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पाठ-6
महाकिव भास
सं ृ त के ाचीनतम ात नाटककार महाकिव भास ह। इनकी कृितयां आज ा ह। 1909 ◌इ0 सन
तक भास के नाटक सं ृ त सािह के िलए अप रिचत थे, और उनका या उनकी कितपय Ñितयों का
नामो ेख ही संस्Ñत वा³मय म जहां -तहां िमलता था। 1909 ◌इ0 सन म ी टी. गणपित शा ाी ने
ाावणकोर रा म भास के तेरह नाटकों को खोज िनकाला और तब से भास सं ृ त के थम
नाटककार बन गये। ी गणपित शा ाी के अनुसार इन नाटकों के रचियता वही महाकिव भास ह,
िजनका उ ेख कािलदास ने अपने नाटक 'मालिवकािगनिम ा म िकया है - िथतयशसां
भाससौिम किवपु ाादीनां बन्è◌ाानित कथं वतमान कवे: कािलदास कृतौ ब मान:।
ीगणपित शा ाी ारा खोजे गये ये तेरह नाटक एक किव की रचनाएं ह। इनम अनेक सा दे खे जाते
है । िफर दू सरे क◌इ माण भी इसी त को पु करते ह◌ै । इन सब नाटकों के रचियता 'भास को मानने
म आज िव ानों म को◌इ िववाद नहीं है । िन:स े ह इनका कता एक ही िकत है और वह है -महाकिव
भास।
नाटककार भास के िकतगत जीवन तथा िसथितकाल के िवषय म िव सनीय सूचना ब त कम िमलती
है । कािलदास, बाण, राजशेखर एवं अ किवयों ने भास के ित ब त अèि◌ाक आदर िकया है
और उ एक सुयो नाटककार माना है । नाटयशा ाीय और का शा ाीय ों म भास के नाटकों
के अनेक उदधरण िमलते ह। बाणभटट ने अपने हषच रत म िलखा है -
सू ाè◌ाारकृतार ैनाटकैब भूिमकै:।
सपताकैयशो लेभे भासो दे वकुलै रव।।
राजे र ने सूिकतमु ावली म भी िलखा है -
भासनाटकच े •िसमं े कै: ि े परीि तुम।
वासवद दाहको•भू पावक:।।
अथात 'भास के नाटकच का सव म नाटक वासवद है ; परी ा िकये जाने पर अिगन भी इसे न
जला सकी। इससे तीत होता है िक भास के अनेक नाटकों म से वासवद सवाèि◌ाक िस आ।
1.भास का िसथितकाल
भास के नाटकों से उनके िसथितकाल का लेशमा ा भी पता नहीं लगता है । तथािप अनेक बिहरं ग और
अ रं ग माणों के आè◌ाार पर भास को चौथी शता ी ◌इ0 पूव का माना जा सकता है । िव ानों ने भास
की ाचीनता को क◌इ आè◌ाारों पर िस िकया है -
1. भासनाटकच की सं ृ त तथा ाकृत भाषा पर èयान दे ने से इनके नाटकों की ाचीनता यंिस
होती है । िव ानों का कहना है िक इसकी ाकृत कािलदासीय ाकृत से भी ाचीन है ।
2. ाय: सं ृ त नाटक ना ी के अन र सू ाè◌ाार के वेश से ार होते ह। पर ु इन नाटकों म
ना ी का सवथा अभाव है । ये नाटक ना ी से ार न होकर सू ाè◌ाार के ारा आर िकये गये ह।
बाणभटट ने 'सू ाè◌ाारकृतार ै: िवशेषण से भास के इन नाटकों की िवशेषता का उ ेख भी िकया है ।
इससे इन नाटकों की ाचीनता िस होती है ।
3. शू क का मृ किटक नाटक भास के चा द नामक नाटक का ही प रवèि◌र् ात प तीत होता
है । शू क का रा काल डा. वी.ए. िसमथ ने 220.197 ◌इ0 पूव बताया है अत: यिद मृ किटक दू सरी-
