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राम का काल

अरुण कुमार उपाध्याय, बी-९, सीबी-९, कैण्टोनमेण्ट रोड, कटक


मो-९४३७०३४१७२, arunupadhyay30@yahoo.in
१. इतिहास ित्त्व
पररवर्त्त न का आभास काल है, और यह ३ प्रकार का है -(१) कुछ चीजें शाश्वि हैं , तबलकुल नही बदलिीीं, (२) कुछ
पररवितन चक्रीय क्रम (तदन, मास, वर्त आतद) में हैं , (३) अतिकाीं श तक्रयायें एक बार होने पर मू ल रूप में नहीीं जा
सकिीीं। लकड़ी जल कर कोयला होिी हैं , कोयला लकड़ी नहीीं हो सकिी। (कबीर)। अिः पुरुर् (व्यक्ति या तवश्व)
िथा काल दोनोीं के ३-३ रूप हैं -
पुरुर् काल सन्दभत
अव्यय अक्षय गीिा (१०/३३)
अक्षर जन्य सूयत तसद्धान्त (१/१०), गीिा (१०/३०)
क्षर तनत्य सूयत तसद्धान्त (१/१०), गीिा (१०/३२)
इसी प्रकार मूल सातहत्य ३ प्रकार का हैं , तजनका समन्वय रामायण है -
नाना पुराण-तनगमा-गम सम्मिीं यद् , रामायणे तनगतदिीं क्वतचदन्यिोऽतप।
स्वान्तः सुखाय िुलसी रघुनाथ-गाथा भार्ा तनबद्ध-मति मञ्जुल-मािनोति। (राम चररिमानस, मङ्गलाचरण)
शाश्वि िथ्य वेद में हैं। पुरानी घटना कब और क्या हुई यह इतिहास है । इतिहास = इति + ह + आस = ऐसा ही हुआ
था। पुरानी चीजें कैसे नये रूप में बदलिी हैं उसका कारण-तक्रया आतद पुराण है । पुराण =पुरा + नवति = पुराना
नया होिा है । लगभग इसी अथत में कहिे हैं -इतिहास अपने को दु हरािा है । सबसे प्रतसद्ध इतिहास ग्रन्थ रामायण,
महाभारि हैं । इतिहास और पुराण से ही वेद ठीक से समझ में आिा है -
वेदवेद्ये परे पुींतस जािे दशरथात्मजे । वेदो प्राचेिसादासीि्, साक्षाद् रामायणात्मना॥ (मन्त्र रामायण १/१/१)
= परम ित्त्व केवल वेद द्वारा जाना सकिा है (ब्रह्म- सूत्र १/१/१-४), जब वह दशरथ के पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ िो
वेद भी प्राचेिस (वाल्मीतक) द्वारा रामायण रूप में हुआ।
वाल्मीतक २४ वें व्यास थे । वह प्रचेिा की १० वीीं पीढ़ी में थे (रामायण, उर्त्रकाण्ड) । प्रचेिा वरुण थे , जो अरब
(यादस = िातजक) के शासक, पाशी (पाशा के प्रमु ख), अप्-पति (आप, अप्पा) आतद थे ।
प्रचेिसोऽहीं दशमः पुत्रो राघव-नन्दन। नस्मराम्यनृ िीं वाक्यतममौ िु िव पुत्रकौ॥१९॥ (रामायण, उर्त्रकाण्ड, सगत ७८)
रामायण भी वेद को समझाने के तलये ही पढ़ाया गया था-
स िु मे िातवनौ दृष्ट्वा वेदेर्ु पररतनतििौ। वेदोपबृींहणाथात य िावग्राहि प्रभु ः॥ (रामायण १/४/६)
अन्य स्थानोीं पर भी इतिहास को वेद का अींश कहा गया है-ऋचः सामातन चन्दाीं तस पुराणीं यजु र्ा सह उक्तिष्टाज्जतिरे ।
(अथवत सींतहिा १५/९/२४)
ऋग्वे दीं भगवोध्येतम ... इतिहास- पुराणीं पञ्चमीं वेदानाीं वेदम् । (छान्दोग्य उपतनर्द् ७/१/४)
पुराण-न्याय-मीमाीं सा िमत शास्त्राङ्ग-तमतििाः। वेदाः स्थानातन तवद्यानाीं िमत य च चिुदतश॥ (यािवल्क्य स्मृति १/३)
इतिहास पुराणाभ्ाीं वेदीं समु पवृींहयेि्। तबभे त्यल्पिु िाद् वेदो मामयीं प्रहररष्यति॥ (महाभारि १/१/२६७)
२. काल-गणना
दीघतकातलक गणना में सूयत, चन्द्र, पृथ्वी की गतियोीं का ठीक िालमे ल नहीीं बैठिा है । अिः मु ख्यिः २ प्रकार की वर्त
गणना है -(१) शक-सौर वर्त में तदनोीं की गणना सहज है , उसके आिार पर गतणिीय वर्त -गणना को शक या फारसी
में अमली कहिे हैं । इसमें तकसी तनतिि समय से तदन-वर्ोीं की तगनिी कर ग्रह-क्तस्थति तनकाली जािी है । तदनोीं का
समू ह शक है । (२) सम्वत्सर-चन्द्रमा मन का कारक है , अिः सभी पवत चान्द्र तितथयोीं के अनु सार होिे हैं । चान्द्र-मास
िथा वर्त की गणना कर उसके अनु सार तितथ, पवत का तनणतय करिे है। इसके अनु सार समाज चलिा है , अिः इसे
सम्वत्सर कहिे हैं । यह ऋिु चक्र के अनु सार होने से इसे फारसी में फसली कहिे हैं ।
पृथ्वी की कक्षा का आकार, अक्ष-भ्रमण की गति आतद में बहुि िीमे पररवितन होिे हैं, तजनका सटीक तनिात रण
सम्भव नहीीं है । अिः सन्दे ह दू र करने के तनये ५ प्रकार से तदन का तनिात रण होिा है -तितथ, वार, नक्षत्र, योग, करण।
अिः काल-पत्र को पञ्चाङ्ग कहिे हैं । इसी प्रकार ७ प्रकार के युग िथा योजन होिे हैं , पर ऐतिहातसक तितथयोीं के
तनणतय के तलये ५ प्रकार के युगोीं का व्यवहार होिा है । अिः वेदाङ्ग ज्योतिर् में कहा गया है-पञ्च सम्वत्सर-मयीं युगम्।
इसके कई अथत हैं -(१) ५ वर्ों का युग होिा है । (२) ऋक् ज्योतिर् में १९ वर्त का युग होिा है तजसमें ५ वर्त सम्वत्सर
हैं , बाकी १४ वर्त अन्य ४ प्रकार के हैं-पररवत्सर, इदावत्सर, अनु वत्सर, इद्वत्सर। (३) युग का तनणतय ५ प्रकार के
सम्वत्सरोीं से होिा है -सौर, बाहत स्पत्य, तदव्य, सप्ततर्त, अयनाब्द। ४३,२०,००० वर्ों का ज्योतिर्ीय युग बहुि बड़ा है
िथा ४,५, १२, १८, १९ वर्ों के मनु ष्य युग बहुि छोटे हैं ।
ऐतिहातसक युग-चक्र उर्त्री ध्रुव के तहम-नदोीं के तवस्तार और सींकोच पर तनभत र है। सींकोच होने पर जल-प्रलय होिा
है , जो ऐतिहातसक काल में दो बार हुये थे-३१००० िथा १०००० ई.पू.में िथा प्रायः १००० वर्ों िक रहे । ३१००० ई.पू.के
जल प्रलय के बाद २९१०२ ई.पू. में स्वायम्भु व मनु का युग हुआ, तजनको बाइतबल, कुरान में आदम कहा गया है ।
दू सरा जल प्रलय वैवस्वि मनु के बाद वैवस्वि यम के काल में हुआ तजनको जे न्द-अवेस्ता में जमशे द कहा गया है ।
तहम युग होने पर उर्त्री भाग बफत से ढीं क जािे हैं िथा सभ्िा का केन्द्र तवर्ु वि् रे खा के तनकट आ जािा है , जै से
ब्राजील का तहरण्याक्ष, तमस्र-तलतबया का तहरण्यकतशपु, लींका का रावण आतद। उर्त्री सीमा पर तहमालय रहने से
भारि प्रायः अछूिा रह जािा है िथा यहाीं सनािन सभ्िा चल रही है। अिः तहमालय को दे विात्मा कहा गया है। २
कारणोीं से उर्त्री गोलाद्धत में शीि या तहम युग होिा है-(१) जब पृथ्वी कक्षा के सबसे दू र तवन्दु (मन्दोच्च) पर हो, (२)
उसी समय उर्त्री ध्रुव सूयत से तवपरीि तदशा में हो। अिःआिुतनक गतणि के अनु सार तहमयुग का चक्र दो गतियोीं पर
