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ॐ ।। शिव ताण्डव स्तोत्रम् ।। ॐ भुजङ्ग राजमालया वनबद्ध जाटजूटक स्मरान्तकां पुरान्तकां भवान्तकां मखान्तकां

जटा टवी गलज्जल प्रवाह पाववतस्थले वियै वचराय जायताां चकोर बन्धुिेखरः गजान्त कान्ध कान्त कां तमन्त कान्त कां
।।५।। भजे ।।१०।।
गले ऽवलम्ब्य लम्बिताां भुजङ्ग तुङ्ग
मावलकाम् ।

डमड्डमड्डमड्डमविनाद वड्डमवव यां ललाट चत्वरज्वलद् र्नञ्जयस्फुवलङ्गभा ॐ

चकार चण्डताण्डवां तनोतु नः विवः वनपीत पञ्चसायकां नमविवलम्प नायकम् । जयत् वदभ्र ववभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस
विवम् ।।१।।
सुर्ा मयू खले खया ववराजमानिेखरां विवनगव मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल
हव्यवाट् ।
महाकपावलसम्पदे विरो जटालमस्तु नः
जटा कटा हसांभ्रम भ्रमविवलम्प वनर्वरी ।।६।। वर्वमम्बद्धवमम्बद्धवमध्वनन्मृदङ्गतु ङ्गमङ्गल
ध्ववनक्रमप्रववतवत प्रचण्डताण्डवः विवः
ववलो लवी वचवल्लरी ववराजमान मूर्ववन ।
।।११।।
र्गद् र्गद् र्गज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके कराल भाल पवट्टका र्गद् र्गद्
र्गज्ज्वल, द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड
वकिोर चन्द्र िे खरे रवतः प्रवतक्षणां
पञ्चसायके । स्पृषविवचत्रतल्पयोभुवजङ्गमौम्बिकस्रजोर् -
मम:।।२।।
र्रा र्रे न्द्र नम्बिनी कुचाग्र वचत्रपत्रक गररष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृविपक्षपक्षयोः ।

प्रकल्प नैक विम्बल्पवन वत्रलोचने रवतमवम तृ ष्णारवविचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः


र्रा र्रे न्द्र नांवदनी ववलास बन्धु बन्धु रस्
।।७।।
समप्रवृ वत्तकः कदा सदाविवां भजाम्यहम्
फुरद् वदगन्त सन्तवत प्रमोद मानमानसे ।
।।१२।।
कृपा कटाक्ष र्ोरणी वनरुद्ध दु र्वरापवद
नवीन मेघ मण्डली वनरुद् र्दु र्
क्ववचद् वदगिरे मनो ववनोदमेतु वस्तु वन र्रस्फुरत्त
कदा वनवलम्पवनर्वरी वनकुञ्जकोटरे वसन्
।।३।।
कुहू वनिीवथ नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः ।
ववमुिदु मववतः सदा विरः स्थमञ्जवलां वहन्
वनवलम्प वनर्वरी र्रस् तनोतु कृवत्त वसन्धु रः ।
जटा भुजङ्ग वपङ्गलस् फुरत्फणा मवणप्रभा
कला वनर्ान बन्धुरः वियां जगद् र्ु रांर्रः ववमुिलोललोचनो ललामभाललग्नकः
कदि कुङ् कुमद्रवप् रवलप्तवदग्व र्ू मुखे ।।८।।
विवेवत मांत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम्

।।१३।।
मदान्ध वसन्धु रस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दु रे

मनो ववनोद मद् भुतां वबभतुव भूतभतव रर
प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कावलम प्रभा इदम् वह वनत्यमेवमुिमुत्तमोत्तमां स्तवां
।।४।।
वलम्बि कण्ठकिली रुवचप्रबद्ध कन्धरम् पठन्स्स्मरन्स्रुविरो वविुम्बद्धमेवतसांततम् ।

हरे गु रौ सुभम्बिमािु यावत नान्यथा गवतां
ॐ नमः विवायः
स्मरम्बिदां पुरम्बिदां भवम्बिदां मखम्बिदां
ववमोहनां वह दे वहनाां सुिङ्करस्य वचां तनम्
सदा विवम् भजाम्यहम्
गजम्बि दाां र् कम्बिदां तमांत कम्बिदां भजे
ववमोहनां वह दे वहनाां सुिङ्करस्य वचां तनम्
सदा विवम् भजाम्यहम् ।।९।।
।।१४।।
ॐ नमः विवायः

सहस्र लोचनप्रभृत्य िे ष ले खिेखर अखवव सवव मङ्गला कला कदां ब मञ्जरी

प्रसून र्ू वलर्ोरणी ववर्ू स राङ् वि पीठभूः । रस प्रवाह मार्ु री ववजृां भणा मर्ु व्रतम् ।

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