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- : कभममोग सुत्रावरी :- स्वाभी वववेकानॊदजी

मह छोटी ऩॉकेट साइज़ ४० ऩेज की ऩुस्स्तका है , स्जसभें स्वाभी वववेकानॊद जी के १०० सूत्र ददए है . व्मस्तत खेत भें
काभ कयती हो मा ‘पैतरी’ भें , स्कूर भें हो मा ‘डडस्ऩें सयी’ भें , फाज़ाय भें हो मा यणबूमभ भें मा तो दे वारम भें हो; उसके
जीवन के प्रत्मेक कदभ ऩय उऩमोग भें आ सके ऐसे मे सफ सूत्र है . हॊ भेशा हभाये साथ यख सके, अभ्मास औय
अध्ममन कय सके ऐसी मह ऩुस्स्तका है .

कभम मोगसत्र
ु ावरी --स्वाभी वववेकानॊदजी

१] भानवजातत का ध्मेम भोजभजा नहीॊ, ऩयन्तु ऻान है . भोजभजा औय बौततक सुख नाशवॊत है . इसीमरए भोजभजा
को जीवनका ध्मेम सभजना मे तो फड़ी बूर है . इसीके कायन जगतभे हये क प्रकायके द्ु ख उत्ऩन्न होते है .[क० स०

१-२]

२] भोजभजा औय द्ु ख दोनों भनुष्म की आत्भाके ऩास से गुजयते वतत उस ऩय ववववध चित्रों की छामा छोड़ जाते
है . औय इस सवम सस्मभचित असयो का ऩरयणाभ मही है „िारयत्र्म‟. भनुष्म के िारयत्र्म का वविाय कयते सभम ऐसा
भारूभ होता है कक िरयत्र मातन भानव भन के झुकाव का ही सभूह. [क० सु० १-३]

३] िरयत्र के गढ़ने भें सुख औय द्ु ख, शुब औय अशुब दोनों सभान यीततसे बाग रेते है .औय कई फाय तो सुख से
ज्मादा द्ु ख ही एक अच्छे मशऺक का काभ कयता है . िरयत्र ऩय असय कयनेवारी फड़ी शस्तत कभम ही है . छोटे से
छोटे औय साधायण से साधायण रगते कभम प्रत्मे बी तुच्छता से नहीॊ दे खना िादहए. [क० सु० १-४ ]
कभम मोगसत्र
ु ावरी --स्वाभी वववेकानॊदजी

४] जगतको सदा सवमदा मभरनेवारा ऻान भन भें से ही आता है; तुमहाये भनभें ही सभग्र ववश्व का अनॊत
ऩुस्तकारम है, फाहयी जगत मह तो सुिन है, केवर प्रसॊग है, जो तुमहे तुमहाये भन का अभ्मास कयनेको
प्रेरयत कयता है. रेककन तुमहाया अभ्मासका ववषम तो तुमहाया भन ही है.[क० सु० १-५]

५] हभाये आसूॊ औय स्स्भत , हभाया आनॊद औय शोक, हभाया रुदन औय हभाया हास्म, हभाये शाऩ औय
हभाये आशीवामद, हभायी प्रशॊसा औय हभायी तनॊदा, मह सवम, हभ जो अऩना खद
ु का सही अभ्मास कये तो
भारूभ होगा कक वे सफ हभाये खुद भें से ही आघातों के कायन आए हुए है. उन सफ का ऩरयणाभ हभ
जो है वही है . [क० सु० १-६]

६] व्मस्ततके िरयत्र का तनणमम कयना हो तो केवर उसके फड़े कामोको ही ना दे ख.े स्जॊदगीके कोई एकाद सभम
भें भुखम बी भहान रगता है. व्मस्तत के छोटे छोटे कामो को कयते हुए दे खना िादहए; इस छोटे कामो के
कयते हुए ही भहान व्मस्ततके सच्िे िरयत्र की ऩयख होगी. वही सही भें भहान है, जो प्रत्मेक कामम कयते
सभम िरयत्र भें उतना ही भहान यहे. [क० सु० १-७]
कभम मोगसत्र
ु ावरी --स्वाभी वववेकानॊदजी

७] जो सवम जगत भें िर यहे कामम तथा भनुष्म सभाजकी सवम प्रकाय की किमाए औय हभाये आसऩास
के सवम कामे, वे सफ वविाय का प्रदशमन है; वे सवम भानव की इच्छाशस्तत का ही आववष्काय है . मह इच्छा
शस्तत िारयत्र्म भें से जन्भती है, औय मह िारयत्र्म कभम से गढ़ा जाता है. [क० स०ु १-८]

८] हभाये कभम [कामम] हभाये मरए तमा मोग्म है , इसीका तनणमम कयता है . हभ जो है - इसी के मरए हभ ही
स्जमभेदाय है ; औय जो होनेकी इच्छा होती है , वह होनेकी शस्तत हभाये बीतय भें यही है . जो आज हभ है वह
ऩूवम कभो का ऩरयणाभ है , तो आज जो कभे कयें गे वह हभाया बावी तम कये गा, इसी भें कोई शॊका नहीॊ है .
इसीमरए हभें कैसे कभम कयना मह जानने - सभजने की ज़रूयत है . [क० स०ु १-९ ]

९] माद यतखो कक कभम कयने की शस्तत तुमहाये भन भें ऩड़ी हुई ही है ; उसे फाहय राना मातन कक कामम, आत्भा को
जागतृ कयना इसी का नाभ कभम. सबी भनुष्मोकी बीतय शस्तत है, सबी भनष्ु मोकी बीतय इसी प्रकाय ऻान यहा हुवा
है . नाना प्रकाय के कभो वह तो मेही शस्तत औय ऻान को फाहय रानेके मरए हो यहे प्रहाय जैसे है .
[क० सु० १- १० ]
कभम मोगसत्र
ु ावरी --स्वाभी वववेकानॊदजी

१०] कामम, काममके मरए कयना िादहए. तन:स्वाथी वस्ृ त्त हॊ भेशा ववशेष राब दे ती है. प्रेभ, सत्म औय
तन:स्वाथी वस्ृ त्त मे सफ नीतत ववषमके केवर शास्ददक अरॊकाय नहीॊ, ऩयन्तु वे हभें गढ़नेवारे उच्ि आदशम
है . इसे अऩने जीवन भें साकाय कयनेवारे भें ही शस्तत प्रगट होती है . [क० स०ु १- ११]

११] परकी आशा न यतखो. ऩरयणाभ की चिॊता तमों कयते हो ? तुमहे कोई भनुष्मको सहाम कयनी हो,
तफ उस भनुष्मकी वस्ृ त्त तुमहायी ओय कैसी होगी; इसीका वविाय कयनेकी तमा ज़रूयत है ? तुमहे भहान
मा अच्छा कामम कयना हो तो, उसीका ऩरयणाभ तमा आएगा, इसीका वविाय तम
ु हे कयना नहीॊ िादहए.
[क० सु० १- १२]

१२] गहन शाॊततभें औय एकाॊतभें जो सतत प्रवतृ त को दे ख सकता हो, औय सतत प्रवतृ तभें बी जो भरुबूमभ
जैसी शाॊतत औय एकाॊतका अनुबव कय सकता हो, वही आदशम भानवी है. कभममोग का मह आदशम है औय
मदद तम
ु हे वह प्राप्त हुवा हो तो कभम का भभम-यहस्म तभ
ु ने सही जाना - सभजा है. [क० सु० १- १३]
कभम मोगसत्र
ु ावरी --स्वाभी वववेकानॊदजी

१३] हभें जो कभम प्राप्त होवे, उसे कयना है . औय िभश: ववशेष औय ववशेष प्रभाण भें
तन:स्वाथी फनना है . शरू
ु शरू
ु के वषो भें कामम कयते सभम हभाया हे तु हॊ भेशा स्वाथी होता
है . रेककन सातत्म यीततसे प्रमत्न कयनेसे मह स्वाथी तत्त्व कभ होता जाता है ; औय
आखखय भें एकददन ऐसा आता है कक जफ हभ सहीभें तन:स्वाथम बावना से कामम कयने
रगते है . [क० सु० १- १४]

१४] स्जस ददन हभ ऐसी तन:स्वाथम बावना प्राप्त कयें गे, उसी सभम हभायी सवम शस्ततमा
आत्भाभें केस्न्ित होगी. औय जो ऻान हभाये अॊतयभें यहा है , उसी का आववष्काय होगा.
[कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण १, सत्र
ू -१५]

