्ण क्षेत्र
ू बना दिया है जिस पर ध्यान कें द्रित करने की आवश्यकता है।
अतः सदर्भ
ं सामग्री के साथ प्राथमिक शिक्षकों के प्रशिक्षण हेतु कला शिक्षा सबं ंधी, आवश्यकता-आधारित प्रशिक्षण
पैकेज का विकास वर्तमान समय की माँग बन गई है।

पैकेज के उद्देश्य
यह प्रशिक्षण पैकेज आरंभिक शिक्षा में कला के प्रोत्साहन एवं कार्यान्वयन के लिए तथा प्रत्येक बच्चे के समग्र अधिगम
एवं विकास के लिए गणु वत्तापर्ण शिक्षा
ू प्रदान करने हेतु राज्यों की क्षमता निर्माण के लिए है। इस प्रकार, हम ‘शिक्षा का
अधिकारʼ के लक्ष्यों को प्राप्‍त करने की दिशा में कार्य कर सकेंे गे।
कला शिक्षा में इस पैकेज के प्रशिक्षण के माध्यम से शिक्षक—
yy ‘कला शिक्षाʼ को एक पाठ्यचर्यात्मक क्षेत्र (curricular area) और ‘कलाʼ को शिक्षा के आधार के रूप में समझ
सकें गे। यह प्रशिक्षण बहुआयामी सोच को बढ़ावा देगा और इस प्रकार ‘लीक से हटकरʼ सोचने को प्रोत्साहित करे गा।
इससे किसी समस्या के विविध समाधान खोजने को भी बढ़ावा मिलेगा। कला को शिक्षा का आधार बनाना, बच्चों
को सक्रिय शिक्षार्थी बनाएगा और उनकी सज्ं ञानात्मक योग्यताओ ं को बेहतर करे गा। इस प्रकार, पाठ्यक्रम के हर क्षेत्र
में विषय-वस्तु को समझने और उसके समावेशन में ‘कलाʼ सहायता कर सके गी।
yy प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर पर कला के विभिन्न रूपों (art forms) का समेकन अन्य विषयों से कर सकें गे।
पैकेज विभिन्न विषयों को विभिन्न कला विधाओ,ं जैसे—सगं ीत, नृत्य, नाटक, चित्रकारी, पेंटिंग, मॉडलिंग, निर्माण,
दस्तकारी, डिज़ाइन आदि के समेकन से (जोड़कर) अधिक प्रभावकारी ढंग से शिक्षण के रास्ते सझु ाएगा। पैकेज में कई
गतिविधियाँ इस प्रकार तैयार की गई हैं जो शिक्षकों के आत्मविश्‍वास को बढ़ाने और उनके दिन-प्रतिदिन के शिक्षण
में कला के समेकन की उनकी योजनाओ ं (strategies) को विकसित करने में सहायक होंगी।
yy एक ‘विषय’ के रूप में कला शिक्षा और ‘अधिगम की प्रक्रियाʼ के रूप में कला शिक्षा के अतं र को स्पष्‍ट कर सकें गे।
कला के माध्यम से सीखने-सिखाने से कौशलों और समझ के विकास में सहायता मिलेगी। इससे विषयों को मज़ेदार
बनाने के साथ ही उनकी जटिल अवधारणाओ ं को स्पष्‍ट करने में भी सहायता मिलेगी। वहीं, कला शिक्षा कलाओ ं की
सराहना करने पर कें द्रित है।

vi
पैकेज पर एक नज़र

yy प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर के बच्चों में कलात्मक विकास को समझने की क्षमता का विकास कर सकें गे। बच्चों
में कलात्मक विकास के स्तरों के बारे में प्रतिभागियों को बताना इस पैकेज का उद्देश्य है। यह ज्ञान शिक्षकों को उनकी
कक्षाओ ं के लिए आयु अनसु ार गतिविधियों की योजना बनाने और उनके कार्यान्वयन में सहायक िसद्ध होगा। इससे
यह भी सनिश्‍चित
ु होगा कि शिक्षक अपनी कक्षा के िलए जो गतिविधियाँ बना रहे हैं, वे उनकी कक्षाओ ं के बच्‍चों के
आय-ु वर्ग के िलए न तो बहुत आसान हों और न ही अधिक चनु ौतीपर्णू । शिक्षक अपनी पद्धति को बच्चों की योग्यता से
जोड़ सकें गे। इस तरह वे बाल-कें द्रित पद्धति (child-centred approach) अपना सकें गे।
yy कला के विभिन्न रूपों के शिक्षण-अधिगम को कक्षा में कार्यान्वित कर सकें गे। मल ू भत किन्‍तु विस्तृत
ू कौशल और
जानकारी से यक्ु ‍त शिक्षक कक्षा-शिक्षण में विभिन्न कला-रूपों का प्रयोग करने का आत्मविश्‍वास विकसित करें गे, भले
ही किसी कला-विशेष में उन्होंने पहले से कोई प्रशिक्षण प्राप्‍त न कर रखा हो।
yy शिक्षा में संग्रहालयों की भमि ू का और महत्व की व्याख्या कर सकें गे। विद्यालय में संग्रहालय संबंधी
गतिविधियों की योजना प्रारंभ और आयोजित कर सकें गे। वे संग्रहालयों में रखी वस्तुओ ं के प्रत्यक्ष अनभु वों और
पाठ्यचर्या की विषय-वस्तु को आपस में जोड़ने के दृष्‍टिकोण से स्थानीय समदु ायों और संग्रहालयों का अन्वेषण कर
सकें गे। वे समझ सकें गे कि किस प्रकार इन वस्तुओ ं के साथ गतिविधियों का विकास किया जाए ताकि बच्चे उनसे
व्यक्‍तिगत स्तर पर जड़ ु सकें । संग्रहालय में आयोजित गतिविधियाँ बच्चों को वस्तुओ ं पर ध्यान कें द्रित करने, उन्हें
नज़दीक से दख े ने और अधिगम को एक सार्थक अनभु व बनाने में सहायता करें गी।
yy प्राथमिक स्तर की शिक्षा में कला शिक्षा की आवश्यकता और इसके महत्व की व्याख्या कर सकें गे। ‘कला समेकित
अधिगमʼ में गणु वत्तापर्ण शिक्षा
ू प्रदान करना तब तक संभव नहीं होगा, जब तक कि इसकी प्रभावशीलता के प्रति परू ी
तरह जड़ु ाव और भरोसा न हो। इस पैकेज के क्रियान्वयन से प्रत्येक बच्चे के समग्र अधिगम और विकास के लिए शिक्षक
‘कला समेकित अधिगमʼ की आवश्यकता और इसकी व्यापकता को समझ सकें गे। वे इस प्रकार की शिक्षा के महत्व
पर अपने विचार रख सकें गे और अपनी शिक्षण-पद्धतियों (विधियों) की पनु र्र चना कर सकें गे।
yy िवषय सबं ंधी जानकारी, जोिक ‘अकसर पछू े जाने वाले प्रश्‍नों’ (Frequently Asked Questions) और वीडियो
फ़िल्म के रूप में उपलब्‍ध है, को उचित सदर्भ ं के िलए आसानी से प्राप्‍त कर सकें गे। विशेषज्ञों और प्राथमिक शिक्षकों
के परामर्श द्वारा इस पैकेज के साथ ‘अकसर पछू े जाने वाले प्रश्‍न’ दिए गए हैं। कला के माध्यम से शिक्षण और समझ के
बारे में शिक्षक आत्मविश्‍वास का अनभु व करें गे।
yy समझा सकें गे कि अधिगम के इस स्तर पर अवलोकन, अन्वेषण, प्रयोग और अभिव्यक्‍ति की प्रक्रिया अति महत्वपर्ण ू
है। वे ‘उत्पादʼ की अपेक्षा ‘प्रक्रियाʼ को महत्व दे सकें गे और इस प्रकार दिए गए दिशानिर्देशों के अनरू ु प बच्चों का
मल्यां
ू कन कर सकें गे।

vii
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

पैकेज विकास के लिए


अपनायी गयी प्रक्रिया
yy फ़ोकस समहू चर्चा के द्वारा शिक्षकों और शिक्षक-अध्यापकों (Teacher-Educators) की आवश्यकताओ ं
का विश्‍लेषण।
yy प्रशिक्षण पैकेज और मॉड्यल ू की रूपरे खा।
yy पैकेज का विकास— (i) विषय-वस्तु विकास; (ii) वीडियो निर्माण; और (iii) सगु मीकरण कौशलों पर मास्‍टर ट्रेनर्स
हेत दि
ु शा-निर्देश।
yy मॉड्यल ू का क्षेत्र परीक्षण— (i) पैकेज की प्रभावशीलता को परखने के लिए परू ्व/पश्‍चात् परीक्षणों का विकास; तथा
(ii) क्षेत्र परीक्षण के लिए प्रतिपष्‍टि प्रा
ु रूप का विकास।
yy पैकेज को अतं िम रूप देना।

पैकेज का प्रारूप
पैकेज में ‘मास्‍टर ट्रेनर्स के सगु मीकरण कौशल सबं ंधी दिशानिर्देशʼ और सात मॉड्यल ू हैं। प्रशिक्षण की अवधि 10 दिनों की
है। प्रत्येक मॉड्यल ू अपने आप में स्वतंत्र और पर्ण
ू है। सात मॉड्यलू निम्नलिखित हैं—
1. आइस-ब्रेकर
2. विद्यालय की दैनिक गतिविधियों में कला
3. विधियाँ अौर सामग्री
4. कला और कला शिक्षा
5. अन्य विषयों के साथ कलाओ ं का समेकन
6. िशक्षा में सग्रं हालय की भमि ू का
7. कला में मल्यां
ू कन
आइस-ब्रेकर— यह आनंदपर्ण ू और सार्थक अधिगम हेत मित्रत
ु ापर्ण व
ू ातावरण तैयार करने के लिए की जाने वाली
गतिविधि है। इस मॉड्यल ू में आइस-ब्रेकर का उपयोग, आइस-ब्रेकर के प्रयोग के तरीके और साथ ही पाठों की शरू ु आत
करने के लिए उनके अपने आइस-ब्रेकर बनाने के बारे में शिक्षकों को जानकारी दी गई है। मॉड्यल ू की शरू
ु आत एक
आइस-ब्रेकर गतिविधि से होती है, जो प्रतिभागियों को अपनी झिझक को दरू करने में सहायता करती है। इससे वे कार्य
के लिए मानसिक रूप से तैयार हो जाते हैं। इसके बाद की गतिविधियाँ, प्रतिभागियों को उनकी कक्षाओ ं में आइस-ब्रेकर
के उपयोग के प्रति जागरूक बनाती हैं। इसके बाद प्रतिभागियों से उनके अपने आइस-ब्रेकर विकसित करने को कहा गया
है। प्रतिभागियों द्वारा दिनभर की गतिविधियों के पनु र्क थन और प्रतिपष्‍टि
ु (feedback) के साथ सत्र का समापन होता है।

viii
पैकेज पर एक नज़र

विद्यालय की दैनिक गतिविधियों में कला— प्रत्येक विद्यालय चेतना सत्र, परु स्कार वितरण आदि जैसी कई
गतिविधियाँ प्रतिदिन आयोजित करता है। यह मॉड्यल ू शिक्षकों से विद्यालय की इन दैनिक गतिविधियों में कला एवं
सौंदर्यबोध को जोड़ने के अवसर खोजने के लिए कहता है।
यह मॉड्यलू एक आइस-ब्रेकर से शरू ु होता है जिसमें प्रतिभागियों से उनको अपना पहचान-पत्र बनाने के लिए कहा
गया है। प्रतिभागी अगली कुछ गतिविधियों में कार्यक्रम प्रबंधक के रूप में बदल जाते हैं और उनके विद्यालयों में नियमित
रूप से होने वाली गतिविधियों के लिए कार्यक्रम तैयार करते हैं। अतं र यह है कि इस बार प्रतिभागी सप्रयास इन गतिविधियों
में कलाओ ं के स्थान खोजते हैं और बनाते हैं। ‘बोल फटाफट’ के द्वारा वे इन गतिविधियों पर चितं न करते हैं। विद्यालयी
परिस्थितियों में कला कब-कब शामिल की जा सकती है, इसके समय और स्थानों पर भी विचार मथं न करते हैं। ‘हर दिवस
कला दिवसʼ फ़िल्म देखने के साथ ही प्रतिभागी, दिनभर की गतिविधियों के पनु र्क थन के बाद प्रतिपष्‍टि ु के साथ सत्र का
समापन करते हैं।
विधियाँ एवं सामग्री— यह मॉड्यल ू प्रतिभागियों को विभिन्न कला रूपों में प्रयक्ु ‍त सामग्रियों एवं विधियों से परिचित
कराता है। प्रस्तुत मॉड्यलू प्रतिभागियों को कला के विविध रूपों में उपयोग की जाने वाली विधियों एवं सामग्रियों से
परिचित कराता है। इसमें स्वयं करके देखने/करने के तरीके का उपयोग किया गया है। यहाँ प्रतिभागियों को दृश्य एवं
प्रदर्शन दोनों ही कलाओ ं से संबंधित विभिन्न कला अनभु व दिए गए हैं, जिससे प्रतिभागी आवश्यक कौशलों को
विकसित कर सकें ।
इस मॉड्यल ू को दो भागों में बाँटा गया है—पहला भाग दृश्य कला और दसू रा भाग प्रदर्शन कला से संबंधित है।
आरंभिक आइस-ब्रेकर गतिविधियों के बाद प्रतिभागियों को विभिन्न समहू ों, जैसे—मर्ति ू कार, पेंटर, छपाई करने वाले आदि
में बाँटकर दी गई सामग्रियों के साथ विविध कलाकृ तियों को बनाने का अवसर दिया जाएगा। इसके बाद सभी समहू ों के
सदस्य एक-दसू रे के कार्यों का अवलोकन करके उनसे अनभु व प्राप्‍त कर सकें गे। प्रतिभागियों को विधियों और सामग्रियों
से सबं ंधित एक स्लाइड-शो भी दिखाया जाएगा ताकि वे दृश्य कला में प्रयक्ु ‍त विधियों को समझ सकें । उन्हें ‘बिल्ली का
पंजाʼ फ़िल्म भी दिखाई जाएगी। यह फ़िल्म इस बात पर ज़ोर देती है कि बच्‍चे स्‍वभाव से ही िजज्ञासु होते हैं अौर प्रत्‍येक
चीज को बहुत ध्‍यान से दख े ते हैं। इसी कारण वे सामग्री के साथ भी प्रयोग करना पसंद करते हैं। प्रशिक्षण दिवस का समापन
उस दिन की गतिविधियों में पनु र्क थन और प्रतिपष्‍टि ु के साथ होगा।
कला और कला शिक्षा— यह मॉड्यल ू विभिन्न सृजनात्मक अभ्यासों के माध्यम से प्रतिभागियों को बच्चों में होने
वाले कलात्मक विकास के बारे में परिचित करवाता है। साथ ही यह कला और कला शिक्षा की अवधारणाओ ं को भी
स्पष्‍ट करता है। आरंभिक आइस-ब्रेकर गतिविधि के बाद एक कला गतिविधि आयोजित की जाएगी। इस गतिविधि में
प्रतिभागियों को अपने इच्छित कला माध्यम के द्वारा स्वयं को अभिव्यक्‍त करने हेत प्रो ु त्साहित किया जाएगा। इसके बाद
‘वाद-विवाद’ गतिविधि का आयोजन किया जाएगा जिसमें प्रतिभागी ‘कला के माध्यम से अध्यापन के महत्व’ और
व्यवहार्यता पर अपने तर्क प्रस्तुत करें गे। तत्पश्‍चात् कला िशक्षा पर फिल्में—‘देयर इज नो ग्रास इन द स्काइ’, ‘आर्ट : अ
ब्रेन डेवलपर’, ‘आर्ट : बेसिस ऑफ एडुकेशन’ िदखायी जाएँगी और ‘चिल्ड्रेंस आर्टिस्टिक डेवलपमेंट’ पर एक स्‍लाइड
शो प्रदर्शित किया जाएगा। पनु र्क थन और प्रतिपष्‍टि
ु के साथ दिन का समापन किया जाएगा।
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन— यह मॉड्यल ू प्रतिभागियों को अवसर प्रदान करता है कि वे पाठ्यचर्या के
कें द्र में कला को रखते हुए सीखने-सिखाने के लिए स्वयं को तैयार कर सकें । अभ्यास प्रतिभागियों को यह अवसर प्रदान
करते हैं कि वे पाठ्यचर्या के उन बिंदओ ु ं की पहचान कर सकें , जिन्हें बच्चों के कला अनभु वों से जोड़ा जा सकता है।

ix
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

इस सत्र की शरू ु आत आइस-ब्रेकर से होगी। इसके बाद एक गतिविधि की जाएगी जिसमें प्रतिभागियों को समहू ों
में बाँटा जाएगा। प्रदर्शित करने के लिए प्रत्येक समहू को एक स्थिति दी जाएगी। वे इसमें सम्मिलित कला के तत्वों की
पहचान करें गे। वे इस गतिविधि और पाठ्यचर्या के बीच के जड़ु ाव की भी जाँच करें गे। इसे अन्य समहू ों के साथ साझा किया
जाएगा। प्रतिभागी कला समेकन पर फ़िल्म तथा कला के समेकन से संबंधित परियोजनाओ ं के बारे में स्लाइड शो भी देखगें े।
प्रतिभागियों द्वारा माॅक सत्र (mock session), िजसका अर्थ है स्‍वयं करके देखना, उन्‍हें प्रशिक्षण के व्‍यावहािरक पक्ष को
समझने में सहायक होगा। सत्र का समापन उस दिन की गतिविधियों से सबं ंधित पनु र्क थन और प्रतिपष्‍टि ु से किया जाएगा।
शिक्षा में सग्रं हालय की भूमिका— सग्रं हालय में प्रदर्शन के लिए रखी गई वस्तुएँ सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को बढ़ाने में
किस प्रकार से सक्रिय भमि ू का निभा सकती हैं, यह समझने के लिए प्रतिभागी संग्रहालयों का भ्रमण करें गे। वे संग्रहालय के
संग्रहों को कें द्र में रखते हुए वर्क शीट एवं अन्य गतिविधियाँ बनाएँगे। प्रतिभागियों को स्थानीय संग्रहालय में ले जाया जाएगा।
संग्रहालय नहीं होने की स्थिति में प्रशिक्षण स्थान पर ही कुछ कलाकृ तियों की व्यवस्था की जाएगी। प्रतिभागियों को ‘बोल
फटाफटʼ (rapid fire) प्रश्‍न चक्र के माध्यम से इन कलाकृ तियों के बारे में प्रतिक्रिया देने के लिए कहा जाएगा। इसके बाद
प्रतिभागियों को सग्रं हालय के किसी सग्रं ह पर 20–25 गतिविधियाँ बनाने हेतु कहा जाएगा। प्रतिभािगयों को वर्क शीट की
अवधारणा से परिचित कराकर उन्‍हें अपनी कुछ गतिविधियों को इस िवधि से िडज़ाइन करने को कहा जाएगा। वे ‘आर्ट
इन इडिय ं ा (एप्रीसिएशन ऑफ़ इडिय ं न आट्सर्)ʼ पर एक स्लाइड शो भी देखगें े जिससे उनमें कला के प्रति एक गहरी समझ
बनेगी। अत ं में उन्हें किसी संग्रहालय की स्थापना पर सझु ाव देने और इसकी प्रासंगिता के कारणों को बताने के लिए कहा
जाएगा। सत्र का समापन पनु र्क थन और प्रतिपष्‍टि ु के साथ किया जाएगा।
कला में मूल्यांकन— यह मॉड्यल ू शिक्षकों को कला-आधारित गतिविधि में सीखने की प्रक्रिया के मल्यां ू कन हेत विभिन्न

विधियों से परिचित कराता है। यह शिक्षण की नयी विधियों से अवगत कराता है और मल्यां ू कन में ‘क्या करें ʼ और ‘क्या न
करें ʼ के बारे में सझु ाता है। सत्र की शरू ु आत आइस-ब्रेकर से होती है। प्रतिभागी पिछले दिनों में एकत्रित किए गए प्रतिपष्‍टि

प्रपत्रों का अवलोकन करें गे तथा ‘पहले मैं’ प्रश्‍न चक्र (Buzzer Round) में उस पर संक्षिप्‍त चर्चा करें गे। इस गतिविधि से
प्राप्‍त निष्कर्षों के साथ प्रतिभागी अगले चक्र में पहुचँ गें े, जहाँ वे बताएगं े कि उनके विचार से ‘कला समेकित अधिगमʼ में
मल्यां
ू कन में क्या करना चाहिए (do’s) और क्या नहीं करना चाहिए (don’ts)। अत ं में, प्रतिभागी एक ‘अधिगम वृक्षʼ
बनाएँगे। इस वृक्ष के रूपक के माध्यम से वे इस प्रक्रिया के लाभ और हानियों का आकलन करें गे। सभी समहू प्रदर्शित कार्यों
को एक-दसू रे से सीखने की भावना से दख े गें े।

x
पैकेज पर एक नज़र

मॉड्यूल डिज़ाइन
प्रत्येक मॉड्यल
ू को दो भागों में बाँटा गया है—
पहला भाग
पहला भाग प्रशिक्षण कार्यक्रम के व्यावहारिक पहलू से संबंधित है। इसमें मास्‍टर ट्रेनर्स द्वारा प्रशिक्षण सत्र के संचालन
एवं सगु मीकरण सबं ंधी विस्तृत विवरण दिए गए हैं। प्रत्येक मॉड्यल ू की अपेक्षा है कि शिक्षक सबं ंधित मॉड्यल ू की
अवधारणाओ ं को आत्मसात् करें । प्रत्येक मॉड्यल ू अलग-अलग तरीकों से सोचने (divergent thinking) तथा प्रयोग
एवं खोजबीन करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसमें मास्‍टर ट्रेनर्स को इस प्रशिक्षण पैकेज को परू े आत्मविश्‍वास और
प्रभावी ढंग से अपनी कक्षाओ ं में लागू करने के लिए साधन मिल जाते हैं।
प्रत्येक मॉड्यल
ू एक आइस-ब्रेकर से आरंभ होता है, जो प्रतिदिन वातावरण निर्माण के दृष्‍टिकोण से अत्यंत महत्वपर्ण ू
है। इसके बाद विभिन्न गतिविधियाँ उनके लिए निर्धारित किए गए समय के अनसु ार संचालित होती हैं। प्रतिपष्‍टि ु और मख्य ु
संदशे ों के साथ मॉड्यल ू का समापन होता है। इससे मॉड्यल ू में आई अवधारणाओ ं का पनु र्बलन होता है। इस तरह मॉड्यल ू
के पहले भाग में सम्मिलित हैं—
yy मॉड्यूल का परिचय— यह भाग किसी मॉडयल ू विशेष के बारे में संक्षिप्‍त विवरण देता है।
yy मॉड्यूल के उद्देश्य— प्रत्येक मॉड्यल ू के विशिष्‍ट उद्देश्य दिए गए हैं। ये उद्देश्य मास्‍टर ट्रेनर्स का इस मॉड्यल ू की
अपेक्षाओ ं और सम्प्राप्‍तियों के बारे में मार्गदर्शन करते हैं।
yy प्रत्येक गतिविधि हेतु दिया गया समय— प्रत्येक गतिविधि में लगने वाला समय दिया गया है। इससे प्रशिक्षण के
दौरान मख्य
ु प्रशिक्षक का अपने लक्ष्यों में भटकाव नहीं हो पाता और वे समय का प्रभावी प्रबंधन भी कर पाते हैं।
yy सगु मीकरण हेतु सझ ु ाई गइ� विधियाँ— इस पैकेज में आइस-ब्रेकर, बोल फटाफट, फ़िल्मों और वीडियो क्लिपों का
अवलोकन, पहले मैं, समहू चर्चा और समहू कार्य की प्रस्तुति, मानस मथं न, वी.आई.पी.पी., पी.एम.आई, स्लाइड शो,
करके देखें और सगु मकर्ता हेत निर्
ु श दे जैसी विभिन्न सगु मीकरण विधियों का उपयोग किया गया है। प्रत्येक मॉड्यल ू में
आवश्यकतानसु ार और उपयक्ु ‍ततानसु ार इनमें से कुछ विधियों का उपयोग किया गया है।
इस तरह प्रत्येक मॉड्यल
ू का डिज़ाइन इस प्रकार किया गया है कि शिक्षक उन विषयों को पढ़ाने में अपनी शक ं ाओ ं
को दरू कर सकें जो अब तक उनकी पहुचँ से दरू थे। करके देखो सत्र (मॉक सेशन) शिक्षकों को अन्य शिक्षकों के साथ
अपने पाठों की तैयारी को जाँचने का अवसर देता है।
दूसरा भाग
प्रत्येक मॉड्यल ू का दसू रा भाग सैद्धांतिक आधार से सबं ंधित है, जिसकी ज़रूरत शिक्षकों/सगु मकर्ताओ ं को मॉड्यल ू के
पहले भाग को संचालित करने में होती है। इसमें शामिल हैं—
yy ‘अकसर पूछे जाने वाले प्रश्‍न’ (FAQs)— ‘अकसर पछू े जाने वाले प्रश्‍नाें’ का उद्देश्य कक्षाओ ं में कला समेकित
विधियों के कार्यान्वयन के समय शिक्षकों के मन में उठने वाले सवालों का उत्तर देना है। इसमें दी गई सामग्री में
नीति-संबंधी दस्तावेज़ों के संदर्भ, विषयों से संबंधित साहित्य (सामग्री) तथा कला और शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों के
अनभु वों को शामिल किया गया है। हो सकता है कि इस भाग में दी गई सचू नाएँ बहुत विस्तृत न हों, लेकिन हम आशा
करते हैं कि प्राथमिक स्तर के शिक्षकों के लिए अपने पाठों का प्रभावी संचालन करने के लिए ये पर्याप्‍त होंगी। शिक्षकों

xi
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

से आशा की जाती है कि वे उत्साह के साथ शोध और पाठ्यचर्या को समृद्ध करने की भावना से प्रेरित होकर अपने
ज्ञान-पटल का विस्तार करें गे।
yy कार्य-क्षेत्रों के लिए प्रकरण अध्‍ययन— िकसी-िकसी मॉड्यूल में िकन्‍हीं अवधारणाओ ं को समझाने के िलए
िवद्यालयों के प्रकरण अध्‍ययन (के स स्‍टडीज़) िदये गये हैं। कला शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने वाले शिक्षकों/
सगु मकर्ताओ ं के अनुभवों और प्रसंगों के माध्यम से ये ‘कला में शिक्षा’ और ‘कलाओ ं के द्वारा शिक्षा’ के बारे में
स्पष्‍ट समझ उपलब्ध कराते हैं।
साथ ही, इस पैकेज में शामिल हैं—
yy सदं र्भ, अध्ययन एवं अवलोकन सबं ंधी सझ ु ाव— इस विषय की आगे की खोजबीन करने और स्व-अधिगम के
लिए इन संदर्भों का उपयोग किया जा सकता है। यहाँ िदए गए वेबसाइट लिंक के माध्यम से सगु मकर्ता और शिक्षक
आसानी से कक्ष-प्रक्रियाओ,ं के स स्टडीज सबं ंधी उदाहरणों, कार्यरत शिक्षकों एव वि ं शेषज्ञों के दृष्‍टिकोण एव वि
ं चारों
से अवगत हो सकें गे।
कला एवं सौंदर्यबोध िशक्षा िवभाग (डी.ई.ए.ए.) ने िवशेषज्ञों के सझु ावों को सम्मिलित करते हुए इस प्रशिक्षण पैकेज
को बनाने का प्रयास िकया है, जोिक हर प्रकार से परिपर्ण
ू है। उपयोगकर्ताओ ं (मास्‍टर ट्रेनर्स/शिक्षकों/शिक्षक-अध्‍यापकों) से
िवनम्र अाग्रह है कि पैकेज में संशोधन तथा परिवर्धन हेतु अपने सझु ाव दें, तािक इसकी गणु व�ाा और उपयोगिता को बढ़ाया
जा सके । आपके सझु ावों को सम्‍मिलित कर डी.ई.ए.ए. आपका कृ तज्ञ रहेगा।

xii
सगु मकर्ताओ ं और मास्‍टर ट्रे नर्स के लिए दिशानिर्देश
किसी प्रशिक्षण-सत्र का प्रारंभ करने से पहले किसी प्रशिक्षक या सगु मकर्ता को जिन भमि ू काओ,ं कौशलों और तकनीकों को
ध्यान में रखना चाहिए, उनकी चर्चा हम यहाँ करें गे। यहाँ व्यावहारिक चरणों और यक्‍तियु ों का सझु ाव दिया गया है ताकि आपको
‘सीखने के लिए सर्वोत्तम परिवेश’ (learning environment) बनाने में सहायता मिल सके ।
सावधानीपरू ्वक की गई तैयारी और अभ्यास के बिना यह कार्य सही तरीके से नहीं किया जा सकता। तैयारी का प्रारंभ सबसे
पहले स्वयं से ही करना चाहिए, सगु मकर्ता बनना आसान नहीं है। इस भमि ू का की शक्‍तियों और सीमाओ ं के प्रति जागरूक रहना
अत्यधिक महत्वपर्ण ू है। प्रशिक्षण कार्यक्रम के उद्देश्यों और लक्षित समहू के बारे में स्पष्‍ट रहना भी बहुत महत्वपर्ण
ू है। प्रशिक्षण
सामग्री और संदर्भ सामग्री के बारे में स्पष्‍ट रहना, इससे भी अधिक महत्वपर्ण ू है।
आधारभूत नियम
प्रशिक्षण सत्रों की तैयारी और संचालन—
1. अपने सत्र की योजना पहले से बना लें।
2. अपने सत्र के उद्देश्यों के बारे में स्पष्‍ट रहें।
3. सत्र से पहले ‘अकसर पछ ू े जाने वाले प्रश्‍न’ (FAQs) और ‘प्रशिक्षण सत्र’ की सामग्री को अच्छी तरह से पढ़ लें।
4. सनिश्‍चित
ु करें कि सत्रों के लिए आवश्यक सामग्री उपलब्ध और उपयोग योग्य है।
5. सत्रों का संचालन करने से पहले तैयारी और अभ्यास कर लें।
6. सत्र की आवश्यकतानसु ार प्रशिक्षण-कक्ष में बिजली आपर्ति ू , उपकरणों और उपलब्ध स्थान की जाँच कर लें।
7. सत्र में सभी प्रतिभागियों की भागीदारी सनिश्‍चित ु करें और जीवत ं चर्चाओ ं के लिए प्रोत्साहन दें।
8. सत्र के दौरान मौखिक और सांकेतिक, दोनों प्रकार के संकेतों का प्रयोग करें ।
9. प्रतिभागियों द्वारा िदए गए उ�र और की गई पहल की सराहना करें और उनको प्रोत्साहित करें ।
10. सत्र के दौरान गतिविधियों की निगरानी करें ताकि यह सनिश्‍चित कियु ा जा सके कि वे चर्चाएँ और गतिविधियाँ, उस
कार्यक्रम और सत्र के उद्देश्यों के अनरू ु प हैं।
11. सत्र के महत्वपर्ण बि
ू ं दओु ं को रे खांकित करें । रचनात्मक प्रतिपष्‍टि
ु को सनिश्‍चित
ु करते हुए सत्र का समापन करें ।
प्रशिक्षण के सफल सचं ालन के लिए प्रतिभागियों हेतु आधारभत निय ू मों की सचू ी—
(i) समय के पाबंद रहें।
(ii) सभी के विचारों का आदर करें ।
(iii) एक समय पर एक व्यक्‍ति बोले।
(iv) अपने मोबाइल फ़ोन को ध्वनिरहित (silent) मोड में रखें। इससे भी अच्छा यह रहेगा कि उन्हें बंद कर दें।
प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान निम्नलिखित कार्यों को करने (do’s) और न करने (don’ts) पर विशेष रूप से ध्यान दें—
क्‍या करें
yy समहू में सभी के साथ नेत्र-संपर्क बनाएँ और प्रत्येक प्रतिभागी पर ध्यान दें।
yy प्रतिभागियों द्वारा िदए गए उ�र और की गई पहल को सहर्ष स्वीकार करें ।
yy विचार-विमर्शों (चर्चाओ)ं को बढ़ावा देने के लिए छोटे और सरल प्रश्‍न पछू ें ।
yy मक्‍तांत
ु (open-ended) प्रश्‍न पछू ें , जैसे—इस बारे में आपका क्या विचार है? क्यों? कै से?
yy सभी को प्रोत्साहित करें कि वे गतिविधियों में भाग लें और दसू रों की बातों को ध्यान से सनु ें।
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

yy प्रतिभागियों द्वारा प्रस्तुत किये गए महत्वपर्ण बि


ू ंदओु ं की बारंबार व्याख्या/टीका करते रहें ताकि उन्हें सदृु ढ़ किया जा सके ।
yy अपने व्यक्‍तिगत अनभु वों को प्रतिभागियों के साथ साझा करें ताकि वे भी अपने विचारों को साझा करने के लिए प्रेरित हों।
yy प्रतिभागियों की व्यक्‍तिगत भिन्नताओ ं के प्रति सवं ेदनशील बनें।
yy आलोचना-रहित दृष्‍टिकोण रखें।
yy यदि विचार-विमर्श/चर्चा तीखी होने लगे, तो प्रतिभागियों को याद दिलाएँ कि सम्मानपरू क ्व असहमति जताने के कई तरीके हैं।
yy गतिविधियों के लिए प्रतिभागियों के छोटे समहू बनाने के दौरान ध्यान रखें कि समहू विविधतापर्णू (heterogeneous) हों।
yy बातचीत/संवाद को प्रोत्साहन देने का प्रयास करें ।
yy प्रतिभागियों के विभिन्न मतों को स्वीकार करें ।
yy जब कोई प्रतिभागी कोई विवादास्पद बिंदु प्रस्तुत करे तो ‘तथ्य’ को ‘राय’ से अलग करने का प्रयास करें ।
yy यदि कोई मतभेद उभर जाए तो प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करें कि वे ‘विचारों’ को चनु ौती दें, प्रतिभागियों को नहीं।
yy लक्ष्य-कें द्रित रहें।
yy समहू में फिर से ताज़गी और उत्साह जगाने के लिए ‘आइस-ब्रेकर’ और शारीरिक क्रियाकलापों का उपयोग करें ।
yy जब वीडियो-क्लिप व स्लाइड-शो दिखाने की आवश्यकता हो, तब इनके प्रयोग के बारे में दिए दिशानिर्देशों का पालन करें ।
yy बड़े-बड़े अक्षरों का उपयोग करते हुए शब्दों को लिखें या छापें।
yy ‘प्रतीक्षा समय’ (wait-time) या नि:शब्दता (silence) तकनीक का प्रयोग करें ।
yy यह सनिश्‍चित
ु करें कि सत्र के अत
ं में प्रतिभागियों को जो मख्य बि
ु ंदु संप्रेषित किये जाने हैं, आप उनसे परिचित हैं (दसू रा
भाग, ‘अकसर पछू े जाने वाले प्रश्‍न’ पढ़ें)।
yy यदि संभव हो तो अपनी सामग्री को व्यवस्थित करने के लिए प्रशिक्षण-कें द्र का पहले से भ्रमण कर लें।
yy संसाधनों और स्थान का सर्वोत्तम उपयोग करने के प्रति सतर्क रहें। जीवन-प्रसंगों (anecdotes) और चटु कुलों को अपने
सत्र की योजना में सम्मििलत करें (जो प्रसंग और चटु कुले दिए गए हैं, उनसे अतिरिक्‍त)।
yy मख्य बि
ु ंदओु ं को पढ़ते समय थोड़ा-थोड़ा विराम लें ताकि प्रतिभागी उन्हें आत्मसात् कर सकें ।
क्‍या न करें
yy एक ‘अध्यापक’ की भमि ू का मात्र न निभाएँ, एक सगु मकर्ता बनें।
yy यह न सोचें कि आपको किसी मद्ु दे पर ‘विशेषज्ञ’ होना ही है। यदि आपको किसी बात के बारे में नहीं पता है तो इसे स्वीकार
करें । यदि कोई प्रतिभागी कोई मश्कि ु ल प्रश्‍न पछू ले तो परू े समहू से पछू ें —“क्या आपमें से कोई इस प्रश्‍न का उत्तर जानता
है?” यदि प्रश्‍न महत्वपर्ण ू हो, तो कहें, “मेरी समझ के अनसु ार ... लेकिन मझु े इसके बारे में अभी और पता करना होगा”
या “यह बहुत अच्छा प्रश्‍न है, हालाँकि सच कहू त ँ ो मेरे पास इसका उत्तर नहीं है, लेकिन मैं आपके लिए इसके उत्तर का
पता लगाऊँगा/लगाऊँगी।”
yy निंदात्मक, नकारात्मक या व्यंग्यात्मक व्यवहार न करें । स्वयं को स्मरण कराएँ कि यह अहम की संतष्‍टि ु का माध्यम नहीं है
और आप ‘मालिक’ नहीं हैं।
yy चमत्कृत कर देने वाले उत्तर देने का प्रयास न करें । साथ ही, कठोर और संक्षिप्‍त भाषा का प्रयोग भी न करें ।
yy प्रतिभागियों को आपके तरीके के अनसु ार कार्य न करवाएँ। उन्हें स्वतंत्रतापरू ्वक और सृजनात्मकता से सोचने द।ें
yy प्रतिभागियों को ऐसा अहसास न करवाएँ कि वे किसी से छोटे, मर्ख य ू ा अयोग्य हैं, उनका अपमान न करें ।
yy सत्रों का उपयोग अतं हीन भाषण देने के लिए न करें ।
yy अपनी प्रस्तुति में आप जो कुछ कहें, उसके बारे में रक्षात्मक मद्रा ु न अपनाएँ।
yy सत्र के दौरान ‘मैं’ और ‘तमु /आप’ जैसे शब्दों का प्रयोग न करें , इनके बजाय ‘हम’ और ‘हमारे ’ जैसे शब्दों का प्रयोग करें ।

xiv
प्रशिक्षण तकनीकें
मानस-मंथन
यह एक अति उपयोगी प्रशिक्षण तकनीक है। किसी समहू में सृजनात्मकता को प्रोत्साहित
करने के लिए मानस-मथं न एक व्यावहारिक गतिविधि है। मानस-मथं न का लक्ष्य यह होता है
कि प्रशिक्षण के दौरान किसी विशिष्‍ट विषय पर दिए गए समय के भीतर, प्रतिभागियों से जितने
अधिक विचार सहजता से एकत्रित किए जा सकें , कर लिए जाएँ। समहू के सम्मुख विषय को
प्रस्तुत कर दें। इसके बाद इससे जड़ु े शब्द, वाक्यांश, टिप्पणियाँ, सझु ाव आदि प्रस्तुत करने के
लिए उन्हें आमत्रित
ं करें । प्रतिभागियों द्वारा दी गई प्रतिक्रियाओ ं को श्यामपट्ट या फ्लिप-चार्ट
पर ज्यों का त्यों लिख दें, बिना कोई टिप्पणी या प्रश्‍न किए। आमतौर पर यह देखने में आता
है कि किसी प्रतिभागी द्वारा जैसे ही कोई सझु ाव दिया जाता है, अधिकतर लोगों में उसके बारे में कोई टिप्पणी या
आलोचना करने का प्रलोभन जाग जाता है। इस प्रलोभन से बचने के लिए मानस-मथं न की प्रक्रिया अनश ु ासन की
माँग करती है। सत्र का विषय (या समस्या) निर्धारित किए जाने के बाद प्रतिभागियों को उस समस्या से निपटने के
लिए जितने हो सकें , उतने सझु ाव लिखने या बताने हैं। यह करते हुए उन्हें किसी सझु ाव का मल्यां ू कन नहीं करना
है, यानी उसके बारे में कोई टिप्पणी नहीं करनी है। उनके सझु ावों को िबना रोक-टोक सामने आने दें और उन्हें
िलखने/बताने के िलए प्रोत्‍साहित करें , भले ही वे पहले-पहल अव्यावहारिक लग रहे हों। उपयक्ु ‍त समय के बाद,
इस सचू ी को पढ़कर सनु ाएँ, उसके बारे में बिना कोई आलोचना या टिप्पणी किए। इसके बाद प्रतिभागियों को इस
सचू ी के प्रत्येक सझु ाव का मल्यां
ू कन करने के लिए प्रेरित करें । इस चरण पर जो चितं न-मनन होगा, वह नए सझु ावों
के विकास को दिशा दिखाएगा। ये नए सझु ाव मल ू सझु ावों से सीधे-सीधे सबं ंधित हो भी सकते हैं और नहीं भी। यह
किसी नए विषय पर कोई गतिविधि प्रारंभ करने का एक अच्छा तरीका हो सकता है।

समूह-गतिविधि
समहू -गतिविधि बहुत आम विधि है। इसे किसी एक ही गतिविधि में अन्य विधियों से जोड़ा
जा सकता है। कई गतिविधियों में, किसी कार्य को परू ा करने के लिए या विचार-विमर्श को
आगे बढ़ाने के लिए प्रतिभागियों को तीन से छह व्यक्‍तियों के छोटे समहू ों में विभाजित करने
की आवश्यकता होती है। कई स्थितियों में, छोटे समहू ों के प्रतिनिधि प्रवक्‍ता विचार-विमर्श
को आगे बढ़ाने के लिए सभी प्रतिभागियों के सामने अपने-अपने समहू की रिपोर्ट प्रस्तुत
करते हैं। छोटे समहू ों में विचार-विमर्श करना, समहू के सभी सदस्यों के अनभु वों से सीखने के
लिए उपयोगी होता है। जिन विषयों पर विचार-विमर्श किया जा रहा है, उनसे जड़ु े अपने अनभु वों और विचारों को
साझा करना, प्रतिभागियों के लिए जोड़ों में या छोटे समहू ों में आसान होता है। छोटे समहू कम आत्मविश्‍वास वाले
लोगों को सत्र में और खल ु कर भाग लेने में सक्षम बनाते हैं। इससे उनमें सभी प्रतिभागियों के सामने बोलने के लिए
आत्मविश्‍वास जगाने में भी सहायता मिलती है। समहू ों को बनाने के अनेक तरीके हैं। सबसे अच्छा यह होगा कि
सगु मकर्ता प्रतिभागियों को गिनती द्वारा या ऐसे ही किसी अन्य तरीके से समहू ों में बाँटें।
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

प्रस्तुति
इस तकनीक में सगु मकर्ता भाषण या व्याख्यान देकर प्रशिक्षुओ त ं क सचू नाएँ, जानकारियाँ या
सझु ाव पहुचँ ाते हैं। यह तकनीक उस परिस्थिति में विशेष रूप से प्रभावी है, जब बहुत सारी
सचू नाएँ अपेक्षाकृ त थोड़े-से समय में पहुचँ ानी हों। प्रस्तुतियों के कई प्रकार होते हैं। उदाहरण के
लिए, सीधे-सीधे भाषण देना, प्रश्‍नों और विचार-विमर्श द्वारा प्रतिभागियों को सहभागी बनाना
आदि। किसी भी अन्य प्रशिक्षण तकनीक के मक ु ाबले ‘प्रस्तुतियाँ’ अपनी विषय-वस्तु के लिए
प्रशिक्षक पर सबसे अधिक निर्भर होती हैं। प्रशिक्षुओ ं को भागीदार बनाने के लिए और सामग्री
को और स्मरणीय बनाने के लिए ‘प्रस्तुतियों’ के बाद किन्हीं अधिक सक्रियतापर्ण ू और सहभागितापर्ण त ू कनीकों का
उपयोग किया जाना चाहिए। ‘प्रस्तुति’ तकनीक का उपयोग निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए किया जाता है—
yy नए विषयों को प्रस्तुत करना,
yy सार या सिंहावलोकन उपलब्ध कराना,
yy तथ्यों और आँकड़ों को बताना, और
yy बड़े समहू ों को संबोधित करना।

वी.आई.पी.पी. (Visualisation in Participatory Programmes)


वी.आई.पी.पी. में कई ‘मानसिक चित्रण’ (visualisation) तकनीक शामिल हैं। इसमें विभिन्न
आकारों और आकृ तियों के बहुरंगी कार्ड उपयोग में लाए जाते हैं। इन कार्डों पर प्रतिभागी अपने
विचार लिखकर एक-दसू रे के साथ साझा करते हैं। विचार लिखने का यह कार्य वे नाम-रहित या
नाम-सहित, दोनों तरीकों से कर सकते हैं। यह उस प्रश्‍न पर निर्भर करे गा जिसका उत्तर वे दे रहे
हैं। यह विधि व्यवस्थित, सृजनात्मक और संवादात्मक रूप से नए विचारों की उत्पत्ति करने में
प्रतिभागियों की सहायता करती है। यह विधि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और सर्वसम्मति निर्माण
को भी सनिश्‍चित
ु करती है।
वी.आई.पी.पी. में अनेक प्रकार की सहभागितापर्ण विध
ू ियाँ सम्मिलित होती हैं। वी.आई.पी.पी. में उन विधियों
को समरूपी (homogeneous) और विषमरूपी (heterogeneous) समहू ों के साथ विभिन्न स्तरों पर लाग किय ू ा जा
सकता है। एक तरह से य िवध े ियाँ िवभिन्‍न तकनीकों का यक्‍ति
ु सगं त ‘उपकरण-सग्रं ह’ बन जाती हैं। इस ‘उपकरण-सग्रं ह’
के साथ स्पष्‍ट निर्देश और उनके सभं व उपयोगों के बारे में जानकारियाँ भी शामिल होनी चाहिए/होती हैं।
वी.आई.पी.पी. विधियों का उपयोग उस प्रकार के वार्तालापों का आयोजन करने के लिए किया जाता है जिनमें
प्रत्येक व्यक्‍ति को उसकी राय देने और समहू द्वारा सीखने, निर्णय लेने और समहू की उपलब्धियों में अपना योगदान
देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। प्रस्तुत किए गए सझु ावों पर खल
ु ी चर्चा और मानसिक चित्रण के द्वारा जब नए
सझु ावों को रे खाकित
ं और परिष्कृत किया जाता है, तो चर्चा में दोहराव कम हो जाते हैं। इससे सामहि ू क प्रक्रियाओ ं की
सृजनात्मकता और समहू के सझु ावों की व्यावहारिकता में और निखार आता है।

बोल फटाफट इस तकनीक में, जिस प्रकरण/विषय/विषय-वस्तु को परू ा कर लिया गया है, उसके बारे में प्रश्‍न
पछू े जाते हैं। प्रशिक्षक और सगु मकर्ता बिना अतं राल के प्रत्येक प्रतिभागी से या जिस किसी से
चाहें, प्रश्‍न पछू ते हैं। (सभी से एक ही प्रश्‍न भी पछू ा जा सकता है और अलग-अलग प्रश्‍न भी पछ
ू े
जा सकते हैं।) वे प्रत्येक प्रतिभागी की प्रतिक्रिया (उत्तर) को एक बार दोहराते हैं ताकि सब उसे
स्पष्‍ट रूप से सनु लें। प्रतिक्रिया को दोहराने के बाद वे अगले प्रतिभागी की ओर बढ़ जाते हैं। एक
xvi
प्रशिक्षण तकनीकें

सह-सगु मकर्ता (co-facilitator) या स्वयंसेवक (volunteer) प्रतिक्रियाओ ं को फ्लिप चार्ट/चार्ट/बोर्ड आदि पर


लिखने/दर्ज करने में सहायता करती/करता है। जो कुछ अधिगम हुआ है, उसे समग्रता से दर्ज करने में यह तकनीक
सहायता करती है। सभी प्रतिभागियों की पर्ण
ू रूप से सहभागिता भी इस तकनीक द्वारा सनिश्‍चित
ु हो पाती है।

पहले मैं
इस तकनीक में, जिस प्रकरण/विषय/विषय-वस्तु को परू ा कर लिया गया है, उसके बारे में प्रश्‍न
पछू े जाते हैं। (सभी से एक ही प्रश्‍न पछू ा जा सकता है और अलग-अलग प्रश्‍न भी पछू े जा
सकते हैं।) प्रशिक्षक और सगु मकर्ता के वल उन प्रतिभागियों से प्रश्‍न पछू ते हैं, जो अपना हाथ
उठाते हैं या बज़र (घटं ी) बजाते हैं। सगु मकर्ता बिना अतं राल के जितने प्रतिभागियों से चाहें,
प्रश्‍न पछू सकते हैं। वे प्रत्येक प्रतिभागी की प्रतिक्रिया (उत्तर) को एक बार दोहराते हैं ताकि सब
उसे स्पष्‍ट रूप से सनु लें। प्रतिक्रिया को दोहराने के बाद वे अगले प्रतिभागी की ओर बढ़ जाते
हैं। ‘बोल फटाफट’ तकनीक की तरह, एक सह-सगु मकर्ता या स्वयंसेवक प्रतिक्रियाओ ं को फ्लिप चार्ट/चार्ट/बोर्ड
आदि पर लिखने/दर्ज करने में सहायता करती/करता है। जो कुछ अधिगम हुआ है, उसे समग्रता से दर्ज करने और
इस प्रक्रिया में सभी प्रतिभागियों की पर्ण ू रूप से सहभागिता सनिश्‍चित
ु करने में यह तकनीक भी सहायता करती है।
चकि य
ँू ह तकनीक उत्तर/प्रतिक्रिया देने के लिए प्रतिभागी की स्वयं की तैयारी और स्वैच्छिक सहभागिता पर निर्भर
करती है, इसलिए यह प्रकरण/विषय में अतिरिक्‍त जानकारियाँ और दृष्‍टिकोणों को जोड़ने में सहायता करती है।
अर्थपर्ण
ू सहभागिता उपलब्ध कराने की यह एक सरल विधि है।

के स स्टडी
इस तकनीक में वास्तविक ‘प्रकरणों’ पर आधारित अध्ययन भी सम्मिलित हो सकते हैं और काल्पनिक परिस्थितियों
पर रचे गए अध्ययन भी, लेकिन वे वास्तविक मद्ु दों पर आधारित होने चाहिए। इन अध्ययनों की सामग्री पर
प्रतिभागी सीखे गए विश्‍लेषण-उपकरणों का उपयोग और अभ्यास करते हैं। ‘के स स्टडी’ (प्रकरण अध्‍ययन) का
उद्देश्य प्रशिक्षुओ ं के सामने वास्तविक मद्ु दों की परिस्थितियाँ प्रस्तुत करना होता है। इसमें उन्हें मद्ु दों की पृष्‍ठभमि

की जानकारी पर्याप्‍त मात्रा में दी जाती है। उनसे यह अपेक्षा होती है कि वे उन जानकारियों का विश्‍लेषण करें और
घटनाओ ं की �ाृंखला के परिणाम (संप्राप्‍तियों) का हिसाब करें या किन्हीं विशिष्‍ट समस्याओ ं के समाधान उपलब्ध
कराएँ। विकास और राहत कार्य में सफलताओ ं और असफलताओ ं को प्रस्तुत करके ‘के स स्टडी’ प्रतिभागियों
की आलोचनात्मक क्षमताओ ं (critical faculties) को भी उद्दीपित करती हैं। ‘के स स्टडी’ को सदैव विशिष्‍ट
उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए सावधानीपरू ्वक डिज़ाइन करना चाहिए। उन्हें उन अवधारणाओ य ं ा समस्याओ ं के
अनरू ु प डिज़ाइन करना चाहिए जिनको सबं ोधित करने की उनसे अपेक्षा है। ‘के स स्टडी’ को सावधानीपरू ्वक बनाए
जाने और परीक्षण किए जाने की आवश्यकता होती है। ‘के स स्टडी’ का विश्‍लेषण सामान्यत: छोटे-छोटे समहू ों में
किया जाता है।
प्रश्‍न पिटारा
यह तकनीक तब काफ़ी प्रभावी होती है, जब किसी संवेदनशील मद्ु दे की चर्चा किए जाने की आवश्यकता होती है।
विशेष रूप से ऐसी परिस्थिति में जब प्रतिभागियों को प्रश्‍न करने के लिए आगे आने में संकोच होने की संभावना
हो। यहाँ, सगु मकर्ता प्रतिभागियों को बिना अपनी पहचान बताए अपने प्रश्‍नों/जिज्ञासाओ ं को कागज़ की पर्चियों
पर लिखने के लिए कहते हैं। इसके बाद वे इन पर्चियों को कमरे के एक कोने में रखे डिब्बे में डालने के लिए कहते
हैं। इस तरह सगु मकर्ता प्रश्‍न लिखी सभी पर्चियों को इकट्ठा कर लेते हैं और उनके उत्तर देते हैं, बिना यह जाने कि
वह प्रश्‍न विशेष किसने पछू ा है।
xvii
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

रोल-प्ले
रोल-प्ले या अनरू ु पण (simulation) खेलों द्वारा वास्तविकता की नकल प्रस्तुत की जाती है। इनमें प्रतिभागियों को
भमि
ू काएँ दक े र अभिनय करने के लिए एक परिस्थिति दे दी जाती है। रोल-प्ले में प्रत्येक व्यक्‍ति को दी गई भमि ू का
के बारे में परू ी स्पष्‍टता होनी चाहिए। रोल-प्ले के उद्देश्य अच्छी तरह परिभाषित होने चाहिए। रोल-प्ले का लक्ष्य है—
नाटकीय और रोचक तरीके से दृष्‍टिकोणों, परिस्थितियों और अनभु वों को जीवत ं बनाना। अनभु वों और अनभु तू ियों
के माध्यम से लोगों की सीखने में सहायता करना इनका लक्ष्य होता है। रोल-प्ले वास्तविक जीवन के दृष्‍टांतों पर भी
आधारित हो सकते हैं या किन्हीं भमि ू काओ ं और दृष्‍टिकोणों को सामने लाने के लिए इन्हें सावधानीपरू ्वक डिज़ाइन
भी किया जा सकता है। कुछ स्थितियों में, प्रतिभागी अभिनय करने के लिए अपनी स्वयं की परिस्थितियों को भी
चनु सकते हैं।

पी.एम.आई. (Plus, Minus, Interesting)


पी.एम.आई. (Plus, Minus, Interesting) अर्थात् सकारात्मक, नकारात्मक और रोचक पक्ष। यह सदियों से
इस्तेमाल की जा रही ‘लाभ और हानि’ तकनीक का एक महत्वपर्ण वि ू कसित (‘एडवर्ड द बोनो’ द्वारा) रूप है।
किसी विशेष विचार, विषय या निर्णय के सकारात्मक, नकारात्मक और रोचक पक्षों की ओर आपके ध्यान को
सोच-समझकर खींचने के लिए इसे डिज़ाइन किया जाता है।
किसी भी परिस्थिति में, हमारा मस्तिष्क आमतौर पर बहुत-से विकल्पों में से कोई एक क्रिया-विधि को चनु ने
पर ध्यान कें द्रित करता है। इससे पहले कि हम उस क्रिया-विधि के अनसु ार कार्य करना प्रारंभ कर दें, इस बात की
जाँच करना महत्वपर्ण ू होता है कि क्या उससे परिस्थिति में कोई सधु ार होगा या नहीं। ऐसा भी संभव है कि उस
परिस्थिति में कुछ न करना ही सबसे अच्छा विकल्प हो। इन सबकी जाँच करने का एक उपयोगी उपकरण है पी.एम.
आई.।
इस उपकरण का उपयोग करने के लिए, एक कागज़ पर तीन कॉलम बना लें। उनके नाम रखें— प्लस, माइनस
और इटं रे स्टिंग या सकारात्मक, नकारात्मक और रोचक।
yy प्लस नाम वाले कॉलम में, उस कार्य को करने से होने वाले सभी सकारात्मक परिणामों को लिखें।
yy माइनस वाले कॉलम में सभी नकारात्मक परिणामों को लिखें।
yy इटं रे स्टिंग वाले कॉलम में उस कार्य को करने से होने वाले सभी संभव रोचक परिणामों और प्रभावों को लिखें,
चाहे वे सकारात्मक हों, नकारात्मक हों या अनिश्‍चित हों।
इस चरण तक आते-आते, आपको यह स्पष्‍ट हो चक ु ा होगा कि उस निर्णय को क्रियान्वित करना चाहिए या
नहीं। यदि अभी भी स्पष्‍ट नहीं हुआ है, तो आपने जितने भी बिंद लि ु खे हैं, उन्हें समचित
ु रूप से सकारात्मक या
नकारात्मक अक ं दें।
किसी सत्र के संचालन के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जा सकता है। तात्कालिक आवश्यकता के
अनसु ार आप अपने संदश े को संप्रेषित करने के लिए अलग-अलग विधियों का प्रयोग कर सकते हैं।

xviii
माॅड्यूल निर्माण समिति
अक्षय कुमार दीक्षित (माॅड्यल ू – 1, 2, 5), अध्यापक, राजकीय सर्वोदय बाल विद्यालय, फतेहपरु बेरी, नयी दिल्ली
आरती सावरू (माॅड्यल ू – 4), सी.ई.ओ., परिसर आशा, मम्ु ‍बई
आशीष घोष (माॅड्यल ू – 1, 2, 4, 5), अनंत थिएटर समहू , नयी दिल्ली
अजं ना राजन (माॅड्यल ू – 4), भरतनाट्यम नृत्यांगना एवं अध्यापिका, नयी दिल्ली
काकुल कपरू (माॅड्यल ू – 1, 2, 5), अध्यापिका, सर्वोदय कन्या विद्यालय, अवंतिका, सेक्टर-1, रोहिणी, नयी दिल्ली
ज्योत्स्ना तिवारी (माॅड्यल ू – 7), एसोसिएट प्रोफ़े सर एवं विभागाध्यक्ष, डी.ई.ए.ए., रा.शै.अ.प्र.प., नयी दिल्ली
निशा महाजन (माॅड्यल ू – 1, 3, 4, 5), फाउंडर ट्रस्टी, त्याग (योग एवं कला समहू ), नयी दिल्ली
पर्णि
ू मा सम्पत (माॅड्यल ू – 3, 4, 5, 6, 7), निदेशक, आर्ट फॉर ऑल, मम्ु ‍बई, महाराष्ट्र
पार्थेश पांड्या (माॅड्यल ू – 5, 7), कार्यक्रम संयोजक, सेंटर फॉर एनवायरमेन्ट एजक ु े शन, नेहरू फाउंडेशन, अहमदाबाद
बिंद ज़ू ाला (माॅड्यलू – 1, 2, 5), अध्यापिका, राजपरु ा प्राथमिक विद्यालय, गांधी नगर, गजु रात
मृणाल कुलकर्णी (माॅड्यल ू – 6), असिस्‍टेंट प्रोफ़े सर, डिपार्टमेंट ऑफ़ आर्ट हिस्ट्री एड
ं आर्ट एप्रिसिएशन, फै कल्टी ऑफ़
फ़ाइन आट्सर्, जामिया मिल्‍लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली
लक्ष्मी हरिहरन (माॅड्यल ू – 6), निदेशक, सृष्‍टि आट्सर्, मराठा महल, बंेगलरुु , कर्नाटक
शर्बरी बैनर्जी (माॅड्यलू – 1, 3, 4, 5), असिस्‍टेंट प्रोफ़े सर, डी.ई.ए.ए., रा.शै.अ.प्र.प., नयी दिल्ली
सभु ाष रावत (माॅड्यल ू – 1, 4), आर्ट एजक ु े टर, परू ्वाभ्यास थिएटर, नयी दिल्ली
सल ु ेखा भार्गव (माॅड्यल ू – 2, 3, 6), महासचिव, सत्य ग्लोबल रजिस्टर्ड सोसाइटी, नयी दिल्ली

समीक्षा समिति
आशा सिहं , एसोसिएट प्रोफ़े सर, लेडी इरविन कालेज, दिल्ली िवश्‍वविद्यालय, नयी दिल्ली
एम.जी. किदवई, प्रोफ़े सर, कला शिक्षा, जामिया िमल्‍लिया इस्लामिया, नयी दिल्ली
जी.एल. अरोरा, प्रोफ़े सर एव वि
ं भागाध्यक्ष (परू ्व), डी.टी.ई.ई., रा.शै.अ.प्र.प., नयी दिल्ली
वनिता नथानी, विशेषज्ञा, लाइफ स्किल्‍स एजक ु े शन, नयी दिल्ली
शक्ला
ु सावंत, एसोसिएट प्रोफ़े सर, स्कू ल ऑफ़ आर्ट एड ं एस्‍थैटिक्स, जे.एन.य,ू नयी दिल्ली
शोिबता पंजु ा, सी.ई.ओ., नेशनल कल्चर फंड, नयी दिल्ली
सदर्श
ु न खन्ना, पर्व
ू चेयरपर्सन, ट्वॉय यनि
ू ट, नेशनल इस्टी ं ट्यटू ऑफ़ डिज़ाइन, अहमदाबाद, गजु रात

अनुवाद
कात्यायन कुमार ित्रपाठी, प्रधान िशक्षक, प्राथमिक िवद्यालय नयागाँव, गलु जार बाग, पटना
मनोज कुमार ित्रपाठी, प्रधानाध्यापक, उ.म. िवद्यालय भेल डुमरा, आरा म.ु भोजपरु , िबहार
शशिकान्त शर्मा, प्रधानाध्यापक, मध्य िवद्यालय लक्ष्मीपरु जगदीशपरु , भोजपरु , िबहार
समु न कुमार िसहं , शिक्षक, मध्य िवद्यालय कौड़िया बसतं ी, भगवानपरु हाट, िसवान, िबहार

सक
ं ल्पना एवं सयो
ं जन
पवन सधु ीर, सयं ोजक, प्रोफ़े सर एवं िवभागाध्‍यक्ष, डी.ई.ए.ए., रा.शै.अ.प्र.प., नयी दिल्ली
आभार
कलाओ ं की शिक्षा में प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों के प्रशिक्षण के एक अगं के रूप में ‘प्राथमिक शिक्षकों के लिए
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज’ के विकास का कार्य प्रारंभ किया गया था। अनेक व्यक्‍तियों और सस्था ं ओ ं के महत्वपर्ण

सहयोग के बिना यह कार्य संभव नहीं हो सकता था। परिषद् उन सभी व्यक्‍तियों और संस्थाओ ं के प्रति आभारी है जो इस
प्रशिक्षण पैकेज के विकास से जड़ु े रहे हैं।
कला शिक्षा के बारे में अपने अमल्य वि
ू चारों के लिए स्व. देवी प्रसाद, प्रोफ़े सर एवं प्रख्यात कला शिक्षाविद् का
आभार व्यक्‍त करना स्वयं हमारे लिए सम्मान का विषय है। ‘आर्ट : ए ब्रेन डेवलपर’ वीडियो फ़िल्म के निर्माण के लिए
‘मस्तिष्क-आधारित अधिगम’ पर अपने अध्ययन को साझा करने के लिए हम निमहसं (NIMHANS), बेंगलरुु के
विवेक बेनेगल को हार्दिक धन्यवाद देते हैं। हम समयोचित मार्गदर्शन के लिए परवीन सिंक्लेयर, भतू परू ्व निदेशक, राष्‍ट्रीय
शैक्षिक अनसु धं ान और प्रशिक्षण परिषद् के भी आभारी हैं। अपने बहुमल्य ू सझु ावों द्वारा इस प्रकाशन की गणु वत्ता में वद्धि

