You are on page 1of 14

महावीर—वाणी (भाग—1)

ओशो

मंत्र: दिव्‍य—लोक की कं जी—(प्रवचन—पहला)

पं च—नमोकार—सूत्र

नमो अरिहं ताणं।


नमो सिद्धाण।
नमो आयरियाण।
नमो उवज्झायाण।
नमो लोए िब्बिाहूणं।
एिो पंच नमुक्कािो, िब्बपावप्पणािणो।
मंगलाण च िब्बेसिं , पडमं हवइ मंगलं।।

अररहं तों (अहह तों) को नमस्कार। दसद्ों को नमस्कार। आचायोंको नमस्कार। उपाध्यायों को नमस्कार। लोक संसार में
सवह साधओं को नमस्कार। ये पां च नमस्कार सवह पापों के नाशक हैं और सवह मं गलों में प्रथम मं गल रूप हैं ।

जैिे िुबह िूिज सनकले औि कोई पक्षी आकाश में उड़ने के पहले अपने घोंिले के पाि पिों
को तौले, िोचे , िाहि जुटाये ; या जैिे कोई नदी िति में सगिने के किीब हो, स्वयं को खोने के
सनकट, पीछे लौटकि दे खे, िोचे क्षण भि, ऐिा ही महावीि की वाणी में प्रवेश के पहले दो क्षण िोच लेना
जरूिी है ।
जैिे पववतों में सहमालय है या सशखिों में गौिीशंकि, वैिे ही व्यक्तियों में महावीि हैं । बड़ी है चढ़ाई।
जमीन पि खड़े होकि भी गौिीशंकिके सहमाच्छासदत सशखि को दे खा जा िकता है । लेसकन
सजन्हें चढ़ाई किनी हो औि सशखि पि पहं चकि ही सशखि को दे खना हो, उन्हें बड़ी तैयािी की जरूित है ।
दू ि िे भी दे ख िकते हैं महावीि को, लेसकन दू ि िे जो परिचय होता है वह वास्तसवक परिचय नहीं है ।
महावीि में तो छलां ग लगाकि ही वास्तसवक परिचय पाया जा िकता है । उि छलां ग के पहले जो जरूिी है
वे कुछ बातें आपिे कहूं ।
बहत बाि ऐिा होता है सक हमािे हाथ में सनष्पसिया िह जाती हैं , कन्‍क्‍लूज़ंि िह जाते हैं —
प्रसियाएं खो जाती हैं । मंसजल िह जाती है , िास्ते खो जाते हैं । सशखि तो सदखाई पड़ता है , लेसकन वह
पगडं डी सदखाई नहीं पड़ती जो वहां तक पहं चा दे । ऐिा ही यह नमोकाि मंत्र भी है । यह सनष्पसि है । इिे
पच्चीि िौ वर्व िे लोग दोहिाते चले आ िहे हैं । यह सशखि है , लेसकन पगडं डी जो इि नमोकाि मंत्र तक
पहं चा दे , वह न मालूम कब की खो गयी है ।
इिके पहले सक हम मंत्र पि बात किें , उि पगडं डी पि थोड़ा—िा मागव िाफ कि लेना उसचत
होगा। क्ोंसक जब तक प्रसिया न सदखाई पड़े तब तक सनष्पसिया व्यथव हैं । औि जब तक मागव न सदखाई
पड़े , तब तक मंसजल बेबूझ होती है । औि जब तक िीसढ़यां न सदखाई पड़े , तब तक दू ि सदखते हए सशखिों
का कोइ भी मूल्य नहीं — वे स्वप्रवत हो जाते हैं । वे हैं भी या नहीं, इिका भी सनणवय नहीं सकया जा िकता।
कुछ दो—चाि मागों िे नमोकाि के िास्ते को िमझ लें.।
1937 में, सतब्बत औि चीन के बीच बोकान पववत की एक गुफा में िात िौ िोलह पत्थि के रिकाडव
समले हैं — पत्थि के। औि वे हैं महावीि िे दि हजाि िाल पुिाने यानी आज िे कोई िाढ़े बािह हजाि
िाल पुिाने। बड़े आश्रयव के हैं , क्ोंसक वे रिकाडव ठीक वैिे ही हैं जैिे ग्रामोफोन का रिकाडव होता है । ठीक
उनके बीच में एक छे द है , औि पत्थि पि पूब्ज हैं — जैिे सक ग्रामोफोन के रिकाडव पि होते हैं । अब तक
िाज नहीं खोला जा िका है सक वे सकि यंत्र पि बजाये जा िकेंगे। लेसकन एक बात तय हो गयी है — रूि
के एक बड़े वैज्ञासनक डा. िसजवएव ने वर्ों तक मेहनत किके यह प्रमासणत सकया है सक वे हैं तो रिकाडव ही।
सकि यंत्र पि औि सकि िुई के माध्यम िे वे पुनरुज्जीसवत हो िकेंगे, यह अभी तय नहीं हो िका। अगि
एकाध पत्थि का टु कड़ा होता तो िां योसगक भी हो िकता था। िात िौ िोलह हैं । िब एक जैिे, सजनमें
बीच में छे द हैं । िब पि गूब्ज हैं औि उनकी पूिी तिह िफाई, धूल— धवां ि जब अलग कि दी गयी औि
जब सवद् युत यंत्रों िे उनकी पिीक्षा की गई तब बड़ी है िानी हई, उनिे प्रसतपल सवद् युत की
सकिणें सवकीसणवत हो िही हैं
लेसकन क्ा आदमी के पाि आज िे बािह हजाि िाल पहले ऐिी कोई व्यवस्था थी सक वह पत्थिों
में कुछ रिकाडव कि िके? तब तो हमें िािा इसतहाि औि ढं ग िे सलखना पड़े गा।
जापान के एक पववत सशखि पि पच्चीि हजाि वर्व पुिानी मूसतवयों का एक िमूह है । वे मूसतव यां 'डोबू
कहलाती हैं । उन मूसतव यों ने बहत है िानी खड़ी कि दी, क्ोंसक अब तक उन मूसतवयों को िमझना िंभव नहीं
था — लेसकन अब िंभव हआ। सजि सदन हमािे यात्री अंतरिक्ष में गये उिी सदन डोबू मूसतवयों का िहस्थ खुल
गया; क्ोंसक डोबू मूसतवयां उिी तिह के वस्त्र पहने हए हैं जैिे अंतरिक्ष का यात्री पहनता है । अं तरिक्ष में
यासत्रयों ने, रूिी या अमिीकी एस्ट्र ोनाट् ि ने सजन वस्तुओं का उपयोग सकया है , वे ही उन मूसतवयों के ऊपि
हैं , पत्थि में खुदे हए। वे मूसतवयां पच्चीि हजाि िाल पुिानी हैं । औि अब इिके सिवाय कोई उपाय नहीं है
मानने का सक पच्चीि हजाि िाल पहले आदमी ने अंतरिक्ष की यात्रा की है या अंतरिक्ष के सकन्हीं औि ग्रहों
िे आदमी जमीन पि आता िहा है ।
आदमी जो आज जानता है , वह पहली बाि जान िहा है , ऐिी भूल में पड़ने का अब कोई कािण
नहीं है । आदमी बहत बाि जान लेता है औि भूल जाता है । बहत बाि सशखि छू सलये गये हैं औि खो गये हैं ।
िभ्यतायें उठती हैं औि आकाश को छूती हैं लहिों की तिह औि सवलीन हो जाती हैं । जब भी कोई लहि
आकाश को छूती है तो िोचती है : उिके पहले सकिी औि लहि ने आकाश को नहीं छु आ होगा।
महावीि एक बहत बड़ी िं स्कृसत के अंसतम व्यक्ति हैं , सजि िंस्कृसत का सवस्ताि कम िे कम दि
लाख वर्व है । महावीि जैन सवचाि औि पिं पिा के अंसतम तीथंकि हैं — चौबीिवें। सशखि की, लहि की
आक्तखिी ऊंचाई। औि महावीि के बाद वह लहि औि वह िभ्यता औि वह िंस्कृसत िब सबखि गई। आज
उन िूत्रों को िमझना इिीसलए कसठन है ; क्ोंसक वह पूिा का पूिा 'समल्‍यू, वह वाताविण सजिमें वे िू त्र
िाथवक थे, आज कहीं भी नहीं है ।
ऐिा िमझें सक कल तीििा महायुद्ध हो जाए, िािी िभ्यता सबखि जाए, सफि भी लोगों के
पाि याद्दाश्त िह जाएगी सक लोग हवाई जहाज में उड़ते थे। हवाई जहाज तो सबखि जाएं गे, याद्दाश्त िह
जाएगी। वह याद्दाश्त हजािों िाल तक चलेगी औि बच्चे हं िेंगे, वे कहें गे सक कहां है हवाई जहाज, सजनकी
तुम बात किते हो? ऐिा मालूम होता है कहासनयां हैं , पुिाण—कथाएं हैं , 'समथ' हैं ।
जैन चौबीि तीथंकिों की ऊंचाई — शिीि की ऊंचाई — बहत काल्पसनक मालूम पड़ती है । उनमें
महावीि भि की ऊंचाई आदमी की ऊंचाई है , बाकी ते ईि तीथंकि बहत ऊंचे हैं । इतनी ऊंचाई हो नहीं
िकती; ऐिा ही वैज्ञासनकों का अब तक का खयाल था, लेसकन अब नहीं है । क्ोंसक वैज्ञासनक कहते
हैं , जैिे—जैिे जमीन सिकुड़ती गयी है , वैिे—वैिे जमीन पि ग्रेवीटे शन, गुरुत्वाकर्वण भािी होता गया है ।
