Professional Documents
Culture Documents
Aak PDF
Aak PDF
com/home/Aak
Aak
From Jatland Wiki
॥ ओ३म ् ॥
भारत क िस जड़ बू ट थमाला-१
आक
ले ख क
मु क - जै यद स
ै , ब लीमारान, द ली-६
सु िम या नः आप औषधयः स तु
Digital text of the printed book prepared by - Dayanand Deswal दयान द दे सवाल
पृ ३-८
1 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
Contents
1 न िनवेदन
2 पूवपी ठका
3 अक (आक)
4 आक का पौधा
5 आक के गुण
6 अक फल
7 वषैला आक
8 संश य िनवारण
9 अक और यूनानी िच क सा
10 ने रोग और आक
11 लीहा (ित ली) पर आक के योग The author - Acharya Bhagwan Dev alias Swami
12 ास रोग पर आक Omanand Saraswati
न िनवे द न
सामा य मनु य चाहे जंगल, ाम, क बे, बड़े नगर कसी भी थान म िनवास करते ह , ायः सभी का एक ह वभाव
है क छोटे मोटे रोग पर वै , हक म वा डा टर के घर का ार शी ह नह ं खटखटाते । अपने घर, खेत, जंगल, आस
पड़ौस म सुगमता से जो भी घरे लू उपयोगी औषध िमल जाए, उसी का झट सेवन करते ह । क तु ित दन म
आने वाले जाने पहचाने पौधे वृ आक, ढाक, नीम, पीपल बड़ आ द का यथाथ ान न होने से अनेक रोग क
िच क सा इन के ारा भलीभांि त वे नह ं कर सकते । जो आक, नीम आ द सभी लोग को आगे पीछे घर और बाहर
सव और हर समय दखाई दे ते ह, जो पदाथ अ य त सुल भ ह उनके ारा अनेक रोग क वयं िच क सा भी कर
सक, इसी क याण क भावना से भारत क िस जड़ बूट थमाला का थम पु प अक वा आक आपको भट
कया जा रहा है ।
2 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
इसम सामा य प से रोग के िनदान वा पहचान, िच क सा, उपचार, प य पर भी काश डाला गया है । आशा है म
े ी
पाठक इस से लाभ उठायगे ।
- ओमान द सर वती
पूव पी ठका
भगवान ् क सृ म असं य जड़ -बू टयां ह जो परम ् दयालु भु ने ा णमा के क याणाथ उ प न क ह । जनको
उ प न करने से पूव अपनी परम प व वेदवाणी ारा उनके प व ान का काश भी ऋ षय के दय म कया ।
इसीिलए वेद सब स य व ाओं का पु तक है और वेद का पढ़ना पढ़ाना और सुनना सुनाना मानवमा का परम धम है ।
य क जब वेद सब स य व ाओं का भंडार है तो इसी के पढ़ने तथा उसके अनुसार आचरण करने से हम स चे सुख
क ाि कर सकते ह । क तु अलप होने से मानव ु ट करता है , भूल करता है , फल व प दःु ख भोगता है , रोगी
होता है क तु इसके चार ओर रोग क औषध व मान होते हुए भी अपनी अ प ता के कारण यह रोगी और दःु खी
रहता है । "'पानी म मीन यासी, मुझे दे खत आवे हांसी'" इस लोको के अनु प मानव क दग
ु ित हो रह है । इस
दद
ु शा से बचाने के िलए यह अक वा आक नाम क छोट सी पु तका िलख रहा हूं । अक भारत का एक िस पौधा है
जो आयुवद के शा म जानी मानी हुई औषध है , जसे छोटे -छोटे वै तथा ामीण अनपढ लोग भी जानते ह तथा
औषध प म योग भी करते ह । क तु वेद म इस अक के एक वशेष गुण क ओर संकेत कया जसका ान शायद
हजार अ छे वै म से भी कसी वै को होगा और उसका योग तो कसी वै ने अपने जीवन म भूलकर भी नह ं
कया है । मेरा यान इस ओर य गया, इसका एक मु य कारण है ।
एक बार हरयाणे के िस आय दानी पु ष चौ० य त जी खेड़ आसरा िनवासी ने मुझे चुनौती द क आप इस बात
को य करके दखाओ क “वेद सब स य व ाओं का पु तक है ” । मने उनको य करके दखाया, वे मान गये ।
तभी से मेरा यान इस ओर अिधक गया और इितहास के शोध-काय के साथ वेद और आयुवद पर भी शोध-काय कर
रहा हूँ । कई वष से मेरे ालु ोताओं ने मुझे अक वा आक पर िलखने के िलए बहुत बल दया । बहुत काय म फंसा
होने के कारण िलखते-िलखते कई वष िनकल गये क तु आयसमाज थापना शता द के होने वाले द ली के
महो सव २४ से २८ दसंबर १९७५ पर भागते-दौड़ते कुछ िलख ह डाला जो पाठक के हाथ म है । यह लेख िलखने के
िलए मुझे दो-तीन घटनाओं से और अिधक बल िमला ।
बहुत वष हुए रोहतक जले म एक ाम िसवाना है जो दब ू लधन माजरा के पास तहसील झ जर म है । म वहां कसी
कायवश गया । उस े म मुझे बहुत से लोग जानते ह क म िच क सा ारा जनता क कुछ सेवा करता हूँ । वहाँ पर
एक माता अपनी पु ी को मेरे पास लेकर आई जो सवथा अ धी थी, दोन आंख म चेचक के बड़े -बड़े फोले थे । कतने ह
वष से उसे कुछ भी दखाई नह ं दे ता था, इसी कारण उस क या क माता बहुत दःु खी थी, बह बहुत क णा-जनक श द
म इस कार कहने लगी क - मेर पु ी अंधी है , इससे ववाह कौन करे गा और म जवान अंधी बेट को घर कैसे और कब
तक रखूंगी ? मुझे माता के दःु ख और ववशता पर बड़ दया आ रह थी क तु म भी कुछ समझ नह ं पा रहा था, या
क ं । मने कहा - माता जी, चेचक के फोले ह, इनक िच क सा डा टर, वै कसी के पास भी नह ं, म तो चाहता हूं ई र
इसे आंख वाली कर दे । उस माता ने फर दःु ख से रोकर कहा - भाई, मने सुना है आप अ छ दवा जानते ह, यह बेचार
क या है , इस पर दया करो । मुझे उस समय एक योग याद आ गया जो कभी पढ़ा था क तु उसका योग नह ं कया
था । मने वह माता जी को बता कर वदा ली । वह तो बेचार द ु खया थी, उसने ापूवक बनाया और उसका योग
कया । जब म अगले वष उस ाम म गया तो वह माता अपने पु ी के साथ मुझे िमली । म स नता से आ य म पड़
गया । या दे खा, दोन आंख के फोले कट गए और अ धी क या सवथा आंख वाली सुल ाखी हो गई । वह माता बहुत
स न और कृत थी ।
तीय घटना
एक बार रोहतक म हरयाणे के सभी वै का स मेल न था । मुझे भी बुलाया था, उन सब ने मुझे अपनी सभा का अ य
बना दया और स मेल न क समाि पर सब ने मुझे अपने अनुभूत योग बताने का आ ह कया । मने उस दन अपने
अक (आक) पर ह कुछ अनुभ ूत योग बताये । कुछ वै ने वे योग िलख भी िलए । उन वै म से एक वै मुझे एक दन
गांव म िमल गया और उस ने िमलते ह पहली बात यह कह क आप का आक का अनुभूत योग बहुत ह अ छा है और
अ ध को दान करने वाला है । कतने ह अंध और काण क आंख उस योग से सवथा ठ क कर द , योग या
3 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
जाद ू है !
इन घटनाओं के प ात ् मने वयं भी आक के योग का खूब योग कया तथा अपने या यान म भी इस क खूब चचा
क , आक को द य औषध के प म दे खा । जतना आजमाया, उतना ह इस स य को पाया । इस स य को वेद म
खोजने का मने य कया, य क आयुवद तो वेद का एक उपवेद ह है । मेरा यान ऋ वेद के कुछ म पर गया जन
म अक क द यता क चचा है । ऋ वेद के थम म डल से लेकर दशव म डल तक १३ मं म १३ बार अक श द का
योग हुआ है जन म अक क द यता और मह ा पर काश पड़ता है - सूय, अ न, र म, करण इ या द । अक,
आक, पादप और इस िस औषध का भी नाम है जसक चचा इस पु तक म म कर रहा हूँ । वेद के मं के आधार पर
अक (आक) क चचा व तार से तो फर कभी क ं गा । इस समय कुछ थोड़ा सा िलखना पाठक के हत के िलए
आव यक है । ऋ वेद के म डल १० अ० ५ और सू ६८ का छठा म है -
बृह पित जो सब से बड़ा व ान है , वेद, उपवेद (आयुवद) आ द का महान ् आचाय है , वह अ नत व धान द य औषध
अक के ारा अपने िश य रोिगय का वल आवरण च ु रोग, फोला, जाला, मोितया ब द आ द को न करता है और
अक के द य गुण के ारा योित ( काश) अथात ् ने दान करता है । यह वह स य है जसके कारण जतने
सं कृत भाषा म सूय के नाम ह, वे सभी नाम इस अक के पौधे के ह, जो सूय म काश योित गम आ द गुण ह, वे इस
अक के पौधे म ह । सूय के िनकलते ह अ धकार, सद , ठं डक, शीत भाग जाता है उसी कार आक भी अ धेपन आ द
च ु रोग को दरू भगाता है । काण को आंख वाला और अ ध को सुल ाखा बनाता है वायु कफ के सब रोग को न करने
म अकेला ह समथ और श शाली है । सूय जस कार संस ार क सार मलिनता ग दगी को न करता है उसी कार
आक पामा, दाद चमदल (च बल) तथा भयंकर ग दे कु आ द रोग को न करने वाला है । सव कार के कृ िमरोग ,
पीड़ाओं, वायु कफ रोग तथा आंख के रोग का आक परम श ु है , इन को दरू भगाता है । गम के कारण जब ी म ऋतु
म सब कुछ सूख जाता है , तब म भूि म बागड़ म भयंकर रे िग तान जहां जल के दशन भी नह ं होते, वहां यह आक ह
फलता फूलता जवानी क म ती म झूमता रहता हुवा दखाई दे ता है य क यह भी सूय नामधार है । इसम आ नेय
त व का बाहु यु है जो क अपने नाम रािश वाले िम सूय के िनकत जाता उतना ह यह स न होकर फलता फूलता है
और वासा जस कार यह कहता है क -
र प ी यी कासी कमथमवसीदित ॥
संस ार म वासा व मान हो और रोगी को जी वत रहने क आशा हो तो फर र प , य (तपे दक), खांस ी का रोगी
य दःु ख पाता है ? इसी भांित अक (आक) भी रोिगय को स बोिधत करते हुए कहता है -
म वायु वकार, उदर, य (तपे दक), सभी कार के ने रोग, चम वकार और ग डमाला आ द रोग को णमा म न
कर दे ता हंू , अत: विधपूवक तुम मेरा सेवन करके रोगर हत हो जाओ । इसम कोई स दे ह नह ं है ॥२॥
- ओमान द सर वती
4 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
पृ ९-२०
अक (आक)
ध व तर य िनघ टु म अक अथात ् आक के वषय म इस कार िलखा
है -
राजाक वा शु लाक
ध व तर य िनघ टु म राजाक जो अक म वशेष कार का आक होता है , इसके उपरो नाम दये ह । इसी को ेत
अक (सफेद आक) कहते ह । कुछ व ान ् ेत अक को पृथक् मानते ह । जैसे राजिनघ टु म इस कार िलखा है -
शु लाक
शु लाक तपनः ेतः ताप िसताककः ।
5 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
शु लाक, तपन, ेत, ताप, िसताक, सुप ु प, शंकरा द नाम सफेद आक के ह । इसको वृ म लका भी कहते ह ।
य क सफेद आक सभी आक म े है , अतः इसे अक का राजा राजाक कहते ह । शु लाकः ेतः िसताककः वसुकः
अ यकः म दारः गण पकः एका ीलः सदापु पः ेतपु पः बालाकः और तापसः ये सभी नाम ेत अक अथात ् सफेद
आक के ह । य क इसके पु प वा फूल ेत (सफेद) होते ह, इसिलए इसका नाम ेत, िसताककः (िसता - िम ी के
समान ेत), वेतपु प, ेतपु पी और शु लाक आ द नाम से इसक िस है ।
अक (आक) के भे द
अक वा आक चार कार के होते ह । १. ेताक अथात ् सफेद आक, २. र ाक वा लाल आक, ३ लाल आक का ह दस ू रा
कार है जो उं चाई म सबसे छोटा और सबसे वषैला होता है । ४. पवतीय आक - यह पहाड़ आक पौधे के प म नह ं,
लता के प म होता है , जो उ र भारत म बहुत कम क तु महारा म पया मा ा म होता है ।
आक के अ य भाषाओं के नाम
नामः - अक, राजाक, वभावसु आ द सं कृ त भाषा के नाम ऊपर िलखे जा चुके ह । ह द - आक, म दार । बंगाली -
पाक द । मराठ - ई, चक , पाठर ई । तेलंगी - निल, ज ले, डे घोली, तेल ज लोड़े । फारसी - खरक, दधू । अरबी
- ऊषर । अं ेजी - जाकजे टक, वेल ो वट । लै टनः - केलो ो पस जायजे टका के ोस र इ या द आक के विभ न
भाषाओं के नाम ह ।
आक का पौधा
भारत दे श म आक के पौधे (झाड़) सब थान पर िमलते ह । ऊं चे पवत पर इसका
अभाव दे खने को िमलता है । वैसे तो सामा य प से इसको सब लोग जानते ह,
क तु औषध प म यह पौधा कतना गुणकार और हतकार है इसका वशेष
ान तो कसी- कसी वरले वै को ह है । सामा य जनता को तो इतना ह ान है
क यह एक वषैला पौधा है , कभी-कभी औषध के प म काय म आ जाता है ।
इसके वशेष ानाथ ह यह लघु पु तका िलखी है ।
6 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
वैसे आक का पौधा अपने आप म वात, कफ आ द के सभी रोग को न करने के िलए पूण औषधालय है । अं ेजी िश ा
के चार तथा एलोपैथी के सार से इस द य औषध क कुछ उपे ा करने लगे ह । फर भी आज तक ामीण लोग म
तो इसका चुर मा ा म औषध के प म चलन और उपयोग होता है । शहर लोग इसके लाभ से वंिचत हो रहे ह ।
कसी- कसी वशेष ने तो आक को वान पितक पारद िलखकर इसके गुण क यथाथता को कट कया है । आयुवद
शा ने इसके गुण का इस कार से वणन कया है ।
आक के गुण
ध व तर य िनघ टु गुणाः –
दोन कार के आक अथात ् ेताक और र ाक रे चक (द तावर) ह । वायुरोग को, कु , खुजली, वष, फोड़ , ित ली
