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द्वितीय अध्याय

द्विन्दी द्विर्गुण काव्य का द्विकासात्मक परिचय

द्विर्गुण भक्ति अर्ु स्वरुप द्विकास द्विर्गुण शब्द की व्यगत्पद्वि के सम्बन्ध में द्विखा िै द्वक –
द्विर्गुण शब्द द्विि उपसर्ु का अर्ु िद्वित सिु द्विद्वित िै । पिन्तग र्गण शब्द अिेक अर्ो में
प्रयगि िोते िैं । िेिो में र्गण शब्द का प्रयोर् अिेक स्र्ाि पि हुआ िै पिन्तग उसका अर्ु
सिुत्र एक ि िोकि द्वभन्न-द्वभन्न िोता िै 13। न्याय िशुि में चौबीस प्रकाि के र्गण बतायें र्यें
िै –रुप, िस, र्न्ध, स्पशु , संख्या, परिमाण, पृर्क्त्व, संयोर् , द्वियोर्, पितत्व,
अपित्व, र्गरुत्व, द्रित्व, स्नेि, शब्द, बगक्ति, सगख-िग ुःख , इच्छा, िे ष, प्रयत्न, धमु, धमु,
तर्ा संस्काि आद्वि14। श्रीमि् भार्ित् में तीि प्रकाि के र्गण का िणुि द्वकया र्या िै -सत्व,
िजस, औि तमस । डां . भोिािार् द्वतिािी िािा द्विर्गुण शब्द का अर्ु - 1 -र्गण िद्वित,
र्गणातीत, पिमेश्वि , ब्रह्म , सतोर्गण, िजोर्गण, तमोर्गण िद्वित: 2-अिे ि, द्वििं काि, द्वििाकाि
िै 15। िृिि द्विन्दी कोश में द्विर्गुण शब्द का अर्ु – जो सत् , िज, औि तम इि तीिों र्गणों
से पिे िो, द्वत्रर्गणातीत:जो र्गणिाि ि िो, र्गणिद्वित: द्वजसमें डोिी ि िो (धिगष) द्वत्रर्गणातीत
पिमात्मा िै 16। डां . धीिे न्द्र िमाु के अिगसाि द्विर्गुण शब्द का अर्ु -द्विर्गुण शब्द अपिे
परिभाद्वषक रुप में सत्वाद्वि र्गणों से िद्वित ता उिसे पिे समझी जािे िािी द्वकसी ऐसे
अद्वििुचिीय सिा का बोधक िै , द्वजसे बहुधा पिमतत्व, पिमात्मा अतिा ब्रह्म जैसी संज्ञाओं
िािा अद्वभद्वित द्वकया जाता िै 17। आचायु िामचन्द्र िमाु िािा द्विर्गुण शब्द का अर्ु िै – सत्
,िज, तम इि तीिों र्गणों से पिे , द्वजसमें कोई अच्छाई ि िो18। सूक्तिसार्ि में द्विर्गुण
शब्द का अर्ु द्विखा िै - ईश्वि के द्वसिा इस संसाि में कोई द्वििर्गण ििी िै यद्वि ध्याि
पूिुक िे खा जाय तो अिर्गणी में भी कोई ि कोई र्गण ििता िी िै 19। द्विर्गुण शब्द का अर्ु
श्रौत साद्वित्य में स्वीकाि ििी किते िै इस सन्दभु में डां . आडिकि जी की धािणा िै द्वक
द्विर्गुण का प्रयोर् सिुप्रर्म मिाभाित औि र्ीता में द्विखायी िे ता िै 20। कगछ समािोचक इसके
प्रयोर् का इद्वतिास उपद्विषिों को स्वीकाि किते िैं यि दृद्विकोण अद्वधक उपयगुि िै ।
क्योद्वकं द्विर्गुण शब्द का सिुपर्म व्यििाि उपद्विषिों में िी परििद्वित िै । तर्ाद्वप द्विर्गुण शब्द
का बीजतत्व ऋग्वेि में समाद्वित िै । ब्रह्म के स्वरुप को िेकि ऋग्वेि के िासिीय सूि
में किा र्या िै द्वक

िासिासीन्नों सिासीििािी िासीिजो ि व्योमा पिोयत्

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