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योितष सीख भाग-5

पुनीत पां डे

ोितष म फलकथन का आधार मु तः हों, रािशयों और भावों का ाभाव, कारक व एवं उनका
आपसी संबध है ।
हों को ोितष म जीव की तरह माना जाता है - रािशयों एवं भावों को वह े मान जाता है, जहाँ ह
िवचरण करते ह। हों का हों से संबध, रािशयों से संबध, भावों से संबध आिद से फलकथन का िनधारण
होता है ।
ोितष म हों का एक जीव की तरह ' वभाव' होता है । इसके अलाव हों का 'कारक व' भी होता है।
रािशयों का केवल ' वभाव' एवं भावों का केवल 'कारक व' होता है । वभाव और कारक व म फक समझना
ब त ज री है।
सरल श दों म ' वभाव' 'कैसे' का जबाब दे ता है और 'कारक व' ' या' का जबाब दे ता है। इसे एक उदाहरण
से समझते ह। माना की सूय ह मंगल की मेष रािश म दशम भाव म थत है। ऐसी थित म सूय या
प रणाम दे गा?
नीचे भाव के कारक व की तािलका दी है, िजससे पता चलता है िक दशम भाव वसाय एवं ापार का
कारक है । अत: सूय या दे गा, इसका उ तर िमला की सूय ' यवसाय' दे गा। वह यापार या यवसाय कैसा
होगा - सूय के वाभाव और मेष रािश के वाभाव जैसा। सूय एक आ ामक ह है और मंगल की मेष
रािश भी आ ामक रािश है अत: यवसाय आ ामक हो सकता है । दू सरे श दों म जातक सेना या खेल के
यवयाय म हो सकता है, जहां आ ामकता की ज रत होती है। इसी तरह ह, रािश, एवं भावों के
वाभाव एवं कारक व को िमलाकर फलकथन िकया जाता है ।
दु िनया की सम चल एवं अचल व ुएं ह, रािश और भाव से िनधा रत होती है। चूँिक दु िनया की सभी
चल एवं अचल व ुओं के बारे म तो चचा नही ं की जा सकती, इसिलए िसफ मु मु कारक व के बारे
म चचा करगे।
सबसे पहले हम भाव के बारे म जानते ह। भाव के कारक व इस कार ह -
थम भाव : थम भाव से िवचारणीय िवषय ह - ज , िसर, शरीर, अंग, आयु, रं ग- प, कद, जाित
आिद।

ि तीय भाव: दू सरे भाव से िवचारणीय िवषय ह - पया पैसा, धन, ने , मुख, वाणी, आिथक थित, कुटुं ब,
भोजन, िज , दां त, मृ ु, नाक आिद।

तृ तीय भाव : तृतीय भाव के अंतगत आने वाले िवषय ह - यं से छोटे सहोदर, साहस, डर, कान, श ,
मानिसक संतुलन आिद।

चतुथ भाव : इस भाव के अंतगत मुख िवषय - सुख, िव ा, वाहन, ह्दय, संपि , गृह, माता, संबंधी
गण,पशुधन और इमारत।

पंचव भाव : पंचम भाव के िवचारणीय िवषय ह - संतान, संतान सुख, बु कुशा ता, शंसा यो काय,
दान, मनोरं जन, जुआ आिद।

ष भाव : इस भाव से िवचारणीय िवषय ह - रोग, शारी रक व ता, श ु क , िचंता, चोट, मुकदमेबाजी,
मामा, अवसाद आिद।

स म भाव : िववाह, प नी, यौन सुख, या ा, मृ ु, पाटनर आिद िवचारणीय िवषय स म भाव से संबंिधत
ह।
अ म भाव : आयु, दु भा , पापकम, कज, श ुता, अकाल मृ ु, किठनाइयां , स ाप और िपछले ज के
कम के मुतािबक सुख व दु ख, परलोक गमन आिद िवचारणीय िवषय आठव भाव से संबंिधत ह।

नवम भाव : इस भाव से िवचारणीय िवषय ह - िपता, भा , गु , शं सा, यो काय, धम, दानशीलता,
पूवज ों का संिच पु ।