रोग, गु म (गोला), बवासीर, कफ के रोग ( ास कासा द), पेट के रोग और मल के कृिमय (क ड़ ) को न करने वाले
ह।
ध व तर य िनघ टु म र वण के आक के गुण ये ह -
गुणाः -
र वण का आक अथात ् सामा य आक कडु वा, गम, वायु के रोग को जीतने वाला, द पक, पाचक, शोथ (सूजन) फोड़
को हरने वाला, खाज, कोढ़ और सब कार के कृिमय का नाश करने वाला है ।
गुणाः -
7 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
राजाक कडु वा तीखा और उ ण कृित का होता है । कफ, मेद (चब ) और वष को दरू भगाता है । वातरोग को, कोढ़ और
फोड़ को दरू करता है । शोथ (सूजन), खुजली तथा वसप आ द रोग का नाशक है ।
शु लाक
गुणाः -
भाविम ने आक के पु प और दध
ू के गुण को भी पृथक् -पृथक् िलखा है ।
े त आक के फू ल
सफेद आक का फूल वीयवधक, ह का, अ न को द पन करने वाला, पाचक है । अ िच, कफ, बवासीर, खांसी और ास
वनाशक है ।
लाल आक के फूल मधुर, कड़वे, कोढ़, कृिम, कफ, बवासीर, वष, र प , गु म (गोला) तथा सूजन को न करने वाला
है । र ाक के पु प बगनी रं ग के होते ह । खल जाने पर पांच वा चार पंख ड़यां अलग-अलग हो जाती ह और बीच म
िशव क प ड क मू के समान चौकोर पाई जाती है । इस र वण के पु प के आने का समय वशेष प से तो
फा गुन और चै मास ह ह । साधारण प से ये मास तक इनका खूब बाहु य रहता है । शीतकाल म तो पु प का
अभाव सा हो जाता है । वष म नौ-दस मास तक इस आक पर फूल थोड़े बहुत पाते ह रहते ह । ये , आषाढ़ मास म
सभी आक फूल से लदे रहते ह । आक का सूय के साथ वशेष स ब ध है । इसिलए जतने सूय के नाम ह उतने ह इस
आक के पौधे के ह । गम म जब पृ वी सूय के िनकट आ जाती है और सूय क भयंकर गम से तपने और जलने लगती
है , जोहड़, तड़ाग, बावड़ सब का जल सूख जाता है , बड़े वृ सूखने लगते ह तब एक यह पौधा है जो म भूिम म भी जहां
जल का नामो-िनशान भी नह ं दखाई दे ता और कुओं म भी जल सौ सौ हाथ नीचे होता है , उस समय यह आक खूब
फलता और फूलता है । इस पौधे म युवाव था ठाठ मारती है । यह आ नेयत व धान पौधा उस भयंकर उ ण काल म
खूब हरा भरा रहता है । सूय और गम सबसे अिधक िम आक के ह ह । सूय के गुण को सबसे अिधक आक का पेड़ ह
हण करता है । सूय के सभी गुण का अक वा आक आदान करता है । जैसे सूय क उ णता से गम म वायु और कफ
के रोग नह ं रहते, उनका लोप हो जाता है । उसी कार वायु और कफ के रोग को आक भी समूल न कर दे ता है । जैसे
सूय के काश से अ धकार दरू भाग जाता है , इसी कार आक क यह द यौषिध ा णय के च ु स ब धी वकार को
दरू करके द य योित दान करती है ।
आक क औषध
8 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
आक के द ूध के गु ण
गुणाः -
भाविम जी िलखते ह - आक का दध ू कड़वा, गम, िचकना, खार , ह का और कोढ़, गु म (गोला) तथा अ य उदर रोग
का नाशक है । वरे चन कराने म (द त के िलए) यह अित उ म है ।
े त आक के पु प के गु ण
सफेद आक के फूल वीयव क, ह के अ न को द पन करने वाले, पाचक और अ िच, कफ, बवासीर, खांस ी तथा ास,
दमा रोग के नाशक ह ।
र ाक के पु प के गु ण
लाल आक के फूल मधुर, कड़वे, ाह और कु , कृिम, कफ, बवासीर, वष, र प , गु म तथा सूजन को न करने
वाले ह ।
अक फल
आक के फल दे खने म अ भाग म तोते क च च के समान होते ह । इसीिलए आक
का एक नाम शुकफल है । ये फल ये मास तक पक जाते ह । इनके अ दर काले
रं ग के दाने वा बीज होते ह और बहुत कोमल ई से ये फल भरे रहते ह । इसक ई
भी वषैली होती है । फल का औषध म बहुत यून उपयोग होता है । ार बनाने
वाले आक के पंचांग म फल को भी जलाकर भ म बनाकर ार िनकालने क विध
से ार बनाकर औषध म उपयोग लेते ह । च ु रोग , कण रोग , जुकाम, खांस ी,
दमा, चम- वकार म, वषम वर, वात और कफ के रोग म इसके पु प, प ,े ीर,
जड़ क छाल सभी का उपयोग होता है जसका व तार से पृथक् पृथक् वणन आगे
प ढ़ये । आक का फल
े त म दारः
एक ेत म दारक नाम का बड़े पु प वाला, ऊंचा बढ़ने वाला, िम ी के समान ेत आक होता है । जतने शर (तीर) के
9 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
नाम होते ह उतने ह इसके नाम होते ह । यह सफेद आक का ह भेद है । इसके गुण िन न कार ह -
गुणाः -
जतने भी आक के भेद आयुवद के थ ने आक के पौध के िलखे ह, ायः सभी गुण सबसे िमलते-जुलते ह । गुण म
थोड़ा भेद पाया जाता है । आयुवद के थ म य -त जो भी आक के औषध प म सकड़ कार के योग िलखे ह वहाँ
कह ं भी यह नह ं िलखा क ेत आक का योग कर । केवल आक मा ह िलखा िमलता है । अतः पाठक को भी यह
उिचत है क जो आक उपल ध हो चाहे ेत वा सफेद आक हो अथवा र वा लाल आक हो उसी का योग िन संकोच
होकर कर । शा - विध के अनुसार आक का योग करने से अव यमेव लाभ होगा । इतना अव य यान रख य द
आपको ेत आक सरलता से िमल जाये तो उसी का उपयोग कर य क वह सव े आक वा आक का पौधा है । क तु
वह न िमले तो लाल आक को यथ समझकर ह न भावना से न दे ख य क लाल आक भी गुण का भ डार है । वह भी
जाद ू के समान भाव रखता है और सव सुलभ है ।
वषैला आक
जो आक क जाित सबसे छोट होती है अथात ् यह उं चाई म सबसे छोटा होता है और यह म भूिम (बागड़) म ह होता है
। इसके फूल सफेद िलए हुए पशताई रं ग के होते ह । इसको कुछ व ान ् सबसे वषैल ा मानते ह । अक कौन सा अिधक
वषैला है तथा कौन सा यून वष वाला, इसक पहचान यह है क आक का दध ू िनकालकर अपने नाखून पर उसक
दो-चार बूदं टपकाय । य द दध
ू बहकर नीचे िगर जाये तो कम वष वला है और य द वह ं अंगूठे पर जम जाये तो अिधक
वषैला है । अथात ् जो आक का दध
ू अिधक गाढ़ा होता है वह अिधक वषैला होता है और जो दध ू पतला होता है वह कम
वष वाला होता है । अिधक वषैल े दध
ू को सीधा खलाने क औषध म योग नह ं करना चा हए । अ य भ मा द
औषध बनाने म इसका योग कर सकते ह ।
पृ २१-२५
10 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
िम ट य द कुछ हो तो झाड़कर हटा दे व और अ तछाल को उतारकर छाया म सुखाकर अपने उपयोग म लाव । य द
कुछ काल पीछे उपयोग लेना हो तो कूट कपड़छान करके अ छ डाट वाली शीशी म ब द करके रख दे व । आक क
ब ढ़या छाल के चूण का रं ग चावल के रं ग के समान ह होता है । यह छाल वर, ित याय (जुकाम), खांस ी, अितसार,
कास, ास तथा गले के रोग को ठ क करती है । उपदं श क बहुत अ छ औषध है । व तार से रोग करणानुसार
िलखगे । जड़ क छाल क अपे ा आक के पु प अिधक गुणकार ह और पु प क अपे ा आक का दध ू अिधक और
शी भावकार है ।
आक के दध
ू क मा ा एक से चार बूद
ं तक है । वषैला अथात ् गाढ़ा हो तो खलाने म उसका योग न कर ।
संशय िनवारण
अक भेद के वषय म पाठक को स दे ह हो सकता है य क अक को एक ह कार का माना गया है । सु त ु कार ने अक
और अलक दो भेद माने ह । राजिनघ टु ने अक, ेताक, राजाक और ेत म दारक चार भेद िलखे ह । भाव काश
िनघ टु म ेत अक और र ाक दो भेद माने ह ।
पंजाब, हरयाणा, उ र दे श, आगरा, अवध, बहार और बंग दे श म अिधकतर बगनी रं ग के फूल वाले आक पाये जाते ह
और उ ह ह र ाक (लाल आक) कहते ह । क तु बंगाल म ेत रं ग के फूल पीतिमि त वण के अिधक पाये जाते ह ।
इ ह ह ेताक (सफेद आक) सफेद फूल वाले कहते ह । महारा म भी ये ेत अक पया मा ा म ा य ह । क तु
ध व तर य वा राजिनघ टु म म दारक और राजाक या है , यह वचारणीय वा खोज का वषय है । राजाक के पयाय म
राजिनघ टु कार ने िलखा है - राजाक वसु क ाऽलक म दारो गण पकः । अतः यह मानन पड़े गा क म दारक,
म दार, अलक और राजाक सब एक आक के पयायवाची नाम ह । अ णद तथा अ य लेखक ने म दाक और अलक
आ द को ेत े त पु प सफेद फूल वाला िलखा है । अतः म दाक राजाक ये सब ेत अक क जाित के ह ह ।
राजिनघ टु म राजाक को सदापु प और ेतम दारक तथा द घपु प िलखा है । बंगाल का ेताक सदापु प नह ं होता
और न ह उ र दे श , हरयाणा आ द का छोटे फूल वा गु छ वाला ेताक सदापु प होता है । अतः इससे यह िस होता
है क जस जाित के ेताक वस त से िभ न ऋतु वा अ य ऋतु म भी फूल दे ते ह वे ह राजाक हो सकते ह और जस
ेताक के पु प बड़े होते ह वे ह ेत म दारक होते ह । कुछ लेखक का ऐसा मत है - र ाक वा लाल आक क अपे ा
दधू ेताक (सफेद आक) म अिधक पाया जाता है , वह ह अिधक गुणकार होता है । उ र दे श म जस अक को म दार
पुकारते ह, वह बड़े -बड़े पतले प वाला और सफेद फूल वाला होता है । यह चमेली तथा जूह के समान अथवा लाल
कनेर के समान होता है । यह ेत म दारक वा राजाक है ।
सु त
ु क ट का म ड हण ने िलखा है - अलक म दारकः य य ीरं न वन यित । चरकशा म भी अक का
अमृतघृता द अनेक योग म योगाथ उ लेख कया है । यथा थान उसक चचा होगी ।
अक और यूनानी िच क सा
ऐलोपैिथक िच क सा प ित के मानने वाले डा टर लोग अक को वायु रोग, दाद, खुजली आ द चम रोग, भग दर,
नासूर आ द रोग के िलए हतकर मानते ह । उदर रोग के िलए भी हतकर मानते ह । यथा- थान इस वषय पर
11 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
क डू रोग
क डू , खुजली, खाज, पामा रोग यह सब पयायवाची ह । चरक शा ने क डू खुजली को ु कु रोग माना है
अथात ् कु (कोढ़) का छोटा कार है । यह क डू रोग खुजली के नाम से सव िस है । आयुवद का पामा नाम
इस क डू वा खुजली के िलए यु होता है । शर र के विभ न भाग म वशेष प से हाथ क अंगुि लय म बहुत
सी फु सयां हो जाती ह । इनम दाह, जलन, पीड़ा और स त खुजली होती है । यह सूखी तथा पकने वाली गीली
दो कार क होती है । जंघाओं पर भी यह रोग होता है । पकने पर इसम से ग दा पीप (मवाद) िनकलता है और
जहां यह पीप लगता है वह ं और फु सयां िनकल आती ह । यह छूत का रोग है , एक दस
ू रे को लग जाता है । अतः
सावधान रहने क आव यकता है । लेखक को व ाथ जीवन म यह रोग हुआ था । इसक डा टर से िच क सा
कराई तो कोई लाभ नह ं हुआ । फर दे शी िच क सा से तुर त लाभ हुआ । इसी से मेर िच दे श ी िच क सा
प ित क ओर हुई थी । इसी ा ने आयुवद क ओर मुख मोड़ दया । य - य आयुवद के ारा सेवा करने का
अवसर िमला, दन दन
ू ी रात चौगुनी आयुवद म आ था, व ास बढ़ता ह गया । इसी कारण ढ़ िन य और
मेर मा यता बन गई क संस ार म आयुव दक िच क सा प ित ह पूण वै ािनक तथा सव म है । शेष सब
िच क सा प ितयां अधूर तथा हािनकारक ह ।
१. अका द तैल
आक के प का रस १ सेर, सरस का तेल १ पाव, ह द पसी हुई १ छटांक - पानी म पीसकर गोली बना ल ।
सबको एक पा म डालकर अ न पर पकाय, म द आंच जलाय । जब केवल तैल शेष रह जाये तो इसे छानकर
शीशी म सुर त रख तथा खुजली पर इसको लगाय । ह के हाथ से मािलश कर । एक-दो घ टा धूप म बैठ, फर
नीम के प के गम पानी से नान कर । नान से पूव गाय के गोबर म जल िमलाकर लेप कर फर नान कर
तो अिधक लाभ होगा । यह तैल क डू (खुजली) क रामबाण औषध है । सभी वै का अनुभ ूत तैल है । इस तैल
से क छू, कु तथा दाद भी दरू होता है ।
पृ २६-३०
२. लघु म र या द तैल
बृहत ् म र या द तैल के योग से क डू खुजली, दाद, कु सब दरू होते ह । इनके योग कु करण म पढ़ ।
इनम भी अकद ु ध डाला जाता है ।
३. वष-तैल
वष तैल भी खुजली दाद कु क अ छ औषध है । इसम भी आक का दध
ू पड़ता है । कु के करण म दे ख ।
12 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
५.
आक का दध
ू चार तोले, जीरा काला चार तोले, िस दरू चार तोले, सरस का तैल ४८ तोले और जल अढ़ाई सेर -
सबको एक साथ बतन म आग पर चढ़ाएं । जीरा काला और िस दरू को कपड़छान करके डाल । म दा न पर
पकाय । तैल शेष रह जाये तब छानकर खुजली पर लेप कर । इससे क डू , दाद आ द चम रोग दरू ह गे ।
६.
