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Punit Pande Lesson
Punit Pande Lesson
पुनीत पां डे
ोितष म फलकथन का आधार मु तः हों, रािशयों और भावों का ाभाव, कारक व एवं उनका
आपसी संबध है ।
हों को ोितष म जीव की तरह माना जाता है - रािशयों एवं भावों को वह े मान जाता है, जहाँ ह
िवचरण करते ह। हों का हों से संबध, रािशयों से संबध, भावों से संबध आिद से फलकथन का िनधारण
होता है ।
ोितष म हों का एक जीव की तरह ' वभाव' होता है । इसके अलाव हों का 'कारक व' भी होता है।
रािशयों का केवल ' वभाव' एवं भावों का केवल 'कारक व' होता है । वभाव और कारक व म फक समझना
ब त ज री है।
सरल श दों म ' वभाव' 'कैसे' का जबाब दे ता है और 'कारक व' ' या' का जबाब दे ता है। इसे एक उदाहरण
से समझते ह। माना की सूय ह मंगल की मेष रािश म दशम भाव म थत है। ऐसी थित म सूय या
प रणाम दे गा?
नीचे भाव के कारक व की तािलका दी है, िजससे पता चलता है िक दशम भाव वसाय एवं ापार का
कारक है । अत: सूय या दे गा, इसका उ तर िमला की सूय ' यवसाय' दे गा। वह यापार या यवसाय कैसा
होगा - सूय के वाभाव और मेष रािश के वाभाव जैसा। सूय एक आ ामक ह है और मंगल की मेष
रािश भी आ ामक रािश है अत: यवसाय आ ामक हो सकता है । दू सरे श दों म जातक सेना या खेल के
यवयाय म हो सकता है, जहां आ ामकता की ज रत होती है। इसी तरह ह, रािश, एवं भावों के
वाभाव एवं कारक व को िमलाकर फलकथन िकया जाता है ।
दु िनया की सम चल एवं अचल व ुएं ह, रािश और भाव से िनधा रत होती है। चूँिक दु िनया की सभी
चल एवं अचल व ुओं के बारे म तो चचा नही ं की जा सकती, इसिलए िसफ मु मु कारक व के बारे
म चचा करगे।
सबसे पहले हम भाव के बारे म जानते ह। भाव के कारक व इस कार ह -
थम भाव : थम भाव से िवचारणीय िवषय ह - ज , िसर, शरीर, अंग, आयु, रं ग- प, कद, जाित
आिद।
ि तीय भाव: दू सरे भाव से िवचारणीय िवषय ह - पया पैसा, धन, ने , मुख, वाणी, आिथक थित, कुटुं ब,
भोजन, िज , दां त, मृ ु, नाक आिद।
तृ तीय भाव : तृतीय भाव के अंतगत आने वाले िवषय ह - यं से छोटे सहोदर, साहस, डर, कान, श ,
मानिसक संतुलन आिद।
चतुथ भाव : इस भाव के अंतगत मुख िवषय - सुख, िव ा, वाहन, ह्दय, संपि , गृह, माता, संबंधी
गण,पशुधन और इमारत।
पंचव भाव : पंचम भाव के िवचारणीय िवषय ह - संतान, संतान सुख, बु कुशा ता, शंसा यो काय,
दान, मनोरं जन, जुआ आिद।
ष भाव : इस भाव से िवचारणीय िवषय ह - रोग, शारी रक व ता, श ु क , िचंता, चोट, मुकदमेबाजी,
मामा, अवसाद आिद।
स म भाव : िववाह, प नी, यौन सुख, या ा, मृ ु, पाटनर आिद िवचारणीय िवषय स म भाव से संबंिधत
ह।
अ म भाव : आयु, दु भा , पापकम, कज, श ुता, अकाल मृ ु, किठनाइयां , स ाप और िपछले ज के
कम के मुतािबक सुख व दु ख, परलोक गमन आिद िवचारणीय िवषय आठव भाव से संबंिधत ह।
नवम भाव : इस भाव से िवचारणीय िवषय ह - िपता, भा , गु , शं सा, यो काय, धम, दानशीलता,
पूवज ों का संिच पु ।
दशम भाव : दशम भाव से िवचारणीय िवषय ह - उदरपालन, वसाय, ापार, ित ा, ेणी, पद,
िस , अिधकार, भु , पैतृक वसाय।
