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PLOT OF THE PLAY

एक बहुत ही ईमानदार, पररश्रमी और साहसी हे ड मास्टर को ग्राम में एक प्राथममक स्कूल के मलए ट् ाां सफर
लेटर ममलता है मिससे उन्हें पता चलता की उनका तबादला हररश्चांद्र प्राथममक मिद्यालय में करा मदया गया है
िो "बैगनी" मिले के "सतयु ग" गाां ि में स्तिथ है | "बैगनी" मिला िो मक बेहद गरीब और सबसे कम मिकमसत
है उसी मिले में "सतयुग" गाां ि बसा है मक अपने आप में भारत का सबसे अच्छा गााँ ि है । "सतयुग" गाां ि
सिवश्रेष्ठ सड़कें, 100 प्रमतशत साक्षरता, पूर्व स्वच्छता और मिद् युतीकरर्, सिवश्रेष्ठ स्वास्थ्य सुमिधाएां आमद हैं ।
यह बात मिश्व प्रमसद्ध है और इसकी मिकास पररयोिनाओां को राष्ट््ीय और अां तराव ष्ट््ीय एिें मसयोां से सै कड़ोां
करोड़ की सहायता ममलती है । िैसा मक उन्हें बताया गया था मक यह मॉडल गााँ ि है , और िो िहााँ तक पहुाँ चने
के मलए उत्सुक हैं , लेमकन िब मास्टर िी "बैगनी" मिले में पहुाँ चते हैं , तो िह इसे एक सुनसान िगह पाते हैं |
मकसी "सतयुग" गााँ ि और उसके स्थान का पता नहीां होता और मास्टर िी को यह दे खकर आश्चयव होता है
मक इस क्षे त्र में कोई भी समाचार पत्र को पढ़ने में भी पयाव प्त साक्षर नहीां है , और पररर्ामस्वरूप सतयुग नाम
के एक गाां ि के बारे में भी कभी नहीां सुना है । मास्टर िी गााँ ि को खोिने में कोई कसर नहीां छोड़ते , लेमकन
अांततः खोिने में असफल रहते हैं । इसके बाद िह मिला बेमसक मशक्षा अमधकारी और मिला ममिस्ट् े ट के
पास िाता है , लेमकन उसे सही नहीां माना िाता है और िे उसकी ईमानदारी और उसके मानमसक सां तुलन
सिाल उठाते हैं ।
इससे मायूस होकर, मास्टर ने मामले को आगे बढ़ाने का फैसला लेते हैं , और राज्य की रािधानी में पहले
मशक्षा समचि, PWD के महामनदे शक, मसांचाई मिभाग के प्रभारी समचि और अांत में चीफ मिमिलेंस कममश्नर
से मामले की िानकारी दे ते हैं । सब से ममलने के बाद, उसे सच्चाई का पता चलता है । उन्होांने महसूस मकया
मक िािि में , "सतयुग" नाम का कोई गााँ ि है ही नहीां| सारे नौकरशाह कई अरबोां के घोटाले में शाममल हैं
और दु मनया भर को मुखव बना रहे हैं और गााँ ि के नाम पर आने िाले सारे धन को अपने मनिी इिेमाल में ला
रहे हैं यह सब बस कागि पर है , सभी सड़कें, स्कूल, नहरें सब कुछ कागि पर है | गााँ ि के सभी मनिासी,
और अमधकारी केिल कागि पर हैं | मास्टर का पता चलता हैं मक एक क्लेररकल गलती के कारर्, मास्टर
िी, मिन्हें िािि में "सतपु र" में स्थानाां तररत मकया िाना था, "सतयुग" में स्थानाां तररत हो िाते है | िह सभी
अमधकाररयोां के द्वारा अपमामनत होता है और उसे इस हद तक मनराशा होती है मक िह आस्तखर में पागल हो
िाता है | ऐसा हमारे सामने रोि होता है और हम एक मूक दशव क की तरह दे खते रहते है और कुछ नहीां
कहते | इस मूक दशवक का नाम है "आम आदमी"| िो रोि ब रोि नौकरशाहोां द्वारा लूटा िाता है िह एक
शब्द भी नहीां बोल सकता| बस हमारे पास होती है तो बस एक उम्मीद मक शायद एक मदन सब ठीक होगा
और और हम सचमुच एक सतयुग गााँ ि िैसा दे श दे ख पाएां गे |
दृश्य-1
(स्टेज सजाया जा रहा है, इस बीच, सेंटर स्टेज में कॉमन मैन (आर. के . लक्ष्मण), अपना कोट पहनकर, खाने की
पानी की बोतल जैसी चीज़ों को कु छ ससक्क़ों आदद को अपने झोल में डालते हुए)

(पुराने स्कू ल, ग्राम पपपल का दृश्य)

मास्टर जी: (कागज का एक टुकडा पढ़ता है, मुस्कु राता है, उसे अपनी जेब में डाल लेता है) अछा सरपंच जी, अब
चसलए! आप लोगन को छोड के जाए का मन के तो सबलकु ल नहीं है, पर का करे , अब नौकरी ही ऐसी है।
सरपंच जी: मास्टर जी, का कउनो तरीक़ा नै है सजससे आप यहााँ रुक जायें, कहैं तो कहं बात-वात करके आपका
तबादला रुकवा ददया जाए|

मास्टर जी: अरे!! सरपंच जी, कम से कम आप तो ऐसी बात नहीं करें , आप तो जानते ही हैं सिक्षा क्षेत्र में ये सब
तो चलता ही रहता है| अब तबादला हुआ है, जाना तो पडेगा ही| यहां का काम खत्म, वहां का िूरू, है ना?

