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3/25/2019 Contents: पाठ-6 महाकिव भास

पाठ-6
महाकिव भास
सं ृ त के ाचीनतम ात नाटककार महाकिव भास ह। इनकी कृितयां आज ा ह। 1909 ◌इ0 सन
तक भास के नाटक सं ृ त सािह के िलए अप रिचत थे, और उनका या उनकी कितपय Ñितयों का
नामो ेख ही संस्Ñत वा³मय म जहां -तहां िमलता था। 1909 ◌इ0 सन म ी टी. गणपित शा ाी ने
ाावणकोर रा म भास के तेरह नाटकों को खोज िनकाला और तब से भास सं ृ त के थम
नाटककार बन गये। ी गणपित शा ाी के अनुसार इन नाटकों के रचियता वही महाकिव भास ह,
िजनका उ ेख कािलदास ने अपने नाटक 'मालिवकािगनिम ा म िकया है - िथतयशसां
भाससौिम किवपु ाादीनां बन्è◌ाानित कथं वतमान कवे: कािलदास कृतौ ब मान:।
ीगणपित शा ाी ारा खोजे गये ये तेरह नाटक एक किव की रचनाएं ह। इनम अनेक सा दे खे जाते
है । िफर दू सरे क◌इ माण भी इसी त को पु करते ह◌ै । इन सब नाटकों के रचियता 'भास को मानने
म आज िव ानों म को◌इ िववाद नहीं है । िन:स े ह इनका कता एक ही िकत है और वह है -महाकिव
भास।
नाटककार भास के िकतगत जीवन तथा िसथितकाल के िवषय म िव सनीय सूचना ब त कम िमलती
है । कािलदास, बाण, राजशेखर एवं अ किवयों ने भास के ित ब त अèि◌ाक आदर िकया है
और उ एक सुयो नाटककार माना है । नाटयशा ाीय और का शा ाीय ों म भास के नाटकों
के अनेक उदधरण िमलते ह। बाणभटट ने अपने हषच रत म िलखा है -
सू ाè◌ाारकृतार ैनाटकैब भूिमकै:।
सपताकैयशो लेभे भासो दे वकुलै रव।।
राजे र ने सूिकतमु ावली म भी िलखा है -
भासनाटकच े •िसमं े कै: ि े परीि तुम।
वासवद दाहको•भू पावक:।।
अथात 'भास के नाटकच का सव म नाटक वासवद है ; परी ा िकये जाने पर अिगन भी इसे न
जला सकी। इससे तीत होता है िक भास के अनेक नाटकों म से वासवद सवाèि◌ाक िस आ।
1.भास का िसथितकाल
भास के नाटकों से उनके िसथितकाल का लेशमा ा भी पता नहीं लगता है । तथािप अनेक बिहरं ग और
अ रं ग माणों के आè◌ाार पर भास को चौथी शता ी ◌इ0 पूव का माना जा सकता है । िव ानों ने भास
की ाचीनता को क◌इ आè◌ाारों पर िस िकया है -
1. भासनाटकच की सं ृ त तथा ाकृत भाषा पर èयान दे ने से इनके नाटकों की ाचीनता यंिस
होती है । िव ानों का कहना है िक इसकी ाकृत कािलदासीय ाकृत से भी ाचीन है ।
2. ाय: सं ृ त नाटक ना ी के अन र सू ाè◌ाार के वेश से ार होते ह। पर ु इन नाटकों म
ना ी का सवथा अभाव है । ये नाटक ना ी से ार न होकर सू ाè◌ाार के ारा आर िकये गये ह।
बाणभटट ने 'सू ाè◌ाारकृतार ै: िवशेषण से भास के इन नाटकों की िवशेषता का उ ेख भी िकया है ।
इससे इन नाटकों की ाचीनता िस होती है ।     
3. शू क का मृ किटक नाटक भास के चा द नामक नाटक का ही प रवèि◌र् ात प तीत होता
है । शू क का रा काल डा. वी.ए. िसमथ ने 220.197 ◌इ0 पूव बताया है अत: यिद मृ किटक दू सरी-
तीसरी शता ी ◌इ0 पूव की रचना है तो भास का चा द उससे पूव तीसरी-चौथी शता ी ◌इ0 पूव की
रचना होनी चािहए।
4. कौिट ने अपने अथशा ा म ित ायौगन्è◌ारायण के एक ोक को उदè◌ाृत िकया है । कौिट
च गु मौय का महामा था और च गु 300 ◌इ0 पूव म राजिसंहासन पर बैठा था। अत: भास का
समय उससे पूव चौथी शता ी ◌इ0 पूव का माना जा सकता है ।