एकादश भाव : इस भाव से िवचारणीय िवषय ह - लाभ, े ाता, मुनाफा, आभूषण, अिभलाषा पूित,
धन संपि की ा , ापार म लाभ आिद।
ादश भाव : इस भाव से संबंिधत िवचारणीय िवषय ह - य, यातना, मो , द र ता, श ुता के काय,
दान, चोरी से हािन, बंधन, चोरों से संबंध, बायीं आं ख, श ासुख, पैर आिद।
इस बार इतना ही। हों का वभाव/ कारक व व रािशयों के वाभाव की चचा हम अगले पाठ म करगे।
वृि क – थरसं क, शु वण, ीजाित, जलत , उ र िदशा की ािमनी, राि बली, कफ कृित,
ब स ित, ा ण वण और अ जल रािश है। इसका ाकृितक भाव द ी, हठी, ढ़ ित , वादी
और िनमल है। इससे शरीर के क़द और जनने यों का िवचार िकया जाता है।
धनु – पु ष जाित, कां चन वण, ि भाव, ू रसं क, िप कृित, िदनबली, पूव िदशा की ािमनी, ढ़
शरीर, अि त , ि य वण, अ स ित और अ जल रािश है । इसका ाकृितक भाव अिधकारि य,
क णामय और मयादा का इ ु क है । इससे पैरों की स और जंघाओं का िवचार िकया जाता है।
मकर – चरसं क, ी जाित, पृ ीत , वात कृित, िपं गल वण, राि बली, वै वण, िशिथल शरीर और
दि ण िदशा की ािमनी है। इसका ाकृितक भाव उ दशािभलाषी है। इससे घुटनों का िवचार िकया
जाता है।
कु – पु ष जाित, थरसं क, वायु त , िविच वण, शीष दय, अ जल, ि दोष कृित, िदनबली, पि म
िदशा की ािमनी, उ भाव, शू वण, ू र एवं म संतान वाली है। इसका ाकृितक भाव
िवचारशील, शा िच , धमवीर और नवीन बातों का आिव ारक है । इससे पेट की भीतरी भागों का िवचार
िकया जाता है ।
मीन – ि भाव, ी जाित, कफ कृित, जलत , राि बली, िव वण, उ रिदशा की ािमनी और िपंगल
वण है। इसका ाकृितक भाव उ म, दयालु और दानशील है । यह स ूण जलरािश है। इससे पैरों का
िवचार िकया जाता है ।
रािशयों के भाव जानने के बाद हम अब अगली बार हों के कारक और भाव के बारे म जानगे।
वभाव: चौकौर, छोटा कद, गहरा लाल रं ग, पु ष, ि य जाित, पाप ह, स गुण धान, अि त , िप
कृित है।
कारक व: राजा, ानी, िपता, वण, तां बा, फलदार वृ , छोटे वृ , ग , ह ी, िसर, ने , िदमाग़ व दय पर
अपना भाव रखता है।
च –
मंगल –
कारक व: लाल रं ग, भाई बहन, यु , हिथयार, चोर, घाव, दाल, िप , र , मांसपेिशयाँ, ऑपरे शन, कान,
नाक आिद का ितिनिध है ।
बुध –
वभाव: दु बला शरीर, नपुंसक, वै जाित, सम ह, रजोगुणी, पृ ी त व ि दोष (वात, िप , कफ) कृित
है।
कारक व: हरा रं ग, चना, मामा, गिणत, यापार, वायुरोग, वाक्, जीभ, तालु, र, गु रोग, गूंगापन, आल
व कोढ़ का ितिनिध है।
बृह ित –
कारक व: पीला रं ग, वेद, धम, भ , वण, ानी, ग , चब , कफ, सूजन, घर, िव ा, पु , पौ , िववाह तथा
गुद का ितिनिध करता है।
शु –
शिन –
वभाव: काला रं ग, धसी ई आं ख, पतला लंबा शरीर, ू र, नपुंसक, शू वण, पाप, तमोगुणी, वात कफ
कृित व वायु त धान है ।
कारक व: काला रं ग, चाचा, ई या, धूतता, चोर, जंगली जानवर, नौकर, आयु, ितल, शारी रक बल, योगा ास,
ऐ य, वैरा , नौकरी, दय रोग आिद का ितिनिध है।
रा व केतु –
कारक व: गहरा धुंए जैसा रं ग, िपतामह मातामह, धोखा, दु घटना, झगडा, चोरी, सप, िवदे श, चम रोग, पैर,
भूख व उ ित म बाधा के ितिनिध ह।
िकसी भी अ य िवषय की तरह योितष की अपनी श दावली है। योितष के लेखों को, योितष की पु तकों
