श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र

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2/5/2019 ीकृ कृपाकटा ो - Aaradhika.

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ीकृ कृपाकटा ो
By Archana Agarwal - December 30, 2016

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मूकं करोित वाचालं पंगु लंघयते िग रम्।


य ृ पा तमहं व े परमान माधवम्।।

अथात् –िजनकी कृपा से गूंगे ब त बोलने लगते ह; पं गु पहाड़ को लांघ जाते ह, उन परमान प माधव की म
व ना करता ँ ।

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पू ण भगवान ीकृ की कृपा ा करने के िलए कोई उपाय है तो वह है केवल भगवान का रण व कीतन।
भगवान यं नारदजी से कहते ह–

नाहं वसािम वैकु े योिगनां दये न च।


म ा य गाय त ित ािम नारद।।

अथात् –भगवान तो केवल वही ं िवराजते ह, जहां उनके भ उनका गुणगान करते ह। ‘कलौ केशवकी नात् ’–
किलकाल म भगवान केशव का कीतन ही भवसागर से पार होने का एकमा साधन है ।

भगवान ीकृ मं गल प ह अत: उनके नाम- प-लीला का गान भी मं गल प ह। उनके उ ारण से


मं गलमय हो जाता है । कृ नाम का सं कीतन वाणी को शु कर मधुर रस का आ ादन कराकर आ ा को पावन
कर दे ता है और साधक भगवान के सा ा ार के यो बन जाता है । आकषण-म की तरह कृ -नाम िच को
आकृ करने वाला है ।

यिद कृ -नाम क के िसं हासन को ीकार कर लेता है तो यमपु री का ामी उस कृ भ के सामने ा है ?


यमराज के दू तों की ाह ी है ? मो ल ी उस भ के चरणकमल म आकर यं लोटने लगती है ।

भगवान ीकृ यं ाजी से कहते ह–जो कृ ! कृ !! कृ !!!–यों कहकर मे रा ितिदन रण करता है ,


उसे िजस कार कमल जल को भेद कर ऊपर िनकल जाता है , उसी कार म नरक से उबार लेता ँ ।

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ीकृ कृपाकटा ो (कृ ा क) भगवान ीशं कराचाय ारा रिचत ब त सु र ु ित है । िबना जप, िबना से वा
एवं िबना पू जा के भी केवल इस ो मा के िन पाठ से ही ीकृ कृपा और भगवान ीकृ के चरणकमलों की
भ ा होती है ।

ीशंकराचाय ारा रिचत ीकृ कृपाकटा ो

भजे जै क म नं सम पापख नं,


भ िच रं जनं सदै व न न नम्।
सु िप गु म कं सु नादवेणुह कं ,
अनंगरं गसागरं नमािम कृ नागरम्॥१॥

भावाथ– जभूिम के एकमा आभूषण, सम पापों को न करने वाले तथा अपने भ ों के िच को आन दे ने


वाले न न न को सदै व भजता ँ , िजनके म क पर मोरमु कुट है , हाथों म सु रीली बांसुरी है तथा जो े म-तरं गों के
सागर ह, उन नटनागर ीकृ च को नम ार करता ँ ।

मनोजगवमोचनं िवशाललोललोचनं,
िवधूतगोपशोचनं नमािम प लोचनम्।
करारिव भू धरं तावलोकसु रं ,
महे मानदारणं नमािम कृ वारणम्॥२॥

भावाथ–कामदे व का मान मदन करने वाले, बड़े -बड़े सु र चं चल ने ों वाले तथा जगोपों का शोक हरने वाले
कमलनयन भगवान को मे रा नम ार है , िज ोंने अपने करकमलों पर िग रराज को धारण िकया था तथा िजनकी
मु सकान और िचतवन अित मनोहर है , दे वराज इ का मान-मदन करने वाले, गजराज के स श म ीकृ
भगवान को म नम ार करता ँ ।

कद सू नकु लं सु चा ग म लं,
जां गनैक व भं नमािम कृ दु लभम्।
यशोदया समोदया सगोपया सन या,
यु तं सु खैक दायकं नमािम गोपनायकम्॥३॥

भावाथ–िजनके कानों म कद पु ों के कुंडल ह, िजनके अ सु र कपोल ह तथा जबालाओं के जो एकमा


ाणाधार ह, उन दु लभ भगवान कृ को नम ार करता ँ ; जो गोपगण और न जी के सिहत अित स
यशोदाजी से यु ह और एकमा आन दायक ह, उन गोपनायक गोपाल को नम ार करता ँ ।
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सदै व पादपंक जं मदीय मानसे िनजं ,


