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- - - पितरों को श्रद्धा दें, वे शक्ति देंगे (अखिल विश्व गायत्री परिवार)
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िपतरों को ा द, वे श दगे
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9/21/2019 .:: िपतरों को ा द, वे श दगे (अ खल िव गाय ी प रवार)
पूव व था- ा सं ार के िलए सामा य दे व पूजन की साम ी के अित र नीचे िलखे अनुसार व था
बना लेनी चािहए।
* तपण के िलए पा ऊँचे िकनारे की थाली, परात, पीतल या ील की टै िनयाँ (तसले, तगाड़ी के आकार के पा )
जैसे उपयु रहते ह। एक पा िजसम तपण िकया जाए, दू सरा पा िजसम जल अिपत करते रह। तपण पा म
जल पूित करते रहने के िलए कलश आिद पास ही रहे । इसके अित र कुश, पािव ी, चावल, जौ, ितल थोड़ी-
थोड़ी मा ा म रख।
* िप दान के िलए लगभग एक पाव गुँथा आ जौ का आटा। जौ का आटा न िमल सके, तो गे ँ के आटे म जौ,
ितल िमलाकर गूँथ िलया जाए। िप थापन के िलए प ल, केले के प े आिद। िप दान िसंिचत करने के िलए
दू ध- दही, मधु थोड़ा- थोड़ा रहे ।
* पंचबिल एवं नैवे के िलए भो पदाथ। सामा भो पदाथ के साथ उद की दाल की िटिकया (बड़े ) तथा दही
इसके िलए िवशेष प से रखने की प रपाटी है । पंचबिल अिपत करने के िलए हरे प े या प ल ल।
* पूजन वेदी पर िच , कलश एवं दीपक के साथ एक छोटी ढे री चावल की यम तथा ितल की िपतृ आवाहन के
िलए बना दे नी चािहए।
म व था- ा सं ार म दे वपूजन एवं तपण के साथ पंचय करने का िवधान है । यह पंचय , य ,
िपतृय , भूतय एवं मनु य है । इ तीक प म ‘बिलवै दे व’ की ि या म भी कराने की प रपाटी है । वैसे
िपतृय के िलए िप दान, भूतय के िलए पंचबिल, मनु य के िलए ा स का िवधान है । दे वय के
िलए स वृि संवधन- दे वदि णा स तथा य के िलए गाय ी िविनयोग िकया जाता है । अ ेि करने
वाले को धान यजमान के प म िबठाया जाता है । िवशेष कृ उसी से कराये जाते ह। अ स यों को भी
वाचन, य ा ित आिद म स िलत िकया जाना उपयोगी है ।
ार म षट् कम के बाद स कराएँ । िफर र ािवधान तक के उपचार करा िलये जाते ह। इसके बाद िवशेष
उपचार ार होते ह।
ार म यम एवं िपतृ आवाहन- पूजन करके तपण कराया जाता है । तपण के बाद मशः य , दे वय ,
िपतृय एवं मनु य कराएँ ।
इन य ों के बाद अि थापना करके िविधवत् गाय ी य कराएँ । िवशेष आ ितयों के बाद कृत्, पूणा ित
आिद स कराते ए समय की सीमा को दे खते ए य का समापन सं ेप या िव ारपूवक कराएँ ।
िवसजन के पूव दो थािलयों म भोजन सजाकर रख। इनम दे वों और िपतरों के िलए नैवे अिपत िकया जाए। िपतृ
नैवे की थाली म िकसी मा वयोवृ अथवा पुरोिहत को भोजन करा द और दे व नैवे िकसी क ा को िजमाया
जाए। िवसजन करने के प ात् पंचबिल के भाग यथा थान प ँ चाने की व था कर। िप नदी म िवसिजत करने
