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पटकथा

1.
जब म बाहर आया
मेरे हाथ म
एक क वता थी और दमाग म
आँत का ए स-रे ।
वह काला ध बा
कल तक एक श द था;
खन ू के अँधेर म
दवा का े डमाक
बन गया था। ़
औरत के लये गैर-ज़ र होने के बाद
अपनी ऊब का
ू रा समाधान ढूँढना ज़ र है ।
दस
मने सोचा !
य क श द और वाद के बीच
अपनी भख ू को िज़ दा रखना
जीभ और जाँघ के था नक भग ू ोल क
वािजब मजबरू है ।
मने सोचा और सं कार के
विजत इलाक म
अपनी आदत का शकार
होने के पहले ह बाहर चला आया।
बाहर हवा थी
धपू थी
घास थी
मने कहा आजाद …
मझ ु े अ छ तरह याद है -
मने यह कहा था
मेर नस-नस म बजल
दौड़ रह थी
उ साह म
खद ु मेरा वर
मझ ु े अजनबी लग रहा था
मने कहा-आ-जा-द
और दौड़ता हुआ खेत क ओर
गया। वहाँ कतार के कतार
अनाज के अँकुए फूट रहे थे
मने कहा- जैसे कसरत करते हुये
ब चे। तार पर
च डयाँ ़ चहचहा रह थीं
मने कहा-काँसे क बजती हुई घि टयाँ…
खेत क मेड़ पार करते हुये
मने एक बैल क पीठ थपथपायी
सड़क पर जाते हुये आदमी से
उसका नाम पछ ू ा
और कहा- बधाई…
घर लौटकर
मने सार ब याँ जला द ं
परु ानी त वीर को द वार से
उतारकर
उ ह साफ कया
और फर उ ह द वार पर (उसी जगह)
प छकर टाँग दया।
मने दरवाजे के बाहर
एक पौधा लगाया और कहा–
वन महो सव…
और दे र तक
हवा म गरदन उचका-उचकाकर
ल बी-ल बी साँस खींचता रहा
दे र तक महसस ू करता रहा–
क मेरे भीतर
व त का सामना करने के लये
औसतन ,जवान खन ू है
मगर ,मझ ु े शाि त चा हये
इस लये एक जोड़ा कबत ू र लाकर डाल दया
‘गँ.ू .गटु रगँ…
ू गँ…ू गट ु रगँ…
ू ’
और चहकते हुये कहा
यह मेर आ था है
यह मेरा कानन ू है ।
इस तरह जो था उसे मने
जी भरकर यार कया
और जो नह ं था
उसका इंतज़ार कया।
मने इंतज़ार कया–
अब कोई ब चा
भख ू ा रहकर कूल नह ं जायेगा
अब कोई छत बा रश म
नह ं टपकेगी।
अब कोई आदमी कपड़ क लाचार म
अपना नंगा चेहरा नह ं पहनेगा
अब कोई दवा के अभाव म
घट ु -घट ु कर नह ं मरे गा
अब कोई कसी क रोट नह ं छ नेगा
कोई कसी को नंगा नह ं करे गा
अब यह ज़मीन अपनी है
आसमान अपना है
जैसा पहले हुआ करता था…
सय ू ,हमारा सपना है
म इ तजाऱ करता रहा..
इ तजाऱ करता रहा…
इ तजाऱ करता रहा…
जनत , याग, वत ता…
सं कृ त,शाि त,मनु यता…
ये सारे श द थे
सनु हरे वादे थे
खश ु फ़हम इरादे थे
सु दर थे
मौ लक थे
मख ु र थे
म सन ु ता रहा…
सन ु ता रहा…
सन ु ता रहा…
मतदान होते रहे
म अपनी स मो हत बु ध के नीचे
उसी लोकनायक को
बार-बार चन ु ता रहा
िजसके पास हर शंका और
हर सवाल का
एक ह जवाब था
यानी क कोट के बटन-होल म
महकता हुआ एक फूल
गल
ु ाब का।
वह हम व वशाि त के और पंचशील के सू
समझाता रहा। म खद ु को
समझाता रहा-’जो म चाहता हूँ-
वह होगा। होगा-आज नह ं तो कल ।
मगर सब कुछ सह होगा।

2.