'कभममोग सत्र
ु ावरी' :- स्वाभी वववेकानॊदजी
मह छोटी ऩॉकेट साइज़ ४० ऩेज की ऩस्ु स्तका है, स्जसभें स्वाभी वववेकानॊदजीने १०० सत्र
ू ददए है.
व्मस्तत खेत भें काभ कयती हो मा ‘पैतरी’ भें , स्कूर भें हो मा ‘डडस्ऩें सयी’ भें , फाज़ाय भें हो मा
यणबमू भ भें मा तो दे वारम भें हो; उसके जीवन के प्रत्मेक कदभ ऩय उऩमोग भें आ सके ऐसे मे सफ
सत्र
ू है. हॊ भेशा हभाये साथ यख सके, अभ्मास औय अध्ममन कय सके ऐसी मह ऩस्ु स्तका है.
कभम मोगसत्र
ु ावरी : हयएक अऩने अऩने स्थानऩे भहान है. - स्वाभी वववेकानॊदजी

१] सॊख्म तत्त्वऻान के अनस


ु ाय प्रकृतत तीन गण
ु ोंकी फनी है. इस तीन गण
ु है : सत्त्व, यजस औय तभस.
तभसका रऺण है अन्धकाय औय जड़ता. यजस का रऺण है िॊिरता औय सत्त्व मे दोनोकी सभतूरा
है . हयएक भनुष्म भें मे तीन गुण यहते है .
[कभममोग सुत्रावरी प्रकयण-२, सूत्र -१]

२] कभममोग भें खास कयके मे तीन गुणों का वविाय कयना है . भानव सभाज की िभफध्ध व्मवस्था है . प्रत्मेक
दे श भें नीतत का भहत्त्व ववरग ववरग औय फहुत ही ऩरयवतमनीम होता है .जो फात नीतत को स्ऩशम कयती हो
वही कतमव्म को बी स्ऩशम कयती है . प्रत्मेक भानव-सभूह भें कतमव्म के फाये भें ववरग ववरग यीततसे वविाय
कयना होता है . [कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-२, सत्र
ू -२]

३] कतमव्म भें औय नीतत भें उतयोत्तय िभ यहा है , मह जानना भहत्त्व का है . ववमशष्ठ प्रकाय के जीवन भें
तथा ववमशष्ठ प्रकायके वातावयण भें जो कतमव्म सभजा जाता हो वही दस
ु ये प्रकायके जीवन भें औय वातावयण
भें न सभजा जाए, मे फात सभजना फहुत ही जरूयी है . [कभममोग सुत्रावरी प्रकयण-२, सूत्र -३]
कभम मोगसत्र
ु ावरी : हयएक अऩने अऩने स्थानऩे भहान है. - स्वाभी वववेकानॊदजी

४] नीततभत्ता समोंगाधीन है. अतनष्ट का साभना कयनेवारा भनुष्म गरत कय यहा है ऐसा नहीॊ, ऩयन्तु
स्जस यीतत से ववशेष प्रकाय के सॊमोग भें वह गुजयता है वह दे खते हुए, अशब
ु का साभना कयना मे फहुधा
उसका कतमव्म होता है. [कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-२, सत्र
ू -४]

५] अजन
ुम रड़नेकी ना कहे ता है तफ िीकृष्ण उसे दमबी औय नाभदम कहे ते है. मह फातसे हभ सबीको
सीखना है. कोई बी प्रसॊग ऩरयस्स्थतत भें एक छोय ऩे जाकय फेठे यहे ना नहीॊ िादहए. ज्मादा ही ववधेमात्भक
एवॊ तनषेधात्भक ए दोनों फाते एकसभान जैसी है. [कभममोग सुत्रावरी प्रकयण-२, सूत्र -५]

६] एक भनुष्म प्रततकाय नहीॊ कयता, तमोंकक वह तनफमर औय आरसी है . दस


ू या भनुष्म, मदद िाहे तो खुद
जोयदाय प्रहाय कय सकता है कपय बी प्रहाय नहीॊ कयता. तनफमरता के कायन जो प्रततकाय नहीॊ कयता वह
ऩाऩ कयता है, जफ कक दस
ू या भनष्ु म प्रततकाय कयता तो ऩाऩ का बागी होता. कभममोग का मह भध्मवती
वविाय है. [कभममोग सुत्रावरी प्रकयण-२, सूत्र -६]


कभम मोगसत्र
ु ावरी : हयएक अऩने अऩने स्थानऩे भहान है. - स्वाभी वववेकानॊदजी

७] प्रततकाय नहीॊ कयना मह उच्ितभ आदशम है , रेककन इसी आदशम प्राप्त हो इसीमरए प्रथभ तो अतनष्ट का
प्रततकाय कयना िादहए. प्रहाय कयने औय झेरनेसे उन्हें साभना कयनेकी शस्तत प्राप्त होती है , औय तबी ही
'अप्रततकाय' उसके मरए सद्गुण कहे रामेगा. [कभममोग सुत्रावरी प्रकयण-२, सूत्र -७]

८] जगतके द्वन्द भें कूद ऩड़ो औय उसी से प्राप्त जो कुछ बुगतने एवॊ सहन कयनेके फाद, थोड़े सभम भें
ही त्मागवस्ृ त्त आएगी औय शाॊतत मभरेगी. इसीमरए शस्तत मा अन्म जो कुछ प्राप्त कयनेकी इच्छा हो वह
ऩूणम कयो. जफ तक तुभ मह किमाशीरता भें से गुजयते नहीॊ तफ तक तुमहे शाॊतत, स्वस्थता मा स्वाऩमण की
स्स्थतत तक ऩहोंिना नाभुभककन है . [कभममोग सुत्रावरी प्रकयण-२, सूत्र -८]

९] हयएक भनष्ु म को अऩना आदशम तम कयना िादहए. औय उसे मसध्ध कयनेके मरए प्रमत्नशीर होना
िादहए. अऩने जीवनके उच्ि आदशम प्राप्त कयनेके प्रमासभें रगे हयएक भनुष्म को प्रोत्सादहत कयना औय वह
आदशम ज्मादा से ज्मादा सत्मके कयीफ रे जाता हो, मह दे खना हभाया कतमव्म है . [कभममोग सुत्रावरी प्रकयण-२,
सत्र
ू -९]
कभम मोगसत्र
ु ावरी : हयएक अऩने अऩने स्थानऩे भहान है. - स्वाभी वववेकानॊदजी

१०] धामभमक काममको जीवन अऩमण कये हुए ब्रह्भिायी जैसा ही गह ृ स्थ का जीवन उच्ि भाना है . „सॊसाय भें
यहे नेवारे गह
ृ स्थ के जीवनसे ज्मादा सॊसाय से ऩये हो गए ववयततका जीवन उच्ि है ‟ ऐसा कहे ना उचित नहीॊ.
सॊसायभें यहे ना औय इश्वयकी उऩासना कयना, मह काभ सॊसाय छोडके भुतत औय सयर जीवन जीनेकी अऩेऺा
भें ज्मादा कठीन है .[कभममोग सुत्रावरी प्रकयण-२, सूत्र -१०]

११] वेदों भें एक शदद फायफाय आता है : „अबी:‟ मातनकी तनबममता. ककसी बी प्रकायका डय ना यतखो. बम मे
तो तनफमरता का चिन्ह है . दतु नमा भश्कयी कये मा ततयस्काय, इसकी ऩयवा कीमे बफना भनुष्म को अऩने
कतमव्मका ऩारन कयना िादहए.[कभममोग सुत्रावरी प्रकयण-२, सूत्र -११]

१२] ईश्वयबस्तत के मरए सॊसायका त्माग कयनेवारे भनष्ु मो को ऐसा न भानना कक जो रोग सॊसाय भें यहे ते
हुए जगतके कल्माण हे तु काभ कय यहे है , वे ईश्वयबस्तत कय नहीॊ यहे . इसी ही प्रकाय फारकों औय ऩस्त्नके
मरए सॊसाय भें यहे नेवारे गह्
ृ स्थको बी सन्मासी को तनकमभा औय बटकता नहीॊ सभजना. सफ अऩने अऩने
स्थान ऩय भहान है . [कभममोग सुत्रावरी प्रकयण-२, सूत्र -१२]

