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िवशेष : समलिगकता अपराध नही ं (Homosexuality is not crime)

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संदभ

समलिगकता को लेकर िपछले कई दशकों से एक लंबी बहस और लड़ाई चली, प और िवप म कई तक गढ़े गए। समलिगक समुदाय को समाज म वीकृित, सुर ा और
स मान िदलाने के िलये सुपीम कोट का हािलया फैसला यकीनन एक नज़ीर बन गया है। अब भारत म सहमित से समलिगक यौन संबध ं अपराध की ेणी म नही ं है। 6
िसतंबर को सुपीम कोट ने ऐितहािसक फैसला सुनाते हुए समलिगकता को अपराध के दायरे से बाहर कर िदया है। हमारा संिवधान सभी नागिरकों को समानता का अिधकार
देता है। मौिलक अिधकारों को ज़हन म रखकर देश की सवो च अदालत ने समलिगता पर अपना ऐितहािसक फैसला सुनाया है।

पृ ठभूिम

धारा 377 िजसे "अपाकृितक अपराध" (unnatural offences) के नाम से भी जाना जाता है, को 1857 के िवदोह के बाद औपिनवेिशक शासन ारा
अिधिनयिमत िकया गया था।
दरअसल, उ होंने अपने धािमक और सां कृितक मू यों के आधार पर हमारे िलये कानून बनाया। तब ईसाइयत म समलिगकता को अपराध माना जाता था जबिक
इससे पहले समलिगक गितिविधयों म शािमल लोगों को भारत म दंिडत नही ं िकया जाता था।
1861 म अंगेज़ों ने भारत म समलिगकों के बीच शारीिरक संबध ं ों को अपराध मानते हुए उनके िलये 10 साल से लेकर उमकैद तक की सज़ा का पावधान िकया
था।
चच और िव टोिरयन नैितकता के दबाव से सोलहवी ं शता दी म समलिगकता को अपराध बनाने वाले कानूनों को कई दशक पहले ही यूरोप और अमेिरका म ख म
कर िदया गया, लेिकन भारत समेत अ य देशों म यह अपराध ही बना रहा।
दुभा य से समाज का एक बड़ा िह सा और उसका सां कृितक िवमश इसी दृि टकोण से बंधा हुआ है। िवडंबना यह है िक 1860 म लॉड मैकाले ारा लाए गए
आईपीसी के कानून की इस धारा को हटाने म भारतीय समाज को 157 साल लग गए।
फैसला सुनाते हुए जि टस इंद ु म ो ा ने अपने िनणय म कहा िक सिदयों तक बदनामी और बिह कार झेलने वाले समुदाय के सद यों और उनके पिरवारों को राहत
पदान करते हुए िवलंब की बात को इितहास म खेद के साथ दज िकया जाना चािहये।

समलैिं गकता अपराध यों नही ं है?

सुपीम कोट ने 157 साल पुरानी भारतीय दंड संिहता (IPC) की धारा 377 को आंिशक प से िनर त करते हुए अपने ऐितहािसक फैसले म कहा है िक जब दो वय क
ं बनाते ह तो इसे अपराध नही ं माना जा सकता।
चाहे वे िकसी भी िलंग के हों आपसी सहमित से एकांत म संबध

