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भारत का विभाजन
भारत का विभाजन माउं टबेटन योजना के आधार पर वनवमित भारतीय स्वतंत्रता अवधवनयम १९४७ के
आधार पर वकया गया। इस अवधवनयम में काहा गया वक 15 अगस्त 1947 को भारत ि पावकस्तान
अवधराज्य नामक दो स्वायत्त्योपवनिेश बना वदए जाएं गें और उनको विवटश सरकार सत्ता स प ं
दे गी। स्वतंत्रता के साथ ही 14 अगस्त को पावकस्तान अवधराज्य (बाद में इस्लामी जम्हूररया ए
[1]

पावकस्तान) और 15 अगस्त को भारतीय संघ (बाद में भारत गणराज्य) की संस्थापना की गई। इस
घटनाक्रम में मुख्यतः विवटश भारत के बंगाल प्ां त को पूिी पावकस्तान और भारत के पविम
बंगाल राज्य में बााँ ट वदया गया और इसी तरह विवटश भारत के पंजाब प्ां त को पविमी पावकस्तान के
पंजाब प्ां त और भारत के पंजाब राज्य में बााँ ट वदया गया। इसी द रान विवटश भारत में से सीलोन
(अब श्रीलंका) और बमाि (अब म्ां मार) को भी अलग वकया गया, लेवकन इसे भारत के विभाजन में नहीं
शावमल वकया जाता है । इसी तरह 1971 में पावकस्तान के विभाजन और बां ग्लादे श की स्थापना को भी
इस घटनाक्रम में नहीं वगना जाता है । (नेपाल और भूटान इस द रान भी स्वतंत्र राज्य थे और इस बंटिारे
से प्भावित नहीं हुए।)
15 अगस्त 1947 की आधी रात को भारत और पावकस्तान कानूनी त र पर दो स्वतंत्र राष्ट्र
बने।[2] लेवकन पावकस्तान की सत्ता पररितिन की रस्में 14 अगस्त को कराची में की गईं तावक आखिरी
विवटश िाइसराॅय लुइस माउं टबैटन, करां ची और नई वदल्ली दोनों जगह की रस्मों में वहस्सा ले सके।
इसवलए पावकस्तान में स्वतं त्रता वदिस 14 अगस्त और भारत में 15 अगस्त को मनाया जाता है ।
भारत के विभाजन से करोडों लोग प्भावित हुए। विभाजन के द रान हुई वहं सा में करीब 5 लाि[3] लोग
मारे गए और करीब 1.45 करोड शरणावथियों ने अपना घर-बार छोडकर बहुमत संप्दाय िाले दे श में
शरण ली।[तथ्य िांवछत]

पृष्ठभूवम[संपावदत करें ]
भारत के विवटश शासकों ने हमेशा ही भारत में "फूट डालो और राज्य करो" की नीवत का अनुसरण
वकया। उन्ोंने भारत के नागररकों को संप्दाय के अनु सार अलग-अलग समूहों में बााँ ट कर रिा।
उनकी कुछ नीवतयााँ वहन्दु ओं के प्वत भेदभाि करती थीं तो कुछ मुसलमानों के प्वत। 20िी ं सदी आते -
आते मुसलमान वहन्दु ओं के बहुमत से डरने लगे और वहन्दु ओं को लगने लगा वक विवटश सरकार और
भारतीय नेता मुसलमानों को विशेषावधकार दे ने और वहन्दु ओं के प्वत भेदभाि करने में लगे हैं । इसवलए
भारत में जब आजादी की भािना उभरने लगी तो आजादी की लडाई को वनयंवत्रत करने में दोनों
संप्दायों के नेताओं में होड रहने लगी।
सन् 1906 में ढाका में बहुत से मुसलमान नेताओं ने वमलकर मुखस्लम लीग की स्थापना की। इन नेताओं
का विचार था वक मुसलमानों को बहुसंख्यक वहन्दु ओं से कम अवधकार उपलब्ध थे तथा भारतीय राष्ट्रीय
कां ग्रेस वहन्दु ओं का प्वतवनवधत्व करती थी। मुखस्लम लीग ने अलग-अलग समय पर अलग-अलग मां गें
रिीं। 1930 में मुखस्लम लीग के सम्मेलन में प्वसद्ध उदू ि कवि मुहम्मद इक़बाल ने एक भाषण में पहली
बार मुसलमानों के वलए एक अलग राज्य की मााँ ग उठाई।[तथ्य िांवछत] 1935 में वसंध प्ां त की विधान सभा
ने भी यही मां ग उठाई। इक़बाल और म लाना मुहम्मद अली ज हर ने मुहम्मद अली वजन्ना को इस मां ग
का समथिन करने को कहा।[तथ्य िांवछत] इस समय तक वजन्ना वहन्दू -मुखस्लम एकता के पक्ष में लगते थे ,
लेवकन धीरे -धीरे उन्ोने आरोप लगाना शुरू कर वदया वक कां ग्रेसी नेता मुसलमानों के वहतों पर ध्यान
नहीं दे रहे । लाह र में 1940 के मुखस्लम लीग सम्मेलन में वजन्ना ने साफ़ त र पर कहा वक िह दो अलग-
अलग राष्ट्र चाहते हैं
2