करने के लिए हम जे.डी. विरमानी, कला शिक्षाविद् एवं भतू परू ्व संकाय सदस्‍य, राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान और प्रशिक्षण
परिषद् के मार्गदर्शन और सहयोग का भी आभार व्यक्‍त करना चाहेंगे।
दिल्ली के पश्‍चिमी ज़िले के 20 निगम प्राथमिक विद्यालयों में ‘कला समेकित अधिगम’ (A.I.L.) परियोजना का
प्रारंभ करने और इस पैकेज के क्षेत्र-परीक्षण में सक्रिय सहयोग के लिए अशोक अरोड़ा, भतू परू ्व प्राचार्य,
डी.आई.ई.टी., राजेंदर नगर तथा उनके सहयोगियों और दिल्ली नगर निगम के शिक्षा विभाग के
अधिकारियों के भी हम आभारी हैं। इस पैकेज पर आधारित पायलट अध्ययन के लिए शिक्षकों
और विद्यालयों का चयन करने में समयोचित सहयोग देने के लिए ओम प्रकाश यदवु श ं ी, परू ्व
उपनिदेशक (शिक्षा) और कमलेश समु न, तत्कालीन उपनिदेशक (शिक्षा) का भी हम आभार व्‍यक्‍त
करते हैं। इस प्रशिक्षण पैकेज के परीक्षण में अपनी ईमानदार सहभागिता के लिए और इस दस्तावेज़ को
‘सरलतापरू ्वक उपयोग में लाए जा सकने वाले’ प्रशिक्षण पैकेज का रूप देने के लिए अपने ठोस सझु ाव देने हेतु नगर
निगम के प्राथमिक विद्यालयों के सभी 20 प्रधानाचार्यों और 40 शिक्षकों के योगदान को श्रेय देना भी आवश्यक है।
इस प्रकाशन में दिए गए सभी छायाचित्र हमारे द्वारा विभिन्न राज्यों में मास्‍टर ट्रेनर्स के लिए आयोजित ‘कला
समेकित अधिगम’ प्रशिक्षण कार्यक्रमों में से या उन विद्यालयों में से लिए गए हैं, जहाँ ‘कला समेकित अधिगम’
कार्यक्रम चलाया जा रहा है। अपने विद्यालयों के ‘कला समेकित अधिगम’ कार्यक्रमों से जड़ु े छायाचित्रों को हमारे साथ
साझा करने के लिए हम निम्नलिखित विद्यालयों के प्रधानाचार्यों और शिक्षकों के आभारी हैं—नगर निगम प्राथमिक
विद्यालय, नांगलोई सईदान-1; निगम प्राथमिक विद्यालय, नयी चौखडं ी; निगम प्राथमिक विद्यालय, बापरौला गाँव;
निगम प्राथमिक विद्यालय, पंखा रोड; निगम प्राथमिक विद्यालय, राजौरी गार्डन; निगम प्राथमिक विद्यालय, जनक
परु ी; निगम प्राथमिक विद्यालय, टैगोर गार्डन; नर्सरी विद्यालय, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली; कें द्रीय विद्यालय,
राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान और प्रशिक्षण परिषद,् नयी दिल्ली; मदर इटं रनेशनल स्कू ल, नयी दिल्ली; वसंत वैली
इटं रनेशनल स्कू ल, नयी दिल्ली; डी.आई.ई.टी., राजेंदर नगर, नयी दिल्ली; डी.एम.एस. क्षेत्रीय शिक्षा सस्था ं न, मैसरुु ;
राजकीय कन्या वरिष्‍ठ माध्यमिक विद्यालय, पोर्तमोर, हिमाचल प्रदेश।

xxi
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

‘भारत में कला (भारतीय कलाओ ं की सराहना)’ स्लाइड शो में अपने संग्रह में से छायाचित्रों को शामिल करने की
अनमु ति देने के लिए हम राष्ट्रीय संग्रहालय, जनपथ, नयी दिल्ली के विशेष रूप से आभारी हैं। स्लाइड शो ‘बच्चों का
कलात्मक विकास’ और ‘विधियाँ और सामग्री (दृश्य कलाएँ)’ बनाने और छायाचित्रों के अपने संग्रह को साझा करने के
लिए हम पर्णि ू मा सपं त के आभारी हैं।
पैकेज के ‘भारत में कला (भारतीय कलाओ ं की सराहना)’ स्लाइड शो के लिए मृणाल कुलकर्णी और ‘विधियाँ और
सामग्री (प्रदर्शन कलाएँ)’ स्लाइड शो के लिए हम शर्बरी बैनर्जी के आभारी हैं।
कें द्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी संस्थान, राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान और प्रशिक्षण परिषद् के सक्रिय सहयोग के बिना
यह पैकेज अपने वर्तमान स्वरूप में नहीं आ सकता था। इस सृजनात्मक उद्यम हेत कि ु ए गए अथक परिश्रम के लिए हम
कें द्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी सस्थां न के सयं क्ु ‍त निदेशक और उनकी टीम को हृदय से धन्यवाद देते हैं। इस प्रशिक्षण पैकेज में
प्रशिक्षण सामग्री और शिक्षण-शास्‍त्र के एक महत्वपर्ण ू भाग के रूप में सैट वीडियो फ़िल्म और चार स्लाइड शो सम्मिलित
हैं। सभी वीडियो फ़िल्में कें द्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा निर्मित हैं और अपनी समचितत ु ा और उपयोगिता के
कारण विशेषज्ञों और शिक्षकों, दोनों द्वारा पसंद की गई हैं। इन फ़िल्मों को बनाने के लिए ‘कला समेकित अधिगम’
कक्षाओ ं की प्रक्रियाओ ं को रिकॉर्ड करने में सहायता करने के लिए हम निम्नलिखित संस्थाओ,ं विद्यालयों और विद्यालय
प्राधिकारियों के आभारी हैं— राज्य शैक्षिक अनसु धं ान और प्रशिक्षण परिषद,् गजु रात; फतेहपरु विद्यालय, मेहसाना ज़िला,
गजु रात; राजपरु ा और तिनतोरा विद्यालय, गांधीनगर, गजु रात; निगम प्राथमिक विद्यालय, नांगलोई सईदान-1, नयी दिल्ली;
निगम प्राथमिक विद्यालय, नयी चौखडं ी, नयी दिल्ली; निगम प्राथमिक विद्यालय, टैगोर गार्डन, नयी दिल्ली।
हम आदित्य शक्ला ु , संपादक (संविदा), प्रकाशन प्रभाग, एन.सी.ई.आर.टी.; शशि चड्ढा और ब्लू फि़श डिज़ाइन
लिमिटेड के संपादन कौशलों की सराहना करते हैं। संपादन के अतिरिक्‍त, ब्लू फिश ने इन दोनों भागों को जीवंत बनाने
के लिए अथक परिश्रम किया है। श्‍वेता उप्पल, मख्ु ‍य संपादक, राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् के प्रति
हार्दिक आभार को व्यक्‍त किए बिना हमारा आगे बढ़ना असंभव है, जिन्होंने इस पैकेज के विकास के विभिन्न चरणों में
अपने अमल्य ू सझु ावों को देकर इसे निखारा और इस पैकेज का अंतिम संपादन भी किया। हम सरु े न्द्र कुमार, डी.टी.पी.
सेल तथा अजय कुमार प्रजापति, डी.टी.पी. ऑपरेटर (संविदा) के भी आभारी हैं।
यह प्रकाशन आज जिस रूप में है, इसे इस रूप में लाने के लिए अपने समय और प्रयासों के लिए पैकेज का
सहयोगी-मडं ल और समीक्षा-दल विशेष सराहना के पात्र हैं। हम विभिन्न इटं रनेट वेबसाइटों के भी आभारी हैं, जिन्होंने इस
विषय पर संदर्भ के समृद्ध संसाधन बनाने में हमारी सहायता की।
जब यह दस्तावेज शरू ु आती वैचारिक स्तर पर था, उस दौरान अपने समृद्ध और समग्र सझु ाव देने के लिए हम
डी.ई.ए.ए., डी.ई.एस.एस., डी.ई.एस.एम. और सी.आई.ई.टी. के सहयोगियों के आभारी हैं। समयानक ु ू ल सहायता प्रदान
करने के लिए हम जे.पी.एफ. दल—मृणालिनी सखजु ा, विक्रम कुमार और मेहर सलीम की भी सराहना करते हैं। हम कला
और सौंदर्यबोध शिक्षा विभाग के प्रशासनिक समहू का भी धन्यवाद प्रकट करते हैं, जिनके बिना इस प्रशिक्षण पैकेज का
विकास संभव नहीं हो पाता।
हम इस पैकेज के उपयोगकर्ताओ ं और विशेषज्ञों के सझु ावों और टिप्पणियों का स्वागत करते हैं। इनसे हमें इस प्रकाशन
के भावी संशोधन और संवर्द्धन में सहायता मिलेगी।

xxii
विषय-सच
ू ी
खंड II
प्राक्‍कथन iii
पैकेज पर एक नज़र v
सगु मकर्ताओ ं और मास्‍टर ट्रेनर्स के लिए दिशानिर्देश xiii
प्रशिक्षण तकनीकें xv

मॉड्यूल 4 कला और कला शिक्षा 173-224


पहला भाग 175
दसू रा भाग 185
मॉड्यूल 5 कला का अन्य विषयों के साथ समेकन 225-258
पहला भाग 227
दसू रा भाग 236
मॉड्यूल 6 शिक्षा में सग्रं हालय की भमि
ू का 259-326
पहला भाग 261
दसू रा भाग 272
मॉड्यूल 7 कला में मलू ्यांकन 327-345
पहला भाग 329
दसू रा भाग 336
विषय-सच
ू ी
खंड I

मॉड्यूल 1 आइस-ब्रेकर
पहला भाग
दसू रा भाग
मॉड्यूल 2 विद्यालय की दैनिक गतिविधियों में कला
पहला भाग
दसू रा भाग
मॉड्यूल 3 विधियाँ और सामग्री
पहला भाग
दसू रा भाग
मॉड्यूल 4 कला और कला शिक्षा

एक नज़र
• कला और कला शिक्षा की अवधारणा, अर्थ तथा विद्यालयी पाठ्यक्रम में इनके स्थान को समझना।
• बच्चों के अधिगम और इसके विकास में कला शिक्षा की भमि ू का को समझना।
• बच्चों में कला-सबं ंधी विकास की विभिन्न अवस्थाओ ं को समझना तथा उनके लिए उम्र सापेक्ष कला-अनभु वों
का निर्माण करना।
• बच्चों की सृजनात्मक अभिव्यक्‍ति को समझना और उनको पोषित करना।
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

कला और कला शिक्षा


अनमु ानित समय—एक दिन
परिचय
इस मॉड्यल ू में विद्यालय में कला के स्थान के बारे में विमर्श करने का प्रयास किया गया है। मॉड्यल
ू इस तथ्य
पर ज़ोर देता है कि कला शिक्षा का व्यापक उद्देश्य विद्यार्थियों में सृजनशीलता को समावेशित करना है। इसके
अतिरिक्‍त, बच्चों में कलात्मक विकास के स्‍वरूप (pattern) की भी चर्चा की गई है, जिससे शिक्षकों में दृश्य
और प्रदर्शन, दोनों ही कलाओ ं में बच्चों के उम्र सापेक्ष उपयक्‍त
ु कला-अनभु वों के विकास और क्रियान्वयन की
क्षमता का विकास हो सके ।
यह मॉड्यल ू दो भागों में बँटा हुआ है। पहला भाग, उन सगु मकर्ताओ ं के लिए है, जिन्हें आगे प्राथमिक
विद्यालय के शिक्षकों को प्रशिक्षण देना है। इस भाग में उदाहरण के तौर पर कुछ गतिविधियाँ सझु ाई गयी हैं,
जिनका उपयोग सगु मकर्ता शिक्षकों की अवधारणात्मक समझ व उपयक्‍त ु कौशलों के विकास हेतु कर सकें गे।
सगु मकर्ता अगर चाहें तो मॉड्यल ू में दी गई गतिविधियों के अतिरिक्‍त अन्य वैकल्पिक गतिविधियों का विकास
कर सकते हैं।
दसू रा भाग शिक्षकों से संबंधित है, जिसमें विद्यालय में कला व कला शिक्षा से संबंधित जिज्ञासाओ ं का उत्तर
देने का प्रयास किया गया है।

उद्देश्य
इस मॉड्यल ू के माध्यम से शिक्षक—
• कला और कला शिक्षा की अवधारणा तथा विद्यालयी पाठ्यचर्या में इसके स्थान को बता सकें गे।
• पहचान सकें गे कि सभी व्यक्‍तियों में सृजनशीलता होती है जो विभिन्न तरीकों से प्रदर्शित होती है।
• इस तथ्य को समझ सकें गे कि सृजनशीलता को बढ़ाया जा सकता है।
• बच्चों में कला-संबंधी विकास की विभिन्न अवस्थाओ ं को पहचान सकें गे और वर्णन कर सकें गे।
• प्राथमिक कक्षाओ ं हेतु ऐसे कला-अनभु वों का आयोजन कर सकें गे, जिसमें कौशल पर बल न देकर अनभु व,
खोज, प्रयोग आदि पर ध्यान हो।

रचनात्‍मकता में लीन बच्‍चे


(िनगम प्राथमिक िवद्यालय, नांगलोई सईदान 1)

174
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

पहला भाग

एक सगु मकर्ता के रूप में, आपकी भमि ू का प्राथमिक शिक्षकों के प्रशिक्षण के दौरान इस मॉड्यल ू को सचं ालित
करने की है। यह सनििश्‍च
ु त करें कि प्रशिक्षण सत्र के अतं तक शिक्षक मॉड्यल ू के उद्देश्यों को समझने में समर्थ हो
सकें । प्रभावी सत्र-सचं ालन के लिए आवश्यक है कि आप पहले से इसकी योजना तैयार करें । इसके लिए आप
निम्नलिखित बातों को ध्यान में रख सकते हैं—
• इस मॉड्यल ू के दसू रे भाग में दिए गए ‘अकसर पछू े जाने वाले प्रश्‍नों’ (FAQs) के उत्तर पढ़ें और अपनी समझ
के अनसु ार दिए गए उत्तरों को मन ही मन या लिखकर और अधिक समृद्ध करें । सत्र के दौरान उठ सकने वाले
इस तरह के अन्य प्रश्‍नों और उनके उत्तरों के लिए स्वयं को तैयार रखें।
• आवश्यक हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर, जैसे—डी.वी.डी./वीडियो-क्लिप्स/स्लाइड शो आदि को व्यवस्थित कर
लें ताकि सत्र के दौरान उनका उचित इस्तेमाल हो सके ।
• गतिविधि के लिए आवश्यक सभी सामग्री को व्यवस्थित कर लें, जैसे—रंगीन चार्ट, कागज़, पेंसिल,
स्केच-पेन, मार्क र, फ़्लिप-चार्ट, थम्ब-पिन, ब्राउन-पेपर, प्रदर्शन हेतु डोरी, विभिन्न आकार के सेलो टेप, रंग,
ड्राॅइगं -शीट, मॉडलिंग के लिए मिट्टी, कैं ची, गोंद, वाद्य यंत्र, पोशाक के लिए सामग्री, मंच विन्यास (सज्जा)
के लिए आवश्यक सामग्री, आदि। सामानों की सचू ी बनाते समय स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्री को
प्राथमिकता दें।
• एक किट में पेंसिल, स्केच-पेन, कलम, टेप, गोंद आदि प्रत्येक समहू को उपलब्ध कराएँ। प्रतिभागियों से भी
यह कहा जा सकता है कि वे कैं ची, पेपर-कटर आदि सामग्री अपने साथ लाएँ।
• चकि
ँू यह कार्यक्रम गतिविधि-आधारित है, अतः आयोजकों से अपेक्षा रहेगी कि वे एक ऐसा प्रशिक्षण-कक्ष
उपलब्ध कराएँ, जहाँ गतिविधियों का संचालन सहजता से किया जा सके ।
• जहाँ भी ज़रूरी और सभं व हो, आप दसू रे सगु मकर्ताओ ं या मख्ु ‍य प्रशिक्षकों के साथ समहू -शिक्षण के लिए
मिलकर काम कर सकते हैं।
• प्रत्येक मेज़ के पास एक कूड़ादान रखा जाए ताकि कक्षा में गदं गी न फै ले।
• सगु मकर्ता समय का हमेशा खयाल रखें और प्रतिभागियों को निर्धारित समय-सीमा में गतिविधि समाप्‍त करने
के लिए प्रोत्साहित करें ।

175
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

सझु ाई गयी गतिविधियों में से सगु मकर्ता कुछ को आयोजित कर सकते हैं। गतिविधियों के संचालन हेतु आवश्यक
समय भी सझु ाया गया है। दिन के कार्य की शरू ु आत लगभग 30 मिनट के चेतना सत्र से होनी चाहिए। चेतना सत्र
के तरीकों में बदलाव करते रहना रोचक होगा। यह प्रतिभागियों की सहभागिता और प्रतिभागिता को बढ़ाने में
सहायक होता है। चेतना सत्र का स्वरूप कुछ ऐसा हो सकता है—
• समहू -गान— इसमें विभिन्न राज्यों के विशिष्‍ट गानों को सम्मिलित किया जा सकता है। इसके लिए
सी.आई.ई.टी./सी.सी.आर.टी. द्वारा विकसित सी.डी./डी.वी.डी. सहायक हो सकते हैं।
• पनु रावलोकन— प्रतिभागियों द्वारा पिछले दिन के क्रियाकलापों की समीक्षा और छोटी-सी रिपोर्ट (प्रतिवेदन)
प्रस्तुत करवाई जा सकती है।
• उस दिन के लिए सह-सगु मकर्ताओ,ं स्वयंसेवकों और प्रतिवेदकों की पहचान करना और उस दिन के कार्यक्रम
की घोषणा करना।

टिप्पचेणतीना सत्र के स्वरूप में बदलाव करते रहना रोचक होगा। इससे प्रतिभागियों की प्रतिभागिता एव उनकी

संलग्नता का स्तर बढ़ेगा।

सगु मीकरण के लिए सझ


ु ाई गयी कुछ गतिविधियाँ

आइस-ब्रेकर बोल फटाफट (रैपिड फायर)

स्लाइड-शो और वीडियो िफ़ल्‍म

वाद-विवाद

समहू चर्चा

मानस-मंथन (Brainstorming) पहले मैं (Buzzer Round)

176
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

90
गतिविधि 1 अनुमानित समय मिनट

आइस-ब्रेकर
प्रतिभागियों की सहभागिता बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका उन्हें अपने व्यक्‍तिगत अनभु वों को साझा
करने का अवसर देना है। चिँू क प्राथमिक शिक्षकों का सबं ंध छोटे बच्चों से होता है, अतः यह प्रतिभागी
शिक्षकों को अपने बचपन से जड़ु ने में मदद करे गा। बचपन के अनभु वों से संबंधित स्मृतियों का पनु ः स्मरण
और उन्‍हें साझा करने के अवसर मिलने से प्रतिभागियों में स्व-प्रेरणा और उत्साह का संचार होगा, साथ ही
उनमें टीम भावना का भी विकास होगा।

प्रक्रिया
प्रतिभागियों को आँखें बंद कर, शांत-चि� एवं आराम की मद्ु रा में बैठने को कहा जा सकता है। सगु मकर्ता नीचे
सझु ाए बिंदओ ु ं के आलोक में प्रतिभागियों को अपने बचपन से जड़ु े अनभु वों को याद करने के लिए कहेंगे—
• अपने बचपन के किसी यादगार दिन, परिस्थिति
या घटना के बारे में सोचिए (विस्तार से)।
• आपने उस दिन क्या पहना था?
• आपके साथ उस दिन और कौन था?
• आप कितने बड़े थे?
• आप उस िदन कहाँ थे?
• उस वक्‍त क्या समय हो रहा था?
• आप क्या कर रहे थे?
• आपको कै सा महससू हो रहा था?
• वह दिन, परिस्थिति, घटना आपके लिए यादगार उत्तराखडं में कला शिक्षा प्रशिक्षण के दौरान
क्यों है? आयोजित गतिविधि
बचपन के अनभु वों का स्मरण कर लेने के पश्‍चात् धीरे -धीरे आँखें खोलने को कहें। प्रतिभागी अपने अनभु वों या
अपनी भावनाओ ं को कला के विभिन्न पक्षों, जैसे—चित्रकारी, कोलाज, सगं ीत, प्रहसन, नृत्य, ड्रामा आदि के
माध्यम से व्यक्‍त करें गे।
इसके बाद
गतिविधि की समाप्‍ति के उपरांत सगु मकर्ता
प्रतिभागियों से अपनी दृश्य कलाकृ तियों
को निर्धारित क्षेत्र में प्रदर्शन बोर्ड या मेज़ पर
प्रदर्शित करने हेतु कह सकते हैं। प्रतिभागी
स्वेच्छापर्वू क अपनी कलाकृ तियों के माध्यम
से अपने अनभु वों को साझा कर सकते हैं।
कलाकृ तियों का प्रदर्शन

177
(ए.आई.एल. कार्यशाला, मेघालय)
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

इसी प्रकार सगु मकर्ता उन प्रतिभागियों से प्रदर्शन हेतु आग्रह कर सकते हैं, जिन्होंने स्वेच्छा से प्रदर्शन कलाओ,ं
यथा—सगं ीत, नृत्य एवं अभिनय आदि माध्यमों के अपने अनभु वों को साझा करने हेत च ु यन किया है।
इस गतिविधि के तरु ं त बाद ‘बोल फटाफट’ प्रश्‍न चक्र का आयोजन किया जा सकता है, जो आगे
विचार-विमर्श एवं चितं न आरंभ करने हेतु आधार हो सकता है। अगर प्रतिभागियों के उत्तर स्पष्‍ट या अपेक्षित
नहीं हों तो सगु मकर्ता गतिविधि के समेकन के समय उपयक्‍त ु स्पष्‍टीकरण और सबं ंधित सचू ना देंगे।

प्रश्‍न चक्र से सबं ंधित कुछ प्रश्‍नों के सझ


ु ाव
बोल फटाफट
• गतिविधि किससे संबंधित थी?
• इस गतिविधि में आपको क्या पसंद आया?
• अपनी अभिव्यक्‍ति हेत किु सी खास माध्यम को चनु ने का क्या कारण था?
• हम इनको कला क्यों कहते हैं? अपने चयन का कारण बताइए।
• शिक्षक इस खास गतिविधि को अपनी कक्षा की स्थितियों में कै से प्रयोग कर सकते हैं?
• प्रतिभागियों द्वारा चयनित गतिविधियों में कौन-सी दृश्य और कौन-सी प्रदर्शन कला के अतं र्गत आती हैं?

सगु मकर्ता स्वयंसेवकों से प्रतिभागियों के अनभु वों को फ्लिप चार्ट पर लिखने हेतु कह सकते हैं, प्रतिभागियों
के जवाब और इस सत्र से संबंधित ‘अकसर पछ ू े जाने वाले प्रश्‍नों’ (FAQs) को ध्यान में रखते हुए
सगु मकर्ता गतिविधि का समेकन करें गे। इससे प्रतिभागियों में कला और कला शिक्षा की कुछ आधारभतू
समझ विकसित होगी।

30
गतिविधि 2 अनुमानित समय मिनट

वाद-विवाद
विषय-वस्तु से संबंधित त्वरित प्रतिक्रियाओ ं से प्रतिभागियों की सहभागिता बढ़ती है व भटकाव कम
होता है। वर्तमान संदर्भ में महत्त्वपर्ण
ू यह है कि शिक्षक कला के विषय में अपने भावों व विचारों को प्रस्तुत
करें । विचारों के आदान-प्रदान से कला की साझी समझ बनती है और इससे कला के उन पहलओ ु ं की भी
जानकारी मिलती है, जिससे अभी तक अनभिज्ञ थे। प्रतिभागियों के विचारों को आमत्रि ं त करके सगु मकर्ता
उन्हें कला के बहुआयामों को समझने में मदद कर सकते हैं।

प्रक्रिया
सगु मकर्ता प्रतिभागियों को तीन समान टीमों में बाँट सकते हैं। पहली टीम शिक्षकों की, दसू री अभिभावकों या
समदु ाय के प्रतिनिधि के रूप में तथा तीसरी टीम विद्यार्थियों का प्रतिनिधित्व कर सकती है।
परिचर्चा/वाद-विवाद के लिए सझु ाए गए कुछ प्रकरण/विषय-वस्तु—कला शिक्षा क्यों?

178
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

शिक्षा में कला के महत्‍व पर प्रतिभागियों के विभिन्‍न समहू ों की


तरु ं त दी गई राय लेतीं सगु मकर्ता
विद्यार्थी समहू निम्न प्रश्‍नों पर विचार कर सकता है—
• क्या कला हमें आकर्षित करती है?
• हम कला के विविध पक्षों को क्यों पसंद करते हैं?
• कला में हमें क्या अच्छा लगता है और क्यों?
• कला हमारे जीवन को कै से प्रभावित करती है?
शिक्षक समहू निम्न प्रश्‍नों पर विचार कर सकता है—
• कला को विद्यालयी पाठ्यचर्चा में क्यों सम्मिलित किया जाना चाहिए?
• इससे बच्चे कै से लाभान्वित हो सकते हैं?
• शिक्षण और अधिगम में यह कै से मदद करती है?
• कला शिक्षण बच्चों में व्यवहार को किस प्रकार प्रभावित करता है?
अभिभावक समहू निम्न प्रश्‍नों पर विचार कर सकता है—
• हमारे बच्चे कला संबंधी कार्य क्यों करें ?
• किस तरह कला संबंधी कार्य अन्य विषयों के अधिगम को प्रभावित करता है?
• यह हमारे बच्चों के व्यवहार को कै से प्रभावित करता है?
• क्या कला अनभु व बच्चों की मनोदशा को प्रभावित करता है?
सगु मकर्ता को यह सनििश्‍चु त करना चाहिए कि वाद-विवाद गतिविधि में सभी प्रतिभागियों की एक समान
प्रतिभागिता हो। टीम अपने एक सदस्य को नेता चनु सकती है, जिसके नेततृ ्व में मानस-मथं न और वाद-विवाद
की गतिविधि की तैयारी की जा सके । प्रत्येक टीम अपनी प्रतिक्रिया को फ्लिप-चार्ट पर अकि ं त कर सकती है।
टीम में मानस-मथं न के उपरांत सगु मकर्ता प्रत्येक टीम को अपने विचारों को वाद-विवाद/परिचर्चा में व्यक्‍त व
प्रस्तुत करने को कह सकते हैं।
सत्र समेकन के दौरान, सगु मकर्ता को यह स्पष्‍ट करना चाहिए कि वाद-विवाद के आयोजन का उद्देश्य
प्रतिभागियों को विभिन्न हितधारकों के द्वारा पैदा की गई चनु ौतियों के प्रति जागरूक करना है। अतः यह
आवश्यक है कि प्रतिभागी इन बिंदओ ु ं को ध्यान में रखें और संबंधित मॉड्यल
ू में दिए गए ‘अकसर पछू े जाने
वाले प्रश्‍नों’ के उत्तरों में कला की भमिू का के महत्व पर प्रकाश डालें।
179
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

गतिविधि 3 अनुमानित समय 30


मिनट

‘आसमान में घास कहाँ!’


और ‘मस्तिष्‍क के ि‍वकास में कला की भूमिका’

फि़ल्म अवलोकन
फि़ल्में प्रशिक्षु को कला से संबंधित
विचारों और बच्चों में कला अनभु वों की
आवश्यकताओ ं को जानने/पता करने का
उपयोगी माध्यम हैं। फि़ल्म ‘आसमान में
घास कहाँ!’ बच्चों में अवलोकन, खोज,
प्रयोग और सृजन के प्रति स्वाभाविक
जिज्ञासा उत्पन्न करती है तथा इन्‍हें
अधिगम और विकास के आवश्यक
आयाम के रूप में सृजित करने का प्रयास
िफ़ल्‍म ‘मस्तिष्‍क के ि‍वकास में कला की भमि
ू का’ करती है। फि़ल्म ‘मस्तिष्‍क के ि‍वकास में
कला की भमि ू का’ स्वाभाविक रूप से मस्तिष्क के विकास में कला की भमि ू का को रे खांकित करने का
प्रयास करती है ।

पहले वीडियो के बाद अनुवर्ती गतिविधि


‘आसमान में घास कहाँ!’
अवलोकन के उपरांत प्रतिभागियों के विचारों को जानने हेतु ‘बोल फटाफट’ प्रश्‍न चक्र का आयोजन किया
जाएगा। इससे संबंधित प्रश्‍नों के सझु ाव निम्न हैं—
• फि़ल्म से आपने क्या सीखा?
• शिक्षण अधिगम का यह तरीका/उपागम किस प्रकार बच्चों के लिए लाभदायक है?
• बच्चों को समझने में यह कै से मदद करता है?
• क्या यह शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर सम्पूर्ण अधिगम में सहायक है?
• इस फिल्म में शिक्षक की भमि ू का का आप कै से मल्यां
ू कन करते हैं?

दूसरे वीडियो के बाद अनुवर्ती गतिविधि


‘मस्तिष्‍क के ि‍वकास में कला की भूमिका’
अवलोकन के उपरांत प्रतिभागियों के विचारों को आमत्रि
ं त करने हेतु प्रश्‍न चक्र (Buzzer Round) का आयोजन
किया जाएगा। प्रश्‍न संबंधी सझु ाव निम्न हैं—
• आपने इस फि़ल्म से क्या सीखा?
• प्राथमिक कक्षाओ ं के शिक्षण अधिगम अभ्यासों की योजना बनाने में यह कै से मदद करता है?
प्रतिभागियों की कला व विद्यालय में कला शिक्षा संबंधी समझ को जानने हेतु सगु मकर्ता इस तरह के अन्य प्रश्‍न
भी सोच सकते हैं, जिसमें कला और विद्यालय में कला शिक्षा सबं ंधी उनकी समझ का पता चल सके ।
180
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

चलिए, अब हम पनु ः चर्चा करें कि विद्यालयों


में कला शिक्षा क्यों होनी चाहिए?
कला आधारित गतिविधियों में छोटे
बच्चे खद ु ही बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। बच्चे
अपनी भाषायी क्षमता के विकास के पर्व ू भी
अपने विचार और अनभु वों को कला के
माध्यम से संप्रेषित कर सकते हैं। कला उनके
लिए पर्वू वर्ती साक्षरता का कार्य करती है। प्रकाश और छाया से अक्ष्‍ारों की रचना
1. कला अनभु व बच्चों को सीखने का
ऐसा वातावरण उपलब्ध करवाते हैं, जिसमें वे परू े मनोयोग से लगे रहते हैं।
2. कला बच्चों को विविध कौशलों एवं क्षमताओ ं का प्रयोग करना सिखाती है। कला उन बच्चों तक भी
ले जाती है, जिन तक किसी और तरीके से नहीं पहुचँ ा जा सकता है।
3. कला अधिगम के विभिन्न आयामों के बारे में बताती है।
4. कला बच्चों को संवाद का वैकल्पिक तरीका प्रदान करती है।
5. कला का समेकन अन्य विषयों को और भी आनंदपर्ण ू बनाता है जिससे अधिगम और उपस्थिति दोनों
ही बढ़ती हैं।
6. कला सामाजिक कौशलों को मज़बूत बनाती है और विद्यार्थियों को टीम के रूप में कार्य करने का
अनुभव प्रदान करती है। विद्यार्थी दसू रों की सराहना करना और उनके विचारों को स्वीकार करना
सीखते हैं।
7. कला से मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्से सक्रिय होते हैं, जिससे विद्यार्थियों को सोचने और विश्‍लेषण
करने में मदद मिलती है।
8. कला मस्तिष्क के विकास में मदद करती है।
9. कला बच्चों में ऐसे कौशलों का विकास करती है, जिससे वे सदैव सीखने को प्रोत्साहित/प्रेरित रहें।
10. कला बच्चों को सृजनात्मक ढंग से सोचने और उनकी सौंदर्यानभु ति ू को बढ़ाने में सहायक है।

30
गतिविधि 4 अनुमानित समय मिनट

‘शिक्षा के आधार के रूप में कला’


(प्रोफे ़सर देवी प्रसाद के साक्षात्कार का वीडियो)

विशेषज्ञों की विशेषता तब मान्य होगी, जब वे अपने विचारों को सरलता से अभिव्यक्‍त कर सकें । उपयक्‍त ु
दृश्य-श्रव्य सामग्री शिक्षकों के दृष्‍टिकोण और विचार को पष्ु ‍ट करती है। इस फि़ल्म में एक महान कलाकार
व कलाशिक्षाविद् के व्यावहारिक दृष्‍टिकोण को दर्शाया गया है, जिनके पास विद्यालय में कला संबंधित
दृष्‍टि है। उनके विचार आपको अपने अनभु व तथा कला के माध्यम से शिक्षा सबं ंधी विचारों को निरूपित
करने में सहायक हो सकते हैं।

181
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

इसके बाद
प्रतिभागियों का दृष्‍टिकोण जानने हेतु ‘पहले मैं’
(Buzzer Round) गतिविधि आयोजित की जाएगी।
सगु मकर्ता प्रतिभागियों से प्राप्‍त विचारों/जवाबों को
समेकित करते हुए सत्र का समापन करें ग।े इस क्रम में
विविध पदों—‘कला शिक्षा’, ‘शिक्षा में कला’, ‘कला
और अधिगम’, ‘कला और सृजनशीलता’, ‘सौन्दर्य के
प्रति सवं दे नशीलता’ आदि को स्पष्‍ट/पनु र्बलित करें ग।े
ए.आई.एल. कक्षा में कला के माध्यम से भाषा

गतिविधि 5 अनुमानित समय 40


मिनट

‘बच्चों में कलात्मक विकास’ पर स्लाइड-शो

बच्चे और कला
प्रथम सत्र के दौरान, जब हम गतिविधियों में संलग्न थे, तब हम दी गई सामग्री की सहायता से अपने-अपने
विचारों को अभिव्यक्‍त करने में लगे हुए थे। मख्य
ु तः हम अपने विचार और भावनाओ ं से जड़ु े हुए थे। अपने कार्यों
में इस तरह मशगल ू थे कि इस बात की चितं ा ही नहीं थी कि हमारा कार्य/कलाकृ ति किस तरह की होगी या हमारे
पास सबं ंधित कला के सृजन हेतु आवश्यक कौशल है या नहीं।
इसी तरह, जब एक बच्चा चित्र बनाता है, पेंटिंग करता है या कुछ सृजित करता है तो वह परू ी तरह उसकी
आत्म-अभिव्यक्‍ति होती है, जहाँ वह बच्चा बिना किसी भय के सीधे स्वयं को अभिव्यक्‍त करता है। बच्चे इस तरह
अपने काम में मशगल ू रहते हैं कि उनके उत्पाद में उनका चितं न और भावनाओ ं की गहराई नज़र आती है। अतः
प्रत्येक बच्चे की कला उसके सज्ं ञानात्मक, मनोगत्यात्मक और भावात्‍मक विकास की प्रक्रिया को प्रदर्शित करती है।
जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है, उसकी कला में भी विकास और निखार आता है। बच्चे अपने आस-पास की
दनिु या की नकल नहीं करते, जैसे कि बड़े करते हैं; लेकिन जैसा कि हम जानते हैं, जन्म के साथ ही बच्चों के
विकास की प्रक्रिया शरू ु हो जाती है, वह पेट के बल उलटता है, बैठना शरू ु करता है, घटु नों के बल चलता है
और अतं में स्वतंत्र रूप से चलना शरू ु कर देता है। बच्चे में कला सबं ंधी विकास कमोबेश कुछ इसी तरह होता
है, आरंभिक घसीटा लेखन से व्यापक और प्रभावी अभिव्यक्‍ति तक। इन अवस्थाओ ं में व्यक्‍तिगत विकास के
अनसु ार थोड़ा-बहुत अतं र हो सकता है, लेकिन उनकी गति कमोबेश स्थिर ही रहती है। बच्चों के विकास और
अधिगम की इस प्रक्रिया की समझ शिक्षकों के लिए बहुत ही मददगार है। इससे शिक्षक को प्रत्येक कक्षा/स्तर के
बच्चों की क्षमताओ ं का ध्यान रखते हुए उम्र सापेक्ष गतिविधियों की योजना बनाने में मदद मिलती है।
सगु मकर्ता एक स्लाइड-शो (सी.डी. संलग्न) दिखा सकते हैं, जिसमें बच्चों के कलात्मक विकास की
अवस्थाओ ं को दिखाया गया है।
तकनीकी बाधा की स्थिति में स्लाइड-शो से संबंधित हस्त पत्रक (handout), जो इस मॉड्यल ू के अतं में
दिया गया है, उसका उपयोग किया जा सकता है।

182
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

20
गतिविधि 6 अनुमानित समय मिनट

पूरे दिन की एक झलक


इस गतिविधि को दिन के अतं में करना चाहिए। इससे प्रतिभागियों
को अपनी प्रगति को जाँचने तथा अपने चितं न और अधिगम प्रक्रिया में आए
बदलावों को जानने में मदद मिलेगी। आवश्यकतानसु ार स्वयं की प्रतिभागिता पर
चितं न, जि़म्मेदारी ग्रहण करने तथा सधु ारात्मक उपाय करने की दिशा में एक
कदम है। इसके अतिरिक्‍त इससे सगु मकर्ता के प्रदर्शन के बारे में भी कुछ
संकेत मिलते हैं।

अनुमानित समय 20
(क) दिवस का समापन मिनट

सगु मकर्ता मॉड्यल


ू की मल
ू बातों को बोर्ड पर लिखकर या पढ़कर एक
झलक प्रस्तुत कर सकते हैं।
मुख्य िबंदु
• कला शिक्षा एक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से कला सजृ ित
होती है।
• सृजनशीलता कला के साथ गहराई से जुड़ी हुई है। बच्चों
को अपनी सृजनशीलता की अभिव्यक्‍ति की स्वतंत्रता
होनी चाहिए। पर्यावरण अध्‍ययन कक्षा में अँगल
ु ी-
• बच्चों को उनकी उम्र और विकास के स्तर के अनुसार गतिविधि, कठपतु ली का प्रयोग करती बच्‍ची
विषय-वस्तु और सामग्री दी जानी चाहिए।

अनुमानित समय 20
(ख) प्रतिपुष्‍टि पेटी मिनट

सगु मकर्ता प्रतिभागियों को निम्न तथ्यों पर आधारित अपनी प्रतिपष्‍टि


ु व सझु ाव देने के िलए
कह सकते हैं—
(क) अकादमिक निवेश।
(ख) भौतिक सवि ु धाएँ।
(ग) कोई अन्य मद्ु दा, जिसका संबंध इस कार्यक्रम से हो।
प्रतिभागी अपनी प्रतिपष्‍टि
ु सीधे प्रतिपष्‍टि
ु पेटी में या सगु मकर्ता द्वारा सझु ाए तरीके के
अनसु ार दे सकते हैं।

183
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

(ग) मेरा आज का दिन कै सा रहा? अनुमानित समय


20
मिनट

प्रक्रिया
प्रत्येक प्रतिभागी को एक अभिलेख-पत्र (record sheet) दे द।ें इसमें पाँच कथन तीन-तीन प्रदर्शन-संकेतकों के
साथ दिए गए हैं—
(क) काफ़ी हद तक (तीन स्माइली के साथ)
(ख) कुछ हद तक (दो स्माइली के साथ)
(ग) बहुत कम (एक स्माइली के साथ)

काफ़ी हद तक ☺☺☺
1. मैंने सभी गतिविधियों में परू े मन से भाग लिया। कुछ हद तक ☺☺
बहुत कम ☺

काफ़ी हद तक ☺☺☺
2. मैंने व्यक्‍तिगत गतिविधियों में अच्छा प्रदर्शन किया। कुछ हद तक ☺☺
बहुत कम ☺

काफ़ी हद तक ☺☺☺
3. मैंने अपने समहू के सदस्य के रूप में अच्छा प्रदर्शन किया। कुछ हद तक ☺ ☺
बहुत कम ☺

☺☺☺
काफ़ी हद तक
4. अवधारणाओ ं को स्पष्‍ट करने में सगु मकर्ता सफल ☺☺
कुछ हद तक
रहे। बहुत कम ☺

काफ़ी हद तक ☺☺☺
5. सगु मकर्ता गतिविधियों में प्रतिभागियों की रुचि उत्पन्न करने में ☺ ☺
कुछ हद तक
सफल रहे। ☺
बहुत कम

प्रतिभागियों से कहें, “आज के प्रदर्शन के लिए जो संकेतक आपके अनसु ार आपके लिए उपयक्‍त ु /संगत हैं, उनके
सामने () चिह्न लगाएँ।” इस रिकाॅर्ड शीट को सँभालकर रखने के लिए कहें, जिन्हें आखिरी दिन सक ं लित
किया जाएगा। प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करें कि वे यदि चाहें तो अपने अभिलेख-पत्रों को एक-दसू रे के साथ
साझा कर सकते हैं।

सगु मकर्ता सत्र-समापन के पर्व ू प्रतिभागियों को अगले दिन की गतिविधियों की सक्षिप्‍त


ं जानकारी देंगे। उनसे
अगले मॉड्यल ू की बेहतर तैयारी के लिए उससे संबंधित ‘अकसर पछू े जाने वाले प्रश्‍न’ को देख लेने का आग्रह
करें गे। सगु मकर्ता धन्यवाद ज्ञापन के साथ सत्र का समापन कर सकते हैं।

184
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

दूसरा भाग

अकसर पूछे जाने वाले प्रश्‍न (FAQs)


प्र.
1 कला क्या है?
कला संप्रेषण और सृजनात्मक अभिव्यक्‍ति का सार्वभौमिक तरीका है। कला एक भाषा है, जो प्राय: विविध
स्वरूपों में हमारे अनभु वों की अभिव्यक्‍ति और आस-पास की दनि ु या के प्रति हमारी धारणा को प्रकट करती
है। कला को मख्य ु तौर पर दो श्रेणियों में बाँटा गया है—दृश्य कला और प्रदर्शन कला। जब हम दृश्य कला
की बात करते हैं, तो कुछ ऐसी मर्त च
ू ीज़ों के बारे में सोचते हैं, जिन्‍हें हम स्पर्श कर सकते हैं, जैसे—चित्रकारी,
पेंटिंग, मर्ति
ू आदि। प्रदर्शन कला में वह शामिल है, जिसे हम देख, सनु या प्रदर्शित कर सकते हैं, जैसे—संगीत,
गायन, फि़ल्म, ड्रामा या नृत्य आदि। अतः कलाएँ बहुसंवेदी भाषा हैं, जो बहुत से ऐतिहासिक और सांस्कृतिक
संदर्भों को शामिल करती हैं।

प्र.
2 कला शिक्षा क्या है?
कला शिक्षा सवं ेदी अन्वेषणों को प्रोत्साहित करने की प्रक्रिया है।
यह विचार और सामग्रियों के साथ कार्य करते हुए अभिव्यक्‍ति
के सृजन हेतु आधार प्रदान करती है, जिन्हें के वल शब्दों में
व्यक्‍त नहीं किया जा सकता है। यह गीत, संगीत या प्रदर्शन
कलाओ ं के माध्यम से अशाब्दिक अभिव्यक्‍तियों को सामने
लाने हेत प्रो
ु त्साहित करती है।
प्र.
3 क्या कला और कला शिक्षा दो अलग-अलग अनशु ासन हैं? अशाब्दिक अभिव्यक्‍ति—‘कला
कला शिक्षा अधिक व्यापक शब्द है, जिसमें वे सभी प्रक्रियाएँ समेकित अधिगम’ (ए.आई.एल.) कक्ष
सम्मिलित होती हैं, जिनमें बच्चों को कला के माध्यम से अभिव्यक्‍त करने का अवसर दिया जाता है। ये दोनों
समान अनश ु ासन के अगं हैं, जिनमें कला शिक्षा ‘प्रक्रिया’ है, तो कला ‘उत्पाद’। अतः कला का शिक्षण बहुत
मह�वपर्ण
ू है, जो अनश ु ासन के रूप में कला के लिए आधार का कार्य करता है।
प्र. 4 हम दो शब्द ‘कला’ और ‘कला शिक्षा’ क्यों प्रयोग करते हैं?
बेहतर होगा इन दो शब्दों में से कला को ‘कला में शिक्षा’ और
कला शिक्षा को ‘शिक्षा में कला’ में विस्तारित किया जाए। ‘कला
में शिक्षा’ से तात्पर्य है—किसी एक कला पक्ष के व्याकरण, सिद्धांत
और प्रदर्शन तकनीक का विशिष्‍ट ज्ञान। दसू री तरफ ‘शिक्षा में कला’
के अतं र्गत न के वल व्याकरण, सिद्धांत, कला पक्षों से सबं िं धत तकनीक
शामिल हैं; बल्कि वो तमाम भाव, तथ्य भी शामिल हैं, जिनका किसी
कला पक्ष द्वारा व्यक्‍ति की वृद्धि और विकास में योगदान किया जा
सके । जो लोग ‘शिक्षा में कला’ से जड़ु े हैं, उन्हें किसी विशिष्‍ट क्षेत्र,
यथा—कंु भकारी या तबला के ज्ञान के अतिरिक्‍त उन तमाम कौशलों और
अनभु वों से अच्छी तरह वाकिफ़ रहने की आवश्यकता है, जिसका वह
अपने अध्येताओ ं को अनभु व देना चाहते हैं।
थिएटर खेल खेलते बच्‍चे

185
(डी.एम.एस.,आर.आई.ई., मैसरुु )
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
सीधे शब्दों में, कला शिक्षा शिक्षक द्वारा प्रदान किया जाने वाला अनभु व है, जहाँ विद्यार्थियों को स्वयं
तथा अपने चारों ओर की दनि ु या से संबंिधत धारणा को चित्रकारी, पेंटिंग, मर्ति
ू , थिएटर, नृत्य या संगीत के
माध्यम से अभिव्यक्‍त करने का अवसर दिया जाता है। कभी-कभी एक शिक्षक अपने विद्यार्थियों को तकनीक
पर ज़ोर देने के पहले माध्यम को और भी गहराई से समझने की स्वतंत्रता प्रदान करता है जबकि दसू रा शिक्षक
समझता है कि तकनीक अधिक महत्वपर्ण ू है और प्रतिफल/उत्पाद पर ज़ोर दे सकता है। कला, सृजनात्मक
प्रक्रिया का अति
ं म प्रतिफल/उत्पाद है, जो एक पेंटिंग, ड्रामा या सगं ीत के रूप में हो सकता है।

प्र.
5 सजृ नात्मकता क्या है? सजृ नात्मकता का कला से क्या सबं ंध है?
प्रसिद्ध कला शिक्षाविद् सर हरबर्ट रीड के अनसु ार, “सृजन अस्तित्व को गढ़ना है, जिसका पर्व ू में न कोई
स्वरूप था, न कोई गणु ।” सृजनात्मकता दैवीय शक्‍ति से जड़ु ी हुई है, अर्थात् कुछ नहीं से कुछ बनाने की क्षमता
है। साथ ही, यह पर्व ू से विद्यमान स्वरूपों को पनु ः व्यवस्थित कर एक नयी संरचना गढ़ने की क्षमता है। अतः
सृजनशीलता से तात्पर्य किसी अस्तित्व के सृजन या गढ़ने की प्रक्रिया से है, जिसका पर्व ू में कोई अस्तित्व नहीं
था या जो दसू रे रूप में पहले से ही हो और उससे कुछ नया सृजित करना है।
रॉबिंसन ने सृजनशीलता को परिभाषित करते हुए उसे ऐसी कल्पनाशील प्रक्रिया कहा है, जिसका उत्पाद
मौलिक और मल्य ू -आधारित हो। व्यापक अर्थ में सृजनशीलता किसी समस्या को नए दृष्‍टिकोण से दख े ने तथा
नए समाधान पाने के प्रयास करने की प्रक्रिया है। अतः सृजनशीलता आज की शिक्षा की कंु जी मानी जा सकती
है। कला के सभी पक्ष सृजनशीलता का पोषण करते हैं। अगर सही तरीके से उपयोग किया जाए तो कला,
व्यक्‍ति की सृजनशील अभिक्षमता को खोजने व समझने की स्वाभाविक प्रक्रिया प्रदान करती है। कला और
सृजनशीलता दोनों ही प्रोत्साहित करते हैं, जिनका प्रतिफल उत्पाद या अभिव्यक्‍ति के रूप में होता है।

प्र.
6 शिक्षा में सजृ नशीलता की क्या भूमिका है?
21वीं सदी में सृजनशीलता परू े विश्‍व में सर्वाधिक प्रचलित शब्द बन चक
ु ा है। अतः यह शिक्षा के कें द्र में भी है।
सृजनशील बच्चों में दृढ़ आत्मविश्‍वास और दसू रों के प्रति उच्च सवं ेदनशीलता होती है। विभिन्न अध्ययनों
के अनसु ार सृजनशील व्यक्‍ति के व्यक्‍तित्व संबंधी कुछ सामान्य गणु निम्नवत हैं—
• सृजनशील व्यक्‍ति बहुआयामी, हिम्मती, संसाधनशील, कर्मठ और स्वतंत्र होते हैं।
• उनमें जोखिम लेने की इच्छाशक्‍ति और अपनी गलती को भी स्वीकार करने का साहस होता है।
विद्यार्थियों में कलात्‍मक विकास को सराहतीं अध्‍यापिका
(एम.सी.पी.एस.,जनकपरु ी, िदल्‍ली)

186
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा
• उनमें अपने विचारों और भावनाओ ं को व्यक्‍त करने की क्षमता होती है।
• वे हाजि़रजवाब होते हैं।
• वे अपने मन में उठने वाले विचारों को स्वीकार करते हैं तथा उन पर विश्‍वास भी करते हैं।
• वे असामान्य समस्याओ ं और उनके समाधान में रुचि रखते हैं।
• उनमें नए संबंधों को बनाने और परंपरागत विचारों, विश्‍वासों को चनु ौती देने की क्षमता होती है।
• वे अपनी क्षमताओ ं को बढ़ाने में आनंद महससू करते हैं।
• वे किसी भी प्रकार के परु स्कार या पहचान की अपेक्षा समस्याओ ं के समाधान से प्रेरित होते हैं।
अतः सृजनशील वयस्कों के साथ-साथ सृजनशील बच्चों में एक सृजनशील समाज, एक शांतिपर्ण द ू श े बनाने
में महत्वपर्ण
ू योगदान देने की भरपरू गंजु ाइश है।

प्र.
7 क्या कला की सभी गतिविधियों को सजृ नात्मक माना जा सकता है?
सभी कला गतिविधियाँ सृजनात्मक हो सकती हैं, लेिकन आवश्यक नहीं कि सभी कला गतिविधियाँ
सृजनात्मक ही हों। सृजनात्मकता के पोषण हेतु एक िवशेष प्रकार का वातावरण बनाने की आवश्यकता
होती है। ‘कुछ हो रहा है’ की मनःस्थिति के साथ-साथ ‘बहुत ही संरचित वातावरण और एकाधिकारवादी
अभिवृि� के कारण सृजनशीलता को सर्वाधिक हानि होती है।’ विक्टर लॉएनफे ल्ड के अनसु ार, ‘सृजनशीलता
का अनिवार्य रूप से समर्थन करने के साथ-साथ उसको सामाजिक रूप से स्वीकार्य व्यवहारों/परिपाटियों से
निर्देशित भी होना चाहिए।’ अगर सही तरीके से की जाएँ तो सभी कला गतिविधियाँ बच्चे के सृजनात्मक
चितं न और कल्पनाशील विचारों के विकास में महत्त्वपर्ण
ू भमिू का निभा सकती हैं।

प्र.
8 कला में क्या-क्या सम्मिलित है? हम कला को सरल तरीके से कै से परिभाषित कर सकते हैं?
कला को दो व्यापक श्रेणियों में बाँटा जा सकता है—
(i) दृश्य कला— जैसे ही हम दृश्य कला
की बात करते हैं, तो हमारा आशय एक
ऐसी कलात्मक अभिव्यक्‍ति से होता है
जिसे दख े ा और स्पर्श किया जा सके ,
जैसे—चित्रकारी, पेंटिंग, मर्ति
ू कला, मद्रु ण,
डिज़ाइन, कोलाज, मख ु ौटा, पतु ली, कोई
प्रतिष्‍ठापन, आदि। दृश्य कला को देखने
या रिकाॅर्ड करने के उद्शदे ्य से उसे उसके
मल ू रूप में संग्रहीत या प्रदर्शित किया जा
ड्राॅइगं द्वारा रचनात्‍मकता
सकता है।
(ii) प्रदर्शन कला— इसके अतं र्गत वे कला पक्ष
आते हैं, जिन्हें दख
े ा, सनु ा या प्रदर्शित किया जा
सके , जैसे—संगीत, गायन, वादन, ड्रामा, नृत्य, मकू
अभिनय, पतु ली कला, आदि।
वस्तुतः कला एक बहु-संवेदी भाषा है, जो कई
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भों को समेटे
रहती है।
कोलाज का आनंद
187
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

प्र.
9 दृश्य कला से आप क्या समझते हैं?
एक ऐसा कला पक्ष जिसे दख
े ते ही सराहने की इच्छा होती है, जैसे—पेंटिंग, फोटोग्राफ़ी, मद्रु ण, फि़ल्म निर्माण,
मर्ति
ू कला, व्यावहारिक कला आदि दृश्य कला के रूप में जाने जाते हैं।

प्र.
10 दृश्य कला के कौन-कौन से अवयव हैं?
कला के अवयव किसी भी कला के मल ू भतू अगं होते हैं। ये हैं—रे खा, आकृ ति, स्वरूप, स्थान, बनु ावट,
मान्यताएँ और रंग। आइए, इन अवयवों के बारे में कुछ और जानकारी प्राप्‍त करते हैं—
• रेखा
रे खाएँ कई प्रकार की हो सकती हैं, जैसे—मोटी, पतली, टूटी हुई, मड़ु ी हुई, खरु दरी या चिकनी। रे खाओ ं की
कई दिशाएँ भी हो सकती हैं, जैसे—क्षैतिज, लंबवत, तिरछी या टेढ़ी-मेढ़ी। अलग-अलग रे खाएँ चित्र के
अलग-अलग भावों को प्रकट करती हैं। विभिन्न आकृ तियों के किनारों में भी रे खाएँ होती हैं।
• आकृति
रे खाओ ं द्वारा घिरे हुए क्षेत्र को आकृ ति कहते हैं। आकृ तियाँ ज्यामितीय होती हैं या मौलिक भी हो सकती हैं।
वर्ग, वृ�, त्रिभजु आदि ज्यामितीय आकृ तियाँ हैं। दसू री तरफ, मौलिक आकृ तियों से तात्पर्य उन आकृ तियों से
है जो हमें प्रकृ ति से प्राप्‍त होती हैं, जैसे—फूल, पत्ते आदि। प्रत्येक वस्तु, चाहे वह जटिल आकृ ति ही क्यों न
हो, उसे सरल आकृ तियों में तोड़ा जा सकता है जिससे बच्चे को आसानी से चित्रित करने में मदद मिलती है।
• स्वरूप
ऐसी कोई आकृ ति जिसमें मोटाई या गहराई हो, उसे स्वरूप कहते हैं, जैसे—गोला, बेलन, घनाभ आदि।
आप किसी आकृ ति को छायांकित कर एक सरल स्वरूप दर्शा सकते हैं, जिसके लिए विभिन्न तकनीक,
यथा— हैचिगं (Hatching, रे खा छाया के प्रयोग से चित्र), स्मजिंग (Smudging, दाग लगाना) या स्टिपलिंग
(Stippling, बिंदी-बिंदी से चित्र बनाना) का उपयोग कर सकते हैं। स्वरूप सचित्र या संरचित हो सकते हैं।
• रंग
सतहों से प्रकाश के परावर्तन के माध्यम से रंगों को देखा जाता है। रंग प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक श्रेणी
के होते हैं। परू क रंग वैसे रंग होते हैं जो रंग चक्र पर एक-दसू रे के विपरीत होते हैं। इनका उपयोग विविधता के
सृजन हेतु होता है। लाल, पीले और नारंगी रंगों के समहू
को चटकीले रंगों का समहू कहा जाता है। बैंगनी, हरे और
नीले रंगों के समहू को शांत रंगों का समहू कहा जाता है।
प्राथमिक रंग प्राथमिक रंग— वे रंग हैं जिनसे बाकी सभी रंगों का
निर्माण होता है। लाल, नीला और पीला प्राथमिक रंग है।
द्वितीयक रंग— जब दो प्राथमिक रंगों के समान भाग
को आपस में मिलाया जाता है तो द्वितीयक रंग मिलते हैं,
संतरी हरा बैंगनी जैसे— लाल + नीला = बैंगनी।
िद्वतीयक रंग
• स्थान
किसी खास वस्तु द्वारा घेरे गए क्षेत्र को स्थान कहते हैं। इसमें आगे का भाग, बीच का भाग तथा पाश्‍वर्
भाग शामिल होता है। स्थान दो प्रकार के होते हैं—धनात्मक स्‍थान और ॠणात्मक स्थान। धनात्मक
स्थान से तात्पर्य है—विषय-वस्तु का प्रतिनिधित्व करने वाली आकृ ति का स्थान। ॠणात्मक स्थान
से तात्पर्य है—विषय-वस्तु के बीच तथा चारों तरफ का स्थान।
रंग चक्र
188
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा
• बुनावट
बनु ावट से तात्पर्य है—कोई वस्तु कै सी लगती है या लगने का भाव उत्पन्न करती है। कला में दो तरह की
बनु ावट हैं—वास्तविक बनु ावट और अतं र्निहित बनु ावट। वास्तविक बनु ावट के अतं र्गत सैंड पेपर, कॉटन बॉल,
पेड़ की छाल या जानवरों के रोएँ शामिल हैं। अतं र्निहित बनु ावट एक तरीका है, जिसमें वस्तु की सतह वैसी ही
दिखती है, जैसी महससू होती है। बनु ावट देखने में खरु दरी, बल
ु बल
ु े जैसी, कंकरीली प्रतीत हो सकती है, लेकिन
वास्तव में ऐसा नहीं होता। इसे आरे खित या सरं चित किया जा सकता है।
प्र.
11 सयं ाेजन क्या है? पें�टग के सयं ोजन का उदाहरण दीजिए।
किसी भी कलाकृ ति में डिज़ाइन के तत्वों को व्यवस्थित तथा
उपयोग करने हेतु कोई न कोई सोच होती है। इन तत्वों को
नििश्‍चत तरीके से व्यवस्थित करना संयोजन कहा जाता है।

प्र.
12 दृश्य कला में परिप्रेक्ष्य क्या है?
परिप्रेक्ष्य एक तकनीक है जिसका उपयोग द्विआयामी सतह
(जैसे—कागज़ या कै नवास) पर त्रिआयामी चीज़ों को प्रदर्शित
करने हेतु कुछ इस तरह किया जाता है कि वे उसी तरह
वास्तविक दिखें, जैसे िक प्रकृ ति में दिखती हैं। परिप्रेक्ष्य का चित्र संयोजन
उपयोग समतल सतह पर स्थान और गहराई का आभास सृजित करने में होता है।
परिप्रेक्ष्य का प्रयोग दरू और पास की वस्तुओ ं के बीच अतं र स्‍पष्‍ट करने हेत किु या जाता है। इसके लिए पास
की वस्तुओ ं की तल ु ना में दरू की वस्तुओ ं को दिखाने हेतु उन्हें छोटा, एक-दसू रे पर व्याप्‍त दिखाया जाता है।
इसके लिए विस्तृत विवरण का इस्तेमाल तथा हलके रंगों का उपयोग किया जा सकता है जबकि पास की वस्तु
दिखाने हेतु अपेक्षाकृ त चटकीले रंगों का उपयोग किया जा सकता है।

प्र. 13 लोक कलाओ ं से हम क्या समझते हैं?


इस शब्द का उपयोग हम उन कलाओ ं के लिए
करते हैं जिनका उपयोग समदु ाय में किया जाता
है। प्रायः इन्हें सामहि
ू क रूप से किया जाता
है, जिसमें परू े समदु ाय के सदस्य भाग लेते हैं।
उदाहरण के लिए, लोकगीत या लोकनृत्य जिसमें
गाँव की सभी महिलाएँ भाग लेती हैं। इसमें उस
गाँव के सभी परुु ष भी भाग ले सकते हैं। लोक
कलाओ ं में हम अन्य गतिविधियाँ, जैसे—दीवार
पेंटिंग, रंगोली, कोलम बनाना, मेहदं ी डिज़ाइन
डिज़ाइन बनाने हेतु मेहदं ी का उपयोग करते बच्चे आदि को भी सम्मिलित कर सकते हैं।
प्र.
14 शास्‍त्रीय कला से आप क्या समझते हैं?
शास्‍त्रीय कला वह कला है जिसमें कुछ स्थापित नियम या संहिता का पालन किया जाता है। भारत में अनेक
ऐसी कलाएँ हैं जो शताब्दियों परु ानी परंपराओ,ं नियमों पर आधारित हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही आधिकारिक
रूप से शास्‍त्रीय कला कही जाती हैं। नृत्य में भरतनाट्यम, कत्थक, कुचीपड़ी ु , मणिपरु ी, ओडिशी इत्यादि भारत
के शास्‍त्रीय नृत्य के प्रकार हैं। संगीत में दक्षिण भारत का कर्नाटक संगीत और उत्तर भारत का हिन्दुस्तानी संगीत
शास्‍त्रीय सगं ीत कहे जाते हैं।
189
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

प्र.

15 बच्चों के िलए शास्‍त्रीय कलाएँ सीखने की उपयुक्‍त उम्र क्या होनी चाहिए?
शास्‍त्रीय नृत्य और संगीत के अधिकांश शिक्षकों के अनसु ार शास्‍त्रीय नृत्य या संगीत सात या आठ वर्ष की उम्र
में सीखना शरू
ु करना चाहिए।

प्र.
16 सौंदर्यबोध क्या है? यह कला से किस प्रकार सबं ंधित है?
सौंदर्यबोध अध्ययन का एक अनभु ाग है। इसे कला की सराहना के दर्शनशास्‍त्र के रूप में समझा जा सकता है।
साथ ही यह कला के प्रति हमारी सांवेगिक प्रतिक्रियाओ ं का भी अध्ययन है। जैसे—जब हम दख ु ांत/उदासीपर्ण

फि़ल्म दखे ते हैं तो हमें कै सा महससू होता है? जब एक मधरु गीत सनु ते हैं तो कै सा लगता है? जब मजे़दार
नाटक देखते हैं तो कै सा लगता है? ये सभी स्थितियाँ कला अनभु वों के प्रति हमारी संवेदनाओ ं को प्रकट करती
हैं। विभिन्न विद्वानों और दर्शनशास्‍त्रियों ने सौंदर्यबोध के विभिन्न सिद्धांतों को प्रस्तुत किया है कि किस प्रकार
दर्शक विभिन्न प्रकार की कलाओ ं के प्रति प्रतिक्रिया देते हैं।

प्र.
17 क्या कला के सभी स्वरूप सदुं र हैं? कला और सदुं रता में क्या सम्‍बंध है?
अलग-अलग लोगों के लिए संदु रता के अलग-अलग मायने होते हैं; इसीलिए जब हम किसी कला को पहली
बार देखें तो हो सकता है कि वह हमें संदु र न लगे। हालाँकि, कला इस ब्रह्मांड में पाए जाने वाले सभी संवेगों
तथा अनभु वों को समेटे रहती है, पर ज़रूरी नहीं कि सभी संवेग मन को भाने वाले और संदु र हों। घृणा, क्रोध
या द:ु ख के भावों को ही लीजिए; ये वास्तविक जीवन में खबू सरू त नहीं हैं, लेकिन जब हम किसी के अच्छे
अभिनय को देखते हैं जिसमें हमें लगता है कि अभिनेता क्रोध, द:ु ख या घृणा के अभिनय को बखबू ी निभा रहा
है, तब हम उसके बेहतरीन अभिनय का आनंद उठाते हैं।
प्र.
18 कला और शिल्प में क्या सम्‍बंध है?
कला और शिल्प दोनों ही सृजनात्मक गतिविधियाँ हैं। शिल्प से तात्पर्य कुछ उपयोगी और काम आने लायक
चीज़ें बनाना है, जैसे—मिट्टी के बर्तन बनाना, मर्ति
ू बनाना, वस्‍त्र बनु ना आदि। कलाओ ं में भी ये कौशल शामिल
हैं, लेकिन इन तकनीकी कौशलों से आगे इसमें कल्पना और अध्यात्म के भी मद्ु दे होते हैं।
प्र.
19 बच्चों को ड्रामा और थिएटर में क्यों भाग लेना चाहिए?
ड्रामा की एक सनि ु योजित कक्षा बच्चों में सभी संभव तरीकों (शारीरिक, मानसिक, सांवेगिक और अाध्यात्मिक)
के िवकास में सहायक होती है। ड्रामा और थिएटर हमें विभिन्न पात्रों में ढलकर विचारों व भावों की अभिव्यक्‍ति
के अवसर देते हैं। बच्चे क्या जानते हैं, महससू करते हैं और सोचते हैं, इसकी अभिव्यक्‍ति का मौका देना उनके
विकास का महत्‍वपर्ण ू अगं है। ड्रामा, कला का सबसे स्वाभाविक पक्ष है जिससे बच्चे आसानी से जड़ु सकते हैं।
बच्चों को सनु ना, उन्हें बातचीत करने के मौके देना और उन्हें खेलने की स्वतंत्रता देना, बच्चों के लिए ड्रामा का
आधार है। इस तरह के अवसर मिलने से वे अधिक अभिव्यक्‍तिपर्णू , संप्रेषणशील (शाब्दिक और अशाब्दिक
रूप से), आत्मविश्‍वासी, सहयोगी तथा सृजनशील बन जाते हैं।
बच्चे बड़ों की बोली, गति और उनके कार्यों की नकल करना पसंद करते हैं। वे इस तरह से सीखते हैं।
साथ ही यह दनि ु या के बारे में उनके ज्ञान की पष्‍टि
ु का भी माध्यम है। वे जीवन की विभिन्न स्थितियों में अभिनय
करना सीखते हैं। अतः ड्रामा उन्हें उनके भावी जीवन के लिए तैयार करता है।
ड्रामा कला का मिश्रित स्वरूप है। यह आसानी से दसू रे कला पक्षों, जैसे—नृत्य, संगीत, फ़ोटोग्राफ़ी आदि
को समाहित कर लेता है। ड्रामा की समावेशी प्रकृ ति बच्चों को कल्पनाशील तथा सृजनशील बनने का अवसर
प्रदान करती है। ड्रामा में हम दसू रे व्यक्‍तियों के जीवन और उनके आस-पास की परिस्थितियों को सम्मिलित
करते हैं। इससे उनकी अपने आस-पास के जीवन को समझने की समझ बढ़ती है।

190
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

प्र.
20 ड्रामा के कौन-कौन से अवयव हैं ?
ड्रामा, कला के सभी पक्षों का समावेश करने की क्षमता रखता है, लेकिन ड्रामा का अवयव जो इसे दसू रे कला
पक्षों से अलग करता है, वह है ‘अभिनय’। दसू रे शब्दों में, किसी व्यक्‍ति का किसी दसू रे व्यक्‍ति की भमि
ू का में
रूपांतरण ही ड्रामा है। ब्रिटेन की डोरदी हथको ड्रामा के छः तत्व बताती हैं—संभाषण, चपु ्पी, गति, स्थिरता,
प्रकाश और अधं कार। ड्रामा की प्रक्रिया में इन तत्वों की भमि
ू का को हमेशा देखा जा सकता है।

प्र.
21 ड्रामा या थिएटर क्या है?
थिएटर और ड्रामा दो शब्द हैं जो व्यापक रूप से एक-दसू रे के बदले प्रयक्‍त कि
ु ए जाते हैं, लेकिन प्रत्येक
शब्द का अभिप्राय अलग है। जब हम थिएटर कहते हैं, तब हम मख्य ु तः दर्शकों के लिए एक नाटक में प्रदर्शन
के बारे में सोचते हैं। ड्रामा में
हम अभिनय, रोल-प्ले के
माध्यम से विषय के बारे में
सभी संभावित खोजबीन
करते हैं। यद्यपि यह आवश्यक
नहीं, फिर भी प्रतिभागियों को
परिस्थिति के आलोचनात्मक
चितं न का अवसर दिया जाता
है। दसू री तरफ़, ड्रामा का
मतलब भी नाटक ही है। कला िशक्षा प्रशिक्षण के दौरान कहानी प्रस्तुत करते मास्टर ट्रेनर्स
(डी.आई.ई.टी., राजेन्दर नगर, दिल्ली)
प्र. किस
22 प्रकार ड्रामा और थिएटर टीम भावना विकसित करने में मदद करते हैं?
सामान्यतः ड्रामा में हम समहू में कार्य करते हैं। संवाद की निरंतरता हेतु एक व्यक्‍ति को पहले दसू रों की बात
सनु नी ज़रूरी होती है। सही समय और सही क्रम में संवाद अदायगी और गति हेतु बच्चों को एक-दसू रे के
साथ समन्वय स्थापित करना आवश्‍यक होता है। सामहि ू क कला के रूप में, थिएटर में परस्पर समन्‍वय की
ज़रूरत न के वल अभिनेताओ,ं बल्कि उन सभी को पड़ती है जो नाटक में शामिल रहते हैं, जैसे—संगीतकार,
मच निर्मा
ं ता, प्रकाश व्यवस्थापक एवं अन्य। बच्चों के समहू का प्रत्येक प्रदर्शन उनका आपसी जड़ु ाव बढ़ाता
है। दसू रों द्वारा की गई सराहना से वे मिलकर सफलता का उत्सव मनाने के लिए प्रेरित होते हैं। पनु ः एक साथ
प्रदर्शन करने का उत्साह आगे उन्हें टीम के रूप में कार्य करने हेत प्रे
ु रित करता है।
प्र.
23 ड्रामा बच्चों की सजृ नात्मक क्षमता को कै से बेहतर कर सकता है?
ड्रामा करने से बच्चों के शारीरिक और मानसिक अवरोधों को तोड़ने में मदद मिलती है और बच्चों को अपनी
सृजनशीलता के विस्तार हेतु आधार मिलता है। ड्रामा का सबसे महत्वपर्ण ू तत्व बच्चों को गलती करने के भय
से मक्‍त
ु करना है। गलती करने के भय के रहते कोई भी सृजनशील नहीं हो सकता। ड्रामा बच्चों की सोच और
भावनाओ ं को समायोजित करता है। जब वे अपने जीवन के अनभु वों से स्थितियों का निरूपण करते हैं तो ड्रामा
में उनके विचारों का स्वतः स्फूर्त प्रभाव शामिल हो जाता है। ड्रामा के माध्यम से वे जीवन की नयी स्थितियों
में प्रवेश करते हैं तथा स्वयं को अप्रत्याशित स्थितियों के लिए तैयार करते हैं। ये सभी स्थितियाँ उन्हें अधिक
सृजनशील बनने में सहायता करती हैं।

प्र.
24 मूक अभिनय क्या है?
बिना किसी संवाद के के वल शारीरिक गति तथा भाव भगि
ं मा के माध्यम से किसी दृश्य या स्थिति की नाटकीय
प्रस्तुति मक
ू अभिनय कहलाती है।
191
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

प्र.