सुपीम कोट ने कहा िक LGBT समुदाय के लोगों को भी संिवधान म उसी पकार का बराबरी का अिधकार िमला हुआ है जैसे बाकी लोगों को।
मु य यायाधीश दीपक िम ा की अ य ता वाली संिवधान पीठ िजसम जि टस आर.एफ. नरीमन, जि टस ए.एम. खानिवलकर, जि टस डी.वाई. चंदचूड और
जि टस इंद ु म ो ा शािमल ह, ने एक मत से फैसला िदया िक पर पर सहमित से वय कों के बीच समलिगक यौन संबध ं यौन अपराध नही ं है।
कोट ने कहा िक धारा 377 के पावधान ारा ऐसे यौन संबध ं ों को अपराध के दायरे म रखने से संिवधान म िमले समता और गिरमा के अिधकार का हनन होता है।
शीष अदालत ने सहमित से यौन संबध ं ों को अपराध के दायरे से बाहर करते हुए कहा िक यह पावधान तकहीन, सरासर मनमाना और बचाव नही ं िकये जाने वाला है।
शीष अदालत ने अपने फैसले म यह साफ़ िकया िक अगर दो वय कों म से िकसी एक की सहमित के बगैर समलिगक यौन संबध ं बनाए जाते ह तो यह धारा 377 के
तहत अपराध की ेणी म आएगा और दंडनीय होगा।
संिवधान पीठ ने सवस मित से 495 पेजों म िदये गए आदेश म कहा िक LGBT समुदाय को देश के दूसरे नागिरकों के समान ही संवैधािनक अिधकार हािसल ह।
पीठ ने लिगक झानों को जैिवक घटना और वाभािवक बताते हुए कहा िक इस आधार पर िकसी भी तरह के भेदभाव से मौिलक अिधकारों का हनन होता है।
कोट ने कहा िक धारा 377 पुराने ढर पर चल रही सामािजक यव था पर आधािरत है, जबिक समलिगकता मानिसक िवकार नही ं है बि क यह पूरी तरह से
वाभािवक अव था है।
कोट ने आदेश म कहा िक जहाँ तक धारा 377 के तहत एकांत म वय कों ारा सहमित से यौन ि याओं को अपराध के दायरे म रखने का संबध ं है तो इससे
संिवधान के अनु छे द 14 (समता का अिधकार), 15 (धम, न ल, जाित, िलंग या ज म थान के आधार पर भेदभाव का िनषेध), 19 ( वतं ता का अिधकार) और
21 (दैिहक वतं ता का संर ण) म पद अिधकारों का हनन होता है।
हालाँिक आदेश म यह प ट िकया गया है िक ऐसी सहमित वतः होनी चािहये जो िक पूरी तरह से वैि छक हो और िकसी भी तरह के दबाव या भय से मु त हो।
नैितकता को सामािजक नैितकता की वेदी पर शहीद नही ं िकया जा सकता और कानून के शासन के अंतगत िसफ संवैधािनक नैितकता की अनुमित दी जा सकती
है।
पीठ ने कहा िक LGBT समाज के सद यों को परेशान करने के िलये धारा 377 का इ तेमाल एक हिथयार के प म िकया जा रहा है िजसकी पिरणित भेदभाव से
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होती है।
शीष अदालत ने ताज़ा आदेश म कहा है िक धारा 377 म शािमल पशुओ ं और ब चों से संबिं धत अपाकृितक यौन संबध ं थािपत करने को अपराध की ेणी म रखने
वाले पावधान पहले की ही तरह लागू रहगे। यानी ब चों और पशुओ ं से यौन संबध
ं बनाना पूव की तरह ही अपराध की ेणी म आएगा।

जब शीष यायालय ने पलट िदया अपना ही फैसला

2 जुलाई, 2009 को नाज़ फाउं डेशन की यािचका पर सुनवाई करते हुए िद ली हाईकोट ने अपने फैसले म कहा था िक दो वय कों के बीच यिद आपसी सहमित से
एकांत म समलिगक संबध ं बनता है तो उसे आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध नही ं माना जाएगा। कोट ने सभी नागिरकों के समानता के अिधकार की बात
की थी।
सुपीम कोट ने 11 िदसंबर, 2013 को िदये गए अपने ऐितहािसक फैसले म समलिगकता मामले म उमकैद की सज़ा के पावधान के कानून को बहाल रखने का
फैसला िकया था।
सुपीम कोट ने िद ली हाईकोट के उस फैसले को खािरज कर िदया था िजसम दो वय कों के आपसी सहमित से समलिगक संबध ं को अपराध की ेणी से बाहर
माना गया था।
सुपीम कोट ने कहा था िक जब तक धारा 377 रहेगी तब तक समलिगक संबध ं को वैध नही ं ठहराया जा सकता।

या है आईपीसी की धारा 377?

