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भारतीय वन अिधिनयम, 1927

(1927 का अिधिनयम संख्यांक 16) 1


[21 िसतम्बर, 1927]
वन , वन-उपज के अिभवहन और इमारती लकड़ी और अन्य
वन-उपज पर उद्गर्हणीय शुल्क से सम्ब
िविध के समेकन के िलए
अिधिनयम
यतः वन , वन-उपज के अिभवहन और इमारती लकड़ी और अन्य वन-उपज पर उद्गर्हणीय शुल्क से सम्ब िविध का समेकन
करना समीचीन है, अतः एतद् ारा िनम्निलिखत रूप म यह अिधिनयिमत िकया जाता हैः—
अध्याय 1

पर्ारिम्भक
1. संिक्षप्त नाम और िवस्तार—(1) इस अिधिनयम का संिक्षप्त नाम भारतीय वन अिधिनयम, 1927 है ।
[(2) इसका िवस्तार उन राज्यक्षेतर् को छोड़कर, जो पर्थम नवम्बर, 1956 से ठीक पूवर् भाग ख राज्य म समािवष्ट थे, संपूणर्
2

भारत पर है ।
(3) यह उन राज्यक्षेतर् को लागू है जो पर्थम नवम्बर, 1956 से ठीक पूवर् िबहार, मुम्बई, कु गर्, िदल्ली, मध्य पर्देश, उड़ीसा,
पंजाब, उ र पर्देश तथा पिश्चमी बंगाल म समािवष्ट थे, िकन्तु िकसी भी राज्य की सरकार राजपतर् म अिधसूचना ारा इस अिधिनयम
को उस पूणर् राज्य म या उसके िकसी िविनिदष्ट भाग म, िजस पर इसका िवस्तार है और जहां पर यह पर्वतर्न म नह है, पर्वतर्न 3 म
ला सके गी ।]
2. िनवर्चन खण्ड—इस अिधिनयम म, जब तक िक कोई बात िवषय या संदभर् से िवरु न हो,—
(1) “पशु” के अन्तगर्त हाथी, ऊंट, भसे, घोड़े, घोिड़यां, खस्सी, पशु, टट्टू बछेड़,े बछेिड़या, खच्चर, गधे, सुअर, मेढे़
मेिढ़या, भेड, मेमने, बकिरयां और बकिरय के मेमने ह;

1
इस अिधिनयम को संशोिधत रूप म:—
(1) 1950 के मध्य पर्देश अिधिनयम सं० 26 और 1954 के मध्य पर्देश अिधिनयम सं० 20 ारा मध्य पर्देश पर;
(2) 1951 के उ र पर्देश अिधिनयम सं० 18, 1956 के उ र पर्देश अिधिनयम सं० 5, 1960 के उ र पर्देश अिधिनयम सं० 21, 1973 के उ र पर्देश
अिधिनयम सं० 11 और 1976 के उ र पर्देश अिधिनयम सं० 13 ारा उ र पर्देश पर;
(3) 1952 के उड़ीसा अिधिनयम सं० 25, 1954 के उड़ीसा अिधिनयम सं० 11, 1959 के उड़ीसा अिधिनयम सं० 27 और 1972 के उड़ीसा अिधिनयम
सं० 14 ारा उड़ीसा पर;
(4) 1945 के बंगाल अिधिनयम सं० 11 की धारा 63, 1948 के पिश्चम बंगाल अिधिनयम सं० 14 और 1975 के पिश्चम बंगाल अिधिनयम सं० 14 ारा
पिश्चम बंगाल पर;
(5) 1948 के पूव पंजाब अिधिनयम सं० 7 ारा पूव पंजाब पर;
(6) 1973 के हिरयाणा अिधिनयम सं० 12 और 1973 के हिरयाणा अिधिनयम सं० 31 ारा हिरयाणा पर;
(7) 1961 के महाराष्टर् अिधिनयम सं० 6 और 1968 के महाराष्टर् अिधिनयम सं० 27 ारा महाराष्टर् पर;
(8) 1973 के गुजरात अिधिनयम सं० 14 ारा गुजरात पर; और
(9) 1958 के मैसूर अिधिनयम सं० 10 ारा मैसूर के कितपय भाग पर;
लागू िकया गया । 
2
िविध अनुकूलन (सं० 3) आदेश, 1956 ारा उपधारा (2) और उपधारा (3) के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।
3
इस अिधिनयम को, खोण्डमाल िविध िविनयम, 1936 (1936 का 4) की धारा 3 और अनुसूची ारा खोण्डमाल पर और आंगुल िविध िविनयम, 1936 (1936 का 5) की
धारा 3 और अनुसूची ारा अंगुल िजले पर, पर्वृ घोिषत िकया गया ।
इस अिधिनयम को लागू करने के िलए—
(1) बरार िविध अिधिनयम, 1941 (1941 का 4) ारा बरार (भागतः) पर;
(2) कु गर् पर्ान्त पर, देिखए कु गर् गजट, 1930 भाग 1, पृ० 94;
(3) िदल्ली पर्ांत पर, देिखए भारत का राजपतर्, 1933, भाग 2क, पृष्ठ 293;
(4) 1958 के मध्य पर्देश अिधिनयम सं० 23 ारा (अिधसूचना की तारीख से) सम्पूणर् मध्य पर्देश पर;
(5) 1963 के िविनयम सं० 6 की धारा 2 और अनुसूची ारा (1-7-1965 से) दादरा और नागर हवेली पर;
(6) 1963 के िविनयम सं० 7 की धारा 3 और अनुसूची 1 ारा (1-10-1963 से) पािण्डचेरी पर;
(7) 1963 के िविनयम सं० 11 की धारा 3 और अनुसूची ारा गोवा, दमण और दीव पर; और
(8) 1965 के िविनयम सं० 8 की धारा 3 और अनुसूची ारा (1-10-1967 से) लक्ष ीप के संपूणर् संघ राज्यक्षेतर् पर िवस्तािरत िकया गया ।
अिधिनयम का िनरसन, 1955 के मैसूर अिधिनयम सं० 14 ारा बेलारी िजले पर लागू होने के िलए िकया गया ।
2

(2) “वन अिधकारी” से ऐसा कोई िक्त अिभपर्ेत है िजसे 1 *** राज्य सरकार या 1*** राज्य सरकार ारा इस
िनिम सशक्त कोई अिधकारी इस अिधिनयम के सब या िकसी पर्योजन को पूरा करने के िलए अथवा इस अिधिनयम या
उसके अधीन बनाए गए िकसी िनयम के अधीन वन अिधकारी ारा की जाने के िलए अपेिक्षत कोई बात करने के िलए
िनयुक्त करे ;
(3) “वन अपराध” से इस अिधिनयम या इसके अधीन बनाए गए िकसी िनयम के अधीन दण्डनीय कोई अपराध
अिभपर्ेत है;
(4) “वन-उपज” के अन्तगर्त—
(क) िनम्निलिखत वस्तुएं आती है अथार्त्—इमारती लकड़ी, लकड़ी का कोयला, कु चुक, खैर, लकड़ी का
तेल, राल, पर्ाकृ ितक वारिनश, छाल, लाख महुआ के फू ल, महुआ के बीज, 2 [कु थ] और हरड़ भले ही वे वन म पाई
या वन से लाई गई ह या नह ; और
(ख) िनम्निलिखत वस्तुएं, उस सूरत म आती ह िजसम िक वे वन म पाई जाती ह या वन से लाई जाती
ह, अथार्त्—
(i) वृक्ष और प े, फू ल और फल और वृक्ष के इसम इसके पूवर् अविणत सब अन्य भाग
और उपज,
(ii) (घास, बेल, नरकु ल और काई सिहत) वे पौधे जो वृक्ष नह ह और ऐसे पौध के सब भाग
और उपज,
(iii) वन्य पशु और खाल, हाथी दांत, स ग, हि यां, रे शम, रे शम के कोए, शहद और मोम तथा
पशु के सब अन्य भाग या उत्पाद,
(iv) पीट, सतही िम ी, च ान और (चूना पत्थर, लेटराइट, खिनज तेल और खान और खदान
की सब पैदावार सिहत) खिनज;
[(4क) “स्वामी” के अन्तगर्त, ऐसी सम्पि के बारे म, पर्ितपाल्य अिधकरण आता है जो ऐसे अिधकरण के अधीक्षण
3

या भार-साधन म है;]
(5) “नदी” के अन्तगर्त कोई सिरता, नहर, सकरी खाड़ी या अन्य पर्ाकृ ितक या कृ ितर्म जल सरणी है;
(6) “इमारती लकड़ी” के अन्तगर्त वृक्ष आते ह जब िक वे िगर गए ह या िगराए गए ह , और सब पर्कार की लकड़ी
है चाहे वह िकसी पर्योजन के िलए काटी, गढ़ी या खोखली की गई ह या नह ; और
(7) “वृक्ष” के अन्तगर्त ताड़, बांस, ठूं ठ, झाड़-झांखड़ और बत आते ह ।
अध्याय 2

आरिक्षत वन के सम्बन्ध म
3. वन को आरिक्षत करने की शिक्त—राज्य सरकार ऐसी िकसी वन भूिम या बंजर-भूिम को, जो सरकार की सम्पि है या
िजस पर सरकार के साम्पि क अिधकार ह, या िजसकी पूरी वन-उपज या उस उपज के िकसी भाग की, सरकार हकदार है, इसम इसके
पश्चात् उपबिन्धत रीित से आरिक्षत वन बना सके गी ।
4. राज्य सरकार ारा अिधसूचना—(1) जब कभी िकसी भूिम को आरिक्षत वन बनाने का िविनश्चय कर िलया गया हो, तब
राज्य सरकार—
(क) यह घोषणा करने वाली िक यह िविनिश्चत िकया गया है िक ऐसी भूिम को आरिक्षत वन बनाया जाए,
(ख) ऐसी भूिम की िस्थित, और सीमा को यथासंभव िविनिदष्ट करने वाली, तथा
(ग) ऐसी सीमा के अन्दर समािवष्ट िकसी भूिम म या उस भूिम पर या िकसी वन-उपज म या उस उपज पर उन
िकन्ह अिधकार की, िजनकी बाबत यह अिभकिथत है िक वे िकसी िक्त के पक्ष म िव मान ह, िव मानता, स्वरूप और
िवस्तार की जांच और अवधारण करने के िलए और उसके सम्बन्ध म ऐसी कायर्वाही करने के िलए, जैसी इस अध्याय म
उपबिन्धत है, अिधकारी (िजसे इसम इसके पश्चात् वन वस्थापन अिधकारी कहा गया है) िनयुक्त करने वाली, अिधसूचना
राजपतर् म िनकालेगी ।

1
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल या” शब्द िनरिसत । 
2
1930 के अिधिनयम सं० 26 की धारा 2 ारा अन्तःस्थािपत । 
3
1933 के अिधिनयम सं० 3 की धारा 2 ारा अन्तःस्थािपत । 
3