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5. भास के नाटकों म क◌इ अपािणनीय योग ा होते ह इससे तीत होता है िक भास पािणिन से पूव
ए होंगे। पािणिन का समय तीसरी शता ी ◌इ0 पूव के लगभग माना जाता है । अत: भास उससे कुछ
पहले यानी चौथी शता ी ◌इ0 पूव के माने जा सकते ह।
6. भास के नाटकों म से ित ायौगन्è◌ारायण और वासवद म कौशा ी के राजा उदयन,
उ ियनी के राजा धोत और मगè◌ा के राजा दशक का उ ेख है । पुराण, बौ और जैन ों म
भी यदा कदा इन तीनों राजाओं के स भ िमलते है । इितहासकार इन राजाओं का समय पां चवी शता ी
◌इ0 पूव म रखते ह, तदनुसार भास इस समय के बाद ही ए होंगे।
7. भास के नाटकों म ा सामािजक अव थाओं का िव ेषण करने पर भी ये रचनाएं चौथी शता ी
◌इ0 पूव के आसपास की िस होती है ।
इसी कार के कुछ और त ों की मीमां सा करके अèि◌ाकां श इितहासकार भास का िसथितकाल चतुथ
शता ी ◌इ0 पूव िनिशचत करने के प म ह।
2. भास के नाटक और उनकी संि कथा
नाटककार भास के ा तेरह नाटकों म अèि◌ाकतर चार कार के कथानक ा होते है । अत: भास
के नाटकों को कथा- ोत की िषट से चार भागों म बां टा जा सकता है -
(क) उदयनकथामूलक- 1ण् ित ायौगन्è◌ारायण,
2. वासवद
(ख) महाभारतमूलक- 3ण् ऊ भंग, 4ण् दू तवा , 5 प×चरा ा, 6ण् बालच रत, 7ण् दू तघटो च, 8ण्
कणभार, 9ण् मèयम ायोग
(ग) रामायणमूलक- 10ण् ितमानाटक, 11ण् अिभषेकनाटक
(घ) क नामूलक- 12 अिवमारक, 13ण् चा द ।
1. ित ायौगन्è◌ारायण - यह चार अंकों का एक नाटक है , िजसम उदयन के वासवद ा से ेम और
िववाह का वणन है । साथ ही म ाी यौगन्è◌ारायण ारा राजा उदयन को धोत राजा के पास से छु ड़ाने
की नीित का िववरण भी है ।
2. वासवद   - यह छह अंकों का नाटक है , िजसम म ाी यौगन्è◌ारायण वासवद ा को राजा
उदयन से अलग करके नीित ारा पदमावती से राजा का िववाह करवाने म सफल होता है , िजससे वह
अपना खोया रा ा कर सके। बाद म वह वासवद ा से उसका िमलन भी करवाता है ।
3. ऊ भंग -  यह एक एकां की है , िजसम भीम ारा दु य è◌ान की जंघा को भंग कर उसे मारने का
वणन है । इसम वीररस और क णरस का सु र प रपाक आ है । यह नाटक ाय: दु :खा माना जाता
है ।
4. दू तवा -  दू तवा नामक एकां की नाटक म पा वों की ओर से सिनè◌ा का ाव लेकर
ीकृ के दु य è◌ान के पास जाने और िवफल होने का वणन है ।
5. प×चरा ा - इस नाटक म तीन अंक ह, िजसम ोण के य से पां च राि यों म पा वों के िमलने
की कथा है ।      
6. बालच रत - इस पक म पां च अंक ह और ीकृ के ज से लेकर कंसवè◌ा तक की कथा
विणतहै ।
7. दू तघटो च - यह एक एकां की है । िजसम ीकृ ारा घटो च को दू त बनाकर è◌ाृतरा के पास
भेजने और दु य è◌ान ारा अपमािनत होने की कथा है ।
8. कणभार - कणभार नामक एकां की नाटक म कण का ाहमणवेषè◌ाारी इ को अपने कवच और
कु ल दान म दे ना विणत है । इसम वीर रस के साथ-साथ क ण रस का समुिचत प रपाक आ है ।
9. मèयम ायोग - मèयम ायोग नामक ायोग एकां की म मèयक पा व भीम ारा घटो च के
हाथों एक ाहमण पु ा को बचाने की कथा है ।