"वहन्दु ओं और मुसलमानों के धमि, विचारधाराएाँ , रीवत-ररिाज और सावहत्य वबलकुल अलग-


अलग हैं ।.. एक राष्ट्र बहुमत में और दू सरा अल्पमत में, ऐसे दो राष्ट्रों को साथ बााँ ध कर रिने से
असंतोष बढ़ कर रहे गा और अंत में ऐसे राज्य की बनािट का विनाश हो कर रहे गा।"[तथ्य िांवछत]
वहन्दू महासभा जैसे वहन्दू संगठन भारत के बंटिारे के प्बल विरोधी थे, लेवकन मानते थे वक
वहन्दु ओं और मुसलमानों में मतभेद हैं । 1937 में इलाहाबाद में वहन्दू महासभा के सम्मेलन में एक
भाषण में िीर सािरकर ने कहा था - आज के वदन भारत एक राष्ट्र नहीं है , यहााँ पर दो राष्ट्र हैं -वहन्दू
और मुसलमान।[4] कां ग्रेस के अवधकतर नेता पंथ-वनरपेक्ष थे और संप्दाय के आधार पर भारत का
विभाजन करने के विरुद्ध थे। महात्मा गां धी का विश्वास था वक वहन्दू और मुसलमान साथ रह सकते
हैं और उन्ें साथ रहना चावहये। उन्ोंने विभाजन का घोर विरोध वकया: "मेरी पूरी आत्मा इस
विचार के विरुद्ध विद्रोह करती है वक वहन्दू और मुसलमान दो विरोधी मत और संस्कृवतयााँ हैं । ऐसे
वसद्धां त का अनुमोदन करना मेरे वलए ईश्वर को नकारने के समान है ।"[तथ्य िांवछत] बहुत सालों तक
गां धी और उनके अनुयावययों ने कोवशश की वक मुसलमान कां ग्रेस को छोड कर न जाएं और इस
प्वक्रया में वहन्दू और मुसलमान गरम दलों के नेता उनसे बहुत वचढ़ गए।
अंग्रेजों ने योजनाबद्ध रूप से वहन्दू और मुसलमान दोनों संप्दायों के प्वत शक को बढ़ािा वदया।
मुखस्लम लीग ने अगस्त 1946 में वसधी कायििाही वदिस मनाया और कलकत्ता में भीषण दं गे वकये
वजसमें करीब 5000 लोग मारे गये और बहुत से घायल हुए। ऐसे माह ल में सभी नेताओं पर दबाि
पडने लगा वक िे विभाजन को स्वीकार करें तावक दे श पूरी तरह युद्ध की खस्थवत में न आ जाए।

विभाजन की प्वक्रया[संपावदत करें ]

भारत के विभाजन के ढां चे को '3 जून प्लान' या माउण्टबैटन योजना का नाम वदया गया। भारत
और पावकस्तान के बीच की सीमारे िा लंदन के िकील सर वसररल रै डखिफ ने तय की। वहन्दू
बहुमत िाले इलाके भारत में और मुखस्लम बहुमत िाले इलाके पावकस्तान में शावमल वकए गए। 18
3

जुलाई 1947 को विवटश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अविवनयम पाररत वकया वजसमें विभाजन
की प्वक्रया को अंवतम रूप वदया गया। इस समय विवटश भारत में बहुत से राज्य थे वजनके
राजाओं के साथ विवटश सरकार ने तरह-तरह के समझ ते कर रिे थे। इन 565 राज्यों को
आजादी दी गयी वक िे चुनें वक िे भारत या पावकस्तान वकस में शावमल होना चाहें गे। अवधकतर
राज्यों ने बहुमत धमि के आधार पर दे श चुना। वजन राज्यों के शासकों ने बहुमत धमि के अनुकूल
दे श चुना उनके एकीकरण में काफ़ी वििाद हुआ (दे िें भारत का राजनैवतक एकीकरण)।
विभाजन के बाद पावकस्तान को संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्य के रूप में शावमल वकया गया और
भारत ने विवटश भारत की कुसी संभाली।[5]
संपवि का बंटिारा[संपावदत करें ]
विवटश भारत की संपवत्त को दोनों दे शों के बीच बााँ टा गया लेवकन यह प्वक्रया बहुत लंबी खिंचने
लगी। गां धीजी ने भारत सरकार पर दबाि डाला वक िह पावकस्तान को धन जल्दी भेजे जबवक इस
समय तक भारत और पावकस्तान के बीच युद्ध शुरु हो चुका था और दबाि बढ़ाने के वलए अनशन
शुरु कर वदया। भारत सरकार को इस दबाि के आगे झुकना पडा और पावकस्तान को धन भेजना
पडा।२२ अक्टू बर १९४७ को पावकस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर वदया, उससे पूिि
माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पावकस्तान सरकार को ५५ करोड रुपये की रावश दे ने का
परामशि वदया था। केन्द्रीय मखिमण्डल ने आक्रमण के दृवष्ट्गत यह रावश दे ने को टालने का वनणिय
वलया वकन्तु गान्धी ने उसी समय यह रावश तुरन्त वदलिाने के वलए आमरण अनशन शुरू कर वदया
वजसके पररणामस्वरूप यह रावश पावकस्तान को भारत के वहतों के विपरीत दे दी गयी। नाथूराम
गोडसे ने महात्मा गां धी के इस काम को उनकी हत्या करने का एक कारण बताया।[तथ्य िांवछत]