दधानमु मालकं नमािम न बालकम्।
सम दोषशोषणं सम लोकपोषणं,
सम गोपमानसं नमािम न लालसम्॥४॥

भावाथ–िज ोंने मे रे मन पी सरोवर म अपने चरणकमलों को थािपत कर रखा है , उन अित सु र अलकों वाले
न कुमार को नम ार करता ँ तथा सम दोषों को दू र करने वाले, सम लोकों का पालन करने वाले और
सम जगोपों के दय तथा न जी की वा लालसा के आधार ीकृ च को नम ार करता ँ ।

भु वो भरावतारकं भवा कणधारकं ,


यशोमतीिकशोरकं नमािम िच चोरकम्।
ग का भं िगनं सदा सदािलसं िगनं,
िदने-िदने नवं-नवं नमािम न स वम्॥५॥

भावाथ–भूिम का भार उतारने वाले, भवसागर से तारने वाले कणधार ीयशोदािकशोर िच चोर को मे रा नम ार है ।
कमनीय कटा चलाने की कला म वीण सवदा िद स खयोंसे से िवत, िन नए-नए तीत होने वाले न लाल को
मे रा नम ार है ।

गु णाकरं सु खाकरं कृ पाकरं कृ पापरं ,


सु र ि षि क नं नमािम गोपन नं।
नवीन गोपनागरं नवीनके िल-ल टं ,
नमािम मेघसु रं तिड भालस टम्।।६।।

भावाथ–गुणों की खान और आन के िनधान कृपा करने वाले तथा कृपा पर कृपा करने के िलए त र दे वताओं के
श ु दै ों का नाश करने वाले गोपन न को मे रा नम ार है । नवीन-गोप सखा नटवर नवीन खे ल खे लने के िलए
लालाियत, घन ाम अंग वाले, िबजली स श सु र पीता रधारी ीकृ भगवान को मे रा नम ार है ।

सम गोप मोहनं, द ुजैक मोदनं,


नमािमकं ु जम गं स भानुशोभनम्।
िनकामकामदायकं ग चा सायकं ,
रसालवेणुगायकं नमािमकं ु जनायकम्।।७।।

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भावाथ–सम गोपों को आन त करने वाले, दयकमल को फु त करने वाले, िनकुंज के बीच म िवराजमान,
स मन सू य के समान काशमान ीकृ भगवान को मे रा नम ार है । स ू ण अिभिलिषत कामनाओं को पू ण
करने वाले, वाणों के समान चोट करने वाली िचतवन वाले, मधुर मु रली म गीत गाने वाले, िनकुंजनायक को मे रा
नम ार है ।

िवद गोिपकामनो मनो त शाियनं,


नमािम कं ु जकानने वृ वि पाियनम्।
िकशोरका रं िजतं गं जनं सु शोिभतं,
गजे मो का रणं नमािम ीिवहा रणम्।।८।।

भावाथ–चतु रगोिपकाओं की मनो त पर शयन करने वाले, कुंजवन म बढ़ी ई िवरह अि को पान करने वाले,
िकशोराव था की का से सु श ोिभत अंग वाले, अंजन लगे सु र ने ों वाले, गजे को ाह से मु करने वाले,
ीजी के साथ िवहार करने वाले ीकृ च को नम ार करता ँ ।

ो पाठ का फल

यदा तदा यथा तथा तथैव कृ स था,


मया सदै व गीयतां तथा कृ पा िवधीयताम्।
मािणका क यं जप धी यः पुमान्,
भवे न न ने भवे भवे सु भ मान॥९॥

भो! मे रे ऊपर ऐसी कृपा हो िक जहां-कही ं जैसी भी प र थित म र ँ , सदा आपकी स थाओं का गान क ँ । जो
पु ष इन दोनों-राधा कृपाकटा व ीकृ कृपाकटा अ कों का पाठ या जप करे गा, वह ज -ज मन न न
ामसु र की भ से यु होगा और उसको सा ात् ीकृ िमलते ह।

नंदन न से ाथना

अन कोिट ा ों का जो ऐ य एवं सम चै त पदाथ िजनका अंश मा ह, ऐसे ते ज: प ीकृ ही नाम प


से आिवभूत होते ह। अत: वह ीकृ नाम ही मे रा आरा , सा , साधन और जीवन है ।

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