१३] गह्
ृ स्थका जीवन बी बोगके मरए नहीॊ; अवऩतु सेवा औय फमरदानके मरए है . गह
ृ स्थी मा सन्मासी दोनों
अऩने अऩने स्थान ऩय भहान है , ऩयन्तु एक का जो धभम है वह दस
ू ये का नहीॊहै..[कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-२,
सत्र
ू -१३]
कभममोग सत्र
ु ावरी :- स्वाभी वववेकानॊदजी

मह छोटी ऩॉकेट साइज़ ४० ऩेज की ऩुस्स्तका है , स्जसभें स्वाभी वववेकानॊद जी के १०० सूत्र ददए है . व्मस्तत खेत
भें काभ कयती हो मा ‘पैतरी’ भें , स्कूर भें हो मा ‘डडस्ऩें सयी’ भें , फाज़ाय भें हो मा यणबूमभ भें मा तो दे वारम
भें हो; उसके जीवन के प्रत्मेक कदभ ऩय उऩमोग भें आ सके ऐसे मे सफ सूत्र है . हॊ भेशा हभाये साथ यख सके,
अभ्मास औय अध्ममन कय सके ऐसी मह ऩुस्स्तका है . ]
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िैप्टय-३ कभम का यहस्म - स्वाभी वववेकानॊदजी

१] ककसीका द्ु ख हॊ भेशाके मरए दयू कय सके तो ? तो वह सहाम उत्तभ सभजे. आध्मास्त्भक ऻान के द्वाया ही हभाये
द्ु ख हॊ भेशा के मरए दयू हो सकते है. इसीमरए जो सहाम से हभ आध्मास्त्भक यीततसे शस्ततशारी फन सके, वाही
सहाम सफसे िेष्ठ है . उससे कभ भात्रा की सहाम है फौचधक सहाम औय आखखय भें आती है शायीरयक सहाम।

२] प्रत्मेक कामम स्वाबाववक यीततसे शब


ु औय अशब
ु से मभचित होते है . रेककन शब
ु हो मा अशब
ु मे दोनों ही आत्भाके
फाॊधनेवारा है ; इसीमरए “जो बी कामम कये , उसके साथ आसतत ना होवे तो आत्भा ऩय उसका कोई फॊधन नहीॊ होता.”
गीताका मह एक भध्मवती वविाय है : सतत कामम कये रेककन अनासतत फने यहे .

३] भन एक सयोवय जैसा है ; भनभे उद्भववत प्रत्मेक वविाय तयॊ ग शाॊत होता है तफ बी ऩूया शभता नहीॊ, ऩयन्तु बववष्म
भें कपय उद्भववत होनेकी शतमता की तनशानी छोड़ जाता है. हये क ऺणभे हभ तमा है , इसकी भन ऩय मे सफ हुई असयो
का [effects का ] ही sum-total से तम होता है . उसे ही िारयत्र्म कहा गमा है .

प्रेयक कथा प्रसॊग : -

दो सॊन्मासी थे। एक वद्ध


ृ औय एक मव
ु ा। दोनों साथ यहते थे। एक ददन भहीनों फाद वे
अऩने भूर स्थान ऩय ऩहुॊि।े जो एक साधायण-सी झोऩड़ी थी। ककॊतु जफ दोनों झोऩड़ी
भें ऩहुॊिे तो दे खा कक वह छप्ऩय बी आॊधी औय हवा ने उड़ाकय न जाने कहाॊ ऩटक
ददमा।

मह दे ख मव
ु ा सॊन्मासी फड़फड़ाने रगा- अफ हभ प्रबु ऩय तमा ववश्वास कयें ? जो रोग
सदै व छर-पये फ भें रगे यहते हैं, उनके भकान सयु क्षऺत यहते हैं।

एक हभ हैं कक यात-ददन प्रबु के नाभ की भारा जऩते हैं औय उसने हभाया छप्ऩय ही
उड़ा ददमा। वद्ध
ृ सॊन्मासी ने कहा- दख
ु ी तमों हो यहे हो? छप्ऩय उड़ जाने ऩय बी
आधी झोऩड़ी ऩय तो छत है । बगवान को धन्मवाद दो कक उसने आधी झोऩड़ी को ढॊ क यखा
है । आॊधी इसे बी नष्ट कय सकती थी, ककॊतु बगवान ने हभाये बस्तत बाव के कायण ही
आधा बाग फिा मरमा। मुवा सॊन्मासी वद्ध
ृ सॊन्मासी की फात नहीॊ सभझ सका।

ृ सॊन्मासी तो रेटते ही तनिाभग्न हो गमा, ककॊतु मुवा सॊन्मासी को नीॊद


वद्ध
नहीॊ आई।सुफह हो गई औय वद्धृ सॊन्मासी जाग उठा। उसने प्रबु को नभस्काय कयते हुए
कहा- वाह प्रब!ु आज खर
ु े आकाश के नीिे सुखद नीॊद आई। काश मह छप्ऩय फहुत ऩहरे ही
उड़ गमा होता। मह सुनकय मुवा सॊन्मासी झुॊझराकय फोरा- एक तो उसने दख
ु ददमा, ऊऩय
से धन्मवाद! वद्ध
ृ सॊन्मासी ने हॊ सकय कहा- तुभ तनयाश हो गए, इसमरए यातबय दख
ु ी
यहे । भैं प्रसन्न ही यहा, इसमरए सुख की नीॊद सोमा।
कभम मोगसुत्रावरी : . िैप्टय-३ कभम का यहस्म - स्वाभी वववेकानॊदजी

४] शब
ु कभो की प्रफरता से भानव का िारयत्र्म शब
ु होता है; अशब
ु कभोकी प्रफरता से अशब
ु होता
है . अऩने प्रमोजन औय इस्न्िमो ऩय स्जसका अॊकुश होता है ऐसा भानवका चित्त िमरत नहीॊ होता.
कोई फात उसे अऩने सॊमभ भें से अऩनी इच्छा ववरुध्ध फाहय रानेभे सभथम नहीॊ फनती. इसी प्रकाय
ही िारयत्र्म गढ़ा जाता है औय तबी ही भानव सत्मको प्राप्त कयता है.

५] बगवान फध्
ु ध ने जो ध्मानसे ऩामा, ईसा भमसहने जो प्राथमना से ऩामा, उसीको भनष्ु म केवर कामम
से ही प्राप्त कये . फध्
ु ध कतमव्मशीर ऻानी थे, इशु बतत थे, रेककन दोनोने एक ही रक्ष्म मसध्ध ककमा
- आत्भा की भस्ु तत.

६] कामम कयो, रेककन काममकी मा वविायकी अऩने भन ऩे गाढ़ असय न होने दो.वविाय के तयॊ गे आमे
औय जाए; शयीय औय भन द्वाया प्रफर कामम होने दे , ऩय आत्भा ऩय उसीकी गाढ़ असय ना ऩड़ने दो.
इसको कैसे मसध्ध ककमा जाम ? इसी जगत भें तुभ अनजान हो, भस
ु ाकपय हो इसी यीततसे कामम कयो.
मह जगत अऩना असरी तनवास स्थान नहीॊ.

ॐ .
कभम मोगसत्र
ु ावरी : . िैप्टय-३ कभम का यहस्म - स्वाभी वववेकानॊदजी
७] हभ अऩनी प्रकृतत के साथ एकरूऩ फन गए है . प्रकृतत मातन हभ, ऐसा हभ भानने रगे है , औय उसके साथ आसतत
हो गए है. इसी ‘आसस्तत’ के कायन आत्भा ऩे उसकी गाढ़ असय होगी; मह सवम मशऺाका सायतत्त्व मह है कक तुभ
स्वाभीकी तयह कामम कयो, गुराभकी तयह नहीॊ. स्वतॊत्रतासे कामम कयो; प्रेभसे कामम कयो.

८] सच्िा अस्स्तत्व, सच्िा ऻान औय सच्िा प्रेभ, मे तीनो ऩयस्ऩय सनातन यीततसे जड़
ु े हुए है ; इसके ततन प्रकाय है
: सत, चित औय आनॊद. जफ मह सत साऩेऺ होता है , तफ हभ उसे जगत के नाभसे ऩहे िानते है . चित मे जगतकी
सवम वस्तओ
ु के फाये का ऻान होता है; औय आनॊद भानवह्रदम को ऻात ऐसा शध्
ु ध प्रेभका आधायरूऩ होता है .