तीसरी शता ी ◌इ0 पूव की रचना है तो भास का चा द उससे पूव तीसरी-चौथी शता ी ◌इ0 पूव की
रचना होनी चािहए।
4. कौिट ने अपने अथशा ा म ित ायौगन्è◌ारायण के एक ोक को उदè◌ाृत िकया है । कौिट
च गु मौय का महामा था और च गु 300 ◌इ0 पूव म राजिसंहासन पर बैठा था। अत: भास का
समय उससे पूव चौथी शता ी ◌इ0 पूव का माना जा सकता है ।
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5. भास के नाटकों म क◌इ अपािणनीय योग ा होते ह इससे तीत होता है िक भास पािणिन से पूव
ए होंगे। पािणिन का समय तीसरी शता ी ◌इ0 पूव के लगभग माना जाता है । अत: भास उससे कुछ
पहले यानी चौथी शता ी ◌इ0 पूव के माने जा सकते ह।
6. भास के नाटकों म से ित ायौगन्è◌ारायण और वासवद म कौशा ी के राजा उदयन,
उ ियनी के राजा धोत और मगè◌ा के राजा दशक का उ ेख है । पुराण, बौ और जैन ों म
भी यदा कदा इन तीनों राजाओं के स भ िमलते है । इितहासकार इन राजाओं का समय पां चवी शता ी
◌इ0 पूव म रखते ह, तदनुसार भास इस समय के बाद ही ए होंगे।
7. भास के नाटकों म ा सामािजक अव थाओं का िव ेषण करने पर भी ये रचनाएं चौथी शता ी
◌इ0 पूव के आसपास की िस होती है ।
इसी कार के कुछ और त ों की मीमां सा करके अèि◌ाकां श इितहासकार भास का िसथितकाल चतुथ
शता ी ◌इ0 पूव िनिशचत करने के प म ह।
2. भास के नाटक और उनकी संि कथा
नाटककार भास के ा तेरह नाटकों म अèि◌ाकतर चार कार के कथानक ा होते है । अत: भास
के नाटकों को कथा- ोत की िषट से चार भागों म बां टा जा सकता है -
(क) उदयनकथामूलक- 1ण् ित ायौगन्è◌ारायण,
2. वासवद
(ख) महाभारतमूलक- 3ण् ऊ भंग, 4ण् दू तवा , 5 प×चरा ा, 6ण् बालच रत, 7ण् दू तघटो च, 8ण्
कणभार, 9ण् मèयम ायोग
(ग) रामायणमूलक- 10ण् ितमानाटक, 11ण् अिभषेकनाटक
(घ) क नामूलक- 12 अिवमारक, 13ण् चा द ।
1. ित ायौगन्è◌ारायण - यह चार अंकों का एक नाटक है , िजसम उदयन के वासवद ा से ेम और
िववाह का वणन है । साथ ही म ाी यौगन्è◌ारायण ारा राजा उदयन को धोत राजा के पास से छु ड़ाने
की नीित का िववरण भी है ।
2. वासवद - यह छह अंकों का नाटक है , िजसम म ाी यौगन्è◌ारायण वासवद ा को राजा
उदयन से अलग करके नीित ारा पदमावती से राजा का िववाह करवाने म सफल होता है , िजससे वह
अपना खोया रा ा कर सके। बाद म वह वासवद ा से उसका िमलन भी करवाता है ।
3. ऊ भंग - यह एक एकां की है , िजसम भीम ारा दु य è◌ान की जंघा को भंग कर उसे मारने का
वणन है । इसम वीररस और क णरस का सु र प रपाक आ है । यह नाटक ाय: दु :खा माना जाता
है ।
4. दू तवा - दू तवा नामक एकां की नाटक म पा वों की ओर से सिनè◌ा का ाव लेकर
ीकृ के दु य è◌ान के पास जाने और िवफल होने का वणन है ।
5. प×चरा ा - इस नाटक म तीन अंक ह, िजसम ोण के य से पां च राि यों म पा वों के िमलने
की कथा है ।