दशम भाव : दशम भाव से िवचारणीय िवषय ह - उदरपालन, वसाय, ापार, ित ा, ेणी, पद,
िस , अिधकार, भु , पैतृक वसाय।

एकादश भाव : इस भाव से िवचारणीय िवषय ह - लाभ, े ाता, मुनाफा, आभूषण, अिभलाषा पूित,
धन संपि की ा , ापार म लाभ आिद।

ादश भाव : इस भाव से संबंिधत िवचारणीय िवषय ह - य, यातना, मो , द र ता, श ुता के काय,
दान, चोरी से हािन, बंधन, चोरों से संबंध, बायीं आं ख, श ासुख, पैर आिद।
इस बार इतना ही। हों का वभाव/ कारक व व रािशयों के वाभाव की चचा हम अगले पाठ म करगे।

योितष सीख भाग-6


िपछले अंक म हमन भाव कारक व के बारे म जाना। हमने यह भी जाना िक कारका व एवं वभाव म या
फक होता है । इस बार पहले हम रािशयों के बारे म जानते ह। रािशयों के वभाव इस कार ह-
मेष – पु ष जाित, चरसं क, अि त , पूव िदशा की मािलक, म क का बोध कराने वाली, पृ ोदय, उ
कृित, लाल-पीले वण वाली, का हीन, ि यवण, सभी समान अंग वाली और अ स ित है। यह िप
कृितकारक है । इसका ाकृितक भाव साहसी, अिभमानी और िम ों पर कृपा रखने वाला है।
वृष – ी रािश, थरसं क, भूिमत , शीतल भाव, का रिहत, दि ण िदशा की ािमनी,
वात कृित, राि बली, चार चरण वाली, ेत वण, महाश कारी, िवषमोदयी, म स ित, शुभकारक, वै
वण और िशिथल शरीर है । यह अ जल रािश कहलाती है। इसका ाकृितक भाव ाथ , समझ-बूझकर
काम करने वाली और सां सा रक काय म द होती है। इससे क , मुख और कपोलों का िवचार िकया
जाता है।
िमथु न – पि म िदशा की ािमनी, वायुत , तोते के समान ह रत वण वाली, पु ष रािश, ि भाव,
िवषमोदयी, उ , शू वण, महाश कारी, िचकनी, िदनबली, म स ित और िशिथल शरीर है। इसका
ाकृितक भाव िव ा यनी और िश ी है । इससे हाथ, शरीर के कंधों और बा ओं का िवचार िकया
जाता है।
कक – चर, ी जाित, सौ और कफ कृित, जलचारी, समोदयी, राि बली, उ र िदशा की ािमनी,
र -धवल िमि त वण, ब चरण एवं संतान वाली है । इसका ाकृितक भाव सां सा रक उ ित म
य शीलता, ल ा, और काय थैय है। इससे पेट, व ः थल और गुद का िवचार िकया जाता है।
िसंह – पु ष जाित, थरसं क, अि त , िदनबली, िप कृित, पीत वण, उ भाव, पूव िदशा की
ािमनी, पु शरीर, ि य वण, अ स ित, मणि य और िनजल रािश है। इसका ाकृितक प
मेष रािश जैसा है, पर तो भी इसम ात ेम और उदारता िवशेष प से िव मान है। इससे दय का
िवचार िकया जाता है ।
क ा – िपं गल वण, ीजाित, ि भाव, दि ण िदशा की ािमनी, राि बली, वायु और शीत कृित,
पृ ीत और अ स ान वाली है । इसका ाकृितक भाव िमथुन जैसा है , पर िवशेषता इतनी है िक
अपनी उ ित और मान पर पूण ान रखने की यह कोिशश करती है । इससे पेट का िवचार िकया जाता है ।
तु ला – पु ष जाित, चरसं क, वायुत , पि म िदशा की ािमनी, अ संतान वाली, ामवण शीष दयी,
शू सं क, िदनबली, ू र भाव और पाद जल रािश है । इसका ाकृितक भाव िवचारशील, ानि य,
काय-स ादक और राजनीित है । इससे नािभ के नीचे के अंगों का िवचार िकया जाता है।

