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गजेन्द्र मोक्ष
गजेन्द्र मोक्ष
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ी शक
ु दे व जी ने कहा –
य न चय कर यव सत म त से मन थम दय से जोड लया ।
फर पव
ू ज म म अनु श त इस परम मं का जाप कया ॥१॥
गजे बोला –
बन सतोगण
ु ी सु नव ृ माग से पाते िजसको व व जन ।
जो सखु व प नवाण ज नत, जो मो धामप त, उसे नमन
॥११॥
जो ान प से छपा गण
ु के बीच, का ठ म यथा अनल ।
अ भ यि त चाहता मन िजसका, िजस समय गण ु म हो हलचल
॥
म नम कार करता उनको, जो वयं का शत ह उनम ।
आ मालोचन करके न रहे जो व ध नषेध के बंधन म ॥१६॥
वह नह दे व, वह असरु नह , वह नह म य वह ल ब नह ।
वह कारण अथवा काय नह , गण ु , कम, पु ष या जीव नह ॥
सबका कर दे ने पर नषेध, जो कुछ रह जाता शेष, वह ।
जो है अशेष हो कट आज, हर ले मेरा सब लेश वह ॥२४॥
ी शक
ु दे व जी ने कहा –
यह नराकार-वपु भेदर हत क तु त गजे व णत सन ु कर ।
आकृ त वशेषवाले प के अ भमानी मा द अमर ॥
आये जब उसके पास नह , तब ी ह र जो आ मा घट घट ।
के होने से सब दे व प, हो गये वहाँ उस काल कट ॥३०॥