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10. ितमानाटक -  ितमानाटक म सात अंक ह। इसम रामायण की कथा सं ेप म विणत है । इसमे
◌ं राम का रा ािभषेक कना, चौदह वष का वनवास, दशरथ की ितमा दे खकर भरत को दशरथ की
मृ ु का ान, अयोèया म िबना आये भरत का राम के पास जाना, पादु का लेकर लौटना, सीताहरण,
रावणवè◌ा, रामरा ािभषेक आिद का वणन है ।
11. अिभषेकनाटक - अिभषेकनाटक छह अंकों का एक नाटक है , िजसम रामायण के िकिषकन्è◌ाा-
का से यु -का तक की सारी कथा सं ेप म है । अ म रावणवè◌ा के प ात राम के रा ािभषेक
का वणन है ।
12. अिवमारक -  छह अंकों के अिवमारक नाटक म राजकुमार अिवमारक का कुंितभोज की पु ाी
कुरं गी के साथ णयिववाह विणत है ।
13. चा द - इस नाटक म चार अंक ह और िनर् è◌ान ाहमण चा द और गिणका वस सेना के
णय का वणन है । इसी कथा को आगे बढ़ाते ए शू क का मृ किटक नाटक िलखा गया है । ऐसा
तीत होता है िक यह भास की अिनतम रचना है िजसे वे पूरा नहीं कर सके। शू क ने भास की कथा को
पूण िकयाहै ।
3. भास के नाटकों की िवशेषताएं
भास के सभी नाटकों म वासवद और ित ायौगन्è◌ारायण को ऐितहािसक नाटक माना जाता है ,
िजसम कौशा ी के राजा उदयन, उ ियनी के राजा धोत और मगè◌ा के राजा दशक का उ ेख
आ है । इन राजाओं का उ ेख पुराण ों म भी आ है ।
भास को सं ृ त सािह का सबसे ाचीन नाटककार माना जाता है । भास की नाटकीय कुशलता का
प रचय उनके नाटकों की सं ा और िवषय से हो जाता है । भास के स न्è◌ा म िवशेष बात यह है िक
भास के क◌इ नाटकों के अ म ा होने वाला भरतवा ाय: एक सा ही है -'राजिसंह: शा ु न:।
अनुमान लगाया जा सकता है िक स वत: यह 'राजिसंह ही भास का आ यदाता रहा हो। पर ु यह कौन
था? िनिशचत प से ात नहीं होता।
भास के सभी नाटक अिभनय की िषट से सवथा उपयु है । बाद के नाटकों म ा होने वाली
कृि मता भास के नाटकों म नहीं है । नाटकों की सफलता के िलए छह गुण आव क होते ह-
1. घटनाओं की एकता
2. घटनाओं की साथकता
3. घटनाओं का घात- ितघात और गित
4. च र ािच ाण म िकत का ाè◌ाा
5. ाभािवकता
6. किव
भास ने अपने नाटकों म इन सभी गुणों का समुिचत समावेश िकया है । ेक नाटक की कथा रोचक है
और उसका िवकास ाभािवक प म आ है । भास ने अपने नाटकों ारा नाटकीय कुशलता का
प रचयिदयाहै ।
उनके नाटकों की दू सरी िवशेषताओं म उनकी भाषा की सरलता और शैली का वाह उ ेखनीय है ।
भास की शैली वैदभ है । उनकी शैली पर वा ीकीय रामायण का िवशेष भाव है । भास भारतीय भावों
के किव ह। उनके नाटकों म भारतीय मू और आदश िदखा◌इ दे ते ह। वहाँ भावों की ग ीरता और
क ना उ ष पर ा होती है । भास मानवीय मनोवृि यों के वणन म अ िनपुण ह। ेह, ेम,
िवयोग, शोक, प ाताप, े ष आिद का सु र िववेचन उनके नाटकों म िदखा◌इ दे ता है । उनकी भाषा
सरल, सुबोè◌ा, ाभािवक है , तो शैली भी सरस, सरल और अकृि म है ।
भास ने अपनी रचनाओं म अलंकारों का समुिचत योग िकया है । कहीं भी ऐसा नहीं लगता है िक
अलंकारों का योग मा ा सजावट के िलए है । अनु ास, यमक, उपमा, उ े ा और अथा र ास
अलंकारों के सु र योग उनकी रचनाओं म ा होते ह।

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भास के नाटकों म मु तया Ü◌ाृं गार और वीर रसों का प रपाक आ है पर ु क ण, रौ , हा ,