आईपीसी की धारा 377 अपाकृितक यौन अपराधों से संबिं धत है। इसके अनुसार, िकसी भी यि त, मिहला या पशु के साथ वैि छक प से संभोग करने वाले
यि त को अपराधी माना जाएगा और उसे आजीवन कारावास की सज़ा या दस साल तक का कारावास हो सकती है और ज़ुमाना भी लगाया जा सकता है।
अदालतों ने धारा 377 की कई बार या या की है और उन या याओं से िनकलने वाला सामा य सा िन कष यह है िक ‘धारा 377 म गैर-पजनन यौन कृ यों और
यौन िवकृित के िकसी भी कृ य को दंिडत करने का पावधान है।
दरअसल, धारा 377 म गैर-पजनन यौन कृ यों यानी अपाकृितक यौन संबध ं ों जैसे गुदा मैथनु (sadomy), ओरल से स आिद को अपराध माना जाता है और
दंिडत करने का भी पावधान है।
िद ली हाईकोट म नाज़ फाउं डेशन ारा एक यािचका दायर की गई िजसम यह पूछा गया िक ‘ या धारा 377 संिवधान के ारा आम नागिरकों को िमले समानता और
मूल अिधकारों का हनन नही ं करती? अगर ऐसा है तो यों न इसे असंवैधािनक करार दे िदया जाए और दो समान िलंग के लोगों के आपसी सहमित से बने संबध
ं ों
को कानूनी मा यता दे दी जाए।’

भारत में समलैिं गक अिधकारों को लेकर जाग कता

ँ ी लेिकन कई देश लंबे व त तक


समलिगक समुदाय दुिनया भर म भेदभाव के िशकार होते रहे ह। इनके अिधकारों के िलये कई देशों म लड़ाई अपने मकाम तक पहुच
समलिगक अिधकारों को लेकर चु पी साधे रहे।

1 अपैल, 2001 को नीदरलड म समलिगक िववाह का कानून बना। नीदरलड पहला ऐसा देश बना जहाँ समलिगक िववाह को कानूनी मा यता िमली। यही वह साल
था जब पूरी दुिनया म समलिगक अिधकारों को लेकर बहस अगले चरण म पहुच ँ गई।
कई देशों म समलिगक संबध ं ों के पैरोकार और उनसे हमदद रखने वाले संगठनों ने अपने-अपने तर पर अिधकारों की पैरवी करनी तेज़ कर दी। भारत म भी
समलिगक अिधकारों को लेकर जाग कता बढ़ाने की कवायद परवान चढ़ने लगी।
2001 म िद ली उ च यायालय म समलिगक संबध ं ों को अपराध घोिषत करने वाली आईपीसी की धारा 377 को गैर-संवैधािनक घोिषत करने की मांग उठी।
सामािजक सं था नाज़ फाउं डेशन ने अपनी यािचका म कहा िक धारा 377 कई लोगों के मौिलक अिधकारों का हनन कर रही है।
इस यािचका पर यायालय को यह तय करना था िक धारा 377 संिवधान के अनु छे द 21, 14 और 15 का अित मण करती है या नही ं।
िद ली हाईकोट म यह मामला करीब 9 साल चला। इस बीच कोट ने सरकार से अपना प रखने को भी कहा िजसके जवाब म जहाँ कदीय वा य एवं पिरवार
क याण मं ालय ने धारा को हटाने के प म अपना हलफनामा िदया तो वही ँ गृह मं ालय ने धारा 377 को बरकरार रखने की पैरवी की।
मामले म पितवादी प का यह कहना था िक समलिगकता पाकृितक नही ं बि क एक मानिसक बीमारी है और इसे सुधारा जा सकता है।
दूसरी तरफ, यािचकाक ाओं ने कहा िक अनु छे द 15 के अनुसार िकसी भी यि त से िलंग के आधार पर भेदभाव नही ं िकया जा सकता िजसम उस यि त की
यौन अिभ िच भी शािमल है।
यािचकाक ाओं ने कहा िक आईपीसी की धारा 377 संिवधान के अनु छे द 21 का भी उ लंघन करती है िजसम हर यि त को जीने के अिधकार की गारंटी दी गई
है।
इस अिधकार म स मान से जीवन जीना और गोपनीयता तथा एकांतता का अिधकार भी शािमल है।
यािचकाक ाओं ने संिवधान के अनु छे द 14 के अित मण की आशंका भी जताई िजसम हर यि त को िबना भेदभाव के पूरी तरह कानूनी संर ण िमलने का भी
अिधकार है जो ए स जैसी जानलेवा बीमारी के बाद इस कानून के डर से उ ह नही ं िमल पाता।
जुलाई 2009 को िद ली हाईकोट ने फैसला यािचकाक ा के प म िदया। यायालय ने कहा िक हम घोिषत करते ह िक आईपीसी की धारा 377 िजस हद तक
वय क यि तयों ारा एकांत म सहमित से बनाए गए यौन संबध ं ों का अपराधीकरण करती है, संिवधान के अनु छे द 21, 14 और 15 का उ लंघन है।
यह फैसला पूरे देश म चचा का िवषय बना। LGBT अिधकारों का समथन करने वाले लाखों लोगों ने फैसले का वागत िकया।
लेिकन यह मामला िद ली हाईकोट से सुपीम कोट पहुच ँ गया। िदसंबर 2013 म सवो च यायालय ने िद ली हाईकोट के फैसले को पलट िदया।
यायालय का मानना था िक धारा 377 कु छ हद तक असंवैधािनक है लेिकन िफर भी उसे संसद ने बदलने से परहेज िकया है। यानी संसद इसे हटाना नही ं चाहती।
िद ली हाईकोट के फैसले के उलट सुपीम कोट ने माना िक धारा 377 मौिलक अिधकारों का हनन इसिलये नही ं करती योंिक इन पर भी कु छ िनयं ण लगाए जा
सकते ह।
2013 के सुपीम कोट के फैसले के साथ ही करीब साढ़े चार साल तक सहमित से बना समलिगक यौन संबध ं कानूनी रहने के बाद िफर से गैरकानूनी हो गया।
लेिकन सुपीम कोट के 6 िसतंबर, 2018 को िदये गए ऐितहािसक फैसले से समलिगकता अपराध के दायरे से बाहर हो गई।
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समलैिं गकों के अिधकारों के िलये िकये गए पयास