वृि क – थरसं क, शु वण, ीजाित, जलत , उ र िदशा की ािमनी, राि बली, कफ कृित,
ब स ित, ा ण वण और अ जल रािश है। इसका ाकृितक भाव द ी, हठी, ढ़ ित , वादी
और िनमल है। इससे शरीर के क़द और जनने यों का िवचार िकया जाता है।

धनु – पु ष जाित, कां चन वण, ि भाव, ू रसं क, िप कृित, िदनबली, पूव िदशा की ािमनी, ढ़
शरीर, अि त , ि य वण, अ स ित और अ जल रािश है । इसका ाकृितक भाव अिधकारि य,
क णामय और मयादा का इ ु क है । इससे पैरों की स और जंघाओं का िवचार िकया जाता है।

मकर – चरसं क, ी जाित, पृ ीत , वात कृित, िपं गल वण, राि बली, वै वण, िशिथल शरीर और
दि ण िदशा की ािमनी है। इसका ाकृितक भाव उ दशािभलाषी है। इससे घुटनों का िवचार िकया
जाता है।

कु – पु ष जाित, थरसं क, वायु त , िविच वण, शीष दय, अ जल, ि दोष कृित, िदनबली, पि म
िदशा की ािमनी, उ भाव, शू वण, ू र एवं म संतान वाली है। इसका ाकृितक भाव
िवचारशील, शा िच , धमवीर और नवीन बातों का आिव ारक है । इससे पेट की भीतरी भागों का िवचार
िकया जाता है ।

मीन – ि भाव, ी जाित, कफ कृित, जलत , राि बली, िव वण, उ रिदशा की ािमनी और िपंगल
वण है। इसका ाकृितक भाव उ म, दयालु और दानशील है । यह स ूण जलरािश है। इससे पैरों का
िवचार िकया जाता है ।
रािशयों के भाव जानने के बाद हम अब अगली बार हों के कारक और भाव के बारे म जानगे।

ोितष सीख भाग-7


पुनीत पां डे
िपछले अंक म हमन रािश के वाभाव के बारे म जाना। हमने यह भी जाना िक कारका व एवं वभाव म
या फक होता है । इस बार पहले हम हों के बारे म जानते ह। नव ह के कारक व एवं वभाव इस कार
ह-
सूय –

वभाव: चौकौर, छोटा कद, गहरा लाल रं ग, पु ष, ि य जाित, पाप ह, स गुण धान, अि त , िप
कृित है।

कारक व: राजा, ानी, िपता, वण, तां बा, फलदार वृ , छोटे वृ , ग , ह ी, िसर, ने , िदमाग़ व दय पर
अपना भाव रखता है।

च –

वभाव: गोल, ी, वै जाित, सौ ह, स गुण, जल त , वात कफ कृित है।


कारक व: सफेद रं ग, माता, कलाि य, सफेद वृ , चां दी, िमठा, चावल, छाती, थूक, जल, फफड़े तथा ने -
ोित पर अपना भाव रखता है ।

मंगल –

वभाव: तंदुर त शरीर, चौकौर, ू र, आ ामक, पु ष, ि य, पाप, तमोगुणी, अि त , िप कृित है।

कारक व: लाल रं ग, भाई बहन, यु , हिथयार, चोर, घाव, दाल, िप , र , मांसपेिशयाँ, ऑपरे शन, कान,
नाक आिद का ितिनिध है ।

बुध –

वभाव: दु बला शरीर, नपुंसक, वै जाित, सम ह, रजोगुणी, पृ ी त व ि दोष (वात, िप , कफ) कृित
है।

कारक व: हरा रं ग, चना, मामा, गिणत, यापार, वायुरोग, वाक्, जीभ, तालु, र, गु रोग, गूंगापन, आल
व कोढ़ का ितिनिध है।

बृह ित –

वभाव: भारी मोटा शरीर, पु ष, ा ण, सौ , स गुणी, आकाश त व कफ कृित है।

कारक व: पीला रं ग, वेद, धम, भ , वण, ानी, ग , चब , कफ, सूजन, घर, िव ा, पु , पौ , िववाह तथा
गुद का ितिनिध करता है।

