You are on page 1of 86

Ashtavakra Gita / अष्टावक्र गीता

First Chapter / प्रथभ अध्माम

अष्टावक्र
अष्टावक्र गीता (हहॊदी Ashtavakra Gita
गीता(भर

बावानव
ु ाद) (English)
सॊस्कृत)

जनक उवाच - वमोवद्


ृ ध याजा जनक, फारक Old king Janak asks the
young Ashtavakra - How
कथॊ ऻानभवाप्नोतत, अष्टावक्र से ऩूछते हैं - हे प्रबु, knowledge is attained,
कथॊ भक्ु ततबभववष्मतत। ऻान की प्राक्प्त कैसे होती है , how liberation is
attained and how non-
वैयाग्म च कथॊ प्राप्तभेतद भक्ु तत कैसे प्राप्त होती है , वैयाग्म attachment is attained,
ब्रहू ह भभ प्रबो॥१-१॥ कैसे प्राप्त ककमा जाता है , मे सफ please tell me all
भझ
ु े फताएॊ॥१॥ this.॥1॥

अष्टावक्र उवाच - श्री अष्टावक्र उत्तय दे ते हैं - Sri Ashtavakra answers


- If you wish to attain
भुक्ततमभच्छमस चेत्तात ्, महद आऩभुक्तत चाहते हैं तो अऩने liberation, give up the
ववषमान ववषवत्त्मज। भन से ववषमों (वस्तुओॊ के passions (desires for
sense objects) as
ऺभाजभवदमातोष, सत्मॊ उऩबोग की इच्छा) को ववष की poison. Practice
ऩीमूषवद्बज॥१-२॥ तयह त्माग दीक्जमे। ऺभा, forgiveness, simplicity,
compassion,
सयरता, दमा, सॊतोष तथा सत्म
contentment and truth
का अभत
ृ की तयह सेवन as nectar.॥2॥
कीक्जमे॥२॥
न ऩथ्
ृ वी न जरॊ नाक्ग्ननभ आऩ न ऩथ्
ृ वी हैं, न जर, न You are neither earth,
nor water, nor fire, nor
वामुद्भमौनभ वा बवान ्। अक्ग्न, न वामु अथवा आकाश ही air or space. To
एषाॊ साक्षऺणभात्भानॊ हैं। भुक्तत के मरए इन तत्त्वों के liberate, know the
witness of all these as
चचद्रऩ
ू ॊ ववद्चध भुततमे॥१- साऺी, चैतन्मरूऩ आत्भा को
conscious self.॥3॥
३॥ जातनए॥३॥

महद दे हॊ ऩथ
ृ क् कृत्म महद आऩ स्वमॊ को इस शयीय से If you detach yourself
from the body
चचतत ववश्राम्म ततष्ठमस। अरग कयके, चेतना भें ववश्राभ and rest in
अधन
ु ैव सुखी शान्तो कयें तो तत्कार ही सुख, शाॊतत consciousness, you will
become content,
फन्धभुततो बववष्ममस॥१- औय फॊधन भुतत अवस्था को peaceful and free from
४॥ प्राप्त होंगे॥४॥ bondage
immediately.॥4॥

न त्वॊ ववप्राहदको वणभ: आऩ ब्राह्भण आहद सबी You do not belong to


'Brahman' or any other
नाश्रभी नाऺगोचय:। जाततमोंअथवा caste, you do not
असङगोऽमस तनयाकायो ब्रह्भचमभ आहद सबी आश्रभों से ऩये belong to 'Celibate' or
any otherstage, nor are
ववश्वसाऺी सुखी बव॥१- हैं तथा आॉखों से हदखाई न ऩड़ने you anything that the
५॥ वारे हैं। आऩ तनमरभप्त, तनयाकाय eyes can see. You are
unattached, formless
औय इस ववश्व के साऺी हैं, ऐसा
and witness of
जान कय सुखी हो जाएॉ॥५॥ everything - so be
happy.॥5॥

धभाभधभौ सुखॊ दख
ु ॊ धभभ, अधभभ, सख
ु , द्ु ख भक्स्तष्क Righteousness,
unrighteousness,
भानसातन न ते ववबो। सेजड़
ु ें हैं, सवभव्माऩक आऩ से pleasure and pain are
न कताभमस न बोततामस नहीॊ। न आऩ कयने वारे हैं औय connected with the
mind and not with the
भत
ु त एवामस सवभदा॥१-६॥ न बोगने वारे हैं, आऩ सदा all-pervading you. You
भत
ु त ही हैं॥६॥ are neither the doer
nor the reaper of the
actions, so you are
always almost free.॥6॥
एको द्रष्टामस सवभस्म आऩ सभस्त ववश्व के एकभात्र You are the solitary
witness of all that is,
भुततप्रामोऽमस सवभदा। दृष्टा हैं, सदा भुतत ही हैं, आऩ almost always free.
अमभेव हह ते फन्धो का फॊधन केवर इतना है कक Your only bondage is
understanding the seer
द्रष्टायॊ ऩश्मसीतयभ ्॥१-७॥ आऩ दृष्टा ककसी औय को
to be someone else.॥7॥
सभझते हैं॥७॥

अहॊ कतेत्महॊ भान अहॊ काय रूऩी भहासऩभ के Ego poisons you to
believe: “I am the
भहाकृष्णाहहदॊ मशत्। प्रबाववश आऩ 'भैं कताभ हूॉ' doer”.
नाहॊ कतेतत ववश्वासाभत
ृ ॊ Believe “I am not the
ऐसा भान रेते हैं। 'भैं कताभ doer”. Drink this
ऩीत्वा सुखॊ बव॥१-८॥
नहीॊ हूॉ', इस ववश्वास रूऩी nectar and be
happy.॥8॥
अभत ृ को ऩीकय सुखी हो
जाइमे॥८॥

एको ववशुद्धफोधोऽहॊ भैं एक, ववशुद्ध ऻान हूॉ, इस The resolution "I am
single, pure
इतत तनश्चमवक्ह्नना। तनश्चम रूऩी अक्ग्न से गहन knowledge”
प्रज्वाल्माऻानगहनॊ अऻान वन को जरा दें , इस consumes even the
dense ignorance like
वीतशोक् सुखी बव॥१-९॥ प्रकाय शोकयहहत होकय सुखी हो fire. Be beyond
जाएॉ॥९॥ disappointments and be
happy.॥9॥

मत्र ववश्वमभदॊ बातत जहाॉ मे ववश्व यस्सी भें सऩभ की Feel the ecstasy, the
supreme bliss where
कक्ल्ऩतॊ यज्जुसऩभवत ्। तयह अवास्तववक रगे, उस this world appears
आनॊदऩयभानन्द् स आनॊद, ऩयभ आनॊद की अनुबूतत unreal like a snake in a
rope, know this and
फोधस्त्वॊ सुखॊ चय॥१-१०॥ कयके सुख से यहें ॥१०॥
move happily.॥10॥
भुततामबभानी भुततो हह स्वमॊ को भुतत भानने वारा If you think you are
free you are free. If
फद्धो फद्धामबभान्मवऩ। भुतत ही है औय फद्ध भानने you think you are
ककवदन्तीह सत्मेमॊ वारा फॊधा हुआ ही है , मह bound you are
bound. It is rightly said:
मा भतत् सा कहावत सत्म ही है कक जैसी You become what you
गततबभवेत ्॥१-११॥ फुद्चध होती है वैसी ही गतत होती think.॥11॥
है ॥११॥

आत्भा साऺी ववब्ु आत्भा साऺी, सवभव्माऩी, The soul is witness, all-
pervading, infinite,
ऩण
ू भ एको ऩूण,भ एक,भुतत, चेतन, अकक्रम, one, free, inert,
भत
ु तक्श्चदकक्रम्। neutral, desire-less and
असॊग, इच्छायहहत एवॊ शाॊत है । peaceful. Only due to
असॊगो तन्स्ऩह
ृ ् शान्तो
भ्रभवश ही मे साॊसारयक प्रतीत illusion it appears
भ्रभात्सॊसायवातनव॥१-१२॥ worldly.॥12॥
होती है ॥१२॥

कूटस्थॊ फोधभद्वैत- अऩरयवतभनीम, चेतन व अद्वैत Meditate on


unchanging, conscious
भात्भानॊ ऩरयबावम। आत्भा का चचॊतन कयें औय 'भैं' and non-dual Self. Be
आबासोऽहॊ भ्रभॊ भत
ु त्वा के भ्रभ रूऩी आबास से भत
ु त free from the illusion of
'I' and think this
बावॊ फाह्मभथान्तयभ ्॥१- होकय, फाह्म ववश्व की अऩने external world as part
१३॥ अन्दय ही बावना कयें ॥१३॥ of you.॥13॥

दे हामबभानऩाशेन चचयॊ हे ऩुत्र! फहुत सभम से आऩ 'भैं O son, you have


become habitual of
फद्धोऽमस ऩत्र
ु क। शयीय हूॉ' इस बाव फॊधन से फॊधे thinking- “I am body”
फोधोऽहॊ ऻानखॊगेन हैं, स्वमॊ को अनब
ु व कय, ऻान since long. Experience
the Self and by this
तक्न्नष्कृत्म सख
ु ी बव॥१- रूऩी तरवाय से इस फॊधन को sword of knowledge cut
१४॥ काटकय सख
ु ी हो जाएॉ॥१४॥ that bondage and be
happy.॥14॥
तन्सॊगो तनक्ष्क्रमोऽमस आऩ असॊग, अकक्रम, स्वमॊ- You are free, still, self-
luminous,
त्वॊ स्वप्रकाशो तनयॊ जन्। प्रकाशवान तथा सवभथा-दोषभुतत stainless.Trying to keep
अमभेव हह ते फन्ध् हैं। आऩका ध्मान द्वाया yourself peaceful by
meditation is your
सभाचधभनुततष्ठतत॥१-१५॥ भक्स्तस्क को शाॊत यखने का
bondage.॥15॥
प्रमत्न ही फॊधन है ॥१५॥

त्वमा व्माप्तमभदॊ ववश्वॊ मह ववश्व तुम्हाये द्वाया व्माप्त You have pervaded this
entire universe; really,
त्वतम प्रोतॊ मथाथभत्। ककमा हुआ है , वास्तव भें तुभने you have pervaded it
शुद्धफुद्धस्वरुऩस्त्वॊ भा इसे व्माप्त ककमा हुआ है । तुभ all. You are pure
knowledge, don't get
गभ् ऺुद्रचचत्तताभ ्॥१-१६॥ शुद्ध औय ऻानस्वरुऩ हो,
disheartened.॥16॥
छोटे ऩन की बावना से ग्रस्त भत
हो॥१६॥

तनयऩेऺो तनववभकायो आऩ इच्छायहहत, ववकाययहहत, You are desire-less,


changeless,solid and
तनबभय् शीतराशम्। घन (ठोस), शीतरता के धाभ, abode to calmness,
अगाधफुद्चधयऺुब्धो बव अगाध फुद्चधभान हैं, शाॊत होकय unfathomable
intelligent. Be peaceful
चचन्भात्रवासन:॥१-१७॥ केवर चैतन्म की इच्छा वारे हो and desire nothing but
जाइमे॥१७॥ consciousness.॥17॥

साकायभनत
ृ ॊ ववद्चध आकाय को असत्म जानकय Know that form is
unreal and only the
तनयाकायॊ तु तनश्चरॊ। तनयाकाय को ही चचय स्थामी formless is permanent.
एतत्तत्त्वोऩदे शन
े भातनमे, इस तत्त्व को सभझ रेने Once you know this,
you will not take birth
न ऩुनबभवसॊबव:॥१-१८॥ के फाद ऩुन् जन्भ रेना सॊबव
again.॥18॥
नहीॊ है ॥१८॥
मथैवादशभभध्मस्थे क्जस प्रकाय दऩभण भें प्रततबफॊबफत Just as form exists
inside a mirror and
रूऩेऽन्त् ऩरयतस्तु स्। रूऩ उसके अन्दय बी है औय outside it, Supreme
तथैवाऽक्स्भन ् शयीये ऽन्त् फाहय बी, उसी प्रकाय ऩयभात्भा Self exists both within
and outside the
ऩरयत् ऩयभेश्वय्॥१-१९॥ इस शयीय के बीतय बी तनवास
body.॥19॥
कयता है औय उसके फाहय
बी॥१९॥

एकॊ सवभगतॊ व्मोभ क्जस प्रकाय एक ही आकाश ऩात्र Just as the same space
exists both inside and
फहहयन्तमभथा घटे । के बीतय औय फाहय व्माप्त है , outside a jar, the
तनत्मॊ तनयन्तयॊ ब्रह्भ उसी प्रकाय शाश्वत औय सतत eternal, continuous
God exists in
सवभबत
ू गणे तथा॥१-२०॥ ऩयभात्भा सभस्त प्राणणमों भें
all.॥20॥
ववद्मभान है ॥२०॥

Second Chapter / द्ववतीम अध्माम

अष्टावक्र अष्टावक्र Ashtavakra


Gita
गीता(भर
ू गीता (हहॊदी (English)
सॊस्कृत) बावानुवाद)

जनक उवाच - याजा जनक कहते हैं - King Janaka


says: Amazingly, I am
अहो तनयॊ जन् शान्तो आश्चमभ! भैं तनष्करॊक, flawless, peaceful,
फोधोऽहॊ प्रकृते् ऩय्। शाॊत, प्रकृतत से ऩये , beyond nature and of the
form of knowledge. It is
एतावॊतभहॊ कारॊ ऻान स्वरुऩ हूॉ, इतने ironical to be deluded all
भोहे नैव ववडक्म्फत्॥२-१॥ सभम तक भैं भोह से this time.॥1॥
सॊतप्त ककमा गमा॥१॥
मथा प्रकाशमाम्मेको क्जस प्रकाय भैं इस शयीय As I illumine this body, so
I illumine the world.
दे हभेनो तथा जगत ्। को प्रकामशत कयता हूॉ, उसी Therefore, either the
अतो भभ जगत्सवभभ- प्रकाय इस ववश्व को whole world is mine or
थवा न च ककॊचन॥२-२॥ बी। अत् भैं मह सभस्त nothing is.॥2॥

ववश्व ही हूॉ अथवा कुछ बी


नहीॊ॥२॥

सशयीयभहो ववश्वॊ अफ शयीय सहहत इस ववश्व Now abandoning this


world along with the
ऩरयत्मज्म भमाऽधन
ु ा। को त्माग कय ककसी कौशर body, Lord is seen
कुतक्श्चत ् कौशरादे व द्वाया ही भेये द्वाया through some skill.॥3॥
ऩयभात्भा ववरोतमते॥२-३॥ ऩयभात्भा का दशभन ककमा
जाता है ॥३॥

मथा न तोमतो मबन्नास ्- क्जस प्रकाय ऩानी रहय, Just as waves, foam and
bubbles are not different
तयॊ गा् पेन फुदफुदा्। पेन औय फुरफुरों से ऩथ
ृ क from water, similarly all
आत्भनो न तथा मबन्नॊ नहीॊ है उसी प्रकाय आत्भा this world which has
emanated from self, is not
ववश्वभात्भववतनगभतभ ् ॥२-४॥ बी स्वमॊ से तनकरे इस
different from self.॥4॥
ववश्व से अरग नहीॊ है ॥४॥

तॊतभ
ु ात्रो बवेदेव क्जस प्रकाय ववचाय कयने On reasoning, cloth is
known to be just thread,
ऩटो मद्वद्ववचारयत्। ऩय वस्त्र तॊतु (धागा) भात्र similarly all this world is
आत्भतन्भात्रभेवेदॊ ही ऻात होता है , उसी self only.॥5॥
तद्वद्ववश्वॊ ववचारयतभ ्॥२-५॥ प्रकाय मह सभस्त ववश्व
आत्भा भात्र ही है ॥५॥
मथैवेऺुयसे तरप्ृ ता क्जस प्रकाय गन्ने के यस Just as the sugar made
from sugarcane juice has
तेन व्माप्तैव शकभया। से फनी शतकय उससे ही the same flavor, similarly
तथा ववश्वॊ भतम तरप्ृ तॊ व्माप्त होती है , उसी प्रकाय this world is made out
from me and is constantly
भमा व्माप्तॊ तनयन्तयभ ्॥२-६॥ मह ववश्व भुझसे ही फना है
pervaded by me.॥6॥
औय तनयॊ तय भुझसे ही
व्माप्त है ॥६॥

आत्भाऽऻानाज्जगद्बातत आत्भा अऻानवश ही ववश्व Due to ignorance, self


appears as the world; on
आत्भऻानान्न बासते। के रूऩ भें हदखाई दे ती है , realizing self it
यज्जवऻानादहहबाभतत आत्भ-ऻान होने ऩय मह disappears. Due to
oversight a rope appears
तज्ऻानाद्बासते न हह॥ २- ववश्व हदखाई नहीॊ दे ता है । as a snake and on
७॥ यस्सी अऻानवश सऩभ जैसी correcting it, snake does
not appear any
हदखाई दे ती है , यस्सी का
longer.॥7॥
ऻान हो जाने ऩय सऩभ
हदखाई नहीॊ दे ता है ॥७॥

प्रकाशो भे तनजॊ रूऩॊ प्रकाश भेया स्वरुऩ है , इसके Light is my very nature
and I am nothing else
नाततरयततोऽस्म्महॊ तत्। अततरयतत भैं कुछ औय besides that. That light
मदा प्रकाशते ववश्वॊ नहीॊ हूॉ। वह प्रकाश जैसे illumines the ego as it
तदाऽहॊ बास एव हह॥ २-८॥ इस ववश्व को illumines the world.॥8॥

प्रकामशत कयता है वैसे ही


इस "भैं" बाव को बी॥८॥

अहो ववकक्ल्ऩतॊ आश्चमभ, मह कक्ल्ऩत ववश्व Amazingly, this imagined


world appears in me due
ववश्वॊऻानान्भतम बासते। अऻान से भुझभें हदखाई to ignorance, as silver in
रूप्मॊ शुततौ पणी यज्जौ दे ता है जैसे सीऩ भें चाॉदी, sea-shell, a snake in the
rope, water in the
वारय सूमक
भ ये मथा॥ २-९॥ यस्सी भें सऩभ औय सूमभ
sunlight.॥9॥
ककयणों भें ऩानी॥९॥
भत्तो ववतनगभतॊ ववश्वॊ भुझसे उत्ऩन्न हुआ ववश्व This world is originated
from me and gets
भय्मेव रमभेष्मतत। भुझभें ही ववरीन हो जाता absorbed in me, like a jug
भहृ द कुम्बो जरे वीचच् है जैसे घड़ा मभटटी back into clay, a wave
into water, and a bracelet
कनके कटकॊ मथा॥ २-१०॥ भें , रहय जर भें औय कड़ा
into gold.॥10॥
सोने भें ववरीन हो जाता
है ॥१०॥

अहो अहॊ नभो भह्मॊ आश्चमभ है , भुझको Amazing! Salutations to


me who is indestructible
ववनाशो मस्म नाक्स्त भे। नभस्काय है , सभस्त and remains even after
ब्रह्भाहदस्तॊफऩमभन्तॊ ववश्व के नष्ट हो जाने ऩय the destruction of the
whole world from Brahma
जगन्नाशोऽवऩ ततष्ठत्॥ २- बी क्जसका ववनाश नहीॊ
down to the grass.॥11॥
११॥ होता, जो तण
ृ से ब्रह्भा
तक सफका ववनाश होने ऩय
बी ववद्मभान यहता
है ॥११॥

अहो अहॊ नभो भह्मॊ आश्चमभ है , भुझको Amazing! Salutations to


me who is one,who
एकोऽहॊ दे हवानवऩ। नभस्काय है , भैं एक हूॉ, appears with body,
तवचचन्न गन्ता नागन्ता शयीय वारा होते हुए बी जो neither goes nor come
anywhere and pervades
व्माप्म ववश्वभवक्स्थत्॥ २- न कहीॊ जाता है औय न
all the world.॥12॥
१२॥ कहीॊ आता है औय सभस्त
ववश्व को व्माप्त कयके
क्स्थत है ॥१२॥
अहो अहॊ नभो भह्मॊ आश्चमभ है , भुझको Amazing! Salutations to
me whois skilled and
दऺो नास्तीह भत्सभ्। नभस्काय है , जो कुशर है there is no one else like
असॊस्ऩश्ृ म शयीये ण औय क्जसके सभान कोई him, who without even
touching this body, holds
मेन ववश्वॊ चचयॊ धत
ृ भ ्॥२-१३॥ औय नहीॊ है , क्जसने इस
all the world.॥13॥
शयीय को बफना स्ऩशभ कयते
हुए इस ववश्व को अनाहद
कार से धायण ककमा हुआ
है ॥१३॥

अहो अहॊ नभो भह्मॊ आश्चमभ है , भुझको Amazing! Salutations to


me whoeither does not
मस्म भे नाक्स्त ककॊचन। नभस्काय है , क्जसका मह possess anything or
अथवा मस्म भे सवं मद् कुछ बी नहीॊ है अथवा जो possesses anything that
could be referred by
वाङ्भनसगोचयभ ्॥२-१४॥ बी वाणी औय भन से
speech and mind.॥14॥
सभझ भें आता है वह सफ
क्जसका है ॥१४॥

ऻानॊ ऻेमॊ तथा ऻाता ऻान, ऻेम औय ऻाता मह Knowledge, object of


knowledge and the
बत्रतमॊ नाक्स्त वास्तवॊ। तीनों वास्तव भें नहीॊ हैं, knower, these three do
अऻानाद् बातत मत्रेदॊ मह जो अऻानवश हदखाई not exist in reality. The
flawless self appears
सोऽहभक्स्भ तनयॊ जन्॥ २-१५॥ दे ता है वह तनष्करॊक भैं ही as these three due to
हूॉ॥१५॥ ignorance.॥15॥

द्वैतभर
ू भहो द्ु खॊ नान्म- द्वैत (बेद) सबी दख
ु ों का Definitely, duality
(distinction) is the
त्तस्माऽक्स्त बेषजॊ। भर
ू कायण है । इसकी इसके fundamental reason of
दृश्मभेतन ् भष
ृ ा सवं अततरयतत कोई औय suffering. There is no
other remedy for it other
एकोऽहॊ चचद्रसोभर्॥ २-१६॥ औषचध नहीॊ है कक मह सफ than knowing that all that
जो हदखाई दे यहा है वह is visible, is unreal, and
that I am one, pure
सफ असत्म है । भैं एक,
consciousness.॥16॥
चैतन्म औय तनभभर हूॉ॥१६॥
फोधभात्रोऽहभऻानाद् भैं केवर ऻान स्वरुऩ हूॉ, I am of the nature of light
only, due to ignorance I
उऩाचध् कक्ल्ऩतो भमा। अऻान से ही भेये द्वाया have imagined other
एवॊ ववभश
ृ तो तनत्मॊ स्वमॊ भें अन्म गुण कक्ल्ऩत attributes in me. By
reasoning thus, I exist
तनववभकल्ऩे क्स्थततभभभ॥ २- ककमे गए हैं, ऐसा ववचाय eternally and without
१७॥ कयके भैं सनातन औय cause.॥17॥
कायणयहहत रूऩ से क्स्थत
हूॉ॥१७॥