या गौओं को खलाने की प रपाटी है । इसके बाद िनधा रत म से प रजनों, क ा, ा ण आिद को भोजन
कराएँ । राि म सं ार थल पर दीपक रख।
॥ ा कम संक ॥
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॥ यम दे वता- पूजन॥
यम को मृ ु का दे वता कहा जाता है । यम िनय ण करने वाले को तथा समय को भी कहते ह। सृि का स ुलन-
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िनय ण बनाये रखने के िलए मृ ु भी एक आव क ि या है । िनय ण- स ुलन को बनाये रखने वाली काल
की सीमा का रण रखने से जीवन स ुिलत, व थत तथा खर एवं गितशीलता बनाये रखने की ेरणा
िमलती है ।
॥ यम ो ॥
इसके प ात् इस सं ार के िवशेष कृ आर िकये जाएँ । कलश की धान वेदी पर ितल की एक छोटी ढे री
लगाएँ , उसके ऊपर दीपक रख। इस दीपक के आस- पास पु ों का घेरा, गुलद ा आिद से सजाएँ । छोटे - छोटे
आटे के बने ऊपर की ओर ब ी वाले घृतदीप भी िकनारों पर सीमा रे खा की तरह लगा द। उप थत लोग हाथ म
अ त लेकर मृता ा के आवाहन की भावना कर और धान दीपक की लौ म उसे कािशत आ दे ख। इस
आवाहन का म ॐ िव े दे वास.. है । सामूिहक म ो ार के बाद हाथ म रखे चावल थापना की चौकी पर छोड़
िदये जाएँ । आवािहत िपतृ का ागत- स ान षोडशोपचार या पंचोपचार पूजन ारा िकया जाए।
ॐ िव ेदेवास ऽ आगत, णुता म ऽ इम हवम्। एदं बिहिनषीदत। ॐ िव ेदेवाः णुतेम œ हवं मे, ये अ र े
ि े ि ि ि ि
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यऽ उप िज ा उत वा यज ा, आस ा
िव । ये अि बिहिष मादय म्। - ७.३४,३३.५३
ॐ िपतृ
(/)
ो नमः। आवाहयािम, थापयािम, ायािम।
All World Gayatri Pariwar
॥ तपण॥
िदशा एवं ेरणा- आवाहन, पूजन, नम ार के उपरा तपण िकया जाता है । जल म दू ध, जौ, चावल, च न डाल
कर तपण काय म यु (.navbar-collapse)
करते ह। िमल सके, तो ग ा जल भी डाल दे ना चािहए।
तृ के िलए तपण िकया जाता है । ग थ आ ाओं की तृ िकसी पदाथ से, खाने- पहनने आिद की व ु से
नहीं होती: ोंिक थूल शरीर के िलए ही भौितक उपकरणों की आव कता पड़ती है । मरने के बाद थूल शरीर
समा होकर, केवल सू शरीर ही रह जाता है । सू शरीर को भूख- ास, सद - गम आिद की आव कता
नहीं रहती, उसकी तृ का िवषय कोई, खा पदाथ या हाड़- मां स वाले शरीर के िलए उपयु उपकरण नहीं
हो सकते। सू शरीर म िवचारणा, चेतना और भावना की धानता रहती है , इसिलए उसम उ ृ भावनाओं से
बना अ ःकरण या वातावरण ही शा दायक होता है ।
इस संसार म थूलशरीर वाले को िजस कार इ य भोग, वासना, तृ ा एवं अह ार की पूित म सुख
िमलता है , उसी कार िपतरों का सू शरीर शुभ कम से उ सुग का रसा ादन करते ए तृ का
अनुभव करता है । उसकी स ता तथा आकां ा का के िब दु ा है । ा भरे वातावरण के साि म िपतर
अपनी अशा खोकर आन का अनुभव करते ह, ा ही इनकी भूख है , इसी से उ तृ होती है । इसिलए