शु –

वभाव: सु दर शरीर, ी, ा ण, सौ , रजोगुणी, जल त व कफ कृित है।

कारक व: सफेद रं ग, सु दर कपडे , सु दरता, प नी, ेम स ब ध, वीय, काम-श , वैवािहक सुख, का ,


गान श , आँ ख व ी का ितिनिध है।

शिन –

वभाव: काला रं ग, धसी ई आं ख, पतला लंबा शरीर, ू र, नपुंसक, शू वण, पाप, तमोगुणी, वात कफ
कृित व वायु त धान है ।

कारक व: काला रं ग, चाचा, ई या, धूतता, चोर, जंगली जानवर, नौकर, आयु, ितल, शारी रक बल, योगा ास,
ऐ य, वैरा , नौकरी, दय रोग आिद का ितिनिध है।

रा व केतु –

वाभाव: पाप ह, चा ाल, तमोगुणी, वात िप कृित व नपुंसक ह।

कारक व: गहरा धुंए जैसा रं ग, िपतामह मातामह, धोखा, दु घटना, झगडा, चोरी, सप, िवदे श, चम रोग, पैर,
भूख व उ ित म बाधा के ितिनिध ह।

रा का वाभाव शिन की तरह और केतु का वाभाव मंगल की तरह होता है।


भाव, ह और रािश की अब आपको पया त जानकारी हो चुकी
है और आप शु आती भिव यफल के िलए तैयार ह। एक
उदाहरण से जानते ह िक इस जानकारी का योग भिव यफल
जानने के िलए कैसे िकया जाय। अपनी उदाहरण कु डली एक
बार िफर दे खते ह। माना की हम कु डली वाले के रं ग प के
िवषय म जानना है । अब हम जानते ह िक रं ग प के िलए
िवचारणीय भाव थम भाव है। थम भाव, िजसे ल न भी कहते
ह, का वामी शिन है योंिक थव भाव म यारह न बर की
रािश अथात कु भ रािश पड़ी है और कु भ रािश का वामी शिन
होता है । तो कु डली वाले का प रं ग शिन से भािवत रहे गा।
शिन सूय और बुध के साथ स तम भाव म िसंह रािश म थत है।
िसंह रािश का वामी भी सूय है अत: रं ग प पर सूय का भाव
भी रहेगा। शिन का वभाव - काला रं ग, धसी ई आं ख, पतला लंबा शरीर, ू र, नपुंसक, शू वण, पाप,
तमोगुणी, वात कफ कृित व वायु त धान है। और सूय का वाभाव - चौकौर, छोटा कद, गहरा लाल
रं ग, पु ष, ि य जाित, पाप ह, स गुण धान, अि त , िप कृित है। अत: जातक पर इन दोनों का
िमला जुला वाभाव होगा।

योितष सीख भाग-8


पुनीत पां डे

िकसी भी अ य िवषय की तरह योितष की अपनी श दावली है। योितष के लेखों को, योितष की पु तकों
को आिद समझने के िलए श दावली को जानना ज री है। सबसे पहले हम भाव से जुड़े ए कुछ
मह वपूण सं ाओं को जानते ह -

भाव सं ाएं

के - एक, चार, सात और दसव भाव को एक साथ के भी कहते ह।


ि कोण - एक, पां च और नौव भाव को एक साथ ि कोण भी कहते ह।
उपचय - एक, तीन, छ:, दस और यारह भावों को एक साथ उपचय कहते ह।

मारक - दो और सात भाव मारक कहलाते ह।


दु : थान - छ:, आठ और बारह भाव दु : थान या दु ट- थान कहलाते ह।
ू र थान - तीन, छ:, यारह

रािश सं ाएं

अि आिद सं ाएं
अि - मेष िसंह धनु
पृ वी - वृषभ क ा मकर
वायु - िमथुन तुला कु
जल - कक वृि क मीन
नोट: मेषािद ादश रािशयां अि , पृ वी, वायु और जल के म म होती ह।
चरािद सं ाएं
चर – मेष,कक, तुला,मकर
थर – वृषभ,िसंह,वृि क,कु
ि वाभाव – िमथुन,क ा,धनु,मीन

