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ससाङ्ककेत्यय पसाररिहसास्यय वसा स्ततोभय हके लनमकेव वसा ।

ववैककण्ठनसामग्रहणमशकेषसाघहरिय ववद:क ॥ १४ ॥

(शश्रीमद भसागवत स्कयध ६ अध््यसाय २ श्लतोक १४)

जतो व्यककत भगवसान कसा ककीतर्तन करितसा हवै उसके तकरियत अनगगनत पसापतो कके फलतो सके मककत करि ददयसा जसातसा
हवै ।भलके हह उसनके यह ककीतर्तन अप्रत्यक रूप सके (ककछ अन्य सयककेत करिनके कके ललए),पररिहसास मके,
सयगश्रीतमय मनतोरिय जन कके ललए अथवसा उपकेकसा भसाव सके कयतो न ककयसा हतो ।इसके शसास्ततो मम पसारिय गत सभश्री
ववदवसान पयडडित स्वश्रीकसारि करितके हह ।

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