तनभत र है -(१) पृथ्वी-कक्षा की लम्बे अक्ष का चक्र १ लाख वर्ों में , िथा (२) तवपरीि तदशा में अक्ष का २६००० वर्ों में
अयन-चक्र। इनका सींयुि चक्र २१६०० वर्ों में होिा है। पर वास्ततवक तहम-चक्र २४००० वर्ों का है , तजसे अयनाब्द
युग कहा गया है । इसमें मन्दोच्च के ३१२,००० वर्त के दीघतकातलक चक्र को अयन गति से तमलाकर होिा है ।
१/१००,००० + १/२६००० = १/२१६००
१/३१२,००० + १/२६००० = १/२४०००
ब्रह्माण्ड पुराण (१/२/९)-स वै स्वायम्भु वः पूवतम् पुरुर्ो मनु रुच्यिे॥३६॥ िस्यै क सप्तति युगीं मन्वन्तरतमहोच्यिे॥३७॥
ब्रह्माण्ड पुराण (१/२/२९)-त्रीतण वर्त शिान्ये व र्तष्टवर्ात तण यातन िु। तदव्यः सींवत्सरो ह्येर् मानु र्ेण प्रकीतर्त्त िः॥१६॥
त्रीतण वर्त सहस्रातण मानु र्ातण प्रमाणिः। तत्रीं शदन्यातन वर्ात तण मिः सप्ततर्त वत्सरः॥१७॥
र्ड् तवींशति सहस्रातण वर्ात तण मानु र्ातण िु। वर्ात णाीं युगीं िे यीं तदव्यो ह्येर् तवतिः स्मृिः॥१९॥
चत्वारर भारिे वर्े युगातन कवयोऽब्रुवन् । कृिीं त्रे िा द्वापरीं च कतलिे ति चिुष्टयम् ॥२३॥
चत्वायात हुः सहस्रातण वर्ात णाीं च कृि युगम् ।िस्य िावििी सन्ध्या सन्ध्याीं शः सन्ध्यया समः॥२५॥
इिरे र्ु ससन्ध्येर्ु ससन्ध्याीं शेर्ु च तत्रर्ु। एकन्यायेन वितन्ते सहस्रातण शिातन च॥२६॥
त्रीतण द्वे च सहस्रातण त्रे िा द्वापरयोः क्रमाि्। तत्रशिी तद्वशिी सन्ध्ये सन्ध्याीं शौ चातप िि् समौ॥२७॥
कतलीं वर्त सहस्रीं िु युगमाहुतद्वत जोर्त्माः।िस्यै कशतिका सन्ध्या सन्ध्याीं शः सन्ध्यया समः॥२८॥
मत्स्य पुराण अध्याय २७३-अष्टातवींश समाख्यािा गिा वैवस्विेऽन्तरे । एिे दे वगणैः सािं तशष्टा ये िान् तनबोिि॥७६॥
चत्वाररीं शि् त्रयिै व भतवष्यास्ते महात्मनः। अवतशष्टा युगाख्यास्ते ििो वैवस्विो ह्ययम् ॥७७॥
भतवष्य पुराण, प्रतिसगत पवत १/४-र्ोडशाब्दसहस्रे च शे र्े िद्द्वापरे युगे॥२६॥
तद्वशिाष्टसहस्रे द्वे शेर्े िु द्वापरे युगे॥२८॥ िस्मादादमनामासौ पत्नी हव्यविीस्मृिा॥२९॥
स्वायम्भु व मनु से कतल आरम्भ िक २६००० वर्ों का ऐतिहातसक मन्वन्तर हुआ था, तजसमें ७१ युग प्रायः ३६० वर्ों के
थे , तजसे तदव्य युग, कभी त्रे िा या कभी द्वापर खण्ड कहा गयाहै । स्वायम्भु व से ४३ युग या प्रायः १६००० वर्त बाद
वैवस्वि मनु हुये, िथा उनके २८ युग या १०,८०० वर्त बाद कतलयुग हुआ। तहरण्यकतशपु तद्विीय त्रे िा, बतल सप्तम
त्रे िा, दर्त्ात्रे य १०वें, मान्धािा १५ वें, परशु राम १९ वें, राम २४ वें त्रे िा िथा वेदव्यास १८ वें द्वापर युग में हुये।
वायु पुराण अध्याय, ९८-यिीं प्रवितयामास चैत्ये वैवस्विेऽन्तरे ॥७१॥
प्रादु भात वे िदाऽन्यस्य ब्रह्मै वासीि् पुरोतहिः। चिुथ्यां िु युगाख्यायामापन्नेष्वसुरेष्वथ॥७२॥
सम्भू िः स समु द्रान्ततहत रण्यकतशपोवतिे तद्विीयो नारतसींहोऽभूद्रुदः सुर पुरःसरः॥७३॥
बतलसींस्थेर्ु लोकेर्ु त्रे िायाीं सप्तमे युगे। दै त्यैस्त्रैलोक्य आक्रान्ते िृिीयो वामनोऽभवि्॥७४॥
त्रे िायुगे िु दशमे दर्त्ात्रे यो बभूव ह। नष्टे िमे चिुथति माकतण्डे य पुरःसरः॥८८॥
पञ्चमः पञ्चदश्ाीं िु त्रे िायाीं सम्बभू व ह। मान्धािुिक्रवतितत्वे िस्थौ िथ्य पुरः सरः॥८९॥
एकोनतवींशे त्रे िायाीं सवतक्षत्रान्तकोऽभवि्। जामदग्न्यास्तथा र्िो तवश्वातमत्रपुरः सरः॥९०॥
चिुतवंशे युगे रामो वतसिे न पुरोिसा। सप्तमो रावणस्याथे जिे दशरथात्मजः॥९१॥
राम के काल के ये उल्ले ख हैं -(१) २४ वाीं त्रे िा, (२) दोनोीं प्रकार के बाहत स्पत्य सम्वत्सरोीं में प्रभव वर्त, (३) महाभारि से
३५ पीढ़ी पूवत, परशु राम से ९ पीढ़ी बाद। (४) वाल्मीतक रामायण में राम जन्म की ग्रह क्तस्थति।
२४,००० वर्ों के अयनाब्द युग में १२,००० वर्ों का अवसतपतणी है तजसमें सत्य, त्रे िा, द्वापर, कतल क्रमशः ४८००,
३६००, २४००, १२०० वर्ों के हैं । इसका िीसरा चक्र १३,९०२ ई.पू. में वैवस्वि मनु के काल में आरम्भ हुआ िथा इसमें
कतल ३१०२ ई.पू.में आरम्भ हुआ। कतल १९०२ ई.पू. में पूणत हुआ, उसके बाद तवपरीि क्रम से उत्सतपतणी के कतल,
द्वापर पूणत हो चुके हैं िथा १६९९ ई. से त्रे िा चल रहा है । त्रेिा का ३००० वर्त का सन्ध्या काल १९९९ ई. में पूणत हुआ।
इस युग में यि (उत्पादन) का तवकास होिा है , जै सा महाभारि में तलखा है । २८ वाीं खण्ड ३१०२ में पूरा हुआ। उससे
४ x ३६० = १४४० वर्त पूवत ४५४२ ई.पू. में २४ वाीं त्रे िा पूणत हुआ। इसमें थोड़ा अन्तर होगा क्योींतक हम २८ खण्डोीं के
१०,०८० वर्ों के बदले १०८०० वर्त का सत्य-त्रे िा-द्वापर ले रहे हैं ।
दोनोीं प्रकार से प्रभव वर्त िथा जन्म समय की ग्रह क्तस्थति के अनु सार िी राम का जन्म ११-२-४४३३ ई.पू. में हुआ था।
राम जीवन की ८९ तितथयाीं बाद में तवस्तार से दी गयी हैं ।
मान्धािा १५ वें त्रे िा में हुये थे जो ९१०२-४ x ३६० = ७६६२ ई.पू.में शु रु हुआ िथा ७३०२ ई.पू. िक चला। उसके १८
पीढ़ी बाद राजा बाहु यवन आक्रमण में मारा गया था। यह काल मे गास्थनीज, सोतलनस, एररयन ने तसकन्दर के
६४५१ वर्त ३ मास पूवत, अथात ि् अप्रैल, ६७७७ ई.पू. कहा है । १८ पीढ़ी में प्रायः ८०० वर्त का अन्तर ठीक है । परशु राम
को बाहु या डायोतनसस के १५ पीढ़ी बाद कहा है । उनके तनिन के बाद ६१७७ ई.पू. से कलम्ब सींवि् चला जो अभी
भी केरल में प्रचतलि है । उस काल में ग्रीक ले खकोीं ने १२० वर्त िक गणिन्त्र कहा है , जो २१ बार क्षतत्रयोीं का तवनाश
था। यह १९ वें त्रे िा अथात ि् राम से प्रायः १८०० वर्त पूवत थे ।
३. रामायण कालीन भू गोल
प्राचीन काल में उर्त्री गोलाद्धत में ९०-९० अींश दे शान्तर मान के ४ नक्शे बनिे थे , तजनको ४ रीं ग में रीं गा जािा था।
नकशे के तलए ४ रीं ग पयात प्त होिे हैं िथा यह परम्परा आज िक चली आ रही है। इन ४ खण्डोीं को पृथ्वी रूपी
कमल के ४ दल कहा गया है ।