भीड़ बढ़ती रह ।
चौराहे चौड़े होते रहे ।
लोग अपने-अपने ह से का अनाज
खाकर- नरापद भाव से
ब चे जनते रहे ।
योजनाय चलती रह ं
ब दक ू के कारखान म
जत ू े बनते रहे ।
और जब कभी मौसम उतार पर
होता था। हमारा संशय
हम क चता था। हम उ ेिजत होकर
पछू ते थे -यह या है ?
ऐसा य है ?
फर बहस होतीं थीं
श द के जंगल म
हम एक-दस ू रे को काटते थे
भाषा क खाई को
जब ु ान से कम जत ू से
यादा पाटते थे
कभी वह हारता रहा…
कभी हम जीतते रहे …
इसी तरह नोक-झ क चलती रह
दन बीतते रहे …
मगर एक दन म त ध रह गया।
मेरा सारा धीरज
यु ध क आग से पघलती हुयी बफ म
बह गया।
मने दे खा क मैदान म
न दय क जगह
मरे हुये साँप क कचल ु बछ ह
पेड़-टूटे हुये रडार क तरह खड़े ह
दरू -दरू तक
कोई मौसम नह ं है
लोग-
घर के भीतर नंगे हो गये ह
और बाहर मद ु पड़े ह
वधवाय तमगा लट ू रह ं ह
सधवाय मंगल गा रह ं ह
वन-महो सव से लौट हुई काय णा लयाँ
अकाल का लंगर चला रह ह
जगह-जगह ति तयाँ लटक रह ं ह-
‘यह मशान है ,यहाँ क त वीर लेना
स त मना है ।’
फर भी उस उजाड़ म
कह -ं कह ं घास का हरा कोना
कतना डरावना है
मने अचरज से दे खा क द ु नया का
सबसे बड़ा बौ ध- मठ
बा द का सबसे बड़ा गोदाम है
अखबार के मटमैले हा सये पर
लेटे हुये ,एक तट थ और कोढ़ दे वता का
शां तवाद ,नाम है
यह मेरा दे श है …
यह मेरा दे श है …
हमालय से लेकर हंद महासागर तक
फैला हुआ
जल हुई म ट का ढे र है
जहाँ हर तीसर जब ु ान का मतलब-
नफ़रत है ।
सािज़श है ।
अ धेर है ।
यह मेरा दे श है
और यह मेरे दे श क जनता है
जनता या है ?
एक श द… सफ एक श द है :
कुहरा,क चड़ और कांच से
बना हुआ…
एक भेड़ है
जो दस ू र क ठ ड के लये
अपनी पीठ पर
ऊन क फसल ढो रह है ।
एक पेड़ है
जो ढलान पर
हर आती-जाती हवा क जब ु ान म
हाँऽऽ..हाँऽऽ करता है
य क अपनी ह रयाल से
डरता है ।
गाँव म ग दे पनाल से लेकर
शहर के शवाल तक फैल हुई
‘कथाक ल’ क अंमत ू मु ा है
यह जनता…
उसक धा अटूट है
उसको समझा दया गया है क यहाँ
ऐसा जनत है िजसम
घोड़े और घास को
एक-जैसी छूट है
कैसी वड बना है
कैसा झठ ू है
दरअसल, अपने यहाँ जनत
एक ऐसा तमाशा है
िजसक जान
मदार क भाषा है ।
हर तरफ धआ ु ँ है
हर तरफ कुहासा है
जो दाँत और दलदल का दलाल है
वह दे शभ त है
अ धकार म सरु त होने का नाम है -
तट थता। यहाँ
कायरता के चेहरे पर
सबसे यादा र त है ।
िजसके पास थाल है
हर भख ू ा आदमी
उसके लये,सबसे भ द गाल है
हर तरफ कुआँ है
हर तरफ खाई है
यहाँ, सफ ,वह आदमी,दे श के कर ब है
जो या तो मख ू है
या फर गर ब है

3.