िपतरों की स ता के िलए ा एवं तपण िकये जाते ह। इन ि याओं का िविध- िवधान इतना सरल एवं इतने कम
खच का है िक िनधन से िनधन भी उसे आसानी से स कर सकता है ।
तपण म धानतया जल का ही योग होता है । उसे थोड़ा सुग त एवं प रपु बनाने के िलए जौ, ितल, चावल,
दू ध, फूल जैसी दो- चार मां गिलक व ुएँ डाली जाती ह। कुशाओं के सहारे जौ की छोटी- सी अ िल
म ो ारपूवक डालने मा से िपतर तृ हो जाते ह; िक ु इस ि या के साथ आव क ा, कृत ता,
स ावना, ेम, शुभकामना का सम य अव होना चािहए। यिद ा िल इन भावनाओं के साथ की गयी है ,
तो तपण का उ े पूरा हो जायेगा, िपतरों को आव क तृ िमलेगी; िक ु यिद इस कार की कोई ा
भावना तपण करने वाले के मन म नहीं होती और केवल लकीर पीटने के िलए मा पानी इधर- उधर फैलाया
जाता है , तो इतने भर से कोई िवशेष योजन पूण न होगा, इसिलए इन िपतृ- कम के करने वाले यह ान रख
िक इन छोटे - छोटे ि या- कृ ों को करने के साथ- साथ िदवंगत आ ाओं के उपकारों का रण कर, उनके
सद् गुणों तथा स म के ित ा कर। कृत ता तथा स ान की भावना उनके ित रख और यह अनुभव
कर िक यह जलां जिल जैसे अिकंचन उपकरणों के साथ, अपनी ा की अिभ करते ए ग य आ ाओं
के चरणों पर अपनी स ावना के पु चढ़ा रहा ँ । इस कार की भावनाएँ िजतनी ही बल होंगी, िपतरों को
उतनी ही अिधक तृ िमलेगी।
िजस िपतर का गवास आ है , उसके िकये ए उपकारों के ित कृत ता करना, उसके अधूरे छोड़े ए
पा रवा रक एवं सामािजक उ रदािय को पूरा करने म त र होना तथा अपने एवं वातावरण को
मंगलमय ढाँ चे म ढालना मरणो र सं ार का धान योजन है । गृह शु , सूतक िनवृि का उ े भी इसी
िनिम की जाती है , िक ु तपण म केवल इ ीं एक िपतर के िलए नहीं; ब पूव काल म गुजरे ए अपने
प रवार, माता के प रवार, दादी के प रवार के तीन- तीन पीढ़ी के िपतरों की तृ का भी आयोजन िकया जाता
है । इतना ही नहीं इस पृ ी पर अवत रत ए सभी महान् पु षों की आ ा के ित इस अवसर पर ा
करते ए अपनी स ावना के ारा तृ करने का य िकया जाता है ।
तपण को छः भागों म िवभ िकया गया है - १- दे व, २- ऋिष- तपण, ३- िद - मानव, ४- िद - िपतृ, ५- यम-
तपण और ६- मनु - िपतृ। सभी तपण नीचे िलखे म से िकये जाते ह।
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॥ दे व तपणम्॥
All World Gayatri Pariwar (/)
दे व श याँ ई र की वे महान् िवभूितयाँ ह, जो मानव- क ाण म सदा िनः ाथ भाव से य रत ह। जल, वायु,
सूय, अि , च , िवद् युत् तथा अवतारी ई र अंगो की मु आ ाएँ एवं िव ा, बु , श , ितभा, क णा, दया,
स ता, पिव ता जैसी स वृि याँ सभी दे व श यों म आती ह। य िप ये िदखाई नहीं दे तीं, तो भी इनके अन
उपकार ह। यिद इनका (.navbar-collapse)
लाभ न िमले, तो मनु के िलए जीिवत रह सकना भी स व न हो। इनके ित कृत ता