25 क्या पुतली नाट्य कला है? बच्चों के लिए इसका क्या महत्व है?
जब भी कोई व्‍यक्‍ति या वस्‍तु दसू रा रूप धारण करते हैं तो वहीं से ड्रामा की श्‍ाुरूआत हो जाती है। ड्रामा में इस
रूप बदलने की प्रक्रिया को रूपांतरण कहते हैं, जो ड्रामा का मल ू तत्‍व है। जैसे ही हम पतु ली को िकसी चरित्र
का नाम देते हैं तो वह उसी में रूपांतरित हो जाती है।
पतु ली कला बच्चों के लिए एक महत्वपर्ण ू नाट्य कला है। सर्वप्रथम, छोटे बच्चे पतु ली से जल्दी ही जड़ु
जाते हैं। वे इसे अपने खिलौनों के ससं ार का ही हिस्सा समझते हैं। सभी उम्र के बच्चों को पतु ली के माध्यम से
अपनी बातें कहना आसान लगता है। साथ ही वे विभिन्न वस्तुओ ं का रख-रखाव, उनकी सरु क्षा आदि अनेक
चीजें़ सीखते हैं। अगर पतु ली उनके द्वारा बनाई गई हो तो उन्हें कलात्मक और सृजनात्मक संतष्‍टि
ु भी मिलती है।

प्र.
26 सजृ नात्मक ड्रामा क्या है?
सृजनात्मक ड्रामा में बच्चों को अपने विचार के अनरू ु प कार्य करने का अधिकतम अवसर मिलता है। बड़ों
के पर्यवेक्षण में बच्चे कहानी का प्लॉट बना सकते हैं, नाटक हेतु पटकथा लिख सकते हैं, अपनी भमि ू का
निर्धारित कर सकते हैं और स्वयं ड्रामा का निर्देशन भी कर सकते हैं। वे यह सारा कार्य दर्शकों की उपस्थिति
या अनपु स्थिति में भी कर सकते हैं। वयस्क के रूप में समय-समय पर हमारा सकारात्मक हस्तक्षेप उनके
लिए इस प्रक्रिया को और भी उत्साहवर्द्धक
और अर्थपर्ण ू बना सकता है। आरंभ में हमें
कहानी या नाटक हेत कि ु सी खास सरं चना
की चितं ा करने की आवश्यकता नहीं है। हमें
उन चीजों का भी स्वागत करना चाहिए जो
संदर्भ के अनसु ार संवेदनशील न भी प्रतीत
होती हों। बच्चों को बिना किसी निष्कर्ष
वाले नाटक भी करने दने ा चाहिए। बच्चों
को अपने विचारों से खेलने का अवसर
मिलना चाहिए जिससे वे अधिक से अधिक
सृजनात्मक ड्रामा (कला िशक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम, संभावित सृजनात्मक चनु ौतियों का सामना
डी.आई.ई.टी., राजेन्दर नगर, िदल्‍ली) कर सकें ।

प्र.
27 क्या नाटक एक मंच या प्रेक्षागहृ के बिना प्रदर्शित हो सकता है?
नििश्‍चत रूप से कोई नाटक बिना मच ं या प्रेक्षागृह के भी संचालित हो सकता है। वास्तव में हम प्रस्तुतीकरण
की योजना एवं दर्शकों को बैठने की बेहतर व्यवस्था बनाकर किसी भी स्थान, सतह या छत को मच ं का स्वरूप
प्रदान कर सकते हैं। कभी-कभी विद्यालय प्रांगण का भाग, जैसे—सीढ़ी, गलियारा, बरामदा, पेड़ के नीचे या
पृष्‍ठभमि
ू में दीवार वाला स्थान या अन्य इसी तरह के स्थान किसी भी नाटक के लिए बेहतर हो सकते हैं। इस
तरह की पर्वनिर्मि
ू त व्यवस्था किसी भी मच ं व्यवस्था से बेहतरीन हो सकती है। अगर प्रेक्षागृह उपलब्ध हो
तो हम उसे हर बार एक नवाचारी ढंग से उपयोग करने के बारे में सोच सकते हैं। किसी नाटक या सांस्कृतिक
कार्यक्रम के एक भाग का आयोजन मच ं पर तथा दसू रे भाग को विद्यालय के किसी अन्य भाग में आयोजित
करना आकर्षक और उत्साहपर्ण ू हो सकता है।
प्र.
28 नुक्कड़ नाटक क्या है?
जो लाेग िकसी कारणवश प्रेक्षागृह या खास प्रदर्शन स्‍थल तक नहीं पहुच
ँ सकते, उन तक िकसी मदु द् े को
पहुचँ ाने के िलए गली अथवा सड़क के नक्‍कड़
ु पर आयोिजत नाटक को नक्‍कड़
ु नाटक कहा जाता है। नक्‍कड़

192
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा
नाटक का प्रदर्शन खल
ु े में होता है, जहाँ कोई भी इसमें भाग ले सकता है। प्रेक्षागृह में दर्शक मच
ं के सामने होते
हैं, जबकि नक्क
ु ड़ नाटक में चारों ओर फै ले होते हैं। अतः कलाकारों को इस तरह से प्रदर्शन करना पड़ता है कि
चारों तरफ़ खड़े लोग उन्हें दख
े और सनु सकें ।

प्र.
29 क्या हम बिना किसी �ांृगार, पोशाक, सगं ीत और मंच व्यवस्था के नाटक कर सकते हैं?
बिलकुल, हम कर सकते हैं। वास्तव में, अगर इसे हम अपनी आदत में शामिल कर लें या हम बिना किसी मच ं
सामग्री के अधिकाधिक प्रदर्शन कर सकें तो इससे बच्चों में बेहतर अनभु व के साथ ड्रामा या थिएटर कला की
गहरी समझ बनेगी। साथ ही, हमें यह भी नहीं भल ू ना चाहिए कि बच्चों को आकर्षक ढंग से कपड़े पहनकर
सजना, नए रूप बनाना, गाना, नाटक और उपयक्‍त ु व्यवस्था में लक ु ा-छिपी जैसे खेल खेलना आदि बहुत
अच्छा लगता है। इसके अलावा भी इन चीज़ों के प्रयोग से उनमें प्रबंधन, समन्वयन तथा उत्साहपर्ण ू ढंग से
समारोह मनाने की भावना विकसित करने में मदद मिलती है।

प्र.
30 क्या ड्रामा और थिएटर से बच्चों के व्यक्‍तिव का विकास होता है?
थिएटर बच्चों को मन, मस्‍तिष्‍क और शरीर से भाग लेने का अवसर देता है। जब वे किसी स्वाभाविक गतिविधि
में भाग लेते हैं तो वे अपनी प्रतिक्रिया, विचार और अभिवृि� को संप्रेषित करते हैं। थिएटर, सामहि
ू क प्रयास
होने के कारण, बच्चों को अपने क्रियाकलापों को विविध परिप्रेक्ष्य में दख े ने का अवसर प्रदान करता है।
सगु मकर्ता या शिक्षक का सहयोग उन्हें अपनी शक्‍तियों और कमज़ोरियों को समझने में मदद करता है। एक
अनभु व के रूप में थिएटर बच्चों के सर्वांगीण विकास को सगु म बनाता है। इससे बच्चों में भयमक्‍त
ु वातावरण
में शारीरिक गतिविधियों के साथ भावात्मक और संज्ञानात्मक विकास का अवसर मिलता है। अगर कोई भी
कला गतिविधि मात्र एक नकल हो जाती है, तो यह उबाऊ बनकर रह जाएगी, क्योंकि यह कला के अविरल
प्रवाह को नकारती है।
प्र.
31 सगं ीत क्या है?
हम अपने चारों तरफ़ तरह-तरह की ध्वनियों को सनु ते हैं। ये विभिन्न प्रकार की होती हैं—तेज़, मधरु , तीक्ष्ण,
रोमाटि
ं क, कारूणिक, उल्लासपर्णू , आदि; लेकिन जो ध्वनि कर्णप्रिय होती है, उसमें सरु और ताल होता है, उसमें
एक व्यवस्थित आरोह और अवरोह होता है जिसके माध्यम से विभिन्न पैटर्न और सवं गे ों का सप्रेष
ं ण होता है।

प्र.
32 क्या वातावरण की प्रत्येक ध्वनि सगं ीत होती है?
सगं ीत एक कला है, जिसका माध्यम ध्वनि है। जब हम आवाज़ों की दनि ु या से गजु रते हैं, तो हमें तरह-तरह की
अावाज़ें सनु ने को िमलती हैं, जो अदभ् तु और रुचिकर होती हैं। जैसे—मौलिक, बादलों की गर्जना, घास
पर पदचाप की तरह नरम, पक्षियों और जानवरों की आवाज़ें, फे री वाले या तरह-तरह की मानव ध्वनियाँ,
नदी की कलकल, पत्तियों की सरसराहट, वर्षा की टिपटिप और प्रकृ ति की अनेकों ध्वनियाँ। क्‍या इनमें
िकसी को संगीत सनु ाई दे सकता है?
मानव ने इन ध्वनियों का अनक ु रण कर इन्हें पनु ः उत्पादित कर व्यवस्थित ढगं से इन ध्वनियों को
निकालने का मार्ग प्रशस्त किया। जैस—
े सात सरु ों व अन्य सरु ों के अनगिनत प्रकार के मिलान से सगं ीत का
निर्माण किया। इन आवाज़ों को सगं ीत बनने के िलए इनका लयात्‍मक सयं ोजन (जो कानों को मधरु
लगे) आवश्‍यक है, नहीं तो इनके शोरगल ु बन जाने का ज्‍यादा खतरा हो सकता है। वास्तव में,
यह एक यात्रा है जिसके क्रम में हम विविध प्रकार के सगं ीत सृजन को महससू करते हैं।
मेला इसका सदंु र उदाहरण है, जहाँ क्रे ता-विक्रे ता चिल्लाते रहते हैं;
सर्क स, जादगू र का खेल चलता रहता है; बच्चे दौड़ते रहते हैं; ध्वनि
गाँधी की भिू मका में एक बच्‍चा (एम.सी.पी.एस., पख
ं ा रोड)
193
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
विस्तारक आवाज़ करते रहते हैं, इन कारणों से यहाँ कोलाहल या तेज़ ध्वनि की स्थिति बनी रहती है। यह सगं ीत
बेशक नहीं है, लेकिन इसमें सगं ीत के सभी तत्व हैं, बशर्ते आप इस कोलाहल को एक बेहतर क्रम में व्यवस्थित
कर सकें । एक सगं ीतकार इन स्थितियों में भी सगं ीत के लिए ध्वनियों का सयं ोजन कर सकता है।

प्र.
33 सगं ीत क्यों महत्वपूर्ण है?
भारतीय परिदृश्य में हम सब संगीत के सागर में गोते लगाते रहते हैं। गाना गनु गनु ाना सभी भारतीयों का
स्वाभाविक गणु है। सर्य
ू की किरणें जैसे ही हमारे गोलार्द्ध में प्रवेश करती हैं, मदं िर में मत्रं और भजन, मस्जिद
में अजान और नमाज़, चर्च में दवे स्तुति, गरुु द्वारा में शबद कीर्तन तथा धार्मिक स्थानों पर घटि ं यों की आवाज़
सनु ाई देती है।
इस तरह हमारी पहली दैनिक गतिविधि में ही प्रथमतः संगीत का योगदान है। संगीत मस्तिष्क को जगाता
है। साथ ही यह प्रमाणित और आज़माया हुआ तथ्य है कि संगीत निम्न क्षमताओ ं की वृद्धि करता है—
• एकाग्रता का स्तर • शांति
• खश ु ी • शारीरिक और मानसिक थकान को दरू कर तरोताज़ा करना
• प्रेरणा • लोगों में एकता को बढ़ावा देना
• अच्छी सोच व विचार जागृत करना

देश के विभिन्न भागों के कें द्रीय तिब्‍बती स्‍कू लों के अध्‍यापक एक साथ गाते हुए
सज्ं ञानात्मक विज्ञान से संबंधित शोधों पर आधारित कुछ उपयोगी सचू नाएँ, मस्तिष्क के विकास में संगीत के
संबंध को स्पष्‍ट करती हैं। इसके अनसु ार तकनीकी विकास ने हमें यह अवसर प्रदान किया है कि चितं न की
अवस्था में हम मस्तिष्क के क्रियाकलापों का अवलोकन कर सकते हैं। उदाहरणार्थ, यह देखा गया है कि जब
कोई स्‍वरमान (pitch) और स्वर की विविधता वाली मधरु ध्वनि सनु ता है, तब मस्तिष्क का दाहिना हिस्सा
सक्रिय हो उठता है। जब कोई अपने कानों से संगीत सनु ता है, तब भी यह भाग जागृत हो जाता है। हालाँकि
जो लोग संगीत सीखते हैं, मल ू संकेत, धनु और भावों को समझते हैं; दसू रे विवरणों तथा स्वरों के क्रम का
अनश्रु वण करने में सक्षम होते हैं, उनका मस्तिष्क का बायाँ हिस्सा सक्रिय हो जाता है। महत्वपर्ण ू रूप से
विश्‍लेषण एवं गणितीय चितं न के क्रम में भी यही क्षेत्र सक्रिय होता है।
मस्तिष्क पर सगं ीत के प्रभाव सम्‍बंधी विभिन्न अध्ययनों ने यह सनििश्‍च
ु त किया है कि किसी भी अन्य
उत्तेजना की तल ु ना में संगीत के फलस्वरूप मस्तिष्क के बाएँ और दाएँ गोलार्द्ध तथा संवेग एवं स्मृति से संबंधित
क्षेत्र के बीच बेहतर संयोजन स्थापित होता है।

194
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

प्र.
34 सगं ीत का क्या प्रभाव होता है?
सगं ीत का प्रभाव शाश्‍वत है। आइए, एक उदाहरण देखते
हैं। एक देश का राष्‍ट्रीय गान परू े दश
े , संपर्ण विश्‍व
ू में एक
ही तरह से गाया जाता है। यह राष्‍ट्र का गौरव होता है।
ओलंपिक या किसी अतं र्राष्‍ट्रीय खेल स्पर्धा में जब किसी
विजयी खिलाड़ी या खिलाड़ियों के दल को पदक प्रदान
किया जाता है तो उस देश का राष्‍ट्रीय गान बजाया जाता है।
आपने कई बार देखा होगा कि जब राष्‍ट्रीय गान बजता है
तो विजेता की आँखों से अश्रुधारा फूट पड़ती है जोकि एक
सामान्य दृश्य होता है। अपना राष्‍ट्रगान सनु कर जो संवेग
उभरता है, वह वास्तव में आतं रिक खश ु ी का प्रवाह है। एक
तथ्य सनििश्‍च
ु त है कि अगर उसी राष्‍ट्रीय गान को पढ़कर
सनु ाया जाए, तो इस ऊँचे स्तर की गर्व या खश ु ी की भावना
नहीं आ सकती। यह सात सरु ों का जादू है। इन सरु ों की मदद
से बनु े हुए ताने-बाने के पैटर्न का ही जादू है जो खश ु ी, ऊर्जा बच्‍चे संगीत की रचना को एकाग्र मन से गाते हुए
(एम.पी.वी., नई चौखडं ी, दिल्‍ली)
और पनु रुद्धार को प्राप्‍त करने का आसान तरीका है।

प्र.
35 सगं ीत के मौलिक अवयव क्या हैं?
सगं ीत के बहुत से मौलिक या मल
ू भतू अवयव हैं। ये हैं—सरु , स्वर संगति, श्रुति, स्वर की पिच, ताल या लय,
स्वर की विविधता व रस अभिव्यक्‍ति संबंधी विशेषताएँ (गति व स्वरूप) और संरचना।

प्र.
36 मधुर सगं ीत क्या है?
भारतीय सगं ीत मधरु सगं ीत पर आधारित है। मधरु सगं ीत एक के बाद एक ध्वनि करने वाले सरु ों की �ांृखला है।
मधरु संगीत के सरु विशिष्‍ट रूप से किसी स्के ल के सापेक्ष निर्मित होते हैं। संगीत के प्रत्येक सरु की एक विशिष्‍ट
आवृि� होती है, जो एक-दसू रे से स्वतंत्र होती है। फिर भी एक-दसू रे से एक संगीत के द्वारा उसी तरह संबंधित
रहते हैं, जैसे हार में संदु र मोती। मधरु संगीत के तत्व हैं—पिच, अवधि और स्वर विशेषता।
अभिव्यक्‍ति और गति— अभिव्यक्‍ति से तात्पर्य है—भावों का प्रकटीकरण; जबकि गति किसी सगं ीत के
विभिन्न स्तरों पर तीव्रता और मदं ता से सबं धिं त है। साथ ही इनका सबं धं िकसी खास प्रदर्शन में प्रस्तुतकर्ता द्वारा
बारीिकयों को िवशेष अदं ाज़ों में बार-बार दोहराने से भी है।

प्र.
37 भारतीय सगं ीत में तकनीकी शब्द, जैसे—श्रुति, स्वर, सप्‍तक और मापक, स्वरमान, लय तथा नाद से
आप क्या समझते हैं?
• श्रुति— ऐसी संगीतमय ध्वनि जिसको साफ़-साफ़ सनु ा जा सके और एक-दसू रे से स्पष्‍ट तथा अलग-अलग
पहचाना जा सके , उसे श्रुति कहते हैं। भारतीय सगं ीतज्ञों ने 22 ध्वनियों की पहचान की है जो सगं ीतमय हैं। ये
ध्वनियाँ एक नििश्‍चत अतं राल के साथ आरोही क्रम में निम्न से उच्च की ओर बढ़ती हैं।
• स्वर— स्वर की उत्पत्ति में श्रुति की महत्वपर्ण
ू भमिू का है। संगीतज्ञों ने श्रुति से शद्ध
ु और विकृ त स्वरों की
पहचान की है।
स्वर दो प्रकार के होते हैं — शद्ध
ु स्वर और विकृ त स्वर।
आइए, अब हम इन स्वरों के अर्थ को देख— ें

195
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
• शुद्ध स्वर— वे स्वर जिन्हें श्रुति तालिका में एक नििश्‍चत स्थान दिया गया है, शद्ध ु स्वर कहलाते हैं।
• विकृत स्वर— विकृ त स्वर ऐसे स्वर हैं जो श्रुति तालिका में दिए गए नििश्‍चत स्थान से बदलते रहते हैं।
स्वर ‘सा’ (प्रथम) और ‘पा’ (पाँचवाँ) श्रुति तालिका में अपने स्थान नहीं बदलते हैं; अतः इन्हें अचल
स्वर कहा जाता है। बाकी पाँच स्वरों को चल स्वर कहा जाता है।
हिदं सु ्तानी संगीत में सात स्वर और पाँच बदले हुए या विकृ त स्वर होते हैं। सात शद्ध ु स्वर हैं—सा, रे , गा,
मा, पा, धा, नी। इनमें एक तीव्र स्‍वर ‘मा’ और चार कोमल स्वर रे , गा, धा, नी हैं। कर्नाटक शैली में सात स्वर
और नौ बदले हुए शद्ध ु स्वर इस प्रकार हैं— सा, रे , गा, मा, पा, धा, नी; सतश्रुति रे , धा, सतहरण गा, अतं रा गा,
प्रथि मा, चतश्रुति
ु धा, कै साकी नी, काकाली नी। ये अलग-अलग श्रुतियों पर स्थापित हैं।
• सप्‍तक और पैमाना— सप्‍तक स्वरों का वह समहू है, जो एक के बाद एक नििश्‍चत क्रम में व्यवस्थित होते
हैं तथा संगीतमय स्के ल बनाते हैं। सप्‍त मतलब सात। सप्‍तक एक सनििश्‍च ु त व्यवस्था है, जहाँ सातों स्वर एक
के बाद एक निरंतर क्रम में व्यवस्थित रहते हैं। भारतीय संगीत में मदं , मध्यम और तार के अनसु ार तीन तरह के
सप्‍तक हैं, जो नीचे दिए गए हैं—
सप्‍तक के प्रकार—
• मंद्र सप्‍तक— ये मद पिच
ं के स्वर हैं। इस तरह के स्वरों की पहचान हेत चि
ु ह्न (,) का प्रयोग स्वरों के नीचे
किया जाता है। जैसे—‘सा’, रे , ‘गा’, ‘म’, ‘प’, ‘धा’, ‘नी’।
• मध्य सप्‍तक— इनकी पहचान हेत लिखि ु त स्वरूप में किसी चिह्न का प्रयोग नहीं होता। जैसे—‘सा’,
‘रे ’, ‘गा’, ‘मा’, ‘पा’, ‘धा’, ‘नी’।
• तार सप्‍तक— इसमें उच्च पिच वाले स्वर शामिल होते हैं। इस समहू की पहचान हेत चि ु ह्न (.) का प्रयोग
स्वरों के ऊपर किया जाता है। जैसे—‘सा’, रे , ‘गा’, ‘म’, ‘प’, ‘धा’, ‘नी’।
• आरोह— संगीत में स्वरों के चढ़ते क्रम को आरोह कहा जाता है। आरोही क्रम में स्वर हैं—सा, रे , गा, मा, पा,
धा, नी।
• अवरोह— सगं ीत में स्वरों के उतरते क्रम को अवरोह कहा जाता है। अवरोही क्रम में स्वर हैं—नी, धा, प, म,
गा, रे , सा।
• स्वरमान— पिच ध्वनि के ऊँचा व नीचा होने को प्रदर्शित करते हैं। पिच स्वर की मौलिक आवृि�यों से
गहराई से जड़ु ा हुआ है। सामान्यतः कंपन की आवृि� उच्च होने पर उच्च पिच और िनम्‍न आवृि� होने पर
निम्न पिच होती है।
1000 हट्जर् से नीचे ध्वनि सक्ू ष्म होती है, 2000 हट्जर् या उससे ज़्यादा होने पर ध्वनि तीव्र होती है। इसका
कारण कंपन का कम या ज़्यादा होना होता है।
दो पिच की आवृत्तियों के बीच अतं र को अतं राल कहा जाता है।
• ताल— किसी खास समय में ध्वनि और खामोशी/शांति की व्यवस्था को ताल कहते हैं। मीटर, समय को
निरंतर स्पंदन के समहू ीकरण के रूप में मापता है, जिसे पैमाना या बार कहते हैं। समय या पैमाना में अकि ं त
पहचान चिह्न बताते हैं कि पैमाने में कितने ताल (beat) हैं। लिखित स्वरों के किन मल्य ू ों की गणना हुई तथा
जिन्हें एकल ताल के रूप में महससू किया गया।
• नाद— वह ध्वनि जिसमें आदं ोलनों की संख्या नियमित तथा स्थिर हो, उसे नाद कहते हैं।
नाद दो प्रकार के होते हैं— आहत नाद और अनाहत नाद।
• आहत नाद— जो नाद दो वस्तुओ ं की आपसी रगड़ या एक वस्तु द्वारा दसू री वस्तु पर हुए आघात के
कारण उत्पन्न हो, उसे आहत नाद कहते हैं। यह नाद सगं ीतोपयोगी होता है।
• अनाहत नाद— जिस नाद के उत्पन्न होने के पीछे कोई ख़ास कारण न हो, अर्थात् जो नाद बिना किसी
रगड़ या आघात के उत्पन्न हो, उसे अनाहत नाद कहते हैं। अनाहत नाद का संगीत से कोई संबंध नहीं है।

196
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कला और कला शिक्षा

प्र.
38 नतृ ्य क्या है?
लय और ताल के साथ किया जाने वाला सौंदर्यपरक आगि
ं क संचालन नृत्य कहलाता है।

प्र. बच्चों को नतृ ्य क्यों सिखाना चाहिए? यह किस प्रकार सीखने वाले के सज्ं ञानात्मक, मनोगत्यात्मक
39 (मस्तिष्क व शरीर का समन्वयन) तथा व्यवहारगत पक्षों को प्रभावित करता है?
नृत्य जीवन का उत्सव है। यह हमारी गतियों के
उपयोग की क्षमता द्वारा सदंु र ताल के अभिकल्पन
से मिलने वाला आनंद है। यह हमारे संवेगों की
भावपर्ण ू अभिव्यक्‍ति है, जिन्हें हम जीवन के विविध
अनभु वों से प्राप्‍त करते हैं। गतियों के नियंत्रण और
आतं रिक अनभु ति ू के माध्यम से हम अपने स्व को
नियंत्रित करने में सफल होते हैं, जो अतं तः हमें
व्यापक आत्मविश्‍वास प्रदान करता है। नृत्‍य में
चाल को लय और नज़र के साथ समन्‍वित करने से
बेहतर मनोगत्‍यात्‍मक विकास होता है। साथ ही नृत्य
वह क्षेत्र है, जहाँ हम अपने मनोभावों, संवेगों को समावेशी माहौल में बच्‍चे नृत्‍य का आनन्‍द लेते हुए
(ए.आई.एल. कक्षा)
स्वतंत्रतापर्वू क अभिव्यक्‍त कर सकते हैं। इसमें दबे
हुए संवेग (कंु ठाएँ) बिना किसी को क्षति पहुचाएँ अभिव्यक्‍त हो सकते हैं और हम उनसे आसानी से मक्‍त ु भी
हो जाते हैं। जैसे-जैसे हम नृत्य के माध्यम से सौंदर्य का सृजन करते हैं, हमारी सौंदर्यानभु ति
ू (संदु रता के प्रति
जागरूकता) बढ़ती जाती है और हम पाते हैं कि इससे हमारा जीवन खबू सरू त तरीकों से प्रभावित होता है।
प्र.
40 नतृ ्य के अवयव क्या-क्या हैं?
गति, ताल डिज़ाइन और अभिव्यक्‍ति नृत्य के आधारभतू अवयव हैं। गति में एक या एक से अधिक ताल
हो सकते हैं। चाल विशेष प्रकार की हो सकती है, जैसे—नृत्य में हमारी चाल दैनिक जीवन की चाल से तेज़,
अधिक संदु र और अलग हो सकती है। इसके डिज़ाइन में ताल के पैटर्न के साथ-साथ गति के पैटर्न, अर्थात्
दोनों के कारण नृत्य की गति में बदलाव हो सकता है। यहाँ अभिव्यक्‍ति का तात्पर्य है—नृत्य के क्रम में उभरने
वाले विविध संवेग या भावनाएँ।

प्र.
41 नतृ ्य किस प्रकार प्रस्तोता/कलाकार/अदाकार की शारीरिक दृढ़ता, समन्वयन एवं एकाग्रता को
विकसित करता है?
नृत्य का अर्थ है— लय और गति (movement), जिसमें विभिन्न मांसपेशियों के उपयोग से उनमें मज़बतू ी
आती है। फे फड़ों का व्यायाम होता है, जिससे वे फै लकर मज़बतू होते हैं और अधिक ऑक्सीजन ग्रहण करते
हैं। इससे रक्‍त में ऑक्सीजन बेहतर ढंग से पहुचँ ती है, जिससे विभिन्न अगं स्वस्थ रहते हैं। व्यायाम और अधिक
ऑक्सीजन लेने के परिणामस्वरूप शारीरिक शक्‍ति और क्षमता बढ़ती है।
गति, कदम और दृष्‍टि/नज़र (glance) में तभी सही समन्वय हो सकता है, जब आप परू ी तन्मयता
के साथ नृत्य करें । नृत्य के समन्वयन तत्वों के फलस्वरूप दसू री गतिविधियों के क्षेत्र में भी मनोगत्यात्मक
समन्वयन बढ़ता है।

197
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कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

प्र.
42 रूप-सज्जा (make-up) क्या है? क्या नतृ ्य और थिएटर में प्रदर्शन के दौरान रूप-सज्जा का उपयोग
महत्वपूर्ण है?
रूप-सज्जा से तात्पर्य है— चेहरे की भंगिमाओ ं को रे खांकित करना, जैसे—आँख, भौंह, होंठ, नाक आदि
को लाली, पाउडर, आई-लाइनर या काजल,
आइब्रो-पेंसिल, लिपस्टिक या इस तरह की अन्य
चीज़ों के माध्यम से स्पष्‍ट या रे खांकित करना।
नृत्यकार या प्रस्तोता/अदाकार/कलाकार
के चरित्र और संदु रता को बढ़ाने के लिए
रूप-सज्जा का प्रयोग किया जाता है।
इससे दरू बैठे लोगों को भी स्पष्‍टत: नृत्य
के चरित्र को समझने और आनंद लेने में
मदद मिलती है। रूप-सज्जा किसी नृत्य
या ड्रामा के विशेष पात्र के अनरू
ु प भी हो
सकती है; जैसे—श्री राम की रूप-सज्जा
साफ़-सथु री और गरिमायक्‍त ु होगी जबकि
रावण की रूप-सज्जा गहरी-मोटी भौंह, आँख में
नृत्‍य में शारीिरक व्‍यायाम भी रुिचकर लगता है
मोटे काजल आदि के माध्यम से ज्‍़यादा ससु ्पष्‍ट (पोर्टमोर स्‍कू ल, िशमला)
होगी।

प्र. 43 नतृ ्य और नाटक में पोशाक का क्या


महत्व है?
उपयक्‍त
ु पोशाक से नृत्य और नाटक की
संदु रता बढ़ जाती है। इससे वास्तविक जीवन
से अलग चरित्र गढ़ने में मदद मिलती है,
दिखाए जाने वाले चरित्रों को चनु ने में भी
मदद मिलती है। पोशाक नृत्य और संबंधित
गतिविधि के अनसु ार आरामदायक होनी
चाहिए। यह उस सामाजिक वातावरण का
भी द्योतक है, जहाँ से नृत्य या नाटक लिया
जनजातीय नृत्‍य हेतु स्‍व-निर्मित पोशाकों में बच्‍चे
जाता है।

प्र.
44 नतृ ्य में सगं ीत और साहित्य की क्या भूमिका है?
सगं ीत नृत्य का अभिन्न अगं है, जिसमें विविध वाद्य यंत्रों द्वारा ताल प्रदान की जाती है। जब इसे सरु ों से
सजाया जाता है तो नृत्य और भी मनमोहक हो जाता है। मधरु संगीत विभिन्न वाद्य यंत्रों द्वारा दिया जा सकता
है, जैसे—वीणा, सितार, सारंगी, बाँसरु ी या अन्य वाद्य। यह कोई ऐसा संगीत भी हो सकता है, जो मल ू तः
साहित्यिक हो और उसे किसी धनु पर व्यवस्थित किया गया हो। साहित्य, नृत्य को और भी समृद्ध बनाता है
जिसके माध्यम से नृत्यकार नृत्य से संबंधित अर्थों को समझता है और इससे जड़ु ी हुई विभिन्न अनभु तिू यों को
अभिव्यक्‍त करता है।

198
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

प्र.
45 नतृ ्य में मुद्रा का क्या महत्व है?
हाथों की वे भगि
ं माएँ जो नृत्य के दौरान दर्शकों से संप्रेषण हेतु उपयोग में लाई जाती हैं, मद्ु राएँ कहलाती हैं। हम
अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में एक-दसू रे से बातचीत करते हुए लगातार मद्ु राओ ं का प्रयोग करते हैं; जैसे—हम
अपने हाथ के इशारे से किसी को बल ु ाते हैं या तर्जनी अँगल
ु ी के प्रयोग से किसी की तरफ़ संकेत करते हैं। नृत्य
में, गीत के भावों को समझाने/खोलने/प्रस्तुत करने हेतु मद्ु राओ ं का प्रयोग किया जाता
है। जहाँ साहित्य न हो, वहाँ भी मद्ु राएँ नृत्य का भाग होती हैं। प्रत्येक नृत्य-प्रकार की
अलग-अलग मद्ु राएँ होती हैं।

प्र.
46 मंच सामग्री (props) क्या है?
मच ं सामग्री रंगमचं ीय सामग्री का संक्षिप्‍त रूप है। नाटक की भाषा में
रंगमचं ीय सामग्री एक ऐसी वस्तु है, जिसका उपयोग मच ं पर किसी स्थिति
के सृजन या भावों को सप्रेषं ित करने हेत कि ु या जाता है। जैसे—दर्पण,
चारपाई या बिस्तर और कुर्सी, घर का आभास देते हैं। वहीं, बच्चे द्वारा एक
छड़ी या डंडे की सवारी में डंडा घोड़े की तरह प्रतीत होता है। यहाँ छड़ी एक हस्‍त मद्ु राएँ
मच
ं सामग्री है।
प्र.
47 नतृ ्य-रचना (choreography) की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
जब हम नृत्य-रचना के बारे में बात करते हैं, तो इसका मतलब है कि हम उन तरीकों की बात करते हैं जिनके
माध्यम से लय और गति के विभिन्न पैटर्न का सृजन होता है, जिससे वे परस्पर आसानी से एक साथ संचालित
हो सकें । एकल नृत्य में नृत्य-रचना का संबंध के वल लय और गति के पैटर्न से है। समहू नृत्य में इससे तात्पर्य
है—लय और गति का पैटर्न, नृत्यकारों का समहू ीकरण, नृत्य करने के स्थान पर समहू की लय और गति का
पैटर्न, नृत्य के क्रम में पनु ः समहू ीकरण, आदि।

निगम प्राथमिक िवद्यालय (बापरौला गाँव, िदल्‍ली) के बच्चे स्वनिर्मित लोकनृत्य प्रस्तुत करते हुए
199
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

प्र.
48 क्या कला शिक्षा समाज में दिव्यांग बच्चों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है?
यह प्रश्‍न स्वयं में ही भेदभावपर्ण
ू है। यह बताता है कि हममें दिव्यांग बच्चों के प्रति अभी भी बहुत से पर्वाग्र ू ह
हैं और उनके प्रति अभिवृि� संबंधी कें द्रीय मद्ु दे पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। यह ठीक उसी प्रकार है कि
सामान्य व्यक्‍ति की भी कुछ सीमाएँ होती हैं और कुछ मज़बतू पक्ष (strength)। कोई लिखने में अच्छा हो
सकता है और मौखिक अभिव्यक्‍ति में नहीं, कोई नृत्य में अच्छा हो सकता है लेकिन सरु में गा नहीं सकता,
कोई नृत्य में शर्माता है लेकिन चित्रकारी या गणित में अच्छा हो सकता है। इसी प्रकार से दिव्यांगों की भी एक
क्षेत्र में कमज़ोरी हो सकती है, परंत द
ु सू रे क्षेत्र में अद्वितीय क्षमता। दृष्‍टि बाधित व्यक्‍तियों में सनु ने की अदभ् तु
क्षमता होती है। ध्वनि के आधार पर एक स्थान से दसू रे स्थान पर जाने, दसू रे को पहचानने या खोजने की उनमें
बेहतरीन क्षमता होती है, जोकि सामान्य मनष्य ु में भी नहीं होती। इसी तरह हम अकसर पाते हैं कि जिसमें श्रवण
बाधा होती है या जो बधिर होता है, उसमें ताल की बेहतरीन समझ तथा अपने शरीर को स्वतंत्र रूप से सचं ालित
करने की क्षमता होती है।
अगर हम इस तथ्य को स्वीकार करें कि सभी व्यक्‍ति समान हैं और सभी में विशष क्ष े मताएँ हैं तो यह प्रश्‍न
ही नहीं उठे गा। जो सामान्य व्यक्‍ति की आशा और आकांक्षा है, वही दिव्यांगों की भी है। हम सभी इस बात से
सहमत हैं कि कला जब सभी बच्चों की शिक्षा में महत्वपर्ण ू भमि
ू का निभाती है तो यह प्रश्‍न ही बेमानी है कि
क्या कला शिक्षा दिव्यांग बच्चों के लिए महत्वपर्ण ू है।

प्र.
49 कला कक्षा में समावेशन को कै से बढ़ावा देती है?
कला का एक महत्वपर्ण ू पक्ष है िक इसमें कोई भी उत्तर गलत या सही नहीं होता। इसमें प्रयोग के माध्यम से
ज्ञान तक पहुचँ ा जाता है। भिन्न प्रक्रियाओ ं से किए भिन्न प्रयोग भिन्न परिणाम देते हैं, लेकिन किसी को भी
एक-दसू रे से अलग नहीं किया जा सकता।
इस दृष्‍टिकोण से कला बहुत ही समावेशी
है। शिक्षितों की कला को अशिक्षितों से,
दिव्यांगों की कला को सामान्य लोगों से,
लड़कों की कला को लड़कियों से अलग
करने की आवश्यकता ही नहीं है। इसी
प्रकार, जो बच्‍चे सामाजिक अलगाव
झेलने वाले समदु ाय से आते हैं, वे भी कक्षा
में अन्य बच्चों के साथ आसानी से कार्य
कर सकते हैं, क्योंकि कला एक यात्रा है
जहाँ किसी के पास भी सभी उत्तर नहीं हैं।
यहाँ तक कि यह भाषायी बाधा को भी दरू समावेशी कक्षा माहौल में नृत्‍य का आनंद
करती है, क्योंकि इसकी अपनी ही भाषा होती है।
कला गतिविधियों के माध्यम से बच्चे एक-दसू रे के साथ व्यस्त रहते हैं। इससे उनके बीच की तमाम बाधाएँ
दरू हो जाती हैं और विभिन्न पृष्‍ठभमि
ू के बच्चों के बीच सवं ाद और अतं ःक्रिया सहज ही स्थापित हो जाती है।
प्र. 50 समावेशी कक्षा की अवधारणा में कला शिक्षा का क्या निहितार्थ है?
कला से बेहतर समावेशन का कोई दसू रा तरीका हो ही नहीं सकता। सबसे पहले कला सही और गलत की
अवधारणा से दरू हटाती है। इसमें सब कुछ स्वीकार्य है। जैसा कि कला स्व की अभिव्यक्‍ति है, अतः यह वंचितों
को भी अपने कला कार्यों के माध्यम से आतं रिक अनभु ति ू यों को अभिव्यक्‍त करने में मदद करती है।

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मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा
इसके अतिरिक्‍त कला बहुत ही अच्छा समहू -कार्य हो सकती है, अतः कला में लोगों को उनकी शारीरिक
या अन्य विविधताओ ं को नज़र-अदं ाज़ कर एक साथ लाने की अदभ् तु क्षमता होती है। इस कारण समावेशन
बहुत ही सहज और स्वाभाविक प्रक्रिया हो जाती है। महत्वपर्ण ू रूप से ये गतिविधियाँ परस्पर सीखने का माहौल
बनाती हैं, जहाँ दिव्यांगों से सामान्य तथा सामान्य से दिव्यांग आसानी से सीखते हैं। इससे बच्चों में अन्य सभी
लोगों के प्रति आदर का भाव विकसित होता है।
कला गतिविधियों के माध्यम से दिव्यांगों, सामाजिक तौर पर वचि ं त वर्गों तथा लड़कियों का समावेशन
सहज रूप से हो सकता है। दिव्यांग या वंचित समहू के बच्चों को अन्य बच्चों के साथ समान रूप से भाग लेने
का अवसर प्रदान करने से शिक्षक को भी विशेष बच्चों की क्षमता वृिद्ध व उनमें आत्मविश्‍वास पैदा करने में
मदद मिलती है। बच्चों का बढ़ा हुआ आत्मविश्‍वास उनकी अकादमिक उपलब्धियों में सकारात्मक रूप से
झलकता है।

प्र. किस
51 प्रकार कला में शिक्षा प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक कक्षाओ ं के बच्चों के विकास में मदद
करती है?
अन्य अनश ु ासनों की तलु ना में कला बच्चों के सीखने का सबसे महत्वपर्ण
ू अगं है। इससे बच्चों के संपर्ण

विकास का आधार तैयार होता है। कला कार्य करने हेतु व्यक्‍ति की सभी इद्रि
ं याँ मिलकर कार्य करती हैं, अतः
कला सभी इद्रि ं यों के उपयोग में मदद करती है। विशेष रूप से प्राथमिक स्तर पर बच्चों के विकास हेतु यह
महत्वपर्ण
ू है। बहुत-सी कला सबं ंधी गतिविधियाँ बच्चों की एकाग्रता एवं मानसिक क्षमताओ ं को तीक्ष्ण बनाने
में मदद करती हैं, जोकि किसी भी उम्र के बच्चों के लिए उपयोगी हैं। उच्च प्राथमिक कक्षाओ ं में कला सभी
बच्चों में आलोचनात्मक तथा सृजनात्मक चितं न को बढ़ावा देती है।

प्र.
52 बच्चों को कला शिक्षा से परिचित करवाने की उपयुक्‍त आयु क्या है?
बच्चे विभिन्न उम्र में अपनी क्षमता के अनुरूप कला के
प्रति प्रतिक्रिया देते हैं। अतः कला शिक्षा की शुरूआत या
इससे परिचय की कोई एक नििश्‍चत आयु नहीं होती। बच्चों
की आयु के सापेक्ष कुछ पैटर्न हैं, जिनके अनुसार बच्चे
कला गतिविधियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया देते हैं।
विकासात्मक रूप से बच्चे जब क्रे योन या पेंसिल
पकड़ने लगें और आड़ी तिरछी रे खाएँ खींचने लगें,
तब बच्चों को उपयुक्‍त कला अनुभव प्रदान किए
जा सकते हैं। विद्यालयी शिक्षा के विभिन्न स्तरों
पर कला शिक्षा के उद्देश्य भी भिन्न होते हैं, जो
बच्चों में कलात्मक विकास पर आधारित होते
हैं और शिक्षा-शास्‍त्रीय सिद्धांतों द्वारा निर्देशित नर्सरी स्‍कू ल, आई.आई.टी. िदल्‍ली के बच्‍चे घसीटा
होते हैं। रे खांकन का आनन्‍द लेते हुए

201
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

सदं र्भ
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• www.educationcloset.com
• www.artseveryday.org
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202
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

टिप्पणी

203
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

बच्चों का कलात्मक विकास

घसीटा रेखांकन की अवस्था


2–4 साल

204
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

घसीटा रे खांकन, जिनमें बच्चा संलग्न रहता है, तीन प्रकार के होते हैं—
1. अनियंत्रित
2. नियंत्रित
3. नामित

अनियंत्रित घसीटा रेखांकन


• बच्चा सतह पर यत्र-तत्र चिह्न खींचता है।
• लाइन की लंबाई एवं दिशा बदलती रहती है।
• बच्चा अपने परिवेश में दिखने वाली वस्तुओ ं
को बनाने की कोशिश नहीं करता। वह सतह
पर के वल अपने हाथ घमु ाकर ही संतष्ु ‍ट और
आनंदित होता रहता है।

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मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

नियंत्रित घसीटा रेखांकन


• जैसे-जैसे बच्चे में गत्यात्मक कौशल विकसित
होता है, वह घसीटा रे खांकन पर नियंत्रण प्राप्‍त करने
लगता है।
• वह अपने द्वारा खींचे गए चि�ों और अपने हाथ की
गति के बीच सबं ंधों को समझना शरूु कर देता है।
• वह वृत्त खींचने लगता है और संभवतः अन्य
ज्यामितीय आकृ तियाँ भी।
• परू े उत्साह के साथ रे खाओ ं में दहु राव भी करता है।
• वह अपनी रंगीन पेंसिल को कागज से अलग नहीं
करता।
• तीन साल की उम्र तक आते-आते वह रंगीन पेंसिल
पर वयस्कों की तरह अपनी पकड़ बना लेता है।

• घसीटा रे खांकन हेतु वह अलग-अलग


रंगों का उपयोग करना पसंद करता है
तथा अपने रे खांकन से परू ा पृष्‍ठ भरने
का प्रयास करता है।
• वह अपने द्वारा बनाई गयी चीज़ों का
अपने परिवेश में दख
े ी गई वस्तुओ ं के
साथ सबं ंध स्थापित करने का प्रयास
करता है।

206
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

घसीटा रेखांकन को नाम देना


• बच्चा अपने घसीटा रे खांकन को नाम देना शरू
ु करता है।
• यह बच्चे के विकास में एक महत्वपर्ण ू पड़ाव है। इससे बच्चों
की चितं न प्रक्रिया में होने वाले बदलाव तथा उसकी गति और
परिवेश के बीच सबं ंध की समझ का पता चलता है।
• यद्यपि वयस्कों के लिए उनका घसीटा रे खांकन महत्वहीन
प्रतीत होता है पर बच्चों के लिए वह अर्थपर्ण
ू होता है। अतः
बड़ों को उन्हें स्वीकार करना चाहिए।
• वह नयी यकु ्‍तियों के उपयोग में बहुत समय लगाता है।
• वह घसीटा रे खांकन पर अधिक से अधिक समय देता है।
• कभी-कभी घसीटा रे खांकन करते हुए वह स्वयं से बात भी
‘मेरी माँ बाज़ार जा रही है’
करता है। ऐसा वह अपने घसीटा रे खांकन का अपने परिवेश से (घसीटा रे खांकन)
सबं ंध स्थापित करने हेतु करता है।

अभिभावक और शिक्षक की भूमिका


• बच्चा स्वाभाविक रूप से घसीटा रे खांकन करता है। इसमें वयस्कों की भमिू का नगण्य है। सभी
वयस्कों को चाहिए कि वे बच्चों को उपयक्‍त
ु सामग्री प्रदान करते हुए प्रोत्साहित करें ।
• घसीटा रे खांकन में हमें किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
• आप किसी बच्चे को घसीटा रे खांकन के प्रति अनिच्छु क पा सकते हैं, अतः उसे इसकी
शरू
ु आत हेत मि
ु ट्टी उपलब्ध करानी/देनी चाहिए।
• वयस्कों को बच्चों के घसीटा रे खांकन का कोई अर्थ नहीं ढूँढना चाहिए और न ही उन्हें इसके
लिए कोई व्याख्या करनी/देनी चाहिए।
• घसीटा रे खांकन की प्रथम दो अवस्थाओ ं में वयस्कों को के वल घसीटा रे खांकन करने वाले
की गतिविधि पर ही अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए, जैसे—मझु े वे रे खाएँ अच्छी लग रही हैं या
वाह! क्या मजे़दार आकृ ति है! इत्‍यािद।

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मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

• जब बच्चा अपने घसीटा रे खांकन को कोई नाम देता है तो बड़ों को ध्यान से सनु ना
चाहिए तथा उस पर बातचीत करनी चाहिए; जैसे—अगर बच्चा कहता है “यह मेरा
पालतू कुत्ता है”, तब बड़े प्रश्‍न कर सकते हैं कि इसका नाम क्या है? क्या आप इसे
नाम से पक
ु ारते हैं? इसके साथ आप कौन-कौन सा खेल खेलते हैं, आदि?
• सविच
ु ारित प्रशसं ा और प्रश्‍नों से बच्चों में यह भावना आ सकती है कि आप उनके
काम को महत्व दे रहे हैं। इससे उनकी कल्पना को ऊर्जा और आत्मविश्‍वास को बल
मिलेगा।
• िजस अवस्‍था में बच्‍चे वस्‍तुओ ं को नाम देना शरू
ु करते हैं, तब उन्‍हें तमाम अनभु व
देने चाहिए जिससे वे अपने आस-पास की दनि ु या के प्रति जागरूक हो सकें तथा
उनकी पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ विकसित हो सकें ।

घसीटा रेखांकन की अवस्था में रंगों का अर्थ


• घसीटा रे खांकन की अवस्था में रंगों की भमि
ू का सहायक होती है। बच्चे रंगीन
पेंसिल को कागज़ पर के वल अपनी खश ु ी/आनंद के लिए घसीटते हैं।
• शोध बताते हैं कि बच्चे रंगों का उपयोग क्रमानसु ार करते हैं। रंगों के चनु ाव के
पीछे कोई भी सांवेगिक कारण नहीं होता है। वे शायद ही उन रंगों का प्रयोग
करते हैं जो उन्हें पसंद होते हैं।

208
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

घसीटा रेखांकन हेतु कला सामग्री

कला सामग्री उनकी आवश्यकता के अनरू ु प होनी चाहिए तथा बिना किसी तकनीकी बाधा
के उनको स्वतंत्र अभिव्यक्‍ति का अवसर देने वाली होनी चाहिए।

उपयुक्‍त अनुपयुक्‍त
• बड़े काले क्रे योन • वाटर कलर
• सफे ़द खल्ली/चॉक • पेंसिल
• काला फे ़ल्ट पेन
• गहरे पोस्टर रंग
• कोलाज

विकासात्मक प्रक्रिया के रूप में


घसीटा रेखांकन
• जो बच्चे बेहतर दृश्‍यों से भरे वातावरण में पलते-बढ़ते हैं, वे तेज़ी से विकसित
होते हैं।
• बच्चे तथा उनके पर्यावरण के बीच अतं ःक्रिया को बढ़ावा देना चाहिए। उन्‍हें
अपनी सभी ज्ञानेंद्रियों का उपयोग करना चाहिए जिससे अतं ःक्रिया अर्थपर्ण

हो सके ।
• अध्ययनों से स्पष्‍ट है कि ऐसे बच्चे अपने कार्य से जल्दी भटकते हैं
जिनके माता-पिता उनकी हर कार्य में मदद करते हैं और हर समस्या का तैयार
समाधान देते हैं।
• शिक्षक अपने बच्चों को विकल्प सझु ा सकते हैं, उत्साहित कर सकते हैं तथा
बच्चों में यह भावना विकसित करने में मदद कर सकते हैं कि उनका कार्य
उत्पाद महत्वपर्ण
ू या उपयोगी है।

209
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

घसीटा रेखांकन करने वाले बच्चे और उनका परिवेश


• बच्‍चों द्वारा िकए जाने वाले घसीटा रे खांकन और उनके परिवेश के बीच सीधा
संबंध है।
• अगर बच्चा अपने घसीटा रे खांकन में एक ही चीज़ को बार-बार दहु राता है तो
यह उसके निम्न आत्मविश्‍वास का सचू क है।
• िवभिन्‍न तरह की सतहोें को छूने से हाेने वाली संवेदना बच्‍चों के मस्‍तिष्‍क को
जागृत कर सकती है।
• ऐसी परियोजनाएँ जिनमें बड़ों पर निर्भरता हो या जो बच्चों के लिए कठिन हों,
बच्चों के आत्मविश्‍वास में कमी लाती हैं।

किसी खास कार्य से संबंधित कला गतिविधियाँ जिनमें


चिपकाने, मोड़ने, काटने, आदि का कार्य हो, जैसे—
स्नोमैन या क्रिसमस ट्री बनाना आदि, घसीटा अवस्था के
बच्चों के लिए बेमानी हैं, क्योंकि ये बच्चों के इस स्तर पर
उनकी समझ और क्षमता से बाहर की चीजें़ हैं।

210
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

पूर्व-आरेखन अवस्था 4–7 साल

• बच्चा अपने परू े अभिज्ञान में उन संरचनाओ ं को बनाता है जिनका संबंध उसकी
आस-पास की दनि ु या से होता है।
• शारीरिक गतिविधियों में वृद्धि के फलस्वरूप चि� और घसीटा रे खांकन का महत्व कम
हो जाता है।
• अभिभावक/शिक्षक बच्चों के चितं न प्रक्रिया को रिकाॅर्ड कर सकते हैं।
• कलाकृ तियाँ इस तरफ़ इशारा करती हैं कि बच्चों के लिए क्या महत्वपर्ण
ू है?
• चार साल की अवस्था तक आते-आते बच्चा ऐसी चीजें़ बनाने लगता है जिन्‍हें पहचाना
जा सकता है और पाँच साल की उम्र तक आते-आते आकृ तियाँ लोगों, मकानों या पेड़ों
के रूप में स्पष्‍ट होने लगती हैं।
• छ: साल की उम्र तक बच्चों द्वारा बनाई गयी आकृ ति और सरं चना में पर्याप्‍त स्पष्‍टता
आ जाती है। उसे परू ी तरह किसी वस्तु के चित्र के रूप में पहचाना जा सकता है।
• किसी खास अवसर पर की गई किसी प्रकार की चित्रकारी को कई कारक प्रभावित
करते हैं।

211
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

पूर्व-आरेखन अवस्था की चित्रकारी के लक्षण


• यह स्तर घसीटा रे खांकन के बाद स्वाभाविक
रूप से विकसित होता है।
• सामान्यतः बच्चों द्वारा बनाया गया प्रथम
प्रतीक िच�, मानव का ही होता है।
• विशिष्‍ट रूप से मानव के चित्र में सिर को वृत्त
के रूप में तथा दो पैरों के लिए दो खड़ी रे खाएँ
खींची होती हैं।
• बच्‍चा एक ही तरह के सिर-पैर वाले चित्र
अलग-अलग व्यक्‍तियों के लिए बनाता है।
इसमें किसी भी प्रकार का दृष्‍टिगत अतं र नहीं
होता।

• अपनी चित्रकारी के क्रम में बच्चा मानव शरीर के कुछ अगं ों पर विशेष ध्यान नहीं देता।
• बच्चा चित्र बनाने में जिस मानव अगं पर ध्यान नहीं दे रहा, उस अगं पर उसका ध्यान
आकृ ष्‍ट करने हेतु शिक्षक को उस अगं से संबंधित शारीरिक गतिविधि में बच्चों को
संलग्न करना चाहिए। जैसे—अगर आप उसे हाथों के प्रति जागरूक करना चाहते हैं तो
बच्चे के साथ गेंद फें कने का खेल खेल सकते हैं और तब उसे मानव का हाथ यक्‍त चि
ु त्र
बनाने के लिए कह सकते हैं।
• सिर-पैर वाले चित्रों में बनी बाँह चि
ें त्र में अधिक
व्यापकता लाती हैं।
• छः साल की उम्र होते-होते बच्चा मानव का
स्पष्‍ट चित्र बनाने लगता है।

212
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

रंगों का अर्थ
• इस अवस्था में रंग और
वस्तुओ ं के बीच बहुत कम
संबंध होता है।
• रंगों के चयन का आधार
सांवेगिक या यांत्रिक हो
सकता है।
• बच्चों द्वारा चनु े गए रंगों की
आलोचना या वस्तुओ ं के
सही रंग को इगि ं त करना,
अभिव्यक्‍ति की स्वतंत्रता में
हस्तक्षेप करना है।

स्थानिक व्यवस्था
• बच्चों द्वारा उनकी कलाकृ ति में चित्रित स्थान उनके संपर्ण चि
ू तं न के साथ भावनात्मक
रूप से जड़ु ा होता है।
• बच्चे अपनी कलाकृ ति में जिस तरह स्थान का चित्रण करते हैं, बड़े उसे ‘गलत’
समझते हैं।
• बच्चों में परिप्रेक्ष्य और दरू ी की अवधारणा का ज्ञान नहीं होता है। ऐसा प्रतीत होता
है कि उनके चित्र खल ु े स्थान में तैर रहे हों। उनके विकास की इस अवस्था में यह
पर्णू तः स्वीकार्य है। बड़ों को बच्चों के इस प्रयास को सधु ारने की कोशिश नहीं करनी
चाहिए।
• बाल वर्ग के शिक्षक बच्चों के कार्य को देखकर समझ सकते हैं िक बच्चा एक जटिल
अवधारणा के रूप में स्थान की समझ को ग्रहण करने हेतु तैयार है अथवा नहीं।

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मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

वद्धि
ृ की झलक के रूप में चित्रकारी
• बच्चों की कलाकृ ति उनकी स्वयं की झलक है।
• उनसे किसी और तरह से रंग भरने या चित्र बनाने की अपेक्षा नहीं करनी
चाहिए।
• इस अवस्था में कला संबंधी कौशल या तकनीकों का कोई अर्थ नहीं
होता, क्योंकि बच्‍चे इस अवस्था में कला का उपयोग स्वयं तथा अपने
आस-पास को समझने हेतु करते हैं।
• जो बच्चा विभिन्न स्वरूपों में भेद करने में जितना सक्षम होता है, वह
बौद्धिक रूप से उतना अधिक विकसित होता है।

214
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

• वह उन चीज़ों या शरीर के उन अगं ों के बारे में बढ़-चढ़कर बातें करता है जिससे वह ज़्यादा
परिचित है या जो उसके लिए बहुत महत्वपर्ण ू हैं। जैसे—नीचे दिए गए चित्र में लहराते हुए
हाथ।

• चित्र में चीज़ों की प्रस्तुति बच्चों के पर्वू -अनभु व


को प्रदर्शित करती है और जैसे-जैसे वे इन चीज़ों
के प्रति जागरूक होते जाते हैं, इनमें बदलाव
आता जाता है।
• नकल किए गए चि� सामान्यतः रूखे, अनमने
तरीके से पनु ः दहु राए जाते हैं।

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मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

कला अभिप्रेरणा
• बच्चों में चितं न, भाव और ग्रहणशीलता को प्रोत्साहित करना चाहिए।
• पर्यावरण के प्रति जागरूकता को प्रोत्साहित करना चाहिए।
• उसे गतिविधि के महत्‍वपर्ण
ू होने का अहसास होना चाहिए।
• अधिगम अनभु वों में शिक्षकों की अभिवृि� महत्वपर्ण
ू होती है।
• बच्‍चा कला अनभु व के साथ खद
ु को जोड़कर देख पाए, अर्थात् उसकी िकसी भी
कला गतिविधि की शरू ु आत स्‍वयं उसी से होनी चािहए, जैसे—‘मैं’ खड़ी हूँ और
‘मेरा’ ब्रश।
• शरू
ु आत शरीर के विभिन्न अगं ों के कार्यों के साथ होनी चाहिए।

216
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

जारी है...

• बच्चों को उनके मखु के विषय में जागरूक करने हेतु उन्हें वास्तविक अनभु व में
संलग्न करना, जैसे—दाँतों पर ब्रश करना या मिठाई खाना।
• यह एक लघ चर्चा
ु हो सकती है।
• शरू
ु आत में सामग्री ही प्रेरणा स्रोत का कार्य करती है, अत: उन्हें सामग्री के साथ
खेलने में संलग्न होने का अवसर दें।
• किसी अवसर की याद जिसमें बच्चा सल ं ग्न था, अभिप्रेरणा का माध्यम हो सकती
है। सर्वप्रथम ‘कहाँ और कब’, फिर ‘क्या’ और अतं में ‘कै से’ पर बातचीत की
जानी चाहिए।

विषय-वस्तु
• विषय-वस्तु बच्चों के लिए अर्थपर्ण
ू होनी चाहिए।
• विषय-वस्तु बच्चों से सबं ंधित होनी चाहिए।
• उनके शरीर के अगं , आकार और भावनात्मक संबंधों के बारे में विशष ज़ो
े र होना
चाहिए।

मैं और मेरी माँ। मैं दतं चिकित्सक के यहाँ हू।ँ


मैं और मेरा परिवार। मैं फूल चनू रहा हू।ँ
मैं अपने दाँत साफ़ कर रहा हू।ँ मैं और मेरी गड़ि
ु या।
मैं अपना दधू पी रहा हू।ँ मझु े जन्मदिन का उपहार मिला।
मैंने अपनी कुहनी घायल कर ली।

217
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

कला सामग्री
• बच्चों को दी गई सामग्री को बेहतर इस्तेमाल हेतु तैयार करना चाहिए, न कि
उन्हें लगातार नयी सामग्री देनी चाहिए।
• कला सामग्री परू ी तरह कला से संबंधित सामग्री होनी चाहिए, न कि कोई
खबू सरू त सामग्री।
• बच्चों में स्वतंत्र कार्यानभु ति
ू के विकास की दृष्‍टि से बड़े सोखता कागज़ पर गहरे
पोस्टर रंग से कार्य करना महत्वपर्ण ू हो सकता है।
• अगर स्थान उपलब्ध हो, तो बच्‍चों की ऊँ चाई से मेल खातीं समतल मेजें।
• अच्‍छे प्रकार के रंगीन क्रे यॉन।
• पेंसिल उस स्थिति में दी जा सकती है, जब अधिक गहराई या विवरण की
ज़रूरत हो।

एक सात साल की बच्ची द्वारा


फे ़ल्ट टिप पेन की सहायता से
खींचा गया ‘जानवर’ का चित्र। इस
तरह की सामग्री बच्चे के विचारों
की सीधी एवं स्पष्‍ट प्रस्तुित है।
प्रत्येक कला सामग्री का अपना
लक्षण और विशिष्‍ट मल्य
ू होता है।

218
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

इस स्तर के लिए उपयक्‍त


ु अन्य सामग्री—
• रंगीन चॉक/खल्ली
• फाइबर िटप कलम
• रंगीन कागज़
• कोलाज सामग्री
• मिट्टी
शिक्षक को किसी कला कार्य के बार-बार दहु राव विशेष रूप से छुट्टियों या आकस्मिक
रूप से आयोजित होने वाले आयोजनों में इसकी पनु रावृि� से बचना चाहिए। इससे बच्चों
में बोझिलता उत्पन्न होती है तथा उनकी अपनी अभिव्यक्‍ति में आत्मविश्‍वास की कमी
होने लगती है।

विकास सबं ंधी लक्षणों का सारांश


• कला स्वयं का सीधा प्रतििबंबन/प्रत्यक्षीकरण है।
• चित्रकारी बच्चों की बेहतर समझ का माध्यम है।
• कला अभिप्रेरणा बच्चों के स्वयं से प्राप्‍त अनभु वों पर कें िद्रत होती है।
• बच्चा न तो वयस्क का लघु रूप है और न ही वह एक वयस्क की तरह सोच सकता है।
• कला न के वल बच्चों को विभिन्न महत्वपर्ण
ू क्षेत्रों म वि
ें कास का अवसर देती है, बल्कि
यह बच्चों को खोज, अाविष्कार, जाँच-पड़ताल, गलती करने, प्रेम, डर, घृणा और
आनंद का भी अवसर देती है।

219
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

आरेखीय अवस्था
7–9 साल
रूपरेखा (Schema)
• बच्चा स्कीमा तक पहुचँ ता है, जोकि उसके द्वारा अपने आस-पास देखी गई वस्तुओ ं के आरे खन
का नििश्‍चत तरीका है। वह किसी व्यक्‍ति, वस्तु, घर या जानवर आदि के लिए अलग-अलग स्कीमा
विकसित करे गा। प्रत्येक बच्चा अपने लिए प्रतीकों की व्यवस्था विकसित करता है, जोकि उसके
साथियों से भिन्न होती है।
• अधिकांश बच्चे सात साल की अवस्था में इस स्थिति में पहुच ँ जाते हैं।
• स्कीमा बच्चे का किसी चीज़ के प्रति दृष्‍टिकोण, उसके साथ जड़ु े हुए भावनात्मक संबंध, वस्तु के साथ
स्पर्श की अनभु ति
ू तथा वस्तु की कार्यप्रणाली आदि द्वारा निर्धारित होती है।
• जब कभी स्कीमा में बदलाव होता है, हम जान जाते हैं कि बच्चे ने कुछ विशेष चित्रित किया है, जो
उसके लिए महत्वपर्ण
ू है।
• किसी वस्तु की स्कीमा वह अवधारणा है जिसे बच्चा प्राप्‍त करता है तथा इससे बच्चे के वस्तु संबंधी
ज्ञान में वृद्धि का पता चलता है।

आरेखीय अवस्था के लक्षण


मानवीय रूपरेखा/आंतरिक चित्रण
• बच्चा विभिन्न तरीकों से मानवीय आकृ ति
बनाता है।
• सात साल की उम्र तक वह व्यापक रूप से
पहचान योग्य संकेतक बना लेता है। विस्तार
से मानव आकृ ति बनाई जाती है। बच्चा
इसमें कई चीजें़ जोड़ने लगता है, जैसे—
के श विन्यास, हाथ के नाखनू आदि।
• विभिन्न व्यक्‍तियों के चित्रण हेतु इस
रूपरे खा का बार-बार बिना किसी बदलाव
के प्रयोग करता है जैसा कि प्रकाश सबं ंधी
आरे खन में होता है।

220
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

स्थानिक व्यवस्था
• आरंभ में एक आधार रे खा विकसित होती
है, जो अधिकतर कागज़ का निचला छोर
है, जो ज़मीन को दर्शाता है।
• बच्‍चा अधिकतर इसी आधार रे खा पर
अपनी आकृ तियाँ खड़ी करता है।
• बच्चे में त्रि-आयामी स्थान/क्षेत्र की कोई
अवधारणा नहीं होती है।
• कागज़ का ऊपरी छोर आकाश रे खा बन
जाता है।
• बीच का स्थान हवा को दर्शाता है।

धीरे-धीरे एक से अधिक आधार रेखाएँ विकसित होनी


आरंभ हो जाती हैं।

221
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

यथार्थवाद की अवस्था
8 साल से आगे

• बच्चा अपने आस-पास की चीज़ों से ज्‍़यादा


परिचित हो जाता है।
• उसके द्वारा विकसित रूपरे खा (schema) उसके
स्वयं के परिवेश को संतोषप्रद ढंग से चित्रित नहीं
करती है।
• चित्रकारी के समय वह चित्रित की जाने वाली
वस्तुओ ं से खद
ु को यथार्थ में जोड़ लेता है।
मानव संबंधी उसके चित्र में अनुपात संबंधी
एकाग्रता, विस्तृत विवरण, यथा—जोड़, होंठ,
के श विन्यास, नाखनू सहित अँगुिलयाँ दिखने
लगती हैं।
• हलके और गहरे प्रभावों को प्रदर्शित करने हेतु
विभिन्न छायाँकन तकनीकों का प्रयोग करने का
प्रयास करता है।

222
मॉड्यूल
कला और कला शिक्षा

• वह वयस्कों जैसी चित्रकारी करने का प्रयास करता है और आशा के अनरू


ु प चित्र न
बनने पर वह विचलित/निराश हो जाता है।
• इस अवस्था में बच्चों के कौशल विकास हेतु अवलोकन पर आधारित चित्रकारी
संबंधी परियोजना कार्य अधिक लाभदायक होंगे।
• हालाँकि यह महत्वपर्ण
ू है कि बच्चा यह न समझे िक चित्र वास्तविक दनि ु या के
फोटोग्राफ़ की प्रति/नकल होता है। कला बच्चों को अपने विशिष्‍ट तरीके से दनि
ु या
का अवलोकन करने तथा सृजनात्मक ढंग से अभिव्यक्‍त करने का अवसर देती है।
• पेंटिग में वास्तविक और कल्पनाशील उपाय का बेहतर समन्वय प्रस्तुत करने वाले
विभिन्न कलाकारों की कलाकृ तियों को दिखाकर बच्चों में इन अवधारणाओ ं की
समझ विकसित की जा सकती है।

223
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

स्थानिक व्यवस्था
• वस्तुएँ आधार रे खा के सापेक्ष व्यवस्थित नहीं
रहतीं।
• बच्चा वस्तुओ ं को व्यवस्थित करता है और
एक-दसू रे के अनसु ार उनके आकार को बदलता
रहता है।
• वस्तुओ ं काे एक-दसू रे पर आच्छादित करता है।
• परिप्रेक्ष्य की अवधारणा से परिचित होने के कारण अपनी पेंटिंग में दरू ी को दिखाने हेतु इसका
प्रयोग करता है। वह समझने लगता है कि नज़दीक की वस्तुएँ बड़ी तथा दरू की वस्तुएँ छोटी
दिखती हैं।
• विद्यार्थी जैसे-जैसे बड़े होते हैं, उनमें अमर्त चि
ू तं न की क्षमता बढ़ती है। उनमें विभिन्न वस्तुओ ं के
लिए सांकेतिक अर्थ प्रदान करने की क्षमता आ जाती है। उदाहरण के लिए, एक 10–12 साल
का बच्चा यह समझता है कि शरे साहस और शक्‍ति का प्रतीक है और घोड़ा कुलीनता और
आकर्षण का प्रतीक हो सकता है।