नोट: मेषािद ादश रािशयां चर, थर और ि वाभाव के म म होती ह।

पु ष एवं ी सं क रािशयां
पु ष – मेष,िमथुन,िसं ह,तुला,धनु,कु
ी – वृषभ,कक,क ा,वृि क,मकर,मीन

नोट: सम रािशयां ी सं क और िवषम रािशयां पु ष सं क होती ह।

ोितष की पु कों, लेखों आिद को पढ़ते व इस तरह के श लगातार इ ेमाल िकए जाते ह,इसिलए
इस श ावली को कंठ थ कर लेना चािहए। तािक पढ़ते व बात ठीक तरह से समझ आए। अगले पाठ
म कुछ और मह पूण जानका रयों पर बात करगे।

योितष सीख भाग - 9


फलादे श के सामा िनयम
पुनीत पां डे
यह जानना ब त ज री है िक कोई ह जातक को ा फल दे गा। कोई ह कैसा फल दे गा, वह उसकी
कु ली म थित, युित एवं ि आिद पर िनभर करता है। जो ह िजतना ादा शुभ होगा, अपने
कारक को और िजस भाव म वह थत है, उसके कारक ों को उतना ही अिधक दे पाएगा। नीचे कुछ
सामा िनयम िदए जा रहे ह, िजससे पता चलेगा िक कोई ह शुभ है या अशुभ। शुभता ह के बल म
वृ करे गी और अशुभता ह के बल म कमी करे गी।
िनयम 1 - जो ह अपनी उ , अपनी या अपने िम ह की रािश म हो - शुभ फलदायक होगा। इसके
िवपरीत नीच रािश म या अपने श ु की रािश म ह अशुभफल दायक होगा।
िनयम 2 - जो ह अपनी रािश पर ि डालता है, वह शुभ फल दे ता है।
िनयम 3 - जो ह अपने िम हों के साथ या म हो वह शुभ फलदायक होता है। िम ों के म होने को
मलतब यह है िक उस रािश से, जहां वह ह थत है, अगली और िपछली रािश म िम ह थत ह।
िनयम 4 - जो ह अपनी नीच रािश से उ रािश की ओर मण करे और व ी न हो तो शुभ फल दे गा।
िनयम 5 - जो ह ल ेहश का िम हो।
िनयम 6 - ि कोण के ामी सदा शु भ फल दे ते ह।
िनयम 7 - के का ामी शुभ ह अपनी शु भता छोड़ दे ता है और अशुभ ह अपनी अशुभता छोड़ दे ता
है।
िनयम 8 - ू र भावों (3, 6, 11) के ामी सदा अशुभ फल दे ते ह।
िनयम 9 - उपा भावों (1, 3, 6, 10, 11) म ह के कारक त म वृ होती है।
िनयम 10 - दु थानों (6, 8, 12) म ह अशुभ फल दे ते ह।
िनयम 11 - शुभ ह के (1, 4, 7, 10) म शुभफल दे ते ह, पाप ह के म अशुभ फल दे ते ह।
िनयम 12 - पूिणमा के पास का च शुभफलदायक और अमाव ा के पास का चं अशुभफलदायक
होता है ।

िनयम 13 - बुध, रा और केतु िजस ह के साथ होते ह, वैसा ही फल दे ते ह।


िनयम 14 - सूय के िनकट ह अ हो जाते ह और अशुभ फल दे ते ह।
इन सभी िनयम के प रणाम को िमलाकर हम जान सकते ह िक कोई ह अपना और थत भाव का फल
दे पाएगा िक नही ंय़ जैसा िक उपर बताया गया शुभ ह अपने कारक को दे ने म स म होता है पर ु
अशुभ ह अपने कारक को नहीं दे पाता।

योितष सीख भाग - 10


ए ो ूल
पुनीत पांडे

सफलता और समृ के योग

िकसी कु डली म या संभावनाएं ह, यह योितष म योगों से दे खा जाता है। भारतीय योितष म हजारों
योगों का वणन है जो िक ह, रािश और भावों इ यािद के िमलने से बनते ह। हम उन सारे योगों का वणन न
करके, िसफ कुछ मह वपूण त यों का वणन करगे िजससे हम पता चलेगा िक जातक िकतना सफल और
समृ होगा। सफतला, समृ और खुशहाली को म 'संभावना' क ं गा।