की भावना करने के िलए यह दे व- तपण िकया जाता है ।
जल म चावल डाल। कुश- मोटक सीधे ही ल। य ोपवीत स (बाय क े पर) सामा थित म रख। तपण के
समय अ िल म जल भरकर सभी अँगुिलयों के अ भाग के सहारे अिपत कर। इसे दे वतीथ मु ा कहते ह। ेक
दे वश के िलए एक- एक अ िल जल डाल। पूवािभमुख होकर दे ते चल।
॥ ऋिष तपण॥
दू सरा तपण ऋिषयों के िलए है । ास, विस , या व , का ायन, अि , जमदि , गौतम, िव ािम , नारद,
चरक, सु ुत, पािणिन, दधीिच आिद ऋिषयों के ित ा की अिभ ऋिष तपण ारा की जाती है । ऋिषयों
को भी दे वताओं की तरह दे वतीथ से एक- एक अ िल जल िदया जाता है ।
ॐ मरी ािद दशऋषयः आग ु गृ ु एतान् जलां जलीन्। ॐ मरीिच ृ ताम्।ॐ अि ृ ताम्।
ॐ अि रा ृ ताम्। ॐ पुल ृ ताम्।
ॐ पुलह ृ ताम्। ॐ तु ृ ताम्।
ॐ विस ृ ताम्। ॐ चेता ृ ताम्।
ॐ भृगु ृ ताम्। ॐ नारद ृ ताम्।
ि
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॥ िद - मनु
तपण॥
All World
तीसरा तपण Gayatri
िद मानवों Pariwar
के िलए (/)
है । जो पूण प से सम जीवन को लोक क ाण के िलए अिपत नहीं कर
सक; पर अपना, अपने प रजनों का भरण- पोषण करते ए लोकमंगल के िलए अिधकािधक ाग- बिलदान
करते रहे , वे िद मानव ह। राजा ह र , र दे व, िशिव, जनक, पा व, िशवाजी, ताप, भामाशाह, ितलक
जैसे महापु ष इसी ेणी म आते ह।
िद मनु तपण उ रािभमु ख िकया जाता है । जल म जौ डाल। जनेऊ क की माला की तरह रख। कुश हाथों
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म आड़े कर ल। कुशों के म भाग से जल िदया जाता है । अ िल म जल भरकर किन ा (छोटी उँ गली) की जड़
के पास से जल छोड़, इसे ाजाप तीथ मु ा कहते ह। ेक स ोधन के साथ दो- दो अ िल जल द-
ॐ सनकादयः िद मानवाः आग ु गृ ु एतान् जलां जलीन्। ॐ सनक ृ ताम्॥ २॥
ॐ सन न ृ ताम्॥ २॥ ॐ सनातन ृ ताम्॥ २॥ ॐ किपल ृ ताम्॥ २॥
ॐ आसु र ृ ताम्॥ २॥ ॐ वोढु ृ ताम्॥ २॥ ॐ प िशख ृ ताम्॥ २॥
॥ िद - िपतृ
चौथा तपण िद िपतरों के िलए है । जो कोई लोकसेवा एवं तप या तो नहीं कर सके, पर अपना च र हर ि से
आदश बनाये रहे , उस पर िकसी तरह की आँ च न आने दी। अनुकरण, पर रा एवं ित ा की स ि पीछे वालों
के िलए छोड़ गये। ऐसे लोग भी मानव मा के िलए व नीय ह, उनका तपण भी ऋिष एवं िद मानवों की तरह
ही ापूवक करना चािहए।
इसके िलए दि णािभमुख हों। वामजानु (बायाँ घुटना मोड़कर बैठ) जनेऊ अपस (दािहने क े पर सामा से
उलटी थित म) रख। कुशा दु हरे कर ल। जल म ितल डाल। अ िल म जल लेकर दािहने हाथ के अँगूठे के सहारे
जल िगराएँ । इसे िपतृ तीथ मु ा कहते ह। ेक िपतृ को तीन- तीन अ िल जल द।
ॐ क वाडादयो िद िपतरः आग ु गृ ु एतान् जलां जलीन्। ॐ क वाडानल ृ ताम्। इदं सितलं जलं
(गंगाजलं वा) त ै धा नमः॥ ३॥ ॐ सोम ृ ताम्, इदं सितलं जलं (गंगाजलं वा) त ै धा नमः॥ ३॥