224
मॉडयूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन

मॉड्यूल 5
कला का अन्य विषयों
के साथ समेकन

एक नज़र
• कला शिक्षा के मह�व को एक शिक्षाशास्‍त्रीय उपागम के साथ-साथ बच्चों के सीखने और उनके
विकास पर इसके प्रभाव को समझना।
• उम्र के अनसु ार विभिन्न कक्षाओ ं के बच्चों के लिए कला अनभु व की योजना बनाने और उनके
कार्यान्वयन के कौशल का विकास करना।
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

कला का अन्य विषयों के साथ समेकन


अनमु ानित समय—दो दिन
परिचय
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन का अर्थ है—कला को उन विषयों के सीखने-सिखाने का माध्यम बनाना।
इसके अतं र्गत संबंधित विषय में ड्राॅइगं , पेंटिंग, नृत्य, नाटक, एकांकी, संगीत आदि कक्षायी प्रक्रिया के अभिन्न
अगं बन जाते हैं। यह कला समेकित पाठ्यचर्या को अपनाने की दृिष्‍ट से भी महत्वपरू ्ण ह,ै जिसमें कला के विविध
पक्ष कक्षा में सीखने-सिखाने के आधार होते हैं। पाठ्यचर्या के कें द्र में रहते हुए कला अवधारणाओ ं को स्पष्‍ट करने
में महत्वपरू ्ण भमि
ू का निभाती है। कला समेकित पाठ्यचर्या विभिन्न विषयों की विषय-वस्तु को तार्कि क, बाल
के न्द्रित एवं अर्थपरू ्ण ढंग से जोड़ने में सहायक हो सकती है। विभिन्न विषय—गणित, विज्ञान, सामाजिक अध्ययन
और भाषायी कौशल—कला के साथ आसानी से जोड़े जा सकते हैं। प्रत्येक विषय की अमर्त ू अवधारणाएँ कला
के माध्यम से प्रभावी ढंग से मर्त ू रूप में सिखायी जा सकती हैं। इस तरीके से सीखना समग्र, आनंददायक और
अर्थपरू ्ण हो जाता है। प्रस्तुत मॉड्यल ू उदाहरण के साथ उन तथ्यों को स्पष्‍ट करता है कि कला को विभिन्न विषयों
के साथ कै से जोड़ा जा सकता है।
यह मॉड्यल ू दो भागों में बंटा हुआ है। ‘पहला भाग’ उन सगु मकर्ताओ ं के लिए है, जिन्हें आगे प्राथमिक
विद्यालय के शिक्षकों का प्रशिक्षण सत्र आयोजित करना है। इस भाग में उदाहरण के रूप में कुछ गतिविधियाँ
सझु ाई गई हैं, जिनका उपयोग सगु मकर्ता शिक्षकों को किसी अवधारणा को आत्मसात् करने एवं उपयक्ु ‍त कौशल
के विकास में कर सकते हैं। सगु मकर्ता अगर चाहें तो मॉड्यल ू में दी गई गतिविधियों के अतिरिक्‍त वैकल्पिक
गतिविधियाँ निर्मित करने के लिए स्वतंत्र हैं।
‘दसू रा भाग’ शिक्षकों से सबं धं ित है, जिसमें यह प्रयास किया गया है कि शिक्षकों को उनके द्वारा अपनायी जाने
वाली विभिन्न शिक्षण योजनाओ ं के कार्यान्वयन के दौरान उठने वाले सवालों का जवाब पाने में मदद मिल सके ।

उद्देश्य
इस मॉड्यल ू के माध्यम से शिक्षक—
• पाठ्यचर्या में कला समेकित पाठ संबंधी विभिन्न उदाहरणों को साझा कर सकें गे।
• बता सकें गे कि कला समेकित पाठ के माध्यम से किस प्रकार बच्चों का सीखना अधिक व्यापक और सपं रू ्ण
होता है।
• कला समेकित पाठों को अपनी कक्षा में उपयोग करने की क्षमता विकसित करने में अन्‍य शिक्षकों की मदद
कर सकें गे।
• कला अनभु वों की योजना बनाना या आयोजन करना, जिससे प्रतिभागियों में अवलोकन, कल्पना, खोज,
सृजन और स्वयं को अभिव्यक्‍त करने की क्षमता का विकास
होगा। इस प्रकार वे विभिन्न कला समेकित पाठ योजना का
विकास और मल्यां ू कन कर सकें गे।
• प्रतिभागियों को विविध कला रूपों में खोजबीन तथा कार्य
करने में मदद कर सकें गे। शिक्षक कला शिक्षा की अवधारणा
को प्राथमिक स्तर के शिक्षा-शास्‍त्र के रूप में समझ सकें गे।
226 पतु ली द्वारा पर्यावरण अध्ययन की अवधारणाओ ं को समझते हुए
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन

पहला भाग

एक सगु मकर्ता के रूप में आपकी भमि ू का प्राथमिक शिक्षकों के प्रशिक्षण के दौरान इस मॉड्यल ू को संचालित
करने की है। यह सनिि ु श्‍चत करें कि प्रशिक्षण सत्र के अतं तक शिक्षक मॉड्यल ू के उद्देश्यों को समझने में समर्थ हो
सकें । प्रभावी सत्र-संचालन के लिए आवश्यक है कि आप पहले से इसकी योजना तैयार करें । इसके लिए आप
निम्नलिखित बातों को ध्यान में रख सकते हैं—
• इस मॉड्यल ू के दसू रे भाग में दिए गए
‘अकसर पछ ू े जाने वाले प्रश्‍नों’ (FAQs)
के उत्तर पढ़ें और अपनी समझ के अनसु ार
दिए गए उत्तरों को मन ही मन या लिखकर
और अधिक समृद्ध करें । सत्र के दौरान उठ
सकने वाले इस तरह के अन्य प्रश्‍नों और
उनके उत्तरों के लिए स्वयं को तैयार रखें।
• आवश्यक हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर,
जै से — डी.वी.डी./वीडियो-क्लिप्स/
स्लाइड-शो आदि को व्यवस्थित कर
लें ताकि सत्र के दौरान उनका उचित ‘करके सीखें’ सत्र में कला अनभु व साझा करते प्रतिभागी
इस्तेमाल हो सके । (कला अधिगम, हिमाचल प्रदेश)
• गतिविधियों के लिए आवश्यक सामग्री
को व्यवस्थित कर लें, जैसे—रंगीन चार्ट, कागज़, पेंसिल, स्केच-पेन, मार्क र, फ़्लिप-चार्ट, थम्ब-पिन,
ब्राउन-पेपर, प्रदर्शन हेतु डोरी, विभिन्न आकार के सेलो टेप, रंग, ड्राॅइगं -शीट, मॉडलिंग के लिए मिट्टी, कैं ची,
गोंद, वाद्य यंत्र, पोशाक के लिए सामग्री, मच वि ं न्यास (सज्जा) के लिए आवश्यक सामग्री, आदि। सामानों
की सची ू बनाते समय स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्री को प्राथमिकता दें।
• एक किट में प्रत्येक समहू के लिए पेंसिल, स्केच-पेन, कलम, टेप, गोंद आदि उपलब्ध कराएँ। प्रतिभागियों से
भी यह कहा जा सकता है कि वे कैं ची, पेपर-कटर आदि सामग्री अपने साथ लाएँ।
• चकि
ँू यह कार्यक्रम गतिविधि-आधारित है, अतः आयोजकों से अपेक्षा रहेगी कि वे एक बड़ा प्रशिक्षण-कक्ष
उपलब्ध कराएँ, जहाँ गतिविधियों का संचालन सहजता से किया जा सके ।
• जहाँ भी ज़रूरी और सभं व हो, आप दसू रे सगु मकर्ताओ ं या मास्‍टर ट्रेनर्स के साथ समहू -शिक्षण के लिए
मिलकर काम कर सकते हैं।
• प्रत्येक मेज़ के पास एक कूड़ादान रखा जाए ताकि कक्षा में गदं गी न फै ले।
• सगु मकर्ता समय का हमेशा ख्‍याल रखें और प्रतिभागियों को निर्धारित समय-सीमा में गतिविधि समाप्‍त करने
के लिए प्रोत्साहित करें ।

सझु ायी गयी गतिविधियों में से सगु मकर्ता कुछ को आयोजित कर सकते हैं। गतिविधियों के संचालन हेतु
आवश्यक समय भी सझु ाया गया है। हालाँकि दिन के कार्य की शरू ु आत लगभग 30 मिनट के चेतना-सत्र से
होनी चाहिए। चेतना-सत्र के तरीकों में बदलाव करते रहना रोचक रहेगा। यह प्रतिभागियों की सहभागिता और

227
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

प्रतिभागिता को बढ़ाने में सहायक होता है। चेतना-सत्र का स्वरूप कुछ ऐसा हो सकता है—
• समहू गान— इसमें विभिन्न राज्यों के विशिष्‍ट गानों को सम्मिलित किया जा सकता है। इसके लिए कें द्रीय
शैक्षिक तकनीकी सस्था
ं न/सास्कृति
ं क एवं प्रशिक्षण कें द्र द्वारा विकसित सी.डी./डी.वी.डी. सहायक हो सकते हैं।
• पनु रावलोकन— प्रतिभागियों द्वारा पिछले दिन के क्रियाकलापों की समीक्षा और छोटी-सी रिपोर्ट (प्रतिवेदन)
प्रस्तुत करवाई जा सकती है।
• उस दिन के लिए सह-सगु मकर्ताओ,ं स्वयंसेवकों और प्रतिवेदकों की पहचान करना और उस दिन के कार्यक्रम
की घोषणा करना।

टिप्पणी
चेतना-सत्र के स्वरूप में बदलाव करते रहना रोचक होगा। इससे प्रतिभागियों की प्रतिभागिता एवं उनकी
सलं ग्नता का स्तर बढ़ेगा।

सगु मीकरण के लिए सझ


ु ाई गयी कुछ गतिविधियाँ

आइस-ब्रेकर बोल फटाफट

वाद-विवाद पहले मैं (Buzzer Round)

समहू -चर्चा

स्लाइड-शो और वीडियो फ़िल्म

मानस-मंथन (Brainstorming)

20
गतिविधि 1 अनुमानित समय मिनट

आइस-ब्रेकर
अपनी दूरी नापें
इस गतिविधि से अतं :क्रिया और सवं ाद को बढ़ाने तथा प्रतिभागियों की झिझक दरू करने में मदद मिलती
है। कक्षायी प्रदर्शन शिक्षकों को नवाचारी प्रक्रियाओ ं पर चितं न करने और समझ को बढ़ाने में मदद करता
है। यह गतिविधि दृश्य कला के उपयोग द्वारा झिझक को दरू करते हुए दरू ी और समय की अवधारणा को
भी स्पष्‍ट करती है।

228
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन

प्रक्रिया
यह एक समहू गतिविधि है। प्रत्येक प्रतिभागी को दिए गए
कागज़ से हवाई जहाज़ बनाना है। (इसके लिए सभी
प्रतिभागियों को अखबार, पत्रिका के पन्ने या उपयोग में
लाये गए चार्ट पेपर इत्यादि दें)। प्रतिभागी अपने बनाए
जहाज़ को अपने पसंद के रंगों में रंग सकते हैं। उनसे
कहा जाएगा कि वे अपने जहाज़ पर अपना नाम, अपने
राज्य का नाम, विशेषताएँ आदि अकि ं त करें । खल
ु े में
हवाई जहाज़ को उड़ाएँ और देख कि ें सका हवाई जहाज़ मापन सीखने में कागज़ के जहाज़ का उपयोग करते
प्रतिभागी (‘कला समेकित अधिगम’ कार्यक्रम, दिल्ली)
सबसे दरू जाता है।

अनुमानित समय 25
इसके बाद मिनट

प्रत्येक टीम का एक लीडर होगा। टीम लीडर अपनी टीम के द्वारा उड़ाए गए हवाई जहाज़ों में पाँच सबसे दरू तक
जाने वाले जहाज़ों द्वारा तय की गई दरू ी का अनमु ान लगाएँगे। टीम लीडर किसी अन्य तरीके से भी जहाज़ों द्वारा
तय की गई दरू ी का अनमु ान लगा सकते हैं और जहाज़ों द्वारा तय की गई दरू ी की घोषणा उस जहाज़ को बनाने
वाले के नाम के साथ कर सकते हैं। विजेता/विजेताओ ं के उत्साहवर्द्धन हेतु ताली या प्रशसं ा के शब्द कहे जाने
चाहिए।
प्रतिभागी इस गतिविधि से सबं ंधित अपने अनभु व तथा उससे मिली सीख को साझा कर सकें , इसके लिए
सगु मकर्ता एक ‘बोल फटाफट चक्र’ (Rapid Fire Round) का आयोजन कर सकते हैं। ‘बोल फटाफट चक्र’
के लिए सभं ावित प्रश्‍न—
• आपको इस गतिविधि में क्या पसंद आया?
• यह आइस-ब्रेकर किसके बारे में था?
• आपने इस गतिविधि से क्या सीखा?
• अगर हवाई जहाज़ ‘क’ हवाई जहाज़
‘ख’ से अधिक दरू ी तय करता है, तो
आपके अनसु ार इसका सभं ावित कारण
क्या हो सकता है?
• हवाई जहाज़ द्वारा तय की गई दरू ियों
को मापने के अन्य संभव तरीके क्या हो
सकते हैं?
• आपको इस गतिविधि और शिक्षा में कोई संबंध दिखता है? यदि हाँ, तो क्या?
• आपके अनसु ार कक्षा शिक्षण में यह गतिविधि कै से मदद कर सकती है?
• क्या यह गतिविधि विषय को अलग नज़रिए से देखने में आपकी मदद करती है?
• कक्षा के वातावरण पर इस गतिविधि का कै सा प्रभाव हो सकता है—सकारात्मक, नकारात्मक या कुछ
भी नहीं?
• क्या आप उन विविध कला पक्षों को पहचान सकते हैं जो इस गतिविधि में शामिल हैं?
229
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
90
गतिविधि 2 अनुमानित समय मिनट

अपने सस
ं ाधनों को जानें
शिक्षा का एक महत्वपरू ्ण लक्ष्य है चिंतन, अवलोकन एवं अनुभवों की अभिव्यक्‍ति में और भी पैनापन
प्रदान करना। हमारे दैनिक जीवन में ऐसी अनेक परिस्थितियाँ आती हैं, जो हमारे शैक्षिक उद्देश्यों को
पाने में बेहतर संसाधन हो सकती हैं। मह�वपूर्ण प्रश्‍न है कि ये विषय-वस्तु और शिक्षणशास्‍त्र का हिस्सा
कै से हो सकती हैं?
प्रस्तुत अभ्यास इन कलापरू ्ण परिस्थितियों के शिक्षाशास्‍त्रीय मह�व और शिक्षण अधिगम प्रक्रिया से
उनको किस प्रकार जोड़ा जा सकता है, को समझने में मदद करता है।

प्रक्रिया
सगु मकर्ता कागज़ की छः पर्चियाँ बनाएँ। प्रत्येक टीम के
लिए अलग-अलग परिस्थितियाँ लिखें। प्रत्येक टीम दी गई
परिस्थिति के अनसु ार कला अनभु व की योजना बनाएगी। इस
योजना में शिक्षक द्वारा सिखाए जाने वाले एक या अधिक
उप-विषयों/विषयों को जोड़ा जा सकता है।

पर्चियों पर अंकित परिस्थितियाँ यात्रा का अनभु व साझा करने के लिए


रोल-प्ले के दौरान बच्चे
• आपको अपने छात्र-छात्राओ ं को नज़दीक के बैंक या डाकघर
ले जाने का मौका है। वहाँ जाने से पहले या बाद में आप किस प्रकार के कला अनभु वों के आयोजन के बारे
में सोचेंगे? (यह परिस्थिति कक्षा 3 और 4 के शिक्षकों के लिए है।)
• आपके बच्चे विभिन्न प्रकार की पत्तियाँ, फूल, कंकड़, पख ं , बटन, खिलौने आदि इकट्ठा करते हैं। इस सामग्री
का इस्तेमाल करते हुए किन कला अनभु वों को आयोजित कर सकते हैं? (कक्षा 1 और 2 के शिक्षकों के लिए।)
• सभी बच्चों के गर्मी की छुिट्टयों से सबं धं ित अपने अलग अनभु व हो सकते हैं। छुिट्टयों में कुछ अपने सबं धं ियों
के यहाँ, कुछ सदंु र स्थानों को देखने, कुछ विशेष कक्षाओ ं में, कैं प में या अन्य स्थानों पर जाते हैं। इनके अनभु वों
को साझा करने के लिए कोई कला-अनभु व की योजना बनाएँ। (कक्षा 1 और 2 के शिक्षकों के लिए।)
• आपकी कक्षा के छात्र चिड़ियाघर घमू ने जाते हैं। आप उनके लिए किन सभं व कला अनभु वों की योजना बना
सकते हैं? (कक्षा 4 और 5 के शिक्षकों के लिए।)
• प्रायः सभी बच्चे खेलने के लिए मैदान या पार्क में जाते हैं। इनसे जड़ु े बच्चों के अवलोकन और अनभु व को
आप विभिन्न कला पक्षों में कै से उपयोग कर सकते हैं? (कक्षा 1–5 के शिक्षकों के लिए।)
सगु मकर्ता सभी टीमों को बारी-बारी से अपनी योजना प्रस्तुत करने को कहेंगे। साथ ही दसू रे टीम के सदस्य
उन पर अपनी प्रतिक्रिया और सझु ाव देंगे।
30
मिनट
अनुमानित समय
इसके बाद
प्रतिपिु ष्‍ट हेतु ‘पहले मैं चक्र’ (Bazzer Round) से सबं ंधित सझु ाए गए प्रश्‍न—
• आपने इस गतिविधि से क्या समझा?
230
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन

• क्या आप इस गतिविधि और शिक्षा में कोई संबंध देख पा रहे हैं? अगर हाँ, तो किस प्रकार?
• यह गतिविधि सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में किस प्रकार मददगार हो सकती है?
• इस गतिविधि का कक्षायी माहौल पर कै सा प्रभाव पड़ा—सकारात्मक/नकारात्मक/कोई प्रभाव नहीं।
सगु मकर्ता इसी प्रकार के और भी प्रश्‍न विचार-विमर्श के लिए पछू सकते हैं, जिससे प्रतिभागियों में चितं न
मनन और सार्थक प्रतिक्रिया देने के लिए माहौल बन सके ।
सगु मकर्ता प्रतिभागियों द्वारा दी गई प्रतिक्रियाओ/ं बिंदओ
ु ं के आलोक में अन्य विषयों के साथ कला के
समेकन को स्पष्‍ट करते हुए सत्र का समापन करें गे।

30
गतिविधि 3 अनुमानित समय मिनट

अन्य विषयों के साथ कला के समेकन सबं ंधी वीडियो फि़ल्म


‘यह सभ
ं व है’ का प्रदर्शन
फि़ल्म वि
ें शिष्‍ट अनभु वों का संग्रह होती हैं। गणित, पर्यावरण अध्ययन, भाषा संबंधी कला समेकित
वीडियो फि़ल्मों के सेट विद्यालयों में कला आधारित अधिगम को स्पष्‍ट करते हैं। शिक्षा में कला के
व्यावहारिक उपयोग को देखने से शिक्षक कला अनभु वों को आयोजित करने तथा कला को अन्य विषयों
से जोड़ने संबंधी व्यावहारिक जानकारी प्राप्‍त कर सकते हैं।

सगु मकर्ता यह सनिि


ु श्‍चत करें गे कि फि़ल्म प्रदर्शन के समय शांति बनी रहे। फि़ल्म समाप्‍ति के उपरांत इससे
संबंधित चर्चा अवश्य करें ।

इसके बाद अनुमानित समय 30


मिनट

प्रक्रिया
फि़ल्म में दिखाई गयी समेकित गतिविधियों पर प्रतिपिु ष्‍ट पाने के लिए सगु मकर्ता वी.आई.पी.पी. कार्ड का प्रयोग
कर सकते हैं। लिखित वक्‍तव्य पर प्रतिपिु ष्‍ट पाने के लिए प्रतिभागियों को रंगीन कार्ड/कागज़ दिये जाएँगे। प्राप्‍त
सझु ाव चार्ट पेपर पर या स्लाइड के माध्यम से कमरे में प्रदर्शित किए जाएँगे। वी.आई.पी.पी. कार्ड परू ा करने के
बाद प्रतिभागी उन्हें ‘प्रदर्शन पट’ (display board) पर प्रदर्शित करें गे। स्वयंसेवक वी.आई.पी.पी. कार्ड पर
लिखे वक्‍तव्यों को पढ़ेंगे।

वी.आई.पी.पी. कार्ड के लिए सझ


ु ाये गए प्रश्‍न—
• फि़ल्म में विभिन्न कला पक्षों के साथ किन विषयों को समेकित किया गया है?
• इस तरह की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया बच्चों की सहायता कै से कर सकती है?
• आपके अनसु ार इस प्रक्रिया के उपयोग से शिक्षकों को अपने कार्य बेहतर ढंग से करने में किस प्रकार मदद
मिलेगी?
सगु मकर्ता, प्रतिभागियों के बीच चितं न, मनन, अपने विचार रखने और अवधारणाओ ं के समेकन के लिए
इसी प्रकार के और भी प्रश्‍न जोड़ सकते हैं।

231
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

सगु मकर्ता प्रतिभागियों की प्रतिक्रिया और प्राप्‍त बिंदओ


ु ं के आलोक में अन्य विषयों के साथ कला के
समेकन और इसके शिक्षा-शास्‍त्रीय महत्व को स्पष्‍ट करते हुए सत्र का समापन करें गे।
(प्रतिभागियों को इसकी सैद्धांतिक पृष्‍ठभमि ू और मार्गदर्शन हेतु इस मॉड्यल
ू में दिये गए ‘अक्सर पछू े जाने वाले
प्रश्‍नों’ (FAQs) को देखने हेत प्रे
ु रित कीजिए।)

45
गतिविधि 4 अनुमानित समय मिनट

कला समेकित अधिगम पर वीडियो फि़ल्म


(‘बातचीत एक अध्यापक से’)
प्रक्रिया
सगु मकर्ता वीडियो प्रदर्शन द्वारा ‘कला समेकित अधिगम’ संबंधी अभ्यास उदाहरण के रूप में प्रतिभागियों से
साझा करें गे। प्रस्तुति के उपरांत, प्रतिभागियों से उनके द्वारा गतिविधि 2 में बनाई गयी योजना और गतिविधि के
पनु रावलोकन और पनु र्मूल्यांकन हेतु कहा जा सकता है। इसके लिए सभी टीमों को 10 मिनट का समय दिया
जाएगा। सगु मकर्ता बारी-बारी से सभी टीमों/प्रतिभागियों के अवलोकन/प्रतिक्रिया को जानने हेतु ‘पहले मैं चक्र’
(Buzzer Round) का संचालन कर सकते हैं।
सभी टीमों के कार्यों की सराहना करते हुए गतिविधि का समापन करें । (सराहना हेतु सगु मकर्ता स्वयं भी
अलग-अलग तरीकों का सहारा ले सकते हैं।)

4:30
गतिविधि 5 अनुमानित समय मिनट

करके देखें (Mock Session)


प्रशिक्षण में यह सनििु श्‍चत करें कि कला और विषय-वस्तु के साथ इसके
सभं ावित सबं ध ं उपयक्ु ‍त हों। शिक्षक पहले कक्षानसु ार विषय-वस्तु की
पहचान करें , फिर उसके स्पष्‍टीकरण और विस्तार में कला की भमिू का खोजें।
प्रतिभागियों द्वारा कला अनभु वों का डिज़ाइन, योजना निर्माण और उनका
क्रियान्वयन एक समहू में किया जाना काफ़ी मददगार और आवश्यक होता
है। प्रशिक्षण के क्रम में ‘करके देख’ें (mock session) सत्र प्रतिभागियों
को स्वयं करके अनभु व प्राप्‍त करने का अवसर देता है। सगु मकर्ता प्रत्येक
पवन चक्की की अवधारणा पर टीम के प्रस्तुतीकरण के बाद चर्चा को एक आलोचनात्मक और रचनात्मक
करके सीखें सत्र में प्रतिभागी दिशा प्रदान कर सकते हैं। जैसा कि दैनिक क्रियाकलापों में कला का उपयोग
(ए.आई.एल., हिमाचल प्रदेश) व्यक्‍ति की सोच और दृिष्‍टकोण में बदलाव से जड़ा है, अतः प्रतिभागियों

की सराहना और उत्साहवर्द्धन बहुत ही आवश्यक है। शिक्षकों पर विद्यालय के अकादमिक कै लेंडर के
अनसु ार पाठ्यक्रम को परू ा करने का दबाव रहता है। अतः सगु मकर्ता द्वारा प्रतिभागियों को आनदं दायी
अधिगम हेत प्रे
ु रित करने की आवश्यकता होगी। उन्हें इस बात से अवगत कराएँ कि कला का समावेश सीखने
की प्रक्रिया को धीमा नहीं करता बल्‍कि समझ के स्तर को बढ़ाकर सीखने की गति तेज़ करता है।

232
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन

प्रक्रिया
प्रतिभागियों को उनके द्वारा पढ़ाई जाने वाली कक्षाओ ं के आधार पर समहू ों में बाँट दें। (इस परिस्थिति में कक्षा
1–5), अर्थात् समहू 1 में कक्षा 1 को पढ़ाने वाले शिक्षक और समहू 2 में कक्षा 2 को पढ़ाने वाले शिक्षक। इस
प्रकार कक्षा 5 तक के लिए 5 समहू बनाएँ। सभी समहू के सदस्य अपनी कक्षा की किसी एक इकाई का चयन
कर अन्य विषयों के साथ कला समेकित गतिविधियों की योजना बनाएँगे। प्रतिभागियों को कला के विविध पक्षों
एवं अभिव्यक्‍ति के माध्यमों, जैसे—कोलाज, मृत्तिका, पेंटिंग, रंगोली, दीवार पेंटिंग, गायन, नृत्य, विभिन्न प्रकार
की गतियाँ, पतु ली कला आदि को खोजने एवं पहचानने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसकी तैयारी
हेतु प्रतिभागियों को 2 घटं े का समय दें।
तैयारी के उपरांत प्रत्येक समहू द्वारा विकसित इकाई योजना के लिए ‘करके देखें सत्र’ (mock session)
संचालित करने हेतु कहा जा सकता है। एक समहू की प्रस्तुति पर दसू रे समहू के सदस्य अपनी प्रतिपिु ष्‍ट दें।
यह प्रक्रिया प्राथमिक कक्षाओ ं में कला अनभु वों के समेकन संबंधी अवधारणा की बेहतर समझ, उनके
योजना निर्माण और कार्यान्वयन के कौशल के विकास में मदद करती है।

सगु मकर्ता के लिए


सगु मकर्ता और सह-सगु मकर्ता सभी समहू ों के कार्यों का अवलोकन करें , लेकिन ध्यान रखें कि उनकी तैयारी
बाधित न हो। जिज्ञासा की स्थिति में भी किसी प्रकार का निर्देश न दें और न ही उनके द्वारा किए जाने वाले
कार्यों को आसान बनाने का प्रयास करें , ताकि उनकी अपनी योजना उभरकर सामने आ सके । इसका उद्देश्य इस
तथ्य को समझना है कि कोई भी दो शिक्षक न तो एक तरह से सोचते हैं, न एक समान
गतिविधि करते हैं और न ही एक तरह के चरणों को अपनाते हैं। मह�वपरू ्ण यह है
कि गतिविधि उपयक्ु ‍त हो और उनका विभिन्न विषयों से निरंतरता
के साथ समेकन हो।
सगु मकर्ता समय सीमा को ध्यान में रखते हुए योजनानसु ार
प्रशिक्षण को परू ा करने का प्रयास करें । अगर कोई समहू आपसी
सहमति के अभाव या हिचकिचाहट के कारण अपने कार्य में पीछे हो जाता
है तो उन समहू ों को पहले प्रस्तुति देने के लिए कहा जा सकता है, जिन्होंने
अपना कार्य समय पर परू ा कर लिया हो। इससे प्रतिभागियों में स्वस्थ
प्रतिस्पर्द्धा और समय पालन की प्रवृि� का विकास होगा। साथ ही अवधारणाओ ं को समझने के लिए दस्ताने वाली
ऐसी स्थिति में वे जान पाएँगे कि अपने बच्चों के साथ गतिविधियों का पतु लियों की जाँच-परख करते प्रतिभागी
(‘कला समेकित अधिगम’ कार्यक्रम, मेघालय)
संचालन और सगु मीकरण कै से करें ?
‘करके देखें सत्र’ (mock session) के बाद सभी प्रतिभागियों की सराहना ताली बजाकर की जानी
चाहिए। सगु मकर्ता को किसी खास प्रस्तुति पर अपनी टिप्पणी नहीं करनी चाहिए, बल्कि सभी प्रस्तुतियों पर
अपनी समेकित टिप्पणी करते हुए सत्र का समापन करना चाहिए। सभी प्रस्तुतियों पर प्रतिभागियों के विचार को
आमत्रि ं त किया जाना मह�वपरू ्ण ह।ै
प्रतिभागियों को अपनी चयनित इकाई की तैयारी हेतु गतिविधियों को खोजने, विमर्श करने तथा अति ं म रूप
देने हेतु पर्याप्‍त समय दिया जाना चाहिए।

233
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

कला शिक्षा संबंधी गतिविधियों की योजना तथा अन्य विषयों के साथ कला के समेकन संबंधी मखु ्य
बिंदओ
ु ं को रखते हुए सत्र का समापन कीजिए। सैद्धांतिक पृष्‍ठभमि ू और मार्गदर्शन हेतु प्रतिभागियों को इस
मॉड्यलू में दिये गये ‘अकसर पछू े जाने वाले प्रश्‍नों’ को देखने को कहें।
बेहतर होगा कि सगु मकर्ता के पास मखु ्य िबंदओ ु ं से सबं ंधित एक चार्ट प्रशिक्षण कक्ष में लगा रहे।

20
गतिविधि 6 अनुमानित समय मिनट

दिन भर की एक झलक
यह गतिविधि दिन के अतं में होनी चाहिए। इससे प्रतिभागी अपनी प्रगति,
चितं न और अधिगम में आए बदलावों को परख सकें गे। अपनी भागीदारी पर
िचतं न करना, अपने दायित्‍यों को स्‍पष्‍ट करने और यदि आवश्‍यक हो तो उसके
िलए सधु ारात्‍मक कदम उठाने जैसा है। साथ ही इससे पता चलता है कि
सगु मकर्ताओ ं का दिन भर का प्रदर्शन कितना प्रभावी रहा।

अनुमानित समय 10
(क) दिन का समापन मिनट

सगु मकर्ता इस मॉड्यल


ू में से मखु ्य बिंदओ
ु ं को पढ़कर सनु ा सकते हैं या बोर्ड पर लिख सकते हैं—
मुख्य बिंदु
• कला का अन्य विषयों के साथ समेकन का तात्पर्य कला को शिक्षण सामग्री के रूप में प्रयोग करना नहीं है।
• कला अनभ ु वों पर ज़ोर देने का उद्शदे ्य बच्चों को कल्पना, अवलोकन, खोज, रचना, सज ृ न, अभिव्यक्‍ति,
जाँच आदि करने तथा सोचने के लिए पर्याप्‍त समय देना है।
• कला के विभिन्न पक्षों के समेकन का प्रयास होना चाहिए, न कि किसी एक पक्ष का, क्योंकि बच्चे
परिवर्तन, नयापन, चनु ौती और नयी सामग्री को पसदं करते हैं।
• सभी बच्चों में कला के किसी एक रूप के प्रति समान रुचि नहीं रहती है। कोई बच्चा कला के किसी एक
रूप के प्रति अधिक सहज और स्वाभाविक हो सकता है और दूसरे के प्रति नहीं। अतः कला के विभिन्न
रूपों के समावेश से प्रत्येक बच्चे को सज ृ न करने, सीखने और विकसित होने का अवसर मिलेगा।
• सगु मकर्ता का निरपेक्ष व्यवहार कला अनभ ु वों के लिए सहज वातावरण के निर्माण में मह�वपर्ण
ू भमि
ू का
निभाता है तथा स्वतत्रं अभिव्यक्‍ति को सगु म बनाता है।

5
(ख) सझ अनुमानित समय मिनट
ु ाव–पेटी
सगु मकर्ता प्रतिभागियों से निम्नलिखित बिंदओु ं पर प्रतिपिु ष्‍ट ले सकते हैं—
(क) अकादमिक सझु ाव
(ख) भौतिक सविध ु ाएँ
(ग) कार्यक्रम से संबंधित कोई अन्य मद्ु दा

234
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन

प्रतिभागी अपनी प्रतिपुिष्‍ट सीधे सुझाव-पेटी में डाल सकते हैं या फिर जैसे सुगमकर्ता सुझाएँ, वैसे दे
सकते हैं।

(ग) आज का मेरा दिन कै सा रहा? 5


अनुमानित समय मिनट

प्रक्रिया
प्रत्येक प्रतिभागी को एक अभिलेख-पत्र (रिकाॅर्ड-शीट) दे दें। इसमें पाँच कथन तीन-तीन प्रदर्शन-सक
ं े तकों के
साथ दिए गए हैं—
(क) काफ़ी हद तक (तीन स्माइली के साथ)
(ख) कुछ हद तक (दो स्माइली के साथ)
(ग) बहुत कम (एक स्माइली के साथ)
काफ़ी हद तक ☺☺☺
1. मैंने सभी गतिविधियों में परू े मन से भाग लिया। कुछ हद तक ☺☺
बहुत कम ☺

काफ़ी हद तक ☺☺☺
2. मैंने व्यक्‍तिगत गतिविधियों में अच्छा प्रदर्शन किया। कुछ हद तक ☺☺
बहुत कम ☺

काफ़ी हद तक ☺☺☺
3. मैंने अपने समहू के सदस्य के रूप में अच्छा प्रदर्शन किया। कुछ हद तक ☺ ☺
बहुत कम ☺

☺☺☺
काफ़ी हद तक
☺☺
4. अवधारणाओ ं को स्पष्‍ट करने में सगु मकर्ता सफल रहे। कुछ हद तक
बहुत कम ☺

☺☺☺
काफ़ी हद तक
5. सगु मकर्ता गतिविधियों में प्रतिभागियों की रुचि उत्पन्न करने में ☺ ☺
कुछ हद तक
सफल रहे। बहुत कम ☺

प्रतिभागियों से कहें—“आज के प्रदर्शन के लिए जो संकेतक आपके अनसु ार आपके लिए उपयक्ु ‍त/संगत हैं,
उनके सामने () चि� लगाएँ।” उनसे इस रिकाॅर्ड-शीट को संभालकर रखने के लिए कहें, जिन्हें आखिरी दिन
संकलित किया जाएगा। प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करें कि वे यदि चाहें तो अपने अभिलेख-पत्रों को एक-दसू रे
के साथ साझा कर सकते हैं।

सगु मकर्ता सत्र-समापन के पर्व ू प्रतिभागियों को अगले दिन की गतिविधियों की संक्षिप्‍त जानकारी देंगे। उनसे
अगले मॉड्यल ू की बेहतर तैयारी के लिए उससे संबंधित ‘अकसर पछू े जाने वाले प्रश्‍नों’ को देख लेने का आग्रह
करें गे। सगु मकर्ता धन्यवाद ज्ञापन के साथ सत्र का समापन कर सकते हैं।

235
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

दूसरा भाग

‘अकसर पूछे जाने वाले प्रश्‍न’ (FAQs)


प्र.
1 समेकन क्या है?
शब्दकोश के अनसु ार समेकन का अर्थ ‘टुकड़ों को जोड़ना या एकीकृ त कर संपरू ्ण बनाने की क्रिया’ है। वर्तमान
इकाई के सदं र्भ में समेकन का तात्पर्य पाठ्यचर्या के विभिन्न क्षेत्रों के शिक्षण में कला का जड़ु ाव करना है।

प्र. क्या
2 कला के विभिन्न रूपों का अन्य विषयों के साथ समेकन सभ
ं व है?
हाँ, अन्य विषयों के साथ कला का समेकन न के वल संभव है, बल्कि एक शिक्षाशास्‍त्रीय आवश्यकता भी है।
इस प्रशिक्षण मॉड्यल ू का मखु ्य उद्देश्य है कि सामान्य शिक्षक कला को एक शिक्षाशास्‍त्रीय साधन के रूप में
समझ सकें । हालाँकि, इस उपागम में अनेक चनु ौतियाँ हैं, लेकिन जागरूकता और योजनाबद्ध तरीके से न के वल
यह सभं व है बल्कि वाँछनीय भी है। अगर कला को पाठ्यचर्या के कें द्र में रखकर समेकन किया जाए तो यह
विभिन्न विषयों की विषय-वस्तुओ ं को तार्कि क और अर्थपरू ्ण ढंग से जोड़ने का साधन बन सकती है। वस्तुतः,
शिक्षा के विविध आयाम एक ही हैं, लेकिन इन्हें हम खडं -खडं में बाँटकर देखें तो इससे हानि ही होगी।

प्र.
3 कला का अन्य विषयों के साथ समेकन से क्या तात्पर्य है?
भाषा, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान और गणित जैसे विषयों का कला के साथ जड़ु ाव हो सकता है। कभी-कभी
विज्ञान से सबं ंधित अवधारणाओ ं को कला द्वारा आसानी से स्पष्‍ट किया जा सकता है। इस तरह, विषयों के
अतं र्गत अमर्त
ू अवधारणाएँ कला के विविध पक्षों के उपयोग से मर्त ू की जा सकती हैं। इस तरह सीखने की
प्रक्रिया विषय संबंधी ज्ञान और समझ को बढ़ाने में मदद करती है और साथ ही कला की सराहना को भी
बढ़ावा देती है। वस्तुतः, इसी को व्यापक या संपरू ्ण अधिगम कहा जाता है। कला अभिव्यक्‍ति के लिए भाषा
प्रदान करती है। यह अभिव्यक्‍ति दृश्य या प्रदर्शन के रूप में हो सकती है।
विषयों के साथ कला के समेकन का दसू रा पहलू इसकी अधिगम प्रक्रिया है। जब कोई बच्चा किसी कला
कार्य को करता है तो वह विभिन्न चरणों से गज़ु रता है, यथा—अवलोकन, चितं न, कल्पना, खोज, प्रयोग,
निष्कर्ष निकालना, सृजन, पनु ःसृजन और अभिव्यक्‍त करना। इन अवस्थाओ ं में तीनों ज्ञान क्षेत्रों—संज्ञानात्मक,
मनोगत्यात्मक और संवेगात्मक के वास्तविक
समावेश की आवश्यकता पड़ती है। इस तरह
यह बच्चे को सपं रू ्ण विकास की तरफ ले जाती
है। इस तरह के प्रायोगिक अनभु व का लाभ यह
है कि ये दसू रे विषयों के बेहतर अधिगम का
आधार बनते हैं।
उदाहरण के लिए; जब बच्चे लोगों के बारे
में, पड़ोस और वहाँ होने वाले क्रियाकलापों
के बारे में अपने विचार प्रकट करते हैं, तो इसे
सामाजिक अध्ययन से जोड़ा जा सकता है।
आदतों से सीखते बच्चे (निगम प्रतिभा विद्यालय, नयी चौखडं ी) उसी तरह तकनीक और सामग्री से संबंधित
अभिव्यक्‍ति का उपयोग विज्ञान और तकनीकी शिक्षण हेत कि ु या जा सकता है। दृश्य अभिव्यक्‍ति, थिएटर तथा
मक ू अभिनय का उपयोग साहित्य सबं ंधी पाठ को जीवतं बनाने हेत कि ु या जा सकता है। इस तरह कला हमारे

236
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन
वास्तविक जीवन का अभिन्न अगं है और इसका उपयोग सभी विषयों को पढ़ाने में किया जा सकता है।
कक्षा सबं ंधी उदाहरण— ग्रहों की गतियों और स्थितियों को दिखाने के लिए शारीरिक गतियों का उपयोग
एक अच्छा उदाहरण है। एक बच्चा पृथ्वी, दसू रा सर्यू , तीसरा चद्रं मा का रूप धारण करता है। सर्य ू बना हुआ
बच्चा स्थिर खड़ा रहता है, जबकि पृथ्वी बना बच्चा खदु भी अपनी धरु ी पर घमू ते हुए सर्य ू की परिक्रमा परू ी
करता है। यही वो िबंदु है, जहाँ बच्चों को पृथ्वी बने बच्चे की अपने इर्द-गिर्द घमू ने की और सर्य
ू की परिक्रमा
करने की प्रक्रिया को दर्ज़ करना है और यह कि पृथ्वी का अपनी धरु ी पर परू ा िकया एक चक्र, एक िदन
कहलाता है और सर्य ू की एक परिक्रमा, एक वर्ष कहलाती है। चद्रं मा पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता है।
ग्रहण को दिखाने के लिए विस्तृत ढंग से कार्य किया जा सकता है। इस गतिविधि में लयात्मक ध्वनि और ताल
का उपयोग इसे और रोचक बना सकता है।

प्र. शिक्षा
4 का बहुआयामी और अंतर-अनुशासनिक उपागम क्या है? क्या अन्य विषयों के साथ कला का
समेकन अंतर-अनुशासनिक समझा जा सकता है?
हाँ, अन्य विषयों के साथ कला का समेकन एक अतं र-अनश ु ासनिक उपागम है, क्योंकि इसमें कई विषयों का
समेकन होता है। समेकन के संदर्भ में, कला को हम पाठ्यचर्या के कें द्र में रखते हुए कार्य करते हैं। ठीक उसी
तरह दसू रे उपागम भी अन्य विषयों, यथा—गणित या विज्ञान को पाठ्यचर्या के कें द्र में रखकर पढ़ाये जा सकते
हैं। यह उपागम बहुआयामी भी है, क्‍योंकि किसी प्रकरण के सीखने-सिखाने में यह विविध नए आयाम जोड़ता
है। विषयों का विविध सचू नाओ ं के रूप में विभाजन, पाठ्यपस्त ु कों का अलग-अलग हिस्सों में बंटा होना
तथा अक ं आधारित मल्यां ू कन, ज्ञान को खडि ं त स्वरूप में सामने लाते हैं, लेकिन संभवतः एक कलाकार ने
अधिकांश लोगों की अपेक्षा इसे अधिक समग्रता में समझा है। हमेशा से, कलाकारों की विषय-वस्तु समग्र ज्ञान
के संसार से ही रही है। आइये, पर्व ू के कुछ उदाहरणों पर नज़र डालें—
• गफ ु ़ा पेंटिंग के कलाकारों ने जिन जानवरों का चित्रण किया है, उनकी आतं रिक संरचना और गति के बारे
में उनको पर्याप्‍त ज्ञान था।
• मिस्र के लोगों ने पिरामिड की संरचना में एकदम सटीक गणित का उपयोग किया।
• यनू ानियों काे शरीर की आतं रिक संरचना का ज्ञान तथा मध्य पथ (golden mean) पर आधारित अनपु ात
की तार्कि क सटीकता उनकी कलाओ ं में तर्क और गणित का अदभ् तु समन्वय दर्शाता है।
• प्रभाववादी चित्रकारों (Impressionist) द्वारा परावर्तित प्रकाश में रंगों का चयन दृश्य और अदृश्य
प्रकाश किरणों की वैज्ञानिक समझ को दर्शाता है।
प्रत्येक संस्कृति में धर्म, कला के लिए प्रेरणा स्रोत रहा है। इसी तरह, कला धर्म के लिए प्रेरणा स्रोत रही है।
एक अच्छा शैक्षिक कार्यक्रम अंतर-अनश ु ासनिक होना चाहिए, जिसमें सभी विषयों से विषय-वस्तु शामिल
हो सके ।

प्र.
5 अन्य विषयों के साथ कला के समेकन का क्या लाभ है?
छोटे बच्चों की गतिविधियाँ स्वाभाविक होती हैं, जोकि कलामख ु ी भी होती हैं। इससे पहले कि बच्चों में अपने
विचार और संवेगों को पारंपरिक ढंग से शब्दों में व्यक्‍त करने की
क्षमता का विकास हो, बच्चे कला के माध्यम से अपने विचार
और अनभु ति ू याँ व्यक्‍त कर सकते हैं। कला, साक्षरता से पहले
आती है। कला बच्चों को सीखने के ऐसे अनभु व देती
है जो उनके दिल, दिमाग और शरीर को व्यस्त रखे।
कला बच्चों को विविध कौशल और क्षमताओ ं के

237
टीम वर्क का अनभु व
लेते बच्चे
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
उपयोग के लायक बनाती है। अतः कला उन बच्चों के भी सीखने का सशक्‍त माध्यम है जो किसी अन्य तरीके
से नहीं सीख पाते हैं। कला में सीखने के विविध तरीके शामिल हैं। यह बच्चों को संवाद के वैकल्पिक तरीके
उपलब्ध कराती है। कला का समेकन अन्य विषयों को और आनंदपरू ्ण बनाता है जिससे सीखना और बेहतर
होता है। साथ ही ध्यान की अवधि तथा शामिल होने की इच्छाशक्‍ति बढ़ती है। कला बच्चों में सामाजिक
कौशलों को सशक्‍त करने के साथ एक टीम के रूप में कार्य करने का अनभु व प्रदान करती है। बच्चे दसू रों के
विचारों को सम्मान देना और उनको स्वीकार करना सीखते हैं। कला मस्तिष्क के विभिन्न भागों को सक्रिय
कर बच्चों को चितं न और विश्‍लेषण करने में मदद करती है। कला ऐसे कौशलों का विकास करती है जिससे
बच्चे जीवनपर्यंत सीखने के इच्छु क रहते हैं। कला बच्चों को रचनात्मक ढंग से सोचने योग्य तथा सौंदर्य के
प्रति संवेदनशील बनाती है।

प्र. क्या
6 कला समेकित शिक्षण योजनाबद्ध हो सकता है?
जब विद्यालयी पाठ्यचर्या की अन्य विषय-वस्तुओ ं से कला को जोड़ने की बात हो तो कला के अन्य विषयों
से सबं ध
ं को ध्यान में रखना ज़रूरी हो जाता है। प्राथमिक कक्षाओ ं के शिक्षकों द्वारा कला समेकित इकाई के
डिजाइन हेतु यह आवश्यक है कि वे योजना बनाएँ एवं अन्य शिक्षकों के साथ साझा करें । यह उपयक्ु ‍त सझु ाव
है कि विद्यालय के शिक्षक (कक्षावार) माह में एक बार एक साथ बैठें और उन विषय-वस्तुओ ं पर परस्पर चर्चा
करें , जिन्हें उस माह में पढ़ाया जाना है। एक साथ मिलकर वे उन तरीकों और साधनों के बारे में चितं न-मनन कर
सकते हैं, जिनके माध्यम से कला का उपयोग करते हुए पाठ्यचर्या से सबं धं ित विषय-वस्तुओ ं की बेहतर समझ
बनाई जा सके । िजन स्‍कू लों में जहाँ कला और अकादमिक विषयों के लिए अलग-अलग शिक्षक हैं, वहाँ दो
शिक्षक परस्पर कला और विषय के सह-सबं धं ों का उपयोग विषय-वस्तु को बेहतर ढगं से सिखाने में कर सकते
हैं। इससे बच्चों में बेहतर प्रतिभागिता, उत्साह और विषय-वस्तु की समझ हो सके गी। अगर परू े वर्ष के पाठ्यक्रम
को साल के शरू ु में ही योजनाबद्ध ढगं से निर्धारित कर लिया जाए तो उल्लिखित तरीके को परू े साल के लिए
अपनाया जा सकता है। हालाँकि, यह विद्यालय विशेष द्वारा अपनाए जाने वाले तरीकों पर भी निर्भर करे गा।

प्र. क्या
7 ‘कला समेकित अनुभव’ को आयोजित किया जा सकता है?
अधिगम अनभु वों में कला के समेकन का तात्पर्य किसी कविता की व्याख्या या किसी अन्य सभ्यता/संस्कृति
में निर्मित कलाकृ तियों की नकल कदापि नहीं है। इस तरह का समेकन किसी भी विषय में कोई मदद नहीं कर
सकता। यह एक सतही अनभु व होगा, जिसका नकारात्मक प्रभाव हो सकता है। वास्तविक समेकन तब होता
है, जब विषय अधिक मह�वपरू ्ण नहीं, बल्कि सीखने का अनभु व अधिक सार्थक और व्यापक हो जाए और
बच्चे इस अनभु व से स्वयं को जोड़ पाएँ। शिक्षकों को एक ऐसे माहौल का निर्माण करना चाहिए, जो बच्चों
को कला अनभु व प्राप्‍त करने हेत प्रे
ु रित कर सके ।
कला समेकित पाठों के आयोजन हेतु कुछ सझु ाव
िनम्न हैं—
• शिक्षकों को कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए,
यथा—कक्षा की विषय-वस्तु, उपलब्ध
सविध
ु ाएँ, बच्चों की संख्या, सामग्री तथा
उपलब्ध समय।
• इस पर विचार करें कि बच्चे किस कला पक्ष
से परिचित हैं और फिर ऐसे कला अनभु वों
की योजना बनाएँ जो सीधे विषय-वस्तु से
गणित की अवधारणाओ ं को समझने के लिए
जड़ु ती हो।
238
मद्ु रा के िचत्रांकन में व्यस्त बच्चे
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन
• बच्चों को पाठ्यपस्तु क से अलग भी सबं ंधित विषय-वस्तु को खोजने का अवसर प्रदान करना चाहिए।
• कला अनभु व संबंधी योजना बहु-संवेदी (multi-sensory) होनी चाहिए जिसमें अवलोकन, खोज,
प्रयोग और सृजन शामिल हों।
• सबसे पहले समेकन हेत वि ु षय-वस्तु से संबंधित विचारों को लें।
• योजना हेतु समय सारणी तय करें ।
• वैसे विचारों के लिए मानस मथं न करें , जो विषय-वस्तु को अन्य विषयों से समेकित कर सकें ।
• जहाँ संभव हो सके , विषय-वस्तु संबंधी बेहतर समझ हेतु साथियों के साथ विचार-विमर्श करें ।
• पाठ का ऐसा ढाँचा विकसित करें , जो सभी विषयों की विषय-वस्तु के शिक्षण में काम आए।
• समदु ाय के विशेषज्ञों (अभिभावक, कलाकार, पेशवे र व्यक्‍ति) की पहचान करें । पाठ को रोचक बनाने हेतु
आवश्यकतानसु ार उन्हें आमत्रि ं त करें जिससे यह वास्तविक दनि
ु या से जड़ु सके ।
• आकलन के लिए ऐसे तरीके विकसित करें , जो स्पष्‍ट और सभी विषयों के लिए उपयक्ु ‍त हों। (विस्तार से
आकलन और मल्यां ू कन को समझने के लिए कला में मल्यांू कन संबंधी मॉड्यल ू को देख)ें ।
• जहाँ कला हेत विश
ु षे ज्ञ शिक्षक हैं, वहाँ कला शिक्षक और विषय शिक्षक को पाठ योजना के विकास हेतु
मिलकर कार्य करना चाहिए, जिससे उनकी सफलता की बेहतर संभावना बन सके ।
• सभी कला समेकित पाठों का रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए, जो अगले साल संबंधित शिक्षक को मदद कर
सके । इस तरह कला समेकित पाठों का एक अच्छा सग्रं ह तैयार हो जाएगा।

प्र. क्या
8 अन्य विषयों के साथ कला का समेकन शिक्षण सहायक सामग्री (teaching aid) की तरह है?
विभिन्न विषयों की जटिल अवधारणाओ ं
को स्पष्‍ट करने के लिए चित्रों का उपयोग
किया जा सकता है। उदाहरण के लिए,
मशहूर कलाकार लियोनार्डो दा विंची प्रथम
कलाकार था, जिसने माँ के गर्भ के बच्चे
(गर्भस्थ शिश)ु का चित्रण किया (विज्ञान/
जीव विज्ञान); िसकंदर के आने के बाद ही
घोड़े संबंधी कलाकृ तियाँ भारतीय संदर्भ
में देखी गइ� (इतिहास); भारतीय पेंटिंग में
नीले रंग के उपयोग का उदाहरण शायद ही
मिलता है, क्योंकि इसे बनाने के लिए जिस
खनिज लाजवर्द मणि (lapis lazuli) की
ज़रूरत होती है, वह भारत में नहीं मिलता कलाकृ तियों के माध्यम से इतिहास को पनु : जीते बच्चे
था (प्राकृ तिक इतिहास); धातक ु र्म विज्ञान (metallurgy) की शरू ु आत भारत में प्राचीन काल में ही हो गई
थी, जो सिंधु घाटी सभ्यता में नृत्य मद्रा
ु में मिली नारी की प्रतिमा में देखा जा सकता है। शिक्षक को चाहिए कि
इस प्रकार की आकृ तियों के बारे में और पता लगाएँ, जो पढ़ाये जाने वाले पाठ से संबद्ध हों। इसी प्रकार कला
समेकित शिक्षण का तात्पर्य चार्ट पर परागण की प्रक्रिया को दर्शाना नहीं है, इसका मतलब है, इसे कला के
माध्यम से सिखाना। परागण से सबं ंधित विषय-वस्तु को सगं ीत एवं गति के माध्यम से सिखाया जा सकता है।
शारीरिक गति परागण की प्रक्रिया के अनसु ार कराई जा सकती है। बच्चे इसे करते हुए मधमु क्खी की ध्वनि
निकालेंगे। अगर बच्चे अधिगम प्रक्रिया में शारीरिक रूप से भाग लेते हैं, तो उनकी संलग्नता अधिक होती है,
जिससे उनमें पाठ को सीखने और ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है। यह एक शिक्षाशास्‍त्रीय तरीका है, न कि
के वल एक शिक्षण सामग्री।
239
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

प्र.
9 समेकित उपागम में हम कला का मूल्यांकन कै से कर सकते हैं?
समेकित कला अनभु वों के मल्यां ू कन के लिए ज़रूरी है, पाठ आरंभ करते समय ही लक्ष्यों की पहचान कर ली
जाए। हम कौन-सा प्रकरण (topic) पढ़ा रहे हैं? हम किन विषयों को समेकित कर सकते हैं? पाठ की समाप्‍ति
पर दोनों विषयों में बच्चे क्या सीख पाएँगे? वांछित प्रतिफल क्या हैं? क्या पाठ से संबंधित अवधारणाओ ं को
स्पष्‍ट करने में कला अनभु व मददगार रहा है?
शिक्षक इन पर आधारित या अन्य प्रश्‍नों के आधार पर कला से सबं ंधित अधिगम परिणामों के आकलन
हेतु मानदडं बना सकते हैं। अगर कला के शिक्षण हेतु अलग से शिक्षक हों, तो ऐसी स्थिति में दोनों शिक्षकों
द्वारा मिलकर मल्यां
ू कन की योजना बनाई जा सकती है। तब इन्हें संयक्ु ‍त मल्यां
ू कन के रूप में उपयोग किया जा
सकता है। मल्यां
ू कन वैचारिक मतं व्य, ज़र्नल, चित्रकला या मौखिक क्विज़ के रूप में भी हो सकता है।

प्र. क्या कला के माध्यम से शिक्षा में इसके प्रभाव सबं ंधी कोई अध्ययन या आँकड़े उपलब्ध हैं? कृपया
10 विभिन्न कला पक्षों के सम्‍बंध में उदाहरण दीजिए?
हार्वर्ड यनि
ू वर्सिटी द्वारा कराए गए ताज़ा अध्ययन ‘प्रोजेक्ट ज़ीरो’ के अनसु ार कला के समेकन से संपरू ्ण
अकादमिक संवर्द्धन हो सकता है, क्योंकि यह आत्म-अभिव्यक्‍ति का अवसर देता है। साथ ही अन्य अकादमिक
विषयों के ज्ञान को रचनात्मक ढंग से उपयोग करने की स्वतंत्रता देता है। छोटे बच्चों में साक्षरता कौशल के
विकास और ड्रामा के बीच संबंध के पर्याप्‍त विवरण उपलब्ध हैं। रूपर्ट (2006) का अध्ययन ‘बच्चों की
उपलब्धि में कला कै से मददगार है’ के अनसु ार किसी पाठ को ड्रामा के माध्यम से संचालित करने से कहानी
को समझने, पढ़ने और लिखने के कौशलों में काफ़ी बढ़ोतरी होती है। यहाँ तक कि प्रतिभावान छात्र-छात्राओ ं
के संबंध में किए गए अध्ययन बताते हैं कि कला के माध्यम से उनकी रचनात्मक क्षमता और संज्ञानात्मक
क्रियाशीलता और भी बढ़ सकती है। हेटलैंड (2000), सिले (1994), वाल्डर (2002), िवलेट (1992) एवं
जॉर्ज (2002) ने बताया है कि कला संबंधी निर्श दे ों से अवलोकन, अमर्त चि
ू तं न और समस्या समाधान संबंधी
कौशलों का विकास होता है। शोधों से यह साबित हो चक ु ा है कि संगीत से स्थानिक तर्क क्षमता बढ़ती है, जो
गणितीय अवधारणाओ ं की समझ विकसित करने में पर्याप्‍त मदद करती है।
प्रकरण अध्‍ययन 1— नोएडा के एक निजी विद्यालय में नामांकित पंकज नामक बच्चे की कक्षा तीन और
चार में न के वल उपस्थिति कम थी, बल्कि सीखने में रुचि का भी अभाव था। वह अकसर कक्षाओ ं से भाग
जाता था। ‘विद्या एडं चाइल्ड’ नाम की एक स्वयं-सेवी संस्था, जो हाशिये पर स्थित उन बच्चों, जिनके
माता-पिता अशिक्षित हैं और जो अपने बच्चों की पढ़ाई में सहायता नहीं कर सकते हैं, ने पंकज को अपनाया।
विषय सबं ंधी ट्यश ू न के अलावा जब पक ं ज को तबला-वादन की ओर उन्मुख किया गया तो उसने उसके प्रति
त्वरित रुचि दिखाई। उसने विद्या एडं चाइल्ड की अनेक प्रस्तुतियों में भाग लिया। उसकी विद्यालय आने की
इच्छा बढ़ने लगी। वह अपनी पढ़ाई में नियमित हो गया। विद्यालय और पढ़ाई के प्रति उसका झक ु ाव, ध्यान
और तन्मयता बढ़ गई। आज वह इजं ीनियरिंग का द्वितीय वर्ष का छात्र है।
प्रकरण अध्‍ययन 2— वडु रो विल्सन, न्यू जर्सी के यनि ू यन सिटी में अवस्थित बाल कक्षा से कक्षा आठ
तक का विद्यालय है। अमेरिका के अत्यंत घनी आबादी वाले शहर में अवस्थित इस विद्यालय ने एक अत्यंत
समृद्ध पाठ्यचर्या विकसित की, जिसमें दृश्य और प्रदर्शकला का उपयोग बच्चों के सीखने, अकादमिक रूप
से संबद्ध रखने तथा उनके उच्चस्तरीय चितं न कौशल को बढ़ावा देने में मदद हेत कि ु या गया है। यह विशिष्‍ट
कार्यक्रम बच्चों की व्यक्‍तिगत सृजनात्मक क्षमता और प्रतिभा को विकसित करने के साथ-साथ नई शताब्दी
की चनु ौतियों का सफलतापर्वू क सामना करने हेतु आत्मविश्‍वास और समस्या समाधान का कौशल भी प्रदान
करता है। इस पद्धति से प्राप्‍त परिणाम िनम्‍न हैं—

240
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन
परिणाम
• 2009 में विद्यालय के संपरू ्ण पठन और गणितीय प्रवीणता दर का औसत 92 प्रतिशत था, जबकि परू े राज्य
का औसत 74 प्रतिशत था।
• 2009 में कक्षा 3 के गणित और कक्षा 8 के विज्ञान एवं भाषा ज्ञान में प्रवीणता शत-प्रतिशत पायी गयी।
(http://www.learningfirst.org/arts-integarated-curriculam-helps-students-
overcome-challenges-poverty)

प्र. प्राथमिक
11 और उच्च प्राथमिक स्तर पर अन्य विषयों के साथ कला के समेकन को ध्यान में रखते हुए,
कला शिक्षा के लिए विशेष कक्षाओ ं का क्या औचित्य है?
जैसा कि बताया गया है, कला का अन्य विषयों के साथ उपयोग, शिक्षण अधिगम में कला को संसाधन के रूप
में उपयोग करना है। यह विषय-वस्तु को अर्थपरू ,्ण आकर्षक और समावेशी बनाने का सशक्‍त माध्यम बन जाता
है। अगर बच्चे कला माध्यम सबं ंधी किन्हीं तकनीकों का विकास नहीं करते तो शिक्षा के लिए कला अधरू ी है।

सितारों के रूप में तैयार बच्चे

प्र. क्या
12 हम अपनी कक्षाओ ं के लिए कला गतिविधियों की योजना एवं आयोजन के लिए कला शिक्षक
और विषय विशेषज्ञों की मदद ले सकते हैं?
नििश्‍चत तौर पर, कला या ड्रामा शिक्षक, विषय शिक्षकों के साथ मिलकर विषय-वस्तु को और भी आकर्षक
बनाने की योजना बना सकते हैं। वास्तव में बच्चों के सीखने और बहुआयामी विकास में कला की भमि
ू का
और महत्व को समझने के लिए व्यापक स्तर पर जन-जागरूकता की आवश्यकता है।

प्र.
13 अगर हमारे विद्यालयों में कला और शिल्प को दिये जा रहे महत्व का विरोध अभिभावकों द्वारा किया
जाता है, तो हम इसका सामना कै से कर सकते हैं?
हमें कला के विषयों के साथ सीधे जुड़ाव के बारे में अभिभावकों एवं समुदाय को शिक्षित करने की
ज़रूरत है। सबसे महत्वपूर्ण है प्रधानाध्यापक तथा शिक्षकों का दृढ़ विश्‍वास व स्पष्‍टता। बस ज़रूरत है
एक ईमानदार संवाद की। अभिभावक तभी सहयोग करें गे, जब वे इसके द्वारा भविष्य में होने वाले अच्छे
परिणाम के बारे में जानेंगे।
241
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

प्र. वर्तमान
14 में, मैं अपनी कक्षा में चित्रकला सिखा रहा हू।ँ क्या यह कला शिक्षा के लिए पर्याप्‍त नहीं है?
जैसा कि पहले बताया गया है, कला की परिभाषा अपने आप को के वल चित्रकला तक ही सीमित नहीं
करती। इसमें कला संबंधी अन्य क्षमताएँ, यथा—मर्ति ू कला, कोलाज, पतु ली कला तथा अन्य शामिल हैं।
इससे आगे, कला शिक्षा पाठ्यचर्या संबंधी अन्य आयामों से समेकित की जा सकती है, यथा—इतिहास को
जानने के लिए ड्रामा या भगू ोल के लिए मिट्टी, जिससे पाठ्यचर्या समृद्ध हो सके । ऐसी स्थिति में कला के लिए
आवंटित कालांश पर्याप्‍त नहीं होंगे, बल्कि अन्य शिक्षकों को कला शिक्षक के साथ टीम में कार्य करने की
आवश्यकता होगी।

प्र. 15 प्रत्येक दिन/सप्‍ताह में कला शिक्षा के कितने


कालांश होने चाहिए?
एक सप्‍ताह में कला शिक्षा सबं ंधी उतने ही कालांश
होने चाहिए जितनी विद्यालय की समय सारणी में
गंजु ाइश हो। प्रति सप्‍ताह लगभग एक घटं े का समय
कला कौशलों को सीखने हेत दि ु या जाना सही होगा।
हालाँकि कला समेकित अनभु वों के लिए कला,
सीखने के कें द्र में होनी चाहिये। सीखने की दर को
ड्राॅइगं पर आधारित कहानी बनाते बच्चे बढ़ाने और व्यापक अनभु व प्रदान करने के लिए
अधिकांश विषयों को कला गतिविधियों से समृद्ध किया जा सकता है, जैसे—संगीत, नृत्य, दृश्य कलाएँ
आदि। इसे ध्यान में रखते हुए कला के लिए कालांश की सखं ्या निर्धारित नहीं की जा सकती। शिक्षक अपनी
गतिविधि की योजना के अनसु ार समय या कालांश का उपयोग कर सकते हैं।

प्र.
16 भाषा सीखने में कला का समेकन कै से किया जा सकता है?
जब बच्चे भावनात्मक अभिव्यक्‍तियों, यथा—क्रोध, भय, खशी ु , उदासी आदि के बारे में जानना शरू ु करते
हैं, तब उन्हें कुछ पत्रिकाएँ देकर उन चित्रों को पहचानने हेतु कहा जा सकता है, जो खशी ु , उदासी या अन्य
भावनाओ ं को प्रकट कर रहे हों। इसके साथ चित्रों से जड़ु े शब्दों की पहचान और पढ़ने का कार्य कराया जा
सकता है। उनको अपने जीवन की उन घटनाओ ं को व्यक्‍त करने के लिए कहा जा सकता है, जब उन्हें बहुत
खशी मि
ु ली हो या उदासी का अनभु व हुआ हो।
बच्चे विद्यालय में ‘दादा-दादी या नाना-नानी’ दिवस मना सकते हैं, जिसमें ‘दादा-दादी या नाना-नानी’
आएँ और बच्चों को कहानियाँ सनु ाएँ। बच्चे उनमें से कुछ कहािनयों को ‘दादा-दादी या नाना-नानी’ के सामने
अभिनय द्वारा प्रस्तुत कर सकते हैं। दिन के अतं में बच्चे अपने द्वारा रचित पस्त
ु क उन्हें भेंट स्वरूप दे सकते हैं,
िजसमें ऐसे प्रसंग और िचत्र िदए हों, जैसे—मझु े अपनी दादी के बारे में क्या अच्छा लगता है? कै से मैं अपने
दादा जी के साथ समय बिताता हू?ँ दादा-दादी उन पस्त ु कों को देखकर खश ु होंगे तथा उन्हें खज़ाने की तरह
सहेजकर रखेंगे।
बच्चों को भाषायी अभिव्यक्‍ति से संबंधित एक गतिविधि दें। बच्चों से किसी कहानी को पढ़ने के बाद
उस कहानी के किसी मनपसंद पात्र या क्षण का चित्रण करने को कहें। अगर बच्चे लिखना जानते हैं, तो उन्हें
चित्र से सबं ंधित कोई वाक्य िलखने को कहें। अगर बच्चे बहुत छोटे हों, तो उनसे चित्रों के बारे में बताने और
उनके सामने संबंधित शब्द लिखने को कहें।
कक्षा 1 के बच्चे चिकनी मिट्टी के उपयोग से वर्ण बनाकर अपना या अपने मित्र का नाम लिख सकते हैं।
भाषा सीखने के साथ-साथ इससे गत्यात्मक कौशलों के विकास में भी मदद मिलती है।

242
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन
कक्षा 2 के बच्चे पतु ली बनाकर अपनी हिदं ी की
पस्त
ु क की कहानी को प्रस्तुत कर सकते हैं। इससे
एक ही समय में सृजन, प्रदर्शन और अभिव्यक्‍ति
को बल मिलता है साथ ही भाषायी कौशल तो
विकसित होता ही है।
कक्षा 1, 2 और 3 के बच्चों को कहानी
देकर उसके आधार पर अपनी प्रस्तुति तैयार
करने को कहा जा सकता है। बच्चों के गाने,
नाचने, ड्रम बजाने (ताली भी) की इच्छा के
आधार पर उनके तीन समहू बनाए जा सकते भाषा सीखने की प्रक्रिया में अपने द्वारा बनाए समद्ु री
हैं। जो समहू नृत्य चनु े, वह दी गई कहानी पर जीवों का अभिनय करते बच्चे (नई चौखडं ी, िदल्‍ली)
आधारित नृत्य के बारे में सोच सकता है। गाना चनु ने वाला समहू कहानी से संबंधित गाना चनु सकता है या
अपना गाना बना सकता है या इससे संबंधित जो नृत्य तैयार किया गया है, उसके लिए धनु बना सकता है।
तीसरा समहू नृत्य के लिए लय-ताल की रचना करे गा और फिर सभी समहू एक साथ अपनी रचनाओ ं की
प्रस्तुति करें गे। ऐसी प्रस्तुतियों के परिणाम बहुत ही रोचक होते हैं और दसू रों को भी बच्चों से बहुत कुछ सीखने
का अवसर िमलता है। समहू के अदं र प्रतिभागिता और सवं ाद का स्तर बहुत ही उच्च कोटि का होता है। चकि ँू
प्रस्तुति बच्चों की अपनी होती है; अतः अपना सर्वश्रेष्‍ठ देने हेतु उनकी संकल्पबद्धता देखते ही बनती है।

प्र.
17 विज्ञान के शिक्षण अधिगम के साथ कला को कै से समेकित किया जा सकता है?
कक्षा 4 के बच्चे पत्रिकाओ ं में दिये गए स्वास्थ्य के लिए लाभदायक और हानिकारक भोजन के चित्र काटकर
एक बड़ी पेपर शीट या कार्ड बोर्ड पर लगाते हैं। भोज्य सामग्रियों को कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा में वर्गीकृ त
करते हुए मिट्टी की सहायता से मॉडल बनाते हैं। मेला-हाट का खेल खेलते हुए काल्पनिक मद्रा ु की सहायता
से खरीद-बिक्री कर सकते हैं। अधिक से अधिक लाभ प्राप्‍त करने के लिए उन्हें इस मद्रा ु को समझदारी से खर्च
करना है। इससे खेल-खेल में गणितीय कौशलों का विकास होगा। फल और सब्जियों का नाम सीखते समय
बच्चे उनके चित्रों से ‘अरसिमबोल्डो शैली’ (Arcimboldo style) में चित्र बनाते हैं।
कक्षा 5 के बच्चे पालतू और जंगली जानवरों के बारे में पढ़ते हैं। वे अस्तबल का भ्रमण करते हैं, जहाँ
घोड़ों को नहलाया धल ु ाया जाता है, खिलाया जाता है और उनके पैरों में नाल लगाया जाता है। बच्चे घोड़ों
को थपथपाते हैं, जिससे उनको घोड़ों की खाल और मांसपेशियों के बारे में अनभु व होता है। वे समझ पाते हैं
कि उनके पैरों में नाल क्यों ज़रूरी है? वे बहुत सारे प्रश्‍न करते हैं और घोड़ों से संबंधित विस्तृत चित्र बनाते हैं।
ये चित्र बाद में पेंटिंग और मिट्टी के मॉडल में बदले जाते हैं। इस तरह, छोटे बच्चों को शाकाहारी एवं खेतों में
काम करने वाले जानवरों की परू ्ण एवं िवस्तृत जानकारी हो जाती है। बड़े बच्चों के लिए घोड़े का परिचय यद्ध ु में
प्रयक्ु ‍त होने वाले जानवर, एलेक्‍जें़डर की यात्रा, उस समय का इतिहास, शाकाहारी जीवों की आतं रिक बनावट,
उनकी भोजन संबंधी आदतें, अश्‍वशक्‍ति की अवधारणा आदि रूप में रुचिकर हो सकता है। इसी प्रकार ऐसे
पाठों के लिए आप अपने आस-पास पाये जाने वाले किसी जानवर का चनु ाव कर सकते हैं।
बच्चे अपने दैनिक जीवन में जिन समस्याओ ं का सामना करते हैं, उनके समाधान हेतु कुछ काल्पनिक
तरीके खोज निकालते हैं, जैसे—खाली बोतलों से रोबोट बनाना जो फ़र्श की सफ़ाई में मदद कर सकते हैं।
कुछ और सझ ु ाव—
जानवरों, कीड़े-मकोड़ों, कें चआ ु आदि से संबंधित विषय-वस्तु पर बात करते हुए अनेक काल्पनिक स्थितियाँ
पैदा की जा सकती हैं, जो बच्चों को अपने संसार जिसमें वे रहते हैं, के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करे गा।
243
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
जैसे—कीड़े को दनि ु या कै सी दिखती होगी? अपना घर टूटने पर कीड़े को कै सा लगता होगा? आदि। यहाँ बच्चे
किसी पेड़ की छाल की छाप लेकर उस पर मिट्टी की सहायता से कोई कीट बना सकते हैं।
विज्ञान में ऐसे कई प्रकरण हैं, जो विज्ञान के रचनात्मक और विध्वंसक रूप को व्यक्‍त करते हैं।
कला बच्चों में कुछ विशेष वैज्ञानिक नज़रियों का विकास कर सकती है। इ�धन, जल जैसे संसाधनों की
अल्प उपलब्धता को ध्यान में रखकर शिक्षक इनके उपयोग हेतु नए और वास्तविक तरीके सोचने में बच्चों की
मदद कर सकते हैं।
जंगली जानवर संबंधी अवधारणाओ ं को स्पष्‍ट करने के लिए बच्चों को प्राकृ तिक इतिहास संग्रहालय या
चिड़ियाघर ले जाया जा सकता है। बच्चे वहाँ जानवरों का अवलोकन और स्केचिगं कर सकते हैं। उनकी चाल
और आवाज़ की नकल कर सकते हैं। उनके आवास के बारे में व्यापक जानकारी तथा अन्य पारिस्थितिकीय
मद्ु दों को शामिल करते हुए बच्चे मजे़-मजे़ में कहानी बना सकते हैं। उनको एक चिड़ियाघर विकसित करने के
कार्य में सल ं ग्न किया जा सकता है। अगर बच्चे जलीय जीव का चयन करते हैं, तो पेंटिंग या अन्य सामग्री के
माध्यम से मछली-घर या तालाब बना सकते हैं।

प्र.
18 सामाजिक अध्ययन के साथ कला को कै से समेकित किया जा सकता है?
किसी भी संस्कृति को समझने का सबसे अच्छा माध्यम कला है। वस्तुतः कला सभी लोगों द्वारा समझी और
अभिव्यक्‍त की जाने वाली सार्वभौमिक भाषा है। यह विभिन्न सांस्कृतिक, आर्थिक और शैक्षिक पृष्‍ठभमि ू
के लोगों के बीच की दीवार को छोटा कर देती है। यह कला ही है जिसके माध्यम से सभी विषयों को जीवन
में सम्मिलित किया जा सकता हैं, क्योंकि इसमें अमर्त ू अवधारणाओ ं को भी मर्त ू वास्तविकता में बदलने
की क्षमता है। अतः कला के माध्यम से
सीखना बेहतर अकादमिक सफलता
प्रदान कर सकता है।
प्राथमिक स्तर पर सामाजिक
अध्ययन का क्षेत्र काल्पनिक चितं न हेतु
भरपरू अवसर प्रदान कर सकता है। अगर
विचार-विमर्श और अभिप्रेरणा के तरीकों
को सफलतापर्वू क व्यवस्थित कर लिया
जाए, तो प्रत्येक बच्चा मानसिक रूप
से कलात्मक अभिव्यक्‍ति के किसी न
किसी स्वरूप में अभिव्यक्‍ति हेत प्रे
ु रित
कलात्मक और रचनात्मक अभिव्यक्‍ति के लिए िवद्यालय की दीवार को होगा। यद्यपि बच्चे अधिकांश चीज़ों को
प्रयोग करते बच्चे (निगम प्रतिभा विद्यालय, नई चौखडं ी, िदल्ली)
तथ्यात्मक आधार पर सीखेंगे पर यहाँ भी
समेकन की पर्याप्‍त जगह है, ताकि बच्चों को सामाजिक अध्ययन के अधिगम में दबाव, बोझ और नीरसता से
मक्ु ‍त किया जा सके । स्केचिगं , ड्रॉइगं और पेंटिंग विषयों को जीवंत बना सकते हैं। इसी प्रकार पृथ्वी पर मनष्य ु
का उदभ् व और विकास कै से हुआ तथा उसका भविष्य क्या होगा आदि को कला के माध्यम से बेहतर ढंग से
समझा जा सकता है।
स्वतत्रं ता दिवस के अवसर पर कुछ बच्चों की टोली ने राष्‍ट्रीय ध्वज, उसमें प्रयक्ु ‍त रंग और प्रतीक चि�ों के
महत्व के बारे में खोजबीन की। इसके बाद उन्होंने उन्हीं रंगों तथा भारतीय इतिहास के कुछ अन्य प्रतीक चि�ों का
प्रयोग करते हुए ध्वज के डिज़ाइन बनाए। उन्होंने भारतीय महापरुु षों के जीवन पर आधारित डाक टिकट डिज़ाइन
किए। इस क्रम में वे उनके जीवन के बारे में अधिक से अधिक जानकारी इकट्ठा करने में सल ं ग्न हुए।

244
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन

प्र.