औि सजि मात्रा में गुरुत्वाकर्वण भािी होता है , लोगों की ऊंचाई कम होती चली जाती है । आपकी दीवाल
की छत पि सछपकली चलती है , आप कभी िोच नहीं िकते सक सछपकली आज िे दि लाख िाल पहले
हाथी िे बड़ा जानवि थी। वह अकेली बची है , उिकी जासत के िािे जानवि खो गये।
उतने बड़े जानवि अचानक क्ों खो गये ? अब वैज्ञासनक कहते हैं सक जमीन के गुरुत्वाकर्वण में
कोई िाज सछपा हआ मालूम पड़ता है । अगि गुरुत्वाकर्वण औि िघन होता गया तो आदमी औि छोटा
होता चला जाएगा। अगि आदमी चां द पि िहने लगे तो आदमी की ऊंचाई चौगुनी हो जाएगी, क्ोंसक चां द
पि चौगुना कम है गुरुत्वाकर्वण पृथ्वी िे। अगि हमने कोई औि तािे औि ग्रह खोज सलये जहां गुरुत्वाकर्वण
औि कम हो तो ऊंचाई औि बड़ी हो जाएगी। इिसलए आज एकदम कथा कह दे नी बहत कसठन है ।
नमोकाि को जैन पिं पिा ने महामंत्र कहा है । पृथ्वी पि दि—पां च ऐिे मंत्र हैं जो नमोकाि की
है सियत के हैं । अिल में प्रत्येक धमव के पाि एक महामंत्र असनवायव है , क्ोंसक उिके इदव —सगदव ही उिकी
िािी व्यवस्था, िािा भवन सनसमवत होता है ।
ये महामंत्र किते क्ा हैं , इनका प्रयोजन क्ा है , इनिे क्ा फसलत हो िकता है ? आज िाउं ड—
इलेक्ट्रासनक्स, ध्वसन—सवज्ञान बहत िे नये तथ्ों के किीब पहं च िहा है । उिमें एक तथ् यह है सक इि
जगत में पैदा की गई कोई भी ध्वसन कभी भी नष्ट नहीं होती — इि अनंत आकाश में िं ग्रहीत होती चली
जाती है । ऐिा िमझें सक जै िे आकाश भी रिकाडव किता है , आकाश पि भी सकिी िूक्ष्म तल पि ग्रूव्‍ज बन
जाते हैं । इि पि रूि में इधि पंद्रह वर्ों िे बहत काम हआ है । उि काम पि दो—तीन बातें खयाल में ले
लेंगे तो आिानी हो जाएगी।
अगि एक िदभाव िे भिा हआ व्यक्ति, मंगल—कामना िे भिा हआ व्यक्ति आं ख बंद किके
अपने हाथ में जल िे भिी हई एक मटकी ले ले औि कुछ क्षण िदभावों िे भिा हआ उि जल की मटकी
को हाथ में सलए िहे — तो रूिी वैज्ञासनक कामेसनएव औि अमिीकी वैज्ञासनक डा. रुडोल्फ सकि, इन दो
व्यक्तियों ने बहत िे प्रयोग किके यह प्रमासणत सकया है सक वह जल गुणात्मक रूप िे परिवसतवत हो जाता
है । केसमकली कोई फकव नहीं होता। उि भली भावनाओं िे भिे हए, मंगल—आकां क्षाओं िे भिे हए व्यक्ति
के हाथ में जल का स्पशव जल में कोई केसमकल, कोई िािायसनक परिवतवन नहीं किता, लेसकन उि जल में
सफि भी कोई गुणात्मक परिवतवन हो जाता है । औि वह जल अगि बीजों पि सछड़का जाए तो वे जल्दी
अंकुरित होते हैं , िाधािण जल की बजाय। उनमें बड़े फूल आते हैं , बड़े फल लगते हैं । वे पौधे ज्यादा स्वस्थ
होते हैं , िाधािण जल की बजाय।
कामेसनएव ने िाधािण जल भी उन्हीं बीजों पि वैिी ही भूम में सछड़का है औि यह सवशेर् जल भी।
औि रुग्ण, सवसक्षप्त, सनगेसटव—इमोशंि िे भिे हए व्यक्ति, सनर्ेधात्मक—भाव िे भिे हए व्यक्ति, हत्या का
सवचाि किनेवाले, दू ििे को नुकिान पहं चाने का सवचाि किनेवाले, अमंगल की भावनाओं िे भिे हए
व्यक्ति के हाथ में सदया गया जल भी बीजों पि सछड़का है — या तो वे बीज अं कुरित ही नहीं होते , या
अंकुरित होते हैं तो रुग्ण अं कुरित होते हैं ।
पंद्रह वर्व हजािों प्रयणोएं के बाद यह सनष्पसि ली जा िकी सक जल में अब तक हम िोचते
थे 'केसमस्ट्री' ही िब कुछ है , लेसकन 'केसमकली' तो कोई फकव नहीं होता, िािायसनक रूप िे तीनों जलों में
कोई फकव नहीं होता, सफि भी कोई फकव होता है ; वह फकव क्ा है ? औि वह फकव जल में कहां िे प्रवेश
किता है ? सनसश्रत ही वह फकव, अब तक जो भी हमािे पाि उपकिण हैं , उनिे नहीं जां चा जा िकता।
लेसकन वह फकव होता है , यह परिणाम िे सिद्ध होता है । क्ोंसक तीनों जलों का आक्तत्मक रूप बदल जाता
है । 'केसमकल' रूप तो नहीं बदलता, लेसकन तीनों जलों की आआ में कुछ रूपां तिण हो जाता है ।
अगि जल में यह रूपां तिण हो िकता है तो हमािे चािों ओि फैले हए आकाश में भी हो िकता
है । मंत्र की प्राथसमक आधािसशला यही है । मंगल भावनाओं िे भिा हआ मंत्र, हमािे चािों ओि के आकाश
में गुणात्मक अंति पै दा किता है । 'कासलटे सटव टर ां िफामेंशन' किता है । औि उि मंत्र िे भिा हआ व्यक्ति
जब आपके पाि िे भी गुजिता है , तब भी वह अलग तिह के आकाश िे गुजिता है । उिके चािों तिफ
शिीि के आिपाि एक सभन्न तिह का आकाश, 'ए सडफिें ट कासलटी आफ स्पेि' पैदा हो जाती है ।
एक दू ििे रूिी वैज्ञासनक सकिसलयान ने 'हाई सिकेंिी फोटोग्राफी' सवकसित की है । वह शायद
आने वाले भसवष्य में िबिे अनूठा प्रयोग सिद्ध होगा। अगि मेिे हाथ का सचत्र सलया जाए,
'हाई सिकेंिी फोटोग्राफी' िे , जो सक बहत िंवेदनशील प्लेट्ि पि होती है , तो मेिे हाथ का सचत्र सिफव नहीं
आता, मेिे हाथ के आिपाि जो सकिणें मेिे हाथ िे सनकल िही हैं , उनका सचत्र भी आता है । औि आश्रयव की
बात तो यह है सक अगि मैं सनर्ेधात्मक सवचािों िे भिा हआ हूं तो मेिे हाथ के आिपाि जो सवद् युत—
पैटनव , जो सवद् युत के जाल का सचत्र आता है , वह रुग्ण, बीमाि, अस्वस्थ औि 'केआसटक', अिाजक होता है
— सवसक्षप्त होता है । जैिे सकिी पागल आदमी ने लकीिें खींची हों। अगि मैं शुभ भावनाओं िे , मंगल—
भावनाओं िे भिा हआ हूं आनंसदत हूं 'पासजसटव' हूं प्रफुक्तित हूं प्रभु के प्रसत अनुग्रह िे भिा हआ हूं तो मेिे
हाथ के आिपाि जो सकिणों का सचत्र आता है , सकिसलयान की फोटोग्राफी
िे, वह 'रिसिमक', लयबब्द, िुन्दिल, 'सिसमसटर कल ', िानुपासतक, औि एक औि ही व्यवस्था में सनसमवत
होता है ।
सकिसलयान का कहना है — औि सकिसलयान का प्रयोग तीि वर्ों की मेहनत है — सकिसलयान का
कहना है सक बीमािी के आने के छह महीने पहले शीघ्र ही हम बताने में िमथव हो जायेंगे सक यह आदमी
बीमाि होनेवाला है । क्ोंसक इिके पहले सक शिीि पि बीमािी उतिे , वह जो सवद् यु त का वतुव ल है उि पि
बीमािी उति जाती है । मिने के पहले, इिके पहले सक आदमी मिे , वह सवद् यु त का वतुवल सिकुड़ना शुरू
हो जाता है औि मिना शुरू हो जाता है । इिके पहले सक कोई आदमी हत्या किे सकिी की, उि सवद् युत
के वतुवल में हत्या के लक्षण शुरू हो जाते हैं । इिके पहले सक कोई आदमी सकिी के प्रसत करुणा िे
भिे , उि सवद् युत के वतुवल में करुणा प्रवासहत होने के लक्षण सदखाई पड़ने लगते हैं ।
सकिसलयान का कहना है सक केंिि पि हम तभी सवजय पा िकेंगे जब शिीि को पकड़ने के पहले
हम केंिि को पकड़ लें। औि यह पकड़ा जा िकेगा। इिमें कोई सवसध की भूल अब नहीं िह गयी है । सिफव