समलिगकों के अिधकार को लेकर सरकारी और सामािजक मंचों पर लंबे समय से बहस होती रही है। संसद म भी ांसजडर को लेकर गंभीर बहस हुई। 2014 म सुपीम
कोट के एक ऐितहािसक फैसले म ांसजडरों को तीसरे िलंग के तौर पर मा यता दी गई। इसके साथ ही उ ह ओबीसी के तहत नौकिरयों म आर ण देने का भी पावधान है।

िदसंबर 2014 म रा यसभा म डीएमके सांसद ित ची िशवा ने एक िनजी िवधेयक के प म उभयिलंगी यि त िवधेयक पेश िकया।
अपैल 2015 म इस मसले पर रा यसभा एक ऐितहािसक पल का गवाह भी बनी। सदन ने िवधेयक को सवस मित से मंज़रू ी दे दी।
दरअसल, 36 साल म यह पहला मौका था जब िकसी गैर-सरकारी िवधेयक को सदन की मंज़रू ी िमली हो। इससे पहले िसफ 14 गैर-सरकारी िवधेयक पािरत हुए
थे।
इस िवधेयक म 58 पावधान थे िजसम िवपरीत िलंगी लोगों को समाज म बराबरी का हक़ िदलाने, मानवीय अिधकारों की र ा, आिथक और कानूनी मदद, िश ा तथा
रोज़गार से जुड़े पिश ण मुहैया कराने का िज शािमल है।
िबल म उभयिलंगी िवशेषािधकार पा त यायालयों एवं रा ीय तथा रा य आयोगों की थापना का भी िज़ था।
ित ची िशवा के इस िवधेयक पर लोकसभा म चचा नही ं हो सकी लेिकन सरकार 2015 म ही उभयिलंगी यि तयों के अिधकार िवधेयक, 2015 के नाम से अपना
िवधेयक लेकर आई।
सामािजक याय और अिधकािरता मं ालय ने िबल पर िसिवल सोसायटी से भी सुझाव मांगे। अपैल 2016 म इस िबल के मसौदे को िव और कानून मं ालय के
पास भेजा गया।
जुलाई 2016 म िबल को कैिबनेट की मंज़रू ी िमली और अग त 2016 म इसे लोकसभा म पेश िकया गया। यह िवधेयक लोकसभा से िफ़लहाल पािरत नही ं हो सका
है।
इसके अलावा 12 नवंबर, 2015 को सरकार ने ांसजडर नीित जारी की थी। State policy for transgender for Kerala, 2015 नाम की इस नीित म
लिगक अ पसं यक समूह को सामािजक कलंक मानने की पवृि ख़ म करने की बात कही गई थी।