म सोचता रहा
और घम ू ता रहा-
टूटे हुये पल
ु के नीचे
वीरान सड़क पर आँख के
अंधे रे ग तान म
फटे हुये पाल क
अधरू जल-या ाओं म
टूट हुई चीज़ के ढे र म
म खोयी हुई आजाद का अथ
ढूँढता रहा।
अपनी पस लय के नीचे /अ पताल के
ब तर म/ नम ु ाइश म
बाजार म /गाँव म
जंगल म /पहाड पर
दे श के इस छोर से उस छोर तक
उसी लोक-चेतना को
बार-बार टे रता रहा
जो मझ ु े दोबारा जी सके
जो मझ ु े शाि त दे और
मेरे भीतर-बाहर का ज़हर
खद ु पी सके।
–और तभी सल ु ग उठा पि चमी सीमा त
… व त… व त… वा त… वा त…
म दोबार च ककर खड़ा हो गया
जो चेहरा आ मह नता क वीकृ त म
क ध पर लढ़ ु क रहा था,
कसी झनझनाते चाकू क तरह
खल ु कर,कड़ा हो गया…
अचानक अपने-आपम िज दा होने क
यह घटना
इस दे श क पर परा क -
एक बे मशाल कड़ी थी
ले कन इसे साहस मत कहो
दरअ ल,यह पु ठ तक चोट खायी हुई
गाय क घण ृ ा थी
(िजंदा रहने क परु जोऱ को शश)
जो उस आदमखोर क हवस से
बड़ी थी।
मगर उसके तरु त बाद
मझ ु े झेलनी पड़ी थी-सबसे बड़ी ै जेडी
अपने इ तहास क
जब द ु नया के याह और सफेद चेहर ने
व मय से दे खा क ताशक द म
समझौते क सफेद चादर के नीचे
एक शाि तया ी क लाश थी
और अब यह कसी पौरा णक कथा के
उपसंहार क तरह है क इसे दे श म
रोशनी उन पहाड़ से आई थी
जहाँ मेरे पडोसी ़ ने
मात खायी थी।
मगर म फर वह ं चला गया
अपने जन ु न
ू के अँधेरे म
फूहड़ इराद के हाथ
छला गया।
वहाँ बंजर मैदान
कंकाल क नम ु ाइश कर रहे थे
गोदाम अनाज से भरे थे और लोग
भख ू मर रहे थे
मने महसस ू कया क म व त के
एक शमनाक दौर से गज ु र रहा हूँ
अब ऐसा व त आ गया है जब कोई
कसी का झल ु सा हुआ चेहरा नह ं दे खता है
अब न तो कोई कसी का खाल पेट
दे खता है , न थरथराती हुई टाँग
और न ढला हुआ ‘सय ू ह न क धा’ दे खता है
हर आदमी, सफ, अपना ध धा दे खता है
सबने भाईचारा भल ु ा दया है
आ मा क सरलता को भल ु ाकर
मतलब के अँधेरे म (एक रा य मह ु ावरे क बगल म)
सल ु ा दया है ।
सहानभ ु ू त और यार
अब ऐसा छलावा है िजसके ज़ रये
एक आदमी दस ू रे को,अकेले –
अँधेरे म ले जाता है और
उसक पीठ म छुरा भ क दे ता है
ठ क उस मोची क तरह जो चौक से
गज ु रते हुये दे हाती को
यार से बल ु ाता है और मर मत के नाम पर
रबर के त ले म
लोहे के तीन दजन फुि लयाँ
ठ क दे ता है और उसके नह ं -नह ं के बावजद ू
डपटकर पैसा वसल ू ता है
गरज़ यह है क अपराध
अपने यहाँ एक ऐसा सदाबहार फूल है
जो आ मीयता क खाद पर
लाल-भड़क फूलता है
मने दे खा क इस जनतां क जंगल म
हर तरफ ह याओं के नीचे से नकलते है
हरे -हरे हाथ,और पेड़ पर
प क जब ु ान बनकर लटक जाते ह
वे ऐसी भाषा बोलते ह िजसे सन ु कर
नाग रकता क गोधू ल म
घर लौटते मश ु ा फर अपना रा ता भटक जाते ह।
उ ह ने कसी चीज को
सह जगह नह ं रहने दया
न सं ा
न वशेषण
न सवनाम
एक समच ू ा और सह वा य
टूटकर
‘ ब ख र’ गया है
उनका याकरण इस दे श क
शराओं म छपे हुये कारक का
ह यारा है
उनक स त पकड़ के नीचे
भखू से मरा हुआ आदमी
इस मौसम का
सबसे दलच प व ापन है और गाय
सबसे सट क नारा है
वे खेत मभखू और शहर म
अफवाह के पु लंदे फकते ह

4.