९] जफ तुभ अऩने ऩततको, अऩनी ऩत्नीको, अऩनी सॊतततको, सभग्र जगतको, ववश्वको, द्ु खदामक ‘इफ़ेतट’ न हो
इसी प्रकायसे, इषामका उद्भव न हो इसी यीततसे, स्वाथमके वविाय न आए इसी प्रकायसे प्रेभ कयने भें सपर होगे, तफ
तुभ ‘अनासतत’ होनेकी बूमभका भें आए ऐसा सभजो.

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- : प्रेयक वविाय : -
सयु ज ववदा होनेको था - अॊध:काय की तमभस्त्रा सस्न्नकट थी |
इतने भें एक दटभदटभाता हुआ दीऩक आगे आमा औय सयु ज से फोर उठा - ' बगवन ! आऩ सहषम ऩधायें | भै
तनयॊ तय जरते यहने का व्रत नही तोडुग
ॊ ा जैसे आऩने िरनेका व्रत नही तोडा हैं | आऩके अबाव भें थोडा ही सही,
ऩय प्रकाश दे कय अॊध:काय को मभटाने का भै ऩयु ा-ऩयु ा प्रमास करुॊ गा | '
छोटे से दीऩक का आश्वासन सन ु कय समू म बगवान ने उसके साहस की सयाहना की व सहषम ववदा हुए |
प्रमत्न बरे ही छोटे हों ऩय प्रबू के कामम भें ऐसे ही बावनाशीरोंका थोडा-थोडा अॊश मभरकय मग
ु ान्तयकायी कामम
कय ददखाता हैं | //ॐ //
कभम मोगसत्र
ु ावरी : . िैप्टय-३ कभम का यहस्म - स्वाभी वववेकानॊदजी

१०] ऐसी अनासक्तत प्राप्त कयना मह सभग्र जीवनका कामय है . रेककन एकफाय अनासतत क्थथतत तक ऩहोंच
जानेसे प्रेभका रक्ष्म ससध्ध ककमा औय भत
ु त फने. उस सभम प्रकृतत के फॊधन से हभ छूट जाते है , औय तफ
हभ उस प्रकृतत को सही सभज सकते है ; कपय प्रकृतत हभें फॊधन कयने के सरए नई शॊख
ृ रा नहीॊ फनाती.

११] कोई ववसशष्ट व्मक्तत के सरए, शहय मा याज्म के सरए तुभ जो कुछ कयो तफ तुम्हाये सॊतानों के सरए
जैसी वक्ृ तत यखते हो वैसी वक्ृ तत धायण कयो. फदरे की कोई अऩेऺा ना यतखो. जहाॉ फदरेकी आशा है वहाॉ
ही आसक्तत है . फदरेकी आशा यखनेसे हभायी आध्माक्तभक प्रगतत रुकती है इतना ही नहीॊ, उसके ऩरयणाभ
थवरुऩ दुःु ख आता है .

१२] मदद तभ
ु ईश्वय को व्मक्तत के रूऩ भें भानते हो तो कभयको उसकी „उऩासना‟ रूऩ भानो. इसभें हभ अऩने
सवय कामयके पर ईश्वयको अऩयण कयते है औय ईश्वय की उऩासना इस यीततसे हभ कयते होनेसे, जो कामय
कये उसके फदरे भें भानवसभाज के ऩास से प्राप्त कयनेकी इच्छा यखनेका हभें कोई अधधकाय नहीॊ है .

१३] भतृ मक
ु ी शैमा ऩय हो तफ बी कोई प्रश्न मा फदरेकी आशा यतखे बफना हयककसीको सहामता कयने के
सरए ततऩय यहे ना मही है कभयमोग. आदशय सन्मासी होनेसे बी कदिन है आदशय गह
ृ थथ होना; सच्चे सन्मासी
के जीवन जैसा ही कतयव्मऩयामण गह
ृ थथ का जीवन बी कदिन है ; तवधचत ववशेष कदिन न हो तो बी उसके
जैसा कदिन तो है ही.
कभम मोगसत्र
ु ावरी : . िैप्टय-४ : कतमव्म मातन तमा ? - स्वाभी वववेकानॊदजी

१] कभयमोगके अभ्मास भें कतयव्म मातन तमा मे जानना सभजना चादहए. कतयव्म के ख्मार ववरग ववरग
है .जीवन की ववरग ववरग क्थथतत अनस
ु ाय, इततहास के ववरग ववरग मग
ु ानस
ु ाय, ववरग ववरग
प्रजानुसाय कतयव्म के ख्मारात ववववध यहे है.

२] जो कामय कयनेसे हभायी ईश्वय की ओय गतत हो तो वह कामय शब


ु , वही हभाया कतयव्म. जो कामय
कयनेसे हभायी तनम्न गतत हो वह कामय अशब ु औय वही अकतयव्म. क्जस सभाज भें हभाया जन्भ हुवा
है उस सभाज के आदशायनुरूऩ औय प्रवतृ तमो का ख्मार कयते हुए हभायी उध्वय गतत हो, हभें असबजात
फनाए ऐसे कामय कयना मही है हभाया कतयव्म.

३] ऩयन्तु दस
ु ये रोगों के कतयव्मों उनकी नजय से दे खनेका हभें प्रमास कयना चादहए. दस
ु ये के
यीती-रयवाजों को हभें अऩने यीती-रयवाज के अनुसाय दे खने का प्रमास नहीॊ कयना है. दतु नमा को हभें
अऩने तयाजू से तोरना नहीॊ है. भझ
ु े ही ववश्व के अनरू
ु ऩ होना है; „जगत भेये अनरू
ु ऩ हो‟ ऐसा सोचना
नहीॊ है.

- थवाभी वववेकानॊद
प्रेयक प्रसॊग

एक फाय जफ थवाभी वववेकानॊद जी अभेरयका प्रवास ऩय :थेएक भदहरा ने उनसे शादी कयने की इच्छा
जताई। जफ थवाभी वववेकानॊद ने उस भदहरा से मे ऩछ
ु ा कक “आऩने ऐसी काभना तमॉू की?”
उस भदहरा का उततय था कक "वो उनकी फुवि से फहुत भोदहत है औय उसे एक ऐसे ही फुविभान फच्चे
की काभना है ।" उसने थवाभी से मे प्रश्न ककमा कक "तमा वो उससे शादी कय सकते है औय उसे अऩने
जैसा एक फच्चा दे सकते हैं ?"
उन्होंने भदहरा से कहा कक चॉ कू क वो ससपय उनकी फुवि ऩय भोदहत हैं इससरए कोई सभथमा नहीॊ है ।
उन्होंने कहा.. "भैं आऩकी इच्छा को सभझता हूॉ। ऩय शादी कयना औय इस दतु नमा भें एक फच्चा राना
औय कपय जानना कक वो फवु िभान है कक नहीॊ
, इसभें फहुत सभम रगेगा, इसके अरावा ऐसा हो इसकी
तनक्श्चतता बी नहीॊ है ।
इसके फजाम, आऩकी इच्छा को तुयॊत ऩूया कयने हे तु भैं आऩको एक सुझाव दे सकता हूॉ।
आऩ भझ ु े अऩने फच्चे के रूऩ भें थवीकाय कय रें । इस प्रकाय आऩ भेयी भाॉ फन जाएॉगी औय आऩकी नज़य
भें भैं फुविभान तो हूॉ ही.. भेये जैसा फुविभान फच्चा ऩाने की आऩकी इच्छा बी ऩूणय हो जाएगी."

ॐ .
कभम मोगसत्र
ु ावरी : . िैप्टय-४ : कतमव्म मातन तमा ? - स्वाभी वववेकानॊदजी

४] “कोई भनुष्म तनम्न सभजा गमा काभ [कभय] कयनेसे तनम्न नहीॊ होता. केवर काभ उऩयसे भनुष्म के
फाये भें कोई असबप्राम फना रेना नहीॊ चादहए; ऩयन्तु जो यीततसे औय तनष्िासे वह अऩना काभ मा कतयव्म
कयता है उसके आधाय से भनष्ु म का भल
ू माॊकन होना चादहए.

५] कतयव्म-कभय के ऩीछे जफ कोई थवाथी हे तु नहीॊ होता तबी ही वह भहान होता है. जफ कोई कामय केवर
कतयव्म की बावना से होता है तफ वह कामय उऩासना फन जाता है. औय जफ वह कामय नीततके मा प्रेभके
थवरुऩ भें होता है तफ तो वह उच्चतय बूसभका का द्मोतक फन जाता है.