िस दरू , गूगल, रस त, मोम और नीलाथोथा - सब पांच-पांच तोले । सबको पीस छान ल और इनको पीसकर १०
तोले आक के दध
ू म गोला बनाय । दो सेर सरस का तैल तथा आठ सेर जल सब तांबे के पा म डालकर अ न
पर चढ़ाय । जब तैल रह जाय तो छान लेव । इस तैल के लगाने से खुजली, क डू दाद दरू होते ह ।
कु नासू र और र वकार
अठारह कार के कु होते ह । इनम से सात महाकु और यारह ु कु - सब िमलाकर अठारह (१८) कार के कु
रोग होते ह जनम क डू (पामा) खुजली, दाद, च बल भी स मिलत ह । ये वपर त और िम या आहार यवहार के
कारण होते ह । कु रोग क िच क सा अित क ठन है । आक को शा कार ने कु के कृिमय का नाश करने वाला
13 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
िलखा है ।
ने रोग और आक
अनुपम काजल
एक तोला शु (साफ) ई लेकर पनवा ल और उसक अंगुली के समान मोट ब ी बना ल और उसे आक के दध
ू
म िभगो द । अगले दन २४ घ टे के प ात ् उस ई क ब ी को आक के दध
ू म िभगो द । इसी कार सात बार
िभगोय और छाया म ह सुखाय । जब सवथा सूख जाये तो इसे तीन दन गाय के एक पाव घी म िभगोय और
फर तीन दन के प ात ् िनवात (वायु र हत) थान पर द पक को जलाय और उसके ऊपर िम ट वा धातु का
शु पा लेकर काजल पाड़ । जब सारा घी जल जाये और पा के ठ डा होने पर काजल झाड़कर कसी शीशी म
रख ल । इस काजल को सलाई से सोते समय ने म डाल । रोग अिधक हो तो ातःकाल सूय दय से पूव भी
ित दन डालते रह । इस कार िनर तर कुछ मास इस काजल के सेवन से आंख के सभी रोग दरू ह गे । दरू का
न द खना, िनकट का न द खना, रोहे , फोला, आंख म पानी आना, पढ़ने से आंख का थकना, आंख क खुजली,
आंख का दख
ु ना अ द सभी ने रोग को यह अनुपम काजल दरू करता है । यह च ु रोग के िलए अ तीय
औषध है । इससे नयनक (च मे) उतर जाते ह । चेचक के फोले भी दरू होकर अ ध को भी दखाई दे ने लगता है
। बार-बार क अनुभ ूत औषध है । आजमाओ, लाभ उठाओ और ऋ षय के गुण गाओ । य द इसके साथ फला
घृत तथा महा फला द घृत का सेवन कया जाये तो सोने पर सुहागे का काय करे गा । आंख म लगाने के िलए
यह काजल और खाने के िलए फला द घृत दोन ह च ु रोग के िलए रामबाण औषध ह । हमने बहुत रोिगय
क इसके ारा िच क सा क है , ायः सभी को लाभ हुआ है । जहां पर सब औषध वफल हो जाती ह, वह ं इस
काजल ने लाभ कया है । कतने अंध काण को इसने च ु दे खकर आंख वाला (सुल ाखा) बनाया है । यह
अ य त भावशाली है । पहले-पहल एक ह सलाई काजल लगाना चा हये । कुछ समय प ात ् एक समय पर
तीन सलाई तक लगाई जा सकती ह । उससे और भी अिधक लाभ होता है ।
२.
जहां आक का दध
ू कम िमलता हो वहां पर केवल एक बार ई क ब ी को आक के दध
ू म िभगो ल और फर
सूखने पर तीन दन गोघृत म िभगोकर काजल बनाव तथा उसका योग कर । तीन-चार बार िभगोकर य द
काजल बनाया जाये तो और अिधक लाभ होता है । य द सात बार िभगोकर बनाय तो बहुत ह गुणकार काजल
बनता है । जतना प र म करगे उतना ह लाभ होगा ।
३.
ई के एक पाव भर फोये को तीन-चार बार आक के दध
ू म सुखाय, फर गाय के घी म खूब तर करके कढ़ाई म
इसे जलाकर राख कर । राख सवथा ठ ड होने पर इसको रगड़कर खूब बार क पीसकर कई बार कपड़छान कर ल
तथा सुम के समान इसका योग कर । घी च ुरोग म लाभ करता है ।
४.
ई के फोहे को तीन-चार बार आक के दध
ू म िभगोकर सुखाय तथा सूख जाने पर शु सरस के तैल म खूब
14 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
िभगोकर तवे वा कढ़ाई म जलाकर राख कर ल । फर पीसकर सुम के प म योग कर । इससे भी च ुरोग म
लाभ होता है क तु गोघृत के समान नह ं । िनधन तैल म लाभ उठा सकते ह ।
५.
ई के फोहे क ब ी आक के दध
ू म एक बार अथवा तीन-चार बार अथवा सात बार िभगोकर छाया म सुखाकर
सरस के तैल म िभगोकर जलाकर काजल बनाय । इसको सुम के प म आंख म डाल । इससे भी च ुरोग म
लाभ होगा, क तु गोघृत तो अमृत है , तैल तैल ह है । दोन म समानता कैसे हो सकती है ?
६.
इन काजल को ब ढ़या कपूर अथवा भीमसेनी कपूर अथवा कोई और ब ढ़या सुमा िमलाकर अिधक उपयोगी
बनाया जा सकता है ।
फोला और आक क जड़
१. - आक क जड़ को जल म िघसकर आंख म लगाने से नाखून वा फोला न हो जाता है ।
३. - य द आक के दध
ू म िभगोई हुई ई को गोघृत म रखकर जलाकर भ म कर तो अिधक लाभदायक होगी ।
पृ ३१-३५
मोितया ब द
५. - जंगली कबूतर क बीठ आक के दधू म िभगोकर सुखा ल । फर तांबे के पा म डालकर नींबू के रस म डाल द ।
सात दन िभगोये रख, फर खरल करके एक भावना महद के रस क दे व, फर सुम के समान बार क पीस ल । इसको
आंख म डालने से मोितया ब द, जाला फोला कट जाता है ।
७. - आक के दध
ू क भावना दे कर बनाये हुए बारहसींग क ेत भ म को ेत पुननवा क जड़ के रस म तीन दन खरल
कर, सुखाकर सुमा बना ल और इसको आंख म डाल । इससे फोला, जाला, मोितया ब द सब दरू ह गे ।
८. - पहले िलखा हुआ काजल जो आक के दध ू म ई िभगोकर गोघृत से बनाया गया हो । ेत पुननवा क जड़ का चूण
१ तोला, आक के दध ू म बनाई गई बारहसीं ग े क भ म १ तोला, भीमसेनी कपूर छः माशे, महद के प का चूण १ तोला
सबको बार क पीसकर कई बार कपड़छान कर । सुम के समान तैयार हो जाए तो सबसे पीछे भीमसेनी कपूर िमलाय ।
इस सुम को डालने से ने के सभी रोग फोला, जाला, मोितया ब द आ द दरू ह गे, ने - योित खूब बढ़े गी ।
९. - ऊपर िलखी हुई औषध को योग करते समय महा फला दघृत अथवा फला द घृत का सेवन भी रोगी को कराया
जाये तो बहुत अिधक लाभ होगा ।
१०. - सायंकाल दो तोले फले को आधा सेर जल म िभगो दे व । ातःकाल जल को िनथार कर इस जल से आंख को
15 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
धोव तो सोने पर सुहागे का काय होगा । ने रोग के रोिगय को लाल िमच, खटाई, तैल, क चा मीठा, गुड़, श कर आ द
नह ं खाना चा हये ।
काय - भोजन का रस प ाशय से गुजर कर यकृत ् म जाता है और यकृत ् से लीहा (ित ली) म जाकर र वा खून का
प धारण करता है । अथात ् र को उ प न करने वाली बा ओर दय के नीचे रहने वाली र को बनाने वाली र
ना ड़य का मूल ऋ षय ने केवल ित ली को माना है ।
औषध - आक के पके हुए पीले रं ग के प े लेव और सधा लवण को जल म बार क पीस लेव और आक के प पर इसका
लेप करके धूप म सुखा दे व और सूखने पर एक िम ट क हांड म भर दे व । इस हांड के ऊपर कपरोट करके सुखाकर
गजपुट को आग म फूंक दे व और ठ डा होने पर औषध को िनकाल लेव और बार क पीसकर शीशी म सुर त रख ।
इसक मा ा ४ र ी से दो मासे तक गम जल वा गोमू के साथ दोन समय दे व ।
व ार
सांभर लवण, यव ार, समु लवण, सुहागा सफेद भुना हुआ - सबको समभाग लेकर बार क पीस लेव और तीन दन
तक आक के दध ू म खरल कर और इसके प ात ् तीन दन तक थोहर के दध ू म खरल कर और एक हांड म आक के प
को बछा दे व और उनके ऊपर ऊपरवाला चूण डाल दे व । इस कार हांड को भर कर ढ़ता से कपरोट कर दे व और
गजपुट क आग म फूंक दे व, ठं डा होने पर बार क पीसकर रख और नीचे िलखा चूण इसम िमला लेव ।
स ठ, काली िमच, पीपल बड़ा, वाय बडं ग, राई, हरड़ का िछलका, बहे ड़े का िछलका, चोया वा पीपलामूल, ह ंग घी म भुनी
हुई - समभाग लेकर चूण बना लेव । इसम से चूण ३ माशे और ऊपर का व ार २ माशे िमलाकर गम जल के साथ दो
बार लेव । यह एक मा ा है । इसके योग से बढ़ हुई ित ली िन य से ठ क हो जाती है ।
अ य उदर रोग
१. - दे वदा का चूण, ढ़ाक के बीज, आक क जड़ क छाल, गज पीपल, सुहाजना क छाल, अ गंध नागौर - इन सबको
16 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
खूब बार क पीसकर पेट पर लेप कर, इससे उदर रोग न होते ह ।
लाल चूण
२. - आक क जड़ का िछलका १ तोला, गे १ तोला, नौशादर २ तोला, काली िमच १ तोला, कपूर छः माशे - सबको
कपड़छान करके सुर त रख । सव कार के उदर रोग पर मा ा १ माशे से तीन माशे तक यथोिचत अनुपात से लेने से
बहुत ह लाभ करता है । उदरपीड़ा, गु म (गोला), क ज द त, ित ली, यकृत ् ( जगर) रोग न होते ह । खांसी, जुकाम,
वरा द रोग को दरू करता है । ी वै बलव तिसंह आय पहलवान का िस योग है जो अमृतधारा के समान बहुत से
रोग क अचूक औषध है । अ य रोग के ऊपर यथा थान अनुपान िलख दया जायेगा । उदर रोग पर गम जल, गाय
क छाछ और गोमू के साथ लेव ।
उदर रोग पर
३. ब द ुघृत - - आक का दध ू ८ तोले, थोहर का दध
ू ४ तोले, वृत (िनसोत) ४ तोले, बड़ हरड़ का िछलका ४ तोले,
कमेल ा ४ तोले, जमालगोटे क जड़ ४ तोले, अमलतास का गूदा ४ तोले, शं पु पी ४ तोले, नील क जड़ ४ तोले - इन
सबको बार क पीस कर जल के साथ घोटकर गोला बनाय और कढाई म एक सेर जल चढाव, म दा न जलाय, सब
व तु जल जाय केवल घृत रह जाये तब उतारकरछान लेव, यह ब दघ ु त
ृ है । इसक मा ा १ बू द ( ब द)ु से १० बूद
ं
तक है , गम जल के साथ सेवन करने से पेट के सभी रोग, क ज, गोला, पीड़ा, ित ली, जगर आ द दरू होते ह । इस घृत
क जतनी बूद ं रोगी को दगे उतने ह द त ह गे तथा पेट के सभी रोग न होते ह । यह आयुवद शा का िस योग है ,
सभी वै इसका योग करते ह, अ छ औषध है । प य-सूजन के रोग म खटाई और लवण न खाय । सूजन म क ज
भी नह ं होना चा हये ।
पृ ३६-४०
५. - आक के प ,े पुननवा, नीम क छाल - इन सबको समभाग लेकर कूट छान कर वाथ बनाय और रोगी के शर र पर
छ ंटे लगाने से सूजन (शोथ) दरू होगा ।
६. - अक क जड़ क छाल, अरं ड क जड़ क छाल, करं जवे क जड़ क छाल, पुननवा, दोन कार का ेत और लाल -
समभाग लेव । इनका वाथ बना ल । इससे रोगी के शर र को धोया कर । यह सूजन के िलए उ म औषध है ।
७. - उपरो औषध के साथ, पुननवा द चूण, पुननवा अ क वाथ, पुननवा द तैल, पुननवा द अ र - इनम से कसी
भी औषध का योग कर तो बहुत ह लाभ होगा ।
८. - सूंठ का चूण ३ माशे एक तोला गुड़ के साथ िमलाकर लेव तथा ऊपर से पांच तोला पुननवा का रस (ताजा) कुछ दन
पीने से सूजन रोग इस कार न हो जाते ह जैसे वायु के वेग से बादल न होते ह । शोथ (सूजन) रोग के िलये पुननवा
अ य त प य वा हतकर है ।
ास रोग पर आक
१. - आक का प ा १, काली िमच ५२ - इन दोन को खरल करके माष के दाने के समान गोिलयां बनाय - इनम से छह
गोिलयां उ ण जल के साथ कुछ दन योग करने से ास रोग दरू होता है । छोटे ब चे को एक गोली दे नी चा हये ।
२. - आक क जड़ का िछलका तीन तोले, अजवायन दे श ी दो तोले, पुराना गुड़ ५ तोले - सब रगड़कर जंगली बेर के
समान गोली बनाय । ताजे जल के साथ एक-एक गोली लेव, दन म कई बार लेव, ास रोग क उ म औषध है ।
17 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
६. - आक के पांच अंग को जलाकर राख बना ल और उसे तोल से आठ गुने जल म िभगो दे व । दन म कई बार हलाते
रह । तीन दन पीछे ऊपर का जल िनथार छानकर पकाय, ार बन जायेगा । मा ा १ र ी पान वा अदरक के रस वा मधु
के साथ सेवन कराय । ास रोग दरू होगा ।
७. - आक क कोमल-कोमल क पल, पीपल बड़ा, सधा लवण सब सम भाग लेकर खूब बार क पीसकर जंगली बेर के
समान गोली बनाय । एक गोली गम पानी के साथ ित दन लेने से दमा दरू होगा ।
८. - आक का प ा एक, काली िमच पांच - इन दोन को खूब बार क पीसकर जंगली बेर के समान गोली बनाय । इनम से
७ गोिलयां योग करने से ह लाभ हो जायेगा ।
धतूरे के प ,े भांग के प ,े क मीशोरा, सबको कूटकर मोटा मोटा चूण बना ल और इसे एक बार आक के दध
ू वा आक के
प के रस म िभगोकर छाया म सुखा दे व । जब दमा का रोगी तड़फ रहा हो और उसे कसी कार भी आराम न होता हो,
उस समय इस औषध क एक दो चुटक धधकते हुये कोयल पर डाल कर रोगी को इसका धुंआं मुख के माग से
खंचवाय, यह औषध जाद ू के समान भाव डालेगी । दमा का दौरा सवथा शा त होगा । रोगी यह अनुभ व करे गा क रोग
सवथा चला गया है । इस औषध को हु के क िचलम म एक दो चुटक त बाकू के थान पर रखकर पलाय, कुछ ह
घूंट लेने से लाभ होगा । यह ास वा दमा क थायी िच क सा नह ं है । वदे श से करोड़ पये क िसगरे ट इसी कार
क औषध क आकर भारत म बकती है , जससे दमे के रोगी पीकर लाभ उठाते ह । समय पड़ने पर रोगी को इसका
लाभ उठाना चा हये य क यह उसी समय तुर त लाभ करती है ।
आक से य मा रोग क िच क सा
राजय मा वा य वा तपे दक िस तथा भयंकर रोग है । इसक िच क सा बहुत क ठन तथा महं गी अथात ्
ययसा य है । धनाभाव के कारण कतने रोगी इस रोग म त होकर मृ यु के मुख म चले जाते ह । वीय आ द
धातुओं के य वा नाश से यह रोग होता है । इसक िच क सा म चयपालन वा वीयर ा सब औषिधय से बढ़कर
तथा सव म प य वा हतकर है । िनधन के िलए एक अ य त हतकार और साथ ह बहुत ह स ता योग अक का
नीचे िलखता हूँ ।
मेरे एक प रिचत डॉ. भरतिसंह जी थे । वे तपे दक के रोिगय को यह योग पुरानी आयु म मु त दया करते थे । उस से