स्पष्टीकरण—खण्ड (ख) के पर्योजन के िलए यह पयार्प्त होगा िक वन की सीमाएं, पथ , निदय , टील या अन्य
सुिविदत या सहज समझी जाने वाली सीमा ारा विणत कर दी जाएं ।
(2) उपधारा (1) के खण्ड (ग) के अधीन िनयुक्त अिधकारी मामूली तौर पर ऐसा िक्त होगा, िजसने वन वस्थापन
अिधकारी के पद के िसवाय कोई वन पद धारण नह कर रखा है ।
(3) इस धारा की कोई बात राज्य सरकार को इस अिधिनयम के अधीन वन वस्थापन अिधकारी के कतर् का पालन करने
के िलए तीन से अनिधक िकसी संख्या म अिधकािरय को, िजनम से एक से अनिधक ऐसा िक्त होगा, जो पूव क्त रूप म के िसवाय
कोई वन पद धारण करता है, िनयुक्त करने से िनवािरत नह करे गी ।
5. वन अिधकार के पर्ोद्भूत होने का वजर्न—धारा 4 के अधीन अिधसूचना िनकाले जाने के पश्चात् ऐसी अिधसूचना म
समािवष्ट भूिम म या उस भूिम पर कोई अिधकार, उ रािधकार के जिरए या सरकार ारा या ऐसे िक्त ारा या उनकी ओर से,
िजसम ऐसा अिधकार िनिहत था, जबिक अिधसूचना िनकाली गई थी, िलिखत रूप म िदए गए अनुदान या की गई संिवदा के अधीन
अिजत होने के िसवाय अिजत न होगा और खेती या िकसी अन्य पर्योजन के िलए ऐसी भूिम म नई कटाई-सफाई ऐसे िनयम के अनुसार
िकए जाने के िसवाय न की जाएगी जैसे राज्य सरकार ारा इस िनिम बनाए जाएं ।
6. वन वस्थापन अिधकारी ारा उद्घोषणा—जबिक धारा 4 के अधीन अिधसूचना िनकाली जा चुकी है, तब वन
वस्थापन अिधकारी,—
(क) पर्स्थािपत वन की िस्थित और सीमा को यथासंभव िविनिदष्ट करने वाली,
(ख) उन पिरणाम की, जो ऐसे वन के आरक्षण पर इसम इसके पश्चात् यथा उपबिन्धत रूप म सुिनिश्चत ह गे,
ाख्या करने वाली, और
(ग) ऐसी उद्घोषणा की तारीख से तीन मास से अन्यून कालाविध िनयत करने वाली और धारा 4 या 5 म विणत
िकसी अिधकार का दावा करने वाले हर िक्त से यह अपेक्षा करने वाली िक वह वन वस्थापन अिधकारी के समक्ष, ऐसे
अिधकार के स्वरूप को और उसके सम्बन्ध म दावाकृ त पर्ितकर के (यिद कोई हो) पिरमाण और िविशिष्टय को िविनिदष्ट
करने वाली िलिखत सूचना ऐसी कालाविध के अन्दर उपिस्थत करे , या उपिस्थत होकर कथन करे ,
उद्घोषणा उस भूिम के , जो उस उद्घोषणा म समािवष्ट ह, पड़ोस के हर नगर और गर्ाम म स्थानीय जनभाषा म पर्कािशत करे गा ।
7. वन वस्थापन अिधकारी ारा जांच—वन वस्थापन अिधकारी धारा 6 के अधीन िदए गए सब कथन को िलखेगा
तथा उस धारा के अधीन सम्यक् रूप से िकए गए सब दाव की और उन अिधकार के अिस्तत्व की, जो धारा 4 या धारा 5 म विणत है,
और िजनके िलए दावा धारा 6 के अधीन नह िकया गया है, जांच िकसी सुिवधाजनक स्थान पर वहां तक करे गा, जहां तक िक वे
सरकार के अिभलेख और ऐसे िकन्ह िक्तय के , िजनकी बाबत यह संभा ता है िक वे उनसे पिरिचत ह गे, सा य से
अिभिनश्चेय ह ।
8. वन वस्थापन अिधकारी की शिक्तयां—ऐसी जांच के पर्योजन के िलए वन वस्थापन अिधकारी िनम्निलिखत शिक्तयां
पर्युक्त कर सके गा, अथार्त्:—
(क) िकसी भूिम पर स्वयं या इस पर्योजन के िलए अपने ारा पर्ािधकृ त िकसी अिधकारी ारा पर्वेश करने और
उसका सवक्षण करने, उसे अभ्यंिकत करने और उसका नक्शा बनाने की शिक्त,
(ख) वाद के िवचारण म िसिवल न्यायालय की शिक्तयां ।
9. अिधकार का िनवार्पन—वे अिधकार, िजनका दावा धारा 6 के अधीन नह िकया गया है, और िजनके अिस्तत्व की कोई
जानकारी धारा 7 के अधीन की गई जांच ारा नह िमली है, जब तक िक उन अिधकार का दावा करने वाले िक्त, वन वस्थापन
अिधकारी का यह समाधान िक धारा 6 के अधीन िनयत कालाविध के अन्दर ऐसा दावा न करने के िलए उसके पास पयार्प्त कारण था,
धारा 20 के अधीन अिधसूचना के पर्कािशत होने से पूवर् नह कर देता, िनवार्िपत हो जाएंगे ।
10. स्थानान्तरी खेती की प ित सम्बन्धी दाव से बरतना—(1) वन स्थापन अिधकारी स्थानान्तरी खेती की प ित से
संबंिधत दावे की अवस्था म, दावे की और िकसी स्थानीय िनयम या आदेश की, िजसके अधीन वह प ित अनुज्ञात या िविनयिमत होती
है, िविशिष्टय को देने वाला कथन अिभिलिखत करे गा, और वह कथन अपनी इस राय के साथ िक क्या प ित पूणर्तः या भागतः
अनुज्ञात या पर्ितिष होनी चािहए, राज्य सरकार को भेजेगा ।
(2) राज्य सरकार उस कथन और राय के पर्ाप्त होने पर उस प ित को पूणर्तः या भागतः अनुज्ञात या िनिष करने वाला
आदेश दे सके गी ।
(3) यिद ऐसी प ित पूणर्तः या भागतः अनुज्ञात की जाती है, तो वन वस्थापन अिधकारी,—
(क) बन्दोबस्त वाली भूिम की सीमा को इस पर्कार बदल कर िक पयार्प्त िवस्तार वाली, यथोिचत पर्कार की और
युिक्तयुक्त रूप से सुिवधाजनक स्थान म की भूिम दावेदार के पर्योजन के िलए अपविजत हो जाए, या
4

(ख) बन्दोबस्त वाली भूिम के कितपय पर्भाग को पृथक्तः अभ्यंिकत करा कर और उसम ऐसी शत के अधीन, जो
वह िविहत करे , स्थानान्तरी खेती की प ित के िलए अनुज्ञा दावेदार को देकर,
उसके पर्योग का पर्बन्ध कर सके गा ।
(4) उपधारा (3) के अधीन िकए गए सब इं तजाम राज्य सरकार की पूवर् मंजूरी के अधीन ह गे ।
(5) सभी मामल म स्थानान्तरी खेती की प ित के बारे म यह समझा जाएगा िक यह ऐसा िवशेषािधकार है िजसे राज्य
सरकार िनयंितर्त, िनबर्िन्धत और उत्सािदत कर सकती है ।
11. ऐसी भूिम को अिजत करने की शिक्त िजस पर अिधकार का दावा िकया गया है—(1) वन वस्थापन अिधकारी िकसी
भूिम म या पर ऐसे िकसी अिधकार िवषयक िकए गए दावे की दशा म, जो मागर् अिधकार या चरागाह अिधकार या वन-उपज या
जलमागर् के अिधकार से िभन्न है, उसे पूणर्तः या भागतः मंजूर या खािरज करने वाला आदेश देगा ।
(2) यिद ऐसा दावा पूणर्तः या भागतः मंजूर िकया जाता है, तो वह वस्थापन अिधकारी या तो—
(i) ऐसी भूिम को पर्स्थािपत वन की सीमा से अपविजत करे गा; या
(ii) ऐसे अिधकार के अभ्यपर्ण के िलए उसके स्वामी से करार करे गा; या
(iii) भूिम अजर्न अिधिनयम, 1894 (1894 का 1) ारा उपबिन्धत रीित से ऐसी भूिम को अिजत करने के िलए
कायर्वाही करे गा ।
(3) ऐसी भूिम को इस पर्कार अिजत करने के पर्योजन के िलए—
(क) वन वस्थापन अिधकारी की बाबत यह समझा जाएगा िक वह भूिम अजर्न अिधिनयम, 1894 (1894 का 1)
के अधीन कायर्वाही करने वाला कलक्टर है;
(ख) दावेदार के बारे म यह समझा जाएगा िक वह िहतब और उस अिधिनयम की धारा 9 के अधीन दी गई
सूचना के अनुसार उसके समक्ष हािजर होने वाला िक्त है;
(ग) उस अधिनयम की पूवर्वत धारा के उपबन्ध के बारे म यह समझा जाएगा िक उनका अनुपालन हो चुका
है; और
(घ) कलक्टर, दावेदार की सम्मित से या न्यायालय, दोन पक्षकार की सम्मित से, भूिम के रूप म या भागतः भूिम
के रूप म और भागतः धन के रूप म पर्ितकर अिधिनण त कर सके गा ।
12. चरागाह या वन-उपज पर के अिधकार के दाव पर आदेश—चरागाह या वन-उपज पर के अिधकार से सम्ब दावे की
दशा म वन वस्थापन अिधकारी उन्ह पूणर्तः या भागतः मंजूर या खािरज करने वाला आदेश पािरत करे गा ।
13. वन वस्थापन अिधकारी ारा तैयार िकए जाने वाले अिभलेख—वन वस्थापन अिधकारी धारा 12 के अधीन कोई
आदेश पािरत करते समय िनम्निलिखत को यावत्साध्य अिभिलिखत करे गा—
(क) अिधकार का दावा करने वाले िक्त का नाम, उसके िपता का नाम, जाित, िनवास और उपजीिवका, और
(ख) उन सब खेत या खेत के समूह (यिद कोई ह ) का नाम, िस्थित और क्षेतर्फल और उन सब भवन के (यिद
कोई ह ) नाम और िस्थित, िजनके िवषय म ऐसे अिधकार के पर्योग का दावा िकया गया है ।
14. जहां वह दावा मंजरू करता है वहां अिभलेख—यिद वन वस्थापन अिधकारी धारा 12 के अधीन िकसी दावे को पूणर्तः
या भागतः मंजूर कर लेता है, तो वह उन ढोर की संख्या और वणर्न, िजन्ह दावेदार समय-समय पर वन म चराने के िलए हकदार ह,
वह ऋतु िजसके दौरान ऐसा चराना अनुज्ञात है, उस इमारती लकड़ी और अन्य वन-उपज का पिरमाण िजसे वह समय-समय पर लेने
या पर्ाप्त करने के िलए पर्ािधकृ त है, और ऐसी अन्य िविशिष्टयां, जैसी उस मामले म अपेिक्षत ह , िविनिदष्ट करके यह भी अिभिलिखत
करे गा िक कहां तक वह दावा इस पर्कार मंजूर िकया गया है । वह यह भी अिभिलिखत करे गा िक दावाकृ त अिधकार के पर्योग ारा
अिभपर्ाप्त इमारती लकड़ी या अन्य वन-उपज बेची जा सके गी या वस्तु-िविनयिमत की जा सके गी या नह ।
15. मंजरू िकए गए अिधकार का पर्योग—(1) वन वस्थापन अिधकारी, ऐसे अिभलेख तैयार करने के पश्चात् अपनी
सव म योग्यता के अनुसार और िजस आरिक्षत वन के सम्बन्ध म दावा िकया गया है, उसको बनाए रखने का सम्यक् ध्यान करते हुए,
ऐसे आदेश पािरत करे गा, िजनसे इस पर्कार मंजूर िकए गए अिधकार का िनरं तर पर्योग सुिनिश्चत हो जाएगा ।
(2) वन वस्थापन अिधकारी इस पर्योजन के िलए—
(क) पयार्प्त िवस्तार वाले और युिक्तयुक्त रूप से सुिवधाजनक स्थान म के िकसी अन्य वन खण्ड को ऐसे दावेदार
के पर्योजन के िलए उपविणत कर सके गा और उन्ह इस पर्कार मंजूर िकए गए िवस्तार तक (यथािस्थित) चरागाह या वन-
उपज का अिधकार पर्दान करने वाला आदेश अिभिलिखत कर सके गा; या
5

(ख) पर्स्थािपत वन की सीमा को इस पर्कार बदल सके गा िक दावेदार के पर्योजन के िलए पयार्प्त िवस्तार की
और युिक्तयुक्त रूप से सुिवधाजनक स्थान म की वन भूिम अपविजत हो जाए;
(ग) ऐसे दावेदार को, यथािस्थित, चरागाह या वन-उपज के अिधकार ऐसे मंजूर िकए गए िवस्तार तक, ऐसी ऋतु
म, पर्स्थािपत वन के ऐसे पर्भाग के अन्दर और ऐसे िनयम के अधीन, जो राज्य सरकार ारा इस िनिम बनाए जाएं, चालू
रखने वाला आदेश अिभिलिखत कर सके गा ।
16. अिधकार का रूपांतरण—यिद वन स्थापन अिधकारी आरिक्षत वन को बनाए रखने का सम्यक् ध्यान रखकर धारा 15
के अधीन ऐसा वस्थापन करना असंभव पाता है, िजससे इस पर्कार मंजूर िकए गए िवस्तार तक उक्त अिधकार का िनरं तर पर्योग
सुिनिश्चत हो जाता है, तो वह ऐसे िनयम के अधीन रहते हुए, िजन्ह राज्य सरकार इस िनिम बनाए, उसके बदले म ऐसे िक्तय
को धन रािश के संदाय ारा या भूिम के अनुदान ारा या िकसी अन्य रीित से, िजसे वह ठीक समझता है, ऐसे अिधकार का रूपान्तरण
कर सके गा ।
17. धारा 11, धारा 12, धारा 15 या धारा 16 के अधीन पािरत आदेश के िवरु अपील—ऐसा कोई िक्त, िजसने इस
अिधिनयम के अधीन दावा िकया है या कोई वन अिधकारी या राज्य सरकार ारा इस िनिम साधारण या िवशेषतः सशक्त अन्य
िक्त ऐसे दावे पर धारा 11, धारा 12, धारा 15 या धारा 16 के अधीन वन स्थापन अिधकारी ारा पािरत आदेश की तारीख से
तीन मास के अन्दर ऐसे आदेश की अपील राजस्व िवभाग के कलक्टर से अिनम्न पंिक्त के ऐसे अिधकारी के समक्ष उपिस्थत कर सके गा
िजसे राज्य सरकार ऐसे आदेश के िवरु अपील की सुनवाई करने के िलए राजपतर् म अिधसूचना ारा िनयुक्त करे ः
परन्तु राज्य सरकार एक न्यायालय (िजसे इसम इसके पश्चात् वन न्यायालय कहा गया है) स्थािपत कर सके गी जो राज्य
सरकार ारा िनयुक्त िकए जाने वाले तीन िक्तय से िमलकर गिठत होगा, और जब इस पर्कार वन न्यायालय स्थािपत हो जाए तब
वैसी सब अपील उसके समक्ष उपिस्थत की जाएंगी ।
18. धारा 17 के अधीन अपील—(1) धारा 17 के अधीन हर अपील िलिखत अज ारा की जाएगी और वन वस्थापन
अिधकारी को दी जा सके गी जो उसे सुनवाई के िलए सक्षम पर्ािधकारी को अिवलम्ब भेज देगा ।
(2) यिद अपील, धारा 17 के अधीन िनयुक्त अिधकारी के समक्ष की जाए, तो भू-राजस्व से सम्ब मामल म अपील की
सुनवाई के िलए तत्समय िविहत रीित से उसकी सुनवाई की जाएगी ।
(3) यिद अपील वन न्यायालय के समक्ष की जाए, तो न्यायालय अपील की सुनवाई के िलए कोई िदन और पर्स्थािपत वन के
आस-पास म ऐसा सुिवधाजनक स्थान िनयत करे गा और उसकी सूचना पक्षकार को देगा और तदनुसार ऐसी अपील की
सुनवाई करे गा ।
(4) अपील पर, यथािस्थित, ऐसे अिधकारी ारा या न्यायालय ारा या ऐसे न्यायालय के सदस्य के बहुमत ारा पािरत
आदेश, के वल राज्य सरकार के पुनरीक्षण के अधीन रहते हुए अंितम होगा ।
19. प्लीडर—राज्य सरकार या कोई िक्त, िजसने इस अिधिनयम के अधीन दावा िकया है, इस अिधिनयम के अधीन जांच
या अपील के दौरान वन वस्थापन अिधकारी या अपील अिधकारी या न्यायालय के समक्ष हािजर होने, अिभवचन करने और अपनी
ओर से कायर् करने के िलए िकसी िक्त को िनयुक्त कर सके गा ।
20. वन को आरिक्षत वन घोिषत करने की अिधसूचना—(1) जबिक िनम्निलिखत घटनाएं घिटत हो गई ह , अथार्त्:—
(क) जबिक दावा करने के िलए धारा 6 के अधीन िनयत कालाविध बीत गई हो और उस धारा या धारा 9 के अधीन
सब दाव का, यिद कोई ह , वन वस्थापन अिधकारी ारा िनपटारा कर िदया गया हो;
(ख) यिद कोई ऐसे दावे िकए गए ह , तो जब िक ऐसे दाव पर पािरत आदेश की अपील करने के िलए धारा 17
ारा पिरसीिमत कालाविध बीत गई हो, और यिद ऐसी कालाविध के अन्दर उपिस्थत की गई सभी अपील का (यिद कोई
ह ) िनपटारा अपील अिधकारी या न्यायालय ने कर िदया हो; और
(ग) जबिक पर्स्थािपत वन म सिम्मिलत की जाने वाली सब भूिमयां (यिद कोई ह ) िजन्ह धारा 11 के अन्तगर्त वन
वस्थापन अिधकारी ने भूिम अजर्न अिधिनयम, 1894 (1894 का 1) के अधीन अिजत करने के िलए चुना है, उस अिधिनयम
की धारा 16 के अधीन सरकार म िनिहत हो गई ह ,
तब राज्य सरकार पिरिनिमत सीमा िचह्न के अनुसार या अन्यथा उस वन की, िजसे आरिक्षत िकया जाना है, सीमा को पिरिनिश्चत
रूप से िविनिदष्ट करने वाली और अिधसूचना ारा िनयत तारीख से उसे आरिक्षत वन घोिषत करने वाली अिधसूचना राजपतर् म
पर्कािशत करे गी ।
(2) ऐसा वन इस पर्कार िनयत तारीख से आरिक्षत वन समझा जाएगा ।
21. ऐसी अिधसूचना के अनुवाद का वन के आसपास म पर्काशन—ऐसी अिधसूचना ारा िनयत तारीख से पूवर्, वन अिधकारी
स्थानीय जन भाषा म उसका अनुवाद वन के आसपास के हर नगर और गर्ाम म पर्कािशत कराएगा ।
6