वीभ और भयानक रसों का भी बीच-बीच म अंग प म योग है ।
मनोभाव वणन और रसवणन के साथ-साथ भास कृितवणन म भी परम कुशल है । उ ोंने अ : कृित
और बाहय कृित का सम य भी ुत िकया है । कृितिच ाण म भास ने िवशेष प से साद गुण का
योग िकया है - वासवद म सूया का सजीव िच ाण िकया गया है -'सूय अपनी िकरणों को समेट
कर और अपने रथ को लौटाकर è◌ाीरे -è◌ाीरे अ ाचल की ओर जा रहा है । ितमा नाटक म ती गित
से चलते ए रथ का वणन अ ाभािवक है । वासवद म शरदकालीन गगन म उड़ती ◌इ
सारस पंिकत का वणन भावोिकत अलंकार का सु र उदाहरण माना जाता है ।
भास के अनेक वा उ ृ सूिकतयों के प म याद िकये जाते ह। वासवद म कहा गया है िक
ेह और े ष से मानवीय संक का गहरा स न्è◌ा है -
े षो ब मानो वा संक ादु पजायते।
कंचुकी वासवद ा के िनè◌ान से स राजा उदयन को è◌ौय बंè◌ााते ए कहता है -मृ ु का समय आ
जाने पर कौन िकसको बचा सकता है ? र ी टू ट जाने पर घड़े को (कुंए म िगरने से) कौन रोक सकता है ?
-
क: कं श ो रि तुं मृ ुकाले र ु े दे के घटं è◌ाारयिनत।
आज भी भास के नाटकों का मंचन होता है और वे सâदय दशकों का मनोिवनोद करने म सवथा समथ
ह। भास के नाटकों की अनेक िवशेषताएं उनको एक सफल नाटककार िस करती है ।
दू तवा म
यहाँ पाठय म म िनè◌र् ाा रत नाटक दू तवा म का प रचय िव ार से िदया जा रहा है िजससे इस
नाटक के माèयम से भास की नाटकीय िवशेषताओं, भाषा शैली आिद की जानकारी स क प से हो
सके। दू तवा म सं ृ त के ाचीनतम नाटककार महाकिव भास की सु िस का कृित है । इसकी
गणना का ों के अ गत की जाती है । नाटयकला की िषट से दू तवा की परी ा करने पर इसे
ायोग नामक पक-भेद के अ गत रखा जाता है । ायोग की प रभाषा दे ते ए आचाय िव नाथ ने
कहा है -
ातेितवृ ो ायोग: ाीजनसंयुत:।
हीनो गभिवमशा ां नरै ब िभराि त:।।
एका³क भवेद ाीिनिम समरोदय:।
कैिशकीवृि रिहत: ात ा नायक:।।
राजिषरथ िद ो वा भवेद è◌ाीरो त स:।
हा ृ³गारशा े इतरे • ाा³ि◌गनो रसा:।।
-सािह दपण 6ध्231.233          
                               
अथात ायोग उस पक को कहते ह िजसम िस इितवृ का चयन िकया जाता है । पु ष पा ाों की
अèि◌ाकता और ाीपा ाों की ूनता होती है , गभ और िवमश सिनè◌ायों की योजना अपेि त नहीं होती
और पूरी रचना एक अंक म समा होती है । इसम ऐसे यु का वणन होता है िजसम ाी िनिम न हो।
इसम कैिशकी वृि का अभाव होता है । इसका नायक è◌ाीरो त कृित का को◌इ ात िकत होता
है या िफर को◌इ राजिष अथवा दे वपु ष। इसम ृंगार, हा और शा रसों के अित र अ को◌इ
रस मु होता है । दू तवा म ' ायोग के मु ल ण घिटत होते ए दे खे जा सकते ह। इसकी
कथाव ु महाभारत की कथा के उस अंश से ली गयी है िजसम भगवान ीकृ पा वों के दू त बनकर
कौरवों की सभा म जाते ह। इस पक म ाीपा ाों का सवथा अभाव है । इसम रा के िवभाजन को
लेकर यु की चचा है । कौरवों म से è◌ाीरो त कृित का दु य è◌ान दू तवा का नायक है । इसम ृंगार
और शा रसों की नहीं, वीर रस की è◌ाानता है । इस पक म केवल एक अंक है ।

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सं ृ त पक के मु प से तीन त होते ह-कथाव ु, नेता और रस। ाचीन काल से ही सं ृ त