सरपंच जी: मास्टर जी, बात दरअसल यह है, की आप जहां जात हैं, वो तो ठहरा मॉडल सवलेज सतयुग, वहााँ तो
पहले से ही सब सिसक्षत हैं, वहााँ आपकी क्या जरुरत?

MJ: अरे भाई, नई प्रजा को ससखाना-पढ़ाना भी तो जरूरी है न, काम तो हर जगह है, क्य़ों सरपंच जी?

गुलरी: मास्टर जी, आप जो हमाए यहां समाज सुधार का काम दकये हैं, उक्को हम कभी न भुला पाएंगे| अगर आप
ना होते, तो िायद आज हमरी सबटटया अपने ससुराल में जल के मर चुकी होती| और आप यहां ना आते तो गुलरी
के बापू आज भी गलत रे ल गासडया पर ही बैठा करते और झुट्ठे परे सान होते| आपने यहां छोटो के साथ साथ हम
बडो को भी पढ़ाने का काम दकया है उससे हमाई जजंदगी सुधार दीन हैं आप| (भेट स्वरुपआगे बढ़ के एक फल़ों
की टोकरी मास्टरजी को देती है)

MJ: हााँ तो खरपट्टु , जो जो सिक्षा हमसे पाए हो, हमेिा याद रखना, साधारण सलखाई-पढाई से कहीं ज़्यादा
जरूरी है धमप सिक्षा, कभी अधमी न होना|

SJ: चसलए मास्टर जी, कौनो बात नहीं, आप जाएाँ मॉडल सवलेज सतयुग, उहााँ तो कौनो ददक्कत्ते नहीं हैं| रहे, खाये,
सपए का एकदम सही जगह है| ना कउनो सडक, सबजली, पानी की ददक्कत और ना कोई न बीमारी की परसानी,
ऊ ददन, ई सुरेसवा अख़बार पढ़ के बतावत रहा, के दफर इकठे पुरस्कार दीन हैं कें द्र सरकार सतजुग के | ‘ग्रामीण
जहंदस्ु तान की सान’ का नाम दीन है सतजुग के |

MJ: वह सब तो ठीक है, पर पूरे बारह साल यहां आप लोग़ों के बीच काम करने के बाद, मन सनराि तो है ही|
पर पेट चलाने के सलए जहां सकापर भेजेगी वहीं जाना पडेगा, चाहे मॉडल हो न हो| अच्छा जी, सब लोग़ों को
नमस्ते, (Children run to touch his feet, SJ garlands him, two kids cry) अरे , अरे , ठीक है, मर थोडी रहे हैं
भाइयो| दफर मुलाक़ात जरूर होगी! (Walks away slowly)

(एक व्यसि के सभी सदस्य़ों में बीच में मौजूद है, जब सीन खत्म होता है उसके बाद वह दूसरे छोर की ओर चलना
िुरू करता है, और मास्टर जी और सीएम एक दूसरे को क्रॉस करते हैं, मास्टर जी अपनी जेब से कागज का टुकडा
सीएम के झोला में डालते हैं)

दृश्य दो-

(सरकारी दफ्तर- चार नौकरिाह जचंसतत बैठे हैं और आपस में चचाप कर रहे हैं)

मकई बाबू: अरे , जय गोजवंद महाकसव जी, ये पूरी की पूरी आपकी गलती है! उस पर "सतयुग" पढ़ने के बाद भी
आप पत्र पर हस्ताक्षर कै से कर सकते थे| हम फं स चुके हैं, हे भगवान !
ससद्दीकी : और मैं आपको बताता हं, ये मास्टर बाडा ही टेढ़ा आदमी है! हर बात पर तो हमारे कमीिन पहुाँच
जाता है, अब ये बैगनी पहुंचेगा और सतयुग ढू ंढेगा और हमरी हराम कर देगा|

जय गोजवंद- (आधे पागलपन में, उत्सासहत होकर) लेदकन लोग, बस सचट्ठी के प्रारूप को देखते हैं, ओह! ओह्ह!
क्लाससक, मैं आपको बताता हं (दत्तासाहब बीच में बोलने लगते हैं)

दत्ता: क्या तुम चुप होगा बाबा? ये जो सारा आलम है, ये तुम्हारा मेहरबानी है! (जय गोजवंद बीच में बोलने लगते
हैं)

जय गोजवंद: आहा ! क्या तुकबंदी !! (दत्ता ससद्दद्दकी के चेहरे पर एक थप्पड मरकर उसे चुप करा देते हैं )

दत्ता: यह ससद्दीकी हमेिा ही ऐसा गलती करता और इससलए हम इसको कभी भी इस प्लान में नहीं चाहता था|
अपना िायरी को बंद कटरये, कु छ काम करने दीसजए| आसखरकार, एक ही मास्टर ही तो है, ज़्यादा से ज़्यादा
क्या कर लेगा, हम, पागल बनाकर छोड देंगे उसे और हम तो ‘पावरफु ल हैं’ ही!

