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शिव त ां डव स्तोत्र

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शिव ताण्डव स्तोत्र परम शिवभक्त लांक शिपशत र वण द्व र रशित भगव न शिव क एक बहूत
िमत्क री स्तोत्र है । र वण ने शिव की स्तुशत कर उन्हें प्रसन्न करने के शलए इन श्लोकोां क प ठ 1000
वर्षों तक शकय थ । र वण की इस तपस्य से प्रसन्न होकर शिवजी ने उससे स रे कष्ोां से मुक्तक्त दी
थी। र वण के ज प शकए वे श्लोक शिवत ां डव स्तोत्र के न म से ज ने ज ते हैं ।

शिव त ां डव स्तोत्र के ल भ
िमम ि स्त्ोां के अनुस र शिव त ण्डव स्त्ोत को शनत्य पढ़ने य श्रवण म त्र से इां स न के स रे प प उतर
ज ते है और हर मनोक मन पूरी हो ज ती है . शिव ताण्डव स्तोत्र में इतनी िक्तक्त है शक शकतनी भी
बड़ी परे ि नी हो, इससे दू र हो ज ती है । इस शिव स्तुशत से िन दौलत प ने के अल व रिन त्मकत
और कल त्मकत मै भी शनपुण्ड हो सकते है ।

शिव त ां डव स्तोत्र क प ठ कैसे करे


शहन्दू िरम ि स्त्ोां के अनुस र सुबह जल्दी स्न न करके भगवन शिव की पूज करने के ब द शनत्य शिव
त ां डव स्तोत्र क प ठ करे . सवमप्रथम शिवशलां ग क कच्चे दू ि और जल से अशभर्षेक करे , तत्पश्च त िुप,
दीप, पुष्प और नैवैद्य अशपमत करे , तत्पश्च त शिव ताण्डव स्तोत्र क प ठ करे |

शिव त ां डव स्तोत्र शहां दी में अनुव द सशहत


जट टवीग लज्जलप्रव हप शवतस्थले
गले ऽवलम्ब्यलक्तित ां भुजांगतुां गम शलक म्।

डमड्डमड्डमड्डम शन्नन दवड्डमवमयां


िक र िांडत ांडवां तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥

शजन शिव जी की सघन जट रूप वन से प्रव शहत हो गांग जी की ि र यां उनके कांठ को प्रक्ष शलत
करती हैं , शजनके गले में बडे एवां लिे सपों की म ल एां लटक रहीां हैं , तथ जो शिव जी डम-डम डमरू
बज कर प्रिण्ड त ण्डव करते हैं , वे शिवजी हम र कल्य ण करें

जट कट हसांभ्रम भ्रमशन्नशलां पशनर्म री ।


शवलोलवी शिवल्लरी शवर जम नमूिमशन ।

िगद्धगद्ध गज्ज्वलल्लल ट पट्टप वके


शकिोरिांद्रिे खरे रशतः प्रशतक्षणां ममां ॥2॥
शजन शिव जी के जट ओां में अशतवेग से शवल स पुवमक भ्रमण कर रही दे वी गांग की लहरे उनके िीि
पर लहर रहीां हैं , शजनके मस्तक पर अशि की प्रिण्ड ज्व ल यें ििक-ििक करके प्रज्वशलत हो रहीां
हैं , उन ब ल िांद्रम से शवभूशर्षत शिवजी में मेर अांनुर ग प्रशतक्षण बढत रहे ।

िर िरें द्र नांशदनी शवल स बांिुवांिुर-


स्फुरदृगांत सांतशत प्रमोद म नम नसे ।

कृप कट क्षि रणी शनरुद्धदु िमर पशद


कवशिशद्वगिरे मनो शवनोदमेतु वस्तुशन ॥3॥

जो पवमतर जसुत (प वमती जी) के शवल समय रमशणय कट क्षोां में परम आनक्तित शित्त रहते हैं , शजनके
मस्तक में सम्पूणम सृशष् एवां प्र णीगण व स करते हैं , तथ शजनके कृप दृशष् म त्र से भक्तोां की समस्त
शवपशत्तय ां दू र हो ज ती हैं , ऐसे शदगिर (आक ि को वस्त् स म न ि रण करने व ले ) शिवजी की
आर िन से मेर शित्त कब आनांशदत होग

जट भुजां गशपांगल स्फुरत्फण मशणप्रभ -


कदां बकुांकुम द्रवप्रशलप्त शदग्विूमुखे ।

मद ां ि शसांिु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो शवनोदद् भुतां शबांभतुम भूतभतम रर ॥4॥

