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मीनू की बचपन से ही पढ़ाई में रुचच थी |

वह सदै व कक्ष़ा में प्रथम आती थी | m.a. की परीक्ष़ा भी उसने प्रथम श्रेणी से प़ास की |

वह चसल़ाई ,बुऩाई ,कट़ाई ,ख़ाऩा बऩाऩा तथ़ा पेंचटिं ग आधी सभी क़ाम िं में चनपुण थी |कद-
क़ाटी में पतली छ टी सी चदखने व़ाली मीनू ने वैसे त सभी परीक्ष़ाएिं प्रथम श्रेणी से प़ास की
थी, पर श़ादी के चलए जब उसे क ई दे खने ज़ात़ा त स़ाॅवली ह ने के क़ारण वह मीनू क
ऩापसिंद कर दे ते थे |
उसकी छ टी बहन आश़ा रिं ग रूप में मीनू से कहीिं ज्य़ाद़ा सुिं दर थी |

मेरठ चनव़ासी म़ाय़ाऱाम जी अपने पुत्र अचमत के ररश्ते के चलए पत्नी शहीद उसे दे खने आए
त अचमत के ह्रदय में मीनू क़ा भ ल़ा-भ़ाल़ा चेहऱा सम़ा गय़ा |

म़ाय़ाऱाम जी जब व़ापस ज़ाने लगे त दय़ाऱाम जी के यह पूछने पर भ़ाई स़ाहब , क्य़ा जव़ाब
रह़ा ? उन् न िं े कह़ा चक घर ज़ाकर चवच़ार करें गे | उसके ब़ाद आपक पत्र चलखेंगे |

म़ाय़ाऱाम जी जब अपने घर पहिं चे त उन् न िं े दे ख़ा चक मेरठ शहर के एक धनी व्यक्ति


धनीम़ाल उनकी प्रतीक्ष़ा कर रहे हैं | धनीमल ने अपने छूट सबसे छ टी पुत्री सररत़ा क़ा
ररश्त़ा अचमत से प्रस्त़ाव रख़ा तथ़ा स़ाथी यह भी बत़ाय़ा चक वह श़ादी में 500000 रुपय़ा खचच
करें गे |

म़ाय़ाऱाम जी दहे ज चवर धी थे , म़ाय़ाऱाम की पत्नी 5 ल़ाख की ब़ात सुनते ही यह भूल गई चक


वह अभी मीनू क दे ख कर आई है और अचमत क मीनू पसिंद भी है |

म़ाय़ाऱाम जी की पत्नी ने अपने पचत क चववश कर चदय़ा चक चकसी भी तरह से मीऱापुर


व़ाल़ा ररश्त़ा अस्वीक़ार क़ार कर दे |
पत्नी के सुझ़ाव पर म़ाय़ाऱाम जी ने दय़ाऱाम जी क पत्र चलख़ा चक हमें तु म्ह़ारी छ टी बैटी
आश़ा पस्रन्द है । यचद आप हम़ारे यह़ााँ श़ादी करऩा च़ाहते हैं त मीनूसे नहीिं बक्ति आश़ा
से कर दें ।

दय़ाऱाम ज घर के सभी सदस् िं की सल़ाह म़ानकर इस नथे प्रस्त़ाव क पक्क़ा करने के


चलए मेरठ गए त वह़ााँ पर उन्ें फ्त़ा चक उन् ने अचमत क़ा ररश्त़ा धनीमल जी क़ा बेटी
सररत़ा से पवक़ा क़ा चलय़ा है । धनीमल श़ादी में पचच ल़ाख रुपये खचच करे गे' ।

घर पहचने पर दय़ाऱाम जी क़ा उद़ास चेहऱा दखक़ार तथ़ा व़ास्तचवकत़ा ज़ानने पर सबक़ा
हदय म़ाय़ाऱाम जी के पररव़ार के प्रचत घृण़ा से भर गय़ा । मीनू के अन्दर एक ही भ़ावऩा
घर कर गईिं । श़ायद वह चवव़ाह के य ग्य नहीिं है । यह स्र चक़ा उसने चनणच य चलय़ा चक वह
चवव़ाह नहीिं करे गी । उसने चवव़ाह क़ा सपऩा दे खऩा ही छ ड चदय़ा ।