रोिगय को बहुत लाभ होता था क तु वे यह योग कसी को नह ं बताया करते थे । कभी-कभी वे लेखक से िमलने आया
करते थे । वे मुझ से नेह करते थे । एक दन म वै कमवीर जी के पास नरे ल ा म बैठा हुआ था, वे मुझे िमलने आये ।
उ ह दरू से वै कमवीर जी ने आते दे ख िलया । वै कमवीर जी ने कहा डा टर जी क य मा क औषध है जो बहुत
अ छ है क तु ये कसी को बताते नह ं । स भव है आप को बता द । उनके मेरे पास आने पर मने कुशल ेम पूछा और
फर उनसे कहा - अब आप बहुत वृ हो गये हो, न जाने कब भु क आ ा आ जाये । या आप तपे दक क औषध
लेकर ह मरोगे, कसी को बताओगे नह ं ? उ ह ने कहा म आपको बता सकता हूँ य क आप तो सेवा ह करगे ।
उ ह ने स नता पूवक वह योग मुझे बता दया ।
तपे दक का योग - आक का दध ू १ तोला, ह द ब ढ़या १५ तोले - दोन को एक साथ खूब खरल कर । खरल करते करते
बार क चूण बन जायेगा । मा ा - दो र ी से चार र ी तक मधु के साथ दन म तीन-चार बार रोगी को दे व । तपे दक के
साथी वर खांसी, फेफड़ से कफ म र (खून) आ द आना सब एक दो मास के सेवन से न हो जाते ह और रोगी भला
18 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
ी वै बलव तिसंह जी आय हरयाणे के माने हुए िच क सक ह । उनका बहुत बार का अनुभ ूत योग है ।
योग - आक का ताजा दध ू १ तोला, ह द छोट गांठ वाली ५ तोले, सपग धा क जड़ क छाल १० तोले, महा द ती के
फल का चूण २० तोले, वणबस तमालती रस १ तोला - सब को इक ठा बार क पीसकर चूण बना ल । मा ा - चार र ी
से एक माशे तक दन म चार बार मधु म िमलाकर रोगी को चटाय । एक-दो मास के िनर तर योग से रोग समूल न
हो जाता है । वै जी का यह योग सकड़ रोिगय पर आजमाया हुआ है । िनराश हताश रोगी जो अनेक डॉ टर वै से
िच क सा कराते थक जाते ह, उन को यह औषध वा य दान करती है । आयुवद क यह जादभ ू र औषध है ।
आजमाय और लाभ उठाय ।
वषक टक एक वषैल ा फोड़ा है जो हाथ के अंगूठे म ह िनकलता है । रोगी को बहुत बेचैन कर दे ता है , सोना और खाना
सब हराम हो जाता है । इसक एक बहुत अनुभ ूत औषध है जो पर पराओं से वै ह र जी नारनौल (हरयाणा) के
कुटु ब म चली आती है ।
पृ ४१-४५
योग - अंगूठे पर आक के दध
ू का लेप करके आक का प ा बांध दे व । दो-तीन बार ऐसा करने से वह फूट जायेगा । फर
गुड़ के शबत से धोय तथा वार को गोमू म पीसकर लेप कर द, उसके मुख को खाली छोड़ दे व । मुवाद िनकल कर
एक छोट ह ड िनकलेगी और फोड़ा ठ क हो जायेगा । लेप पर लेप करते रह ।
क ठमाला
गले वा ठोड पर बड़ वा छोट स त न घुल ने वाली गोल गांठ हो जाती ह, इनको कंठमाला, गलगंड वा बेल कहते ह ।
इसे गल थी भी कहते ह । यह क सा य रोग है । रोगी को बड़ा क दे ता है ।
२. - आक का दध
ू , गढ़ल के फूल, ितल का तैल, अपामाग का ार और जल - सम भाग लेकर इक ठे करके कूट-पीस
रगड़ कर कंठमाला पर लेप कर । ित दन लेप करने से एक स ाह म यह रोग दरू होता है ।
३. - गुंजा द तैल, ेत घूंघची (गुंजा) क जड़, कनेर क जड़ का िछलका, बधारा के बीज, आक का दध ू , सरस - सब
पांच-पांच तोले लेव । सब को मू के साथ पीसकर गोले बना लेव और पाँच सेर गोमू , सवा सेर सरस का तैल सबको
कलीदार पा म चढ़ाकर पकाव और तैल रह जाये तो दो-तीन बार, यहां तक क दस बार उपरो व तुओं को पुनः पुनः
नई नई लेकर डाल । म दा न से पकाय । केवल तैल रह जाने पर इसे िनथार छान लेव । इसको क ठमाला पर
बार-बार लगाने से क ठमाला न हो जाती है । यह गलग ड अपची और येक कार क कंठमाला के िलए रामबाण
औषध है । इसे िनयिमत प से लगाने से पुराना रोग भी न हो जाता है ।
प य - अपामाग क जड़ के मणके बनाकर उसक माला गले म पहनने से क ठमाला रोग म लाभ होता है । इस माला
को एक स ताह के पीछे बदलते रह ।
कचनार गूगल जो आयुवद के िच क सा ंथ म सव िलखा है , इसके िनर तर योग करने से कंठमाला समूल न हो
जाता है । यह ऋ षय क इस रोग क अचूक औषध है । सभी पुराने वै क हजार बार क अनुभ ूत औषध है । इसका
सेवन कर तथा लाभ उठाव । इस रोग म खाने क सव म औषध है ।
रसोली क गांठ
19 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
थी वा रसोली क गांठ ायः चब और कफ क अिधकता से होती है । पहले इसका सूजन दरू करना चा हये ।
लेप - आक का दध ू , जमालघोटे क जड़, िच क क छाल और गुड़ िमलाकर सबको रगड़कर लेप तैयार कर और बढ़ से
बढ़ हुई गांठ पर लेप कर । इस लेप के लगाने से गांठ पककर फूट जाती है और ग दा (मुवाद) िनकलकर रसोली वा
अवुद गांठ न हो जाती है । यह इसक सव म िच क सा है ।
गु म वा गोले का रोग
गु म वा गोला एक ह रोग होता है । दय थान, प वाशय और नािभ के म य म वायु के कु पत होने से वायु का गोला
सा उ प न हो जाता है जो बहुत क द होता है ।
कारण - बार-बार अिधक खाने, न पचने वाला भोजन करने, मांस, मछली अभ य पदाथ के खाने से, अिधक भार
उठाने से, अपने से अिधक बलवान ् से कु ती करने से, तीन दोष के बगड़ने से, दय से मसान तक गांठ के समान
गोला उ प न हो जाता है । इसको गु म कहते ह ।
िच क सा
१. - लीहा (ित ली) के करण म िलखे व ार के योग से गु म रोग म बहुत लाभ होता है ।
२. - सूँठ, काली िमच, पीपल बड़ा, ल ग, ह ंग घी म भुनी हुई सब सम तोल लेव और इन सबके समान भाग आक के फूल
(छाया म सुखाये हुए) लेव । इन फूल से आधा काला लवण लेव । सबको कपड़छान कर लेव ।
मा ा - दो माशे से चार माशे तक गम जल के साथ दन म दो-तीन बार लेने से वायु और कफ का गु म (गोला) रोग दरू
होता है ।
वर िच क सा
आक का फूल जो अभी खला न हो, केवल एक फूल क डोड वा कली लेकर गुड़ म लपेटकर तेइया क बार के दन
खलाय, वर नह ं चढ़े गा ।
वात वर
वात वर म शर र का कांपना, मुख गले का सूखा रहना, नींद कम आना, पेट दद, क ज, अफारा, शर र, पैर और िसर म
पीड़ा (भड़क), ज भाई आना, छ ंक न आना आ द उप व होते ह ।
कफ वर
कफ वर म रोगी को खांसी, ास, हचक , भोजन म अ िच तथा इसम नींद बहुत आती है तथा त ा रहती है । मुख म
जल आता रहता है तथा मुख का वाद अ य त बुरा रहता है ।
िच क सा
20 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
२. - शंख बीस तोले साफ कर ल तथा टु कड़े बनाकर िम ट के बतन म डालकर आक का दधू इसम भर दे व जसम शंख
के टु कड़े डू ब जाय । फर स पुट करके गजपुट क आग दे व और इसी कार सात बार आक के दध
ू क भावना दे कर आग
दे व । बहुत अ छ भ म बनेगी ।
पृ ४६-५०
गोद ती भ म
शोथ वा सू ज न
आक के प ,े वषखपरा, नीम का िछलका - इनका वाथ करके सूजन वाले रोगी को छ ंटे लगाने से शोथ (सूजन) दरू
होता है ।
शोथ पर शोथ उदरा द लोह आयुवद का िस योग है । उसम आक क जड़ क छाल पड़ती है । कसी फामसी वा वै
से बनी हुई ले लेव । बड़ा योग है , वयं बनाना क ठन है ।
मु ट ापा
२. - स ठ, काली िमच, पीपल बड़ा, हरड़, बहे ड़ा, आंवला, आक क जड़ का िछलका - सब एक-एक तोला, काला लवण दो
तोले कपड़छान कर लेव । इसम से चार माशे तक उ ण जल के साथ लेने से मोटापा दरू होगा ।
21 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
उपदं श वा आतिशक
आक क जड़ का व कल (छाल) एक-दो र ी शहद वा गाय के म खन वा मलाई के साथ एक मास खलाने से पूण लाभ
होगा । अनुभूत है ।
कु
कु रोग के अठारह कार होते ह । इसम सात महाकु और यारह ु कु कहाते ह ।
िच क सा
व (सफे द कोढ़) फु लबर - जो फुलबर नई हो, जसके बाल सफेद न हुए ह , सूई चुभोने पर र (खून) िनकलता हो
वह सा य है , उसक िच क सा हो सकती है ।
ताले र रस - आक का दध ू , घी गंवार का रस, ह द , करं जवे क िगर , घुंघची, शंख भ म, िभलावा शु , किलहार ,
गंधक शु , पारा शु , वाय बडं ग, काली िमच, मधु और शहद - सब एक-एक तोले को आठ गुणा गोमू म पकाय । खूब
गाढ़ा होने पर सुर त रख ।
लीपद
जन दे श म वषा अिधक होती है और वषा का जल खड़ा रहता है , जहां सदै व सीलन वा ठ डक रहती है , वहां यह रोग हो
जाता है । इस रोग को यूनानी म फ ल पांव अथात ् हाथी पांव भी कहते ह । इस रोग म सूजन पेडू वा जांघ म उ प न
होकर पांव म चली जाती है और साथ ह वर भी उ प न करती है । यह रोग शर र के अ य अंग पर हो जाता है , कुछ
वै का मत है ।
ार भ म इस रोग म वेदन, उपवास, वरे चन (जुलाब), दाग दे ना, खून िनकलवाना आ द हतकर होते ह ।
१. ले प - सफेद आक क जड़ का िछलका कांजी वा िसरके म पीसकर लेप करने से यह हाथी पांव रोग दरू हो जाता है ।
३. बडं ग ा द तै ल - बाय वडं ग, आक क जड़, काली िमच, स ठ, िच क छाल, दे वदा चूण, एलवा, सधा लवण आ द
पांच लवण अलग-अलग तथा नौशादर - सबको दस-दस तोले लेव और कपड़छान कर ल । ितल का तैल चार सेर, जल
सोलह सेर को कलीदार पा म म दा न से पकाय । तैल शेष रहने पर िनथार कर छान ल । इसम से १ तोला गम जल
22 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
के साथ ित दन लेने से और इसी तैल क मािलश करने से यह हाथीपांव ( लीपद) रोग दरू होता है ।
प य - ब ढ़या हरड़ को अरं ड के तैल म भून ल और छः माशे से एक तोले तक १० तोला गोमू के साथ लेव । यह भी
बहुत अ छ औषध है । इस रोग म लीपद, गजकेसर , पप या द चूण और िन यान द रस का सेवन भी बहुत
लाभ द है ।
नाड़ ण (नासू र )
१. - थोहर का दध
ू , आक का दध
ू , दा ह द का कपड़छान कया हुआ चूण - इन तीन क ब ी बनाकर नासूर म रखने से
यह ज म ठ क हो जाता है ।
२. - आक के प ,े चमेली के प ,े अमलतास, करं जवे क िगर , जमालघोटे क िगर , सधा नमक, काला नमक, जोखार,
िच क - सबको समभाग लेव और कपड़छान कर लेव और थोहर के दध ू म ब ी बनाकर नासूर म रख । इसके योग से
नासूर दरू होता है
भग दर
१. - थोहर का दध
ू , आक का दध
ू , दा ह द का बार क चूण - इन तीन को इक ठा पीसकर भग दर के ज म म भर द ।
इससे यह रोग शा त हो जायेगा ।
२. िनशा द तै ल - ह द , आक का दध
ू , सधा नमक, गूलर का िछलका, कनेर का िछलका, गूगल, इ जौ - सबको
समान भाग लेकर जल के साथ पीसकर गोला बनाय और इससे दग ु ुना ितल का तैल और तैल से चौगुना जल लेव ।
सबको म दा न पर पकाव । तैल शेष रह जाने पर िनथार छानकर भग दर के ज म पर िनर तर लगाने से बहुत शी
लाभ होता है ।
यह एक कार का वषैल ा फोड़ा होता है जो उन म भूिम (बागड़ आ द) दे श म होता है जहाँ जोहड़ तालाब का जल
पीया जाता है ।
हाथ-पांव आ द सूजकर सूत के समान एक धागा फोड़े के पक कर फूटने से िनकलता है । यह धागा शनैः शनैः बाहर
िनकलता हुआ रोगी को बड़ा क दे ता है ।
पृ ५१-५५
ितल का तैल गम करके नाहरवे पर लगाव और आक के प को सेक कर उन पर तैल लगाकर बांध दे व । इससे िन य
से यह रोग चला जाता है ।
कण रोग पर आक
१. - पीले रं ग के पके हुए आक के प पर घी चुपड़ कर आग पर सेक, फर इनका रस िनचोड़कर और इस रस को थोड़ा
गम करके कान म डालने से कण पीड़ा (दद) दरू होती है ।
२. - आक के नम-नम प को कांजी के साथ पीसकर इसम सधा लवण और सरस का तेल िमलाकर ड डा थोहर के
खोल म भर द और ऊपर से स पुट करके आग पर सेक ल और फर िनचोड़ कर रस िनकाल । इस रस को कान म
23 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
३. - ितल का तैल एक पाव, धतूरे का रस १ सेर और आक के प े १४ - तीन को कढ़ाई म चढ़ाकर अ न जलाय । तेल
शेष रहने पर उतार लेव । इस तेल को कान म डालने से कान के सभी रोग बहना, पीड़ा, बहरापन आ द दरू होते ह ।
नाक के रोग
आक का दध ू १ तोला, िच क छाल, चोया, अजवायन, क टकार , करं जवे के बीज, सधा नमक - सब एक-एक तोला ।
सब को बार क पीसकर गोला बनाय तथा २४ तोले ितल का तैल और ९९ तोले गोमू लेव । सबको आग पर पकाय ।
तैल शेष रहने पर िनथार छान ल तथा इसक नसवार लेने से नाक क बवासीर दरू होती है ।
न य वा नसवार
आक के दधू म चावल को खूब िभगोव । छाया म सुखा कर कपड़छान कर लेव । इसक नसवार लेने से छ ंक आकर
नाक खुल जाता है तथा जुकाम ठ क हो जाता है । का हुआ नजला बह कर िनकल जाता है । यह बहुत तेज नसवार है
अतः थोड़ लेनी चा हये । अिधक छ ंक आय तो गम करके घी सूँघ लेव ।
ए ड़य क पीड़ा
यह पीड़ा जो पैर क ऐड़ म हो जाती है , वह कसी औषध से दरू नह ं होती, कुछ दन आक के फूल को जल म खूब पकाय
तथा इसक भाप से खूब सेक तथा पीछे फूल को भी गम-गम हालत म ऐ ड़य पर बांधकर सो जाय । कुछ दन यह
िच क सा करने से यह रोग दरू होता है । अनेक बार क अनुभ ूत औषध है ।
कु
१. वष तै ल - आक का दध ू , कनेर क छाल, करं जवे क िगर , ह द , दा ह द , तगर, कुठ, बच, लाल च दन, मालती
के प ,े सतोना, मंजीठ, िस दरू सब दो-दो तोले, मीठा तेिलया चार तोले - सब को जल म पीसकर चटनी सी बना ल ।
तैल सरस ६४ तोले और गोमू २५६ तोले डालकर तांब े के पा म पकाय । म द आग जलाय । केवल तैल रह जाये तो