प्रयोगों के औि फैलाव की जरूित है । प्रत्येक मनुष्य अपने आिपाि एक आभामंडल लेकि, एक असत
लेकि चलता है । आप अकेले ही नहीं चलते , आपके आिपाि एक सवद् युत—वतुवल, एक 'इलेक्ट्रो—
डायनेसमक—फील्ड ' प्रत्येक व्यक्ति के आिपाि चलता है । व्य क्ति के आिपाि ही नहीं, पशुओं के
आिपाि भी, पौधों के आिपाि भी। अिल में रूिी वैज्ञासनकों का कहना है सक जीव औि अजीव में एक
ही फकव सकया जा िकता है , सजिके ' आिपाि आभामंडल है वह जीसवत है औि सजिके पाि आभामंडल
नहीं है , वह मृत है ।
जब आदमी मिता है तो मिने के िाथ ही आभामंडल क्षीण होना शुरू हो जाता है । बहत चसकत
किनेवाली औि िंयोग की बात है सक जब कोई आदमी मिता है तो तीन सदन लगते हैं उिके आभामंडल
के सविसजवत होने में। हजािों िाल िे िािी दु सनया में मिने के बाद तीििे सदन का बड़ा मूल्य िहा है । सजन
लोगों ने उि तीििे सदन को — तीििे को इतना मूल्य सदया था, उन्हें सकिी न सकिी तिह इि बात का
अनुभव होना ही चासहए, क्ोंसक वास्तसवक मृत्यु तीििे सदन घसटत होती है । इन तीन सदनों के बीच, सकिी
भी सदन वैज्ञासनक उपाय खोज लेंगे, तो आदमी को पुनरुज्जीसवत सकया जा िकता है । जब तक आभामंडल
नहीं खो गया, तब तक जीवन अभी शेर् है । हृदय की धड़कन बन्द हो जाने िे जीवन िमाप्त नहीं होता।
इिसलए सपछले महायुद्ध में रूि में छह व्यक्तियों को हृदय की धड़कन बंद हो जाने के बाद पुनरुज्जीसवत
सकया जा िका। जब तक आभामंडल चािों तिफ है , तब तक व्यक्ति िूक्ष्म तल पि अभी भी जीवन में
वापि लौट िकता है । अभी िेतु कायम है । अभी िास्ता बना है वापि लौटने का।
जो व्यक्ति सजतना जीवंत होता है , उिके आिपाि उतना बड़ा आभामंडल होता है । हम महावीि
की मूसतव के आिपाि एक आभामंडल सनसमवत किते हैं — या कृष्ण, या िाम, िाइस्ट् के आिपाि — तो
वह सिफव कल्पना नहीं है । वह आभामंडल दे खा जा िकता है । औि अब तक तो केवल वे ही दे ख िकते थे
सजनके पाि थोड़ी गहिी औि िूक्ष्म—दृसष्ट हो — समक्तस्ट्क्स, िंत, लेसकन 193० में एक अंग्रेज वैज्ञासनक ने
अब तो केसमकल, िािायसनक प्रसिया सनसमवत कि दी है सजििे प्रत्येक व्यक्ति — कोई भी — उि माध्यम
िे, उि यंत्र के माध्यम िे दू ििे के आभामंडल को दे ख िकता है ।
आप िब यहां बैठे है । प्रत्येक व्यक्ति का अपना सनजी आभामंडल है । जैिे आपके अंगूठे की छाप
सनजी—सनजी है वैिे ही आपका आभामंडल भी सनजी है । औि आपका आभामंडल आपके िंबंध में वह
िब कुछ कहता है जो आप भी नहीं जानते। आपका आभामंडल आपके िं बंध में बातें भी कहता है जो
भसवष्य में घसटत होंगी। आपका आभामंडल वे बातें भी कहता है जो अभी आपके गहन अचेतन में सनसमवत
हो िही हैं , बीज की भां सत, कल क्तखलेगी औि प्रगट होंगी।
मंत्र आभामंडल को बदलने की आमूल प्रसिया है । आपके आिपाि की स्पेि, औि आपके
आिपाि का 'इलेक्ट्रो—डायनेसमक—फील्ड ' बदलने की प्रसिया है । औि प्रत्येक धमव के पाि एक महामंत्र
है । जैन पिम्पिा के पाि नमोकाि है — आश्रयवकािक घोर्णा — एिो पंच नमुकािो, िब्बपावप्पणािणो।
िब पाप का नाश कि दे , ऐिा महामंत्र है नमोकाि। ठीक नहीं लगता। नमोकाि िे कैिे पाप नष्ट हो
जाएगा?नमोकाि िे िीधा पाप नष्ट नहीं होता, लेसकन नमोकाि िे आपके आिपाि 'इलेक्ट्रो—
डायनेसमक—फील्ड ' रूपां तरित होता है औि पाप किना अिंभव हो जाता है । क्ोंसक पाप किने के सलए
आपके पाि एक खाि तिह का आभामंडल चासहए। अगि इि मंत्र को िीधा ही िु नेंगे तो लगेगा कैिे हो
िकता है ? एक चोि यह मंत्र पढ लेगा तो क्ा होगा? एक हत्यािा यह मंत्र पढ लेगा तो क्ा होगा? कैिे
पाप नष्ट हो जाएगा? पाप नष्ट होता है इिसलए, सक जब आप पाप किते हैं , उिके पहले आपके पाि एक
सवशेर् तिह का, पाप का आभामंडल चासहए — उिके सबना आप पाप नहीं कि िकते — वह आभामंडल
अगि रूपां तरित हो जाए तो अिंभव हो जाएगी बात, पाप किना अिंभव हो जाएगा।
यह नमोकाि कैिे उि आभामंडल को बदलता होगा? यह नमस्काि है , यह नमन का भाव है ।
नमन का अथव है िमपवण। यह शाक्तब्दक नहीं है । यह नमो अरिहं ताणं , यह अरिहं तों को नमस्काि किता हूं
यह शाक्तब्दक नहीं है , ये शब्द नहीं हैं , यह भाव है । अगि प्राणों में यह भाव िघन हो जाए सक अरिहं तों को
नमस्काि किता हूं तो इिका अथव क्ा होता है ? इिका अथव होता है , जो जानते हैं उनके चिणों में सिि
िखता हूं । जो पहं च गए हैं , उनके चिणों में िमसपवत किता हूं । जो पा गए हैं , उनके द्वाि पि मैं सभखािी
बनकि खड़ा होने को तै याि हूं ।
सकिसलयान की फोटोग्राफी ने यह भी बताने की कोसशश की है सक आपके भीति जब भाव बदलते
हैं तो आपके आिपाि का सवद् युत—मंडल बदलता है । औि अब तो ये फोटोग्राफ उपलब्ध हैं । अगि आप
अपने भीति सवचाि कि िहे हैं चोिी किने का, तो आपका आभामंडल औि तिह का हो जाता है —
उदाि, रुग्ण, खूनी िं गों िे भि जाता है । आप सकिी को, सगि गये को उठाने जा िहे हैं — आपके
आभामंडल के िं ग तत्काल बदल जाते हैं ।
रूि में एक मसहला है , 'ने ल्या माइखालावा। इि मसहला ने सपछले पं द्रह वर्ों में रूि में आमूल
िां सत खड़ी कि दी है । औि आपको यह जानकि है िानी होगी सक मैं रूि के इन वैज्ञासनकों के नाम क्ों ले
िहा हूं । कुछ कािण हैं । आज िे चालीि िाल पहले अमिीका के एक बहत
बड़े प्रोफेट एडगि केयिी ने , सजिको अमिीका का 'स्लीसपंग प्रोफेट' कहा जाता है ; जो सक िो जाता था
गहिी तंद्रा में, सजिे हम िमासध कहें , औि उिमें वह जो भसवष्यवासणयां किता था वह अब तक िभी िही
सनकली हैं । उिने थोड़ी भसवष्यवासणयां नहीं कीं, दि हजाि भसवष्यवासणयां कीं। उिकी एक भसवष्यवाणी
चालीि िाल पहले की है — उि वि तो िब लोग है िान हए थे — उिने यह भसवष्यवाणी की थी सक
आज िे चालीि िाल बाद धमव का एक नवीन वैज्ञासनक आसवभाव व रूि िे प्रािं भ होगा। रूि
िे? औि एडगि केयिी ने चालीि िाल पहले कहा, जबसक रूि में तो धमव नष्ट सकया जा िहा था, चचव
सगिाये जा िहे थे, मंसदि हटाये जा िहे थे, पादिी—पुिोसहत िाइबेरिया भेजे जा िहे थे। उन क्षणों की कल्पना
भी नहीं की जा िकती थी सक रूि में जन्म होगा। रूि अकेली भूसम थी उि िमय जमीन पि जहां धमव
पहली दफे व्यवक्तस्थत रूप िे नष्ट सकया जा िहा था, जहां पहली दफा नाक्तस्तकों के हाथ में ििा थी। पूिे
मनुष्य जासत के इसतहाि में जहां पहली बाि नाक्तस्तकों ने एक िं गसठत प्रयाि सकया था — आक्तस्तकों के
िंगसठत प्रयाि तो होते िहे है । औि केयिी की यह घोर्णा सक चालीि िाल बाद रूि िे जन्म होगा!
