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[४०/२] श्री आलश्मक [भर

ू ]वि
ू भ्
नभो नभो ननम्भरदॊ वणस्व
ऩूज्म श्रीआनॊद-षभा-रलरत-वुळीर-वुधभमवागय गुरूभ्मो नभ:

“आलश्मक” ननमञ्ुम क्त: एलॊ लञ्ृ त्त:


ननमञ्ुम क्त: १३७ वे ५४२
[बद्रफाशुवूरय वूत्रिता ननमञ्ुम क्त: एलॊ भरमगगरयवूरय यगचता लञ्ृ त्त:]

[आद्म वॊऩादक: - ऩज्


ू म आगभोद्धायक आचाममदेल श्री आनॊदवागय वयू ीश्लयजी भ० वा० ]
(ककञ्चचत ् लैलळष्ठ्मॊ वभर्ऩमतेन वश)

ऩन
ु : वॊकरनकताम→ भनु न दीऩयत्नवागय (M.Com., M.Ed., Ph.D.)

28/07/2017, ळुक्रलाय, २०७३ श्रालण ळुक्र ५ jain_e_library’s Net Publications

भुनन दीऩयत्नवागये ण वॊकलरत..आगभवूि-[४०], भूरवूि-[१] “आलश्मक” ननमञ्ुम क्त एलॊ भरमगगरयवूरय-यगचता लञ्ृ त्त:

~1~
आगभ “आलश्मक”– भूरवूि-१ (ननमञ्ुम क्त:+लञ्ृ त्त:) बाग-२
(४०) अध्ममनॊ [–], ननमञ्ुम क्त: [–], बाष्ठमॊ [–], भर
ू ॊ [– /गाथा-]
भनु न दीऩयत्नवागये ण वॊकलरत..आगभवि
ू -[४०], भर
ू वि
ू -[१] “आलश्मक” ननमञ्ुम क्त: एलॊ भरमगगरयवरू य-यगचता लञ्ृ त्त:

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वि
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