22. धारा 15 या 18 के अधीन िकए गए पर्बन्ध का पुनरीक्षण करने की शिक्त—राज्य सरकार धारा 15 या 18 के अधीन िकए
गए िकसी पर्बन्ध का पुनरीक्षण धारा 20 के अधीन िकसी अिधसूचना के पर्काशन से पांच वषर् के अन्दर कर सके गी और धारा 15 या
धारा 18 के अधीन िकए गए िकसी आदेश को इस पर्योजन के िलए िवखिण्डत या उपांतिरत कर सके गी और िनदेश दे सके गी िक धारा
15 म िविनिदष्ट कायर्वािहय म से कोई कायर्वाही ऐसी कायर्वािहय म से िकसी अन्य के बदले म की जाए या धारा 12 के अधीन मंजूर
िकए गए अिधकार का धारा 16 के अधीन रूपान्तरण िकया जाए ।
23. आरिक्षत वन म कोई अिधकार इसम उपबंिधत के अनुसार अिजत होने के िसवाय अिजत नह होगा—आरिक्षत वन म या
उस पर िकसी पर्कार का कोई अिधकार, उ रािधकार ारा या सरकार ारा या उसकी ओर से या िकसी िक्त ारा, िजसम ऐसा
अिधकार उस समय िनिहत था, िजस समय धारा 20 के अधीन अिधसूचना िनकाली गई थी, या उसकी ओर से िदए गए अनुदान या की
गई िलिखत संिवदा के अधीन अिजत िकए जाने के िसवाय, अिजत नह होगा ।
24. मंजरू ी के िबना अिधकार का अन्य-संकर्ामण न िकया जाएगा—(1) धारा 23 म िविनिदष्ट िकसी बात के होते हुए भी
ऐसा कोई अिधकार, जो धारा 15 की उपधारा (2) के खण्ड (ग) के अधीन चालू रखा गया है, राज्य सरकार की मंजरू ी के िबना अनुदान
ारा, िवकर्य ारा, प े ारा, बन्धक ारा या अन्यथा अन्यसंकर्ान्त न िकया जाएगाः
परन्तु जबिक ऐसा कोई अिधकार िकसी भूिम या गृह से अनुलग्न है तब वह ऐसी भूिम या गृह के साथ बेचा जा सके गा या
अन्यथा अन्यसंकर्ान्त िकया जा सके गा ।
(2) ऐसे िकसी अिधकार के पर्योग म अिभपर्ाप्त कोई इमारती लकड़ी या वन-उपज, उस मातर्ा तक के िसवाय, जो धारा 14 के
अधीन अिभिलिखत आदेश म मंजूर की गई हो, बेची या िविनयिमत न की जा सके गी ।
25. आरिक्षत वन म के पथ और जलमाग को बन्द करने की शिक्त—वन अिधकारी आरिक्षत वन म के िकसी लोक या
पर्ाइवेट पथ या जलमागर् को राज्य सरकार या इन िनिम उसके सम्यक् रूप से पर्ािधकृ त िकसी अिधकारी की पूवर् मंजूरी से बन्द कर
सके गा, परन्तु वह यह तभी कर सके गा जबिक इस पर्कार बन्द िकए गए पथ या जलमागर् की बजाय ऐसा पर्ितस्थानी पथ या जलमागर्,
िजसको राज्य सरकार युिक्तयुक्त रूप से सुिवधाजनक समझती है, पहले से ही िव मान है, या वन अिधकारी ारा उसके बदले म
उपबंिधत या सिन्निमत िकया गया है ।
26. ऐसे वन म पर्ितिष कायर्—(1) जो कोई िक्त—
(क) धारा 5 के अधीन पर्ितिष नई कटाई-सफाई करे गा; या
(ख) आरिक्षत वन म आग लगाएगा, या इस िनिम राज्य सरकार ारा बनाए गए िकन्ह िनयम का उल्लंघन
करते हुए ऐसी रीित से आग जलाएगा या आग को जलते छोड़ देगा िजससे ऐसा वन संकटापन्न हो जाए; या
जो आरिक्षत वन म,—
(ग) ऐसी ऋतु म के िसवाय, िजन्ह वन अिधकारी इस िनिम अिधसूिचत करे , कोई आग जलाएगा, रखेगा या
ले जाएगा;
(घ) अितचार करे गा या पशु चराएगा या पशु को अितचार करने देगा;
(ङ) िकसी वृक्ष को िगराने या िकसी इमारती लकड़ी को काटने या घसीटने म उपेक्षा ारा कोई नुकसान पहुंचाएगा;
(च) िकसी वृक्ष को िगराएगा, पिरतक्षण करे गा, छांटेगा, छेवेगा, या उसे जलाएगा या उसकी छाल उतार डालेगा,
या पि यां तोड़ डालेगा, या उसे अन्यथा नुकसान पहुंचाएगा;
(छ) पत्थर की खुदाई करे गा, चूना या लकड़ी का कोयला फूं के गा, या िकसी वन उपज का संगर्ह करे गा, उससे कोई
िविनमार्ण पर्िकर्या करे गा, या उसे हटाएगा;
(ज) खेती या िकसी अन्य पर्योजन के िलए िकसी भूिम को साफ करे गा या तोड़ेगा;
(झ) राज्य सरकार ारा इस िनिम बनाए गए िकन्ह िनयम के उल्लंघन म िशकार खेलेगा, गोली चलाएगा,
मछली पकड़ेगा, जल िवषैला करे गा या पाश या जाल िबछाएगा; या
(ञ) िकसी ऐसे क्षेतर् म, िजसम हाथी पिररक्षण अिधिनयम, 1879 (1879 का 6) पर्वृ नह है, इस पर्कार बनाए गए
िकन्ह िनयम के उल्लंघन म हािथय का वध करे गा या उन्ह पकड़ेगा,
वह वन को नुकसान पहुंचाने के कारण ऐसे पर्ितकर के अितिरक्त, िजसका संदाय िकया जाना िस दोष करने वाला न्यायालय िनिदष्ट
करे , ऐसी अविध के कारावास से, जो छह मास तक का हो सके गा या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से,
दिण्डत िकया जाएगा ।
(2) इस धारा की िकसी बात की बाबत यह न समझा जाएगा िक वह—
7

(क) वन अिधकारी की िलिखत अनुज्ञा या राज्य सरकार ारा बनाए गए िकसी िनयम के अधीन िकए गए िकसी
कायर् को, या
(ख) धारा 15 की उपधारा (2) के खण्ड (ग) के अधीन चालू रखे गए या सरकार ारा या उसकी ओर से धारा 23 के
अधीन िदए गए िलिखत अनुदान या की गई िलिखत संिवदा ारा सृष्ट िकसी अिधकार, के पर्योग को,
पर्ितिष करती है ।
(3) जब कभी आरिक्षत वन म जानबूझकर या घोर उपेक्षा ारा आग लगाई जाती है तब (इस बात के होते हुए भी िक इस
धारा के अधीन कोई शािस्त लगाई गई है) राज्य सरकार िनदेश दे सके गी िक ऐसे वन या उसके िकसी पर्भाग म चरागाह या वन-उपज
के सब अिधकार का पर्योग उतनी कालाविध के िलए, िजतनी वह ठीक समझती है, िनलिम्बत रहेगा ।
27. यह घोिषत करने की शिक्त िक वन आरिक्षत वन नह रहा है—(1) राज्य सरकार 1 *** राजपतर् म अिधसूचना ारा
िनदेश दे सके गी िक इस अिधिनयम के अधीन आरिक्षत कोई वन या उसका पर्भाग, ऐसी अिधसूचना ारा िनयत तारीख से, आरिक्षत
वन नह रह जाएगा ।
(2) इस पर्कार िनयत तारीख से, ऐसा वन या उसका पर्भाग आरिक्षत नह रह जाएगा, िकन्तु उसम वे अिधकार (यिद कोई
ह ), जो िनवार्िपत हो गए ह, ऐसे न रहने के पिरणामस्वरूप पुनरुज्जीिवत नह हो जाएंगे ।
अध्याय 3

गर्ाम वन के सम्बन्ध म
28. गर्ाम वन का िनमार्ण—(1) राज्य सरकार िकसी ऐसी भूिम के पर्ित या उस पर, जो आरिक्षत वन कर दी गई है, अिधकार
िकसी गर्ाम समुदाय को समनुिदष्ट कर सके गी और ऐसा समनुदश े न र कर सके गी । इस पर्कार समनुदिे शत सब वन गर्ाम
वन कहलाएंगे ।
(2) िजस गर्ाम समुदाय को ऐसा समनुदश े न िकया गया है उस गर्ाम समुदाय के िलए इमारती लकड़ी या अन्य वन-उपज या
चरागाह का उपबन्ध िजन शत के अधीन िकया जा सके गा उन्ह ऐसे वन के संरक्षण और सुधार के िलए उनके कतर् को िविहत करने
वाले िनयम राज्य सरकार गर्ाम वन के पर्बन्ध को िविनयिमत करने के िलए बना सके गी ।
(3) इस अिधिनयम के वे सब उपबन्ध, जो आरिक्षत वन से संब ह, वहां तक (जहां तक िक वे इस पर्कार बनाए गए सब
िनयम से असंगत नह ह), गर्ाम वन को लागू ह गे ।
अध्याय 4