अिल में जैिे ही रूि पि नाक्तस्तकता असत आग्रहपूणव हो गयी तो जीवन का एक सनयम है सक
जीवन एक तिह का िंतुलन सनसमवत किता है । सजि दे श में बड़े नाक्तस्तक पै दा होने बंद हो जाते हैं , उि दे श
में बड़े आक्तस्तक भी पै दा होने बंद हो जाते हैं । जीवन एक िंतुलन है । औि जब रूि में
इतनी प्रगाढ़ नाक्तस्तकता थी तो ' अंडिग्राउं ड', सछपे मागों िे आक्तस्तकता ने पुन: आसवष्काि किना शुरू कि
सदया। स्ट्े सलन के मिने तक िािी खोजबीन सछपकि चलती थी, स्ट्े सलन के मिने के बाद वह खोजबीन प्रगट
हो गयी। स्ट्े सलन खुद भी बहत है िान था। वह मैं बात आपिे करू ं गा।
यह माइखालोवा पंद्रह वर्व िे रूि में िवाव सधक महत्वपूणव व्यक्तित्व है । क्ोंसक माइखालोवा सिफव
ध्यान िे सकिी भी वस्तु को गसतमान कि पाती है । हाथ िे नहीं, शिीि के सकिी प्रयोग िे नहीं। वहां
दू ि, छह फीट दू ि िखी हई कोई भी चीज माइखालोवा सिफव उि पि एकाग्र सचि होकि उिे गसतमान —
या तो अपने पाि खींच पाती है , वस्तु चलना शुरू कि दे ती है , या अपने िे दू ि हटा पाती
है , या 'मैगनेसटक नीडल ' लगी हो तो उिे घुमा पाती है , या घड़ी हो तो उिके कां टे को तेजी िे चक्कि दे
पाती है , या घड़ी हो तो बंद कि पाती है — िैकड़ों प्रयोग। लेसकन एक बहत है िानी की बात है सक
अगि माइखालोवा प्रयोग कि िही हो औि आिपाि िं देहशील लोग हों तो उिे पां च घंटे लग जाते हैं , तब
वह सहला पाती है । अगि आिपाि समत्र हों, िहानुभूसतपू णव हों, तो वह आधे घंटे में सहला पाती है । अगि
आिपाि श्रद्धा िे भिे लोग हों तो पां च समनट में। औि एक मजे की बात है सक जब उिे पां च घंटे लगते है
सकिी वस्तु को सहलाने में तो उिका कोई दि पौंड वजन कम हो जाता है । जब उिे आधा घंटा लगता है तो
कोई तीन पौंड वजन कम होता है । औि जब पां च समनट लगते हैं तो उिका कोई वजन कम नहीं होता है ।
ये पंद्रह िालों के बड़े वैज्ञासनक प्रयोग सकये गये हैं । दो नोबल प्राइज़ सवनि वैज्ञासनक
डा. वािीसलएव औि कामेसनएव औि चालीि औि चोटी के वैज्ञासनकों ने हजािों प्रयोग किके इि बात की
घोर्णा की है सक माइखालोवा जो कि िही है , वह तथ् है । औि अब उन्होंने यंत्र सवकसित सकये हैं सजनके
द्वािा माइखालोवा के आिपाि क्ा घसटत होता है , वह रिकाडव हो जाता है । तीन बातें रिकाडव होती हैं । एक
तो जैिे ही माइखालोवा ध्यान एकाग्र किती है , उिके आिपाि का आभामंडल सिकुड़ि एक धािा में बहने
लगता है — सजि वस्तु के ऊपि वह ध्यान किती है , जैिे लेिि िे की तिह, एक सवद् युत की सकिण की
तिह िंग्रहीत हो जाता है । औि उिके चािों तिफ सकिसलयान फोटोग्राफी िे, जै िे सक िमुद्र में लहिें उठती
हैं , ऐिा उिका आभामंडल तिं सगत होने लगता है । औि वे तिं गें चािों तिफ फैलने लगती हैं । उन्हीं तिं गों
के धक्के िे वस्तुएं हटती हैं या पाि खींची जाती है । सिफव भाव मात्र — उिका भाव सक वस्तु मेिे पाि आ
जाए, वस्तु पाि आ जाती है । उिका भाव सक दू ि हट जाए, वस्तु दू ि चली जाती है ।
इििे भी है िानी की बात जो तीििी है वह यह सक रूिी वैज्ञासनकों का खयाल है सक यह जो एनजी
है , यह चािों तिफ जो ऊजाव फैलती है , इिे िंग्रहीत सकया जा िकता है , इिे यंत्रों में िंग्रहीत सकया जा
िकता है । सनसश्रत ही जब एनजी है तो िंग्रहीत की जा िकती है । कोई भी ऊजाव िंग्रहीत की जा िकती है ।
औि इि प्राण—ऊजाव का, सजिको योग 'प्राण' कहता है , यह ऊजाव अगि यंत्रों में िं ग्रहीत हो जाए, तो उि
िमय जो मूलभाव था व्यक्ति का, वह गुण उि िं ग्रहीत शक्ति में भी बना िहता है ।
जैिे, माइखालोवा अगि सकिी वस्तु को अपनी तिफ खींच िही है , उि िमय उिके शिीि िे जो
ऊजाव सगि िही है — सजिमें सक उिका तीन पौंड या दि पौंड वजन कम हो जाएगा — वह ऊजाव िं ग्रहीत
की जा िकती है । ऐिे रििेप्‍सटव यंत्र तै याि सकये गये हैं सक वह ऊजाव उन यंत्रों में प्रसवष्ट हो जाती है औि
िंग्रहीत हो जाती है । सफि यसद उि यंत्र को इि कमिे में िख सदया जाए औि
आप कमिे के भीति आएं तो वह यं त्र आपको अपनी तिफ खींचेगा। आपका मन होगा उिके पाि जाएं —
यंत्र के, आदमी वहां नहीं है । औि अगि माइखालोवा सकिी वस्तु को दू ि हटा िही थी औि शक्ति िंग्रहीत
की है , तो आप इि कमिे में आएं गे औि तत्काल बाहि भागने का मन होगा।
क्या भाव शक्ति में इस भांदत प्रदवष्ट हो जाते हैं ?

मंत्र की यही मूल आधािसशला है। शब्द में, सवचाि में, तिं ग में भाव िंग्रहीत औि िमासवष्ट हो
जाते हैं । जब कोई व्यक्ति कहता है — नमो अरिहं ताणं , मैं उन िबको सजन्होंने जीता औि जाना अपने
को, उनकी शिण में छोड़ता हूं तब उिका अहं काि तत्काल सवगसलत होता है । औि सजन—सजन लोगों ने
इि जगत में अरिहं तों की शिण में अपने को छोड़ा है , उि महाधािा में उिकी शक्ति िक्तिसलत होती है ।
उि गंगा में वह भी एक सहस्सा हो जाता है । औि इि चािों तिफ आकाश में, इि अरिहं त के भाव के
आिपाि जो ग्रुब्ज सनसमवत हए हैं , जो स्पेि में, आकाश में जो तिं गें िं ग्रहीत हई हैं , उन िंग्रहीत तिं गों में
आपकी तिं ग भी चोट किती है । आपके चािों तिफ एक वर्ाव हो जाती है जो आपको सदखाई नहीं पड़ती।
आपके चािों ओि एक औि सदव्यता का, भगविा का लोक सनसमवत हो जाता है । इि लोक के िाथ, इि भाव
लोक के िाथ आप दू ििे तिह के व्यक्ति हो जाते हैं ।
महामंत्र स्वयं के आिपाि के आकाश को, स्वयं के आिपाि के आभामंडल को बदलने की
कीसमया है । औि अगि कोई व्यक्ति सदन—िात जब भी उिे स्मिण समले, तभी नमोकाि में डूबता िहे , तो
वह व्यक्ति दू ििा ही व्यक्ति हो जाएगा। वह वही व्यक्ति नहीं िह िकता, जो वह था।
पां च नमस्काि हैं । अरिहं त को नमस्काि। अरिहं त का अथव होता है : सजिके िािे शत्रु सवनष्ट हो
गये ; सजिके भीति अब कुछ ऐिा नहीं िहा सजििे उिे लड़ना पड़े गा। लड़ाई िमाप्त हो गयी। भीति अब
िोध नहीं है सजििे लड़ना पड़े , भीति अब काम नहीं है , सजििे लड़ना पड़े , अज्ञान नहीं है । वे िब िमाप्त
हो गये सजनिे लड़ाई थी।
अब एक 'नान—कानल्‍सफक्‍ट', एक सनद्वं द्व अक्तस्तत्व शु रू हआ। अरिहं त सशखि है , सजिके आगे
यात्रा नहीं है । अरिहं त मंसजल है , सजिके आगे सफि कोई यात्रा नहीं है । कुछ किने को न बचा जहां , कुछ
पाने को न बचा जहां , कुछ छोड़ने को भी न बचा जहां — जहां िब िमाप्त हो गया — जहां शुद्ध अक्तस्तत्व
िह गया, 'प्योि एक्तिस्ट्ें ि ' जहां िह गया, जहां ब्रह्म मात्र िह गया, जहां होना मात्र िह गया, उिे कहते हैं
अरिहं त।
अदभुत है यह बात भी सक इि महामंत्र में सकिी व्यक्ति का नाम नहीं है — महावीि का
नहीं, पार्श्वनाथ का नहीं, सकिी का नाम नहीं है । जैन पिं पिा का भी कोई नाम नहीं। क्ोंसक जैन पिं पिा यह
स्वीकाि किती है सक अरिहं त जैन पिं पिा में ही नहीं हए हैं औि िब पिं पिाओं में भी हए हैं ।