19 गणित के साथ कला का समेकन कै से हो सकता है?
लय और ताल (beats and rhythm) की बेहतर समझ हेत बच्चों का सगीत से परिचय कराएँ। उन्हें गायकों
ु ं
और वाद्य यंत्रों के चित्र दिखाए जाएँ। उनको उन विभिन्न उपकरणों से धनु के उत्पन्न होने की प्रक्रिया दर्शाते
हुए कोलाज या चित्र बनाने को कहें।
इस तरह बच्चों में एक रचनात्मक कल्पनाशीलता विकसित होगी। साथ ही उसी समय वे गणित और
भौतिकी के आधारभतू तथ्यों को भी सीखेंगे। बच्चों को अपने परिवेश में उपलब्ध सामग्री से सगं ीत उपकरण
बनाने और पर्व निर्धा
ू रित लय और ताल पर उन्हें बजाने हेत प्रेु रित किया जा सकता है।
विद्यालय में जहाँ बच्चे पैसे इकट्ठा करते हैं, अनदु ान में मिले पैसों को गिनते हैं या खदु रा वापस करते हैं,
वे गणित ही कर रहे होते हैं। सममिति जैसे प्रकरण में, जहाँ विविध डिज़ाइनों की रचना का अवसर होता है, यह
सौंदर्यबोध के साथ गणितीय निर्देश के मानकों को भी परू ा करती है। आकृ तियों, पैटर्न और विभाजन की समझ
को सृजनशीलता से जोड़कर, बच्चे सदंु र कलाकृ तियाँ बनाते हैं।
बच्चों को मिट्टी की सहायता से विभिन्न ज्यामितीय आकृ तियों को बनाने, अपने मन मतु ाबिक काटने
और पनु : व्यवस्थित करने हेतु कहा जा सकता है। इस प्रक्रिया में वे न के वल आकृ तियों के बारे में सीखेंगे,
बल्कि सममिति, संरचना सीखने के साथ-साथ भार तथा गरुु त्वाकर्षण बल के मध्य संबंध को भी जानेंगे।

प्र. प्राथमिक
20 विद्यालय में प्रदर्शन कला से सबं ंधित गतिविधियों का आयोजन मैं कै से कर सकता हू?ँ
शिक्षक कक्षा में सगं ीत, नृत्य और ड्रामा को आयोजित करने में महत्वपरू ्ण भमि
ू का निभा सकते हैं। प्रत्येक प्रदर्श
कला, कक्षा की गतिविधियों में विभिन्न तरीकों एवं तकनीकों के उपयोग के बारे में बता सकती है। यह कौशल
का क्षेत्र ह।ै एक शिक्षक के रूप में आपके प्रदर्शन संबंधी कौशलों को बढ़ाने में विभिन्न प्रदर्शन कलाएँ मदद कर
सकती हैं। कक्षा में सक्रिय रहें और अपने हाव-भाव को लयात्मक रखें। कक्षा में बोलने, कविता पाठ, कहानी
सनु ाने आदि में शब्दों का सही उच्चारण सही हाव-भाव के साथ करें , और कक्षा में आने वाली िकन्हीं भी
परिस्थितियों को एक सगु मकर्ता के रूप में हल करें ।
संगीत छोटे बच्चों को व्यस्त रखने का एक सरल और प्रभावी माध्यम है, क्योंकि यह उनके दैनिक जीवन
का स्वाभाविक और आनंददायक भाग है। बच्चे खेलते हुए, टेलीविज़न देखते हुए, बस, ट्रेन या कार में यात्रा
करते हुए और विद्यालय आदि में संगीत सनु ते या गाते रहते हैं। कभी-कभी वे खेलते समय अपने स्वयं के गीत
रचते हैं और उसमें संगीत डालते हैं। वे कक्षा में ABC को गाकर सीखते हैं। शोधकर्ताओ ं ने यह पाया है कि
एक अभिनय गीत द्वारा जानवरों के बारे में जानते बच्चे
(निगम प्रतिभा विद्यालय,बापरोला गाँव, िदल्‍ली)

245
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
सगं ीत बच्चों के पहाड़ा सीखने और उनमें आरंभिक भाषायी कौशलों के विकास में मदद कर सकता है। हम में
से बहुतों को अभी भी अपने बचपन में पढ़े संगीत से जड़ु े पाठ याद होंगे।
इसी तरह प्राथमिक स्तर पर प्रदर्शन कला से संबंधित तरीकों के कुछ सझु ाव निम्नवत हैं—
• बच्चों को अपनी पाठ्यपस्त ु क की किसी कहानी या दैनिक जीवन के अनभु वों का नाटकीयकरण करने को
कहें और कुछ बच्चों को इस दौरान मधमु क्खी की तरह िभनभिनाने या मेज से ड्रम की आवाज़ निकालकर
सगं ीत देने को कहें।
• बच्चों से कहें कि वे घटनाओ,ं शरीर के अगं ों, परिवार के सदस्यों तथा स्वयं के बारे में वर्णन करते हुए
स्वयं के गीत रचें।
• बच्चों को खाली बोतल, गत्ते के डिब्बे, बर्तन, चम्मच, लकड़ी के गटु के आदि का उपयोग कर अपना
वाद्य यंत्र बनाने के लिए प्रेरित करें ।
• बच्चों से उनके परिचित गीत के शब्दों में बदलाव करके कुछ नया बनाने के लिए कहना, उनकी
रचनात्मकता को बढ़ाने के साथ उनके शब्द भडं ार में भी बढ़ो�री करता है।
• प्राथमिक कक्षाओ ं में अत्यंत साधारण क्रियाकलाप-आधारित गीत, यथा—प्रस्थान (marching) गीत,
लोक गीत, राष्‍ट्रीय गीत, सामदु ायिक गीत, आदि सिखाये जाने चाहिए।

प्र.
21 भाषा, सामाजिक विज्ञान के साथ प्रदर्शन कला सबं ंधी गतिविधियों को हम कै से जोड़ सकते हैं?
विषयों के साथ समेकन
भाषा या सामाजिक विज्ञान से प्रदर्शन कलाओ ं को संबंधित करने से बच्चे भाषा के सौंदर्य के प्रति संवेदनशील
होंगे। वे विषय कि बारीकियों (essence) को ग्रहण करें गे, िजससे विषय के सामान्य उद्देश्यों को प्राप्‍त करने के
साथ-साथ उनको एक ज़िम्मेवार नागरिक बनाने में मदद मिलेगी।
ऊपर वर्णित तथ्यों को प्राप्‍त करने में झाँकी के माध्यम से कहानी का वर्णन, उसे लागू करने, संगीतपरू ्ण
अभिनय, नृत्य अभिनय, मक ू अभिनय आदि सहायक होते हैं।
उदाहरण के लिए, महान देशभक्‍त और
राष्‍ट्रपिता महात्मा गाँधी, जिन्होंने हमारे देश
के लोगों को अग्रेज़
ं ों से स्वतंत्र होने के लिए
प्रेरित किया, संघर्ष किया, वे भी अपने अदं र के
विश्‍वास को पनु ः जागृत करने के लिए ‘वैष्णव
जन तो तेने कहिए’ और ‘एकला चलो रे ’ जैसे
गीत गाते थे तथा उनमें विश्‍वास रखते थे। इससे
भी बढ़कर गाँधी जी के सम्‍मान में आयोजित
होने वाले पवित्र अवसर और प्रार्थना समारोह में
सामाजिक विज्ञान की कक्षा में पतु ली प्रदर्शन करते बच्चे भी ये गीत विशेष रूप से गाए जाते हैं। महात्मा
गाँधी के बारे में सोचने पर जो दसू रा आयाम हमारे सामने आता है, वह है एकता और सत्याग्रह, जिसे उन्होंने
विश्‍व को सिखाया। यही कारण है िक संपरू ्ण भारतीय स्वतंत्रता अभियान में शायद ही खनू -खराबा नज़र आता
है। उन्होंने विश्‍व को सत्य और सक्रिय अहिसं ा का पाठ पढ़ाया। साथ ही उन्होंने सिखाया कि न्याय प्राप्‍ति में
यदि आवश्यक हो तो असहयोग का तरीका अपनाएँ। ‘एकला चलो रे ’ के शब्द इसी विचार की उदघ् ोषणा हैं।
जैसा कि कला के सभी रूप किसी भी समस्या का एक समाधान या उत्तर नहीं देते हैं, अतः बच्चों को
विविध समाधानों के उपयोग को अपनाने की प्रक्रिया सीखनी चाहिए। इससे सीखने की बहुआयामी प्रक्रिया
का विकास होता है। सीखने का कें द्र बिंदु के वल परीक्षा पास होने की तैयारी से बदलकर अन्वेषण, पछू ताछ-

246
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन
आधारित अधिगम की ओर हो जाता है, जहाँ क्यों, कै से और क्या जैसे आधारभतू प्रश्‍न विषय की तार्कि क
समझ को बढ़ाते हैं। इससे अधिगम प्रक्रिया के प्रति एक सकारात्मक प्रवृि� का भी विकास होता है।
कला विचारों को अभिव्यक्‍त करने हेतु वैकल्पिक भाषा उपलब्ध कराती है। इसे, जैसा कि हमने देखा
सामाजिक अध्ययन, विज्ञान, गणित या भाषायी कौशलों के साथ भी जोड़ा जा सकता है। कला में सक्ू ष्म व
स्थूल गत्यात्मक कौशल भी समाहित हैं, जो उसे शारीरिक शिक्षा से भी जोड़ते हैं।
सीखने में कला की गभं ीर और व्यापक भमि ू का को जानते और समझते हुए भी यह प्रश्‍न उठता है कि
हम पाठ्यक्रम को छोटे-छोटे टुकड़ों में क्यों बाँटते हैं और कला को दरकिनार करते हुए अपने बच्चों को संपरू ्ण
िशक्षा से वंचित रखते हैं? ज्ञान के इस समृद्ध स्रोत को प्रबल कर हम कला और सिखाये जाने वाले अन्य विषयों
को मज़बतू करते हैं। अधिगम को अलग-अलग विषयों में बाँटने से, जैसा िक उनकी पाठ्यपस्त ु कों में होता है,
बच्चों को लगता है कि सामाजिक विज्ञान, विज्ञान, गणित, इतिहास या भाषा में परस्पर कोई संबंध नहीं है। एक
अच्छा पाठ्यक्रम अतं र-अनश ु ासनिक शिक्षण और अधिगम पर आधारित होना चाहिए जिसमें ज्ञान के सभी
क्षेत्रों से विषय-वस्तु समाहित हो।
प्रकरण अध्‍ययन–1 इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि जब बच्चे विद्यालय में आते हैं तो वे कोरी स्लेट नहीं हैं, बल्कि
उनके पास अपने-अपने घर, आस-पास और गाँव से संबंधित काफ़ी अनभु व होते हैं। वे अनेक
चीजों को देखते हैं, लेकिन अपने अनभु वों को ठीक से अभिव्यक्‍त नहीं कर पाते हैं। लेकिन जैसे
ही आप उन्हें किसी गतिविधि में संलग्न करते हैं, वे अपने अनभु वों को उससे जोड़ने लगते हैं। इस
तरह उनके अनभु वों का सम्मान कर आप उनके मस्तिष्क में यह बात डाल सकते हैं कि सचेत
अवलोकन ज्ञान के विकास का आधार है। मझु े एक घटनाक्रम याद है, जब मैंने अपने बच्चों को
बादल की आकृ ति बनाने और परिभाषित करने हेतु कहा था। इसके लिए उन्हें बाहर जाने, बादलों
को देखने के साथ यह भी कहा था कि बादल बनाने हेतु वे किसी भी रंग का उपयोग कर सकते
हैं। उनमें से अधिकांश ने सामान्य पेंसिल से बादलों की आकृ ति बनाई। उनमें से कुछ ने बादलों
को विशाल, गोल, अनियमित आकृ ति वाले, सतू जैसे मल ु ायम, फूला हुआ बताया, तो कुछ ने
बादलों में हाथी, चिड़िया आदि जैसी आकृ तियों को देखने की बात कही।
कुछ बच्चों ने बादलों को नीले या काले रंग में रंगा। जब उनसे पछू ा गया कि बादलों को इन
रंगों से क्यों रंगा तो उन्होंने कहा कि ये बादल बारिश लाएँगे। इसका अर्थ है कि उन बच्चों ने
बारीकी से उन स्थितियों को देखा है कि काले बादल आते हैं तो बारिश होती है, जबकि उजले
बादल बारिश नहीं करते हैं। इन सामान्य अवलोकनों के आधार पर बच्चों को बादल बनने और
वर्षा होने की प्रक्रिया बताई जा सकती है। इसे बच्चों के द्वारा खेले जाने वाले खेलों से जोड़ा जा
सकता है, जैसे—“पानी बाबा आ जा, ककड़ी भट्ु टा ले जा”। इस तरह से बच्चे उन अनाजों और
फलों के बारे में भी आसानी से जान सकते हैं, जो मानसनू के समय होते हैं।
प्रकरण अध्‍ययन–2 मझु े याद है, एक विद्यालय में सभी बच्चों को अपने टिफि़न बॉक्स में अपना स्थानीय खाना लेकर
आने को कहा गया। उन्हें अपने अभिभावकों से यह भी पछू कर आने को कहा गया कि यह खाना
कै से, किन अवसरों पर तथा किस मौसम में पकाया जाता है। क्या इस भोजन का कोई सांकेतिक
महत्व है? जिस तरह की सचू नाएँ वे लाए, वास्तव में, यह अपने देश के बहु-सांस्कृतिक स्वरूप
को समझने का एक बेहतर तरीका है। उन्होंने देखा कि एक राज्य के अदं र भी भोजन को तैयार
करने के तरीके और लक्ष्य अलग-अलग हैं, अधिकांश स्थितियों में ऐसा उस क्षेत्र की भौगोलिक
स्थितियों के कारण होता है। त्यौहार और उन अवसरों पर बनने वाले पकवानों का संबंध ज़्यादातर
फसल कटाई से है, जैसे—हम मकर संक्रांति या उत्तरायण के अवसर पर तिल और गड़ु खाते हैं।
उन्होंने यह निष्कर्ष भी निकाला कि सभी क्षेत्रों में नववर्ष के अवसर पर स्वादिष्‍ट पकवान बनते हैं,

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मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
जो मीठे , खट्टे, तीखे व नमकीन
होते हैं। उन्होंने यह भी सीखा कि
किस प्रकार कुछ भोजन जाड़े के
ठंडे मौसम में गर्मी देते हैं जबकि
कुछ गर्मी के गर्म मौसम में शरीर
को ठंडा रखते हैं।
प्रकरण अध्‍ययन–3 मैं एक और उदाहरण प्रस्तुत
करना चाहता हू।ँ चौथी कक्षा में
एक छात्रा है। उसकी दादी माँ हैं,
जिन्होंने 1947 में अपने देश की विभिन्न खाद्य पदार्थों के स्वाद का अनभु व करते बच्चे
आज़ादी के समय भारत और पाकिस्तान के बँटवारे का दर्द झेला है। मैंने उन्हें स्वतंत्रता दिवस
पर आमत्रि ं त किया और कक्षा के बच्चों से अपने अनभु वों को साझा करने का अनरु ोध किया।
उनकी गहरी बातें उनके व्यक्‍तिगत कटु अनभु वों से भरी थीं। कक्षा में काफ़ी उत्सुकता थी, सभी ने
अनेक प्रश्‍न पछू े । बच्चों ने अपनी
पाठ्यपस्त ु कों में देश के बँटवारे के
बारे में पढ़ा था। लेकिन अभी जो
उन्होंने सनु ा, वह एक व्यक्‍तिगत
अनभु व था, जिसका सबं ंध उनके
साथ घटित घटनाओ ं से था। किस
तरह वे रात के अधं रे े में गप्‍त
ु रूप
से अपना घर छोड़कर भागे, अपने
साथ थोड़ी बहुत अपनी सामग्री
ले सके , कई दिनों तक ट्रक में
असविध ु ाजनक ढंग से यात्रा करनी पड़ी, बिना किसी सविध ु ा या अल्प सविध ु ा वाले शरणार्थी
कैं प में कै से जगह मिली, इत्यादि। इन विवरणों ने उन सभी बच्चों को इस सबं ंध में मानसिक छवि
बनाने में मदद की, जोकि अगले दिन उनके द्वारा बनाई गई तस्वीरों में भी दिखी।
इस प्रकार बच्चों ने जो सीखा, वे के वल इतिहास की पाठ्यपस्त ु क पढ़ कर नहीं सीख सकते
थे। इतना ही नहीं, उत्सुकता और जिज्ञासा इतनी बढ़ी कि वे विद्यालय पस्त ु कालय में स्वतंत्रता
संग्राम से संबंधित पस्त ु कों को ढूँढ़ने के लिए प्रेरित हुए। मेरा विश्‍वास है कि इस तरह मैंने पाठ के
उद्देश्यों को प्राप्‍त कर लिया, क्योंकि शिक्षा का मल ू उद्देश्य है और होना भी चाहिए कि बच्चों में
जिज्ञासा जागे, जो उन्हें स्वप्रेरित अधिगम की ओर ले जाए।
प्रकरण अध्‍ययन–4 कुछ वर्ष पहले मैंने पाँचवीं कक्षा में पढ़ाये जाने वाले पाठ सिंधु घाटी की सभ्यता पर एक कार्यशाला
का आयोजन किया। इसके लिए बहुत सारी गतिविधियाँ आयोजित की गइ�। सत्र की शरू ु आत
प्रिंस ऑफ़ वेल्स संग्रहालय (मबंु ई), जिसमें सिंधु घाटी की सभ्यता से संबंधित व्यापक खडं था,
के भ्रमण से शरू ु हुई। बच्चों ने नृत्य मद्रा
ु वाली बालिका, दाढ़ी वाले आदमी, खिलौने, आदि का
स्केच बनाया। उन्होंने उस समय के आभषू ण एवं शिल्प को भी देखा। कार्यशाला में लौटने के बाद
बच्चों ने अपने व्यक्‍तिगत स्तर पर छोटी-छोटी इमारतें बनाई, जिन्हें ं मिलाकर एक नगर का रूप
दिया गया। उन्होंने उन अवशेषों को खोजा, जिन्हें मैंने पहले से मिट्टी में दबा दिया था। ठीक उसी
प्रकार जिस तरह परु ातत्ववेत्ता काम करते हैं। उन्होंने उस समय की खोज को ध्यान में रखते हुए
आभषू ण और खिलौने भी बनाए। कार्यशाला के अतं में अभिभावकों को स्लाइड शो दिखाया

248
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन
गया, जिसमें बच्चों ने सभ्यता सबं ंधी अपनी खोज को प्रस्तुत किया। लेकिन मेरे लिए सबसे
अधिक सतं ोष का क्षण वह था, जब कुछ महीनों के बाद, आर्ट गैलरी में एक अभिभावक मेरे पास
आए और कहा, “आपको उनकी पस्त ु क के सभी अध्यायों के लिए इस तरह की कार्यशालाएँ
आयोजित करनी चाहिए। मैं आपको बताना चाहता हू कि ँ मेरी पत्री
ु ने कभी भी उस अध्याय को
पढ़ने के लिए किताब नहीं खोली और उसने अपने इतिहास विषय की परीक्षा में बहुत अच्छा
किया।”
प्रकरण अध्‍ययन–5 किसी साहित्य के पाठ या कहानी के बाद जब आप बच्चे से उसका िचत्रण करने को कहें या िफर
ित्र-आयामीय मॉडल बनाने को कहें, तो इस तरह की परियोजनाएँ के वल अवधारणा का विस्तार
भर बनकर रह जाती हैं और इसका समेकित परियोजना के रूप में कोई महत्व नहीं रहता है। कला
किसी भी पाठ या अवधारणा के अर्थ का कें द्र िबंदु होनी चािहए। उदाहरण के लिए, शिक्षक बच्चों
को यह दिखा सकते हैं कि कै से अलग-अलग प्रकाशनों में कहानी की व्याख्या की गई है। बच्चों
को लेखक तथा उसकी रचनाओ ं के बारे में शोध हेत प्रो ु त्साहित करना चाहिए, जिससे बाद में वे
लेखक की कहानियों का सग्रं ह और उनके मख ु पृष्‍ठ को डिज़ाइन कर सकें । इस तरह से वे लेखक
के प्रति अपनी समझ को कलात्मक तकनीकों के द्वारा अभिव्यक्‍त करना सीख जाएँगे और इस
प्रक्रिया में वे यह भी सीख जाएँगे िक कलाकार और लेखक सोचते कै से हैं?
प्रकरण अध्‍ययन–6 कक्षा 5 में नवीकरणीय और अनवीकरणीय ससं ाधनों पर पाठ है। हम इस पर बात कर रहे थे कि
कै से किसी व्यक्‍ति द्वारा उत्पन्न कचरा उसकी जीवन शैली के बारे में बहुत कुछ बताता है। बच्चों
के एक समहू ने इस पर शोध किया और शहरों की सीमाओ ं से दरू क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीण लोगों
के घरों से निकलने वाले कचरे की सची ू बनाई। एक कला समेकित परियोजना के तहत बच्चों को
एक सारणी बनाने को कहा गया, जिसमें उन्‍हें सप्‍ताह के सभी दिनों में उनके घरों से निकलने वाले
कचरे की सची ू बनानी थी। वे सख ू ा कचरा भी बटोरकर विद्यालय में लाए। सारे कचरे को एक
साथ रखा गया। इस परियोजना से कचरे के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद मिली, सचू नाओ ं
के रे खांकन के बारे में सीखा तथा मानस-मथं न से यह समाधान मिला कि कचरे को कम कर पनु ः
उपयोग और पनु ः चक्रित किया जाए।
नियमित पाठ्यक्रम और जाँच की िवधियाँ िवषय की समझ को के वल एक उ�ार तक सीमित
कर देती हैं। वहीं दसू री तरफ कला समेिकत अधिगम हमारे चितं न को निखारता है और उसे
िवस्तृत करता है।
प्रकरण अध्‍ययन–7 इतिहास का अवलोकन
कक्षा 7 के बच्चों को भारत के इतिहास से संबंधित कहानियों के अश दि ं ए गए। उन्हें स्थिति का
आकलन करके और अपने इतिहास के ज्ञान का प्रयोग करते हुए उस पर एक पेंटिंग बनानी थी।
उन्‍हें निम्न निर्देश दिये गए थे—
कहानियों को पढ़िये। क्या ये कहानियाँ इस विषय पर आपके विचारों की पिु ष्‍ट करती हैं या
उनका खडं न करती हैं? आपके मस्तिष्क में क्या छवि बनती है? जब आपने कहानी पढ़ी तो
आपको कै सा महससू हुआ? क्या आपको धक्का लगा? क्या आपको बरु ा लगा? क्या इसने
आपकी रुचि जगाई?
अवलोकन की दृिष्‍ट से खोज करने हेतु इनमें से कोई एक कहानी चुिनए। आपके पास तीन विकल्प हैं—
(क) आप इस कहानी में दर्शायी साहित्यिक घटनाओ ं को वर्णन करने हेत च ु नु सकते हैं।
(ख) आप कहानी की बेहतर व्याख्या हेतु एक ऐसा चित्र बना सकते हैं, जो आपके लिए बेहतर अर्थ दे सके ।
(ग) आप इस कहानी से हुए अनभु वों को प्रदर्शित कर अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं।

249
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
आप अपनी प्रतििक्रया या व्याख्या को अमर्त ू (abstract) रूप में भी व्यक्‍त कर सकते हैं।
तीन प्राथमिक िचत्र (preliminary drawings) और एक अति ं म चित्र (final work) बनाएँ, जो निम्न आवश्यकताओ ं
की पर्ति
ू करे —
• नीचे की ओर ½” × ½” × ½” × 1” का किनारा लें।
• तस्वीर के तल को चार िहस्सों में बाँट दें।
• कम से कम 6 आकृ तियों को एक-दसू रे के आगे-पीछे , ऊपर-नीचे (overlap) िचत्रित करें ।
• आकृ ितयाँ भी िवभिन्न माप और आकार में, जैसे—कुछ बड़ी, कुछ मध्यम और कुछ छोटी बनाएँ।
• तस्वीर के िलए िदए गए स्थान को धनात्मक (positive) और ॠणात्मक (negative) भाग में संतलि ु त तरीके से
बाँटें।
• केवल अति ं म कार्य में कम से कम तीन रंगों की आभा और शेड (tints and shade) का उपयोग करें ।
• तीन प्राथमिक चित्रों को परू ा करने के बाद उनमें से िकसी एक को 22”×15” के पेपर पर अति ं म रूप दें।
पानीपत का प्रथम युद्ध
यद्ध
ु प्रातः 6 बजे आरंभ हुआ। सल्ता
ु न इब्राहिम लोदी तेजी से आगे बढ़ा। लगभग 400 मीटर की दरू ी पर बाबर के तोपखाने
ने फायर करना शरू ु कर दिया; पैदल सेना के द्वारा की गई ध्वनि और धएु ँ ने अफ़गान सेना को आतकि ं त कर दिया और
हमले की गति क्षीण पड़ गई। बाबर ने अपने सैनिकों की किनारे की टुकड़ी को सल्ता ु न की सेना को घेरने हेतु भेजा। यहाँ
मगं ोलों के वास्तविक हथियार ‘तर्कु -मगं ोल धनषु ’ से अफ़गानों का पहली बार सामना हुआ। इसकी श्रेष्‍ठता इस तथ्य में
निहित थी कि यह अभिजात्य लोगों का हथियार था, जो सर्वश्रेष्‍ठ योद्धा हुआ करते थे। मगं ोल योद्धाओ ं के हाथ में इस तरह
का धनषु , मस्कट (musket) की तल ु ना में तीन गनु ा वेग से तथा 200 गज की दरू ी तक मार कर सकता था।
तीन तरफ से आक्रमण होने के कारण अफ़गान आपस में ही उलझ गए। तोपों की आवाज़ सनु कर हाथी भड़क उठे ।
इब्राहिम लोदी और लगभग 6,000 सैनिक वास्तविक यद्ध ु में शामिल थे। उनकी सेना जो लगभग एक मील पीछे तक
फै ली थी, उनमें से अधिकांश किसी प्रकार की हरकत नहीं कर रहे थे। इब्राहिम लोदी जो सबसे आगे था, की मौत के साथ
यद्ध
ु लगभग तीन घटं े में समाप्‍त हो गया।
भीषण यद्ध ु वाले स्थान पर मगं ोलों के शवों के ढेर के बीच सल्ता
ु न इब्राहिम लोदी का शव पड़ा हुआ था। उसके सिर
को काटकर बाबर के समक्ष लाया गया। आज भी पानीपत में इब्राहिम लोदी का मकबरा स्थित है। जब अफ़गान भागे,
अपने पीछे 20,000 मृत और घायलों को छोड़ गए। बाबर की सेना की हानि भी बहुत थी—उसके दल के 4,000 सैनिक
या तो मारे गए थे या घायल थे। अगर सल्ता ु न इब्राहिम यद्ध ु में कुछ देर और जि़दं ा रहता, तो जीत सकता था, क्योंकि बाबर
के पास कोई सरु क्षित सेना नहीं थी। उसके सैनिक तेज़ धपू में तेज़ी से थक रहे थे। बाबर ने अपनी आत्मकथा में लिखा
है—“दिल्ली की शक्‍तिशाली सेना आधे दिन में ही धल ू में मिल गई।” रसब्करु विलियम के शब्दों में, “किसी भी अन्य
कारक की तल ु ना में जो एकमात्र मह�वपरू ्ण कारक था, जिसके कारण हिदं स्ताु न पर बाबर की विजय सनिि ु श्‍चत हुई, वह
था शक्‍तिशाली तोपखाना।” बारूद के विस्फोट से आतंकित हाथियों ने अपने ही सैनिकों को कुचल डाला।
दो सप्‍ताह के बाद विजयी बाबर आगरा पहुचँ ा, जहाँ उसे विश्‍व प्रसिद्ध हीरा ‘कोह-ए-नरू ’ भेंट किया गया। बाबर ने
शाही अदं ाज में अपनी विजय का उत्सव मनाया तथा दिल्ली और आगरा पर कब्ज़ा जमाया।
भारत का विभाजन
मार्च 1947 में लाॅर्ड माउंटबेटन को भारत के वाइसराय के रूप में भेजा गया। उसे ब्रिटिश सेना के बलपर्वू क हटाये जाने
की भयपरू ्ण स्थिति का सामना करना पड़ा। बढ़ते हुए जन आदं ोलन के आलोक में उसने पजं ाब और बंगाल के बँटवारे
की सिफ़ारिश की। गाँधी बँटवारे के विचार के विरोधी थे। उन्होंने माउंटबेटन से आग्रह किया कि अलग मस्लि ु म राज्य
बनाने की अपेक्षा जिन्ना को एकीकृ त भारत का नेततृ ्व सौंपा जाये। हालाँकि नेहरू ने इस सझु ाव का समर्थन नहीं किया।
जल
ु ाई में ब्रिटेन की संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया, जिसके अनसु ार 14–15 अगस्त की मध्य रात्रि

250
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन
को भारतीय गणराज्य के उपनिवेश की अति ं म तिथि निर्धारित की गई। परिणामस्वरूप, लगभग एक करोड़ लोग जिसमें
हिन्दू, मस्लि
ु म और सिख शामिल थे, अपने पसंद के देश में शरण हेतु अपना घर-द्वार छोड़कर भाग गए। सांप्रदायिक
नरसंहार में लगभग 10 लाख लोग मारे गए, जिसमें सबसे ज्‍़यादा क्षति सिखों को हुई, जो बीच में फंस गए थे। उनमें से
अधिकांश अतं तः पंजाब में ही बस गए।
प्रकरण अध्‍ययन–8 कक्षा 4 और 5 के पाठ्यक्रम में मबंु ई महानगर पर एक पाठ है, िजसमें स्थापत्य संबंधी अध्ययन
हेतु बच्चों को फोर्ट िजला ले जाया गया, जहाँ के अधिकांश भवन गौथिक शैली के हैं और िजन्हें
िब्रटिश काल में बनाया गया था। संरचना को समझने के लिए बच्चों ने भवन की विशिष्‍टताओ ं
का अवलोकन करना शरू ु किया—नकु ीले मेहराब, शीशे की िचत्रित खिड़कियाँ, पत्थर से बने
भवन और परनाले। वहीं बाहर ही बच्चों ने इससे संबंधित आरे ख खींचे, फिर वापस कक्षा में
आए। उन्होंने देखे गए भवन के लक्षणों के आधार पर अपने स्वयं के भवनों की रचना की। उन्होंने
अपने परिवेश के अनभु व पर आधारित डिज़ाइन के आधार पर शीशे की चित्रित खिड़कियाँ भी
बनाइ� और अतं में कागज़ की लगु दी की सहायता से परनाला निर्मित किया। इन सबके कारण यह
सनिि
ु श्‍चत हुआ कि बच्चे लंबे समय तक इस अध्याय को नहीं भल ू पाएँगे।
प्रकरण अध्‍ययन–9 कक्षा 5 की ज्यामिति में वृ� संबंधी एक पाठ है। बच्चों ने इसमें कें द्र, त्रिज्या, व्यास, परिधि आदि
के बारे में सीखा तथा इन अवधारणाओ ं का उपयोग करते हुए एक अमर्त ू कला की रचना की। यह
सीखी हुई अवधारणाओ ं को प्रबलित करने का मजे़दार तरीका तो था ही, साथ ही एक सदंु र कला
के निर्माण का अवसर भी था।
इस कार्य में बच्‍चे िनम्‍न से परिचित हुए—
• कागज़ के कें द्र का पता लगाना।
• वृ� खींचना।
• कम्पास का उपयोग करते हुए 5 से.मी. त्रिज्या वाला अन्य वृ� खींचना। वृ� में कें द्र से परिधि तक
रे खा खींचकर त्रिज्या को दर्शाना।
• वृ� को कागज़ पर कहीं भी खींचना।
• बड़े वृ� के अदं र 4 से.मी. व्यास वाला छोटा
वृ� खींचना।
• 4 से 8 से.मी. के बीच दसू रा वृ� बनाना। आप
इसे कहीं भी बना सकते हैं।
• अपने चित्र में रंग भरने के लिए प्राथमिक या
परू क रंगों का प्रयोग करना।
• धनात्मक और ॠणात्मक स्थान का उपयोग
सनिि
ु श्‍चत करना और अपने डिज़ाइन में
सतं लु न सनिि
ु श्‍चत करना।

प्रकरण अध्‍ययन–10 प्रकृति के साथ सद्भाव स्थापित करना


ज़िम्मेवार विद्यार्थियों के रूप में, हम जीवों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए, उनके साथ
सहअस्तित्व के संतल ु न को सदभ् ावपरू ्ण कै से बना सकते हैं? बच्चे ऐसी कलाकृ तियों का
अवलोकन व विश्‍लेषण करें जिनमें जीव प्रकृ ति के साथ सदभ् ाव से रह रहे हैं। वे समझें कि जीव
और प्रकृ ति एक-दसू रे के प्रतिद्द्वं वी नहीं हैं, बल्कि सदभ् ाव से रहते हैं।

251
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
इसके लिए बच्चे समहू में कार्य करें गे। प्रत्येक टीम एक स्थानीय या राष्‍ट्रीय पार्क या सार्वजनिक
बाग के बारे में योजना के साथ डिज़ाइन का आधार तैयार करे गी, जिसमें जतं ु और मनष्य ु परस्पर
सदभ् ाव से रह सकें ।
कक्षा म विभि
ें न्न प्रकार के पर्यावरण, अवस्थिति, परिस्थिति आदि, जहाँ जीव-जंत जि ु ंदा रह सकें
और मनष्य ु तथा प्रकृ ति के सानिध्य में सदभ् ाव के साथ रह सकें , इस पर आधारित विचार-विमर्श
शरू ु कीजिए। प्रत्येक टीम अपनी पसंद की परियोजना जिस पर वह कार्य करे गी, का चनु ाव करे ।
और तब प्रत्येक टीम के सदस्य परियोजनानसु ार पर्यावरण के निर्धारण की योजना में अपनी
भमिू का तय करें । एक व्यक्‍ति परिदृश्य वास्तुकार के रूप में हो सकता है, जो स्थान आवंटित करने
के साथ उन क्षेत्रों के बारे में संकेत करे गा, जहाँ अलग-अलग तरह की चीजें़ अवस्थित होंगी, पैदल
पथ और संबंधित सविध ु ाएँ, खेल
का मैदान, झरने, फव्वारे , बेंच,
फूलों की क्यारियाँ, जीव-जंतओ ु ं
के लिए प्राकृ तिक अधिवास,
आदि। छोटे जीव-जंतओ ु ं के
विशेषज्ञ उन प्रजातियों की सची ू
बनाएँगे, जो उस पर्यावरण में रह
सकती हैं तथा इसमें रहने हेतु
उनकी आवश्यकताओ ं के बारे में
भी विचार करें गे। जीव जंतओ ु ं में
गिलहरी, खरगोश, कछुआ, बत्तख
आदि हो सकते हैं।
पक्षी, तितली, मछली और कीड़े-मकोड़ों के विशेषज्ञ ऐसे अधिवासों की व्यवस्था करें गे,
जिसमें ये प्राणी सविध
ु ाजनक ढंग से जी सकें । वनस्पति शास्‍त्री फूलों की क्यारियों का डिज़ाइन
तैयार करें गे तथा पेड़, झाड़ी एवं अन्य पौधों का चयन करें गे। सभी टीमों को बड़े शीट या कागज़
तथा चित्रकारी संबंधी सामग्री उपलब्ध कराई जाए। बच्चे अपने द्वारा सोचे गए पर्यावरण के खाका
के लिए एक दृश्य योजना का निर्माण करें । खाका की योजना सक्ू ष्मता से बने जिसमें सामान्य
ग्राफ संबंधी संकेतों का उपयोग स्थापत्य संरचनाओ,ं पौधा-रोपण, तालाबों, खेल के मैदानों और
इस तरह की अन्य संरचनाओ ं को इगि ं त करें । उदाहरणतः वर्ग अधिवास को तथा वृ� और बिंदु
पौधा-रोपण को इगि ं त कर सकते हैं।
प्रकरण अध्‍ययन–11 कक्षा 4 के बच्चे, विज्ञान में खाद्य-जाल के बारे में पढ़ते हैं। सबसे पहले बच्चे विभिन्न प्रकार के
जीव जंतओ ु ं के बारे में बातचीत करें , यथा— पौधे, पौधों को खाने वाले जंत,ु जंतु जो दसू रे जंतओ ु ं
को खाते हैं। कुछ कार्ड बनाये जाएँ। प्रत्येक कार्ड पर किसी न किसी जंतु का नाम हो। बच्चे किसी
कार्ड को चनु ें तथा उसे पढ़ें। जिन बच्चों के हाथों में पौधों के नाम वाले कार्ड हैं, कें द्र में एक वृ�
बनाएँ। ये स्वपोषी हैं जो अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। इसके चारों ओर दसू रा वृ� उन बच्चों के
द्वारा बनाया जाए, जिनके हाथों में उन जानवरों के नाम वाले कार्ड हों जो पौधों को खाते हैं, जिन्हें
शाकाहारी कहा जाता है। सबसे बाहर उन बच्चों के द्वारा घेरा बनाया जाएगा, जिनके हाथों में
वैसे कार्ड होंगे जिन पर उन जानवरों का नाम होगा, जो दसू रे जानवरों को खाते हैं, साथ ही वैसे
जानवर जो जानवर और पौधों दोनों को खाते हैं।
बच्चे अपने कार्ड को गले में लटकाते हुए घेरा बनाएँगे। शिक्षक एक ऊन का गोला लेंगे।
गोले को किसी एक बच्चे को देंगे। बच्चा उसके किसी एक छोर को पकड़ेगा और जो भी उसके

252
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन
लिए भोजन का स्रोत
होगा, उसकी तरफ गोला
बढ़ाएगा। पनु ः वह बच्चा
भी पहले वाली क्रिया
दहु राएगा और यह तब
तक होगा जब तक सभी
बच्चों के पास ऊन पहुच ँ
न जाए और इस प्रकार
खाद्य-जाल बन जाएगा।
बच्चे यह पाएँगे कि सभी
भोजन स्रोतों कि शरू ु आत
पेड़ों से होती है। शिक्षक अब वास स्थल को बाधित करने की स्थिति बनाएँगे। उदाहरण के लिए,
सख ू ा की स्थिति जिसमें सभी पौधे मृत हो जाएँगे। जो जतं ु उन पर आश्रित हैं, वे भी मर जाएँगे।
पनु ः इन जतं ओ ु ं पर आधारित जीव भी मृत हो जाएँगे। अतं तः बच्चे इस निष्कर्ष पर पहुचँ गें े कि
पौधों के नष्‍ट होने पर सपं रू ्ण पारितंत्र बाधित हो जाता है।
प्रकरण अध्‍ययन–12 कक्षा 5 के बच्चों ने भारतीय इतिहास के सबं ंध में शोध किया। उन्होंने जालियाँवाला नरसहं ार,
सिपाही विद्रोह 1857, आदि जैसी कहानियों पर कार्य किया। उन्होंने उस समय के पोशाक के
बारे में पता किया तथा उसी तरह की अपनी कठपतु ली बनाई। बच्चों ने एक साथ बैठकर उस
समय की स्थिति पर आलेख तैयार किया। यह उनकी भाषिक कला का नमनू ा था। बच्चों ने
विभिन्न मनोभावों को व्यक्‍त करने हेतु भाव भगि ं मा में बदलाव के साथ-साथ सबं ंधित सवं ादों की
अदायगी का तरीका भी सीखा। स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर बच्चों ने परू े विद्यालय के
समक्ष प्रस्तुति की।
इस शो के बाद हमने बच्चों के लिए गाँधी जी के मबंु ई प्रवास से सबं धं ित मणि भवन के भ्रमण
कार्यक्रम का आयोजन किया। वहाँ हमने गाँधी जी के जीवन से सबं धं ित कहानियों एव स्व ं तत्रं ता पर्व

आदं ोलन से सबं धं ित प्रदर्शों को देखा। जिन बच्चों ने कठपतु ली बनाई थी तथा शो में भाग लिया था,
वे काफ़ी उत्साहित थे और प्रदर्शनी में बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे थे। उन्होंने हर चीज को बारीकी से
देखा और अपने द्वारा निर्मित विभिन्न किरदारों को ढूढ़ा ँ । उन्होंने इस सीख को परू ी तरह आत्मसात्
किया। इसके विपरीत जिन बच्चों ने कार्यक्रम में भाग नहीं लिया था, वे सामान्य दर्शक की तरह बिना
किसी विशेष लगाव के प्रदर्शों को देख रहे थे। वे उनसे जड़ु नहीं पा रहे थे।
प्रकरण अध्‍ययन–13 कक्षा 4 के बच्चों ने भारत के विभिन्न राज्यों के बारे में जाना। हमने बच्चों को राज्यों के बारे में
जानकारी देने हेतु कठपतु ली शो के कार्यक्रम के आयोजन के बारे में सोचा। बच्चे समहू ों में बँट
गए। सभी ने एक-एक राज्य को चनु ा। उन्होंने कागज़ की लगु दी और कपड़े की सहायता से बड़ी
कठपतु ली का निर्माण किया। अति ं म प्रस्तुति में इन कठपतु लियों का इस्तेमाल उनसे सबं धं ित राज्य
के नर्तक के रूप में हुआ। शो के लिए बच्चों ने एक ऐसी कहानी पर कार्य किया, जो गणतत्र दि ं वस
परे ड से सबं धं ित थी जिसमें भाषण देते हुए डाॅ. मनमोहन सिहं की तरह तैयार एक कठपतु ली थी।
प्रकरण अध्‍ययन–14 देवियानी की माँ एक कारखाने में कार्य करती थी, जबकि उसके पिता सब्जी बेचते थे। देवियानी
की माँ हमेशा सोचती थी कि देिवयानी को और आगे पढ़ना चाहिए ताकि भविष्य में वह आर्थिक
रूप से आत्मनिर्भर बन सके । देवियानी अब विद्या और चाइल्ड नामक संस्था जोिक िदल्ली में है,
की छात्रा है। वह ऐसे गाँव से आई थी, जहाँ उसने विद्यालय देखा ही नहीं था। आठ साल की उम्र
में जब हमारे साथ उसने पढ़ना शरू ु किया, तो हमने वर्णमाला से आरंभ किया। वर्णमाला के वर्णों
253
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
को पहचानना और लिखना सीखने में लगभग एक महीना लगता। पढ़ाई के प्रति उसकी कोई रुचि
नहीं थी। गलियों में इधर-उधर घमू ना, मडं राना उसके समय काटने का मनपसंद तरीका था। हमें
समझ नहीं आ रहा था कि पढ़ने के प्रति उसमें ललक कै से पैदा करें ।
फिर उसने ढेर सारी गतिविधियों में भाग लेना शरू ु किया। उसने लोक नृत्य सीखा और विभिन्न
वार्षिकोत्सवों में प्रदर्शन किया। चार साल पहले देवियानी ने कत्थक सीखना शरू ु किया। जिस
सहयोग की उसे ज़रूरत थी, वह उसे कत्थक से मिला। वह और भी स्थिर हो गई। कत्थक ने उसे
ध्यान के न्द्रित करने, सहज होने और अपनी ऊर्जा को सृजनात्मक कार्यों में लगाने का कौशल
प्रदान किया।
देवियानी ने 10वीं कक्षा पास कर ली। अब वह 11वीं में है। कला की साधना ने उसमें
आत्मविश्‍वास का संचार किया तथा अपनी कमज़ोरियों को नियंत्रित करने तथा अपनी शक्‍ति का
अहसास करने की क्षमता प्रदान की।
प्रकरण अध्‍ययन–15 कक्षा 2 के बच्चों के लिए जानवरों के आवास संबंधी परियोजना हेत वि ु ज्ञान और संगीत के
शिक्षकों ने मिलकर एक गीत बनाया, जिसे उन्हें परू े विद्यालय के समक्ष प्रस्तुत करना था। गीत
का मख ु ड़ा था ‘जगं ल में-जगं ल में’, जिसकी शरू ु आत ‘राजा शेर’ से हुई। इसमें सात और छंद
शामिल थे, जो अन्य जानवरों के घरों से संबंधित थे। गीत की पंक्‍तियाँ पोस्टर पर लिखकर दीवार
पर चिपका दी गइ�। उसमें जानवरों के नाम बड़े अक्षरों
में लिखे गए। प्रत्येक छंद दो पक्‍ति
ं यों में था, जिसे
बच्चे आसानी से बोल पाएँ। हर छंद की दसू री पक्‍ति ं
(जानवरों के नाम छोड़कर) समान थी। इस समानता के
कारण पहली पक्‍ति
ं के बोलने पर विशेष प्रयास हुआ।
प्रत्येक छंद के लिए उसी रंग के चार्ट पेपर का
उपयोग हुआ, जो सबं ंधित जानवर के चित्र का रंग
था। जानवरों के चित्र बड़े कट-आउट के रूप में थे
और कक्षा-कक्ष के विभिन्न भागों में लगे हुए थे,
जिससे बच्चे देख सकें । बाद में चार्ट पेपर के रंग को,
छंद में आए जानवर को पहचानने के संकेत के रूप में
उपयोग किया गया।
जंगल में, घने जंगल में... आज की रात शेर सोएगा।
पेड़ की फुनगी पर घोंसला... आज की रात तोता सोएगा।
खारे समद्रु की लहरों के नीचे... आज की रात डॉल्फ़िन सोएगी।
नदी किनारे कीचड़ में... आज की रात घड़ियाल सोएगा।
मरुस्थल की रे त में खड़े-खड़े... आज की रात ऊँट सोएगा।
बर्फीले जंगल की माँद में... आज की रात भरू ा भेड़िया सोएगा।
अपनी माँ की गोद में अच्छी तरह चिपककर।
आज की रात कंगारू का बच्चा सोएगा।
छत से लटकते जाले में... आज की रात मकड़ी सोएगी।
प्रत्येक छंद की आरंभिक पंक्‍ति अलग है लेकिन छंदों के बीच का अतं राल शिक्षक को उसे
आगे बढ़ाने और बच्चों को याद करने में आसान है। बीच-बीच में शिक्षक रुक-रुक कर पछू ें गे

254
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन
‘कौन सा रंग’, इससे जो बच्चे ठीक से नहीं पढ़ पाते, वे जान जाएँगे कि बच्चे पढ़ते-पढ़ते किस
छंद तक पहुचँ े हैं।
छंदों के बीच का कोरस (समवेत स्वर) एक जल ू शु ब्द ‘िवमोवह’ है, जोिक जल ू ु समदु ाय के
एक िशकार गीत से िलया गया है। इसे आठ बार दहु राया जाता है। इस दरम्यान बच्चे इसे गाते
हैं और नृत्य करते हैं।
विज्ञान पाठ का पनु रावलोकन इस परियोजना का मखु ्य प्रतिफल रहा। साथ ही बच्चों द्वारा
पठन अभ्यास में पाठ्य संबंधी अज्ञात से ज्ञात रणनीति के उपयोग पर ज़ोर दिया गया। साथ ही
कविता का गायन एक अतिरिक्‍त सख ु द अहसास रहा।
प्रकरण अध्‍ययन–16 समेकित उपागम के अतं र्गत, संकल्पनाओ ं की बेहतर समझ हेतु कला को मल ू रूप से
अवधारणाओ ं से जोड़ने के साथ-साथ इसे विभिन्न विषयों से जोड़ना महत्वपरू ्ण है। इससे सभी
विषय एक एकीकृ त जाल में जड़ु ेंगे तथा बच्चे जड़ु ाव की प्रक्रिया को समझने के साथ-साथ
अवधारणाओ ं को परू ी तरह आत्मसात् कर सकें गे। जैसा कि इस उपागम में अनेक गतिविधियाँ
शामिल हैं, यह बहुबद्धि सिद्धां
ु त का अनपु ालन करता है और विभिन्न प्रकार के अधिगमकर्ताओ ं
की ज़रूरतों को परू ा करता है।
• उदाहरण के लिए, एशिया महाद्वीप के अध्ययन के क्रम में सामाजिक विज्ञान पाठ का आरंभ इसके
भौतिक लक्षण और राजनीतिक विभाजन के परिचय से करते हैं।
• विस्तृत रूप से एटलस का अध्ययन और नक्शों पर कार्य किया जाता है, जिससे स्पष्‍टता के साथ
लक्षणों को समझा जा सके । पस्त ु कालय या तकनीकी कक्षाओ ं में, शिक्षक द्वारा सझु ाए मापदडं
पर सभी बच्चे किसी खास देश के सबं ंध में गहराई से शोध करते हैं।
• कला संबंधी कक्षा में बच्चों को एशिया और इससे संबंधित स्मारकों पर स्लाइड शो दिखाया
जाता है।
• बच्चों का जोड़ा बनाते हैं। वे आपस में मिलकर अपने द्वारा चनु े गए स्मारक पर त्रि-आयामीय
मॉडल बनाते हैं। वे वैसी ही प्रतिकृ ति बनाने हेतु परू ी बारीकी से कार्य करते हैं। बच्चे इस प्रक्रिया
में, इस तरह की आकृ ति बनाने के पीछे के स्थापत्य एवं धार्मिक प्रभावों को सीखते और समझते
हैं। साथ ही जहाँ स्मारक अवस्थित है; वहाँ की संस्कृति की जानकारी प्राप्‍त करते हैं। जब ये
मॉडल, कार्ड बोर्ड या मिट्टी की सहायता से बन जाते हैं, तब इन्हें पेंट कर प्रदर्शित किया जाता है।
बच्चे प्रदर्शनी देखने वालों को मॉडल के विभिन्न गणु ों, संबंधित देश तथा उन समस्त प्रक्रियाओ ं
के बारे में बताते हैं, जिससे वे गज़ु रे हैं।
• पश्‍चिमी संगीत की कक्षा में, एशिया के मखु ्य लक्षणों को गाने के रूप में संयोजित कर बच्चों द्वारा
मच ं पर गाया जाता है।
• नृत्य और अभिनय की कक्षा म,ें एशिया के विभिन्न देशों के रीति-रिवाज और नृत्य शैली को, नृत्य
और अभिनय के द्वारा स्टेज पर प्रदर्शित किया जाता है।
• हिदं ी भाषा की कक्षा में, एशिया के विभिन्न देशों की अग्रेज़ी
ं में लिखित लोक कथाओ ं का हिदं ी
में वाचन होता है।
• जापानी दतू ावास के सहयोग से जापान के विषय में हिदं ी में एक व्यापक अध्ययन किया गया है।
• विद्यालय में भोजन मेला के आयोजन द्वारा बच्चों को एशिया के विभिन्न देशों की भोज्य सामग्री
से परिचित कराया जा सकता है।
• त्योहारों के समय, बच्चे एशिया के देशों के विभिन्न सांस्कृतिक आयामों के बारे में प्रस्तुति दें।
• अग्रेज़ी
ं भाषा में, सभी बच्चे “मैं एशिया हू”ँ विषय पर लेख लिखेंगे जिसमें एशिया के विभिन्न
देशों के संबंध में जो भी उनकी जानकारी है, व्यक्‍त करें गे।
255
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

प्रकरण अध्‍ययन–17 अखबार से डिज़ाइन बनाना


9 वर्ष से अधिक उम्र के 15 बच्चों का समहू कंप्यूटर पर इटं रनेट की सहायता से उस दिन की
घटित घटनाओ ं को पढ़ रहा था। एक बच्चे के दिमाग में यह विचार आया कि क्यों नहीं समहू
द्वारा दिन भर किए गए कार्य का विवरण तैयार किया जाए? दियास (जैसा कि वे सगु मकर्ता को
बल ु ाते थे) ने सझु ाव दिया कि अखबार बनाया जाए, क्योंकि अखबार में विभिन्न विषयों, क्षेत्रों पर
दिन भर के समाचार रहते हैं।
अखबार परू ी तरह उन बच्चों को समर्पित था। इसमें उनके डिज़ाइन, लेखन कौशल,
कल्पनाशीलता आदि शामिल किए जाने थे। यह सचू ना और संचार तकनीक परू े उपयोग के
साथ कला के विभिन्न पक्षों का व्यापक उपयोग भी था। कार्टून, अखबार के डिज़ाइन हेतु पेंटिंग,
कविता, कहानी लेखन, लोगों का साक्षात्कार आदि। अखबार में उन्होंने विद्यालय के परू े दिन की
कला गतिविधियों का प्रतिवेदन (रिपोर्ट) शामिल किया। इस गतिविधि से बच्चों को अपने चितं न
कौशल, कला संबंधी कौशल, लेखन कौशल तथा जीवन कौशल संबंधी अनभु वों को प्राप्‍त करने
का भरपरू मौका मिला।
चित्रकारी, पेंटिंग, मिट्टी का कार्य, कोलाज, संगीत और नृत्य प्राथमिक कक्षाओ ं की दैनिक
समय सारणी के अभिन्न अंग हैं। बच्चों के भाषायी अधिगम में इन अनभु वों का समावेश,
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का स्वाभाविक अंग है। सामाजिक विज्ञान की कक्षाओ ं में बच्चे
समेकित परियोजना कार्य लेते हैं, जिसमें उन्हें भारत के विभिन्न कला और शिल्प से जड़ु ने का
मौका मिलता है।
प्रकरण अध्‍ययन–18 उदयपरु , राजस्थान में, विद्या भवन द्वारा शिक्षा में गणु वत्ता की बढ़ोत्तरी एवं बच्चों के संदर्भ में एक
बहुत ही रचनात्मक परियोजना आरंभ की गई। परियोजना कच्‍ची बस्ती (आर्थिक रूप से कमज़ोर
समदु ाय का इलाका) क्षेत्र में उच्च प्राथमिक कक्षा के बच्चों की कक्षा कक्ष परियोजना के रूप में
आरंभ हुई। इसमें बच्चों को ‘हाथ से निर्मित कागज़ और अन्य सामान’ बनाना था। ये बच्चे अपने
विद्यालयों में कला संबंधी सामान्य गतिविधियों से भी वंचित थे। उन्हें कला संबंधी कोई अनभु व
नहीं था।
इन बच्चों को विद्यालय में परु ाने अखबार लाने को कहा गया। विद्यालय द्वारा इन अखबारों
से लगु दी बनाने हेतु मशीन दी गई। बच्चों को एक विशेषज्ञ द्वारा लगु दी से हाथ से निर्मित कागज़
बनाने की जानकारी और मदद दी गई। जब कागज़ बनकर तैयार हो गए, तब बच्चों ने इनकी
सहायता से अनेक उपयोगी वस्तुएँ बनाइ�। बच्चों ने अपनी बनाई वस्तुओ ं को विभिन्न वस्तुओ ं
की सहायता से सजाया और उसकी प्रदर्शनी लगाई तथा समदु ाय के लोगों को बेचने हेतु रखा।
इस परियोजना ने बच्चों को लगु दी बनाने तथा निर्मित वस्तुओ ं के डिज़ाइन में गणित और विज्ञान
की अवधारणाओ ं का उपयोग करने और उन्हें समझने में मदद की। साथ ही सृजन तथा सजावट
के लिए उनकी तीव्र इच्छा को भी परू ्ण करने का पर्याप्‍त अवसर मिला। उनके आत्मविश्‍वास और
खशी ु को आसानी से देखा जा सकता था। उनके प्रत्यक्ष और प्रायोगिक अनभु व जनित कौशल ने
उन्हें दसू रों से बात करने, परू ी प्रक्रिया को बताने का हौसला प्रदान किया।

256
मॉड्यूल
कला का अन्य विषयों के साथ समेकन

सदं र्भ
डेवी, जे. 1902. द चाइल्ड एण्ड द करिकुलम. यनू िवर्सिटी ऑफ शिकागो प्रेस. शिकागो एडं लंदन.
——. 1916. डेमोक्रे सी एडं एजक ु े शन—एन इन्‍ट्रोडक्‍शन टू द िफलोसफी ऑफ एजक ु े शन. मैकमिलन, न्‍यू याॅर्क .
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प्रसाद, डी. 1998. आर्ट, द बेसिस ऑफ़ एजक ु े शन. नेशनल बक ु ट्रस्ट. नयी िदल्‍ली.
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सझ
ु ाई गई पठन सामग्री
इन्टरनेशनल जर्नल ऑफ एजक ु े शन थ्रू आर्ट. वाॅल्यूम 6, नंबर 1, 01 जनू , 2010.
प्रसाद, डी. 2001. रविन्द्रनाथ टैगोर—फिलॉसफी ऑफ एजक ु े शन एण्ड पेंटिंग. नेशनल बक
ु ट्रस्ट. नयी िदल्‍ली.
मेदरु ी, ए. 2005. रुक्मिणी देवी अरुण्डेल (1904–86)—ए िवजनरी आर्कि टेक्ट अाॅफ़ इिं डयन कल्‍चर एडं द परफॉर्मिंग
आट्सर् (एडिटेड). मोतीलाल बनारसी दास. नयी िदल्‍ली.
वॉन, एम. 1962. समरहिल एडं ए.एस. नील. ओपन यिू नवर्सिटी प्रेस. इग्‍ल ं ैंड

257
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

सझ
ु ायी गयीं वेबसाइट
• www.learner.org
• www.educationcloset.com
• www.artseveryday.org
• www.artedgekennedycenter.org
• www.naeareston.org
• www.ccrtindia.gov.in
• www.wallacefoundation.org
• www.edutopia.org
• www.learninggamesforkids.com
• www.savethechildren.org
• www.nyteacherswordpress.com
• www.icaf.org
• www.educationcloset.com
• www.artseveryday.org
• www.insea.org
• www.eklavya.in
• www.creativeportal.com

टिप्पणी

258
Role of Museums in Education

शिक्षा में सग्रं हालय


मॉड्यूल 6
की भूमिका

एक नज़र
• शिल्पकृ तियों के मलू ्यांकन तथा अतीत एवं वर्तमान के संबंधों की पड़ताल हेत वि
ु द्यालयी शिक्षा में संग्रहालय
की भमि
ू का को समझना।
• स्थानीय संग्रहालय के संग्रहों तथा विद्यालयी पाठ्यचर्या में उनके उपयोग की संभावना की पड़ताल करना।
• बच्चों एवं समदु ाय में कला और सांस्कृतिक विरासतों के सरं क्षण को बढ़ावा देना।
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