संरिक्षत वन के सम्बन्ध म
29. संरिक्षत वन—(1) राज्य सरकार राजपतर् म अिधसूचना ारा घोिषत कर सके गी िक इस अध्याय के उपबन्ध िकसी वन
भूिम या बंजर भूिम को, जो आरिक्षत वन म सिम्मिलत नह है िकन्तु जो सरकार की संपि है या िजस पर सरकार का साम्पि क
अिधकार है या िजसकी संपूणर् वन-उपज या उसके िकसी भाग को, िजसकी सरकार हकदार है, लागू है ।
(2) ऐसी िकसी अिधसूचना म समािवष्ट वन भूिम और बंजर भूिम ‘संरिक्षत वन’ कहलाएगी ।
(3) जब तक िक अिधसूचना म समािवष्ट वन भूिम या बंजर भूिम म या उन पर सरकार या पर्ाइवेट िक्तय के अिधकार के
स्वरूप और िवस्तार की जांच नह कर ली जाती और सवक्षण या बन्दोबस्त अिभलेख म या अन्य िकसी ऐसी रीित से, जैसी राज्य
सरकार पयार्प्त समझती है, उन्ह अिभिलिखत नह कर िलया जाता है, तब ऐसी अिधसूचना नह िनकाली जाएगी । जब तक िक
पर्ितकू ल सािबत न कर िदया जाए, ऐसे हर अिभलेख के बारे म यह उपधारणा की जाएगी िक वह शु हैः
परन्तु यिद िकसी वन भूिम या बंजर भूिम की बाबत राज्य सरकार यह समझती है िक ऐसी जांच और अिभलेख आवश्यक है,
िकन्तु उनम इतना समय लगेगा िक इस बीच राज्य सरकार के अिधकार खतरे म पड़ जाएंगे, तो राज्य सरकार ऐसी जांच और अिभलेख
के लिम्बत रहने तक ऐसी भूिम को संरिक्षत वन घोिषत कर सके गी, िकन्तु इससे िकन्ह िक्तय या समुदाय के िव मान अिधकार
कम या पर्भािवत नह ह गे ।
30. वृक्ष आिद को आरिक्षत करने की अिधसूचना िनकालने की शिक्त—राज्य सरकार राजपतर् म अिधसूचना ारा—
(क) संरिक्षत वन म के िकन्ह वृक्ष या वृक्ष के वगर् को अिधसूचना ारा िनयत तारीख से आरिक्षत घोिषत कर
सके गी;
(ख) यह घोिषत कर सके गी िक अिधसूचना म िविनिदष्ट ऐसे वन का पर्भाग तीस वषर् से अनिधक ऐसी कालाविध
के िलए, जैसी राज्य सरकार उिचत समझे, बन्द रहेगा और ऐसे पर्भाग पर पर्ाइवेट िक्तय के अिधकार, यिद कोई ह , ऐसी

1
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “सपिरषद् गवनर्र जनरल के िनयन्तर्ण के अधीन” शब्द िनरिसत ।
8

अविध के दौरान िनलिम्बत रहगे, परन्तु यह तभी होगा जब िक ऐसे वन का शेष भाग इस पर्कार बन्द िकए गए पर्भाग म
िनलिम्बत अिधकार के सम्यक् पर्योग के िलए पयार्प्त और युिक्तयुक्त रूप से सुिवधाजनक स्थान म ह ; या
(ग) ऐसे िकसी वन म पत्थर की खुदाई करने या चूने या लकड़ी के कोयले को फूं कने, या ऐसे िकसी वन म वन-उपज
का संगर्हण करने या उस पर कोई िविनमार्ण पर्िकर्या करने या उसे हटाने और खेती, भवन िनमार्ण, पशु के गोल रखने या
िकसी अन्य पर्योजन के िलए िकसी ऐसे वन म कोई भूिम तोड़ना या साफ करना, यथापूव क्त िनयत तारीख से पर्ितिष कर
सके गी ।
31. ऐसी अिधसूचना के अनुवाद का आसपास म पर्काशन—कलक्टर धारा 30 के अधीन िनकाली गई हर अिधसूचना का
स्थानीय जनभाषा म अनुवाद अिधसूचना म समािवष्ट वन के आसपास वाले हर नगर और गर्ाम म सहजदृश्य स्थान पर लगवाएगा ।
32. संरिक्षत वन के बारे म िनयम बनाने की शिक्त—राज्य सरकार िनम्निलिखत बात के िविनयमन के िलए िनयम बना
सके गी, अथार्त्:—
(क) वृक्ष और इमारती लकड़ी की कटाई, िचराई, संपिरवितत करना और हटाना, तथा संरिक्षत वन की वन-उपज
का संगर्हण करना, िविनमार्ण करना तथा उसका हटाना,
(ख) संरिक्षत वन के सामीप्य के नगर और गर्ाम के िनवािसय को अपने पर्योग के िलए वृक्ष, इमारती लकड़ी या
अन्य वन-उपज लेने के हेतु अनुज्ञिप्तयां अनुद करना और ऐसे िक्तय ारा ऐसी अनुज्ञिप्तय का पेश और वापस िकया
जाना,
(ग) ापार के पर्योजन के िलए ऐसे वन म से वृक्ष या इमारती लकड़ी या वन-उपज को िगराने या हटाने वाले
िक्तय को अनुज्ञिप्तयां पर्दान करना और ऐसे िक्तय ारा ऐसी अनुज्ञिप्तयां पेश और वापस िकया जाना,
(घ) खण्ड (ख) और (ग) म विणत िक्तय ारा ऐसे वृक्ष को काटने या ऐसी इमारती लकड़ी या वन-उपज को
संगृहीत करने और हटाने की अनुज्ञा के िलए िकए जाने वाले संदाय, यिद कोई ह ,
(ङ) ऐसे वृक्ष , इमारती लकड़ी और उपज के बारे म उनके ारा िकए जाने वाले अन्य संदाय, यिद कोई ह और वे
स्थान जहां ऐसा संदाय िकया जाएगा,
(च) ऐसे वन म से होकर जाने वाली वन-उपज की परीक्षा,
(छ) ऐसे वन म खेती या अन्य पर्योजन के िलए भूिम की कटाई-सफाई और भूिम तोड़ना,
(ज) ऐसे वन म पड़ी इमारती लकड़ी और धारा 30 के अधीन आरिक्षत वृक्ष का आग से संरक्षण,
(झ) ऐसे वन म घास काटना और ढोर चराना,
(ञ) ऐसे वन म िशकार खेलना, गोली चलाना, मछली पकड़ना, जल िवषैला करना और पाश या जाल िबछाना
और ऐसे वन के उन क्षेतर् म िजनम हाथी पिररक्षण अिधिनयम, 1879 (1879 का 6) पर्वृ नह है, हािथय का वध करना या
पकड़ना,
(ट) धारा 30 के अधीन वन के िकसी बंद पर्भाग का संरक्षण और पर्बन्ध, और
(ठ) धारा 29 म िनदिशत अिधकार का पर्योग ।
33. धारा 30 के अधीन अिधसूचना या धारा 32 के अधीन वाले िनयम के उल्लंघन म िकए गए काय के िलए शािस्तयां—
(1) जो कोई िक्त िनम्निलिखत अपराध म से कोई अपराध करे गा, अथार्त्:—
(क) धारा 30 के अधीन आरिक्षत िकसी वृक्ष को िगराएगा, पिरतक्षण करे गा, छ टेगा, छेवेगा या जलाएगा या ऐसे
िकसी वृक्ष की छाल उतार डालेगा या पि यां तोड़ डालेगा या उसे अन्यथा नुकसान पहुंचाएगा,
(ख) धारा 30 के अधीन वाले िकसी पर्ितषेध के पर्ितकू ल पत्थर की खुदाई करे गा या चूने या लकड़ी का कोयला
फूं के गा, या िकसी वन-उपज का संगर्हण करे गा, उससे कोई िविनमार्ण पर्िकर्या चलाएगा, या उसे हटाएगा,
(ग) िकसी संरिक्षत वन म, धारा 30 के अधीन वाले िकसी पर्ितषेष के पर्ितकू ल, िकसी भूिम को खेती या िकसी अन्य
पर्योजन के िलए तोड़ेगा या साफ करे गा,
(घ) ऐसे वन को आग लगाएगा, या धारा 30 के अधीन आरिक्षत िकसी वृक्ष तक, चाहे वह खड़ा हो, िगर गया हो,
या िगराया गया हो, या ऐसे वन के बन्द िकए गए िकसी पर्भाग तक फै ल जाने से रोकने के िलए युिक्तयुक्त-पूणर् पूवार्वधानी
बरते िबना आग जताएगा,
(ङ) ऐसे िकसी वृक्ष या बन्द पर्भाग के सामीप्य म अपने ारा जलाई गई िकसी आग को जलता छोड़ देगा,
9

(च) िकसी वृक्ष को इस पर्कार िगराएगा या िकसी इमारती लकड़ी को इस पर्कार ख चेगा िक यथापूव क्त रूप म
आरिक्षत िकसी वृक्ष को नुकसान पहुंचाता है,
(छ) पशु को ऐसे िकसी वृक्ष को नुकसान पहुंचाने देगा,
(ज) धारा 32 के अधीन बनाए गए िकन्ह िनयम का अितलंघन करे गा,
वह उस अविध के िलए कारावास से, जो छह मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से,
दण्डनीय होगा ।
(2) जब कभी संरिक्षत वन म जानबूझकर या घोर उपेक्षा ारा आग लगाई जाती है, तब राज्य सरकार, इस बात के होते हुए
भी िक इस धारा के अधीन कोई शािस्त लगाई गई है, िनदेश दे सके गी िक ऐसे वन म या उसके िकसी पर्भाग म चरागाह या वन-उपज के
िकसी अिधकार का पर्योग उतनी अविध के िलए, िजतनी वह ठीक समझती है, िनलिम्बत रहेगा ।
34. इस अध्याय की कोई बात कितपय मामल म िकए गए काय का पर्ितषेध नह करे गी—इस अध्याय की िकसी बात की
बाबत यह नह समझा जाएगा िक वह ऐसे िकसी कायर् का पर्ितषेध करती है जो वन अिधकारी की िलिखत अनुज्ञा से या धारा 32 के
अधीन बनाए गए िनयम के अनुसार िकया गया है, या जो धारा 29 के अधीन अिभिलिखत िकसी अिधकार के पर्योग म धारा 30 के
अधीन बन्द िकए गए िकसी वन के पर्भाग के िवषय म, या िकन्ह उन अिधकार के िवषय म िजनका पर्योग धारा 33 के अधीन
िनलिम्बत िकया गया है, िकए जाने के अलावा िकया गया है ।
अध्याय 5

जो वन और भूिमयां सरकार की सम्पि नह ह उन पर िनयन्तर्ण के सम्बन्ध म


35. िवशेष पर्योजन के िलए वन का संरक्षण—(1) राज्य सरकार राजपतर् म अिधसूचना ारा िकसी वन या बंजर भूिम म—
(क) खेती के िलए भूिम तोड़ना या साफ करना,
(ख) ढोर चराना, या
(ग) वनस्पित को जलाना या उसे साफ करना,
उस सूरत म िविनयिमत या पर्ितिष कर सके गी िजसम िक ऐसा िविनयमन या पर्ितषेध िनम्निलिखत पर्योजन म से िकसी के िलए
आवश्यक पर्तीत होता है, अथार्त्:—
(i) आंधी, तेज वायु, लुढ़कते पत्थर , बाढ़ और िहमानी से संरक्षण,
(ii) पहाड़ी भू-भाग की िशखर और ढलान और घािटय पर मृदा का पिररक्षण, भूिम-स्खलन या खादर और
वेगधारा के बनने को रोकना, या कटाव या उस पर बालू, पत्थर या बजरी के जमाव से भूिम का संरक्षण,
(iii) झरन , निदय और तलाब म जलपूित बनाए रखना,
(iv) पथ , पुल , रे ल और संचार के अन्य माग का संरक्षण,
(v) लोक स्वास्थ्य का पिररक्षण ।
(2) राज्य सरकार ऐसे िकसी पर्योजन के िलए ऐसे संकमर्, जैसे वह ठीक समझती है, िकसी वन या बंजर भूिम म अपने य
पर बनवा सके गी ।
(3) जब तक िक ऐसे वन या भूिम के स्वामी को इस बात के िलए समाहूत करने वाली सूचना न दे दी गई हो िक तुम ऐसी
सूचना म िविनिदष्ट युिक्तयुक्त कालाविध के अन्दर यह हेतुक दिशत करो िक, यथािस्थित, ऐसी अिधसूचना क्य न िनकाली जाए या
संकमर् क्य न बनाया जाए, और जब तक िक उसके आक्षेप की, यिद कोई ह , और िकसी सा य की जो वह उनके समथर्न म पेश करे ,
सुनवाई उस अिधकारी ारा न की जा चुकी हो जो उस िनिम सम्यक् रूप से िनयुक्त िकया गया है और राज्य सरकार उन पर िवचार
न कर चुकी हो, तब तक उपधारा (1) के अधीन कोई अिधसूचना नह िनकाली जाएगी और न उपधारा (2) के अधीन कोई संकमर् आरं भ
िकया जाएगा ।
36. वन का पर्बन्ध संभालने की शिक्त—(1) धारा 35 के अधीन िकसी िविनयम या पर्ितषेध की उपेक्षा या जानबूझकर
अवज्ञा की दशा म या, यिद उस धारा के अधीन होने वाले िकसी संकमर् के पर्योजनाथर् ऐसा अपेिक्षत है, तो राज्य सरकार ऐसे वन या
भूिम के स्वामी को िलिखत सूचना के पश्चात् और उसके आक्षेप पर, यिद कोई ह , िवचार करने के पश्चात् उसे वन अिधकारी के
िनयंतर्ण के अधीन कर सके गी और घोिषत कर सके गी िक आरिक्षत वन से सम्ब इस अिधिनयम के सब उपबन्ध या इनम से कोई
उपबन्ध ऐसे वन या भूिम को लागू ह गे ।
(2) ऐसे वन या भूिम के पर्बन्ध से उत्पन्न होने वाले शु लाभ, यिद कोई ह , उक्त स्वामी को दे िदए जाएंगे ।
10