६] कतयव्म-कभय कबी-कबी ही कोभर होता है. कतयव्म कभय रूऩी करऩज


ु ो भें [„भशीन‟ भें ] थनेह-प्रेभ का
तेर डारनेसे वह सयरता से काभ कयता है; वनाय सतत सॊघषय होता है. इसीसरए जगत भें सफ से उच्च
थथान भाता का है. भाता के प्रेभसे मदद कोई उच्चतय प्रेभ हो तो वह होता है ऩयभातभा के प्रतत का प्रेभ;
दस
ु ये सबी प्रेभ तनम्न कऺा के है.”
-थवाभी वववेकानॊद
- : कभममोग सुत्रावरी :- स्वाभी वववेकानॊदजी

िैप्टय-४ : कतमव्म मातन तमा ?

७] हभें सभरा जो प्राप्त कतयव्म कभय हो, उसे कयनेसे ही हभाया उतकषय होता है . औय
उततयोततय शक्तत प्राप्त कयते कयते उच्च, उच्चततय बूसभका ऩय आरूढ़ हो सकते है .
भहाबायत भें आती व्माध की फात इस फाये भें सबीको ख्मार भें यखनी चादहए. जीवनकी
कोई बी क्थथतत भें परासतत हुए बफना, कतयव्म कभय अच्छी तयह से अदा कयनेसे
आतभाकी ऩण ू त
य ा- साऺातकाय ऩा सकते है .

८] साधन औय साध्म को एक कयो. तभ


ु जो एक कामय कयते हो, तफ उससे अततरयतत
[ववरग] ऐसा कोई ववचाय ना कयो. जो कामय कयो उसे उऩासनाकी बाॊतत कयो, औय उसी
कार दयसभमान तुम्हाये सभग्र जीवनको उसी भें तन्भम यतखो.

९] फडफडानेवारे को कोई काभ अच्छा नहीॊ रगता; कोई फातसे उसे सॊतोष नहीॊ होता,
औय उसका तो सभग्र जीवन तनष्पर होनेको ही है . हभ अऩना कामय कयते यहे , औय ऐसे
कयते सभम अऩना जो कतयव्म कभय हो वह ऩण
ू य कयते चरे; तफ हभें सच्चा प्रकाश प्राप्त
होगा.


िैप्टय-5:- हभ खद
ु को ही भदद कयते है, जगतको नहीॊ -स्वाभी वववेकानॊदजी

१] आचाय बी कभय है ; हये क धभय भें आचायकी आवश्मकता है . तमों कक जफ तक हभ


आध्माक्तभक ऩथभें फहु आगे नहीॊ फढ़ते, तफ तक हभ अभूतय आध्माक्तभक ववचायों को
सभज नहीॊ ऩाते. इसीसरए हभाये साभने भूतय थवरुऩ भें यतखी गमी फातों को नकाय नहीॊ
कय सकते.

२] जगत को सहाम कयने का हभें तनयॊ तय प्रमतन कयना चादहए, औय उसका हे तु उच्च
होना चादहए; ऩयन्तु मदद हभ गॊबीयताऩव
ू क
य सोचें गे तो जगतको हभायी सहामताकी
ककॊधचतभात्र बी आवश्मकता नहीॊ है . आऩ मा भैं जाकय भदद कयें इसीसरए जगत का
सजयन नहीॊ हुवा है .

३] जगत हभायी सहामता की अऩेऺा यखता है ऐसा कहे ने भें इश्वयकी तनॊदा नहीॊ है ?
जगत भें फहुत ही दुःु ख है इसको हभ नकाय नहीॊ सकते; इसीसरए दस ु ये की सहामता के
सरए आगे आना मे हभाया श्रेष्ि कतयव्म है . रम्फे सभमके फाद, दस
ू ये को सहाम कयके हभ
खद
ु को ही सहाम कय यहे है , ऐसा अवश्म रगेगा.
- स्वाभी वववेकानॊदजी
िैप्टय-5:- हभ खद
ु को ही भदद कयते है, जगतको नहीॊ ~ स्वाभी वववेकानॊदजी

४] सही भें अक्नन अच्छा नहीॊ एवॊ फुया बी नहीॊ.जैसा हभ उसका उऩमोग कयते है उस
प्रकाय अच्छा मा फयु ा की सोच होती है . उसी प्रकायसे इस जगत के फाये भें है . जगत
सम्ऩूणय है . हभाये बफना जगत अच्छी यीततसे चरेगा इसकी धयऩत यतखे, औय उसको
भदद कयनेकी इच्छा से अऩना सशय को न दख
ु ामे.

५] तुम्हायी दमा एवॊ ऩयोऩकाय की वक्ृ तत को जगत भें तुभ उऩमोग भें रा सकते हो
इसीसरए तुभ कृतऻ फनो; औय इस यीततसे तुभ शुध्ध औय सम्ऩूणय फनो. सबी शुब कामय
हभें शध्
ु ध तथा सम्ऩण
ू य फन सके इसीसरए सहामबत
ु होते है .

६] हभने जगत भें अच्छा ककमा है मा अच्छा कय सकते है , अथवा दस


ु ये को सहाम की
है ऐसा ववचाय कयना ए सदॊ तय गरत है . ऐसे ववचाय भख
ू त
य ाऩण
ू य है . औय भख
ु ायताबये सबी
ववचायो से दुःु ख आता है , अनासतत होकय काभ कयनेसे कोई दुःु ख मा वेदना होती नहीॊ.
[‘कभयमोग सुत्रावरी’ भें से]
िैप्टय-5:- हभ खद
ु को ही भदद कयते है, जगतको नहीॊ -~स्वाभी वववेकानॊदजी

[७] मह जगत कुततेकी ऩछ


ू जैसा टे ड़ा है, औय कबी बी सीधा-सयर होनेवारा नहीॊ ऐसा जो जानता
है उसभें झननू यहे गा ही नहीॊ. मदद जगतभें झनन ू न हो तो अबी है उससे फहुत ही ज्मादा प्रगतत
हुई होती. भानवजाततकी प्रगतत झनन ू से होती है ऐसा भानना बर
ू बया ववचाय है .[कभयमोग सत्र
ु ावरी
प्रकयण-5, सत्र
ू -7]

[८] क्थथतप्रऻ, शाॊत, ववचायशीर, सद्भावी औय प्रेभमत


ु त भनष्ु मों ही जगतभें अच्छा कामय कय सकते है.
औय इसी यीततभें उनका बी कलमाण होता है. झनन
ू ी, भख
ु य औय सद्भावहीन भनष्ु मों कबी जगतको
सयर कय नहीॊ सकेगा, ऐसे भनष्ु मो थवमॊ बी ऩववत्र तथा ऩरयऩण
ू य नहीॊ फन सकेगे.[कभयमोग सत्र
ु ावरी
प्रकयण-5, सत्र
ू -8]
[९] जगतके हभ सबी ऋणी है. जगतको सहाम कयके हभ थवमॊ को ही सहाम कयते है. इस ववश्वभें
ईश्वय है. वह सतत यीततसे कामययत है. हभ ककसीको बी धधतकाये नहीॊ. इस जगतभें हभेशाॊ ही शब

तथा अशब
ु का सभश्रण यहे गा. [कभयमोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-5, सत्र
ू -9]

[१०] जगत फड़ी नैततक व्मामाभ शारा है.महाॉ व्मामाभ शाराभें हभ सबीको व्मामाभ कयनेका है,
क्जससे आध्माक्तभकता भें हभ उततयोततय सफर फन सके.
[कभममोग सुत्रावरी प्रकयण-5, सूत्र-10]
गीत : स्वाभी ऩज्
ू म वववेकानन्द

स्जनके ओजस्वी विनों से, गूॊज उठा था ववश्व गगन


वही प्रेयणा ऩुॊज हभाये , स्वाभी ऩूज्म वववेकानन्द //ध्रु \\

स्जनके भाथे गुरुकृऩा थी, दै ववक गुण आरोक बया


अदबत
ु प्रऻा प्रकटी जग भें , धन्म धन्म मह ऩण्
ु म धया
सत्म सनातन ऩयभ ऻान का, जो कयते अमबनव चिन्तन
वही प्रेयणा ऩॊज
ु हभाये , स्वाभी ऩज्
ू म. वववेकानन्द // १ \\

स्जनका पौरादी बज
ु फर था, हय सॊकट भें सदा अटर
भमामददत, तेजस्वी जीवन, सजग सभवऩमत था हय ऩर
हो तनबमम जो कये गजमना, स्जनके अन्तस ् ददव्म अगन
वही प्रेयणा ऩॊज
ु हभाये , स्वाभी ऩज्
ू म. वववेकानन्द // २\\