(कॉमन मन के झोले से एक एक करके ब्यूरोक्रेट, संवाद बोलते बोलते, आकर कोइ समन सनकल कर ले जात है,
और वो चुप चुप खडा देखता रहता है)

दृश्य तीन: (तहसील, तहसील का बस अड्डा, बैगनी सजला)

तांगव
े ाला : आवा, आवा, बाबू आवा, बइठा, कहााँ जइबा?

MJ: सतयुग ले चलो, भैया|

(घोडा हाँसता है, हाहाहाहाहा)

तांगव
े ाला: हा हा, अरे बाबू, सतयुग तो सभी को जाना है, सतयुग तो युगो युगो से हर इंसान चाह रहा है, पर
यह इंसान ही है, जो सतयुग बनने नहीं देता|

MJ: बनने नहीं देता?

तांगव
े ाला: हााँ, बाबू, सतयुग की तो हमाई अम्मा, हुमाई दादी से खूब सुनी हमने|

MJ: हााँ, भाई, अब ले तो चलो न हमे सतयुग|

तांगव
े ाला: अरे बाबू, कमाल करते हो, कहााँ तीन युग पीछे लेकर चलें, काहे मजा ले रहे हैं हमसे?

MJ: अबे जाओ यार!!! नहीं ले जाना तो मना कर दो| हम खुद चले जायेंगे (एक गााँव वाले से जो दीवार पर पेिाब
कर रहा है) अरे , सुसनए जरा भैया|

गॉंवाला : जी बाबू, बताइये?

MJ: भैया ये सतयुग कहााँ पडेगा?


गााँववाला : हांए, आप तो पढ़े सलखे लगते हो बाबू, बेहदा सवाल पूछ के हम मूखो का मजाक उडा रहे हो| इस
घोर कलयुग में सतयुग का पता आप जैसे ज्ञासनओं को नहीं, तो हम अनपढ़़ों को कहााँ से पता होगा!

MJ: अरे कमाल करते हैं आप, मई आपसे सतयुग मॉडल गाओं के बारे में पूछ रहा हाँ, और आप मेरा मजाक बना
रहे हैं|

गांववाला: नहीं, नहीं, बाबू, मजाक नहीं, हमे पताही नहीं था न की सतयुग कोई गााँव भी है, यहां आस पास तो
कहीं इस नाम का कोई गााँव नहीं|

MJ: अरे, मुझे तो सरकारी सचट्ठी पे पता सलखकर ददया गया है गांव: सतयुग, तहसील: तहसीलवा, सजला: बैगनी!

टााँगेवाला: (बीच में बोल पडता है) सुना ho बाबू, आप पढ़े सलखे आदमी हैं, आपको हम मूखो पर सवस्वास होगा
नहीं, आप ई सचट्ठी पत्तर ही मानेंगे| पर दफर भी तस्सली के सलए, आइये बैटठए, आपको इधर उधर पुछवा देते
हैं|

MJ: चलो चलो, हम भी तुमको ददखवा देते है, दक गांव है भी, और बडा ऊाँचा गााँव है!

TT: हेहह
े ,े बाबू, ऊ थोडा हमरा धन्न्ना अलसा जाता है न इसीसलए!!! अच्छा, आप तब तक पूसछए यहां सब से,
कोई जानता है की नहीं, हाहा, सतयुग के बारे में|

MJ: अरे , सुनो दादा, (एक गांववाले से)

गााँववाला2 : जी!

MJ: ये सतयुग के बारे में जानते हैं?

V2: कौन सतयुग, सुल्तानगंज वाले सतयुग राय?

MJ: अरे , नहीं नहीं, गांव सतयुग|

V2: नहीं बाबू, सतयुग तो नहीं, पर यहां ये चन्न्दरु गांव है, थोडी आगे, पत्थर पहाड है, और उस तरफ जामपुर है,
सुत्तनपुर है पर सतयुग तो कभी नहीं सुना|

MJ: अरे , बडे बेवक़ू फ़ लोग हैं यहां के , आपके यहां का गााँव, दुसनया भर में मिहर है और आप लोग खुद ही नहीं
जानते की ऊ कहााँ है| अखबार अखबार नहीं पढ़ते हैं क्या आप लोग?