शिक्षा में सग्रं हालय की भूमिका


अनमु ानित समय—डेढ़ िदन

परिचय
शिक्षा में सग्रं हालय की भमिू का से सबं ंधित इस मॉड्यल ू का उद्देश्य कला के मलू ्यक ां न की अवधारणा को स्पष्‍ट
करना तथा प्रतिभागियों को कला सबं धं ी कार्यों के मलू ्यक ां न के विभिन्न तरीकों से परिचित कराना है। इस मॉड्यल ू
में सझु ाए गए विभिन्न अभ्यासों के माध्यम से शिक्षकों में यह समझ विकसित हो सके गी कि सग्रं हालय भी
सीखने-सिखाने का स्थान है और वहाँ की वस्तुओ ं का उपयोग विद्यालय शिक्षा के सदं र्भ में किया जा सकता है।
संग्रहालय में विभिन्न कालखडं ों और स्थानों की कलाएँ प्रदर्शित रहती हैं। इस मॉड्यल ू का उद्देश्य संग्रहालय
की वस्तुओ ं को वर्तमान पाठ्यचर्या से जोड़ना है। इससे पाठ्यचर्या सवं र्द्धित तथा बच्चों के लिए रुचिकर भी होगी।
संग्रहालय की वस्तुओ ं का उपयोग सामाजिक अध्ययन, भाषा, गणित या अन्य विद्यालयी विषयों के शिक्षण
में किया जा सकता है। पहली बार कलाकृ तियों को देखने के बाद बच्चों में जीवन के प्रति दृष्‍टिकोण (सीख) के
साथ-साथ उत्सुकता बढ़ती है। पनु ः यह मॉड्यल ू स्पष्‍ट करता है कि किस प्रकार विद्यालय अपनी कलात्मक और
सांस्कृतिक विरासत को परिरक्षित और सरं क्षित रखने हेतु लघु सग्रं हालय विकसित कर सकता है।
यह मॉड्यल ू दो भागों में बंटा हुआ है। पहला भाग उन सगु मकर्ताओ ं के लिए है, जिन्हें आगे प्राथमिक
विद्यालय के शिक्षकों को प्रशिक्षण देना है। इस भाग में यह स्पष्‍ट किया गया है कि किस प्रकार सगु मकर्ता
उदाहरण के रूप में कुछ गतिविधियों का उपयोग करते हुए शिक्षकों को बेहतर ढंग से सीखने-सिखाने एवं समझाने
हेतु कला समेकन के उचित कौशलों का विकास करने में मदद कर सकते हैं। सगु मकर्ता, अगर चाहें तो मॉड्यल ू
में दी गई गतिविधियों के अतिरिक्‍त अन्य वैकल्पिक गतिविधियों का विकास कर सकते हैं।
दसू रा भाग जो सगु मकर्ताओ ं से सबं ंधित है, शिक्षकों और मास्‍टर ट्रेनर्स को सग्रं हालय और विद्यालयी शिक्षा
से संबंधित उनके प्रश्‍नों के उत्तर प्राप्‍त करने में मदद करता है।

उद्देश्य
इस मॉड्यल ू के माध्यम से शिक्षक—
• प्रभावी ढंग से स्थानीय सग्रं हालय और उनके सग्रं हों का उपयोग कर सकें गे तथा कक्षा-कक्ष की प्रक्रियाओ ं
से उन्हें जोड़ सकें गे।
• विभिन्न कला पक्षों तथा उनके मलू ्यांकन के तरीकों को समझ सकें गे।
• अतीत और वर्तमान के संबंधों की व्याख्या कर सकें गे।
• कला और सांस्कृतिक विरासत के सरं क्षण की प्रक्रिया में बच्चों की सहभागिता को प्रोत्साहित कर सकें गे।
• प्रत्येक विद्यालय में एक या अधिक प्रकार के
संग्रहालयों को विकसित करने में मदद कर सकें गे।

क्राफ्ट संग्रहालय के शैक्षिक भ्रमण के दौरान


एन.पी.वी., नयी चौखडं ी के िवद्यार्थी

260
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

पहला भाग

एक सगु मकर्ता के रूप में आपकी भमि ू का प्राथमिक शिक्षकों के प्रशिक्षण के दौरान इस मॉड्यल ू को संचालित
करने की है। यह सनििश्‍चत
ु करें कि प्रशिक्षण सत्र के अंत तक शिक्षक मॉड्यल ू के उद्देश्यों को समझने में समर्थ हो
सकें । प्रभावी सत्र-संचालन के लिए आवश्यक है कि आप पहले से इसकी योजना तैयार करें । इसके लिए आप
निम्नलिखित बातों को ध्यान में रख सकते हैं—
• इस मॉड्यल ू के दसू रे भाग में दिए गए ‘अकसर पछू े जाने वाले प्रश्‍नों’ (FAQs) के उत्तर पढ़ें और अपनी समझ
के अनसु ार दिए गए उत्तरों को मन ही मन या लिखकर समृद्ध करें । सत्र के दौरान उठ सकने वाले इस तरह के
अन्य प्रश्‍नों और उनके उत्तरों के लिए स्वयं को तैयार रखें।
• आवश्यक हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर, जैसे—डी.वी.डी./वीडियो क्लिप्स/स्लाइड-शो आदि को व्यवस्थित कर
लें ताकि सत्र के दौरान उनका उचित इस्तेमाल हो सके ।
• गतिविधि के लिए आवश्यक सामग्री को व्यवस्थित कर लें, जैसे—रंगीन चार्ट, कागज़, पेंसिल, स्के च-पेन,
मार्क र, फ़्लिप-चार्ट, थम्ब-पिन, ब्राउन-पेपर, प्रदर्शन हेतु डोरी, विभिन्न आकार के सेलो टेप, रंग, ड्राॅइगं -
शीट, मॉडलिंग के लिए मिट्टी, कैं ची, गोंद, वाद्य यंत्र, पोशाक के लिए सामग्री, मंच विन्यास (सज्जा)
के लिए आवश्यक सामग्री, आदि। सामान की सूची बनाते समय स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्री को
प्राथमिकता दें।
• एक किट में पेंसिल, स्के च-पेन, कलम, टेप, गोंद, आदि प्रत्येक समहू के लिए उपलब्ध कराएँ। प्रतिभागियों से
भी यह कहा जा सकता है कि वे कैं ची, पेपर-कटर आदि सामग्री अपने साथ लाएँ।
• चकि
ँू यह कार्यक्रम गतििवधि-आधारित है, अतः आयोजकों से अपेक्षा है कि वे एक बड़ा प्रशिक्षण-कक्ष
उपलब्ध कराएँ, जहाँ गतिविधियों का सचं ालन सहजता से किया जा सके ।
• जहाँ भी ज़रूरी और संभव हो, आप दसू रे सगु मकर्ताओ ं या मास्‍टर ट्रेनर्स के साथ समहू -शिक्षण के लिए
मिलकर काम कर सकते हैं।
• प्रत्येक मेज़ के पास एक कूड़ादान रखा जाए ताकि कक्षा में गंदगी न फै ले।
• सगु मकर्ता समय का हमेशा खयाल रखें और प्रतिभागियों को निर्धारित समय-सीमा में गतिविधि समाप्‍त
करने के लिए प्रोत्साहित करें ।

261
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

सझु ाई गयी गतिविधियों में से सगु मकर्ता कुछ को आयोजित कर सकते हैं। गतिविधियों के संचालन हेतु
आवश्यक समय भी सझु ाया गया है। हालाँकि दिन के कार्य की शरू ु आत लगभग 30 मिनट के चेतना-सत्र से
होनी चाहिए। चेतना-सत्र के तरीकों में बदलाव करते रहना रोचक रहेगा। यह प्रतिभागियों की सहभागिता और
प्रतिभागिता को बढ़ाने में सहायक होता है। चेतना-सत्र का स्वरूप कुछ ऐसा हो सकता है—
• समहू गान— इसमें विभिन्न राज्यों के विशिष्‍ट गानों को सम्मिलित किया जा सकता है। इसके लिए कें द्रीय
शैक्षिक तकनीकी संस्थान (सी.आई.ई.टी.)/सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण कें द्र (सी.सी.आर.टी.) द्वारा
विकसित सी.डी./डी.वी.डी. सहायक हो सकते हैं।
• पनु रावलोकन— प्रतिभागियों द्वारा पिछले दिन के क्रियाकलापों की समीक्षा और छोटी-सी रिपोर्ट (प्रतिवेदन)
प्रस्तुत करवाई जा सकती है।
• उस दिन के लिए सह-सगु मकर्ताओ,ं स्वयंसेवकों और प्रतिवेदकों की पहचान करना।

टिप्पणी
प्रतिदिन प्रातः कालीन सभा के स्वरूप में बदलाव रोचक हो सकता है। इससे प्रतिभागियों की सहभागिता
का स्तर बढ़ेगा ।

सगु मीकरण हेतु सझ


ु ाई गयी गतिविधियाँ

स्लाइड शो और वीडियो फि़ल्म

सग्रं हालय भ्रमण के दौरान प्राप्‍त अनुभवों तथा सामग्री का दस्तावेज़ीकरण

प्रस्तुतीकरण

सग्रं हालय का मार्गदर्शित (Guided) भ्रमण

समूह चर्चा

सग्रं हालय सबं ंधी गतिविधि/कार्य पत्रक (Work sheet)

262
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

प्रथम दिवस

30
गतिविधि 1 अनुमानित समय मिनट

सग्रं हालय का भ्रमण


यह गतिविधि प्रतिभागियों को संग्रहालय के संग्रहों से परिचित कराती है। साथ ही शिक्षा में संग्रहालय
के उपयोग को समझने में उनकी मदद भी करती है। संग्रहालय भ्रमण शिक्षण अधिगम के साथ-साथ
पाठ्यचर्या के साथ जड़ु ाव के
अनेक अवसर उपलब्ध कराता
है। सगु मकर्ता शिक्षकों को
संग्रहालय के प्रदर्शों को कक्षा
शिक्षण तथा पाठ्यपसु ्तक
के पाठों से जोड़ने के तरीकों
की पहचान हेत प्रो ु त्साहित
कर सकते हैं। वे संग्रहालय राष्‍ट्रीय संग्रहालय की लघिु चत्र दीर्घा को समझते ए.आई.एल.
के माध्यम से अधिगम हेतु मास्टर ट्रेनर्स, नयी दिल्‍ली
विकसित कार्य-पत्रक का अवलोकन कर सकते हैं। पनु ः इसके आधार पर वे अपना कार्य-पत्रक विकसित
कर सकते हैं, जिसे अधिगम संसाधन के रूप में सगु मकर्ता द्वारा संकलित किया जाएगा।

कला का मूल्यांकन कै से करें­?


सग्रं हालय की किसी कलाकृ ति को दिखाकर सगु मकर्ता प्रतिभागियों को उन्मुख करते हुए परिचर्चा आरंभ कर
सकते हैं। यह गतिविधि अधिगमकर्ताओ ं को कला के मलू ्यांकन संबंधी लक्षणों की समझ हेतु कला संबंधी
वास्तविक वस्तुओ ं के महत्व को रे खांकित करती है।

प्रक्रिया
सगु मकर्ता प्रतिभागियों को कलाकृ ति (मर्ति
ू , पेंटिंग, मख
ु ौटा, पतु ली, शिल्पकारी, आदि) या वीडियो क्लिप (ऐसी
फि़ल्म जिसमें एक से अधिक कला पक्ष शामिल हों) दिखाकर उनसे अपने विचार साझा करने हेतु कह सकते
हैं। सगु मकर्ता समय की बचत के खयाल से ‘बोल फटाफट’ प्रश्‍न चक्र के माध्यम से प्रतिभागियों के विचार ले
सकते हैं।

सझ
ु ाए गए प्रश्‍न
• आपने इस कलाकृ ति में क्या देखा?
• क्या आप इसके स्वरूप/आकार का वर्णन कर सकते हैं?
• इस कलाकृ ति को बनाने में काैन-कौन सी सामग्री का उपयोग किया गया है?
• आपके अनसु ार इनका उपयोग कै से किया गया होगा?

263
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

• क्या आप इस कलाकृ ति के निर्माता की पहचान कर सकते हैं?


• क्या आप इसे उपयोगी समझते हैं? अगर हाँ/नहीं तो क्यों?
• क्या आपने इस तरह की कलाकृ तियों को कभी देखा या उनके बारे में सनु ा है?
• कला के इस स्वरूप को आप क्या कहेंगे?
• सभी प्रकार की कलाकृ तियों के संग्रह को आप कहाँ पाते हैं?
• अपने पाठ्यक्रम से ऐसे चार उदाहरण दीजिए, जिन्हें संग्रहालय के प्रदर्शों से जोड़ा जा सके ।
30
मिनट
इसके बाद अनुमानित समय
सगु मकर्ता उदाहरण स्वरूप सग्रं हालय शिक्षा हेत वि ु कसित कार्य-पत्रक के नमनू े दिखा सकते हैं। कार्य-पत्रक
में जोड़ी जा सकने वाली कुछ गतिविधियों पर वे मानस मथं न करा सकते हैं, यथा—मिलान करना, पहेली
आदि। वे बच्चों को सग्रं हालय ले जाने से पर्व ू शिक्षकों द्वारा सग्रं हालय भ्रमण की आवश्यकता पर ज़ोर दे
सकते हैं। इससे शिक्षक उन वस्तुओ ं
की पहचान कर सकते हैं, जिन्हें वे
बच्चों को दिखाना चाहते हैं। साथ
ही वे सग्रं हालय में की जाने वाली
गतिविधियों एवं कार्य-पत्रक को
पर्व
ू में ही विकसित कर सकते हैं।
आरंभिक गतिविधियों के
बाद सगु मकर्ता, प्रतिभागियों को
संग्रहालय की संरचना, संग्रहों
के विवरण तथा आधारभत ू
सविु धाओ ं के बारे में बता सकते
हैं। भ्रमण को सगु म बनाने हेतु हो सके तो
संग्रहालय से गाइड या विषय विशेषज्ञ की
राष्‍ट्रीय संग्रहालय के विभिन्न खडं ों की पड़ताल कर कार्य-पत्रक व्यवस्था करें , जिससे प्रतिभागियों को
पर गतिविधियों को परू ा करते बच्चे सार्थक अनभु व प्राप्‍त हो सके । सगु मकर्ता को
समहू के दिव्यांग जनों के लिए विशेष सवि ु धाओ ं की व्यवस्था करनी चाहिए।
भ्रमण के दौरान विभिन्न कार्यों को परू ा करने हेतु प्रतिभागियों को जोड़ियों में रहना चाहिए (बेहतर होगा अगर
दोनों एक ही विषय के शिक्षण से सबं ंधित हों)। सगु मकर्ता प्रत्येक टीम को सग्रं हालय का कोई सग्रं ह या वस्तु
दे सकते हैं। वे उसका अध्ययन कर बच्चों के साथ की जा सकने वाली उससे संबंधित गतिविधियों की योजना
बनाएँगे। इन गतिविधियों के आधार पर शिक्षक कार्य-पत्रक भी विकसित कर सकते हैं।
(कार्य-पत्रक में शामिल की जा सकने वाली कुछ गतिविधियाँ आगे सझ
ु ायी गयी हैं। शिक्षक कार्य-पत्रक
में अन्य गतिविधियों को जोड़ने हेतु स्वतंत्र हैं।)

264
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

3
गतिविधि 2 अनुमानित समय घंटा

कार्य-पत्रक
कार्य-पत्रक पर कार्य
इस गतिविधि का उद्देश्य प्रतिभागियों में बच्चों
के लिए सग्रं हालय सबं ंधी गतिविधियों के
योजना निर्माण की क्षमता विकसित करना
है। इन गतिविधियों का उद्देश्य है कि बच्चे
संग्रहालय की वस्तुओ ं के साथ इस तरह
अन्तःक्रिया करें कि उससे सबं ंधित सचू नाओ ं
को वे स्वयं निकाल सकें । इन तथ्यों को
ध्यान में रखते हुए सगु मकर्ता ऐसे कार्य-पत्रक
विकसित करें गे जिन्‍हें बच्चे संग्रहालय में स्वयं राष्‍ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली में सिंधु घाटी सभ्यता का
परू ा कर सकें । अध्ययन कर अपना कार्य-पत्रक भरते बच्‍चे

प्रक्रिया
विभिन्न तथ्यों, यथा—कक्षा का आकार, बच्चों की उम्र, अनभु व तथा विषय सामग्री को ध्यान में रखते हुए
प्रतिभागियों की प्रत्येक जोड़ी को उन्हें आवंटित सामग्री पर 20–25 गतिविधियाँ विकसित करने हेतु कहा
जाएगा। वे तीन-चार गतिविधियों को अंतिम रूप देकर एक कार्य-पत्रक विकसित करें गे। प्रतिभागी, कार्य-पत्रक के
अंतिम भाग में कक्षा/स्तर; जिसके लिए कार्य-पत्रक विकसित हुआ है और विषय सामग्री, जिससे इसका जड़ु ाव
है, अंकित कर सकते हैं। संग्रहों की पड़ताल और उनसे सीखने में बच्चों की रुचि को बनाये रखने हेतु प्रतिभागी
अलग-अलग तरीके अपना सकते हैं।

सग्रं हालय पर आधारित कार्य-पत्रक हेतु सझ


ु ाव
प्रशिक्षण के दौरान िशक्षकों को उदाहरण स्वरूप कार्य-पत्रक िदया जाएगा िजससे वे समझ सकें कि बच्चों
को सग्रं हालय की कलाकृ ितयों के साथ जड़ु ना आवश्यक है। इस तरह बच्चे रोचक और मजे़दार गतिविधियों
के माध्यम से सीख सकें गे। कार्य-पत्रक में आकृ तियों का मिलान, चित्रों को परू ा करना, शब्द पहेली, आदि
गतिविधियाँ शामिल की जा सकती हैं। इन गतिविधियों हेतु चयनित सग्रं हालय ऐतिहासिक तथ्यों, प्राकृ तिक
इतिहास, सिक्कों से संबंधित या उस क्षेत्र में अवस्थित कोई अन्य संग्रहालय हो सकता है। अगर आस-पास कोई
सग्रं हालय न हो तो शिक्षक अपने सहयोगियों, अभिभावकों द्वारा इकट्ठा की गई वस्तुओ ं या वस्तुओ ं के मद्रित

स्वरूप का प्रदर्शन कर अपना संग्रहालय बना सकते हैं। यह महत्वपर्ण ू है कि शिक्षक अतीत की वस्तुओ ं से
सबं ंधित अधिगम को बच्चों के वर्तमान से जोड़ें।
संग्रहालय के संग्रहों की पड़ताल आरंभ करने संबंधित कुछ बिंद िु नम्‍नलिखित हैं—

265
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

1. राष्‍ट्रीय सग्रं हालय


• सिन्धु घाटी से संबंधित संग्रहों में ‘पशपत
ु ि’
की महु र की पहचान करें । आप जो आकृ ति
देख रहे हैं, वह क्या है? आपके विचार से
इस व्यक्‍ति को ‘पशपतु ि’ क्यों कहते हैं?
• आइये, अब चोल कालीन कांस्य संग्रह को
देख।ें क्या आप उन आकृ तियों में समानता
पाते हैं? कहाँ-कहाँ? ये आकृ तियाँ कै से
समान या असमान हैं?
राष्‍ट्रीय संग्रहालय में क्यूरे टर के सहयोग से महात्मा बद्ध
ु की मर्ति
ू • हड़प्पा सभ्यता से संबंधित आभषू णों को
का अध्ययन करते बच्चे देखिए। आपके अनसु ार ये किस चीज़ से
बने हैं? वर्तमान में आभषू णों के लिए किन पदार्थों की ज़रूरत होती है? क्या आप इस तरह के आभषू ण पहनना
पसदं करें गे? इनसे उस समय के लोगों के बारे में क्या जानकारी मिलती है?
• बद्ध ु की प्रतिमा को देखिए। वे कै से दिखते हैं, क्रोधित/निष्काम/शांत/चिड़चिड़े? आप इस प्रतिमा के बारे में
ऐसा क्यों कहते हैं? आप बद्ध ु को किस रूप में देखते हैं? आकृ ति में निम्न लक्षणों को देख— ें लंबे कान, सिर
पर घघंु राले बाल और आधी बंद आँख।ें
• आपने बद्ध ु के कितने स्वरूपों को देखा? मानव स्वरूपों से अलग बद्ध ु की संरचना को कै से प्रस्तुत किया गया
है? इन प्रतीकों का उपयोग क्यों किया गया है? ये किसका प्रतिनिधित्व करते हैं?
• आप विष्णु और शिव की आकृ तियों की पहचान कै से करें गे? उन लक्षणों को रे खांकित कीजिए?
• विष्णु के कितने अवतार हैं? विष्णु की विभिन्न प्रतिमाओ ं के माध्यम से स्पष्‍ट करें ?
• क्या आप किसी जातक कथा के बारे में जानते हैं? किसी पेंटिंग या प्रतिमा को चनि ु ए जो जातक कथा को
दर्शाती हो? इनमें कहानियों का वर्णन कै से किया गया है? इनमें आप बद्ध ु के किन-किन स्वरूपों को देख पाते हैं।
• ताड़ पत्रों पर मल ू पेंिटंग का अवलोकन कीजिए। वे किस पर बनी हैं? आपके अनसु ार उन पर इतनी महीन
रे खाएँ कै से खींची गई होंगी? इस पेंटिंग की विषय-वस्तु क्या है?
• राजस्थान से संबंधित मल ू (पांडुलिपि) पेंटिंग में किन कहानियों को दर्शाया गया है। अभी हमारे द्वारा पहने जाने
वाले वस्‍त्रों से उस समय के वस्‍त्र कै से अलग थे? पेंटिंग में आप किन जानवरों को देख पा रहे हैं?
• मर्ति
ू बनाने के लिए िकस सामग्री का उपयोग किया जाता है? आपके अनसु ार इनमें कौन-सी सामग्री अधिक
टिकाऊ है? क्यों? कांस्य की मर्ति ू याँ कै से बनीं थीं?
• यहाँ लोक कला से सबं ंधित कुछ आकृ तियाँ दी गई हैं। उन क्षेत्रों की पहचान कीजिए, जहाँ ये बनी हैं। भारत
के मानचित्र पर उन क्षेत्रों की पहचान कर उन कला शैलियों के लिए संकेतक अंकित करें ।
• आप एक आभषू ण डिज़ाइनर हैं। विभिन्न क्षेत्रों, यथा—राजस्थान और हैदराबाद के आभषू णों की विभिन्न
शैलियों और डिज़ाइन का अवलोकन करें । उनमें कौन-सी समानताएँ और असमानताएँ हैं? वे किस सामग्री
से बनी हैं? आपके अनसु ार वे किनके लिए बनी हैं? इन संग्रहों को ध्यान में रखते हुए शादी के दिन दलु ्हन के
पहनने के िलए एक आभषू ण को डिज़ाइन कीजिए।
• भारत में प्राचीन काल में प्रयोग िकए जाने वाले यातायात के िवभिन्न साधनों का पता लगाएँ। इनमें से
कौन-कौन से साधन आज भी प्रयोग में हैं? इनमें से कौन-से साधनों का प्रयोग राज-परिवार करते थे? आधनि ु क
समय के िलए एक रथ का िडज़ाइन तैयार करें ।
266
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

2. शिल्प सग्रं हालय


• संग्रहालय के विभिन्न शिल्पों की पहचान कीजिए तथा वे जिस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, उनसे मिलान
कीजिए। क्या उनमें दर्शाई गई कलाओ ं में उन क्षेत्रों के चित्रित रिवाजों को आप देख पाते हैं?
• भारत के किस भाग में मधबु नी पेंटिंग बनाई जाती हैं? आपके अनसु ार ये पेंटिंग कै से बनती हैं? इन पेंटिंग के
बारे में विशषे क्या है? क्या आप जानते हैं िक इनमें प्रयक्ु ‍त रंग किससे बनते हैं?
• वर्ली पेंटिंग (महाराष्‍ट्र की दीवार पेंटिंग) से किन चीज़ों का पता चलता है? क्या इन पेंटिंग में अलग-अलग
भागों की कहानियों में अंतर है? इनमें तथ्य कै से बँटे हैं? अधिकांश कहानियों को किस तरह संयोजित किया
गया है? क्या आप इन पेंटिंग के आधार पर कलाकारों के मखु ्य पेशे के बारे में बता सकते हैं?
• खिलौना खंड का अवलोकन करें । क्या आप
खिलौनों की पहचान कर सकते हैं? वर्तमान
में आपके द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले
खिलौनों से वे कै से अलग हैं? ये खिलौने क्यों
बनाये गए होंगे?
प्रतिभागियों से कार्य-पत्रक और गतिविधियों
के रूप में दिए गए कार्यों का तथ्यात्मक सचू नाओ ं
के साथ चित्र बनाकर परू ा करने को कहा जा सकता
है। परू ा होने के बाद सगु मकर्ता कार्य-पत्रक और दिए
गए कार्य को एकत्र करें । प्रतिभागियों द्वारा की गई
खोजबीन और विकसित किए गए कार्य-पत्रक की प्रदर्शित क्षेत्रीय शिल्पों की पहचान और मलू ्यांकन करते बच्चे
सराहना करते हुए भ्रमण कार्य का समापन करें । (शिल्प सग्रं हालय, नयी दिल्ली)

दूसरा दिवस

1
गतिविधि 1 अनुमानित समय घंटा

कला का मूल्यांकन
समय की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए (भ्रमण के अगले दिन) सगु मकर्ता प्रतिभागियों से संग्रहालय संबंधी
अपने अनभु वों को साझा करने हेतु कह सकते हैं।
सगु मकर्ता ‘बोल फटाफट’ (Rapid fire) अदं ाज़ में संग्रहालय से संबंधित प्रश्‍न पछू सकते हैं।

सझ
ु ाए गए प्रश्‍न
• कलाकृ तियों का प्रदर्शन अधिगम प्रक्रिया को कै से सगु म बना सकता है?
• क्या प्रदर्शन हेतु वस्तुओ ं के चयन के लिए कोई मापदडं होना चाहिए?
• क्या विद्यालय अपना सग्रं हालय बना सकते हैं?

267
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

सत्र के सचं ालन के समय सगु मकर्ता स्पष्‍ट करें ग कि


े कला के मलू ्यक ां न से क्या तात्पर्य है। किस तरह कलाकृ तियों
का मलू ्यक ां न िकया जा सकता है? किस तरह सग्रं हालय सबं धं ी सग्रं हों को बच्चों के समक्ष रोचक तरीके से रखा
जा सकता है? किस प्रकार कला पक्षों का मलू ्यक ां न, सीखने वाले में रचनात्मक सवं दे नशीलता विकसित करता है?
इन निष्कर्षों को अगली गतिविधि—कला के मलू ्यांकन संबंधी स्लाइड शो—से किया जाना चाहिए।

राष्ट्रीय संग्रहालय में व्याख्यान-सह-प्रदर्शन के दौरान कला मलू ्यांकन पर


विमर्श करते हुए ए.आई.एल. मास्टर ट्रेनर्स

1
गतिविधि 2 अनुमानित समय घंटा

‘भारत में कला’ पर आधारित स्लाइड शो


(भारतीय कला का मूल्यांकन)
प्रायः सभी पारंपरिक समाजों में कला दैनिक
जीवन का स्वाभाविक अगं है। भारत में,
विशेषकर ग्रामीण समदु ायों में प्रायः सभी
रीति-रिवाज़, उत्सव और दिवस विशेष के
लिए अलग-अलग रूपों में विशषे कलात्मक
आयोजन हैं, जैसे—वर्ली या मधबु नी पेंटिंग।
अगली गतिविधि प्रतिभागियों को सक् ं षेप में
कला प्रक्रियाओ ं के इतिहास और मलू ्यांकन के राष्ट्रीय सग्रं हालय में कला के मलू ्यांकन पर आधारित
सबं ंध में बताती है। स्लाइड शो और सबं ंधित स्लाइड शो के दौरान ए.आई.एल. मास्टर ट्रेनर्स
प्रश्‍नों के माध्यम से प्रतिभागी कला की उत्पत्ति, कला पक्षों के उदभ् व एवं विकास तथा शिक्षा में उनके
महत्व को सहजता से समझ सकें गे।

प्रक्रिया
सगु मकर्ता भारत और अन्य संस्कृतियों की चनु ी हुई कलाकृ तियों का स्लाइड शो प्रस्तुत करें गे। वे स्पष्‍ट करें गे कि
इन कलाकृ तियों में ऐसा क्या है, जो इन्हें विशिष्‍ट बनाता है। इनके सृजन में कौन-कौन से कारक संलग्न हैं? इन

268
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

कलाकृ तियों का सृजनकर्ता कौन है? इन कलाकृ तियों की रचना कब हुई? सगु मकर्ता इस सत्र को और भी रोचक
बनाने हेतु उस खडं से संबंधित प्रश्‍न पछू सकते हैं?

इसके बाद 30
मिनट
अनुमानित समय
यह वस्तु आपसे क्या कहती है?
सगु मकर्ता एक या एक से अधिक वस्तुएँ (प्रतिभागियों की संख्या के अनसु ार) मेज पर रखेंगे। वे प्रतिभागियों
को शांतिपर्वू क वस्तुओ ं का अवलोकन कर स्व-आकलन करते हुए उन्‍हें समझने का प्रयास करने के िलए कह
सकते हैं। इसके बाद प्रतिभागियों को उन वस्तुओ ं के बारे में एक संक्षिप्‍त अनचु ्छेद या कुछ बिंद लि ु खने को
कहा जाएगा।
सगु मकर्ता स्वयंसेवकों (दो या तीन) से दी गयी वस्तु के बारे में उनके िलखे संक्षिप्‍त अनचु ्छेद या िबंदओ
ु ं को
पढ़ने को कह सकते हैं। सत्र का समापन तालियों की गँजू के साथ होना चाहिए।

30
गतिविधि 3 अनुमानित समय मिनट

सग्रं हालय का निर्माण


यह गतिविधि प्रतिभागियों को विभिन्न प्रकार के संग्रहालयों और उनके उद्देश्य पर चिंतन करने में मदद
करे गी। यह िवभिन्न प्रकार के संभव संग्रहालयों के बारे में सोच को िवस्तृत करने का एक प्रयास है। इन
परिकल्पनाओ ं का उपयोग अन्य प्रकार के संग्रहालयों तथा समाज में उनकी उपयोगिता के बारे में मानस
मथं न हेत कि
ु या जा सकता है। छोटे स्तर पर इस तरह के संग्रहालय निर्माण की गतिविधियाँ शक्षि ै क रूप
से उपयोगी हो सकती हैं।

प्रक्रिया
समूह चर्चा
कार्य (i)— विभिन्न तरह के संग्रहालयों, जिनके बारे में आप सोच सकते हैं, उनकी सचू ी बनाइए? जैसे—
ऐतिहासिक, कला विज्ञान, प्राकृ तिक इतिहास, आदि। वैसे संग्रहालयों की सचू ी भी बनाने का प्रयास करें , जिन्हें
सामान्यतः हम नहीं देखते हैं, लेकिन उनके निर्माण रोचक हो सकते हैं, जैसे—के वल मख ु ौटे, वस्‍त्र, रसोई से
संबंधित बर्तन, लेखन सामग्री आदि से संबंधित।
कार्य (ii)— टीमों को अपने विद्यालय/गाँव/शहर/संकुल में एक संग्रहालय विकसित करने हेत विु मर्श करने तथा
एक योजना बनाने हेतु कहा जाएगा। उन्‍हें उस विशेष संग्रहालय को विकसित करने के पीछे के 10 महत्वपर्ण ू
कारण भी बताने को कहा जाएगा।
30
इसके बाद अनुमानित समय मिनट

सभी टीमें बारी-बारी से अपने संग्रहालय की सचू ी और योजना प्रस्तुत करें गी।
सभी दलों के प्रयासों को तालियों के साथ सराहा जाना चाहिए।

269
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
15
गतिविधि 4 अनुमानित समय मिनट

दिन भर की एक झलक
यह गतिविधि दिन के अंत में करवाई जानी चाहिए। इससे प्रतिभागियों को
अपनी प्रगति, चिंतन और अधिगम में आए बदलावों को परखने में सहायता मिलेगी।
किसी व्यक्‍ति का अपनी भागीदारी पर प्रतिक्रिया देना, जवाबदेही लेने और ज़रूरत
पड़ने पर सधु ार करने की दिशा में एक कदम हो सकता है। इसके अतिरिक्‍त,
इससे पता चलता है कि सगु मकर्ताओ ं का दिन भर का प्रदर्शन
कितना प्रभावी रहा।

5
(क) दिन का समापन अनुमानित समय मिनट

सगु मकर्ता मॉड्यल ू की मखु ्य बातों को पढ़ या बोर्ड पर लिख सकते हैं—


मुख्य बिंदु
• सग्रं हालय अतीत की वस्तुओ ं का सग्रं ह है, जो कक्षा सबं ंधी विषयों के शिक्षण में प्रभावी ढंग से
उपयोग में लाया जा सकता है।
• शिक्षक सग्रं हालय के सग्रं हों पर आधारित कार्य-पत्रक और गतिविधियाँ बना सकते हैं, जो बच्चों
को सग्रं हों के विवरण पर कें द्रित रखने में मदद करेगा।
• कला के विभिन्न पक्षों से सबं ंधित आधारभूत समझ बनेगी और मूल्यांकन के माध्यम से कलात्मक
सवें दनशीलता का विकास हो सके गा जो भविष्य के लिए लाभप्रद होगा।
• सग्रं हालय अगर दूर हो तो शिक्षक अपना सग्रं हालय कक्षा में बना सकते हैं।
• यह उचित होगा कि शिक्षक बच्चों के सग्रं हालय भ्रमण से पहले स्वयं भ्रमण करें। इससे उन्हें उन आवश्यक
बिदं ुओ/तथ्यों
ं को पहचानने में सवु िधा होगी, जिस पर वे बच्चों के भ्रमण के समय बल दने ा चाहते हैं।
• विषय-वस्तु की बेहतर समझ के लिए भ्रमण के बाद विषय-वस्तु सबं ंधी की जा सकने वाली
गतिविधियों की योजना बनाई जा सकती है।

5
अनुमानित समय मिनट
(ख) सझ
ु ाव पेटी
सगु मकर्ता प्रतिभागियों से निम्नलिखित बिंदओ ु ं पर प्रतिपष्‍टि
ु ले सकते हैं—
(क) अकादमिक सझु ाव
(ख) भौतिक सवि ु धाएँ
(ग) कार्यक्रम से सबं ंधित कोई अन्य मद्ु दा
प्रतिभागी अपनी प्रतिपष्‍टि
ु सीधे सझु ाव-पेटी में डाल सकते हैं या फिर जैसा सगु मकर्ता सझु ाएँ, वैसे दे
सकते हैं।
270
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

(ग) मेरा आज का दिन कै सा रहा? 5


अनुमानित समय मिनट

प्रक्रिया
प्रत्येक प्रतिभागी को एक अभिलेख-पत्रक (रिकाॅर्ड-शीट) दे दें। इसमें पाँच कथन तीन-तीन प्रदर्शन-संकेतकों के
साथ दिए गए हैं —
(क) काफ़ी हद तक (तीन स्माइली के साथ)
(ख) कुछ हद तक (दो स्माइली के साथ)
(ग) बहुत कम (एक स्माइली के साथ)
काफ़ी हद तक ☺☺☺
1. मैंने सभी गतिविधियों में परू े मन से भाग लिया। कुछ हद तक ☺☺
बहुत कम ☺

काफ़ी हद तक ☺☺☺
2. मैंने व्यक्‍तिगत गतिविधियों में अच्छा प्रदर्शन किया। कुछ हद तक ☺☺
बहुत कम ☺

काफ़ी हद तक ☺☺☺
कुछ हद तक ☺ ☺
3. मैंने अपने समहू के सदस्य के रूप में अच्छा प्रदर्शन किया।
बहुत कम ☺

काफ़ी हद तक ☺☺☺
4. अवधारणाओ ं को स्पष्‍ट करने में सगु मकर्ता सफल रहे। कुछ हद तक ☺☺
बहुत कम ☺

काफ़ी हद तक ☺☺☺
5. सगु मकर्ता गतिविधियों में प्रतिभागियों की रुचि उत्पन्न करने में कुछ हद तक ☺ ☺
सफल रहे। बहुत कम ☺

प्रतिभागियों से कहें—“आज के प्रदर्शन के लिए जो संकेतक आपके अनसु ार उपयक्ु ‍त/संगत हैं, उनके सामने
() चि� लगाएँ।” इस रिकाॅर्ड-शीट को संभालकर रखने के लिए कहें, जिन्हें आखिरी दिन संकलित किया
जाएगा। प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करें कि वे यदि चाहें तो अपने अभिलेख-पत्रकों को एक-दसू रे के साथ साझा
कर सकते हैं।

सगु मकर्ता सत्र समापन के पर्व


ू प्रतिभागियों को अगले दिन की गतिविधियों की संक्षिप्‍त जानकारी देंगे। उनसे
अगले मॉड्यल ू की बेहतर तैयारी के लिए उससे संबंधित ‘अकसर पछू े जाने वाले प्रश्‍नों’ (FAQs) को देख लेने
का आग्रह करें गे। सगु मकर्ता धन्यवाद ज्ञापन के साथ सत्र का समापन कर सकते हैं।

271
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

दूसरा भाग

‘अकसर पूछे जाने वाले प्रश्‍न’ (FAQs)


प्र. 1 कला के मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं?
कला का मलू ्यांकन मनष्य ु की रचनात्मक
गतिविधियों के प्रति सजगता और समझ है। हम
एक ऐसे समाज में रहते हैं, जहाँ हम खदु की बनाई
विभिन्न प्रकार की कृ त्रिम दीवारों से घिरे हैं। ऐसी
स्थिति में कला ही वह माध्यम है, जो एक-दसू रे
की संस्कृतियों को समझने, जोड़ने (एकीकृ त
करने) तथा रचनात्मक लक्ष्यों तक पहुचँ ने में मदद
करती है। जब हम विभिन्न काल खडं ों, क्षेत्रों,
विश्‍वासों (परंपराओ)ं और सामाजिक व्यवस्था सराहना के िलए िवषय को समझना पहला पड़ाव है
से संबंधित कलाओ ं का अध्ययन करते हैं, तो हम
में और भी निखार आता है।

प्र. 2 क्या यह कलाकारों के समुदाय तक ही सीमित है?


मनष्य
ु स्वाभाविक रूप से सृजनशील होता है। हालाँिक, कुछ लोग नियंत्रण के बाहर परिस्थितिवश अपनी
इस क्षमता को खो देते हैं। ऐसी स्थिति में वे सौंदर्य से अछूते भी रह सकते हैं? अतः यह महत्वपर्ण ू है कि
सृजनशील व्यक्‍तियों तथा उनकी रचनाओ ं से अंत:क्रिया द्वारा व्यक्‍ति विशेष में कला के प्रति संवेदनशीलता
तथा मलू ्यांकन क्षमता विकसित की जाए।

प्र. 3 क्या हम कला के मूल्यांकन को सिखा सकते हैं? कै से?


हाँ, हम कला के मलू ्यांकन को सिखा सकते हैं। कला संबंधी पसु ्तकों के अध्ययन से लेकर संगीत समारोह,
सग्रं हालयों का भ्रमण तथा सृजनात्मक गतिविधियों में शामिल रहते हुए सभी लोग जीवंत और सवं ेदनशील बने
रह सकते हैं। सौंदर्य सर्वव्यापी है। ऐसे स्थान जिनकी पहुचँ कला ससं ्थानों तक नहीं है या जहाँ कला ससं ्थान
नहीं हैं, वहाँ समदु ाय ने स्वयं ही सौंदर्यपरक गतिविधियाँ विकसित कर ली हैं, जैसे—नृत्य, सामदु ायिक प्रदर्शन
और संगीत। घर स्थानीय सामग्री से ससु ज्जित रहते हैं तथा गाँव के कारीगर दैनिक उपयोग की खबू सरू त वस्तुएँ
बनाते हैं। वस्तुतः उनका इस सौंदर्य के प्रति संवेदनशील/उत्साही बना रहना ही महत्वपर्ण
ू है।
विद्यालयों में कला के मलू ्यांकन को सीखने का सबसे सरल तरीका बच्चों को संग्रहालय और समदु ाय
की विभिन्न कलाओ ं से परिचित कराते हुए उनके दैनिक जीवन में कला और सौंदर्यबोध का समावेश करना
हो सकता है।

प्र. 4 विद्यालयी शिक्षा में कला के मूल्यांकन का क्या महत्व है?


अपनी विविधतापर्ण ू सांस्कृतिक विरासत के साथ हमें परस्पर सौहार्दपर्ण
ू ढंग से रहने और विकसित होने के
लिए संवेदनशीलता का समावेशन अति महत्वपर्ण ू है। स्कू ल ही वह पहला संस्थान है, जो विविधता को एक
साथ, एक छत के नीचे आने का अवसर देता है। अतः सर्वप्रथम हमें एक बेहतर समावेशी विद्यालयी शिक्षा
तंत्र विकसित करने की ज़रूरत है, जहाँ विविध सांस्कृतिक अनभु वों का पर्याप्‍त प्रतिनिधित्व हो। कला सराहना
के वल दृश्यात्मक सचू ना भर तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि बच्चों में उत्सुकता और खोजबीन की
272
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का
प्रवृि� को भी बढ़ाने और िज़ंदा रखने का माध्यम होना चाहिए। बच्चों को स्वतंत्र अभिव्यक्‍ति का अवसर देकर
बहुत कुछ सिखाया जा सकता है।
कला के मलू ्यांकन की कक्षाओ ं में बच्चों को विभिन्न कलाकृ तियों की व्याख्या करने तथा निष्कर्ष
निकालने हेत त ु ैयार किया जाता है। इससे उनके वर्णन करने के कौशल का प्रबलन होता है, जिसका उपयोग
वे अन्य विषयों के साथ-साथ जीवन के अन्य क्षेत्रों में कर सकते हैं। कला-मलू ्यांकन हमें बताता है कि किसी
भी मद्ु दे को कई नज़रिये से देखा जा सकता है। साथ ही किसी समस्या के समाधान के अलग-अलग तरीके हो
सकते हैं। अतः इससे बच्चों में बहुआयामी चिंतन प्रक्रिया का विकास होता है।

प्र. 5 कला की परख सौंदर्यबोध से कै से सबं ंधित है?


सगं ीत, नृत्य तथा थिएटर की तरह ही दृश्य कला भी तथ्यों की तल ु ना में भावनाओ ं पर अधिक आधारित है।
भावनाएँ सौंदर्य अनभु तू ियों का कें द्रीय तत्व हैं। इससे बच्चों में सामाजिक और पर्यावरणीय जि़म्मेदारियों के प्रति
समझ विकसित करने में मदद मिलती है।
कला की परख को सौंदर्य के प्रति संवेदनशीलता की दिशा में पहला कदम माना जाता है। कला की परख का
निरंतर शिक्षण बच्चों में सौंदर्य के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ा सकता है।

सग्रं हालय और शिक्षा


प्र.
6 सग्रं हालय क्या है?
सग्रं हालय एक ऐसा भवन या संस्थान है, जहाँ कलाकृ तियाँ, ऐतिहासिक वस्तुएँ, विज्ञान संबंधी वस्तुएँ तथा
प्राकृ तिक वस्तुएँ संगहृ ीत और संरक्षित रहती हैं। ये वस्तुएँ स्थायी या तात्कालिक तौर पर प्रदर्शों के रूप में लोगों
के अवलोकन हेतु उपलब्ध रहती हैं। अधिकांशतः बड़े शहरों/महानगरों में बड़े संग्रहालय जबकि छोटे शहरों/
नगरों/ग्रामीण शहरों में भी अपेक्षाकृ त छोटे सग्रं हालय अवस्थित रहते हैं। हम पाते हैं कि ये छोटे सग्रं हालय
स्थानीय संस्कृति और परंपराओ ं पर कें द्रित होते हैं।

प्र. 7 सग्रं हालय में किन-किन चीज़ों को


शामिल किया जा सकता है?
वर्तमान में जिसे हम ‘संग्रहालय’ कहते
हैं, पहले लोग उसे ‘अजायब-घर’, या
‘जाद-ू घर’ कहते थे। ये शब्दावलियाँ
हमें संग्रहालय को एक कौतहू लपर्ण ू
स्थान के रूप में बताती हैं। इसका
तात्पर्य है कि ये ऐसे स्थान हैं, जहाँ
प्रदर्शित वस्तुएँ सामान्य नहीं, बल्कि
रोचक होती हैं। जैसे कि भारत में आज
भी लोक परंपराएँ और सांस्कृतिक
माहौल जीवंत है, जिसके कारण सिक्कों के संग्रहों की पड़ताल करते बच्चे (राष्‍ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली)
विभिन्न प्रकार के संग्रहालयों का विकास हुआ है। ये संग्रहालय के वल प्राचीन वस्तुएँ ही नहीं, बल्कि वर्तमान
लोक परंपरा, शिल्प परंपरा और रीति-रिवाज़ों से सबं ंधित कलाओ ं का प्रदर्शन करते हैं, जहाँ भ्रमणकर्ताओ ं
को प्रत्यक्ष अनभु व मिलता है। ये संग्रहालय भ्रमणकर्ता और प्रदर्शनकर्ता/शिल्पकार के बीच अन्तःक्रियात्मक
संबंधों को भी बढ़ावा देते हैं ।
273
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
इस सदं र्भ में विस्तारित सग्रं हालय श्रेणी में हम नौटंकी, जात्रा, यक्ष गान, रामलीला, रासलीला, तमाशा,
स्थानीय मेला, त्यौहार, हाट, विरासत स्थल, वीथिकाएँ (गैलरी), जैन भडं ार, मंदिर भडं ार आदि जैसी लोक
नाट्य (थिएटर) परंपराओ ं को भी शामिल कर सकते हैं। हमारे देश में लोग संग्रहालय से अधिक परिचित नहीं
हैं। वे संग्रहालयों को गैलरियों (वीथिकाओ)ं में घमू ने के स्थल के रूप में देखते हैं, मानो यह पिकनिक हो। अतः
इस तरह के विस्तारित संग्रहालयों के माध्यम से हम संग्रहालय को स्थानीय संस्कृति और पर्यावरण (परिवेश)
के नज़दीक ला सकते हैं तथा लोगों को एक सहज अनभु व दे सकते हैं।

प्र. 8 सग्रं हालय, शिक्षा का स्थान कै से हो सकता है?


अकसर संग्रहालय बेजान वस्तुओ ं से संबंधित होते हैं, लेकिन इनमें हमारे भविष्य की जड़ें हैं, क्योंकि भविष्य
और वर्तमान, अतीत की मज़बत ू नींव पर ही गढ़े जा सकते हैं। संग्रहालय वर्तमान को अतीत से जोड़ते हुए
भविष्य से संबंधित करने का आदर्श स्थान है। संग्रहालय हमारी सभ्यता की बहुत सारी ऐसी वस्तुओ ं और
आयामों पर प्रकाश डालते हैं, जो आज भी मौजदू हैं, लेकिन हम उनके महत्व से परिचित नहीं हैं, जैसे किसी
स्थान से संबंधित घरों के दरवाज़े, खबू सरू त कढ़ाईदार वस्‍त्र, बर्तन आदि।
अधिगम प्रक्रिया में नाटक तथा विविध आयामों का समावेश करते हुए संग्रहालय नीरस कक्षायी
वातावरण में भी विषय-वस्तुओ ं को रोचक ढंग से सीखने का अवसर प्रदान करता है। इस प्रक्रिया में बच्चे
अपनी कल्पना को विषय-वस्तु और वर्तमान स्थितियों से जोड़ते हैं। संग्रहालय में इस तरह के अनभु वों से
बच्चों की स्मरणशक्‍ति पर स्थायी प्रभाव पड़ता है, क्योंकि दृश्य-श्रवण अनभु व नीरस व्याख्यान की तल ु ना में
अधिक प्रभावी होता है।
वर्तमान में, संग्रहालयों में अलग-अलग आयु वर्ग के बच्चों के लिए बहुत सारे शक्षि
ै क कार्यक्रम हैं।
संग्रहालय भ्रमण, पाठ्यचर्या का अभिन्न हिस्सा बन गया है। अतः संग्रहालय इसके आलोक में शक्षि ै क
कार्यक्रमों का संचालन करते हैं।

प्र. 9 सग्रं हालय द्वारा कौन-कौन सी गतिविधियाँ सच ं ालित होती हैं?


आजकल संग्रहालय दर्शकों (भ्रमणकर्ताओ)ं के लिए अधिक सहज और अन्तःक्रियात्मक हो रहे हैं। वे
कार्यशाला, श्रव्य-दृश्य प्रस्तुति, सांस्कृतिक गतिविधियों, क्विज़, पेंटिंग प्रतियोगिता, फि़ल्म-शो, सेमिनार,
विभिन्न प्रकार के लघु अवधि पाठ्यक्रम, निःशलु ्क निदेशित (गाइडेड) भ्रमण आदि का संचालन करते हैं।
संग्रहालय इन सब गतिविधियों के लिए यातायात सवि ु धाएँ और सामग्री उपलब्ध कराते हैं। कुछ संग्रहालय इन्हें
मफ़ु ्त प्रदान करते हैं, तो कुछ इसके लिए न्यूनतम राशि लेते हैं।
ये गतिविधियाँ संग्रहालय परिसर में आयोजित होती हैं, अतः अभिभावक भी संग्रहालय की वीथिकाओ ं
(गैलरियों) में घमू ते हुए अतीत के बारे
में बहुत कुछ सीखते हैं। इस तरह वे
इस व्यापक विश्‍व को जानने में अपने
बच्चों की सहायता करते हैं। गतिविधियाँ
विशेषज्ञों, लोक और पारंपरिक
कलाकारों, प्रदर्शकों आदि द्वारा संचालित
होती हैं।
कार्यशालाएँ संग्रहालय में प्रदर्शित
कलाकृ तियों से सीधे-सीधे सबं ंधित नहीं
होती हैं, बल्कि उनमें उन कलाकृ तियों से
कला और शिल्प कार्यशाला में व्यस्त बच्चे
274
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का
सबं ंधित गतिविधियाँ विकसित की जाती हैं। उदाहरण के लिए, मख ु ौटा निर्माण कार्यशाला में बच्चों को मख ु ौटा
बनाना सिखाने के साथ संग्रहालय में उपलब्ध मख ु ौटों के प्रमाणों के आधार पर उनके इतिहास को बताया जाता
है। हम मख ु ौटों के इतिहास को सिंधु घाटी की पशपत ु ि महु र से लेकर बस्तर के माड़िया जनजाति के मख ु ौटों
तक जोड़ सकते हैं।
दृश्य-श्रव्य प्रस्तुतियाँ मखु ्यतः प्रदर्शों से जड़ु ी ऐतिहासिक सचू नाओ ं और विवरणों से संबंधित होती हैं।
सग्रं हालय में आयोजित क्विज़, नीरस ऐतिहासिक सचू नाओ ं को मनोरंजन गतिविधियों के रूप में प्रस्तुत करते
हैं, जैसे—सिंधु घाटी सभ्यता के कौन-कौन से स्थान हैं? लघ प ु ेंटिंग क्या हैं? लोक पेंटिंग क्या हैं? यह कौन-सा
वाद्य यंत्र है? कुचीपड़ु ी नृत्य किस राज्य से संबंधित है? संग्रहालय कभी-कभी विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों
के लिए पेंटिंग प्रतियोगिताओ ं का भी आयोजन करते हैं, संग्रहालय की कलाकृ तियों पर आधारित होती हैं।
उदाहरण के लिए, नृत्य मद्ु रा, बद्ध ु की प्रतिमा, आदि पर आधारित पेंटिंग प्रतियोगिताएँ आयोजित हो सकती हैं।
सग्रं हालय, कलाकृ तियों से सबं ंधित विभिन्न आख्यानों (कहानियों) के वर्णन के साथ निर्देशित भ्रमण का
आयोजन भी कर सकते हैं।
संग्रहालय में दर्शकों को कलाकृ तियों को छूना मना रहता है। लेकिन संग्रहालय उन कलाकृ तियों की
अनक ु ृ ति के द्वारा बच्चों को स्पर्श अनभु तू ि देने के साथ-साथ उनके निर्माण की प्रक्रिया को भी दिखाते हैं।

प्र.
10 सग्रं हालय की शैक्षिक गतिविधियाँ बच्चों के लिए किस प्रकार लाभदायक हैं?
वर्तमान में जब इंटरनेट और उपग्रह सचं ार ने विश्‍व के लोगों को एक-दसू रे के बेहद करीब ला दिया है, वे अब
एक-दसू रे के बारे में और भी जानकारी और सचू नाएँ प्राप्‍त करना चाहते हैं। बिना ज्ञान और सचू ना के व्यक्‍ति
अलग-थलग पड़ जाता है और उसमें आगे बढ़ने का आत्मविश्‍वास नहीं रहता। हम जानते हैं कि आत्मविश्‍वास
व्यक्‍तित्व के विकास का महत्वपर्ण ू कारक है। संग्रहालय हमें उन विषय-वस्तुओ ं पर ज्ञान और अनभु व प्रदान
करते हैं, जिन्हें हम अपने दैनिक जीवन में प्राप्‍त नहीं कर पाते हैं। उदाहरण के लिए, हम सभी कलाकारों के
परिवार से नहीं आते हैं। अतः हमें किसी कला पक्ष को जानने के लिए, सग्रं हालय में जाना ही होगा। इसी तरह
इस पीढ़ी के बच्चों में स्वतंत्रता के समय का अनभु व नहीं है। हम लोगों ने कभी भी वास्तविक डायनासोर नहीं
देखा है। हालाँकि, संग्रहालय हमें उस समय और स्थान का दृश्य-श्रव्य अनभु व देते हैं, जिसमें वास्तव में हम
कभी रहे ही नहीं।
शिक्षा ज्ञान के विकास का मखु ्य स्रोत
है। लेकिन जैसे ही हम शिक्षा के बारे में सोचते
हैं, हम स्वयं को पाठ्यपसु ्तक के ज्ञान तक
ही सीमित करने का प्रयास करते हैं। निरंतर
परिवर्तनशील जीवन व्यतीत करने के लिए इस
तरह का ज्ञान पर्याप्‍त नहीं है। हम अपने जीवन
के हर कदम पर कुछ न कुछ सीखते रहते हैं।
हमारे परिवेश में हमारी संस्कृति/विरासत से
संबंधित विभिन्न प्रकार के परिवर्तन होते हड़प्पा सभ्यता को बेहतर ढंग से समझने हेतु सगु मकर्ता
रहते हैं। जब तक हम पाठ्यपसु ्तक से बाहर के साथ अन्तःक्रिया (राष्‍ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली)
निकलकर अपने अनभु वों को व्यापकता नहीं प्रदान करें गे, तब तक हम मल ू अवधारणाओ ं को समझने में भी
स्वयं को अनपु यक्ु ‍त पाएँगे; जैसे—अतीत और वर्तमान में हमारी सभ्यता/विरासत के लक्षण या हमारे जीवन
संबंधी मलू ्य (मान्यताएँ) क्या रहे हैं और उनमें कै सा बदलाव आया? अथवा, हमारे पर्वू जों ने किस प्रकार अपने
अनभु वों से सीखा और भविष्य को संवारा?

275
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
इस सदं र्भ में सग्रं हालय की भमि
ू का और भी महत्वपर्ण ू हो जाती है। इस तरह की शैक्षिक गतिविधियाँ हमें
स्वयं को अपने अतीत के साथ-साथ अपने पर्यावरण को जानने और सबं द्ध करने में बहुत मदद करती हैं। ये
गतिविधियाँ द्विआयामी पसु ्तकीय ज्ञान को, सग्रं हालयी परिवेश में सवं दे नशील तथा स्पर्शजन्य गणु ों से भर देती हैं।
साथ ही शैक्षिक गतिविधियाँ बच्चों के व्यक्‍तित्व में विविध आयाम जोड़ती हैं। कुछ मिथक और
अधं विश्‍वास भी सधु ारे जा सकते हैं; जैस— े कभी-कभी लोग ऐसा सोचते हैं कि अतीत की सभी चीजें़ अविकसित
या अल्पविकसित थीं, जबकि वर्तमान में निर्मित सभी वस्तुएँ पर्ण वि ू कसित हैं। सग्रं हालय के भ्रमण द्वारा अपनी
प्राचीन ससं ्कृति और दसू रे देशों की संस्कृति को समझते हुए हम इस निष्कर्ष पर पहुचँ ते हैं कि प्रायः सभी
प्राचीन सभ्यताएँ प्रकृ ति और पर्यावरण के साथ परू े सौहार्द के साथ विकसित हुइ� और उस समय की सामान्य
अवधारणाएँ आज के आधनि ु क विज्ञान के रूप में मानी जाती हैं।
हम यह भी जान पाते हैं कि हमारी संस्कृति कितनी व्यापक है। यह भी कि के वल भारत में ही नहीं, बल्कि
अलग-अलग ससं ्कृतियाँ सदियों से सह-अस्तित्व में रही हैं।
प्र. दिव्यांग
11 बच्चों के लिए सग्रं हालय-आधारित शिक्षा कै से सच
ं ालित की जा सकती है?
सग्रं हालय में शक्षि
ै क गतिविधियाँ अनभु व-आधारित ज्ञान पर कें द्रित होती हैं। अतः यह दिव्यांग बच्चों के लिए
शिक्षा का आदर्श तरीका है।
आरंभ में संग्रहालय में दिव्यांग जनों के लिए अनक
ु ू ल वातावरण नहीं था, लेकिन वर्तमान में संग्रहालय
ऐसे लोगों का विशेष ध्यान रख रहे हैं। इसीलिए सग्रं हालयों ने ‘सबके लिए सग्रं हालय’ की अवधारणा को
अपनाया है। संग्रहालय के भवन सभी प्रकार के दिव्यांगों की पहुचँ को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं, जिसमें रै म्प
(ढलान), लिफ़्ट, व्हील चेयर सवि ु धाएँ, चेतावनी संकेतक, ब्रेल लिपि में सचू नाएँ, विशेष श्रव्य-दृश्य उपकरण
आदि शामिल हैं।
संग्रहालय दिव्यांग बच्चों के लिए शैक्षिक गतिविधियों का आयोजन करते हैं, जैसे—कलाकृ तियों की
अनक ु ृ तियों को छूकर समझने का अवसर देना, विशेष शिक्षा में प्रशिक्षित प्रशिक्षकों के मार्गदर्शन में निर्शदे ित
भ्रमण का आयोजन, आदि।

प्र. 12 सग्रं हालय-आधारित शिक्षा सबके लिए कै से सचं ालित की जा सकती है?
सबके लिए शिक्षा की तर्ज़ पर संग्रहालय उन आर्थिक रूप से कमज़ोर पृष्‍ठभमि ू के बच्चों के लिए भी
गतिविधियाँ आयोजित करते हैं, जिनकी पहुचँ संग्रहालयों तक नहीं है। ये यातायात सवि ु धा के साथ-साथ
आवश्यक जलपान भी उपलब्ध कराते हैं। बच्चों को सामग्री वितरित करने के लिए कागज़, रंग, पेंसिल आदि
तैयार रखते हैं, जिनका उपयोग करके बच्चे संग्रहालय-आधारित शैक्षिक गतिविधियों में भाग ले सकते हैं।
जैसे-जैसे बच्चे नयी-नयी चीजें़ सीखते हैं और अपना ज्ञान बढ़ाते हैं, वे स्वयं को समाज से जोड़ पाते हैं। इस
तरह संग्रहालय ‘सबके लिए संग्रहालय’ बन जाता है।

प्र. 13 विस्तारित सग्रं हालय क्या है?


अभी तक हम सग्रं हालयों को एक ससं ्थान के रूप में
देख रहे थे, लेकिन जैसे कि हमारी संस्कृति में विभिन्न
सांस्कृतिक गतिविधियाँ, रीति-रिवाज़ों, मेलों आदि
की सतत प ् रंपराएँ हैं, हम संग्रहालय के आयामों
को विस्तार दे सकते हैं। इस तरह के संग्रहालयों को
ग्रामीण जीवन संबंधी प्रदर्श का आनंद लेते
बच्चे (राष्‍ट्रीय सग्रं हालय, दिल्ली)
276
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का
विस्तारित सग्रं हालय कहा जा सकता है, क्योंकि ये हमारे दैनिक जीवन से गहराई से जड़ु े हैं। साथ ही, ये वस्तुओ ं
को भिन्न-भिन्न परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करते हैं।
आइए, गाँव के किसानों का उदाहरण देखते हैं। किसानों के पास उनके खेतों को जोतने के लिए ट्रैक्टर
होता है, अतः पहले वे बैलों के साथ जिस हल का उपयोग करते थे, वह आज उनके घर के पिछवाड़े पड़ा हुआ
है। अगर हम उस बेकार पड़े हुए परु ाने हल को चर्चा में शामिल करते हैं, तो उस हल की भमि ू का बेकार वस्तु
से बदलकर बयान करने वाले (कहानीकार) की हो जाती है। अब यह हल से लेकर ट्रैक्टर तक कृ षि कार्य के
विकास की कहानी का बयान करता है। इस तरह से प्रदर्शित किए जाने पर यह संग्रहालय की शिल्पकृ ति बन
जाता है।
प्र.
14 क्या बच्चे अपना सग्रं हालय बना सकते हैं?
हाँ, बच्चे भी अपना संग्रहालय बना सकते हैं। इसके किए किसी बड़े भवन/स्थान या किसी विशेष उपकरण या
प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यहाँ हम किसी बड़े सांस्थानिक सग्रं हालय/गैलरी के निर्माण की बात
नहीं कर रहे हैं। हम यहाँ के वल विस्तारित स्वरूप के संग्रहालय की बात कर रहे हैं जोकि उपलब्ध संसाधनों से
ही संभव है। सभी इसे आसानी से बना सकते हैं। वे इसके लिए गाँव के पंचायत घर या किसी घर के कमरे आदि
का उपयोग कर सकते हैं।
इस तरह के विद्यालय संग्रहालयों के लिए किसी भी तरह के स्थायी प्रदर्शों की ज़रूरत नहीं है। वे पाठ्यचर्या
या अन्य गतिविधियों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए प्रदर्शों में बदलाव कर सकते हैं। समय-समय पर
प्रदर्शों को बदलते रहने से बच्चों में उत्साह बना रहेगा। उनमें अवलोकन की क्षमता और डिज़ाइन की समझ
बढ़ेगी। साथ ही साथ विभिन्न प्रकार की शिल्पकृ तियों की देखभाल कै से की जाए, इसकी समझ भी बनेगी।
संग्रहालय बनाने की यह गतिविधि के वल विद्यालय परिसर तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए। बच्चे
भी इसमें आगे बढ़कर अपने आस-पास की सांस्कृतिक गतिविधियों से स्वयं को जोड़ सकते हैं। अतः इसे
के वल बच्चों को देखने और गतिविधियों का आनंद लेने तक ही सीमित नहीं रखा जाएगा, बल्कि इसमें बच्चे
अवलोकन और दस्तावेज़ीकरण में भी शामिल होंगे। इसे वे पोशाक, आभषू ण, �ाृंगार-सामग्री, वाद्य यंत्र,
रंगमचं ीय सामग्री, रिवाज़ों आदि के आरे खण या चित्रों के संग्रह द्वारा परू ा करें गे।
संग्रहालय निर्माण की गतिविधियों में स्थानीय समदु ाय को भी शामिल किया जा सकता है। इससे उन्हें
भी खश ु ी मिलेगी और वे गर्व के साथ अपनी स्थानीय संस्कृति को संग्रहालय में प्रदर्शित करें गे, जो सबके लिए
उपलब्ध रहेगा।

प्र. 15 बच्चे किस तरह का सग्रं हालय बना सकते हैं?


बच्चे विद्यालय के साथ-साथ घर पर अपनी
दैनिक गतिविधियों के आलोक में विभिन्न प्रकार
के संग्रहालय बना सकते हैं। बच्चों में विभिन्न
प्रकार की वस्तुओ ं को इकट्ठा करने तथा अपने
बस्‍ते या मेज में रखने की स्वाभाविक प्रवृि� होती
है। सामान्यतया, इन वस्तुओ ं को भी आवश्यक
सचू नाओ ं के साथ संग्रहालय की वस्तुओ ं में
बदला जा सकता है। उदाहरण के लिए, विभिन्न
प्रकार के पत्थर, बाल,ू पत्तियाँ, फूल, डाक टिकट,
सिक्के आदि हो सकते हैं। चित्र के कट-आउट का उपयोग कर समद्ु री
जीवन की रचना करते हुए बच्‍चे
277
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
शिक्षक बच्चों को उनके द्वारा बनाई गई कलाकृ तियों को इकट्ठा और व्यवस्थित कर कक्षा को ही कला
गैलरी में बदलने के लिए कह सकते हैं।
बच्चों को अपने घर से अनपु योगी वस्तुएँ, यथा—लालटेन, लैंप आदि लाने हेत प्रो ु त्साहित किया जा
सकता है। उनसे संबंधित सामान्य सचू नाओ ं को अंकित करते हुए व्यवस्थित किया जा सकता है।
विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यक्रम में बच्चे पोशाक, आभषू ण, रंगमचं ीय सामग्री बनाते हैं, जिन्हें संग्रहालय
का अगं बनाया जा सकता है।
पत्र-पत्रिका या अन्य स्रोतों से काटे गए धरोहर स्थल, ऐतिहासिक व्यक्‍तित्व, पोशाक, आदि के चित्र भी
संग्रहालय की वस्तुएँ हो सकती हैं।
अगर संग्रहालय के लिए किसी खास वस्तु को प्राप्‍त करने में कठिनाई होती है, तो उसके फ़ोटोग्राफ़/
ड्राॅइगं /अनक ु ृ ति/लघु मॉडल आदि का उपयोग किया जा सकता है।
प्र. 16 क्या दिव्यांग बच्चों को सग्रं हालय बनाने की गतिविधियों में शामिल किया जा सकता है?
हाँ, आप दिव्यांग बच्चों को संग्रहालय बनाने की गतिविधियों में शामिल कर सकते हैं। आप इस तरह से
गतिविधियाँ आयोजित कर सकते हैं कि आप नक्काशी कार्य, शंकु कार्य, नाखनू का उपयोग करते हुए नक्काशी
इत्यादि से वस्तुओ ं का सृजन कर पाएँ,ँ जो बाद में संग्रहालय का भाग बन सकती हैं ।
संग्रहालय संबंधी सचू नाएँ विशषे ज्ञों की सहायता से ब्रेल लिपि में प्रदर्शित की जा सकती हैं।

प्र. 17 सग्रं हालय बनाने में शिक्षक की क्या भूमिका है?