तवष्णु पुराण (२/२/२४)-भद्राश्वीं पूवतिो मे रोः केिुमालीं च पतिमे। वर्े द्वे िु मु तनिे ि ियोमत ध्यतमलावृिः।
भारिाः केिुमालाि भद्राश्वाः कुरवस्तथा। पत्रातण लोकपद्मस्य मयात दाशै लबाह्यिः॥४०॥
मत्स्य पुराण ११३-नाभीबन्धनसम्भू िो ब्रह्मणोऽव्यिजन्मनः। पूवतिः श्वे िवणतस्तु ब्राह्मण्यीं िस्य िेन वै॥।१४॥
पीिि दतक्षणेनासौ िेन वैश्त्वतमष्यिे। भृ तङ्गपत्रतनभिै व पतिमे न समक्तन्विः॥१५॥
पाश्वत मुर्त्रिस्तस्य रिवणं स्वभाविः। िेनास्य क्षत्रभावः स्यातदति वणात ः प्रकीतितिाः॥१६॥
मध्ये क्तत्वलावृिीं नाम महामे रोः समन्तिः॥१९
भारि के दल में तवर्ु व से लेकर ७ लोक थे-(१) तवन्ध्य के दतक्षण भू लोक, (२) तवन्द्य से तहमालय भु वः या मध्यम
लोक, (३) तहमालय-स्वलोक, (४) चीन-महलोक, (५) मीं गोतलआ-जनः लोक, (६) साइबेररया-िपः लोक, (७) ध्रुव वृर्त्-
सत्यलोक।
ब्रह्माण्ड पुराण उपसींहार पाद, अध्याय २ (३/४/२)-
लोकाख्यातन िु यातन स्यु येर्ाीं तििक्तन्त मानवाः॥८॥ भू रादयस्तु सत्यान्ताः सप्तलोकाः कृिाक्तिह॥९॥
पृतथवीचान्तररक्षीं च तदव्यीं यच्च महि् स्मृिम् । स्थानान्ये िातन चत्वारर स्मृिान्यावणतकातन च॥११॥
जनस्तपि सत्यीं च स्थान्यान्ये िातन त्रीतण िु। एकाक्तन्तकातन िातन स्युक्तस्तिीं िीहा प्रसींयमाि्॥१३॥
भू लोकः प्रथमस्तेर्ाीं तद्विीयस्तु भु वः स्मृिः।१४॥
स्वस्तृ िीयस्तु तविे यििुथो वै महः स्मृिः। जनस्तु पञ्चमो लोकस्तपः र्िो तवभाव्यिे॥१५॥
सत्यस्तु सप्तमो लोको तनरालोकस्तिः परम् ।१६। महे ति व्याहृिेनैव महलोकस्तिोऽभवि्॥२१॥
यामादयो गणाः सवे महलोक तनवातसनः।५१॥
उर्त्री गोलाद्धत के अन्य ३ पद्म िथा दतक्षणी गोलाद्धत के ४ पद्म-कुल ७ िल हैं , तजनको अरबी में इक्लीम कहा गया है
(अींग्रेजी का क्लाइमे ट)। हर पद्म में िथा अन्य केन्द्र स्थलोीं में एक-एक मे रु पवति है , तजसकी चचात यहाीं जरूरी नहीीं
है ।
पृथ्वी पर मु ख्य ४ केन्द्र स्थान हैं , जो ९०-९० दे शान्तर पर हैं -(१) तवर्ु व पर लङ्का, उसी दे शान्तर पर भारि का उज्जै न।
(२) ९०० पूवत यमकोतट-पर्त्न, अण्टाकततटक यम द्वीप, न्यू जीलै ण्ड यमकोतट द्वीप, उसका दतक्षणी पतिमी कोना (३) ९००
पतिम रोमकपर्त्न, हरकुलस स्तम्भ, रबाि से पतिम, यहाीं ९३२३ ई.पू. में सूयत तसद्धान्त का सींशोिन मय असुर द्वारा
हुआ। (४) उज्जै न से १८०० पूवत तसद्धपुर।
भू वृर्त्पादे पूवतस्याीं यमकोटीति तविु िा। भद्राश्ववर्े नगरी स्वणतप्राकारिोरणा॥३८॥
याम्यायाीं भारिे वर्े लङ्का िद्वन् महापुरी। पतिमे केिुमालाख्ये रोमकाख्या प्रकीतितिा॥३९॥
उदक् तसद्धपुरी नाम कुरुवर्े प्रकीतितिा॥४०॥ भू वृर्त्पादतववरास्तािान्योन्यीं प्रतितििा ॥४१॥
िासामु पररगो याति तवर्ु वस्थो तदवाकरः। न िासु तवर्ु विाया नाक्षस्योन्नतिररष्यिे ॥४२॥
(सूयत तसद्धान्त १२/३८-४२)
रामायण में इसे पूवत तदशा का अन्त कहा गया है जहाीं ब्रह्मा ने इसका तचह्न दे ने के तलये एक द्वार (तपरातमड) बनवाया
था। वाल्मीतक रामायण तकक्तिन्धा काण्ड, अध्याय ४०-
यत्नवन्तो यवद्वीपीं सप्तराज्योपशोतभिम्। सुवणतरूप्यकद्वीपीं सुवणात करमक्तण्डिम् ॥३०।
ििः समु द्रद्वीपाीं ि सुभीमान् द्रष्ट्टुमहत थ।।३६॥
स्वादू दस्योर्त्रे िीरे योजनातन त्रयोदश। जािरूपतशलो नाम सुमहान् कनकप्रभः॥५०॥
तत्रतशराः काञ्चनः केिुमालस्तस्य महात्मनः॥५३॥पूवतस्याीं तदतश तनमात णीं कृिीं िि् तत्रदशे श्वरै ः॥५४॥
पूवतमेिि् कृिीं द्वारीं पृतथव्या भु वनस्य च। सूयतस्योदयनीं चैव पूवात ह्येर्ा तदगुच्यिे ॥६४॥
पुराणोीं में ४ नगर ९०-९० दे शान्तर पर कहे गये हैं (१) इन्द्र की वस्वौक-सारा, (२) वरुण की सुखा ९०० पूवत, (३) यम
की सींयमनी ९०० पतिम, (४) सोम की तवभावरी १८०० पूवत। यम के नगर अभी भी उसी नाम से प्रचतलि हैं -यमन,
अम्मान, सना, मृ ि सागर आतद।
मत्स्य पुराण अध्याय १२४-मे रोः प्राच्याीं तदशायाीं िु मानसोर्त्रमू िततन॥२०॥
वस्वौकसारा माहे न्द्री पुण्या हेमपररिृिा। दतक्षणेन पुनमे रोमात नसस्य िु पृििः॥२१॥
वैवस्विो तनवसति यमः सींयमने पुरे। प्रिीच्याीं िु पुनमे रोमात नसस्य िु मू िततन॥२२॥
सुखा नाम पुरी रम्या वरुणस्यातप िीमिः। तदश्ु र्त्रस्याीं मे रोस्तु मानसस्यै व मू िततन॥२३॥
िुल्या महे न्द्रपुयात तप सोमस्यातप तवभावरी।
वैवस्विे सींयमने उद्यन् सूयतः प्रदृश्िे। सुखायामितरात्रस्तु तवभावयात स्तमेति च॥२८॥
वैवस्विे सींयमने मध्याह्ने िु रतवयतदा। सुखायामि वारुण्यामुतर्त्िन् स िु दृश्िे॥२९॥
तवभावयात मितरात्रीं माहे न्द्र्यामस्तमे व च। सुखायामथ वारुण्याीं मध्याह्ने िु रतवयतदा॥३०॥
तवभावयां सोमपुयात मुतर्त्िति तवभावसुः। महे न्द्रस्यामरावत्यामुद्गिति तदवाकरः॥३१॥
सुखायामथ वारुण्याीं मध्याह्ने िु रतवयतदा। स शीघ्रमेव पयेति भानु रालािचक्रवि्॥३२॥
प्राचीन काल में ६-६ अींश के अन्तर पर ६० काल-खण्ड (Time zone) थे । अतिकाीं श का नाम लीं का था। सभी
काल खण्ड या नकशे के मूल तवन्दु को लीं का कहिे थे । इीं गलै ण्ड का स्टोनहेन्ज उज्जै न से १३ काल-खण्ड = ७८०
पतिम था अिः इसक्षे त्र को भी लीं का शायर कहिे हैं। अक्तन्तम लीं का वाराणसी में है जहाीं सवाई जयतसींह ने वेिशाला
बनायी थी। मु ख्य लीं का द्वीप वितमान लक्कादीव से मालदीव िक था। वितमान िीलीं का तसींहल कहा गया है , जै से
जायसी के पदमावि में )। रावण काल में यह राजनीतिक रूप से लीं का का भाग था। इण्डोने तसया को शु ण्डा द्वीप
कहा गया है क्योींतक यह तवश्व मानतचत्र में हाथी की सूींढ़ जै सा दीखिा है । इसको सप्त-राज्य द्वीप ( ७ मु ख्य द्वीप) भी
कहा गया है । आज भी पतिमी भाग को बड़ा शु ण्डा िथा पूवी भाग को छोटा शु ण्डा कहिे हैं । दोनोीं के बीच में शु ण्डा
समु द्र है । आस्टर े तलया को सुवणत द्वीप, अति द्वीप (भारि से अति कोण में ) या अींग द्वीप भी कहा गया है । रावण की
राजिानी लीं का थी, पर उसका प्रत्यक्ष शासन माली (पतिम अफ्रीका) सुमातलया से आस्टर े तलया (सुवणत द्वीप) िक था।