37. कु छ अवस्था म वन का स्वत्वहरण—(1) इस अध्याय के अधीन ऐसे िकसी मामले म, िजसम िक राज्य सरकार यह
समझती है िक वन या भूिम को वन अिधकारी के िनयंतर्ण म रखने के बजाय इसे लोक पर्योजन के िलए अिजत कर िलया जाए, राज्य
सरकार भूिम अजर्न अिधिनयम, 1894 (1894 का 1) ारा उपबिन्धत रीित से उसे अिजत करने के िलए कायर्वाही कर सके गी ।
(2) धारा 35 के अधीन िकसी अिधसूचना म समािवष्ट वन या भूिम का स्वामी, उस अिधसूचना की तारीख से अन्यून तीन
वषर् या अनिधक बारह वषर् के अन्दर िकसी भी समय यह अपेक्षा कर सके गा िक ऐसा वन या भूिम लोक पर्योजन के िलए अिजत िकया
जाए और राज्य सरकार ऐसे वन या भूिम को तदनुसार अिजत कर लेगी ।
38. स्वािमय की पर्ाथर्ना पर वन का संरक्षण—(1) िकसी भूिम का स्वामी, या यिद उसके एक से अिधक स्वामी ह, तो उन
अंश म से कु ल िमलाकर कम से कम दो ितहाई अंश के स्वामी इस दृिष्ट से िक उस भूिम पर वन का रोपण या संरक्षण िकया जाए,
कलक्टर को अपनी इस इच्छा का िलिखत अभ्यावेदन कर सके गा या कर सकगेः—
(क) िक हमारी ओर से ऐसी भूिम का आरिक्षत या संरिक्षत वन के रूप म पर्बन्ध वन अिधकारी ारा ऐसे िनबन्धन
पर िकया जाए जो परस्पर कराए पाए जाएं, या
(ख) इस अिधिनयम के सब उपबन्ध या उनम से कोई उपबन्ध ऐसी भूिम को लागू कर िदए जाएं ।
(2) दोन म से हर अवस्था म, राज्य सरकार, ऐसी भूिम को इस अिधिनयम के ऐसे उपबन्ध राजपतर् म अिधसूचना ारा लागू
कर सके गी, िजन्ह वह ऐसी भूिम पर पिरिस्थितय म उिचत समझती हो और जो आवेदक ारा वांिछत हो ।
अध्याय 6

इमारती लकड़ी और अन्य वन-उपज पर शुल्क के सम्बन्ध म


39. इमारती लकड़ी और अन्य वन-उपज पर शुल्क अिधरोिपत करने की शिक्त—(1) 1 [के न्दर्ीय सरकार] ऐसी रीित से, ऐसे
स्थान म और ऐसी दर पर, जैसी वह राजपतर् म अिधसूचना ारा घोिषत करे , उस सब इमारती लकड़ी या वन-उपज पर शुल्क
उद्गृहीत कर सके गी—
(क) जो 2 [उन राज्यक्षेतर् म, िजन पर इस अिधिनयम का िवस्तार है] पैदा की जाती है और िजसके िवषय म
सरकार को कोई अिधकार पर्ाप्त है, या
(ख) जो 2[उन राज्यक्षेतर् के , िजन पर इस अिधिनयम का िवस्तार है], बाहर के िकसी स्थान से लाया जाता है ।
3* * * *
(2) ऐसे हर मामले म, िजसम ऐसे शुल्क की बाबत यह िनिदष्ट िकया गया है िक वह मूल्यानुसार उद्गृहीत िकया जाए,
1
[के न्दर्ीय सरकार] वैसी ही अिधसूचना ारा, वह मूल्य िनयत कर सके गी िजस पर ऐसा शुल्क िनधार्िरत होगा ।
(3) इमारती लकड़ी या अन्य वन-उपज पर जो शुल्क उस समय, जब वह अिधिनयम िकसी राज्यक्षेतर् म पर्वृ होता है, राज्य
सरकार के पर्ािधकार के अधीन उसम उद्गृहीत होते ह, उन सब की बाबत यह समझा जाएगा िक वे इस अिधिनयम के उपबन्ध के
अधीन उद्गृहीत होते ह और सम्यक् रूप से उद्गृहीत होते रहे ह ।
जब तक िक 5 [संसद्] ारा पर्ितकू ल उपबन्ध नह िकया जाता, राज्य सरकार इस धारा म िकसी बात के होते हुए भी
4 [(4)

िकसी शुल्क को लगातार उद्गृहीत कर सके गी, िजसे वह 6 [संिवधान] के पर्ारं भ 7 के पूवर् इस धारा के उस समय पर्वृ रूप म िविधपूणर्तः
उद्गृहीत करती थीः
परन्तु इस उपधारा की कोई बात ऐसे िकसी शुल्क का उद्गर्हण पर्ािधकृ त नह करती जो राज्य की इमारती लकड़ी या अन्य
वन-उपज और राज्य के बाहर के स्थान की समरूप इमारती लकड़ी या अन्य वन-उपज के बीच पूवर्किथत के पक्ष म िवभेद करता है, या
जो राज्य के बाहर िकसी स्थान की इमारती लकड़ी या अन्य वन-उपज के मामले म, िकसी एक स्थान की इमारती लकड़ी या अन्य वन-
उपज और अन्य स्थान की समरूप इमारती लकड़ी या वन-उपज के बीच िवभेद करता है ।]
40. सीमा सम्बन्धी उपबन्ध कर्य-धन या स्वािमस्व के सम्बन्ध म लागू नह होगा—इस अध्याय की िकसी बात की बाबत यह
न समझा जाएगा िक वह उस रािश को, यिद कोई हो, जो िकसी इमारती लकड़ी या अन्य वन-उपज पर कर्य-धन या स्वािमस्व के रूप म
पर्भायर् है, सीिमत करती है, भले ही वह ऐसी इमारती लकड़ी या उपज के अिभवहन के दौरान उस पर उस रीित से उद्गृहीत होता हो
िजससे शुल्क उद्गृहीत होता है ।

1
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा “स्थानीय सरकार” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।  
2
िविध अनुकूलन (सं० 3) आदेश, 1956 ारा “भाग क राज्य और भाग ग राज्य” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।  
3
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा परन्तुक िनरिसत ।
4
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा अन्तःस्थािपत ।
5
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “के न्दर्ीय िवधान-मण्डल” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।  
6
िविध अनुकूलन आदेश, 1950 ारा “भाग शासन अिधिनयम, 1935 के भाग 3” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।  
7
यथा, 26 जनवरी, 1950 ।
11

अध्याय 7

अिभवहन के दौरान इमारती लकड़ी और वन-उपज के िनयंतर्ण के सम्बन्ध म


41. वन-उपज के अिभवहन को िविनयिमत करने के िलए िनयम बनाने की शिक्त—(1) इमारती लकड़ी के बहाने के िवषय
म, सब निदयां और उनके तट का िनयंतर्ण और थल या जल ारा अिभवहन म की इमारती लकड़ी और अन्य वन-उपज का िनयंतर्ण,
राज्य सरकार म िनिहत है और वह सब इमारती लकड़ी और अन्य वन-उपज के अिभवहन को िविनयिमत करने के िलए िनयम बना
सके गी ।
(2) िवशेषतः और पूवर्वत शिक्त की ापकता पर पर्ितकू ल पर्भाव डाले िबना ऐसे िनयम—
(क) उन माग को िविहत कर सकगे िजन ारा ही इमारती लकड़ी या अन्य वन-उपज, राज्य म आयात या राज्य से
िनयार्त या राज्य के अन्दर स्थानान्तिरत की जा सके गी,
(ख) िकसी ऐसे अिधकारी के पास के िबना, जो उसे देने के िलए सम्यक् रूप से पर्ािधकृ त है, या ऐसे पास की शत के
अनुसार से अन्यथा ऐसी इमारती लकड़ी या अन्य उपज के आयात या िनयार्त या स्थानान्तरण को पर्ितिष कर सकगे,
(ग) ऐसे पास के िदए जाने, पेश करने और वापस करने के िलए और उनके िलए फीस के िदए जाने के िलए
उपबन्ध कर सकगे,
(घ) अिभवहन म की इमारती लकड़ी या अन्य वन-उपज को, िजसके िवषय म यह िवश्वास करने का कारण है िक
उसकी कीमत के कारण या उस पर देय िकसी शुल्क, फीस, या स्वािमस्व या पर्भार के कारण कोई धन सरकार को देय है या
िजस पर इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए िचह्न लगाना वांछनीय है, रोक लेने, उसके बारे म िरपोटर् देने, उसे परीिक्षत
करने, या िचिह्नत करने के िलए उपबन्ध कर सकगे,
(ङ) उन िडपु की स्थापना और िविनयमन के िलए, िजनम ऐसी इमारती लकड़ी या अन्य वन-उपज उन िक्तय
ारा िजनके भारसाधन म वह है, परीक्षा के िलए या ऐसे धन के िदए जाने के िलए, या इस हेतु िक ऐसे िचह्न उन पर लगाए
जाएं, ले जाई जाएगी और उन शत का िजनके अधीन ऐसी इमारती लकड़ी या अन्य वन-उपज ऐसे िडपु को लाई जाएगी,
उनम संगृहीत की जाएगी और उन से हटाई जाएंगी, उपबन्ध कर सकगे,
(च) इमारती लकड़ी और अन्य वन-उपज के अिभवहन के िलए पर्युक्त िकसी नदी की धारा या तट को बन्द करना
या बािधत करना और ऐसी िकसी नद म घास, झाड़ झंखाड, शाखाएं या पि यां फकना या ऐसा कोई अन्य कायर् करना
िजससे ऐसी नद बन्द या बािधत हो जाए, पर्ितिष कर सकगे,
(छ) ऐसी िकसी नदी की धारा या िकनार की िकसी बाधा के िनवारण या हटाने के िलए और उस िक्त से,
िजसके काय और उपेक्षा के कारण यह आवश्यक हुआ है, ऐसे िनवारण या हटाने का खचार् वसूल करने के िलए उपबन्ध कर
सकगे,
(ज) िविनिदष्ट स्थानीय सीमा के अन्दर, लकड़ी की िचराई के िलए ग ा बनाना, इमारती लकड़ी को संपिरवितत
करना, काट लेना, जलाना, िछपाना या उस पर िचह्न लगाना, उस पर िकन्ह िचह्न को बदलना या िमटाना या िचह्न
लगाने वाले हथौडे या इमारती लकड़ी को िचिह्नत करने के िलए पर्युक्त अन्य उपकरण को कब्जे म रखना या साथ ले जाना,
पूणर् रूप से या शत के अधीन पर्ितिष कर सकगे,
(झ) इमारती लकड़ी के िलए सम्पि संबंधी िचह्न के पर्योग और ऐसे िचह्न के रिजस्टर्ीकरण को िविनयिमत कर
सकगे, उस समय को िविहत कर सकगे, िजसके िलए ऐसा रिजस्टर्ीकरण पर्भावी रहेगा, ऐसे िचह्न की उस संख्या को सीिमत
कर सकगे जो िकसी िक्त ारा रिजस्टर्ीकृ त िकए जा सकगे, और ऐसे रिजस्टर्ीकरण के िलए फीस के उद्गर्हण के िलए
उपबन्ध कर सकगे ।
(3) राज्य सरकार िनदेश दे सके गी िक इस धारा के अधीन बनाया गया कोई िनयम इमारती लकड़ी या अन्य वन-उपज के
िकसी िविनिदष्ट वगर् को या िकसी िविनिदष्ट स्थानीय क्षेतर् को लागू नह होगा ।
[41क. सीमाशुल्क सीमान्त के पार इमारती लकड़ी के स्थानान्तरण िवषयक के न्दर्ीय सरकार की शिक्तयां—धारा 41 म
1

िकसी बात के होते हुए भी के न्दर्ीय सरकार उस मागर् को िविहत करने के िलए िनयम बना सके गी िजसके ारा ही इमारती लकड़ी या
अन्य वन-उपज ऐसे िकन्ह सीमाशुल्क सीमांत के पास, 2 जो के न्दर्ीय सरकार ारा पिरिनिश्चत ह, 3 [उन राज्यक्षेतर् म, िजन पर इस
अिधिनयम का िवस्तार है], या उनसे आयात या िनयार्त या स्थानान्तिरत की जा सके गी और धारा 41 के अधीन बनाए गए कोई िनयम,
इस धारा के अधीन बनाए गए िनयम के अधीन रह कर ही पर्भावी ह गे ।]

1
भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा अन्तःस्थािपत ।  
2
भारत सीमाशुल्क सीमान्त की पिरभाषा के िलए सागर सीमाशुल्क अिधिनयम, 1878 (1878 का 8) की धारा 3क और भारत का राजपतर्, 1955 भाग 2, खण्ड 3, पृ०
1521 देिखए ।  
3
िविध अनुकूलन (सं० 3) आदेश, 1956 ारा “भाग क राज्य और भाग ग राज्य” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।  
12

42. धारा 41 के अधीन बनाए गए िनयम के भंग के िलए शािस्त—(1) राज्य सरकार ऐसे िनयम के उल्लंघन के िलए शािस्त
के रूप म ऐसी अविध के िलए कारावास, जो छह मास तक का हो सके गा, या जुमार्ना, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन
ऐसे िनयम ारा िविहत कर सके गी ।
(2) ऐसे िनयम उपबन्ध कर सकगे िक उन मामल म, िजनम अपराध सूयार्स्त के पश्चात् और सूय दय के पूवर् या िविधपूणर्
पर्ािधकारी का पर्ितरोध करने के िलए तैयार करने के पश्चात् िकया गया है या जहां िक अपराधी उसी पर्कार के अपराध के िलए पहले
भी िस दोष हो चुका है, उपधारा (1) म विणत शािस्तय से दुगुनी शािस्तयां लगाई जा सकगी ।
43. िडपो म रखी वन-उपज को हुए नुकसान के िलए सरकार या वन अिधकारी उ रदायी नह ह गे—िकसी हािन या
नुकसान के िलए, जो िकसी इमारती लकड़ी या वन-उपज को उस समय हो जाए, जबिक वह धारा 41 के अधीन बनाए गए िकसी िनयम
के अधीन स्थािपत िकसी िडपो म है, या जब वह इस अिधिनयम के पर्योजन के िलए अन्यतर् रोक रखा गया है, सरकार उ रदायी नह
होगी, और जब तक कोई वन अिधकारी ऐसी हािन या नुकसान, उपेक्षा, िव षे या कपट से नह करता है, तब तक वह ऐसी हािन या
नुकसान के िलए उ रदायी नह होगा ।
44. िडपो पर दुघटर् ना की अवस्था म सब िक्त सहायता करने के िलए आब ह गे—ऐसे िकसी िडपो म िकसी सम्पि को
संकटापन्न करने वाली दुघर्टना या आपात की दशा म ऐसे िडपो म, चाहे सरकार ारा या चाहे िकसी पर्ाइवेट िक्त ारा, िनयोिजत
हर िक्त ऐसा संकट टालने या नुकसान या हािन से ऐसी सम्पि को बचाने के िलए उसकी अपनी सहायता मांगने वाले िकसी वन
अिधकारी या पुिलस अिधकारी को सहयता देगा ।
अध्याय 8