मैं उन शिवजी की भक्तक्त में आक्तित रहूूँ जो सभी प्र शणयोां की के आि र एवां रक्षक हैं , शजनके ज ट ओां
में शलपटे सपों के फण की मशणयोां के प्रक ि पीले वणम प्रभ -समुहरूपकेसर के क शतां से शदि ओां को
प्रक शित करते हैं और जो गजिमम से शवभुशर्षत हैं ।

सहस्र लोिन प्रभृत्य िेर्षले खिे खर-


प्रसून िूशलिोरणी शविूसर ां शिपीठभूः ।

भुजांगर ज म लय शनबद्धज टजूटकः


शश्रये शिर य ज यत ां िकोर बांिुिेखरः ॥5॥

इां द्र शद समस्त दे वत ओां के शसर से सुसक्तज्जत पुष्पोां की िूशलर शि से िूसररत प दपृष्ठ व ले सपमर जोां की
म ल ओां से शवभूशर्षत जट व ले प्रभु हमें शिरक ल के शलए सम्पद दें ।

लल ट ित्वरज्वलद्धनांजयस्फुररगभ -
शनपीतपांिस यकां शनमशन्नशलां पन यम् ।

सुि मयुख ले खय शवर जम निे खरां


मह कप शल सांपदे शिरोजय लमस्तू नः ॥6॥

शजन शिव जी ने इन्द्र शद दे वत ओां क गवम दहन करते हुए, क मदे व को अपने शवि ल मस्तक की अशि
ज्व ल से भस्म कर शदय , तथ जो सभी दे वोां द्व र पुज्य हैं , तथ िन्द्रम और गांग द्व र सुिोशभत हैं , वे
मुर्े शसद्दी प्रद न करें ।
कर ल भ ल पशट्टक िगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनांजय िरीकृतप्रिांडपांिस यके ।

िर िरें द्र नांशदनी कुि ग्रशित्रपत्रक-


प्रकल्पनैकशिक्तल्पशन शत्रलोिने मशतममम ॥7॥

शजनके मस्तक से िक-िक करती प्रिण्ड ज्व ल ने क मदे व को भस्म कर शदय तथ जो शिव प वमती
जी के स्तन के अग्र भ ग पर शित्रक री करने में अशत ितु र है ( यह ूँ प वमती प्रकृशत हैं , तथ शित्रक री
सृजन है ), उन शिव जी में मेरी प्रीशत अटल हो।

नवीन मेघ मांडली शनरुद्धदु िमरस्फुर-


त्कुहु शनिीशथनीतमः प्रबांिबांिुकांिरः ।

शनशलम्पशनर्म रर िरस्तनोतु कृशत्त शसांिुरः


कल शनि नबांिुरः शश्रयां जगांद्िुरांिरः ॥8॥

शजनक कण्ठ नवीन मेंघोां की घट ओां से पररपू णम आमवस्य की र शत्र के स म न क ल है , जो शक गज-


िमम, गांग एवां ब ल-िन्द्र द्व र िोभ यम न हैं तथ जो शक जगत क बोर् ि रण करने व ले हैं , वे शिव
जी हमे सभी प्रक र की सम्पनत प्रद न करें ।

प्रफुल्ल नील पांकज प्रपांिक शलमच्छट -


शवडां शब कांठकांि र रुशि प्रबांिकांिरम्

स्मरक्तच्छदां पुरक्तच्छांद भवक्तच्छदां मखक्तच्छदां


गजक्तच्छद ां िकक्तच्छदां तमांतकक्तच्छदां भजे ॥9॥

शजनक कण्ठ और कन्ध पूणम क्तखले हुए नीलकमल की फैली हुई सुिर श्य म प्रभ से शवभुशर्षत है , जो
क मदे व और शत्रपुर सुर के शवन िक, सांस र के दु :खो के क टने व ले , दक्षयज्ञ शवन िक, गज सुर एवां
अन्धक सुर के सांह रक हैं तथ जो मृत्यू को वि में करने व ले हैं , मैं उन शिव जी को भजत हूूँ

अगवमसवममांगल कल कदिमांजरी-
रसप्रव ह म िुरी शवजृां भण मिुव्रतम् ।

स्मर ां तकां पुर तकां भ वांतकां मख ां तकां


गज ां तक ां िक ां तकां तमांतक ां तकां भजे ॥10॥

जो कल्य नमय, अशवन शि, समस्त कल ओां के रस क अस्व दन करने व ले हैं , जो क मदे व को भस्म
करने व ले हैं , शत्रपुर सुर, गज सुर, अन्धक सुर के सह ां रक, दक्षयज्ञशवध्वसांक तथ स्वयां यमर ज के शलए
भी यमस्वरूप हैं , मैं उन शिव जी को भजत हूूँ ।