शिक्षक बच्चों द्वारा संग्रहालय-प्रदर्शों के संग्रह तथा व्यवस्थित करने में सगु मकर्ता होंगे। इन गतिविधियों को
करने के लिए शिक्षक को संग्रहालय में शामिल की जा सकने वाली सामग्री तथा स्थानीय संस्कृति के बारे में
अपने ज्ञान और दृष्‍टिकोण को व्यापक करना होगा।
समदु ाय, विद्यालय प्रबंधन और बच्चों के बीच शिक्षक एक कड़ी की भमि ू का निभा सकते हैं।
प्र. 18 क्या शिक्षकों को सग्रं हालय बनाने के लिए विशेष समय और प्रशिक्षण की आवश्यकता है?
नहीं, शिक्षकों को संग्रहालय बनाने के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण और अधिक समय व्यतीत करने की
आवश्यकता नहीं है। उनका ज्ञान और संवेदनशीलता ही संग्रहालय बनाने के लिए पर्याप्‍त है। शिक्षक इस संबंध
में संसाधन के न्द्रों/इन्टरनेट/संग्रहालयों से मदद ले सकते हैं।
प्र. 19 हम बच्चों को सग्रं हालय कै से ले जाएँगे?
सर्वप्रथम आप अपने शहर/नगर के विभिन्न सग्रं हालयों के बारे में पता कीजिए। आप सग्रं हालय अधिकारी से
यातायात सविु धाओ ं के बारे में बात कर सकते हैं। कुछ संग्रहालय इसकी सविु धा प्रदान करते हैं। यदि आपको
विद्यालय द्वारा भी यातायात सवि ु धाएँ नहीं प्रदान की जा सकती हैं, तो आप कुछ एजेंसियों की सहायता ले
सकते हैं; जैसे—दिल्ली में इंटैक (Intach) और आधारशिला जैसी एजेंसियाँ इस तरह की शैक्षिक यात्राओ ं
का निःशलु ्क आयोजन करती हैं।

प्र. 20 बच्चों
प्रायः सग्रं हालयों में प्राथमिक स्तर के बच्चों के लिए कोई सच
को सग्रहालय क्यों ले जाएँ?
ू ना नहीं होती। ऐसी स्थिति में हम अपने

संग्रहालयों का भ्रमण के वल वहाँ जाना और वस्तुओ ं का अवलोकन ही नहीं है। यह बचपन में ही सांस्कृतिक
चेतना विकसित करने का सबसे अच्छा तरीका है। इन कारणों से यह साल में एक बार होने वाली प्रक्रिया नहीं
होकर एक सतत् प्रक्रिया होनी चाहिए।

278
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का
जैसा कि बच्चों में देखी गई चीज़ों को याद रखने की विलक्षण क्षमता होती है, अतः वे सग्रं हालय में
प्राप्‍त अनभु वों को कभी नहीं भल ू ेंगे। ये भ्रमण बच्चों में अपने आस-पास की चीज़ों के अवलोकन के तरीके को
व्यापक बनाएँगे। वे अपने परिवेश के बारे में सीख और समझ सकें गे। ये भ्रमण उनके द्वारा भविष्य में किए जाने
वाले अध्ययन को मज़बत ू आधार प्रदान करें गे।

प्र. 21 हमारे नगर/गाँव में कोई सग्रं हालय नहीं है। मैं अपने बच्चों को कहाँ ले जाऊँ ? मैं उनको सग्रं हालय कै से
दिखाऊँ ?
धरोहरों के प्रति जागरूकता पैदा करने तथा इतिहास से बच्चों को जोड़ने के लिए बड़े संग्रहालयों में जाने
की कोई आवश्यकता नहीं है। हमारा दैनिक जीवन ही हमारी संस्कृति और विरासत का जीता-जागता नमनू ा
है; इसलिए यहाँ संग्रहालय की अवधारणा में मेला, पशु मेला, उत्सव, नौटंकी का प्रदर्शन, तमाशा या अन्य
स्थानीय कार्यक्रम या स्थानीय वास्तुशिल्प या व्यक्‍तिगत संग्रह भी शामिल हो सकते हैं।

प्र.
22 बच्चों के सग्रं हालय भ्रमण के लिए हम अतिरिक्‍त समय कै से पा सकते हैं?
सग्रं हालय का भ्रमण किसी पिकनिक या विद्यालय के आधे दिन की छुट्टी वाले दिन या अवकाश के दिन
आयोजित किया जा सकता है।

प्र.
23 सग्रं हालय भ्रमण को पाठ्यचर्या से कै से जोड़ा जा सकता है?
सग्रं हालय भ्रमण पाठ्यचर्या का अभिन्न हिस्सा है। यह अधिगम का समेकित उपागम है, जिसमें अधिगम के
तार्कि क, दृश्य और श्रव्य प्रभागों को सक्रिय किया गया है। सग्रं हालय में सभी विषयों हेतु अध्ययन सामग्री है।
सभी विषय शिक्षक अपने कक्षा शिक्षण में संग्रहालय के प्रदर्शों को संबद्ध कर सकते हैं। संग्रहालय भ्रमण के
उपरांत विषय-वस्तु से संबंधित एक खल ु ी चर्चा को शामिल करना एक अच्छा विचार हो सकता है।

सभ्यता की समझ बनाती बच्चोंे और शिक्षकों की टीम (राष्‍ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली)

279
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

सदं र्भ
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280
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

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टिप्पणी

281
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

भारतीय कला
(भारतीय कला की परख)
सचित्र पूर्णावलोकन

हम भारतीय कला की परख कै से करें?


• भारतीय कला की व्यापकता, विविधता एवं
बहु-आयामी प्रकृ ति को दृष्‍टिगत रखते हुए क्या इसे
परिभाषित करना संभव है?
• यह तभी संभव है, जब हम कला को परिपाटी या
व्यवहार के रूप में स्वीकार करें और एकाकी
उत्पत्ति के बजाय विविध स्रोतों से आदान-प्रदान के
फलस्वरूप इसके अस्तित्व को स्वीकार करें ।
• ताओवादी दृष्‍टिकोण के अनसु ार कला पहाड़ की
घमु ावदार चढ़ाई की भाँति है, जहाँ संपूर्ण मार्ग के
विविधतापर्ण ू दृश्यों में समन्वय के पश्‍चात् एक समग्र
दृष्‍टिकोण बनता है।
• कला को समझने के लिए अनेक दृष्‍टिकोणों का
समन्वय करके एक समग्र दृष्‍टिकोण बनाने की
आवश्यकता होती है।

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मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

भारतीय कला की परिपाटी को समझने हेतु निम्न प्रश्‍नों का उत्तर हमें ढूढ़ँ ना चाहिए—
• भारतीय कला की संकल्पना क्या है?
• अन्य कला-परिपाटियों के विपरीत क्या वास्तव में भारतीय कला परिपाटी में कुछ ऐसी
विशेषताएँ हैं, जो काल एवं स्थान से अछूती रहीं?
• कला का उदभ् व कब हुआ और सामाजिक, भौगोलिक एवं राजनीतिक कारकों ने
कला-कर्म (परिपाटी) को कै से प्रभावित किया?
• क्या भारतीय कला अलग-थलग थी अथवा इसने विविध प्रभावों को आत्मसात् करके
अन्य भागों में विद्यमान कलाओ ं को प्रभावित किया?
• भारतीय कला में सौंदर्य की संकल्पना क्या है?
• क्या भारतीय कला गमु नाम है अथवा यहाँ अतीत में सवि ु ख्यात कलाकार हुए हैं?
• कलाकृ तियों के शिल्पियों के नाम हमें कब से मिलना प्रारंभ होते हैं?
विविध ऐतिहासिक कालों की लोक कलाओ,ं जनजातीय एवं शास्‍त्रीय कलाओ ं
तथा अभिनय कलाओ ं के सचित्र उदाहरणों और साहित्यिक स्रोतों के माध्यम से यहाँ
इन्हीं प्रश्‍नों का उत्तर देने का प्रयास किया गया है।

कला के उद्भव से सम्‍बंधित दो


किंवदन्तियाँ
यहाँ दो पौराणिक मिथकों की समीक्षा
समीचीन प्रतीत होती है—
यनू ानी (ग्रीक) किं वदन्तियों में कला का
उदभ् व व्यक्‍ति की छाया से माना गया है।

कलाकार—जीन-बैपटिस्ट रेनाॅल्ट (18वीं शताब्दी के फ्रांसीसी कलाकार)


विषय—चित्रकला का उद्भव - चरवाहे का रेखाचित्र,
तिथि—1785 (600 ई.पू. की एक कहानी पर आधारित एक चित्र)
तकनीक— कै नवास पर तैलचित्र, 120 × 140 सेमी.
प्लिनी, प्रथम (23–79 ई.) के अनसु ार, इस कथा को कोरन्थिया नामक स्थान की एक महिला दिबतू ेद से जोड़ा गया
है। दरअसल, उसने यद्ध ु में जाने को तत्पर अपने प्रेमी की छाया का चित्रांकन कर लिया था। इसी चित्रांकन से उसके
पिता बतू ेद ने मिट्टी का एक पतु ला बना दिया। ग्रीक मिथकों के अनसु ार यही प्रथम कलाकृ ति थी। यद्यपि दिबतू ेद एवं
उसके पिता के काल की जानकारी नहीं है, तथापि इसे 600 ई.प.ू माना गया है।

283
मॉड्यूल
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कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

भारतीय किंवदन्तियों के अनुसार कला का


उद्भव महान ॠषि नारायण द्वारा उर्वशी की
रचना के फलस्वरूप हुआ।
नारायण ने अपनी जंघा पर आम के पत्ते से एक
अद्वितीय सौंदर्य की देवी ‘उर्वशी’ का िचत्र बनाया।
उन्हें ऐसा इसलिए करना पड़ा, क्योंिक देवताओ ं के
राजा इंद्र ने उनकी तपस्या भगं करने के िलए स्वर्ग
से अप्सराओ ं को भेजा था। इंद्र नहीं चाहते थे िक
नर और नारायण तपस्या के द्वारा िदव्य शक्‍तियाें को
प्राप्‍त कर लें। स्पष्‍ट रूप से उर्वशी के सौंदर्य के आगे
अन्य अप्सराओ ं ने हार मान ली। अपनी तपस्या पर्ण ू
हो जाने पर ॠषि ने उर्वशी को इंद्र के दरबार के िलए
दान कर िदया।

उर्वशी पूर्णतः कल्पनाशक्‍ति से निर्मित हुई!


नर-नारायण अंकित पटल, गप्ु ‍त काल
दशावतार मंदिर, देवगढ़, उत्तर प्रदेश, 500 ई.

भारतीय कला के प्राचीनतम उदाहरण


• प्राचीनतम उदाहरण प्रागैतिहासिक काल के हैं।
• प्रागैतिहासिक काल के कुछ सटीक उदाहरण मध्य प्रदेश के भीमबेटका (8000
ई.प.ू ) की गफ ु ़ाओ ं में देखे जा सकते हैं।
• 3000–1500 ई.प.ू तक सिंधु घाटी एवं गंगा के मैदानों में आद्य-ऐतिहासिक
संस्कृतियाँ विद्यमान थीं।
• इस काल के सामाजिक संस्कार, धार्मिक कर्म-कांड एवं मरू ्त अभिप्राय किसी न
किसी रूप में हमें आज भी दृष्‍टिगोचर होते हैं।
• सिंधु घाटी सभ्यता में तकनीकी रूप से अत्यंत जटिल औज़ारों का उपयोग,
नगर-योजना एवं प्राक्-लिपि का उदभ्‍ा ् व देखने को मिलता है।
• यहाँ से प्राप्‍त मद्ु रा एवं मद्र
ु ांक एक अति विकसित व्यापारिक संस्कृति के साक्षी हैं।
• मद्ु राओ ं पर अंकित कुछ चित्रण, मानव शरीर की लयबद्धता का प्रदर्शन और नृत्य
एवं नाट्य कला के विकास की ओर संकेत करते हैं।

284
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

• हमें कुछ मद्ु राओ ं पर तार-आधारित वाद्य यंत्र वीणा के अक ं न के साक्ष्य भी प्राप्‍त होते हैं।
• पहियों से यक्ु ‍त खिलौनों, मर्ति
ू यों के माध्यम से पशु आकृ तियों का प्रदर्शन एवं झनु झनु ों से
ज्ञात होता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग मनोरंजक खेल-खिलौनों का भी निर्माण करते थे।
• उस काल की टेराकोटा की अनेक स्‍त्री कलाकृ तियों की खोज दर्शाती है िक हड़प्पा के लोग
देवी (उर्वरता और सर्व-व्यापकता की प्रतीक) की पजू ा में संलग्न थे।
• ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने धातओ ु ं एवं मिश्र-धातओु ं की वस्तुओ ं के निर्माण की जटिल
तकनीक का विकास कर लिया था।
• इस क्षेत्र से बड़ी संख्या में मनकों की प्राप्‍ति इस बात की साक्षी ह िै क हड़प्पा सभ्यता के लोगों
की शिल्पकला अनपु म थी। इनके व्यापक व्यापार के पर्याप्‍त साक्ष्य उपलब्ध हैं। वस्तुतः ये
उद्योग आज तक विद्यमान हैं।

सिध
ं ु घाटी मुद्रा, मोहनजोदड़ो महालिंगी प्रतिमा, मोहनजोदड़ो
वृक्ष के अदं र अंकित मर्ति
ू की झक ु कर पजू ा करती पशओ ु ं से घिरी हुई ध्यान मद्ु रा में अंकित
हुई एक और मर्ति ू । पास में ही पशु एवं मानव प्रतिमा (2100–1750 ई.प.ू )
की मिश्रित मर्ति
ू खड़ी है। नीचे सात मर्तिू याँ कोई
अनष्‍ठा
ु न कर रहीं हैं। क्या यह नृत्य है?

285
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

नारी मूर्तियाँ
यहाँ हड़प्पा से प्राप्‍त सबसे बड़ी नारी
मर्ति
ू यों में से एक प्रदर्शित की गई है। इनमें से
अनेक मर्तिू यों को आभषू णों से व्यापकता
से ससु ज्जित किया गया है और जननांगों
को विशेष महत्व दिया गया है, जिससे इन्हें
‘मातृदवे ी’ के रूप में पहचाना गया है। इनमें
से अनेक का शिरोवस्‍त्र छोटी-सी टोकरी
के आकार का है, जिसे संभवतः धार्मिक
उपयोग हेतु दीप के रूप में प्रयक्ु ‍त किया
गया था।
अनमु ानित माप —
(चौड़ाई × ऊँचाई × मोटाई)
= 7.8 ×14.0 × 5.8 से.मी.

सिध
ं ु सभ्यता की दो सप्रसि
ु द्ध प्रस्तर मूर्तियाँ
नििश्‍चत रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि इसका मल ू नीचे दी हुई ‘पजु ारी’ की प्रतिमा से
भारतीय है अथवा अन्य कहीं से आयातित है, क्योंकि मिलती-जल ु ती प्रतिमाएँ अनेक स्थलों से
इसके अधोभाग में प्रयक्ु ‍त प्रस्तर स्थानीय नहीं है। यह प्राप्‍त हुई हैं, जिससे पता चलता है कि ऐसी
हैरान करने वाली बात है कि इस काल में संभवतः मिस्र प्रतिमाओ ं का निर्माण सामान्य बात थी।
को छोड़कर ऐसी कोई अन्य संस्कृति नहीं थी, जहाँ
इतनी स्वाभाविक कला-सर्जना की गई हो।

पुरुष-अधोभाग
सिन्धु सभ्यता,
हड़प्पा कालीन
(ई.प.ू 2100–1750)

कंधों के ऊपर से पष्पा


ु लंकृत वस्‍त्र धारण किए
हुए ध्यान मद्ु रा में परु ोहित, हड़प्पा सभ्यता

286
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

हड़प्पा ससं ्कृति के अंतिम चरण से प्राप्‍त इन मृण्मूर्तियों में धागे अथवा मख
ु ौटों के किनारों पर बने छिद्रों से ज्ञात
होता है कि इनका प्रयोग कठपतु ली अथवा मख ु ौटे के रूप में होता था।
सामग्री­— पकी मिट्टी (टेराकोटा)
माप— 5.5 से.मी. ऊँ चाई, 12.4 से.मी. लम्बाई, 4.3 से.मी. चौड़ाई

हड़प्पा से प्राप्‍त खिलौना गाड़ी में भैंसों को नाथकर चलाता हुआ सारथी

287
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

जिन प्रक्रियाओ ं का अाविष्कार सिंधु सभ्यता के काल में हुआ, उनका उपयोग आज भी विद्यमान है, जैसे कि
लॉस्‍ट वैक्‍स प्रक्रिया। इस प्रक्रिया का प्रयोग बस्तर में डोकरा ढलाई के लिए होता है। समकालीन कलाकार
मीरा मख ु र्जी के द्वारा भी यह प्रक्रिया प्रयोग में लायी जा रही है।

मोहनजोदड़ो से प्राप्‍त एक डोकरा मर्ति


ू , बस्तर
कलाकृ ति जिसे ‘नर्तकी’ के
रूप में जाना जाता है

अभी तक हमने प्रागैतिहासिक एवं आद्य-ऐतिहासिक (लिखित साक्ष्यों से पर्वू , जैसे—सिंधु


सभ्यता कालीन जिसकी लिपि तो है किंत प
ु ढ़ी नहीं जा सकी) कलाकृ तियों को देखा।
लिखित साक्ष्यों की उपलब्धता के प्रारंभ से हम निम्नलिखित प्रतिमानों का उपयोग करके
कला को समझने का प्रयास कर सकते हैं—

1. ऐतिहासिक कारक कालक्रमानसु ार कलाकृ तियों को देखने के


2. सामाजिक कारक स्थान पर हम प्रकरण अध्ययनों (case-
studies) के माध्यम से उन कारकों को
3. सौंदर्यशास्‍त्रीय सिद्धांत समझने का प्रयास करें गे, जिन्होंने कला
4. धार्मिक कारक को प्रभावित किया।

288
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

भारतीय कला को प्रभावित करने वाले कारक


भारतीय कला प्रतिमानों को समझने के लिए काल-क्रमानसु ार विवरण देने से उचित
है कि सामाजिक कारक, धार्मिक प्रभावों एवं सौंदर्य की संकल्पनाओ ं पर विचार करें ।
हालाँकि, तथ्य है कि सभी चारों समहू एक-दसू रे से पथृ क नहीं हैं।
ऐतिहासिक कारक— राजवंश, सरं क्षण एवं सरं क्षक की धार्मिक एवं राजनीतिक
सवं ेदनाएँ, यद्ध
ु , सघं र्ष एवं तत्कालीन वातावरण।
सामाजिक कारक— समदु ायों का सामाजिक ताना-बाना; कला कै से और क्यों
सामाजिक स्तरीकरण का औजार बनती है; लोगों को प्रभावित करने वाले कारक एवं
कला कै से इन परिवर्तनों को प्रभावित करती है; व्यापार एवं वाणिज्य।
सौंदर्यशास्‍त्रीय कारक— सौंदर्य की प्रकृ ति को समझने के प्रयास हेतु सांस्कृतिक
प्रतिमान, कला रूप देने वाले विविधतापर्ण
ू मानवीय अनभु व।
धार्मिक कारक— धार्मिक विश्‍वास एवं अनष्‍ठा
ु न, मर्ति विज्ञा
ू न तथा आध्यात्मिक एवं
धार्मिक विश्‍वासों का सांके तिक निरूपण।

ऐतिहासिक कारकों
द्वारा नियत कला का
तथ्यपरक अध्ययन

• कुषाणकालीन कला

• मगु ल कला
• स्वदेशी आदं ोलन/स्वतंत्रता
संघर्ष के दौर की कला

289
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

कला िवकास के ऐतिहासिक कारक


प्रकरण अध्‍ययन 1
कुषाणकालीन कला
कुषाण वंश (प्रथम–पाँचवीं सदी) ने गांधार राज्य पर शासन किया, जिसका विस्तार वृहत भौगोलिक क्षेत्र में था।
जैसा िक प्राचीन काल में सामान्य था, यद्ध
ु एवं विजयों के फलस्वरूप राज्य की राजनीतिक स्थिति में बार-बार
परिवर्तन हुआ, तथापि इस राज्य का मखु ्य स्थल पेशावर घाटी (पाकिस्तान) में था।
इस काल में निर्मित मर्ति ू यों में यनू ानी कला का प्रभाव स्पष्‍ट दृिष्‍टगोचर होता है। इस भ-ू भाग में यनू ानी कला
के सांस्कृतिक आदान-प्रदान की यह प्रक्रिया यनू ानी साम्राज्य निर्माता सिकंदर के शासनकाल में तीन शताब्दी पर्व ू
में ही प्रारंभ हो गई थी। उसके अधिकारियों एवं सेनानियों के वंशज इस राज्य के विभिन्न भागों में बस गए और
यनू ानी कलाकृ तियों की रुचि में और भी विस्तार हुआ।
इन कलाकृ तियों में स्थानीय धार्मिक एवं सामाजिक मान्यताओ ं का अदभ् त
ु सम्‍मिश्रण दृष्‍टिगोचर होता है।
कला इतिहास में इस काल को ‘यनू ानी (हेलेनिस्टिक) चरण’ के रूप में जाना जाता है।

दो कलाकृतियों की तुलना—
प्रथम साँची से (बाएँ) तथा दसू री
कुषाणकालीन गांधार से (दाएँ)।
हम देख सकते हैं कि किस
प्रकार यनू ानी कला के प्रभाव
के फलस्वरूप बद्ध
ु के सांके तिक
प्रदर्शन (बाएँ) का स्थान उनके
मानवीय रूप के प्रदर्शन (दाएँ) ने
ले लिया।
साँची के स्तूप में तीसरी शताब्दी ई.प.ू से 12वीं कुषाणकालीन (गांधार, तीसरी सदी) प्रतिमा में
शताब्दी ई. के मध्य निर्मित एवं पुनर्निमित बौद्ध बद्ध
ु को मानवाकृ ति में सारनाथ में अपना प्रथम उपदेश
कला के प्रारंभिक चरण में बद्ध ु को प्रतीक के रूप में (धर्मचक्रप्रवर्तन) देते हुए प्रदर्शित किया गया है जिसमें उनके
प्रदर्शित किया गया है। साँची से लिए गए उभारदार अनयु ायियों ने उन्हें घेर रखा है और नीचे दो हिरण बैठे हैं।
उके रण के माध्यम से बद्ध
ु के सारनाथ के प्रथम उपदेश इसमें यनू ानी प्रभाव स्पष्‍ट दिखाई पड़ता है।
(धर्मचक्रप्रवर्तन) का प्रदर्शन किया गया है। उनके धूसर सीस्ट
अनयु ायियों द्वारा घिरे हुए चक्र के नीचे एक हिरण 11 ¼ × 12 ¾ इचं
प्रदर्शित किया गया है। (28.6 × 32.4 सेमी)

290
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

यहाँ दो प्रतिमाओ ं को देखें— बाइ� ओर गांधार क्षेत्र से बुद्ध की प्रतिमा है,


जबकि दाइ� ओर रोम से ली गई यूनानी मूर्ति
देखिए, यहाँ किस प्रकार यनू ानी प्रभाव के कारण बद्ध ु को यनू ानी चोगा
(चनु ्नटदार ढीला वस्‍त्र) पहने हुए दिखाया गया है। यनू ानी कला में शारीरिक
प्रदर्शन पर अत्यधिक ज़ोर दिया जाता है, इसीलिए हम देखते हैं कि कुषाणकालीन
कला में बद्ध
ु को मानव रूप में प्रदर्शित किया गया है। कुषाण प्रतिमा में जरथस्‍ु त्र,
बौद्ध और यनू ानी मर्ति
ू कला का समन्वय देखा जा सकता है।

इरे न की प्रतिमा
बद्ध
ु , गांधार (शांति का मानवीकरण)
(प्रथम-द्वितीय शताब्दी) 14–68 ई.,
सप्रं ति टोक्यो सग्रं हालय रोमन ग्रीक कांस्य प्रतिमा,
कलाकार— के फीसोडोटस

अब आप मथुरा और गांधार, दो अलग-अलग क्षेत्रों की प्रतिमाओ ं को देखें—


दोनों कुषाणकालीन हैं, किन्तु गांधार वाली प्रतिमा में बौद्ध, जरथस्‍ु त्र एवं ग्रीक प्रभाव
परिलक्षित होता है, जबकि मथरु ा वाली प्रतिमा में पर्वू वर्ती मौर्यकालीन कला शैली के
तत्वों की निरंतरता दृष्‍टिगोचर होती है।

कुषाणकालीन बुद्ध, द्वितीय शताब्दी ई.


कटरा टीला, मथुरा क्षेत्र
मथरु ा का चित्तीदार पत्थर, ऊँचाई 71 से.मी. बद्ध
ु , गांधार
राष्‍ट्रीय सग्रं हालय, नयी दिल्ली
इस मर्ति ू में उष्णीश जैसे लक्षण स्पष्‍टता से दिखाई दे रहे हैं। उनके हाथों
पर लक्षणों का अक ं न है और उनकी दैवीय श्रेष्‍ठता को प्रदर्शित करने
के िलए प्रभामण्‍डल एवं आकाश में उड़ते गंधर्वों का भी अक ं न िकया
गया है।
बुद्ध की प्रतिमा के निर्माण की परंपरा, उनके महापरिनिर्वाण के
बद्ध
ु , मथरु ा चार सौ वर्षों बाद ही प्रारंभ हुई।

291
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

बद्ध
ु , अभय मद्ु रा, भारत (उत्तर प्रदेश, मथरु ा) पाँचवीं शताब्दी
का उत्तरार्द्ध
लाल बलुआ पत्थर— ऊँचाई 33 इचं (86.5 से.मी.),
11
16

द मेट्रोपॉलिटन संग्रहालय, न्यू याॅर्क

सघं ाटि धारण किए हुए बद्ध


ु । विशाल प्रभामण्डल
एवं शुभ लक्षण स्पष्‍टता से दिखाई दे रहे हैं।

कला विकास के ऐतिहासिक कारक


प्रकरण अध्‍ययन 2
मुग़ल कला
मग़ु ल वंश की शरू ु आत 1526 ई. में हुई। प्रारंिभक तैमरू ी मगु लों और ईरानी
सम्राट शाह तहमास्प के राजनीतिक संबंध काफ़ी अच्छे थे। द्वितीय मगु ल
सम्राट हुमायँू ने 1530–1540 ई. एवं 1555–1556 ई. के मध्य भारत में
शासन किया। उसने अपने शासन के अंतराल के दौरान पर्याप्‍त समय ईरान में
व्यतीत किया, जहाँ लघचि ु त्र कला के प्रति उसकी रुचि जागृत हुई।
भारत वापस आते समय वह दो ईरानी कलाकारों, सैयद अली एवं
अब्दुस्समद को अपने साथ ले आया।
उन्होंने भारत में मौजदू कला शैली एवं स्थानीय चित्रकला शैलियों
के मध्य समन्वय स्थापित कर एक नवीन शैली का विकास किया, साथ
ही प्रत्येक मगु ल सम्राट द्वारा स्वयं के इतिहास के अभिलेखीकरण की
परियोजना के कार्य का निर्वाह भी किया।
बाद के प्रत्येक सम्राट की अपनी-अलग रुचि के फलस्वरूप मगु ल
शैली ने विभिन्न शैलियों की विशेषताओ ं एवं विषयों को अपने सरं क्षकों की
रुचि के अनसु ार आत्मसात कि ् या।

292
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

अकबर (1556–1605 ई.) के सरं क्षण में चित्रकला


ऐसा कहा जाता है कि डिस्लेक्सिया (एक प्रकार की बीमारी
जिसके कारण अक्षरों को मिलाकर पढ़ने में समस्या होती
है) के कारण अकबर कभी पढ़ना नहीं सीख सका। उसने
तस्वीरखाना स्थापित किया और अनेक साहित्यिक ग्रंथों
का अनवु ाद करवाकर उनका चित्रण भी करवाया, जिससे
उन्हें समझना संभव हो सके । उसने अनेक हिन्दू चित्रकारों
को नियक्ु ‍त किया जिससे फारसी शैली में स्थानीय शैली
का विलय संभव हुआ। उसकी कलाओ ं में रुचि थी और
उसने एक विशाल पसु ्तकालय स्थापित किया जिसकी
पसु ्तकों का पाठन करके उसके कर्मचारी उसे सनु ाते थे।
उसने अपने स्वयं के इतिहास के प्रलेखीकरण की रुचि के
कारण, अबल ु फ़ज़्ल को इस कार्य का दायित्व दिया और
अकबर के तस्वीरख़ाना के चित्रकारों ने इनका चित्रण भी
किया। यह अकबरनामा (अकबर का इतिहास) की एक
घटना का चित्रण है।
आगरा के िकले के निर्माण का निरीक्षण करते हुए
अकबर (अकबरनामा से लिया गया एक चित्र)

अकबर ने संस्कृत ग्रंथों का हिन्दी में अनवु ाद करवाया,


जिनमें से महाभारत का अनवु ाद रज़्मनामा सर्वविदित है।
वह विभिन्न धर्मों में निहित सार्वभौमिक सत्य को जानने
की इच्छा रखता था।

युद्धोपरान्त— वनवास, रज्मनामा, 1598


चित्र में वृद्ध एवं कृ षकाय धृतराष्‍ट्र एवं आँख बंद की हुई
गांधारी की सहायता करते हुए कंत ु ी को दिखाया गया है।
यह 16वीं शताब्दी में हिन्दू महाकाव्य महाभारत के
फारसी अनवु ाद रज़्मनामा से उद्धृत है।
ग्रंथ का नाम— रज़्मनामा
लेखक— नकीब खान (अनवु ादक)
चित्रकार— धनु

293
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

अकबर ने दरबार के दिन-प्रतिदिन की


गतिविधियों को भी प्रलेखित करवाया। यहाँ
नृत्य कला के प्रदर्शन का एक दृश्य चित्रित
किया गया है।
ऐसा प्रतीत होता है कि यह कथक नृत्य का
प्रदर्शन है। यहाँ एक महिला को ढोल बजाते
हुए भी देखा जा सकता है।
अकबरनामा से िलया गया एक िचत्र, िजसे
अकबर के दरबारी िचत्रकार के शव कला और
धर्मदास ने िचत्रित िकया था।
नृत्य का यह दृश्य वस्तुतः मध्य भारत के
उत्तरी भाग में स्थित मालवा के शासक
बाज बहादरु के दरबार का है। उसे यद्ध ु में
अकबर (1556–1605 ई.) की सेनाओ ं ने
पराजित किया था।

अकबर को जहाँ
पौराणिक कथाओ ं में
रुचि थी, वहीं जहाँगीर
को अन्वेषणात्मक
विषयों में

नील गाय— शाहजहाँ के एलबम से एक फ़लक, 1620, मसं रू ।


एलबम के चित्रों का चित्रण जहाँगीर के काल में किया गया, किन्तु अनेक चित्र कालांतर में शाहजहाँ के शासनकाल
में जोड़े गए। स्याही, कागज़ पर जलचित्र, ऊँ चाई 7 18 इचं (18.2 से.मी.), चौड़ाई 9 1 2 इचं (24.2 से.मी.)
जहाँगीर को प्रकृ ति में अत्यधिक रुचि थी। चित्रकार मसं रू उसकी यात्राओ ं म नि
ें रंतर साथ रहता था। यहाँ देख सकते
हैं कि एक पशु की टूटी हुई सींग का कितना सटीक चित्रण है।

294
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

बाइ� ओर रे त-घड़ी पर बैठे हुए जहाँगीर का चित्र देख सकते हैं। यह समय के व्यतीत होने का प्रतीक है।
राजनीतिक रूप से शक्‍तिशाली व्यक्‍तियों के बजाय उसे अाध्यात्मिक व्यक्‍तियों की संगति में दिखाया गया
है। दाइ� ओर शाहजहाँ को ग्लोब पर खड़े हुए दिखाया गया है और एक शेर एवं एक भेड़ा एक साथ सो रहे हैं।
इससे उसके साम्राज्य में शांति और भाईचारे का संकेत मिलता है। जहाँगीर के शासनकाल में व्यापारिक संबंधों
के फलस्वरूप चित्रों में पश्‍चिमी यथार्थवाद एवं मसीही कल्पना तथा पंखयक्ु ‍त फ़रिश्तों का चित्रण प्रारंभ हुआ।
अतः यह चित्र मगु ल वंश के इतिहास के अध्ययन हेतु सामग्री के रूप में उपयोगी है।

यद्यपि जहाँगीर के रूपचित्र मिलते


हैं, किंत शा
ु हजहाँ ने इन्हें अधिक
महत्व दिया।

बादशाह जहाँगीर ने शासकों के स्थान ग्लोब पर खड़ा शाहजहाँ, 17वीं शताब्दी का मध्य, मगु ल वंश,
पर सफ़
ू ी संतों की संगति को अधिक भारत। कागज़ पर रंगों एवं स्वर्ण का उपयोग। तिथि—17वीं
महत्व दिया (1620) शताब्दी का मध्य। स्मिथसोनियन इसं ्टीट्यश
ू न, कृ ति—हाशिम।

इस चित्र में शाहजहाँ और उसके पत्रु दारा


शिकोह के आत्मीय पलों को प्रदर्शित किया
गया है, जिसमें वह मोर-पँख एवं रत्नों से खेल
रहा है।
यह िचत्र ‘द शाहजहाँ एलबम’ (मरु क्का-ए-
शाहजहाँ) से लिया गया है जिसे जहाँगीर
(1605–27 ई.) के काल में प्रारंभ किया गया
और शाहजहाँ (1628–58 ई.) ने इसे पर्ण ू
करवाया।
चित्रकार— नन्हा।
मेट्रोपॉलिटन म्यूज़ियम, कागज़ पर स्याही,
जलरंग (वाटर कलर) एवं स्वर्ण।

295
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

कला िवकास के ऐतिहासिक कारक


प्रकरण अध्‍ययन 3
नव-पारंपरिक कला अथवा 20वीं शताब्दी का पुनरुत्थान
अनेक इतिहासकारों का मत है कि प्रायः शासित लोगों द्वारा अपने
उपनिवेशवादी शासकों के सांस्कृतिक प्रतिकार स्वरूप परंपराओ ं का
पनु रुत्थान किया जाता है। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेज़ों द्वारा
प्रारंभ पश्‍चिमी शैक्षणिक यथार्थवादी कला शैली के प्रतिकार स्वरूप
अबनीन्द्रनाथ टैगोर तथा कालांतर में नन्दलाल बोस का पारंपरिक
प्रारूपों, यथा—लघचित्रों
ु एवं जनजातीय कला शैलियों के माध्यम
से ‘बंगाली पनु र्जागरण’ अर्थात् कला का पनु रुत्थान, उपनिवेशवाद
का प्रतिवाद था। सौंदर्य मल ू क तत्वों के माध्यम से जहाँ भारतीय
संस्कृति की पवित्रता एवं परंपराओ ं को प्रदर्शित किया गया, वहीं नारी प्रतिमाओ ं के
माध्यम से राष्‍ट्र का मानवीकरण किया गया।

बंगाल विभाजन के विरोध में 1905 में चित्रित इस कृ ित


को प्रारंभ में ‘बँगला माता’ के नाम से जाना गया, जिसे
बाद में ‘भारत माता’ कर दिया गया। इसे राजनीतिक
राष्‍ट्रवाद की बजाय सांस्कृतिक राष्‍ट्रवाद कहा जा
सकता है।

अबनीन्द्रनाथ टै गोर
भारत माता, जलचित्र, (राष्‍ट्रवाद की प्रतिभति
ू ,
बंगाली महिला के रूप में भारत माता)

296
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

अबनीन्द्रनाथ टै गोर
लंका में कै दी के रूप में सीता
बंगाली में हस्ताक्षरित, कागज़ पर
जलचित्र एवं माढ़ी (1907)
33.9 × 25.2 से.मी. (13.3 × 9.9 इचं )
यहाँ देखा जा सकता है कि सीता की कै द
को किस प्रकार भारत में उपनिवेशवाद के
प्रतीक के रूप में प्रदर्शित किया गया है।

अबनीन्द्रनाथ टै गोर
शाहजहाँ के अंतिम दिन
लकड़ी पर तैलचित्र (1903)
35.5 × 25.5 से.मी.

297
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

परंपरानसु ार, देवदासियों द्वारा नृत्य-प्रदर्शन किया


जाता था। इसे सदीर के नाम से जानते थे, जो मंदिर
के कर्मकाण्डों एवं सांस्कृतिक जीवन का एक अगं
था। देवदासी सप्रं दाय की मायलापरु गौरी अम्मा
ने कलाक्षेत्र नामक नृत्य विद्यालय स्थापित करने
वाली रुक्मिणी देवी अरुण्डेल को इस नृत्य परंपरा
में शिक्षित किया था।
मंदिरों में प्रदर्शित किये जाने वाले सदीर नृत्य को
भरतनाट्यम के करणों को प्रदर्शित करतीं उभरी ही कालान्तर में भरतनाट्यम नृत्य के रूप में जाना
हुई उके रित मूर्तियाँ, बहृ देश्‍वर मंदिर, तंजावुर जाने लगा। जहाँ तक इस नृत्य की मखु ्य भंगिमाओ ं
का प्रश्‍न है, वह तंजावरु के चार भाइयों चिन्नय्या,
भरतनाट्यम के कुल 108 करणों में से 81 को प्रदर्शित
पोन्नय्या, वाडिवेलु एवं शिवनंदम द्वारा विकसित
करतीं मर्ति
ू यों को तंजावरु के बृहदेश्‍वर मंदिर के गर्भगृह
प्रामाणिक रूपों पर ही आधारित हैं।
के ऊपर स्थित कक्ष में उके रित िकया गया है। नृत्य के
देवता भगवान शिव को इन करणों का प्रदर्शन करते हुए
दिखाया गया है। हमें इसी प्रकार की गतियाँ भरतनाट्यम
में देखने को मिलती हैं।

करण— नृत्य की प्राथमिक


भाव-भंगिमाओ ं को करण
कहते हैं। प्राचीन ग्रंथ में ऐसी
108 भंगिमाओ ं का उल्लेख
है, जिनमें से 81 का प्रदर्शन
तंजावरु में मर्ति
ू यों के उके रण
के माध्यम से किया गया है।

नतृ ्यांगना रुक्मिणी देवी अरुण्डेल


ने भरतनाट्यम को समसामयिक
आवश्यकतानसु ार परिवर्तित किया। अनेक
सवु िख्यात वेलासरस्वती (1918–1984)
आलोचक मानते हैं कि उन्होंने इसे मंदिर नृत्य
तंजावरु घराने की सातवीं पीढ़ी की नर्तकी जिन्हें की मल ू भावना के विपरीत मध्यवर्गीय नृत्य
अंतर्राष्‍ट्रीय ख्याति प्राप्‍त हुई। बना दिया।

298
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

धार्मिक कारक

• विविध धर्मों का के न्द्र होने कारण यहाँ सदियों से उत्थान-पतन के साक्षी


धार्मिक के न्द्रों, मंदिरों, विहारों या मस्जिदों ने कला के संरक्षक का भी कार्य
किया।
• यहाँ अनेक पंथ हैं, जिनके धार्मिक प्रतिमाशास्‍त्रीय विकास एवं उसमें परिवर्तनों
की छाप इतिहास के विभिन्न कालों में स्पष्‍ट दिखाई पड़ती है। समय के साथ
अनेक प्रतिमाओ ं का अपना रूप ही बदल गया।
• हम इस तथ्य का परीक्षण विविध धर्मों के स्थापत्य एवं अनेक पंथों की
कुल-प्रतिमाओ ं में आए परिवर्तनों के वस्तुपरक अध्ययन के माध्यम से करें गे।

कार्यकलापों में स्थापत्य ‘पवित्र विश्‍वासों’ को प्रदर्शित करने एवं उपासना हेतु स्थान
उपलब्ध कराता है।
वहीं, ऐतिहासिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों (संरक्षण, बदलते सांस्कृतिक प्रभाव,
उपलब्ध भवन-सामग्री आदि) की भाँति धर्मशास्‍त्रीय विश्‍वास, धार्मिक स्थापत्य में
महत्वपर्ण
ू स्थान रखते हैं।
धार्मिक उपासना-पद्धति की प्रकृ ति के अनसु ार विविध धर्मों के धर्म-स्थलों के
निर्माण की प्रकृ ति भी अलग होती है। इसका सबं ंध वस्तुतः धार्मिक कर्मकाण्डों एवं
किसी विशिष्‍ट धर्म के अपनी सैद्धांतिक विश्‍वासों से होता है।

299
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

अधिकांश धार्मिक भवनों में ‘परम पजू ्य’ की ओर


जाने के भाग/पथ का प्रयोजन होता है।
धार्मिक उपदेशों एवं प्रार्थनाओ ं में भाग लेने आए
श्रद्धालओ
ु ं हते ु स्थान होता है।
श्रद्धालओ
ु ं के मेल-मिलाप एवं चिंतन-मनन हेतु
स्थानों की भी व्यवस्था होती है।

पवित्र स्थान सबसे स्थायी कृ तियों में से हैं और विविध


संस्कृतियाँ धार्मिक स्थापत्य हेत पर्या
ु प्‍त संसाधनों की
व्यवस्था भी करती हैं। उपासना-स्थल एवं पवित्र स्थान मानव
के सर्वाधिक प्रेरक एवं टिकाऊ भवन हैं।
स्वर्ण मदि
ं र, अमृतसर
यद्यपि धार्मिक स्थापत्य में विचारों का स्थायित्व तो परिलक्षित
बॉम जीसस
होता है, किन्तु समय के साथ पवित्र स्थानों की संरचना पर बेसिलिका, गोवा
विश्‍व में हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव दिखाई देता है।

जैन मदि
ं र,
चारमीनार मस्जिद, हैदराबाद लिंगराज मदि ं र, माउन्ट आबू
भवु नेश्‍वर

स्मृति-प्रस्तर, माॅफ्लांग
पवित्र वन, मेघालय
सांची स्तूप

300
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

हिंदू मंदिर
यह सक्ू ष्म (अन्तर्मन) और स्थूल (विश्‍व) दोनों का प्रतिनिधित्व करता है।

मीनाक्षी मंदिर—उत्तरी तथा


अंतःगोपुरम् का दृश्‍य, मदुरई
15वीं–20वीं शताब्दी
(1600–1699 ई.)
मीनाक्षी मन्दिर (ग्रेनाइट, इ�ट)
ब्राह्मणवाद से संबद्ध

मीनाक्षी मंदिर, मदुरई


मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओ ं
की मर्तिू याँ स्थापित हैं, जिसमें शिव मंदिर
कें द्रीय स्थिति के कारण महत्वपर्ण ू है।
देवी मीनाक्षी का मंदिर शिव मंदिर के
बाएँ तरफ़ स्थित है और अपेक्षाकृ त कम
अलंकृत है।

हिन्दू धार्मिक मान्यताओ ं में मनष्य


ु (आत्मा) तथा ईश्‍वर (परमात्मा) के मध्य वैयक्‍तिक
संबंध पर विशेष महत्व दिया गया है तथा वास्तुकला में इसी वैयक्‍तिकता को आधार
मानकर गर्भगृह (प्रतिमा रखने का स्थान) का निर्माण किया गया है।
ध्‍यान दें िक शिव मंदिर परिसर के कें द्र में स्थित है तथा मंदिर के गोपरु म् (द्वार) से
अपेक्षाकृ त छोटा है।

301
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

अरुणाचलेश्‍वर मदि
ं र, तिरुवन्नामलई, तमिलनाडु

जामा मस्जिद, फ़तेहपरु सीकरी, आगरा

मस्जिद
पैगम्‍बर महु म्मद साहब के स्वर्गवास (632 ई.) के सौ वर्षों के पश्‍चात् उनके अनयु ायियों द्वारा, जो
मखु ्यतः यायावर (घमु न्तु) थे, कुछ महत्वपर्ण
ू स्मारकों का निर्माण किया गया। इन अनयु ायियों ने
यनू ानी, ईरानी तथा रोमन शैली के समन्वय से यह विशिष्‍ट वास्तु-शैली विकसित की।
इस्लामिक कला की मखु ्य विशेषता यह है कि इसमें देशी और विदेशी कला अवयवों का मिश्रण
दिखता है। इसका उदाहरण मगु ल काल की कला में भी देखने को मिलता है।

302
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

जामा मस्जिद, फ़तेहपुर सीकरी,


आगरा
स्मारक की सतह का अमरू ्त अलंकरण
इस्लामिक कला का महत्वपर्ण पक्ष
ू है।
इस धर्म के अनयु ायियों के एकत्र होने
हेतु (इबादत के लिए) एक विशाल
प्रांगण, जिसके एक ओर मखु ्य कक्ष
(मस्जिद) होता है, की आवश्यकता
महससू की गई।

ऐसा विश्‍वास किया जाता है कि जिस प्रकार कुरान को रकशनवीसी (श्रुतिलेख) के माध्यम से सजाया
जाता है। इसी प्रकार मस्जिद को भी भावनाओ ं की अभिव्यक्‍ति हेतु स्थापत्य कला के माध्यम से
अलंकृत किया जाता है।

ईसाई चर्च,
मेडाक, तेलंगाना

गिरिजाघर
ईसाई गिरिजाघरों के निर्माण में भव्य मीनारों तथा बड़ी खिड़कियों का उपयोग किया गया, जिससे अन्दर
आने वाले प्रकाश के माध्यम से अलौकिकता की अनभु तू ि हो सके । सन् 1914 में, जब यह क्षेत्र अकाल
की चपेट में आ गया था, वॉकर प्रॉस्नेट नामक ईसाइयों के मखि ु या ने लोगों को रोजगार देने के लिए चदं ा
एकत्र करके एक चर्च का निर्माण किया। यह एक वृहत् संरचना है, जिसमें 5000 लोग एक साथ बैठ सकते
हैं। इसमें प्रदक्षिणा पथ के लिए एक चौड़ा गलियारा है तथा इसके एक तरफ एक वेदी है, जहाँ से धार्मिक
उपदेश दिये जाते हैं।

303
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

सामाजिक कारक
व्यापार मार्ग की निकटता के कारण जिस समाज में यात्रा, व्यापार तथा अंतःसांस्कृतिक संबंधों
पर आधारित विकास हुआ, वे विचारों के प्रचार-प्रसार के महत्वपर्ण
ू स्थल बने।
कभी-कभी ऐसे रूढ़िवादी समाज की संरचना होती है, जहाँ सामाजिक विभाजन अपनी जड़ें
जमा लेते हैं। ऐसी स्थिति में कला सामाजिक स्तरीकरण निर्धारण में महत्वपर्ण ू भमि
ू का निभाती
है। परंतु कला एक सामाजिक क्रांित लाकर विश्‍व परिप्रेक्ष्य में परिवर्तन का सामर्थ्य भी रखती
है, क्योंकि कलाकार अकसर समाज के एक अच्छे आलोचक होते हैं।
• सामाजिक स्मृतियों की संरचना हेतु कला में यदा-कदा धार्मिक, राजनीतिक तथा सामाजिक
परिवर्तनों के प्रतिमान निर्मित किए गए।
• कलात्मक िवधाएँ, जैसे िक नृत्य, बनि ु यादी तौर पर सामािजक संबंधों के िलए होती हैं, जो
आमतौर पर प्रथाओ ं से जड़ी ु होती हैं और िजनका अक्सर समहू में प्रदर्शन िकया जाता है।
• समाज में परिधान, आभषू ण तथा अन्य शारीरिक अलंकरण भी महत्वपर्ण ू सांके तिक अर्थ
रखते हैं।

304
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

भारत के अधिकांश क्षेत्रों में जीवंत लोक कला प्रचलित है।


जनजातीय तथा लोक कलाएँ आमतौर पर समाज की सामहि ू क आवश्यकताओ ं से उत्पन्न होती हैं तथा
समान सांस्कृतिक पहचान को व्यक्‍त करती हैं।
लोक कलाकार औपचारिक रूप से प्रशिक्षित नहीं होते परन्तु वे अपने समदु ाय के वरिष्‍ठ कलाकारों के साथ
रहकर सीखते हैं। यद्यपि विद्वानों द्वारा यह बताया गया है कि लोक कलाकार/चित्रकार की पहचान कठिन है,
क्योंकि अधिकतर एक ही कलाकार ने प्राकृ तिक लोक कला के क्षेत्र के साथ ही धनी और सामान्य वर्ग के
लिए भी चित्रकारी की। यदि उसे उचित पारिश्रमिक प्राप्‍त हुआ तथा उसके द्वारा अपनी चित्रकारी पर अधिक
समय दिया गया तो उस चित्रकार द्वारा अत्‍यंत उच्च कोटि की परिमार्जित कला का प्रदर्शन किया गया।

वर्ली चित्रकला
वर्ली जनजाति महाराष्‍ट्र के
सह्याद्रि पर्वत �ांृखला की तलहटी
में बहुतायत में निवास करती
है। शाब्दिक रूप से वर्ली का
अर्थ है ‘भमि
ू का टुकड़ा’। वर्ली
किसान, जो घमु न्तु कृ षक थे,
उन्हें औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन के दौरान स्थायी निवास हेतु बाध्य किया गया। उनकी
चित्रकारी मल ू तः ज्यामितीय आकारों पर आधारित है। अधिकांश चित्रों के मध्य में निर्मित
चौकोर आकृ ति, जिसे चौखट कहा जाता है, के अदं र आमतौर पर उनके द्वारा अपनी मातृ देवी
‘पालाघाट’ की सरल आकृ ति का अक ं न किया जाता है। मातृ देवी की आकृ ति के चारों ओर
ग्रामीणों द्वारा किए जाने वाले दैनिक कार्यों, जैसे—मछली मारने तथा आखेट के दृश्य अंकित
किए जाते हैं। इसके अतिरिक्‍त इन दृश्यों में खेती तथा अन्य सामदु ायिक उत्सवों, जैसे—नृत्य
आदि का भी चित्रण प्राप्‍त होता है।
वर्ली चित्रकारी में सामान्य रूप से लाल एवं सफे ़द रंग का प्रयोग किया गया है।

305
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

अधिकतर नृत्य समदु ाय-आधारित हैं। विभिन्न धर्मों के त्योहारों में भी समदु ाय की सामहि
ू क भागीदारी होती है।
यदि हम छऊ नृत्य, यक्ष-गान, राम-लीलाएँ और जात्रा या अन्य धार्मिक प्रथाएँ, जैसे—ताजिया जल ु सू इत्यादि
को देख,ें तो पाते हैं कि समदु ाय व्यक्‍ति से अधिक महत्वपर्ण
ू है।

लोक नाट्य कला में प्रदर्शनकर्ता और दर्शक


आपस में घल
ु -मिल जाते हैं।

छऊ नतृ ्य ओडिशा, झारखडं और पश्‍चिम बंगाल नागा नतृ ्य (किसामा, नागालैंड)


में प्रचलित है। इसे एक यद्ध
ु कौशल नृत्य के रूप नागा नृत्य यद्ध
ु कौशल नृत्य से अलग है। यह नृत्य विवाह और
में जाना जाता है जिसमें वीर रस और भयानक रस फ़सल कटाई जैसे रीति-रिवाज़ों के अवसर पर किया जाता है।
की प्रमख ु ता होती है।

भांगड़ा नतृ ्य पंजाब के किसान समुदाय से जुड़ा है।


यह नृत्य मखु ्य फ़सल की कटाई के समय पर किया
जाता है। इसका संगीत काफ़ी जीवंत और ढोलों की थाप
काफ़ी ज़ोरदार होती है।
भांगड़ा नृत्य की भंगिमाएँ कृ षि कायो� से सबं ंधित होती हैं।

असम के बीहू नृत्य में स्‍त्री और परुु ष एक साथ


मिलकर नए साल का स्वागत करते हैं। इसका
संगीत खेती और फ़सल कटाई के साथ-साथ
असम के स्थानीय इतिहास और सामाजिक
व्यंग्यों से जड़ु ा है।

306
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

पुतली कला ऐसी कला है जिसमें इसके रचयिता


और दर्शक एक जैसे अनभु वों को साझा करते हैं।

कठपतु ली, राजस्थान

बोमलट्टा,
तमिलनाडु

थोलू बोमलट्टा, आध्रं प्रदेश

वस्‍त्र कला के माध्यम से सामाजिक समदु ाय की कला को प्रभावित करने वाले कारकों को समझा
जा सकता है। नागा वस्‍त्र कला एक बहुत विकसित ड्रेस कोड है।
प्रत्येक जातीय समहू एक विशिष्‍ट रंग और डिज़ाइन के कपड़े पहनता है और प्रत्येक जनजाति
के अंदर जो व्यक्‍ति अपने साहसिक तथा सामाजिक कार्यों से उच्च स्थान प्राप्‍त करता है, उसे
विशिष्‍ट वस्‍त्र और आभषू ण पहनने का अधिकार होता है। हालाँकि, बनु ाई एक महिला विशेष
क्रियाकलाप है।
ियम्चुंगर नागाओ ं के पास शॉल
की कई किस्में हैं। इनमें से एक
‘रोंगखिम’ है, जिसे के वल
महान योद्धा ही पहन सकता है।
शाॅल में मौजदू लाल रंग दशु ्मन
के खनू का प्रतीक होता है।

307
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

सेमा/नागा
नागालैंड, उ�र पर्वी
ू भारत
योद्धा के कंधे पर डाला जाने वाला कपड़ा/कंबल
सतू ी, लाल कंबल, कुत्ते के रंगे हुए बाल, कौड़ी
57.5 इचं × 37.25 इचं

सामाजिक व्याख्या के लिए धार्मिक प्रतीकों की पुनः खोज


समकालीन संदर्भ में बौद्ध प्रतीक अपना महत्वपर्ण
ू स्थान रखते हैं। बद्ध
ु मर्ति
ू को भारत की प्रतीकात्मक
छवि के रूप में देखा जाता है।
महात्मा गांधी

अगर हम दोनों चित्रों को ध्यान से देख त ें ो पता चलेगा


कि मर्ति
ू कार ने गांधी जी की मर्ति ू को बनाते समय बद्ध ु
की प्रतिमा को ध्यान में रखकर मर्ति ू बनायी होगी, क्योंकि
दोनों मर्ति
ू याँ शान्ति और अहिंसा को प्रदर्शित करती हैं।

308
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

नागपुर के तारोडी गाँव के प्रवेश द्वार पर


साक्यमुनि बुद्ध और डॉ. अम्बेडकर की मूिर्तयाँ

समदु ाय के लोग, जिन्होंने हाल ही में बौद्ध धर्म को स्वीकार


महान समाज सधु ारक डाॅ. अबं डे कर का यह रंगीन किया है तथा भगवान बद्ध
ु और डाॅ. अबं ेडकर के विचारों को
चित्र बी.जी. शर्मा द्वारा िलथोग्राफी तकनीक से अपने जीवन में आत्मसात् कर लिया है, उन्होंने सार्वजनिक
बनाया गया है, जिसमें डाॅ. अबं डे कर को बद्ध
ु के स्थानों पर उनकी मर्ति त
ू था रंगीन चित्रों को दीवारों पर
साथ एक ही चित्र में दर्शाया गया है। लगाया है।

सांची स्तूप

दीक्षा-भूमि स्तूप, नागपुर, जहाँ डाॅ.


अबं ेडकर ने बौद्ध धर्म को स्वीकार किया।
ध्यान दें कि यह स्मारक सांची के प्रसिद्ध
बौद्ध स्तूप से प्रेरित है।
यह स्तूप जनसमदु ाय के मिलने वाले
स्थान में बदल गया है।

309
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

सौंदर्यशास्‍त्र
• सदियों से भारत में संदु रता की प्रकृ ति
एवं सौंदर्यबोध के सबं ंध में अनेक विचार
प्रस्तुत किए गए हैं।
• उनमें से कुछ को संकलित कर एक शास्‍त्र
के रूप में प्रतिपादित किया गया जिसे
शिल्पशास्‍त्र कहा जाता है, जोकि सौंदर्य
की अवधारणा और कला एवं उसके
सृजन के विभिन्न अवयवों का दर्शन
भी है।
• इतिहास के विभिन्न कालखडं ों की
कलाएँ पर्व ू प्रचलित एवं तत्कालीन
सौंदर्यबोध को दर्शाती हैं, जो उन्हें
मिलने वाले आश्रय की प्रकृ ति एवं
तत्कालीन सामाजिक एवं आर्थिक
स्थिति से प्रमाणित होती हैं।

सौंदर्य के एक महत्वपूर्ण कारक का परिचय—


रस की अवधारणा

310
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

आइए, हम रस की महत्वपूर्ण सौंदर्यशास्‍त्रीय अवधारणा एवं


भारतीय कला में उसके महत्व को भी परखें
• रस— रस एक संस्कृत शब्द है। जब एक
व्यक्‍ति कला के किसी रूप का अवलोकन
करता है तो उसे जो अनभु व होता है, वही
अनभु व रस है।
• यद्यपि भारतीय कलाओ ं के लगभग
सभी रूपों, यथा—चित्रकला, मर्ति ू कला,
नृत्य, संगीत, अभिनय आदि के के न्द्र में
रस सिद्धांत ही हैं, तथापि भावनाओ ं की
अभिव्यक्‍ति के क्रम में उनके प्रयोगों में
कुछ क्षेत्रीय विभेद भी हैं।

भरतमनि ु , जिन्होंने 400–200 ई.प.ू में नाट्य-शास्‍त्र की रचना की, ने आठ रसों अर्थात् भावों के स्वरूप
को रे खांकित किया। नवम् रस ‘शांत’ का प्रतिपादन अभिनव गप्ु ‍त ने लगभग 950–1020 ई. में किया ।

रस स्थायी भाव सच ं ारी भाव


�ांृगार प्रेम (रति) सौंदर्य, भक्‍ति
हास्य विनोद (हास) आनंद, व्यंग्य
अदभ् तु आश्‍चर्य जिज्ञासा, तनाव
रौद्र क्रोध क्षोभ, तनाव
वीर साहस स्वाभिमान, आत्मविश्‍वास
करुण उदासी दःु ख, संवेदना
भयानक डर बेचनै ी, चिंता
वीभत्स घृणा अवसाद, िनराशा
शांत शांति नीरवता, विश्राम

311
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

नृत्य में नौ रसों का प्रदर्शन

�ांृगार हास्य करुण रौद्र वीर

भयानक वीभत्स अदभ् तु शांत

प्रसिद्ध कथकली नर्तक (अभिनेता) कालमंडलम् कृष्णन नायर द्वारा सभी नौ रसों की भंगिमाओ ं
का प्रदर्शन। कथकली के रल की एक विशिष्‍ट शैली की भारतीय शास्‍त्रीय नतृ ्य नाटिका है।

312
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

�ाृंगार रस
प्रेम
सौंदर्य, भक्‍ति

मालश्री रागिनी, रागमाला, राजस्थान।


1620 ई.
रागमाला चित्रकला शैली में सगं ीतमय भावों का
चित्रण किया जाता है। इस चित्र में हम राग भैरव
की पत्नी मालश्री रागिनी को देख सकते हैं।
यहाँ उसे अपने प्रिय के मिलन हेतु फूलों से
यक्ु ‍त सेज लगाते हुए दिखाया गया है। हम
पत्तियों से बनी हुई टोकरी एवं भमि प
ू र गिरे हुए
फल देख सकते हैं।

1
�ाृंगार रस
प्रेम
सौंदर्य, भक्‍ति
चदं ल
े वंश के शासकों द्वारा 950 से 1150 ई. के मध्य निर्मित खजरु ाहो के मंदिर
बाह्य दीवारों पर उत्कीर्णित मिथनु -मर्ति
ू यों के लिए प्रसिद्ध हैं। इन मर्ति
ू यों की
रति-क्रीड़ा एवं शारीरिक सौष्‍ठव अत्यंत दर्शनीय हैं।
मंदिर के अदं र कामकु दृश्य नहीं होने से स्पष्‍ट है कि ये देव-प्रतिमाएँ नहीं हैं,
अपितु इनमें सामान्य जन को रति-क्रीड़ा में व्यस्त दिखाया गया है।
इन कामक ु दृश्यों को अनेक रूपों में परिभाषित किया गया है। विद्वानों का विचार
है कि ये कामक ु दृश्य मानवीय इच्छाओ ं के प्रतीक हैं, जिन्हें गर्भगृह में प्रवेश
के पर्व
ू त्याग देने का संकेत है। कुछ का मानना है कि ये काम संबंधी तांत्रिक
कर्मकाण्डों के सचू क हैं। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि इन मर्ति ू यों के
विविध जोड़ों पर होने के कारण, स्थापत्य को मज़बतू ी देने के निहितार्थ लगाया
गया था।

313
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

यहाँ एक नायिका को वृक्ष की एक डाल पकड़े हुए शालभंजिका के रूप में


1 प्रदर्शित किया गया है। कलात्मक ढंग से वृक्ष के पास डाल को पकड़े खड़ी
हुई नारी मर्ति
ू यों को शालभंजिका कहा जाता है। यह ससं ्कृत से उदभ् त श
ू ब्द
�ाृंगार रस है जिसका अर्थ है ‘साल वृक्ष से डाल तोड़ना’। इन्हें मदनकाय, मदनिका
प्रेम अथवा शिलाबालिका भी कहा जाता है। यहाँ तक कि नृत्य भंगिमाओ ं में
सौंदर्य, भक्‍ति शाल वृक्ष की उपस्थिति का अनभु व किया जा सकता है।

प्रेम विविध प्रकार का होता है, यथा—


माँ का अपने बच्चे के लिए प्रेम, जिसे
वात्सल्य भी कहा जाता है।
भारत (तमिलनाडु, पद्ु दुकोट्टई एवं
तंजावरु जनपद)
चोल काल (12वीं शताब्दी का पर्वार्ध
ू )

कृष्ण की धाय माता यशोदा,


बाल-कृष्ण के साथ

314
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

हास्य रस
हास्य
आनंद, व्यंग्य

गगनेन्द्रनाथ टैगौर
बंगाल में आधनि ु क विवाह बाज़ार
इस व्यंग्य चित्र में बाल विवाह
प्रथा का मखौल उड़ाया गया है।
इसमें एक दख ु ी विदरु की माँ को
उसके लिए घड़े से एक बालिका-
वध निू कालते हुए दिखाया गया है।
बालिका-वधू ने अपने एक हाथ में
दहेज की पोटली ले रखी है, जबकि
दसू रे हाथ में बड़े उतावलेपन से
स्कू ल की तख़्ती पकड़ रखी है।

हास्य रस
हास्य
आनन्द, व्यंग्य

महमदू फ़ारूकी द्वारा दास्तानगोई का एक दृश्य


इस प्रस्तुतीकरण में पैग़म्बर महु म्मद के चाचा एवं योद्धा अमीर हम्जा के जीवन का वृ�ांत बताया जा रहा है।
‘दास्तानगोई’ फ़ारसी शब्द है, जिसका अर्थ है—गाथा (दास्तान) कहना (गोई)। इन गाथाओ ं में हास्य का पट ु
होता है, जोकि अभिव्यक्‍ति का ही एक भाग है।

315
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

हास्य रस
हास्य
आनंद, व्यंग्य

माखन चोरी करते हुए बाल-कृ ष्ण की


प्रतिमा। माखनचोर के रूप में नटखट कृ ष्ण
की बाल-लीला एक विशेष आनन्दानभु तू ि
कराती है।
सृजन का स्थान—दक्षिण भारत
काल—19वीं सदी

हास्य रस
हास्य
आनंद, व्यंग्य

सफल बॉलीवडु फ़िल्म ‘थ्री इडियट्स’ ने सटीक हास्य के माध्यम से हमारी शिक्षा व्यवस्था की समस्याओ ं
पर प्रहार किया है।

316
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

अद्भुत रस
आश्‍चर्य
जिज्ञासा, रहस्य

कल्पसत्रू (कर्मकांडों से संबंधित पुस्तक)


यह मखु ्यतः जैन मनि ु महावीर के आरंभिक जीवन से संबंधित है।
इस चित्र में हिरण या बकरी के शिरोभाग वाली इन्द्र की दत ू हरिनैगमेशी को महावीर का भ्रूण ब्राह्मणी
देवनंदा के गर्भ से ले जाते हुए दिखाया गया है। जैन पौराणिक कथाओ ं के अनुसार, उसने इस भ्रूण को
युद्धप्रिय क्षत्रिय जाति की त्रिशला के गर्भ में प्रत्यारोपित कर दिया था। ब्राह्मण पुरोहित वर्ग था, जबकि
क्षत्रिय योद्धा वर्ग।

आइए, अब ‘बद्ध ु के जन्म’ और ‘महावीर के जन्म’ के अक ं न को देख।ें दोनों ही कथाओ ं में माताओ ं ने
अपने गर्भ में हाथी को प्रवेश करते हुए देखा। प्राचीन ज्योतिषियों का यह विश्‍वास था कि ‘राजके सरी’ योग
में ही संतों अथवा राजाओ ं का जन्म होता है। यहाँ गज (हाथी) शक्‍ति का प्रतीक है, जबकि के सरी (सिंह)
राजकीय शक्‍ति का सक ं े त करता है।

अद्भुत रस
आश्‍चर्य
जिज्ञासा, रहस्य

मायादेवी का स्वप्न, भरहुत, महावीर की माता का स्वप्न


ई.प.ू द्वितीय शती जैन लघचि
ु त्र, 13वीं शती

317
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

रौद्र रस
क्रोध
क्षोभ, तनाव

चित्र
तिथि—1590–1595 ई॰
कलाकार—मिस्कीन एवं शंकर
अकबरनामा से िलए गए इस लघचि ु त्र में अकबर
अपने प्रिय अधिकारी अतगा खाँ की हत्या के
दडं स्वरूप कर्मचारियों को अपने पालक भाई
अधम खाँ को आगरा किले की प्राचीर से उसकी
मृत्यु तक फें कने का निर्देश दे रहा है। नीचे खड़े हुए
लोग/क्षतिग्रस्त लाश को देखकर भयभीत हैं।

रौद्र रस
क्रोध
क्षोभ, तनाव

यहाँ श्री देवी नृत्यालय की एक


नर्तकी शिव द्वारा मृत्यु के देवता
(यम) को मारने का दृश्‍य प्रदर्शित
कर रही हैं।

318
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

वीर रस
साहस
स्वाभिमान, आत्मविश्‍वास
तमिलनाडु, 16वीं शती ई.
कांस्य
यहाँ कृ ष्ण को सर्प रूपी दैत्य कालिया का
दमन करते हुए दिखाया गया है, जिसके ऊपर
वह सवार हैं और पँछू ऊपर की ओर खींच
रखी है। कृ ष्ण ने अपने बाल्यकाल में यह
लीला दिखायी थी, इसलिए उन्हें वस्‍त्रों से
रहित दिखाया गया है। उनके शरीर पर कुछ
आभषू ण हैं।
कृ ष्ण का हाथ अभयमद्ु रा में है।

वीर रस
साहस
स्वाभिमान, आत्मविश्‍वास

तमिलनाडु, 16वीं शती ई.