TT: ओ, बाबू, हमारी मूखपता का मजाक मत उडाना, हमारी मजबूरी है की हम मूखप हैं, पर हम बेवक़ू फ़ सबलकु ल
नहीं, ज्यादा बकै ती मत करो, तुम्हे उस गााँव में काम क्या है?

MJ: अरे भई मै वहााँ के मॉडल स्कू ल में हेड मास्टर सनयुि हुआ हाँ|

TT: (हाँसते हुए) लेओ, भैया!! अब पूछो कौन है बेवकू फ, पढ़ा सलखा बेवक़ू फ़ !!! तो भैया मास्टरजी , आप हैं उच्च
कोटट के बौडम आदमी!! यहां आस पास मॉडल तो छोसडये, एक्को स्कू लै नहीं ना ठीक? और जउन है ऊ सलवा बंद
पडा है,और आपके जैसे मास्टर लोग सरकारी तनख्वा मुफ्त में पेल रहे हैं| ऊपर से जब सतयुग गााँव ही नहीं तो
मॉडल स्कू ल काह से होगा| अरे , ई मस्टरवा पगलेट है भैया| चलो भैया !!! चलो चलो !!

(कॉमन मन देखता रहता है)

दृश्य: चार

डीएम का कायापलय

क्लकप : बताइये |

MJ: हमको डीएम से समलना है|

क्लकप : नहीं है। काल अपॉइंटमेंट लेकर आना।

MJ: देसखए, हम ने उन्न्हें अभी अंदर जाते देखा है। मेरा अंदर जाना बहुत जरुरी है।

क्लकप : अरे !! क्य़ों समलाना है भाई ?

[मास्टर जी बरगलाते हैं]

क्लकप : अरे भैया, खाला जी का घर समझे है क्या?

डीएम: हााँ ???

MJ: सर, मैं प्रथसमक हर ... (डीएम रोक देता है)

डीएम: क्या आपके पास अपॉइंटमेंट है?

एमजे: नहीं सर, लेदकन……

डीएम: सनकलो यहााँ से.... पहले अपॉइंटमेंट लो दफर समलने के सलए आना । मैं क्या इधर दुकान खोल के बैठा हाँ?

MJ: पर साहब...

डीएम: नहीं, नहीं, नहीं ... बाहर सनकलो।

MJ: सर, सतयुग में......

डीएम: [रोकते हुए] सतयुग? सतयुग का क्या?

MJ: यही तो मसला है सर मुझे सतयुग नहीं समल रहा है, मुझे सतयुग गांव के हटरश्चंद्र सवद्यालय में हेडमास्टर के
रूप में टरपोटप करना था, लेदकन यहााँ कोई नहीं जानता दक गााँव कहााँ है।

डीएम: हां....तो..मैं इसके बारे में क्या सकता हं? मैंने ट्रेवल एजेंसी नहीं खोली है? जाओ और पोस्ट मास्टर से
पूछो दक तुम यहााँ क्य़ों आये हो?
MJ: साहब, यहााँ कोई "सतयुग" के बारे में नहीं जनता| मैं सतयुग को ढू ंढ ढू ंढ के थक गया| हमे लगता है "सतयुग"
है ही नहीं!

डीएम: सतयुग है ही नहीं, है ही नहीं का क्या मतलब है? सरकार इस पर करोड़ों रुपये खचप कर रही है, UN से
लेकर दुसनया की बडी बडी एजेंससयां, सतयुग में चल रही पटरयोजनाओं को पुरस्कृ त कर रही है! मीसडया इस गााँव
के बारे में दकतना ददखती है| "सतयुग" एक मॉडल गांव है और दुसनया भर में मिहर है और आप कहते हैं दक
यह गााँव है ही नहीं ? क्या आप न्न्यूजपेपर नहीं पढ़ते हैं? अगर हमारे देि के अध्यापक़ों की ऐसी हालत है, तो ईश्वर
ही जानता है दक इस देि का क्या होगा|

MJ: सर, कृ पया मेरे टैलेंट पे िक मत कीसजए| आप इस सजले के प्रिासक हैं, जब सजले के लोग "सतयुग" के बारे
में नहीं जानते हैं, मैं तो पहली बार आया हाँ| मेरा सवश्वास कटरये, भसवष्य बहुत उज्ज्वल होगा अगर आप गॉंव को
खोजने में मेरी मदद करें गे तो| अब तो बता दीसजये न सर दक गांव कहााँ है?

डीएम: मास्टरजी मैं डीएम हाँ, और इसके अलावा मेरे पास और भी बहुत जरुरी काम हैं| तुम पागल हो मास्टर|
तुम्हे तो पागल खाने में होना चासहए था|

एमजे: वास्तव में सवद्यालय है ही नहीं सर...

डीएम: प्लीज, प्लीज, अब और नहीं, आपकी बकवास नहीं सुनी मुझे। अब दफा हो यहााँ से | (उसे दरवाजा ददखाता
है)

दृश्य: पांच

[मास्टरजी राज्य की राजधानी में]

मास्टरजी की एंट्री होती है....