दे श और धम और नै तकता क
दह ु ाई दे कर
कुछ लोग क सु वधा
दस ू र क ‘हाय’पर सकते ह
वे िजसक पीठ ठ कते ह
उसक र ढ़ क ह डी गायब हो जाती है
वे मु कराते ह और
दस ू रे क आँख म झपटती हुई त हंसा
करवट बदलकर सो जाती है
म दे खता रहा…
दे खता रहा…
हर तरफ ऊब थी
संशय था
नफरत थी
मगर हर आदमी अपनी ज़ रत के आगे
असहाय था। उसम
सार चीज़ को नये सरे से बदलने क
बेचन ै ी थी ,रोष था
ले कन उसका गु सा
एक त यह न म ण था:
आग और आँसू और हाय का।
इस तरह एक दन-
जब म घम ू ते-घमू ते थक चक
ु ा था
मेरे खन ू म एक काल आँधी-
दौड़ लगा रह थी
मेर असफलताओं म सोये हुये
वहसी इराद को
झकझोरकर जगा रह थी
अचानक ,नींद क असं य पत म
डूबते हुये मने दे खा
मेर उलझन के अँधेरे म
एक हमश ल खड़ा है
मने उससे पछ ू ा-’तम
ु कौन हो?
यहाँ य आये हो?
तु ह या हुआ है ?’
‘तम ु ने पहचाना नह ं-म हंद ु तान हूँ
हाँ -म हंद ु तान हूँ’,
वह हँसता है -ऐसी हँसी क दल
दहल जाता है
कलेजा मँह ु को आता है
और म है रान हूँ
‘यहाँ आओ
मेरे पास आओ
मझ ु े छुओ।
मझ ु े िजयो। मेरे साथ चलो
मेरा यक न करो। इस दलदल से
बाहर नकलो!
सन ु ो!
तमु चाहे िजसे चन ु ो
मगर इसे नह ।ं इसे बदलो।
मझ ु े लगा-आवाज़
जैसे कसी जलते हुये कुएँ से
आ रह है ।
एक अजीब-सी यार भर गरु ाहट
जैसे कोई मादा भे ड़या
अपने छौने को दध ू पला रह है
साथ ह कसी छौने का सर चबा रह है
मेरा सारा िज म थरथरा रहा था
उसक आवाज म
असं य नरक क घण ृ ा भर थी
वह एक-एक श द चबा-चबाकर
बोल रहा था। मगर उसक आँख
गु से म भी हर थी
वह कह रहा था-
‘तु हार आँख के चकनाचरू आईन म
व त क बदरं ग छायाएँ उलट कर रह ह
और तम ु पेड़ क छाल गनकर
भ व य का काय म तैयार कर रहे हो
तम ु एक ऐसी िज दगी से गज़ ु र रहे हो
िजसम न कोई तक ु है
न सख ु है
तम ु अपनी शा पत परछाई से टकराकर
रा ते म क गये हो
तम ु जो हर चीज़
अपने दाँत के नीचे
खाने के आद हो
चाहे वह सपना अथवा आज़ाद हो
अचानक ,इस तरह, य चक ु गये हो
वह या है िजसने तु ह
बबर के सामने अदब से
रहना सखलाया है ?
या यह व वास क कमी है
जो तु हार भलमनसाहत बन गयी है
या क शम
अब तु हार सहू लयत बन गयी है
नह ं-सरलता क तरह इस तरह
मत दौड़ो
उसम भख ू और मि दर क रोशनी का
र ता है । वह ब नये क पँजू ी का
आधार है
म बार-बार कहता हूँ क इस उलझी हुई
द ु नया म
आसानी से समझ म आने वाल चीज़
सफ द वार है ।
और यह द वार अब तु हार आदत का
ह सा बन गयी है
इसे झटककर अलग करो
अपनी आदत म
फूल क जगह प थर भरो
मासू मयत के हर तकाज़े को
ठोकर मार दो
अब व त आ गया है तम ु उठो
और अपनी ऊब को आकार दो।
‘सन ु ो!