कांस्य

राम किं कर बैज


सथं ाल कुटुंब
1938

319
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

वीर रस
साहस
स्वाभिमान, आत्मविश्‍वास

महाबलीपरु म् से ली गई इस मर्ति
ू में दर्गा
ु के योद्धा रूप को प्रदर्शित करते हुए नारी की दैवीय शक्‍ति या
शक्‍तिस्वरूपा पक्ष को प्रदर्शित किया गया है। हिंद प
ू ौराणिक कथाओ ं के अनसु ार दर्गा
ु का सृजन पृथ्वी,
स्वर्ग एवं पाताल में महिषासरु नामक दानव को पराजित कर उसके आतंक से मक्ु ‍त कराने हेत कि ु या गया
था। उसे मनष्य
ु अथवा दानवों से अपराजित रहने का वरदान प्राप्‍त होने के कारण नारी शक्‍ति दर्गा
ु को उसे
नष्‍ट करने का दायित्व दिया गया।

वीर रस
साहस
स्वाभिमान, आत्मविश्‍वास

दर्गा

मधबु नी लोक चित्रकला
उत्पत्ति स्थल— बिहार
तिथि—1973
कलाकार— सीता देवी
माध्यम एवं तकनीक—काग़ज पर
स्याही एवं रंग

320
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

करुण रस
उदासी
दःु ख, संवेदना

इस चित्र में बद्ध


ु के कहने पर अपनी गद्दी
छोड़ भिक्षु बनने का निर्णय लेने वाले
राजा नंद की दःु खी पत्नी संदु री को
दिखाया गया है।
वह यह सचू ना पाकर निःश्‍चेत हो गइ�।

6
करुण रस एम.एफ. हुसैन। मदर टेरेसा को पेएटा (मदर मेरी) के रूप में दिखाया गया है।
उदासी नेशनल गैलरी ऑफ़ माॅडर्न आर्ट (एन.जी.एम.ए.) संग्रह से।
दःु ख, संवेदना

321
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

भयानक रस
डर
बेचनै ी, चिंता
यहाँ पर विष्णु के नरसिंह अवतार का अक ं न
किया गया है। वह दानव राजा हिरण्यकश्यप का
पेट फाड़ रहे हैं।
हिरण्यकश्यप का पत्रु एवं विष्णु का परम भक्‍त
प्रह्लाद उनके चरणों पर गिरा हुआ है।

होयसाल मंदिर
बेलरू , कर्नाटक

चोलों के विरुद्ध विजय के उपलक्ष्य में विष्णुवर्धन


द्वारा 1117 ई. में बनवाया गया।

भयानक रस
डर
बेचनै ी, चिंता

भारतीय (कांगड़ा)
सपरिवार शिव श्‍मशान में। 1810
काग़ज़ पर अपारदर्शी जल चित्र
9¾ × 5 इचं (24.8 ×14.9 से.मी.)
7
8

यहाँ शिव के साथ पार्वती एवं उनके पत्रों


ु को
श्‍मशान में दिखाया गया है, जिनके सामने मैदान में
मृत शरीर एवं हाड़ बिखरे पड़े हैं।

322
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

वीभत्स रस
घृणा
अवसाद, निराशा

हास्य-व्यंग्य शैली पर आधारित कालीघाट


चित्रकला का उदभ् व 19वीं शताब्दी में
कलकत्ता में हुआ। अनेक चित्र समकालीन
जीवन पर टिप्पणी करते हैं। इस चित्र में एक
व्यक्‍ति को अपनी पत्नी की हत्या करते
हुए दिखाया गया है। घरे ल हिं
ू सा की ऐसी
घटनाओ ं काे कालीघाट चित्रकला से प्राप्‍त
किया गया है।

वीभत्स रस
घृणा
अवसाद, निराशा

धनराज भगत
(1917–1988)
भारतीय उपमहाद्वीप के भारत एवं
पाकिस्तान में विभाजन के दौर के
कलाकारों ने तत्कालीन चिंता एवं
निराशा का प्रदर्शन किया है।
बोझ निराशा
सामग्री—कठोर कंक्रीट, 1953 सामग्री—लकड़ी, 1953

323
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

वीभत्स रस
घृणा
अवसाद, निराशा

सतीश गजु राल विभाजन से काफ़ी त्रस्त थे।


शीर्षक—अके लापन, 1956
तैलचित्र, एन.जी.एम.ए.

शान्त रस
नीरवता, विश्राम

अभयमद्ु रा में खड़े बद्ध


ु , सारनाथ
स्थिति—सारनाथ, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
तिथि— 4–7वीं शताब्दी
400–499 ई.प.ू

324
मॉड्यूल
6
शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का

शान्त रस
नीरवता, विश्राम

यहाँ पर मेघों के राजकुमार सवं र द्वारा प्रेषित प्रचडं चक्रवात से


विजयी जैन मनि पाश्‍वर्
ु नाथ को परम शांित की मद्ु रा में प्रदर्शित
किया गया है।
हाथों से ढोल बजाते हुए मेघ गर्जन का संदु र अंकन किया
गया है।
वहीं दसू री ओर, सर्पराज धरणेन्द्र को अपने फन के नीचे
पाश्‍वर् नाथ को सरं क्षा प्रदान करते हुए दिखाया गया है। अतिरिक्‍त
पाश्‍वर् नाथ, प्रदर्श—मर्ति
ू सरं क्षण के लिए उनकी पत्नी पद्मावती ने छत्र उठा रखा है।
उदभ् व स्थान—मध्य प्रदेश
तिथि—ई.प.ू 7वीं शती

राष्‍ट्रीय सग्रं हालय, नयी दिल्ली के प्रति धन्यवाद ज्ञापन

राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान और प्रशिक्षण परिषद् के शिक्षा विभाग का


कला एवं सौंदर्यबोध िशक्षा िवभाग, राष्‍ट्रीय संग्रहालय, नयी दिल्ली को
अपने संग्रह के चित्र लेने एवं इन्हें पावर प्वाॅइंट प्रजे़न्टेशन में सम्मिलित
करने की अनमु ति देने हेतु आभार प्रकट करता है।

325
मॉड्यूल
6
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

टिप्पणी

326
Evaluation in Arts

मॉड्यूल 7 कला में मूल्यांकन

एक नज़र
• कला शिक्षा का अधिगम और इसका व्यापक मलू ्यांकन।
• विद्यालयी शिक्षा में प्राथमिक स्तर पर कला शिक्षा के परिणाम की तल
ु ना में प्रक्रिया का महत्व।
• बच्चों के समग्र अध्ययन और विकास के आकलन हेत वु िभिन्न साधनों/नियत कार्यों और तरीकों की पहचान।
• बच्चों के आकलन से उनके अभिभावक को परिचित करवाने का कौशल।
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

कला में मूल्यांकन


अनमु ानित समय—एक दिन
परिचय
जिस तरह शिक्षक कला शिक्षण में अनेक प्रकार की शिक्षण विधियों का उपयोग करते हैं, उसी प्रकार से मलू ्यांकन
हेत भु ी अलग-अलग तरीकों व मानदंडों का उपयोग किया जाता है। प्रस्तुत मॉड्यल ू के माध्यम से प्रतिभागी
विभिन्न परंपरागत और गैर-परंपरागत तरीकों और मानदंडों से परिचित होंगे, जिनका उपयोग बच्चों की प्रगति
के मलू ्यांकन हेत कियु ा जा सकता है।
प्रस्तुत मॉड्यल
ू दो भागों में बंटा है। पहला भाग प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों का प्रशिक्षण संचालित करने
वाले सगु मकर्ताओ ं से संबंधित है। इस भाग में उदाहरण के रूप में कुछ गतिविधियाँ सझु ाई गयी हैं, जिनका उपयोग
सगु मकर्ता, शिक्षकों में अवधारणाओ ं के बनने और उपयक्ु ‍त कौशलों के विकास हेतु कर सकते हैं। आवश्यकता
और इच्छानसु ार सगु मकर्ता अन्य वैकल्पिक गतिविधियों के डिज़ाइन भी तैयार कर सकते हैं।
दसू रा भाग शिक्षकों से संबंधित है, जो शिक्षकों को कला और कला शिक्षा में मलू ्यांकन से संबंधित उनके
प्रश्‍नों के उत्तर पाने में मदद करता है।

उद्देश्य
इस मॉड्यल ू के माध्यम से शिक्षक—
• प्राथमिक शिक्षा के संदर्भ में, कला शिक्षा
में मलू ्यांकन तथा इसके आशय को समझ
सकें गे।
• बच्चों की प्रगति को ध्यान में रखते हुए,
कला और कला समेकित अधिगम में
उपयक्ु ‍त मलू ्यांकन की विधियों को ढूँढ़
सकें गे।
• त्रि-स्तरीय मलू ्यांकन—स्व-मलू ्यांकन,
साथी द्वारा परस्पर मलू ्यांकन और
शिक्षक-मलू ्यांकन—का उपयोग कर
सकें गे।

कला-अनभु व की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करते बच्‍चे


(नर्सरी स्कूल, आई.आई.टी., दिल्ली)

328
मॉड्यूल
कला में मलू ्यांकन

पहला भाग

एक सगु मकर्ता के रूप में आपकी भमि ू का प्राथमिक शिक्षकों के प्रशिक्षण के दौरान इस मॉड्यल ू को संचालित
करने की है। यह सनििश्‍चत
ु करें कि प्रशिक्षण सत्र के अंत तक शिक्षक मॉड्यल ू के उद्देश्यों को समझने में समर्थ
हो सकें । प्रभावी सत्र-संचालन के लिए आवश्यक है कि आप पहले से इसकी योजना तैयार कर लें। इसके लिए
आप निम्नलिखित बातों को ध्यान में रख सकते हैं—
• इस मॉड्यल ू के दसू रे भाग में दिए गए ‘अकसर पछ ू े जाने वाले प्रश्‍न’ (FAQs) के उत्तर पढ़ें और अपनी समझ
के अनसु ार दिए गए उत्तरों को मन ही मन या लिखकर समृद्ध करें । सत्र के दौरान सामने आने वाले इस तरह के
अन्य प्रश्‍नों और उनके उत्तरों के लिए स्वयं को तैयार रखें।
• आवश्यक हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर, जैसे—डी.वी.डी./वीडियो-क्लिप्स/स्लाइड शो आदि को व्यवस्थित कर
लें ताकि सत्र के दौरान उनका उचित इस्तेमाल हो सके ।
• गतिविधि के लिए आवश्यक सामग्री को व्यवस्थित कर लें, जैसे—रंगीन चार्ट, कागज़, पेंसिल, स्केच-पेन,
मार्क र, फ़्लिप-चार्ट, थम्ब-पिन, ब्राउन-पेपर, प्रदर्शन हेतु डोरी, विभिन्न आकार के सेलो टेप, रंग, ड्राॅइगं -शीट,
मॉडलिंग के लिए मिट्टी, कैं ची, गोंद, वाद्य यंत्र, पोशाक के लिए सामग्री, मंच विन्यास (सज्जा) के लिए
आवश्यक सामग्री, आदि। सामानों की सचू ी बनाते समय स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सामग्री को प्राथमिकता दें।
• एक किट में पेंसिल, स्केच-पेन, कलम, टेप, गोंद आदि प्रत्येक समहू के लिए उपलब्ध कराएँ। प्रतिभागियों से
भी कहा जा सकता है कि वे कैं ची, पेपर-कटर आदि सामग्री अपने साथ लाएँ।
• चकि य
ँू ह कार्यक्रम गतिविधि-आधारित है, अतः आयोजकों से अपेक्षा है कि वे एक बड़ा प्रशिक्षण-कक्ष
उपलब्ध कराएँ, जहाँ गतिविधियों का संचालन सहजता से किया जा सके ।
• जहाँ भी ज़रूरी और संभव हो, आप दसू रे सगु मकर्ताओ ं या विशेषज्ञ-प्रशिक्षकों के साथ समहू -शिक्षण के लिए
मिलकर काम कर सकते हैं।
• प्रत्येक मेज़ के पास एक कूड़ादान रखा जाए ताकि कक्षा में गंदगी न फै ले।
• सगु मकर्ता समय का हमेशा खयाल रखें और प्रतिभागियों को निर्धारित समय-सीमा में गतिविधि समाप्‍त करने
के लिए प्रोत्साहित करें ।

329
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

सझु ाई गयी गतिविधियों में से सगु मकर्ता कुछ को आयोजित कर सकते हैं। गतिविधियों के संचालन हेतु आवश्यक
समय भी सझु ाया गया है। हालाँकि, दिन के कार्य की शरू ु आत लगभग 30 मिनट के चेतना-सत्र से होनी चाहिए।
चेतना-सत्र के तरीकों में बदलाव करते रहना रोचक रहेगा। यह प्रतिभागियों की सहभागिता और प्रतिभागिता को
बढ़ाने में सहायक होता है। चेतना-सत्र का स्वरूप कुछ ऐसा हो सकता है —
• समहू गान— इसमें समहू गानों, विशेषकर विभिन्न राज्यों के विशिष्‍ट गानों को सम्मिलित किया जा सकता है।
इसके लिए सी.आई.ई.टी./सी.सी.आर.टी. द्वारा विकसित सी.डी./डी.वी.डी. सहायक हो सकते हैं।
• पनु रावलोकन— प्रतिभागियों द्वारा पिछले दिन के क्रियाकलापों की समीक्षा और छोटी-सी रिपोर्ट (प्रतिवेदन)
प्रस्तुत करवाई जा सकती है।
• उस दिन के लिए कार्यक्रम की घोषणा तथा सह-सगु मकर्ताओ,ं स्वयंसेवकों और प्रतिवेदकों की पहचान
करना।

टिप्पणी
चेतना-सत्र के तरीके में बदलाव करते रहना रोचक रहेगा। इससे सभी प्रतिभागियों की प्रतिभागिता और
सहभागिता बढ़ाने में मदद मिलेगी।

सगु मीकरण के लिए सझ


ु ाई गयी कुछ गतिविधियाँ

पहले मैं (Buzzer Round) करके देखें (Mock Session)

प्रातः सभा (चेतना-सत्र)

उस दिन के लिए कार्यक्रम और स्वयंसेवकों की घोषणा

समूह चर्चा

पिछले दिन के क्रियाकलापों पर छोटी-सी रिपोर्ट (प्रतिवेदन)

उनके अपने समूह में पिछले दिन के सितारों


(बेहतर प्रदर्शन करने वाले प्रतिभागियों) की समीक्षा

330
मॉड्यूल
कला में मलू ्यांकन

30
गतिविधि 1 अनुमानित समय मिनट

मेरा विचार
आइस-ब्रेकर
प्रगति का मलू ्यांकन कठिन प्रक्रिया है। इसकी संरचना और संचालन में पर्याप्‍त सावधानी की आवश्यकता
होती है। प्रतिभागियों के लिए यह महत्वपर्ण
ू है कि वे प्रतिफलों (परिणामों) के सृजन एवं उनको मलू ्यांकित
किए जाने के महत्व को समझें। प्रस्तुत इकाई, मलू ्यांकन को एक अनभवज ु न्य प्रक्रिया के रूप में समझने
का प्रयास है।
प्रथम अध्याय किसी के सबल और कमज़ोर पक्षों के अवलोकन हेतु सहज वातावरण निर्मित करता है।
मलू ्यांकन सहज एवं आनंदपर्ण तू रीके से शरू ु होना चाहिए। वस्तुतः, यह स्वयं का दसू रों के द्वारा मलू ्यांकन
है, जो प्रतिक्रिया के लिए तत्पर और चिंतन हेतु अवसर उपलब्ध कराता है। इससे मलू ्यांकन हेतु उपयक्ु ‍त
साधन और विधियों को विकसित या चयनित करने में मदद मिलती है।

प्रतिभागी ए-4 आकार के कागज़ पर एक कलात्मक शीट (पत्रक) तैयार करें गे, जिसके ऊपर वे अपने नाम विवरण
सहित लिखेंगे। जैसे—
(सगु मकर्ता के लिए नोट— यह के वल सझु ाया हुआ प्रारूप है। सगु मकर्ता अपना प्रारूप स्वयं विकसित
कर सकते हैं।)
‘प्रिय आशा, हम आपकी प्रशंसा करते हैं, आप एक अच्छी शिक्षिका हैं।’
मेरे विचार में आप—
1. ………………………..
2. ……………………
………….....................
................. ऐसे ही जारी रहेगा।
‘मेरा विचार’ खेल शरू ु करने से पर्व

प्रतिभागी इसे पीठ पर लटका सकते
हैं। प्रतिभागी दो गोले बनाएँगे। एक
अंदर की ओर और एक बाहर की
ओर, जिन पर प्रतिभागी आमने-
सामने होंगे। संगीत बजना शरू ु होगा।
भीतरी गोले के प्रतिभागी घड़ी की सईु
की दिशा में तब तक घमू ते रहेंगे जब साथी द्वारा मलू ्यांकन की प्रक्रिया में मास्‍टर ट्रेनर्स
तक कि सगं ीत बंद न हो जाए। रुकने के (ए.आई.एल. प्रशिक्षण कार्यक्रम, दिल्ली)
बाद प्रतिभागी समहू के सदस्य अपने सामने के प्रतिभागी के बारे में एक वाक्य लिखेंगे। लिखने हेतु उनको 15
सेकेंड का समय दिया जाएगा। पनु ः सगं ीत आरंभ होने के साथ भीतर वाले गोले के प्रतिभागी पहले की तरह घमू ने
331
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

लगेंगे। जब भीतरी गोले के सभी प्रतिभागियों की बारी परू ी हो जाए, तब बाहरी गोले के प्रतिभागी घड़ी की सईु
की विपरीत दिशा में घमू ना आरंभ करें गे और भीतरी प्रतिभागी स्थिर रहेंगे। इस तरह सभी प्रतिभागी एक-दसू रे के
बारे में पीठ पर नत्थी हुए कागज़ पर लिखने का अवसर प्राप्‍त कर सकें गे। यह प्रतिपष्‍टि ु -पेपर सबं ंधित प्रतिभागी
के पास इस प्रशिक्षण की स्मृति के रूप में रहेगा।
गतिविधि समाप्‍त होने के उपरांत सगु मकर्ता शीघ्रता से एक लघ प्र ु श्‍नोत्तरी चक्र का आयोजन कर सकें गे।
जैसे—
• यह आइस-ब्रेकर आपको कै सा लगा?
• गतिविधि का कौन-सा हिस्सा रोचक था और क्यों?
• आपकी कक्षा में इस तरह की गतिविधियाँ बच्चों पर कै से प्रभाव डालती हैं?
• आपके अनसु ार कक्षा में इस तरह की गतिविधियों का उपयोग कब किया जाना उपयक्ु ‍त होगा?
सगु मकर्ता प्राप्‍त उत्तरों को बोर्ड या फ्लिप चार्ट पर अंकित कर सकते हैं। सगु मकर्ता सत्र का समापन यह
कहते हुए करें गे कि ‘हम सभी अपने बारे में कही या लिखी गई बातों को सनु ना या पढ़ना पसंद करते हैं।’ अतः
बच्चों का मलू ्यांकन करते समय हमें कठोर या आलोचनात्मक नहीं होना चाहिए। इससे बच्चे हतोत्साहित होते
हैं और अपना श्रेष्‍ठ नहीं दे पाते हैं। कला में बच्चों के प्रदर्शन का मलू ्यांकन करते समय इन तथ्यों को ध्यान में
रखना चाहिए।

15
गतिविधि 2 अनुमानित समय मिनट

पुनरावलोकन
पहले मैं (Buzzer Round)
इस गतिविधि में सगु मकर्ता प्रतिभागियों से परू े अध्ययन कार्यक्रम के दौरान किए गए मलू ्यांकन संबंधी
अनभव ु ों को स्मरण करने हेतु कहेंगे। वे सभी दिवसों की रिकॉर्ड-शीट (जैसे—मेरा दिन कै सा था? से
संबंधित) एक साथ रखेंगे ताकि उन्हें पता चल सके कि कितनी चीज़़ों को वे जान और समझ चक ु े हैं।
वे प्रक्रिया और प्रतिफल (परिणाम) से संबंधित अपना रे खाचित्र (ग्राफ़) बनाना सीखेंगे, यथा—एक
प्रतिभागी के रूप में उन्होंने स्‍वयं को कै से आँका तथा प्रक्रिया के साथ-साथ अंतिम प्रतिफल (परिणाम)
के बारे में उनका क्या विचार है?

विधि
प्रतिभागी स्वयं एक सारांश, प्रतिदिन की प्रतिपष्‍टि
ु अभिलेख-पत्रक (रिकॉर्ड-शीट) के आधार पर बनाएँगे।
सगु मकर्ता प्रतिभागियों को इसे उनके स्व-मलू ्यांकन की विधि के रूप बताएँगे क्योंकि उन्होंने अपना तथा
कार्यक्रम का मलू ्यांकन विभिन्न दिवसों पर आयोजित गतिविधियों के द्वारा किया है। इस तरह प्रतिभागी परू ी
अवधि में अपनी अधिगम तथा उपलब्धि की बेहतर समझ बनाने में सक्षम होंगे। वे यह भी सीखेंगे कि सतत् एवं
समग्र मलू ्यांकन, शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का अभिन्न अगं है।

332
मॉड्यूल
कला में मलू ्यांकन

प्रश्‍नावली हेतु सझ
ु ाव
पहले मैं (Buzzer Round)
• आपको इस गतिविधि से क्या लाभ हुआ?
• जब आपने अपने पिछले दिनों के प्रतिपष्‍टि
ु -पत्रक को पनु ः देखा, तो क्या इससे आपके प्रदर्शन में कोई बदलाव
आया? अगर हाँ, तो क्या?
• क्या यह गतिविधि कक्षा-कक्ष के लिए उपयक्ु ‍त है?
• अपनी कक्षा में आप इसे कै से उपयोग करना चाहेंगे?
• मलू ्यांकन की इस विधि के क्या फायदे हैं?
• आपके अनसु ार मलू ्यांकन की अन्य विधियाँ क्या हो सकती हैं?
सगु मकर्ता इस तरह के और प्रश्‍न भी पछू सकते हैं, जिनसे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में मलू ्यांकन की
उपयक्ु ‍तता स्थापित हो सके ।

60
गतिविधि 3 अनुमानित समय मिनट

मूल्यांकन—आरंभ से अंत तक
समूह चर्चा
मलू ्यांकन कई स्तरों पर होता है। इस अभ्यास में प्रतिफल (परिणाम) को तल ु नात्मक रूप से दख े ा जाएगा
और प्रतिभागी वस्तुओ ं के सग्रं ह को तल
ु ना तथा भेद की नज़र से दख े गें े। इस प्रक्रिया में प्रतिभागी विभिन्न
परिप्रेक्ष्यों और अलग-अलग लोगों पर प्रशिक्षण के व्यापक प्रभाव को समझेंगे। समहू संभावनाओ ं के क्षेत्र
को खोलने हेतु सहयोग प्रदान करें गे। इसके लिए समहू के सदस्यों को प्रोत्साहन भी दिया जा सकता है।
मलू ्यांकन को सचू ीबद्ध करने से पहले सगु मकर्ता प्रतिभागियों को मलू ्यांकन पर अपनी समझ के अनसु ार
समीक्षा करने को प्रोत्साहित करें गे।

सगु मकर्ता प्रतिभागियों को पाँच-पाँच के समहू में बाँटेंगे। प्रत्येक समहू को चर्चा हेत प्रश्‍न
ु ों का एक सेट दिया
जाएगा। सभी समहू दिए गए बिंदओ ु ं
पर चर्चा करें गे और आपसी सहमति
वाले उत्तरों को प्रस्तुति के उद्शदे ्य से
चार्ट पेपर पर अंकित करें गे या स्लाइड
शो तैयार करें गे। इस चर्चा के लिए 30
मिनट का समय दिया जाएगा। इस
गतिविधि का उद्देश्य है—प्रतिभागियों
में कला में मलू ्यांकन संबंधी मौलिक
समझ विकसित हो सके । समहू चर्चा
के उपरांत प्रत्येक समहू अपने विचारों कला-आधारित मलू ्यांकन हेतु गतिविधियों को अंतिम
पर आधारित प्रस्तुति बनाएँगे। रूप देने के लिए समूह चर्चा करते मास्‍टर ट्रेनर्स (ए.आई.एल., दिल्ली)
333
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

टिप्पणी
सगु मकर्ता समय को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक समहू को चर्चा के लिए के वल एक या दो प्रश्‍न दे सकते हैं।

चर्चा हेतु सझ
ु ाए गए बिंदु
• कला में मलू ्यांकन की क्यों आवश्यकता है?
• मलू ्यांकन और आकलन में क्या अंतर है?
• बच्चों के कला अनभव ु ों/गतिविधियों को किसके द्वारा मलू ्यांकित किया जाना चाहिए?
• हमें किस चीज़़ का मलू ्यांकन करना चाहिए—प्रतिफल (परिणाम) अथवा प्रक्रिया? क्यों?
• मलू ्यांकन के मानदंड क्या हैं?
• मलू ्यांकन के विभिन्न साधन क्या हैं?
• हमें बच्चों और अभिभावकों को मलू ्यांकन के बारे में कै से बताना चाहिए?
प्रस्तुति समाप्‍त होने के बाद सगु मकर्ता को समहू चर्चा में उभरे बिंदओ
ु ं और ‘अकसर पछू े जाने वाले
प्रश्‍नों’ (FAQs) में दी गई जानकारी का िनष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए सत्र का समापन करना चाहिए। सगु मकर्ता को
मलू ्यांकन सबं ंधी उत्तरों के लिए ‘अकसर पछू े जाने वाले प्रश्‍नों’ (FAQs) की मदद लेनी चाहिए।

40
गतिविधि 4 अनुमानित समय मिनट

अधिगम वक्ष

किसी भी प्रशिक्षण या टीम कार्य को सामहि ू क प्रयास से लाभ पहुचत ँ ा है। यह अभ्यास प्रतिभागियों
को दृश्य प्रारूप (visual form) में अपनी उपलब्धि और कौशल के साथ-साथ आशा और आकांक्षा
को कें द्रित करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। निरंतर पारस्परिक संवाद की क्षमता नवाचारी विचारों के
लिए जोश बनाए रखेगी। समहू में दसू रों से सीखने का अनभव त ु था समहू के अगं के रूप में मलू ्यांकन के
कौशलों को विकसित करना एक महत्वपर्ण ू अधिगम है और प्रक्रिया, प्रभाव तथा फ़ासलों को विविध
परिप्रेक्ष्यों में दख
े ना महत्वपर्ण य
ू ोगदान।

विधि
सगु मकर्ता, प्रतिभागियों को कमरे में उपलब्ध
सामग्री की सहायता से बड़े आकार के
अधिगम वृक्ष को बनाने हेतु कह सकते हैं।
अलग-अलग तैयार पत्तियों एवं फलों, जिन्हें
विभिन्न प्रतिभागियों ने बनाया है, के द्वारा
इसे बनाया जा सकता है। प्रतिभागियों से
उनकी उपलब्धियों और ज्ञान-परक अधिगम
मास्‍टर ट्रेनर्स के एक समूह द्वारा रचित
‘अधिगम वृक्ष’ (िदल्‍ली)

334
मॉड्यूल
कला में मलू ्यांकन

बिंदओ ु ं को वृक्ष की रंगीन पत्तियों एवं फलों पर लिखने के लिए कहा जाए, इसे आगे भी जारी रखें। प्रतिभागी एक
से अधिक पत्ते या फल लगाने हेतु स्वतंत्र हैं।
इसे और बेहतर बनाने हेत,ु प्रतिभागी अपने सझु ाव पत्तियों पर लिखकर पेड़ से गिरी पत्तियों की तरह चिपका
सकते हैं। यह वृक्ष के लिए कम्‍पोस्ट खाद की तरह काम करे गी, जिससे अगली बार इसकी वृद्धि और बेहतर ढंग
से हो सके । सगु मकर्ता, अधिगम वृक्ष बनाने में मलू ्यांकन के आनंदपर्ण
ू और सार्थक प्रकृ ति की ओर संकेत करते
हुए सत्र का समापन कर सकते हैं।
सत्र का समापन तालियों की गड़गड़ाहट के साथ हो। संभव है, इस गतिविधि के साथ ही प्रशिक्षण कार्यक्रम
परू ा हो जाए। इसके बाद समापन समारोह का आयोजन किया जा सकता है।

टिप्पणी

335
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

दूसरा भाग

‘अकसर पूछे जाने वाले प्रश्‍न’ (FAQs)


प्र.
1 मूल्यांकन क्या है?
मलू ्यांकन किसी चीज़ के मलू ्य निर्धारण की प्रक्रिया है। इसमें मलू ्यांकित की जाने वाली वस्तु या व्यक्‍ति को
मलू ्य प्रदान किया जा सकता है। इस प्रक्रिया द्वारा पता लगाया जा सकता है कि बच्चों के प्रदर्शन में किस
हद तक वांछित परिवर्तन हुआ। मलू ्यांकन की प्रक्रिया अत्यंत व्यापक है। बच्चों के प्रदर्शन के आकलन हेतु
विभिन्न तरीकों को अपनाने की आवश्यकता होती है। प्राथमिक स्तर पर पाठ के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर
शिक्षक स्वयं मलू ्यांकन के तरीके विकसित कर सकते हैं।

प्र.
2 आकलन क्या है?
मौलिक रूप से आकलन की प्रकृ ति विद्यार्थियों को सीखने में सहायता करते हुये सधु ार करने की है। आकलन
एक ऐसी निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो विद्यार्थियों के सीखने के वास्तविक लक्ष्यों को निर्धारित करने के
साथ-साथ कहाँ तक उनकी संप्राप्‍ति हुई, इसे भी मापती है। सतत् आकलन की स्थिति बच्चा और सगु मकर्ता,
दोनों को ही अधिगम पर चिंतन करने तथा उनकी बेहतरी हेतु कार्य करने का अवसर प्रदान करती है। रचनात्मक
सवु िधा के लिए आकलन प्रायः दो हिस्सों में बंटा होता है—योगात्मक आकलन और रचनात्‍मक आकलन।
• योगात्मक आकलन— यह आकलन सामान्यतः किसी परियोजना या पाठ्यक्रम की समाप्‍ति पर किया
जाता है। यह एक शैक्षिक व्यवस्था है जिसका उपयोग मखु ्यत: बच्चों को पाठ्यक्रम परू ा करने पर ग्रेड देने
के लिए किया जाता है। योगात्मक आकलन मलू ्यांकनात्मक होते हैं।
• रचनात्मक आकलन— यह सामान्यतः किसी पाठ्यक्रम या परियोजना संचालन के दौरान होता है। इसे
‘सचू नाप्रद आकलन’ भी कहा जाता है, जिसका उपयोग अधिगम को बढ़ावा देने में होता है। शैक्षिक
व्यवस्था में रचनात्‍मक आकलन शिक्षक, साथी या अधिगमकर्ता द्वारा किया जा सकता है। इसका उपयोग
बच्चों के काम पर प्रतिपष्‍टि द
ु ने े के लिए किया जाता है, न कि ग्रेडिंग के उद्देश्य से। रचनात्‍मक आकलन
नैदानिक होते हैं।

प्र.
3 आकलन और मूल्यांकन में क्या अंतर है?
आकलन का व्यापक लक्ष्य है—बच्चों के अधिगम को
बेहतर बनाना। आकलन बच्चों की प्रगति तथा अपेक्षित
पाठ्यचर्या की संप्राप्‍ति के संबंध में बच्चा, माता–पिता,
अभिभावक और शिक्षक को मान्य सचू ना प्रदान करता है।
आकलन को हमेशा बच्चों की उपलब्धि में बेहतरी संबंधी
सचू ना के रूप में दख े ना चाहिए। आकलन उपलब्धि के स्तर
और पाठ्यचर्या के उन लक्ष्यों के लिए विकसित मानकों
पर आधारित होता है, जो उस ग्रेड के लिए उपयक्ु ‍त हों।
आकलन और मलू ्यांकन मापते हैं कि अधिगम और उसके
उद्देश्यों की प्राप्‍ति हुई या नहीं। इनसे अलग आकलन और
मलू ्यांकन को प्रक्रिया (आकलन) और उत्पाद (मलू ्यांकन)
कला अनभु व की प्रक्रिया की जांच
के रूप में भी देखा जा सकता है।
(ए.आई.एल. कक्षा)

336
मॉड्यूल
कला में मलू ्यांकन
आकलन हेतु एक नििश्‍चत समय में बच्चों के प्रदर्शन से सबं ंधित साक्ष्यों को इकट्ठा करने की ज़रूरत होती
है, जिससे उनके अधिगम और समझ को मापा जाए। अधिगम से संबंधित साक्ष्य संवाद, जर्नल, लिखित कार्य,
पोर्टफ़ोलियो और दिए गए कार्य के साथ-साथ और कई दसू रे कार्य हो सकते हैं।
दसू री तरफ़, मलू ्यांकन तब होता है, जब किसी दिए गए कार्य, जाँच, क्विज़, पाठ या अधिगम गतिविधि
की समाप्‍ति के उपरांत अक ं प्रदान करना नियत हो। शिक्षक आकलन और मलू ्यांकन दोनों का प्रभावी तरीके
से दनि
ै क उपयोग करें गे ताकि विद्यार्थियों का अधिगम बेहतर हो तथा यथा आवश्यक उनका मार्गदर्शन हो सके ।

प्र.
4 हम बच्चों का मूल्यांकन या आकलन क्यों करते हैं?
मलू ्यांकन करने का एक कारण, अपने द्वारा किए जाने वाले कार्यों को और बेहतर बनाना है। हम जो भी करते
हैं और जो हमें प्रभावित करता है, सभी का मलू ्यांकन होना चाहिए। हम अपने कार्य के तरीकों, दसू रों की
उपलब्धियों, अपने जीवन में इस्तेमाल होने वाली चीज़़ों, अपने भोजन आदि सभी का मलू ्यांकन करते हैं। हम
जो भी करते हैं, उसका मलू ्यांकन होता है। आरंभिक प्राथमिक कक्षाओ ं (कक्षा 1 तथा 2) में न के वल बच्चों
की प्रगति का मलू ्यांकन आवश्यक है, बल्कि कला से संबंधित विभिन्न गतिविधियों में उनकी खश ु ी और
जड़ु ाव के बोध का भी मलू ्यांकन आवश्यक है। कला के विविध तरीकों और सीखने के प्रति उनका नज़रिया
और समझ, जो बाद की प्राथमिक कक्षाओ ं (कक्षा 3, 4 तथा 5) में आते हैं, महत्वपर्ण ू हैं। मलू ्यांकन शिक्षण
अधिगम प्रक्रिया का अभिन्न अगं है।
हम सभी बच्चों के बेहतर अधिगम और गणु वत्तापर्ण ू शिक्षा से संबद्ध हैं। संभवतः यही कारण है कि
प्राथमिक कक्षाओ ं के आकलन में विविधता होती है। आकलन करने के कुछ महत्वपर्ण ू कारण निम्नवत् हैं—
• एक नििश्‍चत अंतराल के बाद कला संबंधी गतिविधियों में बच्चों का सीखना कै से हुआ तथा उनके
व्यक्‍तित्व में कौन-से परिवर्तन आए, का पता लगाना।
• किसी विशेष बच्चे की विशेष आवश्यकता और ज़रूरतों की पहचान।
• सीखने-सिखाने के लिए बेहतर मौके की योजना बनाना।
• बच्चे क्या कर सकते हैं और क्या नहीं? उनमें उनकी रुचि-अरुचि को समझना तथा उनकी मदद करना।
• पता लगाना कि किस हद तक पाठ्यचर्या संबंधी अपेक्षाएँ और पाठ्यक्रम के उद्देश्य परू े हो चक ु े हैं।
• कक्षा-कक्ष में सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को बेहतर बनाना।
• बच्चों की प्रगति संबंधी साक्ष्य जटु ाना, जिसे अभिभावकों को प्रेषित किया जा सके ।
• बच्चों में आकलन (वर्तमान परीक्षा) के डर को समाप्‍त करना तथा सभी को निष्पक्षता से अपना मलू ्यांकन
करने हेतु प्रोत्साहित करना।
• प्रत्येक बच्चे के अधिगम और
विकास में मदद देना।
• बच्चों में आत्मविश्‍वास और
उपलब्धि को प्रोत्साहित करना।

प्र.
5 सतत् और समग्र मूल्यांकन क्या है?
सतत् से तात्पर्य आकलन में निरंतरता से
है। इसका संबंध मलू ्यांकन के लगातार
और बार-बार होने से है। जब कोई पाठ
या परियोजना संचालित हो रही हो तो
आकलन लगातार तथा क्रमबद्ध ढंग से
प्रक्रिया के आकलन हेतु मार्गदर्शन करतीं शिक्षिका
होता है, जिससे विद्यार्थियों का अधिगम बेहतर हो सके ।

337
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
समग्र से तात्पर्य सत्र के अंत में बच्चों द्वारा किए गए कार्य को अंतिम ग्रेड प्रदान करना है। इसका सबं ंध
बच्चों के व्यक्‍तित्व से जड़ु े सीखने के सभी क्षेत्रों (domain), यथा—मनोगत्यात्मक, संज्ञानात्मक, सामाजिक
और भावात्मक आकलन से भी है। इसके अंतर्गत व्यक्‍तिगत-सामाजिक गणु , रुचि, मनोभाव और मलू ्यों
सहित, पाठ्य-सहगामी एवं पाठ्यचर्यात्मक दोनों क्षेत्र सम्मिलित होते हैं।
सतत् और समग्र मलू ्‍यांकन विद्यार्थियों के वृद्धि और विकास से जुड़े सभी पहलुओ ं का लगातार
आकलन है।

प्र.
6 कला शिक्षा में बच्चों का आकलन हमें कब करना चाहिए?
चकि ँू कला शिक्षा गतिविधियों पर आधारित है, जो शिक्षकों की उपस्थिति में विद्यालय में संचालित होती
है, अतः मलू ्यांकन निरंतर होना चाहिए। शिक्षक बच्चों की सभी गतिविधियों का रिकॉर्ड रख सकते हैं तथा
समय-समय पर बच्चों की प्रगति या उतार की स्थिति से उनको तथा उनके अभिभावकों को अवगत करा सकते
हैं। इस स्तर पर मलू ्यांकन योजना लचीली होनी चाहिए। विद्यालय को ग्रेड या अक ं प्रदान करने पर ज़ोर नहीं
देना चाहिए। आकलन परिणामों को सकारात्मक ढंग से सचित किय ू ा जाना अधिक उपयक्ु ‍त होगा।
बच्चों के अधिगम का कब और कै से आकलन किया जाए? किन चीज़ों के आकलन की आवश्यकता
है? ये सभी महत्वपर्ण प्रश्‍न
ू हैं, जिनसे हम सभी का संबंध रहता है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के साथ-साथ
अधिगम परिणामों का मलू ्यांकन लगातार होता रहता है। समग्र मलू ्यांकन हेतु अधिगम के सभी पहलओ ु ं को
पर्याप्‍त महत्व देना चाहिए। हालाँकि, तरीके और साधन अलग-अलग हो सकते हैं। यद्यपि शिक्षक बच्चों
की प्रगति का निरंतर अवलोकन करते रहते हैं, फिर भी आकलन हेतु आवर्ती रूप से एक नियत अंतराल का
निर्धारण ज़रूरी है। यह प्रत्येक बच्चे के प्रोफ़ाइल को संधारित करने पर भी लागू होगा। इसकी आवश्यकता
बच्चों के अधिगम के संबंध में प्रतिपष्‍टि
ु पाने, योजना बनाने और उसके कार्यान्वयन के उपायों को बेहतर करने
हेतु आवश्यक रणनीतियों के निर्धारण हेतु होती है। अत: मलू ्यांकन िनम्नलिखित आधार पर हो सकता है—
प्रतिदिन—बच्चों के साथ अंतःक्रिया और उनका सतत् आकलन करना।
आवधिक—तीन या चार महीने में एक बार, शिक्षक प्राप्‍त सचू नाओ ं की जाँच एवं तदनरू ु प विचार दे
सकते हैं।

प्र.
7 मूल्यांकन के क्रम में हमें प्रक्रिया या उत्पाद, किस पर अधिक ध्यान देना चाहिए?
इस स्तर पर प्रतिफल या उत्पाद की तल ु ना में प्रक्रिया अधिक महत्वपर्ण
ू है।
कलाकृ तियों का निर्माण और उससे सबं ंधित गतिविधियाँ आनंद के लिए
अधिक होनी चाहिए, न कि उनमें निपणु ता या बंध-े बँधाये ढर्रे पर
अधिक ज़ोर देना चाहिए।
आरंभिक प्राथमिक कक्षाओ ं (कक्षा 1 एवं 2) में कला
गतिविधियों में बच्चों की सहभागिता एक समेकित अनभव ु
है। अतः आकलन भी समग्रता में होना चाहिए। इसके लिए बच्चों
के अधिगम को समझने हेतु कला सबं ंधी निर्माण (art making)
की प्रक्रिया का आकलन ज़रूरी है। इस अवस्था में, प्रतिफल के
रूप में बच्चों ने क्या हासिल किया, इसकी तल ु ना में उनकी पाँचों
ज्ञानेंद्रियाँ और उनकी प्रतिक्रिया महत्वपर्ण
ू है। वस्तुतः, कौशलों के
विकास के लिए यह उपयक्ु ‍त अवस्था नहीं है, बल्कि इस अवस्था में
बच्चों के बहु-संवदे ी विकास पर ज़ोर देना चाहिए।
वस्‍तुअों की रचना द्वारा बहु-संवेदी अनभु व
338
मॉड्यूल
कला में मलू ्यांकन
उच्च प्राथमिक कक्षाओ ं में अधिगम धीरे -धीरे संवेदी अधिगम से कौशल-आधारित अधिगम की ओर
बढ़ता है। अतः विशेषकर प्राथमिक कक्षाओ ं में उन प्रक्रियाओ ं का मलू ्यांकन महत्वपर्ण ू है जिनसे होकर बच्चे
गजु रते हैं। दसू री तरफ़, प्रतिफलों का आकलन सीखे गए कौशलों के संबंध में अंतर्दृष्‍टि प्रदान करता है तथा यह
बच्चों के लिए स्वयं अपने प्रदर्शन को जानने के दृष्‍टिकोण से महत्वपर्ण
ू हो जाता है।
प्र.
8 कला सबं ंधी गतिविधियों में बच्चों के प्रदर्शन का आकलन हमें कै से करना चाहिए?
कला के आकलन के क्रम में शिक्षकों को तीन प्रारूपों पर ध्यान देना चाहिए—मलू ्यांकन के आधार, तरीके
और उपकरण।
मलू ्यांकन का आधार पाठ के लिए निर्धारित उद्देश्य ही होने चाहिए। अगर गतिविधि का उद्देश्य बेकार
पड़ी सामग्री से जानवर बनाना है, तो इसके लिए आधार होना चाहिए—क्या बच्चा विभिन्न प्रकार की बेकार
सामग्री को खोज सकता है? कितने रचनात्मक ढंग से उन सबको एक साथ रख सकता है? बच्चे मर्ति ू की
स्थिरता बनाए रखने के लिए किस तरह के समस्या समाधान कौशलों का उपयोग करते हैं? क्या उनके द्वारा
बनाए गए जानवर में उनका अवलोकन कौशल दिखता है? क्या मौलिक विचारों का प्रयोग किया गया? समहू
कार्यों में मलू ्यांकन का एक अतिरिक्‍त आधार यह हो सकता है कि बच्चा समहू में कितनी अच्छी तरह कार्य
करता है और समहू कार्य में उसका कितना योगदान है?
मलू ्यांकन के लिए उपयोग की जाने वाली विधि ‘सतत् और समग्र मलू ्यांकन’ के साथ ‘रचनात्मक या
योगात्मक’ हो सकती है।
उपकरण वे विभिन्न माध्यम हैं जिनके द्वारा शिक्षक यह पता लगाते हैं कि मलू ्यांकन के निर्धारित मानदंड
किस हद तक परू े हुए। बच्चों का अवलोकन, साक्षात्कार या अंतःक्रिया, चिंतनपर्ण व ू िचार, पत्रिका संबंधी
कार्य या ऐसे कुछ अन्य कार्य जिसे शिक्षक मलू ्यांकन हेतु उपयक्ु ‍त समझें, आकलन के उपकरण हो सकते हैं ।

प्र.
9 समूह-गतिविधियों में बच्चों का आकलन कै से करना चाहिए?
समहू -गतिविधि में किसी बच्चे के मलू ्यांकन हेतु कुछ विशेष गणु , जो समहू कार्य हेतु महत्वपर्ण
ू होते हैं, ध्यान
में रखे जा सकते हैं। इन गणु ों का उपयोग करते हुए शिक्षक आगे दी गई तालिका के अनसु ार एक संकेतक बना
सकते हैं। किसी बच्चे को किसी विशेष गणु
के प्रदर्शन हेतु संकेतक खानों में एक, दो या
तीन दे सकते हैं। इस तरह से शिक्षक समहू
के प्रत्येक सदस्य का वस्तुनिष्‍ठ मलू ्यांकन
कर पाएँगे। यहाँ दिए गए गणु संकेत मात्र
हैं। शिक्षक कार्य की प्रकृ ति के अनसु ार
मलू ्यांकन हेतु गणु ों का चनु ाव कर
संकेतक का निर्माण कर सकते हैं।
स्टार के स्थान पर गणु ात्मक विवरण
भी हो सकते हैं।

समूह में संयोजन रचना करते बच्‍चे

339
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

गुण 3 स्टार 2 स्टार 1 स्टार स्टार/अंक


जि़म्मेदारी कार्य की संपर्णू कभी-कभी जि़म्मेदारी जि़म्मेदारी नहीं
लेता है जि़म्मेदारी लेता है। लेता है। लेता है।
टीम भावना सभी सदस्यों के मज़बत ू और सभी सदस्यों के समहू के अन्य सदस्यों
कमज़ोर पक्षों का ध्यान रखते साथ कार्य करता है। के साथ बेहतर ढंग से
हुए कार्य करता है। कार्य नहीं करता है।
नेततृ ्व परू ी टीम का अच्छी तरह कभी-कभी नेततृ ्व नेततृ ्व कौशल का
क्षमता नेततृ ्व करता है। अपनी टीम के करता है। प्रदर्शन नहीं
सदस्यों को प्रेरित करता है। करता है ।
उत्कृ ष्‍टता हमेशा उत्कृ ष्‍टता के अपने कार्य को अच्छी कार्य की गणु वत्ता से कोई
के लिए प्रयास लिए प्रयास करता है। तरह से करता है। मतलब नहीं रखता है।
सहयोग बहुत ही सहयोगी एवं कुछ सदस्यों का किसी भी सदस्य के साथ
मददगार है। सहयोग करता है। सहयोग नहीं करता है।
कुल स्टार/अंक

प्र.

10 मूल्यांकन हेतु उपकरण और तकनीक क्या होनी चाहिए?
अवलोकन, मौखिक प्रश्‍न, अंतःक्रिया और साक्षात्कार, प्रत्येक बच्चे के प्रदर्शन से संबंधित डायरी, प्रस्तुति
और प्रदर्शन आदि आकलन के कुछ तरीके हैं।
• अवलोकन— इसमें कार्य करते हुए बच्चे का अवलोकन करते हैं, जिससे उसकी कार्य संबंधी आदतों,
सहभागिता, प्रगति आदि से संबंधित आवश्यक सचू नाएँ प्राप्‍त की जा सकें ।
लाभ— आकलन का यह उपयोगी तरीका है, क्योंकि इसमें बच्चों को पता भी नहीं चलता है कि उनका
आकलन हो रहा है। यह बच्चों के सोचने के तरीके , उनके लगातार काम करने की क्षमता और अपने मित्रों
के साथ अंतःक्रिया को समझने का उपयोगी तरीका है। इससे शिक्षक बच्चों को तरु ंत बेहतरी के लिए मदद
देकर उनके कार्यों को सगु म बना सकते हैं। इस तरह का मलू ्यांकन आवश्यकता के आधार पर किया जा
सकता है और ज़रूरी नहीं कि इसमें परू ी कक्षा को शामिल किया जाए। यह अलग-अलग बच्चों के लिए
अलग-अलग हो सकता है।
िस्‍थतियाँ, जब यह प्रभावी हो सकता है— शिक्षक द्वारा किसी पाठ के उपरांत जब बच्चे किसी
परियोजना पर अके ले या समहू में कार्य कर रहे हों तो अवलोकन मलू ्यांकन का एक प्रभावी तरीका है।
अवलोकन के माध्यम से किसी भी प्रकार की कला गतिविधि का आकलन किया जा सकता है।
• परियोजना या छोटी गतिविधि— इकाई की समाप्‍ति के उपरांत परियोजना कार्य या छोटी गतिविधि दी
जा सकती है। परियोजना कार्य ऐसा हो सकता है, जिसमें परू ी इकाई की समझ शामिल हो।
लाभ— बच्चों ने परू ी इकाई को कितने बेहतर ढंग से सीखा है, इसका आकलन करने का यह उपयोगी
तरीका है। यह सीखे हुए तथ्यों और वास्तविक स्थिति में उनके अनप्रय
ु ोग का आकलन करता है। यह परू े
अधिगम की पनु रावृि� में मदद करता है।
स्थितियाँ, जब यह प्रभावी हो सकता है— यह प्रक्रिया तभी प्रभावी हो सकती है, जब पढ़ाए गए सभी
पाठ परस्पर संबंधित हों तथा अधिगम पर्वू -ज्ञान पर आधारित हो। परियोजना के माध्यम से शिक्षक को यह
पता चल जाता है कि बच्चा अवधारणा को कितना समझ पाया।
340
मॉड्यूल
कला में मलू ्यांकन
• पोर्टफ़ोलियो— यह एक लंबी अवधि तक किए गए कार्यों का सग्रं ह होता
है। यह अवधि एक सत्र या एक साल की हो सकती है।
लाभ— इस तरह का आकलन बच्चों के प्रदर्शन का संचयी अभिलेख
प्रस्तुत करता है। इससे पता चलता है कि परू ी अवधि में बच्चे की प्रगति
कै सी रही, कौन-से पक्ष लगातार कमज़ोर रहे, जिनमें सधु ार करने की
आवश्यकता है। इससे शिक्षक को पता चलता है कि बच्चे ज्ञान का
सृजन कै से करते हैं। इससे शिक्षक को अपनी आगे की कार्ययोजना
बनाने में मदद मिल सकती है।
स्थितियाँ, जिनमें यह प्रभावी हो सकता है— यह तरीका
वार्षिक या सत्र की समाप्‍ति पर आकलन हेतु उपयोग में लाया
जा सकता है, जब शिक्षकों को सपं र्ण प्रदर्श
ू न का आकलन
करना और ग्रेड प्रदान करना हो।
• जाँच पत्रक (Checklist)— जाँच-पत्रक किसी विशेष पोर्टफ़ोलियो की मदद से प्रत्येक बच्चे के सीखने
और विकास के क्रम को समझती हुइ� शिक्षिका
क्रिया के अभिलेखन का व्यवस्थित तरीका है। इसमें किसी
दिए गए कार्य के किसी विशेष पहलू पर ध्यान के न्द्रित किया जा सकता है। जाँच-पत्रक उन मानकों की सचू ी
होते हैं, जो शिक्षक के विचार से किसी विशेष समय में बच्चों के अवलोकन हेतु महत्वपर्ण ू होते हैं।
लाभ— यह जल्दी और आसानी से क्रियान्वित होता है। इसमें किसी विशेष उद्देश्य के संबंध में विशिष्‍ट
सचू ना मिलती है।
स्थितियाँ, जब यह प्रभावी हो सकता है— यह उपकरण या तो स्व-मलू ्यांकन हेतु उपयोग में लाया
जाता है या तब, जब शिक्षक उद्देश्यों का निर्धारण कर उन्हें वस्तुनिष्‍ठ तरीके से आकलित करना चाहते हैं।
• मूल्यांकन स्के ल (Rating Scale)— इसका भी उपयोग उसी तरह होता है, जिस तरह अवलोकन
जाँच-पत्रक का होता है। यह किसी विशेष ज्ञान के होने या न होने की स्थिति का अभिलेखन करता है। इसे
किसी विशेष मानदंड के आलोक में बच्चों के गणु ों का आकलन और अभिलेखन करने में उपयोग िकया
जाता है। किसी कार्य के संपर्ण
ू आकलन हेतु एक ही व्यापक मलू ्यांकन स्के ल की ज़रूरत होती है।
लाभ— इसमें आप एक ही मलू ्यांकन से प्रगति के विविध पहलओ ु ं का आकलन कर सकते हैं। यह
व्यक्‍तिगत एवं समहू कार्य, दोनों ही स्थितियों में आकलन हेतु उपयोगी है।
स्थितियाँ, जिनमें यह प्रभावी हो सकता है— यह उपकरण बच्चों के संपर्ण प्रदर्श ू न के साथ-साथ दिए
गए कार्य (assignment) के विविध पहलओ ु ं के संदर्भ में किए गए प्रयास को समझने का प्रभावी तरीका
है। इससे बच्चों के कमज़ोर और मज़बत ू पक्षों के बारे में शिक्षक को अंतर्दृष्‍टि मिलती है। जब किसी दिए
गए कार्य (assignment) में चिंतन, विश्‍लेषण, सृजन आदि के विविध स्तर होते हैं, तो वहाँ आकलन का
यह तरीका और भी प्रभावी हो जाता है।
• एनेक्डोटल रिकॉर्ड— एनेक्डोटल रिकॉर्ड से तात्पर्य है, शिक्षक द्वारा दिन-प्रतिदिन के आधार पर किसी
बच्चे की प्रगति से संबंधित लिखित विवरण काे संजोना (संधारण)। यह बच्चे का अवलोकनात्मक, किसी
विशिष्‍ट घटना के संदर्भ में वर्णनात्मक रिकॉर्ड प्रदान करता है।
लाभ— इससे विभिन्न विकासात्मक क्षेत्रों के बारे में पर्याप्‍त सचू ना मिलती है। यह बच्चे के सामाजिक
और सांवेगिक विकास, उसके सबल और निर्बल पक्षों की जानकारी देता है।
स्थितियाँ, जब यह प्रभावी हो सकता है— यह उपकरण बच्चे के परू े साल की प्रगति का प्रतिवेदन
बनाने में उपयोगी हो सकता है। वर्णनात्मक रिकॉर्ड से बच्चों की रुचि, इच्छा, संबंध आदि के बारे में स्पष्‍ट
जानकारी मिलती है।
341
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
• प्रदर्श (Display)— किसी विशेष परियोजना में
बच्चों द्वारा किए हुए कार्यों को प्रदर्शित कर सकते हैं।
यह दीवारों पर टांगे या मेज़ पर रखे जा सकते हैं।
लाभ— यह उपकरण बच्चों को अपने कार्यों के
प्रदर्शन की स्वतंत्रता देता है, जो सनििश्‍चत
ु करता
है कि उनका कार्य बेहतर है। इससे बच्चों में अपने
किए कार्य के प्रति गर्व की अनभु ति
ू होती है। यह
इस दृष्‍टिकोण से भी लाभप्रद है कि परू ी कक्षा को
एक-दसू रे के प्रदर्शों से सीखने का मौका मिलता है।
इस तरह अधिगम को विस्तार मिलता है।
बच्‍चे अपनी रचनाअों को देखते एवं सराहते हुए
स्थितियाँ, जब यह प्रभावी हो सकता है— यह
समहू कार्यों में प्रभावी हो सकता है या तब, जब प्रत्येक समहू को पाठ के अलग-अलग पहलओ ु ं से संबंधित
कार्य दिया गया हो जिसे बाद में कक्षा के साथ साझा किया जा सके । इस तरह के कार्यों का आकलन
सहपाठी मलू ्यांकन के द्वारा किया जा सकता है।
प्र.
11 रेटिंग स्के ल क्या है?
रे टिंग स्के ल निर्धारित मानकों के स्तर के आकलन हेत प्रय ु क्ु ‍त होता है। इसमें 3–9 तक अक ं हो सकते हैं। इसमें
आकलन अधिक वस्तुनिष्‍ठ और पारदर्शी हो सके गा।
गणु वत्ता और स्तर को दर्शाने के िलए रे टिंग स्के ल अक ं ों पर, मौखिक व ग्राफि़क माध्यमों पर अधिक
िनर्भर करता है। यह विशेष रूप से समस्या-समाधान प्रक्रिया, कौशल स्तर पर मलू ्यांकन अभिवृि�, प्रेरणा आदि
संबंधी जाँच हेतु उपयक्ु ‍त है। शिक्षक कला के जिन पक्षों का आकलन करना चाहते हैं, उन पर आधारित रे टिंग
स्के ल विकसित कर सकते हैं।
मलू ्यांकन हेतु सामान्यतः प्रयक्ु ‍त किए जाने वाले शब्द
उत्तम बहुत अच्छा अच्छा
A B C

प्र.
12 मूल्यांकन की प्रक्रिया में बच्चों के साथ अंतःक्रिया का क्या महत्व है?
विद्यार्थियों के साथ अंतःक्रिया उनकी समझ, अनभु ति ू , अभिवृि�, रुचि, प्रेरणा और चिंतन प्रक्रिया के बारे
में अन्तःदृष्‍टि प्रदान करती है, जैसे—किसी बच्चे से यह पछू ना कि अपनी कलाकृ ति में विभिन्न समहू ों की
वस्तुओ ं को वह कै से व्यवस्थित करें गे? या विभिन्न सामग्री, यथा—मिट्टी, लकड़ी, कागज़, आदि को मिश्रित
करने का क्या कारण है? इससे बच्चों के अधिगम विशेष और संप्रेषण की शैली का पता चलेगा। अंतःक्रिया
के माध्यम से शिक्षक बच्चों की चिंतन प्रक्रिया के बारे में जान पाएँगे जिससे वे बच्चों के कार्यों का मलू ्यांकन
बेहतर ढंग से कर सकें गे।

प्र.
13 बच्चों के कार्यों की प्रगति की रिपोर्ट कै से करें?
ऊपर वर्णित आकलन के विभिन्न तरीकों का उपयोग करते हुए अवलोकन से संबंधित आक ं ड़े इकट्ठा और
अभिलिखित किए जा सकते हैं।
कभी-कभी बच्चों द्वारा निष्पादित कार्यों का आकलन करते हुए हम आलोचनात्मक रुख अपनाकर
टिप्पणी करते हैं, जो उनको आहत कर सकता है। अतः अभ्युक्‍ति (remark) या टिप्पणी देते समय हमें बहुत
सावधानी बरतनी चाहिए। आइए, अब हम देखते हैं कि हमें उन्हें क्या कहना और क्या नहीं कहना चाहिए।
342
मॉड्यूल
कला में मलू ्यांकन

क्या करें क्या न करें


बच्चों की व्यक्‍तिगत प्रगति का आकलन करें । एक बच्चे के कार्य की तल ु ना दसू रे बच्चे के कार्य से
न करें ।
कला-संबंधी कार्यों को करते समय बच्चों को लापरवाही से कोई टिप्पणी न करें और न ही उनका
गणु ात्मक सहयोग (input) दीजिए। मज़ाक उड़ाएँ।
बच्चा जो कार्य कर रहा हो, प्रतिपष्‍टि
ु उसी पर दें। अनावश्यक सराहना न करें , इससे दसू रे बच्चे
हतोत्साहित हो सकते हैं।
सारांशित (summative) रिपोर्ट में गणु ात्मक ‘अच्छा’ या ‘बरु ा’ जैसे शब्दों से बचें। ये शब्द बच्चों
सचू नाओ ं का प्रयोग करें । के कार्यों को परू ी तरह से नहीं बताते।
बच्चों के कार्यों को तब तक सरु क्षित रखें, जब तक बच्चों के कार्यों को नकारें नहीं।
आकलन की प्रक्रिया परू ी न हो जाए।
बच्चों के कार्यों का वर्णन उन्हीं के शब्दों में करें । व्याख्यात्मक प्रक्रिया में अपनी सीमा को समझते हुए
निजी विचारों को थोपने से बचें।
बच्चे, अभिभावक और अन्य लोगों को आकलन के कला, ससं ्कृति-आधारित गतिविधि है। अतः सचू नाओ ं
परिणामों से अवगत कराएँ। को छुपाएँ नहीं। इससे शिक्षक को बच्चों के कार्यों
को जानने की गहरी समझ मिलेगी।

प्र.
14 बच्चों को हम आकलन के बारे में कै से बताएँ?
तीन या चार महीने की अवधि में बच्चे पर्याप्‍त कला-संबंधी कार्य परू ा कर लेते हैं। अच्छा रहेगा यदि शिक्षक/
कला कार्यों संबंधी सचू नाओ ं व साक्ष्यों को एकत्र कर उनको गणु ात्मक रूप से रिकाॅर्ड कार्ड में उल्लिखित करें ।
अगर बच्चे को एक से अधिक शिक्षक पढ़ा रहे हों तो बच्चों के अधिगम के बारे में सभी शिक्षकों की सचू नाएँ
सरल और सहज तरीके से दिखनी चाहिए। कला के अन्य विषयों के साथ समेकन की स्थिति में बच्चों के
अधिगम की प्रगति का प्रदर्शन के वल उनके द्वारा कला सामग्री तथा माध्यमों की उपयोगिता तक ही सीमित
नहीं होना चाहिए, बल्कि इस तथ्य का भी ध्यान रखना चाहिए कि वे किस प्रकार भाषा के माध्यम से अपने
विचारों को संजोते हैं, अक ं ों का हेर-फे र करते हैं, किस प्रकार कक्षाओ ं म सि
ें खाई गयी गतिविधियों और विचारों
में संबंध बना पाते हैं तथा किस प्रकार उन
विचारों से अपने वास्तविक जीवन में सामना
कर पाते हैं।
शिक्षक बच्चों को प्रतिपष्‍टि द
ु े सकते हैं
कि वे किस काम को बेहतर ढंग से कर पाएँ
हैं और भविष्य में किस पर और कार्य करने
की ज़रूरत है। हालाँकि प्रतिपष्‍टि ु संक्षिप्‍त
होनी चाहिए जिससे बच्चे स्पष्‍टता से समझ
सकें कि उन्हें किन क्षेत्रों में अधिक ध्यान देने
और सधु ार करने की आवश्यकता है।
ए.आई.एल. कक्षा में गतिविधि के आकलन की
प्रक्रिया की झलक
343
मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए
उदाहरण 1—
अगर शिक्षक यह पाते हैं कि कोई बच्चा परू े सत्र में किसी विशेष पैटर्न को ही बार-बार दोहराता है, तो शिक्षक
बच्चे के बनाए 10–20 चित्रों को प्रदर्शित कर उससे आलोचनात्मक टिप्पणी देने हेतु कह सकते हैं तथा निम्न
प्रश्‍न पछू सकते हैं—
• इन चित्रों में आपको सबसे अच्छा क्या लगता है?
• इसके किस भाग पर आप और काम करना पसंद करें गे?
• अगर आपको और भी कुछ चित्र बनाने का मौका मिले तो क्या आप इन चित्रों की कुछ चीज़ों को उनमें
सम्मिलित करना चाहेंगे?
• क्या आपको लगता है कि आपने अलग-अलग सामग्री का इस्तेमाल किया होता तो आप अपने विचारों
को और बेहतर ढंग से व्यक्‍त कर सकते थे?
उदाहरण 2—
शिक्षक कक्षा 3 के किसी बच्चे को देखते हैं कि वह अपनी किताब या अख़बार से चित्रों की नकल कर रहा
है या कुछ चित्रों, यथा—हनमु ान, गणेश, मिकी माउस या किसी प्राकृ तिक दृश्य को बार-बार बना रहा है, तो
वे बच्चे को अपना पोर्टफ़ोलियो देखने को कहते हैं। बाद में कुछ अन्य बच्चों का, जिन्होंने विभिन्न सामग्री के
साथ कला संबंधी प्रयोग किए हैं, का पोर्टफ़ोलियो देखने को कहते हैं। फिर उससे निम्न प्रश्‍न करते हैं—
• “आपके द्वारा बनाए गए चित्रों में सबसे ज़्यादा आकर्षक क्या है?”
• “क्या ये चित्र आपकी अपनी कल्पना पर आधारित हैं?”
• “मझु े पता है कि कुछ ऐसी चीज़ें हैं जिनके बारे में आपकी धारणा मज़बत ू है और आप अपने विचारों को
अलग तरह से व्यक्‍त करते हैं। आप एक समृद्ध दृश्य अनभव ु संबंधी कौशल रखते हैं। आप चाहते होंगे
कि आपका व्यक्‍तित्व आपकी कलाकृ तियों के माध्यम से उभरकर सामने आए। आपके विचार, सोच,
समझ, अनभव ु आदि आपके द्वारा निर्मित कलाकृ तियों में
नए आयाम जोड़ेंगे।”
• “आइए, उन सभी रोचक चीज़ों की एक सचू ी बनाएँ,
जिन्हें आप पसंद करते हैं (बच्चे
की सहायता से शिक्षक सचू ी
बनाएँगे)।”
• “क्या आप उन चीज़ों को इंगित
कर सकते हैं, जिन पर आप
आने वाले दिनों में काम करना
चाहते हैं?”
• “आप किन सामग्रियों का
इस्तेमाल करें गे?”
उल्लिखित उदाहरण उन कला समेकित कक्षा में बच्चों को स्व-मलू ्यांकन के
तरीकों के बारे में बताते हैं जिनके द्वारा लिए प्रेरित करते हुए
बच्चों से उनके कार्यों के बारे में संवाद स्थापित किया जा सकता है। ये सिर्फ़ उदाहरण मात्र हैं। आप गतिविधि
के प्रकार और कक्षा में बच्चों के समहू के आधार पर अपने तरीके विकसित कर सकते हैं।
बच्चों की प्रगति पर प्रतिपष्‍टि द
ु ने े का सबसे अच्छा तरीका है िक दो या तीन महीने में एक बार बच्चों द्वारा
बनाई गयी कलाकृ तियों की लघ प्रदर्शनिय
ु ों का आयोजन कक्षा या विद्यालय में किया जाए।
(सगु मकर्ता हेतु नोट— मलू ्यांकन पर और अधिक जानकारी हेतु कृ पया रा.शै.अ.प्र.प. से प्रकाशित ‘कला
शिक्षा—कक्षा 1–5 के लिए आकलन स्रोत पस्ति ु का’ का अवलोकन करें ।)
344
मॉड्यूल
कला में मलू ्यांकन

सदं र्भ
प्रसाद, डी. 1998. आर्ट, द बेसिस ऑफ़ एजक ु े शन. नेशनल बक ु ट्रस्ट, नयी िदल्‍ली.
राष्‍ट्रीय शैिक्षक अनसु ंधान और प्रशिक्षण परिषद.् 2008. सोर्स बकु ऑन असेसमेंट फॉर क्लासेज 1–5 — आट्सर् एजक
ु े शन.
रा.शै.अ.प्र.प., नयी िदल्‍ली.
लॉएनफे ल्ड, वी. एडं डब्ल्.यू लंबर्ट. 1987. क्रिएटिव एडं मेंटल ग्रोथ, मैकमिलन, लंदन.

टिप्पणी

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मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

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कला में मलू ्यांकन

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मॉड्यूल
कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज—प्राथमिक िशक्षकों के िलए

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Training Package on Art Training Package on Art
Education — Vol. I Education — Vol. II
` 475.00 / pp.172 ` 475.00 / pp.370
Code — 13125 Code — 13126
ISBN — 978-93-5007-333-9 ISBN — 978-93-5007-334-6

LoPN Hkkjr

Joy of Theatre संगीत


` 210.00 / pp.181 ` 180.00 / पृष्‍ठ  48
Code — 13171 कोड  — 13173
ISBN — 978-93-5292-017-4 ISBN — 978-93-5292-020-4

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कला शिक्षा पर प्रशिक्षण पैकेज
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कला शिक्षा
इस प्रशिक्षण पैकेज के साथ सात मॉड्यूल हैं,
जो सात वीडियो फिल्मों और
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प्राथमिक शिक्षकों के लिए


चार स्लाइड शो के साथ हैं। प्राथमिक शिक्षकों के लिए
खंड I
मॉड्यूल–1 आइस ब्रेकर
मॉड्यूल–2 विद्यालय की दैनिक गतिविधियों में कला
मॉड्यूल–3 विधियाँ और सामग्री

(खंड II)
खंड II
मॉड्यूल–4 कला और कला शिक्षा
मॉड्यूल–5 कला का अन्य विषयों के साथ समेकन
मॉड्यूल–6 शिक्षा में संग्रहालय की भमि
ू का
मॉड्यूल–7 कला में मलू ्यांकन
13183A
एन.सी.ई.आर.टी.

(खंड II)

ISBN 978-93-5292-107-2 (सेट)


978-93-5292-105-8 (खंड I)
978-93-5292-106-5 (खंड II)

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