आज के माननीय मुख्य अदतदि जी, सम्मानीय दिक्षक गण व मेरे प्यारे सहपादिय ं
क सुप्रभात व सािर नमस्कार | सबसे पहले त मैं आप सबक 70 वें स्वतं त्रता दिवस की बधाई िे ना चाहता हूँ और आिा करता हूँ की इस पावन अवसर पर आप सब भी मेरी तरह एक भारतीय ह ने पर गौरवान्वित महसूस कर रहे ह ग ं े | “ स्वतं त्रता हमारा जन्मदसद्ध अदधकार है | ” यह किन दकतना प्रे रणािायी और आनंििायक है | स्वतं त्रता प्रत्येक प्राणी क दप्रय ह ती है चाहे वह मनुष्य ह या क ई पिु – पक्षी, जीव – जंतु | वस्तु त: स्वाधीनता में ही सुख है | तभी त तुलसीिास जी ने दलखा है “ पराधीन सपनेहूँ सुख नाही ं ”| अंग्रेज ं ने ि सौ वर्षों तक हमें गुलाम बना कर रखा िा | उनके अत्याचार ं और अमानवीय व्यवहार ं से त्रस्त भारतीय जनता एकजुट ह इससे छु टकारा पाने हे तु कृतसंकल्प ह गई | सुभार्षचंद्र ब स, भगतदसंह, चंद्रिेखर आजाि ने क्ांदत की आग फैलाई और अपने प्राण ं की आहुदत िी | तत्पश्चात सरिार वल्लभभाई पटे ल, गांधीजी, नेहरूजी ने सत्य, अदहं सा और दबना हदियार ं की लडाई लडी | सत्याग्रह आं ि लन दकए, लादियां खाई,ं कई बार जेल गए और अंग्रेज ं क हमारा िे ि छ डकर जाने पर मजबूर कर दिया | अंतत: 15 अगस्त 1947 क उन्हें सफलता प्राप्त हुई | आधी रात के समय जवाहर लाल नेहरू ने जब स्वतं त्रता की घ र्षणा की त सारे िे ि में ख़ुिी की लहर िौड गई और पू रा िे ि आजािी के उल्लास व जश्न मनाने में डूब गया | ल ग ं के सन्वम्मदलत स्वर ं से सारा आकाि “ भारत माता की जय ” के गगनभेिी नार ं से मान गुं जायमान ह उिा | तब से आज तक 15 अगस्त 1947 का दिन प्रत्येक वर्षष एक राष्ट्रीय पवष के रूप में बडे धू म – धाम व् हर्षोल्लास के साि मनाया जाता है |
“कुछ निा दतरं गे की आन का है ,
कुछ निा मातृ भूदम का है , हम लहरायेंगे यह दतरं गा हर जगह , यह निा दहन्िु स्तान की िान का है ”
इस भावना के साि िे ि भर के समस्त सरकारी इमारत , ं अस्पताल ं व कायाषलय ं
तिा सरकारी व दनजी दवद्यालय ं में दतरं गा झंडा फहराया जाता है , राष्ट्रगीत गाया जाता है
तिा सभी िहीि ं व महापुरुर्ष ं क श्रद्धांजदल अदपष त की जाती है |
इस पवष का बडा एदतहादसक महत्व है | इस अवसर पर सारा िे ि आपसी धादमषक भेि – भाव , जात – पाूँत , ऊूँच – नीच व अमीरी – गरीबी के झगड ं क भूलकर एक जुट ह कर उन सभी िहीि ं क आिरपू वषक नमन करता है और सदवनय श्रद्धासुमन अदपषत करता है दजन्ह न ं े आजािी की जंग में, दतरं गे की आन – बान और िान की खादतर अपना सवषस्व न्यौछावर कर दिया यहाूँ तक की अपने प्राण ं की भी आहुदत िे िी | उनके िे िप्रे म से ओत – प्र त इस कुबाषनी क िे खकर मुझे सहसा कुछ पं न्वियाूँ याि आती हैं - “ ज़माने भर में दमलते हैं आदिक कई , मगर वतन से खूबसूरत क ई सनम नही ं ह ता , न ट ं में भी दलपट कर, स ने में दसमटकर मरे हैं कई , मगर दतरं गे से खूबसूरत क ई कफ़न नही ं ह ता..”