क्लकप : दकस्से समलना है?

मास्टरजी: जी, सिक्षा ससचव से,.....हमारी अपॉइंटमेंट है!

क्लकप : अरे तो अपॉइंटमेंट से ही सबसे सासहब समलने लगें तोह कै से चलेगा मास्टरजी, आप तो सब समझतें हैं!
(हांथ़ों को मलते हुए)

मास्टरजी: सबसे भले ही ना समलते हो, हमसे समलेंगे!

क्लकप : जाइये दफर आपकी मजी| पर बाद में दफर...

(मास्टरजी अंदर चले जाते हैं तब तक)

(अंदर कोई नहीं होता, मास्टरजी क्लकप के पास वापस आ जाते हैं)

मास्टरजी क्लकप से: अंदर तो सासहब नहीं है?


क्लकप : प्रोसेस नहीं फॉलो होगा, तोह ससचव जी अदृश्य रहेंगे ( मजादकया अंदाज में)|

(मास्टरजी कु छ पैसे सनकल के दे देते हैं) अब जाइये! ससचव जी, अंदर ही ह़ोंगे |

महाकसव: हााँ, तुम्हें क्या कष्ट है? क्या मैं उसका सनवारण कर सकता हाँ?

मास्टरजी: सर, मैं हटरश्चंद्र सवद्यालय, सतयुग का नया हेडमास्टर हं। (महाकसव बीच में रोक देता है)

महाकसव: क्या यह आपकी समस्या है?

मास्टरजी: सर, दरअसल ददक्कत यह है दक हम गए तो थे पोस्ट पर, लेदकन हमको मिहर मॉडल सवलेज सतयुग
ही नहीं समला।

महाकसव: क्या बात करते हो? आपकी खोज में कु छ कमी रह गई है, मेरे दोस्त! जीवन एक सफर है, आपको अके ले
ही जाना पडेगा। मुझे डर है, मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता|

मास्टरजी: सर, हम गए थे बैगनी वो भी अकले| पर हमको सतयुग गााँव समला ही नहीं| मुझे लगता है, यह गांव
है ही नहीं|

महाकसव: न, न, न.... मेरे सप्रय दोस्त, तुम बहुत मासूम हो| तुम फू ल पर पडी ओस की बूाँद की तरह हो सजसे सूयप
के सनकलते ही अपने सवलुप्त हो जाने का डर रहता है| मुझे जहााँ तक समझ आता है, यह पथ के सनमापताओं की
िरारत है| वो तुम्हे भ्रसमत करना चाहते हैं| गलती उनकी और सजा तुम्हे समली| मेरी संवेदनाएं तुम्हारे साथ हैं|

मास्टरजी: दकसकी गलती है?

महाकसव: गांव का रास्ता बनाने वाल़ों की, सजन्न्ह़ोंने इतनी बडी बडी सबजल्डंग्स बना दीं पर एक गाओं का रसता
सही तरीके से नहीं बना सके |

एमजे: हायें....मतलब?

महाकसव: गुलाब दकतना भी खूबसूरत हो लेदकन हमेिा याद रखना उसमे कांटें भी होते हैं| बेिक PWD |

मास्टरजी: PWD?

महाकसव: यक़ीनन मेरे सप्रय दोस्त| मुझे पूरी उम्मीद है दक तुम मेरा इिारा समझ रहे ह़ोंगे| मुझे पूरी उम्मीद है
की तुम इस बार अपने सववेक का इस्तेमाल करोगे| इससलए मेरे मासूम मास्टरजी, मैं इन बेदफजूल बात़ों में अपना
और समय जाया नहीं करूाँगा| अब आप रवानगी डासलये| चसलए अब (दरवाजे की और इिारा करता है) | और
हााँ मास्टरजी, मेरे नए गीत की प्रसत साथ लेते जाओ, रस्ते में काम आएगी|

पीडब्ल्यूडी में

क्लकप : जी!

MJ: दत्ता साहब से समलने, सिक्षा ससचव जी ने भेजा है।


क्लकप : अच्छा, अच्छा, आप मास्टर जी ह़ोंगे| साहब अंदर ही हैं | आप बस कु छ फोमपसलटी पूरी कर दीसजये| (अपने
हथेसलय़ों को रगडता है)

मास्टरजी: तुम सब एक जैसे हो| (उसे पैसे देता है)

क्लकप : आप सब भी तो एक जैसे हैं| क्यूाँ मास्टर जी?

मास्टरजी: मैं सब जैसा नहीं!

क्लकप : दफर तो आपको ही परे िानी होगी|

(मास्टरजी चलता है)

दत्ता: हााँ! मास्टरजी |

मास्टरजी: सर, जैसा दक आपको सूसचत दकया गया है।

दत्ता: हााँ हााँ मुझे पता है, लेदकन मुझे लगता है दक आप दफर से गलत जगह आ गए हैं| अरे भाई आजकल सडसजटल
इंसडया का जमाना है| आप अपने सलए एक जीपीएस नेसवगेटर खरीदें| हम मानसचत्र प्रासधकरण नहीं हैं जो
आपको रास्ता ददखाते रहे।

मास्टरजी: लेदकन सर.....