उतार छानकप रख ल । इस तैल के लगाने से सब कार के कु दरू होते ह, दाद खुजली क वशेष औषध है ।
३. - गोमू म शु क हुई बावची तथा शु ग धक सभी िमलाकर मधु के साथ ३ माशे ातः सायं सेवन करने से ेत
कु ठ (फूलबर ) दरू होता है ।
उदर रोग
शोथ उदरा द लोह - आक क जड़ का िछलका आधा सेर, वष खपरा, िगलोय, िच क, गुल िसकर , मनक द,
सुहांजना क जड़ का िछलका, हुल हुल बूट क जड़ ये सभी आध-आध सेर - इन सबको कूट-छान फौलाद (लोह) भ म
आधा सेर, आक का दध ू १० तोले, थोहर का दध
ू २० तोले, शु ग धक ४ तोले, शु गूगल १० तोले, शु पारा २ तोले -
पारा और ग धक को एक साथ रगड़ कर सुम के समान पीस । सव थम वाथ का आठ सेर जल कढ़ाई म डालकर आग
पर चढ़ाय । इसम पारा ग धक क कजली और भ म िमलाकर म द आग पर पकाय । जब गाढ़ा हो जाये, ऊपर का
सभी शेष िमला ल तथा िन निल खत व तुय बार क पीसकर कपड़छान कर इसी म िमला दे व ।
शु जमालघोटे क िगर , ता भ म, मुद ासंग, िच क क छाल, जमीक द, सरफूंका, ढ़ाक के बीज, फला,
बाय बडं ग, िनसौत सफेद, जमालघोटे क जड़, गुलिसकर क जड़, वषखपरे क जड़, हडगोड़ बूट येक अढ़ाई तोले ।
यह शोथोदरा द लोह है । मा ा ४ र ी से ३ माशे तक अक स फ, उ ण जल के साथ अथवा गोदह क छाछ के साथ
योग करने से सभी उदर रोग, बवासीर, गोला, पा डू , सूजन दरू होते ह ।
24 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
ित ली रोग
आक के प े १ सेर, सधा लवण १ सेर इन दोन को हांड म एक दस ू रे के ऊपर तह बनाकर रख । जलाकर पीसकर रख ल
। मा ा १ माशा गम जल वा गोमू के साथ लेने से ित ली का रोग न हो जाता है । यह औषध वास और कास रोग को
भी दरू करती है ।
१. - आक क कली ६ तोला, काली िमच ३ तोले, सधा लवण ३ तोले, ल ग ८ माशे, कली का चूना ३ माशे, शु अफ म
डे ढ़ माशा - इन सब औषिधय को कपड़छान करके एक भावना अदरक के रस क दे व और दस ू र भावना नींब ू के रस क
दे व और चणे के समान गोिलयां बना ल । गम जल के साथ एक गोली से चार गोली तक दे व । इस से सव कार क
उदरपीड़ा (पेट दद), आमाशय के रोग, अजीणता आ द दरू होते ह । वशूिचका (है जा) म गुल ाब जल के साथ दे ने से बड़ा
लाभ होता है ।
२. - आक के फूल सूखे कूट करके आक के प के रस म तीन दन तक खरल करके चने के समान गोिलयां बनाय । इन
म दो गोली उ ण जल के साथ दे ने पर क ठन से क ठन उदरशूल (पेट दद) को तुर त आराम होता है ।
३. - आक के फूल १ तोला, लाहौर नमक १ तोला, पीपल १ तोला - इन सबको कूट पीस कर काली िमच के समान
गोिलयां बनाएं । रात को सोते समय बालक को एक गोली तथा बड़ को दो गोली दे ने से सव कार के ास और खांस ी
म लाभ होता है । वह ं पेट दद, है जा और सोते समय लार बहने के रोग म भी यह बहुत अ छ औषध है ।
५. - स जी ार ५ तोले, नौसादर ५ तोले, सधा नमक अढ़ाई तोले, स चर नमक अढ़ाई तोले - इन सब व तुओं को ४०
तोले आक के दध ू म ४० तोले थूहर का दध
ू घोट कर एक हांड म भर कर कपड़-िम ट कर गजपुट क आग म फूंक ल ।
शीतल होने पर राख िनकालकर तोल लेव और उसका पांचवां भाग िच क छाल, पांचवां भाग हरड़ क छाल, पांचवां भाग
बहे ड़ा, पांचवां भाग आंवला और पांचवां भाग िनसोत छाल लेकर सब को कूट छानकर ऊपर वाली औषध म िमला ल ।
मा ा ३ माशे से ६ माशे तक । इसम २ र ी शंख भ म िमला लेव । इसके सेवन से यकृ त दोष, कलेजा के सब रोग को
ठ क करती है । प थर के समान स त पेट को यह धीरे धीरे नम करके रोग र हत कर दे ती है । यह आनाह (अफारा) और
को ब ता (क ज) को दरू करने के िलए रामबाण औषध है । गोमू अथवा कुमार आसव के साथ लेने से तो सोने पर
सुहागे का काय करती है ।
पृ ५६-६०
६. - आक के पीले प े १००, करं जवे के प े १००, व ण क छाल ४० तोले, थूहर (नागफण) के डोडे १०० तोले, घी वार का
रस ८ तोले, गूगल २ तोले, लहसुन २० तोले, का कज क छाल २० तोले, स चर नमक १२ तोले, स ठ ७ तोले, काली
िमच ७ तोले, पीपल ७ तोले, समु नमक ४० तोले, वड नमक ४ तोले, अजवायन २ तोले, अजमोद २ तोले, ह ंग ४
तोले, काला जीरा ४ तोले, राई १६ तोले, िच क छाल ३२ तोले - इन सब औषिधय को कूट छानकर १६ तोले आक का
दध
ू और १६ तोले सरस का तैल डालकर एक हांड म भरकर कपड़ िम ट करके सुखा दे व और आग पर चढ़ा कर
औषिधय क राख बना दे व । कपड़छान करके सुर त र ख । मा ा ६ माशे गाय क छाछ के साथ दे व । पुराना अजीण,
म दा न, ब उदर रोग कुछ दन म दरू ह गे । यह पाचक तथा रे चक है । इसिलए वायु गोला, गु म, उदर शूल , अजीण
आ द रोग के िलए अमृत है ।
वसू िचका वा है जा
१. - आक के फूल के अ दर क ल ग १ तोला, काली िमच १ तोला और १ तोला अदरक िमलाकर घोटकर चने के समान
गोिलयां बनाय । इसम से एक गोली है जे के रोगी को स फ के वा पौद ने के जल के साथ दे ने से तुर त लाभ होता है ।
25 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
२. - आक के जड़ क छाल १ तोला, काली िमच १ तोला - दोन को बार क पीसकर चने के समान गोिलयां बनाय । दो
गोली अक-स फ वा अक-िसकंजवीन के साथ दे ने से है जे क क ठन अव था म मरणास न रोगी को भी त काल लाभ
होता है ।
३. - आक क जड़ क छाल १ तोला, काली िमच ३ माशे, स चर नमक ३ माशे - इन सब को बार क पीसकर चने के
समान गोली बनाय, ६ माशे घी के साथ एक-एक गोली दे ने से िनराशा क अव था म भी लाभ होता है ।
ने रोग
१. - सफेद आक क जड़ को म खन के साथ पीसकर आंख म लगाने से ने - योित तेज होती है ।
कण रोग
कणशूल, कणनाद, कण ाव अथवा कान का बहना आ द रोग होते ह । इनक िच क सा िलखी जाती है ।
२. - आक के प का रस १ सेर, १ सेर बेलिगर को पीस कर गोमू म गोला बनाय । पांच सेर ितल का तैल और २० सेर
गाय का दध
ू म द आग से पकाय, तैल शेष रहने पर िनथार छान लेव । इसको कान म डालने से बहरापन दरू होगा ।
३. - आक के फूल और कोमल प को कांजी म पीसकर और सधा लवण और ितल का तैल िमलाकर थोहर के डं डे को
पोला (खोखला) करके उसम भर दे ना चा हये । फर उस डं डे के चार ओर आक के प े लपेटकर धागे से बांध कर
कपरोट कर द, सूखने पर आग म पकाय । ऊपर क िम ट लाल होने पर उसे िनकाल ल और उसका गम-गम रस कान
म टपकाने से कान क सव कार क पीड़ा सवथा दरू होती है ।
नाक के रोग
१. - एक छटांक चावल वा अरण क राख को आक के दध ू म िभगो ल । सूख जाने पर बार क पीस ल । इसके सूंघने से
छ ंक आयगी, ब द नाक खुलकर बहने लगेगा । जुकाम, िसरदद दरू होगा ।
२. - गोस वा आरण क राख को आक के दध ू म िभगोकर उप रिल खत नसवार भी बनायी जाती है जो लाभदायक तथा
स ती भी है । कौड़ भी इस पर यय नह ं होगा । सूंघने से खूब छ ंक आती ह ।
अक वष तथा अक से वष-िच क सा
26 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
कसी य को सं खया, व सनाभ (मीठा तेिलया), कुचला आ द दया गयाहो तो पहले खूब वमन (कै) करानी चा हये
। वल ब होने पर वरे चन दे ना चा हये । दध
ू म घी िमलाकर बार-बार पलाने से सब वष शा त होते ह । आक वयं भी
एक उप वष है । इसके वष को दरू करने के िलये िन न उपाय कर ।
३. - बनौले क िगर ४ तोले, ठ डाई से समान घोटकर पलाने से आक का वष तुर त बना कसी क ट के दरू हो
जाता है ।
िभरड़, ततै या म खी का वष
िभरड़ ततैये वा मधुम खी के काटने पर काटे हुए थान पर आक का दध ू लगाएं । वष और पीड़ा दरू होगी, सूजन भी
नह ं चढ़े गी । िभरड़ ततै ये के डं क को िनकालकर दध
ू लगाने से शी लाभ होता है । म छर आ द काट जाये तो उस
थान पर लगाने से वष तथा पीड़ा खुजली दरू होती है ।
पागल कु े का वष
१. - पागल कु े के काटे हुए थान पर आक के दध
ू का लेप करने से कुछ दन म वष दरू हो जाता है
२. - आक के दध
ू म िस दरू िमलाकर पागल कु े के काटे हुये थान पर बार-बार लेप करने से कुछ दन म वष दरू हो
जाता है ।
३. - आक का दध
ू , गुड़ और ितल का तैल - तीन व तुओं को िमलाकर योग करने से कु े का वष इस कार न हो
जाता है जस कार तेज वायु से बादल न ट हो जाते ह । मा ा १२ तोले । चार-पांच बार योग कराय ।
पागल कु े के काटे हुए थान को तुर त जला दे ना चा हये वा पछने लगाकर सींगी लगाकर खून िनकाल दे ने से वष
िनकल जाता है ।
मकड़ का वष
करं जवे क िगर , आक का दध
ू , कनेर क छाल, अतीस, िच क छाल, अखरोट - इन सबको जल म पीसकर प ी
बनाकर इससे चार गुणा सरस का तैल, तैल से चार गुणा जल - सबको कली वाले पा म पकाय, तैल शेष रहने पर
िनथार ल । मकड़ के काटे थान पर लगाने से सब क दरू होता है ।
पृ ६१-६५
नपुंसकता का रोग
१. भ म सं खया े त - सं खया क पांच तोले क एक डली ले लेव और उसे लोहे क कड़छ म रख और इसे चू हे पर
रखकर म द-म द अथात ् धीमी आंच जलाय । इस पर आक का दध ू पांच सेर प के का चोया द अथात ् टपकाते रह
अथात ् एक बार सं खया क डली को अक दध ू से ढक दे व । जब दध
ू जल जाये तो और डाल द । जब जले हुये दध ू क
बहुत सी मैल इक ठ हो जाए तो उसे दरू कर द तथा आक का दध ू डालते रह । जब सारा पांच सेर दध
ू जल जाये तो डली
को लेकर तीन दन तक अक के दध ू म ह खरल कर और ट कया बना सुखा ल । फर पांच तोला मीठा तेिलया
(व सनाभ) लेकर इसको खूब बार क पीस ल और कपड़छान कर ल और आक के दध ू म गूंदकर सं खया क ट कया पर
लपेट दे व । सूख जाने पर एक िम ट क हांड म रखकर हं डया के मुख पर सावधानी से एक याला जोड़ दे व और
27 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
२. नपुंस कता नाशक ितला - सं खया वेत क डली पांच तोले लेकर आक के दध ू म िभगो दे व और िनर तर सात दन
तक भीगा रहने दे व, फर इसे िनकालकर गाय के बहुत अ छे बीस तोला घृत म इ क स दन तक खरल कर ।
त प चात ् इसे दध
ू म रख दे व और जतना घृत िनथर जाये उसे ई के फाये ारा शनैः शनैः ले लेव और इस घृत म
िन निल खत व तुय ित तोले के हसाब से बार क पीसकर िमला दे व ।
३. रोगन िसं ग रफ - िसंगरफ मी पांच तोले क डली लेकर इसे एक मास तक अक के दधू म डु बोये रख । त प चात ्
१० सफेद याज लेकर इ ह रगड़कर गोला सा बनाव । उसके बीच म िसंगरफ क डली को रखकर कपरोट कर ल । फर
सूखने पर आध घ टे तक कोयल क आग म रख । फर डली को िनकाल नीम के पानी तथा शहद म बुझाय ।
इकतालीस बार यह या कर । येक तीन बार म नये याज बदल । इस काय को करके डली को प ह तोले
हरणखुर के रस म खरल कर । फर ५ तोला आक के दध ू म खरल करके गोिलयां बनाय और इन गोिलय को एक
छोट सी आितशी शीशी म भरकर शीशी के मुख म लोहे के तार वा बाल भर दे व और शीशी को पाताल य म रखकर
दो सेर बकर क मींगन क आग दे व । जतना िसंगरफ का तैल िनकले, उसे शीशी म सुर त रख ।
मा ा - १ बूद
ं पान वा मलाई म रखकर खाय । कृित का खेल दे ख । यह पुं व क वृ करने वाली अ तीय औषध है ।
वसप रोग
सप के समान वशेष प से फैलने वाला होने से वसप कहलाता है । खार , ख टे और गम ती ण पदाथ के सेवन से
दोष के द ू षत होने से र , मांस और मेद खराब हो जाते ह और शर र पर सूजन फु सयां फैल जाती ह ।
िच क सा
करं जा द तै ल - आक का दध
ू , थोहर का दध
ू , किलहार , सतोना, िच क छाल, भांगरा, ह द , मीठा तेिलया - सब
एक-एक तोला जल के साथ घोट पीसकर ट कया बनाएं । चौगुणा सरस का तैल अथात ् ३२ तोले लेव और ११८ तोले
गोमू लेव । म द आग पर पकाय । तैल रहने पर िनथार छान लेव । इस तैल क मािलश से वसप और व फोटक
रोग का नाश होता है ।
28 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
ास रोग
वास से स ब ध रखने से इस रोग का नाम ास पड़ा है । इसी को दमा कहते ह । इस रोग के वषय म यह लोको
िस है क दमा दम के साथ है अथात ् जब तक दम ाण ह, दमा ( ास) भी तब तक रहता है । जीवन पय त यह
प ड नह ं छोड़ता । इसी कारण दमे वा ास के रोगी इसे असा य रोग समझकर िनराश होकर अ य त दःु खी रहते ह ।
वैसे यह बात तो ठ क है क यह रोग दःु सा य वा क सा य है । बड़ ह सावधानी और त परता से इसक िच क सा क
जाय तो यह समूल न ट हो सकता है । इसके ल ण वा प हचान यह है तेज दौड़ने से लगातार और शी ास आने
लगते ह । इसी कार सुखपूवक बैठे रहने से भी मनु य को तेजी और तंगी से ास आने लग तो इसको ास (दमा) रोग
कहते ह ।
कारण
गम, , क ज करने वाले, दे र से पचने वाले भार पदाथ अिधक खाने से, चय नाश से, बफ का ठ डा पानी पीने से,
अिधक ठ ड व तुओं के खाने से, धूल, धुंव से, अिधक उपवास करने से, श से अिधक प र म वा यायाम करने
इ या द कारण से ास रोग क उ प होती है । ास पांच कार का होता है । नीचे इस कार के योग आक के िलखे
जा रहे ह जो सभी कार के ास रोग पर लाभदायक ह । वात और कफ से कु पत ास रोग पर वशेष हतकर है । प
से द ू षत ास पर अक योग कसी वै के परामश से ह सेवन करने चा हय । कुछ योग ३६, ३७ और ३८ पृ ठ पर ास
स ब धी िलखे जा चुके ह । शेष नीचे दये जा रहे ह ।
१.