न भे फन्धोऽक्स्त भोऺो वा न भुझे कोई फॊधन है औय For me there is neither


bondage nor liberation. I
भ्राक्न्त् शान्तो तनयाश्रमा। न कोई भुक्तत का भ्रभ। भैं am peaceful and without
अहो भतम क्स्थतॊ ववश्वॊ शाॊत औय आश्रमयहहत हूॉ। support. This world
though imagined in me,
वस्तुतो न भतम क्स्थतभ ्॥२- भुझभें क्स्थत मह ववश्व बी does not exist in me in
१८॥ वस्तुत् भुझभें क्स्थत नहीॊ reality.॥18॥
है ॥१८॥

सशयीयमभदॊ ववश्वॊ मह तनक्श्चत है कक इस Definitely this world along


with this body is non-
न ककॊचचहदतत तनक्श्चतॊ। शयीय सहहत मह ववश्व existent. Only pure,
शुद्धचचन्भात्र आत्भा च अक्स्तत्वहीन है , केवर conscious self exists.
What else is there to be
तत्कक्स्भन ् कल्ऩनाधन
ु ा॥२- शुद्ध, चैतन्म आत्भा का
imagined now?॥19॥
१९। ही अक्स्तत्व है । अफ इसभें
तमा कल्ऩना की जामे॥१९॥

शयीयॊ स्वगभनयकौ शयीय, स्वगभ, नयक, फॊधन, The body, heaven and
hell, bondage and
फन्धभोऺौ बमॊ तथा। भोऺ औय बम मे सफ liberation, and fear, these
कल्ऩनाभात्रभेवैतत ् कल्ऩना भात्र ही हैं , इनसे are all unreal. What is my
connection with them
ककॊ भे कामं चचदात्भन्॥ २- भुझ चैतन्म स्वरुऩ का
who is conscious.॥20॥
२०॥ तमा प्रमोजन है ॥२०॥
अहो जनसभूहेऽवऩ आश्चमभ कक भैं रोगों के Amazingly, I do not see
duality in a crowd, it also
न द्वैतॊ ऩश्मतो भभ। सभूह भें बी दस
ू ये को नहीॊ appear desolate. Now
अयण्ममभव सॊवत्त
ृ ॊ दे खता हूॉ, वह बी तनजभन ही who is there to have an
तव यततॊ कयवाण्महभ ्॥२-२१॥ प्रतीत होता है । अफ भैं attachment with.॥21॥

ककससे भोह करूॉ॥२१॥

नाहॊ दे हो न भे दे हो न भैं शयीय हूॉ न मह शयीय I am not the body, nor is


the body mine. I am
जीवो नाहभहॊ हह चचत ्। ही भेया है , न भैं जीव हूॉ , consciousness. My only
अमभेव हह भे फन्ध भैं चैतन्म हूॉ। भेये अन्दय bondage is the thirst for
आसीद्मा जीववते स्ऩह life.॥22॥
ृ ा॥ २- जीने की इच्छा ही भेया
२२॥ फॊधन थी॥२२॥

अहो बुवनकल्रोरै- आश्चमभ, भुझ अनॊत Amazingly, as soon as the


mental winds arise in the
ववभचचत्रैद्राभक् सभुक्त्थतॊ। भहासागय भें चचत्तवामु उठने infinite ocean of myself,
भय्मनॊतभहाॊबोधौ ऩय ब्रह्भाण्ड रूऩी ववचचत्र many waves of surprising
worlds come into
चचत्तवाते सभुद्मते॥ २-२३॥ तयॊ गें उऩक्स्थत हो जाती
existence.॥23॥
हैं॥२३॥

भय्मनॊतभहाॊबोधौ भझ
ु अनॊत भहासागय भें As soon as these mental
winds subside in the
चचत्तवाते प्रशाम्मतत। चचत्तवामु के शाॊत होने ऩय infinite ocean of myself,
अबाग्माज्जीववणणजो जीव रूऩी वणणक का सॊसाय the world boat of trader-
like 'jeeva' gets destroyed
जगत्ऩोतो ववनश्वय्॥ २-२४॥ रूऩी जहाज जैसे दब
ु ाभग्म से
as if by misfortune.॥24॥
नष्ट हो जाता है ॥२४॥

भय्मनन्तभहाॊबोधा- आश्चमभ, भुझ अनॊत Amazingly, in the infinite


ocean of myself, the
वाश्चमं जीववीचम्। भहासागय भें जीव रूऩी waves of life arise, meet,
उद्मक्न्त घ्नक्न्त खेरक्न्त रहयें उत्ऩन्न होती हैं, play and disappear
प्रववशक्न्त स्वबावत्॥२-२५॥ मभरती हैं, खेरती हैं औय naturally.॥25॥

स्वबाव से भझ
ु भें प्रवेश कय
जाती हैं॥२५॥

Third Chapter / तत
ृ ीम अध्माम

अष्टावक्र अष्टावक्र गीता Ashtavakra


गीता(भर
ू (हहॊदी Gita
(English)
सॊस्कृत) बावानव
ु ाद)
अष्टावक्र उवाच - अष्टावक्र कहते हैं - आत्भा Ashtavakra says - Know
self asindestructible
अववनामशनभात्भानॊ को अववनाशी औय एक and one. How could a
एकॊ ववऻाम तत्त्वत्। जानो । उस आत्भ-ऻान को wise man having self-
knowledge can like
तवात्भऻानस्म धीयस्म प्राप्त कय, ककसी फुद्चधभान
acquiring wealth?॥1॥
कथभथाभजन
भ े यतत्॥३- १॥ व्मक्तत की रूचच धन अक्जभत
कयने भें कैसे हो सकती
है ॥१॥

आत्भाऻानादहो स्वमॊ के अऻान से भ्रभवश Not knowing self leads to


attachment in false sense
प्रीततववभषमभ्रभगोचये । ववषमों से रगाव हो जाता है objects just as mistakenly
शत
ु तेयऻानतो रोबो जैसे सीऩ भें चाॉदी का भ्रभ understanding mother of
pearl as silver
मथा यजतववभ्रभे॥३- २॥ होने ऩय उसभें रोब उत्ऩन्न
invokes greed.॥2॥
हो जाता है ॥२॥
ववश्वॊ स्पुयतत मत्रेदॊ सागय से रहयों के सभान This world originates
from self like waves from
तयङ्गा इव सागये । क्जससे मह ववश्व उत्ऩन्न the sea. Recognizing, "I
सोऽहभस्भीतत ववऻाम होता है , वह भैं ही हूॉ जानकय am That", why run like a
ककॊ दीन इव धावमस॥३- ३॥ तुभ एक दीन जैसे कैसे बाग poor?॥3॥

सकते हो॥३॥

श्रत्ु वावऩ शुद्धचैतन्म मह सुनकय बी कक आत्भा After hearing self to be


pure, conscious and very
आत्भानभततसुन्दयॊ । शुद्ध, चैतन्म औय अत्मॊत beautiful, how can you
उऩस्थेऽत्मन्तसॊसततो सुन्दय है तुभ कैसे जननेंहद्रम be attracted tosexual
objects and get
भामरन्मभचधगच्छतत॥३- ४॥ भें आसतत होकय भमरनता
impure?॥4॥
को प्राप्त हो सकते हो॥४॥

सवभबूतेषु चात्भानॊ सबी प्राणणमों भें स्वमॊ को For a sage who knows
himself to be is in all
सवभबूतातन चात्भतन। औय स्वमॊ भें सफ प्राणणमों beings and all beings in
भुनेजाभनत आश्चमं को जानने वारे भुतन भें him, retaining
attachment is
भभत्वभनुवतभते॥३- ५॥ भभता की बावना का फने
surprising!॥5॥
यहना आश्चमभ ही है ॥५॥

आक्स्थत् ऩयभाद्वैतॊ एक ब्रह्भ का आश्रम रेने For the one aspiring for
highest non-dual Lord
भोऺाथेऽवऩ व्मवक्स्थत्। वारे औय भोऺ के अथभ का and fully aware of the
आश्चमं काभवशगो ऻान यखने वारे का आभोद- meaning of liberation,
subjugation to desires is
ववकर् केमरमशऺमा॥३- ६॥ प्रभोद द्वाया उत्ऩन्न
surprising.॥6॥
काभनाओॊ से ववचमरत होना
आश्चमभ ही है ॥६॥
उद्बूतॊ ऻानदमु भभत्रभ- अॊत सभम के तनकट ऩहुॉच For a person having
reached his last time,
वधामाभततदफ
ु र
भ ्। चक
ु े व्मक्तत का उत्ऩन्न incapable of enjoying and
आश्चमं काभभाकाङ्ऺेत ् ऻान के अमभत्र काभ की knowing it to be enemy
of the gained knowledge,
कारभन्तभनुचश्रत्॥३- ७॥ इच्छा यखना, क्जसको धायण it is surprising to be after
कयने भें वह अत्मॊत अशतत sexual desires.॥7॥
है , आश्चमभ ही है ॥७॥

इहाभुत्र ववयततस्म इस रोक औय ऩयरोक से Suprise, unattached to


this and the other world,
तनत्मातनत्मवववेककन्। ववयतत, तनत्म औय अतनत्म those who can
आश्चमं भोऺकाभस्म का ऻान यखने वारे औय discriminate between the
permanent and the
भोऺाद् एव ववबीवषका॥३- भोऺ की काभना यखने वारों impermanent, and wish
८॥ का भोऺ से डयना, आश्चमभ to liberate are afraid of
ही है ॥८॥ liberation.॥8॥

धीयस्तु बोज्मभानोऽवऩ सदा केवर आत्भा का दशभन The wise who always see
self only, are neither
ऩीड्मभानोऽवऩ सवभदा। कयने वारे फुद्चधभान व्मक्तत pleased nor get angry
आत्भानॊ केवरॊ ऩश्मन ् बोजन कयाने ऩय मा ऩीडड़त whether they are feted
न तुष्मतत न कुप्मतत॥३- कयने ऩय न प्रसन्न होते हैं or tormented.॥9॥

९॥ औय न क्रोध ही कयते
हैं॥९॥

चेष्टभानॊ शयीयॊ स्वॊ अऩने कामभशीर शयीय को How can noble men be
perturbed by praise or
ऩश्मत्मन्मशयीयवत ्। दस
ू यों के शयीयों की तयह blame who see their
सॊस्तवे चावऩ तनन्दामाॊ दे खने वारे भहाऩुरुषों को bodies alike to
कथॊ ऺुभ्मेत ् भहाशम्॥३- प्रशॊसा मा तनॊदा कैसे others.॥10॥

१०॥ ववचमरत कय सकती है ॥१०॥


भामाभात्रमभदॊ ववश्वॊ सभस्त क्जऻासाओॊ से यहहत, Devoid of any questions,
seeing this world as
ऩश्मन ् ववगतकौतुक्। इस ववश्व को भामा भें imagined in Maya, how
अवऩ सक्न्नहहते भत्ृ मौ कक्ल्ऩत दे खने वारे, क्स्थय can one with resolute
intelligence be fearful of
कथॊ त्रस्मतत धीयधी्॥३- प्रऻा वारे व्मक्तत को even the incident
११॥ आसन्न भत्ृ मु बी कैसे death?॥11॥
बमबीत कय सकती है ॥११॥

तन्स्ऩह
ृ ॊ भानसॊ मस्म तनयाशा भें बी सभस्त Who can be compared to
the saint, free from
नैयाश्मेऽवऩ भहात्भन्। इच्छाओॊ से यहहत,स्वमॊ के desires even in
तस्मात्भऻानतप्ृ तस्म ऻान से प्रसन्न भहात्भा की disappointment
and satisfied with the
तुरना केन जामते॥३- १२॥ तुरना ककससे की जा सकती
knowledge of self?॥12॥
है ॥१२॥

स्वबावाद् एव जानानो स्वबाव से ही ववश्व को Know this world to be


visible due to its very
दृश्मभेतन्न ककॊचन। दृश्मभान जानो, इसका कुछ nature, it is non-existent
इदॊ ग्राह्ममभदॊ त्माज्मॊ बी अक्स्तत्व नहीॊ है । मह actually.How can a
person with resolute
स ककॊ ऩश्मतत धीयधी्॥३- ग्रहण कयने मोग्म है औय intelligence discriminate
१३॥ मह त्मागने मोग्म, दे खने things as to be taken or
वारा क्स्थय प्रऻामुतत to be rejected?॥13॥
व्मक्तत तमा दे खता है ?॥१३॥

अॊतस्त्मततकषामस्म ववषमों की आतॊरयक आसक्तत One who has given up


inner passions, is beyond
तनद्भवन्द्वस्म तनयामशष्। का त्माग कयने वारे, सॊदेह doubts and is without any
मदृच्छमागतो बोगो से ऩये , बफना ककसी इच्छा desires does not feel pain
or pleasure due to
न द्ु खाम न तुष्टमे॥३- वारे व्मक्तत को स्वत् आने
random events.॥14॥
१४॥ वारे बोग न दख
ु ी कय सकते
है औय न सुखी॥१४॥

Fourth Chapter / चतुथभ अध्माम


अष्टावक्र अष्टावक्र गीता Ashtavakra
गीता(भर
ू (हहॊदी Gita
(English)
सॊस्कृत) बावानुवाद)

अष्टावक्र उवाच - अष्टावक्र कहते हैं - स्वमॊ को Ashtavakra says: The self
- aware wise man takes
हन्तात्भऻस्म धीयस्म जानने वारा फुद्चधभान the worldly matter
खेरतो बोगरीरमा। व्मक्तत इस सॊसाय की sportively, he just
cannot be compared to a
न हह सॊसायवाहीकै- ऩरयक्स्थततमों को खेर की deluded person taking
भढ
ूभ ै ् सह सभानता॥४- १॥ तयह रेता है , उसकी burdens of the
साॊसारयक ऩरयक्स्थततमों का situations.॥1॥
फोझ (दफाव) रेने वारे भोहहत
व्मक्तत के साथ बफरकुर बी
सभानता नहीॊ है ॥१॥

मत ् ऩदॊ प्रेप्सवो दीना् क्जस ऩद की इन्द्र आहद सबी A yogi feels no joy even
after attaining a state
शक्राद्मा् सवभदेवता्। दे वता इच्छा यखते हैं, उस ऩद for which Indra and all
अहो तत्र क्स्थतो मोगी न भें क्स्थत होकय बी मोगी हषभ other demi-gods yearn
हषभभुऩगच्छतत॥४- २॥ नहीॊ कयता है ॥२॥ for.॥2॥

तज्ऻस्म ऩुण्मऩाऩाभ्माॊ उस (ब्रह्भ) को जानने वारे He who has self-


knowledge remains
स्ऩशो ह्मन्तनभ जामते। के अन्त्कयण से ऩुण्म औय untouched by good and
न ह्माकाशस्म धभ
ू ेन ऩाऩ का स्ऩशभ नहीॊ होता है bad even internally, as
the sky cannot be
दृश्मभानावऩ सङ्गतत्॥४- क्जस प्रकाय आकाश भें हदखने contaminated by the
३॥ वारे धए
ु ॉ से आकाश का presence of smoke in
सॊमोग नहीॊ होता है ॥३॥ it.॥3॥
आत्भैवेदॊ जगत्सवं क्जस भहाऩुरुष ने स्वमॊ को ही Who can prevent a great
man from living in the
ऻातॊ मेन भहात्भना। इस सभस्त जगत के रूऩ भें present as per his wish
मदृच्छमा वतभभानॊ जान मरमा है , उसकेस्वेच्छा as he knows himself as
तॊ तनषेद्धुॊ ऺभेत क्॥४- से वतभभान भें यहने को योकने this whole world.॥4॥

४॥ की साभथ्मभ ककसभें है ॥४॥

आब्रह्भस्तॊफऩमभन्ते ब्रह्भा से तण
ृ तक, चायों From Brahma down to
the grass, in all four
बूतग्राभे चतुववभधे। प्रकाय के प्राणणमों भें केवर categories of living
ववऻस्मैव हह साभथ्मभ- आत्भऻानी ही इच्छा औय creatures, who else can
give up desire and
मभच्छातनच्छावववजभने॥४- अतनच्छा का ऩरयत्माग कयने aversionexcept an
५॥ भें सभथभ है ॥५॥ enlightened man.॥5॥

आत्भानभद्वमॊ कक्श्चज ्- आत्भा को एक औय जगत का It is very rare to know


Self as One and Lord of
जानातत जगदीश्वयॊ । ईश्वय कोई कोई ही जानता है , the world, and he who
मद् वेवत्त तत्स कुरुते जो ऐसा जान जाता है उसको knows this does not fear
न बमॊ तस्म कुत्रचचत ्॥४- ककसी से बी ककसी प्रकाय का anyone or anything.॥6॥

६॥ बम नहीॊ है ॥६॥

Fifth Chapter / ऩॊचभ अध्माम

अष्टावक्र अष्टावक्र गीता Ashtavakra Gita


गीता(भर
ू सॊस्कृत) (हहॊदी बावानुवाद) (English)
अष्टावक्र उवाच - अष्टावक्र कहते हैं - तुम्हाया Ashtavakra says:
You are not connected
न ते सॊगोऽक्स्त केनावऩ ककसी से बी सॊमोग नहीॊ है , with anything. You are
ककॊ शुद्धस्त्मततुमभच्छमस। तुभ शुद्ध हो, तुभ तमा pure. What do you want
to renounce? Dissolve
सॊघातववरमॊ कुवभन ्- त्मागना चाहते हो, this unreal connection
नेवभेव रमॊ व्रज॥५- १॥ इस (अवास्तववक) and be one with
सक्म्भरन को सभाप्त कय Self.॥1॥
के ब्रह्भ से मोग
(एकरूऩता) को प्राप्त कयो॥१॥

उदे तत बवतो ववश्वॊ क्जस प्रकाय सभुद्र से फुरफुरे As bubbles rise in the
sea, the world originates
वारयधेरयव फुद्फुद्। उत्ऩन्न होते हैं, उसी प्रकाय from non-dual Self.
इतत ऻात्वैकभात्भानॊ ववश्व एक आत्भा से ही Know this and be
एवभेव रमॊ व्रज॥५- २॥ उत्ऩन्न होता है । मह जानकय one with Self.॥2॥

ब्रह्भ से मोग (एकरूऩता) को


प्राप्त कयो॥२॥

प्रत्मऺभप्मवस्तुत्वाद् मद्मवऩ मह ववश्व आॉखों से In spite of being visible


from eyes, this world is
ववश्वॊ नास्त्मभरे त्वतम। हदखाई दे ता है ऩयन्तु unreal. You are
यज्जुसऩभ इव व्मततॊ अवास्तववक है । ववशुद्ध तुभ immaculate and this
world does not exist in
एवभेव रमॊ व्रज॥५- ३॥ भें इस ववश्व का अक्स्तत्व you like an imagined
उसी प्रकाय नहीॊ है क्जस प्रकाय snake in a rope. Know
this and be one with
कक्ल्ऩत सऩभ का यस्सी भें । मह
Self.॥3॥
जानकय ब्रह्भ से मोग
(एकरूऩता) को प्राप्त कयो
॥३॥
सभद्ु खसुख् ऩूणभ स्वमॊ को सुख औय द्ु ख भें Know yourself equal
in pleasure and pain,
आशानैयाश्ममो् सभ्। सभान, ऩूण,भ आशा औय complete, equal in hope
सभजीववतभत्ृ मु् सन ्- तनयाशा भें सभान, जीवन औय and disappointment,
equal in life and death
नेवभेव रमॊ व्रज॥५- ४॥ भत्ृ मु भें सभान, सत्म जानकय and eternaland be
ब्रह्भ से मोग (एकरूऩता) को one with Self.॥4॥
प्राप्त कयो ॥४॥

Sixth chapter / षष्ठ अध्माम

अष्टावक्र
अष्टावक्र गीता (हहॊदी Ashtavakra Gita
गीता(भर

बावानुवाद) (English)
सॊस्कृत)

अष्टावक्र उवाच - अष्टावक्र कहते हैं - आकाश के Ashtavakra says - I am


infinite like space, and
आकाशवदनन्तोऽहॊ सभान भैं अनॊत हूॉ औय मह this world is
घटवत ् प्राकृतॊ जगत ्। जगत घड़े के सभान भहत्त्वहीन unimportant like a jar.
This is Knowledge. This
इतत ऻानॊ तथैतस्म है , मह ऻान है । इसका न त्माग is neither to be
न त्मागो न ग्रहो कयना है औय न ग्रहण, फस renounced nor to be
accepted but to be one
रम्॥६- १॥ इसके साथ एकरूऩ होना है ॥१॥
with it.॥1॥

भहोदचधरयवाहॊ स भैं भहासागय के सभान हूॉ औय I am like a vast ocean


and the visible world is
प्रऩॊचो वीचचसऽक्न्नब्। मह दृश्मभान सॊसाय रहयों के like its waves.This is
इतत ऻानॊ तथैतस्म सभान। मह ऻान है , इसका न Knowledge. This is
neither to be renounced
न त्मागो न ग्रहो त्माग कयना है औय न ग्रहण फस nor to be accepted but
रम्॥६- २॥ इसके साथ एकरूऩ होना है ॥२॥ to be one with it.॥2॥
अहॊ स शुक्ततसङ्काशो मह ववश्व भुझभें वैसे ही कक्ल्ऩत This world is imagined in
me like silver in a sea-
रूप्मवद् ववश्वकल्ऩना। है जैसे कक सीऩ भें चाॉदी। मह shell. This is Knowledge.
इतत ऻानॊ तथैतस्म ऻान है , इसका न त्माग कयना This is neither to be
renounced nor to be
न त्मागो न ग्रहो है औय न ग्रहण फस इसके साथ accepted but to be one
रम्॥६- ३॥ एकरूऩ होना है ॥३॥ with it.॥3॥

अहॊ वा सवभबूतेषु भैं सभस्त प्राणणमों भें हूॉ जैसे I exist in everyone like
everyone is in me. This
सवभबूतान्मथो भतम। सबी प्राणी भुझभें हैं। मह ऻान is Knowledge. This is
इतत ऻानॊ तथैतस्म है , इसका न त्माग कयना है औय neither to be renounced
nor to be accepted but
न त्मागो न ग्रहो न ग्रहण फस इसके साथ एकरूऩ
to be one with it.॥4॥
रम्॥६- ४॥ होना है ॥४॥

Seventh Chapter / सप्तभ अध्माम

अष्टावक्र
अष्टावक्र गीता (हहॊदी Ashtavakra Gita
गीता(भर

बावानव
ु ाद) (English)
सॊस्कृत)

जनक उवाच - याजा जनक कहते हैं - भझ


ु King Janaka says: In
infinite ocean of myself,
भय्मनॊतभहाॊबोधौ अनॊत भहासागय भें ववश्व रूऩी world wanders here and
ववश्वऩोत इतस्तत्। जहाज अऩनी अन्त् वामु से there like a ship driven
by its own wind. But it
भ्रभतत स्वाॊतवातेन न इधय - उधय घूभता है ऩय does not create
भभास्त्मसहहष्णुता॥७- १॥ इससे भुझभें ववऺोब नहीॊ होता turbulence in me.॥1॥
है ॥१॥
भय्मनॊतभहाॊबोधौ भुझ अनॊत भहासागय भें ववश्व In infinite ocean of
myself,world rises and
जगद्वीचच् स्वबावत्। रूऩी रहयें भामा से स्वमॊ vanishes naturally like a
उदे तु वास्तभामातु ही उहदत औय अस्त होती यहती wave by 'Maya'. But it
does not cause any
न भे वद्
ृ चधनभ च ऺतत्॥७- हैं, इससे भुझभें वद्
ृ चध मा ऺतत growth or damage to
२॥ नहीॊ होती है ॥२॥ me.॥2॥