को आिद समझने के िलए श दावली को जानना ज री है। सबसे पहले हम भाव से जुड़े ए कुछ
मह वपूण सं ाओं को जानते ह -
भाव सं ाएं
रािश सं ाएं
अि आिद सं ाएं
अि - मेष िसंह धनु
पृ वी - वृषभ क ा मकर
वायु - िमथुन तुला कु
जल - कक वृि क मीन
नोट: मेषािद ादश रािशयां अि , पृ वी, वायु और जल के म म होती ह।
चरािद सं ाएं
चर – मेष,कक, तुला,मकर
थर – वृषभ,िसंह,वृि क,कु
ि वाभाव – िमथुन,क ा,धनु,मीन
पु ष एवं ी सं क रािशयां
पु ष – मेष,िमथुन,िसं ह,तुला,धनु,कु
ी – वृषभ,कक,क ा,वृि क,मकर,मीन
ोितष की पु कों, लेखों आिद को पढ़ते व इस तरह के श लगातार इ ेमाल िकए जाते ह,इसिलए
इस श ावली को कंठ थ कर लेना चािहए। तािक पढ़ते व बात ठीक तरह से समझ आए। अगले पाठ
म कुछ और मह पूण जानका रयों पर बात करगे।
िकसी कु डली म या संभावनाएं ह, यह योितष म योगों से दे खा जाता है। भारतीय योितष म हजारों
योगों का वणन है जो िक ह, रािश और भावों इ यािद के िमलने से बनते ह। हम उन सारे योगों का वणन न
करके, िसफ कुछ मह वपूण त यों का वणन करगे िजससे हम पता चलेगा िक जातक िकतना सफल और
समृ होगा। सफतला, समृ और खुशहाली को म 'संभावना' क ं गा।
योगकारक ह
सूय और चं को छोडकर हर ह दो रािशयों का वामी होता ह। अगर िकसी कु डली म कोई ह एक
साथ के और ि कोण का वामी हो जाए तो उसे योगकारक ह कहते ह। योगकारक ह उ तम फल
दे ते ह और कु डली की संभावना को भी बढाते ह।
उदाहरण कु भ ल न की कु डली म शु चतुथ भाव और नवम भाव का वामी है। चतुथ के थान होता
है और नवम ि कोण थान होता है अत: शु उदाहरण कु डली म एक साथ के और ि कोण का वामी
होने से योगकारक हो गया है। अत: उदाहरण कु डली म शु सामा यत: शुभ फल दे गा यिद उसपर कोई
नकारा मक भाव नहीं है ।
राजयोग
अगर कोई के का वामी िकसी ि कोण के वामी से स ब ध बनाता है तो उसे राजयोग कहते ह।
राजयोग श द का योग योितष म कई अ य योगों के िलए भी िकया जाता ह अत: के ◌् -ि कोण
वािमयों के स ब ध को पाराशरीय राजयोग भी कह िदया जाता है। दो हों के बीच राजयोग के िलए िन न
स ब ध दे खे जाते ह -
1 युित
2 ि
3 प रवतन
युित और ि के बारे म हम पहले ही बात कर चुके ह। प रवतन का मतलब रािश प रवतन से है।
उदाहरण के तौर पर सूय अगर ं की रािश कक म हो और च सूय की रािश िसंह म हो तो इसे सूय और
च के बीच प रवतन स ब ध कहा जाएगा।
धनयोग
एक, दो, पां च, नौ और यारह धन दायक भाव ह। अगर इनके वािमयों म युित, ि या प रवतन स ब ध
बनता है तो इस स ब ध को धनयोगा कहा जाता है ।
द र योग
अगर िकसी भी भाव का युित, ि या प रवतन स ब ध तीन, छ:, आठ, बारह भाव से हो जाता है तो उस
भाव के कारक व न ट हो जाते ह। अगर तीन, छ:, आठ, बारह का यह स ब ध धन दायक भाव (एक, दो,
पां च, नौ और यारह) से हो जाता है तो यह द र योग कहलाता है।
िजस कु डली म िजतने यादा राजयोग और धनयोग होंगे और िजतने कम द र योग होंगे वह जातक
उतना ही समृ होगा।
कालिनणय
योितष म िकसी भी घटना का कालिनणय मु यत: दशा और गोचर के आधार पर िकया जाता है। दशा
और गोचर म सामा यत: दशा को यादा मह व िदया जाता है । वैसे तो दशाएं भी कई होती ह पर तु हम
