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जावेद अ तर क कुछ क वताय | Javed Akhtar Poetry

By Editorial Team - June 25, 2018

जावेद अ तर यह नाम दे श का ब त जाना माना नाम ह। आज ऐसा कोई नह क ज ह जावेद अ तर पता नह । वह कवी, शायर, फ म के
गीतकार और पटकथा लेखक ह। उनके गान के साथ साथ उ ही क लखी क वताय भी ब त मश र ह। आज हम उ ह क कुछ चु नदा क वताय –
Javed Akhtar Poetry पढगे।

जावेद अ तर क कुछ क वताय – Javed Akhtar Poetry


Javed Akhtar Poetry 1
“हर ख़ुशी म कोई कमी सी है।”

हर ख़ुशी म कोई कमी सी है।


हँसती आँख म भी नमी सी है।
दन भी चुप चाप सर झुकाये था।
रात क न ज़ भी थमी सी है।
कसको समझाय कसक बात नह ।
ज़हन और दल म फर ठनी सी है।
वाब था या ग़बार था कोई।
गद इन पलक पे जमी सी है।
कह गए हम कससे दल क बात।
शहर म एक सनसनी सी है।
हसरत राख हो ग ले कन।
आग अब भी कह दबी सी है।

Javed Akhtar Poetry 2

“अपने होने पर मुझको यक न आ गया”

अपने होने पर मुझको यक न आ गया।


पघले नीलम से बहता आ ये समां,
नीली नीली सी खामो शयाँ।
ना कह ह जमीन, ना कह आसमां,
सरसराती ई त हाईयाँ, प यां।
कह रह ह क बस एक तू हो यहाँ,
सफ़ म ँ,
मेरी सांसे ह और मेरी धड़कने,
ऐसी गहराइयाँ, ऐसी तनहाइयाँ।
और म सफ म,
अपने होने पर मुझको यक न आ गया।

Javed Akhtar ki Kavita 3

“तुमको दे खा तो ये ख़याल आया”

तुमको दे खा तो ये ख़याल आया,


ज़ दगी धूप तुम घना साया!
आज फर दल ने एक तम ा क ,
आज फर दल को हमने समझाया!
तुम चले जाओगे तो सोचगे,
हमने या खोया, हमने या पाया!
हम जसे गुनगुना नह सकते,
व त ने ऐसा गीत यूँ गाया!

Javed Akhtar Poem 4

“ये जाने कैसा राज़ है”

इक बात ह ठ तक है जो आई नह ,
बस आँख से ह झांकती
तुमसे कभी, मुझसे कभी,
कुछ ल ज ह वो मांगती,
जनको पहेन के ह ठ तक आ जाएँ वो,
आवाज़ क बाह म बाह डालके इठलाये वो
ले कन जो यह इक बात ह
एहसास ही एहसास है,
खुशबू सी है जैसे हवा म तैरती,
ख़ुशबू जो भी आवाज ह,
जसका पता तुमको भी ह,
जसक खबर मुझको भी ह
नया से भी छु पता नह
यह जाने कैसे राज़ ह।

Javed Akhtar Poem 5

“ दल आ खर तू य रोता है”

जब जब दद का बादल छाया
जब ग़म का साया लहराया
जब आंसू पलक तक आया,
जब यह त हां दल घबराया
हम ने दल को यह समझाया
आ खर दल तू य रोता ह?
नया म यूँ ही होता ह,
यह जो गहरे स ाटे ह,
व ने सबको ही बनाते ह
थोडा गम ह सबका क सा
थोड़ी धुप ह सबका ह सा
आँखे तेरी बेकार ही नम ह
हर पल एक नया मौसम ह
यूँ तू ऐसे पल खोता ह
दल आ खर तू यूँ रोता ह

Javed Akhtar Poem 6

“तो जदा हो तुम”

दल म तुम अपनी बेता बयां लेके चल रहे हो,


तो जदा हो तुम!
नज़र म अपनी वाब क बज लयाँ लेके चल रहे हो,
तो जदा हो तुम!
हवा के झ क के जैसे आज़ाद रहना सख
तुम एक द रयाँ के जैस,े लहर म बहाना सीखो
हर एक ल हे से तुम मलो खोले अपनी बाह
हर एक पल एक नया समा दे खय
जो अपनी आँख म हैरा नयाँ लेके चल रहे हो
तो जदा हो तुम!
दल म तुम अपनी बेता बयां लेके चल रहे हो
तो जदा हो तुम

Javed Akhtar Poem 7

“दद अपनाता है पराए कौन”

दद अपनाता है पराए कौन


कौन सुनता है और सुनाए कौन

कौन दोहराए वो पुरानी बात


ग़म अभी सोया है जगाए कौन

वो जो अपने ह या वो अपने ह
कौन ख झेले आज़माए कौन

अब सुकूँ है तो भूलने म है
ले कन उस श स को भुलाए कौन

आज फर दल है कुछ उदास उदास


दे खये आज याद आए कौन।

Javed Akhtar Poem 8

“मेरा आँगन”

मेरा आँगन
कतना कुशादा कतना बड़ा था
जसम
मेरे सारे खेल
समा जाते थे
और आँगन के आगे था वह पेड़
क जो मुझसे काफ़ ऊँचा था
ले कन
मुझको इसका यक था
जब म बड़ा हो जाऊँगा
इस पेड़ क फुनगी भी छू लूँगा
बरस बाद
म घर लौटा ँ
दे ख रहा ँ
ये आँगन
कतना छोटा है
पेड़ मगर पहले से भी थोड़ा ऊँचा है

Javed Akhtar Poem 9

“ये आंसू या है”