मीनू में स़ाहस की कमी न थी । उसने वकील बनने क़ा दृढ चनश्चय चकय़ा त़ाचक अपने प़ााँव
पर खडी ह कर वह इतऩा पैस़ा कम़ा सके चक चजससे वह सम़ाज में चसर ऊच़ा" करके रह
सके । दय़ाऱाम जी ने भी मीनू के मन में उभरी लगन क दे खक़ा उसे वक़ालत की पढ़ाई
करके प्रैक्तिस करने की आज्ञ़ा दे दी l मीनू नये ऱास्ते की तल़ाश में चनकल पडी ।
म़ााँ ने उसे सीने से लग़ाकर अॅ़ाशीव़ाचद चदय़ा , बेटी एक दे दीप्यम़ान नक्षत्र वनकर तु म जग
क प्रक़ाशमय कर द । जीवन की स़ारी खुचशय़ााँ तु म्ह़ारे प़ास ह िं , तु म अपने उद्दे श्य प्ऱाक्ति
मे ाँ सफल ह , यही ईश्वर से मेरी प्ऱाथच ऩा है ।
मीनू ने मेरठ में वक़ालत में द़ाक्तखल़ा ले चलय़ा । म़ााँ के आशीव़ाचद से उसने पहली दू सरी
और अक्तिम परीक्ष़ा प्रथम श्रेणी में उत्तीणच की और चफर मेरठ मे' ही वक़ालत करने लगी ।

आठ महीन िं में ही मीनू ने वक़ालत में अपनी ध़ाक जम़ा ली I उसकी आव़ाज में ज श थ़ा,
क़ाम करने में उत्स़ाह . थ़ा | उसकी बुलिंदी के चचे च़ार िं ओर फैल गये थे । उसकी
रौबीली आव़ाज ने सबके मन क म ह चलय़ा थ़ा । चदखने में मतली, छ टी-सी मीनू क्र
स़ाध़ारण रूप से दे खने व़ाल़ा व्यक्ति चवश्व़ास ही नहीिं क़ा सकत़ा थ़ा चक वह इतनी स़ाहसी
ह गी |

धनीमल जी अपनी लडकी क दहे ज में फ्लैट अवश्य दे ऩा च़ाहते थे चकिु म़ाय़ाऱाम जी तथ़ा
उनकी फ्लॉ यह नहीिं च़ाहते थे चक उनक़ा पुत्र उनसे अलग' रहे । इस ब़ात क लेकर
म़ाय़ाऱाम जी ने थनीमल की बेटी सररत़ा क़ा ररश्त़ा अस्वीक़ार कर चदय़ा । अचमत ने श़ादी
क़ाने से इन्क़ार क़ा चदय़ा । अचमत क़ा एक्सीडे प्टे ह गय़ा । मीनू क जब नीचलम़ा के म़ाध्यम
से सच्च़ाई क़ा पत़ा चलत़ा है त वह अचमत क मेचडकल क़ाले ज में दे खने ज़ाती है । अचमत
अपनी व्यथ़ा-कथ़ा मीनू क बत़ात़ा है । अचमत क आत्मग्ल़ाचन महसूस ह ती है । म़ानू के
हदय से उसके प्रचत घृण़ा के भ़ाव' हट ज़ाते है ' ।

अि में म़ाय़ाऱाम जी दय़ाऱाम जी से क्षम़ा य़ाचऩा क़ाते हए अचमत क़ा ररश्त़ा मीनू से कर
दे ने की प्ऱाथच ऩा कस्ते है ाँ । दय़ाऱाम ज अपनी पुत्री म नू से ब़ात कर उसकी ऱाय ज़ानऩा
च़ाहते है ाँ । मीनू के अपनी म़ााँ से यह कहने पर चक जै स़ा आप उचचत समझें बैस़ा ही करें
उसकी म़ात़ा-चपत़ा चैन की स़ााँस ले ते है ' । श़ादी की चतचथ चनचश्चत़ा ह ज़ाती है ।

म़ानू दु ल्हन बनी l उसकी ड ली सजी और वह अपने चपय़ा सिंग ससुऱाल क चल दी ।

उसे चजस मिंचजल क्री तल़ाश ' थी आज बह उसे चमल गईिं । उसने अपने स़ाहस, लगन और
पररश्रम से नये ऱास्ते की ख ज की थी इसचलए इस उपन्य़ास क़ा शीर्चक 'नय़ा ऱास्त़ा' स़ाथच क
है । उपन्य़ास के कथ़ानक के अनुस़ार शीर्चक के अॅौचवत्य पर चकसी प्रक़ार क्री टीक़ा-
चटप्पणी क़ाऩा व्यथच की आल चऩा म़ात्र ह गी ।

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