बहती हुई और अटकी हुई इमारती लकड़ी के संगर्हण के सम्बन्ध म


45. कितपय पर्कार की इमारती लकड़ी, जब तक िक उसके बारे म हक सािबत नह कर िदया जाता, सरकार की सम्पि
समझी जाएगी और तदनुसार संगहृ ीत की जा सके गी—(1) बहती हुई, िकनारे से लगी हुई, अटकी हुई या डू बी हई सब इमारती लकड़ी,
ऐसे सब काष्ठ और इमारती लकड़ी, िजस पर ऐसे िचह्न लगे ह जो धारा 41 के अधीन बनाए गए िनयम के अनुसार
रिजस्टर्ीकृ त नह ह, या िजस पर िचह्न अिग्न ारा या अन्यथा िमटाए, बदले या िबगाड़े गए ह, और
ऐसे क्षेतर् म, जैसे राज्य सरकार िविनिदष्ट करे , सभी अिचिह्नत काष्ठ और इमारती लकड़ी, जब तक िक कोई िक्त इस
अध्याय म यथा उपबिन्धत रूप म उन पर अपना अिधकार और हक िस नह कर दे, सरकार की सम्पि समझी जाएगी ।
(2) ऐसी इमारती लकड़ी िकसी वन अिधकारी या अन्य िक्त ारा, जो उसे धारा 51 के अधीन बनाए गए िकसी िनयम के
आधार पर संगृहीत करने का हकदार है, संगृहीत की जा सके गी और ऐसे िकसी िडपो म लाई जा सके गी िजसे वन अिधकारी बहती हुई
इमारती लकड़ी की पर्ािप्त के िलए अिधसूिचत करे ।
(3) राज्य सरकार राजपतर् म अिधसूचना ारा इमारती लकड़ी के िकसी वगर् को इस धारा के उपबन्ध से छू ट दे सके गी ।
46. बहती हुई इमारती लकड़ी के दावेदार को सूचना—धारा 45 के अधीन संगृहीत इमारती लकड़ी की लोक सूचना वन
अिधकारी ारा समय-समय पर दी जाएगी । ऐसी सूचना म इमारती लकड़ी का वणर्न अन्तिवष्ट होगा, और उस इमारती लकड़ी पर
दावा करने वाले िकसी िक्त से यह अपेक्षा की जाएगी िक तुम ऐसी सूचना की तारीख से दो मास से अन्यून कालाविध के अन्दर ऐसे
दावे का िलिखत कथन उपिस्थत करो ।
47. ऐसी इमारती लकड़ी पर िकए गए दावे के बारे म पर्िकर्या—(1) जबिक यथापूव क्त जैसा कोई कथन उपिस्थत िकया
जाए, तब वन अिधकारी ऐसी जांच करने के पश्चात्, िजसे वह ठीक समझता है, ऐसा करने के िलए अपने कारण को अिभिलिखत करने
के पश्चात् या तो दावे को खािरज कर सके गा या इमारती लकड़ी का पिरदान दावेदार को कर सके गा ।
(2) यिद एक से अिधक िक्तय ारा ऐसी इमारती लकड़ी पर दावा िकया जाता है, तो वन अिधकारी या तो उसे ऐसे
िक्तय म से िकसी को, िजसे वह उसका हकदार समझता है, पिरद कर सके गा, या दावेदार को िसिवल न्यायालय को िनदिशत
कर सके गा, और ऐसे िकसी न्यायालय से उस इमारती लकड़ी के यन सम्बन्धी आदेश की पर्ािप्त के लंिबत रहने तक उसे अपने कब्जे
म रख सके गा ।
(3) िजस िकसी िक्त का दावा इस धारा के अधीन खािरज िकया जा चुका है वह अपने ारा दावाकृ त इमारती लकड़ी का
कब्जा वािपस लेने के िलए वाद ऐसी खािरजी की तारीख से तीन मास के अन्दर संिस्थत कर सके गा, िकन्तु कोई िक्त ऐसी खािरजी
या िकसी इमारती लकड़ी के रोक रखे जाने या हटाने या इस धारा के अधीन अन्य िक्त को इसके पिरदान के कारण पर्ितकर या खचार्
सरकार से या िकसी वन अिधकारी से वसूल नह करे गा ।
(4) जब तक िक ऐसी कोई इमारती लकड़ी पिरद नह की गई है या इस धारा म यथा उपबिन्धत कोई वाद नह संिस्थत
िकया गया है, तब तक ऐसी इमारती लकड़ी िकसी िसिवल, दण्ड या राजस्व न्यायालय की आदेिशका के अधीन नह होगी ।
48. िजसका दावा नह िकया गया उस इमारती लकड़ी का यन—यिद यथापूव क्त ऐसा कोई कथन उपिस्थत नह िकया
जाता या यिद दावेदार धारा 46 के अधीन िनकाली गई सूचना ारा िनयत रीित से या कालाविध के अन्दर दावा करने का लोप करता
13

है या अपने ारा इस पर्कार दावा िकए जाने और उस दावे के खािरज िकए जाने पर ऐसी इमारती लकड़ी का कब्जा लेने के िलए धारा
47 ारा िनयत अपर कालाविध के अन्दर वाद संिस्थत करने का लोप करता है, तो ऐसी इमारती लकड़ी का स्वािमत्व सरकार म या
उस दशा म, िजसम िक ऐसी इमारती लकड़ी धारा 47 के अधीन अन्य िक्त को पिरद की गई है, ऐसे िक्त म उन सब िवल्लंगम
से मुक्त होकर िनिहत होगा, िजन्ह उसने सृष्ट नह िकया है ।
49. ऐसी इमारती लकड़ी को हुए नुकसान के िलए सरकार और उसके अिधकारी उ रदायी नह ह गे—िकसी हािन या
नुकसान के िलए, जो धारा 45 के अधीन संगृहीत िकसी इमारती लकड़ी को हुई या हुआ है, सरकार उ रदायी नह होगी और जब तक
िक कोई वन अिधकारी ऐसी हािन या नुकसान, उपेक्षा, िव षे या कपट से नह करता, तब तक वह ऐसी िकसी हािन या नुकसान के
िलए उ रदायी नह होगा ।
50. इमारती लकड़ी के पिरदान के पूवर् दावेदार ारा की जाने वाली अदायगी—जब तक िक कोई िक्त ऐसी रािश, जो
धारा 51 के अधीन बने िकसी िनयम के अधीन देय है, वन अिधकारी या अन्य िक्त को, जो उसे पर्ाप्त करने का हकदार है, उसके िलए
नह चुका देता, जब तक वह उपरोक्त रूप म संगृहीत या पिरद इमारती लकड़ी का कब्जा लेने का हकदार नह होगा ।
51. िनयम बनाने और शािस्तयां िविहत करने की शिक्त—(1) राज्य सरकार िनम्निलिखत बात का िविनयमन करने के िलए
1 [राजपतर् म अिधसूचना ारा िनयम बना सके गी,] अथार्त्:—
(क) धारा 45 म विणत सब इमारती लकड़ी का उ ारण, संगर्हण और यन,
(ख) इमारती लकड़ी के उ ारण और संगर्हण के िलए पर्युक्त नाव का पर्योग और रिजस्टर्ीकरण,
(ग) ऐसी इमारती लकड़ी के उ ारण, संगर्हण, स्थानान्तरण, भण्डार म रखने या यन के िलए दी जाने वाली
रािशयां, और
(घ) ऐसे इमारती लकड़ी को िचिह्नत करने के िलए पर्योग म आने वाले हथौड़े और अन्य उपकरण का पर्योग और
रिजस्टर्ीकरण ।
इस अिधिनयम के अधीन राज्य सरकार ारा बनाया गया पर्त्येक िनयम बनाए जाने के पश्चात्, यथाशीघर्, राज्य
2 [(1क)

िवधान-मंडल के समक्ष रखा जाएगा ।]


(2) राज्य सरकार इस धारा के अधीन बने िकन्ह िनयम के उल्लंघन के िलए, शािस्तय के रूप म, ऐसी अविध का कारावास,
जो छह मास तक का हो सके गा, या जुमार्ना, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन , िविहत कर सके गी ।
अध्याय 9

शािस्तयां और पर्िकर्या
52. अिधहरणीय सम्पि का अिभगर्हण—(1) जबिक यह िवश्वास करने का कारण है िक िकसी वन-उपज के बारे म कोई वन
िवषयक अपराध िकया गया है, जब ऐसी उपज, सब औजार , नाव , छक़ड़ या पशु सिहत, िजनका पर्योग ऐसे अपराध के करने म
हुआ है, िकसी वन अिधकारी या पुिलस अिधकारी ारा अिभगृहीत की जा सके गी ।
(2) इस धारा के अधीन िकसी सम्पि का अिभगर्हण करने वाला हर अिधकारी ऐसी सम्पि पर यह उपदिशत करने वाला
िचह्न लगाएगा िक उसका इस पर्कार अिभगर्हण हो गया है, और यथाशक्य शीघर् ऐसे अिभगर्हण की िरपोटर् उस अपराध का, िजसके
कारण अिभगर्हण हुआ है, िवचारण करने के िलए अिधकािरता रखने वाले मिजस्टर्ेट को भेजेगाः
परन्तु जबिक वह वन-उपज, िजसके बारे म यह िवश्वास है िक ऐसा अपराध हुआ है, सरकार की सम्पि है, और अपराधी
अज्ञात है, तब यिद यथाशक्य शीघर् अिधकारी पिरिस्थितय के बारे म िरपोटर् अपने पदीय विरष्ठ को दे देता है, तो वह पयार्प्त होगा ।
53. धारा 52 के अधीन अिभगृहीत सम्पि को िनमुक्
र् त करने की शिक्त—रजर से अिनम्न पंिक्त वाला वन अिधकारी, िजसने
या िजसके अधीनस्थ ने कोई औजार, नाव, छकड़े या ढोर धारा 52 के अधीन अिभगृहीत िकए ह, उन्ह उनके स्वामी ारा ऐसे बन्धपतर्
िनष्पािदत िकए जाने पर िनमुर्क्त कर सके गा िक यिद और जब मुझ से ऐसी अपेक्षा की जाएगी, तो और तब म इस पर्कार िनमुर्क्त
सम्पि उस मिजस्टर्ेट के समक्ष पेश कर दूग
ं ा िजसको उस अपराध का, िजसके कारण अिभगर्हण हुआ है, िवचारण करने की अिधकािरता
पर्ाप्त है ।
54. तदुपिर पर्िकर्या—ऐसी िकसी िरपोटर् की पर्ािप्त पर मिजस्टर्ेट सब सुिवधापूणर् शीघर्ता से, ऐसे उपाय करे गा जो अपराधी
की िगरफ्तारी और िवचारण और सम्पि का िविध के अनुसार यन के िलए आवश्यक ह ।

1
2005 के अिधिनयम, 4 की धारा 2 अनुसूची ारा पर्ितस्थािपत । 
2
2005 के अिधिनयम, 4 की धारा 2 अनुसूची ारा अंतःस्थािपत । 
14