भय्मनॊतभहाॊबोधौ भझ
ु अनॊत भहासागय भें ववश्व In infinite ocean of
myself,world exists like a
ववश्वॊ नाभ ववकल्ऩना। एक अवास्तववकता (स्वप्न) है , dream. But I exist as
अततशाॊतो तनयाकाय भैं अतत शाॊत औय तनयाकाय supremely peaceful and
एतदे वाहभाक्स्थत्॥७- ३॥ रूऩ से क्स्थत हूॉ॥३॥ formless.॥3॥

नात्भा बावेषु नो बावस ्- उस अनॊत औय तनयॊ जन In that infinite and


stainless state, there
तत्रानन्ते तनयॊ जने। अवस्था भें न 'भैं' का बाव है remains no feeling of 'I'
इत्मसततोऽस्ऩह
ृ ् शान्त औय न कोई अन्म बाव ही, or any other feeling. Like
this I exist, unattached,
एतदे वाहभाक्स्थत्॥७- ४॥ इस प्रकाय असतत, बफना ककसी devoid of desires and at
इच्छा के औय शाॊत रूऩ से भैं peace.॥4॥
क्स्थत हूॉ॥४॥

अहो चचन्भात्रभेवाहॊ आश्चमभ भैं शुद्ध चैतन्म हूॉ Surprise, I am pure


consciousness and the
इन्द्रजारोऩभॊ जगत ्। औय मह जगत असत्म जाद ू के world is like a magic.
अतो भभ कथॊ कुत्र सभान है , इस प्रकाय भुझभें How can there be
thoughts of useful and
हे मोऩादे मकल्ऩना॥७- ५॥ कहाॉ औय कैसे अच्छे (उऩमोगी)
useless in me?॥5॥
औय फुये (अनुऩमोगी) की
कल्ऩना॥५॥

Eighth Chapter / अष्टभ अध्माम


अष्टावक्र
अष्टावक्र गीता (हहॊदी Ashtavakra Gita
गीता(भर

बावानुवाद) (English)
सॊस्कृत)

अष्टावक्र उवाच - श्री अष्टावक्र कहते हैं - तफ Sri Ashtavakra says:


There is bondage, as long
तदा फन्धो मदा चचत्तॊ फॊधन है जफ भन इच्छा कयता as mind desires
ककक्न्चद् वाॊछतत शोचतत। है , शोक कयता है , कुछ त्माग something, grieves about
something, sacrifices
ककॊचचन ् भॊच
ु तत गण्ृ हातत कयता है , कुछ ग्रहण कयता है , something, accepts
ककॊचचद् रृष्मतत कबी प्रसन्न होता है मा कबी something, is pleased
about something or is
कुप्मतत॥८-१॥ क्रोचधत होता है ॥१॥
angry about
something.॥1॥

तदा भुक्ततमभदा चचत्तॊ तफ भुक्तत है जफ भन इच्छा Liberation is when mind


does not desire, does
न वाॊछतत न शोचतत। नहीॊ कयता है , शोक नहीॊ कयता not grieve, does not
न भॊच
ु तत न गण्ृ हातत है , त्माग नहीॊ कयता है , ग्रहण sacrifice, does not
accept, is not pleased or
न रृष्मतत न कुप्मतत॥८- नहीॊ कयता है , प्रसन्न नहीॊ होता
get angry.॥2॥
२॥ है मा क्रोचधत नहीॊ होता है ॥२॥

तदा फन्धो मदा चचत्तॊ तफ फॊधन है जफ भन ककसी बी There is bondage when


mind is attracted towards
सततॊ काश्ववऩ दृक्ष्टषु। दृश्मभान वस्तु भें आसतत है , any of the visible things
तदा भोऺो मदा चचत्तभ- तफ भुक्तत है जफ भन ककसी and liberation is when
mind is not attracted to
सततॊ सवभदृक्ष्टषु॥८- ३॥ बी दृश्मभान वस्तु भें
anything visible.॥3॥
आसक्ततयहहत है ॥३॥
मदा नाहॊ तदा भोऺो जफ तक 'भैं' मा 'भेया' का बाव There is bondage, as long
as there is feeling of 'I'
मदाहॊ फन्धनॊ तदा। है तफ तक फॊधन है , जफ 'भैं' and 'my' and liberation is
भत्वेतत हे रमा ककॊचचन ्- मा 'भेया' का बाव नहीॊ है तफ when there is no feeling
of 'I' and 'my'. Knowing
भा गह
ृ ाण ववभुॊच भा॥८- भुक्तत है । मह जानकय न कुछ this stay playful neither
४॥ त्माग कयो औय न कुछ ग्रहण accepting nor sacrificing
ही कयो ॥४॥ anything.॥4॥

Ninth Chapter / नवभ अध्माम

अष्टावक्र
अष्टावक्र गीता Ashtavakra Gita
गीता(भर

(हहॊदी बावानुवाद) (English)
सॊस्कृत)

अष्टावक्र उवाच - श्री अष्टावक्र कहते हैं - मह Sri Ashtavakra says: This is
to be done and this should
कृताकृते च द्वन्द्वातन कामभ कयने मोग्म है अथवा न not be done, such
कदा शान्तातन कस्म वा। कयने मोग्म औय ऐसे ही अन्म confusions have never
ended for anybody.
एवॊ ऻात्वेह तनवेदाद् बव द्वॊद्व (हाॉ मा न रूऩी सॊशम) Knowing this, be
त्मागऩयोऽव्रती॥९- १॥ कफ औय ककसके शाॊत हुए हैं। indifferent (neutral), be
ascetic and don't follow
ऐसा ववचाय कयके ववयतत
such (ritualistic) rules.॥1॥
(उदासीन) हो जाओ, त्मागवान
फनो, ऐसे ककसी तनमभ का
ऩारन न कयने वारे फनो॥१॥

कस्मावऩ तात धन्मस्म हे ऩुत्र! इस सॊसाय की (व्मथभ) O Son! Blessed and rare
are those who observe the
रोकचेष्टावरोकनात ्। चेष्टा को दे ख कय ककसी धन्म useless efforts of others
जीववतेच्छा फुबुऺा च ऩुरुष की ही जीने की इच्छा, and thereby extinguish
their lust for life, luxuries
फुबुत्सोऩशभॊ गता्॥९- बोगों के उऩबोग की इच्छा
and good food.॥2॥
२॥ औय बोजन की इच्छा शाॊत
हो ऩाती है ॥२॥
अतनत्मॊ सवभभेवेदॊ मह सफ अतनत्म है , तीन All this is impermanent
and is surrounded by the
ताऩत्रमदवू षतॊ। प्रकाय के कष्टों (दै हहक, दै ववक three types of pain (body,
असायॊ तनक्न्दतॊ हे ममभ- औय बौततक) से तघया है , luck and money). It is
without any essence,
तत तनक्श्चत्म सायहीन है , तनॊदनीम है , त्माग contemptible and is to be
शाम्मतत॥९- ३॥ कयने मोग्म है , ऐसा तनक्श्चत abandoned. Only after
deciding it firmly, peace is
कयके ही शाॊतत प्राप्त होती
attained.॥3॥
है ॥३॥

कोऽसौ कारो वम् ककॊ ऐसा कौन सा सभम अथवा When was that age or time
when there are no
वा उम्र है जफ भनुष्म के सॊशम confusions for a person. So
मत्र द्वन्द्वातन नो नण
ृ ाॊ। नहीॊ यहे हैं, अत् सॊशमों की become indifferent to your
doubts and attain
तान्मुऩेक्ष्म मथाप्राप्तवती उऩेऺा कयके अनामास मसद्चध happiness without much
मसद्चधभवाप्नुमात ्॥९- ४॥ को प्राप्त कयो॥४॥ effort.॥4॥

नाना भतॊ भहषीणाॊ भहवषभमों, साधओ


ु ॊ औय मोचगमों Having seen the difference
of opinions among the
साधन
ू ाॊ मोचगनाॊ तथा। के ववमबन्न भतों को दे खकय great sages, saints and
दृष््वा तनवेदभाऩन्न् कौन भनुष्म वैयाग्मवान होकय yogis, who will not get
detached and attain
को न शाम्मतत शाॊत नहीॊ हो जामेगा॥५॥
peace.॥5॥
भानव्॥९- ५॥

कृत्वा भतू तभऩरयऻानॊ चैतन्म का साऺात ् ऻान प्राप्त Knowing consciousness


directly, a guru, who is
चैतन्मस्म न ककॊ गरु ु ्। कयके कौन वैयाग्म औय सभता unattached and neutral,
तनवेदसभतामत
ु त्मा से मत
ु त कौन गरु
ु जन्भ औय willdefinitely lead others
out of the cycle of birth
मस्तायमतत सॊसत
ृ े्॥९- भत्ृ मु के फॊधन से ताय नहीॊ
and death.॥6॥
६॥ दे गा॥६॥
ऩश्म बूतववकायाॊस्त्वॊ तत्त्वों के ववकाय को वास्तव भें See the change in nature
of elements as the change
बूतभात्रान ् मथाथभत्। उनकी भात्रा के ऩरयवतभन के in quantity of finer
तत्ऺणाद् फन्धतनभत
ुभ त् रूऩ भें दे खो, ऐसा दे खते ही (subtle) entities. After
seeing this, you would be
स्वरूऩस्थो बववष्ममस॥९- उसी ऺण तुभ फॊधन से भुतत free from
७॥ होकय अऩने स्वरुऩ भें क्स्थत bondageimmediately and
would be established in
हो जाओगे॥७॥
your very nature.॥7॥

वासना एव सॊसाय इतत इच्छा ही सॊसाय है , ऐसा Desires (attachment)


create the world. Knowing
सवाभ ववभुॊच ता्। जानकय सफका त्माग कय दो, it, shun all attachments.
तत्त्मागो वासनात्मागा- उस त्माग से इच्छाओॊ का This detachment will lead
to rejection of desires and
क्त्स्थततयद्म मथा त्माग हो जामेगा औय तम्
ु हायी you as consciousness will
तथा॥९- ८॥ मथारूऩ अऩने स्वरुऩ भें remain as you are.॥8॥
क्स्थतत हो जाएगी॥८॥

Tenth Chapter / दशभ अध्माम

अष्टावक्र गीता(भूर अष्टावक्र गीता (हहॊदी Ashtavakra Gita


सॊस्कृत) बावानुवाद) (English)

अष्टावक्र उवाच - श्री अष्टावक्र कहते हैं - Sri Ashtavakra says -


Give up the enemies,
ववहाम वैरयणॊ काभभ- काभना औय अनथों के सभूह desires and money, the
थं चानथभसॊकुरॊ। धन रूऩी शत्रओ
ु ॊ को त्मागदो, primary cause of many
misfortunes. Rejecting
धभभभप्मेतमोहे तुॊ इन दोनों के त्माग रूऩी धभभ से these two will lead to
सवभत्रानादयॊ कुरु॥१०- १॥ मुतत होकय सवभत्र ववयतत righteousness and thus
be indifferent to
(उदासीन) हो जाओ॥१॥
everything.॥1॥
स्वप्नेन्द्रजारवत ् ऩश्म मभत्र, जभीन, कोषागाय, ऩत्नी Look at friends, land,
money, wife and
हदनातन त्रीणण ऩॊच वा। औय अन्म सॊऩवत्तमों को स्वप्न other properties as a
मभत्रऺेत्रधनागाय- की भामा के सभान तीन मा dream in Maya to be
destroyed in three to
दायदामाहदसॊऩद्॥१०- २॥ ऩाॉच हदनों भें नष्ट होने वारा
five days.॥2॥
दे खो॥२॥

मत्र मत्र बवेत्तष्ृ णा जहाॉ जहाॉ आसक्तत हो उसको Wherever there is


attachment, there is
सॊसायॊ ववद्चध तत्र वै। ही सॊसाय जानो, इस प्रकाय world! Applying this
प्रौढवैयाग्मभाचश्रत्म ऩरयऩतव वैयाग्म के आश्रम भें mature non-attachment
be free of desires and
वीततष्ृ ण् सुखी बव॥१०- तष्ृ णायहहत होकय सुखी हो
attain happiness.॥3॥
३॥ जाओ॥३॥

तष्ृ णाभात्रात्भको फन्धस ्- तष्ृ णा (काभना) भात्र ही स्वमॊ Desires alone are the
bondage for Self.
तन्नाशो भोऺ उच्मते। का फॊधन है , उसके नाश Extinguishing desires is
बवासॊसक्ततभात्रेण को भोऺ कहा जाता है ।सॊसाय called liberation. Non-
attachment to worldly
प्राक्प्ततुक्ष्टभह
ुभ ु भह
ुभ ु ्॥१०- ४॥ भें अनासक्तत से ही तनयॊ तय things can only lead to
आनॊद की प्राक्प्त होती है ॥४॥ continuous bliss.॥4॥

त्वभेकश्चेतन् शद्
ु धो तभ
ु एक(अद्ववतीम), चेतन You are one (without a
second), conscious and
जडॊ ववश्वभसत्तथा। औय शद्
ु ध हो तथा मह ववश्व pure and this world is
अववद्मावऩ न ककॊचचत्सा अचेतन औय असत्म है । तभ
ु भें non-conscious and
illusory. You don't have
का फब
ु त्ु सा तथावऩ ते॥१०- अऻान का रेश भात्र बी नहीॊ a trace of ignorance
५॥ है औय जानने की इच्छा बी and desire to know.॥5॥
नहीॊ है ॥५॥

याज्मॊ सत
ु ा् करत्राणण ऩवू भ जन्भों भें फहुत फाय तम्
ु हाये In past lives, many
times your kingdoms,
शयीयाणण सख
ु ातन च। याज्म, ऩत्र
ु , स्त्री, शयीय औय children, wives, bodies
सॊसततस्मावऩ नष्टातन सख
ु ों का, तम्
ु हायी आसक्तत and comforts have
destroyed despite of
तव जन्भतन जन्भतन॥१०- होने ऩय बी नाश हो चक
ु ा your attachment to
६॥ है ॥६॥ them.॥6॥
अरभथेन काभेन ऩमाभप्त धन, इच्छाओॊ औय शुब Any amount of wealth,
desires and good deeds
सुकृतेनावऩ कभभणा। कभों द्वाया बी इस सॊसाय रूऩी will not result in peace
एभ्म् सॊसायकान्ताये भामा से भन को शाॊतत नहीॊ from this world of
न ववश्रान्तभबून ् भन्॥१०- मभरी॥७॥ illusion.॥7॥

७॥

कृतॊ न कतत जन्भातन ककतने जन्भों भें शयीय, भन In how many lives have
you not taken pain in
कामेन भनसा चगया। औय वाणी से द्ु ख के कायण performing various
द्ु खभामासदॊ कभभ कभों को तुभने नहीॊ ककमा? activities with body,
mind and speech. Now
तदद्माप्मुऩयम्मताभ ्॥१०- अफ उनसे उऩयत (ववयतत) हो be non-attached to
८॥ जाओ॥८॥ them.॥8॥

Eleventh Chapter / एकादश अध्माम

अष्टावक्र
अष्टावक्र गीता (हहॊदी Ashtavakra Gita
गीता(भर

बावानव
ु ाद) (English)
सॊस्कृत)

अष्टावक्र उवाच - श्री अष्टावक्र कहते हैं - Sri Ashtavakra says -


Change of states like
बावाबावववकायश्च बाव(सक्ृ ष्ट, क्स्थतत) औय presence (visibility,
स्वबावाहदतत तनश्चमी। अबाव(प्ररम, भत्ृ म)ु रूऩी ववकाय birth) and absence
(invisibility, death)
तनववभकायो गततरेश् स्वाबाववक हैं, ऐसा तनक्श्चत रूऩ occur naturally. One
सुखेनैवोऩशाम्मतत॥११- १॥ से जानने वारा ववकाययहहत, who knows it with
definiteness becomes
दख
ु यहहत होकय सुख ऩूवभक शाॊतत free from defects, free
को प्राप्त हो जाता है ॥१॥ from pain and attains
peace easily.॥1॥
ईश्वय् सवभतनभाभता ईश्वय सफका सष्ृ टा है कोई God is the creator of all
and no one else. One
नेहान्म इतत तनश्चमी। अन्म नहीॊ ऐसा तनक्श्चत रूऩ से who knows it with
अन्तगभमरतसवाभश् शान्त् जानने वारे की सबी आन्तरयक definiteness becomes
free from all internal
तवावऩ न सज्जते॥११- २॥ इच्छाओॊ का नाश हो जाता desires. That serene
है । वह शाॊत ऩुरुष सवभत्र man becomes
indifferent
आसक्तत यहहत हो जाता है ॥२॥
everywhere.॥2॥

आऩद् सॊऩद् कारे सॊऩवत्त (सख


ु ) औय ववऩवत्त (द्ु ख) Good and bad times are
due to previous actions
दै वादे वेतत तनश्चमी। का सभम प्रायब्धवश (ऩव
ू भ कृत (which decide fate).
तप्ृ त् स्वस्थेक्न्द्रमो तनत्मॊ कभों के अनुसाय) है , ऐसा One who knows it with
definiteness becomes
न वान्छतत न तनक्श्चत रूऩ से जानने वारा content and gains
शोचतत॥११- ३॥ सॊतोष औय regular control on
senses. He neither
तनयॊ तय सॊममभत इक्न्द्रमों से
desires nor gets
मुतत हो जाता है । वह न इच्छा disappointed.॥3॥
कयता है औय न शोक॥३॥

सुखद्ु खे जन्भभत्ृ मू सुख-द्ु ख औय जन्भ-भत्ृ मु Pleasure-pain and birth-


death are due to
दै वादे वेतत तनश्चमी। प्रायब्धवश (ऩूवभ कृत कभों के previous actions (which
साध्मादशी तनयामास् अनुसाय) हैं, ऐसा तनक्श्चत रूऩ decide fate). One who
knows it with
कुवभन्नवऩ न मरप्मते॥११- से जानने वारा, पर की इच्छा definiteness acts
४॥ न यखने वारा, सयरता से कभभ without desire. He acts
playfully and never gets
कयते हुए बी उनसे मरप्त नहीॊ
attached to them.॥4॥
होता है ॥४॥
चचन्तमा जामते द्ु खॊ चचॊता से ही द्ु ख उत्ऩन्न होते Worry gives rise to
suffering and nothing
नान्मथेहेतत तनश्चमी। हैं ककसी अन्म कायण से नहीॊ, else. One who knows it
तमा हीन् सुखी शान्त् ऐसा तनक्श्चत रूऩ से जानने with definiteness
becomes free from
सवभत्र गमरतस्ऩह
ृ ्॥११- ५॥ वारा, चचॊता से यहहत होकय worries and becomes
सुखी, शाॊत औय सबी इच्छाओॊ content, peaceful and
without any desire
से भुतत हो जाता है ॥५॥
anywhere.॥5॥

नाहॊ दे हो न भे दे हो न भैं मह शयीय हूॉ औय न मह Neither I am this body,


nor this body is mine. I
फोधोऽहमभतत तनश्चमी। शयीय भेया है , भैं ऻानस्वरुऩ am pure knowledge.
कैवल्मॊ इव सॊप्राप्तो हूॉ, ऐसा तनक्श्चत रूऩ से जानने One who knows it with
definiteness gets
न स्भयत्मकृतॊ कृतभ ्॥११- वारा जीवन भुक्तत को प्राप्त liberated in this life. He
६॥ कयता है । वह ककमे हुए neither remembers (acts
done in) past nor
(बूतकार) औय न ककमे हुए
(worries of) future.॥6॥
(बववष्म के) कभों का स्भयण
नहीॊ कयता है ॥६॥

आब्रह्भस्तॊफऩमभन्तॊ तण
ृ से रेकय ब्रह्भा तक सफ From grass till Brahma, I
alone exist and nothing
अहभेवेतत तनश्चमी। कुछ भैं ही हूॉ,ऐसा तनक्श्चत रूऩ else. One who knows it
तनववभकल्ऩ् शचु च् शान्त् से जानने वारा ववकल्ऩ with definiteness
becomes free from
प्राप्ताप्राप्तववतनवत
भ ृ ्॥११- (काभना) यहहत, ऩववत्र, शाॊत desires, becomes pure,
७॥ औय प्राप्त-अप्राप्त से आसक्तत peaceful and
unattached to what he
यहहत हो जाता है ॥७॥
has or what he is yet to
get.॥7॥
नाश्चमभमभदॊ ववश्वॊ अनेक आश्चमों से मुतत मह This world of many
wonders, actually does
न ककॊचचहदतत तनश्चमी। ववश्व अक्स्तत्वहीन है , ऐसा not exist. One who
तनवाभसन् स्पूततभभात्रो तनक्श्चत रूऩ से जानने वारा, knows it with
definiteness becomes
न ककॊचचहदव शाम्मतत॥११- इच्छा यहहत औय शुद्ध free from desires and
८॥ अक्स्तत्व हो जाता है । वह अऩाय attains the form of pure
existence. He finds
शाॊतत को प्राप्त कयता है॥८॥
unlimited peace.॥8॥

Twelfth Chapter / द्वादश अध्माम

अष्टावक्र गीता(भूर अष्टावक्र गीता Ashtavakra Gita


सॊस्कृत) (हहॊदी बावानव
ु ाद) (English)

जनक उवाच - श्री जनक कहते हैं - ऩहरे भैं Sri Janak says - First I
developed indifference
कामकृत्मासह् ऩव
ू ं शायीरयक कभों से तनयऩेऺ towards actions
ततो वाक्ग्वस्तयासह्। (उदासीन) हुआ, कपय वाणी से performed by body then
I became indifferent to
अथ चचन्तासहस्तस्भाद् तनयऩेऺ (उदासीन) हुआ। अफ actions performed by
एवभेवाहभाक्स्थत्॥१२- १॥ चचॊता से तनयऩेऺ (उदासीन) speech. Now, I have
become indifferent to all
होकय अऩने स्वरुऩ भें क्स्थत
sorts of anxieties and
हूॉ॥१॥ stay as I am.॥1॥

प्रीत्मबावेन शब्दादे य- शब्द आहद ववषमों भें Unattached to sound and


other senses and
दृश्मत्वेन चात्भन्। आसक्तत यहहत होकय औय knowing that Self is not
ववऺेऩैकाग्ररृदम आत्भा के दृक्ष्ट का ववषम न an object of sight, I
remain free of
एवभेवाहभाक्स्थत्॥१२- २॥ होने के कायण भैं तनश्चर disturbances and
औय एकाग्र ह्रदम से अऩने focused as I am.॥2॥
स्वरुऩ भें क्स्थत हूॉ॥२॥
सभाध्मासाहदववक्षऺप्तौ अध्मास (असत्म ऻान) आहद Seeing the transitions
between abnormal states
व्मवहाय् सभाधमे। असाभान्म क्स्थततमों औय of incorrect perception
एवॊ ववरोतम तनमभॊ सभाचध को एक तनमभ के and the meditative
states as a (natural) rule,
एवभेवाहभाक्स्थत्॥१२- ३॥ सभान दे खते हुए भैं अऩने
I stay as I am.॥3॥
स्वरुऩ भें क्स्थत हूॉ॥३॥

हे मोऩादे मववयहाद् हे ब्रह्भ को जानने वारे! O seer of God, away


from the feelings to
एवॊ हषभववषादमो्। त्माज्म (छोड़ने मोग्म) औय store or to leave and
अबावादद्म हे ब्रह्भन्न ् सॊग्रहणीम से दयू होकय औय without any pleasure or
एवभेवाहभाक्स्थत्॥१२- ४॥ सुख-द्ु ख के अबाव भें भैं pain, I stay as I am.॥4॥