एतसया के पूवी भाग में पञ्चजन द्वीप (५ द्वीपोीं का जापान) कहा है तजसका शींख पाञ्चजन्य तवष्णु द्वारा व्यवहृि होिा
था। पतिम में एटलस पवति (केिुमाल) को चक्रवान् भी कहा है , क्योींतक यहाीं के लोहे से सुदशत न चक्र बना था। पूवी
भाग के शासक इन्द्र थे । इन्ोींने पतिम में पाक दै त्योीं का दमन (अफगातनस्तान के) तकया था अिः ब्रह्मा ने उनको
पाकशासन की उपाति दी। जहाीं इन्द्र ने अपनी शक्ति तदखाई, वह क्षे त्र शक्र (सक्खर तजला, हक्कर नदी) है ।
कुमाररका खण्ड के द्वीप-उर्त्र से दे खने पर भारि की सीमा तहमालय के रूप में अद्धत चन्द्राकार दीखिी है । अिः
इसे इन्दु कहिे थे , जो ग्रीक उच्चारण से इण्डे हो गया (हुएनसाीं ग)। इसके अतिररि भारि को दो और कारणोीं से
इन्दु कहिे थे-यह ठण्ढा है िथा चन्द्रमा के समान िान का प्रकाश पूरे तवश्व को दे िा है । तवश्व का भरण पोर्ण करने
के कारण भारि है । मू ल नाम अजनाभ वर्त था। तहमालय सीमा होने से इसे तहमवर्त भी कहिे थे । दतक्षण की िरफ
यह तत्रकोणाकार है । अिोमु ख तत्रकोण को शक्ति तत्रकोण कहिे है । भारि वर्त अरब से तवयिनाम िक के ९ खण्डोीं
में मु ख्य होने के कारण यह शक्ति का मू ल रूप कुमाररका था। इसके दतक्षण का महासागर भी कुमाररका खण्ड था।
(इलीं गोवन का तसलप्पातिकारम् )। आज भी इसे भारि महासागर कहिे हैं ।
कुमाररका खण्ड के कई द्वीपोीं का वाल्मीतक रामायण में उल्ले ख है-(१) पाण्ड्य राजिानी कबाट जहाीं स्वणत के
दरवाजे थे । (२) रावण की लीं का तजसका दतक्षणी भाग मालीद्वीप (मालदीव) था, उसके अिीन तसींहल था। (३)
पुक्तििक तगरर, (४) सूयतवान् पवति, (५) उससे १४ योजन दतक्षण वैद्युि पवति। ये ३ हैं -तडएगो गातसतअ, माररशस,
तसचेलस। (६) कुञ्जर पवति, जहाीं अगस्त्य का तनवास था। अगस्त्य िारा (कैनोपस) के समान इसका दतक्षणी अक्षाीं श
५२०४२’ था। यह सपों की भोगविी नगरी थी। यह फ्राीं स के अिीन प्रायः ४९० दतक्षण करगुइतल द्वीप समू ह है । (७)
तपिृ लोक (दतक्षणी ध्रुव वृर्त् में ), महावृर्भ पवति (अण्टाकततटका का पवति)। (८) सबसे बड़ा द्वीप मगाडास्कर या
मलगासी है तजसे मृ ग-द्वीप (अरब में हररण द्वीप) कहिे थे, क्योींतक आकाश के मृ गव्याि (मृ ग-िस्कर = मगाडास्कर)
का िथा इस द्वीप का दतक्षणी अक्षाीं श एक ही है ।
वाल्मीतक रामायण तकक्तिन्धा काण्ड, अध्याय ४१-
ििो हे ममयीं तदव्यीं मुिामतण तवभू तर्िम् ॥१८॥ युिीं कबाटीं पाण्ड्यानाीं गिा द्रक्ष्यथ वानराः॥१९॥
द्वीपस्तस्यापरे पारे शियोजन तवस्तृ िः॥२३॥ स तह दे शस्तु वध्यस्य रावणस्य दु रात्मनः॥२५॥
िमतिक्रम्य लक्ष्मीवान् समु द्रे शियोजने ॥ तगररः पुक्तििको नाम तसद्ध-चारण सेतविः॥२८॥
िमतिक्रम्य दु ितर्ं सूयतवान्नाम पवतिः॥३१॥
अध्वना दु तवतगाहे न योजनातन चिुदतश। ििस्तमतिक्रम्य वैद्युिो नाम पवतिः॥३२॥
मिूतन पीत्वा जुष्टातन परीं गिि वानराः। ित्र ने त्रमनः कान्तः कुञ्जरो नाम पवतिः॥३४॥
अगस्त्यभवनीं यत्र तनतमत िीं तवश्वकमत णा॥३५॥ ित्र भोगविी नाम सपात णामालयः पुरी॥३६॥
िीं च दे शमतिक्रम्य महानृ र्भ सींक्तस्थतिः॥३९॥ ििः परीं न वः सेव्यः तपिृलोकः सुदारुणः॥४४।
राजिानी यमस्यै र्ा कष्टे न िमसाऽऽवृिा । शक्यीं तवचेिुीं गन्तुीं वा नािो गतिमिाीं गतिम् ॥४५॥
राम अविार-दे विा असुरोीं के युद्ध में दे वोीं को तवजय तदलाने के तलये तवष्णु के कई अविार हुये। दे विा वह हैं जो
यिोीं के क्रम द्वारा अपना उत्पादन स्वयीं करिे थे ।
यिे न यिमयजन्त दे वास्तातन िमात तण प्रथमान्यासन् ।
िे ह नाकीं मतहमानः सचन्तः यत्र पूवे साध्याः सक्तन्त दे वाः॥ (वाज. यजु. ३१/१६)
असुर तबना पररिम के दू सरोीं की सम्पतर्त् पर अतिकार करिे थे । बतल के काल में वामन का मू ल नाम तवष्णु ही था।
बाकी उनके अविार कहे जािे हैं । राम के काल में रावण ने प्रायः सभी दे वोीं को परातजि कर तदया था। उसके
तवरुद्ध ३०० राजाओीं ने राम की सहायिा की थी तजसके तलये राम ने अपने राज्यातभर्ेक के बाद उनको िन्यवाद
तदया था।
तवसृज्य िीं कातशपतिीं तत्रशिीं पृतथवीपतिम् ॥२१॥
प्रहसन् राघवो वाक्यमु वाच मिुराक्षरम् । भविाीं प्रीतिरव्यग्रा िेजसा परररतक्षिा॥।२२॥
िमत ि तनयिो तनत्यीं सत्यीं च भविाीं सदा। युष्माकीं चानु भावेन िेजसा च महात्मनाम् ॥२३॥
हिो दु रात्मा दु बुतद्धी रावणो राक्षसािमः। हे िुमात्रमहीं ित्र भविाीं िेजसा हिः॥२४॥
रावणः सगणो युद्धे सपुत्रामात्यबान्धवः। भवन्ति समानीिा भरिेन महात्मना॥२५॥
िु त्वा जनकराज्यस्य काननाि् िनयाीं हृिम्। उद् युिानाीं च सवेर्ाीं पातथत वानाीं महात्मनाम् ॥२६॥
(रामायण, उर्त्रकाण्ड, सगत ३८)
तसींगापुर-तनर्ाद राज गुह ने तचत्रकूट के तनकट राम से वनवास के पूवत िथा उसके बाद भें ट तकया था, पर मूल
शृङ्गवेरपुर आज का तसींगापुर है , जो एतसया के नकशे में सीींग जै सा दीखिा है । सुमातलया को भी अफ्रीका का सीींग
कहिे हैं ।
वानर-वन का अथत वृक्षोीं का समू ह है , पर इसका अथत जल-भण्डार रूप में समु द्र भी है -
बाीं ध्यो वनतनति नीरतनति जलति तसन्धु वारीश। सत्य िोयतनति कम्पति (कम् = जल) उदति पयोति नदीश॥
(रामचररिमानस, लङ्काकाण्ड, ५)
जो वनतनति में यात्रा कर सकिा है , वह वानर है । आज भी समु द्री जहाज लगने का स्थान बन्दर कहिे हैं-जैसे
पोरबन्दर (गुजराि), बोरीबन्दर (मु म्बई), बन्दर िीभगवान् (बोतनत ओ), बन्दर अब्बास (इरान)। रावण पर आक्रमण के
तलये तसींगापुर िथा अन्य बन्दरगाहोीं पर कब्जा आवश्क था।
४. राम ित्व
तवश्व का मू ल एक ही ब्रह्म था, तजसने सृतष्ट के तलये २ प्रकार की तक्रयायें कीीं-(१) भृ गु (जबर) = गुरुत्व का आकर्त ण,
सींकोच। इस आकर्तण का केन्द्र क्रीीं = कृष्ण है । जब प्रकाश भी आकतर्त ि होिा है , िब वस्तु का कोई रीं ग नहीीं होिा,
अिः कृष्ण = काला। आकर्तण का क्षे त्र क्लीीं = काली है । क्रीीं, क्लीीं को अरबी में करीम, कलीम कहा गया है , क्योींतक