स्जनके योभ योभ भें करुणा, सभयस जनजीवन की िाह


नष्ट कये सये बेदों को, सेवाव्रत ही सच्िी याह
दरयि ही नायामण स्जनका, हय धड़कन भें अऩनाऩन
वही प्रेयणा ऩुॊज हभाये , स्वाभी ऩूज्म. वववेकानन्द //३\\

स्जनके भन था स्वप्न भहान, हो बायत का ऩुनरुथान


जीवनदीऩ जराकय ऩामें, गौयवभम-वैबव समभान
जगती भें सफ सुखद-सुभॊगर, फहे सुगस्न्धत भुतत ऩवन
वही प्रेयणा ऩुॊज हभाये , स्वाभी ऩूज्म. वववेकानन्द //४\\

िैप्टय-6:- अनासस्तत मातन समऩण


ू म स्वाथमत्माग ~स्वाभी वववेकानॊदजी

१] हभाये प्रतमेक कामय प्रतमाघात थवरूऩे हभायी ओय वाऩस रोटते है. उसी प्रकाय हभाये कामय दस
ू ये को बी
थऩशय कयते है औय दस
ू योंके कामय हभको थऩशय कयते है, असय कयते है. एकके भनकी असय अन्म भन
ऩय होती है. [कभयमोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-6 सत्र
ू -1]

२] अशब
ु कामय कयके हभ ख़ुदको तथा दस
ू ये को हातन कयते है औय शब
ु कामयसे हभ हभाया खुदका एवॊ
अन्मका शब
ु कयते है. भानवीभें यहे अन्म फरोंकी तयह इस शब
ु औय अशब
ु के फरों फाहयसे बी शक्तत
प्राप्त कयते है. [कभयमोग सुत्रावरी प्रकयण-6 सूत्र-2]

३] कभयमोग अनुसाय भनुष्मका ककमा हुवा कभय, पर ददए बफना नष्ट नहीॊ होता. प्रकृततकी कोई सतता
कामयके परको योक नहीॊ सकते. कायणभें से कामयका उद्भव होता है, कोई उसे योक नहीॊ सकता. [कभयमोग
सुत्रावरी प्रकयण-6 सूत्र-3]
िैप्टय-6:- अनासस्तत मातन समऩण
ू म स्वाथमत्माग ~स्वाभी वववेकानॊदजी

४] कभयमोगका एक फहुत ही सक्ष् ू भ औय गॊबीय ससध्धाॊत ऐसा है : हभाये सबी कामो


ऩयथऩय गाढ़ यीततसे जुड़ें हुए है . कुछ कामय केवर शुब औय कुछ कामय अशुब है ऐसी कोई
बेदये खा हभ कय नहीॊ सकते. ऐसा कोई कामय नहीॊ जो एक साथभें शुब औय अशुब पर
दे ता न हों ! [कभयमोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-6 सत्र
ू -4]

५] शुब प्राप्त होता है उसी सभम अशुब बी आता है . सम्ऩूणय मातन तमा ? „सम्ऩूणय
जीवन‟ मह ववयोधाबासी शब्द है . हभ ख़द
ु औय फाह्म वथतु-ऩरयक्थथततमों के बफचका
सतत सॊघषय मही है जीवन. प्रतमेक ऺणे फाह्म प्रकृततके साथ हभाया मुध्ध चरता यहे ता
है . [कभयमोग सुत्रावरी प्रकयण-6 सूत्र-5]

६] जीवन कोई सीधी सरटीभें फहे नेवारा प्रवाह नहीॊ, ऩयन्तु वह अनेक प्रकायका
असयमुतत तततव है . हभाये बीतयी तततव एवॊ फाह्म जगतके बफच होते यहे ता जो सॊघषय
है उसे हभ जीवन कहे ते है . इस फातोंसे थऩष्ट होगा कक जफ मह सॊघषय रुक जाएगा तफ
जीवनका अन्त बी आ जामेगा. [कभयमोग सुत्रावरी प्रकयण-6 सूत्र-6]
ॐ .
कभममोग सुत्रावरी प्रकयण-6 :- अनासस्तत मातन समऩण
ू म स्वाथमत्माग ~स्वाभी वववेकानॊदजी

७] फषो तक सॊघषय कयनेके फाद भनष्ु मको भारभ


ू होता है कक सच्चा सख
ु थवाथयवक्ृ ततके तमागभें यहा
है . औय हभें खुदके अरावा अन्म औयकोई सख
ु ी नहीॊ फना सकता. उच्चाततउच्च आदशय सनातन औय
सम्ऩण
ू य आतभववरोऩनका है . कभयमोग उस आदशयकी ओय रे जाता है . [कभयमोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-6
सत्र
ू -7]

८] कोई बी थथानसे कुछ बी रे रेना औय उसे एक ही भध्म-केन्रभें यखते हुए अऩने सख ु के सरए
एकत्र कयते यहे ना मह भनष्ु मकी थवबावप्राप्त वक्ृ तत है. जफ मह वक्ृ तत छूटने रगे, जफ इससे तनवक्ृ तत
होने रगे, मा तो केवर „अऩना ही ववचाय‟ [थवाथयकेक्न्रतता] दयू होने रगे तफ नीतत औय धभयकी
शरु
ु आत होती है. [कभयमोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-6 सत्र
ू -8]

९] भनष्ु म जफ थवाथयतमागकी सम्ऩण


ू य क्थथतत तक ऩहोंचता है तफ वह कभयमोगकी सम्ऩण
ू त
य ाको प्राप्त
कय रेता है. वह भनष्ु म किरसि
ु ी ऩढ़ा ना हो, मा ईश्वयभें भानता ना हो, ऩयन्तु शब
ु कामयकी शक्ततसे
मदद वह अन्म रोगोंके सरए अऩने जीवन का सवयथव आहूत कयनेको ततऩयतावारा हो, तो जो क्थथतत
ऩय धासभयक ऩरु
ु ष प्राथयना एवॊ शाथत्रऻानसे ऩहोंचता है, वह क्थथतत ऩय वह ऩहोंच गमा है ऐसा भान
रेना. [कभयमोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-6 सत्र
ू -9]
िैप्टय-6:- अनासस्तत मातन समऩण
ू म स्वाथमत्माग ~स्वाभी वववेकानॊदजी

१०] हभ जफ शब
ु कयते है तफ हभ थोडासा अशब
ु बी कयते है, औय अशब
ु कयते सभम थोडा शब

बी कयते है. तो कपय जगतभें हभ ककस यीततसे कामय कये ? इस प्रश्नका सभाधान गीताभें सभरता
है . [कभयमोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-6 सत्र
ू -१०]

११] गीताभें कहा हुआ ससध्धाॊत अनासक्ततका है . जीवनभें अऩना कामय कयते सभम ककसीके प्रतत
आसक्तत न यखना इसीको ‘अनासक्तत’ कहा है. मदद कोई कामय तुभ तुम्हाये अऩने सरए [थवाथय,
आसक्ततसे] ना कयो तो उसकी असय तुभ ऩय नहीॊ होती. [कभयमोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-6 सत्र
ू -११]

१२] ‘भैं नहीॊ होता तो मे सफका तमा होता’ -ऐसे ववचायभें तनफयरता यही है. इस भान्मता हभायी सवय
आसक्ततकी जनेता है . औय इस आसक्ततभें से सवय ऩीड़ा ऩैदा होती है. प्रकृततका जो क्रभ है वह
तम्
ु हाये मा भेये ना होनेसे रुकनेवारा नहीॊ है . जीवनभें मह फड़ा फोधऩाि है . [कभयमोग सत्र
ु ावरी
प्रकयण-6 सत्र
ू -१२]
-: प्रेयक प्रसॊग :- याबत्र कफ ऩयू ी होगी ?

एकफाय एक गुरुने अऩने मशष्मोंको ऩछ


ू ा ; "फताओ कक याबत्र ऩयू ी हुई औय
ददनकी शरुु आत हो गई, ऐसा तुभ कफ कहोंगे ?"
एक ने कहा ; "जफ दयू ददखाई दे नेवारे प्राणीको हभ ऩहे िान सके कक
वह गौ है मा घोड़ा."
गरु
ु जीने कहा ; "नहीॊ."
दस
ु ये ने कहा कक "दयू से हभ दे खकय जफ फता सके कक
वह नीभ का ऩेड़ है मा आभ का."
"गरत," गुरूजी ने फतामा.
तफ मशष्मोने ऩछ
ू ा "तो कृऩमा आऩ ही फता दीस्जए."
गुरुजीने कहा ; "जफ तुभ कोई आदभीके िहे येको दे खकय उसे तुमहाया बाई दे खते हो;
जफ कोई भदहराको दे खकय उसे तुमहायी फहे न सभजते हो तफ.
मदद ऐसा नहीॊ है तो सम
ू म भाथे ऩय हो तफ बी याबत्र ही है."

