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Poem
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इस पहमालय से कोई गंगा पनकलनी चापहए. कोपशश करने र्ालों की हार नहीं होती
आज यह दीर्ार, पदों की तरह पहलने लगी, असर्लता एक चुनौती है , स्वीकार करो
शतव लेपकन थी की ये बुपनयाद पहलनी चापहए. क्या कमी रह गई, दे खो और सुधार करो
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गााँ र् जब तक न सर्ल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
में, संघर्व का मैदान छोड़ मत भागो तुम
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चापहए. कुछ पकये पबना ही जय जय कार नहीं होती
पसर्व हं गामा खड़ा करना मेरा मकसद नही, कोपशश करने र्ालों की हार नहीं होती
सारी कोपशश है पक ये सूरत बदलनी चापहए.
मेरे सीने में नही तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेपकन आग जलनी चापहए.
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कोपशश कर , हल पनकलेगा,
आज नही तो, कल पनकलेगा.
अजुवन सा लक्ष्य रख, पनशाना लगा,
मरुस्थल से भी पर्र, जल पनकलेगा.
मेहनत कर, पौधों को पानी दे ,
बंजर में भी पर्र, र्ल पनकलेगा .
ताक़त जुटा, पहम्मत को आग दे ,
र्ौलाद का भी, बल पनकलेगा.
सीने में उम्मीदों को, प ं दा रख,
समन्दर से भी, गंगाजल पनकलेगा.
कोपशशें जारी रख, कुछ कर ग़ु रने की,
जो कुछ थमा-थमा है , चल पनकलेगा.
कोपशश कर, हल पनकलेगा,
आज नहीं तो, कल पनकलगा.
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लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोपशश करने र्ालों की हार नहीं होती
नन्ीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीर्ारों पर, सौ बार पर्सलती है
मन का पर्श्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर पगरना, पगरकर चढ़ना न अखरता है
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आप़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोपशश करने र्ालों की हार नहीं होती
डु बपकयां पसंधु में गोताखोर लगाता है
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है
पमलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दु गना उत्साह इसी है रानी में