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SURAJ YADAV OPINION

"For me every ruler is alien that defies public opinion."-Mohandas Gandhi.======== "All epoch-
making revolutionary events have been produced not by written but by spoken word."-ADOLF
HITLER.

Friday, February 13, 2015

मणी स दे श : Message of Rukmini::

मणी स दे श :
जस वैलटाइन डे पर प म इतना इतराती है, उससे अलग ेम व प क एक झलक मणी ारा १६ कला म नपुण
ारकाधीश ी कृ ण को उनके ारा लखा गया ेम प म नज़र आता है। ारका से लगभग ६ कलोमीटर र मणी मं दर म
इसक प क त आज भी वत रत होती है। भागवत पुराण के दशम क ध अ याय ५२ म इस प क चचा है जो मणी जी
ारा एक व त व के हाथ भजवाया गया है | क तु य भजवाया ?
इसका उ लेख भी वह है |

वे ीकृ ण के अनुपम प , भाव,भ वा स य आ द गुण तथा अलौ कक संप क चचा अपने यहाँ आये नारदा द ऋ षय एवं
अ य लोग से सुन
चुक थ | अतः उ ह अपने अनु प समझकर प त प म मन ही मन वरण कर लया --

" सोप ु य मुकु द य पवीयगुण यः |


गृहागतैग यमाना तं मेने स शं प तम् ||--भा.पु. १०/५२/२३,

उनक इस भावना का स मान उनके माता पता आ द ने भी कया,


क तु उनका भाई मी ीकृ ण से े ष के कारण उ हे रोककर
अयो य शशुपाल के साथ उनका ववाह करना चाहा --

" ब धूना म छतां दातुं कृ णाय भ गन नृप |


ततो नवाय कृ ण ड मी चै मम यत ||-१०/५२/२५,

इस बात से मणी जी का मन बड़ा ख आ और उ ह ने भगवान्


कृ ण के पास प दे कर एक ा ण को भेजा --

" तदवे या सतापा वैदभ मना भृशम् |


व च तयाSS तं जं

क चत् कृ णाय ा हणोद् तम् ||


१०/५२/२६,

मणी जी अपने प के ३९व ोक म यह प लखती ह क " हे


भो ! मने प त प म आपको वरण कर लया है अपने आपको आपको सम पत कर दया है | आप आकर मुझे अपनी प नी बना ल,
हे कमलनयन ! जैसे सह के भाग को सृगाल ( सयार ) नह पश कर सकता, वैसे ही मुझे सृगालवत् तु छ शशुपाल पश न कर सके
--

त मे भवा खलु वृतः प तर जायामा माS पत भवतोS वभो वधे ह | मा वीरभागम भमशतु
चै आरा ोमायुव मृगपतेब लम बुजा ||
--१०/५२/३९,

Message of Rukmini
O the infallible and the most handsome One! Having heard Your qualities, which enter through
the path of ears and absolve away the pains of life, and having heard about Your handsome
appearance, which is the only asset of the eyes of living beings with eyes, my heart is accepting
You as a consort leaving behind shyness.||1||
O Mukunda, the lion (best) among men! Given a chance, which composed girl from a good
lineage will not wish for You as a consort; You, Who is the happiness of the minds of people,
Who is the happiness of the world, and Who is incomparable from any viewpoint — be it
lineage, nature, beauty, knowledge, energy, wealth, or abode.||2||
Therefore, O Lord! I have indeed accepted You as a consort and I have submitted myself to You.
O lotus-eyed Krishna! Please arrive here [and accept me]; so that the prince of Cedi (Sisupala)
does not takes away the property of brave You — just like a jackal should not take away the
prey of a lion.||3||
If I have revered the all pervading Paramatman by social welfares (digging wells), oblations,
obeying rules, penance, and serving demi-gods, saints, and preceptor, then O Gadagraja
(Krishna)! You accept me after holding my hand — instead of anyone else like the son of
Damaghosa (Sisupala).||4||
O Lord, Who is unconquered! Arrive secretly in Vidarbha one day before my marriage. Then
after defeating all the army-commanders from the regions of Cedi and Magadha (Sisupala and
Jarasandha), marry me with the ways of demons by showing Your valor and conquering
power.||5||
If You are wondering that how will you conquer me without killing the women and relatives
inside my palace, then I am telling You a way out. As per an old tradition, there is a grand fair
before the marriage, during which the bride goes out to the temple of Girija for prayers.||6||
O lotus-eyed Krishna! If I don’t achieve the dust of Your feet, which is sought after by
incomparable Ones like Umapati (Siva), then I will destroy my life. If the service of Your feet is
not achieved in this life, then I will take hundreds of birth and do penance; I am sure I will
achieve Your lotus feet some day.||7||
Notes:
¹This letter was sent to Krishna by Rukmini. It is a beautiful eulogy in which love for the divine
is evident. The letter was carried by a Brahman, who was a trustee of Rukmini. The eulogy
appears in tenth-book and fifty-second chapter of the Bhagavat Purana.
Poet: Rukmini
Source:Bhagavat Purana