आज म तु ह वह स य बतलाता हूँ
िजसके आगे हर सचाई
छोट है । इस द ु नया म
भख ू े आदमी का सबसे बड़ा तक
रोट है ।
मगर तु हार भख ू और भाषा म
य द सह दरू नह ं है
तो तम ु अपने-आपको आदमी मत कहो
य क पशत ु ा-

सफ पँू होने क मज़बरू नह ं है
वह आदमी को वह ं ले जाती है
जहाँ भख ू
सबसे पहले भाषा को खाती है
व त सफ उसका चेहरा बगाड़ता है
जो अपने चेहरे क राख
दस ू र क माल से झाड़ता है
जो अपना हाथ
मैला होने से डरता है
वह एक नह ं यारह कायर क
मौत मरता है

5.
और सन ु ो! नफ़रत और रोशनी
सफ़ उनके ह से क चीज़ ह
िजसे जंगल के हा शये पर
जीने क तमीज है
इस लये उठो और अपने भीतर
सोये हुए जंगल को
आवाज़ दो
उसे जगाओ और दे खो-
क तमु अकेले नह ं हो
और न कसी के मह ु ताज हो

लाख ह जो तु हारे इ तज़ार म खडे ह
वहाँ चलो।उनका साथ दो
और इस तल म का जाद ू उतारने म
उनक मदद करो और सा बत करो
क वे सार चीज़ अ धी हो गयीं ह
िजनम तम ु शर क नह ं हो…’
म परू त परता से उसे सन ु रहा था
एक के बाद दस ू रा
दस ू रे के बाद तीसरा
तीसरे के बाद चौथा
चौथे के बाद पाँचवाँ…
यानी क एक के बाद दस ू रा वक प
चन ु रहा था
मगर म हचक रहा था
य क मेरे पास
कुल जमा थोड़ी सु वधाय थीं
जो मेर सीमाएँ थीं
य य प यह सह है क म
कोई ठ डा आदमी नह ं है
मझ ु म भी आग है -
मगर वह
भभककर बाहर नह ं आती
य क उसके चार तरफ च कर काटता हुआ
एक ‘पँज ू ीवाद ’ दमाग है
जो प रवतन तो चाहता है
मगर आ ह ता-आ ह ता
कुछ इस तरह क चीज़ क शाल नता
बनी रहे ।
कुछ इस तरह क काँख भी ढक रहे
और वरोध म उठे हुये हाथ क
मु ठ भी तनी रहे …और यह है क बात
फैलने क हद तक
आते-आते क जाती है
य क हर बार
च द सु वधाओं के लालच के सामने
अ भयोग क भाषा चक ु जाती है ।
म खद ु को कुरे द रहा था
अपने बहाने उन तमाम लोग क असफलताओं को
सोच रहा था जो मेरे नजद क थे।
इस तरह साबत ु और सीधे वचार पर
जमी हुई काई और उगी हुई घास को
खर च रहा था,न च रहा था
परू े समाज क सीवन उधेड़ते हुये
मने आदमी के भीतर क मैल
दे ख ल थी। मेरा सर
भ ना रहा था
मेरा दय भार था
मेरा शर र इस बरु तरह थका था क म
अपनी तरफ़ घरू ते उस चेहरे से
थोड़ी दे र के लये
बचना चाह रहा था
जो अपनी पैनी आँख से
मेर बेबसी और मेरा उथलापन
थाह रहा था
ता वत भीड़ म
शर क होने के लये
अभी मने कोई नणय नह ं लया था
अचानक ,उसने मेरा हाथ पकड़कर
खींच लया और म
जेब म ़ जत ू का टोकन और दमाग म
ताजे अखबार क कतरन लये हुये
धड़ाम से-
चौथे आम चन ु ाव क सी ढ़य से फसलकर
मत-पे टय के
गड़ग च अँधेरे म गर पड़ा
नींद के भीतर यह दस ू र नींद है
और मझ ु े कुछ नह ं सझ ू रहा है
सफ एक शोर है
िजसम कान के पद फटे जा रहे ह