अऩने स्वरुऩ भें क्स्थत हूॉ॥४॥

आश्रभानाश्रभॊ ध्मानॊ आश्रभ - अनाश्रभ, ध्मान औय Looking at the various


stages of life and their
चचत्तस्वीकृतवजभनॊ। भन द्वाया स्वीकृत औय absence, rules accepted
ववकल्ऩॊ भभ वीक्ष्मै- तनवषद्ध तनमभों को दे ख कय and prohibited by mind
and such options, I stay
तैयेवभेवाहभाक्स्थत्॥१२- ५॥ भैं अऩने स्वरुऩ भें क्स्थत
as I am.॥5॥
हूॉ॥५॥

कभाभनष्ु ठानभऻानाद् कभों के अनष्ु ठान रूऩी Being aware of the


ignorance in performing
मथैवोऩयभस्तथा। अऻान से तनवत्त
ृ होकय औय rituals and knowing the
फध्
ु वा सम्मचगदॊ तत्त्वॊ तत्त्व को सम्मक रूऩ से जान Truth properly, I stay as
एवभेवाहभाक्स्थत्॥१२- ६॥ कय भैं अऩने स्वरुऩ भें I am.॥6॥

क्स्थत हूॉ॥६॥

अचचॊत्मॊ चचॊत्मभानोऽवऩ अचचन्त्म के सम्फन्ध भें While thinking about the


Unthinkable, we ponder
चचन्तारूऩॊ बजत्मसौ। ववचाय कयते हुए बी ववचाय over our thoughts only.
त्मतत्वा तद्बावनॊ तस्भाद् ऩय ही चचॊतन ककमा जाता है । So abandoning that
thought, I stay as I
एवभेवाहभाक्स्थत्॥१२- ७॥ अत् उस ववचाय का बी
am.॥7॥
ऩरयत्माग कयके भैं अऩने
स्वरुऩ भें क्स्थत हूॉ॥७॥

एवभेव कृतॊ मेन स जो इस प्रकाय से आचयण He who follows thus gets


liberated. One whose
कृताथो बवेदसौ। कयता है वह कृताथभ (भुतत) nature is like this gets
एवभेव स्वबावो म् हो जाता है ; क्जसका इस liberated.॥8॥
स कृताथो बवेदसौ॥१२- ८॥ प्रकाय का स्वबाव है वह
कृताथभ (भुतत) हो जाता
है ॥८॥

Thirteenth Chapter / त्रमोदश अध्माम

अष्टावक्र
अष्टावक्र गीता (हहॊदी Ashtavakra Gita
गीता(भर

बावानुवाद) (English)
सॊस्कृत)

जनक उवाच- श्री जनक कहते हैं - Sri Janak says - The
inherent quality of having
अककॊचनबवॊ स्वास्थ्मॊ अककॊचन(कुछ अऩना न) होने की nothing is hard to attain,
कौऩीनत्वेऽवऩ दर
ु ब
भ ॊ। सहजता केवर कौऩीन ऩहनने ऩय even with just a loin-
cloth. Hence I exist in
त्मागादाने बी भुक्श्कर से प्राप्त होती है , pleasure at all times
ववहामास्भाद- अत् त्माग औय सॊग्रह की abandoning both the
feelings of renunciation
हभासे मथासुखभ ्॥१३- प्रववृ त्तमों को छोड़कयसबी क्स्थततमों
and acquisition.॥1॥
१॥ भें , भैं सुखऩूवक
भ ववद्मभानहूॉ॥१॥
कुत्रावऩ खेद् कामस्म शायीरयक द्ु ख बी Actually, there exist no
pain due to body, no pain
क्जह्वा कुत्रावऩ खेद्मते। कहाॉ(अथाभत ् नहीॊ) हैं, वाणी के due to speech, no pain
भन् कुत्रावऩ द्ु ख बी कहाॉ हैं , वहाॉ भन बी due to mind. Abandoning
all the efforts, I exist
तत्त्मतत्वा कहाॉ है , सबी प्रमत्नों को त्माग pleasantly in all
ऩुरुषाथे क्स्थत् कय सबी क्स्थततमों भें , भैं situations.॥2॥
सुखभ ्॥१३- २॥ सुखऩूवक
भ ववद्मभान हूॉ॥२॥

कृतॊ ककभवऩ नैव ककमे हुए ककसी बी कामभ का No action is ever


committed, in reality.
स्माद् वस्तुत् कोई अक्स्तत्व नहीॊ है , Understanding thus I exist
इतत सॊचचन्त्म तत्त्वत्। ऐसा तत्त्वऩव
ू क
भ ववचाय कयके जफ pleasantly in all
situations by just doing
मदा मत्कतभ
ुभ ामातत जो बी कत्तभव्म है उसको कयते
what is to be done.॥3॥
तत ् हुए सबी क्स्थततमों भें , भैं
कृत्वासे मथासख
ु भ ्॥१३- सखु ऩव
ू क
भ ववद्मभान हूॉ॥३॥
३॥

कभभनैष्कम्मभतनफभन्ध- शयीय बाव भें क्स्थत मोचगमों के Yogis, attached with their
bodies think in terms of
बावा दे हस्थमोचगन्। मरए कभभ औय अकभभ रूऩी doing or avoiding certain
सॊमोगामोगववयहादह- फॊधनकायी बाव होते हैं, ऩय सॊमोग actions. This causes
bondage. But I exist
भासे मथासुखभ ्॥१३- औय ववमोग की प्रववृ त्तमों को pleasantly in all
४॥ छोड़कयसबी क्स्थततमों भें , भैं situations abandoning the
feelings of attachment
सख
ु ऩव
ू क
भ ववद्मभानहूॉ॥४॥
and detachment.॥4॥

अथाभनथौ न भे ववश्राभ, गतत, शमन, फैठने, चरने I, actually, concur no


benefit or loss while
क्स्थत्मा औय स्वप्न भें वस्तुत् भेये राब taking rest, moving,
गत्मा न शमनेन वा। औय हातन नहीॊ हैं, अत् सबी sleeping, sitting, walking
or dreaming. Hence I exist
ततष्ठन ् गच्छन ् स्वऩन ् क्स्थततमों भें , भैं pleasantly in all
तस्भादहभासे सुखऩूवक
भ ववद्मभान हूॉ॥५॥ situations.॥5॥
मथासुखभ ्॥१३- ५॥
स्वऩतो नाक्स्त भे सोने भें भेयी हातन नहीॊ है औय I lose nothing by sleeping
and gain nothing by action
हातन् मसद्चधमभत्नवतो उद्मोग अथवा अनुद्मोग भें भेया or inaction.Hence I exist
न वा। राब नहीॊ है अत् हषभ औय शोक pleasantly in all
situations abandoning the
नाशोल्रासौ ववहामास ्- की प्रववृ त्तमों को छोड़कय सबी feelings of joy and
भदहभासे क्स्थततमों भें , भैं sorrow.॥6॥
मथासुखभ ्॥१३- ६॥ सुखऩूवक
भ ववद्मभान हूॉ॥६॥

सुखाहदरूऩा तनमभॊ सुख, द्ु ख आहद क्स्थततमों के I understand by


experience thatpleasure
बावेष्वारोतम बूरयश्। क्रभ से आने के तनमभ ऩय फाय and pain come and go
शब
ु ाशब
ु े फाय ववचाय कयके, शब
ु (अच्छे ) again and again. Hence I
exist pleasantly in all
ववहामास्भादह- औय अशब
ु (फयु े ) की प्रववृ त्तमों को situationsabandoning the
भासे मथासख
ु भ ्॥१३- छोड़कय सबी क्स्थततमों भें , भैं feelings of
auspicious(good) and
७॥ सख
ु ऩव
ू क
भ ववद्मभान हूॉ॥७॥
inauspicious(bad).॥7॥

Fourteenth Chapter / चतुदभश अध्माम

अष्टावक्र अष्टावक्र गीता Ashtavakra Gita


गीता(भर
ू सॊस्कृत) (हहॊदी बावानव
ु ाद) (English)

जनक उवाच - श्रीजनक कहते हैं - जो Sri Janaka says - He, who
is thoughtless by
प्रकृत्मा शन्
ू मचचत्तो म् स्वबाव से ही ववचायशन्
ू म है nature and desires only
प्रभादाद् बावबावन्। औय शामद ही कबी कोई very rarely becomes
mostly free from the past
तनहद्रतो फोचधत इव ऺीण- इच्छा कयता है वह ऩूवभ memories as if a person
सॊस्भयणो हह स्॥१४- १॥ स्भतृ तमों से उसी प्रकाय भुतत from a dream when he
हो जाता है जैसे कक नीॊद से wakes up.॥1॥
जागा हुआ व्मक्तत अऩने
सऩनों से॥१॥
तव धनातन तव मभत्राणण जफ भैं कोई इच्छा नहीॊ कयता When I do not have any
desires left, what will I
तव भे ववषमदस्मव्। तफ भुझे धन, मभत्रों, ववषमों, do of wealth, friends,
तव शास्त्रॊ तव च ववऻानॊ शास्त्रों औय ववऻान से तमा sensual satisfaction,
scriptures or
मदा भे गमरता स्ऩह
ृ ा॥१४- प्रमोजन है ॥२॥
knowledge.॥2॥
२॥

ववऻाते साक्षऺऩुरुषे साऺी ऩुरुष रूऩी ऩयभात्भा मा Realizing the witness


who is called God or
ऩयभात्भतन चेश्वये । ईश्वय को जानकय भैं फॊधन Lord, I became
नैयाश्मे फॊधभोऺे च औय भोऺ से तनयऩेऺ हो गमा indifferent to bondage or
liberation and do not
न चचॊता भुततमे भभ॥१४- हूॉ औय भुझे भोऺ की चचॊता worry for my
३॥ बी नहीॊ है ॥३॥ liberation.॥3॥

अॊतववभकल्ऩशन्
ू मस्म आतॊरयक इच्छाओॊ से यहहत, The state which is
without desires within,
फहह् स्वच्छन्दचारयण्। फाह्म रूऩ भें चचॊतायहहत and is carefree
भ्रान्तस्मेव दशास्तास्तास ्- आचयण वारे, प्राम् भत्त ऩरु
ु ष outwardly just like a mad
man, can only be
तादृशा एव जानते॥१४- ४॥ जैसे ही हदखने वारे प्रकामशत recognized by someone
ऩरु
ु ष अऩने जैसे प्रकामशत in the same enlightened
ऩुरुषों द्वाया ही ऩहचाने जा state.॥4॥
सकते हैं॥४॥

Fifteenth Chapter / ऩॊचदश अध्माम

अष्टावक्र
अष्टावक्र गीता(हहॊदी Ashtavakra Gita
गीता(भर

बावानव
ु ाद) (English)
सॊस्कृत)
अष्टावक्र उवाच - श्रीअष्टावक्र कहते हैं - साक्त्वक Sri Ashtavakra says - A
man with honest
मथातथोऩदे शन
े कृताथभ् फुद्चध से मुतत भनुष्म साधायण approach can attain
सत्त्वफुद्चधभान ्। प्रकाय के उऩदे श से बी enlightenment by
ordinary instructions.
आजीवभवऩ क्जऻासु् कृतकृत्म(भुतत) हो जाता है Without it even the life
ऩयस्तत्र ववभुह्मतत॥१५- ऩयन्तु ऐसा न होने ऩय long curiosity is not going
१॥ आजीवन क्जऻासु होने ऩय बी to help.॥1॥
ऩयब्रह्भ का मथाथभ ऻान नहीॊ
होता है ॥१॥

भोऺो ववषमवैयस्मॊ ववषमों से उदासीन होना भोऺ Indifference in sense


objects is liberation and
फन्धो वैषतमको यस्। है औय ववषमों भें यस रेना interest in them is
एतावदे व ववऻानॊ फॊधन है , ऐसा जानकय तुम्हायी bondage. Knowing thus,
मथेच्छमस तथा कुरु॥१५- जैसी इच्छा हो वैसा ही do as you like.॥2॥

२॥ कयो॥२॥

वाक्ग्भप्राऻाभहोद्मोगॊ वाणी, फुद्चध औय कभों से Eloquent, intelligent and


industrious men become
जनॊ भूकजडारसॊ। भहान कामभ कयने वारे भनुष्मों calm, silent and inactive
कयोतत तत्त्वफोधोऽमभ- को तत्त्व-ऻान शाॊत, स्तब्ध औय after knowing the Truth
so the people who are
तस्त्मततो फुबुऺमब्॥१५- कभभ न कयने वारा फना दे ता after worldly pleasure
३॥ है , अत् सुख की इच्छा यखने discard it.॥3॥
वारे इसका त्माग कय दे ते
हैं॥३॥

न त्वॊ दे हो न ते दे हो न तुभ शयीय हो औय न मह Neither are you this body


nor this body is yours,
बोतता शयीय तुम्हाया है, न ही तभ
ु you are not the doer of
कताभ न वा बवान ्। बोगने वारे अथवा कयने वारे actions or the one who
bears their results. You
चचद्रऩ
ू ोऽमस सदा साऺी हो, तुभ चैतन्म रूऩ हो, शाश्वत are consciousness,
तनयऩेऺ् सुखॊ चय॥१५- ४॥ साऺी हो, इच्छा यहहत हो, अत् eternal witness and
without desires so stay
सुखऩूवक
भ यहो॥४॥
blissfully.॥4॥
यागद्वेषौ भनोधभौ याग(वप्रमता) औय Liking and disliking are
traits of mind and you
न भनस्ते कदाचन। द्वेष(अवप्रमता) भन के धभभ हैं are not mind in any case.
तनववभकल्ऩोऽमस फोधात्भा औय तुभ ककसी बी प्रकाय से You are choice-less. You
are of the form of
तनववभकाय् सुखॊ चय॥१५- भन नहीॊ हो, तुभ काभनायहहत knowledge and flawless
५॥ हो, ऻान स्वरुऩ हो, ववकाय so stay blissfully.॥5॥
यहहत हो, अत् सुखऩूवक

यहो॥५॥

सवभबूतेषु चात्भानॊ सभस्त प्राणणमों को स्वमॊ भें Know that all beings
exist in you and you exist
सवभबूतातन चात्भतन। औय स्वमॊ को सबी प्राणणमों भें in all beings. So leave
ववऻाम तनयहॊ कायो क्स्थत जान कय अहॊ काय औय ego and attachment and
तनभभभस्त्वॊ सुखी बव॥१५- आसक्तत से यहहत होकय तुभ stay blissfully.॥6॥

६॥ सुखी हो जाओ॥६॥

ववश्वॊ स्पुयतत मत्रेदॊ इस ववश्व की उत्ऩवत्त तुभसे Undoubtedly, this world


is created from you just
तयॊ गा इव सागये । उसी प्रकाय होती है जैसे कक like waves from the sea.
तत्त्वभेव न सन्दे ह- सभुद्र से रहयों की, इसभें सॊदेह You are consciousness so
क्श्चन्भूते ववज्वयो नहीॊ है । तुभ चैतन्म स्वरुऩ हो, leave all worries.॥7॥

बव॥१५- ७॥ अत् चचॊता यहहत हो


जाओ॥७॥

श्रद्धस्व तात श्रद्धस्व हे वप्रम! इस अनब


ु व ऩय तनष्ठा O dear, trust your
experience, have faith
नात्र भोऽहॊ कुरुष्व बो्। यखो, इस ऩय श्रद्धा यखो, इस on it. Don't have any
ऻानस्वरूऩो बगवा- अनुबव की सत्मता के सम्फन्ध doubt on this
experience. You are
नात्भा त्वॊ प्रकृते् भें भोहहत भत हो, तुभ ऻान Knowledge. You are
ऩय्॥१५- ८॥ स्वरुऩ हो, तुभ प्रकृतत से ऩये beyond nature and
औय आत्भ स्वरुऩ बगवान Lord.॥8॥
हो॥८॥
गुणै् सॊवेक्ष्टतो दे ह- गुणों से तनमभभत मह शयीय This body, which is
composed of three
क्स्तष्ठत्मामातत मातत च। क्स्थतत, जन्भ औय भयण को attributes of nature
आत्भा न गॊता नागॊता प्राप्त होता है , आत्भा न आती stays, comes and goes.
Soul (you) neither come
ककभेनभनुशोचमस॥१५- ९॥ है औय न ही जाती है , अत् nor go, so why do you
तुभ तमों शोक कयते हो॥९॥ bother about it.॥9॥

दे हक्स्तष्ठतु कल्ऩान्तॊ मह शयीय सक्ृ ष्ट के अॊत तक This body may remain till
the end of Nature or is
गच्छत्वद्मैव वा ऩुन्। यहे अथवा आज ही नाश को destroyed today, you are
तव वद्
ृ चध् तव च वा प्राप्त हो जामे, तुभ तो चैतन्म not going to gain and lose
anything from it as you
हातनस ्- स्वरुऩ हो, इससे तुम्हायी तमा
are consciousness.॥10॥
तव चचन्भात्ररूवऩण्॥१५- हातन मा राब है ॥१०॥
१०॥

त्वय्मनॊतभहाॊबोधौ अनॊत भहासभुद्र रूऩ तुभ भें This world rises and
subsides in you naturally
ववश्ववीचच् स्वबावत्। रहय रूऩ मह ववश्व स्वबाव से as waves in a great
उदे तु वास्तभामातु न ते ही उदम औय अस्त को प्राप्त ocean. You do not gain
वद् or lose from it.॥11॥
ृ चधनभ वा ऺतत्॥१५- होता है , इसभें तुम्हायी तमा
११॥ वद्
ृ चध मा ऺतत है ॥११॥

तात चचन्भात्ररूऩोऽमस न हे वप्रम, तभ


ु केवर चैतन्म रूऩ O dear! you are pure
consciousness only and
ते मबन्नमभदॊ जगत ्। हो औय मह ववश्व तभ
ु से अरग this world is not separate
अत् कस्म कथॊ कुत्र नहीॊ है , अत् ककसी की ककसी from you. So how can
anything be considered
हे मोऩादे मकल्ऩना॥१५- से श्रेष्ठता मा तनम्नता की
superior or inferior.॥12॥
१२॥ कल्ऩना ककस प्रकाय की जा
सकती है ॥१२॥
एकक्स्भन्नव्ममे शान्ते इस अव्मम, शाॊत, चैतन्म, You are alone in this
imperishable, calm,
चचदाकाशेऽभरे त्वतम। तनभभर आकाश भें तुभ अकेरे conscious and stainless
कुतो जन्भ कुतो कभभ ही हो, अत् तुभभें जन्भ, कभभ space so how can birth,
action and ego be
कुतोऽहॊ काय एव च॥१५- औय अहॊ काय की कल्ऩना ककस
imagined in you.॥13॥
१३॥ प्रकाय की जा सकती है ॥१३॥

मत्त्वॊ ऩश्ममस तत्रैकस ्- तुभ एक होते हुए बी अनेक You being one, appear to
be many due to your
त्वभेव प्रततबाससे। रूऩ भें प्रततबफॊबफत होकय हदखाई multiple reflection. Is
ककॊ ऩथ
ृ क् बासते स्वणाभत ् दे ते हो। तमा स्वणभ कॊगन, gold different from
bracelets, armlets and
कटकाॊगदनूऩुयभ ्॥१५- १४॥ फाजफ
ू न्द औय ऩामर से अरग
anklets?॥14॥
हदखाई दे ता है ॥१४॥

अमॊ सोऽहभमॊ नाहॊ मह भैं हूॉ औय मह भैं नहीॊ हूॉ, This is me and that is not
me, give up all such
ववबागमभतत सॊत्मज। इस प्रकाय के बेद को त्माग dualities. Decide that as
सवभभात्भेतत तनक्श्चत्म दो। सफ कुछ आत्भस्वरूऩ तुभ a soul, you are
everything, have no
तन्सङ्कल्ऩ् सुखी ही हो, ऐसा तनश्चम कयके औय other resolutions and
बव॥१५- १५॥ कोई सॊकल्ऩ न कयते हुए सुखी stay blissfully.॥15॥
हो जाओ॥१५॥

तवैवाऻानतो ववश्वॊ अऻानवश तभ


ु ही मह ववश्व हो This world appears to be
real only due to
त्वभेक् ऩयभाथभत्। ऩय ऻान दृक्ष्ट से दे खने ऩय ignorance. You alone
त्वत्तोऽन्मो नाक्स्त सॊसायी केवर एक तुभ ही हो, तुभसे exist in reality. There is
nothing worldly or
नासॊसायी च कश्चन॥१५- अरग कोई दस
ू या सॊसायी मा unworldly apart from you
१६॥ असॊसायी ककसी बी प्रकाय से any how.॥16॥
नहीॊ है ॥१६॥
भ्राक्न्तभात्रमभदॊ ववश्वॊ मह ववश्व केवर भ्रभ(स्वप्न की Decide that, this world is
unreal like an illusion(or
न ककॊचचहदतत तनश्चमी। तयह असत्म) है औय कुछ बी dream) and does not
तनवाभसन् स्पूततभभात्रो नहीॊ, ऐसा तनश्चम कयो। इच्छा exist at all. Without
becoming free from
न ककॊचचहदव शाम्मतत॥१५- औय चेष्टा यहहत हुए बफना कोई desires and actions,
१७॥ बी शाॊतत को प्राप्त नहीॊ होता nobody attains
है ॥१७॥ peace.॥17॥

एक एव बवाॊबोधा- एक ही बवसागय(सत्म) था, है Truth or the ocean of


being alone existed,
वासीदक्स्त बववष्मतत। औय यहे गा।तुभभें न भोऺ है exists and will exist. You
न ते फन्धोऽक्स्त भोऺो वा औय न फॊधन, आप्त-काभ neither have bondage
nor liberation. Be
कृत्मकृत्म् सुखॊ चय॥१५- होकय सुख से ववचयण fulfilled and wander
१८॥ कयो॥१८॥ happily.॥18॥

भा सङ्कल्ऩववकल्ऩाभ्माॊ हे चैतन्मरूऩ! बाॉतत-बाॉतत के You are of the form of


consciousness, do not get
चचत्तॊ ऺोबम चचन्भम। सॊकल्ऩों औय ववकल्ऩों से अऩने anxious with different
उऩशाम्म सुखॊ ततष्ठ चचत्त को अशाॊत भत कयो, शाॊत resolves and
alternatives. Be at peace
स्वात्भन्मानन्दववग्रहे ॥१५- होकय अऩने आनॊद रूऩ भें सुख and remain in your
१९॥ से क्स्थत हो जाओ॥१९॥ blissful form
pleasantly.॥19॥

त्मजैव ध्मानॊ सवभत्र सबी स्थानों से अऩने ध्मान Remove your focus from
anything and everything
भा ककॊचचद् रृहद धायम। को हटा रो औय अऩने रृदम भें and do not think in your
आत्भा त्वॊ भुतत एवामस कोई ववचाय न कयो। तुभ heart. You are soul and
free by your very nature,
ककॊ ववभश्ृ म आत्भरूऩ हो औय भुतत ही हो, what is there to think in
करयष्ममस॥१५- २०॥ इसभें ववचाय कयने की तमा it?॥20॥
आवश्मकता है ॥२०॥

Sixteenth Chapter / षोडश अध्माम


अष्टावक्र
अष्टावक्र गीता(हहॊदी Ashtavakra Gita
गीता(भर

बावानुवाद) (English)
सॊस्कृत)