ीकृ ण ज म महो सव क बात आती है तो उनके जीवन क एक मुख लीला – मणी हरण क लीला – क चचा तो होगी ही |
ीकृ ण च र क एक मुख लीला है मणी हरण क लीला | मणी हरण क लीला एक ओर सांसा रक से जहाँ एक
घटना भर है, वह कृ ण क अ य लीला के समान इस लीला का भी आ या मक रह य है | सबसे पहले चचा करते ह इस लीला
क |

वदभ दे श म भी मक नामक एक परम तेज वी और स णी राजा थे । उनक राजधानी थी कु डनपुर । उनक एक पु ी थी –


मणी जो पाँच भाइय के बाद उ प ई थी इस लये सभी क लाडली थी । उसके शरीर म ल मी के शरीर के समान ही ल ण थे
इस लये लोग उसे ल मी व पा भी कहा करते थे । मणी जब ववाह यो य तो भी मक को उसके ववाह क चता ई ।
मणी के पास जो लोग आते-जाते थे वे ीकृ ण क शंसा कया करते थे क ीकृ ण अलौ कक पु ष ह तथा सम त व म
उनके स श अ य कोई पु ष नह है । भगवान ीकृ ण के गुण और उनक सुंदरता के वषय म सुनकर मणी मन ही मन उन पर
आस हो ग और उ ह ने मन म न य कर लए क वे ववाह करगी तो ी कृ ण के साथ ही | उधर कृ ण को भी नारद से यह बात
ात हो चुक थी तथा मणी के सौ दय के वषय म तथा उनके गुणस प होने के वषय म भी नारद उ ह बता चुके थे | मणी
का बड़ा भाई मी कृ ण से श ुता रखता था | वह अपनी बहन मणी का ववाह चे द वंश के राजा तथा कृ ण क बुआ के बेटे
शशुपाल के साथ करना चाहता था | इसका एक कारण यह भी था क शशुपाल भी मी के समान ही कृ ण से श ुता रखता था |
अपने पु क भावना का स मान करते ए राजा भी मक ने शशुपाल के साथ ही पु ी के ववाह का न य कर लया और
शशुपाल के पास स दे श भेजकर ववाह क त थ भी न त कर ली |
मणी को इस बात का पता लगा तो उ ह ब त ःख आ और उ ह ने एक ा ण को कृ ण के लये अपना स दे श ा रका भेजा |
अपने स दे श म उ ह ने प प से अपना णय कृ ण के त कया | साथ ही यह भी बताया था उनका ववाह उनक इ छा
के वपरीत शशुपाल के साथ कया जा रहा है | उ ह ने प म लखा क “मने आपको ही प त प म वरण कया है । म आपको
अ त र कसी अ य पु ष के साथ ववाह नह कर सकती । म अपने कुल क था के अनुसार ववाह से पूव वधू के प म ृंगार
करके नगर के बाहर थत ग रजा दे वी के म दर म उनके दशन के लए जाऊँगी | आपसे नवेदन है कृपया उसी समय आप मुझे वहाँ
से भगा कर ले जाएँ और मुझे प नी प म वीकार कर | य द ऐसा नह आ तो म अपने ाण याग ँ गी |” मणी का संदेश
पाकर स दे शवाहक ा ण को साथ ले भगवान ीकृ ण रथ पर सवार होकर अकेले ही शी ही कु डनपुर क ओर चल दए । इधर
बलराम को पूरी घटना का पता चला और यह भी ात आ क कृ ण अकेले ही चल दए ह मणी को लाने तो यु क आशंका ई
उ ह और वे यादव क सेना को लेकर कृ ण क सहायता के लये चल दये | सरी ओर राजा भी मक का स दे श पाकर शशुपाल भी
न त त थ पर दल बल के साथ बारात लेकर कु डनपुर जा प ँचा | शशुपाल क बारात म जरासंध, शा व इ या द वे सभी राजा
अपनी अपनी सेना के साथ थे जो ी कृ ण से वैर रखते थे | सारा नगर शशुपाल और मणी के ववाह के लये व दनवार तथा
तोरण से सजा आ था तथा मंगल वा बजाए जा रहे थे |

