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शिव तांडव स्तोत्र
शिव तांडव स्तोत्र
voidcan.org/शिव-त ां डव-स्तोत्र/
शिव ताण्डव स्तोत्र परम शिवभक्त लांक शिपशत र वण द्व र रशित भगव न शिव क एक बहूत
िमत्क री स्तोत्र है । र वण ने शिव की स्तुशत कर उन्हें प्रसन्न करने के शलए इन श्लोकोां क प ठ 1000
वर्षों तक शकय थ । र वण की इस तपस्य से प्रसन्न होकर शिवजी ने उससे स रे कष्ोां से मुक्तक्त दी
थी। र वण के ज प शकए वे श्लोक शिवत ां डव स्तोत्र के न म से ज ने ज ते हैं ।
शिव त ां डव स्तोत्र के ल भ
िमम ि स्त्ोां के अनुस र शिव त ण्डव स्त्ोत को शनत्य पढ़ने य श्रवण म त्र से इां स न के स रे प प उतर
ज ते है और हर मनोक मन पूरी हो ज ती है . शिव ताण्डव स्तोत्र में इतनी िक्तक्त है शक शकतनी भी
बड़ी परे ि नी हो, इससे दू र हो ज ती है । इस शिव स्तुशत से िन दौलत प ने के अल व रिन त्मकत
और कल त्मकत मै भी शनपुण्ड हो सकते है ।
शजन शिव जी की सघन जट रूप वन से प्रव शहत हो गांग जी की ि र यां उनके कांठ को प्रक्ष शलत
करती हैं , शजनके गले में बडे एवां लिे सपों की म ल एां लटक रहीां हैं , तथ जो शिव जी डम-डम डमरू
बज कर प्रिण्ड त ण्डव करते हैं , वे शिवजी हम र कल्य ण करें
जो पवमतर जसुत (प वमती जी) के शवल समय रमशणय कट क्षोां में परम आनक्तित शित्त रहते हैं , शजनके
मस्तक में सम्पूणम सृशष् एवां प्र णीगण व स करते हैं , तथ शजनके कृप दृशष् म त्र से भक्तोां की समस्त
शवपशत्तय ां दू र हो ज ती हैं , ऐसे शदगिर (आक ि को वस्त् स म न ि रण करने व ले ) शिवजी की
आर िन से मेर शित्त कब आनांशदत होग
मद ां ि शसांिु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो शवनोदद् भुतां शबांभतुम भूतभतम रर ॥4॥
मैं उन शिवजी की भक्तक्त में आक्तित रहूूँ जो सभी प्र शणयोां की के आि र एवां रक्षक हैं , शजनके ज ट ओां
में शलपटे सपों के फण की मशणयोां के प्रक ि पीले वणम प्रभ -समुहरूपकेसर के क शतां से शदि ओां को
प्रक शित करते हैं और जो गजिमम से शवभुशर्षत हैं ।
इां द्र शद समस्त दे वत ओां के शसर से सुसक्तज्जत पुष्पोां की िूशलर शि से िूसररत प दपृष्ठ व ले सपमर जोां की
म ल ओां से शवभूशर्षत जट व ले प्रभु हमें शिरक ल के शलए सम्पद दें ।
लल ट ित्वरज्वलद्धनांजयस्फुररगभ -
शनपीतपांिस यकां शनमशन्नशलां पन यम् ।
शजन शिव जी ने इन्द्र शद दे वत ओां क गवम दहन करते हुए, क मदे व को अपने शवि ल मस्तक की अशि
ज्व ल से भस्म कर शदय , तथ जो सभी दे वोां द्व र पुज्य हैं , तथ िन्द्रम और गांग द्व र सुिोशभत हैं , वे
मुर्े शसद्दी प्रद न करें ।