नाटक मंच पर खेले जाते रहे ह, इसिलए इनके मू ां कन म अिभनय की िषट से मंचन-यो ता को भी
पया मह िदया जाता है ।
1.कथाव ु
कथाव ु पक का मु त है । यह (कथा) ात, उ ाध या िम िकसी भी कार की हो सकती
है । ायोग नामक पक म ाय: िस इितवृ होता है । महाकिव भास ने दू तवा की कथाव ु
महाभारत के उधोग पव से ली है ।
महाभारत की मूल कथा इस कार है -धूत ीड़ा म हारने के बाद पा व बारह वष तक वनवास म और
एक वष तक अ ातवास म तीत करने की शत पूरी करके वापस लौटे । जब उ ोंने कौरवों से अपने
िह े का रा मां गा, तो दु य è◌ान ने अ ीकार कर िदया। कौरवों और पा वों के बीच समझौते के
य ार ए। जब यह काय सरलता से स होता न िदखा, तब युèि◌ािषठर ने िवनाशकारी शु के
थान पर कौरवों के साथ सिनè◌ा करवाने के उददे से ीकृ से उनका दू त बनने का िनवेदन िकया।
दू त के प म उनके हिसतनापुर प ं चने पर è◌ाृतरा ने उनके ागत का पूरा बन्è◌ा िकया। ीकृ
पहले कु ी के पास गये, िफर दु य è◌ान आिद के पास। वे िवदु र के घर ठहरे , जहाँ उ ोंने सुना िक
कौरव यु की पूरी तैयारी कर चुके ह और वे लोग ीकृ की को◌इ बात मानने को तैयार नहीं ह; अत:
ीकृ का दौ कम थ को जाएगा। िफर भी वे दू सरे िदन िवदु र के साथ राजसभा म उपिसथत ए।
जब सब सभासद यथा थान बैठ गये तब उ ोंने è◌ाृतरा को बताया िक वे पा वों की ओर से कौरवों से
शािनत-वाता करने आये ह। ीकृ ने दु य धन के आगे पा वों को दायभाग दे ने का ाव रखा।
कौरव- मुख भी , ोण, िवदु र और è◌ाृतरा ने भी दु य è◌ान से पा वों को दाय भाग दे दे ने को
कहा, िक ु दु िवनीत दु य è◌ान पा वों को सु◌इ की नोंक के बराबर की भूिम दे ने को तैयार नहीं था।
सिनè◌ा का ाव ठु करा कर उनसे िनणय को यु पर ही छोड़ दे ने की बात की। वह ु होकर
गान्è◌ाारी की बात अनसुनी करके अपने भा◌इयों के साथ राजसभा से चला गया। िकसी कार िवदु र की
ाथना पर वह पुन: राजसभा म आया। पुन: उसने शकुिन, कण, दु :शासन आिद से ीकृ को ब ी
बनाने को कहा। िकसी कार è◌ाृतरा ने उसे इस िन नीय कम से रोका। तब ीकृ ने अपना िवराट
प दशाया, िजसे ीकृ की कृपा से अन्è◌ो è◌ाृतरा , ोण, भी , िवदु र और संजय ने दे खा।
è◌ाृतरा ने ीकृ के चरणों म िसर रखकर मा मां गी। पा वों के पास वापस लौटकर ीकृ ने
अपनी सिनè◌ावाता की असफलता का वणन िकया।
'दू तवा म किव ने महाभारत के इसी कथां श को कुछ िभ पम ुत िकया है -ना ीपाठ के प ात
िव आ सू ाè◌ाार जैसे ही कुछ बतलाने जा रहा था िक तभी उसे नेप से कुछ श सुना◌इ पड़ता
है । उससे ात होता है िक कौरवों और पा वों म िवरोè◌ा हो गया है और उसी के िलए दु य è◌ान की
आ ा से उसका सेवक म ाशाला की व था कर रहा है । दु य è◌ान एक वीर राजा के प म रं गमंच
पर उपिसथत होता है । वह सब आमिन ात राजाओं और सभासदों को स ान के साथ सभाभवन म
बैठाता है । सभी सभासदों के बीच शकुिन के सुझाव पर भी सेनापित चुने जाते ह। इसी समय कां चुकीय
बादरायण पा वों के िशिवर से दू त के प म पु षो म नारायण के आने की सूचना दे ता है । ीकृ
