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Dost Akaal
Dost Akaal
बात न करते हुए भी एक दू सरे के मन का हाल जान ले ते थे । ककसी एक कदन न जाने ककसी वजह से उनके बीच
कुछ ककसी बात को ले कर बातचीत बंद हो गयी। पर अच्छी बात यह थी की उनके मन से दोस्ती के वह भाव ख़त्म
नहीं हुए। थोड़ा ही समय बीता था की उनके गां व में अकाल पड गया। अकाल के समय में राम को यह लगा की
शायद श्याम के यहााँ खाने को अनाज नहीं होगा तो ऐसे में मुझे श्याम की मदद करनी चाकहए। और दू सरीओर
श्याम के मन में भी यही था की शायद राम को खाने के कलए परे शानी होगी। ऐसे में दोनों दोस्त अलग अलग
साहूकार के पास जाते है ।
राम : साहूकार (१) से : - लाला जी मु झे कुछ अनाज की जरुरत थी। आप दे दे ते तो बड़ी कृपा होती।
साहूकार (१) : राम से :- अरे भैया तुम्हे तो पता ही है की अकाल पड़ा है। ऐसे में अनाज कहााँ से दें गे।
श्याम : साहूकार (२ ) से : - लाला जी मु झे कुछ अनाज की जरुरत थी। आप दे दे ते तो बड़ी कृपा होती।
साहूकार (२ ) : श्याम से :- अरे भै या तुम्हे तो पता ही है की अकाल पड़ा है । ऐसे में अनाज कहााँ से दें गे।
परन्तु वह हार नहीं मानते। और इस बार वह दोनों किर से अलग अलग साहूकार के पार जाते है । पर इत्ते फ़ाकन
वह आपस में उन्ही साहूकारों के पास चले जाते है कजनके पास दू सरा दोस्त गया होता है ।
श्याम : साहूकार (१) से : - लाला जी मु झे कुछ अनाज की जरुरत थी। आप दे दे ते तो बड़ी कृपा होती।
साहूकार (१ ) : श्याम से : अरे भाई अनाज का तो दाना नहीं है। पर थोड़े समय पहले तुम्हारा दोस्त राम भी आया
था अनाज मां गने । शायद उसे भी ज़रूरत है ।
राम : साहूकार (२ ) से : - लाला जी मु झे कुछ अनाज की जरुरत थी। आप दे दे ते तो बड़ी कृपा होती।
साहूकार (२ ) : राम से : अरे भाई अनाज का तो दाना नहीं है। पर थोड़े समय पहले तुम्हारा दोस्त राम भी आया था
अनाज मां गने । शायद उसे भी ज़रूरत है।
यह सब सुनकर दोनों दोस्तों को आपस में यही लगता है की उसके दोस्त को अनाज की ज़्यादा ज़रूरत है ।
इस हालात में दोनों दोस्त अपने अपने घर से अनाज की एक एक बोरी ले कर एक दू सरे के घर रात के समय छु प
छु पाकर जाते है और वहां वो अनाज की बोरी रख आते है ।
अगली सुबह जब दोनों ही दोस्त अपने अपने घर के गोदाम में दे खते है तो है रान हो जाते है की आखखर यह कैसे हो
सकता है । उन्होंने तो बीती रात में यह अनाज की बोरी अपने दोस्त के यहााँ दी थी किर यह ये उनके गोदाम में एक
बोरी अनाज की और कहााँ से आ गयी। दोनों ही दोस्त इसे भगवान् का शायद कोई चमत्कार समझकर मं कदर चले
जाते है । मं कदर में भगवन की मू रत का सामने दोनों खड़े है । आपस में बात नहीं करते है । पर भगवान् की मू रत
की और दे ख कर दोनों दोस्त एक साथ यही कहते है की भगवन आखखर यह चमत्कार कैसे हुआ, आप ही बताईये।
उनके इतना कहते ही भगवन प्रकट होते है और कहते है की, मैं कभी भी चमत्कार नहीं करता हु, अकपतु सच तो ये
है की, यह कसिफ तुम्हारी दोस्ती है , कजसे तुम दोनों अभी तक ककसी तरह का चमत्कार समझ रहे हो। जब उन दोनों
दोस्तों को सारी बात पता चलती है तो दोनों दोस्त किर से अपनी आाँ खों में आं सू कलए एक दू सरे को गले से लगा ले ते
है ।