ॐ.
कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-6 -स्वाभी वववेकानॊदजी

13] तुभ जगतको जो कुछ दे ते हो, वह कोई फड़ी वथतु नहीॊ. जफ तुभ अनासक्ततकी बावनावारे फन
जाओगे, तफ तुम्हाये सरए कुछ बी शब
ु मा अशब
ु नहीॊ यहे गा. इस दोनोंके बफच बेद ऩैदा कयनेवारी
फात थवाथयवक्ृ तत ही है. [कभयमोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-6 सत्र
ू -13]

14] भनष्ु म थवमॊ भख


ू त
य ासे अऩनी थवतॊत्रता खो दे ता है. जो भनष्ु म थवमॊको सॊमसभत यखना ससख
रेता है, उस ऩे फाहयी कोई वथतक
ु ी असय नहीॊ होती. उसके सरए कोई गर
ु ाभी जैसी फात नहीॊ यहे ती.
उसका भन भत ु त हुआ है. ऐसा भनष्ु म जगतभें सही तयीकेसे जीवन क्जता है. [कभयमोग सत्र
ु ावरी
प्रकयण-6 सत्र
ू -१४]

15] 'थवमॊ' के रोऩ होते ही मह सभथत जगत, जो ऩहे रे अशबु से बया हुआ हभें रगता था, वही
थवगयके सभान ऩयभ सख ु से बया हुआ रगेगा. उसका वातावयण ही ऩयभ सख ु मत
ु त रगेगा. वहाॉ का
ददखता प्रतमेक भानवी चहे या प्रसन्नतावारा होगा. कभयमोगका मह रक्ष्म औय हे तु है; औय
व्मावहारयक जीवनभें मही उसकी ऩण
ू त
य ा है. [कभयमोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-6 सत्र
ू -१५]

16] तभ
ु तन:थवाथय हो मा नहीॊ, मही भहततवऩण
ू य प्रश्न है. मदद तभ
ु तन:थवाथी होगे तो एकबी
धभयग्रन्थ ऩढ़े बफना मा एकबी 'चचय' मा भॊददयभें गए बफना ही ऩण
ू य फनोगे. हभाये सबी प्रकायके
मोगका हे तु भनष्ु मको दस
ु ये भनष्ु मकी सहामता सरए बफना ही ऩण
ू य फनाना है.
[कभयमोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-6 सत्र
ू -16]
प्रेयक

“आज भैं तुमहें बी अऩने जीवन का भर


ू भॊत्र फताता हूॉ,
वह मह है कक - प्रमत्न कयते यहो,
जफ तम
ु हें अऩने िायों ओय अन्धकाय ही अन्धकाय ददखता हो,
तफ बी भैं कहता हूॉ कक प्रमत्न कयते यहो.
ककसी बी ऩरयस्स्थतत भें तुभ हायो भत, फस प्रमत्न कयते यहो.
तुमहें तुमहाया रक्ष्म जरूय मभरेगा, इसभें जया बी सॊदेह नहीॊ.
ऩीछे भत दे खो, आगे दे खो, अनॊत ऊजाम, अनॊत उत्साह, अनॊत साहस औय
अनॊत धैमम से सबी भहान कामम ककमे जा सकते हैं.”
~ स्वाभी वववेकानन्द
कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-7 भस्ु तत -स्वाभी वववेकानन्द

१] हभ जो कुछ जानते है वह, मा हभ जो कुछ जान सकते है वह, कामयकायणको आधधन ही यहे गा.
औय जो कुछ कामयकायण को आधधन है वह थवतन्त्र नहीॊ यह सकता. अन्म तततवो उसीके साथ साथ
काभ कयते होते है. [कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-7 सत्र
ू -1]

२] क्जस तततवोभें से इच्छाका उद्भव होता है, मातन कक दे श-कार-तनसभतत रूऩी ऩात्रभें ढरकय जो
भानव इच्छा भें ऩरयणभन हो वह भर
ू तततव ही थवाधीन है. औय इस इच्छा, जफ दे श-कार-तनसभतत
रूऩी ऩात्रसे ववरग हो जाएगी तफ वह कपय थवाधीन होगी. [कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-7 सत्र
ू -2]

३] भक्ु तत ऩानेके सरए हभें इस सॊसायकी भमायदासे ऩये होना है. जफतक जीवनकी तष्ृ णा न छूटे , इस
ऺणणक जीवनके अक्थतततवकी गाढ़ आसक्तत ना छूटे , तफतक उस ऩाय यही अनॊत भक्ु ततकी झाॉखी
होनेकी कोई आशा नहीॊ. [कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-7 सत्र
ू -3]
कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-7 भस्ु तत -स्वाभी वववेकानन्द
४] अऩनी इक्न्रमोंके मा अऩने भनके इस छोटे ववश्वके प्रतत जो आसक्तत हो उसे तमज दे नेसे हभ
शीघ्र भत
ु त होते है . फॊधनसे छुटनेका एकभेव भागय तनमभकी भमायदासे ऩाय जाना, कामयकायण से ऩये
हो जाना है . ऩयन्तु इस ववश्वके प्रततका याग तमज दे ना अतत दष्ु कय है . [कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-7
सत्र
ू -4]

५] हभाये ग्रॊथोभें ऐसा कयनेके सरए दो भागय फताए गए है. एक ‘नेतत नेतत’ [मातन कक मह नहीॊ, मह
नहीॊ] के नाभसे प्रचसरत है . दस
ू या भागय ‘इतत’ [मह है ] नाभ से प्रचसरत है . प्रथभ भागय तनषेधातभक
है , जफकक दस
ू या भागय ववधेमातभक है . तनषेधातभक भागय अतत दष्ु कय है . [कभममोग सत्र
ु ावरी
प्रकयण-7 सत्र
ू -5]

६] अनासक्तत प्राप्त कयनेका प्रथभ भागय फवु िगम्म है, जफकक दस


ू या भागय अनब
ु वगम्म है .प्रथभ
ऻानमोगका भागय है औय सवय कभयका तमाग मह उसका रऺण है . दस
ू या कभयमोगका भागय है औय
सतत कामय कयना मह उसका रऺण है . [कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-7 सत्र
ू -6]
कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-7 भस्ु तत -स्वाभी वववेकानन्द

७] अणस
ु े रेकय उच्चतभ व्मक्तत तकके सबी एक रक्ष्म के सरए कामययत है. भनकी, दे हकी औय
आतभाकी थवाधीनता के सरए कामय कय यहे है . सवय वथतुए हॊ भेशा थवाधीनता के सरए प्रमास कय यही
है , फॊधनसे भत
ु त होनेके सरए भचे हुए है . [कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-7 सत्र
ू -7]

८] कभय कयना अतनवामय है ; ऩयन्तु वह उच्च हे तुके सरए कयना चादहए. मह जगत थोड़े सभमका ही
है . इस जगत ऐसा कुछ है क्जसभें से हभें गुजयना है . औय भक्ु तत महाॉ नहीॊ, उसी ऩाय ही प्राप्त
होनेवारी है. मह सफ कभयमोग से साध्म होनेवारा है . [कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-7 सत्र
ू -8]

९] कभयमोग तमा फताता है? तो कक ककसीसे बी तम्


ु हायी जातको एकरूऩ ना कयो. जो कामय कयते है
उसके साथ खुदको एकरूऩ कयनेसे दुःु ख उतऩन्न होता है. रेककन जो बी कामय कये उसके साथ अऩने
को एकरूऩ न कयनेसे हभें कोई दुःु ख छूता ही नहीॊ. [कभममोग सत्र
ु ावरी प्रकयण-7 सत्र
ू -9]
-प्रेयक :-

मशकागोंभें आमोस्जत एक व्माख्मान के सभम ककसीने स्वाभीजी से ऩछ


ू ा :
“स्वाभीजी, हभें भनसे हॊ भेशा तमा माद यखना िादहए ? जीवनभें तमा माद यखना िादहए ?”
तफ स्वाभीजीने उत्तयभें कहा ; “भत्ृ मक
ु ो माद यखना िादहए. जफ तभ
ु भत्ृ मक
ु े फाये भें सतत सोिोगे,
तफ तभ
ु अनासस्ततसे जी सकोगे. तभ
ु फयु े मा ऩाऩी कभोसे फि ऩाओॊग.े
तुभ कबी अहॊ कायी औय घभॊडी नहीॊ फनोगे.
तुभ कबी बी स्वाथम-केस्न्ित नहीॊ यहोगे.
तमों कक भत्ृ मु तथा ऺणबॊगुयताके सातत्मबये वविाय तुमहे जागत
ृ तथा ख़फयदाय यखें ग.े
इसीमरए भत्ृ मक
ु ी माद मह फहुत ही भॊगरकायी फात है.
प्रेयक :-- : तमा आऩ ककसीको घण
ृ ा कयते हो ? : --

एकददन एक सशक्षऺका ने अऩनी „तरास‟ भें ववद्माधथयमो को एक ववसशष्ि ऩाि ऩढ़ाने का तम ककमा. सशक्षऺका ने कहा
की “कर हये क को अऩने साथ एक प्राक्थटक की थेरी भें कुछ आरू रेकय थकूर आना है .”