स या समय मणी ववाह के व म सज-धजकर ग रजा दे वी के मं दर क ओर चल पड़ । उनके साथ उनक स खयाँ तथा
ब त से अंगर क भी थे । ग रजा दे वी क क पूजा करते ए मणी ने उनसे ाथना क क हे माँ, तुम तो सम त जगत क माता
हो, मेरी मनोकामना पूण करो, आशीवाद दो मुझे क ीकृ ण मुझे यहाँ से ले जाएँ और प नी प म वीकार कर | पूजा अचना के
बाद घर वापस लौटने के लये मणी अपने रथ पर बैठना ही चाहती थी क वहाँ प ँच चुके ीकृ ण ने व ुत ग त से मणी का
हाथ पकड़ लया और उ ह ख चकर अपने रथ पर बैठा लया और ती ग त से ारका क ओर चल पड़े । मणी के हरण का
समाचार तुर त रा य भर म फ़ैल गया | ो धत शशुपाल ने अपने म राजा और उनक सेना के साथ कृ ण का पीछा कया
क तु बलराम और य वंशी सेना ने उन सबको बीच म ही रोक लया | भयंकर यु आ | शशुपाल तथा उसक म सेनाएँ
परा जत और नराश होकर वापस अपने अपने रा य को लौट ग | शशुपाल को परा जत होकर भागते दे ख मी ने ोध म भरकर
त ा क या तो कृ ण को ब द बनाकर लौटे गा, अ यथा कु डनपुर म मुँह नह दखाएगा | मी और कृ ण के म य यु आ|
मी परा जत आ | ीकृ ण उसका वध करने ही वाले थे क मणी ने उ ह रोक दया और कहा क आप अ य त बलवान होने
के साथ साथ क याण व प भी ह | मेरे भाई का वध आपको शोभा नह दे ता | तब कृ ण ने उसक दाड़ी मूँछ काटकर और सर के
बाल जगह जगह से उखाड़ कर उसे कु प बना दया | बलराम को उस पर दया आई और उ ह ने कृ ण को समझाया क तुमने यह
अ छा नह कया । अपने स ब धी को कु प बना दे ने जैसा न दत काय हम लोग को शोभा नह दे ता | और बलराम ने वयं मी
के ब धन खोल दए | अब बलराम को यान आया क जस क या को वधू के प म ले जाया जा रहा है उसी के भाई के साथ इस
कार के आचरण से स भवतः उसे क होगा और हो सकता है वह अपने दय म कृ ण के त तथा उनके प रवार के त कोई
रा ह पाल बैठे | य द ऐसा आ तो कृ ण का वैवा हक जीवन सुखी नह रह पाएगा | अतः प रवार का ये पु होने के नाते उ ह ने
मणी को समझाया क तु हारे भाई के साथ जो कुछ कृ ण ने कया उसके कारण मन म कसी कार क भावना मत रखना,
य क येक को अपने कये कम का फल तो भोगना ही पड़ता है | और इस कार भ व य के लये वातावरण को वषा
होने से बचा लया | य क गृह थ जीवन म य द आर भ म ही मन म कसी कार क कटु ता उ प हो जाए तो उसके रगामी
प रणाम अ छे नह होते | इस कार मणी हरण क घटना गृह थ जन को यह स दे श भी दे ती है क अपने जीवन साथी के त
कसी कार क कटु ता अथवा रा ह नह रखना चा हये |

कृ ण ने मणी को ा रका ले जाकर उनके साथ व धवत ववाह कया | मणी के गभ से बाद म कामदे व के अवतार ु न का
ज म आ | शवजी क तप या भंग करने पर जब शव ने कामदे व को भ म कर दया था तो कामदे व क प नी र त ने अपने प त को
जीवन दान दे ने क ाथना शव से क थी | और शव ने उसे वरदान दया था क उसका प त कामदे व कृ ण क स तान के प म
पुनज म लेगा |

न बाक स दाय क प त म मणी को वशेष थान ा त है | इस स दाय म एक ओर तो गोलोकवासी राधा-कृ ण क