6. बालच रत - इस पक म पां च अंक ह और ीकृ के ज से लेकर कंसवè◌ा तक की कथा
विणतहै ।
7. दू तघटो च - यह एक एकां की है । िजसम ीकृ ारा घटो च को दू त बनाकर è◌ाृतरा के पास
भेजने और दु य è◌ान ारा अपमािनत होने की कथा है ।
8. कणभार - कणभार नामक एकां की नाटक म कण का ाहमणवेषè◌ाारी इ को अपने कवच और
कु ल दान म दे ना विणत है । इसम वीर रस के साथ-साथ क ण रस का समुिचत प रपाक आ है ।
9. मèयम ायोग - मèयम ायोग नामक ायोग एकां की म मèयक पा व भीम ारा घटो च के
हाथों एक ाहमण पु ा को बचाने की कथा है ।
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3/25/2019 Contents: पाठ-6 महाकिव भास
10. ितमानाटक - ितमानाटक म सात अंक ह। इसम रामायण की कथा सं ेप म विणत है । इसमे
◌ं राम का रा ािभषेक कना, चौदह वष का वनवास, दशरथ की ितमा दे खकर भरत को दशरथ की
मृ ु का ान, अयोèया म िबना आये भरत का राम के पास जाना, पादु का लेकर लौटना, सीताहरण,
रावणवè◌ा, रामरा ािभषेक आिद का वणन है ।
11. अिभषेकनाटक - अिभषेकनाटक छह अंकों का एक नाटक है , िजसम रामायण के िकिषकन्è◌ाा-
का से यु -का तक की सारी कथा सं ेप म है । अ म रावणवè◌ा के प ात राम के रा ािभषेक
का वणन है ।
12. अिवमारक - छह अंकों के अिवमारक नाटक म राजकुमार अिवमारक का कुंितभोज की पु ाी
कुरं गी के साथ णयिववाह विणत है ।
13. चा द - इस नाटक म चार अंक ह और िनर् è◌ान ाहमण चा द और गिणका वस सेना के
णय का वणन है । इसी कथा को आगे बढ़ाते ए शू क का मृ किटक नाटक िलखा गया है । ऐसा
तीत होता है िक यह भास की अिनतम रचना है िजसे वे पूरा नहीं कर सके। शू क ने भास की कथा को
पूण िकयाहै ।
3. भास के नाटकों की िवशेषताएं
भास के सभी नाटकों म वासवद और ित ायौगन्è◌ारायण को ऐितहािसक नाटक माना जाता है ,
िजसम कौशा ी के राजा उदयन, उ ियनी के राजा धोत और मगè◌ा के राजा दशक का उ ेख
आ है । इन राजाओं का उ ेख पुराण ों म भी आ है ।
भास को सं ृ त सािह का सबसे ाचीन नाटककार माना जाता है । भास की नाटकीय कुशलता का
प रचय उनके नाटकों की सं ा और िवषय से हो जाता है । भास के स न्è◌ा म िवशेष बात यह है िक
भास के क◌इ नाटकों के अ म ा होने वाला भरतवा ाय: एक सा ही है -'राजिसंह: शा ु न:।
अनुमान लगाया जा सकता है िक स वत: यह 'राजिसंह ही भास का आ यदाता रहा हो। पर ु यह कौन
था? िनिशचत प से ात नहीं होता।
भास के सभी नाटक अिभनय की िषट से सवथा उपयु है । बाद के नाटकों म ा होने वाली
कृि मता भास के नाटकों म नहीं है । नाटकों की सफलता के िलए छह गुण आव क होते ह-
1. घटनाओं की एकता
2. घटनाओं की साथकता
3. घटनाओं का घात- ितघात और गित
4. च र ािच ाण म िकत का ाè◌ाा
5. ाभािवकता
6. किव
भास ने अपने नाटकों म इन सभी गुणों का समुिचत समावेश िकया है । ेक नाटक की कथा रोचक है