एक ताजा खूब पका हुआ गोला बाजार से लेव और चाकू से उसका एक भाग इस कार काट क उसे फर उस पर
ठ क जमाकर ढ कन के प म रखा जा सके । इस गोले को आक के दध
ू से भर दे व और इसम एक तोला अफ म
खािलश डाल के कटा हुआ ढ़ कन उस पर लगाकर गेहूं के आटे से कपरोट करके धूप म सुखा दे व । सूख जाने
पर भेड़ क पांच सेर मींगन के ढ़े र के बीच म रखकर आग जला द । जब यह गोला अ न के समान लाल हो जाये
तो आग को हटाकर सावधानी से इस गोले को िनकाल ल । सवाग शीतल होने पर आटे को हटाकर गोले को
कूटकर सुरमे के समान बार क कर ल । मा ा एक र ी से चार र ी तक मधु म िमलाकर दे व । ास क रामबाण
के समान अचूक औषध है । सेवन करके लाभ उठाव । अनुभ ूत औषध है ।
ास और कास
२.
आक के फूल डे ढ़ माशा, सधा लवण डे ढ़ माशा, अफ म ३ र ी, अजवायन ६ माशे - इन सब को कूट पीसकर चने
क दाल के समान गोिलयां बनाय । तीन-तीन घ टे के अ तर से एक-एक गोली गम पानी से दे ने से ास और
खांसी दोन म लाभ होगा ।
३.
आक क ब द मुंह क कली २ तोले, अजवायन १ तोला, गुड़ ५ तोला - इन तीन औषिधय को खूब कूटकर एक
आकार बना ल । फर आक के सात प पर इस औषध को रख ऊपर नीचे करके सोमकर कपड़ िम ट करके
गम भूभल म दो हर तक दबा दे व, फर िनकालकर बार क पीसकर सुर त रख । मा ा १ माशा म खन के
साथ दे ने से ास और पुरानी खांसी म बहुत लाभ होता है ।
29 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
पृ ६६-७०
४.
आक के फूल और काली िमच समान भाग लेकर खरल करके एक-एक र ी क गोिलयां बनाय । इनम से
एक-एक गोली गम जल से चार बार दे ने से ास, खांस ी, ह टे रया, वायु और कफ के रोग म बहुत लाभ होता है
।
५.
आक के कोमल प का काढ़ा करके जौ क भुनी हुई धानी को सात भावना दे कर सुखा लेना चा हये । फर उसका
चूण करके मा ा ६ माशे शहद के साथ चटाने से ास कास रोग म लाभ होता है ।
६.
आक के फूल, आक का दध
ू , आक क जड़ क छाल, आक के प का रस - ये सभी वायु कफ के ास कास आ द
रोग को दरू करने वाले ह । आक क सभी व तुय बहुत थोड़ मा ा म म खन मलाई और गाय के दध
ू के साथ
दे नी चा हय । आक उप वष है , वमनकारक तथा वरे चक भी है , अतः इसका योग सावधानी से तथा थोड़ मा ा
म करना चा हये, नह ं तो हािन भी हो सकती है ।
वास पर आक के योग
१.
सफेद फटकड़ १० तोला लेकर कूटकर मोट छलनी म से छान लेव और २० तोला आक का दध
ू लेकर दोन
व तुओं को िम ट के छोटे पा (बतन) म डालकर अ छ कार कपरोट कर सुखाकर इसे उपल क आंच म
फूंक ल । यह कोयल क अंगीठ पर भी फूंक जा सकती है । ठ ड होने पर बार क पीस ल । मा ा - आधा र ी से
एक र ी तक यथाश रोगी को दे खकर मलाई म लपेटकर दन म दो बार दे व । ास रोग समूल न हो जायेगा
।
२.
आक के प का रस एक से दो तोले तक रोगी को पलाने से वमन होकर कफ िनकल जाता है और त काल रोगी
को आराम हो जाता है ।
३.
आक के फूल क कली, १ माशा काली िमच - दोन का चूण बना ल । मा ा - एक माशा ातः-सायं मधु के साथ
दे ने से ास रोग म बहुत ह लाभ होता है ।
४.
अपामाग ार वा यव ार - इनम से कोई ार दो माशे लेकर गोघृत ६ माशे िमलाकर चटाय । इससे कफ
िनकलकर रोगी को लाभ होगा ।
30 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
५.
आक का ार १ माशे से २ माशे तक गोघृत ६ माशे म िमलाकर चटाने से रोगी को लाभ होगा ।
६.
बासा ार २ माशे लेकर ६ माशे गोघृत म िमलाकर चटाने से कफ िनकलकर रोग दरू हो जाता है ।
७.
अक, बासा, यव, अपामाग और केला - इन सब के ार जो समय पर िमल जाय, समान भाग ले लेव और जतना
ार हो, उतना ह िसतोपला द चूण ले लेव और इनम थोड़ मा ा म गोघृत िमला लेव जससे इनक ता दरू
हो जाये और १ माशे से तीन माशे तक औषध मधु म िमलाकर रोगी को दन रात म अनेक बार उसक आयु, रोग
और श को दे खकर चटाय । सव कार के ास, काली खांस ी, कु ा खांस ी आ द रोग न ट ह गे ।
८.
आक के पु प ५ तोले, आकाश बेल जसे अमरबेल भी कहते ह, यह भी पांच तोले लेकर दोन को खूब बार क घोट
पीसकर, रगड़कर काली िमच के समान गोली बना ल तथा दो गोली मुख म रखकर ातः सायं दोन समय चूस
तो दमा दम
ु दबाकर भाग जाता है । अ य त स ती और लाभदायक औषध है क तु िनर तर द घकाल तक
यून से यून एक वष तो अव य लेव । य द कसी रोगी को गम म दमे का दौरा न पड़ता हो तो न लेव । जन
ऋतुओं म ास का कोप होता हो, उन दन म अव य लेव । यह अनुभूत औषध है ।
९.
त बाकू दे सी आध सेर सुखाकर कपड़छान कर लेव और िम ट क हांड म दालकर उसम आक का दध
ू इतना
डाल क त बाकू का चूण उस म भलीभांित डू ब जाये । अ छ कार कपरोट करके ५ सेर उपल (गोस ) को
अ न म फूंक दे व । ठ डा होने पर बार क पीसकर शीशी म सुर त रख । मा ा आधा र ी मधु के साथ सेवन
कराय । लाभदायक औषध है ।
१०.