कर ल भ ल पशट्टक िगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनांजय िरीकृतप्रिांडपांिस यके ।
शजनके मस्तक से िक-िक करती प्रिण्ड ज्व ल ने क मदे व को भस्म कर शदय तथ जो शिव प वमती
जी के स्तन के अग्र भ ग पर शित्रक री करने में अशत ितु र है ( यह ूँ प वमती प्रकृशत हैं , तथ शित्रक री
सृजन है ), उन शिव जी में मेरी प्रीशत अटल हो।
शजनक कण्ठ और कन्ध पूणम क्तखले हुए नीलकमल की फैली हुई सुिर श्य म प्रभ से शवभुशर्षत है , जो
क मदे व और शत्रपुर सुर के शवन िक, सांस र के दु :खो के क टने व ले , दक्षयज्ञ शवन िक, गज सुर एवां
अन्धक सुर के सांह रक हैं तथ जो मृत्यू को वि में करने व ले हैं , मैं उन शिव जी को भजत हूूँ
अगवमसवममांगल कल कदिमांजरी-
रसप्रव ह म िुरी शवजृां भण मिुव्रतम् ।
जो कल्य नमय, अशवन शि, समस्त कल ओां के रस क अस्व दन करने व ले हैं , जो क मदे व को भस्म
करने व ले हैं , शत्रपुर सुर, गज सुर, अन्धक सुर के सह ां रक, दक्षयज्ञशवध्वसांक तथ स्वयां यमर ज के शलए
भी यमस्वरूप हैं , मैं उन शिव जी को भजत हूूँ ।
दृर्षशद्वशित्रतल्पयोभुमजांग मौक्तक्तकमस्रजो-
गमररष्ठरत्नलोष्योः सुहृशद्वपक्षपक्षयोः ।
कठोर पत्थर एवां कोमल िय्य , सपम एवां मोशतयोां की म ल ओां, बहुमूल्य रत्न एवां शमट्टी के टू कडोां, ित्रू
एवां शमत्रोां, र ज ओां तथ प्रज ओां, शतनकोां तथ कमलोां पर स म न दृशष् रखने व ले शिव को मैं भजत हूूँ ।
शवमुक्तलोललोिनो लल मभ ललिकः
शिवेशत मांत्रमुच्चरन् कद सुखी भव म्यहम् ॥13॥
कब मैं गांग जी के कछ रगुञ में शनव स करत हुआ, शनष्कपट हो, शसर पर अांजली ि रण कर िांिल
नेत्रोां तथ लल ट व ले शिव जी क मांत्रोच्च र करते हुए अक्षय सुख को प्र प्त करू
ां ग ।
दे व ां गन ओां के शसर में गूूँथे पुष्पोां की म ल ओां के र्ड़ते हुए सुगांिमय पर ग से मनोहर, परम िोभ के
ि म मह दे वजी के अांगोां की सुांदरत एूँ परम नांदयुक्त हम रे मन की प्रसन्नत को सवमद बढ़ ती रहें ।
प्रिांड बड़व नल की भ ूँ शत प पोां को भस्म करने में स्त्ी स्वरूशपणी अशणम शदक अष् मह शसक्तद्धयोां तथ
िांिल नेत्रोां व ली दे वकन्य ओां से शिव शवव ह समय में ग न की गई मांगलध्वशन सब मांत्रोां में परमश्रेष्ठ
शिव मांत्र से पूररत, स ां स ररक दु ःखोां को नष् कर शवजय प एूँ ।
इस परम उत्तम शिव त ण्डव स्त्ोत को शनत्य पढने य श्रवण करने म त्र से प्र शण पशवत्र हो, परां गु रू
शिव में स्थ शपत हो ज त है तथ सभी प्रक र के भ्रमोां से मुक्त हो ज त है ।
प्रदोर्ष समय में शिवपुजन के अांत में इस र वणकृत शिवत ण्डवस्तोत्र के ग न से लक्ष्मी क्तस्थर रहती हैं
तथ भक्त रथ, गज, घोड आशद सम्पद से सवमद युक्त रहत है ।