“ आओं झुक कर करें सलाम उन्हें ,
दजनके दहस्से में यह मुकाम आता है , दकतने खुिनसीब हैं व ल ग, दजनका खून िे ि के काम आता है | ”
आज 15 अगस्त 2016 के दिन हमारे िे ि क आजाि हुए 70 वर्षष ह गए हैं |
आज इस मौके पर आइए एक नजर पीछे मुडकर िे खें और स चें दक इन 70 वर्षों में आन्वखर हमने क्या हादसल दकया ? क्या इतनी कदिनाईय ं व इतने बदलिान ं के बाि हादसल हुई आजािी का हमने सही मायन ं में अिष समझा ?
आन्वखर आजािी है क्या ? मेरा मानना है दक आजािी का
वास्तदवक अिष है िे ि व िे िवादसय ं क दनरं तर िान्वि, मैत्री व दवकास के पि पर आगे बढ़ाना और यह तभी संभव ह गा जब हम प्राचीन भारतीय सांस्कृदतक दवरासत क अपनी युवा पीढ़ी दक दिक्षा का अदभन्न अंग बना िें | दिक्षा के इस मंदिर में आज मैं आप सबसे यह बात कहना चाहूँ गा की िे ि की इस अमूल्य, दवराट सांस्कृदतक धर हर का सामंजस्य जब हमारी दिक्षा प्रणाली से ह गा त हमारी भावी पीढ़ी न केवल चररत्रवान व सुसंस्कृत बनेगी अदपतु उनके, समाज के व समस्त राष्ट्र के भौदतक, आदिषक व आध्यान्विक उन्नदत का मागष भी प्रिस्त ह गा |
गत 70 वर्षों में कई प्राकृदतक आपिाओं व आतं की हमल ं ने हमारे िे ि की
एकता, अखंडता व् एकजुटता के बडे – बडे इन्विहान दलए हैं | मुझे यह कहते हुए बडा गवष महसूस ह रहा है की ऐसी अनेक ं आपिाओं और िु श्मन ं का सामना हमारे िे िवादसय ं ने अपनी धादमषक भावनाओं, मान्यताओं, परम्पराओं, भार्षाओं, खाना – पान व वेिभुर्षाओं के भेि – भाव ं क िरदकनार करते हुए अपनी एकता, अखंडता, सदहष्णुता के बल पर सफलतापू वषक दकया है और आगे भी करते रहेंगे | इसी बात पर मैं आपके सामने चंि पं न्वियाूँ पे ि करना चाहता हूँ -
“ यूनान – औ -दमस्त्र – औ - र मा सब दमट गए जहाूँ से,
अब तलक है बाकी मगर नाम – औ दनिाूँ हमारा, कुछ बात है की हस्ती दमटती नही ं हमारी, सदिय ं रहा है िु श्मन िौर - ए- जमाना हमारा, सारे जहाूँ से अच्छा दहन्द स्तां हमारा | ”
अपनी वाणी क दवराम िे ने के पहले मैं इस मंच से आज की यवा पीढ़ी से
गु जाररि करते हुए यह पं न्वियाूँ कहना चाहता हूँ |
“ यह बात हवाओं क बताए रखना,
र िनी ह गी दचराग ं क जलाए रखना, लह िे कर दजसकी दहफाजत हमने की, उस दतरं गे क सिा दिल में बसाए रखना | आओ मेहनत क अपना ईमान बनाएूँ , हाि ं क अपना भगवान बनाएूँ , सपन ं से भी प्यारा दहं िुस्तान बनाएूँ , नया खून है , नया ज ि है अब नयी जवानी, हम दहन्िु स्तानी | ”
The Happiness Project: Or, Why I Spent a Year Trying to Sing in the Morning, Clean My Closets, Fight Right, Read Aristotle, and Generally Have More Fun