दत्ता: क्या लेदकन सर?

मास्टरजी: सतयुग गांव को िहर से जोडने वाली कोई सडक नहीं है और न ही कोई संकेत है?

दत्त: कोई संकेत नहीं ???? क्या कोई संकेत नहीं ???? मास्टरजी आपको देखकर इतना संकेत जरूर समल रहा है
दक हेडमास्टर के तौर पे जॉइन करने के मूड में सबलकु ल नहीं हैं| लगातार दफसड्डी से बहाने बनाकर हमे मुखप
बनाना चाहते हैं| आप सरासर झूठ बोल रहे हैं दक हमारा ड्रीम प्रोजेक्ट "सतयुग" है ही नहीं | मैंने खुद सतयुग
गााँव को जाने वाली फोर लेन का सनमापण कराया है| एक बार जब आप बैगनी सजले को जाने वाली सडक से दाईं
हाथ का पहला मोड सतयुग कोई और जाता है| अब मुझे तुम्हारी एक भी बकवास नहीं चासहए!

मास्टरजी: नहर? कौन सी नहर? मैं बैगनी सजले से ही तो आया लेदकन एक भी नहर नहीं ददखाई दी |

दत्ता: मास्टर तुम्हारी बकवास सुनने के बाद ऐसा लगता है दक तुम्हारा मानससक संतल
ु न सहल गया है| तुम खुद
तो पागल हो ही साला हमे भी पागल कर दोगे| भाई मुझे नहर के बारे में कै से पता होगा| क्या आपको पता नहीं
की नहर बनाने का काम ससचाई सवभा का है| भगवन के सलए मुझे माफ़ करो,मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर
पाउाँ गा| दफा हो जाओ यहााँ से|

ससचाई सवभाग-

क्लकप : जाओ, जाओ, मास्टरजी, अंदर जाओ |


मकाई बाबू: (फोन पर बात करते हुए) मेन सब सही कर ददया है, अब कोई भांडा नहीं फू टने वाला | आल इज
वेल डार्लिंग | क्या मलतब? आल का मतलब आल | डार्लिंग अभी मुझे फ़ोन रखना पडेगा| अब इंतजार नहीं
होता डार्लिंग ! कब िाम आयेगी| हम कब समलेंगे ?? लेदकन एक बात तो है, इंतजार का पाना ही मजा है|
हाहाहाहाहा .... मुआहहहाआह....... िाम में समलते हैं, टेक के यर। (फोन रखता है)

मास्टरजी : सर, पीडब्लूडी वाले डॉ. दत्ता ने गााँव सतयुग, सजला बैगनी की जानकारी लेने के सलए आपके पास
भेजा है |

मकई बाबू: - क्य़ों, क्य़ों, क्य़ों, सतयुग में कौन रहता है? मैंने एक बार इस जगह का दौरा दकया, आप जैसे फटरश्त़ों
के सलए सजला बैगनी एक रे सगस्तान से काम नहीं है। दकसी हरी भरी जगह का पता पूसछए| आप
सतयुग.....मास्टरजी बीच में बोल पडते हैं)

मास्टरजी: सर, सर, सर, बात यह है दक मुझे गााँव सतयुग के हटरश्चंद्र प्राथसमक सवद्यालय के हेडमास्टर के रूप में
भेजा गया है!

मकई बाबू: अरे बाप रे , आप वहां नहीं जाएं तो ज्यादा अच्छा होगा|

मास्टरजी: सर, आप ऐसा क्य़ों कह रहे हैं?

मकई बाबू:: ओह! क्षमा करें मास्टरजी अगर मैंने आपकी मदापनगी को कहीं ठे स पहुंचे हो तो |

मास्टरजी: - दरअसल, मुझे नहर के बारे में .... (रोकने की कोसिि)

एमबी: - रोकते हुए......नहर !!! एक समनट, मैं आपको बताता हाँ दक इस िहर में आपको सबसे खूसरू त नहर कहां
समलेगी | आप सतयुग जैसी जगह पर अपनी मदापनगी क्य़ों बबापद करने जा रहे हैं| गााँव सतयुग तो मॉडल सवलेज
है लेदकन वहााँ की मसहलाओं की संख्या बहुत कम है| िादी लायक उम्र हो गई है| बाकी आपकी मजी, मेरा काम
था बताना|

मास्टरजी: क्या आप अपनी हरकत़ों से बाज आएंगे? क्या आप मुझे पागल समझते हैं? मैं बस यह जानना चाहता
हं दक नहर कहां है .. (मकई बाबू रोकने की कोसिि करता है, लेदकन मास्टरजी आगे बोलते जाते है) .. जसंचाई
वाली नहर ..!

मकई बाबू: अरे करना क्या उस नहर का आपको?