को नारायण कहने पर दु य è◌ान ोèि◌ात हो उठता है और कां चुकीय से कहता है िक कहो िक केशव
नामक दू त आया है । बाद म वह उपिसथत राजाओं से पूछता है िक कृ के साथ हमारा वहार कैसा
होना चािहए। उनके आदरसूचक उ र को सुनकर वह पुन: उ ेिजत हो उठता है और कहता है िक कृ
को ब ी बना लेना ही उसे िचकर है । वह आ ा दे ता है िक केशव के आने पर को◌इ भी स ानाथ
अपने आसन से नहीं उठे गा। यिद िकसीे ने ऐसा िकया तो उसे रा की ओर से किठन द िदया
जायेगा। यं अपने को उठने से रोकने के िलए वह बादरायण से ौपदी के केशहरण का िच ापट
मंगवाता है िजसे दे खता आ वह बैठा रह सके। िच ापट को दे खते ए वह ौपदी, युèि◌ािषठर, भीम,
अजुन, नकुल-सहदे व, शकुिन, आचाय आिद कीे भाव-भंिगमाओं का िच ाण करता है ।
दु य è◌ान के कहने पर कां चुकीय दू त कृ को लेने जाता है । दु य è◌ान कण से कृ के नारी जैसे मृदु
वचन सुनने को तैयार होने को कहता है । ीकृ के सभा म वेश करते ही सभी राजा और ि य घबड़ा
कर खड़े हो जाते ह। दु य è◌ान भी अपने आसन से िगर जाता है । वासुदेव कृ सभी राजाओं को स ान
के साथ आसन हण करने का अनुरोè◌ा करते ह। ौपदी के केश और व ा खींचने के िच ा को
दु य è◌ान के पास दे खकर वे मन ही मन उसकी भ सना करते ह िक अपने ही कुल के बन्è◌ाुओं के
अपमान करने को मूखता के कारण दु य è◌ान अपना परा म समझता है । औपचा रक कुशलवाता के
अन र वासुदेव पा वों का स े श सुनाते ह िक 'जो हमारा दायभाग है , वह हम िमलना चािहए।
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दु य è◌ान कहता है िक 'पा ु को मुिनशाप िमला था अत: पा व तो दे वपु ा ह िफर हमारे बन्è◌ाु कैसे
ए? उनका िपता के è◌ान म ा अèि◌ाकार? वासुदेव दु य è◌ान से पूछते ह िक è◌ाृतरा भी अपने
िपता िविच ावीय के è◌ान के उ राèि◌ाकारी कैसे हो सकते ह? दु य è◌ान वासुदेव को उनके बाल-कृ ों
पर भी उलाहना दे ने लगता है ।
ीकृ की तक-संगत वािदता से दु य è◌ान और बौखला जाता है । वह कहता है िक रा िभ ा म
ा करने की व ु नहीं। वह रा का तृणमा ा भी पा वों को नहीं दे गा। वासुदेव उसको चेतावनी दे ते
ए कहते ह िक तु ारे कारण स ूण कु वंश का शी ही िवनाश हो जाएगा। वे जाने लगते ह।
दु य è◌ान उनको ब ी बनाने की आ ा दे ता है । वासुदेव िव प म कट हो जाते ह। दु य घन उनकी
माया से और अèि◌ाक चकरा जाता है और बाहर िनकल जाता है । वासुदेव ोèि◌ात होकर सुदशन च
को बुलाते ह, वह मानव प म कट होता है । सुदशन के समझाने पर वासुदेव कृित थ होते ह।
अन र वासुदेव के िद ा ा शा³ग è◌ानुष, कौमोदकी गदा, पा×चज शंख और न क अिस एक के
बाद एक वेश करते ह और सुदशन के समझाने पर लौट जाते ह। िफर िव ुवाहन ग ड़ का वेश होता
है । भगवान को शा रोष जानकर सभी अपने-अपने è◌ााम लौट जाते ह। बाद म ीकृ भी पा वों के
िशिवर म लौटने लगते ह िक तभी वृ è◌ाृतरा का वेश होता है । è◌ाृतरा वासुदेव के पैरों पर िगरकर
पु ाों के अपराè◌ा के िलए मा मां गते ह। भरतवा के साथ दू तवा पक समा होता है ।
महाभारत की मूल कथा से दू तवा की कथा की तुलना करने पर हम महाकिव भास ारा िकये गये