अष्टावक्र उवाच - श्री अष्टावक्र कहते हैं - हे Sri Ashtavakra says - O


dear! Even after hearing
आचक्ष्व शण
ृ ु वा तात वप्रम, ववद्वानों से सुनकय from many scholars or
नानाशास्त्राण्मनेकश्। अथवा फहुत शास्त्रों के ऩढ़ने reading many scriptures,
you will not be
तथावऩ न तव स्वास्थ्मॊ से तम्
ु हायी आत्भ स्वरुऩ भें established in self as after
सवभववस्भयणाद् ऋते॥१६- वैसी क्स्थतत नहीॊ होगी जैसी forgetting every single
१॥ कक सफ कुछ उचचत यीतत से thing.॥1॥
बर
ू जाने से॥१॥

बोगॊ कभभ सभाचधॊ वा कभभ बोग कयो मा सभाचध भें You can either enjoy
fruits of your action or
कुरु ववऻ तथावऩ ते। यहो ऩय चॉ कू क तुभ ववद्वान हो enjoy meditative state.
चचत्तॊ तनयस्तसवाभशाभ- अत् तुम्हें चचत्त की सबी Since you are
knowledgeable, stopping
त्मथं योचतमष्मतत॥१६- २॥ आशाओॊ को शाॊत कयना all desires of your mind
अत्मॊत आनॊदप्रद होगा॥२॥ will give you more
pleasure.॥2॥

आमासात्सकरो द्ु खी प्रमत्न से ही सबी दख


ु ी हैं It is effort which is cause
of everyone's pain but
नैनॊ जानातत कश्चन। ऩय कोई इसे जानता नहीॊ है । nobody knows it. By
अनेनैवोऩदे शन
े धन्म् इस तनष्ऩाऩ उऩदे श से ही following just this flawless
instruction, fortunate
प्राप्नोतत तनवतभ ृ तभ ्॥१६- ३॥ बाग्मवान व्मक्तत सबी become free from all their
ववृ त्तमों से यहहत हो जाते instincts. ॥3॥
हैं॥३॥
व्माऩाये णखद्मते मस्तु क्जसको ऩरकों का खोरना Happiness is there only
for an extremely lazy
तनभेषोन्भेषमोयवऩ। औय फॊद कयना बी कामभ person who considers
तस्मारस्म धयु ीणस्म रगता है उस ऩयभ आरसी blinking of eyes also a
task. Nobody else is
सुखॊ नन्मस्म के मरए ही सुख है अन्म
happy.॥4॥
कस्मचचत ्॥१६- ४॥ ककसी के मरए ककसी बी
प्रकाय से नहीॊ॥४॥

इदॊ कृतमभदॊ नेतत मह कयना चाहहए औय मह When mind is free from


confusion of doing and not
द्वॊद्वैभत
ुभ तॊ मदा भन्। नहीॊ जफ भन इस प्रकाय के doing, it does not desire
धभाभथक
भ ाभभोऺेषु द्वॊद्वों से से भुतत हो जाता righteousness, wealth,
तनयऩेऺॊ तदा बवेत ्॥१६- है तफ उसको धभभ, अथभ, काभ sex or liberation.॥5॥

५॥ औय भोऺ की अऩेऺा (इच्छा)


नहीॊ यहती॥५॥

ववयततो ववषमद्वेष्टा न ववषमों से द्वेष कयने Neither he is averse to


senses or is attached to
यागी ववषमरोरुऩ्। वारा ववयतत, न ही ववषमों them but he is definitely
ग्रहभोऺववहीनस्तु भें आसतत यागवान, वह तो indifferent to their
acceptance and
न ववयततो न यागवान ्॥१६- तनश्चम ही ववषमों के ग्रहण
rejection.॥6॥
६॥ औय त्माग से ववहीन है ॥६॥

हे मोऩादे मता तावत ्- जफ तक (ववषमों के) ग्रहण As long as there is thought


of acceptance and
सॊसायववटऩाॊकुय्। औय त्माग की काभना यहती rejection of senses, seed
स्ऩह
ृ ा जीवतत मावद् वै है तफ तक सॊसाय रूऩी वऺ
ृ of this world-tree exists.
So, take shelter in
तनववभचायदशास्ऩदभ ्॥१६- का अॊकुय ववद्मभान है , अत्
thoughtlessness.॥7॥
७॥ ववचायहीन अवस्था का
आश्रम रो॥७॥
प्रवत्त
ृ ौ जामते यागो प्रववृ त्त से आसक्तत औय Habit gives rise to
attachment and rejection
तनवत्त
भृ ौ द्वेष एव हह। तनववृ त्त से द्वेष उत्ऩन्न होता brings aversion. So, an
तनद्भवन्द्वो फारवद् धीभान ् है अत् फुद्चधभान, फारक के intelligent person should
stay indifferent like a
एवभेव व्मवक्स्थत्॥१६- सभान तनद्भवॊद्व होकय क्स्थत
child.॥8॥
८॥ यहे ॥८॥

हातुमभच्छतत सॊसायॊ ववषम भें आसतत ऩुरुष द्ु ख A person who is attached
to senses wants to leave
यागी द्ु खक्जहासमा। से फचने के मरए सॊसाय का this world to avoid the
वीतयागो हह तनदभ ्ु खस ्- त्माग कयना चाहता है ऩय problems. But the one
who is indifferent to
तक्स्भन्नवऩ न वह ववयतत ही सुखी है जो these problems does not
णखद्मतत॥१६- ९॥ उन दख
ु ों भें बी खेद नहीॊ feel pain.॥9॥
कयता है ॥९॥

मस्मामबभानो भोऺेऽवऩ जो भोऺ बी चाहता है औय One who wants liberation


and is also attached to his
दे हेऽवऩ भभता तथा। इस शयीय भें आसक्तत बी body, is neither
न च ऻानी न वा मोगी यखता है , वह न ऻानी है औय knowledgeable nor yogi.
केवरॊ द्ु खबागसौ॥१६- न मोगी फक्ल्क केवर द्ु ख He just suffers.॥10॥

१०॥ को प्राप्त कयने वारा है ॥१०॥

हयो मद्मऩ
ु दे ष्टा ते हरय् महद तम्
ु हाये उऩदे शक साऺात ् Unless you forget
everything else, you will
कभरजोऽवऩ वा। मशव, ववष्णु मा ब्रह्भा बी हों not be established in self,
तथावऩ न तव स्वाथ्मॊ तो बी सफ कुछ ववस्भयण even though Shiva, Vishnu
or Brahma themselves
सवभववस्भयणादृते॥१६- ११॥ ककमे बफना तुभ आत्भ स्वरुऩ
teach you.॥11॥
को प्राप्त नहीॊ होगे॥११॥

Seventeenth Chapter / सप्तदश अध्माम

अष्टावक्र अष्टावक्र Ashtavakra Gita


(English)
गीता(भर
ू गीता(हहॊदी
सॊस्कृत) बावानुवाद)

अष्टावक्र उवाच - अष्टावक्र कहते हैं - उन्होंने Ashtavakra says: He has


attained the fruits of
तेन ऻानपरॊ प्राप्तॊ ऻान औय मोग (दोनों) का Knowledge and Yoga both,
मोगाभ्मासपरॊ तथा। पर प्राप्त कय मरमा है जो who is content, is of purified
senses, and always enjoys his
तप्ृ त् स्वच्छे क्न्द्रमो सदा सॊतुष्ट, शुद्ध इक्न्द्रमों
solitude.॥1॥
तनत्मॊ वारे औय एकाॊत भें यभने
एकाकी यभते तु म्॥१७- वारे हैं ॥१॥
१॥

न कदाचचज्जगत्मक्स्भन ् तत्त्व(ब्रह्भ) को जानने वारा The knower of truth is never


troubled by anything in this
तत्त्वऻा हन्त णखद्मतत। कबी बी ककसी फात से इस world, for the whole world is
मत एकेन तेनेदॊ सॊसाय भें दख
ु ी नहीॊ होता है completely pervaded by that
ऩूणं तमोंकक उस एक ब्रह्भ से Brahma(Lord) alone.॥2॥

ब्रह्भाण्डभण्डरभ ्॥१७- ही मह सम्ऩूणभ ववश्व ऩूणत


भ ्
२॥ व्माप्त है ॥२॥

न जातु ववषमा् केऽवऩ अऩनी आत्भा भें यभण None of the senses can please
a man, who is established in
स्वायाभॊ हषभमन्त्मभी। कयने वारा ककसी ववषम को Self, just as Neem leaves do
सल्रकीऩल्रवप्रीत- प्राप्त कयके हवषभत नहीॊ not please the elephant that
मभवेबॊ तनॊफऩल्रवा्॥१७- होता जैसे कक सराई के likes Sallaki leaves.॥3॥

३॥ ऩत्तों से प्रेभ कयने वारा


हाथी नीभ के ऩत्तों को
ऩाकय हषभ नहीॊ कयता
है ॥३॥

मस्तु बोगेषु बुततेषु क्जसकी प्राप्त हो चक


ु े बोगों Such man is rare who is not
attached to the pleasures
न बवत्मचधवामसता। भें आसक्तत नहीॊ है औय न enjoyed, and does not desire
अबुततेषु तनयाकाॊऺी प्राप्त हुए बोगों की इच्छा pleasures which are
तदृशो बवदर
ु ब
भ ्॥१७- नहीॊ है , ऐसा व्मक्तत इस unattained.॥4॥
४॥ सॊसाय भें दर
ु ब
भ है ॥४॥

फुबुऺुरयह सॊसाये इस सॊसाय भें साॊसारयक People desirous of worldly


pleasures are seen and people
भुभुऺुयवऩ दृश्मते। बोगों की इच्छा वारे बी desirous of liberation are also
बोगभोऺतनयाकाॊऺी दे खे जाते हैं औय भोऺ की seen in this world. But one
who is indifferent to both of
ववयरो हह भहाशम्॥१७- इच्छा वारे बी ऩय इन these desires is really
५॥ दोनों इच्छाओॊ से यहहत rare.॥5॥
भहाऩुरुष का मभरना दर
ु भब
है ॥५॥

धभाभथक
भ ाभभोऺेषु धभभ, अथभ, काभ, भोऺ, Only few great souls are free
from attachment and
जीववते भयणे तथा। जीवन औय भत्ृ मु भें repulsion to righteousness,
कस्माप्मुदायचचत्तस्म उऩमोचगता औय wealth, desires, liberation,
हे मोऩादे मता न हह॥१७- अनुऩमोचगता की सभता life and death.॥6॥

६॥ ककसी भहात्भा भें ही होती


है ॥६॥

वाॊछा न ववश्वववरमे न ववश्व के रीन होने की He neither desires end of this


world, nor despise its
न द्वेषस्तस्म च इच्छा औय न ही इसकी continued existence. He lives
क्स्थतौ। क्स्थतत से द्वेष, जैसे जीवन the life as it is, feeling
मथा जीववकमा तस्भाद् है (वे भहात्भा) उसी भें content and grateful.॥7॥

धन्म आस्ते मथा आनॊहदत औय कृतकृत्म


सुखभ ्॥१७- ७॥ यहते हैं॥७॥

कृताथोऽनेन ऻानेन-े इस ऻान से कृताथभ होकय Blessed by this knowledge,


subsiding intelligence in Self,
त्मेवॊ गमरतधी् कृती। फद्
ु चध को अन्तहहभत(ववरीन) they stay content even in
ऩश्मन ् शण्ृ वन ् स्ऩश
ृ न् कयके दे खते हुए, सनु ते हुए, seeing, hearing, touching and
क्जघ्रन्न ् स्ऩशभ कयते हुए, सॊघ
ू ते हुए eating.॥8॥

अश्नन्नस्ते मथा औय खाते हुए


सुखभ ्॥१७- ८॥ सुखऩूवक
भ यहते हैं॥८॥

शून्मा दृक्ष्टवभथ
ृ ा चेष्टा दृक्ष्ट को शून्म औय Keeping their gaze
unoccupied, having stilled the
ववकरानीक्न्द्रमाणण च। अक्स्थय इक्न्द्रमों की चेष्टा tendency of their senses, they
न स्ऩह
ृ ा न ववयक्ततवाभ को नष्ट कयके, इस अशतत have no attachment or
aversion for this feeble
ऺीणसॊसायसागये ॥१७- सॊसाय रूऩी सागय से न तो
world.॥9॥
९॥ आसक्तत यखते हैं औय न
ही ववयक्तत॥९॥

न जगततभ न तनद्रातत न जगता ही है औय न Aha! in that supreme state,


where there is no wakening,
नोन्भीरतत न भीरतत। सोता ही है , न ही आॉखें no sleep, no opening or
अहो ऩयदशा तवावऩ खोरता मा फॊद कयता है , closing of eyes, rarely
someone with liberated
वतभते भुततचेतस्॥१७- अहा! उस ऩयभ अवस्था भें
consciousness stays.॥10॥
१०॥ कोई भुतत चेतना वारा
ववयरा ही यहता है ॥१०॥

सवभत्र दृश्मते स्वस्थ् सदा स्वमॊ भें क्स्थत, सवभत्र Always established in self,
with stainless intent
सवभत्र ववभराशम्। स्वच्छ प्रमोजन वारा, everywhere, free from all the
सभस्तवासना भत
ु तो सभस्त वासनाओॊ से भत
ु त, desires, such a liberated man
भत
ु त् सवभत्र याजते॥१७- भत
ु त ऩरु
ु ष सवभत्र सश
ु ोमबत always shines.॥11॥

११॥ होता है ॥११॥

ऩश्मन ् शण्ृ वन ् स्ऩश


ृ न् दे खते हुए, सुनते हुए, स्ऩशभ Even in, seeing, hearing,
feeling, smelling, eating,
क्जघ्रन्न ् कयते हुए, सूॊघते हुए, खाते taking, speaking, walking,
अश्नन ् गण्ृ हन ् वदन ् हुए, रेते हुए, फोरते हुए, desiring and not desiring such
a great soul basically does
व्रजन ्। चरते हुए, इच्छा कयते हुए
nothing.॥12॥
ईहहतानीहहतैभत
ुभ तो औय इच्छा न कयते हुए,
भत
ु त एव भहाशम्॥१७- ऐसा भहात्भा भत
ु त ही
१२॥ है (वस्तत
ु ् कुछ नहीॊ
कयता)॥१२॥
न तनन्दतत न च न तनॊदा कयता है औय न He neither blames nor
praises, he neither gives nor
स्तौतत प्रशॊसा कयता है , न रेता है , takes. Indifferent from all
न रृष्मतत न कुप्मतत। न दे ता है , इन सफभें these he is free in every
न ददातत न गण्ृ हातत अनासतत वह सफ प्रकाय से way.॥13॥

भुतत् सवभत्र नीयस्॥१७- भुतत है ॥१३॥


१३॥

सानुयागाॊ क्स्त्रमॊ दृष््वा अनुयाग-मुतत क्स्त्रमों को One who remains


unperturbed on seeing
भत्ृ मुॊ वा सभुऩक्स्थतॊ। दे ख कय अथवा भत्ृ मु को women with desire or death,
अववह्वरभना् स्वस्थो उऩक्स्थत दे ख कय ववचमरत established in self, that noble
भुतत एव भहाशम्॥१७- न होने वारा, स्वमॊ भें man is liberated.॥14॥

१४॥ क्स्थत वह भहात्भा भुतत


ही है ॥१४॥

सुखे द्ु खे नये नामां धीय ऩुरुष सुख भें , द्ु ख भें , For such a man with patience,
pleasure and pain, men and
सॊऩत्सु ववऩत्सु च। ऩुरुष भें , नायी भें , सॊऩवत्त भें women, success and failure
ववशेषो नैव धीयस्म औय ववऩवत्त भें अॊतय न are alike. For him everything
सवभत्र सभदमशभन्॥१७- दे खता हुआ सवभत्र सभदशी is equivalent.॥15॥

१५॥ होता है ॥१५॥

न हहॊसा नैव कारुण्मॊ ऺीण सॊसाय वारे ऩरु


ु ष भें In a person free from
attachment for this world,
नौद्धत्मॊ न च दीनता। न हहॊसा औय न करुणा, न there is neither aggression
नाश्चमं नैव च ऺोब् गवभ औय न दीनता, न nor submissiveness, neither
pride nor lowliness, neither
ऺीणसॊसयणे नये ॥१७- आश्चमभ औय न ऺोब ही
surprise nor agitation.॥16॥
१६॥ होते हैं॥१६॥

न भुततो ववषमद्वेष्टा भुतत ऩुरुष न तो ववषमों से Liberated man neither


dislikes sense gratification nor
न वा ववषमरोरुऩ्। द्वेष कयता है औय न likes them, hence he remains
असॊसततभना तनत्मॊ आसक्तत ही, (अत्) उनकी unperturbed in their
प्राप्ताप्राप्तभुऩाश्नुते॥१७- प्राक्प्त औय अप्राक्प्त भें achievement and non-
achievement.॥17॥
१७॥ सदा सभान भन वारा
यहता है ॥१७॥

सभाधानसभाधान- सॊदेह औय सभाधान एवॊ Beyond doubts and solutions,


good and bad, a person with
हहताहहतववकल्ऩना्। हहत औय अहहत की still mind, remains
शून्मचचत्तो न जानातत कल्ऩना से ऩये , शून्म चचत्त established in self.॥18॥
कैवल्ममभव वारा ऩुरुष कैवल्म भें ही
सॊक्स्थत्॥१७- १८॥ क्स्थत यहता है ॥१८॥

तनभभभो तनयहॊ कायो भभता यहहत, अहॊ काय यहहत A man who is free from
attachment, free of ego, with
न ककॊचचहदतत तनक्श्चत्। औय दृश्म जगत के a definitive view of non-
अन्तगभमरतसवाभश् अक्स्तत्व यहहत होने के existence of this visible
world, even while doing does
कुवभन्नवऩ कयोतत न॥१७- तनश्चम वारा, सबी
not do anything.॥19॥
१९॥ इच्छाओॊ से यहहत, कयता
हुआ बी कुछ नहीॊ
कयता॥१९॥

भन्प्रकाशसॊभोह कोई बी भन की भोह, Having attained a state of


mind which is devoid of
स्वप्नजाड्मवववक्जभत्। स्वप्न औय जड़ता से delusion, dream and inertia
दशाॊ काभवऩ सॊप्राप्तो यहहत, प्रकामशत अवस्था को and full of light, one should
discard all mental
बवेद् गमरतभानस्॥१७- प्राप्त कय भन की इच्छाओॊ
desires.॥20॥
२०॥ से यहहत हो जामे॥२०॥

Eighteenth Chapter / अष्टादश अध्माम


अष्टावक्र
अष्टावक्र
गीता(हहॊदी Ashtavakra Gita (English)
गीता(भर
ू सॊस्कृत)
बावानुवाद)

अष्टावक्र उवाच - अष्टावक्र कहते हैं - क्जस Ashtavakra says - Salutations to


the One, blissful, serene
मस्म फोधोदमे तावत ्- फोध का उदम होने ऩय, light like awareness which
स्वप्नवद् बवतत भ्रभ्। जागने ऩय स्वप्न के सभान removes delusion like a
तस्भै सख
ु क
ै रूऩाम भ्रभ की तनववृ त्त हो जाती है , dream.॥1॥

नभ् शान्ताम तेजसे॥१८- उस एक, सख


ु स्वरूऩ शाॊत
१॥ प्रकाश को नभस्काय है ॥१॥

अजभतमत्वाणखरान ् अथाभन ् जगत के सबी ऩदाथों को One may indulge in all sorts of
pleasure by acquiring various
बोगानाप्नोतत ऩुष्करान ्। प्राप्त कयके कोई फहुत से objects of enjoyment, but one
न हह सवभऩरयत्माजभ- बोग प्राप्त कय सकता है cannot be truly happy without their
न्तये ण सुखी बवेत ्॥१८- २॥ ऩय उन सफका आतॊरयक inner renunciation.॥2॥

त्माग ककमे बफना सुखी नहीॊ


हो सकता॥२॥

कतभव्मद्ु खभातभण्डज्वारा क्जसका भन मह कतभव्म है How can there be happiness, for


one whose mind is burnt by the
दग्धान्तयात्भन्। औय मह अकतभव्म आहद intense flame of what to be done
कुत् प्रशभऩीमूषधाया- दख
ु ों की तीव्र ज्वारा से and what not to be done. How can
one attain bliss of the nectar-stream
सायभत
ृ े सुखभ ्॥१८- ३॥ झुरस यहा है , उसे बरा of peace without being desire-
कभभ त्माग रूऩी शाॊतत की less?॥3॥
अभत
ृ -धाया का सेवन ककमे
बफना सुख की प्राक्प्त कैसे
हो सकती है ॥३॥
बवोऽमॊ बावनाभात्रो मह सॊसाय केवर एक This existence is just imagination. It
is nothing in reality, but there is no
न ककॊचचत ् ऩयभथभत्। बावना भात्र है , ऩयभाथभत् non-being for natures that know
नास्त्मबाव् स्वबावनाॊ कुछ बी नहीॊ है । बाव औय how to distinguish being fromnon
बावाबावववबाववनाभ ्॥१८- अबाव के रूऩ भें स्वबावत् being.॥4॥

४॥ क्स्थत ऩदाथों का कबी


अबाव नहीॊ हो सकता॥४॥

न दयू ॊ न च सॊकोचार ्- आत्भा न तो दयू है औय न The realm of one's own self is not
far away, and nor can it be achieved
रब्धभेवात्भन् ऩदॊ । ऩास, वह तो प्राप्त ही है , by the addition of limitations to its
तनववभकल्ऩॊ तनयामासॊ तभ
ु स्वमॊ ही हो उसभें न nature. It is unimaginable,
effortless, unchanging and
तनववभकायॊ तनयॊ जनभ ्॥१८- ववकल्ऩ है , न प्रमत्न, न
spotless.॥5॥
५॥ ववकाय औय न भर ही॥५॥

व्माभोहभात्रववयतौ अऻान भात्र की तनववृ त्त औय By the simple elimination of


delusion and the recognition of
स्वरूऩादानभात्रत्। स्वरुऩ का ऻान होते ही one's true nature, those whose
वीतशोका ववयाजन्ते दृक्ष्ट का आवयण बॊग हो vision is unclouded live free from
तनयावयणदृष्टम्॥१८- ६॥ जाता है औय तत्त्व को sorrow.॥6॥

जानने वारा शोक से यहहत


होकय शोबामभान हो जाता
है ॥६॥

सभस्तॊ कल्ऩनाभात्र- सफ कुछ कल्ऩना भात्र है Knowing everything as just


imagination, and himself as
भात्भा भुतत् सनातन्। औय आत्भा तनत्म भुतत है , eternally free, how should the wise
इतत ववऻाम धीयो हह धीय ऩुरुष इस तथ्म को man behave like a fool?॥7॥
ककभभ्मस्मतत फारवत ्॥१८- जान कय कपय फारक के
७॥ सभान तमा अभ्मास
कये ?॥१७॥
आत्भा ब्रह्भेतत तनक्श्चत्म आत्भा ही ब्रह्भ है औय Knowing himself to be God and
being and non-being just
बावाबावौ च कक्ल्ऩतौ। बाव-अबाव कक्ल्ऩत हैं - imagination, what should the man
तनष्काभ् ककॊ ववजानातत ऐसा तनश्चम हो जाने ऩय free from desire learn, say or
ककॊ ब्रूते च कयोतत तनष्काभ ऻानी कपय तमा do?॥8॥