ॐ यम ृ ताम्, इदं सितलं जलं (गंगाजलं वा) त ै धा नमः॥ ३॥ ॐ अयमा तृ ताम्। इदं सितलं जलं
(गंगाजलं वा) त ै धा नमः॥ ३॥ ॐ अि ा ाः िपतर ृ ाम्। इदं सितलं जलं (ग ाजलं वा) ते ः धा
नमः॥ ३॥ ॐ सोमपाः िपतर ृ ाम्। इदं सितलं जलं (गंगाजलं वा) ते ः धा नमः॥ ३॥ ॐ बिहषदः
िपतर ृ ाम्। इदं सितलं जलं (गंगाजलं वा) ते ः धा नमः॥ ३॥
॥ यम तपण॥
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इसके बाद अपने प रवार से स त िदवंगत नर- ना रयों का म आता है । १- िपता, बाबा, परबाबा, माता,
दादी, परदादी। २- नाना, परनाना, बूढ़े परनाना, नानी, परनानी, बूढ़ी परनानी। ३- प ी, पु , पु ी, चाचा, ताऊ,
मामा, भाई, बुआ, मौसी, बिहन, सास, ससुर, गु , गु प ी, िश , िम आिद। यह तीन वंशाविलयाँ तपण के िलए
ह। पहले गो तपण िकया जाता है ।
अ ातामहः (नाना) अमुकशमा अमुकसगो ो वसु प ृ ताम्। इदं सितलं जलं त ै धा नमः॥ ३॥
अ मातामहः (परनाना) अमुकशमा अमुकसगो ो प ृ ताम्। इदं सितलं जलं त ै धा नमः॥ ३॥
अ द् वृ मातामहः (बूढ़े परनाना) अमुकशमा अमुकसगो ो आिद प ृ तां । इदं सितलं जलं त ै धा
नमः॥ ३॥ अ ातामही (नानी) अमुकी दे वी दा अमुक सगो ा ल ी पा तृ ताम्। इदं सितलं जलं त ै धा
नमः॥ ३॥ अ मातामही (परनानी) अमुकी दे वी दा अमुक सगो ा पा तृ ताम्। इदं सितलं जलं त ै
धा नमः॥ ३॥ अ द् वृ मातामही (बूढ़ी परनानी) अमुकी दे वी दा अमुक सगो ा आिद पा तृ ताम्। इदं
सितलं जलं त ै धा नमः॥३॥
॥ इतर तपण॥
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अमुकशमा अमुकसगो ो वुस प ृ ताम्। इदं सितलं जलं त ै धा नमः॥ ३॥ अ द् ाता (अपना भाई)
॥व - िन ीडन॥
शु व जल म डु बोएँ और बाहर लाकर म को पढ़ते ए अपस भाव से अपने बाय भाग म भूिम पर उस
व को िनचोड़ (यिद घर म िकसी मृत पु ष का वािषक ा कम हो, तो व - िन ीड़न नहीं करना चािहए।)
ॐ ये के चा ु ले जाता, अपु ा गोि णो मृताः।
ते गृ ु मया द म्, व िन ीडनोदकम्॥
॥ भी तपण॥
अ म भी तपण िकया जाता है । ऐसे परमाथ परायण महामानव, िज ोंने उ उ े ों के िलए अपना वंश
चलाने का मोह नहीं िकया, भी उनके ितिनिध माने गये ह, ऐसी सभी े ा ाओं को जलदान द-
ॐ वैया पदगो ाय, सां कृित वराय च ।। गंगापु ाय भी ाय, दा ेऽहं ितलोदकम्॥ अपु ाय ददा ेतत्, सिललं
भी वमणे ॥
॥ दे वा दान॥
भी तपण के बाद स होकर पूव िदशा म मुख कर। नीचे िलखे म ों से दे वा दान कर। अ िल म जल
भरकर ेक म के साथ जलधार अँगुिलयों के अ भाग से चढ़ाएँ और नम ार कर। भावना कर िक अपनी
भाव ा को इन असीम श यों म होमते ए आ रक िवकास की भूिमका बना रहे । थम अ सृि िनमाता
ो
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ा को-
ॐ All World
ज ानं थमं Gayatri
पुर ाद् , Pariwar (/)
िवसीमतः सु चो वेनऽ आवः।
स बु ाऽ उपमाऽ अ िव ाः, सत योिनमसत िववः। ॐ णे नमः॥ - १३.३