िकसी कु डली की संभावना िन न त यों से पता लगाई जा सकती है


1- ल न की श
2- च की श
3- सूय की श
4- दशम भाव की श
5- योग

ल न, सूय, चं और दशम भाव की श पहले िदए ए 14 िनयमों के आधार पर िनधा रत की जा सकती


है। योग इस कार ह -

योगकारक ह
सूय और चं को छोडकर हर ह दो रािशयों का वामी होता ह। अगर िकसी कु डली म कोई ह एक
साथ के और ि कोण का वामी हो जाए तो उसे योगकारक ह कहते ह। योगकारक ह उ तम फल
दे ते ह और कु डली की संभावना को भी बढाते ह।

उदाहरण कु भ ल न की कु डली म शु चतुथ भाव और नवम भाव का वामी है। चतुथ के थान होता
है और नवम ि कोण थान होता है अत: शु उदाहरण कु डली म एक साथ के और ि कोण का वामी
होने से योगकारक हो गया है। अत: उदाहरण कु डली म शु सामा यत: शुभ फल दे गा यिद उसपर कोई
नकारा मक भाव नहीं है ।

राजयोग
अगर कोई के का वामी िकसी ि कोण के वामी से स ब ध बनाता है तो उसे राजयोग कहते ह।
राजयोग श द का योग योितष म कई अ य योगों के िलए भी िकया जाता ह अत: के ◌् -ि कोण
वािमयों के स ब ध को पाराशरीय राजयोग भी कह िदया जाता है। दो हों के बीच राजयोग के िलए िन न
स ब ध दे खे जाते ह -
1 युित
2 ि
3 प रवतन
युित और ि के बारे म हम पहले ही बात कर चुके ह। प रवतन का मतलब रािश प रवतन से है।
उदाहरण के तौर पर सूय अगर ं की रािश कक म हो और च सूय की रािश िसंह म हो तो इसे सूय और
च के बीच प रवतन स ब ध कहा जाएगा।

धनयोग
एक, दो, पां च, नौ और यारह धन दायक भाव ह। अगर इनके वािमयों म युित, ि या प रवतन स ब ध
बनता है तो इस स ब ध को धनयोगा कहा जाता है ।

द र योग
अगर िकसी भी भाव का युित, ि या प रवतन स ब ध तीन, छ:, आठ, बारह भाव से हो जाता है तो उस
भाव के कारक व न ट हो जाते ह। अगर तीन, छ:, आठ, बारह का यह स ब ध धन दायक भाव (एक, दो,
पां च, नौ और यारह) से हो जाता है तो यह द र योग कहलाता है।

िजस कु डली म िजतने यादा राजयोग और धनयोग होंगे और िजतने कम द र योग होंगे वह जातक
उतना ही समृ होगा।

योितष सीख भाग - 11


ए ो ू ल - पुनीत पां डे

कालिनणय

योितष म िकसी भी घटना का कालिनणय मु यत: दशा और गोचर के आधार पर िकया जाता है। दशा
और गोचर म सामा यत: दशा को यादा मह व िदया जाता है । वैसे तो दशाएं भी कई होती ह पर तु हम
सबसे चिलत िवंशो तरी दशा की चचा करगे और जानगे िक िवंशो तरी दशा का योग घटना के काल
िनणय म कैसे िकया जाए।

िवंशो तरी दशा न पर आधा रत है। ज म के समय च मा िजस न म होता है , उसी न के वामी से
दशा ार भ होती है । दशा म सदै व इस कार रहता है -
सूय, च , मंगल, रा , गु , शिन, बुध, केतु, शु ।

जैसा िक िविदत है िक दशा म हों के सामा य म से अलग है और न ो पर आधा रत है, अत: इसे
याद कर लेना चािहए। माना िक ज म के समय च शतिभषा न म था। िपछली बार हमने जाना था िक
शतिभषा न का वामी रा है अत: दशा म रा से ार भ होकर इस कार होगा -