उसमें सींयुिाक्षर नहीीं हैं । (२) अतङ्गरा (अींगारा) = िेज का तवतकरण, प्रसार। जब यह प्रकाश रूप में गतिशील होिा
है , िो रीं है -
ॐ खीं ब्रह्मीं , खीं पुराणीं (पुर में गतिशील प्राण) वायु रीं इति ह स्माह-बृहदारण्यक उपतनर्द् (५/१/१)
प्राणो वै रीं , प्राणे हीमातन सवात तण भू िातन रमक्तन्त। (शिपथ ब्राह्मण १४/८/१३/३, बृहदारण्यक उपतनर्द् ५/१२/१)
रकारो वतह्नः, वचनः प्रकाशः पयतवसति (रामरहस्योपतनर्द् ५/४)
रीं को भार्ा में राम या रहीम (अरबी) कहिे हैं । ब्रह्म का ३ प्रकार से तनदे श होिा है-ॐ, िि्, सि्-गीिा (१७/२३)। ॐ
गतिशील होने पर रीं है , व्यक्ति के तलये िि् या तनदे श नाम द्वारा है , अिः उसका प्राण बाहर तनकलने पर कहिे हैं -
राम-नाम-सि्।
राम और कृष्ण मनु ष्य रूप में ही थे , पर उनकी समाति अवस्था में उनकी और ब्रह्म चेिना में कोई अन्तर नहीीं था।
उस रूप में उन्ोींने अपने को ब्रह्म ही कहा है , उनको सामान्य मनुष्य मानना भू ल है-
मयाध्यक्षे ण प्रकृतिीं सूयिे सचराचरम् । हे िुनाने न कौन्तेय जगद् तवपररवितिे॥
अवजानक्तन्त माीं मू ढ़ा मानु र्ी िनु मातििम् । परीं भावमजानन्तो मम भू िमहेश्वरम् ॥ (गीिा ९/१०-११)
दोनोीं के बारे में कई बार सन्दे ह हुआ है तक वे मनु ष्य हैं या ब्रह्म हैं । अजुत न ने कहा तक कृष्ण भी उनके साथ ही पैदा
हुये, तफर उन्ोींने बहुि पहले तववस्वान् को कैसे िान तदया? (गीिा ४/४)। रामचररिमानस में भी शीं कर तप्रया सिी को
सन्दे ह होिा है तक राम ईश्वर होने पर सीिा के तवयोग में कैसे रो रहे थे ? ले तकन उनके सीिा रूप िरने पर भी राम ने
उनको पहचान कर नमस्कार तकया।
हनु मान् -मनु ष्य की िाने क्तन्द्रय िथाकमे क्तन्द्रय का तमलन दो ओठोीं (हनु ) के बीच में है । जो िान-कमत का समन्वय करिा
है , वह हनु मान् है -
अथाध्यात्मम् । अिरा हनु ः पूवत रूपम्। उर्त्रा हनु रुर्त्ररूपम् । वाक् सक्तन्धः। तजह्वा सन्धानम् । इत्यध्यात्मम् ॥ (िैतर्त्रीय
उपतनर्द् १/३/५)
रावण-रावण भी सम्मान-सूचक शब्द है । कैलास पवति उठाने के समय दशानन ने बहुि रव (ध्वतन, स््न्दन) तकया था,
अिः महादे व ने उसे रावण कहा-
प्रीिोऽक्तस्म िव वीरस्य शौटीयात च्च दशानन। शैलाक्रान्तेन यो मु ििथा रावः सुदारुणः॥३६॥
यस्माल्लोकत्रयीं चैिद् रातविीं भयमागिम् । िस्मात्त्वीं रावणो नाम नाम्ना राजन् भतवष्यतस॥३७॥
(रामायण, उर्त्रकाण्ड, सगत १६)
जो यि अथात ि् उत्पादन में कुशल है , उसके भीिर यि रूपी वृर्भ रव कर रहा है , और महादे व जै सा पूजनीय है।
अिः काशी क्षे त्र में सम्मान के तलये रवा कहिे हैं -जो राउर (आपका) अनु शासन पावौीं। कन्दु क इव ब्रह्माण्ड उठावौीं।
(रामचररिमानस, बालकाण्ड)
चत्वारर शृङ्गा त्रयो अस्य पादा द्वे शीर्े सप्त हस्तासो अस्य।
तत्रिा बद्धो वृर्भो रोरवीति, महोदे वो मत्यां आतववेश॥ (ऋक् ४/५८/३)
= इसके ४ सीींग, ३ पाद, २ तसर, ७ हाथ हैं। यह वृर्भ ३ प्रकार से बन्ध कर बहुि रव करिा है । इस प्रकार महोदे व
(महादे व) का मत्यत में आवेश होिा है ।
सबसे पहले पुरुरवा को रवा कहा गया था क्योींतक उन्ोींने ३ प्रकार की यिसींस्था तनद्धात ररि की थी- पुरुरवा बहुिा
रोरूयिे (यास्क का तनरुि १०/४६-४७)। वह दस्यु आतद की बािा दू र कर दे श को रमणीय (रणाय) बनािा है । इस
महान् कायत के कारण उसे पुरुरवा कहा गया-
महे यि् त्वा पुरूरवो रणाया वितयन् दस्यु-हत्याय दे वाः। (ऋक् १०/९५/७)
दतक्षण भारि में भी राव सम्मान सूचक उपाति है । ितमल में प्रायः राम को रामन तलखिे हैं , इसी प्रकार राव का रावण
हो गया है ।
एक वेद िथा भार्ा- रावण और राम दोनोीं ने एक ही वेद एक ही भार्ा में पढ़ा था। हनुमान् जब सीिा से तमले थे िो
उन्ोींने तमतथला िथा अयोध्या के मध्य की भार्ा (भोजपुरी) में सीिा से बाि की। सींस्कृि में बोलने पर सीिा उनको
रावण का आदमी समझिीीं क्योींतक सींस्कृि तवश्व की सम्पकत भार्ा थी।
वाल्मीतक रामायण, सुन्दरकाण्ड, अध्याय ३०-
यतद वाचीं प्रदास्यातम तद्वजातिररव सींस्कृिाम्। रावणीं मन्यमाना माीं सीिा भीिा भतवष्यति॥१८॥
अवश्मे व विव्यीं मानुर्ीं वाक्यमथत वि्। मया सान्त्वतयिुीं शक्या नान्यथे यमतनक्तन्दिा॥१९॥
पर केवल िमत शास्त्र या वेद पढ़ने से मनु ष्य अिा नहीीं होिा है , उसके तलये चररत्र ठीक होना चातहये-
न िमत शास्त्रीं पठिीति कारणीं न चातप वेदाध्ययनीं दु रात्मनाम्।
स्वभाव एवात्र िथातिररच्यिे। यथा प्रकृत्या मिुरीं गवाीं पयः॥ (तहिोपदे श, तमत्रलाभ)
५. राम काल की कुछ परम्परायें
(१) हुलहुली- आकाश के ५ पवों को सींस्कृि के ५ मू लस्वरोीं से व्यि तकया जािा है (नक्तन्दकेश्वर कातशका)-अ, इ, उ,
ऋ, लृ। इनमें स्वायम्भु व (पूणत जगि्) िथा परमे िी (आकाशगींगा) हमारे अनु भव से परे हैं । बाकी ३ का हम अनु भव
करिे हैं , जो तशव के ३ नेत्र हैं -सूयत, चन्द्र, पृथ्वी (अति)। अिः माीं गतलक कायों में इनका उच्चारण तकया जािा है। बार-
बार कहने से उ+ऋ+लृ = हुलहुली हो जािा है । यही भार्ा में होली हो गया है । इन्द्र तवजय के बाद उनके स्वागि के
तलये यह तकया गया था, तजसे उलु लयः कहा गया है ।
उद्धर्त िाीं मघवन् वातजनान्यु द वीराणाीं जयिामे िु घोर्ः।
पृथग् घोर्ा उलुलयः एिुमन्त उदीरिाम् ॥। (अथवत ३१/९/६)
राम के अश्वमे ि यि में भी जब सीिा को वाल्मीतक ले कर आये, िो उनके स्वागि के तलये हुलहुली हुयी थी-
िाीं दृष्ट्वा िु तिमायान्तीीं ब्रह्माणमनु गातमनीम् । वाल्मीकेः पृििः सीिाीं सािुवादो महानभू ि्॥१२॥
ििो हलहला शब्दः सवेर्ामे वमाबभौ। दु ःख-जन्म तवशाले न शोकेनाकुतलिात्मनाम् ॥१३॥
(रामायण, उर्त्रकाण्ड, सगत ७८)
यह परम्परा उड़ीशा में आज भी चल रही है ।
(२) राम से तगनिी-अव्यि जगन्नाथ के मनु ष्य रूप में २ मुख्य अविार थे । कृष्ण ने जन्म से ही कई ऐसे कायत तकये
जो केवल भगवान् ही कर सकिे हैं । पर राम सदा मनु ष्य की सीमा में रहे , अिः उनको मयात दा पुरुर्ोर्त्म कहिे हैं ।
