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BG Chapter 1 To 6 12 Texts
BG Chapter 1 To 6 12 Texts
chapter 3 3.27
chapter 6 6.47
अब म अपनी कृ पण-दबु लता के कारण अपना कत य भल ू गया हँ और सारा धैय खो चकू ा हँ | ऐसी
अव था म म आपसे पछू रहा हँ िक जो मेरे िलए ेय कर हो उसे िनि त प से बताएँ | अब म
आपका िश य हँ और शरणागत हँ | कृ या मझु े उपदेश द |
इस कार यह परम िव ान गु -पर परा ारा ा िकया गया और राजिषय ने इसी िविध से इसे समझा |
िक तु काल म म यह पर परा िछ न हो गई, अतः यह िव ान यथा प म लु हो गया लगता है |
हे अजन!
ु जो मेरे अिवभाव तथा कम क िद य कृ ित को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस
भौितक ससं ार म पनु ः ज म नह लेता, अिपतु मेरे सनातन धाम को ा होता है |
ति ि िणपातेन प र ेन सेवया |
उपदे यि त ते ानं ािनन त वदिशनः || ३४ ||
तमु गु के पास जाकर स य को जानने का यास करो | उनसे िवनीत होकर िज ासा करो और उनक
सेवा करो | व पिस यि तु ह ान दान कर सकते ह, य िक उ ह ने स य का दशन िकया है |
और सम त योिगय म से जो योगी अ य त ापवू क मेरे परायण है, अपने अ तःकरण म मेरे िवषय म
सोचता है और मेरी िद य ेमाभि करता है वह योग म मझु से परम अ तरंग प म यु रहता है और सब
म सव च है | यही मेरा मत है |