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* जै से भ्रमरी महान कमल दल पर मं िराती रहती है , उसी प्रकार जो श्रीहरर के मु िारववंद की ओर बराबर प्रेमपूविक
जाती है और लज्जा के कारण लौट आती है । समु द्र कन्या लक्ष्मी की वह मनोहर मु ग्ध दृवष्टमाला मु झे धन संपवत्त प्रदान
करें ।।2।।
* जो संपूणि दे वताओं के अवधपवत इं द्र के पद का वैभव-ववलास दे ने में समिि है , मधुहन्ता श्रीहरर को भी अवधकावधक
आनं द प्रदान करने वाली है तिा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है , उन लक्ष्मीजी के
अधिु ले नेत्रों की दृवष्ट क्षण भर के वलए मु झ पर िोड़ी सी अवश्य पड़े ।।3।।
* शे षशायी भगवान ववष्णु की धमि पत्नी श्री लक्ष्मीजी के नेत्र हमें ऐश्वयि प्रदान करने वाले हों, वजनकी पुतली तिा बरौवनयां
अनं ग के वशीभू त हो अधिु ले, वकंतु साि ही वनवनि मेष (अपलक) नयनों से दे िने वाले आनं दकंद श्री मु कुन्द को अपने
वनकट पाकर कुछ वतरछी हो जाती हैं ।।4।।
* जो भगवान मधुसूदन के कौस्तु भमवण-मंवित वक्षथिल में इं द्रनीलमयी हारावली-सी सुशोवभत होती है तिा उनके भी
मन में प्रेम का संचार करने वाली है , वह कमल-कुंजवावसनी कमला की कटाक्षमाला मे रा कल्याण करे ।।5।।
* जै से मे घों की घटा में वबजली चमकती है , उसी प्रकार जो कैटभशत्रु श्रीववष्णु के काली मेघमाला के श्यामसुंदर
वक्षथिल पर प्रकावशत होती है , वजन्ोंने अपने आववभाि व से भृगुवंश को आनं वदत वकया है तिा जो समस्त लोकों की
जननी है , उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीय मू वति मु झे कल्याण प्रदान करे ।।6।
* समु द्र कन्या कमला की वह मं द, अलस, मं िर और अधोन्मीवलत दृवष्ट, वजसके प्रभाव से कामदे व ने मं गलमय भगवान
मधुसूदन के हृदय में प्रिम बार थिान प्राप्त वकया िा, यहां मु झ पर पड़े ।।7।।
* भगवान नारायण की प्रेयसी लक्ष्मी का ने त्र रूपी मे घ दयारूपी अनु कूल पवन से प्रेररत हो दु ष्कमि (धनागम ववरोधी
अशु भ प्रारि) रूपी धाम को वचरकाल के वलए दू र हटाकर ववषाद रूपी धमि जन्य ताप से पीवड़त मु झ दीन रूपी चातक
पर धनरूपी जलधारा की वृवष्ट करें ।।8।।
* वववशष्ट बुखर्द् वाले मनु ष्य वजनके प्रीवत पात्र होकर वजस दया दृवष्ट के प्रभाव से स्वगि पद को सहज ही प्राप्त कर ले ते हैं ,
पद् मासना पद् मा की वह ववकवसत कमल-गभि के समान कां वतमयी दृवष्ट मु झे मनोवां वछत पुवष्ट प्रदान करें ।।9।।
* जो सृवष्ट लीला के समय वाग्दे वता (ब्रह्मशखक्त) के रूप में ववराजमान होती है तिा प्रलय लीला के काल में शाकम्भरी
(भगवती दु गाि ) अिवा चन्द्रशे िर वल्लभा पाविती (रुद्रशखक्त) के रूप में अवखथित होती है , वत्रभु वन के एकमात्र वपता
भगवान नारायण की उन वनत्य यौवना प्रेयसी श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है ।।10।।
* मात:। शुभ कमों का फल दे ने वाली श्रुवत के रूप में आपको प्रणाम है । रमणीय गुणों की वसंधु रूपा रवत के रूप में
आपको नमस्कार है । कमल वन में वनवास करने वाली शखक्त स्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तिा पुवष्ट रूपा पुरुषोत्तम
वप्रया को नमस्कार है ।।11।।
* कमल वदना कमला को नमस्कार है। क्षीरवसंधु सभ्यता श्रीदे वी को नमस्कार है । चंद्रमा और सुधा की सगी बहन को
नमस्कार है । भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है । ।।12।।
* कमल सदृश नेत्रों वाली माननीय मां ! आपके चरणों में वकए गए प्रणाम संपवत्त प्रदान करने वाले, संपूणि इं वद्रयों को
आनं द दे ने वाले , साम्राज्य दे ने में समिि और सारे पापों को हर ले ने के वलए सवििा उद्यत हैं , वे सदा मु झे ही अवलम्बन
दें । (मु झे ही आपकी चरण वंदना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे )।।13।।
* वजनके कृपा कटाक्ष के वलए की गई उपासना उपासक के वलए संपूणि मनोरिों और संपवत्तयों का ववस्तार करती है ,
श्रीहरर की हृदयेश्वरी उन्ीं आप लक्ष्मी दे वी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूं ।।14।।
* भगवती हररवप्रया! तुम कमल वन में वनवास करने वाली हो, तुम्हारे हािों में नीला कमल सुशोवभत है । तुम अत्यंत
उज्ज्वल वि, गंध और माला आवद से सुशोवभत हो। तुम्हारी झां की बड़ी मनोरम है । वत्रभु वन का ऐश्वयि प्रदान करने
वाली दे वी, मु झ पर प्रसि हो जाओ।।15।।
* वदग्गजों िारा सुवणि-कलश के मु ि से वगराए गए आकाश गंगा के वनमिल एवं मनोहर जल से वजनके श्री अंगों का
अवभषे क (स्नान) संपावदत होता है , संपूणि लोकों के अधीश्वर भगवान ववष्णु की गृवहणी और क्षीरसागर की पुत्री उन
जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रात:काल प्रणाम करता हूं ।।16।।
* जो मनु ष्य इन स्तु वतयों िारा प्रवतवदन वेदत्रयी स्वरूपा वत्रभुवन-जननी भगवती लक्ष्मी की स्तु वत करते हैं , वे इस भू तल
पर महान गुणवान और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं तिा वविान पुरुष भी उनके मनोभावों को जानने के वलए उत्सु क
रहते हैं ।।18।।