और उसका िवकास ाभािवक प म आ है । भास ने अपने नाटकों ारा नाटकीय कुशलता का
प रचयिदयाहै ।
उनके नाटकों की दू सरी िवशेषताओं म उनकी भाषा की सरलता और शैली का वाह उ ेखनीय है ।
भास की शैली वैदभ है । उनकी शैली पर वा ीकीय रामायण का िवशेष भाव है । भास भारतीय भावों
के किव ह। उनके नाटकों म भारतीय मू और आदश िदखा◌इ दे ते ह। वहाँ भावों की ग ीरता और
क ना उ ष पर ा होती है । भास मानवीय मनोवृि यों के वणन म अ िनपुण ह। ेह, ेम,
िवयोग, शोक, प ाताप, े ष आिद का सु र िववेचन उनके नाटकों म िदखा◌इ दे ता है । उनकी भाषा
सरल, सुबोè◌ा, ाभािवक है , तो शैली भी सरस, सरल और अकृि म है ।
भास ने अपनी रचनाओं म अलंकारों का समुिचत योग िकया है । कहीं भी ऐसा नहीं लगता है िक
अलंकारों का योग मा ा सजावट के िलए है । अनु ास, यमक, उपमा, उ े ा और अथा र ास
अलंकारों के सु र योग उनकी रचनाओं म ा होते ह।
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3/25/2019 Contents: पाठ-6 महाकिव भास
दु य è◌ान कहता है िक 'पा ु को मुिनशाप िमला था अत: पा व तो दे वपु ा ह िफर हमारे बन्è◌ाु कैसे
ए? उनका िपता के è◌ान म ा अèि◌ाकार? वासुदेव दु य è◌ान से पूछते ह िक è◌ाृतरा भी अपने
िपता िविच ावीय के è◌ान के उ राèि◌ाकारी कैसे हो सकते ह? दु य è◌ान वासुदेव को उनके बाल-कृ ों
पर भी उलाहना दे ने लगता है ।
ीकृ की तक-संगत वािदता से दु य è◌ान और बौखला जाता है । वह कहता है िक रा िभ ा म
ा करने की व ु नहीं। वह रा का तृणमा ा भी पा वों को नहीं दे गा। वासुदेव उसको चेतावनी दे ते
ए कहते ह िक तु ारे कारण स ूण कु वंश का शी ही िवनाश हो जाएगा। वे जाने लगते ह।
दु य è◌ान उनको ब ी बनाने की आ ा दे ता है । वासुदेव िव प म कट हो जाते ह। दु य घन उनकी
माया से और अèि◌ाक चकरा जाता है और बाहर िनकल जाता है । वासुदेव ोèि◌ात होकर सुदशन च
को बुलाते ह, वह मानव प म कट होता है । सुदशन के समझाने पर वासुदेव कृित थ होते ह।
अन र वासुदेव के िद ा ा शा³ग è◌ानुष, कौमोदकी गदा, पा×चज शंख और न क अिस एक के
बाद एक वेश करते ह और सुदशन के समझाने पर लौट जाते ह। िफर िव ुवाहन ग ड़ का वेश होता
है । भगवान को शा रोष जानकर सभी अपने-अपने è◌ााम लौट जाते ह। बाद म ीकृ भी पा वों के
िशिवर म लौटने लगते ह िक तभी वृ è◌ाृतरा का वेश होता है । è◌ाृतरा वासुदेव के पैरों पर िगरकर
पु ाों के अपराè◌ा के िलए मा मां गते ह। भरतवा के साथ दू तवा पक समा होता है ।
महाभारत की मूल कथा से दू तवा की कथा की तुलना करने पर हम महाकिव भास ारा िकये गये
कुछ मौिलक प रवतन िदखायी दे ते ह। महाभारत म è◌ाृतरा राजा ह, वे कृ के दू त प म आने पर
राजिसंहासन पर बैठते ह जबिक दू तवा म दु य è◌ान को राजा के प म अवत रत िकया गया है ।