दू सरा अ पोषणक ा भगवान् िव ु को-
ॐ इदं िव ुिवच मे, ेधा िनदधे पदम्। समूढम पा œ सुरे ाहा॥ ॐ िव वे नमः॥ - ५.१५
तीसरा अ अनुशासन- (.navbar-collapse)
प रवतन के िनय ा िशव महादे व को-
ॐ नम े म वऽ, उतो तऽ इषवे नमः। बा ामुत ते नमः॥ ॐ ाय नमः॥ -१६.१
चौथा अ भूम ल के चेतना- के सिवतादे व सूय को-
ॐ त िवतुवरे ं, भग दे व धीमिह। िधयो यो नः चोदयात्॥ ॐ सिव े नमः॥ -३.३५
पाँ चवाँ अ कृित का स ुलन बनाये रखने वाले दे व- िम के िलए-
ॐ िम चषणीधृतो, ऽवो दे व सानिस।
द् यु ं िच व मम्॥ ॐ िम ाय नमः॥ - ११.६२
छठवाँ अ तपण के मा म से व णदे व के िलए-
ॐ इमं मे व ण ुधी, हवम ा च मृडय। ामव ुराचके। ॐ व णाय नमः। - २१.१
॥ नम ार॥
॥ सूय प थान॥
म क और हाथ गीले कर। सूय की ओर मुख करके हथेिलयाँ क े से ऊपर करके सूय की ओर कर।
सूयनारायण का ान करते ए म पाठ कर। अ म नम ार कर और म क- मुख आिद पर हाथ फेर।
ॐअ केतवो, िवर यो जनाँ २अनु। ाज ो अ यो यथा। उपयामगृहीतोऽिस, सूयाय ा ाजायैष ते, योिनः
सूयाय ा ाजाय। सूय ािज ािज ं, दे वे िस ािज ोऽहं मनु ेषु भूयासम्॥ -८.४०
॥ मुखमाजन- तपण॥
म के साथ यजमान अपना मुख धोये, आचमन करे । भावना कर िक अपनी काया म थत जीवा ा की तुि के
िलए भी यास करगे।
ॐ संवचसा पयसा स नूिभः, अग िह मनसा स िशवेन। ा सुद ो िवदधातु रायः, अनुमा टु त ो यि िल म्॥
-२.२४
े ै
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॥ य All
॥ World Gayatri Pariwar (/)
य म गाय ी िविनयोग होता है । मरणो र सं ार के संदभ म एकि त सभी कुटु ी- िहतैषी प रजन एक
साथ बैठ। मृता ा के ेह- उपकारों का रण कर। उसकी शा - स ित की कामना करते ए सभी
लोग भावनापूवक पाँ च (.navbar-collapse)
िमनट गाय ी म का मानिसक जप कर, अ म अपने जप का पु मृता ा के
क ाणाथ अिपत करने का भाव कर- यह ूनतम है । यिद स व हो, तो शु िदवस के बाद योदशी तक
भावनाशील प रजन िमल- जुलकर गाय ी जप का एक लघु अनु ान पूरा कर ल। य को उसकी पूणा ित
मान। स बोल-
................ नामाहं ............ ना ः ेत िनवृि ारा, लोकावा ये........ प रमाणं गाय ी महाम ानु ानपु ं
ापूवकम् अहं समपिय े।
॥ दे वय ॥
दे वय म दे व वृि यों का पोषण िकया जाए। दु वृि यों के ाग और स वृि यों के अ ास का उप म
अपनाने से दे वश याँ तु होती ह, दे ववृि याँ पु होती ह। ा के समय सं ार करने वाले मुख प रजन
सिहत उप थत सभी प रजनों को इस य म यथाश भाग लेना चािहए। अपने भाव के साथ जुड़ी दु वृि यों
को सदै व के िलए या िकसी अविध तक के िलए छोड़ने, परमाथपरक गितिविधयों को अपनाने का स कर
िलया जाए, उसका पु मृता ा के िहताथ अिपत िकया जाए। स -
........ नामाहं ...... नामकमृता नः दे वगित दानाथ.... िदनािन यावत् मासपय ं- वषपय ं.... दु वृ ु ूलनैः .....