जयत्वदभ्रशवभ्रम भ्रमद् भुजांगमस्फुर-


द्धगद्धगशद्व शनगममत्कर ल भ ल हव्यव ट् -

शिशमक्तद्धशमक्तद्धशम नन्मृदांगतुां गमांगल-


ध्वशनक्रमप्रवशतमत प्रिण्ड त ण्डवः शिवः ॥11॥
अतयांत वेग से भ्रमण कर रहे सपों के फूफक र से क्रमि: लल ट में बढी हूई प्रिांण अशि के मध्य
मृदांग की मांगलक री उच्च शिम-शिम की ध्वशन के स थ त ण्डव नृत्य में लीन शिव जी सवम प्रक र
सुिोशभत हो रहे हैं ।

दृर्षशद्वशित्रतल्पयोभुमजांग मौक्तक्तकमस्रजो-
गमररष्ठरत्नलोष्योः सुहृशद्वपक्षपक्षयोः ।

तृ ण रशवांदिक्षुर्षोः प्रज महीमहे न्द्रयोः


समां प्रवतमयन्मनः कद सद शिवां भजे ॥12॥

कठोर पत्थर एवां कोमल िय्य , सपम एवां मोशतयोां की म ल ओां, बहुमूल्य रत्न एवां शमट्टी के टू कडोां, ित्रू
एवां शमत्रोां, र ज ओां तथ प्रज ओां, शतनकोां तथ कमलोां पर स म न दृशष् रखने व ले शिव को मैं भजत हूूँ ।

कद शनशलां पशनर्म री शनकुजकोटरे वसन्


शवमुक्तदु ममशतः सद शिरःस्थमांजशलां वहन् ।

शवमुक्तलोललोिनो लल मभ ललिकः
शिवेशत मांत्रमुच्चरन् कद सुखी भव म्यहम् ॥13॥

कब मैं गांग जी के कछ रगुञ में शनव स करत हुआ, शनष्कपट हो, शसर पर अांजली ि रण कर िांिल
नेत्रोां तथ लल ट व ले शिव जी क मांत्रोच्च र करते हुए अक्षय सुख को प्र प्त करू
ां ग ।

शनशलम्प न थन गरी कदि मौलमक्तल्लक -


शनगुम्फशनभमक्षरन्म िूक्तिक मनोहरः ।

तनोतु नो मनोमुदां शवनोशदनीांमहशनिां


पररश्रय परां पदां तदां गजक्तत्वर्ष ां ियः ॥14॥

दे व ां गन ओां के शसर में गूूँथे पुष्पोां की म ल ओां के र्ड़ते हुए सुगांिमय पर ग से मनोहर, परम िोभ के
ि म मह दे वजी के अांगोां की सुांदरत एूँ परम नांदयुक्त हम रे मन की प्रसन्नत को सवमद बढ़ ती रहें ।

प्रिण्ड व डव नल प्रभ िु भप्रि रणी


मह ष्शसक्तद्धक शमनी जन वहूत जल्पन ।

शवमुक्त व म लोिनो शवव हक शलकध्वशनः


शिवेशत मन्त्रभूर्षगो जगज्जय य ज यत म् ॥15॥

प्रिांड बड़व नल की भ ूँ शत प पोां को भस्म करने में स्त्ी स्वरूशपणी अशणम शदक अष् मह शसक्तद्धयोां तथ
िांिल नेत्रोां व ली दे वकन्य ओां से शिव शवव ह समय में ग न की गई मांगलध्वशन सब मांत्रोां में परमश्रेष्ठ
शिव मांत्र से पूररत, स ां स ररक दु ःखोां को नष् कर शवजय प एूँ ।

इमां शह शनत्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवां


पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो शविुद्धमेशत सांततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तक्तम िु य शत न ां यथ गशतां
शवमोहनां शह दे हन तु िांकरस्य शिांतनम ॥16॥

इस परम उत्तम शिव त ण्डव स्त्ोत को शनत्य पढने य श्रवण करने म त्र से प्र शण पशवत्र हो, परां गु रू
शिव में स्थ शपत हो ज त है तथ सभी प्रक र के भ्रमोां से मुक्त हो ज त है ।

पूज ऽवस नसमये दिवक्रत्रगीतां


यः िम्भू पूजनशमदां पठशत प्रदोर्षे ।

तस्य क्तस्थर ां रथगजें द्रतु रांगयुक्त ां


लक्ष्मी सदै व सुमुखीां प्रदद शत िम्भु ः ॥17॥

प्रदोर्ष समय में शिवपुजन के अांत में इस र वणकृत शिवत ण्डवस्तोत्र के ग न से लक्ष्मी क्तस्थर रहती हैं
तथ भक्त रथ, गज, घोड आशद सम्पद से सवमद युक्त रहत है ।

इशतश्रीरावण– कृतम्शिव– ताण्दवस्तोत्रम्सम्पूणणम्

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