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Hindi @ Leiden Universiteit

A. Avtans

हार क� जीत

सद
ु शर् (1896-1967)

[Sudarshan was born in Siyalkot (Pakistan) in 1896. His birth name was Badrinath Sharma. Sudarshan
used to write in Hindi & Urdu. He is often considered in the league of great Hindi writer Premchand,
and his stories are full of realism portraying the signs of idealism and reforms in Indian society. He
passed away in Mumbai in 1967.]

माँ को अपने बेटे और �कसान को अपने लहलहाते खेत दे खकर जो आनंद आता है, वह� आनंद बाबा
भारती को अपना घोड़ा दे खकर आता था। भगवद-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अपर् हो जाता।
वह घोड़ा बड़ा सद
ंु र था, बड़ा बलवान। उसके जोड़ का घोड़ा सारे इलाके म� न था। बाबा भारती उसे
‘सल
ु तान’ कह कर पक
ु ारते, अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दाना �खलाते और दे ख-दे खकर पसरन होते थे।
उरहहने पया, माल, असबाब, ज़मीन आ�द अपना सब-कुछ छोड़ �दया था, यहाँ तक �क उरह� नगर के
जीवन से भी घ्
ृ ा थी। अब गाँव से बाहर एक छोटे -से मिरदर म� रहते और भगवान का भजन करते थे।
“म� सल
ु तान के �बना नह�ं रह सकँू गा”, उरह� सी ािरत सी हो गह थी। वे उसक चाल पर लपू थे।
कहते, “ से चलता है जैसे मोर घटा को दे खकर नाच रहा हो।” जब तक संधया समय सल
ु तान पर चढ़कर
आठ-दस मील का चककर न लगा लेत,े उरह� चैन न आता।

खड़ग�संह उस इलाके का प�स� दाकू था। लोग उसका नाम सन


ु कर काँपते थे। होते-होते सल
ु तान क
क �तर उसके कानह तक भी पहुँची। उसका दय उसे दे खने के �लए अ ीर हो उठा। वह एक �दन दोपहर
के समय बाबा भारती के पास पहुँचा और नमसकार करके बैठ गया। बाबा भारती ने पछ
ू ा, “खदग�संह, कया
हाल है ?”

खदग�संह ने �सर झुकाकर उततर �दया, “आपक दया है।”

“कहो, इ र कैसे आ गए?”

“सल
ु तान क चाह खींच लाह।”

“�व�चत जानवर है । दे खोगे तो पसरन हो जाहगे।”

“म�ने भी बड़ी प्ंसा सन


ु ी है ।”

“उसक चाल तम
ु हारा मन मोह लेगीी”

“कहते ह� दे खने म� भी बहुत सँद


ु र है ।”

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“कया कहनाी जो उसे एक बार दे ख लेता है , उसके दय पर उसक छ�व अं�कत हो जाती है ।”

“बहुत �दनह से अ�भलाषा थी, आज उपिसथत हो सका हूँ।”

बाबा भारती और खड़ग�संह असतबल म� पहुँचे। बाबा ने घोड़ा �दखाया घमंद से, खड़ग�संह ने दे खा आशचयर
से। उसने स�कड़ो घोड़े दे खे थे, पररतु सा बाँका घोड़ा उसक आँखह से कभी न गज
ु रा था। सोचने लगा,
भागय क बात है । सा घोड़ा खड़ग�संह के पास होना चा�हए था। इस सा ु को सी चीज़ह से कया लाभ?
कुछ दे र तक आशचयर से चप
ु चाप खड़ा रहा। इसके पशचात त उसके दय म� हलचल होने लगी। बालकह क -
सी अ ीरता से बोला, “परं तु बाबाजी, इसक चाल न दे खी तो कया?”