अक ार, हरमल ार, त बाकू ार और गुड़ जलाया हुआ - चार समभाग लेकर खूब अ छ कार से खरल कर
ल । मा ा - आध र ी मधु वा घृत के साथ सेवन कराय । य द कफ न िनकले तो घृत के साथ और कफ िनकलता
हो तो मधु के साथ ातः सायं सेवन कराय । इससे दमे के रोगी को लाभ होगा ।
दमे क िस े ट
१. - आक के सूखे प ,े धतूरे के सूखे प े, भांग के सूखे प े और कलमीशोरा - चार समभाग लेकर मोटा-मोटा कूट लेव
और कागज पर डालकर ब ी सी बनाय । िस ेट बनाकर दमे का दौरा पड़ने पर रोगी को पलाव, तीन चार बार पीने पर
दौरा तुर त ह शा त हो जायेगा । यह वास के भयंकर वेग को जाद ू के समान न ट कर दे ती है । यह सामियक
िच क सा है । रोगी को वास आकर शा त िमलती है । वह यह अनुभव करता है क दौरा हुआ ह नह ं । इसी कार का
एक योग ३८ पृ ठ पर है । यहां कुछ व तार से िलखा है ।
वास रोगामृत
31 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
२. - लाल फटकड़ ६० माशे, सधा नमक ६० माशे लेकर बार क चूण कर ल । फर िम ट क हांड म आध सेर आक
का दधू लेकर उस म पूव िल खत दोन व तुओं का चूण बार क पसा हुआ िमला द । इसके बाद हांड का मुख ढ़ककर
कपरोट करके सुखा द, फर गजपुट क अ न द । सार ठं ड होने पर दवा िनकालकर पीस ल और शीशी म सुर त
रख । वास रोग पर अमृत तु य है ।
से वन विध - रोगी जतनी खीर खा सके उतनी सायंकाल तैयार कर ल और रा को उस खीर म आधा माशा १२ हर
पीपल (३६ घ टे खरल क हुई) िमलाकर ३ घ टे तक च मा क चांदनी म रख, फर उपरो त दवा म से २ र ी दवा
खीर म िमलाकर रोगी को खलाव और रोगी को कह क ातःकाल जतनी दरू तक घूम सके, घूम आवे । तीन मास तक
रोगी को तैल, खटाई, शीतल तथा वायुकारक व तुओं से परहे ज रखना ठ क है । इसी कार तीन मास तक रोगी को
सेवन कराव । इन तीन मास म रोगी को चय का पालन करना आव यक है । यह दमे का उ म योग है ।
दमे का नु खा
३. - कसी आक क ऐसी जड़ िनकाल जसको ज ा पर रखते ह मुख कड़वा हो जाये या सफेद बड़े आक क । बड़े वा
छोटे -मोटे आक को उखाड़ने से ४-५ म से एक आध िमल जाता है जस क जड़ म कटु ता हो, उसे धोकर साफ कर और
िछलका उतार द और भीतर भाग को छाया म सुखा द । जब सूख जाये तब उसे कूटकर चूण बना लेव और कपड़छान
करके उस चूण के समभाग काली िमच और िम ी िमलाकर गोली बना ल । बस, दमे का नु खा तैयार है । मा ा - एक
गोली जल के साथ ातः सायं दे व । अ छ औषध है ।
पृ ७१-७५
९. - शाखा मूंग ा ( वाल) लेकर कपड़छान कर ल और आक के दध ू म खरल करके ट कया बनाकर सुखाकर अ न म
फूंक करके भ म बनाय । मा ा - १ र ी मधु, पान के रस, अदरक के रस वा बताशे म दे व । वास रोग म लाभदायक है ।
इन सभी भ म म वास, कास और कफ के रोग को न ट करने का गुण आक के दध ू क भावना दे ने से आता है ।
यथाथ म कफ और वायु के रोग को न ट करने के िलए आक वयं औषधालय है ।
32 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
१०. - आक के प का रस १-२ तोला पलाने से रोगी को वमन होकर कफ िनकल जाता है तथा वास रोग म लाभ होता
है ।
११. - आक के फूल क कली एक माशा तथा काली िमच एक माशा - दोन का चूण बना ल । मा ा - ४ र ी से १ मासे
तक मधु के साथ लेने से वास, कास रोग न ट होते ह ।
१२. - आक का प ा १, काली िमच २५ - दोन को खूब खरल करके माष के दाने के समान गोली बनाय । इनम एक
समय छः गोिलयां गम जल के साथ दे ने से वास रोग दरू होता है । छोटे बालक को एक गोली दे नी चा हए ।
१३. - आक क कोमल छोट प ी को एक पान म रखकर रोगी को खलाएं । इस कार ४० दन इस औषध के योग से
सव कार के वास, कास समूल न ट होते ह ।
१४. - आक के पके हुए प े १ सेर, चूना १ तोला, सधा नमक १ तोला - इन दोन को जल म बार क पीसकर आक के प
पर लेप कर और छाया म सुखाकर हांड म भरकर उसका मुख कपरोट से ब द करके चू हे पर चढ़ाकर नीचे छः घ टे
तक तेज अ न जलाय । ठ डा होने पर बार क पीसकर सुर त रख । मा ा - एक र ी ातः सायं पान म रखकर
खलाने से वास कास दरू हो जाते ह ।
१५. - अजवायन ८ तोले, हरड़ क छाल, वड नमक, क था, सधा नमक, ह द भारं गी क जड़, इलायची, सुहागा,
कायफल, अडू सा, अपामाग क जड़, जवाखार और स जीखार - ये सब चार चार तोले, आक के फूल सूखे हुए १६ तोले
सबका बार क चूण करके घी वार के रस म घोट । फर उसक ट कया बनाकर सुखा ल और िम ट क हांड म रखकर
कपड़िम ट करके चू हे पर चढ़ाकर औषिधय को जला ल और राख को कपड़छान कर ल । मा ा डे ढ़ माशे तक मधु के
साथ चटाने से ास, कास, खांस ी, कफ के रोग शा त होते ह ।
२. - आक के प पर सफेद रे त सा लगा रहता है , उसे चाकू से उतारकर बाजरे के समान गोली बना ल और एक पान के
प े म जसम क था चूना लगा हो, रखकर खा ल । इसके सेवन से पुरानी से पुरानी खाँसी दो चार दन के सेवन से चली
जाती है और वास म भी लाभ होता है । ातः समय दोन समय सेवन कर ।
३. - आक के पीले प े ५ तोले और धतूरे के हरे प े ५ तोले, अडू से (बांस े) के हरे प े ५ तोले, गुड़ पुराना १५ तोले, सबको
खूब घोट पीट रगड़कर चने के समान गोली बना ल । शहद के साथ ातः सायं एक एक गोली सेवन कर । इससे वास
और कास दोन म लाभ होगा ।
४. - आक क जड़ क छाल दो तोले, बांस ा घनस व आठ तोले, अफ म १ तोला, कपूर १ तोला । इन सबको पीसकर दो दो
र ी क गोली बनाय, एक दो गोली का सेवन कर । इसके सेवन से वास, कास, र प , अितसार, र दर, उरः त
और सं हणी म भी लाभ होगा ।
बां स ा घनस व - एक सेर बांसा पंचांग को चार सेर जल म सायंकाल िभगो द । ातःकाल वाथ कर, एक सेर शेष रहने
पर छानकर पुनः पकाय । जब अफ म जैसा गाढ़ा हो जाये, उतार ल । यह बांस े का घनस व है । उप रिल खत चार योग
वै बलव तिसंह आय पहलवान के बहुत बार के अनुभ ूत ह । पाठक के हताथ दे दये ह ।
वायुरोग
सभी रोग वात, प और कफ - इन तीन दोष के द ू षत वा कु पत होने से उ प न होते ह । क तु आयुवद शा म
वायुरोग को वशेष प से धानता द है । य क -
33 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
प , कफ, मल और धातु सभी लंग ड़े ह । यह वायु ह है जो इनको जहां चाहे वहां धकेलकर ले जाता है । वायु इन सबम
बलवान ् है । यह बहुत से रोग का कारण है । खी, शु क और ठ ड व तुओं के यून (कम) खाने, चय के नाश,
कषली और चरचर व तुओं के योग करने से, पूव वायु लगने, अिधक जागने से, जल म अिधक समय तैरने से, चोट
लगने, अिधक प र म करने, अिधक यायाम करने से, ठ डक लगने तथा अिधक उपवास आ द के कारण वायु कु पत
होकर अनेक वात यािधयां, वायुरोग हो जाते ह । वायु के रोग वषा ऋतु, वस त ऋतु और दन रा के तीसरे भाग म,
भोजन के पचने पर वायु के वकार वा रोग उ प न होते ह । आक कफ और वायु के रोग का नाश करता है । जहां-जहां
आक का उपयोग होता है , नीचे िलख रहे ह ।
अका द तै ल
१. - आक के प े ढ़ाई तोले, धतूरे के प े ढ़ाई तोले, कनेर क छाल ढ़ाई तोले - सबको जल के साथ प थर पर रगड़कर
गोला बना ल । ितल का तैल १ पाव लेकर सबको कढ़ाई पर चढ़ाय और गोमू १ सेर इनम डाल द । जब सब जलकर
केवल तैल रह जाये तो िनथारकर छान ल । इसक मािलश करने से लकवा आ द वायु रोग न ट होते ह ।
२. - नारायण तैल क मािलश करने से सभी वायु रोग न ट होते ह । मािलश के पीछे आक के प पर नारायण तैल
अथवा ऊपर वाला अका द तैल चुपड़कर आक के प को वायु के रोग पर बांधने से सोने पर सुहागे का काय करता है ।
पैर क एड़ क पीड़ा
पैर क एड़ म जब वायु रोग वा चोट के कारण पीड़ा होती है तो वह बहुत िच क सा करने पर भी नह ं जाती । वै डा टर
ायः सभी वफल हो जाते ह । उस समय आक के फूल से भाप ारा िसकाई (सेक) करनी चा हये और आक के फूल ह
बांधने चा हय । एक स ताह म सब पीड़ा दरू होकर रोगी भला चंगा हो जाएगा । य द वायु के रोग म योगराज गूगल
साथ-साथ खलाते रह तो सोने पर सुहागे का काम होगा ।
पृ ७६-८०
अका द तै ल
योग - आक क जड़ का िछलका १ पाव, कुचला आध पाव, सं खया सफेद १ तोला, सरस वेत १ तोला, धतूरे के बीज ५
तोले - सबको जौकुट करके एक आितशी शीशी म डाल । उसके मुख म बार क तार का अथवा घोड़ के बाल का गु छा
भर दे व और शीशी पर ढ़ कपरोट करके सुखा ल तथा पाताल-य से तैल िनकाल । तैल को सुर त रख और जस
अंग पर वायु का भाव हो उस पर मािलश कर । लकवा, अधाग आ द सभी वायु रोग इसके योग से न ट होते ह ।
खलाने के िलए योगराज गूगल का योग सभी वातरोग म लाभ द है ।
वषगभ तै ल
34 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
से क
वायु के रोग को अथवा उसक पीड़ा को दरू करने के िलए सेक वा िसकाई से बहुत लाभ होता है ।
योग - पुराने आक क जड़ के पास से रे त लेकर उसके समान ह लवण बार क पीसकर िमला ल और इनको एक कढाई
म गम करके बड़ -बड़ पोटिलयां बनाय और इनसे रोगी के उन अंग पर िसकाई कर जहां वायु रोग के कारण पीड़ा हो ।
सेकने से पसीना आयेगा और सब कार क पीड़ा तथा रोग दरू होगा ।
वातर
लेप - आक क छाल, सरस , नीम क छाल, बालछड़, यव ार, काले ितल - सबको समभाग लेकर गोमू के साथ
रगड़कर लेप तैयार कर और वातर पर लेप करने से कफ धान वातर न ट होता है ।
इसके साथ अमृता द गूगल, महाित घृत, अमृता द घृत कसी खाने क औषध का सेवन कर तो बहुत अिधक लाभ
होगा ।
आक क जड़ क छाल को महानारायण तैल म गुड़ आटा डालकर हलवा तैयार करके वायु के रोग पर अथवा चोट लगने
पर पीड़ा वाले थान पर गम-गम बांध । चाहे कतनी ह पीड़ा हो, तुर त दरू होकर रोगी सुखपूवक सो जायेगा । वायु के
कसी भी रोग के कारण अथवा आघात, चोट आ द लगने से रोगी बेहोश हो तो इसके बांधने से शी ह होश आ जायेगा
और य द दद (पीड़ा) के कारण रोगी िच ला रहा हो, रो रहा हो, इस हलवे को बांधने से सब क ट दरू होकर रोगी सो
जायेगा और कुछ ह दन म पीड़ा सूजन तथा वायु के रोग न ट हो जायगे । पीड़ा दरू करने के िलए यह जाद ू के समान
भाव करने वाली रामबाण औषध है । य द गु कुल झ जर म तैयार होने वाले संजीवनी तैल म आक क जड़ क छाल
का हलवा बनाया जाये तो इसके समान अनुपम अ तीय औषध वायु वा चोट क पीड़ा को दरू करने वाली और नह ं है ।
सकड़ नह ,ं हजार बार क अनुभूत औषध है ।
पीड़ा पर अपूप
वायु रोग क पीड़ा अथवा आघात (चोट) लगने पर जो पीड़ा वा क ट होता है उसको दरू करने के िलए आक क जड़ क
छाल डालकर अपूप (पूड़े) नारायण तैल वा संजीवनी तैल म आटा गुड़ िमलाकर पूड़े बनाकर गम-गम बांधने से अस
पीड़ा वा क ट दरू होकर रोगी चैन से सो जाता है । ह ड टू टने पर बहुत पीड़ा होती है , क तु उप रिल खत हलवा और पूड़े
पीड़ा को जाद ू के समान दरू करते ह । यह बार-बार क अनुभ ूत औषध है ।
वातरोग नाशक तै ल
35 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
जलने पर तैल को छानकर शीशी म रख और धूप म बैठकर मािलश करने से सब वायु के रोग दरू होते ह ।
४. - आक क किलयां बना खली हुई, स ठ, काली िमच और बांस क प ी समान भाग लेकर घोटकर चने के समान
गोिलयां बना ल और ातः सायं दो गोली गम पानी के साथ खाने से ग ठया म बहुत ह लाभ होगा ।
५. - लेप - आक क जड़ को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से हाथी पांव, अंडवृ तथा अ य वायु रोग म बड़ा लाभ
होता है ।
६. - एक ग ढ़ा इतना गहरा खोद क मनु य जसम अ छ कार से बैठ सके । इस ग ढ़े म जंगली उपले (अरणे)
भरकर जला द, जससे उसक द वार सब लाल हो जाय । फर उसको साफ करके उसम ताजे आक के प े भर दे व । जब
वे प े गम होकर भाप िनकलने लगे तो अधाग (फािलज) के रोगी को क बल वा प मीने क गम च र उढ़ाकर ग ढे के
ऊपर बठा द । उसका मुख खुला रख जससे वह भाप से बचा रहे । इस या से खूब पसीने आकर रोगी पसीन से भीग
जायेगा । अ छ कार पसीने आने पर तौिलये से शर र प छ ल । यह या मकान के अ दर एका त थान पर होनी
चा हए और वै को वयं अपने स मुख करनी चा हये जससे रोगी घबराये नह ं । दस ू रे दन रोगी को अरं ड क िगर ६
माशे बादाम रोगन म भूनकर शहद के साथ खलाव । उससे वमन तथा वरे चन (द त) ह गे । उसी कार एक दो दन
छोड़कर रोगी को फर भफारा दे व । इस कार तीन बार भफारा दे ने से िनराश रोगी भी ठ क हो जाता है । इस भफारे से
शर र पर छोट -छोट फुंिसयां हो जाती ह जो वयं चली जाती ह । अथवा उन पर गाय का घी गम करके अथवा संजीवनी
तैल लगाव । रोगी को वर भी हो जाता है । इससे घबराना नह ं चा हये । इन दन रोगी को गाय का दध ू ह पलाव ।
यह या असा य समझे जाने वाले अधाग आ द वायु रोग को दरू करती है ।
ी बलव तिसंह जी आय पहलवान हरयाणे के िस वै ह । ऋ ष महा मा के समान सार आयु िच क सा ारा सेवा
करने म लगा द है । याकरण, आयुवद आ द के अ छे व ान ् और अनुभ वी वै ह । उनके अनुभ ूत योग नीचे िलख रहा
हूं ।
पृ ८१-८५
१. - नौसादर, गोद ती, सुहागा, फटकड़ (भुनी हुई) सब एक-एक छटांक - सबको कूट-छानकर आक के दध
ू म
िभगोकर सुखा ल और कपड़-छान कर आक के दध ू म िभगोकर सुखा ल और क पड़-िम ट करके भ म के समान फूंक
ल । फर मा ा ३ र ी खांड म िमलाकर एक बार ह दे व । पसीना आकर वर उतर जायेगा । वर उतारने के िलए
सव म औषध है तथा वर को समूल न करती है ।
स नपात
