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जटा टवी गलज्जल प्रवाह पाववतस्थले वियै वचराय जायताां चकोर बन्धुिेखरः गजान्त कान्ध कान्त कां तमन्त कान्त कां
।।५।। भजे ।।१०।।
गले ऽवलम्ब्य लम्बिताां भुजङ्ग तुङ्ग
मावलकाम् ।
चकार चण्डताण्डवां तनोतु नः विवः वनपीत पञ्चसायकां नमविवलम्प नायकम् । जयत् वदभ्र ववभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस
विवम् ।।१।।
सुर्ा मयू खले खया ववराजमानिेखरां विवनगव मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल
हव्यवाट् ।
महाकपावलसम्पदे विरो जटालमस्तु नः
जटा कटा हसांभ्रम भ्रमविवलम्प वनर्वरी ।।६।। वर्वमम्बद्धवमम्बद्धवमध्वनन्मृदङ्गतु ङ्गमङ्गल
ध्ववनक्रमप्रववतवत प्रचण्डताण्डवः विवः
ववलो लवी वचवल्लरी ववराजमान मूर्ववन ।
।।११।।
र्गद् र्गद् र्गज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके कराल भाल पवट्टका र्गद् र्गद्
र्गज्ज्वल, द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड
वकिोर चन्द्र िे खरे रवतः प्रवतक्षणां
पञ्चसायके । स्पृषविवचत्रतल्पयोभुवजङ्गमौम्बिकस्रजोर् -
मम:।।२।।
र्रा र्रे न्द्र नम्बिनी कुचाग्र वचत्रपत्रक गररष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृविपक्षपक्षयोः ।
प्रसून र्ू वलर्ोरणी ववर्ू स राङ् वि पीठभूः । रस प्रवाह मार्ु री ववजृां भणा मर्ु व्रतम् ।