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अली - दर्शन राजपु रोहित

अली, मेरा दोस्त, मेरा भाई,


लेकिन न जाने क्यूँ हमें साथ दे खिर
दु कनया िी आूँ खें खटिती थीीं,
हमारी यारी दे खिर उनिी नफ़रतें हमपे अटिती थीीं!

मेंने उसिी घरिी से वैयाूँ खाई हैं ,


कदवाली िी कमठाइयाूँ मेंने भी उसे खखलाई हैं ,
हर अवसर पर उसिे घरसे मेरे घर पर बधाइयाूँ आयी हैं ,
मेंने उसिो अपनी तिलीफें सुनाई हैं !

मेंने उसिो अपनी पय जा कसखाई है ,


उसने भी मुझे अपनी नमाज़ पढाई है ,
कदवाली पे उसने फुलझकियाूँ जलाई हैं ,
रमजान िे महीने में , अपने घरिी खखिकियोीं पे मेंने लाइटें लगाई हैं !

क्यूँ तुम्हारा प्रमाण मेरे कलए जरुरी है ,


क्यूँ में मेरे कहसाब से जी नहीीं सिता,
क्यूँ वो मेरे घरिा खा नहीीं सिता,
क्यूँ में उसिा झयठा कप नहीीं सिता!

में हाजी अली गया हूँ ,


वो बाबुलनाथ भी आया है ,
और इफ्तार िा खाना हमने साथ खाया है !

कहन्दय , मुखिम एि नहीीं हो सिते,


िौन िह गया तुजे ये अली,
ये िौन सा पररीं दा था,
तुजे क्ा पता राम और रहीम कजगरी दोस्त रहे होींगे,
तय क्ा तब कजन्दा था!
मेंने उसिे घरिी शाकदयोीं में मज़ा, खान-पान किया है ,
और मेरे घर िी शाकदयोीं में उसने िन्यादान भी किया है !

क्यूँ ये भाईचारा दे खिर तींग होते हो,


क्यूँ कतलि और टोपी िा कमलान दे खिे दाीं ग होते हो!

गीता और िुरान में िहाूँ िुछ और बताया है ,


दोनोीं ने हमिो कसफफ और कसफफ अमन कसखाया है !

यकद इस पर भी आपकि है तेरी,


तो खुली चुनौती है मे री,
बता किस आयत या श्लोि में है ये बात बताई,
िी मुसलमान मेरा दोस्त नहीीं हो सिता,
और कहन्दय उसिा भाई नहीीं हो सिता!

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