ये आंसू या गवाह है, मेरी दद-मंद का, मेरी इंसान दो ती का


ये आंसू या सबूत है मेरी ज़दगी म खुलूस क एक रौशनी का
ये आंसू या ये बता रहा है के मेरे सीने म एक ह ताज़ दल है
जो क कसी क दल दोज़ दा तां जो सुनी तो सुन के तड़प उठा है

पराए शोल म जल रहा है, पघल रहा है


मगर म फर ख़ुद से पूछता ,ं ये दा तां तो अभी सुनी है
ये आंसू भी या अभी ढला है, ये आंसू या म ये समझूं पहले कह नह था
मुझे तो शक़ है के ये कह था, ये मेरे दल और मेरी पलक के दर मयां एक जो फ़ासला है
जहां यालो के शहर बसते ह और वाब क तुरबत ह
जहां मोह बत के उजड़े बाग म तल ख़य के बबूल ह और कछ नह है

जहां से आगे ह उलझन के घनेरे जंगल, ये आंसू शायद ब त दन से वह छु पा था


ज ह ने इसको ज म दया था, वो रंज तो मसलेहत के हाथ न जाने कब क़ ल हो गए थे

तो करता फर कसपे नाज़ आंस,ू के हो गया बे-जवाज़ आंसू


यतीम आंसू
यसीर आंसू

न मोद बर था, न रा त ही से बा-ख़बर था


तो चलते चलते ठठक गया था, झझक गया था

इधर से आज एक कसी के ग़म क कहानी का कारवां जो गुज़रा


यतीम आंसू ने जैसे जाना, क इस कहानी ही सरपर ती मले तो मुम कन है राह पाना

तो इक कहानी क उंगली थाम, उसी के गम को माल करता


उसी के बारे म झूठे स चे सवाल करता
ये मेरी पलक तक आ गया है।।।

Javed Akhtar Poem 10

“अब अगर आओ तो जाने के लए मत आना”

अब अगर आओ तो जाने के लए मत आना


सफ एहसान जताने के लए मत आना
मने पलक पे तम नाएँ सजा रखी ह
दल म उ मीद क सौ श मे जला रखी ह
ये हस श मे बुझाने के लए मत आना
यार क आग म जंजीर पघल सकती ह
चाहने वाल क तक़द र बदल सकती ह
तुम हो बेबस ये बताने के लए मत आना
अब तुम आना जो तु ह मुझसे मुह बत है कोई
मुझसे मलने क अगर तुमको भी चाहत है कोई
तुम कोई र म नभाने के लए मत आना

Javed Akhtar Poem 11

“आप भी आइए हमको भी बुलाते र हए”

आप भी आइए हमको भी बुलाते र हए


दो ती जम नह दो त बनाते र हए।
ज़हर पी जाइए और बाँ टए अमृत सबको
ज़ म भी खाइए और गीत भी गाते र हए।
व त ने लूट ल लोग क तम नाएँ भी,
वाब जो दे खए और को दखाते र हए।
श ल तो आपके भी ज़हन म होगी कोई,
कभी बन जाएगी तसवीर बनाते र हए।

Javed Akhtar Poem 12

“कभी यूँ भी तो हो, द रया का सा हल हो”

कभी यूँ भी तो हो
द रया का सा हल हो
पूरे चाँद क रात हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो
प रय क मह फ़ल हो
कोई तु हारी बात हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो
ये नम मुलायम ठं डी हवाय
जब घर से तु हारे गुज़र
तु हारी ख़ु बू चुराय
मेरे घर ले आय
कभी यूँ भी तो हो
सूनी हर मं ज़ल हो
कोई न मेरे साथ हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो
ये बादल ऐसा टू ट के बरसे
मेरे दल क तरह मलने को
तु हारा दल भी तरसे
तुम नकलो घर से
कभी यूँ भी तो हो
तनहाई हो, दल हो
बूँद हो, बरसात हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो

Javed Akhtar Poem 13

“तम ना फर मचल जाए, अगर तुम मलने आ जाओ”


तम ना फर मचल जाए, अगर तुम मलने आ जाओ
यह मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मलने आ जाओ
मुझे गम है क मैने ज दगी म कुछ नह पाया
ये ग़म दल से नकल जाए, अगर तुम मलने आ जाओ
नह मलते हो मुझसे तुम तो सब हमदद ह मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए, अगर तुम मलने आ जाओ
ये नया भर के झगड़े, घर के क से, काम क बात
बला हर एक टल जाए, अगर तुम मलने आ जाओ

Javed Akhtar Poem 14

“यही हालात इ तदा से रहे”

यही हालात इ तदा से रहे


लोग हमसे ख़फ़ा-ख़फ़ा-से रहे
बेवफ़ा तुम कभी न थे ले कन
ये भी सच है क बेवफ़ा-से रहे
इन चराग़ म तेल ही कम था
य गला फर हम हवा से रहे
बहस, शतरंज, शेर, मौसीक़
तुम नह रहे तो ये दलासे रहे
उसके बंद को दे खकर क हये
हमको उ मीद या ख़ुदा से रहे
ज़ दगी क शराब माँगते हो
हमको दे खो क पी के यासे रहे

Javed Akhtar Poem 15

“हर ख़ुशी म कोई कमी-सी है”

हर ख़ुशी म कोई कमी-सी है


हँसती आँख म भी नमी-सी है
दन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात क न ज़ भी थमी-सी है
कसको समझाय कसक बात नह
ज़हन और दल म फर ठनी-सी है
वाब था या ग़बार था कोई
गद इन पलक पे जमी-सी है
कह गए हम ये कससे दल क बात
शहर म एक सनसनी-सी है
हसरत राख हो ग ले कन
आग अब भी कह दबी-सी है

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