रा , गु , शिन, बुध, केतु, शु , सूय, च , मंगल

कुल दशा अविध 120 वष की होती है । हर ह की उपरो त दशा को महादशा भी कहते ह और ह की


महादशा म िफर से नव ह की अ तदशा होती ह। इसी कार हर अ तदशा म िफर से नव ह की
य तदशा होती ह और य तदशा के अ दर सू म दशाएं होती ह।

िजस कार हों का दशा म िनि त है उसी कार हर ह की दशा की अविध भी िनि त है जो िक इस
कार है
ह दशा की अविध (वष म)
सूय 6
च 10
मंगल 7
रा 18
गु 16
शिन 19
बुध 17
केतु 7
शु 20
कुल 120

आगे हम यह बताएं गे िक दशा की गणना कैसे की जाती है । हालां िक, यादातर समय दशा की गणना की
आव यकता नहीं होती है इसिलए अगर गणना समझ म न आए तो भी िच ता की ज रत नही ं है। आज
कल ज म पि काएं क यूटर से बनती ह और उसम िवंशो तरी दशा गणना दी ही होती है। सभी पंचागों म
भी गणना के िलए िवंशो तरी दशा की तािलकां ए दी ई होती ह।

योितष सीख भाग - 12


पुनीत पां डे
िपछली बार हमन जाना था िक हर ह की दशा की अविध िनि त है । जैसे सूय की छह साल, चं की 10
साल, शिन की 19 साल आिद। कुल दशा अविध 120 वष की होती है। आपको मालूम है िक ज म के समय
च िजस ह के न म होता है, उस ह से दशा ार भ होती है। दशा िकतने वष रह गयी इसके िलए
सामा य अनुपात का इ तेमाल िकया जाता है ।
माना िक ज म के समय च कु भ रािश के 10 अंश पर था। हम िपछले बार की तािलका से जानते ह िक
कु भ की 6 अंश 40 कला से 20 अंश तक शतिभषा न होता है। अब अगर च कु भ के 10 अंश पर
है , इसका मतलब च शतिभषा न की 3 अंश 20 कला पार कर चुका है और 10 अंश पार करना
बाकी है। रा की कुल दशा अविध 18 वष होती है। अब अनुपात के िहसाब से -
अगर 13 अंश 20 कला बराबर ह 18 वष के, तो
3 अंश 20 कला बराबर होंगे = 18 / 13 अंश 20 कला X 3 अंश 20 कला
= 4.5 वष
= 4 वष 6 माह

अत: हम कह सकते ह िक ज म के समय रा की दशा 4 वष 6 माह बीत चुकी थी। चंिक रा की कुल
दशा 18 वष की होती है अत: 13 वष 6 माह की दशा रह गई थी।

ज म के समय बीत चुकी दशा को भु त दशा और रह गई दशा को भो य दशा (balance of dasa) कहते
ह। एक बार िफर बता दू ं िक पंचाग आिद म िवंशो तरी दशा की तािलकाएं दी ई होती ह अत: हाथ से
गणना की आव यकता नही ं होती।

जैसा िक पहले बताया गया, हर ह की महादशा म िफर से नव ह की अ तदशा होती ह। हर अ तदशा म


िफर से नव ह की य तदशा और य तदशा के अ दर सू म दशाएं होती ह। िजस ह की महादशा
होती है , उसकी महादशा म सबसे पहले अ तदशा उसी ह की होती है । उसके बाद उस ह की दशा
आती है जो िक दशा म म उसके बाद िनधा रत हा। उदाहरण के तौर पर, रा की महादशा म सबसे
पहले रा की खुद की अ तदशा आएगी। िफर गु वार की, िफर शिन की इ यािद।

अ तदशा की गणना भी सामा य अनुपात से ही की जाती है । जैसे रा की महादशा कुल 18 वष की होती


है। अत: रा की महादशा म रा की अ तदशा 18 / 120 X 18 = 2.7 वष यािन 2 वष 8 माह 12 िदन की
होगी। इसी कार रा म गु की अ तदशा 18/ 120 X 16 = 2.4 यािन 2 वष 4 माह 24 िदन की होगी।

