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कृषि षित्त

कृषि षित्त ग्रामीण षिकास एिं कृषि संबंषित गषतषिषिय ं से जुड़े कायों के सम्पादन से सम्बं षित ऐसी
षित्त व्यिस्था है ज उसके आपूषति , थ क, षितरण, प्रसंस्करण और षिपणन के षित्तप िण के षिए
समषपित एक षिभाग के रूप में जाना जाता है .
JAGRAN JOSH
SEP 1, 2014 17:50 IST

कृषि षित्त ग्रामीण षिकास एिं कृषि संबंषित गषतषिषिय ं से जुड़े कायों के सम्पादन से सम्बंषित
ऐसी षित्त व्यिस्था है ज उसके आपूषति , थ क, षितरण, प्रसंस्करण और षिपणन के षित्तप िण
के षिए समषपि त एक षिभाग के रूप में जाना जाता है .

षकसान ं की ऋण आिश्यकताओं क षनम्नषिखित तथ् ं िे आिार पर षनिाि ररत षकया जा


सकता है :

• समय के आिार पर
• उद्दे श्य के आिार पर
समय के आिार पर: समय के आिार पर षकसान ं की ऋण आिश्यकताओं क षनम्न रूप
में िगीकृत षकया जा सकता है :
• िघु अिषि
• मध्यम अिषि
• िंबे समय तक की अिषि के षिए ऋण
िघु अिषि के ऋण:
इस तरह के ऋण उििरक, बीज, कीटनाशक ं और पशुओं के चारे आषद क िरीदने आषद के
षिए षदया जाता है . साथ ही मजदू र ं की मजदू री के भुगतान, कृषि उपज ं के षिपणन एिं
उपभ ग और अनुत्पादक उद्दे श्य ं एिं मजदू री के भुगतान के षिए आिश्यक हैं . इन ऋण ं के
षिए अिषि 15 महीने से भी कम है .

षकसान ं की जरूरत एिं उद्दे श्य के आिार पर कृषि ऋण क तीन भाग ं में िगीकृत षकया
जा सकता है :

• उत्पादक आिश्यकता
• िपत की जरूरत
• अनुत्पादक आिश्यकता
उत्पादक आिश्यकता -
उत्पादक जरूरत ं के सन्दभि की बात करें त कृषि ऋण कृषि उत्पादन क गहरे तक
प्रभाषित करते हैं . कुछ षकसान की बात करें त िे आदतन भी िपत के षिए ऋण की
जरूरत महसूस करते हैं .. कृषि की बुिाई एिं उसके उपज और बाद में फसि की कटाई
और उसके षिपणन ह ने के मध्य इतनी अिषि का समय ह ता है की षकसान अपनी तमाम
जरूरत ं क पूरा करने में अक्षम ह ते हैं . अतः िे अपनी तमाम जरूरत ं क ही पूरा करने
के षिए मजबूरन ऋण िेते हैं . अथाि त यषद क ई षकसान ऋण िेता है त कुछ षकसान क
छ ड़ दे त अषिकां श षकसान के ऋण िेने की परं परा गित नहीं है .
कृषि षित्त से जुड़े स्र त षनम्नित हैं :-

• गैर संस्थागत स्र त ं


• संस्थागत स्र त ं
गैर संस्थागत स्र त हैं :

• साहूकार
• ररश्तेदार
• व्यापारी
• घूस िेने िािे एजेंट
• जमींदार
संस्थागत स्र त:

• सहकारी बैंक
• अनुसूषचत िाषणखिक बैंक
• क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ं की समस्याएं


प्रत्येक क्षे त्रीय ग्रामीण बैंक ं के प्रमुख प्राय जक िाषणज्यिक बैंक ह ते हैं . इसकी पूंजी में प्रमुख
भूषमका केन्द्र सरकार और संबंषित राि सरकार षनभाते हैं.
JAGRAN JOSH
SEP 2, 2014 13:47 IST

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ं की समस्याओं में से कुछ षनम्नषिखित हैं :

1. संगठनात्मक समस्याएं
प्रत्येक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ं के प्रमुि प्राय जक िाषणखिक बैंक ह ते हैं . इसकी पूंजी में प्रमुि
भूषमका केन्द्र सरकार और संबंषित राि सरकार षनभाते हैं . अतः क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ं की
षनयंत्रक एजेंसीयां कई ह ती हैं . और यही कारण है की इनके प्रबंिन में एकरूपता नहीं
षदिाई दे ता है .