सबसे चिलत िवंशो तरी दशा की चचा करगे और जानगे िक िवंशो तरी दशा का योग घटना के काल
िनणय म कैसे िकया जाए।
िवंशो तरी दशा न पर आधा रत है। ज म के समय च मा िजस न म होता है , उसी न के वामी से
दशा ार भ होती है । दशा म सदै व इस कार रहता है -
सूय, च , मंगल, रा , गु , शिन, बुध, केतु, शु ।
जैसा िक िविदत है िक दशा म हों के सामा य म से अलग है और न ो पर आधा रत है, अत: इसे
याद कर लेना चािहए। माना िक ज म के समय च शतिभषा न म था। िपछली बार हमने जाना था िक
शतिभषा न का वामी रा है अत: दशा म रा से ार भ होकर इस कार होगा -
िजस कार हों का दशा म िनि त है उसी कार हर ह की दशा की अविध भी िनि त है जो िक इस
कार है
ह दशा की अविध (वष म)
सूय 6
च 10
मंगल 7
रा 18
गु 16
शिन 19
बुध 17
केतु 7
शु 20
कुल 120
आगे हम यह बताएं गे िक दशा की गणना कैसे की जाती है । हालां िक, यादातर समय दशा की गणना की
आव यकता नहीं होती है इसिलए अगर गणना समझ म न आए तो भी िच ता की ज रत नही ं है। आज
कल ज म पि काएं क यूटर से बनती ह और उसम िवंशो तरी दशा गणना दी ही होती है। सभी पंचागों म
भी गणना के िलए िवंशो तरी दशा की तािलकां ए दी ई होती ह।
अत: हम कह सकते ह िक ज म के समय रा की दशा 4 वष 6 माह बीत चुकी थी। चंिक रा की कुल
दशा 18 वष की होती है अत: 13 वष 6 माह की दशा रह गई थी।
ज म के समय बीत चुकी दशा को भु त दशा और रह गई दशा को भो य दशा (balance of dasa) कहते
ह। एक बार िफर बता दू ं िक पंचाग आिद म िवंशो तरी दशा की तािलकाएं दी ई होती ह अत: हाथ से
गणना की आव यकता नही ं होती।
3- कोई भी दशा पूरी तरह से अ छी या बुरी नहीं होती है । जैसे िकसी य को िकसी दशा म ब त अ छी
नौकरी िमलती है पर तु उसके िपता की मृ यु हो जाती है तो दशा को अ छा कहगे या बुरा? इसिलये दशा को
अ छा या बुरा मानकर फलादे श करने की बजाय यह दे खना चािहए िक उस दशा म या या फल िमल
सकते ह।
दशाफल महादशा, अ तदशा और य तदशा वामी हों पर िनभर करता है। हों िक िन न थितयों को
दे खना चािहए और िफर िमलाजुला कर फल कहना चािहए -
1- ह िकस भाव म बैठा है । ह उस भाव का फल दे ते ह जहां वे बैठै होते ह। यानी अगर कोई ह स तम
भाव म थत है और जातक की िववाह की आयु है तो उस ह की दशा िववाह दे सकती है, यिद उसकी
कु डली म िववाह का योग है।
2- ह अपने कारक व के िहसाब से भी फल दे ते ह। जैस सूय सरकारी नौकरी का कारक है अत: सूय की
दशा म सरकारी नौकरी िमल सकती है । इसी तरह शु िववाह का कारक है। समा यत: दे खा गया है िक
दशा म भाव के कारक व ह के कारक व से यादा िमलते ह।
3- ह िकन हों को दे ख रहा है और िकन हों से ट है। ि का असर भी हों की दशा के समय िमलता
है। दशा के समय ट हों असर भी िमला आ होगा।
6- महादशा का वामी ह अपनी अ तदशा म अपने फल नही ं दे ता। इसके थान पर वह पूव अ तदशा के
वयं के अनुसार संशोिधत फल दे ता है ।
7- उस अ तदशा म महादशा से संब त सामा यत: शुभ फल नही ं िमलते िजस अ तदशा का वामी महादशा
के वामी से 6, 8, या 12 व थान म थत हो।
8- अंतदशा म िसफ वही फल िमल सकते ह जो िक महादशा दे सके। इसी तरह य तदशा म वही फल
िमल सकते ह जो उसकी अ तदशा दे सके।