इसी अथत में पुरी भी पुरुर्ोर्त्म क्षे त्र है । अव्यय पुरुर् के रूप में वह क्षर िथा अक्षर दोनोीं से उर्त्म होने के कारण
पुरुर्ोर्त्म रूप में प्रतथि हैं , अिः एक का बहुवचन प्रथम है (अींग्रेजी में वन का फस्टत )। अिः िान आतद का वजन
करिे समय प्रथम के बदले पुरुर्ोर्त्म राम कहिे हैं , उसके बाद २,३ आतद तगनिे हैं-
यस्माि् क्षरमिीिोऽह-मक्षरादतप चोर्त्मम्। अिोऽक्तस्म लोके वेदे च प्रतथिः पुरुर्ोर्त्मः॥ (गीिा १५/१८)
(३) रामतगरर-उड़ीशा के दतक्षण पतिम में दण्डकारण्य क्षे त्र है जहाीं लोगोीं को दण्ड के तलये तनवात तसि तकया जािा था।
वहाीं राम ने तजस पवति पर तनवास तकया उसका नाम रामतगरर पवति है । वहाीं एक झरने के नीचे वस्त्र खोलकर सीिा
जी स्नान कर रहीीं थीीं, िो कुछ स्थानीय क्तस्त्रयोीं ने उनपर हीं स तदया। सीिा ने शाप तदया तक वे कभी वस्त्र नहीीं पहनें गीीं।
आज भी उस क्षे त्र की बोण्डा जाति की क्तस्त्रयाीं वस्त्र नहीीं पहनिी हैं । सीिा तमतथला, अयोध्या, तचत्रकूट िथा लीं का में
भी स्नान करिी थीीं, पर स्नान से सम्बक्तन्धि तवशे र् घटना यहीीं हुयी। कुबेर ने अपने एक यक्ष को भी दण्ड के तलये
रामतगरर पर एक वर्त के तलये भे जा था, आज भी दण्ड के तलये उड़ीशा के अतिकाररयोीं की बदली यहीीं होिी है ।
कातलदास ने मे घदू ि महाकाव्य के प्रथम श्लोक में इसी घटना की चचात की है-
कतिि् कान्ता तवरह-गुरुणा स्वातिकाराि् प्रमर्त्ः, शापेना-स्तङ्गतमि-मतहमा वर्त-भोग्ये ण भर्त्ुत ः।
यक्ष-िक्रे जनक-िनया-स्नान-पुण्योदकेर्ु , तस्नग्ध-िाया िरुर्ु वसति रामतगयात िमे र्ु॥१॥
(४) महे न्द्रतगरर-िनु र्यि में राम द्वारा िनुर्-भङ्ग के बाद परशु राम िपस्या के तलये महे न्द्रतगरर आये थे। परशु राम के
स्थान बाीं की अींचल में हैं िथा उनके कई स्थान टाीं गी नाम से प्रतसद्ध हैं । परशु राम टाीं गी = परशु रखिे थे। उड़ीशा के
राजाओीं को भी महे न्द्रराज कहिे थे । यह प्रतसद्ध राजा महेन्द्रवमत न् के बहुि पूवत रघुवींश में तलक्तखि है-उत्कलादतशत ि
पथः कतलङ्गातभमुखीं ययौ॥३८॥ स प्रिापीं महे न्द्रस्य मू तनत िीक्ष्णीं न्यवेशयन् । ... तियीं महे न्द्रनाथस्य जहार न िु
मे तदनीम् ॥४३॥ (रघुवींश ४/३८-३९, ४३) कई लोगोीं की िारणा है तक कातलदास को पिा नहीीं था तक तवक्रमातदत्य
कौन है तजसके नवरत्नोीं में से वे थे , िथा रघु के नाम से उसी का वणतन कर रहे थे । एक शोिकर्त्ात िीकृष्ण जु गनू ने
एक ही लेख में रघु के वणतन को तवक्रमातदत्य ( असली या चन्द्रगुप्त तद्विीय), हर्त वितन, पृथ्वीराज, राणा कुम्भा आतद
मान तलया है (वैचाररकी, २१०२ का चिुथत अींक।
(५) तनयम के अनु सार िनु र् भीं ग के बाद ही राम का तववाह हो गया था। पर उसके चौथे तदन उनके तपिा दशरथ के
आने पर पुनः तववाह हुआ। आज भी तमतथला से अयोध्या के बीच के क्षे त्रोीं में तववाह के चौथे तदन ही पति-पत्नी तमलिे
हैं ।
(६) सूयत वींश-तवश्व के कई क्षेत्रोीं के राजा अपने को सूयतवींशी कहिे हैं -तमस्र, जापान, पेरु आतद। इतथयोतपआ के राजा
ने अपने को सबसे पुराना राजपररवार तसद्ध करने के तलये राम के बड़े पुत्र कुश से अपने काल िक की वींशावली
प्रकातशि कराई थी। उनके वींश को कुश वींश िथा अफ्रीका को कुश द्वीप कहा जािा था। तवश्व की सभी भार्ाओीं में
सूयत को रतव, रा, या रब कहिे हैं तजनका भगवान् अथत भी होिा है ।
(७) सूयत क्षे त्र-तवश्व के सूयत क्षेत्र काल क्षेत्र की सीमाओीं पर थे। कालहस्ती-उज्जै न से ६० पूवत, कोणाकत-उज्जै न से १२०
पूवत, क्योटो (जापान की प्राचीन राजिानी)-६०० पूवत, पुिर (बुखारा) उज्जैन से १२० पतिम (तवष्णु पुराण २/८/२६),
वाराणसी का लोलाकत, पटना से पूवत पुण्याकत (पुनारख) ६० िथा ९० पूवत, तमस्र के तपरातमड ४५० पतिम, पेरु के इन्का
(सूयत तसद्धान्त में इनः = सूयत) राजाओीं की प्राचीन राजिानी १५०० पतिम, इीं गलै ण्ड का स्टोनहे ज ७८० पूवत, फ्राीं स का
लौडे स ७२० पतिम, हे लेसपौण्ट (ग्रीस-िुकी सीमा पर, हे तलओस = सूयत), िुकी के इजमीर (मे रु), कनक्कटे (कोणाकत)
४२० पतिम हैं ।
६. रामायण की तितथयाीं
वाल्मीतक रामायण, बालकाण्ड सगत १८ में राम जन्म समय की ग्रह क्तस्थति इस प्रकार दी है-
ििो यिे समाप्ते िु ऋिूनाीं र्ट् समत्ययुः। ििि द्वादशे मासे चैत्रे नावतमके तिथौ॥८॥
नक्षत्रे ऽतदतिदै वत्ये स्वोच्चसींस्थेर्ु पञ्चसु। ग्रहे र्ु ककतटे लिे वाक्पिातवन्दु ना सह॥९॥
प्रोद्यमाने जगन्नाथीं सवतलोकनमस्कृिम् । कौशल्याजनयद् रामीं सवतलक्षण सींयुिम् ॥१०॥
= (पुत्र कामे तष्ट= अश्वमे ि) यि के ६ ऋिु बाद १२वें मास में चैत्र नवमी तितथ को पुनवतसु नक्षत्र (तजसका दे विा अतदति
है ) में जन्म हुआ जब ५ ग्रह स्व (स्थान) या उच्च के थे । जब ककत लि, बृहस्पति और चन्द्र का एक साथ उदय हो रहा
था, सभी लोकोीं से वक्तन्दि जगन्नाथ का भी उदय हुआ िथा कौशल्या ने सभी लक्षणोीं से युि राम को जन्म तदया।
अगले तदन पुष्य नक्षत्र, मीन लि में भरि का िथा उसी तदन अश्लेर्ा नक्षत्र में लक्ष्मण-शत्रु घ्न का जन्म हुआ जब सूयत
उच्च (१००) पर थे -
पुष्यो जािस्तु भरिो मीनलिे प्रसन्निीः। सापे जािो िु सौतमत्री कुलीरे ऽभ्ु तदिे रवौ॥१५॥
अिः राम जन्म के समय सूयत ९० अींश पर, चन्द्र, गुरु, लि ९०००’१", िथा चैत्र नवमी (सौर मास की) थी। गुरु और सूयत
प्रायः उच्च पर थे (इनका उच्च १००, ९५० हैं ), अन्य ५ ग्रह पूणत उच्च के थे-मीं गल २९८०, शुक्र ३५७०, शतन २०००। चन्द्र
का उच्च ५८० है पर उसका स्थान ९०० तदया है जो उसका अपना स्थान है । है। बुि का उच्च १६५० है पर यह सूयत से
२८० से अतिक दू र नहीीं हो सकिा। अिः बुि राहु-केिु की गणना करनी होगी। राम की ४७ पीढ़ी बाद बृहद्बल
महाभारि में मारा गया। अिः राम का काल महाभारि (३१३८ ई.पू.) से प्रायः १३०० वर्त पूवत होगा। ३५०१-४७०० ई.पू.