इिसलए अरिहं तों को नमस्काि है — सकिी अरिहं त को नहीं है । यह नमस्काि बड़ा सविाट है । िंभवत: सवर्श्
के सकिी धमव ने ऐिा महामंत्र — इतना िवां गीण, इतना िववस्पशी — सवकसित नहीं सकया है । व्यक्तित्व
पि जैिे खयाल ही नहीं है , शक्ति पि खयाल है । रूप पि ध्यान ही नहीं है , वह जो अरूप ििा है , उिी का
खयाल है — अरिहं तों को नमस्काि।
अब महावीि को जो प्रे म किता है , कहना चासहए महावीि को नमस्काि; बुद्ध को जो प्रेम किता
है , कहना चासहए बुद्ध को नमस्काि; िाम को जो प्रे म किता है , कहना चासहए िाम को नमस्काि— पि यह
मंत्र बहत अनूठा है । यह बेजोड है । औि सकिी पिं पिा में ऐिा मंत्र नहीं है , जो सिफव इतना कहता है —
अरिहं तों को नमस्काि; िबको नमस्काि सजनकी मंसजल आ गयी है । अिल में मंसजल को नमस्काि। वे जो
पहं च गये, उनको नमस्काि।
लेसकन अरिहं त शब्द सनगेसटव है , नकािात्मक है । उिका अथव है — सजनके शत्रु िमाप्त हो गये।
वह पासजसटव नहीं है , वह सवधायक नहीं है । अिल में इि जगत में जो श्रेष्ठतम अवस्था है उिको सनर्ेध िे
ही प्रगट सकया जा िकता है , 'नेसत—नेसत' िे, उिको सवधायक शब्द नहीं सदया जा िकता। उिके कािण
हैं । िभी सवधायक शब्दों में िीमा आ जाती है , सनर्ेध में िीमा नहीं होती। अगि मैं कहता हूं — 'ऐिा है ', तो
एक िीमा सनसमवत होती है । अगि मैं कहता हूं — 'ऐिा नहीं है ', तो कोई िीमा नहीं सनसमवत होती। नहीं की
कोई िीमा नहीं है , 'है ' की तो िीमा है । तो 'है ' तो बहत छोटा शब्द है । 'नहीं' है बहत सविाट। इिसलए पिम
सशखि पि िखा है अरिहं त को। सिफव इतना ही कहा है सक सजनके शत्रु िमाप्त हो गये , सजनके अंतद्वं द्व
सवलीन हो गये — नकािात्मक — सजनमें लोभ नहीं, मोह नहीं, काम नहीं — क्ा है , यह नहीं कहा, क्ा
नहीं है सजनमें, वह कहा।
इिसलए अरिहं त बहत वायवीय, बहत 'एब्सटर े क्ट् ' शब्द है औि शायद पकड़ में न आये , इिसलए
ठीक दू ििे शब्द में 'पासजसटव' का उपयोग सकया है — नमो सिद्धाणं। सिद्ध का अथव होता है वे , सजन्होंने पा
सलया। अरिहं त का अथव होता है वे, सजन्होंने कुछ छोड सदया। सिद्ध बहत 'पासजसटव' शब्द है ।
सिक्तद्ध, उपलक्तब्ध, 'अचीवमेंट', सजन्होंने पा सलया। लेसकन ध्यान िहे , उनको ऊपि िखा है सजन्होंने खो सदया।
उनको नंबि दो पि िखा है सजन्होंने पा सलया। क्ों? सिद्ध अरिहं त िे छोटा नहीं होता — सिद्ध वहीं पहं चता
है जहां अरिहं त पहं चता है , लेसकन भार्ा में पासजसटवनंबि दो पि िखा जाएगा। 'नहीं ', 'शून्य' प्रथम है ,
'होना' सद्वतीय है , इिसलए सिद्ध को दू ििे स्थल पि िखा। लेसकन सिद्ध के िंबंध में भी सिफव इतनी ही िूचना
है . पहं च गये , औि कुछ नहीं कहा है । कोई सवशेर्ण नहीं जोड़ा। पि जो पहं च गये , इतने िे भी हमािी
िमझ में नहीं आएगा। अरिहं त भी हमें बहत दू ि लगता है — शून्य हो गये जो, सनवाव ण को पा गये जो, समट
गये जो, नहीं िहे जो। सिद्ध भी बहत दू ि हैं । सिफव इतना ही कहा है , पा सलया सजन्होंने। लेसकन क्ा? औि
पा सलया, तो हम कैिे जानें ? क्ोंसक सिद्ध होना अनसभव्यि भी हो िकता है , 'अनमेसनफेस्ट्' भी हो िकता
है ।
बुद्ध िे कोई पूछता है सक आपके ये दि हजाि सभक्षु — हां , आप बुद्धत्व को पा गये —इनमें िे
औि सकतनों ने बुद्धत्व को पा सलया है ? बुद्ध कहते हैं : बहतों ने। लेसकन वह पूछनेवाला कहता है —
सदखाई नहीं पड़ता। तो बुद्ध कहते हैं . मैं प्रगट होता हूं वे अप्रगट हैं । वे अपने में सछपे हैं , जैिे बीज में वृक्ष
सछपा हो। तो सिद्ध तो बीज जैिा है , पा सलया। औि बहत बाि ऐिा होता है सक पाने की घटना घटती है औि
वह इतनी गहन होती है सक प्रगट किने की चेष्टा भी उििे पैदा नहीं होती। इिसलए िभी सिद्ध बोलते
नहीं, िभी अरिहं त बोलते नहीं। िभी सिद्ध, सिद्ध होने के बाद जीते भी नहीं। इतनी लीन भी हो िकती है
चेतना उि उपलक्तब्ध में सक तत्क्षण शिीि छूट जाए। इिसलए हमािी पकड़ में सिद्ध भी न आ िकेगा। औि
मंत्र तो ऐिा चासहए जो पहली िीढ़ी िे लेकि आक्तखिी सशखि तक, जहां सजिकी पकड़ में आ जाए, जो
जहां खड़ा हो वहीं िे यात्रा कि िके। इिसलए तीििा िूत्र कहा है , 'आचायों को नमस्काि'।
आचायव का अथव है : वह सजिने पाया भी औि आचिण िे प्रगट भी सकया। आचायव का अथव :
सजिका जान औि आचिण एक है । ऐिा नहीं है सक सिद्ध का आचिण ज्ञान िे सभन्न होता है । लेसकन शून्य
हो िकता है । हो ही न, आचिण—शून्य ही हो जाए। ऐिा भी नहीं है सक अरिहं त का आचिण सभन्न होता
है , लेसकन अरिहं त इतना सनिाकाि हो जाता है सक आचिण हमािी पकड में न आएगा। हमें िेम चासहए
सजिमें पकड़ में आ जाए। आचायव िे शायद हमें सनकटता मालूम पड़े गी। उिका अथव है : सजिका ज्ञान
आचिण है । क्ोंसक हम ज्ञान को तो न पहचान पाएं गे, आचिण को पहचान लेंगे।
इििे खतिा भी हआ। क्ोंसक आचिण ऐिा भी हो िकता है जैिा ज्ञान न हो। एक आदमी
असहं िक न हो, असहं िा का आचिण कि िकता है । एक आदमी असहं िक हो तो सहं िा का आचिण नहीं
कि िकता— वह तो अिंभव है — लेसकन एक आदमी असहं िक न हो औि असहं िा का आचिण कि
िकता है । एक आदमी लोभी हो औि अलोभ का आचिण कि िकता है । उलटा नहीं है , 'द
वाइि वििा इज नाट पासिबल'। इििे एक खतिा भी पैदा हआ। आचायव हमािी पकड़ में आता है , लेसकन
वहीं िे खतिा शुरू होता है ; जहां िे हमािी पकड़ शुरू होती है , वहीं िे खतिा शुरू होता है । तब खतिा
यह है सक कोई आदमी आचिण ऐिा कि िकता है सक आचायव मालूम पड़े । तो मजबूिी है हमािी। जहां िे
िीमाएं बननी शुरू होती हैं , वहीं िे हमें सदखाई पड़ता है । औि जहां िे हमें सदखाई पड़ता है , वहीं िे हमािे
अंधे होने का डि है ।
पि मंत्र का प्रयोजन यही है सक हम उनको नमस्काि किते हैं सजनका ज्ञान उनका आचिण है । यहां
भी कोई सवशेर्ण नहीं है । वे कौन?वे कोई भी हों।
एक ईिाई फकीि जापान गया था औि जापान के एक झेन सभक्षु िे समलने गया। उिने पूछा झेन
सभक्षु को सक जीिि के िं बंध में आपका क्ा खयाल है ? तो उि सभक्षु ने कहा, मुझे जीिि के िंबंध में
कुछ भी पता नहीं, तुम कुछ कहो तासक मैं खयाल बना िकूं। तो उिने कहा सक जीिि ने कहा है , जो
तुम्हािे गाल पि एक चां टा मािे , तुम दू ििा गाल उिके िामने कि दे ना। तो उि झेन फकीि ने कहा :
आचायव को नमस्काि। वह ईिाई फकीि कुछ िमझ न िका। उिने कहा, जीिि ने कहा है सक जो अपने
को समटा दे गा, वही पाएगा। उि झेन फकीि ने कहा : सिद्ध को नमस्काि। वह कुछ िमझ न िका। उिने
कहा, आप क्ा कह िहे हैं ? उि ईिाई फकीि ने कहा सक जीिि ने अपने को िू ली पि समटा सदया, वे
शून्य हो गये, मृत्यु को उन्होंने चुपचाप स्वीकाि कि सलया वे सनिाकाि में खो गये। उि झेन फकीि ने कहा :
अरिहं त को नमस्काि।
आचिण औि ज्ञान एक हैं जहां , उिे हम आचायव कहते हैं । वह सिद्ध भी हो िकता है , वह अरिहं त