दस
ु ये ददन सबी ववद्माथी टीचय ने कहा था उसी प्रकाय ही आरू रेकय थकूर आमे. सफ के भन भें कुतूहर था कक
‘आज टीचय आरू से तमा कयाएॉगे?’
सशक्षऺका ने सबी ववद्माथी आरू रेकय आमे दे खा. औय कहा कक “तम्
ु हे जो जो व्मक्तत नाऩसॊद हो, क्जसे तभ
ु घण
ृ ा
कयते हो ऐसी व्मक्तत के नाभ अऩने ऩास जो आरू है , उस ऩे सरतखो.”

ककसी ने ३ ऩे नाभ सरखा, ककसीने ४-५ आरू ऩे नाभ सरखा; तो कोई ववद्माथी ने ६ आरू ऩे नाभ सरख ददमा.
टीचय ने कहा कक “अऩने आरू क्जस ऩे नाभ सरखे है उसे एक थेरी भें फॊध कयो
. औय सात ददन तक आऩको आरुवारी
थेरी अऩने साथ साथ यखना है. तुभ जहाॉ बी जाओ उसे साथ रेकय जाओ. खाना खाते सभम, अऩने फेड ऩय सोते
सभम मा टॉमरेट मा फाथरूभ भें जाते सभम उसे साथ साथ यखना है .”
एक के फाद एक ददन ऩसाय होने रगे, ४ ददन के फाद सबी फच्चे सड़ते आरू भें से आ यही फदफू की परयमाद कयने
रगे. औय जो ववद्माथी के ऩास ६ आरुवारी थेरी थी उसको ज्मादा वजन ढ़ोना ऩड़ता .थाएक सप्ताह के फाद खेर
ऩूया कय ददमा गमा.
टीचय ने ऩूछा कक “एक सप्ताह के सरए आरू साथ साथ रेकय कपयने से तुभ रोगों को कैसा रगा ?”
फच्चे आक्रोश कय फोर उिे कक “एक सप्ताह तक हभें उसका फोज ढ़ोना ऩड़ा, उसकी सडन के कायन फदफू आने रगी
उसे सहे नी ऩड़ी तथा हय जगह उसे साथ साथ यखनेसे बी फहुत ददतकत हुमी. इतमादद इतमादद.”

तफ सशक्षऺका ने इस खेर के ऩीछे का उद्देश्म फतामा : “ऐसी ही क्थथतत होती है जफ हभ ककसीके प्रतत द्वेष-घण
ृ ा के
बाव अऩने भन ह्रदम भें यखते है. द्वेष-घण
ृ ा के कायन हभाया भन अशाॊत औय गन्दा यहे ता है . ऐसे भन से काभ कयना
मा कोई तनणयम कयना कतई अच्छा नहीॊ. सड़े हुए आरू की फदफू तुभ एक सप्ताह बी सह नहीॊ सके तो क्जॊदगीबय
ककसीके प्रतत द्वेष-घण
ृ ा कयते हुए गॊदे भन से अच्छा जीवन कैसे जी सकतें हो ???”

वविाय साय :- ककसीके प्रतत द्वेष औय घण


ृ ा है तो उसे जलदीसे तमाग दो.
तमूॉ हभ ऩाऩ का फोज उिाते हुए क्जॊदगी क्जए ? दस
ु ये की बूर को बूर जाओ,
उन्हें ऺभा कय दो. सबी को प्रेभ कयो तथा सबी से प्रेभ ऩाओ.
Not only wealth but also intelligence

१] सख
ु -सवु वधा की साधन-साभग्री फढ़ाकय सॊसाय भें सख
ु -शास्न्त औय प्रगतत होने की फात
सोिी जा यही है औय उसी के मरए सफ कुछ ककमा जा यहा है ऩय साथ ही हभें मह बी सोि
रेना िादहए कक सभवृ द्ध तबी उऩमोगी हो सकती है जफ उसके साथ-साथ बावनात्भक स्तय बी
ऊॉिा उठता िरे, मदद बावनाएॉ तनकृष्ट स्तय की यहें तो फढ़ी हुई समऩस्त्त उरटी ववऩस्त्त का
रूऩ धायण कय रेती है

२] दफ
ु वुम द्धग्रस्त भनष्ु म अचधक धन ऩाकय उसका उऩमोग अऩने दोष-दग
ु ण
ुम फढ़ाने भें ही कयते
हैं । अन्न का दमु बमऺ ऩड़ जाने ऩय रोग ऩत्ते औय छारें खाकय जीववत यह रेते हैं ऩय बावनाओॊ
का दमु बमऺ ऩडऩे ऩय महॉ ॉँ नायकीम व्मथा-वेदनाओॊ के अततरयतत औय कुछ शेष नहीॊ यहता
।समऩन्न रोगों का जीवन तनधमनों की अऩेऺा करवु षत होता है, उसके ववऩयीत प्रािीनकार भें
ऋवषमों ने अऩने जीवन का उदाहयण प्रस्तुत कयके मह मसद्ध ककमा था कक गयीफी की जीवन
व्मवस्था भें बी उत्कृष्ट जीवन जीना सॊबव हो सकता है । महाॉ समऩन्नता एवॊ सभवृ द्ध का
ववयोध नहीॊ ककमा जा यहा है, हभाया प्रमोजन केवर इतना ही है बावना स्तय ऊॉिा उठने के
साथ-साथ सभवृ द्ध फढ़े गी तो उसका सदऩ
ु मोग होगा औय तबी उससे व्मस्तत एवॊ सभाज की
सख
ु -शास्न्त फढ़े गी ।

३] बावना स्तय की उऩेऺा कयके मदद समऩस्त्त ऩय ही जोय ददमा जाता यहा तो दग
ु ण
ुम ी रोग
उस फढ़ोत्तयी का उऩमोग ववनाश के मरए ही कयें गे । फन्दय के हाथ भें गई हुई तरवाय ककसी
का तमा दहत साधन कय सकेगी ? -ऩॊ. िीयाभ शभाम आिामम
- : स्वाभी वववेकानॊदजी का शस्तत प्रेयक वविाय : -

"तम्
ु हे बी ऋवष-भतु न फनना होगा, कृतकामय होनेका मही गढ़
ू यहथम है ।
न्मूनाधधक सफ को ही ऋवष होना होगा। ऋवष का तमा अथय है ?
ऋवष का अथय है ऩववत्र आतभा।
ऩहरे ऩववत्र फनो, तबी तभ
ु शक्तत ऩाओगे।
'भै ऋवष हूॉ', कहने भात्र ही से न होगा, ककन्तु जफ तुभ मथाथय ऋवषतव राब कयोगे,
तो दे खोगे, दस
ु ये आऩ ही आऩ तुम्हायी आऻा भानते है ।
तुम्हाये बीतय से कुछ यहथमभम वथतु तनसत
ृ होती है ,
जो दस
ू यो को तम्
ु हाया अनस
ु यण कयने को फाध्म कयती है ,
क्जससे वे तुम्हायी आऻा का ऩारन कयते है । महाॉ तक कक
अऩनी इच्छा के ववरुध्ध अऻात बाव से वे तुम्हायी मोजनाओ की
ससक्ध्ध भें सहामक होते है । मही ऋवषतव है ।"
ॐ.

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