दस
ू रे के मख
ु से सन
ु ने के �लए उनका दय अ ीर हो गया। घोड़े को खोलकर बाहर गए। घोड़ा वाय-ु वेग
से उदने लगा। उसक चाल को दे खकर खड़ग�संह के दय पर साँप लोट गया। वह दाकू था और जो वसतु
उसे पसंद आ जाए उस पर वह अपना अ� कार समझता था। उसके पास बाहुबल था और आदमी भी।
जाते-जाते उसने कहा, “बाबाजी, म� यह घोड़ा आपके पास न रहने दँ ग
ू ा।”

बाबा भारती दर गए। अब उरह� रात को नींद न आती। सार� रात असतबल क रखवाल� म� कटने लगी।
प�त त् खड़ग�संह का भय लगा रहता, परं तु कह मास बीत गए और वह न आया। यहाँ तक �क बाबा
भारती कुछ असाव ान हो गए और इस भय को सववन के भय क नान �म�या समझने लगे। संधया का
समय था। बाबा भारती सल
ु तान क पीठ पर सवार होकर घम
ू ने जा रहे थे। इस समय उनक आँखह म�
चमक थी, मख
ु पर पसरनता। कभी घोड़े के ्र�र को दे खते, कभी उसके रं ग को और मन म� फूले न
समाते थे। सहसा एक हर से आवाज़ आह, “ह बाबा, इस कंगले क सन
ु ते जाना।”

आवाज़ म� क ्ा थी। बाबा ने घोड़े को रोक �लया। दे खा, एक अपा�हज वत


ृ क छाया म� पड़ा कराह रहा
है । बोले, “कयह तम
ु ह� कया काट है?”

अपा�हज ने हाथ जोड़कर कहा, “बाबा, म� द�ु खयारा हूँ। मझ


ु पर दया करो। रामावाला यहाँ से तीन मील है,
मझ
ु े वहाँ जाना है । घोड़े पर चढ़ा लो, परमातमा भला करे गा।”

“वहाँ तम
ु हारा ककन है ?”

“दग
ु ादर तत वैदय का नाम आपने सन
ु ा होगा। म� उनका सकतेला भाह हूँ।”

बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपा�हज को घोड़े पर सवार �कया और सवयं उसक लगाम पकड़कर ीरे -
ीरे चलने लगे। सहसा उरह� एक झटका-सा लगा और लगाम हाथ से छूट गह। उनके आशचयर का
�ठकाना न रहा, जब उरहहने दे खा �क अपा�हज घोड़े क पीठ पर तनकर बैठा है और घोड़े को दकड़ाए �लए

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A. Avtans

जा रहा है । उनके मख
ु से भय, �वसमय और �नरा्ा से �मल� हुह चीख �नकल गह। वह अपा�हज दाकू
खड़ग�संह था।बाबा भारती कुछ दे र तक चुप रहे और कुछ समय पशचात त कुछ �नशचय करके परू े बल से
�चललाकर बोले, “ज़रा ठहर जाह।”

खड़ग�संह ने यह आवाज़ सन
ु कर घोड़ा रोक �लया और उसक गरदन पर वयार से हाथ फेरते हुए कहा,
“बाबाजी, यह घोड़ा अब न दँ ग
ू ा।”

“परं तु एक बात सन
ु ते जाह।” खड़ग�संह ठहर गया।

बाबा भारती ने �नकट जाकर उसक हर सी आँखह से दे खा जैसे बकरा कसाह क हर दे खता है और
कहा, “यह घोड़ा तम
ु हारा हो चक
ु ा है । म� तम
ु से इसे वापस करने के �लए न कहूँगा। परं तु खड़ग�संह, केवल
एक पाथरना करता हूँ। इसे असवीकार न करना, नह�ं तो मेरा �दल टूट जाएगा।”

“बाबाजी, आ�ा क िजए। म� आपका दास हूँ, केवल घोड़ा न दँ ग


ू ा।”

“अब घोड़े का नाम न लो। म� तम


ु से इस �वषय म� कुछ न कहूँगा। मेर� पाथरना केवल यह है �क इस
घटना को �कसी के सामने पकट न करना।”

खड़ग�संह का मह
ँु आशचयर से खल
ु ा रह गया। उसका �वचार था �क उसे घोड़े को लेकर यहाँ से भागना
पड़ेगा, परं तु बाबा भारती ने सवयं उसे कहा �क इस घटना को �कसी के सामने पकट न करना। इससे कया
पयोजन �स� हो सकता है? खड़ग�संह ने बहुत सोचा, बहुत �सर मारा, परं तु कुछ समझ न सका। हारकर
उसने अपनी आँख� बाबा भारती के मख
ु पर गड़ा द�ं और पछ
ू ा, “बाबाजी इसम� आपको कया दर है?”