भी हो िकता है । लेसकन हमािी पकड़ में वह आचिण िे आता है । पि जरूिी नहीं है , क्ोंसक आचिण
बड़ी िूक्ष्म बात है औि हम बड़ी स्कूल बुक्तद्ध के लोग हैं । आचिण बड़ी िूक्ष्म बात है ! तय किना कसठन है
सक जो आचिण है ... अब जै िे महावीि को खदे ड़ कि भगाया गया, गां व—गां व महावीि पि पत्थि फेंके
गये। हम ही लोग थे, हम ही िब यह किते िहे । ऐिा मत िोचना कोई औि। महावीि की नग्नता लोगों को
भािी पड़ी, क्ोंसक लोगो ने कहा यह तो आचिणहीनता है । यह कैिा आचिण? आचिण बड़ा िूक्ष्म है । अब
महावीि का नग्न हो जाना इतना सनदोर् आचिण है , सजिका सहिाब लगाना कसठन है । सहित अदभुत है ।
महावीि इतने ििल हो गये सक सछपाने को कुछ न बचा। अब महावीि को इि चमड़ी औि हड्डी की दे ह का
बोध समट गया औि वह जो, सजिको रूिी वैज्ञासनक 'इलेक्ट्रोमैग्रेसटक—फील्ड ' कहते हैं , उि प्राण—शिीि
का बोध इतना िघन हो गया सक उि पि तो कोई कपड़े डाले नहीं जा िकते , कपड़े सगि गये। औि ऐिा
भी नहीं सक महावीि ने कपड़े छोड़े , कपड़े सगि गये।
एक सदन गुजिते हए एक िाह िे चादि उलझ गयी है एक झाडी में तो झाड़ी के फूल न सगि जाएं
पिे न टू ट जाएं कां टों को चोट न लग जाए, तो आधी चादि फाड़कि वहीं छोड़ दी। सफि आधी िह गयी
शिीि पि। सफि वह भी सगि गयी। वह कब सगि गयी उिका महावीि को पता न चला। लोगों को पता चला
सक महावीि नग्न खड़े हैं । आचिण िहना मुक्तिल हो गया।
आचिण के िास्ते िू क्ष्म हैं , बहत कसठन हैं । औि हम िब के आचिण के िं बंध में बंधे—
बंधाये खयाल हैं । ऐिा किो — औि जो ऐिा किने को िाजी हो जाते हैं , वे किीब—किीब मुदाव लोग हैं । जो
आपकी मानकि आचिण कि लेते हैं , उन मुदों को आप काफी पूजा दे ते हैं । इिमें कहा है , आचायों को
नमस्काि। आप आचिण तय नहीं किें गे, उनका ज्ञान ही उनका आचिण तय किे गा। औि ज्ञान पिम
स्वतंत्रता है । जो व्यक्ति आचायव को नमस्काि कि िहा है , वह यह भाव कि िहा है सक मैं नहीं जानता क्ा है
ज्ञान, क्ा है आचिण, लेसकन सजनका भी आचिण उनके ज्ञान िे उपजता औि बहता है , उनको मैं
नमस्काि किता हूं ।
अभी भी बात िूक्ष्म है ; इिसलए चौथे चिण में, उपाध्यायों को नमस्काि। उपाध्याय का अथव है —
आचिण ही नहीं, उपदे श भी। उपाध्याय का अथव है — ज्ञान ही नहीं, आचिण ही नहीं, उपदे श भी। वे जो
जानते हैं , जानकि वैिा जीते हैं ; औि जैिा वे जीते हैं औि जानते हैं , वैिा बताते भी हैं । उपाध्याय का अथव
है — वह जो बताता भी है । क्ोंसक हम मौन िे न िमझ पाएं । आचायव मौन हो िकता है । वह मान िकता है
सक आचिण काफी है । औि अगि तु म्हें आचिण सदखाई नहीं पड़ता तो तुम जानो। उपाध्याय आप पि औि
भी दया किता है । वह बोलता भी है , वह आपको कहकि भी बताता है ।
ये चाि िुस्पष्ट िे खाएं हैं । लेसकन इन चाि के बाहि भी जानने वाले छूट जाएं गे। क्ोंसक जानने वालों
को बां धा नहीं जा िकता 'कैटे गिीज़'में। इिसलए मंत्र बहत है िानी का है । इिसलए पां चवें चिण में एक
िामान्य नमस्काि है — 'नमो लोए िव्विाहूणं '। लोक में जो भी िाधु हैं , उन िबको नमस्काि। जगत में जो
भी िाधु हैं , उन िबको नमस्काि। जो उन चाि में कहीं भी छूट गये हों, उनके प्रसत भी हमािा नमन न छूट
जाए। क्ोंसक उन चाि में बहत लोग छूट िकते हैं । जीवन बहत िहस्यपूणव है , कैटे गिाइज़ नहीं सकया जा
िकता, खां चों में नहीं ' बां टा जा िकता। इिसलए जो शे र् िह जाएं गे, उनको सिफव िाधु कहा — वे जो
ििल हैं । औि िाधु का एक अथव औि भी है । इतना ििल भी हो िकता है कोई सक उपदे श दे ने में भी
िंकोच किे । इतना ििल भी हो िकता है कोई सक आचिण को भी सछपाये । पि उिको भी हमािे नमस्काि
पहं चने चासहए।
िवाल यह नहीं है सक हमािे नमस्काि िे उिको कुछ फायदा होगा, िवाल यह है सक हमािा
नमस्काि हमें रूपां तरित किता है । न अरिहं तों को कोई फायदा होगा, न सिद्धों को, न आचायों को, न
उपाध्यायों को, न िाधुओं को — पि आपको फायदा होगा। यह बहत मजे की बात है सक हम िोचते हैं सक
शायद इि नमस्काि में हम सिद्धों के सलए, अरिहं तों के सलए कुछ कि िहे हैं , तो इि भूल में मत पड़ना।
.आप उनके सलए कुछ भी न कि िकेंगे, या आप जो भी किें गे उिमें उपद्रव ही किें गे। आपकी इतनी ही
कृपा काफी है सक आप उनके सलए कुछ न किें । आप गलत ही कि िकते हैं । नहीं, यह
नमस्काि अरिहं तों के सलए नहीं है , अरिहं तों की तिफ है , लेसकन आपके सलए है । इिके जो परिणाम हैं ,वह
आप पि होने वाले हैं । जो फल है , वह आप पि बििे गा।
अगि कोई व्यक्ति इि भां सत नमन िे भिा हो, तो क्ा आप िोचते हैं उि व्यक्ति में अहं काि सटक
िकेगा? अिंभव है ।
लेसकन नहीं, हम बहत अदभुत लोग हैं । अगि अरिहं त िामने खड़ा हो तो हम पहले इि बात का
पता लगाएं गे सक अरिहं त है भी?महावीि के आिपाि भी लोग यही पता लगाते —लगाते जीवन नष्ट सकये —
अरिहं त है भी? तीथंकि है भी? औि आपको पता नहीं है , आप िोचते हैं सक बि तय हो गया, महावीि के
वि में बात इतनी तय न थी। औि भी भीड़ें थीं, औि भी लोग थे जो कह िहे थे — ये अरिहं त नहीं
हैं , अरिहं त औि हैं । गोशालक है अरिहं त। ये तीथंकि नहीं हैं , यह दावा झूठा है ।
महावीि का तो कोई दावा नहीं था। लेसकन जो महावीि को जानते थे, वे दावे िे बच भी नहीं िकते
थे। उनकी भी अपनी कसठनाई थी। पि महावीि के िमय पि चािों ओि यही सववाद था। लोग जां च किने
आते सक महावीि अरिहं त हैं या नहीं, वे तीथंकि हैं या नहीं, वे भगवान हैं या नहीं। बड़ी आश्रचयव की बात
है , आप जां च भी कि लेंगे औि सिद्ध भी हो जाएगा सक महावीि भगवान नहीं हैं , आपको क्ा समलेगा? औि
महावीि भगवान न भी हों औि आप अगि उनके चिणों में सिि िखें औि कह िकें, नमो अरिहं ताणं , तो
आपको समलेगा। महावीि के भगवान होने िे कोई फकव नहीं पड़ता।
अिली िवाल यह नहीं है सक महावीि भगवान हैं या नहीं, अिली िवाल यह है सक कहीं भी
आपको भगवान सदख िकते हैं या नहीं — कहीं भी — पत्थि में, पहाड़ में। कहीं भी आपको सदख िके तो
आप नमन को उपलब्ध हो जाएं । अिली िाज तो नमन में है , अिली िाज तो झुक जाने में है — अिली
िाज तो झुक जाने में है । वह जो झुक जाता है , उिके भीति िब कुछ बदल जाता है । वह आदमी दू ििा हो
जाता है । यह िवाल नहीं है सक कौन सिद्ध हैं औि कौन सिद्ध नहीं हैं — औि इिका कोई उपाय भी नहीं है
सक सकिी सदन यह तय हो िके — लेसकन यह बात ही 'इिे लेवेंट' है , अिंगत है । इििे कोई िंबंध ही नहीं
है । न िहे हों महावीि, इििे क्ा फकव पड़ता है । लेसकन अगि आपके सलए झुकने के सलए सनसमि बन
िकते हैं तो बात पूिी हो गयी। महावीि सिद्ध हैं या नहीं, यह वे िोचें औि िमझें, वह अरिहं त अभी हए या
नहीं यह उनकी अपनी सचंता है , आपके सलए सचंसतत होने का कोई भी तो कािण नहीं है । आपके सलए