उपासना का वधान है तथा सुख वलास का थान अख ड वृंदावन को भी माना गया है, क तु सरी ओर ा रकापुरी को अपना धाम
और मणी जी को अपना इ एवं ग ड़ जी को दे वता माना गया है । इन दोन बात म सै ा तक वरोध है । क तु य द सू म
से दे खा जाए तो प होता है क एक ही ी कृ ण नाम के शरीर म तीन व भ श य ने अलग-अलग कार क लीला क ।
बृह सदा शव सं हता म कहा गया है क पर क कशोर लीला का ऐ य वृंदावन म थत है । वह ही गोकुल म बाल प क लीला
म थत है । वैकु ठ का वैभव मथुरा और ा रका म थत है । रास म डल म वेद ऋचा के ारा तु त कये जाने पर ी कृ ण जी
ने उनके साथ लीला करने का वरदान दया और उनके साथ वृंदावन म सात दन तक लीला करके वे मथुरा चले गये । वहाँ प ँचकर
उ ह ने कंस का वध कया | कृ ण के वरह म ाकुल वेद ऋचा स खयाँ गोलोक धाम को ा त । पृ वी का भार हरण करने क
इ छा से च धारी व णु भगवान कुछ वष तक मथुरा म रहे । इसके बाद वे ा रका गये और बाद म वैकु ठ म वराजमान हो गये ।
बृह सदा शव सं हता के इस कथन से यह स होता है क राधा-कृ ण का अन य उपासक य द मणी जी को अपना इ बनाये तो
यही कहा जा सकता है क उसने सार और असार को एक ही म मला दया है । अथात सांसा रक राग जब भगवत च तन का मा यम
बन जाता है तो वह राग ही ेम रस के प म प रणत हो जाता है । कसी भी या म ेम और ान दोन क संग त आव यक है ।
न बाक के अनुसार ी कृ ण ह, मणी ान श और स यभामा याश ह । इन दोन क समा व पराश ी राधा ह

मणी वा तव म भ और ेम का सामंज य ह । वह भगवान क भ भी ह और ेमी भी । बना दे खे, बना मले, कृ ण के गुण


से, उनके व प से ेम कर बैठ । ेम भी इतना गाढ़ क मन ही मन उ ह अपना सव व तक सम पत कर दया । जब ेम ऐसा हो
जाए – न ा ऐसी हो जाए – तो परमा मा को खोजने के लए – स य को खोजने के लये भटकना नह पड़ता । वह परमा मा तो वयं
ही हम ढूँ ढता चला आता है । अथात पूण न ावान होकर, एका च होकर य द स य क खोज क जाए, ान ा त क कामना क
जाए तो वह स य, वह ान हम ब त सरलता से उपल ध हो सकता है | मणी ने मन म भगवान को सव च थान दया अतः
भगवान ने वयं उनके जीवन म वेश कया | और इस ई र ा त के लये मणी ने ब त सोच वचारकर एक व ासपा ा ण
को स दे श दे कर कृ ण के पास भेजा | अथात ई र क ा त के लये मा यम अथात स य क ा त के लये गु कसी ऐसे
को ही बनाना चा हये जसे वयम् ई र स ा का ान हो – स य का ान हो | स चे गु का च सदा स तु रहता है | उसे अपने
पूव पु ष ारा वीकृत धम का पालन करने म भी कोई क ठनाई नह होती । वह सम त धम , सम त वचार का मनन करना जानता
है | तथा स या वेषण और स य ा त क दशा म श य का भली भां त तथा उ चत व ध से माग दशन करता है |

मणी भ भी ह और ेमी भी । भ और ेम के सम सबसे बड़ी क ठनाई यही आती है क जब मन स य म लीन होना चाहता
है तो अ य इ याँ उसे अनेक कार के वकार म भटकाने का यास करती ह । क तु मन तट थ हो, यानाव थत हो तो कोई भी
वकार उसे भा वत नह कर सकता | मणी पी मन का परमा मा अकेला है और शशुपाल आ द वकार पूरी सेना ह । क तु
मन अथात मणी को तो केवल शा त स य अथात ई र क ही लगन लगी है, उसी के यान म पूण न ा तथा एका ता के साथ
अव थत ह वे | यही कारण है क स य अथात परमा मा वयं उसके सम उप थत हो गया |

इस कार मणी हरण क लीला केवल एक लौ कक लीला ही नह वरन् कृ ण क अ य लीला के समान इसम भी ब त गहन
रह य छपे ए ह, ब त गूढ़ स दे श छपे ए ह |

Suraj Yadav at 10:17 AM


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Suraj Yadav
New Delhi, NCR of Delhi, India
I am an Indian, a Yadav from (Madhepura) Bihar, a social and political activist, a College
Professor at University of Delhi and a nationalist.,a fighter,dedicated to the cause of the
downtrodden.....
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