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पंडित डितें द्र डिश्र

Yesterday at 11:34 AM
::::::::::::::::प्रेत कैसे बनते हैं ::::::::::::::
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भूत -प्रेत -पित्र -ब्रह्म -पिन्न आपि का नाम हम सबने सुना हुआ है ,कुछ लोग इन िर पिश्वास करते हैं िर कुछ लोग इन्हें
नह ीं मानते | हमारा पिषय मानने न मानने से सम्बन्धित न होकर यह बताना है क आन्धिर भूत -प्रेत बनते कैसे हैं |हमारा
शर र अिने आि कैसे गमम रहता है यह आिने कभ सोचा है |पिज्ञान के छात्र इसे िानते हैं िर सभ लोग इसे नह ीं
समझ िाते |इस प्रपिया से िु ड़ा है प्रेत शर र का पनमाम ण भ |हर व्यन्धि का शर र छोट कोपशकाओीं से बना होता है
पिनक सींख्या अरबोीं में होत है और यह बहुत छोटे -छोटे होने से सामान्य आँ िोीं से पििाई नह ीं िे ते |हर कोपशका में
एक छोटा अियि माइटोकाीं परिया नाम का होता है िो ग्लूकोि से ऊिाम उत्पन्न करके शर र गमम रिता है |आि िो कुछ
भ िाते हैं िह शर र में िाकर ग्लूकोि में बिलता है और उस से आिको ऊिाम भ पमलत है और शर र भ गमम रहता
है |इसे आि ऐसे भ समझ सकते हैं क हर कोपशका में एक माइटोकाीं परिया नाम का चू ल्हा होता है पिसमे ग्लूकोि
िलता है और शर र गरम भ रहता है तथा शर र को शन्धि भ पमलत है |अरबोीं कोपशकाएीं होने से अरबोीं
माइटोकाीं परिया भ हो गय और कोपशकाओीं का आिस में िु ड़ाि होने से एक िाल स आकृपत ऊिाम उत्पन्न करने िाले
केन्द्ोीं के ब च बन िात है |िूरे शर र क इस ऊिाम क िाल स आकृपत को ऊिाम शर र या सूक्ष्म शर र या ऊिाम
िररिथ अथामत इनिी सपकमट कहते हैं |
प्रेत पकस भ ि िधार का सूक्ष्म शर र होता है ,,,स्वाभापिक मृत्यु के समय व्यन्धि के अींग ह रे -ध रे कम करना बीं ि
करते हैं ,अथाम त उसके ऊिाम िररिथ का िमशः क्षरण होता िाता है ,यान उसका ऊिाम शर र ध रे ध रे अींिोर होता
िाता है |िहले उसके हाथ िाँ ि आपि सुन्न होते हैं ,पिर शर र सुन्न होता है ,तत्पश्चात मन्धततष्क क चे तना से ह्रिय का
सम्बि टू टता है ,प्राण बाि में पनकलते हैं ,|,यह समस्त पिया कोपशकाओीं में न्धथथत पिि् युत् कणोीं के िमशः क्षरण से
होता है ,कोपशकाओ के माइटोकाीं परिया पिस पिि् युत् का पनमाम ण करते है िह स्टोर होते हैं ,पिर कोपशकाओीं को शन्धि
प्रिान करते है और शर र के ताि को बनाये रिने के साथ उिािचय क पियाये पनयपमत रिते हैं ,कोपशकाओीं के
पिि् यु त् केन्द्ोीं का सम्बि पिि् युत य शन्धि पकरणोीं के माध्यम से एक िु सरे से िु ड़ा होता है ,िो पिि् युत् श र आिस में
िु रकर बनाीं ते हैं |स्वाभापिक मृत्यु में यह सम्बि ध रे -ध रे क्ष ण िड़ कर टू ट िाता है और इलेक्ट्िापनक शर र नष्ट हो
िाता है ,पिससे आत्मा िु ड़ा होता है |,पिि् यु त य शर र नष्ट हो िाने िर आत्मा िू सरा पिि् यु त य शर र तलासने क
कोपसस करता है और भ्रूण के एक पनपश्चत स्तर के पिकास िर उसमे प्रिेश करता है पिससे उसे पिि् यु त य शर र
पमलता है ,,|,
िब कोई ि ि पकस आकन्धिक चोट से ,पिष से अथिा साँ सोीं के बीं ि हो िाने से या शर र िल िाने से पकस प्रकार
थथूल शर र क अचानक क्षपत कर ले ता है या कर पिया िाता है तो शर र तो नष्ट हो िाता है पकन्तु पियु त य शर र का
क्षरण नह ीं हो िाता ,अथिा अचानक आघात से शर र के अींग काम न करने से या शर र के अनुियु ि हो िाने से
पिि् यु त य शर र का क्षरण नह ीं हो िाता तो आत्मा उस से बीं ध रह िात है |शर र तो बे कार हो िाता है या नष्ट हो िाता
है पकन्तु पिि् युत् शर र उस शन्धि के साथ बना रह िाता है पितन शन्धि मरते समय उसमे थ |,,शर र के भौपतक
स्वरुि के अनुियु ि या बे कार होने से पिि् यु त य शर र के ह बचने के कारण उसका प्रत्यक्ष करण या पििाई िे ना