साथ ही इसी िजह से प्राय जक बैंक ं एिं राि सरकार ं से समथिन के अभाि और उनके
समुषचत षनगरानी की कमी दे िी गयी है . पररणामस्वरूप क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ं के आं तररक
संचािन की अििारणा में नकारात्मक सन्दभों का षिकास हुआ है और ग्राहक ं की संख्या कम
हुई है . यानी, स्पष्ट िक्ष्य समूह ं का सीषमत षिकास हुआ है . इसके अिािा प्रारं षभक समय से
ही क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ं के संस्थान ं के भीतर उषचत प्रषियाओं और प्रणाषिय ं के षियान्वयन
में कमी दे खि गयी है . इसके अिािा, भती प्रषिया के सन्दभि में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ं के
कमिचाररय ं के प्रषशक्षण के षिए भी पयाि प्त ध्यान नहीं षदया गया है .

2. िसूिी की समस्याएं
कई साि ं से यह दे िा गया है षक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ं के पुनरुद्धार की खस्थषत में कमी दे खि
गयी है . था और उनके पुनरुद्धार का स्तर 51% से 61% के बीच रहा है .
3. गैर व्यिहायिता षजसके पररणामस्वरूप बढ़ता हुआ घाटा
4. प्रबंिन की समस्याएं
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ं में षजिा स्तर पर सबसे छ टे संस्थान ह ते हैं . इनके संचािन में प्राय जक
बैंक केिि मध्यस्थ की भूषमका षनभाते हैं . उन्हें चिाने के षिए प्रबंिन कमिचाररय ं की
षनयुखि भी मध्य स्तर पर की गयी है . यह मध्य स्तर नए माहौि में स्वतंत्र षनणिय िेने की
प्रषिया में जषटिता का अनुभि करता है .

िाषणज्यिक बैंक ं का संचािन


राष्ट्रीयकरण के बाद ग्रामीण क्षे त्र ं में बैंक ऋण के सन्दभि में जबरदस्त मांग और षिस्तार दे खा गया.
JAGRAN JOSH
SEP 1, 2014 17:54 IST

1. राष्टरीयकरण के बाद ग्रामीण क्षेत्र ं में बैंक ऋण के सन्दभि में जबरदस्त मां ग और षिस्तार
दे िा गया. यह िस्तुतः संसािन ं के षिषििीकरण और संरचना में उपभेद ं के पररणामस्वरुप
संभि हुआ था. इस तरह के त्वररत षिकास और षिषिषिकरण नें कायििम ं के षनिाि रण में
षगरािट का आगाज़ षकया था. षिशेि तौर पर गरीबी उन्मूिन से जुड़े कायििम ं के सन्दभि में
व्यापक कमी दे िी गयी.
2. ज ग्रामीण क्षेत्र ं में शािाओं की भारी संख्या के उद् घाटन त हुए िेषकन उनकी पयाि प्त
व्यापार की क्षमता नहीं थी. इसके अिािा भारी संख्या में षिए गए ऋण षजनका भुगतान
संभि नहीं ह पाया इसकी िजह से भी इन बैंक ं क भारी नुक्सान का सामना करना पड़ा.
3. िाषणखिक बैंक ं ने उिार के सन्दभि में सहकारी सषमषतय ं द्वारा षकये गए भद्दे कायों और
भौग षिक अंतर क समाप्त षकया है .
4. िाषणखिक बैंक ं की िसूिी की खस्थषत काफी षिकट है .
5. ग्रामीण ऋण- जमा अनुपात का स्तर 1991 के 1.58% की तुिना में 2001 में 0.73%
ह गया. इसका अथि था की ग्रामीण क्षेत्र ं से जु टाए गए ऋण का इस्तेमाि षकसी और क्षेत्र में
कर षदया गया.
6. ऋण ं के सन्दभि में यह परे शानी ना केिि एक िाषणखिक बैंक से दु सरे िाषणखिक बैंक
के बीच है बखि िाषणखिक बैंक ं और सहकारी ऋण संरचना के बीच भी है . दू सरी तरफ
सरकारी षिभाग ं ने भी गंभीर आयाम ग्रहण कर षिया है .
7. 1990 के दशक में छ टे और सीमां त षकसान ं के षिए ऋण संषितरण का कायि अत्यंत
िीमा ह गया था. िैकखिक प्राििान ं के अंतगित बैंक ं क संसािन उपिब्ध कराये गए.
ताषक िे ग्रामीण षिकास के सन्दभि में ग्रामीण बुषनयादी ढां चा षिकास फंड में षनिेश कर सकें
और संसािन ं का षनमाि ण कर सकें. साथ ही िघु एिं सीमां त षकसान ं के षिए प्रत्यक्ष षित्त में
िृखद्ध की दर क कम करने के षिए भारतीय िघु उद्य ग षिकास बैंक के साथ जमा रिने
क प्राथषमकता दी गयी.

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