55. वन-उपज, औजार आिद कब अिधहरणीय ह गे—(1) ऐसी सब इमारती लकड़ी या वन-उपज, जो सरकार की सम्पि
नह है, और िजसके िवषय म वन अपराध िकया गया है, और ऐसे वन िवषयक अपराध के करने म पर्युक्त सब औजार, नाव, छकड़े और
पशु अिधहरणीय ह गे ।
(2) ऐसा अिधहरण, ऐसे अपराध के िलए िविहत िकसी अन्य दण्ड के अितिरक्त हो सके गा ।
56. वन-अपराध के िलए हुए िवचारण की समािप्त पर, उस वन-उपज का यन िजसके सम्बन्ध म यह अपराध हुआ है—जब
िकसी वन िवषयक अपराध का िवचारण समाप्त हो जाता है, तब यिद वह वन-उपज, िजसके संबंध म ऐसा अपराध हुआ है, सरकार की
सम्पि है या उसका अिधहरण हुआ है, तो वह वन अिधकारी ारा अपने भारसाधन म ले ली जाएगी, और िकसी अन्य दशा म, उसका
ऐसी रीित से यन िकया जा सके गा, जैसी न्यायालय िनिदष्ट करे ।
57. जब अपराधी अज्ञात है, या पाया न जा सके , तब पर्िकर्या—जब िक अपराधी अज्ञात है या पाया नह जा सकता, तब यिद
मिजस्टर्ेट का यह िनष्कषर् है िक कोई अपराध िकया गया है, तो वह यह आदेश दे सके गा िक िजस सम्पि के संबंध म अपराध हुआ है,
वह अिधहृत की जाए और वन अिधकारी ारा अपने भारसाधन म ले ली जाए या उस िक्त को दे दी जाए िजसे मिजस्टर्ेट उसका
हकदार समझता हैः
परन्तु जब तक िक ऐसी सम्पि के अिभगर्हण की तारीख से एक मास का अवसान न हो गया हो, या उस पर िकसी अिधकार
का दावा करने वाले िक्त की, यिद कोई हो, और ऐसे सा य की, यिद कोई हो, िजसे वह अपने दावे के समथर्न म पेश करे , सुनवाई
नह हो जाती है, तब तक ऐसा कोई आदेश नह िदया जाएगा ।
58. धारा 52 के अधीन अिभगृहीत िवनश्वर सम्पि िवषयक पर्िकर्या—मिजस्टर्ेट धारा 52 के अधीन अिभगृहीत और शीघर्
और पर्कृ त्या क्षयशील सम्पि के िवकर्य के िलए इसम इसके पूवर् अन्तिवष्ट िकसी बात के होते हुए भी िनदेश दे सके गा और आगम से
इस पर्कार बरत सके गा, िजस पर्कार वह ऐसी सम्पि से तब बरतता जबिक वह बेची न गई होती ।
59. धारा 55, धारा 56 या धारा 57 के अधीन आदेश की अपील—वह अिधकारी, िजसने धारा 52 के अधीन अिभगर्हण
िकया है, या उसके पदीय विर म से कोई या इस पर्कार अिभगृहीत सम्पि म िहतब होने का दावा करने वाला कोई िक्त, धारा
55, धारा 56 या धारा 57 के अधीन पािरत िकए गए िकसी आदेश की तारीख से एक मास के अन्दर, उस आदेश की अपील उस
न्यायालय म कर सके गा िजसम ऐसे मिजस्टर्ेट ारा िदए गए आदेश की अपील मामूली तौर से होती है, और ऐसी अपील पर पािरत
आदेश अिन्तम होगा ।
60. सम्पि कब सरकार म िनिहत होगी—जब िक, यथािस्थित, धारा 55 या धारा 57 के अधीन िकसी सम्पि के अिधहरण
के िलए आदेश पािरत िकया जा चुका है, और ऐसे आदेश की अपील के िलए धारा 59 ारा पिरसीिमत कालाविध बीत गई है, और ऐसी
कोई अपील नह की गई है, या जबिक ऐसी अपील के िकए जाने पर अपील न्यायालय, ऐसी सम्पूणर् सम्पि या उसके िकसी पर्भाग के
बारे म, ऐसे आदेश की पुिष्ट करता है, तो, यथािस्थित, ऐसी सम्पूणर् सम्पि या उसका ऐसा कोई पर्भाग सब िवल्लंगम से मुक्त होकर
सरकार म िनिहत होगा ।
61. अिभगृहीत सम्पि को िनमुक्
र् त करने की शिक्त की ावृि —इसम इसके पूवर् अन्तिवष्ट िकसी बात की बाबत यह नह
समझा जाएगा िक वह राज्य सरकार ारा इस िनिम सशक्त अिधकारी को ऐसी सम्पि को तुरन्त िनमुर्क्त करने का िनदेश देने से
िनवािरत करती है जो धारा 52 के अधीन अिभगृहीत की गई है ।
62. दोषपूणर् अिभगर्हण के िलए दण्ड—जो कोई वन अिधकारी या पुिलस अिधकारी तंग करने के िलए और अनावश्यक रूप से
िकसी सम्पि का अिभगर्हण इस बहाने करता है िक ऐसी अिभगृहीत सम्पि इस अिधिनयम के अधीन अिधहरणीय है, वह उस अविध
के िलए कारावास से, जो छह मास तक की हो सके गी या जुमार्ने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दण्डनीय होगा ।
63. वृक्ष और इमारती लकड़ी पर िचह्न के कू टकरण करने और उन्ह िवरूिपत करने और सीमा िचह्न को बदलने के िलए
शािस्त—जो लोक या िकसी िक्त को नुकसान या क्षित पहुंचाने या भारतीय दण्ड संिहता (1860 का 45) म यथापिरभािषत सदोष
लाभ के आशय से—
(क) जानबूझकर िकसी इमारती लकड़ी या खड़े वृक्ष पर िकसी ऐसे िचह्न का कू टकरण करे गा िजसे वन अिधकारी
यह उपदिशत करने के िलए पर्योग करते ह िक ऐसी इमारती लकड़ी या वृक्ष सरकार या िकसी िक्त की सम्पि है, या उसे
िकसी िक्त ारा िविधतः काटा या हटाया जा सके गा, या
(ख) िकसी वन अिधकारी के पर्ािधकार ारा या उसके अधीन िकसी वृक्ष या इमारती लकड़ी पर लगे िकसी ऐसे
िचह्न को बदलेगा, िवरूिपत करे गा या िमटाएगा, या
(ग) िकसी वन या बंजर भूिम के , िजसको इस अिधिनयम के उपबन्ध लागू होते ह, सीमा-िचह्न को बदलेगा,
सरकाएगा, नष्ट करे गा या िवरूिपत करे गा,
वह कारावास से, िजसकी अविध दो वषर् तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, या दोन से, दण्डनीय होगा ।
15

64. वारं ट के िबना िगरफ्तार करने की शिक्त—(1) ऐसे िकसी िक्त को, िजसके िवरु यह युिक्तयुक्त संदह
े िव मान है
िक वह एक मास या उससे अिधक के कारावास से दण्डनीय िकसी वन िवषयक अपराध से सम्पृक्त है, कोई वन अिधकारी या पुिलस
अिधकारी िकसी मिजस्टर्ेट के आदेश के और िकसी वांरट के िबना िगरफ्तार कर सके गा ।
(2) इस धारा के अधीन िगरफ्तार करने वाला हर अिधकारी िकसी अनावश्यक िवलम्ब के िबना और बन्धपतर् पर िनमुर्क्त
करने संबंधी अिधिनयम के उपबंध के अधीन रहते हुए, िगरफ्तार िकए गए िक्त को ऐसे मिजस्टर्ेट के , िजसे इस मामले म
अिधकािरता पर्ाप्त है, समक्ष या िनकटतम पुिलस स्टेशन के भारसाधक अिधकारी के पास ले जाएगा या भेजेगा ।
(3) इस धारा की िकसी बात की बाबत यह नह समझा जाएगा िक वह ऐसे कायर् के िलए, जो अध्याय 4 के अधीन अपराध है,
ऐसी िगरफ्तारी करने के िलए पर्ािधकृ त करती है, जब तक िक धारा 30 के खण्ड (ग) के अधीन ऐसा कायर् पर्ितिष न कर िदया
गया हो ।
65. िकसी िगरफ्तार िक्त को बन्ध-पतर् पर िनमुक् र् त करने की शिक्त—रजर से अिनम्न पंिक्त का कोई वन अिधकारी,
िजसने या िजसके अधीनस्थ ने, धारा 64 के उपबन्ध के अधीन िकसी िक्त को िगरफ्तार िकया है, ऐसे िक्त को उस ारा यह
बन्धपतर् िनष्पािदत कर िदए जाने पर िनमुर्क्त कर सके गा िक यिद और जब अपेक्षा की जाएगी, तो और तब म मामले के बारे म
अिधकािरता पर्ाप्त मिजस्टर्ेट के समक्ष या िनकटतम पुिलस स्टेशन के भारसाधक अिधकारी के समक्ष, उपसंजात हो जाऊंगा ।
66. अपराध का िकया जाना िनवािरत करने की शिक्त—हर वन अिधकारी और पुिलस अिधकारी िकसी वन िवषयक
अपराध के िकए जाने को िनवािरत करे गा और उसे िनवािरत करने के पर्योजन के िलए हस्तक्षेप कर सके गा ।
67. अपराध का संिक्षप्ततः िवचारण करने की शिक्त—िजला मिजस्टर्ेट या राज्य सरकार ारा इस िनिम िवशेषतया
सशक्त कोई पर्थम वगर् मिजस्टर्ेट दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1898 (1898 का 5) के अधीन िकसी ऐसे वन िवषयक अपराध का िवचारण
संिक्षप्ततः कर सके गा, जो छह मास से अनिधक कारावास या पांच सौ रुपए से अनिधक जुमार्ने से, या दोन से दण्डनीय है ।
68. अपराध का शमन करने की शिक्त—(1) राज्य सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, िकसी वन अिधकारी को शिक्त
पर्दान कर सके गी िक वह—
(क) िकसी ऐसे िक्त से, िजसके िवरु ऐसा युिक्तयुक्त संदह े िव मान है िक उसने धारा 62 या धारा 63 म
िविनिदष्ट िकसी अपराध से िभन्न कोई वन िवषयक अपराध िकया है, उस अपराध के िलए िजसके बारे म यह संदह े है िक
उसने ऐसा अपराध िकया है, पर्ितकर के रूप म कोई धनरािश पर्ितगृहीत कर ले, और
(ख) जब कोई सम्पि अिधहरणीय होने के नाते अिभगृहीत की गई है, तब ऐसे अिधकारी ारा यथा पर्ाक्किलत
उसके मूल्य के दे िदए जाने पर उस सम्पि को िनमुर्क्त कर दे ।
(2) ऐसे अिधकारी के , यथािस्थित, ऐसी धनरािश, या मूल्य या दोन के दे िदए जाने पर संिदग्ध िक्त को यिद वह अिभरक्षा
म है, उन्मोिचत कर िदया जाएगा, और वही सम्पि , यिद कोई हो, जो अिभगृहीत की गई है, िनमुर्क्त कर दी जाएगी तथा ऐसे िक्त
या ऐसी सम्पि के िवरु आगे कोई कायर्वाही नह की जाएगी ।
(3) इस धारा के अधीन िकसी वन अिधकारी को उस दशा म ही शिक्त पर्द की जाएगी जब िक वह रजर से अिनम्न पंिक्त
का वन अिधकारी नह है और कम से कम सौ रुपए मािसक वेतन पाता है, और उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन पर्ितकर के रूप म
पर्ितगृहीत धनरािश िकसी भी दशा म पचास रुपए से अिधक नह है ।
69. यह उपधारणा िक वन-उपज सरकार की है—जबिक इस अिधिनयम के अधीन की गई िकसी कायर्वाही म, या इस
अिधिनयम के अधीन िकए गए िकसी कायर् के पिरणामस्वरूप ऐसा पर्श्न उठता है िक क्या कोई वन-उपज सरकार की सम्पि है या
नह , तब, जब तक िक पर्ितकू ल सािबत न कर िदया जाए, ऐसी उपज के बारे म यह उपधारणा की जाएगी िक वह सरकार की
सम्पि है ।
अध्याय 10
पशु अितचार
70. पशु अितचार अिधिनयम, 1871 का लागू होना—िकसी आरिक्षत वन म या िकसी संरिक्षत वन के िकसी पर्भाग म, जो
िविधपूणर्तः चरागाह के िलए बन्द िकया गया है, अितचार करने वाले पशु को पशु अितचार अिधिनयम, 1871 (1871 का 1) की
धारा 11 के अथर् म लोक बागान को नुकसान करने वाला पशु समझा जाएगा और िकसी वन अिधकारी या पुिलस अिधकारी ारा उन्ह
अिभगृहीत और पिरब िकया जा सके गा ।
71. उस िनयम के अधीन िनयत जुमार्न को बदलने की शिक्त—राज्य सरकार, राजपतर् म अिधसूचना ारा, िनदेश दे सके गी
िक पशु अितचार अिधिनयम, 1871 (1871 का 1) की धारा 12 के अधीन िनयत जुमार्न के बदले म, इस अिधिनयम की धारा 70 के
अधीन पिरब हर पशु के िलए ऐसा जुमार्ना उद्गृहीत िकया जाएगा जैसा िक वह ठीक समझती है, िकन्तु वह िनम्निलिखत से अिधक
नह होगा, अथार्त्:—
हर हाथी के िलए..............................................................................................................दस रुपए
हर भस या ऊंट के िलए.......................................................................................................दो रुपए
16

हर घोड़े, खस्सी, पशु, टट्टू , बछेड़,े बछेड़,े खच्चर, सांड, बैल, गाय या बछेड़ी के िलए..........................एक रुपए
हर बछड़े, गधे, सूअर, मेढे, भेड़, मेमने, बकरी या उसके मेमन के िलए..........................................आठ आने ।
अध्याय 11
वन अिधकािरय के सम्बन्ध म
72. राज्य सरकार वन अिधकािरय म कितपय शिक्तयां िविनिहत कर सके गी—(1) राज्य सरकार िकसी वन अिधकारी म
िनम्निलिखत सब शिक्तयां या उनम से कोई शिक्त िविनिहत कर सके गी, अथार्त्:—
(क) िकसी भूिम पर जाने और उसका सवक्षण, सीमांकन और नक्शा तैयार करने की शिक्त,
(ख) सािक्षय को हािजर होने के िलए और दस्तावेज और सारवान् वस्तु को पेश करने के िलए िववश करने
वाली िसिवल न्यायालय की शिक्तयां,
(ग) दण्ड पर्िकर्या संिहता, 1898 (1898 का 5) के अधीन तलाशी वारंट िनकालने की शिक्त, और
(घ) वन िवषयक अपराध की जांच और ऐसी जांच के दौरान सा य लेने और उसे अिभिलिखत करने की शिक्त ।
(2) उपधारा (1) के खण्ड (घ) के अधीन अिभिलिखत कोई सा य मिजस्टर्ेट के सामने िकसी पश्चात्वत िवचारण म गर्ा
होगा, परन्तु यह तब जबिक अिभयुक्त िक्त की उपिस्थित म वह सा य िलया गया हो ।
73. वन अिधकािरय को लोक सेवक समझा जाएगा—सभी वन अिधकािरय को भारतीय दण्ड संिहता (1860 का 45) के
अथार्न्तगर्त लोक सेवक समझा जाएगा ।
74. सद्भावपूवक र् िकए गए काय के िलए पिरतर्ाण—इस अिधिनयम के अधीन लोक सेवक ारा सद्भावपूवर्क िकए गए
िकसी कायर् के िलए उसके िवरु कोई वाद नह चलाया जाएगा ।
75. वन अिधकारी ापार नह करगे—राज्य सरकार की िलिखत अनुज्ञा के िबना, कोई वन अिधकारी मािलक या अिभकतार्
के रूप म इमारती लकड़ी या अन्य वन-उपज का ापार नह करे गा, या िकसी वन के प े म या िकसी वन के ठे के म िहतब नह होगा
या बनेगा या चाहे ये बात 1 [उन राज्यक्षेतर् के , िजन पर यह अिधिनयम िवस्तािरत होता है], अन्दर ह या बाहर ह ।
अध्याय 12