शासन सरु ा रोज़गार श ा …
रा धम दे श हत हंसा अ हंसा…
सै यशि त दे शभि त आजाद़ वीसा…
वाद बरादर भख ू भीख भाषा…
शाि त ाि त शीतयु ध एटमबम सीमा…
एकता सी ढ़याँ सा हि यक पी ढ़याँ नराशा…
झाँय-झाँय,खाँय-खाँय,हाय-हाय,साँय-साँय…
मने कान म ठूँस ल ह अँगु लयाँ
और अँधेरे म गाड़ द है
आंख क रोशनी।
सब-कुछ अब धीरे -धीरे खल ु ने लगा है
मत-वषा के इस दादरु -शोर म
मने दे खा हर तरफ
रं ग- बरं गे झ डे फहरा रहे ह
गर गट क तरह रं ग बदलते हुये
गट ु से गट ु टकरा रहे ह
वे एक- दस ू रे से दाँता- कल कल कर रहे ह
एक दस ू को दरु -दरु , बल- बल कर रहे ह
रे
हर तरफ तरह -तरह के ज तु ह
ीमान ् क तु ह
म टर पर तु ह
कुछ रोगी ह
कुछ भोगी ह
कुछ हंजड़े ह
कुछ रोगी ह
तजो रय के श त दलाल ह
आँख के अ धे ह
घर के कंगाल ह
गँग
ू ेह
बहरे ह
उथले ह,गहरे ह।
गरते हुये लोग ह
अकड़ते हुये लोग ह
भागते हुये लोग ह
पकड़ते हुये लोग ह
गरज़ यह क हर तरह के लोग ह
एक दस ू रे से नफ़रत करते हुये वे
इस बात पर सहमत ह क इस दे श म
असं य रोग ह
और उनका एकमा इलाज-
चन ु ाव है ।

6.
ले कन मझ ु े लगा क एक वशाल दलदल के कनारे
बहुत बड़ा अधमरा पशु पड़ा हुआ है
उसक ना भ म एक सड़ा हुआ घाव है
िजससे लगातार-भयानक बदबद ू ार मवाद
बह रहा है
उसम जा त और धम और स दाय और
पेशा और पँज ू ी के असं य क ड़े
कल बला रहे ह और अ धकार म
डूबी हुई प ृ वी
(पता नह ं कस अनहोनी क ती ा म)
इस भीषण सड़ाँव को चप ु चाप सह रह है
मगर आपस म नफरत करते हुये वे लोग
इस बात पर सहमत ह क
‘चन ु ाव’ ह सह इलाज है
य क बरु े और बरु े के बीच से
कसी हद तक ‘कम से कम बरु े को’ चन ु ते हुये
न उ ह मलाल है ,न भय है
न लाज है
दरअ ल उ ह एक मौका मला है
और इसी बहाने
वे अपने पडोसी ़ को परािजत कर रहे ह
मने दे खा क हर तरफ
मढ़ू ता क हर -हर घास लहरा रह है
िजसे कुछ जंगल पशु
खद ूँ रहे ह
ल द रहे ह
चर रहे है
मने ऊब और गु से को
गलत मह ु र के नीचे से गज़ु रते हुये दे खा
मने अ हंसा को
एक स ा ढ़ श द का गला काटते हुये दे खा
मने ईमानदार को अपनी चोरजेब
भरते हुये दे खा
मने ववेक को
चापलस ू के तलवे चाटते हुये दे खा…
म यह सब दे ख ह रहा था क एक नया रे ला आया
उ म लोग का बबर जल ु सू । वे कसी आदमी को
हाथ पर गठर क तरह उछाल रहे थे
उसे एक दस ू रे से छ न रहे थे।उसे घसीट रहे थे।
चम ू रहे थे।पीट रहे थे। गा लयाँ दे रहे थे।
गले से लगा रहे थे। उसक शंसा के गीत
गा रहे थे। उस पर अन गनत झ डे फहरा रहे थे।
उसक जीभ बाहर लटक रह थी। उसक आँख ब द
थीं। उसका चेहरा खन ू और आँसू से तर था।’मख ू !
यह या कर रहे हो?’ म च लाया। और तभी कसी ने
उसे मेर ओर उछाल दया। अरे यह कैसे हुआ?