के सभी वर्ों की गणना करने पर केवल ४४३३ ई.पू. में ही अयोध्या की सूयोदय कालीन तितथ नवमी थी (चैत्र शु क्ल)
जो अगले सूयोदय िक थी। इस गणना से राम का जन्म ११-२-४४३३ ई.पू., रतववार, १०-४७-४८ स्थानीय समय पर
हुआ। सूयोदय ५-३५-४८, सूयात स्त १८-२८-४८ था। अयनाीं श १९-५७-५४, प्रभव वर्त था। अन्य ग्रह बुि २१०, राहु
१२०४’४६"। िी नरतसींह राव की पुस्तक- Date of Sri Rama, १९९०, १०२ माउण्ट रोड, मद्रास के अनु सार अन्य
तितथयाीं हैं-
जु तलयन अहगतण ई.पू. तितथ/वार वर्त /मास, अितरातत्र नक्षत्र घटना
(१-१-४७१३ ई.पू. से) अितरातत्र तितथ
१०२३११ ११-२-४४३३, रतव प्रभव, चैत्र शु क्ल ८.१९ पुनवतसु ८४.०७/पुष्य राम जन्म
१०२३१२ १२-२-४४३३, सोम चैत्र शु क्ल ९.२ पुष्य ९७.२५/अश्लेर्ा-लक्ष्मण शत्रु घ्न का जन्म
१०२३२३ २३-२-४४३३ शु क्र चैत्र कृष्ण २०.३८ मू ल २४२.१९ १२वें तदन नामकरण सींस्कार।
१०६६८२ ३०-१-४४२१, बुि प्रमाथी, चैत्र ८.६७ आद्रात ७८.११ राम का १३वाीं जन्मतदन, शतनशु क्र/राहु दशा।
१०६६८९ -६-२-४४२१, बुद चैत्र १५.७८ हस्त १७०.१७ तवश्वातमत्र द्वारा राम-लक्ष्मण की १० तदन के तलये माीं ग।
१०६६९० -७-२-४४२१, गुरु चैत्र १६.८० तचरा १८३.३४ कामािम।
१०६६९१ ८-२-४४२१, शु क्र चैत्र १७.८१ स्वािी १९६.५२ िाडका वन।
१०६६९२ ९-२-४४२१ , शतन चैत्र १८.८३ तवशाखा २०९.७ तसद्धािम।
१०६६९३ १०-२-४४२१, रतव चैत्र १९.८५ अनुरािा २२.८७ यि रक्षा का आरम्भ।
१०६६९८ १५-२-४४२१, शु क्र चैत्र २४.९२ िवण २८८.७५ यि के र्ि तदन सुबाहु का वि, मारीच का पलायन।
१०६६९९ १६-२-४४२१, शतन चैत्र २५.९४ ितनिा ३०१.९३ तमतथला के तलये प्रस्थान, अितरातत्र में चन्द्र उदय।
१०६७०० १७-२-४४२१, रतव चैत्र २६.९६ शितभर्क् ३१५.११ सोन नद पार कर गींगा िट पहुीं चे।
१०६७०१ १८-२-४४२१, सोम चैत्र २७.९७ पूवतभाद्रपद ३२८.२८ गींगा पारकर तवशाला पहुींचे।
१०६७०२ १९-२-४४२१, मीं गल चैत्र २८.९९/अमावास्या ३०.०५ उर्त्र भाद्रपद-गौिम आिम, अहल्या उद्धार।
१०६७०३ २०-२-४४२१, बुि, वैशाख ०.००४ रे विी ३५४.६४ जनक से िनु र् तदखाने का अनु रोि, िनुर् भङ्ग।
१०६७०४ २१-२-४४२१, गुरु वैशाख १.०१९ अतश्वनी ७.८१ जनक के दू ि अयोध्या रवाना।
१०६७०७ २४-२-४४२१, रतव वैशाख ४.०७ रोतहणी ४७.३४ दशरथ के पास दू ि पहुीं चे।
१०६७०८ २५-२-४४२१, सोम वैशाख ५.०८ मृ गतशरा ६०.५१ दशरथ का तमतथला के तलये प्रस्थान।
१०६७१२ १-३-४४२१, शु क्र वैशाख ९.१५ अश्लेर्ा ११३.२२ दशरथ तमतथला पहुीं चे, जनक से तमले ।
१०६७१३ २-३-४४२१, शतन वैशाख १०.१६ मघा १२६.४ जनक का १२ तदवसीय यि मघा नक्षत्र में पूणत।
१०६७१४ ३-३-४४२१, रतव वैशाख ११.१८ पूवात फाल्गु नी १३९.५८ गोदान आतद।
१०६७१५ ४-३-४४२१, शु क्र वैशाख १२.२ उर्त्रा फाल्गु नी १५२.७५ सीिाराम तववाह
१०६७१६ ५-३-४४२१, शु क्र वैशाख १३.२१ हस्त १६५.९३ तवश्वातमत्र का तहमालय प्रस्थान।
१११०८१ १५-२-४४०९,शतन, खरवर्त , चैत्र७.५९ पुनवतसु ८०.७३-िीराम का २५ वाीं जन्मतदन, युवराज का तनणतय।
१११०८२ १६-२-४४०९, रतव, चैत्र ८.६१ पुष्य ९३.९१राज्यातभर्े क के बदले वनवास, िमसा के उर्त्र िट पर रातत्र।
१११०८३ १७-२-४४०९, सोम चैत्र ९.६३ अश्लेर्ा १०७.०९ िमसा पार कर कोसल सीमा पर।
१११०८४ १८-२-४४०९, मीं गल चैत्र १०.६४ मघा १२०.२६ गुह से तमलन।
१११०८५ १९-२-४४०९, बुि चैत्र ११.६६ पूवात फाल्गु नी १३३.४४ गींगा नदी पार कर वनवासी वेश िारण।
१११०८६ २०-२-४४०९, गुरु चैत्र १२.६८ उर्त्रा फाल्गु नी १४६.६२ भरद्वाज आस्रम।
१११०८७ २१-२-४४०९, शु क्र चैत्र १३.६९/पूतणतमा७/२४ बजे से. हस्त १५९.७९-तचत्रकूट के तलये प्रस्थान, यमु ना िट।
१११०८८ २२-२-४४०९, शतन चैत्र पूतणतमा १४.७१ तचत्रा १७२.९७-तचत्रकूट पहुीं चे। वतसि ने भरि के पास दू ि भेजा।
१११०८९ २३-२-४४०९ रतव चैत्र१५.७२-स्वािी १८६.१५भरि का दु ःस्वप्न, दू ि से खबर पाकर प्रस्थान, जम्बू प्रस्थ।
१११०९० २४-२-४४०९, सोम चैत्र १६.७४-तवशाखा १९९.३२ भरि सवतिीथत पहुीं चे।
१११०९१ २५-२-४४०९, मीं गल चैत्र १७.७६-अनु रािा २१२.५-भरि सालवन में।
१११०९२ २६-२-४४०९, बुि चैत्र १८.७७ ज्ये िा २२५.६७ अयोध्या की िरफ।
१११०९६ २-३-४४०९, रतव चैत्र २२.८३ िवण २७८.३८ -८वें तदन सन्ध्या अयोध्या पहुीं चे, तपिा की मृ त्यु का सींवाद।
१११०९७ २६-२-४४०९, बुि चैत्र २३.८५ ितनिा २९१.५५ तपिा का िाद्ध।
११११०७ १३-३-४४०९ गुरु वैशाख ४.०१ मृ गतशरा ६३.३२ पुण्याह वाचन।
११११०८ १४-३-४४०९ शु क्र वैशाख ५.०२ आद्रात ७६.५ भरि द्वारा तपिा का िाद्ध पूणत।
११११०९ १५-३-४४०९ शतन वैशाख ६.०४ पुनवतसु ८९.६७ १३वीीं तितथ को सञ्चयन।
१११११० १६-३-४४०९ रतव वैशाख ७.०६ पुष्य १०२.८५ भरि का राज्यातभर्े क का प्रस्ताव अस्वीकार।
११११११ १७-३-४४०९ सोम वैशाख ८.०७ अश्लेर्ा ११६.०२ राम को बुलाने के तलये प्रस्थान।
१११११२ १८-३-४४०९ मीं गल वैशाख ९.०९ मघा १२९.२ सूयोदय मै त्र मु हूर्त्त में गींगा पार भरद्वाज आिम में ।