आक क जड़ क छाल, अन तमूल, िचरायता, बुरादा दे वदा , रासना, स भालू बीज, बच, अरनी क छाल, सुहाजना क
छाल, पीपल, पीपलामूल, च य, िच क छाल, स ठ, अतीश, भांगरा - ये सभी समान भाग लेकर यवकुट कर ल । दो
तोला लेकर आधा सेर जल म वाथ कर । आधा पाव रहने पर उतार लेव । स नपात रोगी को ३-३ घ टे के पीछे पलाव
। यह वाथ स नपात के भयंकर उप व , लाप, त ा, बेहोशी, जाड़ भीचना, आंसू िगरना, पसीना अिधक आना,
36 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
वषम वर पर मीठ कु नै न
खांड १० तोले, आक का दध
ू १ तोला, दोन को खूब खरल कर और कुछ ग द िमलाकर दो-दो र ी क गोली बनाव । गम
जल के साथ दे व । यह चढ़े हुए वर को उतार दे ती है और उतरे को रोक दे ती है । यह कुनैन से बढ़कर गुणकार है ।
इसके योग म दध ू अिधक दे व । क ज हो तो ह का जुलाब वर उतरने पर दे दे व ।
कफ वर (िनमोिनया)
१. लेप - आक के प का वरस िनकालकर उसम गेहूं का चूण (आटा) िभगोकर रबड़ सी बनाकर गम करके रोगी के
शर र पर लेप कर द, उसी समय पीड़ा दरू हो जाती है । लेप को लगा ह रहने द ।
२. बारहसींगा क ग
ं ृ भ म आक के दधू क भावना दे कर बनाई हुई मा ा एक र ी से दो र ी तक मुन का म दे व अथवा
अदरक वा पान का रस वा शहद के साथ दो तीन बार दे ने से िनमोिनया (कफ वर), पा शूला द समूल न हो जाते ह ।
नजला आधासीसी
१. सफेद चावल, नीलाथोथा, कपूर - तीन दो-दो तोले, स ठ १ तोला सबको बार क पीसकर आक के दध
ू क भावना दे कर
सुखा ल । फर इस चूण को थोड़ा सा आग पर भूनकर पीस ल । इस चूण को थोड़ मा ा म बादाम रोगन, गोघृत वा
बकर के दधू म िमलाकर नाक म टपकाय । आधाशीशी, िसर दद, पुराना नजला आ द रोग दरू होते ह ।
२. अनार क छाल ४ तोले खूब मह न पीसकर आक के दध ू म िभगोकर आटे के समान गूंधकर रोट सी बना ल । म द
आंच पर पका ल । फर इसे सुखाकर बार क पीस ल । ३ माशे जटामासी, ३ माशे छर ला, डे ढ़ माशा कायफल - इन
सबका चूण बनाकर रख ल । इस औषध के सूंघने से स त छ ंक आकर नजला, जुकाम, मूछा, बेहोशी आ द रोग दरू
होते ह ।
अश (बवासीर)
१. - तीन बूद
ं आक के दध
ू को ई पर डालकर उस पर थोड़ा कुटा हुआ यव ार बुरककर उसे बताशे म रखकर िनगल
जाय । इस योग से अश (बवासीर) बहुत शी न ट हो जाती है ।
२. - आधा पाव आक का दध ू खरल म डालकर इतना रगड़ क वह खरल म िचपक जाए । दस ू रे दन इसी कार आक का
आधा पाव दधू उसी खरल म पहले िचपके हुए दध ू पर डालकर इतना रगड़ क वह दध ू भी उसम िचपक जाये । इस
कार आठ दन म १ सेर आक का दध ू खरल म डाल रगड़कर सु ख ा ल । फर इसको खुरचकर इसके दो भाग कर ल ।
िम ट के एक बड़े याले म नीचे इस आक के दध ू का एक भाग बछा दे व । उसके ऊपर एक तोला सुहागा रख द और
उसके ऊपर दस ू रा भाग बछा इस औषध के ऊपर िम ट का एक छोटा याला जसके बीच म एक िछ हो, रख द ।
त प ात ् बड़े याले के ऊपर एक बड़ा याला रखकर कपड़िम ट कर द । फर इन याल के सूख जाने पर चू हे पर
चढ़ाकर द पक के समान ह क अ न जलाय । जब ऊपर का याला गम होने लगे, उस पर चार तह करके व शीतल
जल म िभगोकर रख दे व । चार हर क आंच होने के पीछे उतार कर सावधानी से खोल लेव । तीन याल म तीन
कार क औषध ा त होगी । ऊपर वाले याले म इस का स व (जौहर) िमलेगा । बीच वीले याले म पीले रं ग क
सलाख िमलगीं और तीसरे याले म औषध का बचा हुआ भाग िमलेगा । अनुभवी वै का कथन है क नीचे के याले
वाली औषध आमवात (ग ठया) रोग के िलए एक र ी भ म ित दन बताशे म रख कर दे ने से तीन ह दन म ग ठया
रोग म बहुत लाभ करती है ।
शेष दो याल क औषिधयां बवासीर के रोिगय के िलए बहुत लाभदायक ह । इनका सेवन इस कार से कर । पहले
बीच के याले क औषध क मा ा १ र ी म खन म िमलाकर दो दन तक खलाव और खाने के िलए रोगी को केवल
िम ी िमलाकर गोद ु ध ह दे व । दो दन के पीछे रोगी के पेट म पीड़ा होगी, इससे घबराव नह ं । तीसरे दन रोगी को
बहुत ातःकाल ह ऊपर के याले वाला स व (जौहर) मा ा एक र ी म खन म िमलाकर खलाय और रोगी को िलटा द
। एक हर के प चात ् कांच िनकल म से िगर जायगे । उ ह व छ (साफ) कपड़े से दरू कर दे ना चा हये । फर एक
तोला फटकड़ का बार क चूण कपड़े पर रख कर कांच पर रख दे ना चा हये और लंग ोट बांध दे ना चा हये । रोगी को
िम ी िमला गोद ु ध पलाकर दो घ टे दोन पैर पर बठा दे व, फर कोई सुपच नम भोजन दे व । रोगी दो-चार दन म ह
इस कार इस क ट द रोग से छुटकारा पा जाता है ।
37 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
प थर
१. - आक के फूल को गाय के दध
ू म पीसकर तीस दन ातःकाल ित दन लेने से जलन यु प थर रोग न ट होता है
।
२. - छाया म सुखाये हुए आक के फूल, यव ार, कलमीशोरा और कुसुंभ बीज - इन सब औषध को समान भाग लेकर
हर दब ू (घास) के रस म खरल कर । इस का तीन माशा चूण बकर के दध ू के साथ लेने से ब त और गुद क प थर
तथा मू ावरोध (पेश ाब क कावट) दरू होती है ।
पुं वश
१. - एक सेर गाय का घी कढ़ाई म डालकर उस म साफ कया हुआ एक आक का नया प ा डालकर जलाते जाय । जब
सौ प े जल जाय तो उस घी को छानकर बोतल म भर द । इस घी म से २ तोला घी दध
ू वा रोट के साथ सेवन करने से
पुं व श बढ़ती है । यह घृत कफ के रोग और कृिमरोग का नाश करता है ।
३. - ग धक, ह राकसीस येक छः तोले, फटकड़ और िशंगरफ तीन-तीन तोले लेकर चूण कर ल और आक के डोड
म से काले बीज िनकलवाकर उनका तैल िनकलवा ल । यह तैल यून से यून १ पाव हो । पहले उस चूण को गोघृत वा
बादाम रोगन क १०० भावनाय दे व । फर इस पाव भर आक के तैल म इस चूण को खरल करके एक- दल कर ल और
आक क ई क मोट -मोट ब यां बनाकर इस खरल क हुई औषध म तर कर दे व । फर इन ब य को लोहे क छड़
पर लटकाकर इनम आग लगा द और इनके नीचे चीनी िम ट का साफ पा रख द । इन ब य म से जो तैल टपके
उसे इक ठा होने पर छानकर शीशी म रख । मा ा एक खस के दाने के समान । इस तैल को रोट के गास म िनगल ल ।
और रा को एक खस के समान रोट के गास म दाय जबड़े के नीचे रख । इस कार दस रा तक योग कर । इस के
दस रा तक योग से बुढ़ापा न ट होकर जवानी आती है । पूण श दान करके युवा बनाता है ।
पृ ८६-९२
आक के प का रस ४ सेर, पीली सरस का तैल आध सेर और ह द ५ तोला जल के साथ खूब बार क पीस चटनी सी
बनाकर इसक लुगद वा गोला बनाकर इसम डाल दे व । म दा न म पकाय । जब रस जलकर तैल मा शेष रह जाय
तो उसे उतार कर छान लेव । इस तैल म दस तोला मोम डालकर म दा न पर पकाय । जब मोम तैल म िमल जाये तो
उतार ल । फर इसम ग धक, भुना हुआ सुहागा, सफेद क था, रे व द चीनी, कमीला, काली िमच, राल, मुदा संग,
नीलाथोथा भुना हुआ, भुनी हुई फटकड़ - ये सब ढ़ाई-ढ़ाई तोले बार क पीस कपड़छान करके ऊपर वाले तैल म िमला
दे व और इसम ४ तोले पारे ग धक क कजली भी िमला द और शीशी म भर ल । दाद चमदल (च बल) के िलये अमोघ
औषध है । भयंकर से भयंकर दाद भी इससे शी समूल न ट हो जाते ह । िनराश रोिगय क यह आशा और सहारा है ।
दाद के अित र खाज व पामा रोग को दरू करती है ।
आक के प का रस ९६ तोले, गाय का घी ८ तोले, सरस का तैल १६ तोले - इन तीन व तुओं को िमलाकर कली वाले
पा म अ न पर चढ़ा दे व और धीमी आंच जलाव । जब केवल घी और तैल शेष रह जाये तो उसे उतारकर छान लेव ।
इसम आक के सूखे प का कपड़छान चूण ४ तोले, ग धक पारे क रगड़ हुई कजली १ तोला, िस दरू आधा तोला,
हरताल आधा तोला, मैनिसल आधा तोला, ह द आधा तोला - इन सब व तुओं को कपड़छान करके ऊपर वाले तले घी
म िमलाकर मरहम बनाय । इस मरहम के लगाने से पुराने घाव और नासूर जो कसी औषध से ठ क न होते ह , इससे
ठ क हो जाते ह ।
38 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
पीपल, ह द , शंख क भ म, स जी ार, क च के बीज, सधा लवण, िनगु ड के प े, चनगोट के बीज, केशर, आसव
का कचरा, मूल ी, नीलाथोथा, नागकेशर, मुग क बींठ, धतूरे के बीज और अजवायन - इन सब व तुओं को समभाग
लेकर कपड़छान कर ल और एक भावना गाय के दध ू क दे कर सुर त रख । इसके लेप करने से सव कार के पुराने
ज म, नासूर, कंठमाला, बवासीर और न फटने वाली गांठ भी ठ क हो जाती ह ।
कु ठ रोग
अप मार (िमरगी)
अप मार वा िमरगी के रोग म रोगी को दौरा पड़ने पर िशर म च कर सा आता है । आंख टे ढ कर लेता है , वह अचेत
होकर भूिम पर िगरकर हाथ-पांव मारने लगता है । मुख म झाग आ जाते ह । कई बार तो रोगी क ज ा (जीभ) भी कट
जाती है । कुछ समय के प ात ् वयं चेतना (होश) म आ जाता है । इसके रोगी क म त क क श न हो जाती है ।
प य - प चग य घृत, महाचेतस घृत, ा घृत आ द म से कसी एक का सेवन कराय, मृगी रोग समूल न ट होगा ।
२. - आठ-दस साल पुराना गोघृत एक तोला गम करके और इसम ६ माशे िम ी िमलाकर पलाने से उ माद तथा मृगी
का रोग दरू होता है ।
आक के अित र कुछ औषध मृगी के रोगी के िलए इसीिलए िलख द क इस दःु खदायी रोग से रोगी को छुटकारा िमल
जाए ।
६. - आक के ताजे फूल और काली िमच समभाग लेकर पीसकर ढ़ाई-ढ़ाई र ी क गोिलयां बनाय और दन म एक-एक
गोली ३-४ बार दे व । मृगी, ास, बाइ टे , िधर वकार और नायु-रोग (र चापा द) न हो जाते ह ।
सप वष क िच क सा
१. - आक क जड़ का िछलका १ तोला ठं डाई के समान जल म घोटकर पलाने से सप वष उतर जाता है ।
39 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
४. - आक क जड़ और बाड़ (कपास) क जड़ दोन साथ साथ समान भाग लेकर पीस ल और थोड़ा जल िमलाकर
पलाय । इससे सप वष म लाभ होता है ।
६. - गु कुल झ जर क बनी सपदं श ामृत औषध सदै व अपने पास रख । सांप के काटने पर उसका योग रोगी पर कर ।
अचूक औषध है । हजार रोिगय पर वह आजमाई हुई है । उसम नाकुली (अमृता बूट ) जसे महारा म नाय कहते ह,
पड़ती है जो थावर और जंगम सभी वष क रामबाण औषध है ।
ब छू वष पर
१. - ब छू के वष पर पहले गूगल क धूनी दे कर फर आक के प को पीस कर लेप करने से पीड़ा और वष दरू होते ह ।
२. - ब छू का डं क िनकाल दे ना चा हये, फर उस पर आक का दध
ू मसलना चा हये । इसके मसलने तथा लेप करने से
लाभ होगा । य द ब छू का डं क न िनकले तो भी आक के लगाने से ब छू वष उतरकर पीड़ा दरू होती है । उस अव था
म आक का दध ू कई बार शी -शी लगाना पड़ता है ।
३. - अक ार - जहां ब छू ने काटा हो, उस थान पर थोड़ा नमक और थोड़ा पानी िमलाकर मलने से लाभ होता है ।
य द नमक और पारा आक के ार के साथ िमलाकर डं क थान पर मदन कर तो पीड़ा तुर त शा त होगी ।
पागल कु े के काटने पर
आक क जड़ क छाल ३ तोले, धतूरे के प का चूण ४ माशे और िम ी ३ तोले - सबको जल के साथ घोटकर एक-एक
र ी क गोली बना ल । रोगी को पहले अरं ड के तैल का जुलाब दे व । पांच वष क आयु तक एक-एक गोली, १० वष क
आयु वाल को दो-दो गोली और १५ वष से अिधक आयु के रोगी को तीन-तीन गोली ातः-सायं दोन समय खला दे व
और ऊपर से एक दो मु ठ भुने हुए चने खला द जससे उ ट न होकर औषध पच जाये । औषध लेने के तीन घ टे
पीछे जल और भोजन लेना चा हये । इस कार इस औषध को ४० दन सेवन कराय । आठव दन बीच-बीच म अरं ड के
तैल क जुलाब दे ते रह । भोजन म गेहंू चणे क रोट और घी का सेवन कराय । इससे जन को पागल कु े वा गीदड़ ने
काटा हो तो पागलपन (हड़काव) होने का भय नह ं रहता । य द इन गोिलय के सेवन करने पर भी कसी को हड़काव
(पागलपन) हो जाये तो आक के प का रस १ तोला, धतूरे का रस डे ढ़ माशा, ितल का तैल ढ़ाई तोले िमलाकर पला द ।
दस
ू रे -तीसरे दन इस से आधी खुराक पलानी चा हये । इस से उ प न हुई यािध दरू हो जायेगी ।
अ य रोग पर
यह औषध इसके अित र अनुवात, ताण, कफ, खांसी, वास, हचक , उपदं श , आतिशक, वचारोग, कोढ़, नहारवा
रोग को भी उिचत अनुपात से सेवन करने पर अ छा लाभ करती है ।
आंख का फोला
40 of 41 12/6/2012 10:16 AM
Aak - Jatland Wiki http://www.jatland.com/home/Aak
विच योग - जस रोगी को आंख म फोला हो, वह जस आंख म फोला हो उस से दस ू र ओर कु (कोख) म अंगूठे
से आक का दध ू ातःकाल लगाकर मल । जैसे बा आंख म फोला हो तो दा कोख म पेट पर अंगूठे जतने थान पर
अक दध ू लगाकर खूब मलना चा हये । एक स ताह के पीछे फर उसी कार पुनः उसी थान पर आक का दध ू
ातःकाल लगकर लेप करके मल । जैसे र ववार को दधू लगाया है तो अगले र ववार को फर लगाय । य द पहली बार
लगाने से कुछ दन पीछे फोले वाली आंख लाल हो जाये तो समझो औषध का भाव हो गया, फोला अव य कटे गा ।
फर एक र ववार छोड़कर आक का दध ू लगाय । इस कार तीन-चार बार अक द ु ध कोख म लगाना चा हये । यह
अव य यानपूवक कर क य द दांई आंख म फोला हो तो बा कोख पर और बा आंख म फोला हो तो दा कोख पर
आक का दध ू लगाकर मल । बीच-बीच म एक स ताह क अपे ा १५ दन म लगाय । फोला अव य कट जायेगा । ी
माननीय र निसंह जी गा जयाबाद के ाता इस िच क सा को बहुत वष से करते आ रहे ह । बहुत से रोिगय को लाभ
हुआ है । वे र ववार को ह ातःकाल आक का दध ू लगाते ह । बहुत रोगी उनके पास लाभ उठा चुके ह ।
Digital text of the printed book prepared by - Dayanand Deswal दयान द दे सवाल
41 of 41 12/6/2012 10:16 AM