अन्य लोगो क दृपष्ट में बीं ि हो िाता है और लोग थथूल शर र को पनिीि िाकर समझते है क व्यन्धि मर गया ,पकन्तु िह
उस पिि् युत य शर र में ि पित रहता है ,उसक चे तना अनुभूपत आपि बन रहत है ,तृ ष्णा ,कामना ,इच्छा आपि बन
रहत है ,िरन्तु पिया के पलए शर र नह ीं होता |िब शर र पिया कर रहा होता है तब पिि् यु त् का िमशः क्षरण होता
रहता है पकन्तु अचानक शर र क पिया समाप्त होने से पिि् युत य केन्द्ोीं में स्टोर पियुत का क्षरण अल्प हो िाता है ,
और िह आत्मा उस न्धथथपत में ि पित रहता है ,यह प्रेतात्मा है |पिस तरह का पितन शन्धि का पिि् युत् शर र आत्मा
के साथ िु ड़ा होता है उतन शन्धि उस प्रेतात्मा में होत है | ,पिि् युत य शर र के क्षरण िर ह उसक मुन्धि पनभमर हो
िात है ,कभ कभ यह हिारो िषों में क्षररत होता है ,,,|
यह ि ि क अत्यींत कष्टप्रि न्धथथपत है ,िह चाहकर भ कुछ नह ीं कर िाता और छटिटाता रहता ,स्वयीं असींतुष्ट और
कष्ट में होने से ,अथिा कामनाये अधू र रहने से िु सरो को कष्ट िे ता है अथिा कामनाये िूर करने का प्रयास करता
है ,यह िे ि -समझ सकते हैं ,आकन्धिक मृत्यु को प्राप्त पित्र इस पलए असींतुष्ट होते हैं क िह िे िते हैं क हम अिना
ि िन ि रहे है पकन्तु उनके पलए या उनक मुन्धि के पलए कुछ नह ीं कर रहे है ,इस पलए िो इस न्धथथपत के िानकार हैं
,िे इनक मुन्धि [इले क्ट्िापनक बार ]के नष्ट होने क कामना करते हैं और सामना होने िर इन्हें मुन्धि प्रिान करते हैं |
ॐ,राम ,हनुमान या पकस ध्यान पसद्ध योग ,ताीं पत्रक आपि का स्पशम इनके पिि् यु त य शर र के क्षरण को त ब्र कर िे ता
है अथामत पिपशष्ट कम्पन या पसद्ध पिि् युत् शर र का का प्रभाि िब इनके पिि् यु त य शर र िर िड़ता है तो उसका क्षरण
ते ि हो िाता है और इन्हें उस प्रकार कष्ट होता है पिस प्रकार थथूल शर र के नष्ट होने से होता है ,इस पलए ये इन
ध्वपनयोीं, यींत्रोीं, मन्त्ोीं ,ताब िोीं आपि से िू र भागते हैं ,यह सब पिि् यु त य तरीं गो क पियाये है ,,,प्रकृपत क कुछ
िनस्पपतयाँ ,िृ क्ष, थथान आपि िहाीं इन पिि् यु त य शर रोीं को शाीं पत पमलत है ,िहाीं यह रहना िसींि करते हैं .|
पिि् यु त् शर र क ऊिाम अथाम त शन्धि िर ह उस प्रेत क शन्धि पनभमर करत है |भूत का पिि् युत् शर र कमिोर होता
है िबपक प्रेत का पिि् यु त् शर र अिेक्षाकृत मिबूत होने से िह अपधक प्रभापित करता है |ब्राह्मण -िींपरत या
आध्यान्धत्मक व्यन्धियोीं के पिि् युत् शर र में आध्यान्धत्मक ऊिाम के समािे श से ,ताीं पत्रकोीं के पिि् यु त् शर र में िारलौपकक
ऊिाम के िु ड़ाि से अपधक बल होता है पिससे इनका शर र पकस कारण िश अचानक नष्ट हो िाने िर ब्राह्मण से बना
ब्रह्म और ताीं पत्रक का प्रेत अपधक शन्धिशाल होता है तथा पकस को भ अपधक प्रभापित भ करता है और पकस
सामान्य ताीं पत्रक क शन्धि का उसिर कोई प्रभाि नह ीं िड़ता |िो भौपतक शर र के बहुत शन्धिशाल लोग हैं
,िहलिान ,शू र -ि र ,योद्धा आपि है उनके अचानक मृत हो िाने िर उनका प्रेत शर र इस पलए अपधक प्रभापित करता
है |पकस साधक का अचानक शर र पकस कारण नष्ट हो िाय तो िह अिन मुन्धि के पलए प्रेत शर र में पकस से
सम्पकम कर अिन मुन्धि प्रयास करता है |प्रेत अिन अतृ प्त इच्छाओीं क िूती का प्रयास करता है और इस प्रकार
अन्य शन्धियाँ अिने लक्ष्य मनुष्य के द्वारा िाने का प्रयत्न करत हैं |इन्हें ह प्रेत प्रभाि कहा िाता है |सामान्य शर र क
पिया से पिि् यु त् शर र कुछ िषों में व्यन्धि के साथ ह नष्ट हो िाता है पकन्तु शर र न होने से प्रेत का पिि् यु त् शर र
सैकड़ोीं -हिारोीं िषों में अिन शत के अनुसार नष्ट होता है और तब तक िह भटकता ह रहता है
|..................................................................हर-हर महािे ि

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