स वृि संधारणैः जायमानं पु ं मृता नः समु षणाय ापूवकं अहं समपिय े।
॥ िपतृय ॥
छः तपण िजनके िलए िकये गये थे, उनम से ेक वग के िलए एक- एक िप है । सातवाँ िप मृता ा के िलए
है । अ पाँ च िप उन मृता ाओं के िलए ह, जो पु ािद रिहत ह, अि द ह, इस या िकसी ज के ब ु ह,
उ कुल, वंश वाले ह, उन सबके िनिम ये पाँ च िप समिपत ह। ये बारहों िप पि यों के िलए अथवा गाय
के िलए िकसी उपयु थान पर रख िदये जाते ह। मछिलयों को चुगाये जा सकते ह। िप रखने के िनिम कुश
िबछाते ए िन म बोल।
॥ िप समपण ाथना॥
िप तैयार करके रख, हाथ जोड़कर िप समपण के भाव सिहत नीचे िलखे म बोले जाएँ -
ॐ आ णो ये िपतृवंशजाता, मातु था वंशभवा मदीयाः। वंश ये ये मम दासभूता, भृ ा थैवाि तसेवका ॥
िम ािण िश ाः पशव वृ ाः, ा ृ ा कृतोपकाराः। ज ा रे ये मम संगता , तेषां धा िप महं
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ददािम॥
॥ िप दान॥
िप दािहनेAll World
हाथ म Gayatri
िलया जाए। Pariwar (/)
म के साथ िपतृतीथ मु ा से दि णािभमुख होकर िप िकसी थाली या प ल
म मशः थािपत कर-
१- थम िप दे वताओं के िनिम -
ॐ उदीरतामवर उ रास, ऽउ माः िपतरः सो ासः। असुं यऽईयुरवृका ऋत ाः, ते नोऽव ु िपतरो हवेषु।
-१९.४९ (.navbar-collapse)
२- दू सरा िप ऋिषयों के िनिम -
ॐ अि रसो नः िपतरो नव ा, अथवाणो भृगवः सो ासः। तेषां वय œ सुमतौ यि यानाम्,अिप भ े सौमनसे
ाम॥ -१९.५०
३- तीसरा िप िद मानवों के िनिम -
ॐ आय ु नः िपतरः सो ासः, अि ा ाः पिथिभदवयानैः। अ े धया मद ः, अिधबुरव ् ु
तेऽव ान्॥ -१९.५८
४- चौथा िप िद िपतरों के िनिम -
ॐ ऊज वह ीरमृतं घृतं, पयः कीलालं प र ुतम्। धा थ तपयत मे िपतृन्॥ -२.३४
५- पाँ चवाँ िप यम के िनिम -
ॐ िपतृ ः धािय ः धा नमः, िपतामहे ः धािय ः धा नमः, िपतामहे ः धािय ः धा नमः।
अ तरोऽमीमद , िपतरोऽतीतृप िपतरः, िपतरः शु म्॥ -१९.३६
६- छठवाँ िप मनु - िपतरों के िनिम -
ॐ ये चेह िपतरो ये च नेह, याँ िव याँ २ उ च न िव । ं वे यित ते जातवेदः, धािभय œ सुकृतं जुष ॥
-१९.६७
७- सातवाँ िप मृता ा के िनिम -
ॐ नमो वः िपतरो रसाय, नमो वः िपतरः शोषाय, नमो वः िपतरो जीवाय, नमो वः िपतरः धायै, नमो वः िपतरो
घोराय, नमो वः िपतरो म वे, नमो वः िपतरः िपतरो, नमो वो गृहा ः िपतरो, द सतो वः िपतरो दे ैत ः, िपतरो
वासऽआध । -२.३२
८- आठवाँ िप पु दार रिहतों के िनिम -
ॐ िपतृवंशे मृता ये च, मातृवंशे तथैव च। गु सुरब ूनाम्, ये चा े बा वाः ृताः॥
ये मे कुले लु िप ाः, पु दारिवविजताः। तेषां िप ो मया द ो, मुपित तु॥
९- नौवाँ िप उ कुलवंश वालों के िनिम -
ॐउ कुलवंशानां , येषां दाता कुले निह। धमिप ो मया द ो, मुपित तु॥
१०- दसवाँ िप गभपात से मर जाने वालों के िनिम - ॐ िव पा आमगभा , ाता ाताः कुले मम। तेषां िप ो
मया द ो, मुपित तु॥
११- ारहवाँ िप इस ज या अ ज के ब ुओं के िनिम -
ॐ अि द ा ये जीवा, ये द ाः कुले मम। भूमौ द ेन तृ ु, धमिप ं ददा हम्॥
१२- बारहवाँ िप इस ज या अ ज के ब ुओं के िनिम -
ॐ ये बा वाऽ बा वा वा, ये ऽ ज िन बा वाः। तेषां िप ो मया द ो, मुपित तु॥