दं गा फ़साद[संपावदत करें ]
बहुत से विद्वानों का मत है वक विवटश सरकार ने विभाजन की प्वक्रया को ठीक से नहीं संभाला।
चूंवक स्वतंत्रता की घोषणा पहले और विभाजन की घोषणा बाद में की गयी, दे श में शां वत कायम
रिने की वजम्मेिारी भारत और पावकस्तान की नयी सरकारों के सर पर आई। वकसी ने यह नहीं
सोचा था वक बहुत से लोग इधर से उधर जाएं गे। लोगों का विचार था वक दोनों दे शों में अल्पमत
संप्दाय के लोगों के वलए सु रक्षा का इं तजाम वकया जाएगा। लेवकन दोनों दे शों की नयी सरकारों के
पास वहं सा और अपराध से वनपटने के वलए आिश्यक इं तजाम नहीं था। फलस्वरूप दं गा फ़साद
हुआ और बहुत से लोगों की जाने गईं और बहुत से लोगों को घर छोडकर भागना पडा। अंदाजा
लगाया जाता है वक इस द रान लगभग 5 लाि से 30 लाि लोग मारे गये [तथ्य िांवछत], कुछ दं गों में,
तो कुछ यात्रा की मुखिलों से।
आलोचकों का मत है वक आजादी के समय हुए नरसंहार ि अशां वत के वलये अंग्रेजों द्वारा समय पूिि
सत्ता हस्तान्तरण करने की शीघ्रता ि तात्कावलक नेतृत्व की अदू रदवशिता उत्तरदायी थी।[6]

जन स्थानान्तरण[संपावदत करें ]
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विभाजन के द रान पंजाब में एक टर े न पर शरणाथी

विभाजन के बाद के महीनों में दोनों नये दे शों के बीच विशाल जन स्थानां तरण हुआ। पावकस्तान में
बहुत से वहन्दु ओं और वसिों को बलात् बेघर कर वदया गया। लेवकन भारत में गां धीजी ने कां ग्रेस
पर दबाि डाला और सुवनवित वकया वक मुसलमान अगर चाहें तो भारत में रह सकें। सीमा रे िाएं
तय होने के बाद लगभग 1.45 करोड लोगों ने वहं सा के डर से सीमा पार करके बहुमत संप्दाय के
दे श में शरण ली। भारत की जनगणना 1951 के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000
मुसलमान भारत छोडकर पावकस्तान गये और 72,49,000 वहन्दू और वसि पावकस्तान छोडकर
भारत आए।[तथ्य िांवछत] इसमें से 78 प्वतशत स्थानां तरण पविम में, मुख्यतया पंजाब में हुआ।

अन्तरराष्ट्रीय पररप्ेक्ष्य में विभाजन[संपावदत करें ]


अगस्त, 1947 में भारत और पावकस्तान में सत्ता का हस्तां तरण विटे न द्वारा उपवनिेशिादी शासन्
को ित्म करने की वदशा में पहला महत्त्वपूणि कदम था, वजसके साथ उसकी अंतरराष्ट्रीय शखक्त के
दू रगामी पररणाम जुडे थे।
भारत का यह विभाजन अठारहिीं सदी में यूरोप, एवशया, अफ्रीका और मध्य पूिि में वकए गए
अनेक विभाजनों में से एक है । प्ायः अवधकां श विभाजनों में वजस तरह विवभन्न धावमिक समुदायों के
बीच वजतनी वहं सा हुई, उससे कहीं अवधक वहं सा इस विभाजन में हुई। साम्राज्यशाही विटे न द्वारा
वकया गया भारत का यह विभाजन उसके द्वारा वकए गए चार विभाजनों में से एक है ।
उसने आयरलैंड, वफवलस्तीन और साइप्स के भी विभाजन कराए। उसने इन विभाजनों का कारण
यह बताया वक अलग-अलग समुदायों के लोग एक साथ वमलकर नहीं रह सकते। जबवक इन
विभाजनों के पीछे केिल धावमिक और नस्ली कारण नहीं थे , बखि विटे न के सामररक और
राजनीवतक वहत भी शावमल थे, वजनके आधार पर समझ तों के समय उसने अपनी रणनीवत बनाई
और चालें चलकर विभाजन कराए। िस्तुतः, विटे न की इन्ीं चालों की िजह से ये चारों विभाजन
हुए।

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