कुछ मौिलक प रवतन िदखायी दे ते ह। महाभारत म è◌ाृतरा राजा ह, वे कृ के दू त प म आने पर
राजिसंहासन पर बैठते ह जबिक दू तवा म दु य è◌ान को राजा के प म अवत रत िकया गया है ।
दू तवा म ौपदी के केश और व ा खींचने से स िनè◌ात िच ा किव की उदभावना है । महाभारत म
ीकृ को ब ी बनाने का को◌इ िवशेष य नहीं िकया जाता है जबिक दू तवा म उनको बां è◌ाने
का य िदखाया गया है । दू तवा म िद आयुè◌ाों और वाहन ग ड़ की मानव प म अवतारणा
किव की अपनी क ना है । किव ने ीकृ और दु य è◌ान के ल े वातालाप को अ ं पूण और
रोचक बना िदया है । इन सब नवीनताओं से ही दू तवा की कथा और संवाद सु र और भावशाली हो
गये ह। दू त के प म उपिसथत ीकृ के वा अथात सिनè◌ा- ाव पर आè◌ाा रत होने के कारण
इस पक का नाम 'दू तवा सवथा साथक है ।    
2. नायक एवं अ पा
ुत एकां की म मु प से दु य è◌ान और ीकृ का च र ा िचि त िकया गया है । कां चुकीय,
सुदशन च और è◌ाृतरा भी थोड़े -थोड़े समय के िलए मंच पर आते ह। इसके अित र संवादों के
माèयम से ही कौरवप ीय और पा वप ीय लगभग सभी मुख पा ाों की चचा संि पम ा
होती है । किव ने ौपदी के िच ा ारा शकुिन, भी और पां चों पा वों को अपूव कौशल के साथ
दशकों के सम िचि त सा कर िदया है । इसी कार नाटयकला की िनपुणता से ही कौमोदकी (गदा),
न क (तलवार), शा³ग (è◌ानुष), पा×चज (शंख) आिद के प भी िबना मंच पर उपिसथत ए
दशकों के सा ात अनुभव म आ जाते है । सुदशन च ीकृ का अ èि◌ाक ि य है इसिलए उसे
संवाद का अवसर िदया गया है ।
भास ने दू तवा म िव कृित के दो पा ाों को मुखता दी है । एक अपनी साि वक उ मता के
कारण ऊèवगामी मनोवृि का ितिनèि◌ा है तो दू सरा तामिसक और राजिसक भाव से अिभभूत
होकर िन गामी मनोवृि का तीक है । एक सिनè◌ा की बात करता है तो दू सरा िवरोè◌ा की। एक
नैितकता का उपदे शक है तो दू सरा रा िल ा का स ोषक। एक बान्è◌ावों से ेम स न्è◌ा की
सराहना करता है तो दू सरा गवयु होकर उसे नकारता है । पहले िद गुणस भगवान ीकृ ह तो
दू सरा है अहं कार से प रपूण उ त दु य è◌ान। भास ने िजस कार िद गुणोपेत ीकृ को मानवीय
गुणों से स िदखाया है उसी कार अनैितक अिश दु य è◌ान को भी मानवीय गुणों से यु िचि त
िकया है ।
दू तवा का नायक दु य è◌ान है । वह è◌ाीरो त नायक है । è◌ाीर होने के साथ ही वह अहं कारी और
गव ला महाराजा है । वह दु िवनीत, अिश और उ त है । तृतीय ोक म उसकी साज-स ा और
राजकीय शोभा का िच ाण िकया गया है । अपने पा व बान्è◌ावों के ित उसम िकंिचत मा ा भी ेम
नहीं है । वह यु म पा वों को समूल न कर दे ना चाहता है और उनके साथ यु के िवचार मा ा से
स ता का अनुभव करता है । मानवीय िश ाचार िदखाते ए वह सभासदों को अिभवादनपूवक सादर
आसनों पर िवराजमान होने के िलए कहता है िक ु अपनी दु ता का प रचय दे ते ए ीकृ के ित
आदर दिशत करने पर सभासदों के िलए दं ड का िवè◌ाान भी करता है । िनल ता से ौपदी के केश
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3/25/2019 Contents: पाठ-6 महाकिव भास