दुिनया में समलैिं गकता को लेकर या ि थित है?

समलिगक समुदाय के अिधकारों पर िसफ भारत ही नही ं बि क दुिनया के दूसरे देशों म भी लंबे समय तक चचा होती रही। अब सुपीम कोट ारा भारत म समलिगकों को
मा यता देने के बाद भारत उन 125 देशों म शािमल हो गया है जहाँ समलिगकता को कानूनी मा यता पा त है। हालाँिक अभी भी 72 देशों म इसे अपराध की ेणी म रखा
गया है।

अमेिरका म 2013 से वय कों के िलये समलिगकता वैध है। िसतंबर 2011 म बनी “डोंट आ क, डोंट टे ल” नीित के तहत समलिगकों को देश की सै य सेवाओं म
नौकरी करने का अिधकार है।
वष 2017 म अमेिरकी सुपीम कोट ने समलिगक शािदयों को कानूनी मा यता दी। इसके अलावा, अमेिरका के कई रा यों म समलिगक जोड़ों को शादी कर पिरवार
बसाने का भी अिधकार िदया गया है।
इं लड और वे स म 1967 से, कॉटलड म 1981 से, जबिक नॉदन आयरलड म 1982 से समलिगकता को कानूनी मा यता िमल चुकी है।
2005 म िबटे न के संिवधान म समलिगक जोड़ों को पहचान पदान करने का पावधान िकया गया।
जमनी म संसद का ऊपरी सदन समलिगक लोगों से भेदभाव ख़ म करने का प ताव पािरत कर चुका है। इस प ताव म समलिगक जोड़ों की शादी और उ ह गोद
लेने का अिधकार देना भी शािमल है। इससे पहले जमनी की संवैधािनक अदालत समलिगक पाटनर को शादी की मा यता दे चुकी है।
जमनी म समलिगक पाटनरिशप को पंजीकृत कराने की सुिवधा है।
डेनमाक म समलिगकों को यापक अिधकार िमले हुए ह। यहाँ समलिगक से स 1933 से ही वैधािनक है। 1977 म यहाँ यौन संबध ं ों के िलये सहमित की उम
घटाकर 15 साल कर दी गई थी।
1989 से डेनमाक म समलिगकता को कानूनी मा यता देने का िसलिसला शु हुआ। इस तरह डेनमाक पहला देश था िजसने समलिगक जोड़ों को िववािहत दंपित
के बराबर का दजा िदया।
इसके बाद 1996 म नाव, ि व ज़रलड और आइसलड ने भी समलिगक संबध ं ों को कानूनी मान िलया।
2001 म नीदरलड म समलिगक जोड़ों की शादी को पूण िववाह का अिधकार िदया गया।
2003 म बेि जयम और 2004 म यूज़ीलड ने समलिगक िववाह को कानूनी प से वीकार िकया।

इ लािमक तथा पड़ोसी देशों की ि थित

ईरान, सऊदी अरब और सूडान जैसे देशों म समलिगकता को लेकर मृ युदड ं का पावधान है। भारत के पड़ोसी देशों-पािक तान, अफगािन तान, बां लादेश, ीलंका,
इंडोनेिशया, मॉरीशस और िसंगापुर जैसे देशों म भी समलिगकता अपराध है।