मास्टरजी: अरे सरकार, वह नहर जो सतयुग गााँव के खेत़ों को सींचती है | वह मुझे मेरी पोजस्टंग की जगह ले जा
सकती है!

मकई बाबू: - जस्ट सचल, मास्टरजी !! मैंने अपने पूरे जीवन में कई नहऱों का सनमापण दकया कराया और कई नहऱों
को चौडा भी करवाया | हाहाहाहाहा। लेदकन......इस बात का अफ़सोस है दक मैं अब आपकी मदद नहीं कर
सकता| ऑदफस बंद होने का टाइम हो गया| चसलए| (तेजी से मस्टरजी को बहार लेके जाता है)
सवसजलेंस कमीिन में:

क्लकप - अरे , नमस्कार मास्टरजी ,प्लीज,आप ये फॉमप भर दीसजये|

मास्टरजी: जी, अच्छा| (अच्छे बतापव से मास्टरजी गवप महसूस करते हैं)

क्लकप : जी फॉमप के साथ कु छ चढ़ावा ?

मास्टरजी: भई, सच में तुम सब एक जैसे हो| लो! अब जाएाँ, वनाप दफर बोलोगे दक आज का टाइम खत्म हो गया|
(अंदर जाते हैं)

ससद्दीक साहब: अरे , मास्टर जी, काहे गरम हो रहे है? आइये बैटठये| आपके साथ और जगह ऐसा होता होगा
लदकन हमारा तो आप जानते ही हैं| जनता दक सेवा हमारा कतपव्य है| कसहये क्या लेंग,े ठं डा या गरम?

मास्टर जी: बडी मेहरबानी, ससद्दीकी साहब, सपछले दो-चार ददऩों से बैगनी से लेकर राजधानी तक, हर दफ्तर
पर एसडयां सघस सघस गईं| जहााँ पोजस्टंग हुई है, वह जगह समल जाये, बस इतना चासहए| हम गंगा नाहा लेंगे
बस......

ससद्दीकी साहब: अरे , वो सब मसले तो अभी सनपटा लेंगे, भई पहले ये बताइये की समा रं गीन कै से हो?

मास्टर जी: अरे , ससद्दीकी साहब, आप तो जानते ही हैं, मैं अभी जल्दी में ....(ससद्दीकी रोक देता है)

ससद्दीकी साहब: भई मास्टर जी, आप अवध में हैं और िाम-ए-अवध तो रं गीन होनी चासहए| माफ़ी चाहंगा दक
ददन का समय ददया था लेदकन आज ददन भर मुझे इक पल की भी फु सपत नहीं समली, कसम खुदा की| (चपरासी
से- भई ... फु सफु साते हुए)

मास्टर जी: हााँ हााँ, पर पहले जरा मुद्दे की बात.... (ससद्दीकी रोक देता है)

सवसजलेंस कमीिन में:

क्लकप - अरे , नमस्कार मास्टरजी ,प्लीज,आप ये फॉमप भर दीसजये|

मास्टरजी: जी, अच्छा| (अच्छे बतापव से मास्टरजी गवप महसूस करते हैं)

क्लकप : जी फॉमप के साथ कु छ चढ़ावा ?

मास्टरजी: भई, सच में तुम सब एक जैसे हो| लो! अब जाएाँ, वनाप दफर बोलोगे दक आज का टाइम खत्म हो गया|
(अंदर जाते हैं)

ससद्दीक साहब: अरे , मास्टर जी, काहे गरम हो रहे है? आइये बैटठये| आपके साथ और जगह ऐसा होता होगा
लदकन हमारा तो आप जानते ही हैं| जनता दक सेवा हमारा कतपव्य है| कसहये क्या लेंग,े ठं डा या गरम?
मास्टर जी: बडी मेहरबानी, ससद्दीकी साहब, सपछले दो-चार ददऩों से बैगनी से लेकर राजधानी तक, हर दफ्तर
पर एसडयां सघस सघस गईं| जहााँ पोजस्टंग हुई है, वह जगह समल जाये, बस इतना चासहए| हम गंगा नाहा लेंगे
बस...

ससद्दीकी साहब: अरे , वो सब मसले तो अभी सनपटा लेंगे, भई पहले ये बताइये की समा रं गीन कै से हो?

मास्टर जी: अरे , ससद्दीकी साहब, आप तो जानते ही हैं, मैं अभी जल्दी में ....(ससद्दीकी रोक देता है)

ससद्दीकी साहब: भई मास्टर जी, आप अवध में हैं और िाम-ए-अवध तो रं गीन होनी चासहए| माफ़ी चाहंगा दक
ददन का समय ददया था लेदकन आज ददन भर मुझे इक पल की भी फु सपत नहीं समली, कसम खुदा की| (चपरासी
से- भई ... फु सफु साते हुए)

मास्टर जी: हााँ हााँ, पर पहले जरा मुद्दे की बात.... (ससद्दीकी रोक देता है)