यिद तीथ ा म, िपतृप म से एक से अिधक िपतरों की शा के िलए िप अिपत करने हों, तो नीचे िलखे
वा म िपतरों के नाम- गो आिद जोड़ते ए वा त सं ा म िप दान िकये जा सकते ह।
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॥ भूतय - पंचबिल॥
भूतय के िनिम पंचबिल ि या की जाती है । िविभ योिनयों म सं ा जीव चेतना की तुि हे तु भूतय िकया
जाता है । अलग- अलग प ों या एक ही बड़ी प ल पर, पाँ च थानों पर भो पदाथ रखे जाते ह। उद- दाल की
िटिकया तथा दही इसके िलए रखा जाता है । पाँ चों भाग रख। मशः म बोलते ए एक- एक भाग पर अ त
छोड़कर बिल समिपत कर।
१- गोबिल- पिव ता की तीक गऊ के िनिम -
ॐ सौरभे ः सविहताः, पिव ाः पु राशयः।
ितगृ ु मे ासं, गाव ैलो मातरः॥ इदं गो ः इदं न मम।
२- कु ु रबिल- क िन ा के तीक ान के िनिम -
ॐ ौ ानौ ामशबलौ, वैव तकुलो वौ।
ता ाम ं दा ािम, ातामेताविहं सकौ॥
इदं ां इदं न मम॥
३- काकबिल- मलीनता िनवारक काक के िनिम -
ॐ ऐ वा णवाय ा, या ा वै नैऋता था।
वायसाः ितगृ ु , भूमौ िप ं मयो तम्।
इसके अ गत दान का िवधान है । िदवंगत आ ा ने उ रािधकार म जो छोड़ा है , उसम से उतना अंश ही ीकार
करना चािहए, जो पीछे वाले िबना कमाऊ बालकों या यों के िनवाह के िलए अिनवाय हो- कमाऊ स ान को
उसे ीकार नहीं करना चािहए। िदवंगत आ ा के अ अहसान ही इतने ह िक उ अनेक ज ों तक चुकाना
े ि ी ि े े ि ोि ि ि ो
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पड़े गा, िफर नया ऋण भारी ाज सिहत चुकाने के िलए ों िसर पर लादा जाए। असमथ थित म अिभभावकों
॥ संक ॥
॥ िवसजन॥
स ूणान् सवभोगै ु, तान् ज ं सुपु लान्॥ इहा ाकं िशवं शा ः, आयुरारो स दः।
ॐ या All
ु दे वWorld
गणाः सवGayatri Pariwar
, पूजामादाय (/)
वृ ः स ानवग , जायतामु रो रा॥ दे व िवसजन- अ म पु ा त छोड़ते ए दे व िवसजन कर।
मामकीम्। इ कामसमृ थ, पुनरागमनाय च॥
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मृत-िपतरों के साथ जीिवत िपतरों, वयोवृ ों को तु -तृ करने के िवशेष योग भी इसके साथ जोड़े जाने चािहए। यिद अपने
प रवार के बुजुग पास म नहीं ह तो िक ीं अ बुजुग को पु -तृ करने के यास िकये जाने चािहए। इस काय को ा -तपण,
ा ण भोजन आिद जैसा ही पु दायी माना जाना चािहए।
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िपतरों को ा द, वे श दगे
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वे श दगे (/festivals/pitru_paksh)
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प रचय
वसुधैवकुटु कम् की मा ता के आदश का अनुकरण करते ये हमारी ाचीन ऋिष पर रा का िव ार करने वाला समूह है गाय ी
प रवार।
एक संत, सुधारक, लेखक, दाशिनक, आ ा क मागदशक और दू रदश युगऋिष पंिडत ीराम शमा आचाय जी ारा थािपत यह िमशन
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युग के प रवतन के िलए एक जन आं दोलन के प म उभरा है ।
रत स क
िवचार प रवतन (/social_initiative/thought_transformation)
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