ककभ ्॥१८- ८॥ जाने, तमा कहे औय तमा


कहे ॥८॥

अमॊ सोऽहभमॊ नाहॊ सफ आत्भा ही है - ऐसा Considerations like 'I am this' or 'I
am not this' are finished for the yogi
इतत ऺीणा ववकल्ऩना। तनश्चम कयके जो चऩ
ु हो who has gone
सवभभात्भेतत तनक्श्चत्म गमा है , उस ऩरु
ु ष के मरए silent realising 'Everything is
तष्ू णीॊबत
ू स्म मोचगन्॥१८- मह भैं हूॉ, मह भैं नहीॊ हूॉ myself'.॥9॥

९॥ आहद कल्ऩनाएॉ बी शाॊत हो


जाती हैं॥९॥

न ववऺेऩो न चैकाग्र्मॊ अऩने स्वरुऩ भें क्स्थत For the yogi who has found peace,
there is no distraction or one-
नाततफोधो न भढ
ू ता। होकय शाॊत हुए तत्त्व ऻानी pointedness, no higher knowledge
न सुखॊ न च वा द्ु खॊ के मरए न ववऺेऩ है औय न or ignorance, no pleasure and no
उऩशान्तस्म मोचगन्॥१८- एकाग्रता, न ऻान है औय न pain.॥10॥

१०॥ अऻान, न सुख है औय न


द्ु ख॥१०॥

स्वायाज्मे बैऺवत्त
ृ ौ च जो मोगी स्वबाव से ही The dominion of heaven or beggary,
gain or loss, life among men or in
राबाराबे जने वने। ववकल्ऩ यहहत है , उसके the forest, these make no
तनववभकल्ऩस्वबावस्म मरए अऩने याज्म भें मा difference to a yogi whose nature it
न ववशेषोऽक्स्त मबऺा भें , राब-हातन भें , is to be free from distinctions.॥11॥

मोचगन्॥१८- ११॥ बीड़ भें मा सुने जॊगर भें


कोई अॊतय नहीॊ है ॥११॥
तव धभभ् तव च वा काभ् मह कय मरमा औय मह There is no religion, wealth,
sensuality or discrimination for a
तव चाथभ् तव वववेककता। कामभ शेष है , इन द्वॊद्वों से yogi free from the pairs of opposites
इदॊ कृतमभदॊ नेतत जो भुतत है , उसके मरए such as 'I have done this' and 'I have
द्वन्द्वैभत
ुभ तस्म धभभ कहाॉ, कभभ कहाॉ, अथभ not done that'.॥12॥

मोचगन्॥१८- १२॥ कहाॉ औय वववेक कहाॉ॥१२॥

कृत्मॊ ककभवऩ नैवाक्स्त जीवन्भुतत मोगी का न तो There is nothing needing to be


done, or any attachment in his heart
न कावऩ रृहद यॊ जना। कुछ कतभव्म है औय न ही for the yogi liberated while still
मथा जीवनभेवेह उसके ह्रदम भें कोई अनुयाग alive. Things are just for a
जीवन्भुततस्म मोचगन्॥१८- है ।जैसे बी जीवन फीत जामे lifetime.॥13॥

१३॥ वैसे ही उसकी क्स्थतत


है ॥१३॥

तव भोह् तव च वा ववश्वॊ जो भहात्भा सबी सॊकल्ऩों There is no delusion, world,


meditation on That, or liberation for
तव तद् ध्मानॊ तव की सीभा ऩय ववश्राभ कय the pacified great soul. All these
भुततता। यहा है , उसके मरए भोह things are just the realm of
सवभसॊकल्ऩसीभामाॊ कहाॉ, सॊसाय कहाॉ, ध्मान imagination.॥14॥

ववश्रान्तस्म भहात्भन्॥१८- कहाॉ औय भक्ु तत बी


१४॥ कहाॉ?॥१४॥

मेन ववश्वमभदॊ दृष्टॊ स क्जसने इस सॊसाय को He by whom all this is seen may well
make out he doesn't exist, but what
नास्तीतत कयोतु वै। वास्तव भें दे खा हो वह is the desireless one to do? Even in
तनवाभसन् ककॊ कुरुते कहे कक मह नहीॊ है , नहीॊ seeing he does not see.॥15॥
ऩश्मन्नवऩ न ऩश्मतत॥१८- है । जो काभना यहहत है , वह
१५॥ तो इसको दे खते हुए बी
नहीॊ दे खता॥१५॥
मेन दृष्टॊ ऩयॊ ब्रह्भ क्जसने अऩने से मबन्न He by whom the Supreme Brahma is
seen may think 'I am Brahma', but
सोऽहॊ ब्रह्भेतत चचन्तमेत ्। ऩयब्रह्भ को दे खा हो, वह what is he to think who is without
ककॊ चचन्तमतत तनक्श्चन्तो चचॊतन ककमा कये कक वह thought, and who sees no
मो न ऩश्मतत॥१८- १६॥ ब्रह्भ भैं हूॉ ऩय क्जसे कुछ duality.॥16॥

दस ू या हदखाई नहीॊ दे ता, वह


तनक्श्चन्त तमा ववचाय
कये ॥१६॥

दृष्टो मेनात्भववऺेऩो क्जसने अऩने स्वरुऩ भें He by whom inner distraction is


seen may put an end to it, but the
तनयोधॊ कुरुते त्वसौ। कबी कोई ववऺेऩ दे खा हो noble one is not distracted. When
उदायस्तु न ववक्षऺप्त् वह उसको योके। तत्त्व को there is nothing to achieve, what is
साध्माबावात्कयोतत जानने वारे का ववऺेऩ कबी he to do?॥17॥

ककभ ्॥१८- १७॥ होता ही नहीॊ है , ककसी


साध्म के बफना वह तमा
कये ॥१७॥

धीयो रोकववऩमभस्तो तत्त्वऻ तो साॊसारयक रोगों The wise man, unlike the worldly
man, does not see inner stillness,
वतभभानोऽवऩ रोकवत ्। से उल्टा ही होता है , वह distraction or fault in himself, even
नो सभाचधॊ न ववऺेऩॊ साभान्म रोगों जैसा when living like a worldly man.॥18॥
न रोऩॊ स्वस्म ऩश्मतत॥१८- व्मवहाय कयता हुआ बी
१८॥ अऩने स्वरुऩ भें न
सभाचध दे खता है , न ववऺेऩ
औय न रम ही॥१८॥
बावाबावववहीनो मस ्- तत्त्वऻ बाव औय अबाव से Nothing is done by him who is free
from being and non-being, who is
तप्ृ तो तनवाभसनो फुध्। यहहत, तप्ृ त औय काभना contented, desireless and wise,
नैव ककॊचचत्कृतॊ तेन यहहत होता है। रौककक even if in the world's eyes he does
रोकदृष््मा ववकुवभता॥१८- दृक्ष्ट से कुछ उल्टा-सीधा act.॥19॥

१९॥ कयते हुए बी वह कुछ बी


नहीॊ कयता॥१९॥

प्रवत्त
ृ ौ वा तनवत्त
ृ ौ वा तत्त्वऻ का प्रववृ त्त मा तनववृ त्त The wise man who just goes on
doing what presents itself for him to
नैव धीयस्म दग्र
ु ह भ ्। का दयु ाग्रह नहीॊ होता। जफ do, encounters no difficulty in
मदा मत्कतभ
ुभ ामातत जो साभने आ जाता है तफ either activity or inactivity.॥20॥
तत्कृत्वा ततष्ठते उसे कयके वह आनॊद से
सख
ु भ ्॥१८- २०॥ यहता है ॥२०॥

तनवाभसनो तनयारॊफ् ऻानी काभना, आश्रम औय He who is desireless, self-reliant,


independent and free of bonds
स्वच्छन्दो भुततफन्धन्। ऩयतॊत्रता आहद के फॊधनों से functions like a dead leaf blown
क्षऺप्त् सॊस्कायवातेन सवभथा भुतत होता about by the wind of causality.॥21॥
चेष्टते शुष्कऩणभवत ्॥१८- है । प्रायब्ध रूऩी वामु के वेग
२१॥ से उसका शयीय उसी प्रकाय
गततशीर यहता है जैसे वामु
के वेग से सूखा ऩत्ता॥२१॥

असॊसायस्म तु तवावऩ जो सॊसाय से भुतत है वह There is neither joy nor sorrow for
one who has transcended samsara.
न हषो न ववषाहदता। न कबी हषभ कयता है औय He lives always with a peaceful
स शीतरहभना तनत्मॊ न ववषाद। उसका भन सदा mind and as if without a body.॥22॥
ववदे ह इव याजमे॥१८- २२॥ शीतर यहता है औय वह
(शयीय यहते हुए बी) ववदे ह
के सभान सुशोमबत होता
है ॥२२॥
कुत्रावऩ न क्जहासाक्स्त क्जसका अॊतभभन शीतर औय He whose joy is in himself, and who
is peaceful and pure within has no
नाशो वावऩ न कुत्रचचत ्। स्वच्छ है , जो आत्भा भें ही desire for renunciation or sense of
आत्भायाभस्म धीयस्म यभण कयता है , उस धीय loss in anything.॥23॥
शीतराच्छतयात्भन्॥१८- ऩुरुष की न तो ककसी त्माग
२३॥ की इच्छा होती है औय न
कुछ ऩाने की आशा॥२३॥

प्रकृत्मा शून्मचचत्तस्म क्जस धीय ऩुरुष का चचत्त For the man with a naturally empty
mind, doing just as he pleases,
कुवभतोऽस्म मदृच्छमा। स्वबाव से ही तनववभषम there is no such thing as pride or
प्राकृतस्मेव धीयस्म है , वह साधायण भनुष्म के false humility, as there is for the
न भानो नावभानता॥१८- सभान प्रायब्ध वश फहुत से natural man.॥24॥

२४॥ कामभ कयता है ऩय उसका


उसे न तो भान होता है
औय न अऩभान ही॥२४॥

कृतॊ दे हेन कभेदॊ 'मह कभभ शयीय ने ककमा है , This action was done by the body
but not by me'. The pure-natured
न भमा शद्
ु धरूवऩणा। भैंने नहीॊ, भैं तो शद्
ु ध person thinking like this, is not
इतत चचन्तानयु ोधी म् स्वरुऩ हूॉ' - इस प्रकाय acting even when acting.॥25॥
कुवभन्नवऩ कयोतत न॥१८- क्जसने तनश्चम कय मरमा
२५॥ है , वह कभभ कयता हुआ बी
नहीॊ कयता॥२५॥
अतद्वादीव कुरुते सुखी औय श्रीभान ् He who acts without being able to
say why, but not because he is a
न बवेदवऩ फामरश्। जीवन्भुतत ववषमी के fool, he is one liberated while still
जीवन्भुतत् सुखी श्रीभान ् सभान कामभ कयता है , alive, happy and blessed. He thrives
सॊसयन्नवऩ शोबते॥१८- ऩयन्तु ववषमी नहीॊ होता है even in samsara.॥26॥

२६॥ वह तो साॊसारयक कामभ


कयता हुआ बी शोबा को
प्राप्त होता है ॥२६॥

नाववचायसुश्रान्तो धीयो जो धीय ऩुरुष अनेक ववचायों He who has had enough of endless
considerations and has attained to
ववश्राक्न्तभागत्। से थककय अऩने स्वरूऩ भें peace, does not think, know, hear
न कल्ऩते न जातत ववश्राभ ऩा चक
ु ा है , वह न or see.॥27॥
न शण
ृ ोतत न ऩश्मतत॥१८- कल्ऩना कयता है , न जानता
२७॥ है , न सुनता है औय न
दे खता ही है ॥२७॥

असभाधेयववऺेऩान ् ऐसा ऻानी सभाचध भें He who is beyond mental stillness


and distraction, does not desire
न भुभुऺुनभ चेतय्। आग्रह न होने के कायण either liberation or anything
तनक्श्चत्म कक्ल्ऩतॊ ऩश्मन ् भुभुऺु नहीॊ औय ववऺेऩ न else. Recognisingthat things are just
constructions of the imagination,
ब्रह्भैवास्ते भहाशम्॥१८- होने के कायण ववषमी नहीॊ that great soul lives as God here and
२८॥ है । भेये अततरयतत जो कुछ now.॥28॥
बी हदख यहा है वह सफ
कक्ल्ऩत ही है - ऐसा
तनश्चम कयके सफको दे खता
हुआ वह ब्रह्भ ही है ॥२८॥
मस्मान्त् स्मादहॊ कायो क्जसके अन्त् कयण भें He who feels responsibility within,
acts even when not acting, but
न कयोतत कयोतत स्। अहॊ काय ववद्मभान है वह there is no sense of done or undone
तनयहॊ कायधीये ण न दे खने भें कभभ न कये तो बी for the wise man who is free from
ककॊचचदकृतॊ कृतभ ्॥१८- २९॥ कयता है ।ऩय जो धीय ऩुरुष the sense of responsibility.॥29॥

तनयहॊ काय है , वह सफ कुछ


कयते हुए बी कभभ नहीॊ
कयता॥९॥

नोद्ववग्नॊ न च सन्तुष्ट- भुतत ऩुरुष के चचत्त भें न The mind of the liberated man is not
upset or pleased. It shines
भकतभृ स्ऩन्दवक्जभतॊ। उद्वेग है , न सॊतोष औय न unmoving, desireless, and free from
तनयाशॊ गतसन्दे हॊ कतत्भृ व का अमबभान ही है doubt.॥30॥
चचत्तॊ भुततस्म याजते॥१८- उसके चचत्त भें न आशा है ,
३०॥ न सॊदेह ऐसा चचत्त ही
सुशोमबत होता है ॥३०॥

तनध्माभतुॊ चेक्ष्टतुॊ वावऩ जीवन्भुतत का चचत्त ध्मान He whose mind does not set out to
meditate or act, meditates and acts
मक्च्चत्तॊ न प्रवतभत।े से ववयत होने के मरए औय
without an object.॥31॥
तनतनभमभत्तमभदॊ ककॊतु व्मवहाय कयने की चेष्टा
तनध्माभमेतत ववचेष्टते॥१८- नहीॊ कयता है । तनमभत्त के
३१॥ शून्म होने ऩय वह ध्मान से
ववयत बी होता है औय
व्मवहाय बी कयता है ॥३१॥
तत्त्वॊ मथाथभभाकण्मभ अवववेकी ऩुरुष मथाथभ तत्त्व A stupid man is bewildered when he
hears the real truth, while even a
भन्द् प्राप्नोतत भूढताॊ। का वणभन सुनकय औय clever man is humbled by it just like
अथवा मातत सॊकोचभ- अचधक भोह को प्राप्त होता the fool.॥32॥
भूढ् कोऽवऩ भूढवत ्॥१८- है मा सॊकुचचत हो जाता
३२॥ है । कबी-कबी तो कुछ
फुद्चधभान बी उसी अवववेकी
के सभान व्मवहाय कयने
रगते हैं॥३२॥

एकाग्रता तनयोधो वा भूढ़ ऩुरुष फाय-फाय (चचत्त की The ignorant make a great effort to
practice one-pointedness and the
भूढैयभ्मस्मते बश
ृ ॊ। ) एकाग्रता औय तनयोध का stopping of thought, while the wise
धीया् कृत्मॊ न ऩश्मक्न्त अभ्मास कयते हैं। धीय ऩुरुष see nothing to be done and remain
in themselves like those
सुप्तवत्स्वऩदे क्स्थता्॥१८- सुषुप्त के सभान अऩने
asleep.॥33॥
३३॥ स्वरूऩ भें क्स्थत यहते हुए
कुछ बी कतभव्म रूऩ से नहीॊ
कयते॥३३॥

अप्रमत्नात ् प्रमत्नाद् वा भूढ़ ऩुरुष प्रमत्न से मा The stupid does not attain cessation
whether he acts or abandons action,
भूढो नाप्नोतत तनवतभ ृ तॊ। प्रमत्न के त्माग से शाॊतत while the wise man find peace
तत्त्वतनश्चमभात्रेण प्राप्त नहीॊ कयता ऩय within simply by knowing the
प्राऻो बवतत तनवत
भ ृ ्॥१८- प्रऻावान ऩुरुष तत्त्व के truth.॥34॥

३४॥ तनश्चम भात्र से शाॊतत प्राप्त


कय रेता है ॥३४॥
शुद्धॊ फुद्धॊ वप्रमॊ ऩूणं आत्भा के सम्फन्ध भें जो People cannot come to know
themselves by practices - pure
तनष्प्रऩॊचॊ तनयाभमॊ। रोग अभ्मास भें रग यहे awareness, clear, complete, beyond
आत्भानॊ तॊ न जानक्न्त हैं, वे अऩने शुद्ध, फुद्ध, multiplicity and faultless though
तत्राभ्मासऩया जना्॥१८- वप्रम, ऩूण,भ तनष्प्रऩॊच औय they are.॥35॥

३५॥ तनयाभम ब्रह्भ-स्वरूऩ को


नहीॊ जानते॥३५॥

नाप्नोतत कभभणा भोऺॊ अऻानी भनुष्म कभभ रूऩी The stupid does not achieve
liberation even through regular
ववभूढोऽभ्मासरूवऩणा। अभ्मास से भुक्तत नहीॊ ऩा practice, but the fortunate remains
धन्मो ववऻानभात्रेण सकता औय ऻानी कभभ free and actionless simply by
भत
ु तक्स्तष्ठत्मववकक्रम्॥१८- यहहत होने ऩय बी केवर discrimination.॥36॥

३६॥ ऻान से भक्ु तत प्राप्त कय


रेता है ॥३६॥

भढ
ू ो नाप्नोतत तद् ब्रह्भ अऻानी को ब्रह्भ का The stupid does not attain Godhead
because he wants to become it,
मतो बववतमु भच्छतत। साऺात्काय नहीॊ हो सकता while the wise man enjoys the
अतनच्छन्नवऩ धीयो हह तमोंकक वह ब्रह्भ होना Supreme Godhead without even
ऩयब्रह्भस्वरूऩबाक् ॥१८- चाहता है ।ऻानी ऩुरुष इच्छा wanting it.॥37॥

३७॥ न कयने ऩय बी ऩयब्रह्भ


फोध स्वरूऩ भें यहता
है ॥३७॥

तनयाधाया ग्रहव्मग्रा अऻानी तनयाधाय आग्रहों भें Even when living without any
support and eager for achievement,
भूढा् सॊसायऩोषका्। ऩड़कय सॊसाय का ऩोषण the stupid are still
एतस्मानथभभूरस्म कयते यहते हैं। ऻातनमों ने nourishing samsara, while the wise
have cut at the very root of its
भर
ू च्छे द् कृतो फध
ु ्ै ॥१८- सबी अनथों की जड़ इस
unhappiness.॥38॥
३८॥ सॊसाय की सत्ता का हीऩण
ू भ
नाश कय हदमा है ॥३८॥
न शाक्न्तॊ रबते भूढो अऻानी शाॊतत नहीॊ प्राप्त The stupid does not find peace
because he is wantingit, while the
मत् शमभतुमभच्छतत। कय सकता तमोंकक वह शाॊत wise discriminating the truth is
धीयस्तत्त्वॊ ववतनक्श्चत्म होने की इच्छा से ग्रस्त always peaceful minded.॥39॥
सवभदा शान्तभानस्॥१८- है । ऻानी ऩुरुष तत्त्व का दृढ़
३९॥ तनश्चम कयके सदै व शाॊत
चचत्त ही यहता है ॥३९॥

तवात्भनो दशभनॊ तस्म अऻानी को आत्भ- How can there be self knowledge for
him whose knowledge depends on
मद् दृष्टभवरॊफते। साऺात्काय कैसे हो सकता what he sees. The wise do not see
धीयास्तॊ तॊ न ऩश्मक्न्त है जफ वह दृश्म this and that, but see themselves as
ऩश्मन्त्मात्भानभव्ममभ ्॥१८- ऩदाथों के आश्रम को स्वीकाय unending.॥40॥

४०॥ कयता है । ऻानी ऩरु


ु ष तो वे
हैं जो दृश्म ऩदाथों को न
दे खते हुए अऩने अववनाशी
स्वरूऩ को ही दे खते हैं॥४०॥

तव तनयोधो ववभूढस्म जो आग्रह कयता है , उस How can there be cessation of


thought for the misguided who is
मो तनफभन्धॊ कयोतत वै। भूखभ का चचत्त तनरुद्ध कहाॉ striving for it. Yet it is there always
स्वायाभस्मैव धीयस्म है ? आत्भा भें यभण कयने naturally for the wise man delighted
सवभदासावकृबत्रभ्॥१८- ४१॥ वारे धीय ऩुरुष का चचत्त तो in self.॥41॥

सदै व स्वाबाववक रूऩ से


तनरुद्ध ही यहता है ॥४१॥
बावस्म बावक् कक्श्चन ् कोई ऩदाथभ की सत्ता की Some think that something exists,
and others that nothing does. Rare
न ककॊचचद् बावकोऩय्। बावना कयता है औय कोई is the man who does not think
उबमाबावक् कक्श्चद् ऩदाथों की असत्ता की। ऻानी either, and is thereby free from
एवभेव तनयाकुर्॥१८- ४२॥ तो बाव-अबाव दोनों की distraction.॥42॥

बावना को छोड़कय
तनक्श्चन्त यहता है ॥४२॥

शुद्धभद्वमभात्भानॊ फुद्चधहीन ऩुरुष अऻानवश Those of weak intelligence think of


themselves as pure non-duality, but
बावमक्न्त कुफुद्धम्। अऩने शुद्ध, अद्ववतीम because of their delusion do not
न तु जानक्न्त सॊभोहा- स्वरूऩ का ऻान तो प्राप्त know this, and remain unfulfilled all
द्मावज्जीवभतनवत
भ ृ ा्॥१८- कयते नहीॊ ऩय केवर बावना their lives.॥43॥

४३॥ कयते हैं, उन्हें जीवन ऩमभन्त


शाॊतत नहीॊ मभरती॥४३॥

भुभुऺोफद्
ुभ चधयारॊफ- भुभुऺु ऩुरुष की फुद्चध कुछ The mind of the man seeking
liberation can find no resting place
भन्तये ण न ववद्मते। आश्रम ग्रहण ककमे बफना within, but the mind of the
तनयारॊफैव तनष्काभा नहीॊ यहती। भुतत ऩुरुष की liberated man is always free from
desire by the very fact of being
फुद्चधभत
ुभ तस्म सवभदा॥१८- फुद्चध तो सफ प्रकाय से
without a resting place.॥44॥
४४॥ तनष्काभ औय तनयाश्रम ही
यहती है ॥४४॥
ववषमद्वीवऩनो वीक्ष्म अऻानी ऩुरुष ववषमरूऩी Seeing the tigers of the senses, the
frightened refuge-seekers at once
चककता् शयणाचथभन्। भतवारे हाचथमों को दे खकय enter the cave in search of
ववशक्न्त झहटतत क्रोडॊ बमबीत हो जाते हैं औय cessation of thought and one-
तनयोधैकाग्रमसद्धमे॥१८- शयण के मरए तुयॊत तनयोध pointedness.॥45॥

४५॥ औय एकाग्रता की मसद्चध के


मरए झटऩट चचत्त की गुपा
भें घुस जाते है ॥४५॥

तनवाभसनॊ हरयॊ दृष््वा काभना यहहत ऻानी मसॊह है , Seeing the desireless lion the
elephants of the senses silently run
तूष्णीॊ ववषमदक्न्तन्। उसे दे खते ही ववषम रूऩी away, or, if they cannot, serve him
ऩरामन्ते न शततास्ते भतवारे हाथी चऩ
ु चाऩ बाग like courtiers.॥46॥
सेवन्ते कृतचाटव्॥१८- जाते हैं उनकी एक नहीॊ
४६॥ चरती उरटे वे तयह-तयह से
खश
ु ाभद कयके सेवा कयते
हैं॥४६॥