इ लािमक देशों म तुक ने समलिगकों और ांसजडरों के अिधकारों को मा यता दी है। यहाँ 1858 म आटोमन िखलाफत के समय से ही समान से स संबध ं ों को
मा यता िमली है। हालाँिक आम जीवन म ांसजडरों के साथ भेदभाव िकया जाता है।
बहरीन म 1976 म समान से स संबध ं ों को मा यता दी गई। हालाँिक यहाँ अभी भी ॉस ेिसंग यानी लड़कों का लड़िकयों की तरह कपड़े पहनना मना है।
LGBT समुदाय के अिधकारों के मामले म जॉडन का संिवधान काफी गितशील माना जाता है। यहाँ 1951 म समान से स संबध ं ों को कानूनी मा यता िमली।
दि ण अफीका म समलिगकता, समलिगक जोड़ों की शादी और ब चे गोद लेना कानूनी तौर पर वैध है। माली उन चुिनंदा अफ़ीकी देशों म शािमल है जहाँ LGBT
ं ों को कानूनी दजा िमला हुआ है।
संबध
पड़ोसी देश चीन म 2002 म समलिगकता को वैध िकया गया, हालाँिक पािक तान म समलिगक संबध ं ों को कानूनी या सामािजक मा यता नही ं है।
स म भी समलिगकों के अिधकारों के िलये कोई कानून नही ं है और यहाँ ांसजडरों के साथ भेदभाव आम बात है। इसके अलावा, दुिनया के कई देशों म
समलिगकों के अिधकारों को लेकर आंदोलन चल रहे ह।

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LGBT तथा संबंिधत मु े

सुपीम कोट के आदेश के बाद देश म समलिगक संबध ं ों को कानूनी मा यता तो िमल गई है लेिकन इसके अलावा कई कानूनी अडचन भी ह िजसके िलये समलिगक
अिधकारों की सुर ा का दावा करने वाले लोगों को और भी मज़बूती से लड़ाई लड़नी होगी, जैस-े

1. अभी तक कानून के िलहाज़ से समलिगकों को शादी का अिधकार नही ं है।


2. ब चों को गोद लेने का अिधकार नही ं है।
3. समलिगक सािथयों का भूिम और दूसरी संपि पर अिधकारों को लेकर भी िफ़लहाल कानून िकसी भी तरीके से साफ नही ं।

िन कष

भारतीय समाज म समलिगकों के सामािजक मु ों की लगातार अनदेखी होती रही है। सुपीम कोट के फैसले के बाद LGBT समुदाय के लोगों के बीच ख़ुशी का माहौल है।
लोगों का यह भी मानना है िक इस फैसले के बाद ऐसे समुदाय के लोगों को समाज की मु यधारा से जुड़ने के अिधक मौके िमलगे। अ य पहलुओ ं पर भी उनकी लड़ाई को
मज़बूती िमलेगी। साथ ही देश के सामािजक ताने-बाने के साथ लोगों के बीच LGBT समुदाय के पित उनकी मानिसकता म भी बदलाव आएगा।

समलिगकता पर सुपीम कोट का फैसला आने से पहले देश म िवपरीत िलंगी यि तयों के अिधकारों को लेकर काफी लंबे व त तक बहस चली जहाँ सरकार का दावा हमेशा
से ही रहा है िक संिवधान सभी यि तयों को बराबरी का दजा देता है वही,ँ हकीकत म िवपरीत िलंगी यि त भेदभाव के िशकार बनते रहे ह। हालाँिक इसके िवरोध के अलावा
समथन म भी काफी तक िदये जाते रहे ह।

समलिगक यौन संबध ं ों को सुपीम कोट की कानूनी मा यता िमलने के बाद अब यह सवाल उठना बंद हो जाएगा िक धारा 377 संिवधान के मौिलक अिधकारों का उ लंघन
करती है। लेिकन बराबरी के अिधकार का हक़ पाने के िलये लंबी लड़ाई लड़ने के बाद अभी भी इस समुदाय को सामािजक मा यता पाने के िलये बहुत दूर तक चलना होगा।

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