इस गणना को ठीक से समझना आव क है । इस बार के िलए बस इतना ही।

योितष सीख भाग - 13


पुनीत पां डे
इस बार हम जानगे की दशाफल का िनधारण कैसे कर। िवंशो तरी दशा काल िनधारण का अित मह वपूण
औजार है । दशाफल अथात िकस दशा म हम या फल िमलेगा। दशाफल िनधारण के िलए कुछ बात यान
रखने यो य ह -

1- सव थम तो यह िक िकसी भी मनु य को वह ही फल िमल सकता है जो िक उसकी कु डली म िनधा रत


हो। उदाहरण के तौर पर अगर िकसी की कु डली म िववाह का योग नही ं है तो दशा िकतनी भी िववाह दे ने
वाली हो, िववाह नही ं हो सकता।
2- िकतना फल िमलेगा यह ह की शुभता और अशुभता पर िनभर करे गा। हों की शुभता और अशुभता
कैसे जान इसकी चचा हम 'फलादे श के सामा य िनयम' शीषक के अ तगत कर चुके ह, जहां हमन 15 िनयम
िदए थे। उदाहरण के तौर पर अगर िकसी दशा म नौकरी िमलने का योग है और दशा का वामी सभी 15
िदए ए िनयमों के िहसाब से शुभ है तो नौकरी ब त अ छे वेतन की िमलेगी। ह शुभ नहीं है तो नौकरी
िमली भी तो तन वाह अ छी नहीं होगी।

3- कोई भी दशा पूरी तरह से अ छी या बुरी नहीं होती है । जैसे िकसी य को िकसी दशा म ब त अ छी
नौकरी िमलती है पर तु उसके िपता की मृ यु हो जाती है तो दशा को अ छा कहगे या बुरा? इसिलये दशा को
अ छा या बुरा मानकर फलादे श करने की बजाय यह दे खना चािहए िक उस दशा म या या फल िमल
सकते ह।

िकसी दशा म या फल िमलेगा?

दशाफल महादशा, अ तदशा और य तदशा वामी हों पर िनभर करता है। हों िक िन न थितयों को
दे खना चािहए और िफर िमलाजुला कर फल कहना चािहए -

1- ह िकस भाव म बैठा है । ह उस भाव का फल दे ते ह जहां वे बैठै होते ह। यानी अगर कोई ह स तम
भाव म थत है और जातक की िववाह की आयु है तो उस ह की दशा िववाह दे सकती है, यिद उसकी
कु डली म िववाह का योग है।

2- ह अपने कारक व के िहसाब से भी फल दे ते ह। जैस सूय सरकारी नौकरी का कारक है अत: सूय की
दशा म सरकारी नौकरी िमल सकती है । इसी तरह शु िववाह का कारक है। समा यत: दे खा गया है िक
दशा म भाव के कारक व ह के कारक व से यादा िमलते ह।
3- ह िकन हों को दे ख रहा है और िकन हों से ट है। ि का असर भी हों की दशा के समय िमलता
है। दशा के समय ट हों असर भी िमला आ होगा।

4- सबसे मह वपण और अ सर भूला जाने वाला त य यह है िक ह अपने न वामी से ब त अिधक


भािवत रहता है । ह वह सभी फल भी दे ता है जो उपरो त तीन िब दु ओं के आधार पर ह का न वामी
दे गा। उदाहरण के तौर पर अगर को ह 'अ' िकसी ह 'ब' के न म है और ह 'ब' स तम भाव म बैठा
है। ऐसी थित म ह 'अ' िक दशा म भी िववाह हो सकता है , योंिक स तम भाव िववाह का थान है।

5- रा और केतु उन हों का फल दे ते ह िजनके साथ वे बैठे होते ह और ि आिद से भािवत होते ह।

6- महादशा का वामी ह अपनी अ तदशा म अपने फल नही ं दे ता। इसके थान पर वह पूव अ तदशा के
वयं के अनुसार संशोिधत फल दे ता है ।

7- उस अ तदशा म महादशा से संब त सामा यत: शुभ फल नही ं िमलते िजस अ तदशा का वामी महादशा
के वामी से 6, 8, या 12 व थान म थत हो।
8- अंतदशा म िसफ वही फल िमल सकते ह जो िक महादशा दे सके। इसी तरह य तदशा म वही फल
िमल सकते ह जो उसकी अ तदशा दे सके।

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