सचंसतत होने का अगि कोई कािण है तो एक ही कािण है सक कहीं कोई कोना है इि अक्तस्तत्व में जहां
आपका सिि झुक जाए। अगि ऐिा कोई कोना है तो आप नये जीवन को उपलब्ध हो जाएं गे।
यह नमोकाि, अक्तस्तत्व में कोई कोना न बचे , इिकी चेष्टा है । िब कोने जहां —जहां सिि झुकाया
जा िके — अज्ञात, अनजान, अपरिसचत — पता नहीं कौन िाधु है , इिसलए नाम नहीं सलये। पता नहीं कौन
अरिहं त है । पि इि जगत में जहां अज्ञानी हैं , वहां ज्ञानी भी हैं । क्ोंसक जहां अंधेिा है , वहां प्रकाश भी है ।
जहां िात, िां झ होती है , वहां िुबह भी होती है । जहां िू िज अस्त होता है , वहां िूिज उगता भी है । यह
अक्तस्तत्व द्वं द्व की व्यवस्था है । तो जहां इतना िघन अज्ञान है , वहां इतना ही िघन ज्ञान भी होगा ही। यह
श्रद्धा है । औि इि श्रद्धा िे भिकि जो ये पां च नमन कि गाता है , वह एक सदन कह पाता है सक सनश्रय ही
मंगलमय है यह िूत्र। इििे िािे पाप सवनष्ट हो जाते हैं ।
ध्यान ले लें, मंत्र आपके सलये है । मंसदि में जब मूसतव के चिणों में आप सिि िखते हैं ि तो िवाल यह
नहीं है सक वे चिण पिमात्मा के हैं या नहीं, िवाल इतना ही है सक वह जो चिण के िमक्ष झुकने वाला सिि
है वह पिमात्मा के िमक्ष झुक िहा है या नहीं। वे चिण तो सनसमि हैं । उन चिणों का कोई प्रयोजन नहीं है ।
वह तो आपको झुकने की कोई जगह बनाने के सलए व्यवस्था की है । लेसकन झुकने में पीड़ा होती है । औि
इिसलए जो भी वैिी पीड़ा दे , उि पि िोध आता है । जीिि पि या महावीि पि या बुद्ध पि जो िोध आता
है , वह भी स्वाभासवक मालूम पड़ता है । क्ोंसक झुकने में पीड़ा होती है । अगि महावीि आएं औि आपके
चिण पि सिि िख दें तो सचि बड़ा प्रिन्न होगा। सफि आप महावीि को पत्थि न मािें गे! सफि आप महावीि
के कानों में कीले न ठोंकेंगे सक ठोंकेंगे? लेसकन महावीि आपके चिणों में सिि िख दें तो आपको कोई लाभ
नहीं होता। नुकिान होता है । आपकी अकड़ औि गहन हो जाएगी।
महावीि ने अपने िाधुओं को कहा है सक वह गैि—िाधुओं को नमस्काि न किें । बड़ी अजीब िी
बात है ! िाधु को तो सवनम्र होना चासहए। इतना सनिहं कािी होना चासहए सक िभी के चिणों में सिि िखे। तो
िाधु गैि—िाधु को, गृहस्थ को नमस्काि न किे — यह तो महावीि की बात अच्छी नहीं मालूम पड़ती।
लेसकन प्रयोजन करुणा का है । क्ोंसक िाधु सनसमि बनना चासहए सक आपका नमस्काि पैदा हो। औि िाधु
आपको नमस्काि किे तो सनसमि तो बने गा नहीं, आपकी अक्तस्मता औि अहं काि को औि मजबूत कि
दे गा। कई बाि सदखती है बात कुछ औि,होती है कुछ औि। हालां सक, जैन िाधुओं ने इिका ऐिा प्रयोग
सकया है , यह मैं नहीं कह िहा हूं । अिल में िाधु का तो लक्षण यही है सक सजिका सिि अब िबके चिणों
पि है । िाधु का लक्षण तो यही है सक सजिका सिि अब िबके चिणों पि है । सफि भी िाधु आपको
नमस्काि नहीं किता है । क्ोंसक सनसमि बनना चाहता है । लेसकन अगि िाधु का सिि आप िबके चिणों
पि न हो औि सफि वह आपको अपने चिणों में झुकाने की कोसशश किे तब वह आत्महत्या में लगा है । पि
सफि भी आपको सचंसतत होने की कोई भी जरूित नहीं है । क्ोंसक आत्महत्या का प्रत्येक को हक है । अगि
वह अपने निक का िास्ता तय कि िहा है तो उिे किने दें । लेसकन निक जाता हआ आदमी भी अगि
आपको स्वगव के इशािे के सलए सनसमि बनता हो तो अपना सनसमि लें, अपने मागव पि बढ़ जाएं । पि
नहीं, हमें इिकी सचंता कम है सक हम कहां जा िहे हैं , हमें इिकी सचंता ज्यादा है सक दू ििा कहां जा िहा
है ।
नमोकाि नमन का िूत्र है । यह पां च चिणों में िमस्त जगत में सजन्होंने भी कुछ पाया है , सजन्होंने भी
कुछ जाना है , सजन्होंने भी कुछ जीया है , जो जीवन के अंततवम गढ़ िहस्य िे परिसचत हए हैं , सजन्होंने मृत्यु
पि सवजय पायी है , सजन्होंने शिीि के पाि कुछ पहचाना है उन िबके प्रसत — िमय औि क्षे त्र दोनों में।
लोक दो अथव िखता है । लोक का अथव : सवस्ताि में जो हैं वे , स्पेि में, आकाश में जो आज हैं वे — लेसकन
जो कल थे वे भी औि जो कल होंगे वे भी। लोक — िब्ब लोए. िवव लोक में, िब्बिाहूणं : िमस्त िाधुओं
को। िमय के अंतिाल में पीछे कभी जो हए हों वे ,भसवष्य में जो होंगे वे, आज जो हैं वे , िमय या क्षेत्र में
कहीं भी जब भी कहीं कोई ज्योसत ज्ञान की जली हो, उि िबके सलए नमस्काि। इि नमस्काि के िाथ ही
आप तैयाि होंगे। सफि महावीि की वाणी को िमझना आिान होगा। इि नमन के बाद ही, इि झुकने के
बाद ही आपकी झोली फैलेगी औि महावीि की िं पदा उिमें सगि िकती है ।
नमन है 'रििेसटसवटी', ग्राहकता। जैिे ही आप नमन किते हैं , वैिे ही आपका हृदय खुलता है औि
आप भीति सकिी को प्रवेश दे ने के सलए तैयाि हो जाते हैं । क्ोंसक सजिके चिणों में आपने सिि
िखा, उिको आप भीति आने में बाधा न डालेंगे, सनमंत्रण दें गे। सजिके प्रसत आपने श्रद्धा प्रगट की, उिके
सलए आपका द्वाि, आपका घि खुला हो जाएगा। वह आपके घि, आपका सहस्सा होकि जी िकता है ।
लेसकन टर स्ट् नहीं है , भिोिा नहीं है , तो नमन अिंभव है । औि नमन अिंभव है तो िमझ अिंभव है । नमन
के िाथ ही 'अंडिस्ट्ें सडं ग' है , नमन के िाथ ही िमझ का जन्म है ।
इि ग्राहकता के िं बंध में एक आक्तखिी बात औि आपिे कहूं । मास्को यूसनवसिवटी में 1966 तक
एक अदभुत व्यक्ति था. डा. वासिवसलएव। वह ग्राहकता पि प्रयोग कि िहा था। 'माइं ड की रििेसटसवटी', मन
की ग्राहकता सकतनी हो िकती है । किीब—किीब ऐिा हाल है जै िे सक एक बड़ा भवन हो औि हमने
उिमें एक छोटा—िा छे द कि िखा हो औि उिी छे द िे हम बाहि के जगत को दे खते हैं । यह भी हो
िकता है सक भवन की िािी दीवािें सगिा दी जाएं औि हम खुले आकाश के नीचे िमस्त रूप िे ग्रहण
किने वाले हो जाएं । वासिवसलएव ने एक बहत है िानी का प्रयोग सकया — औि पहली दफा। उि तिह के
बहत िे प्रयोग पूिब में — सवशेर्कि भाित में, औि िवाव सधक सवशेर्कि महावीि ने सकये थे। लेसकन
उनका 'डायमेंशन', उनका आयाम अलग था। महावीि ने जासत—स्मिण के प्रयोग सकये थे सक प्रत्येक
व्यक्ति को आगे अगि ठीक यात्रा किनी हो तो उिे अपने सपछले जन्मों को स्मिण औि याद कि लेना
चासहए। उिको सपछले जन्म याद आ जाएं तो आगे की यात्रा आिान हो जाए।
लेसकन वासिवसलएव ने एक औि अनूठा प्रयोग सकया। उि प्रयोग को वे कहते हैं
: 'आसटव सफसशयल िीइनकािनेशन'। 'आसटव सफसशयलिीइनकािनेशन', कृसत्रम पुनजव न्म या कृसत्रम पु नरुज्जीवन
— यह क्ा है ? वासिवसलएव औि उिके िाथी एक व्यक्ति को बेहोश किें गे, तीि सदन तक सनिं ति
ििोसहत किके उिको गहिी बेहोशी में ले जाएं गे, औि जब वह गहिी बेहोशी में आने लगेगा, औि अब
यह यंत्र हैं — ई़ ई जी. नाम का यंत्र है , सजििे जां च की जा िकती है सक नींद की सकतनी गहिाई
है । अल्फा नाम की वेब्स पै दा होनी शुरू हो जाती हैं , जब व्यक्ति चेतन मन िे सगिकि अचेतन में चला