न भुक्ततकारयकाॊ धत्ते शॊका यहहत ऻानी ऩुरुष The man who is free from doubts
and whose mind is free does not
तन्शङ्को मुततभानस्। भुक्तत के साधनों का bother about means of liberation.
ऩश्मन ् शण्ृ वन ् स्ऩश
ृ न् अभ्मास नहीॊ कयता, वह तो Whether seeing, hearing, feeling
smelling or tasting, he lives at
क्जघ्रन्नश्नन्नास्ते दे खते, सुनते, छूते, सूॊघते,
ease.॥47॥
मथासुखभ ्॥१८- ४७॥ बोगते हुए बी आनॊद भें
भग्न यहता है ॥४७॥
वस्तुश्रवणभात्रेण शुद्ध-फुद्चध ऩुरुष वस्तु-तत्त्व He whose mind is pure and
undistracted from the simple
शुद्धफुद्चधतनभयाकुर्। के केवर सुनने भात्र से hearing of the Truth sees neither
नैवाचायभनाचाय- आकुरता यहहत हो जाता है , something to do nor something to
avoid nor a cause for
भौदास्मॊ वा प्रऩश्मतत॥१८- कपय आचाय-अनाचाय मा
indifference.॥48॥
४८॥ उदासीनता ऩय उसकी दृक्ष्ट
नहीॊ जाती॥४८॥

मदा मत्कतभ
ुभ ामातत स्वबाव भें क्स्थत ऻानी, The straightforward person does
whatever arrives to be done, good
तदा तत्कुरुते ऋजु्। शुब हो मा अशुब, जो जफ or bad, for his actions are like those
शुबॊ वाप्मशुबॊ वावऩ कयने के मरए साभने आ of a child.॥49॥
तस्म चेष्टा हह जाता है , तफ वह उसे
फारवत ्॥१८- ४९॥ फारक की चेष्टा के सभान
सयरता से कय डारता
है ॥४९॥

स्वातॊत्र्मात्सुखभाप्नोतत स्वतॊत्रता से ही सुख की By inner freedom one attains


happiness, by inner freedom one
स्वातॊत्र्माल्रबते ऩयॊ । प्राक्प्त होती है ।स्वतॊत्रता से reaches the Supreme, by inner
स्वातॊत्र्माक्न्नवतभ ृ तॊ गच्छे त ्- ही ऩयभ तत्त्व की उऩरक्ब्ध freedom one comes to absence of
thought, by inner freedom to the
स्वातॊत्र्मात ् ऩयभॊ ऩदभ ्॥१८- होती है । स्वतॊत्रता से ही
Ultimate State.॥50॥
५०॥ ऩयभ शाॊतत की प्राक्प्त होती
है । स्वतॊत्रता से ही ऩयभ ऩद
मभरता है ॥५०॥

अकतत्भ ृ वभबोततत्ृ वॊ जफ साधक अऩने आऩको When one sees oneself as neither
the doer nor the reaper of the
स्वात्भनो भन्मते मदा। अकताभ औय अबोतता consequences, then all mind waves
तदा ऺीणा बवन्त्मेव तनश्चम कय रेता है तफ come to an end.॥51॥
सभस्ताक्श्चत्तवत्त
ृ म्॥१८- उसके चचत्त की सबी ववृ त्तमाॉ
५१॥ ऺीण हो जाती हैं॥५१॥
उच्छृॊखराप्मकृततका धीय ऩुरुष की स्वाबाववक The
spontaneous unassumedbehaviour of
क्स्थततधीयस्म याजते। क्स्थतत ववऺोब मुतत होने the wise is noteworthy, but not the
न तु सस्ऩह
ृ चचत्तस्म ऩय बी श्रेष्ठ है ऩय क्जसके deliberate, intentional stillness of
शाक्न्तभढ
ूभ स्म कृबत्रभा॥१८- चचत्त भें अनेक इच्छाएॊ बयी the fool.॥52॥

५२॥ हैं उस अऻानी ऩुरुष ऩय


फनावटी शाॊतत शोबा नहीॊ
ऩाती॥५२॥

ववरसक्न्त भहाबोगै- धीय ऩुरुष फड़े बोगों भें The wise who are rid of imagination,
unbound and with unfettered
ववभशक्न्त चगरयगह्वयान ्। आनॊद कयते हैं औय ऩवभतों awareness may enjoy themselves in
तनयस्तकल्ऩना धीया की गहन गुपाओॊ भें बी the midst of many goods, or
alternatively go off to mountain
अफद्धा भुततफुद्धम्॥१८- तनवास कयते हैं ऩय वे
caves.॥53॥
५३॥ कल्ऩना, फॊधन औय फुद्चध
की ववृ त्तमों से भुतत होते
हैं॥५३॥

श्रोबत्रमॊ दे वताॊ तीथभभ- धीय ऩरु


ु ष शास्त्रऻ ब्राह्भण, There is no attachment in the heart
of a wise man whether he sees or
ङ्गनाॊ बऩ
ू ततॊ वप्रमॊ। दे वता, तीथभ, स्त्री, याजा औय pays homage to a learned brahmin,
दृष््वा सॊऩज्
ू म धीयस्म वप्रम को दे ख कय उनका a celestial being, a holy place, a
न कावऩ रृहद वासना॥१८- स्वागत कयता है ऩय उसके woman, a king or a friend.॥54॥

५४॥ ह्रदम भें कोई काभना नहीॊ


होती॥५४॥
बत्ृ मै् ऩुत्र्ै करत्रैश्च सेवक, ऩुत्र, स्त्री, नाती औय A yogi is not in the least put out
even when humiliated by the
दौहहत्रैश्चावऩ गोत्रजै्। सगोत्र द्वाया हॊ सी उदम ridicule of servants, sons, wives,
ववहस्म चधतकृतो मोगी जाने ऩय, चधतकायने ऩय बी grandchildren or other
न मातत ववकृततॊ मोगी के चचत्त भें थोड़ा सा relatives.॥55॥

भनाक् ॥१८- ५५॥ ववकाय बी उत्ऩन्न नहीॊ


होता॥५५॥

सन्तुष्टोऽवऩ न सन्तुष्ट् रौककक दृक्ष्ट से प्रसन्न Even when pleased he is not


pleased, not suffering even when in
णखन्नोऽवऩ न च णखद्मते। हदखने ऩय वह प्रसन्न नहीॊ pain. Only those like him can know
तस्माश्चमभदशाॊ ताॊ होता औय दख
ु ी हदखने ऩय the wonderful state of such a
तादृशा एव जानते॥१८- दख
ु ी नहीॊ होता। उसकी उस man.॥56॥

५६॥ आश्चमभभम दशा को उसके


सभान रोग ही जान सकते
हैं॥५६॥

कतभव्मतैव सॊसायो न कतभव्म फुद्चध का नाभ ही It is the sense of responsibility


which is samsara. The wise who are
ताॊ ऩश्मक्न्त सूयम्। सॊसाय है , ववद्वान रोग उस of the form of emptiness, formless,
शून्माकाया तनयाकाया कतभव्मता को नहीॊ दे खते unchanging and spotless see no such
तनववभकाया तनयाभमा्॥१८- तमोंकक उनकी फुद्चध thing.॥57॥

५७॥ शून्माकाय, तनयाकाय,


तनववभकाय औय तनयाभम होती
है ॥५७॥

अकुवभन्नवऩ सॊऺोबाद् अऻानी ऩुरुष कुछ न कयते Even when doing nothing the fool is
agitated by restlessness, while a
व्मग्र् सवभत्र भूढधी्। हुए बी ऺोबवश सदा व्मग्र skillful man remains undisturbed
कुवभन्नवऩ तु कृत्मातन ही यहता है । मोगी ऩुरुष even when doing what there is to
कुशरो हह तनयाकुर्॥१८- फहुत से कामभ कयता हुआ do.॥58॥

५८॥ बी शाॊत यहता है ॥५८॥


सुखभास्ते सुखॊ शेते शाॊत फुद्चध वारा ऩुरुष सुख Happy he stands, happy he sits,
happy sleeps and happy he comes
सुखभामातत मातत च। से फैठता है , सुख से सोता and goes. Happy he speaks, and
सुखॊ वक्तत सुखॊ बुॊतते है , सुख से आता-जाता है , happy he eats. Such is the life of a
व्मवहाये ऽवऩ शान्तधी्॥१८- सुख से फोरता है औय सुख man at peace.॥59॥

५९॥ से ही खाता है ॥५९॥

स्वबावाद्मस्म नैवाततभ- जो फड़े सयोवय के सभान He who by his very nature feels no
unhappiness in his daily life like
रोकवद् व्मवहारयण्। शाॊत है औय रौककक worldly people, remains
भहारृद इवाऺोभ्मो आचयण कयते हुए क्जसको undisturbed like a great lake, all
गततरेश् स शोबते॥१८- अन्म रोगों के सभान द्ु ख sorrow gone.॥60॥

६०॥ नहीॊ होता, वह द्ु ख यहहत


ऻानी शोमबत होता है ॥६०॥

तनववृ त्तयवऩ भूढस्म भूढ़ भें तनववृ त्त से बी प्रववृ त्त Even abstention from action leads to
action in a fool, while even the
प्रववृ त्त रुऩजामते। उत्ऩन्न हो जाती है औय action of the wise man brings the
प्रववृ त्तयवऩ धीयस्म धीय ऩुरुष की प्रववृ त्त बी fruits of inaction.॥61॥
तनववृ त्तपरबाचगनी॥१८- तनववभृ त्त के सभान
६१॥ परदातमनी है ॥६१॥

ऩरयग्रहे षु वैयाग्मॊ अऻानी ऩुरुष प्राम् गह


ृ A fool often shows aversion towards
his belongings, but for him whose
प्रामो भूढस्म दृश्मते। आहद ऩदाथों से वैयाग्म attachment to the body has dropped
दे हे ववगमरताशस्म कयता हदखाई दे ता है ऩय away, there is neither attachment
तव याग् तव ववयागता॥१८- क्जसका दे ह-अमबभान नष्ट nor aversion.॥62॥

६२॥ हो चक
ु ा है , उसके मरए कहाॉ
याग औय कहाॉ ववयाग॥६२॥
बावनाबावनासतता अऻानी की दृक्ष्ट सदा बाव The mind of the fool is always
caught in an opinion about
दृक्ष्टभूभढस्म सवभदा। मा अबाव भें रगी यहती है , becoming or avoiding something,
बाव्मबावनमा सा तु ऩय धीय ऩुरुष तो दृश्म को but the wise man's nature is to have
no opinions about becoming and
स्वस्थस्मादृक्ष्टरूवऩणी॥१८- दे खते यहने ऩय बी आत्भ
avoiding.॥63॥
६३॥ स्वरूऩ को दे खने के कायण
कुछ नहीॊ दे खती॥६३॥

सवाभयॊबेषु तनष्काभो जो धीय ऩुरुष सबी कामों भें For the seer who behaves like a
child, without desire in all actions,
मश्चये द् फारवन ् भुतन्। एक फारक के सभान there is no attachment for such a
न रेऩस्तस्म शुद्धस्म तनष्काभ बाव से व्मवहाय pure one even in the work he
कक्रमभाणोऽवऩ कभभणण॥१८- कयता है , वह शुद्ध है औय does.॥64॥

६४॥ कभभ कयने ऩय बी उससे


मरप्त नहीॊ होता॥६४॥

स एव धन्म आत्भऻ् वह आत्भऻानी धन्म है जो Blessed is he who knows himself and


is the same in all states, with a mind
सवभबावेषु म् सभ्। सबी क्स्थततमों भें सभान free from craving whether he is
ऩश्मन ् शण्ृ वन ् स्ऩश
ृ न् यहता है । दे खते, सुनते, छूते, seeing, hearing, feeling, smelling or
क्जघ्रन्न ् सॊघ
ू ते औय खाते-ऩीते बी tasting.॥65॥

अश्नक्न्नस्तषभभानस्॥१८- उसका भन काभना यहहत


६५॥ होता है ॥६५॥

तव सॊसाय् तव चाबास् धीय ऩरु


ु ष सदा आकाश के There is no man subject tosamsara,
sense of individuality, goal or means
तव साध्मॊ तव च साधनॊ। सभान तनववभकल्ऩ यहता to the goal for the wise man who is
आकाशस्मेव धीयस्म है । उसकी दृक्ष्ट भें सॊसाय always free from imaginations, and
तनववभकल्ऩस्म सवभदा॥१८- कहाॉ औय उसकी प्रतीतत unchanging as space.॥66॥

६६॥ कहाॉ? उसके मरए साध्म


तमा औय साधन
तमा?॥६६॥
स जमत्मथभसॊन्मासी क्जस सन्मासी को अऩने Glorious is he who has abandoned
all goals and is the incarnation of
ऩूणस्
भ वयसववग्रह्। अखॊड स्वरुऩ भें सदा satisfaction, his very nature, and
अकृबत्रभोऽनवक्च्छन्ने स्वाबाववक रूऩ से सभाचध whose inner focus on the
Unconditioned is quite
सभाचधमभस्म वतभते॥१८- यहती है , जो ऩूणभ स्वानॊद
spontaneous.॥67॥
६७॥ स्वरूऩ है , वही ववजमी
है ॥६७॥

फहुनात्र ककभुततेन फहुत कहने से तमा राब? In brief, the great-souled man who
has come to know the Truth is
ऻाततत्त्वो भहाशम्। भहात्भा ऩुरुष बोग औय without desire for either pleasure or
बोगभोऺतनयाकाॊऺी भोऺ दोनों की इच्छा नहीॊ liberation, and is always and
everywhere free from
सदा सवभत्र नीयस्॥१८- कयता औय सदा-सवभत्र
attachment.॥68॥
६८॥ यागयहहत होता है ॥६८॥

भहदाहद जगद्द्वैतॊ भहतत्त्व से रेकय सम्ऩूणभ What remains to be done by the


man who is pure awareness and has
नाभभात्रववजॊमृ बतॊ। द्वैतरूऩ दृश्म जगत नाभ abandoned everything that can be
ववहाम शुद्धफोधस्म भात्र का ही ववस्ताय expressed in words from the highest
ककॊ कृत्मभवमशष्मते॥१८- है । शुद्ध फोध स्वरुऩ धीय heaven to the earth itself?॥69॥

६९॥ ने जफ उसका बी ऩरयत्माग


कय हदमा कपय बरा उसका
तमा कतभव्म शेष है ॥६९॥
भ्रभबत
ृ मभदॊ सवं मह सम्ऩूणभ दृश्म जगत भ्रभ The pure man who has experienced
the Indescribable attains peace by
ककॊचचन्नास्तीतत तनश्चमी। भात्र है , मह कुछ नहीॊ है - his own nature, realizing that all
अरक्ष्मस्पुयण् शुद्ध् ऐसे तनश्चम से मुतत ऩुरुष this is nothing but illusion, and that
स्वबावेनैव शाम्मतत॥१८- दृश्म की स्पूततभ से बी nothing is.॥70॥

७०॥ यहहत हो जाता है औय


स्वबाव से ही शाॊत हो जाता
है ॥७०॥

शुद्धस्पुयणरूऩस्म जो शुद्ध स्पुयण रूऩ है , There are no rules, dispassion,


renunciation or meditation for one
दृश्मबावभऩश्मत्। क्जसे दृश्म सत्तावान नहीॊ who is pure receptivity by nature,
तव ववचध् तव वैयाग्मॊ भारूभ ऩड़ता, उसके मरए and admits no knowable form of
तव त्माग् तव शभोऽवऩ ववचध तमा, वैयाग्म तमा, being?॥71॥

वा॥१८- ७१॥ त्माग तमा औय शाॊतत बी


तमा॥७१॥

स्पुयतोऽनन्तरूऩेण जो अनॊत रूऩ से स्वमॊ For him who shines with the
radiance of Infinity and is not
प्रकृततॊ च न ऩश्मत्। स्पुरयत हो यहा है औय subject to natural causality there is
तव फन्ध् तव च वा प्रकृतत की ऩथ
ृ क् सत्ता को neither bondage, liberation,
भोऺ् नहीॊ दे खता है , उसके मरए pleasure nor pain.॥72॥

तव हषभ् तव ववषाहदता॥१८- फॊधन कहाॉ, भोऺ कहाॉ, हषभ


७२॥ कहाॉ औय ववषाद कहाॉ॥७२॥
फुद्चधऩमभन्तसॊसाये फुद्चध के अॊत तक ही Pure illusion reigns in samsara
which will continue until self
भामाभात्रॊ वववतभते। सॊसाय है औय मह केवर realisation, but the enlightened man
तनभभभो तनयहॊ कायो भामा का वववतभ है , इस lives in the beauty of freedom from
me and mine, from the sense of
तनष्काभ् शोबते फुध्॥१८- तत्त्व को जानने वारा responsibility and from any
७३॥ फुद्चधभान भभता, अहॊ काय attachment. ॥73॥
औय काभना से यहहत होकय
शोमबत होता है ॥७३॥

अऺमॊ गतसन्ताऩ- जो भतु न सॊताऩ से यहहत For the seer who knows himself as
imperishable and beyond pain there
भात्भानॊ ऩश्मतो भन
ु े्। अऩने अववनाशी स्वरुऩ को is neither knowledge, a world nor
तव ववद्मा च तव वा जानता है , उसके मरए the sense that I am the body or the
ववश्वॊ ववद्मा कहाॉ औय ववश्व कहाॉ body mine.॥74॥

तव दे होऽहॊ भभेतत वा॥१८- अथवा दे ह कहाॉ औय भैं-भेया


७४॥ कहाॉ॥७४॥

तनयोधादीतन कभाभणण जड़ फुद्चध वारा महद No sooner does a man of low


intelligence give up activities like
जहातत जडधीमभहद। तनयोध आहद कभों को छोड़ the elimination of thought than he
भनोयथान ् प्रराऩाॊश्च दे ता है तो अगरे ऺण फड़े- falls into mental chariot racing and
कतभ
ुभ ाप्नोत्मतत्ऺणात ्॥१८- फड़े भनोयथ फनाने औय babble.॥75॥

७५॥ प्रराऩ कयने रगता है ॥७५॥


भन्द् श्रत्ु वावऩ तद्वस्तु अऻानी तत्त्व का श्रवण A fool does not get rid of his
stupidity even on hearing the truth.
न जहातत ववभूढताॊ। कयके बी अऩनी भूढ़ता का He may appear outwardly free from
तनववभकल्ऩो फहहमभत्नाद- त्माग नहीॊ कयता, वह फाह्म imaginations, but inside he is
न्तववभषमरारस्॥१८- ७६॥ रूऩ से तो तनसॊकल्ऩ हो hankering after the senses still.॥76॥

जाता है ऩय उसके अॊतभभन


भें ववषमों की इच्छा फनी
यहती है ॥७६॥

ऻानाद् गमरतकभाभ ऻान से क्जसका कभभ-फॊधन Though in the eyes of the world he
is active, the man who has shed
मो रोकदृष््मावऩ कभभकृत ्। नष्ट हो गमा है , वह action through knowledge finds no
नाप्नोत्मवसयॊ कभं रौककक रूऩ से कभभ कयता means of doing or speaking
वततुभेव न ककॊचन॥१८- यहे तो बीउसके कुछ कयने anything.॥77॥

७७॥ मा कहने का अवसय नहीॊ


यहता (तमोंकक वह अकताभ
औय अवतता है )॥७७॥

तव तभ् तव प्रकाशो वा जो धीय सदा तनववभकाय औय For the wise man who is always
unchanging and fearless there is
हानॊ तव च न ककॊचन। बम यहहत है , उसके मरए neither darkness nor light nor
तनववभकायस्म धीयस्म अन्धकाय कहाॉ, प्रकाश कहाॉ destruction, nor anything.॥78॥
तनयातॊकस्म सवभदा॥१८- औय त्माग कहाॉ? उसके
७८॥ मरए ककसी का अक्स्तत्व
नहीॊ यहता॥७८॥
तव धैमं तव वववेककत्वॊ मोगी को धैमभ कहाॉ, वववेक There is neither fortitude, prudence
nor courage for the yogi whose
तव तनयातॊकतावऩ वा। कहाॉ औय तनबभमता बी nature is beyond description and
अतनवाभच्मस्वबावस्म कहाॉ? उसका स्वबाव free of individuality.॥79॥
तन्स्वबावस्म मोचगन्॥१८- अतनवभचनीम है औय वह
७९॥ वस्तुत् स्वबाव यहहत
है ॥७९॥

न स्वगो नैव नयको मोगी के मरए न स्वगभ है , There is neither heaven nor hell nor
even liberation during life. In a
जीवन्भुक्ततनभ चैव हह। न नयक औय न nutshell, in the sight of the seer
फहुनात्र ककभत
ु तेन जीवन्भक्ु तत ही। इस nothing exists at all.॥80॥
मोगदृष््मा न ककॊचन॥१८- सम्फन्ध भें अचधक कहने से
८०॥ तमा राब है मोग की दृक्ष्ट
से कुछ बी नहीॊ है ॥८०॥

नैव प्राथभमते राबॊ धीय का चचत्त ऐसे शीतर He neither longs for possessions nor
grieves at their absence. The calm
नाराबेनानश
ु ोचतत। यहता है जैसे वह अभत
ृ से mind of the sage is full of the nectar
धीयस्म शीतरॊ चचत्तभ- ऩरयऩूणभ हो। वह न राब की of immortality.॥81॥
भत
ृ ेनैव ऩूरयतभ ्॥१८- ८१॥ आशा कयता है औय न हातन
का शोक॥८१॥

न शान्तॊ स्तौतत तनष्काभो धीय ऩरु


ु ष न सॊत की स्ततु त The dispassionate does not praise
the good or blame the wicked.
न दष्ु टभवऩ तनन्दतत। कयता है औय न दष्ु ट की Content and equal in pain and
सभद्ु खसुखस्तप्ृ त् तनॊदा। वह सख
ु -दख
ु भें pleasure, he sees nothing that
ककॊचचत ् सभान, स्वमॊ भें तप्ृ त यहता needs doing.॥82॥

कृत्मॊ न ऩश्मतत॥१८- ८२॥ है । वह अऩने मरए कोई बी


कतभव्म नहीॊ दे खता॥८२॥
धीयो न द्वेक्ष्ट सॊसायभा- धीय ऩुरुष न सॊसाय से द्वेष The wise man does not dislike
samsara or seek to know himself.
त्भानॊ न हददृऺतत। कयता है औय न आत्भ- Free from pleasure and impatience,
हषाभभषभववतनभत
ुभ तो न दशभन की इच्छा। वह हषभ he is not dead and he is not
भत alive.॥83॥
ृ ो न च जीवतत॥१८- औय शोक से यहहत
८३॥ है । रौककक दृक्ष्ट से वह न
तो भत
ृ है औय न
जीववत॥८३॥

तन्स्नेह् ऩुत्रदायादौ जो धीय ऩुरुष ऩुत्र-स्त्री आहद The wise man stands out by being
free from anticipation, without
तनष्काभो ववषमेषु च। के प्रतत आसक्तत से यहहत attachment to such things as
तनक्श्चन्त् स्वशयीये ऽवऩ होता है , ववषम की उऩरक्ब्ध children or wives, free from desire
for the senses, and not even
तनयाश् शोबते फुध्॥१८- भें उसकी प्रववृ त्त नहीॊ होती,
concerned about his own body.॥84॥
८४॥ अऩने शयीय के मरए बी
तनक्श्चन्त यहता है , सबी
आशाओॊ से यहहत होता है ,
वह सुशोमबत होता है ॥८४॥