और व ा के आकषण के वृतां को िच ा ारा रण करता है । ीकृ को गोपालक, दू त आिद नामों


से स ोèि◌ात करता है । यही नहीं, पा वों को दे वताओं के पु ा बताकर अपना ब ु मानने से इ ार
करता है और उनसे ेह-स न्è◌ा रखने की बात को भी ठु करा दे ता है ।
दू तवा के दू सरे मुख पा ा ीकृ ह। भास ने इनको भगवान पु षो म नारायण के प म िचि त
िकया है । तभी कां चुकीय ने थम सूचना म यही कहा िक दू तभाव से पु षो म नारायण आये ह।
अलौिकक गुण और मिहमास होने से वे िव प è◌ाारण करते ह। बां è◌ाने के इ ु क दु य è◌ान को
म ाशाला म वे अनेक पों म िदखा◌इ दे ते ह और उनके ु हो जाने पर अनेक िद अ ा-श ा
उनके स ुख उपिसथत होते हं । वे पा वों का दौ कम ीकार करके दु य è◌ान की सभा म आते ह
िक ु उनके मिहमाशाली िकत के भाव से दु य è◌ान के मना करने और द घोिषत करने के
अन र भी सभी सभासद स ानाथ त: खड़े हो जाते ह। यं दु य è◌ान भी उनकी अलौिकक ग रमा
के भाव से अछूता नहीं रह पाता और आसन से िगर जाता है ।
वासुदेव कृ अपने दौ कम का िनवाह बड़ी कुशलता से करते ह। दु य è◌ान के ं पूण वचनों का वे
बड़ी िनपुणता और ता से तकपूण उ र दे ते ह। न केवल वे पा वों का स े श दु य è◌ान तक
प ं चाते ह अिपतु उसे नीितपूण उपदे श भी दे ते ह िक ोè◌ा छोड़कर उसको बान्è◌ावों से ेमपूण
वहार करना चािहए। 'पु ों के संचय से अिजत रा ी को ा करके जो िम ाों और बन्è◌ाुओं को
ठगता है उसका सारा म थ चला जाता है । और भी िक 'दोषों को िव ृत करना चािहए और भा◌इयों
से ेह रखना चािहए। बन्è◌ाुओं के साथ ेममय स न्è◌ा दोनों लोकों म िहतकर होता है । जब
दु य è◌ान िकसी भी तरह उनके उिचत परामश को सुनने और मानने को तैयार नहीं होता तब वे उसे
चेतावनी दे ते ह िक 'हे è◌ाृतरा पु ा! मेरे कहने से तु आè◌ाा रा दे दे ना चािहए, नहीं तो पा व
समु पय पृिथवी को अपने अè◌ाीन कर लगे। इसके बाद दु य è◌ान के ारा उ भला-बुरा कहने पर
तो वे भी उसे शठ, काक, केकर आिद स ोè◌ान दे डालते ह। अन र रोष म आकर वे सभा से जाने
की बात भी करते ह। उनका यह वहार उनके मानवीय प का प रचायक है । बाद म सुदशन च
ारा समुदाचार की ओर èयान िदलाने पर वे शा होते ह। इस कार दू तवा म किव ने वासुदेव म
िद और मानवीय गुणों का अदभुत समावेश िदखाया है ।
3. रस- ंजना
ुत एकां की पक (अथात दू तवा ) का मु रस वीर है । ुत नाटक म को◌इ नाियका नहीं है
इसिलए यहाँ ृंगार रस की स ावना का अभाव है । यु और उ ाहपूण चचाओं के कारण शा रस का
भी अभाव ही है । िद आयुè◌ाों की रं गमंच पर अवतारणा ारा अदभुत रस का उिचत संिनवेश िकया
गया है । ोè◌ा, हा , ं के पुट इè◌ार-उè◌ार िदखा◌इ दे ते ह। नाटक के अ म è◌ाृतरा के
वा ों से दीनता, वा , प ा ाप, भिकत और स ान की भावना की अिभ िकत होती है ।
4. भाषा-शैली
ुत नाटक म अèि◌ाकतर माè◌ाुय और साद गुण के अनुकूल सरल भाषा का योग आ है िक ु
कभी-कभी अवसर के अनुसार ओजगुण की è◌ाानता होने से किठन पदावली भी िदखा◌इ दे ती है ।
इसम ाकृत भाषा का योग नहीं आ है । दू तवा के क◌इ ोक और वा सु र सुभािषत और
सूिकतयों के प म िस है । जैसे-
1. रा ं नाम नृपा जै: सâदयैिज ा रपून भु ते।
2. व×चयेद य: सुâदबन्è◌ाून स भवेद िवफल म:।
3. क त ो ातृषु ेहो िव त ा: गुणेतरा:।
अनेक ोकों म सु र िच ा-योजना ा होती है । यहाँ पक, उ े ा, उपमा आिद कुछ सरल और
ाभािवक अलंकारों का सहज योग भास के े किव को दशाता है । सव ा ही दु ह क नाओं के
अभाव से नाटय- वाह म ाभािवक गित बनी रहती है । भास की शैली बड़ी ही भावो ादक मानी जाती
है । िन े ह उनके कथानक का संयोजनकौशल और संवादों की रोचकता सâदयों के िच को
बां è◌ाकर रखने म स म है । साथ ही इस नाटक म क◌इ पौरािणक कथाओं के संकेत ा होते ह एवं
महाभारत तथा कृ कथा के अनेक संग भी, िजनसे दशकों म कौतूहल की िनर र वृ होती रहती है ।
5. नाटकीय भाव

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3/25/2019 Contents: पाठ-6 महाकिव भास

महाकिव भास ने दू तवा म ीकृ और दु य è◌ान के कथनोेपकथनों के माèयम से नाटकीयता के


चरम प का िद शन कराया है । उनका सवाèि◌ाक èयान संवादों की संि ता और पा ाानुकूलता पर
रहा है । संवादों से पा ाों के च र ा का स क काशन आ है और कथा को उिचत गित भी िमली है ।
ीकृ और दु य è◌ान का वातालाप म उ रो र उ ेिजत होते जाना नाटकीय रोचकता की वृ करता
है । इसी कार सुदशन च का अ आयुè◌ाों के साथ वातालाप अ संि होकर भी िद
अनुभूित को उ करता है । è◌ाृतरा और कां चुकीय के छोटे वा अपने आप म पूण तीत होते ह
और पा ाों के अ मन को सु करते ह। पक म रं गमंच पर किठनता से अिभनेय अंशों को
आकाशभािषत ारा िनदिशत िकया गया है । इस पक की कथा अित संि और िस घटना पर
अवलिमबत होकर भी सवथा मौिलक है ।
सं ृ त का ों की पर रा म महाकिव भास अपने पकों की नाटयकला के िलए पया ात
ह, िक ु उन सबम दू तवा िन य ही अिभनय की िषट से उनकी अ सफल और लोकि य रचना
मानी जातीहै ।

https://sol.du.ac.in/mod/book/view.php?id=1169&chapterid=747 8/8

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