ससद्दीकी साहब: अरे, कम्मल करते हैं जनाब, इस दफे हमारे पास पहुाँचने में इतनी देर क्यूं कर दी आपने, जबदक
मामला आपका ख़़ुदा का है? भई दूसऱों के मामल़ों मे तो आप कतई देर नहीं करते| बडी तकलीफ हुई हमे सचट्ठी
पढ़ के | लगा की दुसनया भर के लोग़ों के झमाट-झमेले सनपटाने वाले मास्टर जी, जग आज खुद इतनी परिानी मैं
है तो कहीज सुनवाई नहीं हो रही| मैं उन तमाम अफसऱों की इस बदसलूकी के तह-ए-ददल से िर्मिंदा हाँ|

मास्टरजी: नहीं, नहीं साहब, िर्मिंदा न होइए, हो सके तो आप जल्द से जल्द हमारा यह मामला सनपटा दीसजये|

ससद्दीकी साहब : भई, बुरा मानने की बात नहीं है, मास्टरजी, वैसे इस झमेले को तो आपने खुद यहां तक पहुाँचाया
है| क्या जरुरत थी.......

मास्टरजी: ओहो!! जरूरत क्या थी| तो यह बात है, CVC सासहब |मई ही गधा था जो आप की आस लगाए बैठा
था| तो आप भी बराबर के भागीदार है इस काण्ड के ??? क्य़ों ?

ससद्दीकी साहब: भई आप इतना गरम ना होइए, आपके सलए भी जो है...

मास्टरजी: बस बस भैया... आगे और कु छ ना कहना, नहीं बडी ददक्कतें हम पैदा कर देंगे|

ससद्दीकी साहब: (गुस्सा हो जाता है और अपनी टोन तुरंत चेंज कर देता है) ददक्कतें !!! ओ मास्टर !! तू

हमारी बख्िी इज़्जत का कु छ ज़्यादा ही इस्तेमाल नहीं कर रहे हो??? साले!! दो टके के मास्टर, हर जगह से तुमको
लात मार कर भगाया गया, हमने तुम्हारे भले के सलए कहना चाहा तो तुम, अब.....सर पर चढ़ के मूतोगे|
हैं......औकात क्या है बे तुम्हारी,,और तुम जैसे हर एक की??? हैं!! ददक़्क़तें तो अब मास्टर तुम्हारे सलए हम पैदा
करें ग|े ऐसी लात मारें गे की साले दफर जजंदगी में नहीं संभल पाओग|

तुम सनष्काससत दकये जाते हो| अब पूछो क्य़ों... तो भैया... सब को बताएाँगे की तुम हो दर हरामी | तुम पाक
साफ़ अफसऱों और मंसत्रय़ों पर दकसी बडे ससयासी खेल के तहत... घटटया इलजाम लगाकर रुपये ऐठना चाहते
हो| खुद हो काम चोर, और ड्यूटी पर ना जाने के बम बौडम बहाने बना कर हमारे पीछे पड गए हो! दरअसल
तुम पागल हो |सनकलो साले यहााँ से .......
मास्टरजी: हाहा.....हाहाहाहाहा....हाहाहाहा.....(पागल़ों की तरह हाँसता और उसके बाद रोने लगता है)

(सारे दकरदार इकट्ठे होते हैं, कॉमन मैन कोने में खडा देख रहा होता है, से दकरदार मास्टरजी को घेर के उसे
गासलयां देना िुरू कर देते हैं)

मास्टरजी: (पागलो की तरह रोता है) भई वाह .. मैं पगल हं .... पर ........ (कॉमन मैन की और इिारा करता
है) तुमने पागल दकया है मुझे ......साले।

(डायलाग िुरू होते ही हर कोई स्टेज से उतर जाता है)

कोने में खडे खडे देख देख कर मजा लूटने के बजाये अगर तुम कु छ करते ... तो ना का खुद लुटे होते और ना साला
हम पगलाए होते ..... बेटा हम पागल भले हैं लेदकन तुम......तुम एक नंबर के बेवकू फ हो....बैल हो तुम लोग| ये
चार चूसतये समलकर तुम्हारा काट रहे हैं और तुम कटवा रहे हो........ हाहाहाहाहाहा…....अबे बौडम़ों जागो
......जागो.....इससे पहले के यह कु छ हरामखोर अफसर तुम सबको मेरे जैसा बना दें| अगर ऐसा हो गया तो
दुसनया में ससफप दो ही दकस्मे बचेंगी..... इक हरासमय़ों की.....और दूसरी पागल़ों की ... हाहाहा हाहाहा (रोता है,
बारी-बारी से हंसता है, और धीरे -धीरे भटकता है)|

(कॉमन मैन अपने झोला को उल्टा घुमाता है और उसमें कु छ ढू ंढता है, लेदकन उसमे कु छ नहीं होता| सनकलता है
तो ससफप मास्टर जी का ददया हुआ कागज सजसमे "HOPE" सलखा होता है| कॉमन मैन उसे दिपक़ों को ददखाता है,
उसे मोड के वापस अपने झोला में डाल के चल देता है)

THE END

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