म हत भ सा खड़ा था
और मेरा हमश ल
मेरे पैर के पास
मिू छत- सा
पड़ा था-
दखु और भय से झरु झरु लेकर
म उस पर झक ु गया
क तु बीच म ह क गया
उसका हाथ ऊपर उठा था
खन ू और आँसू से तर चेहरा
मु कराया था। उसक आँख का हरापन
उसक आवाज म उतर आया था-
‘दख ु ी मत हो। यह मेर नय त है ।
म ह द ु तान हूँ। जब भी मने
उ ह उजाले से जोड़ा है
उ ह ने मझ ु े इसी तरह अपमा नत कया है
इसी तरह तोड़ा है
मगर समय गवाह है
क मेर बेचन ै ी के आगे भी राह है ।’
मने सन ु ा। वह आ ह ता-आ ह ता कह रहा है
जैसे कसी जले हुये जंगल म
पानी का एक ठ डा सोता बह रहा है
घास क क ताजगी- भर
ऐसी आवाज़ है
जो न कसी से खश ु है ,न नाराज़ है ।
‘भख ू ने उ ह जानवर कर दया है
संशय ने उ ह आ ह से भर दया है
फर भी वे अपने ह…
अपने ह…
अपने ह…
जी वत भ व य के सु दरतम सपने ह
नह ं-यह मेरे लये दख ु ी होने का समय
नह ं है ।अपने लोग क घण ृ ा के
इस महो सव म
म शा पत न चय हूँ
मझ ु े कसी का भय नह ं है ।
‘तम ु मेर चंता न करो। उनके साथ
चलो। इससे पहले क वे
गलत हाथ के ह थयार ह
इससे पहले क वे नार और इ तहार से
काले बाजाऱ ह
उनसे मलो।उ ह बदलो।
नह ं-भीड़ के खलाफ कना
एक खन ू ी वचार है
य क हर ठहरा हुआ आदमी
इस हंसक भीड़ का
अ धा शकार है ।
तम ु मेर च ता मत करो।
म हर व त सफ एक चेहरा नह ं हूँ
जहाँ वतमान
अपने शकार कु े उतारता है
अ सर म म ट क हरक़त करता हुआ
वह टुकड़ा हूँ
जो आदमी क शराओं म
बहते हुये खन ू ़ को
उसके सह नाम से पक ु ारता हूँ
इस लये म कहता हूँ,जाओ ,और
दे खो क लोग…
म कुछ कहना चाहता था क एक ध के ने
मझ ु े दरू फक दया। इससे पहले क म गरता
क ह ं मजबत ू हाथ ने मझ ु े टे क लया।
अचानक भीड़ म से नकलकर एक श त दलाल
मेर दे ह म समा गया। दस ू रा मेरे हाथ म
एक पच थमा गया। तीसरे ने एक मह ु र दे कर
पद के पीछे ढकेल दया।
भय और अ न चय के दह ु रे दबाव म
पता नह ं कब और कैसे और कहाँ–
कतने नाम से और च ह और श द को
काटते हुये म चीख पड़ा-
‘ह यारा!ह यारा!!ह यारा!!!’
मझ ु े ठ क ठ क याद नह ं है ।मने यह
कसको कहा था। शायद अपने-आपको
शायद उस हमश ल को(िजसने खद ु को
ह द ु तान कहा था) शायद उस दलाल को
मगर मझ ु े ठ क-ठ क याद नह ं है

7.