समनुषग
ं ी िनयम
76. िनयम बनाने की अितिरक्त शिक्तयां—राज्य सरकार िनम्निलिखत के िलए िनयम बना सके गी—
(क) इस अिधिनयम के अधीन िकसी वन अिधकारी की शिक्तय और कतर् को िविहत और सीिमत करने के िलए,
(ख) इस अिधिनयम के अधीन जुमार्ना और अिधहरण के आगम म से अिधकािरय और भेिदय को िदए जाने वाले
पुरस्कार का िविनयमन करने के िलए,
(ग) सरकार के वृक्ष और इमारती लकड़ी का, जो पर्ाईवेट िक्तय की भूिमय म उगे हुए ह या उनके अिधभोग म
ह, संरक्षण, पुनरुत्पादन और यन करने के िलए, और
(घ) साधारणतः इस अिधिनयम के उपबन्ध को िकर्यािन्वत करने के िलए ।
77. िनयम के भंग के िलए शािस्तयां—इस अिधिनयम के अधीन िकसी िनयम को, िजसके उल्लंघन के िलए कोई िवशेष
शािस्त उपबिन्धत नह है, भंग करने वाला कोई िक्त ऐसी अविध के कारावास से, जो एक मास तक का हो सके गा, या जुमार्ने से, जो
पांच सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से, दण्डनीय होगा ।
78. िनयम को कब िविध का बल पर्ाप्त होता है—इस अिधिनयम के अधीन राज्य सरकार ारा बनाए गए सभी िनयम
राजपतर् म पर्कािशत िकए जाएंगे, और तदुपिर, जहां तक वे इस अिधिनयम से सुसंगत ह, वहां तक वे इस पर्कार पर्भावशील ह गे, मानो
वे इसम अिधिनयिमत हुए ह ।
अध्याय 13

पर्कीणर्
79. वन अिधकािरय और पुिलस अिधकािरय को सहायता देने के िलए आब िक्त—(1) ऐसा हर िक्त, जो िकसी
आरिक्षत या संरिक्षत वन म िकसी अिधकार का पर्योग करता है, या ऐसे वन से िकसी वन-उपज को लेने, या इमारती लकड़ी काटने और
हटाने या उसम ढोर चराने के िलए अनुज्ञात है, और हर िक्त, जो ऐसे वन म िकसी ऐसे िक्त ारा िनयोिजत है, और

1
िविध अनुकूलन (सं० 3) आदेश, 1956 ारा “भाग क राज्य और भाग ग राज्य” के स्थान पर पर्ितस्थािपत ।  
17

ऐसे वन से समीपस्थ िकसी गर्ाम का हर िक्त, जो सरकार ारा िनयोिजत है या जो समुदाय के पर्ित की जाने वाली सेवा
के िलए, सरकार से उपलिब्धयां पाता है,
ऐसी जानकारी, जो िकसी वन िवषयक अपराध के िकए जाने या िकए जाने के आशय के िवषय म उसके पास है, िनकटतम वन
अिधकारी या पुिलस अिधकारी को अनाश्यक िवलम्ब के िबना देने के िलए आब होगा, और—
(क) ऐसे वन म िकसी वन अिग्न को, िजसके बारे म उसे ज्ञान या जानकारी है, बुझाने के िलए,
(ख) ऐसे वन के सामीप्य म की िकसी अिग्न को, िजसका उसे ज्ञान या जानकारी है, अपनी शिक्त के अनुसार िकन्ह
वैध साधन ारा ऐसे वन म फै ल जाने से रोकने के िलए,
तुरन्त कायर्वाही करे गा चाहे उससे िकसी वन अिधकारी या पुिलस अिधकारी ारा ऐसी अपेक्षा की गई हो या नह , और
(ग) ऐसे वन म वन िवषयक अपराध को रोकने, और
(घ) जबिक यह िवश्वास करने का कारण है िक ऐसे वन म ऐसा कोई अपराध िकया गया है, तब अपराधी का पता
चलाने और उसे िगरफ्तार करने म,
उसकी सहायता मांगने वाले िकसी वन अिधकारी या पुिलस अिधकारी की सहायता करे गा ।
(2) जो कोई िक्त ऐसा करने के िलए आब होते हुए िविधपूणर् पर्ितहेतु के िबना (िजसे सािबत करने का भार ऐसे िक्त
पर होगा—
(क) उपधारा (1) ारा अपेिक्षत जानकारी िनकटतम वन अिधकारी या पुिलस अिधकारी को अनावश्यक िवलम्ब के
िबना नह देगा,
(ख) िकसी आरिक्षत या संरिक्षत वन म वन अिग्न को बुझाने के िलए उपधारा (1) ारा यथा अपेिक्षत कायर्वाही
नह करे गा,
(ग) ऐसे वन के सामीप्य म की िकसी अिग्न को ऐसे वन म फै लने से नह रोके गा जैसा िक उपधारा (1) ारा
अपेिक्षत है, या
(घ) ऐसे वन म िकसी वन अपराध का िकया जाना रोकने म या उस दशा म िजसम िक यह िवश्वास करने का
कारण है िक ऐसे वन म ऐसा कोई अपराध हुआ है, अपराधी का पता चलाने और उसे िगरफ्तार करने म उसकी सहायता
मांगी जाने पर िकसी वन अिधकारी या पुिलस अिधकारी की मदद नह करे गा,
वह ऐसी अविध के कारावास से, जो एक मास तक की हो सके गी, या जुमार्ने से, जो दो सौ रुपए तक का हो सके गा, या दोन से,
दण्डनीय होगा ।
80. उन वन का पर्बन्ध जो सरकार और अन्य िक्तय की संयक् ु त सम्पि है—(1) यिद सरकार और कोई िक्त िकसी वन
या बंजर भूिम म, या उसकी पूरी उपज या उसके िकसी भाग म संयुक्ततः िहतब है, तो राज्य सरकार या तो—
(क) उसम ऐसे िक्त को उसके िहत के िलए लेखा देते रहते हुए, ऐसे वन, बंजर भूिम या उपज का पर्बन्ध अपने
हाथ म ले लेगी, या
(ख) इस पर्कार संयुक्ततः िहतब िक्त ारा वन, बंजर भूिम या उपज का पर्बन्ध करने के िलए ऐसे िविनयम
िनकाल सके गी जैसे वह उसके पर्बंध और उसम के सब पक्षकार के िहत म आवश्यक समझती है ।
(2) जब िक उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन सरकार िकसी वन, बंजर भूिम या उपज का पर्बन्ध अपने हाथ म लेती है, तब
वह राजपतर् म अिधसूचना ारा यह घोिषत कर सके गी िक ऐसे वन, बंजर भूिम या उपज को अध्याय 2 और 4 म अन्तिवष्ट कोई
उपबन्ध लागू ह गे और तदुपिर ऐसे उपबन्ध तदनुसार लागू ह गे ।
81. ऐसी सेवा करने म असफलता िजसके िलए सरकारी वन म की उपज के िकसी अंश का उपभोग िकया जाता है—यिद कोई
िक्त, िकसी ऐसे वन की उपज का, जो सरकार की सम्पि है, या िजस पर सरकार का साम्पि क अिधकार है या वन-उपज के िकसी
भाग के , िजसकी सरकार हकदार है, अंश का इस शतर् पर हकदार है, िक ऐसे वन से सम्बिन्धत सेवा वह सम्यक् रूप से करता रहे, तो
राज्य सरकार का समाधान कर देने वाले रूप म यह तथ्य िस हो जाने की दशा म िक ऐसी सेवा अब नह की जा रही है, ऐसा अंश
अिधहरणीय हो जाएगाः
परन्तु जब तक िक राज्य सरकार ारा इस िनिम सम्यक् रूप से िनयुक्त अिधकारी ारा उसके हकदार िक्त की, और ऐसे
सा य की, यिद कोई हो, िजसे वह ऐसी सेवा के सम्यक् रूप से िकए जाने के सबूत म पेश करे , सुनवाई न की गई हो, तब तक ऐसे िकसी
अंश का अिधकरण नह होगा ।
18

82. सरकार को शोध्य धन की वसूली—इस अिधिनयम या इस अिधिनयम के अधीन बनाए गए िकसी िनयम के अधीन या
िकसी वन-उपज की कीमत या ऐसी उपज के सम्बन्ध म इस अिधिनयम के िनष्पादन म उपगत य के कारण सरकार को देय सब धन,
यिद शोध्य होने पर न िदए गए ह , तत्समय पर्वृ िविध के अनुसार ऐसे वसूल िकए जा सकगे मानो वे भू-राजस्व की बकाया ह ।
83. ऐसे धन के िलए वन-उपज पर धारणािधकार—(1) जब िक िकसी वन-उपज के िलए या उसके सम्बन्ध म ऐसा कोई धन
देय है, तब उसकी रािश ऐसी उपज पर पर्थम भार समझी जाएगी, और जब तक िक ऐसी रािश चुका नह दी जाए तब तक के िलए ऐसी
उपज-वन अिधकारी ारा अपने कब्जे म ली जा सके गी ।
(2) यिद जब यह रािश शोध्य होती है तब चुका नह दी जाती है, तो वन अिधकारी ऐसी उपज का लोक नीलाम ारा िवकर्य
कर सके गा और िवकर्य के आगम को पर्थमतः ऐसी रािश को चुकाने म पर्युक्त िकया जाएगा ।
(3) यिद कोई अितशेष रहे, तो उस दशा म िजसम िक उसके िलए हकदार िक्त ारा दावा िवकर्य की तारीख से दो मास के
अन्दर नह िकया जाता, वह सरकार को समपहृत हो जाएगा ।
84. इस अिधिनयम के अधीन अपेिक्षत भूिम की बाबत यह समझा जाना िक उसकी आवश्यकता भूिम अजर्न अिधिनयम,
1894 के अधीन लोक पर्योजन के िलए है—जब कभी राज्य सरकार को ऐसा पर्तीत होता है िक इस अिधिनयम के पर्योजन म से िकसी
पर्योजन के िलए कोई भूिम अपेिक्षत है, तो ऐसी भूिम के बारे म यह समझा जाएगा िक भूिम अजर्न अिधिनयम, 1894 (1894 का 1) की
धारा 4 के अथर् के अन्दर उसकी लोक पर्योजन के िलए आवश्यकता है ।
85. बन्धपतर् के अधीन शोध्य शािस्तय की वसूली—जबिक कोई िक्त, इस अिधिनयम के िकसी उपबन्ध के अनुसार या
उसके अधीन बनाए गए िकसी िनयम के अनुपालन म, िकसी बन्धपतर् या िलखत ारा िकसी कतर् या कायर् के पालन के िलए, अपने को
आब करता है, या िकसी बन्धपतर् या िलखत ारा पर्संिवदा करता है िक म या म और मेरे सेवक और अिभकतार्गण िकसी कायर् से
पर्िवरत रहगे, तब भारतीय संिवदा अिधिनयम, 1872 (1872 का 9) की धारा 74 म िकसी बात के होते हुए भी ऐसे बन्धपतर् या िलखत
म जो रािश उसकी शत के भंग होने की दशा म दी जाने वाली रािश के रूप म विणत है, ऐसे भंग होने की दशा म उस समस्त रािश को
ऐसे वसूल िकया जा सके गा मानो वह रािश भू-राजस्व की बकाया हो ।
[85क. के न्दर्ीय सरकार के अिधकार के िलए ावृि —इस अिधिनयम की कोई बात, िकसी राज्य सरकार को, उस राज्य म
1

िनिहत न हुई सम्पि के सम्बन्ध म कोई आदेश देने या कोई कायर् करने के िलए या सम्पृक्त सरकार की सम्मित के िबना के न्दर्ीय सरकार
या िकसी अन्य राज्य सरकार के िकन्ह अिधकार पर अन्यथा पर्ितकू ल पर्भाव डालने के िलए पर्ािधकृ त नह करे गी ।]
86. [िनरसन ।]—िनरसन और संशोधन अिधिनयम, 1948 (1948 का 2) की धारा 2 और अनुसूची ारा िनरिसत ।

अनुसच
ू ी—[अिधिनयिमितयां िनरिसत ।]—िनरसन और संशोधन अिधिनयम, 1948 (1948 का 2) की धारा 2 और अनुसच
ू ी
ारा िनरिसत ।
______

1
पूवर्वत धारा 85क के , िजसे भारत शासन (भारतीय िविध अनुकूलन) आदेश, 1937 ारा अन्तःस्थािपत िकया गया था, स्थान पर िविध अनुकूलन आदेश, 1950
ारा पर्ितस्थािपत ।

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