जाता है । तो यंत्र पि, जैिे सक कासडव योग्राम पि माफ बन जाता है , ऐिा ई ई जी. भी माफ बना दे ता है , सक
यह व्यक्ति अब िपना दे ख िहा है , अब िपने भी बन्द हो गए, अब यह नींद में हैं , अब यह गहिी नींद में
है , अब यह अतल गहिाई में डूब गया। जैिे ही कोई व्यक्ति अतल गहिाई में डूब जाता है , उिे िुझाव दे ता
था वासिवसलएव। िमझ लें सक वह एक सचत्रकाि है , छोटा—मोटा सचत्रकाि है , यह सचत्रकला का सवद्याथी
है , तो वासिवसलएव उिको िमझाएगा सक तू माइकल एं गइजलो है , सपछले जन्म का, या वानगाग है । या कसव
है तो वह िमझाएगा सक तू शेक्सपीयि है , या कोई औि। औि तीि सदन तक सनिं ति गहिी अल्फा बेक की
हालत में उिको िुझाव सदया जाएगा सक वह कोई औि है , सपछले जन्म का। तीि सदन में उिका सचि
इिको ग्रहण कि लेगा।
तीि सदन के बाद बड़ी है िानी के अनुभव हए, सक वह व्यक्ति जो िाधािण िा सचत्रकाि था, जब
उिे भीति भिोिा हो गया सक मैं माइकल एं सजलो हूं तब वह सवशेर् सचत्रकाि हो गया — तत्काल। वह
िाधािण—िा तुकबन्द था, जब उिे भिोिा हो गया सक मैं शेक्सपीयि हूं तो शेक्सपीयि की है सियत की
कसवताएं उि व्यक्ति िे पैदा होने लगीं।
हआ क्ा? वसिवसलएव तो कहता था — यह 'आसटव सफसशयल िीइनकािनेशन' है । वासिवसलएव कहता
था सक हमािा सचि तो बहत बड़ी चीज है । छोटी—िी क्तखड़की खुली है , जो हमने अपने को िमझ िखा है
सक हम यह हैं , उतना ही खुला है , उिी को मानकि हम जीते हैं । अगि हमें भिोिा सदया जाए सक हम औि
बड़े हैं , तो क्तखड़की बड़ी हो जाती है । हमािी चेतना उतना काम किने लगती है ।
वासिवसलएव का कहना है सक आने वाले भसवष्य में हम जीसनयि सनसमवत कि िकेंगे। कोई कािण
नहीं है सक जीसनयि पैदा ही न हों। िच तो यह है सक वािे सलएव कहता है , िौ में िे कम िे कम नब्बे बच्चे
प्रसतभा की, जीसनयि की क्षमता लेकि पैदा होते हैं , हम उिकी क्तखड़की छोटी कि दे ते हैं । मां —
बाप, स्कूल, सशक्षक, िब समल—जुलकि उनकी क्तखड़की छोटी कि दे ते हैं । बीि—पच्चीि िाल तक हम
एक िाधािण आदमी खड़ा कि दे ते हैं , जो सक क्षमता बड़ी लेकि आया था, लेसकन हम उिका द्वाि छोटा
किते जाते हैं , छोटा किते जाते हैं । वासिवसलएव कहता है , िभी बच्चे जीसनयि की तिह पैदा होते हैं । कुछ
जो हमािी तिकीबों िे बच जाते हैं वह जीसनयि बन जाते हैं , बाकी नष्ट हो जाते हैं । पि वासिवसलएव का
कहना है — अिली िूत्र है 'रििोइएसवटी'। इतना गाहक हो जाना चासहए सचि सक जो उिे कहा जाए, वह
उिके भीति गहनता में प्रवे श कि जाए।
इि नमोकाि मंत्र के िाथ हम शुरू किते हैं महावीि की वाणी पि चचाव । क्ोंसक गहन होगा
मागव, िूक्ष्म होंगी बातें । अगि आप ग्राहक हैं — नमन िे भिे , श्रद्धा िे भिे — तो आपके उि अतल गहिाई
में सबना सकिी यंत्र की िहायता के — यह भी यं त्र है , इि अथव में, नमोकाि — सबना सकिी यं त्र की िहायता
के आप में अल्फा वेब्स पैदा हो जाती हैं । जब कोई श्रद्धा िे भिता है तो अल्फा वेक पैदा हो जाती हैं — यह
आप है िान होंगे जानकि सक गहन ििोहन में, गहिी सनद्रा में, ध्यान में या श्रद्धा में ईईजी. की जो मशीन है
वह एक—िा माफ बनाती है । श्रद्धा िे भिा हआ सचि उिी शां सत की अवस्था में होता है सजि शां सत की
अवस्था में गहन ध्यान में होता है , या उिी शां सत की अवस्था में होता है , जैिा गहन सनद्रा में होता है , या
उिी शां सत की अवस्था में होता है , जैिा सक कभी भी आप जब बहत 'रिलैक्स' औि बहत शां त होते हैं ।
सजि व्यक्ति पि वासिवसलएव काम किता था, वह है सनकोसलएव नाम का युवक, सजि पि उिने
वर्ों काम सकया। सनकोसलएव को दो हजाि मील दू ि िे भी भेजे गये सवचािों को पकड़ने की क्षमता आ गयी
है । िैक्सों प्रयोग सकए गये हैं सजिमें वह दो हजाि मील दू ि तक के सवचािों को पकड़ पाता है । उििे जब
पूछा जाता है सक उिकी तिकीब क्ा है तो वह कहता है — तिकीब यह है सक मैं आधा घण्टा
पूणव 'रिलैक्स', सशसथल होकि पड़ जाता हूं औि 'णइक्ट्सवटी' िब छोड़ दे ता हूं भीति िब िसिया छोड़ दे ता
है 'पैसिव' हो जाता हूं । पुरुर् की तिह नहीं िी की तिह हो जाता हूं । कुछ भेजता नहीं कुछ आता हो तो लेने
को िाजी हो जाता हूं । औि आधा घण्टे में ई. ई. जी. की मशीन जब बता दे ती है सक अल्फा वेक शुरू हो
गयीं, तब वह दो हजाि मील दू ि िे भेजे गये सवचािों को पकड़ने में िमथव हो जाता है । लेसकन जब तक वह
इतना रििेप्‍सटव नहीं होता, तब तक यह नहीं हो पाता।
वासिवसलएव औि दो कदम आगे गया। उिने कहा — आदमी ने तो बहत तिह िे अपने को सवकृत
सकया है । अगि आदमी में यह क्षमता है तो पशुओं में औि भी शुद्ध होगी। औि इि िदी का अनूठे—िे —
अनूठा प्रयोग वासिवसलएव ने सकया सक एक मादा चूहे को, चुसहया को ऊपि िखा औि उिके आठ बच्चों को
पानी के भीति, पनडु ब्बी के भीति हजािों फीट नीचे िागि में भेजा। पनडु ब्बी का इिसलए उपयोग सकया
सक पानी के भीति पनडु ब्बी िे कोई िे सडयो—वेब्स बाहि नहीं आतीं, न बाहि िे भीति जाती हैं । अब तक
जानी गयी सजतनी वेब्स वैज्ञासनकों को पता हैं , सजतनी तिं गें, वे कोई भी पानी के भीति इतनी गहिाई तक
प्रवेश नहीं कितीं। एक गहिाई के बाद िूयव की सकिण भी पानी में प्रवेश नहीं किती।
तो उि गहिाई के नीचे पनडु ब्बी को भेज सदया गया, औि इि चुसहया की खोपड़ी पि िब तिफ
इलेक्ट्रोड् ि लगाकि ई. ई. जी. िे जोड़ सदये गए — मशीन िे , जो चुसहया के मक्तस्तष्क में जो वेब्स चलती हैं
उिको रिकाडव किे । औि बड़ी अदभुत बात हई। हजािों फीट नीचे , पानी के भीति एक—एक उिके बच्चे
को मािा गया खाि — खाि मोमेंट पि नोट सकया गया — जैिे ही वहां बच्चा मिता, वैिे ही यहां उिकी ई.
ई. जी. की वेब्स बदल जातीं — दु घवटना घसटत हो गयी। ठीक छह घण्टे में उिके बच्चे मािे गये — खाि—
खाि िमय पि, सनयत िमय पि। उि सनयत िमय का ऊपि कोई पता नहीं है । नीचे जो वैज्ञासनक है
उिको छोड़ सदया गया है सक इतने िमय के बीच वह कभी— भी, पि नोट किले समनट औि िैकष्ठ। सजि
समनट औि िैकष्ठ पि नीचे चुसहया के बच्चे मािे गये , उि मां ने उिके मक्तस्तष्क में उि वि धक्के अनुभव
सकए। वासिवसलएवका कहना है सक जानविों के सलए टै सलपैसथक िहज—िी घटना है । आदमी भूल गया
है , लेसकन जानवि अभी— भी टै सलपैसथक जगत में जी िहे हैं ।
मंत्र का उपयोग है , आपको वापि टै सलपैसथक जगत में प्रवेश — अगि आप अपने को
छोड़ पायें, हृदय िे, उि गहिाई िे कह पायें जहां सक आपकी अचेतना में डूब जाता है िब — '
'नमो अरिहं ताणं , नमो सिद्धाणं , नमो आयरियाणं , नमो उवस्कृायाणं , नमो लोए िव्विाहूणं , यह भीति उति
जाए तो आप अपने अनुभव िे कह पायें गे. 'िब्बपावप्पणािणो, ' यह िब पापों का नाश किने वाला
महामंत्र है ।

आज इतनी ही बात।

You might also like