मेर नींद टूट चकु थ


मेरा परू ा िज म पसीने म
सराबोर था। मेरे आसपास से
तरह-तरह के लोग गज ु र रहे थे।
हर तरफ हलचल थी,शोर था।
और म चप ु चाप सन ु ता हूँ
हाँ शायद -
मने भी अपने भीतर
(कह ं बहुत गहरे )
‘कुछ जलता हुआ सा ‘ छुआ है
ले कन म जानता हूँ क जो कुछ हुआ है
नींद म हुआ है
और तब से आजतक
नींद और नींद के बीच का जंगल काटते हुये
मने कई रात जागकर गज ु ाऱ द ं ह
ह त पर ह ते तह कये ह
अपनी परे शानी के
नमम अकेले और बेहद अनमने ण
िजये ह।
और हर बार मझ ु े लगा है क कह ं
कोई खास फ़क़ नह ं है
िज़ दगी उसी परु ाने ढर पर चल रह है
िजसके पीछे कोई तक नह ं है
हाँ ,यह सह है क इन दन
कुछ अिजयाँ मँजरू हुई ह
कुछ तबादले हुये ह
कल तक जो थे नहले
आज
दहले हुये ह
हाँ यह सह है क
म ी जब जा के सामने आता है
तो पहले से यादा मु कराता है
नये-नये वादे करता है
और यह सफ़ घास के
सामने होने क मजबरू है
वना उस भले मानस ु को
यह भी पता नह ं क वधानसभा भवन
और अपने नजी ब तर के बीच
कतने जत ू क दरू है ।
हाँ यह सह है क इन दन -चीज के
भाव कुछ चढ़ गये ह।अखबार के
शीषक दलच प ह,नये ह।
म द क मार से
पट पड़ी हुई चीज़ ,बाज़ार म
सहसा उछल गयीं ह
हाँ यह सह है क कु सयाँ वह ह
सफ टो पयाँ बदल गयी ह और-
स चे मतभेद के अभाव म
लोग उछल-उछलकर
अपनी जगह बदल रहे ह
चढ़ हुई नद म
भर हुई नाव म
हर तरफ , वरोधी वचार का
दलदल है
सतह पर हलचल है
नये-नये नारे ह
भाषण म जोश है
पानी ह पानी है
पर



खामोश है
म रोज दे खता हूँ क यव था क मशीन का
एक पज ु ा गरम
़ होकर
अलग छटक गया है और
ठ डा होते ह
फर कुस से चपक गया है
उसम न हया है
न दया है
नह ं-अपना कोई हमदद
यहाँ नह ं है । मने एक-एक को
परख लया है ।
मने हरे क को आवाज़ द है
हरे क का दरवाजा खटखटाया है
मगर बेकार…मने िजसक पँछ ू
उठायी है उसको मादा
पाया है ।
वे सब के सब तजो रय के
दभु ा षये ह।
वे वक ल ह। वै ा नक ह।
अ यापक ह। नेता ह। दाश नक
ह । लेखक ह। क व ह। कलाकार ह।
यानी क-
कानन ू क भाषा बोलता हुआ
अपरा धय का एक संयु त प रवार है ।

8.
भखू और भख ू क आड़ म
चबायी गयी चीज का अ स
उनके दाँत पर ढूँढना
बेकार है । समाजवाद
उनक जब ु ान पर अपनी सरु ा का
एक आधु नक मह ु ावरा है ।
मगर म जानता हूँ क मेरे दे श का समाजवाद
मालगोदाम म लटकती हुई
उन बाि टय क तरह है िजस पर ‘आग’ लखा है
और उनम बालू और पानी भरा है ।
यहाँ जनता एक गाड़ी है
एक ह सं वधान के नीचे
भख ू से र रयाती हुई फैल हथेल का नाम
‘दया’ है
और भख ू म
तनी हुई मु ठ का नाम न सलबाड़ी है ।
मझ ु से कहा गया क संसद
दे श क धड़कन को
त बं बत करने वाला दपण है
जनता को
जनता के वचार का
नै तक समपण है
ले कन या यह सच है ?
या यह सच है क
अपने यहां संसद -
तेल क वह घानी है
िजसम आधा तेल है
और आधा पानी है
और य द यह सच नह ं है
तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को
अपनी ईमानदार का मलाल य है ?
िजसने स य कह दया है
उसका बरु ा हाल य है ?
म अ सर अपने-आपसे सवाल
करता हूँ िजसका मेरे पास
कोई उ र नह ं है
और आज तक –
नींद और नींद के बीच का जंगल काटते हुये
मने कई रात जागकर गज ु ार द ह
ह ते पर ह ते तह कये ह। ऊब के
नमम अकेले और बेहद अनमने ण
िजये ह।
मेरे सामने वह चरप र चत अ धकार है
संशय क अ न चय त ठ डी मु ाय ह
हर तरफ श दभेद स नाटा है ।
द र क यथा क तरह
उचाट और कँू थता हुआ। घण ृ ाम
डूबा हुआ सारा का सारा दे श
पहले क तरह आज भी
मेरा कारागार है ।

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