सन
ु कर बाबा भारती ने उततर �दया, “लोगह को य�द इस घटना का पता चला तो वे द�न-द�ु खयह पर
�वशवास न कर� गे।” यह कहते-कहते उरहहने सल
ु तान क हर से इस तरह मँह
ु मोड़ �लया जैसे उनका
उससे कभी कोह संबं ह� नह�ं रहा हो।

बाबा भारती चले गए। परं तु उनके ्बद खड़ग�संह के कानह म� उसी पकार गँज
ू रहे थे। सोचता था, कैसे
ऊँचे �वचार ह�, कैसा प�वत भाव है ी उरह� इस घोड़े से पेम था, इसे दे खकर उनका मख
ु फूल क नान �खल
जाता था। कहते थे, “इसके �बना म� रह न सकँू गा।” इसक रखवाल� म� वे कह रात सोए नह�ं। भजन-
भिकत न कर रखवाल� करते रहे । परं तु आज उनके मख
ु पर दख
ु क रे खा तक �दखाह न पड़ती थी। उरह�
केवल यह खयाल था �क कह�ं लोग द�न-द�ु खयह पर �वशवास करना न छोड़ दे । सा मनाु य, मनाु य नह�ं
दे वता है ।

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रा�त के अं कार म� खड़ग�संह बाबा भारती के मं�दर पहुँचा। चारह हर सरनाटा था। आका् म� तारे
�टम�टमा रहे थे। थोड़ी दरू पर गाँवह के कुतते भभक रहे थे। मं�दर के अंदर कोह ्बद सन
ु ाह न दे ता था।
खड़ग�संह सल
ु तान क बाग पकड़े हुए था। वह ीरे - ीरे असतबल के फाटक पर पहुँचा। फाटक खल
ु ा पड़ा
था। �कसी समय वहाँ बाबा भारती सवयं लाठठ लेकर पहरा दे ते थे, परं तु आज उरह� �कसी चोर�, �कसी दाके
का भय न था। खड़ग�संह ने आगे बढ़कर सल
ु तान को उसके सथान पर बाँ �दया और बाहर �नकलकर
साव ानी से फाटक बंद कर �दया। इस समय उसक आँखह म� नेक के आँसू थे। रा�त का तीसरा पहर
बीत चुका था। चकथा पहर आरं भ होते ह� बाबा भारती ने अपनी कु�टया से बाहर �नकल ठं दे जल से
सनान �कया। उसके पशचात त, इस पकार जैसे कोह सववन म� चल रहा हो, उनके पाँव असतबल क हर बढ़े ।
परं तु फाटक पर पहुँचकर उनको अपनी भल
ू पतीत हुह। साथ ह� घोर �नरा्ा ने पाँव को मन-मन भर का
भार� बना �दया। वे वह�ं क गए। घोड़े ने अपने सवामी के पाँवह क चाप को पहचान �लया और ज़ोर से
�हन�हनाया। अब बाबा भारती आशचयर और पसरनता से दकड़ते हुए अंदर घस
ु े और अपने वयारे घोड़े के
गले से �लपटकर इस पकार रोने लगे मानो कोह �पता बहुत �दन से �बछड़े हुए पत
ु से �मल रहा हो।
बार-बार उसक पीठपर हाथ फेरते, बार-बार उसके मह
ँु पर थप�कयाँ दे त।े �फर वे संतोष से बोले, “अब कोह
द�न-द�ु खयह से मह
ँु न मोड़ेगा।

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