तुक्ष्ट् सवभत्र धीयस्म जहाॉ सूमाभस्त हुआ वहाॊ सो Peace is everywhere for the wise
man who lives on whatever happens
मथाऩतततवततभन्। मरमा, जहाॉ इच्छा हुई वहाॊ to come to him, going to wherever
स्वच्छन्दॊ चयतो दे शान ् यह मरमा, जो साभने आमा he feels like, and sleeping wherever
मत्रस्तमभतशातमन्॥१८- उसी के अनस
ु ाय व्मवहाय the sun happens to set.॥85॥

८५॥ कय मरमा। इस प्रकाय धीय


सवभत्र सॊतष्ु ट यहता है ॥८५॥
ऩततूदेतु वा दे हो नास्म जो अऩने आत्भस्वरुऩ भें Let his body rise or fall. The
great souled one gives it no thought,
चचन्ता भहात्भन्। ववश्राभ कयते हुए सबी having forgotten all
स्वबावबूमभववश्राक्न्त- प्रऩॊचों का नाश कय चक
ु ा है , about samsara in coming to rest on
ववस्भत the ground of his true nature.॥86॥
ृ ाशेषसॊसत
ृ े्॥१८- उस भहात्भा को शयीय यहे
८६॥ अथवा नष्ट हो जामे - ऐसी
चचॊता बी नहीॊ होती॥८६॥

अककॊचन् काभचायो ऻानी ऩुरुष सॊग्रह यहहत, The wise man has the joy of being
complete in himself and without
तनद्भवन्द्वक्श्छन्नसॊशम्। स्वच्छॊ द, तनद्भवन्द्व औय possessions, acting as he pleases,
असतत् सवभबावेषु सॊशम यहहत होता है । वह free from duality and rid of doubts,
and without attachment to any
केवरो यभते फध
ु ्॥१८- ८७॥ ककसी बाव भें आसतत नहीॊ
creature.॥87॥
होता। वह तो केवर आनॊद
से ववहाय कयता है ॥८७॥

तनभभभ् शोबते धीय् धीय ऩुरुष की ह्रदम ग्रॊचथ The wise man excels in being
without the sense of 'me'. Earth, a
सभरोष्टाश्भकाॊचन्। खर
ु जाती है , यज औय तभ stone or gold are the same to him.
सुमबन्नरृदमग्रक्न्थ- नष्ट हो जाते हैं। वह मभ्टी The knots of his heart have been
rent asunder, and he is freed from
ववभतनधत
ूभ यजस्तभ्॥१८- ८८॥ के ढ़े रे, ऩत्थय औय सोने को
greed and blindness.॥88॥
सभान दृक्ष्ट से दे खता है ,
भभता यहहत वह सश
ु ोमबत
होता है ॥८८॥

सवभत्रानवधानस्म न जो इस दृश्म प्रऩॊच ऩय Who can compare with that


contented, liberated soul who pays
ककॊचचद् वासना रृहद। ध्मान नहीॊ दे ता, आत्भ no regard to anything and has no
भत
ु तात्भनो ववतप्ृ तस्म तप्ृ त है , क्जसके ह्रदम भें desire left in his heart?॥89॥
तर
ु ना केन जामते॥१८- जया सी बी काभना नहीॊ
८९॥ होती - ऐसे भत
ु तात्भा की
तर
ु ना ककसके साथ की जा
सकती है ॥८९॥

जानन्नवऩ न जानातत काभनायहहत धीय के Who but the upright man without
desire knows without knowing, sees
ऩश्मन्नवऩ न ऩश्मतत। अततरयतत ऐसा औय कौन है without seeing and speaks without
ब्रव
ु न्न ् अवऩ न च ब्रत
ू े जो जानते हुए बी न जाने, speaking?॥90॥
कोऽन्मो तनवाभसनादृते॥१८- दे खते हुए बी न दे खे औय
९०॥ फोरते हुए बी न फोरे॥
९०॥

मबऺुवाभ बऩ
ू ततवाभवऩ मो याजा हो मा यॊ क, जो काभना Beggar or king, he excels who is
without desire, and whose opinion
तनष्काभ् स शोबते। यहहत है वह ही सश
ु ोमबत of things is rid of 'good' and
बावेषु गमरता मस्म होता है । क्जसकी दृश्म 'bad'.॥91॥
शोबनाशोबना भतत्॥१८- वस्तुओॊ भें शुब औय अशुब
९१॥ फुद्चध सभाप्त हो गमी है
वह तनष्काभ है ॥९१॥

तव स्वाच्छन्द्मॊ तव मोगी तनष्कऩट, सयर औय There is neither


dissolutebehaviour nor virtue, nor
सॊकोच् चरयत्रवान होता है । उसके even discrimination of the truth for
तव वा तत्त्वववतनश्चम्। मरए स्वच्छॊ दता तमा, the sage who has reached the goal
and is the very embodiment of
तनव्माभजाजभवबूतस्म सॊकोच तमा औय तत्त्व
guileless sincerity.॥92॥
चरयताथभस्म मोचगन्॥१८- ववचाय बी तमा॥९२॥
९२॥
आत्भववश्राक्न्ततप्ृ तेन जो अऩने स्वरुऩ भें ववश्राभ How can one describe what is
experienced within by one
तनयाशेन गताततभना। कयके तप्ृ त है, आशा यहहत desireless and free from pain, and
अन्तमभदनुबूमेत तत ् है , द्ु ख यहहत है , वह अऩने content to rest in himself - and of
कथॊ कस्म कथ्मते॥१८- अन्त् कयण भें क्जस आनॊद whom?॥93॥

९३॥ का अनुबव कयता है वह


कैसे ककसी को फतामा जा
सकता है ॥९३॥

सुप्तोऽवऩ न सुषुप्तौ च धीय ऩुरुष ऩद-ऩद ऩय तप्ृ त The wise man who is contented in
all circumstances is not asleep even
स्वप्नेऽवऩ शतमतो न च। यहता है । वह सोकय बी नहीॊ in deep sleep, not sleeping in a
जागये ऽवऩ न जागततभ सोता, वह स्वप्न दे खकय बी dream, nor waking when he is
धीयस्तप्ृ त् ऩदे ऩदे ॥१८- नहीॊ दे खता औय जाग्रत awake.॥94॥

९४॥ यहने ऩय बी नहीॊ


जगता॥९४॥

ऻ् सचचन्तोऽवऩ तनक्श्चन्त् धीय ऩुरुष चचन्तावान होने The seer is without thoughts even
when thinking, without senses
सेक्न्द्रमोऽवऩ तनरयक्न्द्रम्। ऩय बी चचॊतायहहत होता है , among the senses, without
सुफुद्चधयवऩ तनफुभद्चध् इक्न्द्रम मुतत होने ऩय बी understanding even in
understanding and without a sense
साहॊ कायोऽनहङ्कृतत्॥१८- इक्न्द्रम यहहत होता है , of responsibility even in the
९५॥ फुद्चध मुतत होने ऩय बी ego.॥95॥
फुद्चध यहहत होता है औय
अहॊ काय सहहत होने ऩय बी
अहॊ काय यहहत होता है ॥९५॥
न सुखी न च वा द्ु खी धीय ऩुरुष न सुखी होता है A man with tranquil mind isneither
happy nor unhappy, neither
न ववयततो न सॊगवान ्। औय न दख
ु ी, न ववयतत detached nor attached. He is
न भुभुऺुनभ वा भुतता होता है औय न neither seeking liberation nor
liberated. He is nothing of these,
न ककॊचचन्न्न च अनुयतत। वह न भुभुऺु है
nothing of these.॥96॥
ककॊचन॥१८- ९६॥ औय न भुतत। वह कुछ नहीॊ
है , कुछ नहीॊ है ॥९६॥

ववऺेऩेऽवऩ न ववक्षऺप्त् धीय ऩुरुष ववऺेऩ भें A man with tranquil mind does not
get distracted by disturbances, in
सभाधौ न सभाचधभान ्। ववक्षऺप्त नहीॊ होता, सभाचध meditation he does not meditate. A
जाड्मेऽवऩ न जडो धन्म् भें सभाचधस्थ नहीॊ blessed man neither gains stupidity
by his worldly acts, nor does he gets
ऩाक्ण्डत्मेऽवऩ न होता। उसकी रौककक जड़ता
wisdom.॥97॥
ऩक्ण्डत्॥१८- ९७॥ भें वह जड़ नहीॊ है औय
ऩाॊडडत्म भें ऩॊडडत नहीॊ
है ॥९७॥

भत
ु तो मथाक्स्थततस्वस्थ् धीय ऩरु
ु ष सबी क्स्थततमों भें A man with tranquil mind remains
established in his self. Being without
कृतकतभव्मतनवत
भ ृ ्। अऩने स्वरुऩ भें क्स्थत any duty, he is at peace. He is
सभ् सवभत्र वैतष्ृ ण्मान्न यहता है । कतभव्म यहहत होने always the same.As he is without
greed, he does not recall what he
स्भयत्मकृतॊ कृतभ ्॥१८- से शाॊत होता है । सदा
has done or not done.॥98॥
९८॥ सभान यहता है । तष्ृ णा
यहहत होने के कायण वह
तमा ककमा औय तमा नहीॊ -
इन फातों का स्भयण नहीॊ
कयता॥९८॥
न प्रीमते वन्द्मभानो वॊदना कयने से वह प्रसन्न He is neither pleased when praised
nor gets upset when blamed. He is
तनन्द्मभानो न कुप्मतत। नहीॊ होता, तनॊदा कयने से neither afraid of death nor attached
नैवोद्ववजतत भयणे क्रोचधत नहीॊ होता। भत्ृ मु से to life.॥99॥
जीवने नामबनन्दतत॥१८- उद्वेग नहीॊ कयता औय
९९॥ जीवन का अमबनन्दन नहीॊ
कयता॥९९॥

न धावतत जनाकीणं शाॊत फुद्चध वारा धीय न तो A man at peace does not run off to
popular resorts or to the forest.
नायण्मॊ उऩशान्तधी्। जनसभूह की ओय दौड़ता है Wherever, he remains in whatever
मथातथा मत्रतत्र औय न वन की ओय। वह condition he exists with a tranquil
सभ एवावततष्ठते॥१८- जहाॉ क्जस क्स्थतत भें होता mind.॥100॥

१००॥ है , वहाॊ ही सभचचत्त से


आसीन यहता है ॥१००॥

Nineteenth Chapter / नवदश अध्माम

अष्टावक्र
अष्टावक्र गीता(हहॊदी Ashtavakra Gita
गीता(भर

बावानुवाद) (English)
सॊस्कृत)

जनक उवाच- याजा जनक कहते हैं - तत्त्व- King Janak says - Using the
hook of self-knowledge,
तत्त्वववऻानसन्दॊ श- ववऻान की चचभटी द्वाया thorns of variousopinions
भादाम रृदमोदयात ्। ववमबन्न प्रकाय के सझ
ु ावों have extracted out from
नानाववधऩयाभशभ- रूऩी काॉटों को भेये द्वाया inside of heart by me.॥1॥

शल्मोद्धाय् कृतो रृदम के आन्तरयक बागों


भमा॥१९- १॥ से तनकारा गमा॥१॥
तव धभभ् तव च वा अऩनी भहहभा भें क्स्थत भेये There are no righteousness
and duty, no objective or
काभ् मरए तमा धभभ है औय तमा discretion, no duality or
तव चाथभ् तव वववेककता। काभ है , तमा अथभ है औय non-duality for me, who is
तव द्वैतॊ तव च तमा वववेक है , तमा द्वैत है established in Self.॥2॥

वाऽद्वैतॊ औय तमा अद्वैत है ?॥२॥


स्वभहहक्म्न क्स्थतस्म
भे॥१९- २॥

तव बूतॊ तव बववष्मद् अऩनी भहहभा भें क्स्थत भेये There is no past, future or
present, there is no space
वा मरए तमा अतीत है औय तमा or time for me , who is
वतभभानभवऩ तव वा। बववष्म है औय तमा वतभभान established in Self.॥3॥
तव दे श् तव च वा ही है , तमा दे श है औय तमा
तनत्मॊ कार है ?॥३॥
स्वभहहक्म्न क्स्थतस्म
भे॥१९- ३॥

तव चात्भा तव च अऩनी भहहभा भें क्स्थत भेये There is no self or non-self,


nothing auspicious or evil,
वानात्भा मरए तमा आत्भा है औय तमा no thought or absence of
तव शुबॊ तवाशुबॊ तथा। अनात्भा है तथा तमा शब
ु them for me, who is
तव चचन्ता तव च औय तमा अशुब है , तमा established in Self.॥4॥

वाचचन्ता ववचायमुतत होना है औय तमा


स्वभहहक्म्न क्स्थतस्म तनववभचाय होना है ?॥४॥
भे॥१९- ४॥

तव स्वप्न् तव अऩनी भहहभा भें क्स्थत भेये There are no states as


dreams or sleep or waking.
सुषुक्प्तवाभ मरए तमा स्वप्न है औय तमा There is no fourth state
तव च जागयणॊ तथा। सुषुक्प्त तथा तमा जागयण है 'Turiya' beyond these, and
no fear for me , who is
तव तुरयमॊ बमॊ वावऩ औय तमा तुयीम अवस्था है
established in Self.॥5॥
स्वभहहक्म्न क्स्थतस्म अथवा तमा बम ही है ?॥५॥
भे॥१९- ५॥
तव दयू ॊ तव सभीऩॊ वा अऩनी भहहभा भें क्स्थत भेये There is nothing distant or
near, nothing within or
फाह्मॊ मरए तमा दयू है औय तमा without, nothing large or
तवाभ्मन्तयॊ तव वा। ऩास है तथा तमा फाह्म है subtle for me, who is
तव स्थर
ू ॊ तव च वा औय तमा आतॊरयक है , तमा established in Self.॥6॥

सूक्ष्भॊ स्थर
ू है औय तमा सूक्ष्भ
स्वभहहक्म्न क्स्थतस्म है ?॥६॥
भे॥१९- ६॥

तव भत्ृ मुजीववतॊ वा तव अऩनी भहहभा भें क्स्थत भेये There is no life or death,
not this world or any outer
रोका् मरए तमा भत्ृ मु है औय तमा world, no annihilation or
तवास्म तव रौकककॊ। जीवन है तथा तमा रौककक meditative state for
me, who is established in
तव रम् तव सभाचधवाभ है औय तमा ऩायरौककक है ,
Self.॥7॥
स्वभहहक्म्न क्स्थतस्म तमा रम है औय तमा सभाचध
भे॥१९- ७॥ है ?॥७॥

अरॊ बत्रवगभकथमा अऩनी आत्भा भें तनत्म For me who has taken
eternal refuge in Self,
मोगस्म कथमाप्मरॊ। क्स्थत भेये मरए जीवन के discussion on three goals of
अरॊ ववऻानकथमा तीन उद्दे श्म तनयथभक हैं , मोग life is useless, discussion
on yoga is
ववश्रान्तस्म ऩय चचाभ अनावश्मक है औय useless, discussion
भभात्भतन॥१९- ८॥ ववऻानॊ का वणभन अनावश्मक onknowledge is
है ॥८॥ useless.॥8॥

Twentieth Chapter / ववॊश अध्माम

अष्टावक्र अष्टावक्र गीता(हहॊदी Ashtavakra Gita


गीता(भर
ू सॊस्कृत) बावानव
ु ाद) (English)
जनक उवाच - याजा जनक कहते हैं - भेये King Janak says: In
stainless Self, there are
तव बूतातन तव दे हो वा तनष्करॊक स्वरुऩ भें ऩाॉच no five matter-elements
तवेक्न्द्रमाणण तव वा भन्। भहाबूत कहाॉ हैं मा शयीय कहाॉ or body, no sense organs
or mind, no emptiness
तव शून्मॊ तव च नैयाश्मॊ है औय इक्न्द्रमाॉ मा भन कहाॉ
or despair.॥1॥
भत्स्वरूऩे तनयॊ जने॥२०-१॥ हैं, शून्म कहाॉ है औय तनयाशा
कहाॉ है ॥१॥

तव शास्त्रॊ तवात्भववऻानॊ सदा सबी प्रकाय के द्वॊद्वों से For me who is ever free
from dualism, there are
तव वा तनववभषमॊ भन्। यहहत भेये मरए तमा शास्त्र हैं no scriptures or self-
तव तक्ृ प्त् तव ववतष्ृ णत्वॊ औय तमा आत्भ-ऻान अथवा knowledge, no attached
mind, no satisfaction or
गतद्वन्द्वस्म भे सदा॥२०- तमा ववषम यहहत भन ही है ,
desire-lessness.॥2॥
२॥ तमा प्रसन्नता है मा तमा
सॊतोष है ॥२॥

तव ववद्मा तव च वाववद्मा तमा ववद्मा है मा तमा There is no knowledge


or ignorance, no 'me',
तवाहॊ तवेदॊ भभ तव वा। अववद्मा, तमा भैं है मा तमा 'this' or 'mine', no
तव फन्ध तव च वा भोऺ् वह है औय तमा भेया है , तमा bondage or liberation,
and no characteristic of
स्वरूऩस्म तव रूवऩता॥२०- फॊधन है औय तमा भोऺ है मा
self-nature.॥3॥
३॥ स्वरुऩ का तमा रऺण है ॥३॥

तव प्रायब्धातन कभाभणण तमा प्रायब्ध कभभ हैं औय तमा In unchanging me, there
is no fateful actions or
जीवन्भक्ु ततयवऩ तव वा। जीवन भक्ु तत है , सवभदा liberation during life
तव तद् ववदे हकैवल्मॊ ववशेषता(ऩरयवतभन) से यहहत and no bodiless
तनववभशष
े स्म सवभदा॥२०- ४॥ भझ
ु भें तमा शयीयहीन कैवल्म enlightenment.॥4॥

है ॥४॥
तव कताभ तव च वा बोतता सदा स्वबाव से यहहत भुझभें Without a nature, there
is no doer or reaper of
तनक्ष्क्रमॊ स्पुयणॊ तव वा। कौन कताभ है औय कौन actions, no inaction or
तवाऩयोऺॊ परॊ वा तव बोतता, तमा तनक्ष्क्रमता है action, nothing visible
तन्स्वबावस्म भे सदा॥२०- औय तमा कक्रमाशीरता, तमा or invisible.॥5॥

५॥ प्रत्मऺ है औय तमा
अप्रत्मऺ॥५॥

तव रोकॊ तव भुभुऺुवाभ अऩने अद्वम (दस


ू ये से यहहत) Established as non-dual
reality, there is no
तव मोगी ऻानवान ् तव वा। स्वरुऩ भें क्स्थत भेये मरए तमा world or desire for
तव फद्ध् तव च वा सॊसाय है औय तमा भुक्तत की liberation, no yogi or
seer, no-one bound or
भुतत् इच्छा, कौन मोगी है औय कौन
liberated.॥6॥
स्वस्वरूऩेऽहभद्वमे॥२०- ६॥ ऻानी, कौन फॊधन भें है औय
कौन भुतत॥६॥

तव सक्ृ ष्ट् तव च सॊहाय् अऩने अद्वम (दस


ू ये से यहहत) Established as non-dual
reality, there is no
तव साध्मॊ तव च साधनॊ। स्वरुऩ भें क्स्थत भेये मरए तमा creation or annihilation,
तव साधक् तव मसद्चधवाभ सक्ृ ष्ट है औय तमा प्ररम, तमा what is to be achieved
or what are the means,
स्वस्वरूऩेऽहभद्वमे॥२०- ७॥ साध्म है औय तमा साधन, who is seeker and what
कौन साधक है औय तमा is achievement.॥7॥
मसद्चध है ॥७॥

तव प्रभाता प्रभाणॊ वा ववशुद्ध भुझभें कौन ऻाता है There is no knower or


evidence, nothing
तव प्रभेमॊ तव च प्रभा। औय तमा प्रभाण (साक्ष्म) है , knowable or knowledge,
तव ककॊचचत ् तव न ककॊचचद् तमा ऻेम है औय तमा ऻान, nothing less or non-less
वा सवभदा ववभरस्म भे॥२०- तमा स्वल्ऩ है औय तमा in forever pure Self.॥8॥

८॥ सवभ॥८॥
तव ववऺेऩ् तव चैकाग्र्मॊ सदा तनक्ष्क्रम भुझभें तमा There is no distraction
or focus, no right
तव तनफोध् तव भूढता। अन्मभनस्कता है औय तमा discrimination or
तव हषभ् तव ववषादो वा एकाग्रता, तमा वववेक है औय delusion, no joy or
sorrow in always action-
सवभदा तनक्ष्क्रमस्म भे॥२०- तमा वववेकहीनता, तमा हषभ है
less Self.॥9॥
९॥ औय तमा ववषाद॥९॥

तव चैष व्मवहायो वा सदा ववचाय यहहत भेये मरए There is not this world
or the other, no
तव च सा ऩयभाथभता। तमा सॊसाय है औय तमा happiness or suffering
तव सुखॊ तव च वा दख
ु ॊ ऩयभाथभ, तमा सुख है औय तमा for Self, who is eternally
तनववभभशभस्म भे सदा॥२०- द्ु ख॥१०॥ free from thoughts.॥10॥

१०॥

तव भामा तव च सॊसाय् सदा ववशुद्ध भेये मरमा तमा There is no Maya or


world, no attachment or
तव प्रीततववभयतत् तव वा। भामा है औय तमा सॊसाय, तमा detachment, no living
तव जीव् तव च तद्ब्रह्भ प्रीतत है औय तमा ववयतत, तमा beings or that God for
सवभदा ववभरस्म भे॥२०- जीव है औय तमा वह forever pure Self.॥11॥

११॥ ब्रह्भ॥११॥

तव प्रववृ त्ततनभववभ ृ त्तवाभ अचर, ववबागयहहत औय सदा For me who is forever


unmovable and
तव भक्ु तत् तव च फन्धनॊ। स्वमॊ भें क्स्थत भेये मरए तमा indivisible, established
कूटस्थतनववभबागस्म प्रववृ त्त है औय तमा तनववृ त्त, in Self, there is no
tendency or
स्वस्थस्म भभ सवभदा॥२०- तमा भक्ु तत है औय तमा renunciation, no
१२॥ फॊधन॥१२॥ liberation or
bondage.॥12॥

तवोऩदे श् तव वा शास्त्रॊ ववशेषण यहहत, कल्माण रूऩ, There is no sermon or


scripture, no disciple or
तव मशष्म् तव च वा गरु
ु ्। भेये मरए तमा उऩदे श है औय guru, nothing is to be
तव चाक्स्त ऩुरुषाथो वा तमा शास्त्र, कौन मशष्म है औय achieved for ever
blissful and non-special
तनरुऩाधे् मशवस्म भे॥२०- कौन गरु
ु , औय तमा प्राप्त
Self.॥13॥
१३॥ कयने मोग्म ही है ॥१३॥
तव चाक्स्त तव च वा तमा है औय तमा नहीॊ, तमा There is no existence or
non-existence, no non-
नाक्स्त अद्वैत है औय तमा द्वैत, अफ duality or duality. What
तवाक्स्त चैकॊ तव च द्वमॊ। फहुत तमा कहा जामे, भुझभें more is there to say?
Nothing arises out of
फहुनात्र ककभुततेन कुछ बी(बाव) नहीॊ उठता
me.॥14॥
ककॊचचन्नोवत्तष्ठते भभ॥२०- है ॥१४॥
१४॥

You might also like