१११११३ १९-३-४४०९ बुि वैशाख १०.११ पूवात फाल्गु नी १४२.३८ तचत्रकूट में राम से तमलन।
१११११४ २०-३-४४०९ गुरु वैशाख ११.१२ उर्त्रा फाल्गु नी १५५.५५ राम की पादु का के साथ भरि का प्रस्थान।
१११११५ २१-३-४४०९ शु क्र,वैशाख१२.१४,हस्त १६८.७३,राक्षसोीं के भय से जनस्थान से आिमवातसयोीं का पलायन।
१११११६ २२-३-४४०९ शतन वैशाख १३.१५ तचत्रा १८१.९१ राम का तचत्रकूट से प्रस्थान।
१११११७ २३-३-४४०९ रतव वैशाख पूतणतमा १४.१७ स्वािी १९५.०८ अतत्र आिम सायींकाल चन्द्रोदय।
१११११८ २४-३-४४०९ सोम वैशाख १५.१८ तवशाखा २०८.२६ ऋतर्योीं के अतितथ।
१११११९ २५-३-४४०९ मीं गल वैशाख १६.२ अनु रािा २२१.४३-तवराि वि, शरभङ्ग आिम, सुिीक्ष्ण।
११११२० २६-३-४४०९ बुि वैशाख १७.२२ ज्ये िा २३४.६१ तवतभन्न ऋतर्योीं के आिम्ीं में १० वर्त िक तनवास।
११४७४२ २३-२-४३९९ शतन, प्लव-वर्त,चैत्र ६.७९ पुनवतसु ७९.३८-३५वाीं जन्मतदन, वनवास का ११ वाीं वर्त , अगस्त्य से
तमलने चले ।
११४७४३ २४-२-४३९९ रतव, चैत्र ७.८१ पुष्य ९२.५६ अगस्त्य के अनु ज का आिम।
११४७४४ २५-२-४३९९ सोम, चैत्र ८.८२ अश्लेर्ा १०५.७४ अगस्त्य आिम, ब्रह्मास्त्र की प्राक्तप्त।
११४७४५ २६-२-४३९९ मीं गल, चैत्र ९.८४ मघा ११८.९१ पञ्चवटी मागत पर जटायु से भें ट।
११५८१५ ३१-१-४३९६ सोम क्रोिी वर्त , फाल्गुन १६.८५ तचत्रा १७७.६२ शू पतणखा का आगमन, खर सेना से युद्ध।
११५८५५ २०-२-४३९६ रतव चैत्र ७.१६ पुनवतसु ८१.१४ राम का ३८वाीं जन्मतदन, सीिा का हरण।
११६१०० १२-११-४३९६ शतन पौर् ६.३८ पूवतभाद्रपद ३३२.८८ सीिा की खोज में सुग्रीव ने वानरोीं को भे जा।
११६१३० १२-१२-४३९६ सोम माघ ६.८५ अतश्वनी ८१.७ पूवत, पतिम, उर्त्र से वानर लौटे , हनु मान् महे न्द्रतगरर से लङ्का
चले ।
११६१३८ २०-१२-४३९६ मीं गल माघ १४.९७, पूतणतमा १/१४ से, अश्लेर्ा ११३.५० सीिा को हनु मान् ने राम का सन्दे श
तदया।
११६१३९ २१-१२-४३९६ बुि माघ १५.९९ मघा १२६.७६ लङ्का दहन, सीिा की चूड़ामतण लेकर लौटे ।
११६१४० २२-१२-४३९६ गुरु माघ १७.०१ पूवात फाल्गु नी १३९.३३ महे न्द्रतगरर पर वापस।
११६१४१ २३-१२-४३९६ शु क्र माघ १८.१५ उर्त्रा फाल्गुनी १५३.११ राम को सीिा का समाचार, तवजय मु हूित में
प्रस्थान।
११६१५८ ९-१-४३९५ सोम, तवश्वावसु वर्त , फाल्गु न ५.५, भरणी १७.११ समु द्र िट पर महेन्द्रतगरर पवति पहुीं चे।
११६१५९ १०-१-४३९५ मीं गल फाल्गु न ६.३१ कृतर्त्का ३०.२८ तवभीर्ण का तनवात सन, राम की शरण में, समु द्र से तवनय।
११६१६० ११-१-४३९५ बुि फाल्गु न ७.३२ रोतहणी ४३.४६ उपवास का तद्विीय तदन।
११६१६१ १२-१-४३९५ गुरु फाल्गु न ८.३४ मृ गतशरा ५६.६४ उपवास का िृिीय तदन।
११६१६२ १३-१-४३९५ शु क्र फाल्गु न ९.३६ आद्रात ६९.८१ राम का अतिबाण, नल नील द्वारा १४ योजन सेिु।
११६१६३ १४-१-४३९५ शतन फाल्गु न १०.३७ पुनवतसु ८२.९९ दू सरे तदन २० योजन सेिु का तनमात ण।
११६१६४ १५-१-४३९५ रतव फाल्गु न ११.३९ पुष्य ९६.१६ िीसरे तदन २० योजन सेिु का तनमात ण।
११६१६५ १६-१-४३९५ सोम फाल्गु न १२.४१ अश्लेर्ा १०९.३४ चौथे तदन २० योजन सेिु का तनमात ण।
११६१६६ १७-१-४३९५ मीं गल फाल्गु न १३.४२ मघा१२२.५१ पाीं चवें तदन २० योजन सेिु का तनमात ण।
११६१६७ १८-१-४३९५ बुि फाल्गु न१४.४४, पूवात फाल्गु नी१३५.६९-पुल पूणत-पार कर पूतणतमा रातत्र को सुबेल पवति पर
११६१६८ १९-१-४३९५ गुरु फाल्गु न १५.४६ उर्त्रा फाल्गु नी १४८.८७ अींगद को दू ि भे जा, युद्ध आरम्भ।
११६१६९ २०-१-४३९५ शु क्र फाल्गु न १६.४८ हस्त १६२.०५-६ तदनोीं का युद्ध।
११६१७४ २५-१-४३९५ बुि फाल्गु न २१.५६ ज्ये िा २२७.९२-इन्द्रजीि द्वारा लक्ष्मण की मू छात , हनु मान् द्वारा सींजीवनी।
११६१७५ २६-१-४३९५ गुरु फाल्गु न २२.५७ मू ल २४१.१-कुम्भ तनकुम्भ वि।
११६१७६ २७-१-४३९५ शु क्र फाल्गु न २३.५९ पूवात र्ाढ़ २५४.२८-रातत्र में राम द्वारा मकराक्ष का वि।
११६१७७ २८-१-४३९५ शतन फाल्गु न २४.६ उर्त्रार्ाढ़ २६७.४६-इन्द्रजीि द्वारा माया सीिा का वि, लक्ष्मण से ३ तदन
युद्ध।
११६१८० ३१-१-४३९५ मीं गल फाल्गु न २७.६५ शितभर्क् ३०८.९९-लक्ष्मण द्वारा मे घनाद वि।
११६१८१ १-२-४३९५ बुि फाल्गु न २८.६७ पूवतभाद्रपद ३२०.१६-सीिा हत्या के बदले अगले तदन प्रतिपदा को युद्ध।
११६१८२ २-२-४३९५ गुरु फाल्गु न २९.६८ उर्त्रभाद्रपद/रे विी-३ तदन राम रावण युद्ध, अगस्त्य द्वारा आतदत्य मन्त्र।
११६१८५ ३-२-४३९५ रतव चैत्र २.७३ कृतर्त्का/रोतहणी-रावण वि, उसका िाद्ध।
११६१८६ ४-२-४३९५ सोम चैत्र ३.७४ -रोतहणी/मृ गतशरा-तवभीर्ण का अतभर्े क, सीिा की अति परीक्षा।
११६१८७ ५-२-४३९५ मीं गल चैत्र ४.७६ मृ गतशरा/आद्रात /पुनवतसु-पुिक तवमान से तकक्तिन्धा आगमन।
११६१८८ ६-२-४३९५ बुि चैत्र ५.७८ पुनवतसु/पुष्य-राम का राज्यातभर्े क।
१२७११८ २२-३४३६५ शतन- राम ने ब्रह्मलोक प्रस्थान तकया।

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