दू तवा म ौपदी के केश और व ा खींचने से स िनè◌ात िच ा किव की उदभावना है । महाभारत म
ीकृ को ब ी बनाने का को◌इ िवशेष य नहीं िकया जाता है जबिक दू तवा म उनको बां è◌ाने
का य िदखाया गया है । दू तवा म िद आयुè◌ाों और वाहन ग ड़ की मानव प म अवतारणा
किव की अपनी क ना है । किव ने ीकृ और दु य è◌ान के ल े वातालाप को अ ं पूण और
रोचक बना िदया है । इन सब नवीनताओं से ही दू तवा की कथा और संवाद सु र और भावशाली हो
गये ह। दू त के प म उपिसथत ीकृ के वा अथात सिनè◌ा- ाव पर आè◌ाा रत होने के कारण
इस पक का नाम 'दू तवा सवथा साथक है ।
2. नायक एवं अ पा
ुत एकां की म मु प से दु य è◌ान और ीकृ का च र ा िचि त िकया गया है । कां चुकीय,
सुदशन च और è◌ाृतरा भी थोड़े -थोड़े समय के िलए मंच पर आते ह। इसके अित र संवादों के
माèयम से ही कौरवप ीय और पा वप ीय लगभग सभी मुख पा ाों की चचा संि पम ा
होती है । किव ने ौपदी के िच ा ारा शकुिन, भी और पां चों पा वों को अपूव कौशल के साथ
दशकों के सम िचि त सा कर िदया है । इसी कार नाटयकला की िनपुणता से ही कौमोदकी (गदा),
न क (तलवार), शा³ग (è◌ानुष), पा×चज (शंख) आिद के प भी िबना मंच पर उपिसथत ए
दशकों के सा ात अनुभव म आ जाते है । सुदशन च ीकृ का अ èि◌ाक ि य है इसिलए उसे
संवाद का अवसर िदया गया है ।
भास ने दू तवा म िव कृित के दो पा ाों को मुखता दी है । एक अपनी साि वक उ मता के
कारण ऊèवगामी मनोवृि का ितिनèि◌ा है तो दू सरा तामिसक और राजिसक भाव से अिभभूत
होकर िन गामी मनोवृि का तीक है । एक सिनè◌ा की बात करता है तो दू सरा िवरोè◌ा की। एक
नैितकता का उपदे शक है तो दू सरा रा िल ा का स ोषक। एक बान्è◌ावों से ेम स न्è◌ा की
सराहना करता है तो दू सरा गवयु होकर उसे नकारता है । पहले िद गुणस भगवान ीकृ ह तो
दू सरा है अहं कार से प रपूण उ त दु य è◌ान। भास ने िजस कार िद गुणोपेत ीकृ को मानवीय
गुणों से स िदखाया है उसी कार अनैितक अिश दु य è◌ान को भी मानवीय गुणों से यु िचि त
िकया है ।
दू तवा का नायक दु य è◌ान है । वह è◌ाीरो त नायक है । è◌ाीर होने के साथ ही वह अहं कारी और
गव ला महाराजा है । वह दु िवनीत, अिश और उ त है । तृतीय ोक म उसकी साज-स ा और
राजकीय शोभा का िच ाण िकया गया है । अपने पा व बान्è◌ावों के ित उसम िकंिचत मा ा भी ेम
नहीं है । वह यु म पा वों को समूल न कर दे ना चाहता है और उनके साथ यु के िवचार मा ा से
स ता का अनुभव करता है । मानवीय िश ाचार िदखाते ए वह सभासदों को अिभवादनपूवक सादर
आसनों पर िवराजमान होने के िलए कहता है िक ु अपनी दु ता का प रचय दे ते ए ीकृ के ित
आदर दिशत करने पर सभासदों के िलए दं ड का िवè◌ाान भी करता है । िनल ता से ौपदी के केश
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